सोमवार, 10 अप्रैल 2023

  

गहरी चाल-3

 

मै अपने आफिस मे बैठा हुआ अंसार रजा की पार्टी के बारे मे सोच रहा था। उसके यहाँ नक्सलवादी प्रोबीर मित्रा और सिकन्दर रिजवी के साथ बैठे हुए देख कर मेरे दिमाग मे हलचल मच गयी थी। उन दोनो की बातों से साफ था कि वह दोनो किसी मुहिम मे साथ काम कर रहे थे। मुझे मित्रा के बारे मे पहले पता नहीं था परन्तु आफिस आते ही मैने जब एनआईए के डेटाबेस को खंगाला तब पता चला कि मित्रा कट्टर उग्रवादी माओइस्ट है। ऐसे ही मुझे अंसार रजा के बारे मे पता चला कि हाल ही मे उत्तर प्रदेश मे हुए शिया-सुन्नी दंगों मे भी उसकी मुख्य भुमिका रही थी। इसी प्रकार मैने अकरम, मौलाना कादिरी और फिरदौस बख्त के बारे मे भी जानकारी एकत्रित कर ली थी। एक बात साफ हो गयी थी कि सभी के नाम पर अनेक अपराधिक केस दर्ज थे। ध्यान से देखने पर साफ पता चल रहा था कि सभी लोग दंगा-फसाद, अराजकता फैलाने और आगजनी मे कभी न कभी किसी समय पर सक्रिय रहे थे। इसी प्रकार मैने नीलोफर की लिस्ट मे दिये गये नामों का भी अवलोकन करने बैठ गया था। दोनो पार्टियों मे मिले कुछ लोग नीलोफर की लिस्ट मे मौजूद थे। मै अपना फोन निकाल कर मोनिका की कोन्टेक्ट लिस्ट की जाँच करने बैठ गया था। मेरे सामने इस्लामिस्ट, माओवादियों और मैकाले के अनुयायियों के मजबूत गठजोड़ का एक नेटवर्क उभर कर सामने आ गया था।

मै आँख मूंद कर दोनो पार्टीयों मे उपस्थित और चेहरों को याद करने की कोशिश कर रहा था कि तभी मेरे फोन की घंटी बज उठी। …हैलो। …मै चांदनी बोल रही हूँ। एक पल के लिये मै चांदनी का चेहरा याद करने की कोशिश कर रहा था। उसने एक बार फिर से कहा… हैलो। जैसे ही अंसार रजा की पार्टी मे हुई मुलाकात याद आयी तो मैने जल्दी से कहा… बताईये कहाँ मिलना है? …आप बताईये कहाँ मिल सकते है? एकाएक मेरे दिमाग ने काम करना बन्द कर दिया था। मुझे समझ मे नहीं आया कि उस लड़की से कहाँ मिल सकता हूँ। तभी उसकी आवाज मेरे कान मे पड़ी… क्या आप जामिया मेडिकल कालेज आ सकते है? मैने जल्दी से कहा… जहे नसीब। बिल्कुल कब पहुँचना है? …अभी आ जाईए। जामिया पहुँच कर मुझे फोन कर दीजिएगा। इतना बोल कर उसने फोन काट दिया था। मैने एक नजर अपनी घड़ी पर डाली तो दस बज रहे थे। अजीत किसी मीटिंग मे व्यस्त थे तो इन्टर्काम पर एनसए के पीए को बता कर मै बाहर निकल गया था। जामिया विश्वविद्दालय पहुँच कर मैने चांदनी से बात की तो उसने कहा कि वह सुर्या होटल के बाहर मिलेगी। लोगों से रास्ता पूछ कर कुछ ही देर मे सुर्या होटल के मुख्य द्वार से कुछ दूरी पर मैने जीप खड़ी कर दी थी। चांदनी कहीं नजर नहीं आ रही थी।

कुछ ही मिनट बीते थे कि अचानक एक आलीशान कार मेरी जीप के आगे आकर रुकी और उसमे से चांदनी बाहर निकली और मेरी जीप की ओर बढ़ती हुई बोली… आईए काफी शाप मे आराम से बैठ कर बात कर सकते है। एक पल के लिये मैने उसे ध्यान से देखा तो उसके रंग ढंग बदल गये थे। आँखों पर विदेशी गागल्स, स्किन टाइट जीन्स और मैचिंग प्रिंटिड टाप मे आज वह नये आधुनिक स्वरुप मे दिख रही थी। वह चुपचाप मेरी जीप मे आकर बैठ गयी। मैने जीप आगे बढ़ा कर सुर्या होटल के पोर्च मे ले जाकर खड़ी कर दी और दरबान को जीप की चाबी पकड़ा कर हम दोनो काफी शाप की ओर चल दिये थे। वह मुझे दिशा दिखा रही थी। काफी शाप पहुँच कर उसने एक किनारे की टेबल चुनी थी। मैने बैठते हुए पूछा… क्या आप पहले भी यहाँ आयी है? उसने कोई जवाब नहीं दिया तो मैने महसूस किया कि चांदनी मे अभी तक जो आत्मविश्वास झलक रहा था वह एकाएक झिझक मे बदल गया था।

मैने दो काफी का आर्डर देकर उसकी ओर देखा तो झट से नजरें झुका कर वह धीरे से बोली… क्या मै आपके साथ बंगाल चल सकती हूँ। उसकी बात सुन कर एक पल के लिए मै चौंक गया था। मै इस प्रकार की बात की अपेक्षा नहीं कर रहा था। मै तो कुछ और सोच कर आया था। वह रुक कर फिर से बोली… मै भी अपनी आँखों से वहाँ का अनुभव लेना चाहती हूँ। अभी तक मैने सिर्फ लोगों से सुना है परन्तु मै सब कुछ खुद देखना चाहती हूँ कि वहाँ पर फौज द्वारा किस प्रकार का रोहिंग्या समूह पर अत्याचार हो रहा है। मैने उसकी बात को मजाक मे लेते हुए कहा… तुम्हे वहाँ जाने की क्या जरुरत है। मै तुम्हें लौट कर बता दूँगा कि वहाँ क्या चल रहा है। अबकी बार वह मेरी ओर देख कर बोली… नहीं। मै अपनी आँखों से देखना चाहती हूँ। …तुम्हारे अब्बा क्या तुम्हें मेरे साथ जाने की इजाजत देंगें? वह पल भर के लिए खामोश रही और फिर बोली… मै उन्हें बता कर नहीं जा रही हूँ। हमारी कौम पर होने वाले अत्याचार के बारे मे जितना आप जानना चाहते है और उसी प्रकार मै भी वहाँ का हाल जानना चाहती हूँ। क्या मै आपके साथ चल सकती हूँ? अपने आप को इस मामले फँसता हुआ महसूस करते हुए देख कर मैने एक गहरी साँस लेकर टालने की मंशा से कहा… चांदनी, अभी मैने इस बारे कुछ सोचा नहीं है। यह सही है कि तुम्हारी बात सुन कर मैने वहाँ जाने के बारे मे सोचा जरुर था। …तो फिर चलिए, इसमे और क्या सोचना है।

