रविवार, 27 अगस्त 2023

  

गहरी चाल-23

 

फारुख से मिलने से पहले मै अपने आपको वलीउल्लाह के मामले मे पूरी तरह से तैयार कर लेना चाहता था। मै आफिस मे बैठ कर वीके द्वारा दी गयी फाईल और जनरल मोहन्ती के द्वारा दी गयी रिपोर्ट के बीच कोई तारतम्य निकालने की कोशिश मे जुटा हुआ था। सबसे ज्यादा ग्रिड रेफ्रेन्स मांगने वाली डेल्टा साफ्टवेयर सौल्युशन्स थी जिसमे आफशाँ काम कर रही थी। उस कंपनी के मांगे हुए ग्रिड रेफ्रेन्स और अब तक फिदायीन और फारुख के यहाँ से मिले हुए ग्रिड रेफ्रेन्स मे कोई मेल नहीं दिख रहा था। मेरी जाँच का दायरा बाकी तीन कंपनी पर सिमट कर रह गया था। मैने अपना ध्यान स्काईलैब कन्सल्टिंग ग्रुप पर लगाया था। वह कंपनी थल सेना के लिये बल्क डेटा एनेलिसिस पर काम कर रही थी। उनके द्वारे मांगें हुए ग्रिड रेफ्रेन्स का मिलान उन पाये गये कुछ सात अंकों के नम्बरों से हो गया था। उस कंपनी के बारे मे वीके की फाईल बता रही थी कि बीस-बीस लोगों के तीन समूह अलग-अलग थल सेना की सूचनाओं पर काम कर रहे थे। मैने उन साठ काम करने वाले लोगो के बारे मे दी गयी जानकारी पढ़ना शुरु कर दिया था। सभी अच्छे कालेजों से पास करने वाले साफ्टवेयर इन्जीनियर थे लेकिन उनमे युवतियों की संख्या ज्यादा थी। यही पैटर्न मुझे आफशाँ के समूह मे भी दिखा था। इनमे से कौन वलीउल्लाह हो सकता था?

मैने तीसरी कंपनी स्काई टेलिकान को खंगालना शुरु किया। कुछ सात अंकों के नम्बर उनकी लिस्ट मे भी मिल गये थे। वह सेना के सारे संसाधनों के डाटा को अलग-अलग जगह से इकठ्ठा करके जरुरत के अनुसार कोडिंग देकर बल्क डेटाबेस बनाने के काम मे लगे हुए थे। उस कंपनी के सौ से ज्यादा लोग थलसेना के लिये काम कर रहे थे। दस-दस के समूह मे देश के ब्रिगेड हेडक्वार्टर्स मे वह तैनात थे। एक पच्चीस लोगों का समूह सेना भवन से मिली हुई सारी सूचनाओं का बल्क डेटाबेस तैयार करने मे कार्यरत था। यहाँ पर भी युवतियों की संख्या अनुपात मे ज्यादा थी। इसी प्रकार मैने चौथी कंपनी इन्फीकान साफ्टवेयर कंपनी को भी खंगालना आरंभ कर दिया था। यह कंपनी वायुसेना के लिये साफ्टवेयर सौल्युशन्स बना रही थी। इसमे भी वही पैटर्न देखने को मिला जैसे बाकी सब मे मिला था। उनके द्वारा मांगे हुए कुछ ग्रिड रेफ्रेन्स का मिले हुए सात अंकों के नम्बरों से मिलान हो गया था। बाकी काम और काम करने वालो मे वही पैटर्न देखने को मिला जैसा पहले तीन कंपनी मे देखने को मिला था। सामान्यता एक कंपनी का दूसरी कंपनी के साथ काम मे और काम करने वालो मे दूर-दूर तक कोई संबन्ध नहीं दिख रहा था। यहाँ तक कंपनी के प्रमोटर्स और बोर्ड के सदस्य भी अलग-अलग थे। इतनी मेहनत के बाद मै इसी नतीजे पर पहुँचा था कि अगर वलीउल्लाह एक आदमी है तो वह स्ट्रेटिजिक कमांड सेन्टर मे बैठा हुआ है। इतना तो अब तक मुझे समझ मे आ गया था कि वलीउल्लाह का निजि कंपनियों मे होना लगभग असंभव है। एन्काउन्टर मे पाये गये सात अंकों के अलग-अलग जगहों के ग्रिड रेफ्रेन्स सिर्फ कमांड सेन्टर मे ही मिल सकते थे।

मै अपना सिर पकड़ कर बैठा हुआ था कि जनरल रंधावा की आवाज गूंजी… मेजर, किस सोच मे डूबे हुए हो। चलो मेरे साथ अब कुछ काम भी कर लो। मै हड़बड़ा कर उठा और जनरल रंधावा के साथ चल दिया। …क्या सोच रहे थे मेजर? …सर, वलीउल्लाह को खोजने मे लगा हुआ था। अभी तक मै इसी नतीजे पर पहुँचा हूँ कि वलीउल्लाह कमांड सेन्टर मे कहीं पर बैठा हुआ है। मुझे वीके से इस मामले मे बात करनी पड़ेगी। …उसी से मिलने जा रहे है। अजीत भी वहीं बैठा हुआ है। हम दोनो वीके के कमरे मे दाखिल हो गये थे। वीके और अजीत सर बैठे हुए बात कर रहे थे। मै अभी तक पूरी तरह से गैर-फौजी नहीं बन सका था। पहले मुस्तैदी से सैल्युट किया और फिर चुपचाप जाकर एक किनारे मे जाकर बैठ गया। जनरल रंधावा ने कहा… वीके, मुंडा कुछ पूछना चाहता है। मैने चौंक कर जनरल रंधावा की ओर देखा तो वीके ने कहा… मेजर पूछ लो जो पूछना चाहते हो। मै एक पल के लिये बोलते हुए अटक गया था फिर अपने विचारों को इकठ्ठा करके मैने कहा… सर, आपकी दी हुई फाईल को देख कर मै इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि वलीउल्लाह अगर एक आदमी है तो वह कमांड सेन्टर मे बैठा हुआ है। यह बोल कर मैने सारी कार्यविधि उनके सामने खोल कर रख दी थी। तीनों मेरी खोज से सहमत थे परन्तु अजीत सर ने कहा… मेजर, मेरी सलाह है कि अभी से किसी निष्कर्ष पर मत पहुँचों क्योंकि हो सकता है कि वलीउल्लाह इसरो सेन्टर अथवा डीआरडीओ मे भी बैठा हो सकता है। …जी सर। यह भी मुम्किन है। वीके सर, बहुत दिनों से मै एक बात पूछना चाह रहा था। बी चन्द्रमोहन के बारे मे मैने आपको एक जानकारी दी थी लेकिन अभी भी वह रक्षा मंत्रालय मे बैठा हुआ है। इसी प्रकार निखिल वागले और बी सुब्रमन्यम को भी मैने कुछ ऐसे लोगों के साथ अकसर देखा है जो अजीत सर के अनुसार दलालों और पंचमक्कारों की श्रेणी मे आते है। बी चन्द्रमोहन को छोड़ दें तो बाकी दोनो तो राष्ट्रीय सुरक्षा स्ट्रेटिजिक कमेटी के सदस्य है। सब कुछ जानते बूझते भी हम उनका कुछ नहीं कर पा रहे है। ऐसा क्यों है?

वीके ने कुछ बोलने के लिये मुँह खोला ही था कि तभी अजीत सर ने कहा… मेजर, इस मसले पर बाद मे बात करेंगें। पहले जिस काम के लिये इकठ्ठा हुए है वह कर लेते है। तो वीके हमे शुजाल बेग का मनोबल तोड़ने के लिये एक कहानी गढ़नी पड़ेगी। इतना बोल कर अजीत सर ने अपनी योजना हम तीनो के सामने खोल कर रख दी थी। वीके और जनरल रंधावा ने एक दो सवाल किये और फिर कुछ सुझाव दिये जिसको अजीत सर ने अपनी योजना मे जोड़ने के बाद मेरी ओर देखते हुए कहा… मेजर, क्या यह काम तुम कर सकोगे? …सर, इसमे क्या मुश्किल है? …मेजर, तुम भूल रहे हो कि शुजाल बेग बेहद शातिर और अनुभवी फौजी है। आमने-सामने बैठ कर उसको धोखा देना इतना आसान नहीं होगा। वह तुम्हारे चेहरे पर बदलते हुए हर रंग को पढ़ने मे सक्षम है। अगर उसको जरा सा भी शक हो गया तो सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा। अजीत सर की चेतावनी सुन कर एक पल के लिये मुझे भी अपने उपर शक होने लगा था परन्तु इसी बीच जनरल रंधावा ने कहा… अजीत करके देखने मे क्या हर्ज है। अगर मेजर उसे यकीन दिलाने मे नाकामयाब हो भी गया तो फिर कोई नया पैंतरा सोचेंगें। अचानक पता नहीं मुझे क्या हुआ लेकिन मैने कहा… अजीत सर, क्या आप मुझे उससे अपनी तरह से डील करने दे सकते है? तीनो ने एक दूसरे को देखा और फिर अजीत सर ने कहा… समीर, वह घाघ इंसान है। अभी कुछ देर पहले तुमने कुछ आदमियों के नाम लिये थे। शुजाल बेग उन जैसे लोगो का नाश्ता करता है। इसलिये सावधान कर रहा हूँ। …सर, अगर मै अपनी कोशिश मे नाकामयाब हो गया तो भी आपकी योजनानुसार उसको मौलाना कादरी की जानकारी दे दूंगा। प्लीज सर, बस एक हफ्ता क्योंकि इसी बहाने मेरे अन्दर भी उसको कहानी सुनाने का आत्मविश्वास आ जाएगा। अजीत सर ने मुस्कुरा कर कहा… ठीक है। एक हफ्ता दे रहा हूँ। वीके आज की ड्रिंक्स तुम पर है। यह बोल कर दोनो जोर से हंस दिये थे।

जनरल रंधावा ने पूछा… भई मुझे भी बताओ कि क्या चक्कर है? वीके ने कहा… मैने अजीत से कहा था कि मेजर उसकी फोटोकापी बनता जा रहा है और बड़ी आसानी से शुजाल बेग को कहानी सुना देगा। लेकिन अजीत ने कहा कि मेजर मे अभी भी फौज की कुछ कमजोरियाँ विद्दमान है। वह एक दम झूठ नहीं बोल सकेगा और झूठ बोलने के लिये वह कुछ समय मांगेगा। तो मेजर अभी तक अजीत नहीं बन पाया है। जनरल रंधावा ने ठहाका मार कर कहा… इसका मतलब है कि अजीत मेजर को अच्छी तरह से जानता है। अजीत सर ने मुस्कुरा कर जवाब दिया… नहीं, इसका मतलब है कि तुम तीनो पर से वर्दी का असर अभी तक गया नहीं है। यही कारण है कि वीके सारे ऐसे धोखेधड़ी के काम मेरे सिर पर डाल देता है। मैने झेंप कर कहा… सर, वर्दी तो आपने भी पहनी है। …हाँ, बस यही फर्क है मेरी वर्दी गैर-फौजी थी। मै धूर्त नेताओं और दोगले सरकारी बाबुओं के बीच मे घिरा रहा था और तुम तीनो एक अनुशासित फौज का हिस्सा रहे हो। यही मेजर तुम्हारे पहले सवाल का जवाब भी है कि जिन सरकारी बाबुओं का तुमने जिक्र किया था वह सभी आचार-विचार से धूर्त और दोगले है। उन पर हमारी लगातार नजर है। जब तक नेताओं और बाबुओं का गठजोड़ बना हुआ है तो वह अपने पद का फायदा तब तक ले रहे है जब तक वह किसी राष्ट्रद्रोह का हिस्सा नहीं बनते है। एक बार उन्होंने वह लक्षमण रेखा पार की तो फिर वह वर्दी के निशाने पर होंगें और तब गठजोड़ भी उनके काम नहीं आयेगा। कुछ देर बात करने के बाद अजीत सर ने कहा… कल शुजाल बेग से मिलने चले जाना। …जी सर। …युनीफार्म मे जाना। …जी सर।

मै वापिस अपने कमरे मे आ गया था। अजीत सर ने सही कहा था कि यह जानकारी इसरो और डीआरडीओ से भी दी जा सकती है। मैने सारी फाइल बन्द की और शुजाल बेग के बारे मे सोचने बैठ गया था। उसके बारे मे मैने सारी इंटेल रिपोर्ट्स नेपाल जाने से पहले ही पढ़ ली थी। उसके बारे और कुछ जानने की मेरी इच्छा नहीं थी। तबस्सुम से बात करने के लिये मैने अपना फोन उठा कर उसका नम्बर लगाया… हैलो। …आपने कल फोन क्यों नहीं किया? …कल दिल्ली से बाहर गया था। देर रात तक लौटा इसलिये फोन नहीं कर पाया था। तुम अपनी सुनाओ। वहाँ पर सब ठीक है। …यहाँ सब ठीक है। इस जुमे की शाम को आ रहे है न? …हाँ, अगर किसी ने कोई गड़बड़ नहीं की तो शाम तक पहुँच जाऊँगा। कुछ देर काम के बारे मे चर्चा करने के बाद मैने फोन काट दिया था। उसकी आवाज सुन कर ही मेरा मन व्याकुल हो उठा था। पता नहीं आफशाँ के साथ कभी ऐसी व्याकुलता मैने महसूस नहीं की थी। आसिया और अदा से हफ्ते दो हफ्ते मे बात कर लेता था। मेजर हसनैन से भी अकसर बात हो जाती थी। काठमांडू की आने-जाने की टिकिट करवाने के बाद मै पीठ टिका कर बैठ गया था।  शाम हो गयी थी और आफिस बन्द होने का समय भी हो गया था। मै घर लौटने के लिये आफिस से निकल कर अपनी जीप की ओर जा रहा था कि तभी फोन की घंटी बजी। …हैलो। …मेजर, क्या कल मिल सकते हो? …हाँ, कल शाम को चार बजे काफी हाउस मे मिलते है। …ठीक है। बस इतनी बात करके उसने फोन काट दिया था। मेरे जीप मे बैठते ही थापा घर की दिशा मे चल दिया था।

थापा मुझे दरवाजे के बाहर छोड़ कर जीप पार्किंग मे लगाने के लिये चला गया था। मैने अभी घंटी की ओर हाथ बढ़ाया ही था कि मेनका दरवाजा खोल कर खड़ी हो गयी थी। मैने अन्दर प्रवेश करते हुए बोला… आज दिन भर क्या किया? …अब्बू चलो बाहर घूमने चलते है। …और अम्मी? …अम्मी भी आने वाली होंगी। आप चाय पियेंगें तब तक आ जाएँगी। वह भागती हुई किचन मे काम कर रहे नौकर से चाय बनाने की कह कर मेरे पास आकर बैठ गयी और फिर दिन भर की कहानी सुनाने मे व्यस्त हो गयी थी। चाय पीकर हम दोनो आफशाँ का इंतजार करने बैठ गये थे। मेनका के मुर्झाये हुए चेहरे को देख कर मैने आफशाँ को फोन लगाया तो उसने बताया कि उसे आने मे देर हो जाएगी। मैने फोन काट दिया और मेनका से कहा… अम्मी को आने मे देर हो जाएगी। चलो हम मैक्डोनल्ड चलते है। वह खुशी से उछलती हुई बाहर भागी और उसे पकड़ने के लिये मै उसके पीछे चल दिया। मैने जीप स्टार्ट करके पूछा… तुम्हें पता है कि मैक्डोनल्ड कहाँ है? बड़े आत्मविश्वास से बोली… मै बताती हूँ। वह रास्ता बता रही थी और मै उसके बताये हुए रास्ते पर चल दिया था। दो मोड़ काटते ही वह जोर से चिल्लायी… वह रहा। …तुम पहले भी आयी हो? …हाँ अम्मी के साथ बहुत बार आयी हूँ। मैने जीप को पार्किंग मे लगाया और मेनका को लेकर मैक्डोनल्ड मे चला गया था।

उसी ने अपना आर्डर दिया और मैने भी एक बिग मैक का आर्डर दे कर हम दोनो एक किनारे मे बैठ गये थे। उसकी आँखें सामने स्क्रीन पर टिकी रही थी जब तक उसका नम्बर नहीं आ गया। अपना नम्बर आते ही वह चिल्लायी… अब्बू अपना नम्बर आ गया है। ऐसा उत्साह और उतावलापन वहाँ पर आने वाला हर बच्चा दिखा रहा था और उसके साथ आये अभिभावक बेचारे झेंप कर जल्दी से काउन्टर का रुख कर लेते थे। मै दो ट्रे लेकर जैसे ही बैठा तभी आफशाँ ने फोन पर पूछा… समीर, सारा काम जल्दी समाप्त करके घर पहुँची और तुम दोनो मुझे छोड़ कर कहाँ चले गये? …यही मैक्डोनाल्ड पर बैठे हुए है। …ठीक है मै भी वहीं आ रही हूँ। उसने फोन काट दिया था। मेनका तो अपने बर्गर मे व्यस्त हो गयी थी। …तुम्हारी अम्मी भी यहीं आ रही है। उसने कोई जवाब नहीं दिया। मै अपना बर्गर खाने बैठ गया था। मेनका ने अचानक कहा… अम्मी आ गयी। मैने घूम कर देखा तो आफशाँ हमारी ओर आ रही थी। वह बैठते ही शिकायती स्वर मे बोली… मुझे घर पर छोड़ कर तुम बाप-बेटी यहाँ आ गये। जाओ मै तुम दोनो से बात नहीं करुँगी। मेनका बर्गर को छोड़ कर तुरन्त आफशाँ से लिपट कर बोली… हम तो आपका इंतजार कर रहे थे। अब्बू ने कहा कि आपको आने मे देर हो जाएगी तो हम यहाँ आ गये थे। पल भर मे ही दोनो की मस्ती शुरु हो गयी और मै आफशाँ के लिये आर्डर देने के लिये चला गया था। उसकी ट्रे लेकर जब तक लौटा तब तक आफशाँ ने मेरा बर्गर उठा कर खाना शुरु कर दिया था। हम दोनो उसकी कहानी सुनने के लिये बैठ गये थे। …समीर, जब इसके साथ होती हूँ तो मै अपने बचपन मे वापिस चली जाती हूँ। कुछ देर वहाँ गुजार कर हम तीनो जीप मे बैठे और एक लम्बा सा चक्कर लगा कर वापिस घर की ओर चल दिये थे।

