गहरी चाल-4
पुरानी सी खड़खड़ाती
हुई सरकारी बस मे हम हसनाबाद की ओर चल दिये थे। अपनी फ्राक त्याग कर चांदनी
ने वामपंथियों की युनीफार्म जींस और कुर्ता पहन लिया था। उसने गले मे एक रेशम का स्कार्फ
डाल लिया जिससे वह जब चाहे चेहरे और सिर को ढक सकती थी। मै भी ट्रेक सूट छोड़ कर जीन्स
और शर्ट मे आ गया था। बस मे बैठे हुए यात्रियों पर एक नजर डाल कर मैने चांदनी से कहा…
कलकत्ता शहर से निकलते ही लगता है कि गरीबी चारों ओर व्याप्त है। पैतींस साल तुम्हारी
वामपंथी सरकार यहाँ रही लेकिन लगता है उन्होंने पर यहाँ पर कुछ नहीं किया। खिड़की के
बाहर कच्ची फूस की झोपड़ियाँ और धान के लहलहाते हुए खेत दिखाते हुए मैने कहा… पूरे रास्ते
मे पक्के मकान उंगलियों पर गिने जा सकते है। यहाँ पर गरीबी के यह हालात है। वह चिड़
कर बोली… तुम हमेशा हमारी विचारधारा पर तंज क्यों कसते रहते हो। क्या गरीबी सिर्फ यहाँ
है, युपी और बिहार मे गरीबी नहीं है क्या? बस की हालत और सड़क के गड्डे तो वैसे ही सिर
का दर्द बन चुके थे इसीलिए मैने बात बदलते हुए कहा… हसनाबाद के बाद कहाँ जाना
है? …हम बहरामपुर, इंग्लिशबजार और कूचबिहार भी जा सकते है। यह तो तुम पर निर्भर करता
है कि तुम क्या देख कर हमारी मदद करना चाहोगे। …चांदनी, मै अपनी कौम की मदद करने से
पीछे कभी नहीं हटूँगा परन्तु अलगावादी और कट्टरपंथियों के साथ मै कभी भी काम नहीं करुँगा।
मेरी बात सुन कर वह कुछ पल चुप रही फिर धीरे से बोली… मेरे लिये भी नहीं। बड़ी दृड़ता
से मैने कहा… किसी के लिये भी नहीं। मेरी बात सुन कर वह चुपचाप बैठ गयी थी।
हसनाबाद छोटा सा शहर था परन्तु
काफी घनी आबादी थी। यहाँ से बांग्लादेश की सीमा नजदीक थी। हम चार बजे तक हसनाबाद पहुँच
गये थे। बस से उतर कर चांदनी ने अपना सिर और चेहरा स्कार्फ से ढक लिया था। अपना बैग
पीठ पर और चांदनी का बैग अपने कंधे पर लाद कर हम दोनो सीधे मोहम्मद अली बेग से मिलने
के लिये चल दिये थे। मोहम्मद अली बेग हसनाबाद शहर की जानी मानी हस्ती थी। हम दोनो की
मूल भाषा बंगाली नहीं थी परन्तु वहाँ पर बहुत से लोग रोजगार की तलाश मे बिहार और यूपी
से आये थे इसीलिए बातचीत करने मे आसानी हो गयी थी। हमारा रिक्शेवाला भी बिहारी था।
उसी ने पूछने पर बताया कि मोहम्मद अली बेग कुछ गाँवों मे अपने मदरसे भी चला रहा था।
शहर के बाहरी इलाके मे उसकी आलीशान कोठी थी। उसने हमे उसकी कोठी के बाहर उतारते हुए पूछा… साहब अगर वापिस जाना है तो मै रुक जाता
हूँ। …हाँ रुक जाओ। रात गुजारने के लिए क्या यहाँ कोई होटल या धर्मशाला है? …हाँ।
…ठीक है। लौट कर हमे उस होटल पर छोड़ देना। यह कह कर अपना सामान रिक्शे मे छोड़ कर हम
कोठी के गेट पर खड़े हुए गार्ड की ओर चल दिये थे। चांदनी ने किसी के नाम का हवाला देकर
कहा… उन्होंने बेग साहब से मिलने भेजा है। गेट पर खड़ा हुआ गार्ड कोठी के अन्दर चला
गया और कुछ देर के बाद अपने साथ एक आदमी को लेकर आता हुआ दिखायी दिया। सिर पर तुर्की
टोपी, सफेद चिकन के कुर्ते और टखने तक के पाजामे मे वह आदमी हमारे पास आकर बोला… हाँ,
किस लिये मिलना है। चांदनी ने जल्दी से कहा… तपन बिस्वास से आपकी बात हुई होगी।
…हाँ। आप शरणार्थी कैंप देखना चाहती है। …जी। वह दोनो बात कर रहे थे और मै उस आदमी
को देख रहा था।
मोहम्मद अली बेग के
पहनावे, बातचीत और हावभाव मे एक बनावटीपन झलक रहा था। फौज मे कम परन्तु ऐसे लोगो को
मैने अपने अब्बा के साथ बहुत बार देखा था। आँखों मे काजल, अधपके खिजाब लगे हुए बाल,
खिचड़ी दाड़ी, गले मे भारी सोने की चेन और हाथ मे तस्बीह देख कर मै एकाएक सावधान हो गया
था। बात करते हुए उसकी आँखें चांदनी पर चिपक कर रह गयी थी कि जैसे वह उसको वहीं निर्वस्त्र
कर रहा था। मैने महसूस किया कि बात करते हुए चांदनी भी असहज हो गयी थी। मैने बीच मे
टोकते हुए कहा… बेग साहब क्या पीने के लिए पानी मिल सकता है। हम दोनो बहुत लम्बा सफर
करके आ रहे है। एकाएक उसकी निगाह मुझ पर पड़ी तो वह झेंपते हुए बोला… जरुर। माफ कीजिए आप लोग अन्दर आईए।
मै इनकी बातों मे खो गया था कि आपको बिलकुल भूल गया। हम दोनो उसके साथ चलते हुए घर
के अन्दर दाखिल हो गये थे। बैठक मे पहुँच कर वह बोला… आप लोग तशरीफ रखिए। यह बोल कर
वह हमे छोड़ कर अन्दर चला गया। मै चुपचाप चांदनी के साथ एक सोफे पर बैठ गया था। कुछ
देर के बाद वह हमारे सामने आकर बैठते हुए बोला… आपकी तारीफ। …मेरा नाम समीर बट है।
हम दोनो साथ पढ़ते है। …ओह। तो आप भी इनके साथ कैंम्प देखने आये है। …जी, इनकी तरह मै
