रविवार, 30 जून 2024

 

 

शह और मात-8

 

सब सो गये थे और मै करवटें बदल रहा था। अंजली के विश्वासघात ने मुझे अन्दर से हिला कर रख दिया था। मेनका और केन उसके साथ होने के कारण मेरी स्थिति बेहद संवेदनशील हो गयी थी। उनका ख्याल आते ही मै उठ कर बैठ गया। मेरे दोनो बच्चे उसके पास होने से अब मेरी स्थिति और भी ज्यादा कमजोर हो गयी थी। …समीर क्या अभी भी उसके बारे मे सोच रहे हो? नीलोफर मेरी ओर करवट लेकर बोली तो मैने धीरे से उसके बाल सहला कर कहा… मुझे नींद नहीं आ रही है। …तुम बेकार उस पर शक कर रहे हो। वह हर्गिज वहाँ नहीं हो सकती। मै कुछ बोलते-बोलते रुक गया। अचानक काठमांडू की एक रात मेरे दिमाग मे एक ख्याल आया था जिसने मुझे अन्दर से हिला कर रख दिया था। दिल्ली लौटने से पूर्व मै अकेला बैठ कर एक रात को काठमांडू आप्रेशन का आंकलन करते हुए एक ख्याल आया तो मै घबरा कर उठ कर खड़ा हो गया था। अब वही ख्याल सच साबित होता हुआ लग रहा था।  

एक ओर दिल्ली मे बैठी हुई तिगड़ी ने अपने प्यादे शतरंज की बिसात पर बिछा दिये थे। दूसरी ओर सीमा पार बैठे हुए जनरल शरीफ और जनरल बाजवा अपने प्यादे सेट करने मे लगे हुए थे। उनके मुख्य प्यादे फारुख, मकबूल बट और अब्बासी को तिगड़ी ने एक चाल मे धाराशायी कर दिया था। तभी दिमाग मे एक ख्याल बिजली की तेजी से कौंधा कि बिछी हुई बिसात मे मेजर हया इनायत मीरवायज अगर उनकी रानी हुई तो उन्होंने अपने कुछ प्यादे शहीद करके अपनी रानी को तिगड़ी के कितने करीब पहुँचा दिया था। अपने आपको मन ही मन समझाते हुए मैने सोचा कि अगर मेजर हया की ऐसी कोई मंशा होती तो अस्पताल मे उस रात को एक ही वार मे तिगड़ी के दो मुख्य सदस्यों का अन्त बड़ी आसानी से हो जाता। सभी शतरंज की बिसात पर अपनी-अपनी चाल चल रहे थे लेकिन उस समय मुझे लगा कि तिगड़ी ने सबसे गहरी चाल चली थी। उनकी एक चाल ने पूरे पाकिस्तानी तंत्र को पंगु बना दिया था। आईएसआई और संयुक्त इस्लामिक जिहाद काउन्सिल हमारी अर्थव्यवस्था के सीने मे खंजर घोपने की चाल चल रहे थे। फारुख और मकबूल बट अपने निजि फायदे के लिये अपनी चाल चल रहे थे। नीलोफर अपनी चाल चल रही थी तो मै अपनी चाल चल रहा था। हम सभी प्यादे सीमा के दोनो तरफ मेजर हया इनायत मीरवायज की चाल के शिकार हो गये थे। इस एक चाल मे उन्होंने फारुख और मकबूल बट को खोया तो मैने आफशाँ खो दिया था। मैने अपने आप से पूछा… यह चाल किसके हाथ लगी? तो मुझे जवाब एक ही मिला… यह बिसात तिगड़ी के हाथ लगी क्योंकि उनकी चाल की गहरायी ज्यादा थी। मै मन ही मन बड़बड़ाया… और अगर मेजर हया को तबस्सुम बना कर भेजना उनकी चाल थी तो फिर यह बाजी किसके हाथ लगी? इस प्रश्न का जवाब सोच कर मै चलते-चलते ठिठक कर रुक गया था। एकाएक मोहब्बत और विश्वास का भूत एक पल मे दिमाग से  काफुर हो गया था।

मै बिस्तर छोड़ कर खड़ा हो गया और अपने बैग से सेटफोन निकाल कर घर से बाहर आ गया। कुछ सोच कर मैने अपनी पिक-अप लेकर एक दिशा मे निकल गया। जब मन विचलित होता है तो कुछ भी नहीं सूझता है। यही हाल मेरा भी था। बिना किसी उद्देश्य के मै चला जा रहा था। मीरमशाह के आसपास पर्वत श्रृंखलाएं, लहरदार पर्वतीय क्षेत्र और पहाड़ियों से घिरे मैदान होने के कारण वातावरण मे शांति छायी हुई थी। तोची नदी के तट पर अपनी पिक-अप रोक कर मैने अपना सेटफोन आन किया और उसे नेटवर्क से जुड़ने का इंतजार करने बैठ गया। जैसे ही फोन मे कंपन महसूस हुई मैने जल्दी से उसका मेसेज बाक्स खोल कर देखा तो उसने अंजली के तीन संदेश थे।

…आपके जवाब का हर पल इंतजार रहता है। हर बीतते पल के साथ अदा मेरी पहुँच से दूर होती जा रही है। समझ नहीं आ रहा कि क्या करुँ?  

…मैने सुना था कि जब सब दरवाजे बन्द हो जाते है तब खुदा एक दरवाजा खोल देता है। अब मैने खुदा पर भरोसा करना छोड़ दिया है।

…मेनका और केन ठीक है। मेनका आपको बहुत याद करती है। उन दोनो से कहीं ज्यादा मै आपको मिस करती हूँ।

दो बार तीनो संदेश पढ़ने के बाद मै और भी ज्यादा उलझ गया था। आज तक मिले हुए उसके हर संदेश मे एक बार भी मुझे नहीं लगा कि वह मेरे साथ कोई छल-कपट कर रही थी। कुछ देर सोचने के बाद मैने अपने उलझे हुए ख्यालों को सुलझाते हुए अपना संदेश तैयार किया और एक बार दोबारा पढ़ कर उसे भेज कर नदी के किनारे बैठ कर अपनी रणनीति बनाने मे जुट गया था।

खुदा पर भरोसा रखो। सब ठीक हो जाएगा। एक दिन हम जरुर मिलेंगें बस उस दिन के इंतजार मे जी रहा हूँ। हाल ही मे खुदाई शमशीर नाम की पाकिस्तानी तंजीम के कुछ जिहादियों को सीमा पार करते हुए हमने जम्मू क्षेत्र मे पकड़ा है। पूछताछ मे उन्होंने मेजर हया इनायत मीरवायज का नाम लिया था। क्या तुम इस तंजीम को जानती हो?

तोची नदी का वेग के कारण पानी का बड़ा भयावह शोर प्रतीत हो रहा था। जब काफी देर तक बहते पानी को देखते हुए थक गया तो मै उठ कर पिक-अप की पिछली सीट पर जाकर लेट गया। अंजली के साथ मेसेज बाक्स एक मात्र संपर्क था। उसी के बारे मे सोचते हुए पता नहीं कब मेरी आँख लग गयी परन्तु जब आँख खुली तब तक सूर्य देवता ने आसमान रौशन कर दिया था। मैने अपनी घड़ी पर नजर डाली तो पता चला कि ग्यारह बज रहे थे। मैने जल्दी से अपना स्मार्ट फोन निकाल कर अल्ताफ मेहसूद का नम्बर लगाया… हैलो। अल्ताफ भाई सलाम वालेकुम। …वालेकुम भाईजान। कहाँ तक पहुँच गये? …मै मीरमशाह पहुँच गया हूँ। बस आप बता दिजिये कि हमजोनी मे कब और कहाँ मिलना है? …भाईजान, हम आज रात तक हमजोनी पहुँच जाएँगें।  कल दोपहर बारह बजे हमजोनी द्वार से कुछ मील उत्तर मे वजीरी खेमा है। वहीं पर आपकी कल नसरुल्लाह मेहसूद और अबदुल्लाह वजीरी से मुलाकात हो जाएगी। …तो कल वहीं मिलते है। अगर पहुँचने मे कोई मुश्किल हुई तो दोबारा आपको तकलीफ दूँगा। खुदा हाफिज। इतनी बात करके मैने फोन काट दिया और मीरमशाह की ओर वापिस चल दिया।

उस हवेली मे प्रवेश करते ही मेरा सामना नीलोफर से हो गया था। वह कुछ बोलती उससे पहले मैने कहा… कल हमारी मेहसूद और वजीरी से मुलाकात तय हुई है। मेरी बात को अनसुना करके उसने पूछा… तुम कहाँ चले गये थे? …कुछ सोचने के लिये एकान्त चाहिये था। इसलिये बाहर चला गया था। बाकी सब कहाँ है? …सब यहीं पर है। शायद हमारी आवाज सुन कर अलग-अलग कमरों से मेरे साथी बाहर निकल आये थे। …कल मिलने की जगह और समय तय हो गयी है। कुछ ही देर के बाद चाय पीते हुए आईपेड पर हमजोनी की निशानदेही करके हम लोग आगे की योजना पर चर्चा कर रहे थे। मेरे साथियों का विचार था कि हमे एक साथ वहाँ पहुँच कर अपनी ताकत दिखानी चाहिये परन्तु मेरा विचार था कि मै और नीलोफर उस खेमे मे जाकर पहले उनसे संपर्क करेंगें। मेरे सभी साथी तब तक उनके कबीले की ताकत का आंकलन व आसपास की टोह लेकर उप्युक्त स्थानों पर तैनात होकर हमारी सुरक्षा की व्यवस्था करें। सुरक्षा दृष्टि से दूसरा विचार ज्यादा उप्युक्त लग रहा था। एक तो सबके लिये वह जगह नयी थी। वहाँ से बच कर निकलने के रास्तों का हम सबको ज्ञान होना जरुरी था। दूसरा कहीं अगर हम दोनो किसी अन्तरघात के शिकार हो गये तो फिर हमारी रक्षा हमारे साथियों पर निर्भर होगी। रात तक इस पर कोई निर्णय नहीं ले सके थे।

सुबह ठीक दस बजे हम दोनो अपनी-अपनी गाड़ियों से हमजोनी की दिशा मे निकल गये थे। हमसे कुछ दूरी बना कर मेरे साथी जोन्गा मे हमारे पीछे चल रहे थे। …तुम्हें जफर और सादिक से खतरा लग रहा है? …नीलोफर, सभी नये लोग है। जफर और सादिक से खतरा हमारे बजाय उनको ज्यादा होना चाहिये। बस इतना बोल कर मेरी नजरें बाहर के हालात का जायजा लेने मे जुट गयी थी। कश्मीर के बजाय लद्दाख जैसा नजारा दिख रहा था। मीरमशाह से निकलते हुए पुल पार किया और फिर एक कच्ची सड़क पकड़ कर हमजोनी की दिशा मे चल पड़े थे। चट्टानी पर्वतमाला और काफी दूरी तक फैला हुआ हरा-भरा मैदानी इलाका सड़क के एक साइड था और दूसरी ओर तोची नदी सड़क के साथ बह रही थी। मुश्किल से दस किलोमीटर चले थे कि मैदानी इलाके मे बहुत सारी कच्ची बस्तियाँ दूर तक फैली हुई थी। …समीर, यह सभी बस्तियाँ अफगान शरणार्थियों की है। ज्यादातर यहाँ रहने वाले पश्तून और हजारा समूह के लोग है। अपनी जीप चलाते हुए मै यहाँ की कमेन्टरी नीलोफर के मुँह से सुन रहा था। …मीरमशाह और उसके आसपास हक्कानी समूह का बोलबाला है और तोची नदी पार करते ही तालिबान और तेहरीक की पकड़ ज्यादा मजबूत है।

बारह बजे से कुछ पहले हम हमजोनी द्वार पर पहुँच गये थे। नीलोफर स्थानीय शलवार-कुर्ते मे थी बस हिजाब से उसने अपना चेहरा और सिर छिपा लिया था। मेरे पूछने पर उसने सिर्फ इतना बोल कर मुझे चुप कर दिया था कि वह लखवी है। मै सिर पर पगड़ी बाँध कर पश्तूनो के लिबास मे था। मेरे कन्धे पर एक-203 और कमर मे उसकी मैगजीन बन्धी हुई थी। हमजोनी का दृश्य कुछ वैसा ही दिख रहा था जैसा हम पीछे छोड़ कर आये थे। अनेक कच्ची बस्तियाँ मैदानी इलाके मे बसी हुई थी। उन बस्तियों की ओर जाने वाला रास्ता दिखते ही मैने पिक-अप को मोड़ कर उन बस्तियों की दिशा मे चल दिया। कुछ ही देर मे हम उन कच्ची बस्तियों के पास पहुँच कर पिक-अप वहीं छोड़ कर बस्ती की ओर पैदल चल दिये थे। बस्ती के बाहर कुछ बच्चे झुंड बना कर खेल रहे थे। कुछ जवान लोगों का समूह मैदान मे बैठ कर किसी बात पर चर्चा कर रहा था। बस्ती से थोड़ी दूरी पर कुछ छोटी बच्चियाँ और बड़ी महिलायें एक छोटे से जलाशाय के तट पर बैठ कर कपड़े धो रही थी और कुछ बर्तन साफ कर रही थी। उन युवकों के पास पहुँच कर मैने पूछा …सलाम भाईजान, यह वजीरियों का खेमा कौनसा है? एक युवक ने इशारा करते हुए कहा…  वह तीन-चार टेन्ट वजीरियों का है। शुक्रिया बोल कर हम दोनो उन टेन्टों की ओर चल दिये थे।

टेन्ट के बाहर ही मर्दों की महफिल लगी हुई थी। हम दोनो को अपनी ओर आता देख कर एक वृद्ध  उठ कर हमारे पास आकर सलाम करके कुछ बोलता कि मैने पूछा… जनाब अबदुल्लाह वजीरी का खेमा क्या यही है?  …आईये मै आपको लेकर चलता हूँ। एक नजर चारों ओर डाल कर हम दोनो उसके साथ चल दिये थे। चुंकि टेन्ट बस्ती के बाहर लगे हुए थे तो भीड़ भाड़ नहीं थी। कुछ बुजुर्ग लोग बैठे हुए चिलम फूँक रहे थे। सबकी नजर मेरे बजाय नीलोफर पर टिकी हुई थी। टेन्ट के बाहर कुछ लोग जमीन पर बैठ कर किसी चर्चा मे डूबे हुए थे। उनके नजदीक पहुँच कर मैने अदब से सलाम करके पूछा… बड़े मियाँ, अब्दुल्लाह वजीरी से मिलना है। उनमे से एक बुजुर्ग खड़ा होकर बोला… खुशामदीद मियाँ। बोलिये क्या कहना है? …बड़े मियाँ अल्ताफ मेहसूद नहीं दिख रहा है। आज वह हमारी मुलाकात आपसे और नसरुल्लाह मेहसूद से कराने वाला था। तभी एक टोयोटा पिक-अप टेन्ट के पास आकर रुकी तो मेरी नजर अल्ताफ पर पड़ी जो एक बुजुर्ग को सहारा देकर पिक-अप से उतार रहा था। हम दोनो को वहाँ खड़ा हुआ देख कर उसने हाथ हिला कर साथ चलते हुए बुजुर्ग से कुछ बोल कर मुझसे पूछा… हमे ज्यादा देर तो नहीं हुई? …नहीं। हम भी अभी यहाँ पहुँचे है।

दोनो बुजुर्ग बड़ी गर्मजोशी से गले मिले और फिर मुड़ कर बोले… आओ आराम से बैठ कर बात करते है। इतना बोल कर दोनो एक टेन्ट मे चले गये थे। मै और नीलोफर चुपचाप उनके पीछे अन्दर चले गये थे। हमारे पीछे अल्ताफ के साथ दो और लोग टेन्ट मे आ गये थे। जमीन पर गद्दे बिछे हुए थे। दोनो बुजुर्गों के बैठते ही बाकी लोग भी किनारों मे बैठ गये। एक वृद्ध ने नीलोफर की ओर देख कर बोला… बीबी, तुम्हारा यहाँ कोई काम नहीं है। तुम जनानाखाने मे जाकर आराम करो। नीलोफर तुरन्त बोली… चचाजान, मै लखवी हूँ और यह आपका जिरगा नहीं है। मै आपके लिये मदद लेकर आयी हूँ इसलिये मेरा यहाँ होना जरुरी है। अल्ताफ भाई ने आपको सादिक और जफर के बारे मे अब तक बता दिया होगा। आपसे कोई भी बात करने से पहले मै जानना चाहती हूँ कि आपने इस मसले पर अभी तक कोई विचार किया है? एकाएक महफिल मे चुप्पी छा गयी थी। सभी लोग हैरानी से नीलोफर को देख रहे थे। इससे पहले कोई कठिन परिस्थिति उभरती अबकी बार मैने कहा… जनाब, मेरी बीवी ने जो कुछ भी बोला है वह आपके हित मे बोला है। अबकी बार अब्दुल्लाह वजीरी बोला… सादिक और जफर पर नजर रखी जा रही है। तभी एक घबराये हुए आदमी ने टेन्ट मे प्रवेश करते हुए चिल्लाया… आका, फौज आयी है। यह सुन कर अफरा तफरी का माहौल हो गया और सभी लोग उठ कर टेन्ट से बाहर निकल गये थे।