मैने महसूस किया कि कल रात का साया आफशाँ के दिमाग से हट गया था। आज मैने उसे दिखाते हुए अपना फोन स्विच आफ करके जीप मे छोड़ते हुए कहा… आज कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा। वह झेंप गयी थी। मै अपने कपड़े बदलने के लिये चला गया था और आफशाँ मेनका को लेकर उसके कमरे मे चली गयी थी। मेनका को सुला कर आफशाँ ने झिझकते हुए बेडरुम मे प्रवेश किया तो मैने पूछा… क्या हुआ? वह दरवाजा बन्द करके मेरे करीब आते हुए बोली… मै कपड़े बदल कर आती हूँ। …वह पार्टी वाला गाउन पहन कर एक बार तो दिखा दो। वह हँस कर बोली… वह पार्टी मे पहनने के लिये किराये पर लायी थी और अगले दिन ही उसे लौटा दिया था। यहीं आकर मुझे पता चला था कि पार्टी के कपड़े किराये पर मिलते है। यह बोल कर जैसे ही वह कपड़े बदलने के लिये मुड़ी तभी उसकी कमर मे हाथ डाल कर अपने उपर खींचते हुए मैने कहा… जब यह उतरने ही है तो बदलने की क्या जरुरत। उसके मुख से एक दबी हुई चीख निकल गयी थी। उसका गुदाज बदन को मेरी उँगलियों का स्पर्श हुआ वह पिघलती चली गयी थी। उसके जिस्म के हर संवेदनशील से मै भली-भांति परिचित था। मेरे हाथों मे वह मोम की गुड़िया बन जाती थी। मै जैसे चाहता वह वैसे घड़ती चली जाती थी। उसके गाल और होंठों का रसपान मैने काफी देर तक किया था। एक-एक करके उसके कपड़े उसके जिस्म से जुदा हो गये थे। उसका नग्न जिस्म मेरे हाथों मे लगातार मचल रहा था। मै उसकी कामाग्नि धीरे-धीरे भड़काने मे जुट गया था। मेरे होंठ और मेरी उँगलियाँ उसके कोमल अंगों पर निरन्तर वार कर रहे थे।

अचानक आफशाँ ने मस्ती मे झूमते हुए भुजंग को अपनी मुठ्ठी मे जकड़ कर अपनी उँगलियों से उसके सिर को सहलाते हुए बोली… जरा इस जालिम को भी देख लूँ। इस से पहले वह कुछ और बोलती मेरे होंठ ने उसके दाएँ कान के पीछे से अपना कार्य शुरु करते हुए चेहरे के पास आ कर उसके होठों पर लगातार प्रहार करना आरंभ कर दिया था। थोड़ा रुक कर, मेरे होंठ गले से होते हु दो हसीन पहाड़ियों के बीचोंबीच बनी खाई पर पहुँच कर रुक गये थे। अंजली का मंगलसूत्र उसके सीने पर पड़ा हुआ था। अब मेरे निशाने पर उत्तेजना से सिर उठाये स्तनाग्र थे। मेरे होंठों के स्पर्श से उसके उरोज मे कंपन हो रहा था। अपने मुख में एक मचलती हुई पहाड़ी को भर कर अपनी जुबान के अग्र भाग से खड़े हुए स्तनाग्र को छेड़ना शुरु किया और दूसरी पहाड़ी को अपने हाथ में ले कर कभी सहलाता और कभी मसल देता था। मेरे स्पर्श से उसे कभी गुदगुदी का एहसास होता और कभी उसके नाजुक शरीर में सिहरन हो जाती थी। इन सब हरकतों से धीमी आँच में जलते हुउसके जिस्म मे कामाग्नि भड़क गयी थी। उसके जिस्म के संवेदनशील अंगो को अपने होंठों से छेड़ते हुए नीचे की ओर बढ़ने लगा। उसकी नाभि और कमर पर अपनी होंठों के निशान छोड़ मै एक कदम नीचे सरक गया तो उसने तुरन्त अपनी केले सी मासँल जाघों को खोल कर अपने चिकने बालरहित स्त्रीत्व को मेरे सामने कर दिया था।

मैने अबकी बार सीधे उसके स्त्रीत्व के द्वार पर हमला नहीं किया अपितु उसकी गुदाज जांघों पर होंठों से वार किया तो उसने मचल कर अलग होने का असफल प्रयास किया परन्तु उसकी माँसल जाँघों के कोमल हिस्सों पर अपने निशान छोड़ने आरंभ कर दिये थे। जब उसके मचलते हुए जिस्म ने इशारा किया तो मै उपर की ओर बढ़ गया। मैने उसके चिकने स्त्रीत्व द्वार अपनी जुबान से दस्तक दी उसके द्वार स्वयं ही धीरे से खुल गये और सिर उठाये अंकुर के दर्शन हो गये थे। मैने झुक कर अपनी जुबान से उसके सिर पर पहला वार किया और फिर जुबान से उसको नहला दिया। आफशाँ के मुख से उत्तेजना से परिपूर्ण एक गहरी सित्कार निकली और वह पूरी शक्ति लगा कर छूटने के लिये मचल उठी थी। मेरी जुबान उसके अकड़े अंकुर को निरन्तर छेड़ रही थी और मेरी उँगली उसकी गुफा की गहरायी नाप रही थी। उसके नितंबो को अपने पंजों मे जकड़े हुए मै लगातार उसके स्त्रीत्व पर निरन्तर वार कर रहा था और उसके मुख से घुटी हुई आहें और चीखें लगातार निकल रही थी। वह बार-बार उठने की कोशिश कर रही थी लेकिन मेरे आगे वह कुछ भी कर पाने असफल रही थी। अचानक उसकी टाँगे मेरी गरदन के इर्द गिर्द कस गयी और एकाएक वह हवा मे उठ गयी। उसका जिस्म थरथराया और एक झटका लेकर निढाल हो कर बिस्तर पर ढेर हो गया। मै उसको छोड़ कर उसके साथ लेट गया था।

वह अपनी तेज चलती हुई साँसों को काबू करने का प्रयास करने लगी तो मै अपनी कोहनी के बल उठ कर उसको देखने लगा तो वह तुरन्त शर्मा कर करवट लेकर पीठ करके लेट गयी थी। मै उसके जिस्म से सट गया तो उत्तेजना से फुँफकारता हुआ भुजंग उसके नितंबों की दरार मे सिर रगड़ने लगा। उसके स्पर्श का एहसास होते ही वह जल्दी से पलटी उसने मेरे सीने मे अपना चेहरा छिपा लिया था। उसके नग्न जिस्म को धीरे-धीरे सहलाते हुए एक बार फिर से उसके जिस्म पर अपने होंठों से वार करना आरंभ कर दिया था। अबकी बार आफशाँ उन्मुक्त होकर मेरे हर वार का जवाब देने लगी थी। एक बार फिर से कामाग्नि भड़कते ही वह प्रणयमिलन के लिये उग्र हो उठी थी। अपनी कोमल उँगलियों मे उत्तेजना मे झूमते हुए भुजंग को उसकी गरदन से पकड़ अपने स्त्रीद्वार के सम्मुख स्थिर किया और फिर द्वार के मुख पर रगड़ कर अपने कामरस से भिगो कर टिका दिया। मैने अपनी कमर पर दबाव डालते हुए धीरे से उसे अंदर सरका दिया। एक गहरी कामोत्तेजना की सीत्कार उसके मुख से निकल गयी थी। मेरा एक हाथ गोरी गुदाज पहाड़ियों को रौंदने में व्यस्त हो गया और मेरा मुख पहाड़ियों की गुलाबी बुर्जियों को लाल करने मे लग गया था। मै स्थिर होकर उसकी आँखों मे झाँका तो उसने आगे बढ़ने का इशारा किया। मैने धीरे से अपने भुजंग को पीछे खींच कर पूरी शक्ति से अपनी कमर को झटका दिया तो मस्ती मे झूमता हुआ भुजंग सारे संकरेपन को खोलते हुए अंदर सरकता हुआ जड़ तक जाकर धंस गया था।

आफशाँ मुख से एक घुटी हुई उत्तेजना से भरी चीख निकल गयी थी। उसके चेहरे पर बदलते हुए भाव और सिसकारियाँ उसके जिस्म मे होते एकाकार के मीठे दर्द का एहसास करा रही थी। उसने अपनी टाँगें मेरी कमर के इर्दगिर्द लपेट कर अपनी कमर को हिला कर भुजंग की लम्बाई नापने की कोशिश मे जुट गयी थी। वह कुछ देर प्रयास करती रही फिर निढाल होकर लेट गयी। मैने उसके नितंबों को अपने पंजों मे जकड़ कर फिर से एक करारा प्रहार किया। इस बार उसके मुख से संतुष्टिभरी सिसकारी निकल गयी थी। मेरे हाथ एक बार फिर से गोरी पहाड़ियों के मर्दन में व्यस्त हो गये और वहीं मेरा मुख गुलाबी बुर्जियों को लगातार लाल कर रहा था। उसके जिस्म मे होने वाले हर स्पंदन को मै महसूस कर रहा था। उसकी सिसकारियाँ और मेरी गहरी साँसों ने कमरे का वातावरण बहुत उत्तेजक बना दिया था। अचानक तूफान ने धीरे-धीरे वेग पकड़ना आरंभ किया और हम उसमे बहते चले गये थे। एक पल ऐसा आया कि उसका जिस्म ऐंठने लगा और धनुषाकार बना कर हवा मे उठ गया। उसकी बायीं बुर्जी का रस सोखता हु मैने त्तेजनावश उसको अपने दाँतों तले चबा दिया। उसी क्षण वह सिहर उठी और फिर झटके लेते हुए बिस्तर पर लस्त होकर पड़ गयी। उसी क्षण मेरे अन्दर भी ज्वालामुखी ने लावा उगलना आरंभ कर दिया। हम दोनों एक दूसरे को अपनी बाहों में जकड़ कर निढाल हो कर बिस्तर पर पड़ गये थे। हम दोनो अपनी साँसे सयंत करने मे लग गये थे।

…समीर। …हुँ। …इस रात के लिये मुझे कितना इंतजार करना पड़ता है। तुम यह फौज की नौकरी क्यों नहीं छोड़ देते। …तुमसे बेहतर कौन समझ सकता है। यह अम्मी की इच्छा थी और इसीलिये मै यह नहीं कर सकता। मैने बहुत बार महसूस किया था कि जब भी अम्मी मुझे वर्दी मे देखती थी तो उनकी आँखों मे एक चमक आ जाती थी। अब तो मेरा तबादला यहीं हो गया है तो वह साल भर की बात तो खत्म हो गयी है। महीने भर के लिये कभी जाना पड़ता है तो वह तुम्हारे लिये ही आराम है। हम कुछ देर युंहि बात करते रहे और फिर अपने सपनो की दुनिया मे खो गये थे।

हमेशा की तरह मै सुबह जल्दी जाग गया था। अपनी चाय बनाई और कुछ देर लान मे टहल कर तैयार होने के लिये चला गया था। जब तक मै बाहर निकला तब तक आफशाँ उठ गयी थी। वह तैयार होने चली गयी थी। अपना नाश्ता बनाते हुए मैने थापा को बुला कर कह दिया था कि आज उसे अपनी युनीफार्म मे चलना होगा। आफशाँ तैयार हो कर बाहर आयी तब तक मै अपना नाश्ता करने बैठ गया था। …समीर, आज आफिस मे सब को पता चल जाएगा कि तुम वापिस आ गये हो। …क्यों। उसने अपने गले पर पड़े हुए निशान को दिखाते हुए कहा… यह काफी है उनको बताने के लिये कि तुम वापिस आ गये हो। …आज किसी तरह काम चला लेना। रात को वहाँ के बजाय तुम्हारे सीने पर अपनी उपस्थिति की मौहर लगा दिया करुँगा। …हिश्। तभी नौकर अन्दर आते हुए बोला… मेमसाहब, नाश्ते मे क्या बनाना है? …रघु, तुम आधा घंटा पहले आ जाया करो क्योंकि साहब तैयार होते ही नाश्ता मांगते है। तुम नहीं होते तो वह खुद बनाते है। …जी मेमसाहब, मै आठ बजे आ जाया करुँगा। मै नाश्ता करके अपनी स्पेशल फोर्सेज की युनीफार्म पहनने के लिये चला गया था।

युनीफार्म पहन कर अपनी रेड बेरेट को सिर पर ठीक से लगाते हुए बाहर निकला तो मुझे युनीफार्म मे देख कर आफशाँ ने कहा… मेनका तुम्हें युनीफार्म मे देखना चाहती है। मै उसे लेकर आती हूँ। यह बोल कर वह झटपट मेनका को उठाने चली गयी थी। मैने डिनर टेबल के पीछे लगे हुए आईने मे देखते हुए अपनी बेरेट को ठीक से सेट किया कि तभी पीछे से मेनका की किलकारी की आवज सुन कर मुड़ कर उसकी ओर देखा तो हैरानी से मेरी ओर देख रही थी। …क्या हुआ? …अब्बू आपको पहली बार ऐसे देखा है। मैने उसको गोदी मे उठा कर कहा… बेटा, जब अस्पताल से छोटी सी मेनका को लेकर घर जा रहा था तब भी मै युनीफार्म था। इसमे ऐसी क्या बात है। वह शर्मा कर मुझसे लिपट गयी थी। उसकी आँखों मे मुझे वैसी ही चमक दिखी थी जैसी अपनी अम्मी की आँखों देखी थी। अपने सीने और कन्धों पर लगे हुए निशानो को समझाते हुए कहा… अब बाहर से थापा अंकल को बुला लाओ। वह मेरी गोद से उतर कर थापा को बुलाने चली गयी थी। वह मुस्कुराती हुई थापा के साथ अंदर आकर बोली… थापा अंकल भी आर्मी मे है। थापा ने आते ही मुस्तैदी के साथ सैल्युट किया जिसका जवाब मैने देते हुए पूछा… जवान चलने के लिये रेडी है। …जी जनाब। वह अपने फौजी अंदाज मे मुड़ा और बाहर निकल गया था। मेनका के लिये एक नयी चीज मिल गयी थी। उसने भी थापा की तरह उचक कर सैल्युट किया और उसी लहजे मे बोली… जवान चलने के लिये रेडी है। मैने जल्दी से कहा… जी जनाब। आफशाँ जोर से हँसते हुए बोली… आज के बाद तुम्हारी जवान अब इसी भाषा मे बात करना शुरु कर देगी। मै भी हँसते हुए उनसे विदा लेकर बाहर निकल गया और थोड़ी देर मे हम मानेसर की ओर जा रहे थे।

ट्रेफिक के कारण हमे एनएसजी परिसर मे पहुँचने मे ज्यादा समय लग गया था। हाई सिक्युरिटी सेल मे जाने के लिये मुझे कमान्डेन्ट की बात अजीत सर से करानी पड़ी थी। शुजाल बेग से मिलने की औपचारिकताएँ पूरी करने के बाद ही मुझे उससे मिलने की इजाजत मिली थी। मेरी ग्लाक-17 को सिक्युरिटी ने बाहर ही जमा करवा दिया था। दो सेना पुलिस के जवान मुझे लेकर शुजाल बेग के सेल की ओर चले गये थे। उन्होंने सेल का लोहे के गेट का ताला खोल कर मुझे अन्दर प्रवेश करने दिया और फिर वह दोनो गेट पर तैनात हो गये थे। शुजाल बेग अपने बेड पर लेटा हुआ था। मुझे अन्दर आता हुआ देख कर एक पल के लिये सहम गया था।

उसके बेड के किनारे पर बैठते हुए मैने जल्दी से कहा… ब्रिगेडियर साहब, घबराने की कोई जरुरत नहीं है। अभी तक अजीत सर ने वह सीडी नेपाल सरकार को नहीं दी है। मै सिर्फ आपसे कुछ बात करने के लिये आया हूँ। एक बार फिर से वह शून्य मे देखने लगा था। …ब्रिगेडियर साहब, उन दो जानकारियों के लिये क्या आपकी ओर से कोई मांग है? पहली बार उसने मुझे घूर कर देखा और फिर बोला… मेजर तुम्हारी मौत। …सर, आप और हम फौजी है। जान तो हर फौजी अपनी हथेली पर लेकर चलता है। बस वह एक चीज से हमेशा डरता है कि कोई उसके उपर बेवजह तोहमत न लगा दे। अबकी बार उसने मुझे घूर कर नहीं देखा था। …आप अगर ठंडे दिमाग से सोच कर देखिये कि आपसे कौनसी दो जानकारियाँ मांगी है। क्या वह जानकारी देकर आप देशद्रोही बन जाएँगें? पहली जानकारी हमारे बीच मे कौन गद्दार है और दूसरी जानकारी जिहादी काउंसिल की क्या योजना है। यह आपको कैसे गद्दार बनाती है क्या वह मुझे एक वरिष्ठ फौजी अफसर के तौर पर समझा सकते है।