भी देखना चाहता हूँ कि वह लोग कैसे सीमा पार करके यहाँ पहुँचते है और आप जैसे लोग उनकी
कैसे मदद करते है। हम बात कर रहे थे कि दो नौकर ट्रे मे चाय और पानी लेकर आ गये थे।
मैने पानी का ग्लास उठा कर पूछा… बेग साहब, इतना सब काम आप कौम के लिये कर रहे है।
इसके लिये बहुत पैसों की जरुरत पड़ती होगी। पहली बार मेरी बात सुन कर उसकी आँखें चौकन्नी
हो गयी थी। तभी चांदनी बोली… समीर यहाँ इसीलिए मेरे साथ आया है कि वह कैसे अपनी कौम
की मदद पैसों से कर सकता है। इसका कारोबार काफी फैला हुआ है। यह सुन कर अचानक मोहम्मद
अली बेग के हावभाव बदल गये थे।
…हमे ऐसे लोगों की
बहुत जरुरत रहती है। इस काम के लिये सरकार की ओर से हमे कोई खास मदद नहीं मिलती है।
सारा काम अभी तक मै अपने पैसों से चला रहा हूँ। मेरे चार मदरसे सीमावर्ती इलाकों मे
चलते है। मेरे दो शरणार्थी कैंप चल रहे है। हर कैंप मे लगभग 100-120 परिवार ठहरे हुए
है। मैने उसकी बात को बीच मे काटते हुए पूछा… बेग साहब आप मेरी बात का बुरा मत मानिएगा
परन्तु आपने बताया नहीं कि आप क्या काम करते है? मेरी बात सुन कर वह चुप हो गया और
फिर मेरी ओर गौर से देखते हुए बोला… अपना काश्तकारी का काम है। …तो आप किसान है। …जी।
सब अल्लाह की मेहरबानी है। चाय समाप्त करके मैने कहा… बेग साहब। हम चल कर आपका काम
कब देख सकते है? अपनी कलाई पर चमकती हुई घड़ी पर नजर डाल कर वह बोला… कुछ ही देर मे
अब रात हो जाएगी। कल सुबह चलिए आपको मदरसे और कैंम्प दिखा दूँगा। …बेग साहब मैने सुना
है कि सीमा सुरक्षा बल के लोग बड़ा परेशान करते है। …खबीस के बच्चे, बीएसफ वाले पैसे
भी लेते है और हमारी लड़कियों की अस्मत भी तार-तार करते है। मैने चांदनी पर नजर डाली
तो वह मेरी ओर देख रही थी। …सीमा पार करने के लिये वह कितने पैसे लेते है। …तीन सौ
प्रति व्यक्ति। बहुत बार ऐसा होता है कि किसी की बीवी, बहन और बेटी पर बुरी नजर पड़
गयी तो वह उसे एक रात के लिए सीमा पर रोक लेते है और सुबह की पाली बदलने से पहले उसके
परिवार को सौंप देते है। …बेग साहब आप इसके बारे मे कुछ नहीं करते। …मियाँ, पानी मे
रह कर मगर से बैर नहीं किया जा सकता। मैने उठते हुए कहा… बेग साहब इजाजत दीजिए। कल हम कितने बजे
यहाँ हाजिर हो जाएँ? वह खड़े हो कर बोला… आप लोग दस बजे तक आ जाईयेगा। हम लोग बात करते
हुए बाहर निकल आये थे। उससे विदा लेकर जैसे ही हम आगे बढ़े उसने पूछा… आप कहाँ ठहरे
हुए है? …हम यहीं एक होटल मे ठहरे हुए है। वह मुस्कुरा कर चांदनी से बोला…यहाँ के होटल
आप जैसी नाजनीनों के लायक नहीं है। आप चाहे तो यहीं मेरे गरीबखाने मे ठहर जाईये। शुक्रिया
बोल कर चांदनी उसका प्रस्ताव ठुकरा कर मेरे साथ चल दी थी।
वह चलते हुए बड़बड़ाई…
कितना कमीना इंसान है। मुझे उसकी आँखे मेरे कपड़े मे झांकती हुई लग रही थी। …तुम हो
ही इतनी सुन्दर। इसमे उस बेचारे की क्या गलती है। उसने मुझे घूर कर देखा और फिर तेजी
से बोली… अब मुझे वामपंथी विचारधारा पर लेक्चर मत देना। हमारा रिक्शेवाला पेड़ के नीचे
बैठा हुआ बीड़ी फूँक रहा था। हमे आता हुआ देख कर जल्दी से बीड़ी फेंक कर हमारे पास आकर
बोला… बहुत समय लग गया। चलिये आपको होटल लेकर चलता हूँ। …चलो। हम रिक्शे मे बैठ गये
और वह होटल की दिशा मे चल दिया था। कुछ दूर चलने के बाद मैने पूछा… भाई आपका क्या नाम
है? …रामबीर। …तुम बेग साहब को जानते हो? …साहब, उन्हें कौन नहीं जानता। …तुम कब से
यहाँ रह रहे हो? …साहब, मुझे यहाँ आये हुए दस साल से ज्यादा हो गये है। …रामबीर, यहाँ
पर कोई ठेका वगैराह है? …हाँ साहब। यहाँ अंग्रेजी और देसी सभी प्रकार की दारु मिलती
है। …तुम पीते हो? उसने झिझकते हुए कहा… नहीं साहब। …चलो पहले होटल मे कमरा लेकर इन्हें
छोड़ देते है फिर चल कर बोतल का इंतजाम करेंगें। उसने जल्दी पाँव चलाये और एक होटल के
सामने ले जाकर खड़ा हो गया। …साहब, यहाँ का यह सबसे अच्छा होटल है। रामबीर हमारे बैग
उठा कर हमारे साथ चल दिया था। रिसेप्शन पर कागजी औपचारिकताएं पूरी करने मे कोई ज्यादा
समय नहीं लगा और कुछ ही देर मे हम लोग कलकत्ता जैसे एक कमरे मे बैठे हुए थे। रामबीर
ने झिझकते हुए कहा… अच्छा साहब। मैने अपने पर्स से सौ रुपये का एक नोट निकाल कर उसके
हाथ मे रखते हुए कहा… रामबीर यह तुम्हारा आज का मेहनताना है। अब चल कर एक बोतल का इंतजाम
करते है। अचानक चांदनी घुर्रा कर बोली… क्या तुम शराब पीयोगे? …हाँ। बहुत थकान हो रही
है। तुम्हें भी पीना है तो अपनी पसन्द बता दो। वह तुनक कर बोली… मुझे कुछ नहीं पीना
है। …तुम कैसी वामपंथी हो जो नहीं पीती। तुम्हारे घर की पार्टी मे तो सभी पी रहे थे।