काफी का घूँट लेकर मैने पूछा… सब कुछ देखने के बाद तुम क्या करोगी? वह कुछ देर चुप रही और मै काफी पीते हुए उसको देखता रहा लेकिन वह भी शायद असमंजस मे डूब कर रह गयी थी। कुछ देर के बाद वह बोली… हम यहाँ पर उनके लिए मुहिम चलायेंगे। मानव अधिकार आयोग मे शिकायत करेंगें और राजनीतिक लोगों का ध्यान उनके उत्पीड़न की ओर खींचेंगे। अब आप बताईये कि आप क्या करेंगें? …मैने बताया है कि अभी मैने कुछ सोचा नहीं है। …तो आप भी हमारी मुहिम से जुड़ जाईये। …चांदनी, मै कारोबारी व्यक्ति हूँ। मै मोर्चे और धरनो मे विश्वास नहीं रखता। मैने अपनी आँखों से कश्मीर मे आम नागरिकों का खून बहते हुए देखा है लेकिन मैने कभी पत्थरबाजी मे हिस्सा नहीं लिया है क्योंकि मै अराजकता में विश्वास नहीं रखता हूँ। वह तुनक कर बोली… तो आप उनकी मदद कैसे कर सकते है? …पैसों से उनकी मदद की जा सकती है। सरकार का ध्यान जरुरी नही कि अराजकता फैला कर आकर्षित किया जाये क्योंकि कानूनी रुप से भी उनका ध्यान खींचा जा सकता है। मेरी बात सुन कर वह चुप हो गयी थी। एकाएक वह बोली… मै आपसे साफ शब्दों मे पूछ रही हूँ कि आप अपनी कौम के लिये क्या कर सकते है? …तुम क्या कर सकती हो? …अगर जरूरत पड़े तो अपनी जान भी दे सकती हूँ और किसी की जान ले भी सकती हूँ। एकाएक मेरे सामने वामपंथ के साथ कट्टर जिहादिन का चेहरा उजागर हो गया था।

मैने मुस्कुरा कर कहा… अब तुम बताओ कब चलना है? वह शायद इस सवाल की उम्मीद नहीं कर रही थी। वह सकपका कर बोली… आप कब चल सकते हो? …मै तो घूमने निकला हूँ। मै तो कल भी चल सकता हूँ परन्तु यह सब देखने के लिये हमे कहाँ जाना चाहिए और किन लोगो से संपर्क करना चाहिये व अन्य ऐसी बातों के बारे मे मुझे पता नहीं है। हमे पहले तो यह पता करना चाहिए कि यह सब कहाँ और कैसे हो रहा है? चांदनी जल्दी से बोली… आप इसकी चिन्ता छोड़िये। हम पहले कलकत्ता जाएँगें। वहाँ पर मै कुछ लोगों को जानती हूँ। वही लोग हमारा आगे का इंतजाम कर देंगें। कुछ सोच कर मैने कहा… चांदनी, चलने से पहले एक बात समझ लो कि वह नक्सलवाद का गढ़ है। हमारा सफर एसी गाड़ियों और पाँच सितारा होटलों मे नहीं हो सकेगा। अगर किसी को भनक भी लग गयी कि तुम्हारी क्या हैसियत है तो फिरौती दिये बिना तुम लौट कर वापिस नहीं आ सकोगी। …अच्छा आपके हिसाब से कितने पैसे लेकर चलना चाहिए? …इस समय तुम्हारे पर्स मे कितने पैसे है? वह झेंप कर बोली… कुछ हजार होंगें। मैने कभी गिने नहीं है। …ठीक है। बस उतने पैसे ही रखना। अब घर की बात कर लेते है। किसको बता कर जाओगी? …किसी को भी नहीं। मै अपने हास्टल मे आ गयी हूँ। एक-दो हफ्ते की पढ़ाई का नुकसान जरुर होगा परन्तु मै लौट कर कवर कर लूँगी। …चांदनी, तुम एक अनजान आदमी पर बेवजह भरोसा कर रही हो। मेरी बात सुन कर वह चुप हो गयी थी। कुछ सोच कर वह बोली… मै कोई बच्ची नहीं हूँ और अपनी रक्षा स्वयं कर सकती हूँ। आप बताईए कि कब चलना है? एक पल के लिये मै सोचा और जल्दी से कहा… कल चलो। …ठीक है। मुझे फोन पर बता दीजिएगा कि कब और कहाँ मिलना है। हमारे बीच मे उस दिन बस इतनी बात हुई थी।

मै वापिस अपने आफिस मे लंच तक पहुँच गया था। अजीत एक मीटिंग मे व्यस्त थे। अपने आगमन को उनके सचिव को बोल कर मै एक फाइल पढ़ने मे व्यस्त हो गया था। तीन बजे के करीब मुझे अजीत ने अपने आफिस मे बुला कर पूछा… मेजर, यह  बी चन्द्रमोहन की क्या कहानी है? मैने दीपक सेठी की पार्टी की कहानी सुना कर कहा कि वहाँ मैने कुछ लोगों से यह बात सुनी थी। मैने जानबूझ कर नीलोफर का जिक्र नहीं किया था। अजीत कुछ देर सोचने के बाद बोले… वीके उस मसले को देख रहा है। वहाँ और क्या सुनने को मिला था? मैने कहा… सर, आपके कहे अनुसार मुझे वामपंथी और इस्लामिक कट्टरपंथियों के गठजोड़ के मामले मे बांग्लादेश सीमा पर कुछ सुराग मिले है। मै सोच रहा हूँ कि एक बार वहाँ जाकर देखा जाये। …मेजर, यह तो इंटेल रिपोर्ट्स मे साफ बताया जा रहा है। इसके लिये वहाँ जाने की क्या आवश्यकता है। …सर, मैने भी वह रिपोर्ट्स देख ली है परन्तु उनकी कार्यप्रणाली के बारे मे अभी भी कोई पुख्ता जानकारी नहीं मिली है। जैसे उनके पैसों का स्त्रोत, मदरसे और मौलवियों की भुमिका, राजनितिक संरक्षण और सुरक्षा एजेन्सियों पर दबाव के बारे मे कुछ नहीं पता चलता है। वह रिपोर्ट्स कुछ कर्ताधर्ताओं के बारे मे अवश्य बताती है परन्तु मुझे लगता है कि राज्य सरकार जानबूझ कर असलियत छिपाने की कोशिश कर रही है। सीमावर्ती इलाके मे वह कौन लोग है जो बंगाल की सांख्यिकी संरचना को बदलने की कोशिश कर रहे है। अजीत कुछ सोच कर बोले… अगर तुम मुख्य लोगों के नाम और कार्यप्रणाली समझने मे सफल हो गये तो उन्हें न्युट्रालाइज करने का तरीका भी सोचने की जरुरत है। पूर्वी कमांड का हेडक्वार्टर्स कलकत्ता मे है। मै लेफ्टीनेन्ट जनरल बक्शी से बात कर लूँगा। अगर जरूरत पड़े तो उनसे मिल लेना वह तुम्हारी मदद कर देंगें। …यस सर। …एक बात का ख्याल रखना कि बांग्लादेश का सीमावर्ती क्षेत्र हमारे लगभग छ: राज्यों से मिलता है। …सर, सारा शरणार्थी पलायन मुख्य रुप से तीन राज्यों मे चल रहा है। बंगाल, असम और त्रिपुरा परन्तु उनको राजनीतिक संरक्षण देने का काम मुख्य रुप से बंगाल सरकार के द्वारा चल रहा है। मेघालय और मीजोराम भले ही रास्ता दे रहे है परन्तु घुसपैठिये इन तीन राज्यों मे जाकर बस रहे है। मै एक हफ्ते के लिए जाना चाहता हूँ परन्तु स्थिति देख कर आपको फोन से सुचित कर दूँगा।  …मेजर, सावधान रहना। मैने एक फाइल उनकी ओर बढ़ाते हुए कहा… सर, इस फाइल मे मैने कुछ नाम दिये है। यह आपके पंचमक्कारों का एक नेटवर्क है। मै चाहता हूँ कि जब तक मै वहाँ से लौटता हूँ तब तक इन लोगो पर निगरानी रखी जाए क्योंकि इन्हें न्युट्रिलाईज करना बेहद जरुरी है। इतना कह कर मैने आदतानुसार फौजी सैल्युट किया और कमरे से बाहर निकल आया था।

