रविवार, 26 मार्च 2023

  

गहरी चाल-1

 

मै अपने आफिस मे बैठ कर नीलोफर के बारे मे सोच रहा था। जबसे मैने उसे बी चन्द्रमोहन के साथ उसके सरकारी बंगले मे जाते हुए देखा था तभी से मेरा दिमाग उलझा हुआ था। मेरी जानकारी के अनुसार श्रीनगर से फरार होकर लगभग तीन महीने के बाद वह दीपक सेठी के फार्म हाउस पर आयोजित एक पार्टी मे मुझे दिखी थी। इन तीन महीनों मे उसमे कितना परिवर्तन आ गया था। हर समय हिजाब मे रहने वाली लड़की यहाँ पर सौम्या कौल बन कर दिल्ली की संभ्रात सोसाइटी की जान बन चुकी थी। इसी कारण उस रात पार्टी के बाद मैने उसका पीछा किया था। बी चन्द्रमोहन रक्षा मंत्रालय का वरिष्ठ अधिकारी होने के कारण फिलहाल रक्षा मंत्रालय की खरीद कमेटी के अध्यक्ष का कार्यभार संभाल रहा था। आईएसआई के एक हैन्डल का अतिरिक्त रक्षा सचिव के बंगले पर रात बिताना वर्तमान सरकार के लिये ही नहीं अपितु देश के लिये बेहद विस्फोटक स्थिति थी।

मेरा नाम समीर बट है। मेरा जन्म उस नरसंहार की निशानी है जब 1990 मे हजारों हिंदुओ का कश्मीर मे कत्लेआम हुआ था और लाखों की संख्या मे हिन्दु परिवारों का पलायन हुआ था। मेरी कहानी एक ऐसे काफ़िर की है जो बचपन से एक मुस्लिम बच्चे की तरह पला और बड़ा हुआ। जवानी मे कदम रखते ही उसे काफ़िर बना दिया गया था। मेरी कहानी इसके प्रथम भाग ‘काफ़िर’ मे दी गयी है। मै भारतीय सेना की स्पेशल फोर्सेज मे कैप्टेन के पद पर कार्यरत था। कश्मीर मे उस समय राजनीतिक व चरमपंथी तंजीमो के बीच के गठजोड़ ने  सेना के लिये मुश्किलें खड़ी कर दी थी। एक ओर आतंकवादी तंजीमे आये दिन कश्मीर मे विस्फोट कर रहे थे और दूसरी ओर सुरक्षा एजेन्सियों पर फिदायीन हमले हो रहे थे। जब सेना उनके विरुद्ध एक्शन लेने के लिये निकलती तो उनका रास्ता रोकने के लिये स्कूल और कालेज के बच्चे और बच्चियाँ सड़क पर उतर कर पत्थरबाजी करते थे। जब सेना कड़ा रुख अपनाती तब राजनीति और न्यायलय उन सबके लिये ढाल बन कर खड़े हो जाते थे। षड़यंत्रकारियों के कारण सेना दोनो ओर से पिस रही थी। आये दिन तिरंगे मे लिपटे हुए शहीद हमारी सेना का मनोबल कमजोर कर रहे थे।

उस दौरान तीन साल तक लगातार आतंकवादियों के साथ आये दिन मुठभेड़ के अनुभव पर कुंठित होकर मैने अपनी ओर से पाकिस्तान की हक डाक्ट्रीन पर एक रिपोर्ट अपने सीओ को दी थी। मै तो वह रिपोर्ट को देकर भूल चुका था परन्तु उस रिपोर्ट के कारण एक दिन लेफ्टीनेन्ट जनरल वीके नरसिंहमन (पश्चिमी कमान),  मेजर जनरल हरदीप सिंह रंधावा (मिलिट्री इन्टेलीजेन्स) और आईबी के निदेशक अजीत  सुब्रामन्यम मुझसे मिलने आये थे। तीनों सेवानिवृत अधिकारी थे परन्तु अभी भी वह कट्टर राष्ट्रवादी थे। उस मुलाकात के बाद मेरे जीवन की दूसरी बार दिशा और दशा ही बदल गयी थी।

मुझे स्पेशल फोर्सेज से हटा कर 15वीं कोर के काउन्टर इन्टेलीजेन्स के सीओ ब्रिगेडियर सुरिंदर सिंह चीमा के साथ मेजर के पद पर नियुक्त कर दिया गया था। उन तीन सेवानिवृत अधिकारियों की सिफारिश पर मेरे हाथ मे आप्रेशन आघात की कमान दे दी गयी थी। आप्रेशन आघात एक काउन्टर आफेन्सिव पाइलट प्रोजेक्ट के तौर पर आरंभ हुआ था। सबसे पहले उन्होंने मुझे आतंकवाद की आर्थिक पाइपलाईन को ध्वस्त करने का कार्य दिया था। इस आप्रेशन को अघात-1 का नाम दिया गया था। मैने उस पाईपलाईन की निशानदेही करके उसको ध्वस्त किया जिसके कारण आतंकवाद और पत्थरबाजी की घटनाओं मे काफी कमी आ गयी थी। जब पैसों के स्त्रोत की जाँच कर रहा था तब राजनीति, अलगावावाद और चरमपंथ का गठजोड़ सामने आया था। आप्रेशन आघात-2 ऐसे गठजोड़ को तोड़ने का था क्योंकि कुछ परिवारों ने चरमपंथियों की मदद से  अपना आर्थिक एकाधिकार जमाया हुआ था। वही लोग बाजार और राजनीति दोनो को नियन्त्रित करते थे। आतंकवाद उनके लिये एक मुनाफे वाला सौदा था। इसके स्त्रोत का पता लगाने के लिये मुझे अवैध रुप से पाकिस्तान मे जाना पड़ा था। जब इस गठजोड़ की परतें खुलनी आरंभ हुई तब मेरी नजर मे पहली बार नीलोफर आयी थी। उसके जरिये आईएसआई का मेजर फारुख मीरवायज का खुलासा हुआ जो अपने आपको कारोबारी बता कर कुपवाड़ा मे भारतीय नागरिक बन कर रह रहा था। जब उसको पकड़ कर पूछताछ हुई तब पाकिस्तान का एक गोपनीय प्रोजेक्ट कोडनेम वलीउल्लाह  का पता चला था।