यह कह कर चांदनी को वहीं छोड़ कर मै रामबीर के साथ बाहर निकल आया था।
उसने रिक्शा एक किनारे
मे खड़ा किया और बोला… साहब, आप क्या पीयोगे? …तुम क्या पीते हो? वह झेंप कर बोला… मै
नहीं पीता। …अरे यार शर्माना छोड़ो। तुम कौनसी पीते हो। नयी जगह पर मै कोई खतरा मोल
नहीं लेता। …साहब, हम तो कभी-कभी देसी ले लेते है। वैसे यहाँ आप जैसे साहब लोग ज्यादातर
बैगपाईपर लेते है। मैने पर्स से पाँच सौ का नोट निकाल कर उसके हाथ मे रखते हुए कहा…
एक बोतल ले आओ। आज बैगपाईपर पीते है। खाने के लिए क्या मिलेगा? …आप चल कर देख लिजीए।
वहाँ आपको मच्छी, बोटी, वगैराह सब मिल जाएगी। मै उसके साथ चल दिया था। कुछ देर मे एक
बैगपाईपर की बोतल और खाने का सामान लेकर हम होटल की ओर वापिस लौट रहे थे कि मैने पूछा…
रामबीर, वह बेग मियाँ मुझे सही आदमी नहीं लगते है। वह मेरे साथ चुपचाप चल रहा था। …वह
मेरी बीवी को बड़ी गन्दी निगाहों से देख रहा था। अचानक वह धीरे से बोला… साहब, धीरे
बोलिये। वह निहायत ही कमीना इंसान है। वह शराब की दुकान जहाँ से बोतल खरीदी है वह दुकान
उसी की है। …उस कमीने को गोली मारो। पहले चल कर कुछ गला तर किया जाये। हम दोनो कमरे
मे चले गये थे। चांदनी अपने कपड़े बदल कर एक बार फिर से पुरानी वेषभूषा मे आ गयी थी।
मेरे हाथ मे बैगपाईपर की बोतल देख कर वह एक बार फिर से नाराज हो गयी थी।
…रामबीर, तुम कुछ
प्लेट और ग्लास नीचे से ले आओ। तब तक मै खाने का सामान खोलता हूँ। रामबीर जल्दी से
कमरे से बाहर निकल गया और मैने खाना खोल कर बिस्तर पर रखते हुए चांदनी से कहा… कामरेड
अपने कान खुले रखना। अपने वामपंथी जिलाध्यक्ष की असलियत जान लो। रामबीर ने तीन प्लेट
और ग्लास बिस्तर पर रख कर जमीन पर चुपचाप बैठ गया। मैने बोतल खोल कर एक ग्लास रामबीर
को पकड़ाते हुए कहा… भाई अपने हिसाब से अपना ग्लास तैयार कर लो। मैने अपनी एक ड्रिंक
खुद तैयार की और हवा मे उठा कर बोला… चीयर्स। रामबीर ने हवा मे ग्लास उठाया और उँगली
ग्लास मे डाल कर हवा मे छिड़क कर एक भरपूर घूँट भर कर बोला… साहब आप देवता हो। मैने
एक घूँट भर कर कहा… भाई, मेरी बीवी की नजर मे हम दोनो तो पापी इंसान है। उसके लिये
तो बेग साहब देवता है जो हर घड़ी माला जपते रहते है। वह एक पल चुप हो गया और एक और बड़ा
सा घूँट लेकर बोला… साहब, वह दोगला इंसान है। यहाँ रहने वाले सभी पुराने लोग उसकी असलियत
जानते है। सात साल पहले तक वह सड़कछाप गुन्डा था। मै जब नया-नया यहाँ आया था तब मजदूरी
करने के लिये हम सभी से वह जबरदस्ती हफ्ता वसूला करता था। वह मारा-मारी और बलात्कार
के जुर्म मे चार बार जेल हो आया है और अब कैसा दयावान बनता है। इतना बोल कर एक ही घूँट
मे उसने अपना ग्लास खाली कर दिया था। चांदनी पर एक नजर डाल कर मैने कहा… भाई, तुम अपना
ग्लास बनाओ और कुछ खाते भी रहो। खाली पेट शराब सीधे दिमाग पर चड़ जाती है। …साहब, यह
विदेशी दारु हम पर कोई खास असर नहीं करती। वह अपना ग्लास भरने मे लग गया था।
चांदनी जो अब तक मुँह
फुलाये दूर बैठी थी सरक कर मेरे साथ आकर बैठ गयी। मैने प्लेट उसकी ओर बड़ाते हुए कहा…
तुम खाना खा लो। उसने मेरी ओर घूर कर देखा और प्लेट लेकर खाना खाने बैठ गयी थी। मैने
एक घूँट लेकर कहा… अरे रामबीर, वह तो बता रहा था कि वह अपने पैसे से मदरसे और शरणार्थी
कैंप चला रहा है। अबकी बार वह हँसते हुए बोला… हाँ साहब, यह बात तो ठीक है परन्तु उसकी
असलियत कोई नहीं जानता है। कैंम्प की औरते और लड़कियों को वह यहाँ के अफसरों को सप्लाई
करता है। कुछ दिन पहले मंसूर का पाँच साल का लड़का खेत मे मरा हुआ मिला था। सब जानते
है कि उसके मदरसे मे क्या चलता है। सब जानते है कि उसके लोग मदरसे मे जाने वाले छोटे
बच्चे और बच्चियों के साथ कैसा कुकर्म करते है। साहब, क्या बताऊँ उसके लोग फौज की वर्दी
पहन कर सीमा पार से असला और बारुद लेकर आते है। उसके गोदाम मे कितना असला रखा हुआ है
कोई नहीं जानता परन्तु पिछले चार चुनावों मे यहाँ जितनी भी मारकाट हुई है वह सब उसी
ने करवायी थी। कोई उसके खिलाफ कुछ नहीं बोलता क्योंकि पुलिस उसके हाथों की कठपुतली
बनी हुई है। पहले वामपंथियों के लिये वह चुनाव मे बूथ पर कब्जा किया करता था और फिर
यहाँ के विधायक ने उसे पार्टी का जिलाध्यक्ष नियुक्त करवा दिया था। आपने उसकी कोठी
तो देखी है। असल मे वह कोठी बिनायक बाबू की है जिस पर उसने जबरदस्ती कब्जा कर लिया
था। बात करते हुए वह तीन ग्लास खाली कर चुका था। मेरा ग्लास भी खाली हो गया था तो उसने