अपने आफिस मे पहुँच कर सुरक्षा एजेन्सियों से एकत्रित बंगाल सीमा की इंटेल रिपोर्ट्स पढ़ने बैठ गया था। अंसार की पार्टीयों मे उपस्थित कुछ लोगों के नाम भी मुझे उन रिपोर्ट्स मे मिल गये थे। मै चाहता था कि सिकन्दर रिजवी पर लगातार निगरानी रखी जाए जिससे कुछ और उनसे जुड़े हुए व्यक्तियों के बारे मे पता चल सके। यही सोच कर वह फाईल मैने अजीत के हवाले की थी। बंगाल दौरे पर जाने से पहले मै पूर्वी क्षेत्र मे होती हुई घुसपैठ के बारे मे जानने के लिये इंटेल रिपोर्ट्स पढ़ने व्यस्त हो गया। हर जानकारी मुझे अधूरी सी लग रही थी। उन रिपोर्ट्स मे सीमा पर तस्करी की सूचना मौजूद थी परन्तु नेतृत्व के बारे मे कुछ नहीं दिया गया था। उसी तरह अवैध घुसपैठ कहाँ, कब और कैसे होती है इसकी भी जानकारी नहीं थी। एक रिपोर्ट मे कुछ पाकिस्तानी तंजीमों की उपस्थिति के बारे मे शक जताया गया था परन्तु अभी तक उसकी कोई पुख्ता जानकारी नहीं दी थी। हर रिपोर्ट पर आईबी की मौहर लगी हुई थी परन्तु ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी स्थानीय अधिकारी ने जबरदस्ती कुछ मुख्य सूचनायें छिपाने की असफल कोशिश की है। कुछ देर रिपोर्ट्स से माथापच्ची करने के पश्चात एक नजर मैने कलाई की घड़ी पर मारी तो मै चौंक गया था। शाम के आठ बज रहे थे। मैने मेज पर पड़े हुए कागजों को इकठ्ठा किया और एक नजर कंप्युटर स्क्रीन पर डाल कर उसे बंद करके आफिस से बाहर निकल आया था।

अंधेरा हो गया था। मै अपने फ्लैट की दिशा मे चल दिया। तबस्सुम मेरे लिये एक पहेली बन कर रह गयी थी। आफिस के फ्रंट पर पहले सेठी और फिर अंसार ने मेरे लिये एक नयी चुनौती खड़ी कर दी थी। दोनो ही आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से खतरा लग रहे थे। अब कुछ दिनो से नीलोफर भी मुझे खतरा लग रही थी। मेरी अनुपस्थिति मे तबस्सुम अकेली फ्लैट मे रह कर क्या करेगी? मै उसकी मानसिक स्थिति से पूर्णत: परिचित था। पिछली रात की घटना के पश्चात उसकी स्थिति ज्यादा संवेदनशील हो गयी थी। मै धीरे से बड़बड़ाया… मेरी अनुपस्थिति मे वह कोई गलत कदम न उठा ले। सारे रास्ते मै उसी के बारे मे सोच रहा था। जैसे ही मैने फ्लैट मे प्रवेश किया तो मेरी नजर तबस्सुम पर पड़ी जो सोफे पर बैठी हुई किसी गहरी सोच मे डूबी हुई थी। पिछली रात के बाद हमारे बीच इस बारे मे कोई बात नहीं हुई थी। उसके साथ बैठते हुए मैने कहा… तबस्सुम मुझे एक हफ्ते के लिये बाहर जाना है। तुम्हारी बात का मैने कल कोई जवाब नहीं दिया था क्योंकि मै नशे मे इस बारे मे कोई निर्णय नहीं लेना चाहता था। आज ठंडे दिमाग से बैठ कर मैने बहुत सोचा है लेकिन उससे पहले मै तुम्हारी राय जानना चाहता हूँ। वह मेरी ओर बड़े ध्यान से देख रही थी।

बहुत सोचने के बाद मै एक नतीजे पर पहुँचा था। मैने उसके हाथ को थाम कर पूछा… क्या तुम मेरे जैसे व्यक्ति के साथ अपना पूरा जीवन गुजार सकती हो? वह कुछ बोलती उससे पहले मैने जल्दी कहा… कोई जवाब जल्दबाजी अथवा दबाव मे मत देना क्योंकि यह तुम्हारी जिंदगी का सवाल है। कल रात तुम्हारी बात सुन कर मै समझ गया कि अनजाने मे ही सही अब हमारी तकदीर एक दूसरे से जुड़ गयी है। तुम अकेली ही नहीं अपितु मै भी मीरवायजों की नजरों मे उतना ही बड़ा गुनाहगार हूँ। तुम सब कुछ जानती हो कि मेरा निकाह हो चुका है और मेरी एक बेटी भी है। उन दो बहनों के साथ ही नहीं मेरे संबन्ध और बहुत सी स्त्रियों के साथ है। बदकिस्मती से अब एक मजबूरी के कारण तुम मेरे साथ बंध गयी हो और इन हालात में अब अगर तुम मेरे साथ रहोगी तो कल रात जैसी भूल दोबारा नहीं होनी चाहिये। अब इस मजबूरी के रिश्ते को मोहब्बत का नाम तो नहीं दिया जा सकता परन्तु अगर फिर भी तुम मेरे साथ रहना चाहोगी तो इस रिश्ते को निकाह मे तबदील करना पड़ेगा। क्या तुम एक ऐसे व्यभिचारी की बीवी बनना चाहोगी जो कभी भी तुम्हारे प्रति वफादार नहीं हो सकता? इसलिये बहुत सोचने के बाद मै इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि तुम्हारे पास एक और रास्ता है। तुम एक नये परिचय से अपनी नयी जिंदगी की शुरुआत कर सकती हो। तुम आगे पढ़ना चाहो या कोई काम सीखना चाहो तो मै इसमे तुम्हारी पूरी मदद करुँगा जिससे तुम अपने पाँव पर खड़ी हो कर अपने भविष्य को स्वयं रचो। इस प्रकार मुझ से अलग होकर भी तुम एक भय-मुक्त जिंदगी की कामना कर सकती हो। एक बात मुझे समझ मे आ गयी है कि इस तरह अब मै तुम्हें अपने साथ नहीं रख सकता क्योंकि कल रात जो कुछ भी हुआ वह हर्गिज नहीं होना चाहिये था। अच्छी तरह सोच समझ कर मेरे लौटने के बाद जवाब देना। तुम्हारे पास एक हफ्ते का समय है। वह कुछ नहीं बोली बस चुपचाप सुनती रही थी। उस रात को एक बार फिर मेरे साथ लेटते हुए वह बोली… क्या मै आपके साथ नहीं चल सकती? …अगर मेरे साथ चलोगी तो अपने भविष्य के बारे मे कैसे सोच सकोगी। वह कुछ नहीं बोली लेकिन गहरी सोच मे डूब गयी थी।