इसी दौरान दिल्ली का निजाम बदल गया था। नयी सरकार के आते ही पाकिस्तान और आंतरिक सुरक्षा के प्रति पिछली सरकार का ढुलमुल रवैया मे भी बदलाव आ गया था। नये प्रधानमन्त्री ने शपथ लेने के तुरन्त बाद लेफ्टीनेन्ट जनरल वीके नरसिम्हन को अपने निजि सचिव के पद पर नियुक्त कर लिया था। जब नये राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की नियुक्ति का समय आया तो अजीत सुब्रामन्यम को उस पद पर नियुक्त कर दिया गया था। मेजर जनरल रंधावा को आंतरिक सुरक्षा सलाहकार की नियुक्ति देकर रक्षा समिति का सदस्य बना दिया गया था। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत सुब्रामन्यम ने कोडनेम वलीउल्लाह  जैसे षड़यंत्र का पर्दाफाश करने के लिये मुझे अपने कार्यालय मे स्थापित पाकिस्तान डेस्क की कमान देकर हक डाक्ट्रीन को जड़ से समाप्त करने का कार्य दे दिया था। यही से मेरी फौज की जिंदगी मे एक नया अध्याय जुड़ गया था। अब मेरा दुश्मन सीमा पार के बजाय मेरे ही देश मे छिपा हुआ था। वहाँ सीमा पर दुश्मन को देखते ही गोली मारने की छूट थी परन्तु यहाँ पर अपनी सीमा मे पल रहे पंचमक्कारों के सामने मेरे हाथ बंधे हुए थे। उनसे लड़ने के लिये अब तक का प्रशिक्षण मेरे किसी काम का नहीं था। दीपक सेठी की पार्टी मे जाकर कर इतना समझ मे आ गया था कि काउन्टर आफेन्सिव प्रोजेक्ट को अब नये सिरे से केलीब्रेट करने की जरुरत थी।

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसी स्थिति मे कैसे आगे बढ़ना चाहिये। कश्मीर मे तो अब तक बी चन्द्रमोहन को उठवा कर मैने उससे सभी राज उगलवा लिये होते परन्तु यहाँ पर कानूनी प्रक्रिया के अनुसार ही आगे बढ़ा जा सकता था। मैने अपने कंप्युटर स्क्रीन पर बी चन्द्रमोहन का नाम टाइप करके उसकी आईबी की रिपोर्ट्स पढ़ने बैठ गया। हर प्रशासनिक अफसर की जब किसी महत्वपूर्ण पद पर नियुक्ति होती है उससे पहले आईबी की ओर से रिपोर्ट मांगी जाती है। उसी डेटाबेस से मैने उसकी सारी रिपोर्ट्स निकाली थी। वह कर्नाटक केडर का 1978 का प्रशासनिक अफसर था। रक्षा मंत्रालय से पहले वह संयुक्त सचिव वाणिज्य मंत्रालय रहा था। पिछली सरकार मे रक्षा मंत्री की सिफारिश पर उसको यहाँ लाया गया था। उसके खिलाफ तीन सतर्कता विभाग की जाँच चल रही थी परन्तु उनकी रिपोर्ट अभी तक आयी नहीं थी। यही एक मुश्किल मुझे इस नयी जिंदगी मे नजर आ रही थी। सेना की जाँच और कोर्ट मार्शल एक तय समय सीमा मे पूरा हो जाता है परन्तु सेना के बाहर सालों-साल जाँच बिना किसी नतीजे के चलती रहती है। यही हाल वागले और सुब्रामनयम की रिपोर्ट्स मे भी मैने देखा था। दो घंटे के बाद जब किसी नतीजे पर नहीं पहुँचा तो कंप्युटर बंद करके मै अपने कमरे से बाहर निकल गया था।

मै आफिस से बाहर निकल कर राजपथ के आखिरी सिरे पर खड़ा होकर इंडिया गेट को देख रहा था कि मेरे फोन की घंटी बजी तो मैने झट से काल लेते हुए कहा… हैलो। एक क्षण दूसरी ओर चुप्पी छायी रही फिर एक मधुर आवाज मेरे कान मे पड़ी… समीर। मै मोनिका बोल रही हूँ। एक पल के लिये इस नाम से जुड़ी कोई छवि मेरे दिमाग मे नहीं उभरी लेकिन तभी उसने फिर कहा… मिसेज सेठी। मैने जल्दी से कहा… मोनिका मै पहचान गया था। मै किसी क्लाईन्ट से बात कर रहा था इसीलिये बात करने के लिये बाहर आना पड़ा था। सौरी। तुम जैसी खूबसूरत स्त्री को भला कोई कैसे भूल सकता हूँ। …तुम बातें बनाना छोड़ो। यह बताओ कि क्या आज तुम फ्री हो क्योंकि मुझे एक रेस्त्रां की ओपनिंग मे जाने के लिये के एक साथी की जरुरत है। सेठी साहब आज सुबह ही कलकत्ता गये है। …मै तुम्हारा साथी बन कर चलने के लिये तैयार हूँ परन्तु मेरी एक शर्त है। वह खिलखिला कर हँस कर बोली… चलो वह भी बता दो। …यही कि दोपहर को मै तुम्हारा साथ दूँगा तो रात को तुम्हें मेरा साथ देना पड़ेगा। …तुम बहुत बेशर्म हो। यह बात कोई इस तरह से बोलता है। …तो तुम ही बता दो कि अपने दिल की बात को कैसे बोला जाता है? …नहीं, मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर नहीं है। कुछ देर तक हमारे बीच मे फोन पर इसी प्रकार की चुहलबाजी चलती रही और फिर यह तय हुआ कि वह एक बजे मुझे मेरिडियन होटल से पिक कर लेगी।