वह कुछ देर मेरी ओर देखता रहा और फिर पहली बार मुस्कुरा कर बोला… मेजर,  मेरा मुँह खुलवाने के लिये अजीत को कोई नया हथकंडा सूझा है। …नहीं सर। मैने अजीत सर से आपसे मिलने के लिये इजाजत खुद मांगी थी। इसके कारण सीडी की कहानी एक हफ्ते के लिये मुल्तवी कर दी गयी है। मेरा भी परिवार है और मेरी भी बेटी है। मै हर्गिज नहीं चाहूँगा कि किसी फौजी के परिवार पर ऐसी आपदा आये। इसीलिये मै आपसे समझने के लिये आया था। आपके पास हजार ऐसे सोर्स होंगें जो यहाँ बैठ कर आपको हमारी खुफिया जानकारी दे रहे है। वलीउल्लाह के अंत से आपके सारे सोर्स समाप्त नहीं हो जाएँगें। इसी प्रकार जिहाद काउन्सिल भी ऐसा नहीं है कि इसके बाद फिदायीन हमले करना बन्द कर देगी। यह सिलसिला तो चलता रहेगा लेकिन सिर्फ यह दो जानकारी पर पर्दा डाल कर आप अपने पूरे परिवार को तबाह कर देंगें। इसका औचित्य मुझे समझ मे नहीं आ रहा है। फौज मे हमेशा हमे निर्णय लेने की क्षमता के बारे मे यही समझाया गया है कि कोई भी निर्णय को कोलेटरल के हिसाब से माप लेना चाहिये। इस मामले मे जब मै अपनी ओर से मापता हूँ तो आपके निर्णय मे कोलेटरल का नुकसान कहीं ज्यादा है। गद्दारों की सीमा के दोनो ओर कोई कमी नहीं है। एक जाएगा उसकी जगह सौ खड़े हो जाएँगें। फिदायीन हमले का भी ऐसा ही हाल है कि एक असफल हो गया तो सौ की और कोशिश होगी। भले ही कोलेटरल नुकसान यहाँ माल का नहीं है अपितु सत्तर जान का है वह भी आपके अपने परिवार की जान का है। ब्रिगेडियर साहब बस यही चीज आपसे समझने के लिये मै आया हूँ। अब वह मुझे ध्यान से देखने लगा था। जो नफरत उसकी आँखों मे प्रवेश करते हुए मैने देखी थी अब वह नहीं दिख रही थी।

…मेजर, कितने साल की सर्विस है तुम्हारी? …बारह साल हो गये है। …स्पेशल आप्रेशन्स ग्रुप से हो? …जी सर। …तुम्हारा लाजिक तो कुछ हद तक सही है लेकिन कुछ बात लाजिक से उपर होती है। …जैसे सर। …जैसे देश की संप्रभुता और देश का फायदा। मैने मुस्कुरा कर कहा… सर, मै अभी भी नहीं समझ पाया हमारे यहाँ के गद्दार से आपके देश की संप्रभुता पर कैसे हमला है अन्यथा उस गद्दार के कारण हमे जरुर कुछ नुकसान होगा लेकिन आपके लिये क्या फायदा है? अगर हमे नुकसान पहुँचा कर आपको फायदा मिलता है तो फिर तो कोई बात नहीं। ब्रिगेडियर साहब सच पूछिये तो हमारे यहाँ बड़े लोग एक सीख देते है कि जो भी कोई किसी के लिये गड्डा खोदता है सबसे पहले वही उसमे गिरता है। हमे नुकसान पहुँचा कर आप अपना भी नुकसान कर रहे है। चलिये मान लेता हूँ कि आप इसमे कामयाब हो भी गये तो आपको या पाकिस्तान को इसमे क्या फायदा होगा? फायदा भले हो न हो लेकिन एक बात तो तय है कि इसका आपको बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा। आप आराम से सोचिये सर। आपके अनुभव के आगे तो मेरी कोई हैसियत नहीं है। इसीलिये तो आपके पास कुछ सीखने के लिये आया हूँ। मै कल फिर आ जाउँगा। अच्छा खुदा हाफिज। मै उठ कर कमरे से बाहर निकल गया था। मेरे निकलते ही शुजाल बेग को उसके सेल मे बन्द कर दिया गया था। मैने सिक्युरिटी से अपनी ग्लाक-17 लेकर उसकी मैगजीन चेक करके कमान्डेन्ट से मिलने चला गया था।

मुझे उस हाई सिक्युरिटी के कमान्डेन्ट से यहाँ के प्रवेश के बारे कुछ पूछना था। एक हफ्ते मे मेरे अभी कई चक्कर लगने थे। शुजाल बेग से मिलने के लिये कोई स्थायी सुविधा के लिये मुझे क्या करना होगा? इसी सवाल का जवाब जानने के लिये मै उससे मिलने चला गया था। उसने कहा… मेजर, एनएसए ने आपके लिये आर्डर कर दिये है। सिर्फ आप ही कैदी से मिल सकते है। बस ख्याल रहे कि कोई भी प्रतिबन्धित वस्तु लेकर आप वहाँ नहीं जा सकते है। इतनी बात करके मै अपनी जीप मे बैठा और अपने आफिस की ओर चल दिया था। अपने आफिस मे पहुँचते ही अजीत सर ने बुला लिया था। …मेजर, आज शुजाल बेग से पहली मुलाकात कैसी रही? मैने अपनी बातचीत का पूरा ब्यौरा देने के बाद कहा… सर, क्या हम उसको अपनी ओर से कोई पेशकश रख सकते है? …मेजर, उसके लिये पैसों का प्रलोभन कोई मायने नहीं रखता है। उसकी सिर्फ एक ही मांग होगी कि उसे छोड़ दिया जाये जो कि नामुम्किन है। …क्यो सर? अजीत सर ने चौंक कर मेरी ओर देख कर कहा… तुम सिरियस तो हो। …जी सर, बहुत सोचने के बाद मै इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि उसको यहाँ रख कर हम उसका ज्यादा से ज्यादा क्या उपयोग कर लेंगें। एक बोझ की तरह वह बस यहाँ पड़ा रहेगा। फिलहाल उसे इस बात का यकीन हो गया है कि अब उसकी बाकी जिन्दगी उस सेल मे गुजरेगी तो वह क्यों हमारी सहायता करेगा। हाँ अगर इस जानकारी के बदले उसे यहाँ से निकलने का मौका दिया जाए तो वह जरुर हमारी सहायता करने के लिये तैयार हो जाएगा।

अजीत सर ने झल्ला कर कहा… मेजर, तुम बड़ी बचकानी बात कर रहे हो। …सर, आप ही बताईये कि उसे हम सेल मे बिठा कर क्या कर लेंगें? …मेजर, कुछ नहीं तो कम से कम हमारा काठमांडू का फ्रंट तो सुरक्षित है। …सर, आप ठीक कह रहे है। लेकिन अगर हम उसे फारुख के हवाले कर देंगें तो यकीनन दोनो मे से एक की मौत होना तो निश्चित है। शुजाल बेग मारा गया तो फारुख की पहुँच मंसूर बाजवा तक हो जाएगी और कहीं शुजाल बेग बच कर पाकिस्तान पहुँच गया तो उसकी नब्ज आगे भी हमारे हाथ मे ही रहेगी। इतनी देर मे पहली बार अजीत सर ने मेरी बात पर संजीदगी से सोचना आरंभ कर दिया था। कुछ देर सोचने के बाद अजीत सर ने कहा… इसमे कोई शक नहीं कि वह यहाँ पर हमारे लिये एक बोझ से ज्यादा कुछ भी नहीं है। अगर वह वापिस पाकिस्तान पहुँच जाता है तो फिर एक आईएसआई के ब्रिगेडियर तक हमारी पहुँच हो जाएगी। मेजर, एक बार वीके और रंधावा से भी इस मामले मे बात कर लेनी चाहिये। उसी के अनुसार फिर हम उसका ग्राउन्ड तैयार करेंगें।

…अजीत सर, आज शाम को चार बजे मै काफी हाउस मे फारुख से मिल रहा हूँ। वह शुजाल बेग की लोकेशन जानने के लिये मिल रहा है। क्या करना है? …जरुर मिलो लेकिन उससे कुछ समय मांग लेना। …सर, मै चाहता हूँ कि आज की मीटिंग के बाद उस पर चौबीस घंटे की निगरानी लगा दी जाये जिससे कि यह पता चल जाये कि वह यहाँ किन लोगों से संपर्क कर रहा है। वह अपनी फिदायीन फौज तो कश्मीर से साथ लेकर नहीं आया होगा परन्तु वह जरुर यहाँ पर ही किसी से मिल कर शुजाल बेग तक पहुँचने का इंतजाम करेगा। अजीत सर ने फोन उठाया और जनरल रंधावा को तुरन्त मिलने के लिये कह कर मुझसे बोले… तुम्हारा मिलने का टाइम तो होने वाला है। तुम चलो मै रंधावा से मिल कर कुछ करता हूँ। बस कोशिश करके पाँच बजे तक उसे रोक कर रखना। मेजर युनीफार्म मे उससे मिलने मत जाना। …यस सर। इतना बोल कर मै जल्दी से बाहर निकला और लगभग भागते हुए अपनी जीप के पास पहुँच गया था।

 

भारत-नेपाल सीमा

भारत-नेपाल सीमा पर एक वीरान इलाके मे प्रदेश की पुलिस, सीमा सुरक्षा बल और एनआईए के एजेन्ट्स खेत मे पड़ी हुई लाशों का मुआईना करते हुए बातचीत कर रहे थे। …एसपी साहब ने इन सभी लाशों को पोस्टमार्टम के लिये भेजने के निर्देश दिये है। …फिलहाल यह आप्रेशन एनआईए का है। सीमा सुरक्षा बल और एनआईए के जोइन्ट आप्रेशन मे यह सभी मुठभेड़ मे मारे गये है। पहले सारी कागजी कार्यवाही हमे पूरी करनी है उसके बाद हम यह लाशें स्थानीय पुलिस क हवाले करेंगें। आपको यहाँ सिर्फ शिनाख्त करने के लिये बुलाया गया है। क्या आप इनमे से किसी को पहचानते है? एसआई और हेड कान्स्टेबल टार्च की रोशनी मे मरने वालों का चेहरा देख कर लगातार आतंकित हो रहे थे। सबके चेहरे देखने के बाद एसआई तेज प्रताप बोला… जनाब इन लोगों को आप ही ठिकाने लगा देंगें तो बेहतर होगा। एनआईए के उप-निदेशक ने उसको घूर कर देखा तो वह जल्दी बोला… सर, यह खबर का पता चलते ही प्रदेश मे आग लग जाएगी। दंगा भड़क जाएगा। …क्यों क्या इनके हथियार आपको नहीं दिख रहे है। यह सब पाकिस्तान से आये हुए जिहादी है। सारे जब्त किये गये हथियार इस बात का प्रमाण है। अबकी बार एसआई डरते हुए बोला… जनाब, एक तो इनमे से माफिया डान मुश्ताक अंसारी है। बाकी उसका एक भाई और उसके गैंग के शार्प शूटर्स है। पूरा पूर्वी हिस्सा दंगे की चपेट मे आ जाएगा। उप निदेशक अवस्थी ने सीमा सुरक्षा बल के डिप्टी कमान्डेन्ट की ओर देख कर एसआई तेज प्रताप से पूछा… क्या सभी अंसारी गैंग के आदमी है? …उन दो को छोड़ कर बाकी सभी अंसारी गैंग के लोग है। कुछ देर चर्चा करने के बाद तीनो फोन पर अपने-अपने अधिकारियों को मरने वालों की जानकारी देकर आगे की कार्यवाही के बारे मे बात करने मे व्यस्त हो गये थे।

रविवार, 20 अगस्त 2023

 


 

गहरी चाल-22

 

जीएचक्यू, रावलपिंडीं

रात गहरी होती जा रही थी। पाकिस्तान फौज का हेडक्वार्टर्स मे चारों ओर अफरातफरी मची हुई थी। सभी जगह यह चर्चा चल रही थी कि काठमांडू से ब्रिगेडियर शुजाल बेग का अपहरण हो गया है।  जनरल  शरीफ के कमरे मे जनरल मसूंर बाजवा काठमांडू के हालात की रिपोर्ट दे रहा था। जनरल शरीफ दहाड़ा…  यह कैसे मुम्किन हो सकता है? दिल्ली से मुझे खबर मिली है कि शुजाल बेग इस वक्त रा के हेडक्वार्टर्स मे बैठ कर सारी कहानी सुना रहा है। उसे कनाडा मे बसाने का लालच दिया गया था तो वह रातों रात नेपाल की सीमा पार करके  दुश्मन के साथ मिल गया है। यह आईएसआई की सबसे बड़ी असफलता है। जनरल मंसूर कुछ भी बोलने की स्थिति मे नहीं था।

जनरल शरीफ ने पूछा… वह वलीउल्लाह के बारे मे कितना जानता है? …जनाब, उसे बस इतना पता है कि वलीउल्लाह एक स्त्री है जो सेना के लिये काम कर रही है। इससे ज्यादा वह उसके बारे मे कुछ नहीं जानता। …और जिहाद काउंसिल के हमले के बारे क्या जानता है? …साहब, वही तो काठमांडू से  आप्रेशन खंजर का संचालन कर रहा था। …तो क्या अब हमे आप्रेशन खंजर को रद्द करना पड़ेगा? …नही जनाब, उसके पास जो तारीख है वह एक महीने के बाद की है। हमारा मुख्य टार्गेट वही रहेगा लेकिन टार्गेट 1 & 2 बदल कर उसे झूठा साबित करना पड़ेगा। मुख्य टार्गेट के बारे मे उसे बस इतना पता है कि अरब सागर के भारतीय तेल के कुछ स्त्रोत हमारे निशाने पर है परन्तु वह कौनसे होंगें उसके ग्रिड रेफ्रेन्स अभी तक हमने उसे नहीं दिये थे। मेरा सुझाव है कि अगर हम आप्रेशन खंजर का समय तीन महीने बाद कर लेंगें तो तंजीमों को प्रशिक्षण का समय भी मिल जाएगा और भारतीय सुरक्षा एजेन्सियाँ भी थोड़ी लचर हो जाएँगी। कुछ सोचने के बाद जनरल शरीफ ने कहा… शुजाल बेग का क्या करना है। …सर, मेजर फारुख मीरवायज इस वक्त श्रीनगर मे है। मैने उसे सब काम छोड़ कर शुजाल बेग को ढूंढने के काम पर लगा दिया है। उसका पता लगते ही फिदायीन हमले मे वह उसका काम तमाम करवा देगा। जनरल शरीफ गहरी सोच मे डूब गया था।

कुछ देर सोचने के बाद जनरल शरीफ ने कहा… तुम फौरन जिहाद काउंसिल की इमर्जेन्सी मीटिंग बुला कर बदले हुए हालात के बारे मे जानकारी देकर आप्रेशन खंजर की तारीख बदलने के लिये कह दो। जनरल मंसूर यह आप्रेशन खंजर हम दोनो के लिये  महत्वपूर्ण है। मेरी एक्स्टेन्शन और तुम्हारी प्रोमोशन इसी बात पर टिकी हुई है। अब इस आप्रेशन का तुम स्वयं ही संचालन करोगे। इसी बीच मे मुझे जल्दी से जल्दी शुजाल बेग की मौत की खबर मिलनी चाहिये। …जी जनाब। जनरल मंसूर ने अपने चेहरे पर आये हुए पसीने को जल्दी से पौँछ कर कहा… जनाब इजाजत दिजिये। इतना बोल कर वह कमरे से बाहर निकल गया था।

मै बिस्तर पर पड़ा हुआ फारुख की बात समझने की कोशिश कर रहा था। उसकी आवाज सुनते ही मेरा दिमाग जैसे सुन्न हो गया था। मुझे यह समझ मे नहीं आया कि उसने मुझसे इस बार तबस्सुम के बारे मे कोई बात नहीं की थी। जब दिल मे चोर होता है तो दिमाग भी उस ओर ही चला जाता है। क्या उसे तबस्सुम का पता चल गया है? मेरी नजर सोती हुई तबस्सुम पर पड़ी तो मैने धीरे से उसका गाल को सहला दिया था। अचानक उसने अपनी आँखें खोली और पल्कें झपका कर मेरी ओर देख कर बोली… आप सोये नहीं? …मुझे नींद नहीं आ रही है। तुम सो जाओ। वह मुस्कुरा कर बोली… अब्बा बनने मे डर लग रहा है? मैने हंसते हुए कहा… तुम भूल रही हो कि मेरी दस साल की बेटी है और मेरी एक बीवी है जिसका नाम आफशाँ है। …तो फिर आपको नींद क्यों नहीं आ रही है? …पता नहीं। …वह फोन किसका आया था? एकाएक वह उठ कर बैठ गयी और मेरी ओर देख कर बोली… क्या अब्बू का फोन आया था? वह मेरे चेहरे के बदलते हुए रंग को पढ़ने लगी थी। मै सावधान हो गया और जल्दी से कहा… तुम्हारे अब्बू तुम्हारे दिमाग मे घूमते रहते है। नूर मोहम्मद का फोन था उसकी पाकिस्तान की वापिसी रद्द हो गयी है। वह मुस्कुरा कर बोली …पता नहीं मुझे ऐसा क्यों लगा कि अब्बू के फोन के कारण आपकी नींद उड़ गयी है। उसके गाल पर आये हुए गड्डे को धीरे से चूम कर मैने कहा… अगर तुम्हारे अब्बू ने मुझे डराने की कोशिश की तो एक दिन मेरे हाथ से जाया हो जाएँगें। वह कुछ नहीं बोली बस कुछ देर मुझे देखती रही थी। फिर एक तेज नींद का झोंका आया और हम अपनी सपनों की दुनिया मे खो गये थे।