अगले दिन दोपहर को मै रेलवे प्लेटफार्म पर खड़ा हुआ चांदनी का इंतजार कर रहा था। बहुत कोशिश के बाद भी आरक्षित टिकिट का इंतजाम नहीं हो सका था। इस काम के लिए मै अपने आफिस का इस्तेमाल भी नहीं कर सकता था। सौ रुपये के लालच मे एक कुली ने मुझे आश्वस्त किया था कि ट्रेन चलने से पहले कंडक्टर हमारे लिये एक बर्थ का इंतजाम कर देगा। अपनी वर्दी और सूट त्याग कर ट्रेक सूट पहने मै एक कालेज के छात्र की तरह सफर कर रहा था। ट्रेन भी प्लेटफार्म पर आ चुकी थी। यात्रियों की भगदड़ मची हुई थी। उस भीड़ मे चांदनी को ढूँढना मुश्किल साबित हो रहा था। चार बजे ट्रेन छूटने का समय था परन्तु उसका कोई अता पता नहीं था। मुझे जिस कोच मे एक सीट मिली थी वह भी अब तक रोजना आने-जाने वाले यात्रियों से खचाखच भर गयी थी। अपने कन्धे पर बैग लटकाये मेरी नजर मेन गेट पर जमी हुई थी। मेरे लिये दुविधा हो रही थी कि अगर आखिरी वक्त पर चांदनी ने अपना विचार बदल लिया तो मेरी सारी योजना विफल हो जाएगी। मै उसके जरिये सीमा पर होने वाली घुसपैठ और उनके मुख्य इस्लामिक और वामपंथी संचालकों की कार्यप्रणाली समझना चाहता था। इसी सोच मे डूबा हुआ था कि तभी किसी की आवाज मेरे कान मे पड़ी… मुझे देर तो नहीं हुई। मैने मुड़ कर देखा तो चांदनी को देख कर चौंकते हुए बोला… तुम इस लिबास मे इस भीड़ मे सफर करने की सोच रही हो। …इस लिबास मे क्या खराबी है?

वह लम्बी सी पिंडलियों तक ढकी आधुनिक फुलकारी प्रिंट की फ्राक जैसा लिबास पहने पीठ पर एक बैग लटकाये एक छात्रा सी लग रही थी। उसके पाँव के पास एक एयरबैग पड़ा हुआ था। अब फिलहाल हमारे पास बहस करने का समय नहीं था। मैने जल्दी से उसका एयरबैग उठाया और दरवाजे पर खड़ी हुई भीड़ को धक्का देते हुए आगे बढ़ते हुए बोला… मेरे पीछे चली आओ। बड़ी मुश्किल से किसी को धक्का दिया और किसी को कोहनी मार कर जगह बनाते हुए मै बड़ी मुश्किल से अपनी सीट तक पहुँच सका था। मैने मुड़ कर चांदनी पर नजर डाली तो वह भीड़ मे फँस कर पीछे रह गयी थी। उसके चेहरे पर खिंची हुई लकीरों को देख कर पल भर मे उसकी परेशानी समझ मे आ गयी थी। मैने अपनी सीट के सामने बैग फेंक कर खड़े हुए लोगों को धक्का देते हुए तेजी से उसके पास पहुँच गया और एक बार फिर से उसको घेरे हुए लोगो को धक्का देकर जगह बनायी और उसको अपने जिस्म की आढ़ मे लेकर जैसे ही आगे बढ़ा कि तभी ट्रेन के चलने का झटका लगा जिसके कारण हम दोनो लड़खड़ा गये थे। अनायस ही अपने आप को संभालने के लिए मैने उसकी कमर को पकड़ लिया था। धीरे-धीरे ट्रेन ने भी गति पकड़ ली थी। कोच मे भीड़ से बचाकर उसे मैने बन्द दरवाजे के साथ खड़ा करके उसके पीछे मै खड़ा हो गया जिससे भीड़ की रेलमपेल से वह बच जाये।

उसने अपना चेहरा मेरी ओर घुमा कर धीरे से कहा… आपको यही ट्रेन मिली थी। यहाँ कितनी भीड़ है। क्या फर्स्ट क्लास मे नहीं चल सकते थे? मैने धीरे से उसके कान मे फुसफुसा कर कहा… यह आरक्षित कोच है परन्तु यह लोग रोजाना के यात्री है। कुछ देर की बात है यह सब अगले कुछ स्टेशनों पर उतर जाएँगें फिर जगह बन जाएगी। मेरी बात सुन कर वह चुपचाप खड़ी हो गयी थी। अत्याधिक भीड़ होने के कारण हम एक दूसरे को संभाल रहे थे परन्तु ट्रेन के झटकों के कारण हमारे जिस्म लगातार एक दूसरे से टकरा रहे थे। कुछ देर तक भीड़ के कारण आभास नहीं हुआ परन्तु एकाएक मुझे उसके थरथराते हुए गोल पुष्ट नितंबों का एहसास हुआ जो हर पल मेरी जांघ से टकरा रहे थे। मेरी नाईलान की ढीली सी पतलून पर उसके नितंबों के लगातार घर्षण होने के कारण मेरी सुप्त धमनियों मे रक्त का प्रवाह भी तेज होता जा रहा था। अचानक वह अपने आप को संभालने के हिली और अनायस ही मेरा अर्धसुप्त पौरुष उसके नितंबों पर रगड़ खाते हुए उसकी दरार के उपर जा कर टिक गया था। इसका एहसास होते ही वह अचकचा कर बचने क लिये आगे बढ़ी परन्तु दरवाजे के कारण वह मुझसे दूरी नहीं बना सकी थी। ट्रेन के झटके और भीड़ के दबाव के कारण सिर उठाता हुआ भुजंग उसके नितंबों पर रगड़ मार कर उनकी पुष्टता का आभास कराने मे व्यस्त हो गया था।