फ्रंटियर फोर्स की एक बीस-पच्चीस जवानों की टुकड़ी ने बस्ती को घेर लिया था। कुछ सैनिक लोगों को घरों से बाहर निकाल कर मैदान की ओर खदेड़ रहे थे। हर ओर चीख पुकार मची हुई थी। हम दूर से सारी कार्यवाही को अपनी आँखों से देख रहे थे। सैनिकों की टुकड़ी अपनी गन की नाल से आगे चलते हुए आदमी या औरत को कभी धकेलते और कभी गुस्से मे आकर गन की बट से उनकी पीठ पर प्रहार कर रहे थे। फौजी कार्यवाही का भयावह मंजर मेरी आँखों के सामने आ गया था। कुछ ही देर मे आदमी, औरत, बच्चे व बुजुर्ग मैदान मे इकठ्ठे हो गये थे। फौज के खौफ मे किसी के मुँह से आवाज नहीं निकल रही थी। अभी मै हालात समझने की कोशिश कर रहा था कि तभी अब्दुल्लाह धीरे से बोला… नसरुल्लाह भाई माफ कर दिजिये। इतना बोल कर वह उस भीड़ की ओर चल दिया। …चलिये हम भी चलते है। इतना बोल कर मै और नीलोफर भी अब्दुल्लाह के साथ चल दिये थे। नसरुल्लाह और अल्ताफ को वही छोड़ कर बाकी सब हमारे पीछे आ गये थे। मेरे साथ चलते हुए एक आदमी बोला… आपको अपनी बीवी को यहाँ नहीं लाना चाहिये था। मैने कुछ नहीं कहा बस चुपचाप उनके साथ चलते हुए मैदान मे पहुँच कर सबके साथ खड़ा हो गया था।

लेफ्टीनेन्ट रैंक का अफसर उस टुकड़ी का मुखिया था। उसके सीने पर उसका नाम की प्लेट लगी हुई थी। लेफ्टिनेन्ट फैयाज एक बार जोर से चिल्लाया… एक बार अन्दर बस्ती का निरीक्षण कर लो। अगर अब कोई दिखे तो उसे तुरन्त गोली मार देना। बस इतना बोल कर वह भीड़ की दिशा मे मुड़ कर टहलते हुए बोला… क्या कोई बाहर से आया है? एक पल के लिये मै ठिठका लेकिन नीलोफर मेरा हाथ पकड़ कर एक कदम बढ़ाते हुए बोली… हम बाहर से आये है। सबकी नजरें हम पर टिक गयी थी। हम दोनो चलते हुए उसके सामने खड़े हो गये थे। एक नजर हम पर डाल कर लेफ्टीनेन्ट बोला… तुम्हारे साथ कोई और भी है? …नहीं। …तुम कहाँ से आ रहे हो? …इस्लामाबाद। मैने नोट किया कि वह बात भले मुझसे कर रहा था परन्तु उसकी नजरें नीलोफर पर टिकी हुई थी। …कागज दिखाओ। मैने अपना गिल्गिट का रेजिडेन्सी कार्ड उसके आगे कर दिया। नीलोफर ने बालाकोट का रेजीडेन्सी कार्ड उसके आगे बढ़ा दिया। हम दोनो के कार्ड देखने के बाद वह दोनो कार्ड लौटाते हुए नीलोफर के करीब जाकर बड़ी बेशर्मी से बोला… इस वीराने मे तू क्या कर रही थी? …अपने खाविन्द के साथ यहाँ आयी हूँ। उसने मेरी ओर इशारा करके कहा… यह तेरा खाविन्द है? नीलोफर ने कोई जवाब नहीं दिया बस सिर हिलाकर हामी भर दी थी।

वह अब्दुल्लाह की ओर बढ़ते हुए बोला… हमे खबर मिली है कि इस खेमे ने कुछ तालिबानियों को पनाह दी थी। अब्दुल्लाह अभी भी समय है कि चुपचाप उन्हें हमारे हवाले कर दे अन्यथा अगर हम अपनी पर आ गये तो फिर पछताओगे। अब्दुल्लाह ने जल्दी से कहा… जनाब यह वजीरियों का खेमा है। यहाँ पर कोई तालिबानी नहीं है। हमारी ओर अपनी पिस्तौल से इशारा करके वह बोला… फिर यह दोनो कौन है? मैने जल्दी से कहा… रास्ता भटक गये थे तो बस्ती देख कर पूछने चले आये थे। वह धीरे से चलते हुए नीलोफर से बोला… मेरी जान रास्ता भटक गयी तो मेरे साथ चल। उसका हाथ अपनी ओर बढ़ते हुए देख कर नीलोफर एक कदम पीछे हटी तो बड़ी फुर्ती से आगे बढ़ कर फैयाज ने उसकी कमर मे हाथ डाल कर अपनी बाँहों मे जकड़ते हुए घुर्राया… चुपचाप खड़ी रह छिनाल। उसकी जकड़ मे मचलते हुए वह जोर से चीखी… कमीने तू बहुत बड़ी गलती कर रहा है। अभी भी समय है छोड़ दे मुझे। लेफ्टीनेन्ट फैयाज ने झपट कर उसका एक स्तन अपनी मुठ्ठी मे जकड़ कर कहा… कुतिया आज तेरा पाला असली मर्द से पड़ा है। इस मैदान मे तुझे सबके सामने नंगा करके आज तेरे साथ ज़िना करुँगा। अभी वह पूरा भी बोल पाया था कि नीलोफर जोर से चीखी और उसकी पकड़ से छूटने की कोशिश करने लगी। मेरा ध्यान उनकी ओर लगा हुआ था।

भीड़ मे भी अपने अफसर की हैवानियत को देख कर उसके सैनिक भी उससे ज्यादा उतावले और बेशर्म हो गये थे। उसके सैनिक भी खड़ी हुई औरतों और लड़कियों पर टूट पड़े थे। लोगों को निशाने पर लेने वाले सैनिक उस दृश्य को देख कर हँसने लगे और भद्दे-भद्दे कमेन्ट करने लगे। पश्तून स्त्रियाँ अपने आपको उन सैनिकों की पकड़ से छूटने की कोशिश कर रही थी। बड़ी मुश्किल से मैने अपने उभरते हुए रोष पर अंकुश लगाया हुआ था। कुछ सैनिक बच्चियों और स्त्रियों के झुन्ड मे अपने अफसर की भांति बहशीपन पर उतर आये थे। एक अजीब सा माहौल बन गया था। एक ओर महिलाओं की चीखें और दूसरी ओर सैनिकों की बेशर्म हँसी के सामने सभी पुरुष मूक दर्शक बने खड़े थे। मेरी स्थिति भी उनसे भिन्न नहीं थी। तभी तीन फायर एक साथ हुए और भीड़ के मध्य मे खड़े हुए तीन सैनिक कटे हुए वृक्ष समान जमीन पर गिर कर ढेर हो गये थे। मेरी स्नाईपर युनिट का एक्शन आरंभ हो गया था। एक आवाज गूंजी… जो जहाँ है वहीं खड़ा रहे। अगर जरा सा हिले भी तो मारे जाओगे। एकाएक पूरे मैदान मे शांति छा गयी थी। सबकी नजर आवाज की दिशा मे घूम गयी थी।

तभी दो सैनिक जिनकी पैन्ट घुटने पर अटकी हुई थी वह लड़खड़ाते हुए बस्ती से बाहर निकले। उनकी नग्नता को बेशक उनकी कमीज ने ढक दिया था परन्तु उनके बहशीपन की दास्ताँ सबके सामने उजागर हो गयी थी। उन दो सैनिकों को धकेलते हुए उनके पीछे चार जिहादी एके-203 ताने मैदान के बीचोंबीच आकर खड़े हो गये थे। उन जिहादियों ने अपने चेहरे को चेक के सूती स्कार्फ से छिपा रखा था परन्तु मै चारों साथियों को पहचान गया था। जमीर, रेड्डी, थापा, महतो मेरे सामने थे। मै समझ गया कि अब्दुल रशीद और पूरन सिंह किसी विशेष स्थान पर बैठ कर मैदान पर नजर रख रहे थे। मेरी योजना को कार्यान्वित करने का समय आ गया था। जमीर की आवाज गूँजी… सभी सैनिक सामने आ जायें। कोई सैनिक हिला नहीं परन्तु भीड़ अपने आप ही उनसे अलग होकर खड़ी हो गयी थी। एक सैनिक ने जिहादियों की ओर हथियार तानने की कोशिश की परन्तु तभी एक और फायर हुआ और उस सैनिक का सिर खील-खील हो कर बिखर गया था। इतना भयानक मंजर देखने के पश्चात फिर किसी ने प्रतिकार की हिम्मत नही दिखायी। हालात बदलते ही शिकारी अब शिकार बन गये थे।

कुछ ही देर मे सारे सैनिक मैदान बीचोंबीच आकर खड़े हो गये। पहली बार लेफ्टीनेन्ट फैयाज के चेहरे पर भय की लकीरें खिंची हुई दिख रही थी। वह लड़खड़ाती हुई आवाज मे बोला… फौज से टकराना तुमको बहुत भारी पड़ेगा। हमे जाने दो। महतो ने आगे बढ़ कर एक तमाचा फैयाज के चेहरे पर जड़ कर जोर से चिल्लाया… हरामजादे इस वर्दी को क्यों बेइज्जत कर रहा था। तब तक थापा सैनिकों के हथियारों को इकठ्ठा करने मे जुट गया था। लेफ्टीनेन्ट फैयाज ने हिम्मत करके पूछा… तुम लोग कौन हो? जमीर ने टहलते हुए कहा… हम खुदाई शमशीर की फौज है। पाकिस्तान पाइन्दाबाद। हमारा फौज से कोई बैर नहीं है लेकिन उसकी वर्दी को बेइज्जत करने वाले को हम हर्गिज माफ नहीं करते। वह चलते हुए नीलोफर के पास आकर बोला… बीबी, इस हरामी को मर्द बनने का बड़ा गुरुर है। इसको आज हमेशा के लिये नामर्द बना देता हूँ। इतना बोलते हुए वह लेफ्टीनेन्ट के सामने पहुँच गया था।  अचानक जमीर ने उसको धक्का देकर जमीन पर गिरा कर एक नजर सब पर डाल कर बोला… साले तुम जैसे लोगों ने वर्दी को शर्मसार किया है। उसने जमीन पर पड़े हुए लेफ्टीनेन्ट के पाँवों के जोड़ को निशाना बना कर चाईनीज मेक की पिस्तौल से दो सधे हुए फायर किये। अगले ही क्षण फैयाज दर्द से दोहरा होकर उंची आवाज मे चिंघाड़ा और अपने गुप्तांग को पकड़ कर जमीन पर लोट गया। उस वक्त सबका ध्यान फैयाज की ओर लगा हुआ था परन्तु मैने नोट किया था कि तभी दो फायर और भी हुए थे। उन दो अधनंगे सैनिकों के शव की ओर सबका ध्यान बाद मे गया था।  

अबकी बार जमीर दहाड़ा… हम खुदाई शमशीर की फौज है। हमारा फौज से कोई बैर नहीं है। हमारा एक ही नारा इमान तक्वा जिहाद फ़ि-सबिलिल्लाह । हमारा दुश्मन चीन और उसके पाकिस्तानी दलाल है जिनके कारण पाकिस्तान की सरजमीं नापाक हो गयी है। हमने अपनी तेहरीक को मजबूत करने के लिये हथियार उठाये है। इस मंसूबे को पूरा करने के लिये हमारे साथ तालिबान है। पाकिस्तान फौज ने अगर फिर कभी किसी ख्वातीन या बच्चियों के साथ ऐसा करके वर्दी को बेइज्जत करने की कोशिश की तो उसका परिणाम उन्हें भुगतना पड़ेगा। हम अपनी आवाम के मजलूमों के साथ हरदम खड़े हुए है। इतना बोल कर उसने भीड़ की ओर देख कर कहा… आज अपनी ख्वातीनों की बेइज्जती का बदला लेने का मौका है। उसका इतना बोलना था कि मूक दर्शक उन सैनिकों पर टूट पड़े। कोई उन सैनिकों को पत्थर से मार रहा था और कोई लाठी से कूट रहा था। कुछ देर पहले जहाँ उनकी ख्वातीन की चीखें गूँज रही थी अब वहीं पर वर्दीधारियों की चीखें गूँज रही थी। बस हथियारों के हाथ बदल गये थे।

सारे सैनिकों के लहूलुहान होने के पश्चात जमीर ने सामने पड़े सैनिक की पीठ पर लात जमा कर जोर से घुर्राया… चलो फौरन अपने कचरे को उठाओ और यहाँ से निकल जाओ। अगले ही पल सारे सैनिक जमीन पर पड़ी हुई अपने साथियों की लाशों को उठा कर अपने ट्रक की ओर चल दिये थे। फ्रंटियर फोर्स का ट्रक जैसे ही सड़क की ओर मुड़ा कि तभी उसमे बेहद भयानक विस्फोट हुआ और सबकी आँखों के सामने टुकड़ो मे बिखर गया। जमीर धीरे से बोला… नो सर्वाईवर्स सर। भाईजान, आपकी और नीलोफर बीबी की सुरक्षा मे आज हमसे जरा सी चूक हो गयी। हमे माफ कर दिजिये। अब्दुल्लाह वजीरी और उसके साथी हैरानी से हमारी ओर देख रहे थे। मैदान मे खड़ी हुई भीड़ की आँखें भी हम पर टिकी हुई थी। मैने धीरे से उसका कन्धा थपथपा कर सबको सम्बोधित करके बोला… आप सभी ने हथियारों की ताकत देख ली है। अपने परिवारों और ख्वातीनो की सुरक्षा के लिये अगर हथियार उठाना पड़े तो उसमे कोई गुनाह नहीं है। अब्दुल्लाह ने भीड़ की ओर हाथ हिला कर कहा… अब तुम सब वापिस खेमे मे चले जाओ। वह अब कभी वापिस नहीं आयेंगें। उसकी बात सुन कर धीरे-धीरे भीड़ छँटने लगी।

भीड़ छँटने के पश्चात अब्दुल्लाह ने कहा… समीर, अब टेन्ट मे आराम से बैठ कर बात करते है। एक बार फिर से हम सभी उस टेन्ट की दिशा मे चल दिये थे। …यह लड़ाकू कौन है? …जनाब, यह खुदाई शमशीर की फौज के कुछ सिपाही है जो हमारी सुरक्षा के लिये हमारे साथ चल रहे है। टेन्ट मे प्रवेश करते ही मेरी नजर नसरुल्लाह मेहसूद और उसके बेटे अल्ताफ पर पड़ी जो बड़े आराम से टेन्ट मे बैठ कर कहवा पी रहे थे। हमे देखते ही अल्ताफ बोला… समीर भाई, यह लोग कौन है? मेरे बजाय अबकी बार अब्दुल्लाह अपनी गद्दी पर बैठ कर बोला… नसरुल्लाह भाईजान आप कहाँ चले गये थे? …हम तो बस्ती मे छिपने की मंशा से गये थे। वहाँ पर हमारी मुलाकात इनसे हो गयी थी। हमे उन सैनिकों से बचा कर इन्होंने यहाँ छोड़ दिया था। मेरे दो साथी टेन्ट के मुहाने पर खड़े हो गये थे और बाकी चार साथी हम दोनो को घेर कर खड़े हो गये थे। नीलोफर ने इतनी देर मे पहली बार बोली… सईद भाईजान आप लोग भी बैठ जाईये। हमे यहाँ कोई खतरा नहीं है। हम दोनो के बैठने के पश्चात मेरे चारों साथी हमारे पीछे बैठ गये थे। अबकी बार नीलोफर बोली… आप लोग यह जानना चाहते है कि यह लोग कौन है तो बता देती हूँ कि यह हमारी सुरक्षा के लिये हमारे साथ चल रहे है। इससे आगे की बात तभी हो सकेगी जब आप जफर और सादिक का स्थायी इलाज कर लेंगें। आज की घटना एक पूर्वनियोजित आईएसआई की साजिश थी। वह सैनिक टुकड़ी हमारे लिये नहीं अपितु आपके लिये आयी थी। एक ही वार मे वह मेहसूद और वजीरी के दोनो मुखियाओं को हलाक करके उनके कबीले की बागडोर जफर और सादिक के हाथ मे देना चाहते थे। नसरुल्लाह मेहसूद और अबदुल्लाह वजीरी तो कुछ नहीं बोले परन्तु उनके साथ बैठे हुए लोगों बोलना आरंभ कर दिया था।

एक वृद्ध ने हाथ उठा कर सबको चुप करा कर बोला… आका, एक औरत की बात पर आप कैसे यकीन कर सकते है। सादिक की गद्दारी का इस छिनाल के पास क्या सुबूत है। आका कोई भी निर्णय लेने से पहले आपको सादिक से बात करनी चाहिये। अल्ताफ तुरन्त गुस्से मे चीख कर बोला… यह सादिक के टुकड़ों पर पलने वाला कुत्ता है। बस इसी के साथ मेहसूद और वजीरियों के बीच वाकयुद्ध आरंभ हो गया था। एक दूसरे पर इल्जामों की बौछार आरंभ हो गयी थी। हम चुपचाप उनकी सारी कार्यवाही होते हुए देख रहे थे। नीलोफर ने मेरा हाथ धीरे से पकड़ कर दबाते हुए कहा… हर कबीले की जिरगा मे तुम्हें यही दृश्य देखने को मिलेगा। तभी अब्दुल्लाह वजीरी गुस्से से गर्जा… चुप हो जाओ। एकाएक टेन्ट मे सबके मुँह पर ताला पड़ गया था। …नसरुल्लाह भाई आपका इस बारे मे क्या कहना है? …अल्ताफ ने जिस दिन इसकी जानकारी मुझे दी थी उसी दिन से जफर गायब हो गया है। यहाँ आने से पहले मुझे पता चला है कि वह सादिक के साथ कहीं छिपा हुआ है। इसी के बारे मे बात करने के लिये आपसे मिलने के लिये हम यहाँ आये थे। इसीलिये मैने इन दोनो को भी यहीं पर मिलने के लिये बुलाया था। जफर मेरा भतीजा है लेकिन अगर यह साबित हो गया कि वह गद्दी हथियाने के लिये फौज से मिल गया है तो फिर उसका हलाक होना तय है। इनके कहने पर मै अपने खून पर शक नहीं कर सकता। अब्दुल्लाह ने बात का समर्थन करते हुए कहा… आपने जैसा सोचा है वही मेरी भी राय है। सादिक मेरा भी खून है। खून का रिश्ता सुबूत मांगता है। नीलोफर बीबी की बात को सुबूत नहीं मान सकते। दोनो बुजुर्ग ने अपने-अपने कबीले का निर्णय सुना दिया था।  