मैने अपनी घड़ी पर नजर डाली तो बारह बज रहे थे। कुछ सोच कर मै अपनी जीप मे बैठा और होटल मेरिडियन की दिशा मे चल दिया। अपने नाम से एक रुम बुक करा कर मैने रिसेप्शन पर तैनात महिला से कहा… मेरा सामान बाद मे आयेगा। फिलहाल मुझे अभी मीटिंग मे जाना है। रिसेप्शन से चाबी लेकर मै अपनी जीप को पार्किंग मे खड़ी करने के लिये चला गया था। उसके आने मे अभी कुछ समय बचा था तो मै अपने कमरे की ओर चल दिया। एक बजे से कुछ मिनट पहले मोनिका का फोन आया कि वह गेट पर पहुँचने वाली है तो मै कमरा लाक करके मुख्य द्वार की ओर चल दिया। ठीक एक बजे मोनिका अपनी चमचामाती हुई विदेशी कार मे मुख्य द्वार पर पहुँच गयी थी। मुझे खड़ा देख उसने अपनी ओर का शीशा नीचे किया और अपना हाथ निकाल कर हिलाते हुए मेरा ध्यान आकर्षित किया। उसको देख कर मै उसकी कार की ओर बढ़ा तब तक उसका ड्राईवर कार का दरवाजा खोल कर खड़ा हो गया था। कार मे बैठते ही हम उस रेस्त्रां की दिशा मे चल दिये। …तुम यहाँ ठहरे हुए हो? …हाँ। जब भी दिल्ली आता हूँ तो यहीं ठहरता हूँ परन्तु रात का पता नहीं। एक बार उसने मुझे घूर कर देखा और फिर निगाहें झुका कर बोली… तुम कश्मीरी हो? …बिल्कुल खालिस सेबों के बागों का इकलौता वारिस हूँ। आओ कभी कश्मीर तो तुम्हें जन्नत की सैर कराऊँगा। हम बात करते हुए उस रेस्त्रां पर पहुँच गये थे। उसने अपने सीट के आगे लगे हुए आईने मे खुद को निहारा और गले मे पड़े हुए जड़ाऊ हार को सेट किया और फिर कार से उतर गयी। मै भी उसके पीछे-पीछे कार से उतर गया था।

वहाँ पर पचास-साठ लोग पहले से इकठ्ठे हो गये थे। सभी देखने और बात करने मे काफी वैभवशाली और प्रभावशाली लोग लग रहे थे। मोनिका को देखते ही कुछ लोग उसकी ओर आ गये थे। सभी उसके साथ बड़ी गर्मजोशी से मिले और फिर आज के मुख्य अथिति का इंतजार करने लगे। हाई सोसाईटी का कार्यक्रम था इसीलिये पुलिस बंदोबस्त भी नजर आ रहा था। आने वालों अतिथियों मे कोई दिल्ली के नामी ज्वैलर्स  के परिवार की बहू थी तो कोई गारमेन्ट एक्स्पोर्टर की बीवी थी। कुछ चित्रकार और लेखक भी अपनी-अपनी महिला दोस्त के साथ भी वहाँ पर मौजूद थे। मोनिका ने अपने दोस्तों से मुझे कश्मीरी कारोबारी के रुप मे मिलाया था। मैने दबी जुबान मे मोनिका से पूछ लिया… क्या यह सब पति-पत्नी है? अपनी कोहनी मार कर वह जल्दी से बोली… हिश। अचानक सिक्युरिटी एस्कोर्ट कार के हूटर की आवाज कानों पड़ी तो वहाँ पर हलचल मच गयी थी। रेस्त्रां के मुख्य द्वार पर एक हसीना और उसका पार्टनर हाथ मे थाली लेकर खड़े हो गये थे। मोनिका ने दबी जुबान मे बताया… यह मलकानी साहब का लड़का हर्ष है और उसके साथ उसकी होने वाली बीवी इन्दु है। वह जब बोल रही थी तभी एक लाल बत्ती वाली सफेद कार कालीन के सामने आकर रुकी और उसमे से कोई राजनीतिक दल का नेता उतर कर मेजबान से बात करने लगा। मै उसे नहीं जानता था तो भीड़ के पीछे की ओर खड़ा हो गया। वह नेताजी कुछ पुराने जानकारों को अभिवादन करके रेस्त्रां के उद्घाटन समारोह की औपचारिकताएँ पूरी करने मे व्यस्त हो गये। सारी भीड़ उसके इर्द गिर्द सिमट कर रह गयी थी। मै पीछे खड़ा हुआ चुपचाप सारा कार्यक्रम देख रहा था। सारा कार्यक्रम समाप्त होने के बाद नेताजी ने रेस्त्रां मे प्रवेश किया और उसके पीछे सभी लोग अन्दर चले गये।

रेस्त्रां की भव्यता बता रही कि पैसा पानी की तरह बहाया गया था। सभी अपने साथियों और दोस्तों के साथ खाने पीने मे वयस्त हो गये थे। अचानक मेरी नजर नेताजी के साथ चलती हुई एक स्त्री पर पड़ी जो हिजाब मे थी। नेताजी सभी के पास जाकर से मिल रहे थे लेकिन मेरी नजर उस स्त्री की पीठ पर टिकी हुई थी। अचानक वह मुड़ी तो उसकी नजरें एक पल के लिये मुझसे टकरा गयी। एक ही नजर मे हम दोनो की पहचान हो गयी थी। कुछ देर के बाद नीलोफर चुपचाप नेताजी के साथ चलती हुई हमारी टेबल पर रुकते-रुकाते पहुँच गयी थी। नेताजी शायद मोनिका को पहले से जानते थे तो उन्होंने मोनिका से सेठी साहब के बारे मे पूछा और फिर किसी पार्टी का जिक्र करते हुए दो चार बात करके मेरी ओर रुख किया तो मोनिका ने जल्दी से कहा… यह मेरे दोस्त समीर है। कश्मीर से कारोबार के सिलसिले मे आये है। नेताजी ने बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिला कर कहा… समीर साहब आपसे मिल कर बड़ी खुशी हुई। अगर आप दो तीन दिन यहीं है तो मैने जुमे की शाम को अपने फार्म हाउस पर पार्टी रखी है। आपका स्वागत है। …जरुर जनाब। बस इतना बोल कर वह आगे बढ़ गया था। नीलोफर और मोनिका अभी बात कर रही थी कि नेताजी को आगे बढ़ते देख कर वह जल्दी से मोनिका से विदा लेकर मुझे धीरे से सलाम किया और फिर आगे बढ़ गयी थी।