उसके लगातार जिस्मानी स्पर्श और यौवन की सुगंध का सीधा प्रभाव मेरे भुजंग पर हो रहा था। वह सिर उठाने के लिए मचलने लगा। हालात और मर्यादा मे घिरा हुआ मै अपनी उमड़ती हुई इच्छाओं को दबाने की असफल कोशिश मे जुटा हुआ था। अचानक वह हिली और इस बार मुझे लगा कि उसने मेरे अकड़ते हुए पौरुष पर अपने थरथराते हुए नितंब रगड़ते हुए धीरे से पीछे होते हुए दबा कर तुरन्त हटाने का प्रयास किया। पल भर के इस स्पर्श ने एक बार फिर से मेरे नियंत्रण को धवस्त करने का प्रयत्न किया परन्तु जब तक मै अपने आप को संभालता तभी एक बार फिर से वह हिली और उसने वही क्रिया दोहरा दी थी। इस बार मुझे एहसास हो गया था कि यह क्रिया जानबूझ कर की गयी थी। अब तक मेरा भुजंग अपना रौद्र अवतार ले चुका था। मेरे हाथ उसके कन्धे से सरक कर उसकी कमर पर जाकर टिक गये थे। मैने अपने गुस्साये हुए भुजंग को उसके नितंबों पर रगड़ना आरंभ कर दिया और उसने उस कठोर का सिर कुचलने के लिये अपने जिस्म को पीछे धकेला जिसके कारण गुस्साये हुए भुजंग का सिर सरक कर दरार मे अटक गया था। ट्रेन के हिचकोलों ने बाकी का कार्य अपने हाथ मे ले लिया था।

एक स्टेशन आया और निकल गया लेकिन कोच मे भीड़ की हालत और भी बदतर हो गयी थी। वामपंथी जिहादिन मुझे निरन्तर कुछ देर इसी प्रकार सताती रही। सारी शर्म और मर्यादा को त्याग कर उसको सताने के लिये मेरे हाथ धीरे से उसकी कमर से सरकते हुए जैसे ही उपर की ओर बढ़े तो उसने छिटक कर दूर होने का प्रयास किया परन्तु उसके लिये हिलने की जगह ही नहीं थी। एक बार फिर से मैने उसकी कमर पकड़ कर अपने से सटा लिया था। कुछ देर मै उसकी पतली कमर सहलाता रहा और एक बार फिर से मेरी उँगलियाँ उपर की ओर सरकी तो उसने सिर घुमा कर मेरी ओर देख कर धीरे से झुंझलाते कहा… क्या कर रहे हो? …तुम्हें दरिन्दो से बचाने की कोशिश कर रहा हूँ। एकाएक उसकी निगाहें झुक गयी और सिर घुमा कर चुपचाप खड़ी हो गयी लेकिन उसके चेहरे पर आयी हुई मुस्कुराहट मेरी निगाहों से छिप नहीं सकी थी। उसके नितंबों पर लगातार प्रहार करते हुए मेरी उँगलियाँ सरकते हुए जैसे ही उसके सीने के गोलाईयों पर पहुँची उसने चिहुँक कर मेरा हाथ पकड़ लिया। मैने धीरे से उसके कान मे फुसफुसा कर कहा… तुम्हारी वामपंथी विचारधारा जिस्मानी स्वतंत्रता की पैरोकार है तो इतने सुन्दर जिस्म को दकियानूसी सोच की बंधक क्यों बना रही हो। उसकी पकड़ एकाएक ढीली हो गयी और मैने तुरन्त उसके सीने की दोनो गोलाईयाँ को अपने कब्जे मे कर लिया। उसकी पुष्ट गोलाईयों को धीरे से दबाया तो उसके मुख से दबी हुई सिसकारी निकल गयी थी। हमारे बीच अब बराबरी की छेड़खानी आरंभ हो गयी थी। वह अपने नितंबों को मेरे अकड़ते हुए भुजंग पर रगड़ती और मै उसके सीने की गोलाईयों को धीरे से मसक देता। धीरे-धीरे हमारे जिस्म कामाग्नि से जलने लगा था। उसके गाल सुर्ख हो गये थे। अचानक भीड़ मे एकाएक हलचल होनी आरंभ हुई तो हम दोनो सावधान होकर अलग हो गये। कोई स्टेशन आने वाला था जिसके कारण द्वार पर भीड़ का जमावड़ा बढ़ता जा रहा था।

स्टेशन पर पहुँचते ही कोच मे भगदड़ सी मच गयी थी और ट्रेन के रुकते ही कोच मे भीड़ छंट गयी थी। आगे बढ़ने के लिए जगह बन गयी तो उसे अपने साथ लेकर मै अपनी सीट की ओर चल दिया। अभी भी कुछ लोग मेरी बर्थ पर जमे हुए थे। मै आगे बढ़ कर फर्श पर पड़े हुए दोनो बैग को बर्थ के नीचे धकेलते हुए कहा… यह मेरी सीट है। खिड़की के साथ बैठे हुए नवयुक ने एक पल के लिए मुझे घूरा और फिर अपने साथ बैठे हुए आदमी से बोला… थोड़ा उधर सरक जा इसको भी बैठना है। अबकी बार मैने अपनी आवाज कड़ी करते हुए कहा… हम दोनो को बैठना है। इसलिए अच्छा होगा कि आप भी उठ जाएँ। फिर चांदनी से कहा… आओ तुम खिड़की के साथ बैठ जाओ। चांदनी को देख कर वह नवयुवक उठ कर खड़ा हो कर बोला… हम लोग अगले स्टेशन पर उतर जाएँगें। मैने कोई जवाब नहीं दिया और चांदनी को खिड़की के साथ बिठा कर उसके साथ बैठते हुए कुछ जगह बना कर कहा… अब आप लोग भी बैठ जाओ। वह दोनो चुपचाप मेरे साथ बैठ गये थे। दो और स्टेशन गुजरने के बाद सारी भीड़ छंट चुकी थी। सीट पर पहुँचने के बाद हमारे बीच अभी तक कोई बात नहीं हुई थी। …चांदनी, हमारे पास बस एक बर्थ है। मुझे कंडक्टर ने कहा है कि सारी कोच चेक करने के बाद अगर कोई बर्थ खाली होगी तो वह हमे दे देगा। उसने खिड़की के बाहर देखते हुए कहा… तो क्या हम दोनो एक ही बर्थ पर सोयेंगें। …क्यों इसमे क्या परेशानी है। …नहीं हम दोनो साथ नहीं सो सकते। …अब तो मान लो कि तुम्हारा वामपंथ पर कोई विश्वास नहीं है। तुम यहाँ सो जाना। मै किनारे मे बैठ जाऊँगा और जब मुझे बर्थ मिल जाएगी तो मै वहाँ चला जाऊँगा। उसने मेरी ओर घूर कर देखा और फिर मुस्कुरा कर बोली… अपने फायदे के लिये हर बार वामपंथ का सहारा मत लिया करो। यह बोल कर वह खिड़की से बाहर देखने लगी।