अचानक मेरे पीछे से जमीर की आवाज गूंजी… तुम दोनो बुढ्ढो के मरने का समय आ गया है। अल्ताफ अपने बाप को यहीं पर हलाक करके अपने कबीले के लोगों को बचा लोगे तो ज्यादा बेहतर होगा। समीर भाईजान उठिये यहाँ इनकी बात सुन कर मुझे इनके लोगों पर दया आ रही है। यह लोग अन्धे और बहरे हो गये है। जमीर खड़ा होकर बोला… बुढ्ढों कम से कम यह तो पता कर लेते कि इस वक्त तुम्हारे जफर और सादिक कहाँ छिपे बैठे हुए है। समीर भाईजान इन्हें बता दिजिये कि इस वक्त वह दोनो कहाँ है। अबकी बार मैने उठते हुए कहा… खुदा ने इनकी अगर मौत तय कर दी है तो इसमे मै क्या कर सकता हूँ। खैर जफर और सादिक इस वक्त पेशावर कोर कमांडर ब्रिगेडियर फईम हैदर के संरक्षण मे तुम्हारी हत्या की नये सिरे से योजना बना रहे होंगें। इस बार तो हमारे कारण तुम बच गये लेकिन अगली बार बच नहीं सकोगे। चलो नीलोफर। इतना बोल कर मैने नीलोफर का हाथ पकड़ा तो वह जल्दी से बोली… एक मिनट ठहरो। बड़े मियाँ अपने चचाजान के कारण यह खुलासा करने आयी थी। अभी भी वक्त है लेकिन एक बार हम चले गये तो फिर तुम मे से कोई नहीं बचेगा। इतना बोल कर वह उठ कर खड़ी हो गयी। दोनो कबीलों के बुजुर्गों के साथ बाकी लोग हमारा मुँह ताक रहे थे। अल्ताफ एकाएक उठा और जब तक कोई समझ पाता तब तक बिजली की तेजी से नसरुल्लाह के करीब पहुँच कर अपनी छोटी कटार अपने बाप के गले पर टिका कर बोला… अब्बा, अपने लोगों को फौज के जुल्मों से बचाने के लिये आपकी कुर्बानी जरुरी है। इतना बोल कर कुर्बानी की आयात पढ़ते हुए अगले ही पल उसने नसरुल्लाह का गला रेत दिया। सब फटी हुई आँखों से इस भयानक मंजर के गवाह बन गये थे। मेरे साथी तुरन्त अपनी एक-203 तान कर टेन्ट मे उपस्थित सभी लोगों को कवर करके फायर करने के लिये तैयार हो गये थे।

अल्ताफ ने अब्दुल्लाह की ओर रुख करके बोला… चचाजान अब आपका क्या कहना है? आज से मै मेहसूद कबीले का मुखिया हूँ। इस बैठक मे किसी को कोई आपत्ति है तो इस वक्त बोलिये अन्यथा हमेशा के लिये अपनी जुबान पर ताला लगा लिजिये। टेन्ट मे बैठे हुए सभी बुजुर्गों को लकवा मार गया था। कोई भी बोलने की स्थिति मे नहीं था। अल्ताफ जोर से गर्जा… वजीरियों, यह आखिरी बार पूछ रहा हूँ। इससे पहले कोई दूसरी अनहोनी होती तुरन्त अब्दुल्लाह बोला… अल्ताफ बेटा आज से हमारे लिये तुम मेहसूद कबीले के मुखिया हो। इसकी पुष्टि अगली जिरगा की बैठक मे हम सात लोग कर देंगें। अपने अब्बा नसरुल्लाह के शव पर एक नजर डाल कर अल्ताफ बोला… मै मेहसूद कबीले का मुखिया होने के बाद आपके सामने खुदा को हाजिर-नाजिर करके ऐलान करता हूँ कि जफरुल्लाह मेहसूद को कबीले से बेदख्ल कर रहा हूँ और अगले जुमे की नमाज के बाद उसका फातिहा भी पढ़ा जाएगा। अब सादिक पर आप वजीरियों का क्या निर्णय है? कोई कुछ बोलता उससे पहले एक व्यक्ति ने टेन्ट मे प्रवेश किया और अल्ताफ की ओर देख कर बोला… अल्ताफ, सादिक से पहले अब्बाजान के साथ इन बुजुर्गों के बारे मे निर्णय लेना जरुरी होगा। सभी उस व्यक्ति को गुस्से से घूरने लगे परन्तु किसी के मुख से आवाज नहीं निकली थी। …शहजाद, अगर यह सादिक के बारे मे कोई निर्णय नहीं लेते है तो तुम्हें आगे आना होगा। फौज ने जर्बे मोमिन और जर्बे अज्म मे हमारे हजारों भाईयों को हलाक कर दिया तब भी यह बुड्डे चुप रहे थे। जब वह हमारी बच्चियाँ और ख्वातीनों की इज्जत से खेल रहे थे तब भी यह चुप रहे थे। अब हम फौज के खौफ के साये मे नहीं जी सकते। अचानक अब्दुल्लाह वजीरी अपना हाथ उठा कर सभी को चुप रहने का इशारा करते हुए बोला… आज से सादिक वजीरी को इस कबीले से बेदख्ल किया जाता है। अगले जुमे की नमाज के बाद उसका फातिहा पढ़ा जाएगा। आज और अभी से सादिक का इस कबीले से कोई रिश्ता नहीं है। इस निर्देश के आप सभी बुजुर्ग गवाह है और मेरे बाद मेरा बेटा शहजाद वजीरी वजीरियों की गद्दी पर बैठेगा। एक साथ सभी बुजुर्ग हाथ उठा कर बोले… आमीन। इसी के साथ महफिल उठ गयी थी। हमने चैन की साँस ली क्योंकि पहली रुकावट को हमने आसानी से पार कर लिया था।

अगले तीन घंटे वजीरी कबीले के लोगो की मदद से नसरुल्लाह के सभी आखिरी कार्य पूरे किये गये थे। शाम हो चुकी थी। अंधेरा गहराता जा रहा था। ठंड बढ़ती जा रही थी। मै और नीलोफर खुले मैदान मे एक चट्टान पर बैठ कर अल्ताफ और शहजाद का इंतजार कर रहे थे। बस्ती मे एक बार फिर से रोजमर्रा की जिन्दगी आरंभ हो गयी थी। …समीर, अब आगे क्या करने की सोच रहे हो? …नीलोफर पहले तो अजमल से पता करो कि उसने अभी तक पैसा लौटाया है कि नहीं? …अजमल से पाँच करोड़ की वसूली हो गयी है। चचाजान ने वसूली का एक टका काट कर बाकी सारा पैसा बैंक मे जमा करा दिया है। …तो अब अजमल से बात करके तेहरीक के बैतुल्लाह से बात करने का समय आ गया है। …समीर, तेहरीक से बात करने से पहले अफगान तालिबान से बात करनी जरुरी है। उसका कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। …नीलोफर, तुम अब इस्लामाबाद मे अपना आफिस खोल कर काम शुरु कर दो। साहिबा से संपर्क करके बुर्रानी के पैसे अल्ताफ और शहजाद को जल्दी ही देने पड़ेंगें। …यह काम तुम करो। मै साहिबा के चक्कर मे नहीं पड़ने वाली। हम अभी इस बात पर चर्चा कर रहे थे कि अल्ताफ और शहजाद टेन्ट से निकल कर हमारी ओर आते हुए दिखे तो हम दोनो चुप हो गये थे। जब हम हिन्दु कुश की पहाड़ियों की वादी मे बैठ कर चर्चा कर रहे थे उसी समय नई दिल्ली मे हुई घोषणा ने सभी को हिला कर रख दिया था।  

 

नई दिल्ली     

…आज रात बारह बजे के बाद भारत सरकार हजार और पाँच सौ के नोट को बन्द कर रही है।

प्रधान मंत्री की इस घोषणा के पश्चात भारत मे भूचाल आ गया था। अगले दिन सुबह बैंकों के बाहर लम्बी लाईन लग गयी थी। नेता, अधिकारी, कारोबारी व अन्य अपने-अपने समूह मे बैठ कर घर और बैंकों की तिजोरियों मे छिपी हुई काली कमाई को बचाने की योजना बना रहे थे। गरीब समाज आज तक जिन लोगों के वैभव और विलासिता को देख कर अपनी किस्मत को कोसता था अब उनकी दयनीय हालत को देख कर बहुत खुश था। देश और समाज बँट सा गया था।

…उसको तुरन्त संपर्क करना चाहिये। …अभी नहीं। कुछ दिन के बाद वह संपर्क खुद करेगा। जनरल रंधावा और वीके इस बहस मे उलझे हुए थे जब अजीत सुब्रामन्यम ने कमरे मे प्रवेश किया था। …तुम दोनो बेकार की बहस मे उलझ रहे हो। यह उसके लिये मौका है अब वह उनके सारे नकली नोटों के आप्रेशन को धवस्त करने की स्थिति मे आ गया है। …अजीत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान मे इस नोटबंदी का क्या असर देखने को मिला है? …इतनी जल्दी नहीं। तीन महीने मे उनकी अर्थव्यवस्था पर इसका असर देखने को मिलेगा। वीके, भारतीय फिल्मों के जुड़े हुए सभी कारोबारियों पर जाँच एजेन्सियों को लगा दो। इस बार हमे हर हालत मे नकली करेंसी नोट की पाईपलाईन को ढूंढ कर नष्ट करना है। तीनो इसी मसलेपर चर्चा करने बैठ गये थे।

रविवार, 23 जून 2024

 

 

शह और मात-7

 

जीएचक्यू, रावलपिंडी 

…मेजर हया, खुदाई शमशीर की फाईल पर तुरन्त कार्यवाही शुरु करो। …यस सर। …पीरजादा का कुछ पता चला? …सर, किसी को नहीं पता कि वह कहाँ है। खबर मिली है कि वह सर्जिकल स्ट्राईक होने से पहले वहाँ से निकल गया था। पीरजादा पहले से ही अपने बेटे फारुख की मौत के कारण आपसे नाराज था लेकिन सर्जिकल स्ट्राईक के बाद आपकी ओर से कोई एक्शन न लेने के कारण वह शायद खुद ही कोई बड़ा कदम उठाने की सोच रहा है। …बुड्डा पागल हो गया है। उसको रोकने का समय आ गया है। वह बेवकूफ नहीं समझ रहा कि फाईनेन्शियल एक्शन टास्कफोर्स की निगाह निरंतर हम पर टिकी हुई है। एक जरा सी गलती हमे ब्लैक लिस्ट मे डलवा देगी। इन तंजीमो को भी अफगानी तंजीमों की तरह एक डोज देना पड़ेगा। लखवी और हाफिज कहाँ है? …जनाब, उन दोनो को कुछ समय के लिये बालाकोट की मस्जिद मे छिपने के लिये कह दिया है। तभी मेज पर रखे हुए फोन की घंटी घनघना उठी थी।  …जी जनाब। इतना बोल कर वह उठा और कमरे से बाहर निकल गया था।

दो कमरे छोड़ कर वह तीसरे कमरे मे प्रवेश करके बड़ी मुस्तैदी के साथ सैल्यूट करके वह सावधान की मुद्रा मे खड़ा हो गया था। …अभी रियाज ने खबर की है कि समीर नाम के पूंजी निवेशक की सारी आय का स्त्रोत कश्मीरी तंजीमे है। …जनाब, समीर का जिक्र हमारे सामने ब्रिगेडियर नूरानी के द्वारा भी आया है। वह एजाज कम्युनिकेशन्स मे भी काफी पैसा लगा रहा है। करांची से भी खबर मिली है कि उसने अजमल का कनसाईमेन्ट भी छुड़ाया है। …दुश्मन की नोटबंदी के कारण यहाँ पर पैसों की काफी किल्लत हो गयी है। व्हाईट के पैसे की तो वैसे ही यहाँ पर हमेशा किल्लत रहती है। जब तक उससे पैसे मिल रहे है तब तक उसे छेड़ना ठीक नहीं होगा। लेकिन यह जरुर पता करो कि भला कश्मीरी तंजीमो के पास इतना पैसा कहाँ से आ गया? …जनाब पुख्ता खबर है कि वह सिर्फ कश्मीरी तंजीमो का पैसा नहीं लगा रहा है अपितु उसके पास विदेश से भी भारी संख्या मे पैसा आ रहा है। इसमे कोई शक नहीं कि अफगानी ड्र्ग्स से कमाये हुए पैसा को उसकी मदद से सभी तंजीमे सफेद बनाने मे लगी हुई है। …जनरल फैज यह आदमी तो हमारे लिये काफी काम का साबित हो सकता है। जरा दबिश डाल कर देखो। …जनाब, उसको छेड़ने का मतलब है कि सारी तंजीमे हमारे खिलाफ हथियार उठा लेंगी। वैसे ही आजाद कश्मीर मे खुदाई शमशीर ने अपना आतंक मचा रखा है। अब अगर दूसरी तंजीमो ने हमारे खिलाफ मोर्चा खोल दिया तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी। हमे यह नहीं भूलना चाहिये कि उसकी बीवी नीलोफर अपने लखवी की सगी भतीजी है। …ठीक है तो फिर उसे छेड़ने के बजाय उस पर नजर बनाये रखना। …जी जनाब।

 

अगले दिन हम दोनो मरदान की ओर निकल गये थे। सुबह एजाज कम्युनिकेशन्स को एक करोड़ बीस लाख का चेक देने के पश्चात हमारे करार को कानूनी रुप दे दिया गया था। साहिबा ने भी एजाज कम्युनिकेशन्स के साथ तीन साल का करार साइन कर दिया था। एक करोड़ का चेक रिलीज होते ही एजाज कम्युनिकेशन्स ने कहा था कि वह एक करोड़ साठ लाख रुपये साहिबा के हवाले कर देंगें परन्तु नीलोफर की सलाह मान कर इसके लिये मैने मना कर दिया था। ब्रिगेडियर नूरानी के साथ बात करके हमारे बीच यह तय हुआ कि नीलोफर के निर्देशानुसार वह जिसको बताएगी उसको नूरानी पैसे दे दिया करेगा। सारी लिखित-पढ़त का काम समाप्त करने मे दोपहर हो गयी थी। एजाज कम्युनिकेशन्स के आफिस से निकल कर हम तीनो मेरियट होटल की दिशा मे निकल गये थे। साहिबा सारे रास्ते मुझसे कुछ कहना चाहती थी परन्तु नीलोफर के कारण वह बोलने से झिझक रही थी। हम दोनो को उसने जब होटल के बाहर उतारा तो होटल के द्वार की ओर बढ़ते हुए मैने सिर्फ इतना कहा… फोन से सदा संपर्क मे रहना। खुदा हाफिज। मै जानता था कि एक बार अगर उसको सुनने के लिये रुक गया होता तो फिर शायद विदा लेना हम दोनो के लिये मुश्किल हो जाता। यही सोच कर मै बिना मुड़े नीलोफर के साथ होटल के अन्दर चला गया था।

एक उदासी जहन पर छायी हुई थी। इस्लामाबाद शहर से बाहर निकलते ही ऐसा लगा कि मानो जन्नत से निकल कर दोजख मे जा रहा था। एक बार फिर से गड्डो भरी टूटी हुई सड़क पर पिक-अप दौड़ रही थी। तभी नीलोफर की नजर उर्दू मे लिखे हुए साइनबोर्ड पर पड़ी तो उसने कोहनी मार कर मुझे इशारा किया तो मेरे चेहरे पर एक मुस्कान स्वत: ही उभर आयी थी। उस सड़क का नाम श्रीनगर हाईवे था। शहरी सीमा समाप्त होने बावजूद चारों दिशाओं मे गहन शहरीकरण का बोलबाला दिखायी दे रहा था। बहुत से आवासीय व मार्किटिंग कांप्लेकस प्रोजेक्ट सड़क के दोनो ओर बन रहे थे। जैसे ही एम-1 पर पहुँचा तब पहली बार मैने चैन की साँस ली थी। ट्रकों के भारी काफिले के साथ चलते हुए रात मे ड्राईविंग करते हुए मुझे ज्यादा परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था। नीलोफर कुछ देर तक जागती रही लेकिन फिर मेरे कन्धे पर सिर रख कर सो गयी थी। भारी ट्रकों और गाड़ियों के काफिले मे चलने के कारण कब वाह निकला और कब बुर्हान इन्टरचेन्ज पार किया पता ही नहीं चला। सुबह की पहली किरण निकलते ही थोड़ी दूरी पर एक विशाल पुल दिख रहा था। रात भर चलते-चलते अब थकान महसूस होने लगी थी। नीलोफर ने पूछा… यह कौनसी नदी है? मै यही सोच रहा था कि तभी मेरी नजर सड़क पर लगे हुए इन्डस रिसोर्ट के साइनबोर्ड पर पड़ी तो न जाने क्या सोच कर मैने अपनी पिक-अप रिजार्ट की ओर मोड़ते हुए कहा… थक गया हूँ। कुछ देर आराम करने के बाद चलेंगें। जीप को पार्किंग मे खड़ी करके जैसे ही रिजार्ट मे प्रवेश किया तो सिन्धु नदी का विशाल पाट मेरी आँखों के सामने था। बेहद मनोरम दृश्य था परन्तु उसका लुत्फ लेने के बजाय एक कमरा लेकर हम दोनो आराम करने के लिये चले गये थे। थकान के कारण बिस्तर पर पड़ते ही हम दोनो अपने सपनो की दुनिया मे खो गये।