जल्दी से मेरा ग्लास भर कर कहा… साहब, मेरी सलाह मानो तो आप मेमसाहब को लेकर जल्दी
से जल्दी यहाँ से निकल जाओ।
अचानक चांदनी ने पूछा…
भईया, उन कैंपों मे रहने वाले किसी परिवार को आप जानते है। रामबीर एक पल के लिये चुप
हो गया और फिर कुछ सोच कर बोला… कुछ महीने पहले कैंम्प की एक लड़की की लाश शहर के बाहर
तालाब के पास पड़ी मिली थी। आप उसके परिवार से बात कर सकती है। कैंम्प मे जितने जवान
लड़के और आदमी रहते है वह सब बेग के लिये तस्करी का काम करते है। पुलिस की छ्त्रछाया
मे उसका सारा गैरकानूनी काम चल रहा है। …सीमा पर तो बीएसएफ लगी हुई है तो भला यह कैसे
मुमकिन हो सकता है। …छोड़िये साहब। वह लोग भी बिके हुए है। हर आदमी पैसा बनाने मे लगा
हुआ है। भला बीएसएफ के होते हुए कैसे हर जुमे की रात को दो सौ से ज्यादा बंग्लादेशी
यहाँ घुस जाते है। हर महीने आधे से ज्यादा बेग साहब के कैंम्प मे रहने वाले परिवार
कैसे बदल जाते है। कोई भी परिवार कैंम्प मे बस उतने दिन ही ठहरता है जब तक उसका पहचान
पत्र और राशन कार्ड नहीं बनता। एक बार उसके कार्ड बन गये तो वह रात के अंधेरे मे देश
मे इधर-उधर निकल जाते है। …रामबीर, मैने सुना है कि यहाँ पर जबरदस्ती धर्म परिवर्तन
भी कराया जा रहा है। …नहीं साहब। ऐसी बात नहीं है। कैंम्प मे आने वालो मे बहुत कम हिन्दु
परिवार होते है। उनकी औरतों और लड़कियों को अपने लड़को के साथ जबरदस्ती निकाह पढ़वा मुसलमान
बनवा देना तो यहाँ आम बात है। कैंम्प के बाहर धर्म परिवर्तन की बात मैने कभी नहीं सुनी
है। अब बोलते हुए रामबीर की आवाज लड़खड़ाने लगी थी। मैने कहा… बहुत हो गया है। रामबीर
कुछ खाकर घर चले जाओ। अभी भी एक तिहाई बोतल बच गयी थी। वह ललचाई हुई नजरों से बोतल
को देख रहा था। मैने जल्दी से अपना ग्लास भरा और एक खाली ग्लास भर कर चांदनी की ओर
बढ़ाते हुए कहा… मेमसाहब आज एक जाम तो हमारे साथ भी पी सकती हो। कह कर वह ग्लास उसके
आगे रख कर बाकी की बोतल रामबीर की ओर बढ़ाते हुए कहा… लो इसको तुम खत्म करो। रामबीर
ने झपट कर बोतल को मुँह से लगाया और एक घूँट मे बोतल खाली करके बोला… साहब, मै कुछ
खाने का सामान अपने साथ ले जाता हूँ। अपने रिक्शे पर बैठ कर आराम से खा लूँगा। …ले
जाओ यार। आज पीने मे मजा आ गया। उसने खाने का सामान एक थैले मे भरा और उठते हुए बोला…
साहब, चलता हूँ। कल सुबह कितने बजे आ जाऊँ? …दस बजे तक आ जाना। …मै नौ बजे ही पहुँच
जाऊँगा साहब। यह बोल कर वह कमरे से बाहर निकल गया था।
प्लेट मे रखा हुआ
खाना खाते हुए मैने पूछा… कामरेड, मोहम्मद अली बेग के बारे मे अब आपका क्या ख्याल है?
चांदनी गहरी सोच मे डूबी हुई थी। मैने चुपचाप खाना खाया और अपना ग्लास खाली करके बिस्तर
पर रखा हुआ सारा सामान समेट कर कमरे से बाहर रख कर आया तब तक चांदनी अपने हाथ मे पकड़े
हुए ग्लास को आधा खाली कर चुकी थी। …अरे नीट पी रही हो। पानी तो मिला लो। उसने मेरी
ओर देखा और फिर मुस्कुरा कर बोली… बेग के बारे मे सुन कर मेरा दिमाग घूम गया है। नीट
व्हीस्की ही अब दिमाग को स्थिर कर सकेगी। समीर, यह तुमने कैसे पता किया कि यह इतना
कुछ जानता होगा और वह तुम्हें बता भी देगा? …गरीब रिक्शेवाला सारा दिन सड़क पर घूमता
है और सैकड़ों लोगों के साथ बात करता है। बस उसकी झिझक खोलने की जरूरत थी तो शराब से
बेहतर कौन सी दवा हो सकती है। यही सोच कर मैने आज पीने की योजना बनायी थी। बहुत कुछ
बता दिया उसने अब यह हमारे उपर है कि इस सूचना का क्या करना है। …अब तुम क्या करने
की सोच रहे हो? …परसों जुमे की रात है। सीमा पर जाकर एक बार सब कुछ अपनी आँखों से देखना
चाहता हूँ। उसने एक घूँट भरा और धीरे से गटकने के बाद ग्लास की ओर देखते हुए बोली…
मै उसकी बात नहीं कर रही हूँ। एक झटके के साथ उसने अपना ग्लास खाली करके मेरी ओर देखा
तो उसकी आँखों मे उसकी मंशा साफ नजर आ रही थी।
उसकी आँखों मे नशे
के सुरुर के लाल डोरे तैर रहे थे। मै धीरे से उसके पास सरक कर बोला… कामरेड सोच लो।
इसके आगे बढ़ गया तो वापिस नहीं लौट सकूँगा। वह सरक कर मुझसे सटते हुए अपने होंठों को
जुबान से भिगोते हुए बोली… ट्रेन के बाद अब क्या सोचना बाकी रह गया है। उसके कांपते
हुए सुर्ख होंठ बल्ब की रौशनी मे चमक रहे थे और एकाकार के पूर्वाभास से उसकी सांसे
तेज चल रही थी। मैने झुक कर धीरे से उसके कन्धे को चूम कर उसे सहारा देकर बेड पर लिटा
दिया और अपनी शर्ट उतार कर उस पर झुक कर उसके होंठ पर धीरे अपने होंठ टिका दिये लेकिन
इससे पहले मै आगे बढ़ता कि उसने अपने दोनो हाथों मे मेरा चेहरा पकड़ कर मेरे होंठों पर