…यह नेताजी कौन है? …यह अंसार रजा साहब है। समाजिक कार्यकर्ता और उत्तरप्रदेश की राजनीतिक पार्टी के बड़े नेता है। उसके साथ कौन थी? …तुम उसे नहीं पहचाने। वही सौम्या कौल जिसे उस रात तुम आँखों से रेप कर रहे थे। मैने झेंपते हुए कहा… अगर सच पूछो तो एक बार अपने आप को आईने मे बिना कपड़ों के देख लेना। एक बार फिर वह शर्मा कर बोली… हिश। अचानक वह बोली… वह तुम्हारे बारे मे पूछ रही थी। …मेरे बारे मे? …हाँ, मैने उसे बता दिया कि तुम भी कश्मीर से यहाँ सेब के कारोबार के सिलसिले मे आये हुए हो। हम बात कर रहे थे कि तभी नीलोफर सब से मिल कर हमारे पास आकर मुस्कुरा कर बोली… समीर साहब सलाम। मिसेज सेठी बता रही थी आप भी कश्मीर से है। …जी। क्या आप भी कश्मीर से है? …जी। अचानक वह मोनिका से बोली… मिसेज सेठी कभी हमारे गरीबखाने पर अपने दोस्त को लेकर आईये। अपने वतन के लोग जब बाहर मिलते है तो एक अजीब सा रिश्ता बन जाता है। …हाँ क्यों नहीं। …समीर साहब आपके साथ बैठ कर कश्मीर के हाल जानना चाहती हूँ। प्लीज जरुर आईयेगा। तभी अंसार रजा आ गया और नीलोफर से बोला… अब चलें। नीलोफर ने हमसे विदा लेते हुए एक बार फिर से अपने यहाँ आने का निमंत्रण दोहरा दिया था।

उनके जाने के बाद हम कुछ देर रुके और फिर वापिस चल दिये थे। मोनिका लौटते हुए चुप थी। …आपका काम तो हो गया अब मेरा काम बचा हुआ है। क्या मेरे साथ बैठ कर आप कुछ ड्रिंक्स लेना पसन्द करेंगी? वह शायद इसी असमंजस मे फंसी हुई थी इसके आगे क्या करना ठीक होगा? उसे मालूम था कि मेरा इशारा किस ओर है परन्तु शायद वह अभी पूरी तरह से अपना मन नहीं बना पायी थी। मैने उसका हाथ अपने हाथ मे लेकर सहलाते हुए धीरे से कहा… सच कहूँ तुम मे एक कशिश है जो सब मे नहीं दिखती। लेकिन फिर भी हम एक दोस्त की तरह आराम से बैठ कर बात तो कर सकते है। …नहीं। ऐसी बात नहीं है। जब उसकी ओर से कोई प्रयास होता हुआ नहीं दिखा तो मैने कहा… कोई बात नहीं। मुझे होटल के बाहर छोड़ देना। उसका हाथ अभी भी मेरे हाथ मे था तो मैने धीरे से उसका हाथ चूम कर छोड़ दिया और पीठ टिका कर आराम से बैठ गया। थोड़ी देर बाद वह मुझे होटल के बाहर उतार कर चली गयी थी। मै अपने कमरे की ओर जाते हुए सोच रहा था कि मैने बेकार होटल के रुम पर पैसा खर्च किया। मै रुम मे आकर बिस्तर पर फैल गया और नीलोफर के बारे मे सोचने लगा। उसके नये रुप को देख कर मै असमंजस मे पड़ गया था।

मोनिका के साथ नजदीकी बढ़ाने के पीछे मेरा सिर्फ एक ही मकसद था कि मुझे उसके फोन की कोन्टेक्ट लिस्ट चाहिए थी। शायद नीलोफर के साथ संपर्क करने का मेरे पास यही एक तरीका भी था। मैने अपनी घड़ी पर नजर डाली तो सात बज रहे थे। आज रात के पैसे तो दे दिये थे तो मैने सोचा कि चल कर तबस्सुम को ले आता हूँ। उसने अभी तक ऐसा शानदार होटल पहले कभी नहीं देखा होगा। यह सोच कर मै चलने के लिये उठ कर खड़ा हो गया। तभी दरवाजे पर धीरे से किसी ने दस्तक दी तो मैने चलते-चलते कहा… कमिंग। मैने दरवाजा खोला तो एक पल लिये ठिठक कर खड़ा रह गया था। मोनिका बाहर खड़ी हुई थी। उसके चेहरे पर आयी हुई लाली और बड़ी हुई धड़कन उसका हाले दिल साफ बयान कर रही थी। …तुम? वह मुझे धक्का देकर जल्दी से अन्दर आ गयी और दरवाजा बन्द करके दीवार पर पीठ टिका कर खड़ी हो गयी। मैने एक नजर उस पर डाली तो वह अपनी तेज चलती सांसों को नियंत्रित करने के कोशिश कर रही थी।

वह मेरे कमरे मे खुद आयी थी और अब आगे बढ़ने की मेरी बारी थी। इससे पहले उसे कोई और ख्याल आता मैने उसकी कमर मे अपनी बाँह डाल कर उससे सटता चला गया। एक बार उसने निकलने की कोशिश भी की परन्तु वह असफल रही। मै उसके इतना नजदीक था कि मेरी गर्म सांस उसके फूल से गालों को दहका रही थी। मैने धीरे से झुक कर उसके गाल पर अपने होंठ टिका दिये। मेरी गिरफ्त मे उसका जिस्म सिहर उठा था। मेरे होंठ गालों से सरकते हुए उसके होंठ के कोर पर पहुँच कर ठहर गये थे। अगले ही पल उसने अपने चेहरे को धीरे से घुमा कर अपने होंठ मेरे होंठ पर टिका दिये। इसी इशारे का मुझे इंतजार था। उसके चेहरे को अपने दोनो हाथों मे लेकर उसके थरथारते होंठों पर छा गया। काफी देर उसके होठों का रसपान करने के बाद मैने कहा… मुझे नशा हो गया है। मै जरा बैठ जाता हूँ। वह खिलखिला कर हँस पड़ी थी। उसी पल हमारी सारी झिझक गुम हो गयी थी।