अगले दो दिन मेरे सारे काम निपटाने मे निकल गये थे। बिस्ट के बचे हुए पचास हजार उसे दे दिये थे। उसे बता दिया था कि अबसे उस फोन को टैप करने की जरुरत नहीं है। इसी बीच अजीत सर ने वह पैसे भी ट्रांस्फर करा दिये थे। कंपनी का काम बढ़ता चला जा रहा था। अब आफिस मे जगह कम पड़ने लगी थी। अब आठ के बजाय चौदह लोग काम कर रहे थे। मेरी युनिट को भी जोड़ लिया जाये तो चालीस लोगों का स्टाफ हो गया था। सबकी तनख्वाह और खर्चे निकालने के बाद भी एक हिस्सा तबस्सुम के अकाउन्ट मे लगातार जमा हो रहा था। आरफा को भी तबस्सुम की हालत का पता चल चुका था। उसने भी तबस्सुम के साथ नीचे आफिस मे बैठना शुरु कर दिया था। मै रोज सोचता कि उसे आज बता दूँगा परन्तु उसके चेहरे पर आयी हुई चमक और खुशी को देख कर अपनी बात कल पर टाल देता था। इसी पेशोपश मे तीन दिन और निकल गये थे।

एक रात मैने उसे कहा… मुझे जल्दी ही वापिस जाना पड़ेगा। उसका चेहरा उतर गया था। दिल्ली यहाँ से दो घंटे की दूरी पर है। शुक्रवार की शाम की फ्लाईट पकड़ कर यहाँ आ जाऊँगा और सोमवार की सुबह की फ्लाईट पकड़ कर वापिस चला जाऊँगा। उसने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया लेकिन अगले दिन से उसके चेहरे की खुशी गायब हो गयी थी। मैने उसे बहुत समझाया और खुश करने की कोशिश करता परन्तु वह मुर्झाती चली जा रही थी। उसकी शक्ल मे मुझे अपनी अंजली की छवि दिखाई देने लगी थी। जिस दिन अंजली को पता चला था कि मुझे दो महीने के बाद राष्ट्रीय रक्षा अकादमी जोइन करनी है तभी से उसका भी चेहरा इसी प्रकार मुर्झा गया था। मैने कई बार रात को महसूस किया था कि वह सोते-सोते जाग जाती थी। मै जानता था कि उसे शायद फिलहाल तकलीफ होगी परन्तु अब हालात से समझौता करना उसे सीखना पड़ेगा। एक रात मैने उसे अपने मन की बात कह दी… अगर तुम ऐसे ही दुखी रहोगी तो यहाँ पर सब कुछ छोड़ कर दिल्ली चलो। तुम्हें दुखी करने के लिये मैने यह सब नहीं किया है। यह सब तुम्हारी खुशियों के लिये किया है। भारत मे तुम्हारे अब्बू का डर मुझे हमेशा सताता रहता इसीलिये मै यहाँ आया था। यहाँ पर तुम सुरक्षित हो और तुमने अपनी खुद की पहचान बना ली है। मेरी जरुरतें तो बहुत थोड़ी है। मै तुम्हें दुखी देखता हूँ तो मेरा दिल टूट जाता है। मै जिस लाइन मे हूँ उस लाईन मे बहुत से लोग सिर्फ इसलिये शहीद हो जाते है क्योंकि उनका ध्यान बँटा हुआ होता है। क्या तुम चाहती हो कि मेरा भी दिमाग तुम्हारी ओर लगा रहे? अचानक वह भरभरा कर रो पड़ी थी। उसके आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। मै उसे अपने सीने से लगाये काफी देर तक बैठा रहा था। लेकिन मुझे नहीं मालूम था कि उस समय छह आतंकी असला और बारुद के साथ न जाने कैसे पठानकोट एयरबेस मे घुस गये थे।

अभी सुबह भी नहीं हुई थी कि मेरे फोन की घंटी ने मुझे उठा दिया था। …मेजर, पहली फ्लाईट लेकर फौरन दिल्ली पहुँचों। पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमला हुआ है। इस वक्त आप्रेशन जारी है। बस इतना बोल कर अजीत सर ने फोन काट दिया था। तबस्सुम अभी सो रही थी। मै जल्दी से उठा और तैयार होने चला गया। सुबह नौ बजे की पहली फ्लाईट पकड़नी थी इसीलिये मेरे पास ज्यादा समय नहीं था। जब तक तैयार होकर बाहर निकला तब तक निकलने का टाइम हो गया था। मैने कैप्टेन यादव को बुलवा लिया था। चलने से पहले मैने सोचा कि उसे उठा कर अपने जाने की बात दूँ लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हुई तो मै चुपचाप निकल आया था। यादव ने मुझे एयरपोर्ट पर छोड़ दिया था। रास्ते मे मैने उसे पठानकोट की घटना बता कर सावधान रहने के लिये कह दिया था। बारह बजे तक मै अपने आफिस मे पहुँच गया था। एयरपोर्ट से आफिस की ओर जाते हुए मैने तबस्सुम को पठानकोट के बारे मे बता कर कहा… प्लीज अपना और आने वाले मेहमान का ख्याल रखना। …आप हमारी चिन्ता मत किजिये। बस इतना याद रखना कि हम दोनो आपका इंतजार कर रहे है।

अजीत सर एक मीटिंग से निकले और दूसरी मीटिंग मे जाने से पहले मेरे पास आकर बोले… जनरल रंधावा को कमांड सेन्टर मे रिपोर्ट करो। मै भी वहीं आ रहा हूँ। मैने जनरल मोहन्ती को फोन करके गाड़ी मंगा ली थी। थोड़ी देर के बाद मै जनरल रंधावा के साथ बैठा हुआ पठानकोट का आप्रेशन बड़ी सी स्क्रीन पर देख रहा था। हमारे सात एयरफोर्स के जवान मारे गये थे और तीस से ज्यादा लोग घायल हो गये थे। सिर्फ छह आतंकियों ने पूरे एयरबेस को हिला कर रख दिया था। स्क्रीन पर तबाही देख कर मेरा ही नहीं बल्कि वहाँ उपस्थित सभी लोगों का खून खौल रहा था। दो घंटे बाद अजीत सर और वीके भी वहीं आ गये थे। …सर, मुझे मालूम था कि शुजाल बेग के गायब होने का पता चलते ही पाकिस्तानी फौज ऐसा कुछ न कुछ करेगी परन्तु एयरबेस पर हमले के बारे मे किसी ने नहीं सोचा होगा। जनरल रंधावा का चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था। …शुजाल बेग से क्या मतलब है मेजर? वायुसेना का एयर बेस जैसी जगह क्या कंपनी बाग है कि जहाँ कोई भी टहलता हुआ आ सकता है। यह हमारी चूक है और हमे इसे स्वीकरना चाहिये। छ्ह आतंकी अन्दर घुसते चले गये और हमारी सुरक्षा मे तैनात लोग सोते रहे। क्या देश की रक्षा ऐसे की जाएगी। इसको अबकी बार ऐसे नहीं जाने दे सकते। अब उनको सबक सिखाने का समय आ गया है। वीके और अजीत दोनो चुप थे।

थोड़ी देर बाद वीके ने कहा… रंधावा, तुम ठीक कह रहे हो। हम दोनो एक मीटिंग से आये है। हमने भी यही बात सबके सामने रखी थी लेकिन उनका कहना है कि इस बार चूक हमसे हुई है। इस समय कोई भी प्रतिकार हमारी कमजोरी को दुश्मन के सामने जाहिर करेगा। हमे एक फूलप्रूफ योजना तैयार करने के लिये कहा गया है। तीनो सेनाध्यक्षों को भी यही निर्देश दिया गया है। उनका कहना है कि प्रतिकार का समय और जगह हम तय करेंगें लेकिन ऐसी चोट पहुँचानी है जिसकी गूंज पूरी दुनिया मे सुनाई दे। अचानक अजीत सर ने पूछा… मेजर, तुम दो बार सीमा पार गये थे और वहाँ से दो बार वापिस भी आये थे। क्या उसके बारे मे कुछ बता सकते हो? …सर, घुसपैठ का रास्ता उत्तर कश्मीर से दक्षिण कश्मीर तक फैला हुआ है। सीमा के उस पार तंजीमों की मदद से दर्जन से ज्यादा ऐसे ठिकाने बना रखे है जहाँ जिहादी समूह आकर कर रुक जाते है। वह हमारी पेट्रोलिंग पार्टी पर दूर से नजर रखते है। जैसे ही मौका मिलता है एक समूह वह ठिकाना छोड़ कर आगे बढ़ जाता है। उस जगह पर एक नया समूह आकर बैठ जाता है। पहला समूह कभी बचते-बचाते अन्दर प्रवेश कर जाता है और कभी सीमा पार करते हुए भारतीय सेना द्वारा मारा जाता है। यही सिलसिला चलता रहता है।

…अजीत अगर उन ठिकानों पर कुछ दिन नजर रखी जाये तो शायद कुछ किया जा सकता है। अजीत सर कुछ नहीं बोले बस अपना सिर हिला दिया था। …सर, मुजफराबाद के रास्ते पर ऐसे ही कुछ ठिकानों की हमने निशानदेही की थी। ब्रिगेडियर चीमा के पास उन ठिकानो के कुअर्डिनेट्स है। कुछ दिन हम उन कुअर्डिनेट्स पर नजर रखेंगें तो और घुसपैठ के दूसरे रास्तों पर भी वैसे ही ठिकाने पता किये जा सकते है। अचानक अजीत सर ने उठते हुए कहा… रंधावा, ब्रिगेडियर चीमा से सारे कुअडिनेट्स लेकर सीमा से लगे उन ठिकानो का पता लगाओ। अब से चौबीस घंटे उन ठिकानों पर नजर बनाये रख कर एक पैटर्न ढूंढने की कोशिश करो। तुम मेरे साथ चलो मेजर। इतना बोल कर वह आगे बढ़ गये थे। मै जल्दी से उठा और उनके पीछे चल दिया था। उनकी कार मे बैठते ही कार चल दी थी। …मानेसर चलो।

थोड़ी देर के बाद हम एनएसजी के कोम्पलेक्स मे पहुँच गये थे। …मेजर, शुजाल बेग को यहीं एक हाई सिक्युरिटी सेल मे रखा हुआ है। अजीत सर मुझे अपने साथ लेकर एनएसजी के डिटेन्शन सेन्टर की ओर चल दिये थे। कुछ देर के बाद हम शुजाल बेग के सामने बैठे हुए थे। शुजाल बेग की हवाइयां उड़ी हुई थी। अजीत सर ने जैसे ही कमरे मे प्रवेश किया तो शुजाल बेग सावधान हो कर बैठ गया था लेकिन जैसे ही मै उनके पीछे अन्दर आया तो मुझे देख कर वह चौंक कर खड़ा हो गया था। अजीत सर ने कहा… ब्रिगेडियर साहब बैठिये। आप मुझे जानते है और यह मेजर समीर बट है। हम दोनो उसके सामने जाकर बैठ गये थे। मेरी नजर शुजाल बेग पर जमी हुई थी। अजीत सर अपना गला खंखार कर आराम से बोले… ब्रिगेडियर शुजाल बेग आपसे सिर्फ दो सवाल है। आप चाहें तो जवाब दें अन्यथा चुप रहे यह आपके उपर निर्भर करता है। वलीउल्लाह का क्या राज है? वह चुप रहा। …मेरा दूसरा सवाल है कि जिहाद काउंसिल की क्या योजना है? उसने कुछ नहीं कहा लेकिन इस बार हमे देखने के बजाय वह कभी छ्त और कभी दरवाजे को देख रहा था।

अजीत सर ने मुस्कुरा कर कहा… ब्रिगेडियर साहब, हम आपके साथ कोई जोर जबरदस्ती नहीं करेंगें लेकिन हम तुम्हारी सीडी नेपाल सरकार को दे देंगें। इसका खुलासा होते ही मौलाना कादरी अपनी फिदायीन फौज के साथ नेपाल को छोड़ कर पाकिस्तान निकल जाएगा। मैने आश्चर्य से अजीत सर की ओर देखा तो वह बड़े शांत दिख रहे थे परन्तु शुजाल बेग का चेहरा धुआँ हो गया था। मुझे समझ मे नहीं आया कि इससे उस जैसे आदमी पर क्या फर्क पड़ेगा लेकिन अगले ही पल वह पहली बार अजीत सर से बोला… आप यह नहीं कर सकते। …क्यों ब्रिगेडियर साहब मै ऐसा क्यों नहीं कर सकता? वह कुछ नहीं बोला लेकिन उसकी आँखों मे खौफ झलक रहा था। अजीत सर ने कहा… आपके परिवार मे चौबीस लोग है। दूर-दराज के अगर रिश्तेदारों को भी मिला ले तो सत्तर के करीब हो जाएँगें। उनमें से आपके दो बेटे और तीन बेटियाँ अमरीका मे पढ़ रहे है। मेरे पास पूरी लिस्ट है। जिहाद काउंसिल का फतवा निकलते ही उन सत्तर लोगो की क्या दुर्गति होगी उससे तो आप भली-भांति परिचित है। मंसूर बाजवा भी उन्हें रोकने की कोई कोशिश नहीं करेगा क्योंकि उस तक हमने खबर पहुँचा दी है कि पैसों के लिये आप भारतीय रा के साथ मिल गये है। मुझे उसी समय फारुख के फोन का संबन्ध समझ मे आ गया था। अजीत सर चुपचाप उसके सामने बैठ गये थे।

ब्रिगेडियर शुजाल बेग चुप बैठा रहा तो अजीत सर उठते हुए बोले… आपकी जैसी मर्जी। आपको फिक्र करने की जरुरत नहीं है। मै जानता हूँ कि आपको टार्चर करके हमे ज्यादा कुछ हासिल नहीं होगा। लेकिन वादा करता हूँ कि जिस दिन आपकी बेगमों पर उनका कहर टूटेगा उसकी पूरी जानकारी आपको जरुर दे दूँगा। मुझे बहुत तकलीफ होगी जब मै आपको जेनब और नफीसा की दुर्गति की कहानी सुनाऊँगा। चलो मेजर, ब्रिगेडियर साहब अगर अपने परिवार को जड़ से मिटा देना चाहते है तो भला इसमे हम क्या कर सकते है। अजीत सर उठ कर चलने लगे तो अचानक वह उठ कर खड़ा होकर चिल्लाया… अजीत तुम मुझे मार दो लेकिन यह मत करो। मै फौजी हूँ और तुमसे आशा करता हूँ कि तुम मुझसे एक फौजी की तरह ही व्यवहार करोगे। मै तो अभी भी एक मूक दर्शक बना हुआ था। अजीत सर ने कहा… वह तो मै कर रहा हूँ। …अजीत, अपनी दुश्मनी मुझसे निकालो लेकिन फौज कभी किसी के बीवी बच्चों पर अत्याचार नहीं करती है। …यह बात आपके मुँह से अच्छी नहीं लगती है। वैसे भी हम कहाँ कुछ कर रहे है। जो कुछ भी करेंगें, वह आपकी कौम के लोग करेंगें। भला इसमे हम काफ़िरों को क्यों दोष दे रहे हो। अचानक अजीत सर की आवाज कड़ी हो गयी… शुजाल बेग, मेरे दो सवालों का जवाब दे दो तो सिर्फ तकलीफ तुम्हें होगी वर्ना तुम्हारा पूरा परिवार भुगतेगा। अब मै नहीं आऊँगा जब तक तुम मेरे सवालों का जवाब देने के लिये खुद नहीं बुलवाओगे। हाँ पाकिस्तान मे तुम्हारे परिवार के साथ क्या हो रहा है उसकी जानकारी देने मेजर बट आ जाया करेगा। यह बोल कर अजीत सर उस सेल से बाहर निकल गये थे। मै भी उनके पीछे चला आया था।

कार मे बैठते हुए मैने पूछा… सर, आप क्या समझते है कि यह ऐसे ही अपना मुँह खोल देगा। यह आईएसआई का सबसे दुर्दान्त अफसर है। …मेजर, इसका मुँह खुलवाने के लिये तुमने टार्चर किया तो क्या गारन्टी है कि यह तुम्हें सच बता देगा। केमिकल का इस्तेमाल करोगे भी तो उससे क्या हासिल होगा? यह अपनी जान दे देगा लेकिन बताएगा नही। इसका मनोबल तोड़ना पड़ेगा और उसके लिये कुछ समय लगेगा। …सर, फारुख ने मुझे फोन किया था। अजीत सर ने चौंक कर पूछा… कब? …दो दिन पहले। वह शुजाल बेग की लोकेशन के बारे मे जानना चाहता है। उसके बदले मे वह मेजर हया की जानकारी देगा जो आईएसआई के लिये वलीउल्लाह की हैंडलर है।  अजीत सर ने कुछ सोचते हुए कहा… ओह, इसका मतलब है कि शुजाल बेग का फतवा निकल चुका है और बाजवा ने यह काम जैश को सौंपा है। …एक बार उससे भी मिल कर देख लो। शुजाल बेग की लोकेशन बताने मे मुझे कोई हर्ज नहीं है लेकिन पहले उसे मेजर हया के बारे मे बताना पड़ेगा। अगर उसकी जानकारी सच हुई तभी उसे शुजाल बेग की लोकेशन मिल सकती है। हम बात करते हुए आफिस पहुँच गये थे। अंधेरा गहरा हो गया था। …मेजर तुम जाओ। मुझे अभी कुछ काम है। यह बोल कर वह आफिस मे चले गये थे और मैने आफिस से अपना सामान उठाया और आफशाँ के घर की ओर निकल गया था।

