रविवार, 30 अक्तूबर 2022

  

काफ़िर-10

 

कुछ ही दिनों के इंटेल रिपोर्ट्स का गहन अध्ययन करके एक बात मुझे समझ मे आ गयी थी कि सीमा पार से पैसे, हथियार और जिहादी तो बीते सालों से लगातार आ ही रहे थे परन्तु अब स्थानीय लोगो की सहभागिता भी इन कट्टरपंथी तंजीमो के साथ गहरी होती चली जा रही थी। वहाबी और देवबंधी मौलवी, इस्लामिक कट्टरपंथी और वामपंथी विचारधारा रखने वाले लोग भारत के अन्य राज्यों से यहाँ आकर स्थानीय लोगो मे अपनी जड़े फैला रहे थे। आर्मी की इंटेल रिपोर्ट किसी नाम विशेष पर आधारित होती थी परन्तु उन रिपोर्ट्स मे सभी छोटी-छोटी सूचनाओं को जोड़ कर अगर बड़े चित्र मे परिवर्तित किया जाता तो राज्य की स्थिति बड़ी भयावह होती हुई लग रही थी। श्रीनगर मे आईसिस के झँडे इस बात की ओर इशारा कर रहे थे कि अब जिहादी सीमा पार से ही नहीं अपितु इराक और सीरिया से पाकिस्तानी तंजीमों की मदद से कश्मीर मे घुसपैठ कर रहे थे। इंटेल की सूचनाओं मे उस पाकिस्तानी रिपोर्ट का भी जिक्र था जिसे जनरल हक ने तैयार किया था। उस रिपोर्ट को देख कर मैने जब उन छोटी-छोटी घटनाओं को गहरायी से देखना आरंभ किया तो मुझे जनरल हक की रिपोर्ट अक्षरशः कार्यान्वित होती हुई लग रही थी। सुरक्षा एजेन्सियों के लिये बड़ी विकट समस्या उत्पन्न हो गयी थी।

इसी बीच एक शाम को मेरे साथ अनहोनी घटना घट गयी थी। नमाजी के वेष मे जुमे की नमाज के बाद मै वापिस कैंप की ओर लौट रहा था। मुख्य सड़क को छोड़ कर कैंप की ओर एक छोटा कच्चा रास्ता खेतों के बीच से होकर निकलता था। उस रास्ते पर हर खेत के साथ छोटे इक्का-दुक्का कच्चे मकान बने हुए थे। मेरा अनुमान था कि खेत पर काम करने वालों का परिवार उन मकानों मे रहता होगा। उस शाम अभी अंधेरा पूरी तरह से नहीं हुआ था कि मेरी नजर कुछ लोगों पर पड़ी जो एक कच्चे मकान मे घुस रहे थे। सभी ने अपना चेहरे पर कपड़ा और जिस्म को ऊनी चादर से ढक रखा था। सर्दी की शुरुआत हो चुकी थी तो यह पहनावा अजीब नहीं था परन्तु जिस माहौल को कुछ देर पहले देख कर लौटा था उसके कारण मन कुंठित था। एक ओर प्रशासन ने हमारे हाथ बाँध दिये थे और दूसरी ओर नये-नये जिहादी कन्धे पर राइफलें टांग कर किसी भी घर मे घुस कर गरीब परिवारों का शोषण करते हुए दिख जाते थे। उनको घर मे घुसते हुए देख कर मै चलते-चलते एक पल के लिये रुक गया। तभी उस कच्चे मकान से एक चीख की आवाज मेरे कानो मे पड़ी तो मैने तुरन्त पास के खेत मे छलांग लगा दी और दूर से उस मकान पर निगाहें गड़ा कर बैठ गया था।

अंधेरा हो चुका था। कुछ सोच कर मै पेट के बल सरकता हुआ झाड़ियों की आढ़ लेते हुए उस मकान के करीब पहुँच गया था। धमकी भरी आवाजें अन्दर से साफ सुनाई दे रही थी। उनकी भाषा से साफ था कि वह स्थानीय लोग नहीं थे। मै अजीब सी उलझन मे फँस गया था। मेरे पास कोई हथियार भी नहीं था। मै अपने अगले कदम के बारे मे सोच रहा था कि तभी एक आदमी मकान से निकल कर खेत के किनारे झाड़ियों की ओर जाता हुआ दिखायी दिया तो मै दबे पाँव उसके पीछे चल दिया। झाड़ियों मे शायद वह अपनी प्राकृतिक जरुरत के लिये गया था। मै सांस रोक कर बैठ गया। वह जैसे ही फारिग हो कर खड़ा हुआ मैने उस पर छलांग लगा कर धर दबोचा और घसीटते हुए उस जगह से दूर ले गया। दो तीन सधे हुए हाथ पड़ते ही उसके कस बल ढीले पड़ गये थे। वह जमीन पर पड़ा हुआ करहा रहा था। मैने झुक कर उसके चेहरे पर बंधा कपड़ा हटाया तो उसका चेहरा देख कर मै चौंक गया क्योंकि अंधेरे मे भी वह शक्ल से मुझे बच्चा लग रहा था। उसकी राईफल कब्जे मे लेकर मैने पूछा… अन्दर क्या चल रहा है? वह चुपचाप पड़ा रहा तो एक बार फिर से मेरी ठोकर उसकी पसली पर पड़ी तो उसने जल्दी से कहा… हम सिर्फ आज की रात गुजारने के लिए आये है। उसकी आवाज सुनते ही मुझे झटका लगा तो मैने उसके सिर पर बन्धा हुआ कपड़ा खींचते हुए घुर्राया… तू कौन है बे? पगड़ी के खुलते ही उसके लम्बे बालों ने उसके चेहरे को ढक दिया था।

मैने जल्दी से उसे बिठाया और उसके चेहरे पर से बाल हटा कर पूछा… लड़की तू इनके साथ यहाँ क्या कर रही है। वह सिर झुकाये बैठी रही तो मैने धमकाते हुए कहा… साफ-साफ बोल कि तुम लोग कौन हो और यहाँ क्या कर रहे हो। अगर नहीं बोली तो तूझे फौज के हवाले कर दूँगा। अबकी बार वह डरते-डरते बोली… हम किश्तवार जा रहे है। …कितने लोग हो? …आठ। …कहाँ से आयी है? कुछ पल चुप रही फिर धीरे से बोली… जफरवाल। मैने चौंक कर कहा… पाकिस्तान से? वह बोली कुछ नहीं बस उसने अपना सिर हिला कर हामी भर दी थी। मै चुपचाप उसके साथ वही जमीन पर बैठ गया था। कुछ सोच कर मैने कहा… जल्दी से अपने कपड़े ठीक कर। किश्तवार मे किसके पास जा रहे हो? …पता नहीं। …कल सुबह निकल रहे हो? उसने एक बार फिर से सिर हिला दिया। …क्या नाम है तेरा? …आस्माँ। कुछ सोच कर मैने अबकी बार नर्म आवाज मे कहा … देख आस्माँ, मै तुझे छोड़ रहा हूँ। उसकी राईफल  उसके हाथ मे थमा कर मैने कहा… इस बात का जिक्र किसी से मत करना वर्ना तू फालतू मे मारी जाएगी। चल जल्दी से निकल यहाँ से। वह कुछ पल मुझे देखती रही फिर झाड़ियों से निकल कर उसने मकान की ओर सरपट दौड़ लगा दी थी। मै चुपचाप वहाँ से अपने कैंम्प की ओर निकल गया था।

अपने सीओ के पास पहुँच कर मैने रात को ही सारी रिपोर्ट उसके सामने रख दी थी। …समीर, अब क्या करने की सोच रहे हो? …सर, आठ लोग है। सभी हथियारों से लैस है। हमारे डायरेक्ट एक्शन से उस मकान मे रहने वाला परिवार मारा जाएगा। मेरा ख्याल है कि जब सुबह वह मकान छोड़ कर बाहर निकले तब हमारी कार्यवाही आरंभ होनी चाहिए। …गुड, यही ठीक रहेगा। अभी अपने दो सैनिक उस मकान पर नजर रखने के लिये तैनात कर दो। …जी सर। सीओ से बात करके मै अपनी टीम के साथ बैठ गया था। एक घन्टा चर्चा करने के बाद मेरी टीम ने रात को ही उस मकान की घेरा बन्दी कर ली थी। जबसे हमारी कार्यवाही पर अंकुश लगा था तभी से मेरी टीम कुंठित बैठी थी। किस्मत से आज मौका मिला था तो सभी साथी इस वक्त पूरे जोश मे थे। सुबह चार बजे कुछ लोग मकान से निकले और झाड़ियों की ओर फारिग होने चले गये। मैने अपने टू-वे स्पीकर पर जल्दी से कहा… नो एक्शन। लाई लो। उनके लौटने के बाद फिर चार लोग झाड़ियों मे फारिग होने के लिये चले गये थे। सुबह की पहली किरण निकलते ही उस मकान से एक-एक करके आठ लोग निकले और चार-चार के झुन्ड मे बात करते हुए मुख्य सड़क की ओर चल दिये थे।

जैसे ही सब खुले खेत मे पहुँचे मैने जल्दी से स्पीकर पर कहा…एक्शन। नायक रघुबीर गुर्जर ने एक हवाई फायर किया और लाउडस्पीकर पर चिल्लाया… हाल्ट। सभी जमीन पर हाथ फैला कर लेट जाओ। तुम घेर लिये गये हो। अगर भागने या गोली चलाने की कोशिश की तो मारे जाओगे। रिपीट…एक बार फिर से रघूबीर ने वही बात दोहरा दी थी। पहले फायर की आवाज से आठों अपनी जगह पर ठिठक कर रुक गये थे। उस घोषणा के बाद किसी ने हिम्मत नहीं दिखायी और चुपचाप हाथ उठा कर खड़े हो गये थे। मेरी टीम तुरन्त हरकत मे आयी और सभी को इकठ्ठा किया और उनके हथियारों को अपने कब्जे मे लेकर उन्हें वहीं खेत मे एक किनारे मे बिठा दिया। जब मेरी टीम उनको पकड़ने मे व्यस्त थी तब मै उस मकान मे बंधकों से मिलने चला गया था। छ्ह लोगों का परिवार एक कोने मे डरा हुआ बैठा हुआ था। एक आदमी के सिर पर कपड़ा बंधा हुआ था। मुझे देख कर एक बार तो वह सभी आतंकित हो उठे थे। …बोयज पूरे कमरे की तलाशी लेकर इन सब को बाहर लेकर आओ। इतना कह कर मै उन आठों घुसपैठियों के पास चला गया। सबके चेहरों से कपड़ा हट चुका था। हमारे सिर पर सजी हुई ‘रेड बेरट’ का खौफ सबकी नजरों मे झलक रहा था।

मेरी नजरें आस्माँ को तलाश कर रही थी। रात के अंधेरे मे मैने उसका चेहरा साफ तो नहीं देख सका था परन्तु अन्दाजन हर चेहरे को देख कर उसे पहचानने की कोशिश कर रहा था। तभी गुरप्रीत ने मुझसे कहा… सर, इनका क्या करना है? …कुछ बताया इन्होंने? …सर, यह लोग किश्तवार जा रहे थे। …इनके पेपर्स चेक किये? …सभी हीरापुर के है। उसकी बात सुन कर मै चौंक गया था। आस्माँ ने बताया था कि वह सब जफरवाल से आये थे। यह सभी तो स्थानीय लोग निकले। उनमे से एक आदमी आगे बढ़ कर बोला… जनाब हमसे क्या खता हो गयी है जो आपने हमे रोक रखा है। हमे जाने दिजिए। मुझे कुछ समझ मे नहीं आ रहा था। उनकी तलाशी मे हमे कुछ नहीं मिला था। मै सबके चेहरे को देखते हुए आगे बढ़ता चला गया। आखिरकार मैने कहा… इन सबको स्थानीय पुलिस के हवाले कर दो। फिलहाल वही ठीक रहेगा। मै अभी बोल कर मुड़ा ही था कि तभी एक चेहरा मुझे कुछ जाना पहचाना सा लगा तो मै उसकी ओर बढ़ गया। मुझे अपनी ओर आते देख कर उसके चेहरे का रंग उड़ गया था। मैने झपट कर उसको गुद्दी से पकड़ कर घसीटते हुए दूर ले गया और फिर उसे धक्का देकर धीरे से कहा… आस्माँ। यह सुनते ही आश्चर्य से उसकी आँखें फैल गयी थी।

वह जमीन पर पड़ी हुई मुझे विस्मय से देख रही थी। …मुझे पहचाना। कल रात को मिले थे। मेरे चेहरे पर वार पेन्ट और जिस्म पर कोम्बेट डंगरी थी। मेरी आवाज सुन कर वह घिघिया कर बोली… आप। मैने डपटते हुए पूछा… यह क्या चक्कर है। यह तो अपने आपको हीरापुर का बता रहे है। वह जल्दी से बोली… खुदा के लिये हमे जाने दो। रात को उन्होंने यहाँ आने से पहले अपने साथ लाया हुआ सारा सामान उधर पेड़ के पास झाड़ियों मे छिपा दिया था। तभी गुरप्रीत मेरे पास आकर बोला… सर, पुलिस को इसकी खबर दे दी गयी है। वह इनको लेने आ रहे है। इतना बोल कर वह चला गया था। वह गिड़गिड़ा कर बोली… साहब, हमे पुलिस को मत सौंपियें। उसकी आवाज मे कुछ ऐसा था कि मै सोचने के लिये मजबूर हो गया था। सबकी नजर हम पर जमी हुई थी। मैने उसके गुद्दी को पकड़ कर झिंझोंड़ते हुए धीरे से पूछा… इनमे से तुम्हारा कोई अपना है? उसने जल्दी से कहा… मेरे अब्बा और मेरी बहन। …इनमे से तुम्हारी तरह और कोई लड़की है? …नहीं। मैने उसकी कमर पर लात जमा कर जमीन पर धकेल दिया और आगे बढ़ गया। उसको जमीन पर गिरते हुए देख कर उन लोगों मे से दो लोग दौड़ कर उसकी ओर भागे लेकिन तभी मेरे एक साथी ने उन्हें वहीं रोक दिया था। मैने उसको इशारा किया तो वह दोनो आस्माँ की ओर चले गये और मै टहलते हुए आस्माँ की बतायी हुई जगह की ओर चल दिया। तब तक पुलिस भी पहुँच गयी थी। आस्माँ और उसके साथ दोनो कुछ दूर पर जमीन पर बैठे हुए मुझे देख रहे थे। जैसे ही मै पेड़ के पास पहुँचा मेरी नजर झाड़ियों मे पड़े हुए आठ स्कूल बैग्स पर पड़ी तो मैने अपने स्पीकर पर कहा… सावधान। विजय और शेखर तुरन्त मेरे पास पहुँचों। कुछ ही देर मे मेरे साथी सभी बैग को उठा कर सबके सामने पहुँच गये थे। पुलिस अभी भी अपनी तफतीश मे व्यस्त थी।

विजय की आवाज मेरे कान पर लगे हुए माईक्रोफोन पर सुनायी दी… सर, इन बैग्स मे ड्रग्स के साथ आरडीएक्स, सेम्टेक्स के पैकेट के साथ कुछ छोटे हथियार भी है। यह सुनते ही मेरी टीम फौरन चौकन्नी हो गयी थी। अब यह केस पुलिस के हाथ से निकल गया था। …गुरप्रीत, पुलिस को दफा करो और सभी को अपने कब्जे मे ले लो। उन तीनो को वहीं बैठे रहने देना। अभी मुझे उनसे कुछ पूछ्ताछ करनी है। अगले कुछ मिनट पुलिस को दफा करने मे खराब हो गये थे। उनके जाने के बाद मैने अपनी टीम से कहा… रघुबीर सभी जब्त किया हुआ सामान और लोगों लेकर कैंम्प चले जाओ। कुछ ही मिनटों मे सबको ट्रक पर सामान के साथ लेकर मेरी टीम चल दी थी। मै अपने साथ जीप मे आस्माँ, उसके अब्बा और उसकी बहन को लेकर उनके पीछे चल दिया। …आस्माँ बताओ अब क्या करना है। इन लोगो से तो अब फौज पूछ्ताछ करेगी। तीनो को तो जैसे साँप सूंघ गया था। किसी के मुँह से आवाज नहीं निकल रही थी। एकाएक जैसे ही हमारा ट्रक कैंम्प की ओर मुड़ा तो मैने एक किनारे मे अपनी जीप खड़ी करके दोबारा पूछा… आस्माँ जल्दी से बताओ तुम क्या चाहती हो? उसने एक बार अपने अब्बा की ओर देखा और फिर धीरे से बोली… खुदा के लिये हमे जाने दे। …कहाँ जाओगी? अबकी बार उसके अब्बा ने कहा… साहब इसको आप रख लो और हम दोनो को यहाँ से जाने दो। पहली बार मे उसकी बात मुझे समझ नहीं आयी परन्तु जैसे ही उसकी बात मुझे समझ मे आयी तो मै तुरन्त जीप से उतर कर भड़कते हुए बोला… बड़े मियाँ तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है। यह तुमने कैसे सोच लिया? मुझे भड़कता देख कर तीनों हाथ जोड़ कर खुदा का वास्ता देने लगे थे।