उसे अपनी बाँहों मे जकड़ कर मैने हवा उठा लिया और चलते हुए बिस्तर पर बिठा कर उसके साथ लेट गया। वह मुड़ी और मेरे सीने मे मुँह छिपा कर बोली… तुम आग लगा कर मुझे कार मे छोड़ कर कैसे आ गये। उसका चेहरा उठा कर उसकी आँखों मे झांकते हुए मैने कहा… कार से उतर कर मेरे साथ चलने की हिम्मत तुम्हें जुटानी थी। अब जब तुम आ गयी तो फिर कैसा गिला शिकवा। उसका जिस्म एकाकार के लिये मचल रहा था। मुझे कोई जल्दी नहीं थी। एलिस ने बताया था कि इस आँच को धीरे से सुलगने देना चाहिये। बस मै उस आंच को धीमी हवा के जरिये देर तक जलाये रखना चाहता था। एक दुल्हन की तरह उसके कोमल अंगों पर एक-एक चुम्बन जड़ते हुए मै उसे निर्वस्त्र करता चला गया। थोड़ी देर मे ही वह मेरे बिस्तर पर निर्वस्त्र होकर मेरे अगले वार के लिये मचल रही थी। मेरा हर वार उसकी आशा के विपरीत उसको लगातार चौंका रहा था। उसके चेहरे और गले पर निशानी छोड़ कर जैसे ही उन्नत पहाड़ियों की ओर अग्रसर हुआ उसने तड़प कर निकलने का प्रयास किया परन्तु मेरे शिकंजे से नहीं निकल सकी थी। जैसे ही उन पहाड़ियों पर मेरी ओर से तीन तरफा हमला हुआ तभी से उसकी उत्तेजना से भरी सीत्कार कमरे मे गूंजने लगी थी। दोनों अनावृत उन्नत पहाड़ियों को सामने पा कर, मेरे हाथ, उँगलियाँ, होंठ और जुबान अपने कार्य में लग गये थे। कभी गुलाबी चोटियों पर उँगलियाँ फिराता और कभी दो उँगलियों में अकड़े हुए किश्मिश जैसे स्तनाग्रों को फँसा कर खींचता, कभी पहाड़ियों को अपनी हथेलियों में छुपा लेता और कभी उन्हें जोर से मसक देता। उधर आँखे मुदें हुए मोनिका का चेहरा उत्तेजना से लाल होता चला जा रहा था। अपने नीचे उसके मचलते हुए जिस्म को महसूस करते हुए मैने उसके कान मे कहा… जानेमन, आज के बाद तुम मुझे हरदम याद रखोगी।

मोनिका का उत्तेजना से जलता हुआ नग्न जिस्म मेरी आँखों के सामने वासना की आग बुझाने के लिए तड़प रहा था। मेरी उँगलियों ने नीचे सरक कर जुड़ी हुई चिकनी संतरे की फाँकों को अलग करके अकड़े हुए अंकुर के सिर पर जैसे ही ठोकर मारी तो उसके मुख से लम्बी सीत्कार निकल गयी थी। अब मेरी उंगली ने खून से लबालब अंकुर को रगड़ना आरंभ कर दिया था। उसकी आनंद से भरी सिसकारियाँ बढ़ती चली गयी और मेरे होंठ उसकी उन्नत स्तनों का रस सोखने मे जुट गये थे। कभी मेरी जुबान स्तनाग्र को छेड़ती और कभी मेरा मुख पूरे स्तन को निगलने की कोशिश करता। अपने आप को मेरे हवाले करके वह अपनी ही दुनिया मे खो गयी थी। मै उससे अलग हो गया और जल्दी से अपने कपड़े उतार कर मै उस पर छा गया था। इस बार लेकिन जैसे ही किसी कठोर जीवन्त वस्तु ने उसकी जांघ पर स्पर्श किया उसकी मुंदी आँखे एकाएक खुल गयी थी। उसके हाथ उस वस्तु को पकड़ने के लिये नीचे की ओर बढ़े तो मैने उसके हाथ पकड़ कर उसके सिर पर टिका कर उसके जिस्म को अपने शरीर से पूरी तरह ढक दिया था। अपने तन्नायें हुए हथियार को अपनी मुठ्ठी में लेकर धीरे से एक-दो बार हिलाया और फिर मोनिका के स्त्रीद्वार पर टिका दिया। लोहे सी गर्म राड का एहसास होते ही उसके मुख से एक गहरी सिसकारी निकल गयी थी। मैंने उस लहराते हुए भुजंग को गरदन से पकड़ कर धीरे उस अकड़े हुए अंकुर पर जैसे ही रगड़ा मोनिका बल खाती हुई मचली और फिर तड़प कर मुझसे लिपट गयी। उसकी इस क्रिया से वह गर्म सलाख सरक कर धीरे से अपनी जगह बना कर अन्दर प्रवेश कर गयी थी। अब की बार मैंने अपनी जुबान से मोनिका के होंठों को खोल कर उसके गले की गहराई नापते हुए अपनी कमर पर दबाव डाला तो वह गर्म सलाख सारे संकरेपन को खोल कर अन्दर सरकती चली गयी थी। एक पल के लिये मै रुक गया था। उसके जिस्म मे उठती हुई हर तरंग के साथ स्पंदन को अपने अंग पर महसूस कर रहा था। मेरे हाथ फिसल कर उसके पुष्ट नितंबों पर जकड़ गये थे। एक गहरी साँस लेकर मैने धीरे से अपने आप को संभाला और एक भरपूर झटका अपनी कमर को दिया तो वह उत्तेजना से अकड़ा हुआ भुजंग सारी बाधाओं को दूर करते हुए जड़ तक जाकर धँस गया था। हमारे जोड़ टकराते ही मोनिका की आँखे फैल गयी थी और उसके मुख से एक मस्तीभरी आह निकल गयी थी। कुछ क्षण रुक कर उसके गदराये बदन को अपनी बाँहों मे जकड़ कर एकाकार के चक्रवाती तूफान ने गति पकड़ ली थी। हर वार पर एक संतुष्टि भरी सीत्कार उसके मुख से विस्फुटित हो रही थी। जैसे-जैसे कमरे मे आये हुए तूफान ने गति पकड़नी आरंभ करी तो वह कभी कामाग्नि मे मचलती और कभी तड़पती परन्तु अब उसका जिस्म उसके नियंत्रण मे नहीं रहा था। न जाने कितनी बार वह स्खलित हो चुकी थी। एक स्थिति ऐसी आयी जब हम दोनो के लिये समय रुक सा गया था। अचानक हम दोनो ही अपने चरम पर पहुँच गये थे। उसका जिस्म एक पल के लिए अकड़ा और फिर जोर का झटका लगा और उसका जिस्म कांपा फिर सब कुछ लुटा कर निश्चल होकर बिस्तर पर पड़ गयी थी। उसके जिस्म के कंपन को महसूस करके मेरे अन्दर का ज्वालामुखी भी फट गया और लावा बेरोकटोक बहने लगा।  एक दूसरे को बाँहों मे लिये हम लस्त होकर पड़ गये थे।