अंधेरा हो गया था। स्टेशन निकलते जा रहे थे। रात को कंडक्टर टिकिट चेक करने आया तो मुझे पहचानते हुए बोला… सारी कोच फुल है। एलाहाबाद पर एक बर्थ खाली होगी तब देखूँगा। एक बार फिर से हम चुपचाप अपनी सीट पर बैठ गये थे। चांदनी खिड़की के बाहर अंधेरे मे देखते हुए धीरे से बोली… ऐसी हरकत आप सभी के साथ करते है? मैने उसको अनसुना कर दिया तो अबकी बार उसने मेरी ओर देखते हुए पूछा… आपने जवाब नहीं दिया। …हर किसी के साथ तो हर्गिज नहीं परन्तु तुम्हारे उदारवादी वामपंथी विचारों के कारण मै अपने दिल के हाथों मजबूर हो गया था। सच कह रहा हूँ कि तुम बहुत खूबसूरत हो। मेरा जवाब सुन कर उसके चेहरे पर शर्म की लालिमा छा गयी थी। …चांदनी, इसमे तुम्हारा क्या नुकसान हो गया? इसी बहाने मै तुम्हारे जिस्म के हर उतार चढ़ाव से परिचित हो गया। उसने आँखें तरेर कर कहा… बस इसके आगे सोचना भी नहीं। इतना बोल कर वह मुस्कुरायी और खिड़की के बाहर शून्य मे देखने लगी। मैने मुस्कुरा कर उसके कान मे फुसफुसा कर कहा… मै सोचता नहीं बस कर गुजरता हूँ। यह बोल कर मै पीठ टिका कर आँखें मूंद कर बैठ गया। कुछ देर बाद रेलवे कैन्टीन का खाना सीट पर आने लगा था। सारे यात्री अपना पेट भरने मे जुट गये थे। हमने भी खाना खाया और एक बार फिर से चुपचाप बैठ गये थे। हमारी सीट के सामने बैठे हुए कुछ यात्री राजनीति पर चर्चा कर रहे थे और कुछ पत्रिका पढ़ने मे उलझ गये थे। एक दो मनचले चांदनी को तिरछी निगाहों से देखने मे व्यस्त थे।

कुछ देर के बाद हमारे सहयात्रियों ने सोने की तैयारी आरंभ कर दी थी। …मुझे नींद आ रही है। …तुम उधर खिड़की की ओर सिर करके लेट जाओ। मै इस कोने मे बैठा हुआ हूँ। वह कुछ देर बैठी रही फिर जब आँखें बोझिल होने लगी तो उसने अपने जूते उतार कर मेरी ओर पैर करके बर्थ पर लेट गयी थी। मै उसकी केले सी चिकनी गोरी पिंडलियों को ताक रहा था कि अचानक उसे न जाने क्या सूझी कि वह उठ कर बैठ गयी और दिशा बदल कर अपना सिर मेरी ओर करके लेट गयी थी। मैने महसूस किया कि मेरे बैठने के कारण वह अपने पाँव सिकोड़ कर लेटी हुई थी। मैने धीरे से उसके सिर को सहारा देकर अपनी जाँघ पर रख कर कहा… अब आराम से पैर फैला कर सो जाओ। उसने कुछ नहीं कहा बस चुपचाप पैर सीधे करके लेट गयी थी। रात के दस बज चुके थे और कोच के गलियारे की लाईट को छोड़ कर सब लाइट बुझ गयी थी। मैने धीरे से उसके चेहरे पर आये हुए बालों को हटाया और उसके कोमल गालों को धीरे से सहलाते हुए पूछा… सो गयी? उसने कोई जवाब नहीं दिया और मेरी ओर करवट लेकर लेट गयी थी। ट्रेन के हिलने के कारण वह भी लगातार हिल रही थी तो उसको सहारा देने के लिये उसको पकड़ कर बैठ गया था।

कुछ देर मे ही कोच मे यात्रियों के खर्राटे गूंजने लगे थे। अचानक उसने अपना चेहरा मेरे अर्धसुप्त भुजंग पर धीरे से दबाया तो पहली बार मैने कोई ध्यान नहीं दिया परन्तु जब उसने अपने गाल को उस पर रगड़ा तो मै समझ गया कि वह जानबूझ कर मुझे छेड़ रही थी। अपने बैग से एक चादर निकाल कर मैने उस पर डाल कर कहा… आराम से सो जाओ। उसने अपने चेहरे पर चादर खींच कर एक बार फिर से वही हरकत दोहराने लगी। उसकी हरकत के कारण एक बार फिर से हमारे बीच छेड़खानी का दौर आरंभ हो गया था। मैने उसकी पीठ सहलाना आरंभ कर दिया। कुछ देर नाईलान के लोअर मे ढके हुए मेरे भुजंग पर वह अपने गाल रगड़ती रही और फिर धीरे से अपनी कोमल उँगलियों से उसे सहलाना आरंभ कर दिया। जैसे-जैसे भुजंग अपना विकराल रुप लेता जा रहा था वैसे-वैसे उसकी हरकतें भी गति पकड़ती जा रही थी। …इसको आजाद कर दो। वह धीरे से फुसफुसायी और अचानक उसने मेरे लोअर का सिरा पकड़ कर नीचे खिसका दिया जिसके कारण सिर उठा कर तन्नाया हुआ भुजंग स्प्रिंग की भाँति बाहर आ गया था। मैने चौंक कर आसपास की सीटों पर नजर डाली तो सभी अपनी दुनिया मे खोये हुए थे। चांदनी ने उत्तेजना से झूमते हुए भुजंग को गरदन से पकड़ा और फिर अपने होंठों और जुबान से फूले हुए सिर पर निरन्तर वार करना आरंभ कर दिया। उसके कोमल होंठ धीरे से खुले और अकड़ा हुआ सिर सरक कर उसके मुँह मे प्रवेश कर गया। उसकी उँगलियों भुजंग की लम्बाई को सहलाती और उसके होंठों मे दबे हुए फूले हुए सिर पर उसकी जुबान का ट्रेन के हिचकोले मे निरन्तर वार मुझे स्वर्गिम एहसास की अनुभुति करा रहा था।