अपने गुस्से को जल्दी से काबू मे करके मैने कहा… सबसे पहले यह पगड़ी और नकाब वगैराह हटा कर इंसान बन जाओ। तीनो ने जल्दी से पगड़ी हटाई और जिस्म पर लादे हुए कम्बल को अलग करके बैठ गये थे। पहली बार मैने आस्माँ को उसके सही स्वरुप मे देख कर कहा… कल चेहरे पर ज्यादा चोट तो नहीं लगी। पहली बार वह मुस्कुरायी और जल्दी से सिर हिला कर मना करते हुए बोली… मेरी पसली मे चोट लग गयी थी। मैने बड़े मियाँ की ओर रुख किया… आपकी बेटी के कारण हमे आज कामयाबी मिली है इसीलिये मै आप सभी को छोड़ने की सोच रहा था। आपकी बेटी को अपने पास रखने के लिये नहीं बल्कि आप तीनो को उन जिहादियों से बचाने के लिये अलग किया था। वह बूढ़ा बाप चुपचाप सुनता रहा और फिर जीप से उतर कर बोला… साहब, बड़ी मुश्किल से उन दरिंदों से इन्हें बचा कर लाया हूँ। खुदा के लिये मेरी इतनी मदद कर दिजीये कि हम सही सलामत किश्तवार पहुँच जाये। वहाँ पर हमारा पूरा परिवार है। …बड़े मियाँ कुछ पैसे है आपके पास? …जनाब, सब कुछ तो उनके पास रह गया है। एक नजर आस्माँ पर डाल कर उसकी बहन से पूछा… तुम दोनो मे बड़ी कौन है? …मै। …क्या नाम है तुम्हारा? अबकी बार उसने शर्मा कर कहा… जन्नत। दोनो देखने मे सुन्दर थी परन्तु ऐसा लग रहा था कि जैसे उन्होंने कई दिन से अपना मुँह भी नहीं धोया था। उन सबके चेहरे पर मैल की परत चड़ी हुई थी और रुखे बाल बेतरतीबी से उलझे हुए थे।

मैने उस बूढ़े से पूछा… तुम लोग जफरवाल कैसे पहुँच गये जब कि तुम्हारा परिवार किश्तवार मे है? उस बूढ़े ने बताया… हम बक्खरवाल कबीले से है। जफरवाल हमारे कबीले का पुश्तैनी जिला है। पिछले कुछ साल से हमारे लोग दो और तीन के समूह मे ऐसे ही सीमा पार करके किश्तवार और उत्तरी कश्मीर मे जाकर बसते जा रहे थे। कभी अफीन और चरस के बदले हमे सीमा पार करने का मौका मिल जाता था और कभी परिवार की एक लड़की को उन दरिंदों के हवाले करनी पड़ती थी। मुफलिसी और बढ़ती हुई भुखमरी के कारण वहाँ से सब लोग इधर की ओर आ रहे थे। …तो बड़े मियाँ तुमने किसका सौदा किया था? वह बूढ़ा तो कुछ नहीं बोला लेकिन जन्नत ने कहा… इन्होंने मुझे उस जल्लाद मंसूर के हवाले किया था। जन्नत पर एक नजर डाल कर मैने आस्माँ की ओर देख कर कहा… इसीलिये बड़े मियाँ अब तुमको मेरे हवाले कर रहे थे। मैने उस वृद्ध के कन्धे पर हाथ रख कर कहा… बड़े मियाँ आपकी दोनो बेटियाँ आपको मुबारक हो। जल्दी से जीप मे बैठो। यह कह कर मै ड्राईविंग सीट पर बैठ गया और फिर उनके बैठते ही मैने कठुआ शहर की ओर जीप मोड़ दी थी। कुछ ही देर मे हम कठुआ के बस स्टैन्ड के बाहर पहुँच गये थे। अपने पर्स से कुछ नोट निकाल कर जन्नत के हाथ मे रखते हुए मैने कहा… तुम बड़ी तो यह पैसे तुम्हें दे रहा हूँ। यहाँ से किश्तवार की बस मिल जाएगी। अपने अब्बा और बहन को लेकर किश्तवार चली जाना। अगर किसी मुश्किल मे पड़ जाओ तो मुझे खबर कर देना। यह कह कर मैने एक कागज पर अपना फोन नम्बर लिख कर उसे पकड़ाते हुए धमकाया… अगर फिर तुम मे से किसी को सीमा के आसपास देख दिया तो अबकी बार देखते ही गोली मार दूँगा। इतना बोल कर उन तीनो को वहीं बस स्टैंड के बाहर छोड़ कर मैने जीप वापिस घुमायी और अपने कैंप की ओर चल दिया था।

कैंम्प मे पकड़े गये लोगो से पूछताछ चल रही थी। किसी ने मुझसे उन तीनो का जिक्र नहीं किया परन्तु इतना बता दिया कि पकड़े गये लोगो से घुसपैठ के नये रास्ते का पता चल गया है। पहली बार हमारी फोर्सेज को बार्डर फेन्स के नीचे से सुरंग द्वारा घुसपैठ करने का पता लगा था। मै अपनी रिपोर्ट तैयार करने के लिये चला गया था। शाम तक पकड़े हुए सभी घुसपैठियों को पूछताछ के एमआई के हवाले कर दिया गया था। एक बार फिर से हमारी रोजमर्रा की ड्रिल और ट्रेनिंग आरंभ हो गयी थी। बाकी का सारा दिन मेरा आफिस मे इंटेल रिपोर्ट्स पढ़ने मे निकल जाता था। ऐसे ही हमारे दिन बीत रहे थे।

एक दिन कुछ सोच कर मैने अपने विचार कागज पर लिखने आरंभ कर दिये और अपनी समझ के अनुसार क्या करना चाहिए वह सुझाव भी उसमे जोड़ना आरंभ कर दिया था। दो महीने के अथक परिश्रम के बाद मैने एक रिपोर्ट- “हक डाक्ट्रीन: सामरिक प्रत्युत्तर”  तैयार कर दी थी। कुछ सोच कर वह रिपोर्ट लेकर मै अपने सीओ से मिला और उनके हाथ मे वह रिपोर्ट देकर मैने कहा… जनाब यह मैने तैयार की है। आप इसे एक बार पढ़ कर देख लें। अगर आपको इसमे कुछ काम की चीज लगती है तो आप इसे आगे बढ़ा दीजिएगा अन्यथा यह मुझे वापिस कर दीजिएगा। सीओ ने अपने हाथ मे रिपोर्ट लेकर तौलते हुए कहा… समीर इतना लिखने का तुम्हें समय कैसे मिल गया। मुझे लगता है कि तुम ड्रिल वगैराह मे भाग नहीं ले रहे हो। …सर आप बाहर जाने नहीं दे रहे तो क्या करता। आपने हमे एक्शन से बाहर रखा हुआ है तो मैने यह तैयार कर दिया है। …चलो मै पढ़ कर देखता हूँ कि तुमने कितनी मेहनत की है। मै उनके आफिस से बाहर निकल कर अपने साथियों के साथ जा कर बैठ गया था। 

दक्षिण जम्मू और कश्मीर के हिस्से को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी हमारी टुकड़ी पर डाली गयी थी। मै  अपनी टीम के साथ सीमा पर स्थानीय लोगो की पहचान और फौजी चौकियों की स्थिति की जानकारी इकठ्ठी करने मे जुट गया था। जब भी पुलिस अन्यथा पैरामिलिट्री फोर्स की आतंकवादियों से मुठभेड़ होती तब हमे तुरन्त उनकी सहायता के लिये जाना पड़ता था। सुबह से शाम तक हम किसी भी क्षण निकलने के लिये तैयार रहते थे लेकिन अब ‘रेड बेरट’  टीम  को बुलाने के लिये कोई सुरक्षा एजेन्सी तैयार नहीं थी। अगर किसी इमर्जेन्सी मे हमे बुलाना भी पड़ भी जाता तब भी स्टैंड बाय के तौर पर रखा जाता था। पहले पैरा मिलिट्री के लोग ही आगे रहते और जब वह आतंकवादियों को काबू करने मे विफल रहते और जब उनकी ओर से फायरिंग आरंभ हो जाती तभी हमे आगे बढ़ने के लिये कहा जाता था। हमारी कार्यवाही आरंभ उनके इशारे पर जरुर होती थी परन्तु कार्यवाही की समाप्ति हम पर निर्भर करती थी। हमेशा हमारी कार्यवाही का अंत आतंकवादियों की मौत से होता था।

हमारा ज्यादातर समय अपने कैंम्प मे निकल रहा था। इंटेल रिपोर्ट्स का आंकलन और दक्षिण कश्मीर सेक्टर के भूगोल का सर्वे करके किसी तरह हम अपने आप को व्यस्त रख रहे थे। ऐसे ही एक दिन सीआरपीएफ के दल से हमे वायरलैस पर खबर मिली की उनकी टीम लखनपुर से बारह मील जंगलों मे आतंकवादियों की भारी फायरिंग के मध्य फँस गयी है। उनके तीन जवान हताहत और कप्तान साहब घायल हो गये है। तुरन्त मदद के लिये उन्होंने फ्री फ्रिक्वेन्सी पर यह सूचना दी थी। मैने जल्दी से कुअर्डिनेट्स नोट किये और कोड रेड का सिगनल देकर तुरन्त अपनी टीम को लेकर हेलीपेड की ओर चल दिया था। कोड रेड का अर्थ इमर्जेन्सी आप्रेशन का आरंभ होना था जिसके लिये मुझे सीओ को रिपोर्ट करने की जरुरत नहीं थी। स्टैंड बाय पर खड़े हुए हेलीकाप्टर पर सवार होकर तुरन्त दिये गये कुअर्डिनेट्स की दिशा मे चल दिये थे। मुश्किल से बीस मिनट मे हम उस स्थान पर पहुँच गये थे। रास्ते मे ही मैने अपने साथियों को आप्रेशन की विस्तृत जानकारी देते हुए आज की कार्यवाही समझा दी थी। यह रेस्क्यू आप्रेशन था सो हमारी पहली प्राथमिकता उन सिपाहियों को वहाँ से सुरक्षित निकालने की थी।

हेलीकाप्टर के पहले चक्कर मे हमने नोट कर लिया था कि फायरिंग का दायरा कितना बड़ा था। नायक रघुबीर को हवाई मदद का काम सौंप कर उस दायरे से कुछ दूरी पर अपने आठ साथियों को लेकर हम जमीन पर उतर गये थे। पहाड़ी उबड़-खाबड़ रास्ता होने के कारण हेलीकाप्टर जमीन पर नहीं उतर सकता था इसीलिये हमे रस्सी से स्लाइड करते हुए नीचे उतरना पड़ा था। अगले पाँच मिनट मे जमीन पर उतर कर नक्शे पर दिखाते हुए अपने आठ साथियों को निर्देश देकर मै आगे बढ़ गया था। सूचना मिलने और एक्शन आरंभ होने मे मुश्किल से तीस मिनट से कम लगे थे। उनके चक्रव्युह के सबसे मजबूत मोर्चे पर हमने पीछे से हमला आरंभ किया था। हेलीकाप्टर से ग्रेनेड अटैक और हमारी ओर से सधी हुई फायरिंग के सामने उस मोर्चे को ध्वस्त करने मे हमे बीस मिनट से ज्यादा नहीं लगे थे। उनकी हेवी मशीन गन पर कब्जा होते ही आतंकवादी पीछे हटने पर मजबूर हो गये थे। अब उनकी मशीन गन ने उन पर ही फायर करना आरंभ कर दिया था। कुछ ही मिनट की सधी हुई फायरिंग से उनका चक्रव्युह छिन्न-भिन्न होकर बिखर गया था। तीन साथियों को उस मशीन गन पर छोड़ कर अपने साथ पाँच सैनिकों को लेकर हम उस चक्रव्युह की परिधि पर धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए पीछे हटते हुए जिहादियों की सफाई करने मे जुट गये थे।

तीन सैनिक एक दिशा मे और अपने साथ एक सैनिक को लेकर विपरीत दिशा पकड़ कर मैने कोम्बिंग आप्रेशन आरंभ कर दिया था। कुछ ही देर मे चक्रव्युह को छोटा करते हुए एक-एक करके जिहादियों को जन्नत की ओर डिस्पैच करते हुए हम एक घंटे मे सीआरपीफ की टीम के करीब पहुँच गये थे। अभी भी एक ओर से रुक-रुक कर फायरिंग हमारी दिशा मे हो रही थी। मैने अपने साथियों को फायरिंग रोकने का इशारा किया और फायरिंग के स्थान की पहचान करके अपने दो सैनिको को उस थ्रेट को समाप्त करने के लिये भेज कर दिया। अपने बाकी साथियों को लेकर मै सीआरपीफ की टीम की ओर बढ़ गया गया था। वायरलैस आप्रेटर घायल अवस्था मे एक चट्टान की आढ़ मे मिल गया था। उसने बताया था कि एक सूचना के आधार पर उनकी आठारह सिपाहियों की टुकड़ी इस इलाके मे कोम्बिंग आप्रेशन के लिये आयी थी। यहाँ पहुँच कर अचानक उनकी टुकड़ी पर फायरिंग शुरु हो गयी थी। देखते-देखते जब तक वह मोर्चा संभालते तब तक उनको चारों दिशा से घेर लिया गया था। मै उससे हालात समझने की कोशिश कर रहा था कि तभी मेरे कान मे आवाज सुनाई दी… अल्फा थ्रेट ओवर। …फौरन सीआरपीएफ के अठारह सिपाहियों की तलाश करो और घायलों का विवरण दो। ओवर। इतनी बात करके मैने उस आप्रेटर को सहारा देकर खड़ा किया और फिर एक साफ स्थान देख कर उसे बिठा कर नुकसान का आंकलन करने के लिये चल दिया।

आधे घंटे के बाद सीआरपीफ टीम की पाँच लाशें, नौ घायल और नाजुक हालत मे तीन सिपाही जमीन पर लिटा दिये गये थे। वायरलैस आप्रेटर अपने बेस कैंम्प के साथियों से संपर्क साधने मे व्यस्त हो गया था। अपने हेलीकाप्टर से घायलों को एयरलिफ्ट करवा कर अस्पताल भिजवा कर हम मुठभेड़ का आंकलन करने के लिये निकल गये थे। एक-एक करके जिहादियों के मृत शरीरों को इकठ्ठा करना आरंभ कर दिया था। शाम तक हमने अड़तीस जिहादियों की लाशों को इकठ्ठा कर लिया था। सर्च आप्रेशन समाप्त करके हम आठों वहीं एक किनारे मे बैठ कर अपने हेलीकाप्टर की प्रतीक्षा कर रहे थे। …गुरप्रीत सबकी तस्वीरें ले ली है। …जी जनाब। लेकिन आज हमे ग्रेनेड का इस्तेमाल नहीं करना चाहिये था। उसकी वजह से चार क्षत-विक्षत लाशों की शिनाख्त नहीं हो सकती। …तो क्या हुआ? …जनाब इन चार बेचारों की हूरें इन्हें कैसे पहचानेगी? उसकी बात सुन कर रात के अंधरे मे एक ठहाका गूंज गया था। …जनाब इन जिहादियों को ऐसे तो यहाँ छोड़ कर नहीं जा सकते। तभी वायरलैस आप्रेटर ने आकर कहा… सर, हमारी एक युनिट आपके हेलीकाप्टर से यहाँ आ रही है। आपको इन सभी लाशों को उनके सुपुर्द करना है। मैने कोई जवाब नहीं दिया बस अपना सिर हिला कर उबड़खाबड़ जमीन पर लेट गया था।

अंधेरा हो चुका था जब हेलीकाप्टर की आवाज हमारे कान मे पड़ी थी। मैने अपने साथियों से तुरन्त कहा… टार्च जला कर रौशनी कर दो जिससे पिकअप पोइन्ट पहचानने मे कठिनाई न हो। गुरप्रीत ने अपने बैग से टार्च निकाल कर आन करते हुए कहा… सर, अब तो हमारी वापिसी हो जाएगी। तभी उसके साथ बैठे हुए सीआरपीफ के आप्रेटर ने मुस्कुरा कर पूछा… सरदारजी क्या इनके साथ बैठने मे डर लग रहा है? सभी ने खुल कर एक ठहाका लगा कर रात की शांति भंग कर दी थी। गुरप्रीत ने खिसिया कर जल्दी से कहा… इनसे क्यों डर लगेगा। इनमे से हरेक अपने हिस्से की बहत्तर हूरों के साथ मजे कर रहे होंगें। अचानक गुरप्रीत का साथी बोला… सरदार अगर तू इनकी हूरों के साथ मजे करना चाहता है तो लाश को आग लगा दे। जिहादी तो गायब हो जाएगा और उसकी हूरें उसको ढूंढते हुए तेरे पास आ जाएँगी। एक बार फिर से मौत की शांति मे सभी की हँसी गूंज गयी थी।

आर्मी का हेलीकाप्टर हमारे सिर पर आकर मंडराने लगा था। वह जैसे ही स्थिर हुआ तो चार विशेष रस्से हेलीकाप्टर के साइड से जमीन पर गिरे और अगले ही क्षण चार-चार के समूह मे सीआरपीफ के जवान जमीन पर उतरने लगे थे। वायरलैस आप्रेटर तुरन्त अपने अफसर को लेकर मेरे पास आ गया था। …सर डिप्टी कमान्डेन्ट अजय बिश्नोई रिपोर्टिंग। …लेफ्टीनेन्ट समीर बट। यह लाशें आपके सुपुर्द कर रहा हूँ। यहाँ की कार्यवाही अब आपके जिम्मे है। हम अपने कैंम्प वापिस लौट रहे है। उन घायलों का क्या हाल है? …सर, रास्ते मे दो की मृत्य हो गयी थी। अब तक टोटल डेथ सात हो गयी है। …ओह सारी। बस इतनी बात हो सकी थी। सीआरपीफ की युनिट ने लाशों का चार्ज ले लिया था।