शाम को पाँच बजे मेरी आँख बादलों की गड़गड़ाहट के कारण खुल गयी तो मेरी नजर साथ लेटी हुई नीलोफर पर पड़ी जो अभी भी गहरी नींद मे सो रही थी। बाहर काली घटा के कारण अंधेरा हो गया था। जब तक उठ कर बैठा तब तक बारिश आरंभ हो गयी थी। मै आराम से तैयार हुआ और फिर नीलोफर को उठा कर रेस्त्राँ मे पेट पूजा के लिये चला गया था। आसमान मे बिजली कड़की तब पहली बार मुझे सिन्धु नदी के वेग का एहसास हुआ था। कुछ देर के बाद नीलोफर भी वहीं आ गयी थी। काफी देर तक बारिश के रुकने की आस मे हम दोनो रेस्त्राँ मे बैठे रहे लेकिन जब कोई उम्मीद नहीं दिखी तो वापिस अपने कमरे मे आ गये थे। देर रात तक बादलों की गर्जन और कड़कती हुई बिजली को देख कर हम टाइम पास करते रहे थे। नींद पूरी होने के कारण अब दोबारा सोने की इच्छा नहीं हो रही थी। नीलोफर लोकल चैनल लगा कर टीवी देखने मे व्यस्त हो गयी और मै अपना सेटफोन निकाल कर बैठ गया। अबकी बार सेटफोन को नेटवर्क से जुड़ने मे थोड़ा समय लगा था। नेटवर्क से जुड़ते ही कुछ मेसेज डिस्प्ले पर उभर आये थे।

…पता चला है कि जोरावर अदा को लेकर मुजफराबाद पहुँचा था लेकिन उसके बाद वह उनके साथ कहाँ गयी पता नहीं चल सका है। अब तक मैने उनके आठ ठिकाने चेक कर लिये है लेकिन किसी को उनका पता नहीं है।

…आपसे बात नहीं कर सकती। एक बार आपकी आवाज सुन ली तो फिर मेरे लिये आपसे दूर रहना मुश्किल हो जाएगा।

वह संदेश तीन-चार बार पढ़ कर मैने अपना संदेश लिखना आरंभ किया… खुदा पर मुझे यकीन है। चाहे आज भले ही तुम मुझसे दूर हो लेकिन एक दिन हम जरुर मिलेंगें। बस तब तक अपने आपको और बच्चों को सुरक्षित रखना। इसी आस पर आज तक जी रहा हूँ। बहुत कुछ तुमसे कहना चाहता हूँ परन्तु शब्द कम पड़ रहे है।

अपना संदेश भेज कर फोन वापिस बैग मे रख कर मै लेट गया परन्तु अंजली का मेसेज पढ़ने के बाद एक बैचेनी सी महसूस कर रहा था। मै उठ कर खड़ा हो गया और अपनी खिड़की के पास जाकर अंधेरे मे ताकने लगा। …क्या देख रहे हो? …इस दुनिया मे वह कहाँ छिप कर बैठी हुई है। अभी भी मूसलाधार बारिश हो रही थी। नीलोफर मेरी कमर मे हाथ डाल कर पीछे से जकड़ कर बोली… वह जहाँ भी होगी हम उसे ढूंढ लेंगें। कुछ देर तक अंधेरे मे ताकने के बाद जब मन थोड़ा शांत हो गया तो मुड़ कर उसे अपनी बाँहों मे जकड़ कर बोला… अगर तुम नहीं होती तो शायद जीना बहुत मुश्किल हो जाता। हम दोनो वापिस बेड पर आकर लेट गये थे। खिड़की के शीशे पर पड़ती हुई बूंदों की आवाज लगातार कान मे पड़ने के कारण मुझे लगा कि दिमागी तनाव कम होता चला गया था। कब झपकी आयी पता ही नहीं चला और जब आँख खुली तब तक नयी सुबह निकल आयी थी। आसमान मे काली घटा अभी छायी हुई थी लेकिन बारिश बन्द हो चुकी थी। एक बार फिर से अपनी दिनचर्या आरंभ करके एक घंटे के बाद हम दोनो आगे का सफर तय करने के लिये तैयार हो गये थे। रिजार्ट का बिल चुका कर हम मरदान की ओर चल दिये। सिन्धु नदी का पुल पार करते ही जीप ने गति पकड़ ली थी। सुबह के समय ट्रेफिक कम होने कारण ड्राईविंग मे कोई मुश्किल नहीं पेश आयी थी। पेट्रोल और प्राकृतिक जरुरत के लिये दो बार जीप रोकी गयी थी और शाम तक हम मरदान चौक पहुँच गये थे। शहर मे जाने के बजाय हमने स्वात की ओर मुड़ गये। एक बार फिर से वही टूटी हुई गड्डों भरी ग्रामीण सड़क पर हम वापिस आ गये थे। देर रात को चारसद्दा पहुँच कर हम एक छोटे से होटल मे रुक गये।

इस्लामाबाद से निकलने से पहले मेरी बात अल्ताफ मेहसूद से हुई थी। वह एक काम सिलसिले मे चारसद्दा आ रहा था। मैने उससे वहीं मिलने की बात तय कर ली थी। अगली सुबह जल्दी से तैयार होकर मैने अल्ताफ मेहसूद को फोन लगाया तो किसी महिला की आवाज कान मे पड़ी… कौन बोल रहा है? …मुझे अल्ताफ भाई से बात करनी है। मेरा नाम समीर है। …वो सो रहा है। जब उठेगा तो खुद बात कर लेगा। इसके बाद फोन कट गया था। मै कुछ देर बैठा रहा और फिर चारसद्दा शहर को देखने की मंशा से बाहर निकल गया। जिला मुख्यालय होने के बावजूद शहर की बेहद खस्ता हालत थी। मुफलिसी की झलक हर ओर दिख रही थी। नालियाँ और नाले गन्दगी और कचरे से अटी हुई थी। एक सरकारी स्कूल पर नजर पड़ी तो वह भी जरजर हालत मे दिख रहा था। खुले अहाते मे पेड़ के नीचे एक मौलवी साहब हाथ मे कीकर की छड़ी लिये कुछ बच्चों को उर्दू पढ़ा रहे थे। मुझे सारे रास्ते लड़कियाँ और महिलाएँ अभी तक नहीं दिखी थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे यह सिर्फ पुरुषों की बस्ती थी।। कुछ आगे निकला तो सरकारी जिला अस्पताल दिख गया। खपरैल की छत और पुरानी दीवारें उस सरकारी अस्पताल की जरजर हालत साफ दर्शा रहे थे। कुछ सोच कर मै अस्पताल के अहाते मे चला गया था। दीवार के किनारे मे अर्दली की पोशाक मे एक वृद्ध चिलम फूँकता हुआ दिखा तो मै उसकी ओर बढ़ गया।

…सलाम-वाले-कुम मियाँ। उसने नजरे उठा कर एक बार मेरी ओर देखा और फिर बड़ी बदतमीजी से बोला… डाक्टर नहीं है। आज अस्पताल बन्द है। …वह कब आएँगें? …तीन महीने से तो कोई डाक्टर नहीं आया है। मियाँ तकलीफ ज्यादा है तो पेशावर चले जाओ। …कोई और डाक्टर नहीं है क्या? वह उठते हुए बोला… तीन का स्टाफ है। डाक्टर नहीं है। एक कम्पाउन्डर है जो सिर्फ मरहम पट्टी करना जानता है। एक दाई है लेकिन वह बुलाने पर ही आती है। इतना बोल कर वह जाने लगा तो मैने जल्दी से रोकते हुए कहा… मियाँ, बड़ी खस्ता हाल मे अस्पताल रखा हुआ है। …अगर मरीज को ज्यादा तकलीफ है तो मियाँ यहाँ समय खराब करने के बजाय पेशावर के बड़े अस्पताल मे ले जाओ। इतना बोल कर वह अर्दली अस्पताल से बाहर निकल कर सड़क के दूसरी ओर चाय की दुकान पर जाकर बैठ गया था। मै अभी सोच ही रहा था कि मेरे फोन की घंटी बज उठी… हैलो। …सलाम समीर भाईजान। आप चारसद्दा पहुँच गये? …अल्ताफ भाई, मै यहाँ पहुँच गया हूँ। बताईये कब मिल सकते है? …आप बगदादी मस्जिद आ जाईये। …मै पहुँच रहा हूँ। फोन काट कर मै होटल की ओर वापिस चल दिया।

कुछ देर के बाद हम दोनो अपनी पिक-अप से बगदादी मस्जिद की ओर जा रहे थे। पहली बार मैने नीलोफर को सिर से पाँव तक ढका हुआ देख रहा था। …यह बुर्का कब खरीदा? …होटल वाले से मंगा लिया था। यहाँ पर स्त्रियों पर पाबन्दी काफी है। बगदादी मस्जिद के करीब पहुँच कर लोगों की भीड़ दिखनी शुरु हो गयी थी। जब मस्जिद के पास पहुँचा तब पता चला मस्जिद के मुख्य द्वार पर लोगों की भीड़ लगी हुई थी। एक सुरक्षित स्थान देख कर अपनी पिक-अप खड़ी करके बाकी का रास्ता पैदल पार करके जैसे ही मुख्य द्वार के करीब पहुँचा तो वहाँ के हालात देख कर हम दोनो ठिठक कर रुक गये थे। पाकिस्तानी रेन्जर्स के सिपाही लाठियों से कुछ लोगों को पीट रहे थे। उनके घरों की स्त्रियाँ बुर्का पहने जमीन पर बैठ कर विलाप कर रही थी। दूसरी दिशा मे एक आदमी और एक औरत लकड़ी के खूँटे से बंधे हुए खुदा से माफी की गुहार लगा रहे थे। उन दोनो के कपड़े शायद कोड़े कि मार खाकर पहले ही उधड़ कर लहुलुहान हो गये थे। दोषियों की पीठ खून से लथपथ थी। उन दोनो के जिस्म पर अनगिनत नीली धारियों भी साफ विदित हो रही थी। मैने अपने साथ खड़े हुए आदमी  से पूछा… भाईजान यह सब क्या चल रहा है? …जनाब, अवैध जिना की कोशिश करने की सजा दी जा रही है। मैने साथ खड़ी नीलोफर की ओर देखा तो वह धीरे से बोली… चलो यहाँ से। हम दोनो भीड़ से बचते-बचाते मस्जिद मे दाखिल हो गये थे।

मस्जिद के अन्दर भी कुछ लोग बाहर होती हुई कार्यवाही को देख रहे थे। …जनाब अल्ताफ भाई कहाँ है? एक आदमी ने बाहर कंगारु कोर्ट की दिशा मे इशारा करके कहा… अल्ताफ भाई वहाँ बैठे हुए है। हम दोनो चुपचाप एक किनारे मे खड़े हो गये। लोगों की बातचीत से पता चला कि रेन्जर्स किसी पश्तून लीडर की पूछताछ के लिये उसके परिवार वालों को पीट रहे थे। अल्ताफ मेहसूद और दो मौलाना शरिया के अनुसार सुनवाई करके अभियुक्तों को दंड दे रहे थे। दो परिवारों के बीच कुछ पैसों के लेन-देन का विवाद था। एक परिवारिक झगड़ा अगली सुनवाई का इंतजार कर रहा था। कुछ देर के बाद अपना फैसला सुना कर जब अल्ताफ फारिग हुआ तब वह मेरे पास आकर बोला… समीर भाईजान सलाम-वाले-कुम। आपको ज्यादा इंतजार करना पड़ गया। रेन्जर्स के आने से सारी कार्यवाही मे रुकावट आ गयी थी। चलिये अन्दर बैठ कर बात करते है। मेरे साथ बुर्कापोश नीलोफर को देख कर वह एक पल के लिये ठिठक कर रुक गया था। …भाईजान यह आपके साथ है? …अल्ताफ भाई यह मेरी बीवी नीलोफर है। …ओह…इन्हीं की ओर से आपका संदेश मिला था। जहेनसीब। भाईजान, इनकी मस्जिद मे आने की मनाही है। इनको यहीं बैठना पड़ेगा। अब तक मस्जिद के बाहर की भीड़ छँट गयी थी लेकिन कुछ लोग रेन्जर्स की कार्यवाही को देखने की मंशा से अभी भी खड़े हुए थे।

मैने पूछा… अल्ताफ भाई क्या हम ऐसी जगह नहीं बैठ सकते जहाँ यह भी हमारे साथ बैठ सकें? एक पल रुक कर वह जल्दी से बोला… भाईजान, आईये चलिये। हम दोनो उसके साथ चल दिये थे। न जाने कहाँ से पाँच हथियारों से लैस जिहादी आये और उसे घेरे मे लेकर आगे बढ़ गये। सभी के सिर पर पगड़ी और पहनावा अफगानी पश्तूनो का लग रहा था। कुछ ने चमड़े की जैकेट पहनी हुई थी और कुछ कम्बल अपने इर्द-गिर्द लपेटे हुए थे। मस्जिद से निकल कर कुछ दूरी तय करके वह एक गली से होता हुआ दूसरी गली मे चला गया। कुछ देर के बाद अल्ताफ एक मकान के सामने जाकर रुक गया और अपने साथियों को इशारा करके मकान मे प्रवेश करते हुए बोला… भाईजान आप बैठक मे तशरीफ रखिये। मै अभी आता हूँ। इतना बोल कर वह अन्दर चला गया और हम बैठक मे रुक गये थे। जमीन पर गद्दे बिछे हुए थे। हम एक किनारे मे बैठ गये। कुछ देर के बाद अल्ताफ हमारे सामने बैठ कर बोला… भाईजान, आप किस लिये मिलना चाहते थे? …अल्ताफ भाई आपसे तो मै एक खास बात पर चर्चा करने आया था परन्तु इस्लामाबाद मे हमारी मुलाकात एक बेहद अजीब स्थान पर जफर और सादिक से हो गयी थी। इसलिये पहले तो मै यह जानना चाहता हूँ कि हमारी मुलाकात की खबर उनके पास कैसे पहुँच गयी? मेरी बात सुन कर वह एक पल के लिये चौंक गया था। कुछ सोच कर बोला… हमारी मुलाकात की बात मुझे मिला कर सिर्फ चंद लोगों को मालूम थी। उनको किसने बताया? उसकी बात सुन कर मेरे लिये सब कुछ साफ हो गया था।

…अल्ताफ भाई, यह दोनो मुझे आंतरिक मंत्री इफ्तीखार आलम की पार्टी मे मिले थे। …आलम की पार्टी मे…वह चौंकते हुए बोला… यह दोनो वहाँ क्या कर रहे थे? …मुझे पता नहीं लेकिन एक बात तो तय है कि वह दोनो आलम के काफी करीब है। …भाईजान, हमारी सारी मुहिम पाकिस्तानी एस्टेब्लिश्मेन्ट के विरुद्ध है तो भला मंत्री के साथ हमारे ताल्लुकात अच्छे कैसे हो सकते है। अबकी बार मैने कुछ सोच कर कहा… मुझे शक है कि आईएसआई उनके जरिये मेहसूद कबीले मे सेंधमारी करने मे कामयाब हो गयी है। मेरी बात सुन कर अल्ताफ कुछ भी बोलने की स्थिति मे नहीं था। …अल्ताफ भाई आपकी मुहिम के लिये एक प्रस्ताव लेकर आया हूँ लेकिन अब मै यह प्रस्ताव सिर्फ नसरुल्लाह मेहसूद साहब के सामने रखूँगा। अल्ताफ पहले से ही किंकर्तव्यविमूढ़ स्थिति मे उलझा हुआ था। मेरी बात सुन कर वह और भी ज्यादा उलझ गया था। …समीर भाई उनसे मिलने के लिये तो आपको वुजगई जाना पड़ेगा। …और अब्दुल्लाह वजीरी से मिलना हो तो कहाँ जाना पड़ेगा? …चचाजान आपको हमजोनी मे मिल जाएँगें। …अल्ताफ भाई मेरा प्रस्ताव मेहसूद और वजीरी कबीलों के लिये है। जबसे तालिबान और अमरीका के बीच जंग शुरु हुई है तभी से पश्तूनों की जिंदगी बदतर हो गयी है। अब उन्हें इंसाफ दिलाने का समय आ गया है। इस मुहिम मे आपका साथ देने के लिये मै इतनी दूर से उन दोनो से मिलने आया हूँ।