टैक्सी से उतरते ही मेरा माथा ठनक गया था। लान मे पार्टी का इंतजाम रखा हुआ था। पच्चीस-तीस लोग वहाँ पर ड्रिंक्स हाथ मे लिये बातों मे उलझे हुए थे। गेट पर खड़े हुए दरबान ने मुझे अन्दर जाने से रोक दिया था। मै पार्टी मे जाने के लिय इच्छुक नहीं था इसीलिये मै लान से बच कर सीधे घर मे घुसना चाह रहा था। मैने गेट पर खड़े हुए दरबान से कहा… थापा नाम के सिक्युरिटी गार्ड को बुला दो। वह मुझे जानता है। एक पल के लिये वह सोच मे पड़ गया था लेकिन फिर उसने इन्टर्काम पर किसी से कहा… थापा से मिलने के लिये कोई आया है। उसे गेट पर भेज दो। थापा को आने मे कुछ देर लगी थी तो मै अपना बैग लेकर एक किनारे मे खड़ा हो गया लेकिन तभी मुझे लगा जैसे कोई किसी को पुकार रहा है। मैने उस ओर देखा तो लोहे के गेट से हाथ बाहर निकाल कर मेनका आवाज लगा रही थी… अब्बू…अब्बू। दरबान ने उसकी बात सुन कर मेरी ओर देखा तो मैने कहा… मेरी बेटी है। अब अन्दर चला जाऊँ। उसने झेंपते हुए जल्दी से दरवाजा खोल दिया था। मेनका भागते हुए मेरी ओर आयी और मैने उसको अपनी बाँहो मे उठा लिया था। वह तेजी से कुछ बोलने लगी लेकिन मैने उसके मुँह पर उँगली रख कर कहा… तुम्हारी अम्मी को सरप्राईज देंगें। हम लान मे खड़ी हुई भीड़ की नजरों से बचते-बचाते जैसे ही दरवाजे पर पहुँचे तब तक थापा पहुँच गया था। उसने मुस्तैदी से सैल्युट किया और मेरा बैग लेते हुए बोला… साहबजी आप कब आये? …सुबह आ गया था। यहाँ पर तो सब ठीक है। …जी साहब।

अपनी गोदी मे मेनका को लिये मै घर मे दाखिल हो गया था। अपना बैग बेडरुम मे रखवा कर मैने कहा… थापा कल मेरे साथ आफिस चलना है। सुबह जीप तैयार रखना। …जी साहबजी। मै मेनका को अपनी गोदी मे लेकर बैठ गया था। …मुझे कैसे देख लिया? …अब्बू, मै खिड़की से बाहर देख रही थी तो मुझे आप गेट पर खड़े हुए दिख गये थे। …मेरी मेनका बहुत समझदार हो गयी है। …आप कब आये? उसके सवालों के जवाब देते हुए मैने कहा… कहाँ से देख रही थी? …अपने कमरे की खिड़की से देख रही थी। आईये मै अम्मी को दिखाती हूँ। वह मुझे पकड़ कर अपने कमरे मे ले गयी थी। बड़े से शीशे की खिड़की से नीचे लान मे खड़ी आफशाँ की ओर इशारा करके बोली… अम्मी। मै एक पल के लिये आफशाँ को देख कर हतप्रभ रह गया था। वह अपने पाश्चात्य स्लिट गाउन मे सभी से हँस-हँस कर बात कर रही थी। कद और काठी से वह सबसे हट के लग रही थी परन्तु गाउन ने उसके जिस्म की कामुकता और भी ज्यादा बढ़ा दी थी। वहाँ पर सभी स्त्रियाँ पाश्चात्य वेशभूषा मे थी परन्तु आफशाँ सबसे अलग लग रही थी। मैने आये हुए कुछ लोगों पर नजर डाली तो बहुत से लोग मेरे लिये अन्जान थे। पता नहीं कुछ लोगों को देख कर मुझे ऐसा लग रहा था कि उनका संबन्ध फोर्सेज से था। तभी मेरी नजर एक छोटे से समूह पर पड़ी तो उसमे कुछ जाने पहचाने चेहरे दिख गये थे। मोनिका सेठी, दीपक सेठी, बी चन्द्रमोहन, निखिल वागले और बी सुब्रमन्यम को देखते ही पहचान गया था। उनके साथ ही कुछ जानी पहचानी महिला पत्रकार भी खड़ी हुई थी।

मैने साथ खड़ी हुई मेनका का हाथ पकड़ा और उसके साथ बतियाने लगा था। उसके पास बहुत सी बातें थी बताने के लिये और पहली बार मै उसको धाराप्रवाह बोलते हुए सुन रहा था। वह अपने स्कूल, सहेलियाँ, टीचर और खिलौनों से मेरा परिचय करा रही थी। मै भी इतने दिनो बाद उसको जानने की कोशिश मे लगा हुआ था। …अब्बू आप बार-बार कहाँ चले जाते है? …बेटा, आर्मी जहाँ भेज देती है वहाँ जाना पड़ता है। …अब आपको कब जाना है? …पता नहीं बेटा। अभी तो कुछ दिन यहीं हूँ। मै थक कर उसके बिस्तर पर लेट गया था। वह मेरे सीने पर सिर रख कर अपने स्कूल की कहानी सुना रही थी। मेरी आँखे बार-बार नींद से झपक रही थी। एक तेज नींद का झोंका आया और फिर मै अपनी सपनों की दुनिया मे खो गया था।

जब मेरी आँख खुली तो दिन निकल आया था। पूरी रात मैने मेनका के छोटे से बेड पर गुजार दी थी। मै उठ कर उसके कमरे से बाहर निकला तो सुबह की लालिमा आसमान पर छायी हुई थी। मैने अपनी कलाई की घड़ी पर नजर मारी तो सात बज चुके थे। मैने अपने लिये चाय बनायी और लान मे जाकर बैठ गया। सुबह का अखबार खोल कर पठानकोट पर हुए हमले के बारे पढ़ने लगा। चाय समाप्त करके मैने धीरे से आफशाँ के बेडरुम का दरवाजा खोलकर अन्दर देखा तो माँ और बेटी गहरी नींद मे सो रही थी। मै दबे पाँव बाथरुम मे चला गया और जब तक तैयार होकर बाहर निकला तब तक दोनो सो रही थी। रात की पार्टी का असर था। मुझे दोनो की दिनचर्या के बारे मे कुछ पता भी नहीं था। मै चुपचाप कमरे से बाहर निकल आया और अपने नाश्ते की तैयारी मे जुट गया था। मैने अपना नाश्ता समाप्त किया और फिर उन दोनो को उठाने के लिये बेडरुम मे चला गया था।

मैने झुक कर धीरे से आफशाँ को हिलाया… आफशाँ। उसने धीरे से पल्कें झपकायी और मेरे गले मे बाँहे डाल कर अपनी ओर खींचते हुए बोली… तुम बाहर क्यों नहीं आये। मैने उसके होंठ चूम कर कहा… कल रात को तुम बहुत सुन्दर लग रही थी। मैने जैसे ही उसकी ओर हाथ बढ़ाया कि तभी मेनका ने करवट ली तो मै हड़बड़ा कर उससे अलग हो गया था। वह खिलखिला कर हँस पड़ी थी। …अभी भी उससे डर लगता है कि मुझे तुम्हारे साथ देख कर तुम्हें मारना शुरु कर देगी। मैने झेंपते हुए कहा… नहीं। अब वह बहुत समझदार हो गयी है। कल तुम्हारी कमी मेनका ने पूरी कर दी थी। मै उसकी कहानियाँ सुनते हुए सो गया था। आफशाँ उठ कर बैठ गयी थी। …मै पार्टी के बाद उसको देखने के लिये उसके कमरे मे आयी तो देखती हूँ कि बाप और बेटी दोनो गहरी नींद मे सो रहे थे। तुम्हें तो उठा नहीं सकती थी तो इसे यहाँ ले आयी थी। …इसको स्कूल नहीं जाना है? …नहीं। समीर तुम्हें कुछ भी याद नहीं है। आजकल सर्दियों की छुट्टी चल रही है। यह महारानी सुबह दस बजे से पहले नहीं उठेगी। …आफशाँ मुझे आफिस मे रिपोर्ट करना है। मै चलता हूँ। …तुमने नाश्ता किया? …हाँ। यह बोल कर मै चल दिया तो आफशाँ जल्दी से उठी और मेरी ओर दौड़ती हुई आई और पीछे से पकड़ कर बोली… तीन महीने बाद मिले भी और चल दिये। मैने घूम कर उसे अपनी बाँहों मे जकड़ते हुए कहा… अभी फिलहाल मै यहीं हूँ। कल रात की कसर आज रात को निकालूँगा फिलहाल चलता हूँ। वह मुझे दरवाजे तक छोड़ने चली आयी थी और फिर मेरे जीप मे बैठते ही वह वापिस चली गयी थी।

थापा को साउथ ब्लाक कह कर मै पीठ टिका कर आराम से बैठ गया था। कुछ देर के बाद मै अपने आफिस मे बैठ कर पठानकोट की रिपोर्ट पढ़ रहा था। जैश ने हमला किया था। सभी मरने वाले आतंकी सीमा पार से आये थे। अचानक जनरल रंधावा मेरे कमरे मे झांकते हुए बोले… मेजर आओ चलें। मै जल्दी से उठ कर उनके साथ चल दिया था। रास्ते मे अजीत सर का कमरा पड़ा तो जनरल रंधावा ने दरवाजे पर हल्की सी दस्तक देकर अन्दर झाँका तो अजीत सर भी कमरे से बाहर निकल आये थे। हम तीनो आफिस से बाहर निकल कर अजीत सर की कार मे बैठ गये थे। थोड़ी देर मे एयरफोर्स के हेलीकाप्टर मे बैठ कर हम तीनों पठानकोट एयरबेस की ओर जा रहे थे। एयरबेस पर उतरते ही एयरफोर्स की जीप मे बैठ कर हम लोग हमले की कार्यविधि समझने मे लग गये थे। एनआईए के एक अधिकारी ने हमको मुख्य द्वार से लेकर आतंकियों को जहाँ मार गिराया था उस रास्ते को दिखाते हुए कहा… ऐसा लगता है कि उनको रास्ते का पता था। अचानक मैने कहा… सर, मै उन आतंकियों के शव देखना चाहता हूँ। अजीत सर ने फोन पर किसी से बात की और फिर ड्राइवर से कहा… सिविल अस्पताल चलो। सिविल सस्पताल की शवगृह मे छहों आतंकियों के शव रखे हुए थे। मैने सबकी शक्ल को ध्यान से देखा और अपने फोन के कैमरे से उनकी तस्वीर उतार कर मैने कहा… सर, उस दिन निजामुद्दीन मे जिन लोगों के जाली कागजात मिले थे उनमे से मुझे यह दो लोग लग रहे है। जैश के तार दिल्ली तक जुड़े हुए है। …मेजर, इसकी जाँच एनआईए के हाथों मे है। पहले उनको अपनी जाँच रिपोर्ट देने दो फिर बैठ कर देखेंगें कि हमे क्या करना है। पठानकोट एयरबेस का स्टेशन कमांडर ग्रुप कैप्टेन बी एस नायर पहले से ही काफी तनाव मे था। उसने एयरफोर्स की आंतरिक जाँच की रिपोर्ट देते हुए बताया था कि प्रात: तीन बजे मुख्य द्वार के चार सुरक्षाकर्मियों की हत्या करके छह आतंकी एयरबेस मे दाखिल हुए थे। उनके निशाने पर फ्युल डम्पयार्ड था। हमले का पता चलते ही उनको डम्प्यार्ड से कोई पचास मीटर पहले घेर लिया गया था। अगर कहीं वह अपने मकसद मे कामयाब हो जाते तो भारी नुकसान उठाना पड़ सकता था। शाम तक हम वापिस दिल्ली लौट आये थे।

मुझे वही आफिस मे छोड़ कर अजीत सर और जनरल रंधावा चले गये थे। मै अपने आफिस मे बैठ कर उन छ्ह आतंकियों की आईबी की फाइल मे मिली फोटो के साथ मिलान कर रहा था। मुझे उस वक्त दो चेहरे ऐसे लगे थे जिनको मैने उस फाइल मे देखा था परन्तु जब मैने मिलान किया तो चार आतंकियों की शिनाख्त हो गयी थी। कुछ सोच कर मैने आईबी के निदेशक दीपक शर्मा का नम्बर मिला कर बात करके साबिर अली वाले केस के बारे मे पता किया तो उसने बताया कि साबिर अली को हाईकोर्ट से जमानत मिलने के कारण छोड़ना पड़ा था। अब साबिर अली कहाँ है पूछने पर उसने कहा… अपने घर पर है। कोर्ट की तारीख पर उसका वकील पेश हो जाता है। …क्या उसकी कोई निगरानी कर रहा है? …मेजर, हमारे पास इतना स्टाफ नहीं है कि सभी पर निगरानी लगायी जा सके। वैसे भी रोज ही कोई उससे भी ज्यादा संवेदनशील मामला सामने आ जाता है तो पुराने केस कोर्ट के हवाले करके नये केस मे उलझ जाते है। कुछ देर बात करके मैने फोन काट दिया और न्यायपालिका की लचर कानूनी व्यवस्था के हालात देख कर मन खिन्न हो गया था।

मै आफिस से निकल कर जीप मे बैठा और घर की ओर चल दिया था। …साहबजी यह मेम साहब का आफिस है। मैने उड़ती हुई नजर उस इमारत पर नजर डाली तो एक पल के लिये चौंक गया था। आफशाँ नौसेना भवन मे काम कर रही थी। यह कैसे मुमकिन हो सकता है? भला एक निजि कंपनी के लोग इतने संवेदनशील आफिस मे क्या कर रहे थे। मुझे लगा कि फौज की जिंदगी के कारण मै दुनिया से बिल्कुल कट कर रह गया हूँ। थापा मुझे दरवाजे पर उतार कर जीप को पार्किंग मे लगाने के लिये चला गया था। मेनका मुझे दरवाजे पर ही मिल गयी थी। उसकी बातें सुनता हुआ मै अन्दर आ गया था। आफशाँ अभी आफिस से लौटी नहीं थी। मैने नौकर से चाय बनाने के लिये कह कर कपड़े बदलने चला गया था। जब तक कपड़े बदल कर आया तब तक चाय बन चुकी थी। एक बार फिर से मेनका से उसके दिन भर का समाचार सुनने बैठ गया था। उसकी बातें सुनने मे मुझे अपना बचपन याद आ गया था कि कैसे हम पाँचों रात मे बैठ कर सारे दिन के अनुभव सुनाने बैठ जाते थे।

थोड़ी देर के बाद आफशाँ ने घर मे प्रवेश किया और हमे बातें करते देख कर वहीं हमारे साथ बैठ गयी थी। कुछ देर हमारे साथ बैठ कर आफशाँ अपने कपड़े बदलने चली गयी और मै और मेनका लान मे टहलने के लिये चले गये थे। …अब्बू मेरे सभी दोस्त छुट्टियों मे बाहर घूमने जाते है। आप मुझे कभी बाहर नहीं लेकर गये है। …तुम कहाँ जाना चाहती हो? वह सोच मे पड़ गयी थी। अचानक वह बोली… पेरिस। उसकी मांग सुन कर मै चौंक गया था। …अभी तुमने भारत तो देखा नहीं तो फिर वहाँ जाकर क्या देखोगी। पहले तुम्हें भारत देखना चाहिये और उसके बाद पेरिस देखना क्योंकि तभी तुम दोनो जगह के महत्व को समझ सकती हो। पेरिस मे क्या देखना चाहती हो? उसने तुरन्त कहा… एफिल टावर। …क्या तुमने कुतुब मीनार देखी है? …नहीं। …झूलती मीनार देखी है? नहीं। …तो बताओ जब यह दो भारतीय टावर तुमने नहीं देखे तो एफिल टावर को देखने मे क्या मजा आयेगा। मेरी बात सुन कर वह सोच मे डूब गयी थी। तभी मेनका को अपनी गोदी मे लेकर आफशाँ मेरे साथ बैठते हुए बोली… अब्बू ने बेचारी को किस चीज मे उलझा दिया है। …अम्मी… एक बार फिर से उसकी कहानी शुरु हो गयी थी।

कुछ देर इधर उधर की बात करने के बाद मैने पूछा… कल शाम की पार्टी किस खुशी मे थी? …मुंबई से हमारे सीईओ आये थे। वह कुछ लोगों से मिलना चाहते थे तो उनके लिये पार्टी रखी थी। …तुम सब को जानती थी? …हाँ। क्यों पूछ रहे हो? …कल मेरी नजर निखिल वागले पर पड़ी थी। तुम उसे कैसे जानती हो? …वह वाणिज्य सचिव है। तुम्हें पता है कि वह कितनी महत्वपूर्ण पोस्ट पर बैठा हुआ है लेकिन बेहद लीचड़ इंसान है। …और बी चन्द्रमोहन? इस बार उसने तुरन्त कुछ नहीं कहा परन्तु संभलते हुए बोली… समीर, मुझे समझ मे नहीं आता कि ऐसे गिरे हुए लोग इतने उँचे पदों पर कैसे पहुँच जाते है। …तुमने बताया नहीं कि बी चन्द्रमोहन कैसा आदमी है? उसने एक बार मेनका की ओर देखा और जल्दी से बोली… कुत्ता है साला। उसके मुँह से ऐसी बात सुन कर मुझे हँसी आ गयी थी। तभी मेनका उचक कर बोली… अम्मी बेड वर्ड। आफशाँ झेंपते हुए बोली… नो बेटा, मैने सिर्फ कुत्ता कहा था। यह कोई गलत वर्ड नहीं है। मेनका और आफशाँ की बहस शुरु हो गयी और हमारी बातचीत पर रोक लग गयी थी।