…गुरप्रीत अंधेरे मे लिफ्ट आफ खतरनाक होता है। अपने सारे हुक और बक्कल को चेक करके ही लिफ्ट आफ का सिगनल देना। …जी जनाब। लिफ्ट आफ का खतरा अंधेरे मे इसलिये ज्यादा होता है क्योंकि जमीन से हेलीकाप्टर मे खींचने का काम मोटर करती है। पहला खतरा अंधेरे मे स्लिंग अटैचमेन्ट का होता है। हल्का सा भी ढीला होते ही उँचाई से नीचे गिरने का खतरा होता है। दूसरा खतरा रस्सी से हेलीकाप्टर मे ट्रांसफर का होता है। दिन की रौशनी मे सब कुछ साफ दिख जाता है तो गलती होने की संभावना कम होती है परन्तु रात के अंधेरे मे सब कुछ अन्दाजे से करना पड़ता है। हमने सबसे पहले अपने हथियार और जब्त किये हुए हथियारों को हेलीकाप्टर मे पहुँचाया था। नायक रघुबीर गुर्जर हेलीकाप्टर मे तैनात था। उसके बाद एक-एक करके हमारे सारे साथी बिना किसी एक्सीडेन्ट के हेलीकाप्टर मे पहुँच गये थे। सबसे आखिरी जाने वाला मै था। लिफ्ट आफ का सिगनल देने से पहले मैने सीआरपीफ की टीम को मुस्तैदी से सैल्युट किया और फिर उपर खींचने का सिगनल दिखा दिया। एकाएक मेरे पाँव हवा मे लहराने लगे और मै तेजी से हवा मे उठता चला गया था। एक खटका हुआ और मै हेलीकाप्टर के दरवाजे के सामने पहुँच कर रुक गया था। रघुबीर ने हाथ बढ़ा कर रस्सी पकड़ कर मुझे अन्दर खींच लिया था। मेरे बैठते ही हेलीकाप्टर ने आगे की ओर झुक कर एक झोंका खाया और फिर पठानकोट की ओर रवाना हो गया था।

रावी नदी पार करते ही टिमटिमाती हुई रौशनी से पठानकोट शहर जगमगा रहा था। रात को आठ बजे हम अपने कैंम्प के हेलीपेड पर उतर गये थे। अपने साथियों को विदा करके मै सीओ को रिपोर्ट करने के लिये उनके आफिस की ओर चला गया था। सीओ मेरा इंतजार कर रहे थे। एक घंटे की ब्रीफिंग के पश्चात जब मै वापिस मेस की ओर लौटा तो मेरे सभी साथी वहाँ पर मेरा इंतजार कर रहे थे। मेस मे घुसते ही तालियों की आवाज ने मेरा स्वागत किया था। सभी के चेहरों पर जीत की खुशी चमक रही थी। हमने हंसी मजाक करते हुए साथ बैठ कर खाना खाया और फिर मै अपने क्वार्टर की ओर चल दिया था।

अपने क्वार्टर मे पहुँच कर हमेशा की तरह मैने सबसे पहले अम्मी से बात की थी। उनकी वही पुरानी शिकायत थी कि इतने दिनो से पठानकोट मे होने के बावजूद भी मैने एक बार भी श्रीनगर का चक्कर नहीं लगाया था। हमेशा की तरह मैने पहले आलिया के बारे मे पूछा और फिर उनकी तबियत के बारे मे पूछ कर आने का वायदा करके फोन काट दिया था। दूसरा फोन आफशाँ को करके मेनका और उसके हालचाल जानने के पश्चात जल्दी ही लौटने का वादा करके फोन काट दिया था। तीसरा और आखिरी फोन अदा को किया था। …समीर कब छुट्टी पर आओगे? …पता नहीं। एक साल की छुट्टी ड्यु हो गयी है परन्तु कह नहीं सकता कि छुट्टी कब मिलेगी। …मेरे फाइनल इम्तिहान अगले महीने शुरु हो जाएँगें। उससे पहले एक चक्कर लगा लो। …तुम तो जानती हो कि मै फील्ड पोस्टिंग पर हूँ। अगले तीन साल के बाद मुझे फैमिली पोस्टिंग मिल जाएगी। तब तक तुम्हारी भी स्थायी पोस्टिंग हो जाएगी तो फिर मेरे लिये पोस्टिंग लेना आसान हो जाएगा। उसके बाद अगर तुम चाहोगी तो हम वहाँ से अपनी नयी जिन्दगी शुरु कर सकते है। इस बार बोलते हुए उसकी आवाज काँप गयी थी… समीर उसी आस मे तो अब तक जी रही हूँ। आई लव यू। …आइ लव यू टू। बस इतनी बात करके मैने फोन काट दिया था। अपने तीन सबसे अजीज लोगों से बात की थी परन्तु आज की कार्यवाही की चर्चा मै किसी से भी नहीं कर सकता था। क्या पता कि आज की मुठभेड़ मे उन सात सिपाहियों मे से एक मै भी हो सकता था। ऐसा ख्याल आते ही मैने सिर को झटका दिया और अपने कपड़े बदल कर बिस्तर पर लेट गया। सारे दिन की थकान के कारण लेटते ही नींद हावी हो गयी थी। यही मेरी रोजमर्रा की जिंन्दगी थी।  

ऐसे ही समय बीत रहा था। सर्दियाँ अपने पूरे जोर पर थी। घाटी मे बर्फ पड़नी शुरु हो गयी थी। ऐसे ही एक दिन मेरे सीओ का बुलावा आया तो मैने जल्दी एक कागज पर कुछ लिखा और उनसे मिलने के लिये चल दिया था। कुछ दिनो से मै अपने सीओ से बात करना चाहता था। मै अपने सीओ के साथ बैठ कर कश्मीर के हालात पर चर्चा करते हुए बोला… सर, वार्षिक छुट्टी का समय हो गया है। मेरे सभी साथी तीन के बैच मे छुट्टियाँ गुजार कर वापिस आ गये है। अभी कोई जरूरी काम भी नहीं है तो क्या मै भी छुट्टी पर चला जाऊँ। सीओ साहब कुछ देर तक मुझे देखते रहे और फिर मुस्कुरा कर बोले… लेफ्टीनेन्ट, मै चाहता था कि अबकी बार तुम जब छुट्टी पर घर जाओ तो कैप्टेन बन कर जाना। अगर फिर भी तुम छुट्टी पर जाना चाहते हो तो अपनी अर्जी दे दो। इस रोजमर्रा जिन्दगी से मै बोर हो गया था तो मैने तुरन्त अपनी छुट्टी की अर्जी उनके सामने रख कर कहा… सर, लेफ्टीनेन्ट हो या कैप्टन, इसका मेरे घरवालों पर क्या फर्क पड़ता है। यह बोल कर मै बाहर जाने के लिए मुड़ा तो उन्होंने मुझे रोक कर एक लिफाफा मेरी ओर बढ़ा दिया… यह तुम्हारे लिए है। इतना बोल कर उन्होंने अपने अर्दली को बुलाने के लिये घंटी बजा दी थी। अगले ही पल उनका अर्दली आफिस मे हाजिर हो गया था। वह मेरे करीब आया और मेरे कन्धे के दोनो फ्लिप्स को खोल कर एक सितारा बाकी दो सितारों के साथ लगा कर हटते हुए बोला… कैप्टेन साहब कान्ग्रेच्युलेशन्स। तब तक मै उस लिफाफे से अपनी पदोन्नति का पत्र निकाल कर पढ़ चुका था। मैने एक नजर अपने कन्धे पर तीन चमचमाते हुए सितारों पर डाल कर अपने सीओ को मुस्तैदी से सैल्युट करके सावधान की मुद्रा मे खड़े होकर कहा… थैंक्यू सर। सीओ ने मुस्कुरा कर कहा…  गो होम एन्ड एन्जोय योर लीव सन। मै वहाँ से बाहर निकल कर अपने क्वार्टर की ओर चल दिया था। मुझे पठानकोट मे आये हुए तीन साल हो गये थे।

मुजफराबाद

पीरजादा मीरवायज की जुमे की तकरीर समाप्त हो गयी थी। एक-एक करके लोग मस्जिद से बाहर निकल रहे थे। मीरवायज अपने कागज समेट कर जैसे ही उठने लगा कि तभी उसकी नजर अपने दोस्त मौलाना लखवी पर पड़ी जो एक किनारे मे खड़े हुए जनरल मंसूर और फारुख से किसी चर्चा मे उलझा हुआ था। मीरवायज चलते हुए उनके साथ जाकर चुपचाप खड़े हो गये थे। …लखवी साहब, आप की लड़की सुरक्षित श्रीनगर पहुँच गयी है। अब हमारी मदद करने का समय आ गया है। …बताईये आप मुझसे क्या चाहते है? जनरल मंसूर ने एक नजर मीरवायज पर डाल कर कहा… हम चाहते है कि आपकी तंजीम से जुड़े हुए लोग भारत के मुस्लिम बहुल इलाके मे पहुँच कर वहाँ हमारा नेटवर्क स्थापित करने मे हमारी मदद करें। इसके लिये उनको जमात-ए-इस्लामी के साथ मिल कर काम करना पड़ेगा। …ठीक है जनाब। ऐसा ही होगा। फारुख जो अभी तक चुप था वह अचानक मीरवायज से बोला… अब्बा, जनरल साहब का सोचना है कि उस आदमी को साधने के लिये आपको उस निकाह लिये अपनी रजामन्दी देनी पड़ेगी। …मुझे कोई एतराज नहीं परन्तु मुझे अभी भी उस पर विश्वास नहीं है। …मीरवायज साहब, हमारी मुहिम की सफलता के लिये उसको शीशे मे उतारना बेहद जरुरी है। कुछ देर तक चर्चा करने के पश्चात मीरवायज और लखवी चले गये थे।

जनरल मंसूर और फारुख बात करते हुए अपनी कार की ओर चल दिये थे। …फारुख, हमे कुछ वहाँ के पत्रकारों को इस योजना मे जोड़ना पड़ेगा। …जनाब, मेरे पास एक सुझाव है। मेरे पास कुछ प्रचलित मिडियाकर्मियों और वामपंथी बुद्धिजीवियों के नाम है। हमे उन लोगो को अपने साथ जोड़ना आसान होगा क्योंकि पहले भी हम उनकी मदद ले चुके है। जनरल मंसूर कुछ सोचते हुए कार मे बैठते हुए बोले… मुझे रावलपिंडी मे मिलो। …जनाब, एक बार आपको उस व्यक्ति से भी मिल लेना चाहिए। …फारुख, मैने लखवी और मीरवायज को रावलपिंडी बुलाया है। वहाँ बैठ कर इस बात का निर्णय लेंगें। बस इतनी बात दोनो के बीच मे हुई और फिर जनरल मंसूर का काफिला इस्लामाबाद की ओर चल दिया था।

गुरुवार, 27 अक्तूबर 2022

  

काफ़िर-9

 

मुंबई की नारीमन पोइन्ट पर एक बहुमंजिला इमारत मे आफशाँ का आफिस था। अन्दर कदम रखते ही फाईव स्टार जैसा माहौल देखने को मिला था। मैने रिसेप्शन पर पहुँच कर आफशाँ बट से मिलने के लिए पूछा तो उन्होनें मुझे वेटिंग एरिया मे बैठने के लिये कह दिया था। शीशे का बड़ा सा एन्क्लोजर जहाँ लाईन से सोफे रखे हुए थे। कुछ लोग इधर-उधर बैठे हुए थे। एक खाली सोफा देख कर मै एक किनारे मे जाकर बैठ गया था। कुछ देर के बाद खट-खट की आवाज ने मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्शित किया तो मेरी नजर उस ओर चली गयी थी। पहली नजर मे आफशाँ को मै पहचान नहीं सका था। वह पश्चिमी वेषभूशा मे थी। मैने तो हमेशा उसे सिर पर स्कार्फ, फेयरन और पजामी मे देखा था। अब वह एक चुस्त शर्ट और स्किन टाइट पतलून मे आधुनिक कामकाजी लड़की दिख रही थी। चुस्त कपड़ों मे उसका जिस्मानी उतार चढ़ाव कुछ ज्यादा ही उभर कर दिख रहा था। उसकी कामुकता का प्रभाव ऐसा था कि वेटिंग एरिया मे बैठे हुए सभी लोगों की नजर उसके उपर जाकर टिक गयी थी। उसमे कितना बदलाव आ गया था। यही सोच कर एक बार मेरा मन किया कि चुपचाप उससे बिना मिले यहाँ से निकल जाऊँ परन्तु तब तक देर हो चुकी थी। वह वेटिंग एरिया के बीचोंबीच आकर खड़ी हो गयी थी। उसने चारों ओर नजरें दौड़ा कर अपने गेस्ट को तलाश किया परन्तु वह मुझे पहचानने मे अभी भी अस्मर्थ थी। जैसे ही वह मुड़ कर रिसेप्शन की ओर जाने लगी तभी मै अपनी जगह पर खड़ा हो गया था।

वह आगे बढ़ते हुए अचानक पलटी और मुझे देख कर एक पल के रुक गयी थी। उसने पहली बार मुझे ध्यान से देखा था। मेरे रंगरुट जैसे बाल और क्लीन शेव चेहरे को पहचानने मे उसे कुछ पल लगे और फिर एकाएक तेज कदमों से चलते हुए मेरी ओर आयी और हैरतभरी आवाज ने बोली… समीर। तुम यहाँ कैसे? अब बैठे हुए सभी लोगों की नजर मुझ पर टिक गयी थी। …मैने तो सुना था कि आजकल तुम पठानकोट मे हो। …मै वहीं पर हूँ परन्तु अभी कुछ दिन पहले हुए मुंबई बाम्ब ब्लास्ट मे मैने एक साथी को खो दिया था। उसकी आखिरी क्रिया पर आया था। …ओह सौरी। बात करते हुए एकाएक वह संभल गयी और धीरे से बोली… मैने भी सुना था कि यहाँ बहुत से लोग मारे गये थे। चलो कैन्टीन मे चल कर बैठते है। इतना बोल कर वह चल दी थी। मै भी चुपचाप उसके साथ चल दिया था। …समीर तुम तो बिलकुल बदल गये हो। मैने तुम्हें आखिरी बार लम्बे बाल और मूँछ-दाड़ी मे देखा था। उस वक्त तुम मदरसा छाप लगते थे। इस रुप मे तुम्हें इतनी जल्दी कोई पहचान नहीं सकता। उसकी बात सुन कर मैने झेंपते हुए कहा… तुम्हारा स्कार्फ, फेयरन और पजामी का क्या हुआ? वह अभी भी चलते हुए मेरी ओर देख रही थी। …आफशाँ समय के अनुसार सब बदल जाता है। मेरी बात सुन कर वह मुस्कुरा कर आँखें चढ़ाते हुए बोली… ओहो, साहब अब बोलना भी सीख गये है। वैसे इस हुलिये तुम स्मार्ट लग रहे हो। पता नहीं क्यों लेकिन उसके साथ चलते हुए मुझे ऐसा लग रहा था कि सभी की नजरें हम पर टिकी हुई है।

बात बदलने की मंशा से मैने पूछा…आफशाँ तुम यहाँ पर कहाँ रहती हो? बड़े बिंदास स्वर मे वह बोली… क्या बताऊँ फिलहाल तो आफिस ने मेरे रहने की व्यवस्था लड़कियों के वर्किंग वुमेन्स होस्टल मे करी है। अब जल्दी ही मुझे मकान मे शिफ्ट करना पड़ेगा क्योंकि होस्टल मे सिर्फ तीन महीने तक ठहरने की इजाजत है। फिलहाल तो मैने कुछ चक्कर चला कर दो महीने के लिए और वहीं पर ठहरने का इंतजाम कर लिया है परन्तु जल्दी ही अपने रहने की स्थायी व्यवस्था करनी पड़ेगी। बात करते हुए हम कैंन्टीन पहुँच गये थे। टेबल के सामने पड़े हुए स्टूल पर उचक कर बैठते हुए वह बोली… पिछले चार महीने से मेरा हर शनिवार और इतवार पेईंग गेस्ट रिहाईश को ढूँढने मे निकल रहा है। कहीं पर कुछ परेशानी है और कहीं पर कुछ। खैर, तुम अपनी सुनाओ। फौज की जिन्दगी कैसी चल रही है? मै सोच रहा था कि क्या यह वही लड़की है जिसके साथ मै इतने साल रहा था। आफशाँ की आवाज मैने बहुत कम सुनी थी। वैसे भी हम दोनो के बीच कभी ज्यादा घनिष्टता तो पहले भी नहीं रही थी। आसिया हम सब मे बड़ी थी तो ज्यादातर उसकी आवाज सुनने की आदत थी। आसिया के बैंगलौर जाने के बाद जब हम तीनो उसकी ओर देखा करते थे तब उसका ज्यादा समय अपनी पढ़ाई और कोचिंग मे निकलता था। इसी कारण हमारी बीच कभी ज्यादा बातचीत नहीं हो सकी थी।  

…क्या सोचने बैठ गये? उसने मेरा हाथ पकड़ कर हिलाते हुए कहा तो मैने जल्दी से कहा… तुम्हें देख कर अपने अतीत मे पहुँच गया था… सौरी। अचानक उसके चेहरे पर से बनावटीपन की चादर हटती हुई दिखी क्योंकि अपना अतीत याद आते ही उसके चेहरे पर भी एक मुस्कान तैर गयी थी। एकाएक मैने कहा… आफशाँ अगर मै तुम्हारे लिए रहने का इंतजाम कर दूँ तो तुम मेरे लिए क्या कर सकती हो?  वह खुशी से चीखती हुई बोली… बताओ समीर वह जगह कहाँ है। चलो अभी देखने चलते है। प्लीज मेरी बहुत बड़ी परेशानी हल हो जाएगी। एकाएक वह चुप हो गयी और फिर मुझे घूर कर देखती हुई बोली… मेरे साथ कुछ करने की तुम सोचना भी नही। मैने जल्दी से कहा… अगर तुम्हे वह जगह चाहिए तो जो मै कहूँगा वह करना पड़ेगा। …क्या करना पड़ेगा? …जो मै चाहूँ। सोच कर बता देना। इतना कह कर मै स्टूल छोड़ कर उठ गया और द्वार की दिशा की ओर चलने लगा। वह मेरी ओर झपटी और मेरा हाथ पकड़ कर वापिस खींचते हुए टेबल की ओर चल दी तभी उसकी नजर सामने चली गयी तो उसने झेंप कर मेरा हाथ छोड़ दिया क्योंकि वहाँ उपस्थित सभी लोग उसको बड़ी हैरत से देख रहे थे। 