अल्ताफ मेहसूद कुछ देर सोचने के बाद बोला…  चचाजान से बात करके कल तक आपको उनकी राय बता दूँगा लेकिन जफर और सादिक की बात जो आपने बतायी है वह कितनी पुख्ता है? …मै उनसे खुद आलम की पार्टी मे मिला था। इतनी देर मे पहली बार नीलोफर ने चेहरे से चिलमन हटाते हुए बोली… भाईजान, अपने तायाजी का हवाला देकर मै उनसे मिली थी। वह दोनो बिचौलिये बन कर हमे इफ्तीखार आलम से मिलवा रहे थे। नीलोफर को देखते ही अल्ताफ बोला… बाजी आप इस तरह से बेपर्दा नहीं हो सकती। ख्वातीन के मामले मे जिरगा के नियम बेहद सख्त है। …अल्ताफ भाईजान आपने मुझे पहचाने नहीं है। मेरी खाला आपकी चचीजान है। अगर आप भूले नहीं है तो याद किजिये जर्बे अज्म मे आपका सारा परिवार मुजफराबाद मे हमारे घर पर ठहरा था। उससे पहले जर्बे मोमिन के दौरान मेहसूद परिवार को मेरे तायाजी ने बालाकोट मे आसरा दिया था। उसी समय हमारे परिवारों के बीच मे रिश्ता हुआ था। आप और मै तो तब पैदा भी नहीं हुए थे लेकिन जर्बे अज्म के दौरान तो हम साल भर एक साथ रहे है। अल्ताफ कुछ देर विस्मय से नीलोफर को देखता रहा और फिर मुस्कुरा कर बोला… बाजी माफी चाहता हूँ। लखवी परिवार से तो हमारा बड़ा नजदीक का रिश्ता है। नीलोफर ने मुस्कुरा कर कहा… भाईजान, मेरे कहने पर यह आपकी मुहिम मे मदद करने के लिये आये है। …बाजी मुझे और शर्मिन्दा मत किजिये। आप बड़ी है और छोटा भाई समझ कर माफ कर दिजिये। नीलोफर ने एक ही पल मे सारी कहानी पलट कर रख दी थी। मैने उठते हुए कहा… अच्छा अल्ताफ भाई हमे इजाजत दिजिये। अल्ताफ ने जल्दी से पूछा… आप कहाँ ठहरे है? …होटल चांद पेलेस। …मै आपको आज शाम तक चचाजान का जवाब बता दूँगा। अगर कल निकलना होगा तो चलने से पहले कुछ तैयारी करनी पड़ेगी। अल्ताफ से विदा लेकर हम दोनो अपनी पिक-अप की ओर चल दिये थे।

होटल की ओर जाते हुए मैने कहा… अब मेरे समझ मे आया कि क्यों मेरे साथ चलने की जिद्द पर तुम अड़ी हुई थी। …समीर, यह कबीले आसानी से किसी अनजान व्यक्ति से नहीं मिलते। सुरक्षा कारणों से एक मुलाकात के लिये अल्ताफ तुम्हें महीनों तक घुमाता रहता। नीलोफर को होटल पर उतार कर मै अपनी पिक-अप की सर्विस कराने की मंशा से निकल गया था। बहुत लम्बा सफर करके यहाँ पहुँचे थे। आगे का रास्ता तय करने के लिये अपनी पिक-अप सर्विस कराना मुझे अनिवार्य लग रहा था। होटल के पास ही एक आटोमोबाईल वर्कशाप मिल गयी थी। अपनी पिक-अप उनके हवाले करके मै पैदल ही अपने होटल की ओर वापिस चला गया था। शाम तक हमने कमरे मे आराम किया और फिर मै अपनी पिक-अप लेने के लिये वर्कशाप की दिशा मे चल गया। चारसद्दा मे बिजली की हालत बेहद दयनीय थी। आठ-दस घंटे का पावर कट यहाँ आम बात थी। मेरी जीप की सर्विसिंग हो चुकी थी। दिन छिपते ही सारा शहर अंधेरे मे डूब गया था। बाजार मे दुकानों का कारोबार अभी भी लालटेन व जेनसेट की बदौलत बदस्तूर जारी था। वर्कशाप से निकल कर मै पिक-अप मे पेट्रोल भरवाने के लिये चला गया। यहीं पर पहली बार मेरा आमना सामना तेहरीक-ए-तालिबान के साथ हुआ था।

अपनी जीप का टैंक फुल करवा कर मै खाली जेरीकेन भरवा रहा था। सड़क पर रेन्जर्स की जीप साईरन बजाती हुई गश्त लगाते हुए मेरे सामने से निकली लेकिन तभी उनकी जीप मे धमाका हुआ और धू-धू करके जलने लगी। सभी हतप्रभ से यह दृश्य आँखें फाड़ कर देख रहे थे। कुछ घायल सिपाही उतर कर जब तक पोजीशन लेते तब तक सेमी-आटोमेटिक मशीन गन की तड़-तड़ आवाज कान मे गूँजने लगी। मै तो तुरन्त जेरीकेन छोड़ कर अपनी पिक-अप की आढ़ मे चला गया था। हवा मे गोलियाँ बिखरती जा रही थी। बेचारे सिपाहियों को उन लोगों ने बचने का मौका भी नहीं दिया था। मुश्किल से पाँच मिनट मे रेन्जर्स की जीप के साथ आठ सिपाही भी शहीद हो गये थे। तभी एक नारा गूंजा अल्लाह-ओ-अकबर और फिर एकाएक चारों ओर मौत की शांति छा गयी थी। एक बार फिर से कारोबार शुरु हो गया था। छिपे हुए लोग एक-एक करके सड़क पर आ गये थे। एक नजर उस धू-धू करके जलती हुई रेन्जर्स की जीप और सड़क पर मृत शवों पर डाल कर लोग अपने काम मे जुट गये थे। मैने जेरीकेन मे पेट्रोल भरने वाले से पूछा… भाईजान यह कौन लोग थे? …तेहरीक के जिहादी थे। आप इस पचड़े न ही पड़ो तो अच्छा होगा। यह तो यहाँ आम बात है। वह जल्दी से जेरीकेनों मे पेट्रोल भर कर बोला… जल्दी से हिसाब करके निकल जाओ वर्ना पुलिस वाले आपकी पूरी रात काली कर देगी।  मैने जल्दी से पैसे दिये और पिक-अप मे सवार होकर अपने होटल की दिशा मे निकल गया था।

देर रात को अल्ताफ ने होटल मे आकर बताया कि उसके अब्बू और चचाजान हमसे हमजोनी मे मिलेंगें। हमे कल निकलना होगा। इतना बोल कर वह जैसे ही जाने के लिये मुड़ा तो मैने जल्दी से पूछा… आपने रेन्जर्स पर हुए ब्लास्ट के बारे मे कुछ सुना तो वह मुड़ कर बोला… तेहरीक ने आज सुबह की कार्यवाही का बदला लिया है। जल्दी से जल्दी यहाँ से निकलना हम सब के लिये अच्छा होगा वर्ना पता नहीं फिर कितने दिन का कर्फ्यु यहाँ पर लग जाएगा। …क्या हम लोग अभी निकल सकते है?  …अच्छा यही होगा कि आप दोनो अभी मीरमशाह के लिये निकल जाएँ। मै अपको जल्दी ही हमजोनी मे मिलूँगा। बस इतना बोल कर वह अंधेरे मे अपने साथियों के साथ निकल गया था। कुछ ही देर मे हम दोनो होटल छोड़ कर चारसद्दा की मुख्य सड़क से मरदान की दिशा मे निकल गये थे। तब तक स्थानीय पुलिस भी हरकत मे आ गयी थी। जगह-जगह बैरीकेड लग गये थे। शहर से बाहर निकलते हुए नीलोफर के कारण मुझसे ज्यादा पूछताछ नहीं की गयी थी।  हम रात के अंधेरे मे मीरमशाह की ओर निकल गये। एक बार फिर से हमारा सफर आरंभ हो गया था।

ड्राईव करते हुए मैने पूछा… नीलोफर, इस्लामाबाद मे हमने कितने पैसे बाँट दिये थे। …लगभग 35 करोड़ रुपये हमने पाँच लोगों मे बाँटे है। …इससे हर महीने हमारी कितनी आमदनी होने वाली है? …लगभग डेढ़ करोड़ रुपये हर महीने की कमाई होगी। …नीलोफर, अब इस कमाई को हमे इन तंजीमों मे ऐसे बाँटना है कि इनके आदमी उस ब्याज की उगाही करने के लिये उनके पास जाये। …समीर, कहीं हम आग से तो नहीं खेल रहे है? …हम आग से ही खेल रहे है। जब मेहसूद या वजीरी के लोग रियाज और मुनीर के पास हर महीने ब्याज वसूलने पहुँचेंगें तब देखना होगा कि वह जनरल रहमत को बीच मे डालता है कि नहीं। एक बार जनरल रहमत बीच मे आ गया तो अपने आप ही आग भड़क जाएगी। हम कुछ देर ऐसे ही बात करते हुए आधी रात तक पेशावर पहुँच गये थे। यहाँ से मीरमशाह लगभग छह-सात घंटे की दूरी पर था। पेशावर शहर से निकलते हुए रात आधी बीत चुकी थी।  मैने अपने फोन को गूगलमैप से जोड़ कर इस बात का निर्णय लिया कि कोहाट पहुँच कर आराम करेंगें। सुर्य की पहली किरण भी नहीं फूटी थी कि हम कोहाट शहर मे प्रवेश कर गये थे। उसको शहर कहना उचित नहीं लगता क्योंकि चट्टानी रेगिस्तान पर पैबन्द के जैसी हरियाली के कुछ हिस्सों की झलक कोहाट मे प्रवेश करते हुए दिख गयी थी। हलका सा छुटपुटा हो गया था। नीलोफर मेरे साथ बैठी हुई ऊँघ रही थी। हाईवे पर चलते हुए जैसे ही शहर की ओर मुड़ा तभी एक होटल देख कर मैने पिक-अप को उसकी दिशा मे मोड़ दिया। कुछ देर बाद एक छोटे से कमरे मे हम दोनो सफर की थकान और नींद की बेहोशी मे डूब गये थे।

दोपहर को नीलोफर की आँख खुली तो उसने मुझे उठा कर कहा… समीर, जल्दी से तैयार हो जाओ। रात से पहले हमे मीरमशाह पहुँचना है। हम दोनो चाय पीकर तैयार होने मे जुट गये थे। तीन बजे तक हम खाना खाकर चलने के लिये तैयार हो गये। हम दोनो जैसे ही बाहर निकल कर पिक-अप की ओर बढ़े कि तभी तीन फौज की गाड़ियाँ हूटर बजाती हुई निकली तो होटल के गेट पर तैनात दरबान जल्दी से बोला… जनाब वापिस अन्दर चले जाईये। बाहर फौज का खतरा है। मुझे उसकी बात कुछ समझ मे नहीं आयी परन्तु उसके चेहरे और आवाज मे भय साफ झलक रहा था। हम दोनो चुपचाप रिसेप्शन पर आकर बैठ गये थे। …समीर, बाहर क्या चल रहा है। जरा पता करो। मै उठ कर रिसेप्शन पर जाकर पूछा… भाईजान बाहर क्या चल रहा है? उसने खिड़की की ओर इशारा करके कहा… जनाब, फौज घरों की तलाशी ले रही है। मै खिड़की के पास जाकर खड़ा हो गया तो वहाँ से सड़क का नजारा साफ दिख रहा था। एक जीप सड़क के बीचोंबीच खड़ी हुई थी। लगभग बीस फ्रंटियर फोर्स के सिपाही सड़क पर अलग-अलग स्थानों पर तैनात थे। दो-दो सिपाहियों के समूह मे हर घर का दरवाजा खोल कर अन्दर सभी उपस्थित लोगों को खदेड़ कर बाहर निकाल रहे थे। कुछ ही देर मे पचास से ज्यादा लोग बाहर सड़क पर एक कतार बना कर खड़े हो गये थे।

…भाईजान वह होटल मे उपस्थित लोगों को भी बाहर निकालेंगें? …नहीं साहब, यह होटल मे प्रवेश नहीं करेंगें क्योंकि हर हफ्ते हमारी ओर से नजराना पेशावर के कोर कमांडर के पास पहुँच जाता है। मेरी नजर बाहर जम गयी थी। दो सिपाही सड़क पर खड़े लोगों मे एक-दो आदमियों को कतार से बाहर निकाल कर उन पर लाठी बरसाते हुए कुछ पूछ रहे थे। दो-तीन सिपाही महिलाओं से पूछताछ करते हुए उनके साथ खुलेआम बदतमीजी कर रहे थे। एक किनारे मे बच्चों का झुंड रोता हुआ चीख पुकार रहा था। शीशे के कारण उनकी आवाजें होटल के अन्दर सुनायी नहीं दे रही थी। एक घंटे तक फौज की कार्यवाही चली थी। इस दौरान सिपाहियों ने बीस के करीब अदमियों की पिटाई कर चुके थे। लड़कियों से बात करते हुए उनकी तलाशी लेने की आढ़ मे उनकी भद्दी हरकतें देख कर कोई भी शरीफ इंसान शर्मशार हो सकता था। मै चुपचाप खिड़की के किनारे खड़ा हुआ यह सारा मंजर अपनी आँखों से देख रहा था। तभी मेरे कान मे सीटिंयों की आवाज पड़ी और एकाएक सड़क पर भगदड़ मच गयी थी। जैसे शुरु हुआ था वैसे ही सब कुछ समाप्त हो गया था। कुछ ही देर मे तीनो गाड़ियाँ तेजी से आगे बढ़ गयी थी।

सड़क पर खड़े हुए अब सब विलाप कर रहे थे। मै वापिस नीलोफर के साथ बैठते हुए बोला… तलाशी अभियान चल रहा है। तभी रिसेप्शनिस्ट बोला… जनाब, पश्तून और बलोच आवाम के साथ ऐसा अक्सर होता है। जब भी फौज पर किसी तंजीम का हमला होता है तब वह अपनी कुंठा इसी प्रकार से निकालते है। सुनने मे आया है कि कल शाम को मरदान के पास तेहरीक ने रेन्जर्स के गश्ती दल पर हमला किया था। आज फौज उसका बदला ले रही है। …क्या तेहरीक इस इलाके मे सक्रिय है? …जी जनाब, वह भी जल्दी ही इसका बदला लेंगें। …कल के हादसा तो मरदान मे हुआ था तो यहाँ क्यों कार्यवाही की गयी है? …जनाब, उन्हें कोई सुराग हाथ लगा होगा या फिर कोई इस इलाके की लड़की या औरत किसी अफसर की नजर मे आ गयी होगी तो उसने पूछताछ की आढ़ मे उसको उठवा लिया होगा। यह तो यहाँ आम बात है। इसका भी कुछ देर मे पता चल जाएगा। नीलोफर ने टोकते हुए कहा… समीर अब चलना चाहिये। मैने जल्दी से उसे अल्विदा किया और पिक-अप की ओर चल दिया। कुछ देर के बाद एक बार फिर से वीरान उबड़ खाबड़ चट्टानी रेगिस्तान मे हमारा सफर आरंभ हो गया था। आज की फौजी कार्यवाही देख कर मेरे अन्दर खाकी वर्दी के प्रति रोष और घृणा पनपने लगी थी।

…समीर, फौज के प्रति यहाँ काफी रोष पनप रहा है। …हाँ लेकिन पाकिस्तानी फौज के खिलाफ तेहरीक अकेली कुछ नहीं कर सकेगी। फौज से टकराने के लिये उनको सभी तंजीमों के साथ की जरुरत है। पश्तून और बलोच अगर विद्रोह पर उतर आये तो फौज के लिये मुश्किल खड़ी हो जाएगी। …समीर, पश्तून राजनीति मे कबीलों का बोलबाला है। वह कभी एक नहीं हो सकते। हक्कानी तो फौज और आईएसआई का गुलाम है और उसके खिलाफ मेहसूद और वजीरी जैसे बौने कबीले खड़े हुए है। हम हाईवे छोड़ कर शाम तक लातम्बर और दोमैल से होते हुए बन्नू पहुँच गये थे। इमारतें और बाजार को देख कर बन्नू एक बड़ा कस्बा लग रहा था। नीलोफर कुछ रोजमर्रा का सामान खरीदने के लिये बाजार मे चली गयी और मै अपना स्मार्टफोन निकाल कर मीरमशाह मे अपने साथियों के साथ संपर्क करने मे जुट गया। पहली घंटी पर जमीर की आवाज कान मे पड़ी… हैलो। …सईद भाई अस्लाम वालेकुम। हम बन्नू पहुँच गये है। आपके यहाँ के हालात कैसे है? …भाईजान सब खुदा की मेहरबानी है। आपका इंतजार हो रहा है। भाभीजान भी आपके साथ है? …जी सईद भाई। क्या आपने अपने लिये किसी गाड़ी का इंतजाम कर लिया? …जी भाईजान। …सईद भाई हम देर रात तक मीरमशाह पहुँच जाएँगें। आप मेरा नम्बर नोट कर लिजिये। …भाईजान, मीरमशाह पहुँचते ही हमे खबर कर दिजियेगा। मै आपको लेने आ जाऊँगा। …सईद भाई ठीक है। वहाँ पहुँचते ही मै आपको खबर कर दूँगा। अच्छा खुदा हाफिज। इतनी बात करके मैने फोन काट दिया था। एक बार दिमाग मे सारी बातों को दोहरा कर किसी प्रकार के अनजाने खतरे का आंकलन किया और फिर फोन को जेब के हवाले करके मै नीलोफर के इंतजार मे बैठ गया। नीलोफर के आते ही हम भोजन करने के लिये निकल गये थे। जब तक चलने के लिये तैयार हुए तब तक अंधेरा घना हो चुका था। उबड़-खाबड़ चट्टानी पर्वतमाला की तलहटी मे बिछी हुई सड़क पर हम मीरमशाह के लिये चल दिये थे।