खाना खाने के बाद मेनका को लेकर हम दोनो लान मे टहलने चले गये थे। …आज थापा बता रहा था कि तुम नौसेना भवन मे काम करती हो। …क्यों तुम्हें नहीं पता था? …मुझे तो यह भी नहीं पता कि तुम्हारे आफिस का क्या नाम है। …कमाल करते हो। इतनी बार तुम मेरे आफिस आये लेकिन तुम्हें मेरी कंपनी का नाम नहीं पता। मेरी कंपनी का नाम डेल्टा साफ्टवेयर सौल्युशन्स है। हम नौसेना के लिये बल्क डेटा एनेलिटिक्स के साफ्टवेयर बनाते है। …ओह, तो फिर तुम्हें नौसेना की लोकेशन के ग्रिड रेफ्रेन्स कहाँ से लेती हो? बोलते-बोलते वह अचानक चुप हो गयी थी। मैने उस पर ज्यादा दबाव नहीं डाला लेकिन इतना महसूस कर लिया था कि वह यह सुन कर ही असहज हो गयी थी। जिस उत्साह से वह अपने काम के बारे मे बात कर रही थी अचानक ही ग्रिड रेफ्रेन्स की बात सुन कर वह संभल कर बोलने लगी थी। कुछ देर टहलने के बाद मेनका ने शोर मचाना शुरु किया तो मैने उसे गोदी मे उठा लिया और अन्दर चले आये थे। …समीर इसे मुझे दे दो। मै इसे सुला कर आती हूँ। उसने मेनका को गोदी मे लिया और उसके कमरे मे चली गयी और मै अपने बेडरुम मे आ गया था।

मै बेड पर अभी बैठा ही था कि मेरी फोन की घंटी बज उठी थी। घंटी की आवाज सुनते ही मुझे लगा कि आज की रात फिर काली हो जाएगी। मैने जल्दी से फोन के स्क्रीन पर नजर डाली तो फारुख का नाम देख कर सावधान हो गया था। …हैलो। …मेजर मेरे काम का क्या हुआ? …मैने पता लगा लिया है लेकिन उसके लिये मेरी कुछ शर्त है। इतना बोल कर मै चुप हो गया था। कुछ क्षण इंतजार करने के बाद वह बोला… तुमने शर्त नहीं बतायी। …अब जो भी बात होगी वह आमने सामने होगी। …नामुमकिन। …तो कोई बात नहीं। जब मिलने की हिम्मत जुटा लो तो फिर पूछ लेना। मेरी ओर से यह पक्का है कि फोन पर यह काम नहीं होगा। वह कुछ पल चुप रहा और फिर बोला… एक बार फिर से मुझे फंसाने की योजना बना रहे हो। …फारुख अब मुझे तुम्हें फंसाने की जरुरत नहीं है। तुम तो वैसे ही ब्रिगेडियर चीमा के जाल मे फंसे हुए हो लेकिन तुम शायद भूल गये कि मेरे पास अभी भी वह सीडी है तो अब तुम्हें फंसाने के लिये मुझे मेहनत करने की जरुरत नहीं है। यह सौदा आमने सामने होगा क्योंकि वलीउल्लाह की हैंडलर मेजर हया की जानकारी मिलने के बाद ही तुम्हें ब्रिगेडियर शुजाल बेग की लोकेशन दूँगा। इतना बोल कर मै चुप हो गया था। तभी मेरी नजर दरवाजे की ओर चली गयी जहाँ आफशाँ खड़ी हुई मेरी बात सुन रही थी। उसकी हवाइयां उड़ी हुई लग रही थी। मैने अपने होंठों पर उँगली रख कर उसे चुप रहने का इशारा किया और फारुख के जवाब का इंतजार करने लगा। जब उसकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो मैने कहा… अच्छा सोच कर जवाब देना और अगली बार से फोन इतनी देर रात को मत किया करो। यह वक्त मियाँ-बीवी का निजि वक्त होता है। उसने जल्दी से कहा… ठीक है लेकिन जगह मे बताऊँगा। …कोई बात नहीं। जगह तुम बताना और मिलने का समय मै दूँगा। फारुख लेकिन इतनी रात को फोन मत किया करो। यह वक्त शरीफ लोगो के सोने का होता है। इतना बोल कर मैने फोन काट दिया था।

आफशाँ अभी भी वही जड़वत खड़ी हुई थी। …फारुख मीरवायज का फोन था। तुम्हें क्या हुआ है? तुम क्यों फारुख का नाम सुन कर डर गयी हो। मैने उसे अपनी बांहों मे जकड़ कर कहा… आफशाँ, अनायस ही तुमने हमारी बात सुन ली है लेकिन यह सिर्फ अपने तक रखना अन्यथा हम दोनो ही मुश्किल मे फँस जाएँगें। कुछ देर पहले उसकी आंखों मे जो वासना का उन्माद हिलोरें ले रहा था अब उसकी जगह डर ने ले ली थी। मुझे समझ मे नहीं आया कि फारुख के नाम से वह इतनी दहशत मे क्यों आ गयी थी।

रविवार, 13 अगस्त 2023

  

गहरी चाल-21

 

कंपनी के कारोबार का काम आरंभ किये तीन महीने हो गये थे। अब तक नेपाल के चारों मुख्य क्षेत्रों मे हमारे चार मुख्य एजेन्ट बन गये थे। वह हर हफ्ते अपना आर्डर दे दिया करते और काठमांडू के गोदाम से उनके पास माल पहुँचा दिया जाता था। गोल्डन इम्पेक्स कंपनी का नाम भी अब तक नेपाल के बाजार मे स्थापित हो गया था। मैने सोचा भी नहीं था कि तीन महीने मे कंपनी का काम इतना बढ़ जाएगा कि मेरा असली मकसद पीछे छूटता चला जाएगा। तबस्सुम ने कंपनी के काम की काफी जिम्मेदारी अपने उपर ले रखी थी। वही सारे क्षेत्रीय एजेन्टों से संपर्क मे रहती थी परन्तु गोदाम की आवक और जावक की जिम्मेदारी मैने अपने सिर पर ले रखी थी। गोदाम जाने से मुख्यत: मेरे दो कार्य पूर्ण हो रहे थे। एक कैप्टेन यादव की टीम का संचालन वहाँ से आसानी से हो जाता था और दूसरा कमांड सेन्टर के साथ भी रोजाना बातचीत हो जाती थी।

बेग को पार्सल भिजवाने के बाद से उनके खेमे मे भूचाल सा आ गया था। हिमगिरी नाईट क्लब के विस्फोट मे संयोगवश केसिनो के साथ बने हुए तहखाने मे आईएसआई के बारुद के जखीरे ने आग पकड़ ली थी। इतना भयंकर विस्फोट हुआ था कि आसपास की आबादी मे कुछ इमारतें ढह गयी और कुछ की दीवारों मे दरार आ गयी थी। उस विस्फोट के बाद अजीत सर ने कहा कि कुछ महीने मुझे अब शांत रहने की जरुरत है। आईएसआई के काठमांडू स्थित दो मुख्य मोड्युल को अब तक हमने काफी हद तक क्षति पहुँचा दी थी। नूर मोहम्मद का कारोबार भी लगभग ठप्प हो गया था। पिछले कुछ दिनों मे हुए काठमांडू शहर मे हुए विस्फोटों के कारण नेपाल सरकार ने पाकिस्तानी कारोबारियों के प्रति अपना रुख कड़ा कर दिया था। इसी के कारण नेपाल मे आईएसआई की गतिविधि मे भी भारी गिरावट आ गयी थी। इस बात का सारा श्रेय मेरी टीम को जाता था। पुलिस और सेना की जाँच टीमे दोनो ही विस्फोटक के संबन्ध मे एक ही निष्कर्ष पर पहुँची थी कि विस्फोटक नेपाल के बाहर से लाया गया था। अजीत सर ने कश्मीर और अन्य जगह हुए विस्फोट की फारेन्सिक रिपोर्ट नेपाल सरकार को गोपनीय रुप से देकर यह साबित कर दिया था कि पाकिस्तानी तंजीमे इसी प्रकार के विस्फोटक का इस्तेमाल करती थी। सज्जाद अफगानी और हरकत उल अंसार की जानकारी भी नेपाल सरकार को समय-समय पर गोपनीय तरीके से भारत सरकार ने दे दी थी। इसके कारण पाकिस्तानी दूतावास भी काफी दबाव मे आ गया था।

शुजाल बेग के फोन को टैप करने से मुझे बड़ी मदद मिल गयी थी। एक तो उसके नेपाल नेटवर्क से जुड़े हुए मुख्य लोगो की जानकारी मिल गयी थी और दूसरी जिहादी तंजीमो के साथ उसकी भुमिका भी खुल कर सामने आ गयी थी। एक बात साफ हो गयी थी कि लगातार असफलता के कारण पाकिस्तान का फौजी इदारा भी शुजाल बेग से काफी नाराज चल रहा था। इसका सारा ठीकरा अपने आकाओं के सामने वह नूर मोहम्मद के सिर पर फोड़ रहा था। उसके फोन पर बात करने से मुझे नेपाल मे अलग-अलग जगह बैठे हुए उसके कुछ खास लोगों का पता भी चल गया था। उपयुक्त समय देख कर कैप्टेन यादव की टीम माल पहुँचाने के बहाने उस जगह पर पहुँच कर एक-एक करके उन सभी को ठिकाने लगाने का काम भी कर रही थी। काठमांडू मे सज्जाद अफगानी के बाद से जो मुहिम जो शुरु हुई थी वह अमरगढ़ी मे जैश के इकबाल मसूद, नेपाल गंज मे लश्कर का सलीम शेख, सिद्धार्थनगर मे आईएसआई का मौलाना शमसुद्दीन फैजल और बीरगंज मे हिज्बुल के तारिक अनवर शेख की हत्या करके हमने नेपाल मे आईएसआई की रीढ़ की हड्डी तोड़ कर रख दी थी। इसी प्रकार का एक्शन एनआईए भारत के संवेदनशील स्थानों पर करने मे व्यस्त हो गया था। तीन महीने मे अपने कारोबार को बढ़ाते हुए हमने शुजाल बेग के नापाक इरादों को एक तरह से धूल मे मिला दिया था। कुछ दिन पहले ही मुझे शुजाल बेग और नूर मोहम्मद की बातचीत से पता चला था कि नूर मोहम्मद को वापिस पाकिस्तान बुलाया गया है। मुझे अब तक पूरा यकीन हो गया था कि नूर मोहम्मद आईएसआई और संयुक्त मोर्चे की असली योजना से पूरी तरह अनिभिज्ञ था। काठमांडू की योजना फेल होने का सारा ठीकरा नूर मोहम्मद के सिर पर फोड़ कर शुजाल बेग अपने आप को बचाने की जुगत मे लगा हुआ था।

इन तीन महीनों मे गोल्डन इम्पेक्स कंपनी का कारोबार बढ़ने के कारण काठमांडू के संभ्रात समाज के कार्यक्रमों और पार्टियों मे हमारी उपस्थिति दर्ज होने लगी थी। नूर मोहम्मद और शबाना से अकसर वहाँ मुलाकात हो जाती थी। नूर मोहम्मद अभी भी मेरे सामने आते ही असहज हो जाता था परन्तु तबस्सुम के साथ उन दोनों के बेहद अच्छे संबन्ध बन गये थे। पिछली शाम को कोयराला परिवार की पार्टी मे हमारी मुलाकात उससे हो गयी थी। तब बातों-बातों मे नूर मोहम्मद ने कहा… समीर, हम लोग अब जल्दी वापिस पाकिस्तान लौट रहे है। सब कुछ जानते हुए भी मैने आश्चर्यचकित हो कर कहा… यह सुन कर बेचारी अंजली को गहरा धक्का लगेगा। सब कुछ वहाँ ठीक तो है जो ऐसे अचानक वापिस जाना पड़ रहा है? कुछ नशे का सुरुर और तनाव के कारण अचानक उसने कहा… कुछ आफिस की राजनीति के कारण मुझे वापिस बुलाया जा रहा है। …कोई खतरे की बात तो नहीं है? उसके दिमाग मे उठने वाली चेतावनी को मैने जैसे ही बोला तो वह एकाएक बोल उठा… समीर, मुझे लगता था है कि किसी ने मेरे खिलाफ मेरे अधिकारियों से कोई झूठी शिकायत की है जिसके कारण मेरे सबसे नजदीकी दोस्त भी अब बात करने से कन्नी काट रहे है। वह धीरे-धीरे खुल रहा था कि तभी तबस्सुम और शबाना आकर बोली… चलिये खाना खा लिजिये ऐसे कब तक ड्रिंक्स चलती रहेगी। अपना मन मसोस कर मै चुप हो गया था।

मेरे पास शुजाल बेग की रिकार्डिंग थी जिसमे उसने पाकिस्तान मे किसी खास आदमी को बताया था कि नूर मोहम्मद पैसों के लालच मे रा के साथ मिल गया है। उसी की निशानदेही पर रा के एजेन्टों ने एक-एक करके आईएसआई के मुख्य लोगों का सफाया कर दिया था। उसने सिफारिश की थी कि उसे तुरन्त पाकिस्तान वापिस बुला कर उसके खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही की जाये। अब आईएसआई के एक प्यादे को तोड़ने का समय आ गया था। उस शाम विदा लेने से पहले मैने नूर मोहम्मद से कहा… आप दोनो प्लीज कल हमारे घर पर आईये। उसने न नुकुर की परन्तु अंजली और शबाना ने तुरन्त उसको चुप करा कर तय कर लिया कि कल उनका डिनर हमारे घर पर होगा। अब मुझे शुजाल बेग के प्यादे को घेरने की तैयारी करनी थी। घर पहुँचते ही मैने अजीत सर से बात करके पूछा… हम नूर मोहम्मद को अपनी ओर कर सकते है। अपनी योजना उनके सामने रख कर मैने पूछा… आपका क्या विचार है? …हमे उसका क्या फायदा होगा? …सर, पाकिस्तान लौटने से पहले वह हमे ब्रिगेडियर शुजाल बेग को थाली मे परोस कर दे देगा। अजीत सर ने कुछ देर सोचा और फिर बोले… मेजर, अगर इस आप्रेशन मे कामयाब हो गये तो फिर तुम यहाँ वापिस आने की तैयारी कर लेना। …जी सर। मैने बोल तो दिया परन्तु अब इस कारोबार को छोड़ कर तबस्सुम को लेकर वापिस जाने का मेरा मन नहीं था। मेरे कारण उसका सारा भविष्य गर्त मे चला गया था। यह सब मैने उसके भविष्य को सुदृढ बनाने के लिये ही तो खड़ा किया था। यही एक तरीका मुझे समझ मे आया जिसके कारण वह अपनी पहचान खुद बना सकती थी।  

अगले दिन सुबह भारतीय दूतावास मे मनोहर लाल शर्मा को मैने सारी बात समझा दी थी। तबस्सुम और आरफा ने डिनर की खास तैयारी की थी। उन्होंने कुछ ड्रिंक्स का भी इंतजाम करवा दिया था। दिन भर हम अपनी तैयारी करने मे जुटे रहे थे। शाम को सात बजे के बाद नूर मोहम्मद और शबाना का हमने बड़ी गर्मजोशी के साथ स्वागत किया और आफिस का एक चक्कर लगवा कर हम अपने ड्राँइग रुम मे आकर बैठ गये थे। पहले ड्रिंक्स का दौर आरंभ हुआ फिर हमारी बातचीत का दौर शुरु हो गया था। जब नशे के हल्के सुरुर ने असर दिखाना शुरु किया तो मैने बात छेड़ी… आपने बताया था कि आपके खिलाफ किसी ने शिकायत की है। …हाँ, मुझे पता चला है कि किसी ने मेरे अधिकारियों को यकीन दिलाया है कि मैने पैसों की खातिर भारतीय रा के साथ कोई साँठ-गाँठ की है जिसके कारण पिछले कुछ दिनों मे हमारे लोगों की हत्या हो गयी है। …तो आपने क्या सोचा है? …कुछ समझ मे नहीं आ रहा है। एक बार अपनी बात उनके सामने रखने की कोशिश करुँगा तभी बीवी बच्चों को अपने साथ नहीं ले जा रहा हूँ। …आपको यह पता नहीं चला कि किसने आपकी शिकायत की है? …समीर इस काम मे यही खतरा हर दम मंडराता है कि न जाने कौन अपनी दुश्मनी निकालने के लिये आपकी पीठ मे छुरा मार दे। मैने एक घूँट भर कर धीरे से कहा… मुझे पता है कि किसने आपके खिलाफ साजिश रची है। एक पल के लिये कमरे मे अचानक शान्ति छा गयी थी। कुछ दूरी पर बैठी हुई अंजली और शबाना ने भी बात करना बन्द करके हमारी ओर देखना शुरु कर दिया था।

…कल आपकी बात सुन कर मुझे बड़ा बुरा लगा और मैने अपने कुछ जानकारों से पता लगाने की कोशिश की तो उन्होंने मुझे एक रिकार्डिंग सुना दी थी। वह रिकार्डिंग सुन कर मै चौंक गया था। …समीर, वह कौन है? …मै कुछ भी बताने की स्थिति मे नहीं हूँ लेकिन यही सच है कि आपके खिलाफ साजिश हुई है। उसी आदमी ने आपको धोखा देकर अपने किसी साथी के द्वारा कुछ लोगों की जानकारी स्थानीय रा के अधिकारी को दी थी।। एकाएक नूर मोहम्मद सकते मे आ गया था। मैने गर्म लोहे पर आखिरी चोट मारी… मुझे यह भी पता चला है कि उसने आपके लिये फायरिंग स्कायड की सिफारिश की है। मुझे जो बताना था वह मैने बता दिया है। अब इसके आगे मै आपको कुछ नहीं बता सकता। हाँ अगर आप चाहें तो मै अपने उस आदमी से मिलवा सकता हूँ। मैने काँटा फेंक दिया था और अब उसमे उसके फँसने की देर थी। मैने उसका गिलास भरते हुए कहा… आपको दोस्त कहा है तो आपके सामने सच रख दिया है। उसने एक बार शबाना और तबस्सुम पर नजर डाल कर कहा… हम कहीं बाहर चल कर बात नहीं कर सकते? मैने जल्दी से कहा… ऐसा करते है कि हम ड्रिंक्स लेकर नीचे आफिस मे चलते है।