बचपन से जवानी तक उम्र मे छोटे होने के कारण हम तीनों आफशाँ की नस-नस से वाकिफ थे। वह हमारी बात सुनने से पहले ही मना कर देती थी। अगर वह खुद चाहती तो अपनी ओर से हमारे लिए पहाड़ हिला देती थी परन्तु किसी के कहने पर मेज पर पड़ी हुई सुई भी कोई उससे हिलवा नहीं सकता था। ऐसी जिद्दी लड़की थी। मैने तो औपचारिकतावश उसकी रिहाईश के बारे मे पूछ लिया था। उसकी परेशानी को सुन कर मेरे दिमाग मे उड़ता हुआ एक ख्याल आया था इसीलिये मैने यह प्रस्ताव उसके सामने रख दिया था। मै अपनी सोच मे गुम था कि तभी मेरे करीब आकर धीरे से बोली… समीर चलो बाहर चलते है। यहाँ सब देख रहे है। कल तक पूरे आफिस मे यह बात फैल जाएगी। यह कह कर वह चल दी और मै उसके साथ चुपचाप चल दिया था। कैन्टीन मे सभी आँखें हमारा पीछा कर रही थी। अचानक उसका हाथ पकड़ कर मै अपनी एड़ियों घूम गया और अपनी ओर देखते हुए लोगों से जोर से बोला… सौरी गाईज। पर्सनल मसला है। यह देखते ही आफशाँ का चेहरा शर्म से लाल हो गया था। अब वह वापिस अपने पुराने अवतार मे आ गयी थी। मेरे कंधे पर मुक्का जड़ कर  बोली… कल यह पूरे आफिस की गासिप होगी।

…क्यों? …इसलिये कि मै बस अपने काम से काम रखती हूँ। …मै शर्त लगा कर कह सकता हूँ कि तुम यहाँ की आफिस क्वीन होगी। …तुम अकेली कामकाजी लड़की की परेशानी नहीं समझ सकते। अगर वह किसी से हँस कर एक बार बात कर ले तो अगले दिन ही उसके बारे मे तरह-तरह की बातें सर्कुलेशन मे आ जाती है। लोगों के दोस्ती के पैगाम मिलने आरंभ हो जाते है। आईटी सेक्टर मे यह आम बात होती है। हाई स्ट्रेस जाब होने के कारण क्षणिक मनोरंजन के लिये रिश्ते न चाहते हुए भी जोड़े जाने लगते है। …बड़ा बेहूदा रिवाज है। …अगर लड़की किसी को लिफ्ट नहीं देती तो उसे आईस कूल, टीजर और नकचड़ी के नामो से नवाजा जाता है। उसकी बात सुन कर मैने मुस्कुरा कर पूछा… तो तुम्हें यहाँ क्या नाम दिया है? उसने चलते हुए एक बार फिर से मेरे कंधे पर हाथ मार कर कहा… चुपचाप चलो। चार महीने मे पहली बार कोई मुझसे कोई मिलने आया है। कल तक यह विषय टापिक आफ द डे होगा। कल बहुत से दिल टूटेंगें और कुछ लोग तुम्हारे बारे मे जानने के लिये न जाने कौन से रास्ते खोंजेंगें। मै चुपचाप उसके साथ मुख्य द्वार की ओर चल दिया था।     

हम उसके आफिस से बाहर निकल आये थे। उसे अपने साथ लेकर कार की ओर चल दिया। …किसकी कार है? …दोस्त की कार है। चलो मेरे साथ। कार मे बैठते ही वह खिलखिला कर हँस पड़ी थी। …समीर उन सब का चेहरा देखने लायक था। वह मुस्कुरा रही थी। उसको देख कर मै भी खुश था क्योंकि अब वह अपने पुराने स्वरुप मे आ गयी थी। कुछ देर के बाद मै अंजली के फ्लैट मे उसके साथ बैठा हुआ था। …तुम यहाँ आराम से रह सकती हो? वह अभी भी अविश्वास से मेरी ओर देख रही थी। …मुझे क्या करना होगा? यह सबसे आसान सवाल था परन्तु इसका जवाब मेरे लिये सबसे मुश्किल था। सामने मेनका फर्श पर बैठी हुई आया के साथ खेल रही थी। मैने उसकी ओर इशारा करते हुए कहा… आफशाँ, यह मेरी बेटी है। इसकी माँ उस ब्लास्ट मे मारी गयी थी। इसीलिए मै पठानकोट से यहाँ आया था। दो दिन बाद मुझे वापिस पठानकोट मे रिपोर्ट करना है। यह मेरी पत्नी का फ्लैट है। तुम चाहो तो अपने किसी दोस्त को भी यहाँ ठहरा सकती हो परन्तु मेरी सिर्फ एक शर्त है कि इस बच्ची की जिम्मेदारी तुम्हे कुछ महीनों के लिए उठानी पड़ेगी। मेरी नौकरी ऐसी है कि उसमे कुछ भी स्थायी नहीं है इसलिये मेनका को मै अपने साथ पठानकोट मे नहीं रख सकता। इतना बोल कर मैने उसकी ओर देखा तो वह अपनी जगह पर नहीं थी। मेरी बात को अनसुना करके वह उठ कर मेनका के पास चली गयी थी।

मै उन्हें देख तो रहा था परन्तु एक विचार मेरे दिमाग मे घूम रहा था कि एक साल मे अदा की पढ़ाई पूरी हो जाएगी तो वह यहाँ पर आकर फिर सब कुछ संभाल लेगी। आफशाँ अपनी गोद मे मेनका को लेकर मेरे पास बैठते हुए बोली… समीर, सच बताओ कि क्या यह तुम्हारी बेटी है? …यह मेरी बेटी है। बस इससे आगे मुझसे कुछ नहीं पूछना। उसने कुछ पल मुझे बड़े ध्यान से देखा और फिर सिर हिला कर बोली… मुझे विश्वास नहीं हो रहा है। क्या अम्मी को इस बारे मे पता है। …नहीं। एक पल रुक कर मैने कहा… प्लीज उन्हें मत बताना। वह अभी भी हैरतभरी नजरों से मेरी ओर देख रही थी। कुछ सोचकर मैने कहा… वैसे तो आया इसकी सुबह से शाम तक देखभाल करती है परन्तु उस पर मेनका की जिम्मेदारी छोड़ कर मै वापिस नहीं जा सकता। क्या तुम इसकी जिम्मेदारी कुछ समय के लिये ले सकती हो जब तक कोई दूसरा इंतजाम नहीं होता?

वह मेरी ओर कुछ देर तक देखती रही फिर मुस्कुरा कर बोली… अगर तुम चाहो तो मेनका की जिम्मेदारी ले सकती हूँ लेकिन फिर जो मै कहूँगी वह तुम्हें करना पड़ेगा। मैने मुस्कुरा कर कहा… क्या करना पड़ेगा? …जो मै चाहूँ। ठीक है सोच कर बता देना। यह बोल कर वह उठ कर मेनका के साथ खेलने मे व्यस्त हो गयी। वह शाम तक वहीं पर मेनका के साथ बात करते हुए खेलती रही थी। जब मेनका थक कर सो गयी तब फिर आफशाँ मेरे पास आकर बोली… समीर चलो चल कर होस्टल से सामान ले आये। मेनका को उसने गोदी मे उठाया और मेरे साथ चल दी। कार चलाते हुए मैने कहा… कार चलाना सीख लोगी तो आफिस जाने मे आसानी हो जाएगी। वह कुछ नहीं बोली बस चुपचाप सामने देखती रही। वर्किंग विमन्स हास्टल से अपना सारा सामान कार मे रखवा कर वह बोली… रास्ते मे शापिंग माल के सामने रोक लेना। मुझे सस्पेन्डर खरीदना है। उस वक्त तो मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ा लेकिन जब वह खरीद कर लायी तब  मेरे समझ मे आया कि सस्पेन्डर क्या होता है। गले मे बच्चे को लटकाने वाली बेल्टनुमा चीज को सस्पेन्डर कहते है जिसके कारण उस व्यक्ति के दोनो हाथ आजाद हो जाते है।

कार मे बैठते ही उसने कहा… चलो समीर आज खाना बाहर खा लेते है। रास्ते मे एक जगह पर उसने कार रुकवाते हुए कहा… यहीं पर कार रोक लो। आज यही सड़क के किनारे बैठ कर खाएँगें। जब तक मैने कार किनारे पर खड़ी की तब तक आफशाँ ने सस्पेन्डर पहन कर मेनका को उसमे बिठा लिया था। हम दोनो वहीं बेन्च पर बैठ गये थे। …समीर मैने कभी नहीं सोचा था कि तुम बिना बताये इतना बड़ा कदम उठा सकते हो। …आफशाँ जिस दिन तुम मोहब्बत मे पड़ गयी तो कोई भी कदम तुम्हें बड़ा नहीं लगेगा। प्लीज इसकी बात मत करो। मै कुछ भूलने की कोशिश कर रहा हूँ। वह चुप हो गयी और चुपचाप खाने बैठ गयी थी। …सौरी आफशाँ, मुझे यह नहीं बोलना चाहिए था। उसने मेरी ओर देखा और फिर धीरे से बोली… मै तुम्हारा दिल दुखाना नहीं चाहती लेकिन यह रहस्य मुझे बार-बार परेशान कर रहा है कि वह कौन थी और तुम उससे कैसे और कहाँ मिले थे? भला इतनी बड़ी बात का अम्मी को भी नहीं पता है…चलो छोड़ो। हम चुपचाप खाना खाने मे व्यस्त हो गये थे। खाना समाप्त करने बाद कुछ देर अरब सागर की हवा खाने के बाद हम घर की ओर चल दिये थे।

घर पहुँच कर मैने कहा… तुम जाकर फ्लैट खोलो तब तक मै तुम्हारा सामान लेकर आता हूँ। वह मेनका को लेकर चली गयी और मै उसका सामान कार से निकाल कर कुछ देर के बाद पहुँचा था। तब तक आफशाँ ने मेनका को उसके पालने मे सुला दिया था। मुझे सामान लाते हुए देख कर वह मेरी मदद करने के लिए आगे बढ़ी तो उसका सामान एलिस के कमरे मे रख कर मैने कहा… आज से यह कमरा तुम्हारा है। अभी कुछ सामान नीचे रह गया है। वह लेकर आता हूँ तब तक तुम अपने सामान को लगा लो। यह बोल कर मै वापिस कार की ओर चला गया था। मुझे दो चक्कर और लगाने पड़े थे लेकिन उसका सारा सामान आ गया था। देर रात तक वह अपना सामान कमरे मे लगाने मे व्यस्त रही थी। मै अपने कमरे मे मेनका के पास जाकर सो गया था।

फौज मे रहने के कारण सुबह पाँच बजे मेरी आँख खुल गयी थी। मै उठा और किचन मे चला गया। चाय पीते हुए मेरी नजर मेनका की ओर चली गयी थी। वह उठ गयी थी और अपने पालने से नीचे उतरने की कोशिश कर रही थी। मैने उसे उठा लिया और उसका डायपर बदल कर उसे फर्श पर छोड़ कर जैसे ही डायपर फेंकने के लिए उठा तो दरवाजे पर आफशाँ खड़ी हुई मुझे बड़े ध्यान से देख रही थी। मै डायपर फेंक कर जब लौटा तो भी उसकी निगाह अभी भी मुझ पर टिकी हुई थी। …ऐसे क्या देख रही हो? …मुझे अभी भी अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा है। तुम इतने जिम्मेदार कैसे और कब हो गये? उसको टालने के लिये मैने कहा… तुम्हें आज आफिस नहीं जाना है? जब तक मै यहाँ हूँ तब तक मै तुम्हें कार से आफिस छोड़ दूँगा परन्तु अच्छा रहेगा कि तुम कार चलाना सीख लो। मेरे जाने के बाद तुम्हें अपने आप सब संभालना पड़ेगा। आज शाम को मुझे पठानकोट के लिए निकलना है। यह सुन कर एक पल के लिये उसका चेहरा उतर गया था। मै उसके पास चला गया… क्या हुआ? …तुम्हारे जाने की खबर सुन कर घबराहट हो रही है। उसके कंधे पर हाथ रख कर उसकी आँखों मे झाँकते हुए मैने कहा… फिक्र करने की कोई बात नहीं है। अभी कुछ देर मे आया आ जाएगी। वह सब संभाल लेगी। उसने धीरे से अपना सिर हिला दिया परन्तु मुझे लगा कि शायद मेरे लौटने की खबर से उसका आत्मविश्वास कमजोर पड़ गया था।

हम दोनो तैयार होने के लिये चले गये थे। जब तक मै तैयार हो कर बाहर निकला तब तक आया भी आ चुकी थी। वह नाश्ता बनाने मे लग गयी थी। मेनका अपने खिलौनों मे व्यस्त थी। मै आराम से सोफे पर बैठ गया और अपने लौटने के इंतजाम के बारे मे सोचने बैठ गया। कुछ देर के बाद आफशाँ अपने कमरे से बाहर निकली तो मै उसे देखता रह गया था। वह आज भी कल जैसे अपने पश्चिमी लिबास मे थी परन्तु आज उसके कपड़े थोड़े ज्यादा ही स्किन टाइट लग रहे थे। उसके कोमल अंगों पर कुछ इस तरह चिपके हुए थे कि हर गोलाई और कटाव कुछ ज्यादा उभरा हुआ प्रतीत हो रहा था। …तुम ऐसे आफिस जाओगी? …क्या खराबी है इन कपड़ों मे…हजारों लड़कियाँ यहाँ ऐसे कपड़े पहन कर आफिस जाती है। मैने सिर्फ कन्धे उचका कर अपने काम मे लग गया था। मैने फोन से एयरपोर्ट पर अपने वारन्ट आफीसर से पठानकोट के जाने के बारे मे पूछा तो उसने बताया कि एक कार्गो फ्लाईट रात को तीन बजे पठानकोट जाएगी। दो बजे से पहले अगर मै पहुँच गया तो वह मेरे ट्रांसिट पेपर्स बना देगा। …तुम मेरे पेपर्स तैयार रखना मै टाइम से पहले पहुँच जाऊँगा। मेरा जाने का इंतजाम हो गया था। मैने आफशाँ को बता दिया कि मै आज शाम को उसको आफिस से पिक कर लूँगा क्योंकि मेरी फ्लाईट रात को तीन बजे की है। बात करते हुए मेज पर नाश्ता लग गया था। नाश्ता करके मै उसे आफिस छोड़ने के लिए चल दिया।

शाम को मैने उसे लेने चला गया था। घर पहुँच कर वह बोली… समीर, इसका पालना और सामान मेरे कमरे मे रखवा दो। ऐसा तो नहीं हो सकता कि मै वहाँ और यह यहाँ रहेगी। उसकी बात मे तर्क था सो हम दोनो मेनका का सामान और पालना आफशाँ के कमरे मे पहुँचाने मे व्यस्त हो गये थे। सब काम समाप्त करने के बाद जब हम बैठ गये तब मैने अपना डेबिट कार्ड उसके हाथ मे रखते हुए कहा… अपनी रोजमर्रा की जरुरतें पूरी करने के लिये इस कार्ड को अपने पास रख लो। वह मेरा कार्ड लेकर बोली… इस लिव-इन रिलेशनशिप मेरी जरुरतों का क्या होगा? …यह तुम्हारे लिए ही है। …समीर, तुमने एक पल मे मुझे पराया कर दिया है। क्या मै यहाँ के खर्चे का बोझ नहीं उठा सकती? …आफशाँ, तुम मुझे गलत समझ रही हो। घर मे पता नहीं कब किसी चीज की तुम्हें जरुरत पड़ जाए। इसलिए यह कार्ड दे रहा हूँ। वैसे भी लिव-इन रिलेशनशिप का एक नियम तो मै भी जानता हूँ कि दो रहने वालों को बराबर का खर्चा उठाना पड़ता है। वह मेरी ओर देखते हुए बोली… ठीक है अब चुंकि हम लिव-इन रिलेशनशिप मे है तो खर्चे के साथ तुम्हें काम भी बाँटना पड़ेगा। …परन्तु फिलहाल मै तो यहाँ नहीं हूँ। सारा काम तुम्हें ही देखना होगा। …पर जब तुम वापिस आओगे तब? …प्रामिस, मै फिर तुम्हारा सारे काम का बोझ अपने उपर ले लूँगा। वह मुस्कुरायी और फिर उठ कर चलने से पहले बोली… भूलना नहीं, तुमने वादा किया है। यह कह कर वह अपने कमरे मे चली गयी थी। दो दिनों मे उसने एक बार भी मुझे मेरे काफ़िर होने का एहसास नहीं कराया था।

समय से पहले पहुँच कर मैने पठानकोट जाने वाला कार्गो प्लेन पकड़ लिया था। सामान के साथ प्लेन मे मुझे मिला कर पाँच यात्री सफर कर रहे थे। एक आदमी को छोड़ कर बाकी हम सभी अपनी युनीफार्म मे थे। हवाईजाहज का शोर और लोहे की बेन्च पर पतली सी गद्दी दो तरफा मार रही थी परन्तु सभी को अपनी-अपनी युनिट मे रिपोर्ट करना था इसीलिए उन्होंने इस प्लेन से जाने का निर्णय लिया था। …हैलो लेफ्टिनेन्ट, मेरा नाम कर्नल चीमा है। सादी ड्रेस मे मेरे साथ बैठे हुए व्यक्ति ने मेरी ओर हाथ मिलाने के लिए बड़ा दिया था। सीओ रैंक के अफसर आदतन अपने से नीचे के ओहदे के लोगों से हाथ नहीं मिलाते है। मै जैसे ही सैल्युट करने के लिए खड़ा होने लगा तभी उसने मेरा हाथ पकड़ कर बैठाते हुए बोला… मै युनीफार्म मे नहीं हूँ। प्लीज बैठो। मै चुपचाप बैठ गया था। …तुम स्पेशल फोर्सेज से हो लेफ्टीनेन्ट? …जी जनाब। …समीर बट, कौन से बट हो? क्या मकबूल बट से कोई रिश्ता है? उसका सवाल सुन कर एक पल के लिए मै चौंक गया था। मैने धीरे से कहा… सर, वह मेरे अब्बा है। …ओह। बस इतना बोल कर वह चुप हो गया था। पठानकोट के एयरबेस पर उतरते हुए उसने एक बार फिर हाथ मिला कर कहा… फिर मिलेंगें। इतना बोल कर वह चला गया था। वहाँ से निकल कर मैने अपनी युनिट जोइन कर ली थी।