मैने उसकी फ्राक के हुक को खोल कर धीरे से कहा… इन पहाड़ियों को भी आजादी चाहिये। इतना बोल कर मैने उसकी अन्तर्वस्त्र के हुक को खोल दिया और आजाद हुई पहाड़ियो पर हमला बोल दिया। पहाड़ियों के शिखर पर उत्तेजना से फूले हुए अंगूर को उँगलियों मे फंसा कर उसका रस निचोड़ने मे जुट गया था। स्टेशन निकलते जा रहे थे और मै आँखें मूंद कर उत्तेजना की नयी बुलंदियों को छूने की कोशिश कर रहा था। अचानक जवालामुखी फट पड़ा और उत्तेजना से ओतप्रोत हुआ लावा बेरोकटोक बहने लगा। उसने तुरन्त अपना मुख हटा लिया और हाथ से कामरस को दोहने मे जुट गयी थी। बेचारा भुजंग उस कोमलांगी के सामने हार मान कर हथियार डाल चुका था। मैने जल्दी से चादर से पौंछ कर अपना लोअर ठीक किया और फिर चादर हटा कर दबे हुए स्वर मे कहा… चांदनी थैंक्स। अब तुम अपना सिर खिड़की की ओर करके सो जाओ। एक बार उसने मना किया लेकिन मेरी जिद्द के आगे उसकी एक नहीं चली और एक बार फिर से वह दिशा बदल कर लेट गयी थी। थोड़ी देर तक उसकी गोरी चिकनी पिडलियों को अपनी जाँघ पर रख कर सहलाता रहा और फिर मेरा हाथ आगे बढ़ कर उसकी मांसल जाँघ पर पहुँच गया था। मेरी उँगलियॉ सरकती हुई जैसे ही उसके स्त्रीत्व के द्वार की ओर अग्रसर हुई तो उसका जिस्म थरथरा उठा था। उसके अन्तर्वस्त्र मे जगह बनाते हुए मेरी उँगली ने जैसे ही उसके बालरहित स्त्रीत्व के द्वार पर दस्तक दी तो वह उत्तेजना से काँप गयी थी। मेरी उँगली धीरे से द्वार खोल कर जैसे ही उस अकड़े हुए अंकुर पर वार किया तो वह चिहुँक कर उठने लगी परन्तु मैने उसकी टांगे पकड़ कर दबा दी थी। ट्रेन के हिलने से मेरी उँगली ने उसके अंकुर को घिसना आरंभ कर दिया था। वह चादर मे ढकी हुई तड़प रही थी परन्तु ट्रेन के झटके और पटरियों के शोर मे उसकी सिस्कारियाँ दब कर रह गयी थी। मेरी दूसरी उँगली उसकी सुरंग मे प्रवेश करके उसके सबसे संवेदनशील स्थान की तलाश मे जुट गयी थी। जैसे ही मुझे उस स्थान का आभास हुआ और मेरी उँगली ने धीरे से उसे सहलाया कि एकाएक उसके अन्दर एक लहर सी उठी और उसके पूरा जिस्म मे कंपन की लहर दौड़ गयी थी। वह मचली और एक पल के लिये तड़पी फिर एकाएक शान्त हो गयी थी। मेरा हाथ उसके कामरस मे भीग गया था। थोड़ी ही देर मे वह गहरी नींद मे खो गयी थी।      

करीब सुबह चार बजे कंडक्टर ने आकर कहा कि एलाहाबद मे सामने वाली बर्थ खाली हो जाएगी तो आप उधर चले जाईएगा। मैने अपनी जेब से एक बड़ा नोट निकाल कर उसकी ओर बढ़ा दिया था। वह मेरी टिकिट बना कर वापिस चला गया। थोड़ी देर के बाद एलाहाबाद आते ही जब वह बर्थ खाली हो गयी तब मै आराम से उस पर लेट गया और अपने सपनों की दुनिया मे खो गया। जब मेरी आँख खुली तब तक दोपहर हो गयी थी। चांदनी का ध्यान खिड़की के बाहर लगा हुआ था। मैने उठ कर पहले अपने अकड़े हुए बदन को हिला कर खोला और फिर टायलेट मे चला गया।  कुछ देर के बाद वापिस उसके साथ बैठते हुए पूछा… हम कहाँ तक पहुँच गये है। …अभी कुछ देर पहले पटना निकला है। …कलकत्ता पहुँचते हुए रात हो जाएगी। हमने चाय पी और फिर कुछ देर बात करने के बाद कुछ खा कर मै एक बार फिर सोने के लिये चला गया था। रात की शैतानी के बारे मे हमारे बीच फिर कोई चर्चा नहीं हुई थी। ऐसे ही सोते और जागते हुए हम रात को दस बजे तक कलकत्ता पहुँच गये थे।

कलकत्ता स्टेशन के बाहर इंसानी भीड़ को देख कर मेरा दिमाग चकरा गया था। स्टेशन के आसपास भीड़ मे ज्यादातर लोग सिर पर जालीदार टोपी पहने हुए दिख रहे थे। चांदनी चुपचाप मेरे साथ चलती हुई बोली… लगता है कि हम मुस्लिम इलाके मे है। उसने भी वही महसूस किया था जो मै महसूस कर रहा था। सड़क के दोनो किनारों पर बहुत से छोटे-बड़े होटल दिख रहे थे। …कहाँ ठहरना पसंद करोगी? उसने इशारे से एक जगमगाते हुए बोर्ड की ओर इशारा करते हुए कहा… आलमगीर होटल मे चल कर देखते है। होटल के रिसेप्शन पर एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति बैठा हुआ टीवी पर कोई बांगला सिरियल देख रहा था। हम पर नजर पड़ते ही वह तुरन्त बोला… आईये जनाब। …ठहरने के लिए एक कमरा चाहिये। उसने चांदनी पर एक भरपूर नजर डाल कर मुस्कुरा कर कहा… कितनी देर के लिये? मैने घूर कर देखते हुए कहा… कुछ दिनों के लिये ठहरना है। मुँह मे दबे हुए पान की पीक किनारे मे थूकते हुए वह बोला… एसी रुम का हजार रुपये एक रात का किराया है। मैने जेब से पर्स निकाला और हजार रुपये रखते हुए कहा… यह जमा कर लो। …अपना कोई फोटो आई कार्ड दिखाईए। मैने अपना वोटर कार्ड उसके सामने रखते हुए चांदनी से कहा… तुम्हारा आईकार्ड दिखा दो। उसने अपने पर्स मे से कालेज का आईकार्ड निकाल कर मेरे आगे कर दिया। …मियाँ तुम कहाँ से आ रहे हो? …दिल्ली। …यहाँ आने का कारण? …घूमने। …ओह हनीमून पर आये हो। चांदनी कुछ बोलने वाली थी लेकिन मैने उसका हाथ कस कर दबाते हुए कहा… मियाँ, आपकी कागजी कार्यवाही पूरी हो गयी हो तो जल्दी से कमरा दे दिजिये। कुछ ही देर मे हम एक छोटे से कमरे मे खड़े हुए थे। एक डबल बेड बीच मे पड़ा हुआ था जिसके कारण कमरे मे बस इतनी जगह थी कि एक आदमी बिना किसी चीज से टकराये आराम से बाथरुम जा सकता था। बाथरुम मे टायलेट और शावर की सुविधा दी हुई थी। हमारा बैग एक किनारे मे पटक कर वेटर वापिस जा चुका था।

चांदनी बेड पर बैठी हुई किसी सोच मे डूबी हुई थी। कमरे, बाथरुम, अलमारी और खिड़की का निरीक्षण करके जैसे ही मेरा ध्यान चांदनी की ओर गया तो वह तुनक कर बोली… क्या हम दो अलग कमरों मे नहीं ठहर सकते थे। …हम हनीमून के लिए आये है तो अलग कमरों मे कैसे रह सकते है। मेरी बात सुन कर वह गुस्से से बिफरते हुए बोली… यहाँ पर मुझसे दूर रहना। …तो क्या तुम्हारी वामपंथी जिस्मानी स्वतंत्रता की विचारधारा सिर्फ दूसरों को मुर्ख बनाने के लिये होती है। वह एकाएक बोली… तुम्हें हमारी विचारधारा मे बस एक यही बात समझ मे आयी है। मानव अधिकारों के लिये क्रांति और सरकारी दमनकारी नीतियों के विरोध को तुम पूंजीवादी लोग सिरे से नकार देते हो। शायद इसीलिये हमे सरकार का ध्यान खींचने के लिये खून बहाना पड़ता है। मैने बेड के एक किनारे की ओर बढ़ते हुए बड़बड़ाया… प्लीज, सफर की थकान से बदन टूट रहा है। आज रात आराम करने दो और बाकी वामपंथी विचारधारा के बारे मे कल बता देना। यह बोल कर मै जूते उतार कर बिस्तर पर लेट गया। मुझे याद नहीं मेरी आँख कब लग गयी लेकिन जब आँख खुली तब तक दिन निकल आया था।