छा गयी थी। वह कभी मेरा होंठ चूसती और कभी धीरे से चबा देती थी। धीरे-धीरे जब वह कमजोर
पड़ने लगी तब मै उस पर छा गया और बेदर्दी से उसके होंठों का रसपान करना आरंभ कर दिया।
उसके होंठों और गालों का रस सोखने के बाद मेरे हाथ उसकी फ्राक को सीने पर समेटने मे
व्यस्त हो गये थे।
उसकी फ्राक को समेटते
हुए जैसे ही मेरा हाथ उसकी कमर पर आया कि तभी मुझे एहसास हुआ कि उसने नीचे कुछ नहीं
पहना था। आज वह एकाकार के लिये मानसिक रुप से तैयार बैठी थी। शायद इसीलिए जब हमारी
पीने-पिलाने की बात होने लगी थी तो वह नाराज हो गयी थी। उसके हावभाव देखने से साफ था
कि वह एकाकार के सुख के बारे मे अनुभवहीन नहीं है। एक बार झीनी सी कपड़े की फ्राक मे उन्नत गोलाईयों पर बादामी रंग के शिखरों पर नजर
डाल कर मैने नग्न सफाचट कटिप्रदेश की ओर रुख किया। कुछ हरकत न होते देख कर चांदनी
कसमसाते हुए उठने लगी तो मैने जबरदस्ती उसे लिटा दिया। एलिस ने सिखाया था कि स्त्री
की कामाग्नि कोयले की भांति धीमे सुलगती है जिसे भड़काने के लिये अथक प्रयास करना पड़ता
है। पूर्ण यौन सुख पाने के लिये पुरुष को स्त्री की कामाग्नि जब चरम पर हो तभी एकाकार
करना चाहिए। चांदनी की बेचैनी को देख कर मैने अपना मुख अधखुली हुई योनि
के पास लेजा कर धीरे से साँस छोड़ी तो वह इस अप्रत्याशित
हमले से चिहुँक कर उत्तेजना से काँप उठी थी। धीमी रफ्तार से
नग्न अन्दरुनी भाग पर अपनी गर्म शव्सों को लगातार छोड़ते हुए योनिमुख की ओर बढ़
गया। लगातार गर्म साँसों का आघात से चांदनी विचलित होने लगी और अजीब सी सनसनाहट उसके सारे जिस्म में फैलनी आरंभ हो गयी थी।
कभी वह छिटक कर दूर होने की कोशिश करती और कभी अपने शरीर को बस
में रखने के लिये पंजो को सिकोड़ती और कभी मेरा सिर पकड़ने की कोशिश करती परन्तु
धीरे-धीरे उसका अपने जिस्म पर नियंत्रण खोता जा रहा था।
थोड़ा रुक कर, मै उठ कर बैठ गया
था। आग भड़क गयी थी और उसने आनन-फानन मे अपनी फ्राक को जिस्म से जुदा कर दिया था। मेरे
निशाने पर दो हसीन पहाड़ियॉ आ गयी थी। मैने बिना
स्पर्श किये अपनी गर्म साँसें से उन पर आघात करना आरंभ कर दिया। वह भी उत्तेजना की
चरम सीमा पर पहुँचने को हो रही थी। कभी गुदगुदी का
एहसास, कभी शरीर मे सिहरन, कभी अनजानी राह
की अनिश्चितता, और इन सब में धीमी आँच मे जलता हुआ उसका बदन मुझे अब
आगे बढ़ने का इशारा कर रहा था। मै कोई हरकत करता इससे पहले चांदनी मुझसे एक लता कि भांति
लिपट गयी थी। कुछ देर उसके कोमल जिस्म को सहलाते हुए उसके लरजते अधरों को चूमते, चूसते और काटते हुए लाल किया और फिर धीरे से अपनी पतलून को त्याग
कर उस पर छा गया। मेरा पौरुष अब तक रौद्र रुप ले चुका था। बिना विलंब किये अपने अकड़े
हुए भुजंग को उसके योनिमुख पर रगड़ कर धीरे से अन्दर सरका दिया। एक क्षण के लिये वह
मेरी पकड़ मे मचली परन्तु मेरा एक हाथ उसकी लालिमा लिये
पहाड़ी को रौंद रहा था और मेरा मुख
एक बादामी बुर्जी को लाल करने का प्रयत्न कर रहा था। मेरा एक
हाथ उसके सुडौल नितंब को निचोड़ रहा था। उसके मचलने के कारण मेरा जनानंग धीरे से अन्दर सरका तो उसके मुख से
एक गहरी सिसकारी निकल गयी थी।
एकाएक उसकी सिसकारी
सुन कर मै स्थिर हो गया था। उसके जिस्म मे उठने वाले हर स्पंदन को मुझे अपने जनानंग
पर एहसास हो रहा था। वह अब पूर्ण एकाकार के लिये स्थिर
होकर तैयार हो गयी थी। मैने उसके दोनो नितंबो को अपने पंजों मे जकड़ लिया और अचानक एक जोर का झटका मारते हुए पूरी
शक्ति से अपनी कमर पर दबाव डाला तो मेरा जनानंग सारी बाधायें ध्वस्त करता हुआ उसकी
गहराईयों मे जाकर धँस गया। वह बिलबिला कर तड़पी फिर छूटने के लिये मचली परन्तु तब तक
बहुत देर हो चुकी थी। उसके मुख से एक घुटी हुई चीख ही निकल सकी थी। वह कुछ क्षण शिथिलता से मेरे नीचे दबी पड़ी रही फिर एकाएक उसने
मुझे अपनी बाँहों मे जकड़ लिया। हम दोनों कुछ देर तक बेल की तरह एक
दूसरे के साथ गुथे पड़े रहे और फिर उसने मुझे
आगे बढ़ने का इशारा किया। मैने अपने आप को थोड़ा सा पीछे खींच कर फिर से एक
करारी चोट मारी तो अबकी बार उसके मुख से एक संतुष्टि से भरी
सित्कार निकल गयी थी। एक बार फिर से मै उसकी उन्नत पहाड़ियों के
मर्दन और उन पर सजी हुई बादामी बुर्जीयों को लाल करने में जुट गया। मेरा दूसरा हाथ धीरे
से उसके सुडौल नितंबों पर बेखटके कुछ ढूंढने का प्रयास कर रहा
था। कमरे एक तूफान धीरे-धीरे गति पकड़ रहा था और हम दोनो की सिसकारियाँ और गहरी साँसें कमरे मे गूँज रही थी। इसी आपाधापी मे मेरी उंगली उसके सूरजमुखी आकार