मेरी युनिट मे मुझे छोड़ कर बारह लोग थे। सभी लोग शार्पशूटर और अत्यन्त कुशल लड़ाकू थे। उनके साथ रोज ड्रिल करने के कारण मुझे उनकी कुशलता और लड़ाई के अनुभव पर अटूट विश्वास अब तक हो गया था। मुंबई से वापिस लौटते ही इन्डियन मुजाहीदीन की फाईल मुझे पकड़ा दी गयी थी। फाईल पढ़ने के बाद मै अपने सीओ के सामने जैसे ही हाजिर हुआ तो उसने कहा… समीर, क्या सोचा है? …सर, आप इजाजत दें तो इनके विरुद्ध आल आउट आप्रेशन आरंभ कर देते है। …यह इतना आसान नहीं होगा। पूरे इलाके मे आठ समूह सक्रिय है। इनमे से आईएम के लोगों की कैसे पहचान होगी? अगर एक साथ इन पर हमला किया तो सभी इकठ्ठे हो जाएँगें तो स्थिति और भी खतरनाक हो जाएगी। …सर स्थानीय पुलिस इन सबसे मिली हुई है। उनकी खबर पर अगर हमने कोई एक्शन लिया तो निश्चित ही हमे नुकसान उठाना पड़ेगा। अगर आप मेरी युनिट को यहाँ के प्रशासन के चंगुल से आजाद करा देंगें तो हम दक्षिण कश्मीर के छह जिलों की सफाई करके उत्तर कश्मीर मे चले जाएँगें। …कैसे करोगे? क्योंकि स्थानीय एड्मिनिस्ट्रेशन तुम्हारी कोई मदद नहीं करेगा अल्बत्ता तुम्हारे काम मे रोड़े जरुर अटकाएगा और हो सकता है कि वह तुम्हें कानून तोड़ने के लिए हिरासत मे रख दें।

…सर, मिलिट्री इन्टेल की रिपोर्ट पर हम एक्शन लेंगें। मेरी युनिट स्टेन्ड-बाई मोड मे रहेगी और इन्टेल रिपोर्ट मिलते ही हम एक्शन मे आ जाएँगें। काफी देर चर्चा चलती रही फिर मैने आखिर मे कहा… सर, थोड़ी सी कानूनी प्रक्रिया से अगर हमे छूट मिल जाए तो नतीजे बेहतर मिलने आरंभ हो जाएँगें। कुछ सोच कर मेरे सीओ ने कहा… एक्सपेरीमेन्ट करने मे कोई हर्ज नहीं है। कौनसा जिला चुना है? …सर, सबसे दक्षिण का जिला कठुआ, फिर उपर बढ़ते हुए सांबा, जम्मू, राजौरी, पुँछ, बारामुल्ला, कुपवाड़ा और बांदीपुरा सीमावर्ती जिले है। आठों कट्टरपंथी तंजीमें इन्ही जिलों मे अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश कर रही है। आईएम का मुख्य कार्यक्षेत्र पुँछ, बारामुल्ला और कुपवाड़ा है। मेरा ख्याल है कि अगर एक्स्पेरीमेन्ट ही करना है तो कठुआ या बारामुल्ला बेहतर जगह साबित हो सकती है। …ठीक है पहले मुझे इस विषय पर उपर चर्चा करने दो फिर देखते है। इतनी बात करके मै बाहर आ गया था।

मेरे सीओ ने फिर इसके बारे मे मुझसे कोई बात नहीं की लेकिन आये दिन कोई खबर मिलते ही हमारी युनिट को कभी छिपे हुए कुछ आतंकवादियों की सफाई हेतु स्थानीय पुलिस और सीआरपीएफ के संयुक्त कार्यवाही की मदद के लिए भेज दिया जाता अन्यथा आर्मी इन्टेल की रिपोर्ट पर अब हम सफाई करने के लिए खुद निकल जाया करते थे। अपने कैंम्प से बाहर निकलते हुए हमारे चेहरों पर वार पेंट लगा हुआ होता था। युनीफार्म के नाम पर सभी काली डंगरीज मे होते थे जिस पर से रैंक और नाम को हटा दिया जाता था। इसीलिये हमारी पहचान मरुन कलर की कैप से होती है। अगले छ्ह महीने मे हमने अपने लिए आतंकवदियों के बीच एक नाम बना लिया था। उसी खास कैप के कारण हमे ‘रेड बेरेट’  का नाम मिल गया था। कुछ ही दिनो मे ‘रेड बेरेट’  के नाम से स्थानीय लोग और आतंकवादियों के बीच मे दहशत फैलने लगी थी। हमारी मूवमेन्ट होते ही सारे इलाके मे इसकी खबर आग की तरह फैल जाती थी। अब तक दक्षिण कश्मीर सेक्टर की सभी तंजीमों और वहाँ के प्रशासन मे यह धारणा बन चुकी थी कि ‘रेड बेरेट’  जब भी कैंम्प से बाहर निकलते है तब वह सिर्फ लाशें लेकर ही वापिस लौटते है।

एक घटना के कारण स्थानीय पुलिस भी हमसे दहशत खाने लगी थी। एक इंटेल रिपोर्ट के मिलते ही हमारी युनिट को कठुआ जिले मे जखबार नामक जगह पर कुछ दहशतगर्दों का पता चला था। वह पहाड़ी इलाका था। खबर मिलते ही हम उस ओर निकल गये थे। जैसे ही हम जखबार की सड़क पर मुड़े कि तभी पुलिस के बेरीकेड पर नियुक्त स्थानीय पुलिस ने रोक कर हमसे पूछताछ आरंभ कर दी थी। आर्मी इंटेल की रिपोर्ट उनसे साझा नहीं कर सकते थे इसीलिए उन्होंने सड़क टूटने का हवाला देकर हमे आगे जाने से रोक दिया था। समय निकलता जा रहा था और कुंठा से मेरे दिमाग का पारा चढ़ता चला जा रहा था। मैने अपने हवलदार को इशारा करते हुए कहा… सब सालो को निशाने पर ले लो। इनकी बातों से लगता है यह भी उनके साथी है। अगर अब इनमे से कोई बोला तो शूट टु किल। अभी समय नहीं है तो लौट कर इनके पेपेर्स चेक करेंगें। पल भर मे सभी खाकी वर्दी वालों को मेरे साथियों ने गन पोइन्ट पर ले लिया था। अपनी ओर एके-203 तनी हुई देख कर अगर फिर भी कोई नहीं डरा तो सेफ्टी लैच हटने की काकिंग साउन्ड सुनते ही सभी दहशत मे जरुर आ गये थे। नायक गुर्जर ने अगले ही पल वहाँ उपस्थित सभी पुलिस वालों को गन पोइन्ट पर लेकर जमीन पर घुटने के बल बैठा दिया था। अपने चार साथियों को उन पर तैनात करके मै अपने साथ आठ साथियों को लेकर आगे निकल गया था।

उस दिन हमारी कुछ किस्मत ही खराब थी। हमारे जाने के बाद कलेक्टर साहब वहाँ से गुजरे तो अपने थानेदार और सिपाहियों की दुर्दशा देख कर कलेक्टर साहब ने मेरे साथियों पर अपने ओहदे की दबिश डालने का प्रयास किया। गुर्जर को तो आदेश मिला हुआ था तो उसने कलेक्टर साहब को भी गन पोइन्ट पर लेकर वहीं घुटने के बल सड़क पर बिठा दिया था। चार घंटे के बाद जब हम पाँच लाशें और तीन घायल आतंकवादियों लेकर वहाँ पहुँचे तब तक सभी ऐसी हालत मे बैठे हुए थे। जैसे ही मेरी जीप रुकी तो कलेक्टर साहब ने खड़े होने की कोशिश की तभी मेरे साथ चलते हुए शेष राम ने कलेक्टर के सीने पर अपनी आटोमेटिक के बट से प्रहार किया और एक ही वार से वह सड़क पर लुढ़क गये थे। मौके की नजाकत समझते हुए मैने जल्दी से अपने चारों साथियों को ट्रक मे बैठने का इशारा किया और उन्हें वहीं उसी हालत मे छोड़ कर हम आगे बढ़ गये थे।

उस घटना के बाद स्थानीय प्रशासन और आर्मी के बीच काफी समय तक हंगामा चलता रहा था। हमारा एक ही जवाब था कि हमे शक था कि आतंकवादी पुलिस युनीफार्म पहन कर अपने साथियों की मदद करने के लिये हमारा रास्ता रोकने की कोशिश कर रहे थे। हमारे चेहरे पर वार पेन्ट और कोम्बेट डंगरीज के कारण हमारी शिनाख्त करना नामुमकिन था। मेरे सीओ साहब वैसे भी स्थानीय प्रशासन और पुलिस से काफी नाराज थे तो उन्होंने भी हमारा भरपूर साथ दिया था। आखिर मे प्रशासन और आर्मी के बीच एक बात तय हो गयी थी कि स्थानीय प्रशासन और पुलिस किसी भी आर्मी की कार्यवाही मे रुकावट पेश नहीं करेंगी। फौजी कार्यवाही के पश्चात हमारी लिखित रिपोर्ट स्थानीय पुलिस और प्रशासन को सौंप दी जाएगी। एक बात जो हमारे पक्ष मे हुई थी कि उस एक्शन मे जो जिहादी मारे गये व घायल हुए वह सभी आईएम के नामजद दुर्दान्त हत्यारों मे से थे। एन्काउन्टर मे मारे गये लोगो की लाशों को पुलिस के हवाले कर दिया गया था। यहीं से हमारी कार्यवाही के लिये रास्ते खुल गये थे। कश्मीरी होने के कारण पकड़े हुए लोगो से बात करना मेरे लिये आसान था। एन्काउन्टर के दौरान पकड़े गये लोगों से पूछताछ करके कड़ी से कड़ी मिलती चली गयी थी। कुछ ही समय मे दक्षिण कश्मीर मे दहशतगर्दों की सफाई होनी आरंभ हो गयी थी।

तीन महीने मे हमने कठुआ से लेकर सांभा तक का इलाका इन्डियन मुजाहीदीन विहीन कर दिया था। कोई छ्त्तीस मुठभेड़ हुई थी जिसमे बावन आतंकवादियों को उनकी हूरों के पास भेज दिया था। जो फाईल मुझे दी गयी थी वह छह महीने मे लगभग बन्द होने की कगार पर पहुँच गयी थी। इस कार्यवाही का असर दूसरे समूहों पर भी पड़ रहा था। वह भी चुपचाप दक्षिण सेक्टर को छोड़ कर मध्य कश्मीर व उत्तर कश्मीर की ओर चले गये थे। मुठभेड़ के दौरान हमारी टीम में कुछ मामूली घायल हुए थे परन्तु कोई हताहत नहीं हुआ था। वहीं से ‘रेड बेरेट’ का खौफ सभी आतंकवादी तंजीमों मे दिमाग मे घर करने लगा था। कठुआ से सांभा तक का इलाका हमने पूरी तरह से छान लिया था। छोटी से छोटी सड़क, झाड़ियों मे छिपी हुई पगडंडिया, नदी और बरसाती नाले, दुकानें और दुकानदार, लगभग सभी जायज और नाजायज कार्य हमारी नजर मे आ गये थे। जब स्थानीय प्रशासन और पुलिस का हम पर जोर नहीं चल सका तब जिहादियों ने फौज के खिलाफ एक नया मोर्चा खोल दिया था। एक साथ कहीं से स्कूली बच्चों की टोली सड़क पर आ जाती और हमारे वाहनों पर पत्थरों की बारिश करनी आरंभ कर देते थे। इसके कारण एक दो बार तो हमको वापिस लौटना पड़ गया था। जैसे ही हमारी मूवमेन्ट पर अंकुश लगा, वैसे ही एक बार फिर से जिहादियों ने सिर उठाना आरंभ कर दिया था।

आर्मी, पैरा-मिलिट्री और पुलिस, सभी सुरक्षा एजेन्सियाँ इस नयी स्कूली बच्चों की कार्यवाही से परेशान थी। आम नागरिकों और बच्चों पर गोली भी नहीं चला सकते थे। सबसे ज्यादा चिंता का विषय फौज के लिए था क्योंकि फौज के मूवमेन्ट पर इस प्रकार की घटना बेहद खतरनाक सिद्ध हो सकती थी। हर हफ्ते किसी न किसी मोर्चे पर सैनिक और असला-बारुद लाया और भेजा जाता था। कहीं से सैनिक ड्युटी समाप्त करके लौट रहे होते और कही सैनिक भेजे जा रहे होते थे। पुलिस और पैरा-मिलिट्री फोर्स पत्थरबाजों पर अंकुश लगाने मे पूर्णत: असफल हो रहे थे। उधर कश्मीर घाटी मे लगातार विस्फोट हो रहे थे। कभी पुलिस काफिले पर हमला होता तो कभी सीआरपीएफ के काफिले पर फिदायीन हमला हो जाता था। मध्य और उत्तरी कश्मीर मे कट्टरपंथी तंजीमे अब और भी ज्यादा बेखौफ हो गयी थी। वर्दीधारी दोनो तरफ से मार खा रहे थे। एक ओर राज्य और केन्द्र सरकार सुरक्षा एजेन्सियों को कड़े कदम लेने से रोक रही थी और दूसरी ओर कट्टरपंथी और अलगाववादी लगातार उनको निशाना बना रहे थे।

अलगाववादी राजनीतिक दल और पृथकवादी समूह अब अपने कार्यक्रमों के कैलेन्डर जारी करने लगे थे। कभी बन्द की घोषणा होती तो कभी रास्ता रोक देते थे। रोजाना घाटी के अलग-अलग हिस्सों मे कुछ न कुछ होने लगा था। कभी कुछ राजनीति से जुड़े हुए लोगों को हत्या कर देते थे और कभी पुलिस को निशाना बना देते थे। राजनीतिक पार्टियाँ अपना ढोल पीट रही थी और सुरक्षा एजेन्सियाँ लगातार नुकसान झेल रही थी। एक दिन मै अपने सीओ के पास गया और उनसे कहा… सर, अब उन तंजीमों पर हमारा डर समाप्त हो गया है। मैने आते ही आपके सामने एक प्रस्ताव रखा था लेकिन आपने उस पर कोई जवाब नहीं दिया है। मै एक और प्रस्ताव आपके सम्मुख रख रहा हूँ कि हम भी यह युनीफार्म छोड़ कर स्थानीय लोगो मे मिल कर उन पर हमला करना आरंभ कर दे तो शायद उन पर कुछ अंकुश लगाया जा सकता है। इसके बारे मे आपका क्या विचार है? …समीर, हम फौजी है कोई मर्सेनरी फोर्स नहीं है। हमारी कार्यवाही फौजी नियमों के अनुसार ही हो सकती है। हम लोग भी नियम और कानून से बंधे हुए है। तुम कोई और तरीका सोचो। यह सुन कर मै वापिस अपनी मेज पर आकर बैठ गया था।

मै अपनी टीम के साथ बैठ कर इस मसले पर चर्चा कर रहा था। सभी का एक ही मत था कि हमारा एक आदमी स्थानीय लोगों के बीच मे होना चाहिए जो हर बदलते हुए माहौल की सूचना समय-समय पर दे सके। जब तक इंटेल से खबर मिलती थी तब तक आतंकवादी अपना स्थान बदल लेते थे। अगर समय पर पकड़ने के लिये निकलते तो हमारे सामने बच्चों को खड़ा कर देते थे। कुछ सोच कर एक दिन मै अपने जेसीओ को बता कर जुमे की नमाज के लिये पुरानी वेषभूषा मे स्थानीय मस्जिद मे चला गया था। वहाँ का माहौल देख कर ही मुझे समझ मे आ गया था कि इलाके की मस्जिदों, मदरसों और तंजीमो के बीच कोई समझौता हो गया है। मौलाना अपनी तखरीर मे खुले आम भारतीय फौज के विरोध मे स्थानीय लोगों को भड़का रहा था। तखरीर समाप्त होने बाद मै भीड़ के साथ बाहर निकला तो सीआरपीफ की टुकड़ी पर बच्चों की आढ़ मे बड़े भी पत्थरबाजी कर रहे थे। मस्जिद से निकलने वाली भीड़ एक किनारे खड़े होकर नारा-ए-तदबीर अल्लाह-हो-अकबर के लगातार नारे लगा रही थी। मै चुपचाप भीड़ मे से निकल कर गलियों मे चला गया। वहाँ का हाल देख कर एक पल के लिये मै स्तब्ध रह गया क्योंकि स्त्रियाँ और लड़कियाँ भी घर से बाहर निकल कर वर्दी वालों को कोस रही थी। थोड़ी देर बाहर का जायजा लेकर अपने कैंम्प पर वापिस लौट आया था। अब मुझे यकीन हो गया था कि सारी चीजें स्थानीय प्रशासन के हाथ से बाहर हो गयी थी।