अचानक चांदनी ने करवट ली जिसके कारण मेरी नजर उसकी ओर चली गयी थी। उसकी फ्राक उसकी जांघों पर सिमट गयी थी। यह दृश्य देख कर मेरा सारा ध्यान टूट गया था। उसके सीने की गोलाईयाँ और उन पर कत्थई शिखर भी झीने से कपड़े मे छिपे होने बावजूद दिन के उजाले मे साफ दिखाई दे रहे थे। एकाएक मुझे ट्रेन के सफर की याद आते ही मेरी धमनियों मे रक्त का बहाव बढ़ गया था। मैने उसके चेहरे पर नजर डाली तो वह अभी भी गहरी नींद मे थी। मै जल्दी से उठा और तैयार होने चला गया था। जब तक तैयार होकर बाहर निकला तो मेरी नजर उस पर पड़ गयी थी। उसके बालों ने उसका चेहरा काफी हद तक ढक दिया था परन्तु फिर भी इस रुप मे वह बेहद सुन्दर लग रही थी। एकाएक उसको छूने की तीव्र इच्छा हुई परन्तु उस क्षणिक इच्छा को तुरन्त दबा कर मैने उसका कन्धा पकड़ कर जोर से हिलाते हुए कहा… उठ जाओ चांदनी बहुत देर हो गयी है। वह चौंक कर उठ कर बैठ गयी और फिर अपने कपड़े संभालते हुए बोली… क्या टाइम हो गया है? …दस बज गये है। जल्दी से तैयार हो जाओ। फिर अपने दोस्त से फोन करके पूछो कि यहाँ से कहाँ जाना है। उसने एक भरपूर अंगड़ाई ली और फिर आराम से उठते हुए बोली… मै तैयार होकर उसको फोन करुँगी लेकिन फिलहाल मुझे चाय चाहिये।

चाय पीकर चांदनी तैयार होने चली गयी थी और मै अपने बैग मे लिखे हुए नोट्स निकाल कर पढ़ने बैठ गया। हसनाबाद और बशीरहाट नाम की जगह पर काफी बांग्लादेशी और रोहिंग्या शरर्णार्थी शिविर बने हुए थे। उसके अलावा नदिया, मुर्शीदाबाद, मालदा, उत्तर और दक्षिण दीनाजपुर और कूचबिहार सीमावर्ती जिलों मे भी काफी घुसपैठ हो रही थी। घुसपैठ की मुख्य सूचनाओं को अपने दिमाग मे बिठाने के पश्चात मैने अपने फोन से जीओसी ईस्टर्न कमांड लेफ्टीनेन्ट जनरल बक्शी के आफिस मे फोन करके मिलने का समय मांगा तो पता चला कि जनरल बक्शी आफिस मे नहीं है। उनसे अगले दिन मिलने का समय मांग कर मैने फोन काट दिया था। बारह बजे तक चांदनी तैयार हो गयी थी। इसी दौरान दो-तीन फोन करने के बाद वह बोली… 24 परगना (उत्तर) के हसनाबाद मे मोहम्मद अली बेग से मिलना है। वह हमे सीमावर्ती गाँव मे कुछ लोगो से मिलवा देगा। …यह बेग कौन है? …सीपीएम का जिलाध्यक्ष है लेकिन वह आजकल हसनाबाद मे रोहिंग्या का शरणार्थी कैंम्प चलाता है। जब वह फोन पर बात कर रही थी तब मै अखबार मे निगाहें गड़ाये उसकी फोन पर होती हुई पर ध्यान दे रहा था। वह जिसका भी नाम लेती उस नाम को अपने दिमाग मे बिठाने मे जुट गया था। …तो जल्दी से तैयार हो जाओ। आज ही हसनाबाद चलते है। …आज रात को वहीं रुक जायेंगें। इसलिए सामान लेकर चलते है। …ठीक है। कुछ देर के बाद हम दोनो कन्धे पर बैग टांगे बस स्टैन्ड की ओर जा रहे थे। 

6 टिप्‍पणियां:

  1. जबरदस्त अंक और समीर और चांदनी के यह सफर बहुत ही रोमांच और खतरों से भरी लगती है और अब देखना होगा की यह पंच मक्कारों की टोली को समीर और टीम कैसे हैंडल करते हैं।तबस्सुम की परेशानियों को समीर कैसे हल करेगा।

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    1. अल्फा भाई, हमारा सफर तो अभी आरंभ हुआ है। आगे देखिये होता है क्या। असली परेशानी पंच मक्कारों की कार्यशैली है जिस पर सरकार द्वारा अंकुश लगाना बेहद कठिन है। आपके प्रोत्साहन के लिये धन्यवाद।

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  2. salo intjar ke baad aap aaye or kahani suru ki aap ka abhar hai rathor sahab jai ho

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    1. साईरस भाई हम तो वहीं थे जहाँ आपने छोड़ा था। बस कुछ समय के लिये लेखनी पर ग्रहण लग गया था। एक बार लिखना आरंभ किया तो आपके लिये दो रचनायें पूरी करने के पश्चात इसी साइट पर पढ़ने के लिये डाल दी थी। तीसरी रचना काफ़िर तो अध्याय के जरिये हफ्ते मे दो बार आप तक पहुँचा रहा था। उसकी अगली कड़ी गहरी चाल कुछ दिन पहले ही आरंभ की है। उम्मीद करता हूँ कि आपको पसंद आएगी। शुक्रिया दोस्त।

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  3. मेरा अनुमान सही निकला, वामपंथ और व्यभिचार या स्वैराचार ही कहो, जिसको ये लोग सो कॉल्ड आझादी का नाम देते है साथ साथ चलते है. चाँदनी नाम की नागिन वैसीही लग रही. पर ये भटकी जादा लगती है, अब देखते है समीर इसको अपणे रंगमे कैसे रंगाता है. पछिम बंगाल वैसेभी ऐसे पाक-चीन परस्त लोगोंका गढ रहा है.

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  4. प्रशान्त भाई नमस्कार। आप वामपंथी सोच की सही समझ रखते है। इस सोच का चरमपंथी सोच के साथ बना हुआ काकटेल किसी भी प्रजातंत्र के लिये बेहद विनाशक है। एक सोच समाज के नियम पर कुठाराघात करती है और दूसरी सोच राष्ट्र की एकता और अखंडता को तोड़ने की कोशिश करती है। एक बात तो तय है कि यह मीठा जहर आखिर मे मानवता का ही नाश करता है। इसके अनेक उदाहरण आज देख सकते है। धन्यवाद।

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