के छिद्र पर जा टिक गयी थी। मैने धीरे से अपनी उँगली को उसके रिसते हुए पिघलते लावे से नहलाया और फिर
उस छिद्र को उसी से भिगो दिया। मेरी हरकतों से अनभिज्ञ, चांदनी मिलन की चरम सीमा
पर पहुँचने के लिए व्याकुल हो रही थी। मैने धीरे से उसकी बायीं बुर्जी का रस सोखते हुए एकाएक
दाँतों से चबा दिया और पूरी ताकत से उँगली को सूरजमुखी आकार के छिद्र मे
प्रविष्ट करते हुए एक करारी आखिरी चोट मारी तो चांदनी तीन तरफे हमले को सह नहीं पायी और
झरझरा कर बरस पड़ी थी। उसके जिस्म
मे उठने वाले भूचाल ने मुझे भी धाराशायी कर दिया था। हम दोनों एक दूसरे को बाहों मे जकड़ कर कुछ देर तक
लस्त होकर पड़े रहे और फिर निढाल होकर बेड पर लुड़क
गये।
कुछ देर के बाद चांदनी
पलकें झपकाती हुई मेरे सीने पर सिर रख कर बोली… समीर, तुम्हारा उस छिनाल के साथ क्या
रिश्ता है? …तुमने कब देखा? …जब तुम दोनो पार्टी छोड़ कर साथ बाहर निकल रहे थे। मै समझ
गया था कि वह नीलोफर के बारे पूछ रही थी। …कुछ नहीं बस दोस्ती है। तुम उसे कैसे जानती
हो? …हमारी सोसाइटी मे उसे कौन नहीं जानता। वह एक जानी-मानी हस्ती है। उसका संपर्क
नेताओं, मिडिया और प्रशासन मे बेहद गहरा है। मेरे अब्बा पर जब नेतागिरी का भूत चड़ा
तो उसकी मदद से उनको पार्टी का टिकिट मिला था। क्या तुम भी नेतागिरी करने की तो नहीं
सोच रहे? मै उसके कोमल अंगों से खेल रहा था और वह लगातार मेरे हाथ को पकड़ने की असफल
कोशिश कर रही थी। मैने हँसते हुए कहा… नहीं। मेरे अन्दर नेता बनने वाला एक भी गुण नहीं
है। वह भी खिलखिला कर हँसी और मेरे सीने पर मुक्का मारते हुए बोली… एक वामपंथी छात्र
नेता के उत्पीड़न करने की सभी गुण तुम मे जरूर है। मैने उसे अपनी बाँहों मे जकड़ते हुए
कहा… कट्टर वामपंथी के मुख से यह बात शोभा नहीं देती। …मै कट्टर वामपंथी नहीं हूँ।
मै उनकी विचारधारा को मानती हूँ परन्तु जबसे रामबीर की बात सुनी है तब से मेरा विश्वास
डगमगा गया है। …तुम तपन बिस्वास को कैसे जानती हो?
…वह हमारे कालेज मे आये थे और मै उनके भाषण से बड़ी प्रभावित हुई थी। जब उन्होंने जामिया
मे एक नया छात्र संगठन स्थापित किया तब से मै उनके साथ जुड़ गयी थी। …तुम्हें पता है
कि वह नक्सलवादी है। …हाँ। वह एक अच्छे प्रोफेसर है और दूर-दराज जंगल मे रहने वाले
गरीबों की आवाज बने है। उन्होंने बहुत बलिदान दिया है। मैने करवट लेकर उस पर छाते हुए
कहा… कामरेड तुमसे तुम्हारी विचारधारा बलिदान मांग रही है। वह मुझे अपने से दूर धकेलने
लगी परन्तु उसका जिस्म स्वत: ही एकाकार के लिये तैयार हो गया था। एक बार फिर से दो
जवान जिस्म एक दूसरे मे समाने के लिये अग्रसर हो गये थे लेकिन इस बार एकाकार मे वह
तीव्रता नहीं थी। उस रात कब हमारी आँख लगी पता ही नहीं चला था।
सुबह हमेशा की तरह
मै सबसे पहले जाग गया था। जब तक मै तैयार होकर बाहर निकला तब तक चांदनी भी उठ गयी थी।
मैने चाय का इंतजाम किया और फिर बाहर टहलने के लिये निकल गया था। चांदनी तैयार होकर
जब तक नीचे आयी तब तक मै शहर के एक हिस्से को नाप चुका था। हम लोग होटल के साथ बने
हुए छोटे से रेस्त्रां मे नाश्ता कर रहे थे तब तक रामबीर भी आ गया था। नाश्ता समाप्त
करने के बाद हम दोनो रिक्शे मे बैठ कर बेग की कोठी की ओर चल दिये थे। …साहब, मै आपको
एक आदमी से मिलवाना चाहता हूँ। …वह कौन है? …साहब, मंजूर इलाही एक बांग्लादेशी है।
वह तीन साल पहले यहाँ बेग साहब की मदद से आया था। वह आपको बेग साहब की सारी असलियत
बता देगा। …आज शाम को उसे भी अपने साथ ले आना।
मेरी बात सुन कर उसने
जल्दी से पैडल मारने शुरू कर दिये और कुछ ही देर मे हम बेग की कोठी के बाहर खड़े हुए
थे। आज कोई नया गार्ड खड़ा हुआ था। एक बार फिर से चांदनी ने जाकर अपना परिचय दिया और
बेग को खबर करने के लिये कह कर वह वापिस मेरे साथ आकर खड़ी हो गयी थी। थोड़ी देर के बाद
बेग अपने साथ कुछ लोगो के साथ बाहर निकला और हमारे पास पहुँच कर बोला… माफ कीजिए। मै आपके साथ आज
नहीं जा सकता। मुझे आज कलकत्ता जाना है। शाम तक लौट आऊँगा और आपको कल कैंम्प लेकर चलूँगा।
मैने जल्दी से कहा… बेग साहब, अगर आप इजाजत दें तो हम खुद ही कैंम्प घूम कर आ जाते
है। …समीर मियाँ, वहाँ की सुरक्षा आपको प्रवेश नहीं करने देगी। …तो क्या हम आपके द्वारा
चलाये जा रहे मदरसे को देखने जा सकते है? इस बार वह कुछ सोच कर बोला… हाँ। आप आज मेरे
मदरसे देख लिजीए। अपने साथ खड़े हुए व्यक्ति से वह बोला… जमाल, आज इनको अपने यहाँ के
मदरसे दिखा दो। कल मै इन्हें अपने साथ शरणार्थी कैंम्प दिखाने ले जाऊँगा। इतना कह कर