सुबह तीन बजे हम मीरमशाह मे प्रवेश कर गये थे। पेट्रोल पंप देखते ही मैने अपनी पिक-अप उसकी ओर मोड़ दी और पेट्रोल भरवाने की जिम्मेदारी नीलोफर पर डाल कर मै जमीर से बात करने के लिये एक किनारे मे चला गया। …सईद भाई हम शहर मे घुसते ही पहले पेट्रोल पंप पर आपका इंतजार कर रहे है। …भाईजान, मै पाँच मिनट मे वहीं पहुँच रहा हूँ। बस इतनी बात करके मैने फोन काट दिया था। जब तक टैंक फुल हुआ तब तक एक जोन्गा मेरे पास आकर रुकी और थापा जल्दी से कूद कर बाहर निकला और मेरे पास पहुँच कर जब तक वह अपनी एड़ियाँ जोड़ कर सैल्युट करता मैने अपनी बाँहों मे जकड़ कर हवा मे उठा कर बोला… शमशेर भाई खुशाम्दीद। जमीर भी तब तक जोन्गा से उतर कर मेरे करीब आ गया था। वह भी बड़ी गर्मजोशी के साथ मिला और फिर दोनो सारे जेरीकेन भरवाने मे जुट गये थे। नीलोफर मेरे पास आकर बोली… अब तुम मुझे समय नहीं दोगे। मैने उसकी ओर देखा तो उसके चेहरे पर एक नटखट मुस्कान खिली हुई थी।           

कुछ ही देर मे एक आलीशान सी हवेली की बैठक मे आराम से चाय पीते हुए बात कर रहे थे। जमीर उर्फ सईद, सुखबीर उर्फ सुहेल, रशीद उर्फ राशिद,  पूरन सिंह उर्फ परवेज़, नायडू उर्फ नईम और थापा उर्फ शमशेर मेरे सामने बैठ कर अपनी रिपोर्ट दे रहे थे। उन्होंने चार पश्तून तंजीमो से संपर्क साध लिया था। आगे की बात करने के लिये वह मेरा इंतजार कर रहे थे। …कल हमें हमजोनी मे मेहसूद और वजीरी मे से मिलना है। कल से हम वापिस अपनी गिल्गिट वाली वेषभूशा और खुदाई शमशीर के जिहादियों के रुप मे वापिस आ जाएँगें। जमीर ने बीच मे टोकते हुए कहा… सर, गिल्गिट से खबर मिली है कि कोई आईएसआई की मेजर हया इनायत मीरवायज घाटी मे खुदाई शमशीर की तहकीकात कर रही है। नीलोफर ने चौंक कर तुरन्त पूछा… कौन मेजर? …मेजर हया इनायत मीरवायज। एक पल के लिये यह नाम सुन कर मुझे लगा कि मेरा लहू एकाएक जम गया है। मै तो कुछ भी बोलने की स्थिति मे नहीं था लेकिन नीलोफर बोली… कितनी पुख्ता खबर है? …पुख्ता खबर है। वह अली मोहम्मद से पूछताछ करने के लिये उसके मदरसे गयी थी। उसके साथ आईएसआई का कर्नल हमीद भी था। एक ही पल मे अंजली से मिलने की मेरी सारी चाहत का अंत हो गया था। तभी दिमाग मे मेनका के ख्याल ने घन से प्रहार किया तो लगा कि लड़ाई आरंभ होने से पहले ही मै पराजित हो गया था। नीलोफर ने मेरा हाथ अपने हाथ मे लेकर दबाते हुए कहा… समीर, चलो चल कर आराम कर लो। कल बहुत काम करने है। उसका सहारा लेकर मै उठा और एक बेडरुम की ओर चल दिया।

सोमवार, 17 जून 2024

  

शह और मात-6

 

नीलोफर मुझे छोड़ कर जा चुकी थी। सड़क किनारे खड़ा हुआ मै किसी खाली टैक्सी का इंतजार कर रहा था। कुछ कदम चलते ही सामने शकरपारियन नेशनल पार्क का बोर्ड दिखा तो कलाई पर बंधी घड़ी पर एक नजर डाल कर मै उस पार्क की दिशा मे निकल गया था। मैने जेब से अपना स्मार्टफोन निकाल कर उसमे स्क्रेम्बलर और एन्टी-ट्रेकिंग डिवाईस फिट करके एक खाली स्थान देख कर मैने अजीत सर का नम्बर मिलाया तो पहली घंटी पर उनकी आवाज मेरे कान मे पड़ी… हैलो। …सर, आपसे कब बात कर सकता हूँ? …अभी फ्री हूँ। बताओ क्या बात है? …सर, आजाद कश्मीर से निकल कर वजीरिस्तान मे मेहसूद और वजीरी से संपर्क स्थापित करने की कोशिश कर रहा हूँ। …पश्तून नेता से कब मिल रहे हो? …सर, दो हफ्ते के बाद मीरमशाह पहुँच कर पश्तून फ्रंट के जाहिद पश्तून और तेहरीक-ए-तालिबान के अहमद बैतुल्लाह और मंसूर मजारी से मिलने की कोशिश करुँगा। …तुम इनके साथ मिल कर क्या करने की सोच रहे हो? …सर, इन सभी तंजीमो का गठजोड़ बना कर चीनी सड़क परियोजना को ठप्प करना मेरा प्राथमिक उद्देशय है। दूसरा पाकिस्तानी समाज मे उभरती हुई दरारों को खाई मे तब्दील करना मेरा दूसरा उद्देश्य है। इस कार्य को पूरा करने के लिये मुझे आपकी मदद चाहिये। …टाईम हो गया है और कुछ पलों मे फोन का कनेक्शन कटने वाला है। दोबारा काल करो। मै फोन काट कर टैक्सी मे बैठ कर इस्लामाबाद के दूसरे छोर की ओर चल दिया था।

बीस मिनट के अन्तराल के बाद एक बार फिर मैने अजीत सर को फोन लगाया। …हाँ तुम अब बताओ कि तुम्हे किस तरह की मदद चाहिये। …सर, नकली करेन्सी के रैकेट मे पाकिस्तानी एस्टेबलिशमेन्ट का हाथ लग रहा है। …समीर, कितनी पुख्ता खबर है? …सर, मेरे पास अभी कोई पुख्ता जानकारी नहीं है लेकिन मेरा अनुमान है कि आईएसआई ने बालीवुड और करांचीवुड के बीच मे बेहद पुख्ता नेटवर्क तैयार किया है। जब पिछली बार काठमांडू आप्रेशन के दौरान आपने एक वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट दिखायी थी तब मैने आपको सिर्फ कार्यशैली के बारे बात की थी। हमारा ध्यान सिर्फ आतंकवाद और अवैध हथियारों पर केन्द्रित था। यहाँ आने के बाद नकली करेन्सी के रैकिट की परतें खुलनी शुरु हो गयी है। अगर भारत सरकार नकली करेन्सी पर कोई पुख्ता कदम उठाती है तो जल्दी ही उसका असर यहाँ पर देखने को मिल जाएगा। …समीर, वित्त मंत्रालय ने नकली नोटों के चलन के उपर अपनी फाईनल रिपोर्ट पीएमओ को भेज दी है। अगले हफ्ते रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय इस मामले मे प्रधानमंत्री को ब्रीफ करने के लिये आ रहे है। अब जल्दी ही सरकार इस मामले मे कोई बड़ा कदम उठाएगी। …जी सर। बात करते हुए मेरी नजर अपनी घड़ी पर टिकी हुई थी। टाइम समाप्त होने वाला था। …सर, मै फोन काट रहा हूँ। बीस मिनट मे फिर फोन करता हूँ। इतना बोल कर मैने फोन काट दिया और टैक्सी पकड़ कर अलग दिशा मे निकल गया था।

एक बार फिर से मैने अजीत सर को फोन लगाया। …बोलो समीर अब मुझे क्या करना है? …सर, आज ही पता चला है कि एजाज कम्युनिकेशन्स नाम की एन्टर्टेनमेनन्ट एजेन्सी सत्तर लाख रुपये के चेक के बदले एक करोड़ रुपये नगद दे रही है। फौजी फाउन्डेशन इस एजेन्सी की प्रमोटर है और आईएसआई अपरोक्ष तरीके से इसको चलाती है। मुझे इसके बारे मे छानबीन करने का कुछ समय दिजिये और तब तक आप वित्त मंत्रालय को इस खतरे से आगाह कर दिजिये। …ठीक है। तुम्हारे सेटफोन पर मै एक फैक्स की कापी भेज रहा हूँ। उसको देख कर आगे की कार्यवाही तय करना। उस पर चर्चा अगली बार करेंगें। अमरीकनों से संपर्क कब स्थापित करोगे? …सर, ब्रिगेडियर साहब की हालत अब कैसी है? दूसरी ओर कुछ पल चुप्पी छायी रही और फिर अजीत सर की आवाज कान मे पड़ी… सौरी, हम उन्हें नहीं बचा सके। …सर, अगले महीने काबुल से संपर्क स्थापित करके मै अमरीकनों से मिलूँगा। ओवर एन्ड आउट। पहली बार मैने अशिष्टता से अजीत सर का फोन काट दिया था। ब्रिगेडियर चीमा की मौत की खबर सुन कर मुझे गहरा धक्का लगा था। उनसे मैने बहुत कुछ सीखा था लेकिन वह मेरे लिये सीओ से ज्यादा महत्व रखते थे। फोन काट कर कुछ देर के लिये मै उस इंसान को याद करने के लिये बस स्टैन्ड की बेन्च पर बैठ गया था।

मेरी फौज की जिंदगी मे ब्रिगेडियर चीमा का योगदान अतुलनीय था। यह तो मुझे काफी बाद मे ब्रिगेडियर चीमा ने बताया था कि कैसे श्रीनगर के बस स्टैन्ड पर डरे-सहमे हुए लड़के को कार्गो प्लेन मे स्पेशल फोर्सेज की युनीफार्म मे देख कर वह पहली नजर मे पहचान गये थे। मै तो उस इंसान को भुला बैठा था जिसने मुझे बस स्टैन्ड पर फौज मे जाने का रास्ता दिखाया था। एक बार उनके घर के लान मे बैठ कर धूप का मजा लेते हुए वह अचानक बोले… समीर, इस वर्दी मे तुम्हें देख कर मुझे बहुत गर्व महसूस होता है। तुम्हारी अम्मी के साथ इसमे मेरा भी योगदान है। तब उन्होंने पहली बार मुझे बताया था कि वह काउन्टर इन्सर्जेन्सी आप्रेशन के लिये अपनी टीम के साथ बस स्टैन्ड पर आतंकवादियों पर घात लगाने के लिये बैठे हुए थे जब उनकी नजर एक डरे-सहमे हुए लड़के पर पड़ी थी। उन्हें शक हुआ तो उन्होंने कोई एक्शन लेने से पहले उस लड़के से बात करना उचित समझा था। जब मुझसे उन्होंने बात की तो वह चौंक गये थे क्योंकि उस दौर मे कश्मीरी युवकों की राय भारतीय फौज के प्रति बिलकुल विपरीत थी। वह भी उस लड़के से जो अलगावादियों के सरगना मकबूल बट का बेटा था। कार्गो प्लेन मे मुझे देखते ही वह पहचान गये थे। उसके बाद से वह बिना बोले मेरे संरक्षक बन गये थे। उन्हें मेरे हरेक आप्रेशन की जानकारी थी। जब मैने वह रिपोर्ट अपने सीओ को दी थी तो उस रिपोर्ट की एक कापी उन्होंने ही वीके को भिजवा दी थी। ब्रिगेडियर चीमा की छवि मेरी आँखों के सामने आते ही मेरे आँसू स्वत: ही छलक गये थे।

मेरे फोन की घन्टी ने मुझे वापिस यथार्थ मे लाकर खड़ा कर दिया था। …हैलो। …आपने आज रात को मिलने के लिये कहा था। मैने अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर नजर डाल कर जल्दी से कहा… मै रास्ते मे हूँ। दस मिनट मे पहुँच रहा हूँ। मैने टैक्सी पकड़ी और उसके गेस्ट हाउस की ओर चल दिया। ब्रिगेडियर चीमा की मौत का गहरा सदमा अभी मेरे जहन पर छाया हुआ था। जब तक उसके गेस्ट हाउस पहुँचा तब तक मन थोड़ा शान्त हो चुका था। साहिबा बाहर लान मे बैठी हुई शायद मेरी राह देख रही थी। मुझे देखते ही वह उठ कर खड़ी हो गयी और तेजी से मेरे पास पहुँच कर बोली…इतनी देर कैसे हो गयी। भूख लग रही है। चलो फूड स्ट्रीट चलते है। अपना मन मार कर मै उसकी कार से फूड स्ट्रीट की ओर चल दिया था। …तुम उदास लग रहे हो क्या बात है? मैने जल्दी से अपने चेहरे पर बनावटी मुस्कान लाकर जवाब दिया… ऐसी कोई बात नहीं है। आज सारा दिन मीटिंग करके थक गया हूँ। कुछ ही देर मे हम फूड स्ट्रीट पर पहुँच गये थे।

फूड स्ट्रीट औपचारिक फूड पार्क जैसी जगह के बजाय खाने के सामान लिये ठेले सड़क को घेर कर खड़े हुए थे। काफी लोग सड़क के किनारे बिछी हुई बेन्चों पर खाना खाते दिख रहे थे। …साहिबा, आस पास कोई ड्रिंक्स का साधन नहीं है? …जनाब, क्या भूल गये कि आप इस्लामिक रिपब्लिक आफ पाकिस्तान मे है। यह आपका युरोप नहीं है। यहाँ हार्ड ड्रिंक्स फाईव स्टार होटल की बार अथवा हाई सोसाईटी की पार्टी मे सर्व होती है। यहाँ पर आवाम के लिये शराब हराम है लेकिन ब्लैक मार्किट मे पुलिस के संरक्षण मे सब कुछ उपलब्ध है। मैने झेंपते हुए कहा… सौरी। चलो फिर खाना खा लेते है। साहिबा ने अपनी पसन्द का आर्डर दिया और फिर हम दोनो एक किनारे मे जाकर बैठ गये थे। …तुम बता रहे थे कि तुम एक-दो दिन मे यहाँ से चले जाओगे। …हाँ, कारोबार के सिलसिले मे हमेशा भटकता रहता हूँ। …पाकिस्तान से बाहर जा रहे हो? …नहीं। मुझे पेशावर जाना है। …मै भी चलूँ? एक पल के लिये मै उसका चेहरा देखता रह गया था। …क्या हुआ? …क्या तुम्हारी शूटिंग नहीं चल रही? अबकी बार वह चुप होकर बैठ गयी थी। …अब तुम्हें क्या हो गया? वह मेरी ओर देख कर बोली… सोच रही थी कि क्या कैमरे के नशे से भी ज्यादा घातक और गहरा मोहब्बत का नशा होता है? मै कुछ बोलता कि तभी मेज पर खाना लगना शुरु हो गया। हमारी बातचीत मे ब्रेक लग गया था। खाना खाते हुए मैने कहा… एजाज कम्युनिकेशन्स का काम कब करोगी? …तुम्हें बताया था न कि मेरा तुम्हारे पैसों के साथ कोई सरोकार नहीं है। इधर मैने बोलना उचित नहीं समझा तो चुपचाप खाना खाने जुट गया था। पैसे चुका कर हम कार की दिशा मे चल दिये थे।

…तुमने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया। …कौनसी बात का? …क्या मोहब्बत का नशा सारे नशों पर भारी पड़ता है? कुछ सोच कर मैने कहा… इसमे कोई शक नहीं है। अचानक वह बात बदलते हुए बोली… कहीं घूमने चले? मैने जल्दी से कहा… नहीं। क्या उस रात का वाक्या भूल गयी? …समीर, डरना तो मुझे चाहिये। …क्या तुम्हें रुसवा होते हुए देख कर मै चुपचाप सहन कर लूँगा? एकाएक वह चुप हो गयी थी। कार मे बैठते ही वह बोली… मेरे रुम पर चलते है। …आज नहीं साहिबा। मै तुम्हें प्रोड्यूसर की कठपुतली बनते हुए नहीं देख सकता। इसलिये अब मुझे कुछ दूसरा रास्ता खोजना पड़ेगा। …समीर, मैने पेशावर के उत्तर मे बड़ी छोटी सी जगह से निकल कर बड़ी मुश्किल से अपना एक मुकाम बनाया है। मैने तो अपने वतन वापिस लौटने के विचार से हमेशा के लिये तौबा कर ली थी लेकिन मैने महसूस किया कि यह सब बेमानी है। मेरे लिये बस तुम्हारा साथ ही काफी है। वह कार चला रही थी लेकिन मै एक अजीब से भंवर मे फँस गया था। एजाज कम्युनिकेशन्स मेरा लक्ष्य था और इस लक्ष्य को साधने मे साहिबा मेरे लिये एक साधन मात्र से ज्यादा कुछ नहीं थी।