हम दोनो आफिस मे जाकर बैठ गये थे। वह किसी गहरी सोच मे डूब गया था। …समीर, तुम कौन हो? …नूर मोहम्मद साहब मैने आपको कई बार बताया है कि मै एक कारोबारी हूँ। पहले कश्मीर मे मेरा सेबों का कारोबार था। उसके जरिये जैश और लश्कर के साथ भी अच्छे संबन्ध बन गये थे परन्तु इंडियन फोर्सेज के कारण सारा धंधा चौपट हो गया था। तब रा के एक दोस्त की मदद से मेरी जानकारी कोशी नामग्याल से हो गयी थी। उसी के सुझाव पर मै यहाँ पर नये सिरे से अपना काम जमाने के लिये आया था। वह तिब्बती चरस का एक कन्साईन्मेन्ट हर महीने मुझे देता है जिसे मै भारत मे स्थित डीलर्स तक पहुँचा देता हूँ। …जिसके पास वह रिकार्डिंग है क्या वह रा मे काम करता है? मैने उसका जवाब नहीं दिया बस चुपचाप बैठा रहा। …क्या मै उससे मिल सकता हूँ? …क्यों नहीं। मै उसे अभी यहीं बुला देता हूँ। वह कुछ सोच कर बोला… समीर, उसे बुला लो। …ठीक है। मैने अपना फोन उठा कर मनोहर लाल शर्मा से बात करके नूर मोहम्मद से कहा… अब यहाँ से आगे आपको और उसको बात करनी है। मै सिर्फ इसलिये बैठूँगा जिससे आप दोनो को विश्वास रहे कि कोई किसी को धोखा नहीं देगा। नूर मोहम्मद चुपचाप अपने प्याले से घूँट भरता रहा और अपनी ही सोच मे डूब गया था।

मनोहर लाल शर्मा को देखते ही नूर मोहम्मद पहचान गया था। …शर्मा यह क्या चक्कर है? …समीर मेरा पुराना दोस्त है। मै ही उसे यहाँ लाया था। …शर्मा वह कौन है? …मै सुबूत के साथ उसका नाम दे सकता हूँ लेकिन तुम मेरे लिये क्या करोगे? …बताओ तुम्हें क्या चाहिये? …हमारे निशाने पर ब्रिगेडियर शुजाल बेग है। हम सब जानते है कि वह आतंक का कारोबार यहाँ से चला रहा है। अब तुम बताओ कि तुम हमे उसके लिये क्या दे सकते हो? शुजाल बेग का नाम सुनते ही नूर मोहम्मद का चेहरा स्याह हो गया था। कुछ सोच कर नूर मोहम्मद ने कहा… यह तो तुम्हारी जानकारी पर निर्भर करता है। …नूर मोहम्मद हम दोनो एक ही लाइन मे है इसलिये अच्छा होगा कि तुम साफ बात करो। तुम्हारे पास शुजाल बेग के खिलाफ एक जानकारी है और हमारे पास तुम्हारी जानकारी है। क्या एक्सचेंज मुमकिन है कि नहीं? एक पल वह चुप रहा और फिर बोला… ठीक है। मै शुजाल बेग तुम्हें दूँगा लेकिन तुम मुझे उस आदमी का नाम बताओ। मनोहर लाल शर्मा मुस्कुरा कर बोला…  मेरे नाम बताने से कुछ नहीं होगा। तुम उस गद्दार की आवाज खुद सुन लो। यह बोल कर शर्मा को मैने जो रिकार्डिंग दी थी उसने नूर मोहम्मद के सामने चला दी। उसकी आवाज सुनते ही उसको बिजली का तेज करंट लगा था।

पूरी रिकार्डिंग सुन कर वह कुछ देर चुप रहा और फिर धीरे से बोला… इस खबीस की औलाद के लिये मैने क्या कुछ नहीं किया है और यह मेरे खिलाफ साजिश रच रहा है। मनोहर लाल ने तुरन्त कहा… नूर मोहम्मद, हम दोनो का दुश्मन एक ही है। तुम अगर जाने से पहले शुजाल बेग को हमारे हवाले करोगे तो तुम्हारा वापिस जाना स्थगित हो जाएगा। हम मंसूर बाजवा तक यह खबर पहुँचा देंगें कि ब्रिगेडियर शुजाल बेग अभी तक हमारे लिये काम कर रहा है। हमारे पास उसके खिलाफ इतने सुबूत है कि वह जिंदगी मे फिर कभी बाहर नहीं निकल सकेगा। यह भी हो सकता है कि बाजवा तुम्हें ही काठमांडू का स्टेशन इंचार्ज नियुक्त कर दे क्योंकि तुम यहाँ पर आईएसआई के सबसे पुराने आदमी हो। तुम हमारी मदद करोगे तो हम तुम्हारी मदद करेंगें। अब यह बताओ कि तुम कब और कैसे उसे हमारे हवाले करोगे? इस दौरान मे मैने एक भी शब्द नही बोला था। मेरी नजर उस पर जमी हुई थी। मै समझ सकता था कि उसके दिमाग मे क्या चल रहा होगा परन्तु उसको पहल करनी थी। नूर मोहम्मद को अपना आदमी बनाने के लिये इस समय कैप्टेन यादव मेरे आफिस ने होने वाली बातचीत की विडियो रिकार्डिंग कर रहा था।

…शर्मा इस वक्त मै सोचने की स्थिति मे नहीं हूँ। पहली बार मैने उन दोनो के बीच मे अपनी बात रखने के लिये कहा… मेरे पास एक सुझाव है। अगर आप ठीक समझते है तो नूर साहब मै बोलूँ अन्यथा आप जाने और आपका काम। उसने मेरी ओर देख कर कहा… समीर तुम ही कोई सुझाव दो। …आप उससे मेरी मुलाकात के बहाने मेरे गोदाम पर भेज सकते है। …कैसे समीर? आज कल वह दूतावास से बाहर नहीं निकल रहा है। …तो आप मेरी बात फोन पर उससे करवा दिजिये लेकिन उससे पहले आपको उसकी शाही मस्जिद के तहखाने मे की हुई ऐयाशी की विडियो फिल्म मुझे देनी पड़ेगी। नूर मोहम्मद चौंक कर बोला… समीर तुम्हे शाही मस्जिद का राज कैसे पता है। इस बार मनोहर लाल शर्मा ने कहा… इसे मैने बताया था। मुझे मालूम है कि तुम्हारे पास उसकी फिल्म पड़ी हुई है। तुम खुद उसका इस्तेमाल अपने बचने के लिये नहीं कर सकते क्योंकि वह भले ही इसमे फँस जायेगा लेकिन तुम्हारे पास अपनी बेगुनाही का कोई सुबूत नहीं है। वैसे भी अगर तुमने उस फिल्म का खुद इस्तेमाल किया तो मौलाना कादरी तुम्हें जिन्दा नहीं छोड़ेगा क्योंकि बेग की ऐयाशी के लिये बच्चों का इंतजाम तो वही किया करता है। …पर शर्मा वह समीर से क्यों फोन पर बात करेगा? अबकी बार मैने कहा… आपको सिर्फ उससे यह कहना है कि मेरे पास कुछ वलीउल्लाह के बारे मे जानकारी है जिसका सौदा मै उसके साथ करना चाहता हूँ। नूर मोहम्मद एक बार फिर सोच मे पड़ गया था। अबकी बार मनोहर लाल ने कहा… क्या सोच रहे हो नूर मोहम्मद? उसकी फिल्म हमे दे दो और समीर की बात उससे करो दो। हम मिल कर शुजाल बेग नाम का काँटा यहाँ से हमेशा के लिये उखाड़ फेंकेंगें। …यह वलीउल्लाह कौन है? शर्मा ने कहा… उसी से पूछ कर देख लेना। यह नाम सुन कर उसे बहुत तगड़ा करंट लगेगा।

कुछ देर सोचने के बाद मनोहर लाल शर्मा से हाथ मिला कर उसने कहा… वह फिल्म तो मै अभी दे देता हूँ लेकिन पता नहीं कि शुजाल बेग वलीउल्लाह का नाम सुन कर समीर से बात करेगा कि नहीं? अबकी बार मैने कहा… वलीउल्लाह का नाम सुनते ही वह सिर के बल चल कर मुझसे मिलने आयेगा। आप देख लेना। वह कुछ सोच कर बोला…समीर, वह फिल्म मेरे आफिस के लाकर मे रखी हुई है। मै उसे अभी लेकर आता हूँ। बस उपर बैठी हुई शबाना को इसका पता नहीं चलना चाहिये कि यहाँ किससे और क्या बात हुई है। मैने जल्दी से कहा… पहले जाम टकराने का एक दौर हो जाये क्योंकि पहली बार आईएसआई और रा का जोइन्ट आप्रेशन हो रहा है। नूर मोहम्मद और मनोहर लाल शर्मा ने जोर से ठहाका मारा और अपनी ड्रिंक्स को टकरा कर चीयर्स करके बैठ गये। अपना प्याला खाली करके नूर मोहम्मद आफिस की ओर चल गया था। उसके जाते ही शर्मा ने कहा… क्या वह मुकर तो नहीं जाएगा? …यह उसकी परीक्षा की घड़ी है। उसकी इस मुलाकात की पूरी विडियो फिल्म बना ली गयी है। अब से वह हमारे लिये काम करेगा अन्यथा वह फायरिंग स्कायड के लिये तैयार हो जाये। मनोहर लाल शर्मा मुझे अजीब सी नजरों से देख रहा था और मै आराम से अपना प्याला खाली करने मे लगा हुआ था। पन्द्रह मिनट के बाद नूर मोहम्मद एक सीडी लेकर आया और मेरे हाथ मे रखते हुए कहा… यह मेरी इंश्योरेन्स पालिसी थी जो अब तुम्हें  दे रहा हूँ। बस इस खबीस की औलाद को यहाँ से हमेशा के लिये गायब करवा दो। शर्मा ने कहा… समीर, एक बार चला कर देख लो। मैने सीडी को कंप्युटर मे डाल कर चला दी थी। कुछ मिनट चलाने के बाद मैने तुरन्त बन्द करके कहा… ऐसे आदमी को तो जीने का अधिकार ही नहीं है।

मनोहर लाल के जाने के बाद हम दोनो उपर आ गये थे। दोनो स्त्रियाँ हमारी ओर उत्सुक्ता से देख रही थी। तभी नूर मोहम्मद ने मुस्कुरा कर शबाना से कहा… इस आदमी का मुझ पर बहुत बड़ा एहसान है। इसने मेरी जान बचा ली है। एकाएक तनाव का माहौल हंसी खुशी मे बदल गया था। मैने तबस्सुम से कहा… चलो अब डिनर की तैयारी करो बहुत भूख लग रही है। बड़ी तसल्ली से हमने हंसी मजाक करते हुए खाना खाया और फिर कुछ देर बैठ कर वह दोनो अपने घर चले गये थे। कैप्टेन यादव और उसके दो साथी मेरा इंतजार कर रहे थे। …इस मुलाकात की विडियो रिकार्डिंग हो गयी? …जी सर। …उसे कमांड सेन्टर मे अजीत सर के पास भिजवा दो। मैने जेब से सीडी निकाल कर ड्युटी पर बैठे हुए विजय कुमार से कहा… इस सीडी को कापी करके हिफाजत से रख लो। यह बोल कर कर मैने कैप्टेन यादव और उसके साथियों को वापिस गोदाम भेज कर अपने घर की ओर चल दिया था।

जब तक मै वापिस लौटा था तब तक सब कुछ साफ हो गया था। आरफा अपने कमरे मे जा चुकी थी और बेडरुम मे तबस्सुम मेरी राह देख रही थी। अपने कपड़े उतार कर जब मै उसके साथ लेटा तो उसने पूछा… आप इन लोगो के चक्कर मे क्यों पड़ रहे है। अच्छा खासा करोबार चल रहा है। किसी कारणवश अगर बात बिगड़ गयी तो इसका सारा असर यहाँ के काम पर पड़ेगा। मैने उसे अपनी बाँहों मे भर कर उसके संवेदनशील अंगों को छेड़ते हुए कहा… यह सिर्फ इसलिये कर रहा हूँ कि तुम्हारे कारोबार पर कोई आँच न आये। तुम तो जानती हो कि मेरी नौकरी ऐसी है कि वह कभी भी वापिस बुला सकते है। इस काम के बाद दिल्ली मे बैठे हुए लोग गोल्डन इम्पेक्स कंपनी और तुम्हें कभी नजरअंदाज नहीं करेंगें और तुम्हारे कारोबार पर फिर कभी कोई आँच नहीं आयेगी। …और आप? …मुझे तो कभी भी जाना पड़ सकता है लेकिन तुम तो यहाँ पर सुरक्षित रहोगी। …नहीं मै आपके साथ ही जाउँगी। मुझे इसकी कोई जरुरत नहीं है। उसको समझाने के लिये मेरे पास काफी समय था तो मैने उसकी बात को अनसुना करके उसकी कामाग्नि भड़काने मे जुट गया था।

अगले दो दिन तक कोई फोन नहीं आया था। हम लोग नूर मोहम्मद और शुजाल बेग के फोन पर कड़ी निगरानी रख रहे थे। इसी बीच अजीत सर से मेरी दो बार बात हुई थी। इस कार्य की सफलता के बारे मे जानने के लिये वह भी काफी उत्सुक थे। उन्होंने भी अपनी ओर से तैयारी कर ली थी। बस शुजाल बेग का इंतजार चल रहा था। तीसरे दिन शाम को नूर मोहम्मद ने फोन पर कहा… बड़ी मुश्किल से उसने अभी मिलने का समय दिया है। मै तुम्हारी बात कराने की पूरी कोशिश करुँगा लेकिन अगर उसने बात नहीं की तो फिर क्या करोगे क्योंकि दो दिन बाद की मेरी इस्लामाबाद की फ्लाईट है। …आप बेफिक्र रहिये। इसका भी हल निकल आयेगा। आप आराम से जाईये और मेरा पैगाम दे दिजिये बाकी सब खुदा पर छोड़ दिजिये। मैने फोन काट दिया था। मै संचार केन्द्र मे बैठ कर दीवार पर लगी हुई घड़ी की सुईयों पर निगाह गड़ाये बैठा हुआ था। सेकन्ड की सुई के साथ ही मेरी भी धड़कन बढ़ती जा रही थी। मेरे साथी हर पल दोनो के फोन पर नजर रखे हुए थे। नूर मोहम्मद को दूतावास मे गये हुए एक घंटे से ज्यादा हो गया था। अब मेरे मन मे ख्याल उठ रहा था कि क्या शुजाल बेग भी वलीउल्लाह से अनिभिज्ञ तो नहीं था? अगर ऐसी बात है तो वह हमारे किसी काबिल भी नहीं था।

मै उठ कर चहलकदमी कर रहा था कि तभी अचानक शुजाल बेग का फोन एक्टिव हो गया था। उसकी काल मेरे फोन पर फार्वर्ड हुई थी। स्पीकर पर उसकी आवाज गूंजी… जनाब, वलीउल्लाह का कवर समाप्त हो गया है। …क्या बक रहे हो। …जनाब, इसके बारे मे अभी मुझे मेजर नूर मोहम्मद से खबर मिली है। उसे एक व्यक्ति ने संपर्क किया है जो वलीउल्लाह की जानकारी बेचना चाहता है। उसके लिये वह आदमी मुझसे मिलना चाहता है। …तुमने उससे खुद बात की है? …नहीं जनाब लेकिन उससे मिलने से पहले मैने आपको सुचित करना जरुरी समझा था। …बेवकूफ, शुजाल बेग पहले तुम्हें खुद जाँच पड़ताल करनी चाहिये थी। तुम्हारी इस हरकत ने यह साबित कर दिया कि कोई वलीउल्लाह नाम का आदमी है। मेजर नूर मोहम्मद को भी इस नाम की पहचान हो गयी है। तुमसे कहा गया था कि इस नाम का जिक्र कभी ओपन लाइन पर नहीं होना चाहिये फिर तुमने ऐसी हिमाकत करने जुर्रत कैसे की है। अगर यह बात बाहर निकल गयी तो मै खुद तुम्हें गोली मार दूँगा। …जनाब, खबर ही ऐसी थी। …उसकी क्या मांग है? …जनाब वह एक मिलियन डालर मांग रहा है। …देने का वादा कर दो लेकिन वह जिन्दा नहीं बचना चाहिये। …जी जनाब। …मेजर नूर मोहम्मद का भी वही हश्र होना चाहिये क्योंकि उसे भी पता चल गया है। जी जनाब। दूसरी ओर से लाइन कट गयी थी।