वह गेट पर खड़ी हुई बड़ी सी फार्च्युनर मे बैठा और चला गया।
हम जमाल के साथ चल
दिये थे। जमाल ने चलते हुए पूछा… आप लोग कहाँ से आये है? …फिलहाल तो दिल्ली से आ रहे
है लेकिन मै उससे भी दूर श्रीनगर से आया हूँ। वह कुछ बोलता कि उसके फोन की घंटी बज
उठी थी। …एक मिनट यहीं ठहरिए। यह कह कर वह हमसे कुछ दूरी बना कर फोन पर बात करने लगा।
कुछ देर के बाद वह हमारे पास आकर बोला… आपके पास कोई चलने का साधन है? मैने रिक्शे
की ओर इशारा करके कहा… यहाँ पर तो सिर्फ यही साधन उपलब्ध है। वह कुछ सोच कर बोला… भाईजान,
मै इसको रास्ता समझा देता हूँ। यह आपको तीनो मदरसे दिखा देगा। मुझे तुरन्त किसी काम
के लिये जाना पड़ रहा है। वह रामबीर की ओर चला गया और कुछ समझाकर वापिस लौटते हुए बोला…
मैने उसे समझा दिया है। वह आपको वहाँ ले जाएगा। अच्छा, खुदा हाफ़िज। इतना बोल कर वह
वापिस कोठी मे चला गया था। हम रिक्शे पर बैठ कर मदरसे की ओर चल दिये थे। …रामबीर हम कहाँ जा रहे है? …साहब,
पहले सीमा के पास वाले मदरसे चल रहे है। वहाँ से लौट कर नदी पार दूसरे मदरसे चलेंगें।
रास्ता बेहद खराब था। धान के खेतों के बीच
जगह-जगह से टूटी हुई कच्ची सड़क गड्डों से भरी हुई थी। इसी कारण हमे पहुँचने मे काफी
समय लग गया था। जैसी सड़क से आये थे लगभग वैसा ही दूर से मदरसा दिख रहा था। एक खंडहर
से कमरे को दीन-ए-इस्लामिया का नाम दिया था। एक बच्चे को अपनी गोदी मे लेकर अधेड़ से
मौलवी साहब एक टूटी हुई कुर्सी पर बैठे हुए थे। वह बच्चा बार-बार उचक कर अपने आपको
उनसे छुड़ाने का असफल प्रयास करता और मौलवी साहब उसको जबरदस्ती बाँहों मे जकड़ कर बैठे
हुए थे। बीस-पच्चीस भिन्न उम्र के बच्चे जमीन पर सिर झुकाये बैठे हुए कुरान की आयात
रट रहे थे। यह दृश्य मेरे लिये नया नहीं था। बचपन मे अपने मदरसे मे ऐसे दृश्य मैने
बहुत बार देखे थे। हमे रिक्शे से उतरते देख कर मौलवी साहब ने हड़बड़ा कर जल्दी से बच्चे
को अपनी गोदी से धकेल कर अलग किया और अपने कपड़े ठीक करते हुए वह उठ कर खड़े हो गये थे।
चांदनी ने भी सारा दृश्य देख लिया था। उसके चेहरे पर बदलते रंग के साथ एक रोष भी झलकने
लगा था। …कामरेड अपने आपको संभालो। सिर्फ काम पर ध्यान दो। इतना बोल कर मै आगे बड़ गया
था।
…सलाम वालेकुम। मौलवी साहब ने एक नजर भर कर
चांदनी को देखा और फिर अपनी दाड़ी पर हाथ फेर कर बोले… मियाँ, यहाँ कैसे आना हुआ? …बेग
साहब ने अपना मदरसा देखने भेजा है। …मियाँ यहाँ तो सिर्फ दीन की शिक्षा दी जाती है।
इसमे क्या देखना है। तभी चांदनी बोली… आपके मदरसे मे कितने बच्चे है? …बीस लड़के और
सोलह लड़कियाँ। …लड़कियाँ कहाँ है? …वह इस कमरे के पीछे बैठती है। …उनको कौन पढ़ाता है?
…मै ही पढ़ाता हूँ। एक घन्टे यहाँ बैठता हूँ फिर इन्हें कार्य देकर उनको पढ़ाने चला जाता
हूँ। बस इसी प्रकार दोनो की शिक्षा पूरी हो जाती है। चांदनी अभी भी गुस्से मे लग रही
थी। मैने जल्दी से बात संभालते हुए पूछा… मौलवी साहब यह बच्चे कहाँ से आते है। रास्ते
मे तो हमे कोई खास रिहाईश नहीं दिखी है। अबकी बार मौलवी साहब ने मुस्कुरा कर धान के
खेतों की ओर इशारा करते हुए कहा… आस-पास खेतों पर काम करने वाले मजदूरों के बच्चे है।
वह लोग वहीं खेत के पास अपनी झुग्गी डाल कर रहते है। चांदनी ने जल्दी से पूछा… अगर
आप इजाजत दें तो मै बच्चों से बात करना चाहती हूँ। …हाँ क्यों नहीं। आप उनके पास जाकर
बात कर लिजीये। चांदनी बच्चों की ओर चली गयी और मै और मौलवी साहब के साथ कुछ कदम चल
कर बच्चों से दूरी बना कर खड़े हो गये थे।
मौलवी साहब बात करने से कतराते हुए लग रहे थे। वह नजरे मिलाने
के बजाय इधर-उधर देख रहे थे तो मैने मुस्कुरा का कहा… माफ किजिये अनजाने मे हमने आपके
अरमानों पर पानी फेर दिया। मौलवी साहब एक पल के लिये स्त्बध रह गये थे और फिर झेंपते
हुए बोले… मियाँ आप भी कैसी बात करते है। …मौलवी साहब, मैने भी दीन की शिक्षा मदरसे
मे ली है। आपको उस लड़के के साथ बैठे देख कर एक पल के लिये मेरे भी अरमान मचल गये थे
परन्तु इस मोहतरमा के कारण अपने अरमानों को मैने अगले ही पल कुचल दिया था। मौलवी ने
खीसे निपोरते हुए कहा… कैसी बात कर रहे है जनाब। मैने तुरन्त बात बदल कर पूछा …मौलवी
साहब भारत-बांग्लादेश सीमा यहाँ से कितनी दूर है? …यहाँ से ज्यादा दूरी पर नहीं है।
चलिये मै दिखाता हूँ।
मौलवी साहब के साथ मै भारत-बांग्लादेश की सीमा
देखने के लिये चल दिया था।
श्रीनगर
उसी समय ब्रिगेडियर
चीमा एक सादी कार मे फारुख के साथ कुपवाड़ा की दिशा मे सफर कर रहे थे। …सर, आपने तबस्सुम