हर दो दिन मे मेरी बात आफशाँ, अदा और अम्मी से हो जाती थी। आफशाँ ने बताया था कि सब कुछ सामान्य हो गया है। एक दो बार वह मेनका को लेकर बाहर घूमने भी गयी थी। मेनका अब साफ बोलने और दौड़ने लगी थी। उधर अदा ने बताया के वह अपनी पढ़ाई के आखिरी पड़ाव मे जुटी हुई थी। पढ़ाई खत्म करते ही वह मेरे स्टेशन पर पोस्टिंग मांग लेगी। कभी-कभी वह अपनी नाराजगी मुझ पर जाहिर कर देती थी कि मै पूणे का एक चक्कर क्यों नहीं लगा लेता। उधर अम्मी से बात करता तो वह मुझे श्रीनगर आने के लिये कह देती थी। उनकी शिकायत भी जायज थी कि पठानकोट मे रहते हुए इतने दिन हो गये है क्या मै घर का एक चक्कर नहीं लगा सकता? मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसी हालत मे मुझे क्या करना चाहिए। सबको टालते हुए तीन महीने ऐसे ही गुजर गये लेकिन मेरे लिये यहाँ से निकलना नामुम्किन था। कुछ दिन पहले ही श्रीनगर मे बर्फ पड़ी थी जिसके कारण रास्ता भी बंद हो गया था। फौज भी जल्दी से जल्दी बर्फ साफ करके रास्ता खोलने के काम मे जुटी हुई थी। पठानकोट मे बिना काम के बैठना भी अब मुझे भारी लगने लगा था। मेरा ज्यादा समय अब इंटेल रिपोर्ट पढ़ने मे निकलने लगा था। सुबह तीन घंटे मैदान मे अपने साथियों के साथ बिता कर बाकी समय आफिस मे इंटेल रिपोर्ट पढ़ने मे व्यतीत हो रहा था। एक अजीब सी कैफियत मेरे दिमाग मे घर करती जा रही थी।

श्रीनगर   

जमात-ए-इस्लामी के कुछ लोग दबे हुए स्वर मे बात कर रहे थे। मुजफराबाद का रास्ता खुलने से उत्पन्न समस्याओं के बारे मे चर्चा चल रही थी। …सड़क खुल गयी है। सरकार तो अपनी है परन्तु सरकारी अफसरों पर भरोसा नहीं कर सकते। …उस आईएसआई की मेजर ने बताया था कि नौकरशाहों की कमजोरी को पकड़ कर उसका फायदा उठाओ। उसने साफ तौर पर फर्मान जारी किया है कि उस सड़क पर सामान की आवक-जावक मे कोई विघ्न नहीं पड़ना चाहिये। …पर जो सुझाव उसने दिया है क्या वह उचित है? …इसमें सही और गलत का चक्कर नहीं है। उसने हमें गनी और इमरान के नेटवर्क का इस्तेमाल करने के लिये कहा है। …भाईजान वह मेजर पागल हो गयी है। भला अब हम क्या दलाली करेंगें? …बेवकूफ माल से भरा ट्रक सीमा पार से बेरोकटोक निकल आये और फिर हिन्दुस्तान के कोने-कोने मे सुरक्षित पहुँच जाये तो उसके लिये दलाली तो क्या मै अपनी सगी बेटी को भी बेच सकता हूँ। गनी और इमरान के नेटवर्क का इस्तेमाल खुल कर करो जिससे आने वाले सामान के रास्ते मे कोई अड़चन नहीं आये। …मियाँ तुम समझ नहीं रहे हो। तुम्हें पता नहीं शायद कि उनका किस प्रकार का नेटवर्क है। …मुझे जानने की जरुरत नहीं है। गनी और इमरान भी जमात के महत्वपूर्ण सदस्य है। उनका नेटवर्क अगर नौकरशाहों से अपना काम निकालने मे मदद कर सकता है तो फिर मुझे कोई आपत्ति नहीं है। यही सामान आगे चल कर जमात की आमदनी का मुख्य स्त्रोत बनेगा। बाकी चार लोग उस बोलने वाले व्यक्ति को बड़े ध्यान से देख रहे थे परन्तु उसकी बात काटने की किसी मे हिम्मत नहीं थी।   

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2022

मित्रों मैने एक सवाल अपने पाठक एविड से पूछा था कि मेरी रचना “जंग, मोहब्बत और धोखा” के शीर्षक का उसकी कहानी से क्या संबन्ध है? इस प्रश्न का उत्तर है कि उस शीर्षक का संबन्ध  उस कहानी के सभी मुख्य किरदारों से काफी गहरा है।  इस रचना मे सभी मुख्य किरदार इन तीन समस्या से जूझते हुए चित्रण करने की छोटी सी कोशिश की गयी है। इसमे कोई शक नहीं कि अली मोहम्मद और फ्रेया इसके मुख्य किरदार थे। दोनो के बारे मे तो आप समझ गये थे परन्तु अल वलीद के भेष मे अल बक्र, इब्ने मुशारत रस अल-खैमाय का अमीर और बड़ी अम्मी उर्फ गाजिया, कर्नल बशीर काउन्टर इन्टेलिजेन्स का चीफ, टोनी व साउदी प्रिंस इस रचना के मुख्य किरदार है। मोहब्बत के अर्थ को स्त्री-पुरुष संबन्ध तक सिमित करोगे तो इन सभी किरदारों का दायरा संकीर्ण हो जाएगा। इस्लाम के प्रति निष्ठा, दोस्ती का दम भरने वाला, अपनी जागीर के प्रति निष्ठा, इत्यादि भी मोहब्बत के प्रतीक के रुप मे देखे जा सकते है। अगर हरेक किरदार पर गौर किया जाये तो वह रचना के किसी हिस्से मे जंग, मोहब्बत और धोखे से गुजरते है। कोई पहले धोखा खाता और कोई बाद मे, कोई पहले मोहब्बत का शिकार होता है और कोई बाद मे और अंत मे कोई अपने वुजूद की जंग लड़ता है और कोई आतंक से। सभी किरदारों को इन तीनों भावनाओं का अनुभव करना पड़ता है। पता नहीं मै कितना समझाने मे कामयाब हुआ लेकिन मेरी कोशिश थी कि अपनी रचना के पीछे छिपी हुई कहानी को आपके सामने खोल कर रखा जाये। शुक्रिया करम मेहरबानी। अगर आपका कोई  अपना नजरिया है तो मुझ ेबताने की कृप्या किजियेगा। 

वीर

शनिवार, 22 अक्तूबर 2022

आप आप सभी मित्रों को मेरी ओर से दीपावली के शुभ अवसर पर ढेर सारी शुभकामनाएँ। उम्मीद करता हूँ  कि माँ लक्षमी आपके उपर धनधान्य की वर्षा करे और आपके और आपके परिवार के लिये सुख समृद्धि का आशीर्वाद दें।

आपका वीर 

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  काफ़िर- 8

 

एक नजर अदा पर डाल कर मै आगे बढ़ गया और उसके कमरे की सजावट को देखते हुए कहा… बहुत अच्छे से सजाया है। वह चुपचाप कुछ पल मुझे देखती रही और फिर अचानक झपटी और मुझे बाँहों मे जकड़ कर खड़ी हो गयी। मैने धीरे से उसके हाथ पकड़ कर अलग होते हुए पूछा… यह क्या कर रही हो। तुम्हारी फ्लैटमेट क्या सोचेंगी। वह तुनक कर बेड पर बैठते हुए बोली… क्या सोचेंगीं। उनके भी तो बोयफ्रेन्ड यहाँ आते है। मै उसके पास बैठते हुए बोला… परन्तु मै तुम्हारा बोयफ्रेन्ड नहीं हूँ। मै नहीं चाहता कि बेवजह तुम्हारी बदनामी हो। वह मुस्कुराते हुए बोली… वह सब जानती है कि तुम मेरे बोयफ्रेन्ड नहीं हो। मैने एक चैन की साँस लेकर कहा… अब बताओ कि इतने दिन से मुझसे क्यों खफा थी। …तुम जूते उतार कर आराम से बैठो। आज हम कहीं नहीं जा रहे है। शाम को आठ बजे तक हम यहीं है। मै तुम्हें नौ बजे वहीं बस स्टाप पर छोड़ दूँगी। मै जूते उतार कर आराम से बेड पर फैल गया और वह मेरे पास आकर बैठते हुए बोली… क्या तुम अब तक यह सोच रहे थे कि काफ़िर होने के कारण हम लोग तुमसे दूरी बना रहे थे? मैने उसकी ओर देखा तो उसकी नजर मुझ पर टिकी हुई थी।

उससे नजरें मिलाने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी। मकबूल बट ने मेरे माथे पर काफ़िर का दाग लगा कर मुझे सभी से इतना दूर कर दिया कि अब कुछ भी बोलने से पहले मुझे दस बार सोचना पड़ता था। …तुम नहीं समझोगी अदा कि उस वक्त मुझे कैसा लग रहा था। एक पल तो लगा कि मेरी दुनिया ही उजड़ गयी है। अचानक वह मेरे करीब आ गयी और मेरे सीने मे अपना चेहरा छिपा कर बोली… समीर, हम सभी की हालत तुमसे भिन्न नहीं थी। बचपन से जिसके साथ रहे और अचानक एक दिन पता चले के सभी रिश्ते झूठ पर टिके थे तो इंसान का वुजूद हिल जाता है। वह एक पल के लिये चुप हो गयी और फिर धीरे से बोली… इतने दिन तुमसे बात नहीं करने का सिर्फ एक ही कारण था। मै समझ नहीं पा रही थी कि मै तुम्हें किस नजर से देखती हूँ। एक बचपन की शरारत ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था कि मेरी आसक्ति तुम्हारे लिए किस प्रकार की है। जिस दिन तुम घर छोड़ कर गये उसी दिन मेरे लिए सब कुछ साफ हो गया था कि मै तुम्हारे बिना नहीं रह सकती। जिस दिन यह साफ हो गया बस उसी दिन से मेरे लिए सब कुछ आसान हो गया था। उसकी बात सुन कर मै सन्न रह गया क्योंकि मै तो आज उसको अंजली की हकीकत बताने के लिये आया था।

वह धीरे से मेरी ओर झुकी और उसके होंठ मेरे होंठ से जुड़ गये थे। उसका चेहरा उत्तेजना से दहक रहा था। उस रात जो कुछ भी मैने उसके साथ किया था वह अक्षरश: मेरे साथ कर रही थी। एक लम्बे अंतराल के बाद वह अलग हो कर बोली… कैसा लगा? …एक्स्क्युजिट। और तुम्हें? …हेवनली। वह मुस्कुरायी और फिर खिलखिला कर हँस पड़ी थी। मै उसकी ओर ध्यान से देख रहा था। …तुम्हारे जाने बाद अब्बू ने फर्मान जारी किया था कि तुमसे अब सभी रिश्ते समाप्त हो गये है। मकबूल बट का जिक्र आते ही मुझे अंजली का ख्याल आ गया था। अभी तक मैने अदा को हमेशा अपने सबसे करीब पाया था। उसको मैने कभी एक लड़की की तरह नहीं देखा था। मुंबई आने के बाद मानसिकता मे हुए परिवर्तन के कारण अब मेरा नजरिया बदल गया था। वह स्कूल वाली अदा नहीं रही थी। वह देखने मे तो पहले से ही सुन्दर थी परन्तु अब उसका चेहरा मदमस्त यौवन से दमक रहा था। उसकी आँखों मे शरारत के साथ आमन्त्रण के भाव भी पढ़ रहा था। उसके सीने की गोलाईयाँ भी अपना पूरा आकार ले चुकी थी। वह शुरु से पतली दुबली थी परन्तु अब मुझे उसके कुछ खास हिस्सों पर भराव साफ विदित हो रहा था। …क्या देख रहे हो? उसने मुस्कुराते हुए पूछा तो मैने उसके चेहरे को अपने हाथों मे लेकर अपने नजदीक लाकर उसकी आँखों झाँकते हुए धीरे से कहा… बचपन मे शैतान को भगाने का तरीका समझते हुए मैने जिसे देखा था उसमे अब काफी बदलाव आ गया है। उसका गुलाबी चेहरा लाल होने लगा था।  …तो क्या पता चला? …बस देख रहा था कि तब और अब मे काफी फर्क आ गया है।

वह थोड़ी देर मुझे देखती रही फिर मेरे कान मे बुदबुदायी… ऐसे तो फर्क पता नहीं चलेगा। उसकी बात सुन कर मेरी कनपटी तड़कने लगी थी। मेरे चेहरे पर छायी हुई लालिमा को देखते ही वह तुरन्त बोली… मै भी तुम्हारे अन्दर आये हुए फर्क को देखना चाहती हूँ। हमारी बातों कि दिशा जिस ओर जा रही थी मुझे अब डर लगने लगा था। आज उसके सामीप्य और स्पर्श ने मेरे अन्दर उसके प्रति दबी हुई भावनाओं को पुन: भड़का दिया था। वह मेरे नजदीक सरक आयी और अपना उभरा हुआ सीना मेरी बाँह पर रगड़ते हुए बोली… क्या मौलवी साहब की कहानी याद आ गयी? अब मुझसे अपने उपर नियन्त्रण रखना मुश्किल हो गया था। …अदा प्लीज मुझसे दूर हो कर बैठ जाओ। …क्यों क्या मै पहले जैसी नहीं रही? उसकी आँखों मे एक नशा था। उसकी गर्म साँसे मेरे चेहरे पर टकरा रही थी। वह मेरे कान मे धीरे से बोली… मै तुम्हारा साया हूँ। क्या अब भी इसका मुझे सुबूत देना पड़ेगा। एक कमजोर पल मे मेरे सारे नियन्त्रण की धज्जियाँ उड़ गयी थी। एक करवट लेकर उसको अपनी बाँहों मे जकड़ कर अपने नीचे दबा कर उसके होंठों का रस सोखने मे लग गया। मेरे हाथ और उंगलियों ने उसके उभारों को छेड़ना आरंभ कर दिया था। वह मेरी गिरफ्त से निकलने के लिए कभी मचलती और कभी मेरे स्पर्श की अग्नि से जल कर तड़पती। जितना वह निकलने की कोशिश करती उतनी ही भीषणता से कामाग्नि प्रज्वलित होती जा रही थी। मेरे विवेक पर अदा की आसक्ति हावी होती चली गयी थी। हमारे कपड़े अब हमे असहनीय लगने लगने लगे थे।

मैने उसकी आँखों मे झाँकते हुए कहा… अदा सोच लो कि क्या एक काफ़िर की हमेशा बन कर रह सकोगी? एक बार इस दिशा मे हम बढ़ गये तो फिर वापिस नहीं लौटा जा सकता। अचानक उसे पता नहीं क्या हुआ कि उसने मुझे एक ओर धकेल कर बिस्तर के दूसरे सिरे पर जा कर बैठ गयी थी। उसकी इस हरकत से मै भी असमंजस मे पड़ गया था। वह धीरे से रुआँसी आवाज मे बोली… मैने तो तुम्हें अपना मान लिया परन्तु मुझे लगता है कि मै तुम पर दबाव डाल कर अपना बनाने की कोशिश कर रही हूँ। मै ऐसा तो हर्गिज नहीं चाहती। इसीलिए जिस दिन तुम खुद मुझे अपना बनाना चाहोगे उसी दिन मै तुम्हारी हो जाऊँगी। इतना बोल कर वह चुप हो गयी थी। मै चुपचाप लेट कर उसने जो बोला था उसके बारे मे सोच रहा था कि तभी अदा की सिसकी मुझे सुनाई दी तो हड़बड़ा कर मै उठ कर बैठ गया। उसे रोता हुआ देख कर मै उसके निकट पहुँच कर पूछा… अरे क्या हुआ? वह रोती रही लेकिन मुझसे कुछ नहीं बोली। मेरी बहुत मिन्नत करने के बाद उसने कहा… मुझे अपना बनाने के लिए तुम्हें इतना सोचना पड़ रहा है। मै सही थी कि मै ही तुम पर दबाव डाल रही हूँ। पता नहीं उसका शिकायत भरा स्वर था या मेरे कन्धे पर सिर रख कर उसका रोना लेकिन एकाएक मै अपने अतीत मे पहुँच गया था। मैने तमक कर कहा… क्यों जब तुम्हें मेरी बनने का निर्णय लेने मे आठ महीने लगे तो अब तुम मुझे एक घंटा भी नहीं दोगी सोचने के लिए। एक पल के लिए वह स्तब्ध हो कर मेरी ओर देखती रही और फिर जैसे ही उसे मेरी बात समझ मे आयी वह हमेशा की तरह मुझ पर झपटते हुए चीखी… समीर। और फिर रोना भूल कर मुझ पर पिल पड़ी। बचपन से आज तक हमारी बहस का हमेशा अंत इसी तरह से होता था।

उस वक्त हम अपने उसी कमरे मे पहुँच गये थे जहाँ हमारा बचपन बीता था। कामोत्तेजना मे आनन-फानन मे हमारे कपड़े जिस्म से जुदा हो गये थे। उसकी गुलाबी गोलाईयाँ मेरे सामने थी। उन गोलाईयों के शिखर पर लालिमा लिये तड़कते हुए स्तनाग्र सिर उठाए मुझे अपनी ओर आमन्त्रित कर रहे थे। मेरी निगाह का पीछे करते हुए जैसे ही उसे एहसास हुआ उसने शर्मा कर अपने वर्जित क्षेत्र को हाथों से ढकते हुए मुड़ने का प्रयत्न किया लेकिन तभी मैने उसे झपट कर पकड़ लिया और करवट लेकर उसे अपने नीचे दबा लिया। मैने धीरे से उसके माथे को चूमा और फिर उसके कानों को चूम कर उसके गालों से रस निचोड़ने मे लग गया। उसके गालों को लाल करने के बाद उसके कांपते हुए लबों को अपनी जुबान से तर करके उनका रसपान करने मे व्यस्त हो गया। काफी देर तक उसके होंठों को लाल करने के बाद मै नीचे सरक कर उसके कोमल गले पर जा कर रुक गया था। मैने उसकी आँखों मे देखते हुए कहा… अदा, आज मै तुम्हें अपनी मोहब्बत की इतनी निशानी देकर जाऊँगा कि तुम छिपाना भी चाहो तो भी छिपा नही सकोगी। इतना कह कर मैने उसके गले और कन्धे को चूमना आरंभ कर दिया था।