हमारे सिस्टम ने उसका हर शब्द रिकार्ड कर लिया था। वह अपने पैसे बनाने की योजना बना रहा था। मै अभी उसके बारे मे सोच रहा था कि मेरे फोन की घंटी बज उठी थी। मैने तुरन्त कुशाल सिंह को इशारा किया और फोन उठा कर बोला… हैलो। …मुझे नूर मोहम्मद ने बताया कि तुम मुझसे बात करना चाहते हो? …जहेनसीब ब्रिगेडियर साहब। आपसे बात करने के बजाय वलीउल्लाह की जानकारी का सौदा करना चाहता हूँ। …कौन वलीउल्लाह? …कोई बात नहीं मै रा मे गोपीनाथ से इसका सौदा कर लेता हूँ। शुक्रिया। इतना बोल कर मैने फोन काट दिया था। मुझे मालूम था कि वह दोबारा फोन करेगा तो मैने अपना फोन अभी जेब मे नहीं रखा था। अगले ही पल मेरे फोन की घंटी फिर से बज उठी थी। अबकी बार मैने फोन उठा कर कहा…हैलो। …भाईजान, फोन क्यों काट दिया। उस सौदे के मामले मे आपसे कहाँ मिलना है? मै तुरन्त वहाँ पहुँच जाता हूँ। अबकी बार मेरी आवाज कठोर हो गयी थी… शुजाल बेग मेरी बात ध्यान से सुन कि वलीउल्लाह का सौदा तो मै अब गोपीनाथ से करुँगा लेकिन पहले जनरल शरीफ और तेरे आका बाजवा को तेरी शाही मस्जिद की ऐयाशी की दास्तान सुना दूंगा। एक पल के लिये उसकी जुबान को ताला लग गया था।

…हैलो। उसने जल्दी से बोलना आरंभ किया… भाईजान आपको खुदा का वास्ता मेरी बात सुन लिजिये। मै सौदा करने के लिये तैयार हूँ बस आप इतना बता दिजिये कि आना कहाँ है। …ठीक है। तू नूर मोहम्मद के साथ अकेला आयेगा। वैसे मुझे पूरा विश्वास है कि तू अपने साथ ग़ाजियों की फौज लाने की सोच रहा होगा तो मेरी बात अब ध्यान से सुन कि अगर मुझे तेरे साथ नूर मोहम्मद के अलावा सड़क पर एक कुत्ता भी दिखा तो अपनी डील उसी समय समाप्त हो जाएगी। कुछ भी बेवकूफी करने से पहले तुझे एक बात समझ लेनी चाहिये कि शाही मस्जिद के तहखाने मे तेरी एयाशियों का अच्छा खासा ब्यौरा मेरे पास है। अगर नूर मोहम्मद के साथ तू मेरे पास आधे घंटे मे नहीं पहुँचा तो वह सीडी कल सुबह तक नेपाल सरकार को सौंप दूँगा। यह सोच ले कि जो तूने नेपाली बच्चे और बच्चियों के साथ किया है उसकी खबर बाहर आने के बाद नेपाल की जेल मे नेपाली लोग तेरा क्या हश्र करेंगें। चल अब नूर मोहम्मद को फोन दे। वह कुछ नहीं बोला और उसने अपना फोन नूर मोहम्मद को पकड़ा दिया… हैलो। …फोन को स्पीकर पर डाल दो। शुजाल बेग को लेकर सीधे मेरे गोदाम पर पहुँचों और फोन आन रखना ताकि तुम्हारी जान बच जाए। इस खबीस ने तो तुम्हारी हत्या करने की पूरी साजिश रच डाली है। तुम वहाँ से जिन्दा बच कर नहीं निकल सकते थे।

शाही मस्जिद की बात सुन कर शुजाल बेग को सांप सूंघ गया था। वह पूरे रास्ते कुछ नहीं बोला था। जब तक नूर मोहम्मद की कार हमारे गोदाम तक नहीं पहुँची थी तब तक मैने फोन आन रखा था। जैसे ही गार्ड ड्युटी पर तैनात सैनिक ने उनके आगमन की सूचना दी तभी नूर मोहम्मद की आवाज स्पीकर पर सुनाई दी… हम पहुँच गये है। उनके पीछे-पीछे मेरी स्काउट पार्टी भी पहुँच गयी थी। मेरे इशारे पर गोदाम का शटर खोल दिया गया था। नूर मोहम्मद और शुजाल बेग पैदल चलते हुए अन्दर आ गये थे। मै हाल से निकल कर उनकी ओर चल दिया था। मुझे सिड़ियों से उतरते हुए देख कर शुजाल बेग चौंक गया था। …आईये ब्रिगेडियर साहब। नूर मोहम्मद तुम्हारा काम समाप्त हो गया और इसके गायब होने की खबर चौबीस घंटे के लिये दबा कर रखना। अगर तुम्हारी जुबान पर चौबीस घंटे ताला पड़ा रहा तो तुम्हारी बेगुनाही का सुबूत तुम्हारे पास पहुँच जाएगा। नूर मोहम्मद उल्टे कदम वापिस हो लिया था। शुजाल बेग ने बात करने के लिये जैसे ही मुँह खोला कि तभी उसकी कनपटी पर कैप्टेन यादव ने अपनी पिस्तौल से वार किया जिसके कारण वह एक पल के लिये हवा मे लहराया और जमीन पर गिर कर बेहोश हो गया।

हमारे पास समय नहीं था। हमने जल्दी से उसे ट्रक मे डाला और उसके साथ छह हथियारबंद सैनिकों को लेकर मै पीछे बैठ गया। मुश्किल से दस मिनट के बाद हम भारत की सीमा की ओर जा रहे थे। मैने रास्ते मे उसको बेहोशी का इन्जेक्शन दे दिया था जिससे वह उठ कर कोई बेवजह हंगामा न कर सके। इसी ट्रक मे शुजाल बेग का नोटों से भरा हुआ ट्रंक भी रखा हुआ था। हमने अबकी बार सबसे छोटा रास्ता चुना था। काठमांडू से हिटौडा और फिर वहाँ से बीरगंज पहुंच कर सीमा पार करने का इंतजाम किया था। रक्सौल पर सीमा सुरक्षा दल की चौकी पर पहले से ही खबर कर दी थी जिसके कारण ट्रक को सीमा पार करने मे कोई मुश्किल पेश न आये। सीमा सुरक्षा बल के हेलीपेड पर एयरफोर्स का हेलीकाप्टर हमारा इंतजार कर रहा था। सुबह दस बजे तक हम भारत की सीमा मे प्रवेश कर गये थे। शुजाल बेग को अभी तक होश नहीं आया था। हेलीकाप्टर मे चढ़ाने से पहले मैने उसे एक और इन्जेक्शन दे दिया था। शुजाल बेग और नोटों से भरे हुए ट्रंक को हेलीकाप्टर मे रखवा कर ट्रक और अपने साथियों को वापिस काठमांडू भेज दिया था। दोपहर ढलने से पहले हम दिल्ली के एयरपोर्ट पर उतर गये थे।

अजीत सर खुद एयरपोर्ट पर आये हुए थे क्योंकि मैने बता दिया था कि शाम की फ्लाईट पकड़ कर मुझे उसी रोज वापिस काठमांडू पहुंचना है। पाकिस्तान आईएसआई का ब्रिगेडियर शुजाल बेग को अजीत सर के हवाले करके मैने कहा… सर, आप्रेशन काठमांडू मेरी ओर से ओवर हो गया है। एक ट्रंक है मै चाहता हूँ कि इस पैसों को भी गोल्डन इम्पेक्स के अकाउन्ट मे ट्रांस्फर करवा दिया जाये। …कितने पैसे है? …सर, लगभग पांच करोड़ रुपये है। अब आगे क्या? …तुम बताओ कि क्या सारा काम समेटना चाहते हो? …सर, मैने वहाँ पर अपना काम जमा लिया है। अब हमारे लिये नेपाल मे बेहद पुख्ता फ्रंट तैयार हो गया है। गोल्डन इम्पेक्स कंपनी अब चलती रहेगी और आगे भी जब जरुरत पड़ेगी तो वह हमारे काफी काम आएगी। …फारुख की बेटी उसका काम संभाल रही है? …जी सर, बस हालात ऐसे थे कि हम दोनो ही स्टाकहोम सिन्ड्रोम के शिकार हो गये थे। जो छ्द्म नाम और रिश्ता बना कर काठमांडू गये थे वह वहाँ जाकर सच हो गया है। …मेजर, श्रीनगर से फारुख गायब हो गया है। उस लड़की को उस आदमी से दूर रखना। कब तक वापिस आ जाओगे? …सर, फिलहाल आईएसआई का नेटवर्क तो वहाँ पर पूरी तरह से तबाह हो गया है। अब नूर मोहम्मद का स्टेशन इंचार्ज बना रहेगा तो उसकी नस अब हमारे हाथ मे है। उस ओर से मुझे अब कोई खतरा नजर नहीं आ रहा है। …मेजर, तुमने अभी भी मेरी बात का जवाब नहीं दिया। अब तुम्हारा यहाँ होना बेहद जरुरी है। …सर मुझे दो हफ्ते का समय चाहिये। वहाँ पर सब कुछ ठीक करके मै वापिस यहाँ ड्युटी पर रिपोर्ट करुँगा।

शुजाल बेग को लेकर अजीत सर वापिस चले गये थे। मै एयरपोर्ट मे दाखिल हो गया था। इन्डियन एयरलाइन्स की फ्लाईट पकड़ कर रात तक मै काठमांडू पहुँच गया था। शुजाल बेग को पकड़े हुए अभी चौबीस घंटे पूरे नहीं हुये थे। मेरी योजनानुसार शुजाल बेग के गायब होने की खबर से पहले मेरा काठमांडू मे होना अनिवार्य था। …आप कल शाम से कहाँ गायब थे? …गोदाम मे बैठ कर काम कर रहा था। क्या करुँ हमारा ट्रक माल पहुँचा कर बाद मे लौटता है लेकिन उससे पहले तुम्हारा नया आर्डर पहुँच जाता है। अधकचरी नींद और थकान के कारण बदन टूट रहा था। बानो मै सोने जा रहा हूँ। मै आंखें मूंद कर नींद की प्रतीक्षा कर रहा था कि मुझे लगा कि कोई मेरी पीठ धीरे-धीरे दबा रहा है। मैने मुड़ कर देखा तो तबस्सुम मेरी पीठ को धीरे-धीरे दबा रही थी। …क्या नींद नहीं आ रही है। एक करवट लेकर उसे अपने आगोश मे बाँध कर उसके कान पर अपने होंठ रगड़ते हुए कहा… तुम्हारे बिना कमबख्त नींद नहीं आती है। उसने मचल कर दूर होने की कोशिश की परन्तु तब तक मै उस पर छा गया था। उस रात मैने उसको टूट कर प्यार किया था। मेरे पास दो हफ्ते का समय था तो उस रात विछोह के डर से उसके पोर-पोर को मैने अपनी मोहब्बत से सींच दिया था। उसके जिस्म का शायद ही कोई ऐसा हिस्सा बचा होगा जिसे मेरे होंठों का स्पर्श नहीं हुआ होगा। जब तूफान गुजर गया तो उसने मेरे सीने पर सिर रख कर कहा… आज आपको क्या हो गया था? …कुछ नहीं बस तुम पर अपना सब कुछ लुटाने का दिल कर रहा था। …कुछ दिनो से एक बात बताने की सोच रही हूँ लेकिन समय ही नहीं मिल रहा है। मैने उसका चेहरा अपने हाथों मे लेकर उसकी आंखों मे झाँकते हुए कहा… जो भी मन मे है वह बोल दो। अचानक वह बोलते हुए शर्मा गयी और अपना चेहरा मेरे सीने मे छिपा कर बोली… मुझे लगता है कि कोई तीसरा हमारे बीच मे आ गया है। उसके पुष्ट नितंब पर एक चपत लगा कर धीरे उसमे उठती हुई थरथराहट को अपनी उंगलियों महसूस करते हुए मैने कहा… पगली हमारे बीच मे कोई तीसरा नही है। उसने झेंप कर मेरे सीने पर मुक्का मार कर जल्दी से कहा… मुझे लगता है कि मै हामिला हो गयी हूँ। यह बोल कर उसने अपना चेहरा मेरे सीने मे छिपा लिया था।

एक पल के लिये मुझे उसकी बात समझ मे नहीं आयी लेकिन जब उसका मतलब समझ मे आया तो मैने संभलते हुए पूछा… तुम्हें कैसे पता चला? …मुझे तो शब-ए-वस्ल को ही लगा था। परन्तु तीन महीने से सब कुछ रुक गया है। मेरे दिमाग मे तुरन्त मुंबई सेन्ट्रल की याद आ गयी थी। अंजली ने मुझे मेनका के बारे मे रेलवे स्टेशन पर बताया था। अबकी बार मैने एक-एक शब्द संभल कर बोला… यह तो हम दोनो के लिये खुशी की बात है लेकिन तुम क्या चाहती हो? उसने मुझे घूर कर देखते हुए बोली… आपका क्या मतलब है? …बहुत सी लड़कियाँ निकाह के बाद इतनी जल्दी यह जिम्मेदारी उठाने के लिये तैयार नहीं होती है। …हमारे यहाँ इसे खुदा की नेयमत मानते है। …खुदा को दो मिनट के लिये एक तरफ रख कर सोच कर देखो कि तुम क्या चाहती हो। उसने जल्दी से कहा… मै तो चाहती हूँ। …तो ठीक है मै भी चाहता हूँ तो अब से हमे सावधान हो जाना चाहिये। कल सबसे पहले डाक्टर से टाइम लेकर उसे दिखाने चलो। उसने मेरी आँखों मे देखते हुए पूछा… क्या आप तैयार है इसकी जिम्मेदारी उठाने के लिये? उसको अपनी बाँहों मे जकड़ते हुए मैने कहा… जब तुम्हारी जिम्मेदारी उठाने की कसम खायी है तो फिर तुम्हारी हर जिम्मेदारी उठाने के लिये तैयार हूँ। वह मुझसे बेल की तरह लिपट गयी थी। वह तो अपने दिल का बोझ हल्का करके सो गयी थी लेकिन मै अपने आपको उसी परिस्थिति मे पा रहा था जो उस समय मेरे और अंजली के साथ हुआ था। अजीत सर ने दो हफ्ते का टाइम दिया था। उस रात काफी देर तक मै अपने आप से बहस करता रहा था। जब मुझे कोई हल नहीं सूझा तो उसके सीने मे सिर छिपा कर सो गया था।

सुबह उसने मुझे उठाकर कर कहा… डाक्टर से टाइम ले लिया है। जल्दी से तैयार हो जाईये। रात का खुमार उतर गया था। यन्त्रवत तैयार हुआ और नाश्ता करके डाक्टर को दिखाने के लिये चले गये थे। डाक्टर ने कुछ टेस्ट करवाये और प्रेगनेन्सी की खबर देकर चलते हुए एक डायट चार्ट और कुछ एक्सरसाईज करने की हिदायत देकर हमे वापिस कर दिया था। उसे अपने साथ लेकर मै सीधे गोदाम की ओर चला गया था। गोदाम मे दोनो ट्र्क खड़े देख कर मै समझ गया था कि मेरे साथी सकुशल वापिस लौट आये थे। तबस्सुम गोदाम को देख कर विस्मय से बोली… इतना सारा सामान रखा हुआ है। कैप्टेन यादव तब तक हमारे पास पहुँच चुका था। वह बोला… आज शाम तक वह सारा हिस्सा खाली हो जाएगा। एक हफ्ते मे यह गोदाम बिल्कुल साफ हो जाएगा। तबस्सुम कैप्टेन यादव को जानती थी परन्तु बहुत से चेहरों से वह अनजान थी। मैने उसे अपनी युनिट से मिला कर कहा… तुम्हें आज यहाँ लाने का एक ही मकसद था कि अगर मुझे किसी काम से बाहर जाना पड़ गया तो यादव जी की टीम यहाँ का सारा काम संभाल लेगी। उस वक्त वह कुछ नहीं बोली परन्तु लौटते हुए उसने कहा… अब आप कहीं नहीं जा रहे है। आपके उपर अब तीसरे की जिम्मेदारी भी आ गयी है। भूल गये की डाक्टर ने क्या कहा था। मैने कोई जवाब नहीं दिया और उसके बारे मे सोचते हुए जब मै अपने घर मे प्रवेश कर रहा था कि तभी मेरे फोन की घंटी बज उठी थी।

…हैलो। …मेजर कैसे हो? तुमने अभी तक मेरा काम नहीं किया। उसकी आवाज सुन कर मुझे ऐसा लगा कि किसी ने गर्म सीसा मेरे कान मे उंडेल दिया था। मै चलते-चलते रुक गया था। तबस्सुम अपने झोंक मे आगे बढ़ती चली गयी थी। उसने मुड़ कर मेरी ओर देखा तो वह भी स्थिर खड़ी हो गयी थी।  …फारुख। …ठीक पहचाना। मैने सुना है कि आईएसआई के ब्रिगेडियर शुजाल बेग को तुम्हारी स्पेशल फोर्सेज ने काठमांडू से अगुवा कर लिया है। मुझे उस जगह का पता चाहिये जहाँ उसे रखा हुआ है। मै जानता हूँ कि तुम बिना लिये-दिये कोई काम नहीं करते। इसलिये मुझे उसका पता दो और मै तुम्हें आईएसआई की मेजर हया इनायत मीरवायज की असलियत बता दूँगा है। उसी ने तुम्हारी अम्मी और बहन आलिया के कत्ल की साजिश रची थी। अब तुम्हें सोचना है कि तुम मेरा काम करोगे या नहीं। यह नम्बर अब मत भूलना। इतनी बात करके उसने फोन काट दिया था। मेरे ख्याल से फारुख ने एक ही साँस मे अपनी बात बोल कर फोन काट दिया था। मै फोन कान पर लगाये कुछ पल ऐसे ही खड़ा रह गया था।

…अब्बू का फोन था? तबस्सुम के चेहरे पर परेशानी की लकीरें खिंच गयी थी। मैने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया तो तुरन्त उसने दूसरा प्रश्न किया… क्या कह रहे थे? मैने उसकी कमर मे हाथ डाल कर दरवाजे की ओर चलते हुए कहा… अपने अब्बू को छोड़ कर अब से अपने खाविन्द के बारे मे सोचा करो। बस इतनी बात करके हम अपने घर के भीतर आ गये थे।