थोड़ी देर बाद मै उठ कर बैठ गया लेकिन शायद मोनिका किसी और ही दुनिया मे खो गयी थी। सिरहाने रखे हुए उसके पर्स से मैने मोबाईल फोन निकाला और अपने फोन को लेकर मै बाथरुम मे चला गया था। कुछ मिनट के बाद ही दोनो फोन को ब्लू टूथ की पेयरिंग करके मै बाहर निकला और बेड पर आराम से बैठ कर उसकी कोटेक्ट लिस्ट ट्रांस्फर करने पर लगा कर बैठ गया। मोनिका की साँसे धीरे-धीरे चल रही थी कि जैसे वह किसी गहरी निद्रा मे डूब गयी थी। जैसे ही उसकी कोन्टेक्ट लिस्ट मेरे फोन पर आ गयी तो मैने उसका फोन उठा कर उसके पर्स मे रख दिया और अपना फोन देखने बैठ गया। मेरी आँखें सौम्या कौल का नम्बर ढूंढ रही थी और जैसे ही मुझे उसका नाम दिखा तो मैने फोन बन्द करके एक ओर रख दिया। रुम सर्विस से कुछ खाने पीने का आर्डर देकर मोनिका को जगाने मे जुट गया था। उसने धीरे से पल्कें खोली और मेरी ओर देख कर मुस्कुरायी। अचानक झपट कर अपनी बाँहें मेरे गले मे डाल कर वह हवा मे झूल गयी थी। …कुछ कपड़े पहन लो। रुम सर्विस खाने पीने का सामान ला रहा होगा। अभी मै बोल कर चुका था कि तभी डोर बेल बज उठी थी। मोनिका निर्वस्त्र हालत मे ही बाथरुम मे चली गयी थी। मैने उसके कपड़े एक ओर रखे और तौलिया बाँधे दरवाजे की ओर चल दिया।

वेटर मेज पर खाने-पीने का सामान लगा कर चला गया तब बाथरुम के दरवाजे पर दस्तक देकर मैने कहा… वह चला गया। तुम बाहर आ सकती हो। वह शर्माते हुए बाहर निकली और अपने हाथ से अपने स्त्रीत्व को छिपा कर खड़ी हो गयी थी। एकाकार की चमक उसके चेहरे पर दिख रही थी। उसका गदरया बदन भी कामुकता से दमक रहा था। …यह इतने निशान तुमने मेरे जिस्म पर बना दिये है कि दीपक को क्या जवाब दूँगी। …तुम उस बेवकूफ को मत याद करो जिसने अपने घर मे रखे हुए फल का निरादर किया है। जानेमन तुम लाजवाब हो। …समीर क्या टाइम हो गया? …नौ बज गये है। …बहुत देर हो गयी। मुझे अब घर जाना है। …नहीं मोनिका। अभी तो पूरी रात अपने पास है। आज तुम कहीं नहीं जा रही हो।

…नहीं प्लीज जाने दो। कुछ देर उसकी यही कहानी चलती रही थी। मै जानता था कि वह अब कहीं नहीं जाएगी। मै आराम से बैठ कर खाता और पीता रहा। कुछ देर बाद उसने भी थोड़ा खाया और फिर मेरे साथ पीने बैठ गयी थी। हलका सा नशे का सुरुर होते ही उसकी वासना सिर उठाने लगी थी। अबकी बार उसने पहल की थी। वह सरक कर मेरे करीब आयी और मेरे सुप्त पौरुष को चूम कर धीरे से सहलाते हुए अपने अगले एकाकार के लिये तैयार करने मे जुट गयी थी। अपने होठों और जुबान से लगातार वार करके उस सोये हुए भुजंग को जागने के लिये मजबूर कर दिया था। बस फिर क्या था एक बार फिर से हमारा खेल आरंभ हो गया था। इस बार पहले जैसी तीव्रता नहीं थी। हम दोनो एक दूसरे के संतुष्टि की कोशिश मे जुटे हुए थे। उस रात मैने उस पर एलिस के बताये हुए सभी प्राकृतिक व अप्राकृतिक सहवास का उसे अनुभव करा दिया था। अगली सुबह जब हम होटल से निकले तब तक मोनिका थक कर चूर हो चुकी थी। उसका जिस्म रात भर की मेहनत से दमक रहा था। उसने तो अपनी कार और ड्राईवर को उसी शाम छोड़ दिया था। वह टैक्सी से मेरे होटल पहुँची थी। इसीलिये अपनी जीप से उसे उसके घर के बाहर छोड़ कर मै अपने कैंम्पस की ओर चला गया था।

तबस्सुम मुझे देखते ही बरस पड़ी। वह सारी रात मेरे लिये फिक्रमन्द थी। मैने उसे समझाया कि मेरी नौकरी ऐसी है कि पता ही नहीं चलता कि कब कहाँ जाना पड़ जाता है। …आप फोन पर तो बता सकते थे। उसे शांत करने के बाद आराम से सोफे पर बैठ कर मैने सौम्या कौल का नम्बर लगाया तो दूसरी ओर से नीलोफर की आवाज सुनते ही मैने कहा… नीलोफर। एक पल के लिये वह चौंक गयी थी। वह धीरे से  बोली… समीर। …तुमसे मिलना है। …ठीक है। मेरे घर आ जाओ। मुझे भी उसे चोट पहुँचानी थी तो मैने जल्दी से कहा… बी चन्द्रमोहन के घर या अंसार रजा के घर और या दीपक सेठी के घर? अगर हमारे बीच मे वह करार नहीं हुआ होता तो अब तक बेडियों मे जकड़ी सेना की गाड़ी मे बैठ कर तुम श्रीनगर जा रही होती। …तुम तो कम से कम मेरी मुश्किल समझने की कोशिश करो। …कहाँ आना है? उसने जल्दी से अपना पता बता कर फोन काट दिया था। …किससे बात कर रहे थे? मैने मुस्कुरा कर कहा… तुम्हारी बाजी से बात कर रहा था जो पिछले तीन महीने से कश्मीर से फरार है। कल सारी रात उसे ट्रेक करने मे लग गयी थी। तबस्सुम ने कुछ नहीं कहा और मै तैयार होने के लिये चला गया था।