अचानक साहिबा ने कार को दूसरी दिशा मे घुमाते हुए कहा…  अगर हमारा चंद दिनो का साथ है तो फिर क्यों न बचे हुए हर पल तुम्हारे साथ गुजारा जाये। वह कार की गति बढ़ाते हुए एक दिशा मे निकलती चली गयी थी। इस्लामाबाद शहर से बाहर निकल कर मुरी की ओर चल दी थी। मैने धीरे से उसका एक हाथ अपने हाथ मे लेकर कहा… साहिबा अपने आप से कोई भाग नहीं सकता। …मै तुम्हें दुनिया से छिपा कर हमेशा के लिये अपने पास रखना चाहती हूँ। मैने कोई जवाब देना उचित नहीं समझा तो मेरा चुप रहना ही बेहतर था। वह चुपचाप कार चलाती रही। इस्लामाबाद से कोई 20 मील पर मुरी एक हिल स्टेशन है तो मैने भी वापिस जाने के लिये उस पर ज्यादा जोर नहीं दिया। मुरी से कुछ पहले पहाड़ों मे छोटी सी गेटिड कम्युनिटी के मुख्य द्वार के सामने अपनी कार रोक कर बोली… यहाँ मेरा एक निजि काटेज है। किसी भी प्रोजेक्ट की शूटिंग समाप्त करके मै यहाँ पर कुछ दिनो के लिये एकान्त मे आ जाती हूँ। इतना बोल कर वह समीप आते हुए चौकीदार को कार की खिड़की खोल कर सिर बाहर निकाल कर बोली… पठान भाईजान मै हूँ। गेट खोल दिजिये। वह चौकीदार उसको देख कर गेट खोलने के लिये भागते हुए वापिस हो लिया था।

थोड़ी देर मे हम दोनो काटेज मे बैठ कर ठंडी रात का आनंद ले रहे थे। …यहाँ मै सिर्फ डीटाक्सीफिकेशन के लिये आती हूँ। …तुमने बहुत सुन्दर जगह चुनी है। …दिन मे देखोगे तो यह जगह और भी सुन्दर दिखेगी। अब बताओ कि तुम क्या कह रहे थे? …कल मेरे साथ एजाज कम्युनिकेशन्स के आफिस मे चल सकोगी? …आखिर क्यों? तुम जानते हो कि यह लाईन कितनी खतरनाक है। …मै भले ही तुम्हारी लाईन के बारे मे अनजान हूँ लेकिन पैसों के कारोबार के बारे मे इतना जानता हूँ कि भले ही वह माफिया हो अन्यथा आईएसआई, सभी पैसे के आगे झुकते है। …अगर उन्होंने पूछा कि मेरे साथ तुम्हारा क्या रिश्ता है? …कुछ बोलने की जरुरत नहीं है। उनको अनुमान लगाने देना। …सोच लो मेरा नाम तुम्हारे साथ जुड़ने से तुम्हारी बदनामी होगी। हम अदाकारों का नाम तो हर दिन किसी नये आदमी के साथ पत्रकार जोड़ते रहते है जिसके कारण उनकी फिल्मी मैगजीन बिकती है। यह बात सुन कर उसी पल मै सतर्क हो गया था। कुछ सोच कर मैने कहा… मै हमारे रिश्ते को दुनिया के सामने उजागर नहीं कर सकता क्योंकि उसमे तुम्हारे लिये ज्यादा बड़ा खतरा हो जाएगा। मुझे कुछ और सोचने दो कि कैसे तुम्हें उस कंपनी के साथ जोड़ा जा सकता है।

उस रात हमारी जागते हुए कटी थी। मेरा दिमाग एजाज कम्युनिकेशन्स मे सेंधमारी करने मे लगा हुआ था। साहिबा शायद हमारे रिश्ते को सुलझाने मे उलझी हुई थी। सुबह की पहली किरण मे घाटी का दृश्य बेहद मनोरम दिख रहा था। पहाड़ काट कर सड़क बनाते हुए समतल हुये स्थान पर दस काटेज बिल्डर ने बना दिये थे। वहाँ से ऐसा लग रहा था कि जैसे हम बीच पहाड़ मे बैठे है। सुबह होते ही हम इस्लामाबाद के लिये चल दिये थे। …साहिबा, एजाज कम्युनिकेशन्स से मिलने के लिये नीलोफर तुम्हारे साथ चली जाएगी। तुम मेरियट चलो। …यह मुझसे नहीं होगा। उसको तुम्हारे साथ देख कर वैसे भी मुझे अच्छा नहीं लगता। …मेरे होटल पहुँच कर तबरेज को वहीं बुला लेना। उसके साथ बात करके कोई चक्कर चलाने की कोशिश करता हूँ। …नहीं, मै आज खुद ही सलीम साहब से मिलने की कोशिश करती हूँ। अगर जरुरत पड़ी तो फिर तुम्हें बात करने के लिये वहीं बुला लूँगी। …यह सलीम साहब कौन है? …वहाँ पर प्रोग्राम निदेशक है। ड्रामे और फिल्मों का सारा काम देखते है। …ठीक है। बस इतनी बात करके वह मुझे मेरियट के गेट पर उतार कर चली गयी थी।

कमरे मे नीलोफर नहीं थी। मै आराम करने की मंशा से बेड पर फैल गया था। कब आँख लगी पता ही नहीं चला और जब नीलोफर ने उठाया तब तक दोपहर ढल चुकी थी। कुछ देर के बाद मै तैयार होकर लंच कर रहा था कि नीलोफर ने बताया कि रियाज साहब ने पाँच बजे अपने आफिस मे बुलाया है। …कुछ कहा उसने? …नहीं, बस इतना कहा कि आज तुमसे मिलना जरुरी है। मै कुछ देर के लिये बाहर जा रही हूँ। इतना बोल कर वह कमरे से बाहर निकल गयी थी। अपना लंच समाप्त करके मैने अपने बैग से सेट फोन निकाला और आन करके नेटवर्क से जुड़ने का इंतजार करने लगा। एक मिनट मे नेटवर्क से संपर्क होते ही मैने इनबाक्स चेक किया तो मेरे लिये उसका संदेश इंतजार कर रहा था।

दोनो बच्चे ठीक है बस आपकी हरदम कमी खलती है। पीरजादा साहब और जोरावर न जाने कहाँ गायब हो गये है। कुछ समझ मे नहीं आ रहा।  अंजली के संदेश कई बार पढ़ कर एक बार फिर अपना जवाब लिखा… जब कुछ न सूझे तो एक बार फिर से इगतपुरी से शुरु करना चाहिये। एक से भले दो। मुझे बताओ कि तुम कहाँ हो? सामने नहीं आना चाहती तो अपनी आवाज तो सुना सकती हो। कोई नम्बर बताओ। 

यह संदेश भेज कर अपना सेटफोन आफ किया और बैग मे रख कर पीरजादा मीरवायज के बारे मे सोचने बैठ गया था। इतने बड़े फिरके का सरमायादार भला ऐसे अचानक कहाँ गायब हो सकता है? अदा के अपहरण मे उसकी क्या मंशा हो सकती है। फारुख की मौत का बदला या उसका कुछ और उद्देश्य है? बहुत से सवाल दिमाग मे घूम रहे थे परन्तु जवाब मेरे पास किसी एक का भी नहीं था। मै अभी इसी सोच मे बैठा था कि तभी मेरे फोन की घंटी बजी… हैलो। …समीर, मेरी बात सलीम साहब से हो गयी है। क्या तुम उनके आफिस आ सकते हो? मैने जल्दी से पता नोट किया और जैसे ही चलने के लिये तैयार हुआ उसी समय नीलोफर का आगमन हुआ। …तुम बाहर जा रहे हो? …मेरे साथ चलो। उसका हाथ पकड़ कर लगभग उसे खींचते हुए मै कमरे से बाहर निकल गया था। …हम कहाँ जा रहे है? …एजाज कम्युनिकेशन्स। …समीर, तुम साहिबा के चक्कर मे पड़ कर अपना असली मकसद भूल रहे हो? …नीलोफर, तुम तो मुझे गलत मत समझो। यह सहिबा की बात नहीं है। हम दोनो होटल की कार लेकर एजाज कम्युनिकेशन्स के आफिस की ओर चल दिये थे। …समीर, जफर मेहसूद को आईएसआई ने तोड़ लिया है। वह मेहसूद कबीले की बागडोर लेने के लालच मे उनके साथ काम कर रहा है। यही लालच वजीरी को भी दिया है। दोनो कबीले के मुखियाओं की जिंदगी पर खतरा मंडरा रहा है। मै चुपचाप उसकी बात सुनते हुए एजाज कम्युनिकेशन्स का आफिस पहुँच गया था। …इसके बारे मे लौट कर बात करेंगें।

बड़ी आलीशान शीशे की इमारत मे एजाज कम्युनिकेशन्स का आफिस था। कार से उतर कर उस इमारत मे प्रवेश करते ही मै समझ गया कि हम शो-बिजनिस के मुख्य केन्द्र मे पहुँच गये है। नये ड्रामे व नयी रिलीज होने वाली फिल्मों के फ्लेक्सो पोस्टर रिसेप्शन एरिया पर अलग-अलग स्थान पर लगे हुए थे। वहाँ एजाज कम्युनिकेशन्स जैसे बहुत से आफिस खुले हुए थे। वहाँ पर उपस्थित लोगों को पहली नजर मे कोई भी देख कर बता सकता था कि यह जगह कलाकारों, अदाकारों व मनोरंजन से संबन्धित लोगों का केन्द्र है। हम चौथी मंजिल पर स्थित एजाज कम्युनिकेशन्स के आफिस की ओर चले गये थे। लिफ्ट से बाहर निकलते ही हमे आभास हो गया था कि हम शो-बिजनिस की सबसे प्रभावशाली कंपनी मे प्रवेश करने जा रहे है। चौथी मंजिल के एक हिस्से मे एजाज कम्युनिकेशन्स और दूसरे हिस्से मे ड्रीमवर्ल्ड फिल्म्स एन्ड डिस्ट्रीब्युटर्स का आफिस था। दोनो आफिस के बाहर सुरक्षाकर्मियों की फौज खड़ी हुई दिख रही थी। हम एजाज कम्युनिकेशन्स के आफिस मे प्रवेश करके सीधे रिसेप्शन एरिया मे चले गये थे।

आफिस का रिसेप्शन काउन्टर रौशनी मे जगमगा रहा था। उस काउन्टर के पीछे हिजाब पहने एक सुन्दर सी नवयुवती हमे अपनी ओर आते हुए देख कर मुस्कुरा कर बोली… आपके लिये मै क्या कर सकती हूँ। नीलोफर उसके करीब जाकर बोली… साहिबा यहाँ किसी से मिलने आयी है। क्या आप उसको खबर कर देंगी। कंप्युटर के स्क्रीन पर एक नजर डाल कर वह युवती बोली… सलीम साहब से उनकी मीटिंग है। आप तशरीफ रखिये। मै उनको खबर कर देती हूँ। आपने क्या नाम बताया? नीलोफर ने मेरी ओर देखा तो मैने मुस्कुरा कर कहा… नीलोफर। उसने घूर कर मेरी ओर देखा तो मैने इशारा करते हुए कहा… इनका नाम नीलोफर है। इतना बोल कर हम दोनो सामने पड़े सोफे की ओर बढ़ गये थे। वह फोन उठा कर किसी से बात करने के पश्चात काउन्टर से बाहर आकर मेरे पास आकर बोली… आप समीर साहब है? मैने नीलोफर की ओर रुख किया तो उसकी आँखें जिस अंदाज से बदली मैने तुरन्त कहा… जी। …आईये। हम दोनो उठ कर उसके साथ चल दिये थे। जैसे ही हम गैलरी मे पहुँचे तभी एक कमरे का दरवाजा खुला और एक आदमी बाहर निकल कर हमारी ओर देख कर बोला… समीर साहब, खुशाम्दीद। आईये आपका ही इंतजार हो रहा था। हम दोनो को उसके पास छोड़ कर रिसेप्शनिस्ट वापिस चली गयी थी।

कमरे मे प्रवेश करते ही मेरी नजर साहिबा पर पड़ी लेकिन वह नीलोफर को देख रही थी। …आईये तशरीफ रखिये। हम दोनो सोफे पर जाकर बैठ गये थे। आफिस के बाहर नेम्प्लेट पर सलीम चिस्ती लिखा हुआ मैने देख लिया था। सलीम चिस्ती हमारे पास सोफे पर बैठते हुए बोला… समीर साहब, साहिबा एक प्रोपोजल लेकर मेरे पास आयी है। मैने अपने व्यवासायी आवाज मे जल्दी से कहा… सलीम साहब, अगर हम इशारों मे बात न करके साफ बात करेंगें तो बेहतर होगा। मेरी बात सुन कर वह एकाएक गड़बड़ाते हुए बोला… बिल्कुल जनाब। सही फर्माया है आपने। अचानक साहिबा बोली… दूरियाँ सिरीयल के दस एपीसोड को पूरा करने के लिये मुझे सत्तर लाख रुपये की मदद चाहिये। इसके लिये मैने इनसे बात की है। अबकी बार सलीम चिस्ती बोला… अगर आप सत्तर लाख रुपये बैंक के द्वारा हमे देते है तो हम एक करोड़ की क्रेडिट लाईन दूरियाँ सिरियल के लिये खोल देंगें। …सलीम साहब मुझे आपकी लाईन का कोई अंदाजा नहीं है। यह सिर्फ हम साहिबा के लिये कर रहे है। मेरी बीवी साहिबा की बहुत बड़ी फैन है। …क्रेडिट लाईन का मतलब है कि हम दस एपीसोड की शूटिंग और एडिटिंग मे आने वाला सारा सामान उपलब्ध करायेंगें व उसमे आने वाले खर्च को एक करोड़ रुपये तक उठाने की जिम्मेदारी लेते है। …और कमाई? …यह हमारी जिम्मेदारी नहीं है। मैने साहिबा की ओर देखा तो वह अब बड़े ध्यान से मेरी ओर देख रही थी।

कुछ सोच कर मैने पूछा… चिस्ती साहब, कमाई की जिम्मेदारी किसकी होगी? …जनाब वह प्रोड्युसर की जिम्मेदारी होती है। विज्ञापन, सेटेलाईट राईट्स, ग्लोबल राईट्स व अन्य रास्तों से वह कमाई करते है। …अगर मै सही समझ रहा हूँ तो आप अपना साजो सामान को देकर उसका किराया वसूलते है और अपने लोगों को काम देकर उनके खर्च को वसूलते है। कहानीकार, निर्देशक व कलाकारों का खर्च भी आप उठाते है। यह सब खर्च आप क्रेडिट लिमिट मे रह कर करते है। …आपने ठीक फर्माया। …आप दस कैसेट प्रोड्यूसर को देकर अपने हाथ झाड़ कर बैठ जाते है। अबकी बार उसने कुछ नहीं कहा बस अपना सिर हिला दिया था। …आप अपने प्रोग्राम की कमाई का साधन भी खुद देखते है या फिर वह काम किसी और को सौंप देते है? …जी अपने प्रोग्राम के लिये हमारा अपना मार्किटिंग विभाग है। वह उस प्रोग्राम की कमाई की जिम्मेदारी संभालता है। मैने साहिबा से कहा… जो मै इनकी बात से समझा हूँ तो यह क्रेडिट लाईन देकर तुम्हें बाँध देंगें। यह खुद तय करेंगें की सामान का किराया कितना होगा और कितना पैसा वह काम करने वालो को देंगें। क्या इसके लिये तुम तैयार हो? मेरी बात सुन कर सब एकाएक कमरे मे चुप्पी छा गयी थी।

अबकी बार सलीम चिस्ती बोला… ऐसी बात नहीं है। वह कुछ बोलता उससे पहले मैने कहा… क्या मै मार्किट मे पता करके सबसे सस्ती दर पर कैमरा किराया पर लेने के लिये आजाद हूँ? एक बार वह फिर से गड़बड़ा कर बोला… समीर साहब ऐसी बात नहीं है। …क्या आप उसका खर्च देंगें? …नहीं। …तो यह कहिये कि आप सिर्फ साहिबा के अकाउन्ट मे एक करोड़ एडजस्ट करेंगें। …जी, आपने ठीक फर्माया। एक बार फिर से मैने साहिबा की ओर देख कर कहा… इस प्रोपोजल से बेहतर होगा कि यह पैसे तुम अपने अकाउन्ट मे डाल कर अपने चुनिंदा लोगों और अपने द्वारा तय किये दरों के अनुसार खर्च करो। यहाँ पर तो तुम बंध जाओगी। मेरी तो यही सलाह है बाकी तुम्हारी मर्जी है। इतना बोल कर मै पीठ टिका कर आराम से बैठ गया था। अबकी बार साहिबा ने हिचकिचाते हुए पूछा… आप मुझे क्या सलाह देंगें? …अगर सत्तर लाख रुपये का इन्हें चेक दे रही हो तो एक करोड़ रुपये की क्रेडिट लाइन के बजाय इनसे भले ही अस्सी-नब्बे लाख नगद लेना ज्यादा बेहतर है। अगर यह क्रेडिट लाइन दे रहे है तो फिर अदाकर, कलाकार, सामान और अन्य उनसे जुड़ी हुई चीजों के रेट तुम तय नहीं कर सकोगी। …समीर साहब, हम ऐसा नहीं कर सकते। हम तभी तो आपको एक करोड़ रुपये दे रहे है। …सलीम साहब, आप क्या मुझे बेवकूफ समझ रहे है। मै आपकी लाईन मे कमजोर हो सकता हूँ लेकिन पैसे के हिसाब-किताब को अच्छे से समझता हूँ। सत्तर लाख रुपये आपके अकाउन्ट मे आज जमा हो जाएँगें। आप टुकड़ों मे एक करोड़ को एक साल मे खर्च करेंगें। जरा सत्तर लाख का ब्याज जोड़ कर देखिये तो पता चल जाएगा कि आप साहिबा पर कोई एहसान नहीं कर रहे है। मेरा लाजिक सुन कर सलीम हतप्रभ हो गया था। मै उठते हुए बोला… साहिबा, यह पैसे मै तुम्हारे बैंक मे जमा करा देता हूँ। अगर तुम्हें और पैसे चाहिये तो मुझे खबर कर देना। …बैठिये समीर साहब। प्लीज काफी पी कर जाईयेगा। …सलीम साहब, मेरे पास बस समय की तंगी है। अगर आपके पास इस पैसों के लिये कोई पुख्ता सुझाव है तो बताईये अन्यथा हमे इजाजत दिजीये। तभी काफी आ गयी और हमारी बातों मे ब्रेक लगा गया था।