धीरे से सरकते हुए उसके सीने की घाटी को चूम कर मैने दोनो पहाड़ियों पर एक साथ हमला बोल दिया था। एक पहाड़ी को मेरा हाथ छेड़ता तो उसी समय दूसरी पहाड़ी पर मेरे होंठ अपने निशान छोड़ रहे थे। जितना मै उस गुलाबी शिखर की जुबान से मालिश करता और होंठों मे लेकर दबाता उतना ही वह ऐंठ कर कड़े हो जाते थे। दूसरे शिखर को मेरी उँगलियों के बीच फँसा कर कभी तरेड़ता और कभी खींचता और कभी कस कर दबा देता था। इस दो तरफे हमले से वह उत्तेजना से पागल हो कर अपना सिर पटक रही थी। काफी देर तक उसके सीने की पहाड़ियों के साथ खेलने के बाद मैने उसे छोड़ दिया और उसकी नाभि को चूम कर उसके स्त्रीत्व पर नजर डाली तो वह लगातार बह रही थी। उसके स्त्रीत्व के बन्द द्वार पर जैसे ही मैने अपनी जुबान से दस्तक दी तो वह चिहुंक कर उठने लगी परन्तु उसके नितंबों को तब तक मैने जकड़ लिया था। मेरी जुबान पूरी दरार को भिगोने मे लग गयी थी। वह मेरी पकड़ मे कभी मचलती और कभी तड़पती परन्तु मेरी जकड़ से निकलने मे पूर्णत: अस्मर्थ थी। उसके मुख से उत्तेजना की सीत्कार निरन्तर विस्फुटित हो रही थी। उसके नितंब को छोड़ कर मेरी उँगलियों ने धीरे से उसके स्त्रीत्व के द्वार को खोल कर छिपे हुए अंकुर को अनावरित किया। मेरी जुबान ने जिस पल उस अंकुर पर पहला वार किया अदा के मुख से घुटी हुई एक चीख निकल गयी थी। उसके बाद तो वह मेरा सिर पकड़ कर कभी दबाती और कभी हटाने का असफल प्रयास करती। अदा इतनी देर न जाने कितनी पर स्खलित हो गयी थी।

मैने उसे छोड़ दिया लेकिन वह आँखें मूंदे पड़ी रही। कुछ देर के बाद उसने आँखे खोल कर मेरी ओर देख कर बोली… क्या हुआ रुक क्यों गये? उसकी नजर झूमते हुए मेरे पौरुष पर टिकी हुई थी। उसने आगे बढ़ कर तन्नाये हुए अंग को अपनी उँगलियों मे जकड़ कर स्थिर करके चूमा और फिर मेरी ओर देख कर बोली… समीर। हमारी नजरें टकरायी तो अदा ने उस रात की कहानी दोहरानी आरंभ कर दी थी। मेरे अन्दर का लावा अब उबलने लगा था। मैने उसे रोक दिया। अब एकाकार के लिए हम दोनों तैयार थे। एक बार मैने उसकी आँखों झाँकते हुए इशारे से पूछा तो उसकी पल्कों ने झपक कर मुझे अपनी स्वीकृति दे दी। मैने उत्तेजना मे झूमते हुए अपने पौरुष को पकड़ कर स्थिर किया और धीरे से उसके स्त्रीत्व के द्वार पर जा कर टिका दिया। अंग को अंग से छूते ही उसका जिस्म काँप उठा था। मैने धीरे से द्वार पर दबाव डाला तो दोनों पट मेरे अंग की कठोरता के आगे टिक नही सके और खुल गये। हम दोनो की धड़कन बड़ गयी थी। मैने धीरे-धीरे दबाव बढ़ाया और मेरा अंग उसके द्वार को थोड़ा और खोल कर अन्दर सरक गया था। अदा के मुख से दबी हुई आह निकल गयी थी। मै कुछ पल रुक कर अदा के जिस्म मे होते हुए स्पन्दन और संकरेपन को महसूस करने लगा। मैने एक बार फिर से उसकी कमर पकड़ कर दबाव डाला तो मेरा कामांग थोड़ा सा आगे सरक गया परन्तु रुकावट के कारण वह सिर अटका कर वहीं पर रुक गया था। एलिस और अंजली के साथ मैने इस प्रकार की रुकावट का सामना नहीं किया था। मैने एक बार फिर से थोड़ा दबाव बढ़ाया परन्तु आगे बढ़ने मे असफल रहा। एक नजर मैने अदा पर डाली तो पीड़ा की लकीरे उसके चेहरे पर खिंची हुई थी। एलिस की सीख मुझे याद आ गयी थी जो उसने मुझे पहली बार दी थी।

मैने धीरे-धीरे से उस रुकावट पर चोट मारनी आरंभ करते हुए दबाव बढ़ाया तो वह रुकावट एकाएक ढह गयी और मेरा तन्नाया हुआ कामांग सारी बाधाओं और संकरेपन को खोलते हुए धीरे-धीरे अन्दर सरकता चला गया था। रुकावट की दीवार के ढहते ही अदा के मुख से घुटी हुई एक तेज चीख निकल गयी थी। मैने झुक कर उसके होंठों को अपने होंठों से सील कर दिया। एक बार धीरे से अपने आपको स्थिर करने के लिए थोड़ा पीछे हटा और फिर अपनी कमर पर लगातार दबाव बढ़ाते हुए अपने कामांग को अंदर धकेलता चला गया जब तक वह जड़ तक जा कर बैठ नहीं गया था। अदा मचली, छ्टपटायी और फिर तड़पी लेकिन मेरी जकड़ के आगे उसकी एक न चली। मैने उसके होठो को छोड़ दिया और उसके कमसिन उभारों को छेड़ना आरंभ कर दिया। जब उसकी पीड़ा से ज्यादा जिस्मानी उत्तेजना बढ़ने लगी तब उसके जिस्म मे एक बार फिर से स्पंदन आरंभ हो गये थे। अब वह एकाकार के लिए पूर्णत: तत्पर हो गयी थी।

अब कमरे मे धीरे-धीरे चक्रवाती तूफान वेग पकड़ने लगा और हम दोनो उसके वेग मे बहते चले गये। उसकी सिस्कारियों और सित्कारियों के साथ कमरे मे हम दोनो के जिस्म टकराने की आवाज भी गूँज रही थी। उत्तेजना की चरम सीमा की ओर हम दोनो ही निरन्तर अग्रसर हो रहे थे। एक समय ऐसा आया कि लगा जैसे की वक्त थम सा गया था। हम दोनो के जिस्म मे एक बिजली सी कौंधी और सारे बाँध ढहते चले गये। उत्तेजना मे अदा ने कस कर मुझे जकड़ लिया था। एकाएक वह एक झटका लेकर बेरोकटोक बहने लगी और उसके साथ मेरे अन्दर सुलगता हुआ जवालामुखी भी फट गया और कामरस बेरोकटोक बहने लगा। हम दोनो लस्त होकर काफी देर तक बिस्तर पर पड़े रहे थे। जब हिलने योग्य हुए तो मै उससे अलग होकर उठ कर बैठ गया। मेरी नजर अदा के जिस्म पर पड़ी तो वह दमक रही थी। एकाकार के पश्चात उसका चेहरे देदीप्यमान हो रहा था। वह धीरे से कराहते हुए उठी तो मेरी नजर बिस्तर की चादर पर पड़ी जहाँ एक बड़ा सा लाल धब्बा बना हुआ था। मैने उसे सहारा दे कर बिठाते हुए कहा… कैसा लग रहा है? उसके चेहरे पर पीड़ा साफ झलक रही थी परन्तु वह मुस्कुरा कर बोली… एक्स्क्युजिट। उसका जवाब सुन कर मै खिलखिला कर हँस दिया था। शाम तक अदा और मै एक दूसरे के जिस्म से खेलते रहे थे। हमने खाना बाहर से मंगा लिया था। साथ खाना खा कर मैने कहा… तुम आराम करो। मै खुद चला जाऊँगा। उसकी जिद्द के सामने हमेशा की तरह मैने जल्दी हथियार डाल दिये थे। मुझे बस स्टाप पर उतार कर वह वापिस चली गयी थी।

मेरी ट्रेनिंग और पढ़ाई का भार धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था। जब भी मुझे बाहर जाने का मौका मिलता तो पूरा दिन अदा के साथ गुजरता था। इन सबके बावजूद हर दो दिन बाद अंजली और अम्मी से फोन पर बात हो जाती थी। एक दिन अंजली ने बताया कि अब किसी भी दिन डिलीवरी हो सकती है। यह सुनते ही मैने एक हफ्ते की छुट्टी की अर्जी लगा दी थी। जैसे ही छुट्टी मिली मै अदा को बता कर मुंबई चला गया था। अंजली फ्लैट छोड़ कर अस्प्ताल मे शिफ्ट हो गयी थी। स्टेशन पर उतरते ही मै अस्पताल चला गया और फिर एक दिन बाद सुबह की पहली किरण के साथ अंजली ने एक सुन्दर सी बिटिया को जन्म दिया। अगले तीन दिन अस्पताल मे न जाने कैसे निकल गये थे। अंजली के घर लौटते ही हमने मिल कर अपनी बच्ची को मेनका का नाम दे दिया था। एक हफ्ते की छुट्टी समाप्त करके जिस दिन मै मुंबई से पूणे के लिए निकला था तब तक अंजली और बच्ची की देखभाल की सारी व्यवस्था का इंतजाम हो गया था।

राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के तीन साल ने मुझे एक शर्मीले सहमे हुए अठारह साल के लड़के को अनुशासन, कठिन परिश्रम, बंधुत्व और नेतृत्व के लिये तैयार कर दिया था। पहले दिन ही मेरा अनुशासन से परिचय हो गया था। उठने से लेकर सोने तक का समय टाइमटेबल के अनुसार तय हो गया था। सुबह पाँच बजे उठ कर ग्राउन्ड पर हाजिरी के बाद कब दिन समाप्त होता पता ही नहीं चलता था। मेरे बहुत से साथी यह सोच कर आये थे कि यहाँ आने के पश्चात पढ़ाई से पीछा छूट जाएगा परन्तु ऐसा हुआ नहीं। क्लासरुम की पढ़ाई ने मुझे बहुत सी नयी जानकारियों से अवगत कराया था। हैंड-टु-हैन्ड कोम्बेट से लेकर आधुनिकतम हथियारों से मेरा परिचय कराया गया था। क्लासरुम मे शायद ही कोई ऐसा विषय था जिसकी जानकारी नहीं दी गयी थी। आधी डाक्टरी का ज्ञान मुझे क्लासरुम मे मिल गया था। एनेटामी की क्लास मे इंसानी जिस्म मे नर्वस सिस्टम की जानकारी देकर अतिसंवेदनशील नर्व्स को चिंहनित करके बताया गया कि हल्की सी चोट इंसान को निष्क्रिय कर देती है। इसी प्रकार सभी विषय की इन्जीनीयरिंग का ज्ञान भी क्लासरुम मे मिल गया था। सितारों की पहचान मैप रीडिंग की क्लास के दौरान करायी गयी थी। अगर कहा जाये कि तीन साल मे इतना ज्ञान क्लासरुम मे मिला था जो शायद मै आम जिन्दगी मे हर्गिज नहीं ले सकता था तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। बहुत बार क्लास मे कैडेट्स का एक ही सवाल होता था कि इसको पढ़ने की उन्हें क्या जरुरत है और सभी इंस्ट्रक्टरों का एक ही जवाब होता था कि किसी रोज तुम्हारी और तुम्हारे साथियों की जान बचाने के लिये इसकी जरुरत पड़ेगी।    

हमारे अन्दर बन्धुत्व की भावना जागृत करने के लिये कोई क्लास नहीं लगी थी परन्तु यह भावना धीरे-धीरे हर केडेट के मानस मे घर कर गयी थी। एक केडेट की गल्ती पर अनुशासनातम्क कार्यावाही सारे बैच को झेलनी पड़ती थी। मुझे अपनी ट्रेनिंग के पहले हफ्ते मे समझ मे आ गया था कि अगर हम पहला टर्म पास करेंगें तो सभी करेंगें अन्यथा सभी को दोबारा रिपीट करना पड़ेगा। हमारा एक बैचमेट श्रवण दिल्ली के पब्लिक स्कूल से आया था। ट्रेनिंग आरंभ होने के दूसरे दिन ही हमारे बैच के अधिकारी हमारे विचार और सुझाव जानने के लिये आये थे। उन्होंने आते ही हमसे पूछा… किसी को कोई तकलीफ तो नही है? श्रवण ने हाथ उठा कर कहा… मास्टर ब्रेकफास्ट की टेबल पर जब तक हम पहुँचते है तब तक सेकन्ड इअर का बैच सब कुछ साफ कर देते है और हमारे को बचाकुचा ही मिलता है। …अच्छा ऐसी बात है। अपने साथ आये हुए गार्ड को उन्होंने तुरन्त कहा… सेकन्ड इअर के रेप को लेकर आओ। हम सब श्रवण की ओर बड़ी इज्जत से देख रहे थे क्योंकि हम मे से किसी ने यह कहने की हिम्मत नहीं दिखायी थी। वह गर्वीले अंदाज मे एक दृष्टि हम सब पर डाल कर बोला… सर, आप अगर मेस मे हमारी टेबल अलग लग जाएगी तो सब ठीक हो जाएगा। कुछ ही देर मे सेकन्ड इअर का रेप वहाँ पर हाजिर हो गया था। उस अधिकारी ने गर्जते हुए कहा… तम्बी तुम सेकन्ड इअर वाले नये केडेट्स के सामने कैसा उदाहरण पेश कर रहे हो। तुम्हें शर्म नहीं आती कि तुम इन्हें इस प्रकार की ट्रेनिंग दे रहे हो कि यह बेचारे मेस की टेबल तुम्हारे छोड़े हुए सामान को देख कर परेशान हो रहे है। अभी तक हम सब श्रवण को मन ही मन धन्यवाद दे रहे थे। …तम्बी इन लोगो को आज रात इतना टाइट कर देना कि कल से इन्हें मेस की टेबल पर अगर कुछ भी न मिले तो भी यह परेशान न हों। एक पल के लिये हम सभी को सांप सूंघ गया था। वह अधिकारी मुड़ा और श्रवण की ओर देख कर बोला… कैडेट अगर कोई और परेशानी हो तो बताओ? श्रवण जो अब तक हीरो बना हुआ था अचानक एन्टीक्लाईमेक्स देख कर अब अपने आप को दोषी मान रहा था।

उस रात अपनी दुर्गति का क्या बयान करुँ परन्तु सेकन्ड इअर वालों ने पूरी रात हमारी ऐसी गत बनायी कि बता नहीं सकता और अगली सुबह ठीक पाँच बजने से कुछ मिनट पहले उन्होंने हमे छोड़ दिया था। रातभर जागे थे परन्तु हमारी दिनचर्या आरंभ हो गयी थी। ब्रेकफास्ट की टेबल पर खाने के लिये बिस्किट का टुकड़ा भी नहीं मिला था। एक दिन मे ही हमे सारी परेशानियों से निजात मिल गयी थी। यह कार्यक्रम हमारे साथ पूरे एक हफ्ते तक चला था। श्रवण की मानसिक हालत देख कर हम सभी का रुख उसकी ओर सहानुभुति वाला हो गया था। एक हफ्ते बाद वही अधिकारी दोबारा आये और एक बार फिर से वही सवाल पूछा… अब तो किसी को कोई परेशानी नहीं है? उन्होंने श्रवण की ओर देखा तो वह सिर झुकाये बैठा हुआ था। एक दो बार पूछने के बाद वह वापिस चले गये थे। अगले दिन से सब ठीक हो गया था। उसके बाद तीन साल हम साथ रहे लेकिन फिर किसी ने नाश्ते, खाने या अन्य किसी सुविधा के बारे मे भूल से भी कुछ नहीं कहा था। इसी प्रकार अगर कोई कैडेट से कोई गल्ती होती तो उसका दंड पूरे बैच को भुगतना पड़ता था। कुछ ही दिन मे यह बात समझ मे आ गयी थी कि साठ कैडेट्स का भविष्य एक साथ जुड़ा हुआ है। इसका असर यह हुआ कि जो कैडेट्स पढ़ाई मे अच्छे थे वह कमजोर कैडेट्स को पढ़ने मे मदद करते थे। यही मानसिकता ड्रिल, एक्सर्साइज, वार गेम्स, हथियार चलाना व स्पोर्ट्स के अन्दर भी बन गयी थी। एक दूसरे का हाथ पकड़ कर हमारे तीन साल गुजरे थे। किसी ने बंधुत्व के बारे मे नहीं बताया था परन्तु यह भावना पहले साल जो अंकुरित हुई वह तीन साल मे पास आउट के समय एक वृक्ष के रुप मे जड़ पकड़ गयी थी।