थोड़ी देर के बाद गुड़गाँव के एक हाईराईज अपार्टमेन्ट के फ्लैट के बाहर खड़ा हुआ डोर बेल बजा कर दरवाजा खुलने का इंतजार कर रहा था। नीलोफर दरवाजा खोल कर पल भर खड़ी रही और फिर धीरे से बोली… तुमने मुझे आखिर ढूंढ ही लिया। अन्दर आ जाओ। बिना कुछ बोले मै अन्दर चला गया था। बड़ा साधारण सा फ्लैट था। …तुम कब से यहाँ पर रह रही हो? …दो महीने हो गये है। …वहाँ से भागी क्यों? …तुम्हारे सीओ ने मेरा जीना मुश्किल कर दिया था। …नीलोफर, एक बात हम आपस मे तय कर ले तो अच्छा होगा कि हम एक दूसरे की आँख मे धूल झोंकने की कोशिश न करें। मै अपने सीओ को तुमसे बेहतर जानता हूँ इसलिये यह त्रिया चरित्र उनके लिये संभाल कर रखो जिनको तुम रिझाती हो। वह एक पल के लिये खामोश हो गयी और फिर धीरे से बोली… अब तुम्हीं सोचो कि तुम लोग फारुख को छोड़ने जा रहे थे और उस हालात मे मेरे पास भागने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था। …तो उन दोनो ट्रकों को लेकर यहाँ आ गयी। उन ट्रकों मे क्या था? वह कुछ देर सिर झुकाये बैठी रही फिर मेरी ओर देख कर बोली… फारुख की दस करोड़ रुपये की पहली किस्त थी। एक पल के लिये वह चुप हो गयी फिर जल्दी से बोली… हम आधा-आधा बाँट लेते है। मै उसके निकट जा कर बोला… क्या तुम सच मे समझती हो कि आधे पैसे देकर मुझे खरीद लोगी? अबकी बार वह मुस्कुरा कर बोली… कोशिश करने मे क्या हर्ज है? मैने उसकी पीठ पर धौल जमा कर कहा… मजाक बहुत हो गया तो अब क्या करने की सोच रही हो? वह चुप हो गयी थी।

…नीलोफर, क्या अभी तक मैने तुम्हें कोई धोखा दिया है। तुम्हें याद है कि हमारे बीच मे क्या करार हुआ था। हम दोनो मे से किसी ने धोखा देने की कोशिश की तो हम मे से सिर्फ एक जिंदा बचेगा। उसने इतनी देर मे पहली बार मेरी आंखों मे झाँकते हुए कहा… उन लोगों की मदद से उस पैसे को यहाँ से बाहर निकालने की कोशिश कर रही हूँ। …उन्होंने अपनी क्या कमीशन मांगी है? एक बार फिर वह चुप हो गयी थी। …कहाँ जाने की सोच रही हो? …रुस। एक वही जगह बची है जहाँ आईएसआई अभी तक नहीं पहुंची है। …तभी चन्द्रमोहन को अपने हुस्न के जाल मे फंसाया है? उसने कोई जवाब नहीं दिया बस सिर झुका कर बैठी रही। मै कुछ बोलने जा रहा था कि वह मेरी ओर देख कर बोली… तुम्हें तो यही लगता है कि अपने फायदे के लिये हर किसी के साथ मै हमबिस्तर हो जाती हूँ। पिछले दो सालों से मैने फारुख के कहने पर सेठी और अंसार रजा को लाखों रुपये दिये है। अंसार रजा ने सौम्या कौल के नाम से मेरे सरकारी कागज बनवाये थे और सेठी मेरे पैसे को हवाला के जरिये विदेशी बैंक मे जमा करवा रहा है। उन दोनो का एक काम चन्द्रमोहन के पास अटका हुआ है। उन दोनो ने मेरी मदद सिर्फ इसलिये की थी कि मै उनकी उस मामले मदद करुँ। यहाँ पर सभी दलाल है। सेठी और अंसार रजा किसी रक्षा सौदे के दलाली कर रहे है। उस सौदे की फाईल चन्द्रमोहन के पास है। सेठी की पार्टी मे चन्द्रमोहन मुझ पर लट्टू हो गया था तो उसके लिये उन्होंने मेरा इस्तेमाल किया है। मुझे उन दोनो की जरुरत थी और उन्हें मेरी जरुरत थी।

…नीलोफर, यही बात तुमने मुझे बतायी होती तो मै तुम्हारी मदद करने की कोशिश कर सकता था। मै भी कोई दूध का धुला हुआ नहीं हूँ। कल रात सेठी की बीवी को हमबिस्तर करके मुझे तुम्हारा फोन नम्बर मिला था। वह सिर झुकाये मेरी बात सुन रही थी। …जब मै तुम्हें ऐसी किसी स्थिति मे देखता हूँ तो पता नहीं क्यों मुझे तकलीफ होती है। खैर, मुझे तुम्हारी मदद चाहिये और यह काम सिर्फ तुम ही कर सकती हो। वह मेरी ओर ध्यान से देखने लगी। …आईएसआई का एक बेहद गोपनीय प्रोजेक्ट कोडनेम वलीउल्लाह के नाम से चल रहा है। मुझे उसके बारे मे जानकारी चाहिये। कोडनेम का शब्द सुनते ही नीलोफर की आँखें पल भर के लिये फैल गयी थी। उसने तुरन्त अपने आप को संभाल लिया था परन्तु वह क्षणिक पल्कों की प्रतिक्रिया मुझसे बच नहीं सकी थी। मेरे सामने बैठी हुई विषकन्या की परीक्षा की घड़ी आ गयी थी। कुछ पल सोचने के बाद नीलोफर धीरे से कहा… समीर, इस प्रोजेक्ट के बारे मे मैने सिर्फ सुना है। यहाँ पर सक्रिय सभी हमलावर तंजीमे बस इतना जानती है कि आईएसआई किसी गोपनीय जानकारी के आधार पर हमले के लिये टार्गेट चुनती है। उस को वह सिर्फ कोडनेम के नाम से जानते है। मैने यह पूरा नाम अपने ताया जकीउर लखवी के मुँह से सुना था। इससे ज्यादा तो वह भी नहीं जानते थे। इतना बोल कर वह चुप हो गयी थी।