की मौत की सूचना दे दी। …तुम फिक्र मत करो। सारे कागजात और उसकी हत्या के साक्ष, पुलिस
रिपोर्ट और लाश का इंतजाम कर दिया है। अपने सोर्स के द्वारा हमने आईएसआई और पीरजादा
के पास भी इसकी खबर पहुँचा दी है। कल कुपवाड़ा मे तुम्हें एक लाश मिल जाएगी तो अपनी
जमात के लोगों के साथ जाकर दफना देना। तुम्हारे तीन महीने गायब होने का कारण पुख्ता
तरीके से तैयार हो गया है। कुछ कागजों का बंडल उसके हाथ मे देते कहा… यह कुछ टिकिट
और होटल की रसीदे है। इन्हें रख लो दिखाने के काम आएगी। अब तुम आराम से अपने लोगों
मे वापिस जा सकते हो। …ब्रिगेडियर साहब इसकी क्या जरुरत थी। एक बार हमारी मेजबानी का
भी लुत्फ उठा कर देखिये। …जरुर लेकिन फिलहाल तुम अपनी चिन्ता करो। समय मिलते ही संपर्क
करके वहाँ की स्थिति की सूचना देना। …जी जनाब।
थोड़ी देर के बाद ब्रिगेडियर
चीमा एक सुनसान जगह पर कार से उतर गये थे। वह कार फारुख को लेकर आगे निकल गयी। ब्रिगेडियर
चीमा ने फोन निकाल कर किसी से बात करके पैदल एक दिशा की ओर चल दिये।
मुजफराबाद
…जनाब श्रीनगर से खबर आयी है कि फारुख ने तब्बसुम
को उसके किये की सजा दे दी है। पीरजादा मीरवायज के चेहरे पर एक मुस्कान तैर गयी थी।
…पठान, अपनी लड़की को हमारी सजा से बचाने के लिये वह श्रीनगर से गायब हुआ था। अब वह
कहाँ है? …जनाब सुनने मे आया है कि युसुफजयी से मिलने के लिये वह कुपवाड़ा जा रहा है।
गुमनामी मे उसकी लाश को दफनाने का इंतजाम भी सुनने मे आया है कि युसुफजयी ने किया है।
…यह खबर तुम्हें किसने दी है? …मूसा ने खबर की है। …ओह! बस इतना बोल कर बूढ़ा मीरवायज
गहरी सोच मे डूब गया था।
…जनाब। बूढ़े ने घूर
कर पठान की ओर देखा तो वह जल्दी से बोला… आपकी इजाजत हो तो इस खबर की पुष्टि करने के
लिये मेजर फरहान से बात की जाये। कुछ सोच मीरवायज ने कहा… मेजर फरहान को इसकी सूचना
देकर कहो कि मै जल्दी से जल्दी जनरल बाजवा से मिलना चाहता हूँ। फारुख के सामने आते
ही एक बार फिर से हम लखवी पर भारी पड़ेंगें। पठान ने सिर झुका कर अभिवादन किया और तेज
कदमो से चलते हुए कमरे से बाहर निकल गया था।
har bar ki tarh eak behtareen update
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दोस्त। ऐसे ही साथ जुड़े रहियेगा।
हटाएंबहोत दिनोबाद एक मस्त ताजा अपडेट, चाँदनी नामकी कट्टर वामपंथी जिहादनकी विचारधारा धिरे धिरे दम तोड रही है, समीर नामके जादूगर के कारगुजारीसे. पर नफिसा, निलोफर,चाँदनी वो नागिन है जो डसले तो पाणी भी न मांगे. पर समीर वो सपेरा है जो इनका विष भी निकाले,और एक आंख के अजगरसे बिन भी बजाये🤪🤪🤪
जवाब देंहटाएंप्रशांत भाई धन्यवाद। नागिन को एक बार काबू मे किया जा सकता है परन्तु देश मे लगी हुई दीमक का इलाज कैसे किया जा सकता है। समीर के पास क्या इसके लिये कोई इलाज है। इसी प्रश्न का जवाब ढूंढने की कोशिश कर रहे है।
हटाएंवैसे विरभाई शिकायत ही समझो, बुधवार आपने घटा दिया ये अच्छी बात नही है. एक तो अपडेट घट गये, और लेट हो रहे. इस हिसाबसे, दिसंबर और जानेवारी अच्छा गया 10, 10 अपडेट आये थे 🤔
जवाब देंहटाएंप्रशांत भाई आपकी शिकायत सही है। गहरी चाल शुरु करने से पहले दो अपडेट लगातार दे रहा था। नयी रचना होने के कारण प्लाट और लेखनी मे तालमेल बिठाने मे समय लगता है। जल्दी ही इस समस्या का समाधान हो जाएगा और हफ्ते मे दो अपडेट देना शुरु कर दूँगा। शुक्रिया दोस्त
हटाएंजबरदस्त अंक और बंगाल में चल रही बांग्लादेशी शरणार्थी शिविरों में बहुत ही गहरे राज छुपे हुए हैं, कैसे असमाजिक तत्वों और गोला बारूद देश के बाहर से सप्लाई होते हैं फिर हमारे देश के भिन्न भिन्न प्रांतों में भेजे जाते हैं इसका पूरा सिस्टम यहीं से चलता है।अक्सर बड़े बड़े यूनिवर्सिटी में चांदनी जैसे छात्र,छात्रा को बरगला के उनको बामपंथ चिंताधारा में जड़ित कर लिया जाता है जिनको जमीनी हालत और उन लोगों मंशा का दूर दूर तक पता नहीं होता।खैर ब्रिगेडियर चिम्मा और फारूक के बीच अब कुछ अंदर की खिचड़ी पकने की बू आ रही है।बहुत ही जबरदस्त अंक वीर भाई।
जवाब देंहटाएंअल्फा भाई धन्यवाद। बहुत सी एजेन्सियों का यही मानना है कि बंगाल की स्थिति बेहद संवेदनशील होती जा रही है। इस स्थिति के विभिन्न कारण है परन्तु उद्देश्य एक है- गज्वा-ए-हिन्द। एक बार फिर से 1947 का इतिहास दोहराने की तैयारी चल रही है। इस्लामिक चरमपंथ और वामपंथ का काकटेल सभी प्रजातांत्रिक राष्ट्रों की समस्या बन चुकी है।
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