निशानेबाजी, घुड़सवारी व अन्य सैन्य युद्ध की कलायें सिखायी गयी थी। मुझे पता ही नहीं चला कि कब और कैसे मेरे व्यक्तित्व मे इतना बदलाव आ गया था। तीन साल मे एक शर्मीला, सहमा हुआ लड़का जेन्टलमेन कैडेट बन गया था। उन तीन साल मे मेरी कायाकल्प हो गयी थी। शुरुआती महीनो मे दूसरों को देख कर मै अपना काम चला लेता था। जब पहला इम्तिहान हुआ और फिजिकल और फील्ड एक्सर्साईज आरंभ हो गयी तब दस कैडेट की अगुआई का जिम्मा मेरे उपर आ गया था। उस स्थिति मे तब निर्णय लेने की क्षमता स्वत: ही मेरे व्यक्तित्व मे पुख्ता होने लगी थी। असंख्य बार वार गेम्स मे मुझे ऐसे निर्णय लेने पड़ते थे जिसका सीधा असर मेरे साथियों और उद्देश्य पर पड़ता था। सच पूछिये तो नेतृत्व की कोई क्लास नहीं हुई थी परन्तु रोजमर्रा जिंदगी मे बंधुत्व की तरह नेतृत्व भी मेरे व्यक्तित्व मे निखरता चला गया था। खडगवासला मे तीन साल गुजारने के बाद हमारा समूह बिखर गया था परन्तु वह मेरे जिन्दगी भर के लिये ब्रदर कैडेट्स बन गये थे। किसी ने नहीं बताया परन्तु अपने आप समझ मे आ गया था कि सेना मे न जाने कब और कहाँ जाना पड़ जाये। पता नहीं खाने को मिले या न मिले, सोने के लिये जगह मिले या न मिले, व अन्य छोटी-छोटी चीजों के लिये परेशान होने की जरुरत नहीं है। परेशानी तो उस वक्त भी नहीं होती जब दुश्मन की गरजती हुई तोप दिखती है जब कि उसमे जान जाने का खतरा सदैव बना रहता है। आगे चल कर मुझे समझ मे आया कि एक सैनिक को असली परेशानी तो उस वक्त होती जब वह अपने साथी की शहादत की खबर उसके परिवार को देने जाता है।    

वहाँ के बहुत सारे अच्छे और बुरे संस्मरण मुझे आज भी याद है। जिस दिन मुझे कमीशन मिली उस दिन सिर्फ अम्मी और अंजली आ सकी थी। अदा के इम्तिहान चल रहे थे। हमने अभी तक अम्मी को अपने बदले हुए रिश्ते के बारे मे नहीं बताया था। जब अम्मी को पता चला कि अंजली ने अपनी बेटी का नाम मेनका रखा है तो वह अंजली के गले लग कर काफी देर तक रोती रहीं थी। अम्मी ने अंजली से जब उसकी शादी और पति के बारे मे पूछा तो उसने वही समीर कौल की गड़ी हुई कहानी उन्हें सुना दी थी। अम्मी अकेली आयी थी और परेड समारोह के अगले दिन ही वह वापिस चली गयी थी। अंजली मेरे साथ तब तक रही जब तक मेरी पहली नियुक्ति के आर्डर नहीं मिले थे। वह बीस दिन मेरी जिंदगी के सबसे बेहतरीन दिनों मे से थे। उन्हीं दिनों मे एक रात मैने हिम्मत जुटा कर अंजली को अदा के बारे मे भी बता दिया था। मै यकीन से तो नहीं कह सकता लेकिन पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगा कि मेरे और अदा के रिश्ते के बारे मे जान कर अंजली को बेहद सुकून मिला था। यह भी हो सकता कि वह मेरा भ्रम हो लेकिन उसकी एक बात सुन कर मुझे लगा कि अंजली को यह बात सुन कर बुरा नहीं लगा था। मुझे पता नहीं कि उसने वह बात संजीदा हो कर कही थी अथवा नहीं लेकिन एक रात एकाकार के बाद जब हम अपने अतीत को टटोल रहे थे तभी वह अचानक बोली… समीर, बट परिवार को कभी माफ मत करना। कौल परिवार का बदला लेने के लिए उसकी एक बेटी से काम नहीं चलेगा। उसके वंश का नाश होना चाहिये जैसे उसने कौल परिवार के वंश का नाश किया था। उस वक्त मै उसके चेहरे को देखता रह गया था। पता नहीं उसके मन मे क्या चल रहा था परन्तु इतना बोल कर वह जोर से खिलखिला कर हँस दी थी। कुछ देर बाद वह संजीदा स्वर मे बोली… समीर, मकबूल बट को उसके परिवार से हमेशा अलग रख कर देखना क्योंकि शमा भाभी का कौल परिवार पर एक एहसान है जिसके लिये मै हमेशा उनकी ॠणी रहूँगी। इतना बोल कर अचानक वह मुझसे लिपट कर रोने लगी। मै उसको चुप कराने मे लग गया था।

अगले दिन हम पूना मे पार्वती हिल्स पर मंदिर से बाहर निकल रहे थे कि अचानक वह बोली… मै अदा से मिलना चाहती हूँ। …अभी। …हाँ। …अंजली उसके इम्तिहान चल रहे है। इस वक्त उससे मिलना ठीक नहीं होगा। वह कुछ नहीं बोली परन्तु मै उसकी जिज्ञासा को समझ रहा था। हम जब तक वहाँ रहे अंजली ने अदा के बारे मे फिर कभी कोई जिक्र नहीं किया था। उन तीन सालों मे मैने महसूस किया था कि अंजली और अदा मे कोई ज्यादा फर्क नहीं था। दोनो ही मुझ पर जान छिड़कती थी परन्तु दोनो ही मुझ पर हावी रहती थी। मेरे लिये तो उनका एक ही नियम था- कह दिया सो कह दिया। अदा की सच्चायी से अंजली परिचित थी परन्तु अभी तक अदा को अंजली की सच्चायी का पता नहीं था। एक बार अंजली से इस बारे मे बात भी हुई थी तब उसने सलाह दी थी कि अदा की पढ़ाई समाप्त होने के बाद ही बताना ठीक रहेगा क्योंकि पता नहीं वह इस एक सच्चायी को किस प्रकार लेगी। जैसे ही मेरी नियुक्ति का आर्डर मिला तो मेनका को लेकर अंजली वापिस मुंबई लौट गयी थी।

मेरा तीन साल का स्कोर अपने बैच मे पहले दस मे था इसीलिए मेरी नियुक्ति आर्मी की स्पेशल फोर्सेज कोर मे हो गयी थी। उसकी विशेष ट्रेनिंग के लिये मुझे दो महीने के लिये महु और फिर दो महीने के लिये वेलिंगटन भेजा गया था। वहाँ की ट्रेनिंग ने मुझे सैनिक से एक चलती-फिरती मौत मे तब्दील कर दिया था। मानसिक तौर पर मेरे अन्दर काफी बदलाव आ गया था। अकेले जब अड़तालीस घंटे जंगल और दलदल मे निकालना पड़े तब काफी आत्मज्ञान अपने आप हो जाता है। मुश्किल से मुश्किल परिस्थिति मे जिवित रहने की कला और जीवन के प्रति एक श्रद्धा का जज्बा अंकुरित हो जाता है। इसी प्रकार स्पेशल फोर्सेज की ट्रेनिंग मे रोजाना विभिन्न प्रकार की मानसिक एवं शारिरिक क्षमता की परीक्षा हुआ करती थी। वहाँ किसी भी प्रकार की कमजोरी के लिये कोई जगह नही थी। वहाँ पर सिर्फ एक ही जज्बा कूट-कूट कर भरा गया था कि दुश्मन की मौत ही तुम्हारा जीवन है। अगर वह बच गया तो तुम्हारा अंत निश्चित है। जब जीवन और मौत के बीच संघर्ष करना पड़े तब जीवन इंसान के दिमाग व शरीर के सौ प्रतिशत कार्यक्षमता और कौशल पर निर्भर करती है।    

जब भी अंजली को समय मिलता तब दो-तीन दिन के लिये वह मेनका को लेकर महु और वेलिंगटन मे मुझसे मिलने आ गयी थी। अदा भी अपने इम्तिहान समाप्त करके एक हफ्ते के लिये महु आ गयी थी। ऐसे ही समय बीत गया था। मेरी सबसे पहली नियुक्ति पठानकोट मे हुई थी। अपनी पहली नियुक्ति पर ही मेरा सामना इस्लामिक जिहादियों से हुआ था। दक्षिण कश्मीर सेक्टर मे एन्काउन्टर और कोम्बिंग आप्रेशन का चार्ज मुझे दिया गया था। एक नायक और एक वायरलैस आप्रेटर के साथ दस सैनिक मेरी कमांड मे थे। सूचना मिलते ही एक जीप और बख्तरबंद मशीन गन कैरियर तुरन्त जिहादियों को उनकी हूरों से मिलवाने के लिये निकल जाते थे। मेरा पहला एन्काउन्टर रावी नदी के पार कुछ सात मील दूर राधा कृष्न मंदिर के प्रागंड़ मे हुआ था। हमे सूचना मिली थी कि चार पाकिस्तानी हथियारों से लैस जिहादी मंदिर के पुजारी और उसके परिवार को बंधक बना कर मंदिर मे बैठे हुए है। मेरे साथ सभी अनुभवी सैनिक थे। रास्ते मे नायक रघुबीर गुर्जर ने पूछा… जनाब, मंदिर मे छिपे हुए जिहादियों का क्या करना है? …उनकी लाशें लेकर वापिस लौटना है। …जी जनाब। बस इतनी बात हमारे बीच मे हुई थी।

जब हम राधा कृष्न मंदिर पहुँचे तब तक चारों जिहादी अलग-अलग जगह पर मोर्चबंदी करके बैठ गये थे। स्थानीय पुलिस ने हमे बताया कि सभी आधुनिक एके-47 से लैस है। पुजारी के साथ उसकी बीवी और तीन बच्चों को उन्होंने बंधक बना रखा है। पुलिस ने मंदिर के अन्दर का नक्शा हाथ से बना कर मुझे थमा दिया था। हथियार और बंधको की खबर मिलते ही मैने अपनी रणनीति पर काम करना आरंभ कर दिया था। अगले पन्द्रह मिनट मैने अपनी टीम के चार सदस्यों को मंदिर के अन्दर का नक्शा समझा कर उन्हें मंदिर की चारदीवारी से दूरी बना कर चक्कर लगाने के लिये भेज दिया। उनको ग्राउन्ड जीरो को समझने व उस स्थान का आंकलन करने काम सौंपा था। बाकी चार को मुख्य द्वार पर तैनात कर दिया था। हमे उनके छिपने के स्थान के बारे मे जानकारी चाहिये थी। नक्शे को देख कर मैने चार स्थानों पर निशान लगा कर कहा… यह चार ऐसे स्थान है कि जहाँ से जिहादी मुख्य द्वार पर निगाह जमा कर बैठे होंगें। …सर, इसका मतलब तो यह हुआ कि सामने से प्रवेश करना खतरनाक साबित हो सकता है। …हाँ। कुछ देर के बाद हमारे चार सैनिकों की टीम लौट कर बोली… पीछे से निकलने का कोई रास्ता नहीं है। आठ फीट उँची चारदीवारी है। आसपास के मकान भी सभी एक मंजिला है। उनसे बात करते हुए मेरी नजर कुछ दूरी पर एक ऊँची सी नयी बनती हुई इमारत पर पड़ी तो मैने जल्दी से इशारे से उस इमारत को दिखाते हुए कहा… गनर शेष राम अपनी राइफल लेकर उस इमारत की छत पर तैनात हो जाओ। हम तुम्हें निशानेबाजी के लिये आज भरपूर मौका देंगें। गनर शेष राम तुरन्त अपनी लम्बी दूरी की स्नाईपर राईफल लेकर उस ओर चला गया था।

पुलिस और सीआरपीएफ ने सारा इलाका सील कर दिया था। चार सैनिक मुख्य द्वार पर तैनात करके बाकी को अपने साथ लेकर मै उस मंदिर की दीवार कi ओर चल दिया था। …नायक साहब अगर मेरा अनुमान ठीक है तो यह जगह चारों का ब्लाइन्ड स्पाट होगा। यहाँ से मै अकेला आगे बढ़ रहा हूँ। आप मुझे कवर किजिये। जल्दी ही उनकी ओर से पहली फायरिंग होगी। बाकी आप सभी चारदीवारी के साथ फैल जाईये और उनके फायरिंग के स्थान की निशानदेही करने की कोशिश किजिये। कोई शक? मै तैयार हो गया था। एड्रीनलिन की मात्रा मेरे जिस्म मे बढ़ गयी थी। टू-वे माइक्रोफोन को सभी ने कान पर लगा लिया था। …शेष राम क्या पोजीशन है? …जनाब पूरी छत यहाँ से साफ दिख रही है। …दूरी? …50 मीटर के करीब। …ओके शूट टु किल। …यस सर।

…बी टीम रेडी। …जी जनाब। फायरिंग आरंभ होते ही मंदिर मे घुस कर मोर्चा संभाल लेना। …जी सर। मेरे साथ आये हुए बाकी सैनिक अब तक मंदिर की कम्पाउन्ड वाल के साथ चलते हुए पोजीशन ले चुके थे। एक नजर मैने नायक पर डाली तो वह मुझे देख रहा था। मैने सिर हिला कर उसे इशारा किया और हाथ मे स्मोक ग्रेनेड के पिन को निकालते हुए माईक्रोफोन पर बोला… रेडी…गो। बास्केट बाल का गेम आरंभ हो गया था। कुछ दूरी से दौड़ते हुए मंदिर की दीवार पर पाँव जमा कर हवा मे उछलते हुए स्मोक ग्रेनेड अन्दर उछाल कर दीवार के सहारे आगे बढ़ गया था। एक क्षण के लिये मैने अपने आप को उस कथित स्थान के आगे प्रकट हुआ और फिर दीवार की आढ़ मे चला गया था। कोई फायर नहीं हुआ तो मेरा पहला अनुमान गलत साबित हो गया था। यही एक्सरसाइज मैने दूसरे स्थान के लिये भी की परन्तु फिर भी उनकी ओर से फायर नहीं हुआ तो अबकी बार मुझे लगा कि रणनीति बदलनी पड़ेगी लेकिन तभी राइफल फायर के साथ ही शेष राम की आवाज कान मे पड़ी… सर, वन डाउन। थ्री मोर टु गो। अब तक मंदिर का अन्द्रुनी हिस्सा धुएँ से अट गया था। पहली कामयाबी के साथ ही एक नया जोश सभी मे भर गया था। …बी टीम रेडी टु मूव इनसाइड। मैने सिर्फ चार स्मोक ग्रेनेड इस्तेमाल किये और शेष राम ने दो फायर किये थे। बी टीम को एके-203 अस्साल्ट राइफल से दो बर्स्ट फायर करने पड़े थे। चार जिहादी अगले बीस मिनट मे अपनी हूरों के साथ रंगरलियाँ मनाने के लिये डिस्पैच कर दिये गये थे। पुजारी और उसका परिवार एक कमरे से सकुशल निकाल लिया गया था। चार लाशों का निरीक्षण करके और उनकी तस्वीर निकाल कर हमने उन्हें स्थानीय पुलिस को सुपुर्द किया और अपना सारा सामान समेट कर वापिस पठानकोट की ओर चल दिये थे। …जनाब आप बास्केटबाल के खिलाड़ी है? …अकादमी मे खेलता था। …साबजी अपना हनुमान सिंह सर्विसिज की बास्केटबल टीम मे है। किसी दिन मैच हो जाये? बस ऐसे ही बातों-बातों मे हर बार मेरे साथी मेरी परीक्षा लेने की कोशिश मे लगे रहते थे। उनका विश्वास जीतने के लिये मुझे दुगनी मेहनत करनी पड़ती थी। ऐसे तीन एन्काउन्टर और चार कोम्बिंग आप्रेशन के बाद वह मुझे भी अपने जैसा अनुभवी मानने लगे थे।       

मुझे पठानकोट मे रहते हुए चार महीने हो गये थे। अब तक मै अपने साथियों की नजरों मे अफसर की इज्जत का हकदार बन गया था। सभी साथी मेरी सैन्य रणनीति पर विश्वास करने लगे थे। तभी एक दुर्घटना ने मेरी जिंदगी की दशा और दिशा को एक बार फिर से मोड़ दिया था। जुलाई मे मुंबई के सीरियल ब्लास्ट मे अंजली की मौत हो गयी थी। वह शाम को अस्पताल से घर जा रही थी तभी दादर के पास हुए एक ब्लास्ट की चपेट मे वह आ गयी थी। खबर मिलते ही मेरा दिल बैठ गया था। कौल परिवार से मुझे जोड़ने वाली मेरी आखिरी डोर भी टूट गयी थी। बस अब मेरी पहचान सिर्फ एक काफ़िर की रह गयी थी। पठानकोट से इमर्जेन्सी छुट्टी लेकर मुंबई पहुँच कर मैने अंजली का दाह संस्कार करवाया और उसके सारे आखिरी कार्य पति के रुप मे सम्पूर्ण किये थे। उसके अस्पताल और बैंक के सारे कार्य पूरे करने मे मेरा ज्यादातर समय निकल गया था। अब मेरी सबसे बड़ी समस्या मेनका की परवरिश की थी। ढाई साल की मेनका को मै अपने साथ नहीं रख सकता था क्योंकि मेरी फ़ील्ड पोस्टिंग थी। उसकी आया तो उसे संभाल रही थी परन्तु उसके भरोसे तो मेनका को मुंबई मे अकेला तो छोड़ा नहीं जा सकता था। मुझे समझ मे नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। एक बार अदा का ख्याल आया तो उसके आखिरी साल की जिम्मेदारी और इन्टर्नशिप कि सोच कर फिलहाल मेनका का भार उस पर डालना मुझे उचित नही लग रहा था। मुझे यह भी नहीं पता था कि वह मेनका की असलियत के बारे मे जान कर क्या निर्णय लेगी तो आखिरकार मैने मेनका को पठानकोट ले जाने का मन बना लिया था।

शाम को हमेशा की तरह अम्मी से बात कर रहा था कि बातों-बातों मे अम्मी ने बताया कि आफशाँ पिछले चार महीने से बैंगलोर छोड़ कर मुंबई मे नौकरी कर रही थी। जब से आफशाँ पढ़ने के लिये बैंगलौर गयी थी तब से हमारे बीच मे कोई संपर्क नहीं हुआ था। मेरे पास ज्यादा समय नहीं बचा था। मुझे तीन दिन मे वापिस पठानकोट पहुँचना था। पता नहीं क्या सोच कर मैने कार उठाई और आफशाँ से मिलने के लिये उसके आफिस पहुँच गया था।