काफी पीते हुए मैने पूछा… सलीम साहब, सत्तर लाख की बैंक पेमेन्ट के बदले आप कितना नगद दे सकते है? …जनाब इसके लिये तो मुझे पहले किसी से बात करनी पड़ेगी। …तो ठीक है। आप बात करके बताईये। सलीम चिस्ती मेरा चेहरा देखता रह गया था। …जाईये और बात करके जल्दी से बताईये। सलीम जल्दी से उठा और कमरे से बाहर निकल गया था। नीलोफर ने पूछा… समीर, तुम क्या करना चाहते हो? …कुछ दिनो के बाद हमे नगदी की जरुरत पड़ेगी। अगर इसी बहाने साहिबा की प्रोडक्शन कंपनी खड़ी हो जाती तो इसमे क्या परेशानी है। साहिबा बड़े ध्यान से हमारी बात सुन रही थी। वह अचानक बोली… समीर, मुझे तुमसे कुछ नहीं चाहिये। इतना बोल कर वह उठ कर बाहर जाने के लिये बढ़ी लेकिन तभी सलीम चिस्ती ने कमरे मे प्रवेश करते हुए कहा… समीर साहब, थोड़ा इंतजार और करना पड़ेगा। मेरे बास यहीं आ रहे है। साहिबा को खड़ी हुई देख कर उसने पूछा… तुम कहाँ चल दी? …यहाँ मेरा क्या काम है। आप लोग बात किजिये। नीलोफर ने तुरन्त कहा… साहिबा, यह सब समीर तुम्हारे लिये कर रहे है। इसलिये तुम्हारा यहाँ होना जरुरी है। साहिबा विस्मय से नीलोफर को कुछ पल देखती रही और फिर धीरे से बैठते हुए बोली… आपकी मर्जी। हम सभी चुपचाप बैठ गये थे।

पाँच मिनट के बाद दरवाजे पर धीरे से दस्तक हुई और एक व्यक्ति ने कमरे मे प्रवेश किया तो सलीम चिस्ती तुरन्त उठ कर खड़ा होकर बोला… यह एजाज कम्युनिकेशन्स के चीफ रिटायर्ड ब्रिगेडियर सलीम नूरानी है। …यह समीर साहब है। मिलने की औपचारिकताएँ समाप्त करके नूरानी ने कहा… क्या हमारा प्रपोजल आपको पसन्द नहीं आया है? …नूरानी साहब, आपका प्रोपोजल एक तरफा है। इसमे साहिबा के लिये कुछ भी नहीं है। मुझे यही बेहतर लगता है कि सत्तर लाख रुपये का चेक के बदले आप नगद एक करोड़ रुपये हमे दे दिजिये। नूरानी तुरन्त बोला… यह मुम्किन नहीं है। अबकी बार मैने बड़े अधिकार से साथ बैठी साहिबा का हाथ पकड़ कर उठाते हुए कहा… साहिबा चलो यहाँ से। हमने बेकार अपना समय यहाँ आकर बर्बाद किया। हम तीनो जैसे ही खड़े हुए बुर्रानी तुरन्त बोला… प्लीज बैठिये। आप मेरी पूरी बात तो सुन लिजिये। …बोलिये। …समीर साहब हम आपके साथ यह डील करने के लिये तैयार है। आप हमे चेक दिजिये और हम आपको हर तीस लाख पर दस लाख की कमीशन देंगें। साहिबा के साथ सिर्फ एक बार की डील के लिये हम तैयार नहीं है। हम आपके साथ लम्बे समय के लिये संबन्ध बनाना चाहते है। इतनी देर मे पहली बार मुझे एजाज कम्युनिकेशन्स मे एक छोटी सी दरार मिली थी। साहिबा और नीलोफर मेरे जवाब का इंतजार कर रहे थे। …नूरानी साहब आपका यह प्रोपोजल मुझे बेहतर लग रहा है परन्तु इसमे साहिबा के लिये कुछ भी नहीं है। ब्रिगेडियर नूरानी ने एक बार सलीम चिस्ती की ओर देख कर कहा… साहिबा के साथ हमारी एजेन्सी तीन साल के लिये एक्सक्लूसिव करार साईन करेगी। इनके लिये एक्टिंग के आफर, पब्लिसिटी, गोल्बल और सेटेलाईट राईट्स व स्पान्सरशिप का काम हमारी एजेन्सी करेगी। सब से हम उनकी सालाना आय का बीस प्रतिशत चार्ज करते है लेकिन साहिबा से सिर्फ दस प्रतिशत चार्ज करेंगें। मैने साहिबा की ओर देखा तो वह अचरज से नूरानी का चेहरा ताक रही थी। एक पल के लिये हमारी नजर मिली तो मैने तुरन्त अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा… डील मंजूर है। ब्रिगेडियर नूरानी ने तुरन्त मुझसे हाथ मिलाते हुए कहा… कल तक पेपर्स तैयार हो जाएँगें। आप और साहिबा कल पेपर्स साईन कर दिजियेगा। …शुक्रिया। मुझे अब चलना चाहिये। कल आपको चेक मिल जाएगा। हम लोग बात करते हुए आफिस से बाहर निकल आये थे। ब्रिगेडियर नूरानी हमे लिफ्ट तक छोड़ने आया था। आईएसआई की एजाज कम्युनिकेशन्स नाम की पाईपलाइन मे मैने सेंध लगा दी थी। मुझे अब यह पता लगाना था कि वह पाईपलाईन पैसों का स्त्रोत है या फिर वितरण का संसाधन है।

होटल की कार मे नीलोफर के साथ बैठते हुए मैने कहा… साहिबा, मुझे अभी किसी से मिलना है। शाम को इस बारे मे बैठ कर आराम से बात करेंगें। साहिबा को वहीं छोड़ कर हम अनवर रियाज के आफिस की ओर चल दिये थे। …समीर, तुम्हारी योजना मुझे समझ मे नहीं आयी? …नीलोफर, अब जिन लोगों से हमे मिलना है उन्हें नगद रुपये चाहिये तो उनके लिये हमारे पास नगदी का इंतजाम होना चाहिये। एजाज कम्युनिकेशन्स के द्वारा हम नगदी का इंतजाम कर रहे है। नूरानी के लिये अपनी रणनीति के बारे मे बात करते हुए हम अनवर रियाज के आफिस पहुँच गये थे।

अपने आफिस मे अनवर रियाज हमारा इंतजार कर रहा था। …माफी चाहता हूँ जनाब, ट्रेफिक के कारण देर हो गयी। …कोई बात नहीं। आईये बैठिये। हम दोनो उसके सामने बैठ गये थे। …समीर साहब, मेरी जनरल साहब से बात हो गयी है। वह आपकी डील के लिये तैयार है। …रियाज साहब, उनके तैयार होने या न होने से मुझे कोई मतलब नहीं है। मेरे लिये यह जानना जरुरी है कि क्या आप तैयार है? एक पल रुक कर मैने कहा… कल लौटते हुए नीलोफर ने कहा कि जमीन फौज की है, डेव्लेपर फौजी फाऊन्डेशन है, प्रोजेक्ट का मालिक जनरल रहमत है और आप थर्ड पार्टी बन कर इस काम को करने जा रहे है तो हमारे पैसे की देनदारी सिर्फ आपके उपर होगी। क्या आप इस देनदारी के लिये तैयार है? …समीर साहब, मै इस डील के लिये तैयार हूँ। इतना बोल कर उसने पेपर्स मेरी ओर बढ़ा दिये थे। मै उन पेपर्स को उठा कर पढ़ने बैठ गया था। सारे करार को पढ़ने के पश्चात मैने नीलोफर की ओर देखा तो उसकी आँखों मे आत्मविश्वास और खुशी झलक रही थी। उसने अपने पर्स से पेन निकाल कर मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा… गुड इन्वेस्टमेन्ट। मैने पेन लेकर उन पेपर्स पर दस्तखत करके अनवर रियाज की ओर कर दिये थे। वह पेपर्स पर दस्तखत करके बोला… प्लीज थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा। यह पेपर्स मै रजिस्टर  करवाने के लिये कोर्ट भिजवा देता हूँ। मैने चौंक कर कहा… इस वक्त सात बजे आपके लिये कौनसा मजिस्ट्रेट बैठा होगा। …इन पेपर्स को रजिस्टर करने के लिये एक मजिस्ट्रेट अपने घर पर कोर्ट खोल कर बैठा हुआ है।

आधे घंटे के पश्चात रजिस्टर्ड करार हमारे सामने रखा हुआ था। मैने उसकी ओर चेक बढ़ाते हुए कहा… एक महीने का ब्याज काट कर पहली दस करोड़ की किस्त दे रहा हूँ। अगले महीने अगर मेरे अकाउन्ट मे ब्याज की किस्त समय पर नहीं पहुँची तो यह करार खारिज हो जाएगा। उसने चेक पर एक नजर डाल कर कहा… आपने छह महीने का ब्याज एक साथ नहीं काटा। मैने नीलोफर की ओर देख कर कहा… मेरी शरीक-ए-हयात ने पैरवी की है। उसका कहना है कि आपको काम शुरु करने के लिये पैसे की जरुरत होगी तो इसलिये एक महीने का ब्याज काट कर सारा पैसा देना उचित होगा। वैसे भी दूसरी किस्त अगर आपको चाहिये तो पहली किस्त का ब्याज तो समय पर जमा करना पड़ेगा। अनवर रियाज ने झुक कर नीलोफर को सलाम करके कहा… आपकी जर्रानवाजी है। कुछ देर बात करने के बाद जब हम उस इमारत से बाहर निकले तब नीलोफर बोली… इसी के साथ जनरल रहमत और अनवर रियाज की नस हमारे हाथ मे आ गयी है। …तुम देखती जाओ। यह डीएचए का प्रोजेक्ट अनवर रियाज और जनरल रहमत की गले की हड्डी बन कर रह जाएगा। मुझे तुम किसी टैक्सी स्टैन्ड पर उतार देना। नीलोफर ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखें नचाते हुए पूछा… तुम साहिबा के पास जा रहे हो? …हाँ। हमे नगदी के बारे मे भी सोचना है। तुम्हारा क्या ख्याल है कि उसको नगदी के लिये अपना जरिया बनाना ठीक होगा? …नहीं। समीर तुम उसको इस काम मे मत उलझाओ।  …तुम भी चलो। नीलोफर मुस्कुरा कर बोली… वह बेवकूफ मुझे अपनी सौतन के रुप मे देखती है। तुम जाओ। मै यह पेपर्स होटल के सेफ डिपाजिट मे रखवा दूँगी। टैक्सी स्टेंड देख कर मै वहीं उतर गया और नीलोफर होटल की ओर निकल गयी थी।

कुछ देर के बाद मै साहिबा के रुम मे बैठा हुआ था। …साहिबा, अब तीन साल के लिये तुम्हें कोई भी तकलीफ नहीं होगी। उनकी एजेन्सी तुम्हारा सारा काम देखा करेगी। वह किसी सोच मे गुम थी। मै उसके पास बैठ कर धीरे से उसकी कोमल बाँह को सहलाते हुए बोला… तुम इस करार से खुश नहीं हो? उसने नजरें उठा कर मेरी ओर देखा तो उसकी झिलमिलाती हुई आँखों को देख कर तुरन्त उसे अपनी बाँहों मे जकड़ कर बैठ गया। …ऐसा क्या हो गया? वह कुछ देर चुप रही और फिर धीरे से बोली… समीर, मै बारह साल की थी जब पाकिस्तानी फौज ने खैबरपख्तूनख्वा मे जर्बे मोमिन किया था। हजारों मरने वालों पश्तूनों मे मेरे अब्बा भी थे। मेरी अम्मी मुझे लेकर करांची मे मामू के पास आ गयी थी। मेरे मामू फिल्मों मे सेट बनाने के कारीगर थे। मेरी अम्मी देखने मे सुन्दर थी तो पंजाबी फिल्मों मे उन्हें एक्स्ट्रा के रोल मिलने लगे थे। वहीं से मेरा भी फिल्मी सफर आरंभ हुआ था। मेरी अम्मी ने मुझे हिरोइन बनाने के लिये अपने प्रोड्युसरों और दूसरी फिल्मी हस्तियों के सामने परोसना शुरु कर दिया था। मैने जवानी मे कदम भी नहीं रखा था कि हिरोईन बनने की चाहत ने मुझे औरत बना दिया। छोटे-छोटे फिल्मों मे रोल करते हुए आज मै ड्रामा सिरियल की सुपरस्टार बन गयी। आज सलीम चिस्ती के कमरे मे बैठ कर अपने फिल्मी सफर को याद करके मुझे अपने उपर शर्म आ रही थी। सिर्फ तुम्हारे साथ होने के कारण आज चिस्ती मुझ पर हाथ रखने की हिम्मत नहीं कर सका वर्ना उसके कमरे मे अकेली लड़की के जाने का मतलब सभी को पता है। इतना बोल कर वह सिर झुका कर बैठ गयी थी।

मैने धीरे से कहा… साहिबा, आज के बाद इस लाईन कोई भी तुम्हारे साथ बदतमीजी करने की जुर्रत नहीं कर सकेगा। कल तक सब को पता चल जाएगा कि साहिबा के पीछे कौन खड़ा है। वह बिलखते हुए बोली… मै तुम्हें अपने पीछे नहीं बल्कि तुम्हारे साथ खड़ा होना चाहती हूँ। …साहिबा, तुम जिस लाइन मे हो उसमे तुम्हारा नाम किसी के साथ भी जुड़ने से तुम्हारा फिल्मी कैरियर चौपट हो जाएगा। वह मेरी बात की सच्चाई जानती थी। वह मुझे अपनी बाँहों मे जकड़ कर कुछ देर रोती रही थी। मै उसे बताने मे झिझक रहा था कि उसके साथ यह मेरी आखिरी रात थी। उसकी भीगी हुई पल्कों पर एक चुम्बन से शुरु हुआ और फिर कुछ देर के बाद दुनिया को भुला हम एक दूसरे के साथ गुथ गये थे। आज हमारे एकाकार मे वह पहले जैसी तेजी नहीं थी। हम एक दूसरे की जिस्मानी जरुरत को समझने की कोशिश करते हुए अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे थे। इस एकाकार मे बस एक फर्क था कि मुझे कल का पता था और वह अपने आने वाले भविष्य के सपने संजोने मे लगी हुई थी। उस रात उसने टूट कर अपनी मोहब्बत मुझ पर लुटायी थी। जब थक कर चूर हो गये तब मैने उसे अपने आगोश मे बाँध कर धीरे से कहा… साहिबा, कल मै जा रहा हूँ। यह सुन कर उसकी थकान के नशे मे मुंदी हुई खुल गयी थी। वह कुछ पल चुप रही और फिर बोली… मुझे भी अपने साथ ले चलो। मैने अभी उनसे करार नहीं किया है। मै आजाद हूँ। …नहीं। अभी तो तुम्हें बहुत सी नयी बुलंदियों को छूना है। अब से हमारा मिलना मुश्किल होगा परन्तु अगर मेरी याद आये तो तुम मेरे पास आ जाना वर्ना मै तुम्हारे पास आ जाउँगा। उस रात हम काफी देर तक बात करते रहे थे।

होटल पहुँच कर नीलोफर से सामना हो गया था। मेरे सामने बैठते हुए उसने पहला सवाल दाग दिया… कल की बात अधूरी रह गयी थी। यह नगदी का क्या चक्कर है? …जानेमन, इत्तेफाक से हमे एजाज कम्युनिकेशन्स मे पाँव रखने का मौका मिला है। क्या मेहसूद और वजीरी की तंजीमो को आर्थिक मदद चेक से दोगी? मेरा सवाल सुन कर एकाएक उसके हावभाव बदल गये और वह ध्यान से मेरी बात सुनने लगी। …नीलोफर, यह तो तुम जानती को कि अपनी मुहिम को कामयाब करने के लिये हमे सभी तंजीमो को आर्थिक मदद देनी पड़ेगी। हर बार बैंक से बड़ी रकम नगद निकालने से एजेन्सियों की नजरों मे आने का खतरा है। नूरानी को चेक देकर उससे बड़ी रकम की नगदी आसानी उपलब्ध हो जाएगी। …तुम तो एजाज कम्युनिकेशन्स पर नकली नोट चलाने की बात कर रहे थे। क्या तंजीमों को नकली नोट देने मे खतरा नहीं है? …नीलोफर, उन्हें नकली नोट बुर्रानी देगा तो खतरा उसके लिये होगा। अब हमे सीधे लड़ाई लड़ने की जरुरत नहीं है। यह कोई जरुरी नहीं कि बुर्रानी हमे नकली नोट देगा। यह मेरा अनुमान है परन्तु इस चाल से इतना तो पता चल जाएगा कि एजाज कम्युनिकेशन्स आईएसआई के नकली नोट के वितरण माध्यम है कि नहीं? …उससे हमे क्या फायदा? …अगर मेरा अनुमान सही साबित हो गया तो उनके जमे-जमाये कारोबार को उन्हीं की पाली हुई तंजीमो के द्वारा ध्वस्त करने से बेहतर क्या कोई और रणनीति हो सकती है। मेरी बात सुन कर नीलोफर के चेहरे पर एक कातिल मुस्कान तैर गयी थी।