कुछ सोच कर मैने पूछा… क्या तुम पता करके किसी एक आदमी का नाम बता सकती हो जो इसके बारे मे जानता है? वह चुप रही तो एक बार फिर से मैने कहा… नीलोफर यह मेरे लिये बेहद जरुरी है। अगर तुम मेरी मदद इस मामले मे करने के लिये तैयार हो तो मै तुम्हारे बारे मे किसी को नहीं बताऊँगा और समय पड़ने पर तुम्हें यहाँ से सुरक्षित निकलवा भी दूँगा। …तुमने इसके बारे मे फारुख से नहीं पूछा? …उसने मुझे किसी हया नाम की आईएसआई हैंडलर का नाम दिया था। …हया? …हाँ। क्या तुम उसे जानती हो? …नहीं लेकिन मैने सुना है कि वह फारुख की तरह आईएसआई मे मेजर के पद काम करती थी। मुझे सिर्फ इतना पता है कि आजकल वह भारत से अपने नेटवर्क का संचालन कर रही है। यह खुलासा सुन कर मै चौंक गया था। मेरे लिये हया नाम पहले से ही सिरदर्द था क्योंकि अम्मी और आलिया की हत्या के पीछे उसके हाथ था। अब उसका आईएसआई मे मेजर होने का कनेक्शन सुन कर मेरे लिये एक नयी चुनौती खड़ी हो गयी थी। मेरे मन मे आया कि न जाने कितने ऐसे पाकिस्तानी एजेन्ट हमारे देश मे पल रहे है और हमारी सुरक्षा एजेंसियाँ हाथ पर हाथ धर कर बैठी हुई है।

एक बार फिर से मैने दबाव डालते हुए कहा… फिर भी क्या तुम मेरी इसमे मदद कर सकती हो? अबकी बार वह कुछ सोच कर बोली… समीर, मुझे हाल ही मे पता चला है कि आईएसआई ने नेपाल की वामपंथी पार्टी की मदद से एक बेहद मजबूत नेटवर्क काठमांडू मे तैयार किया है। तुम वहाँ जाकर क्यों नहीं इसका पता लगाते? …नीलोफर, तुम क्यों नहीं कुछ दिनों के लिये वहाँ चली जाती? वह बिदक कर खड़ी हो गयी थी… तुम पागल हो क्या। मै उन्हीं से तो दूर भाग रही हूँ। एक बात साफ बता रही हूँ कि इस कोडनेम की सच्चायी सिर्फ चंद आईएसआई के वरिष्ठतम लोग ही जानते है। …और हया? वह कुछ पल चुप रही और फिर धीरे से गरदन हिलाते हुए बोली… समीर, कसम खुदा की मै नहीं जानती कि वह कहाँ है। उसकी आवाज मे सच्चाई की दृड़ता को मै महसूस कर रहा था। मुझे समझ मे नहीं आ रहा था कि ऐसी हालत मे क्या करना चाहिये तो मैने उठते हुए कहा… अबकी बार अगर भागने का इरादा कर रही हो तो एक बार मुझे खबर जरुर कर देना। यह बोल कर मै चल दिया। वह मुझे दरवाजे तक छोड़ने आ गयी थी।

कुछ सोच कर अचानक मैने मुड़ कर कहा… एक बात कहूँ कि सेठी की पार्टी मे तुम्हारा रुप देख कर मै तुम पर फिदा हो गया था। बहुत सुन्दर लग रही थी। वह मुस्कुरा कर बोली… मै इतने दिन तुम्हारे साथ रही थी। तुमसे मेरा कुछ भी छिपा नहीं था तब भी तुमने कभी कुछ नहीं किया तो अब तो कम से कम ऐसी बात मत करो। मैने उसको देखते हुए कहा… जब भी तुम्हें देखता हूँ तो अपना करार याद आ जाता है। हमने पैगम्बर का बताया हुआ सबसे पाक करार किया है जिसे तोड़ा नहीं जा सकता। वह मुस्कुरा कर बोली… मुझे मालूम है कि तुम काफ़िर हो इसलिये तुम पर इसका कोई बंधन नहीं है। अंसार रजा की पार्टी मे आओगे तो मेरी लिस्ट के बहुत से लोग दिख जाएँगें।

मैने आगे कुछ नहीं कहा और वापिस अपने आफिस की ओर चल दिया था।

 

ढाका

…भाईजान, हमे यहाँ आये हुए तीन दिन हो गये है। जमात-ए-इस्लामी ने हमारे ठहरने का इंतजाम तो कर दिया है परन्तु वह हमे सीमा पार कब कराने की सोच रहे है? …पाकिस्तान से सीमा पार घुसपैठ करना मुश्किल हो गया है। इसी कारण संयुक्त मोर्चे ने हमे यहाँ प्रशिक्षण के लिये भेजा है। …किसका प्रशिक्षण भाईजान? …कोडनेम वलीउल्लाह के मिशन की तैयारी करने के लिये इस स्थान का चयन किया है। सुना है कि कुछ लोग हिंदुस्तान से हमे प्रशिक्षण देने के लिये आने वाले है। बस जमात उनका इंतजार कर रही है। …भाईजान हमारे साथ बत्तीस लोग आये थे। आज आठ लोग न जाने कहाँ गायब हो गये है। कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारे साथ कोई धोखा हो गया। …वह काठमांडू से असला बारुद लाने के लिये गये है। इतनी बोल कर वह आदमी समुद्र के तट पर टहलने के लिये बढ़ गया था। दूसरा व्यक्ति पेड़ के तने का सहारा लेकर आँख मूंद कर बैठ गया था।

उसी समय जमात-ए-इस्लामी के आफिस मे एक मीटिंग चल रही थी। एक मौलाना तकरीर कर रहा था। …बिरादर आपकी मेजबानी के लिये बहुत शुक्रिया। सभी पाकिस्तानी तंजीमो ने मिल कर एक संयुक्त मोर्चे स्थापित किया है। उनका सिर्फ एक ही उद्देशय है कि हिन्दुस्तान मे निजाम-ए-मुस्तफा स्थापित करना जिसके लिये आज हम सभी यहाँ इकठ्ठे हुए है। जमात और हिज्बुल ने प्रशिक्षण के लिये इस जगह को चुना तो उसके लिये हम उनके शुक्रगुजार है। मै बंगाल शाखा की ओर से उनका शुक्रिया करता हूँ। इसी प्रकार एक के बाद एक मौलवी और मौलाना कुछ न कुछ बोल कर बैठते चले जा रहे थे। उसी सभागार मे एक किनारे पर पीरजादा मीरवायज और जकीउर लखवी भी बैठे हुए थे। दोनो को अपना सपना साकार होते हुए दिख रहा था। तभी सभागार मे भगदड़ मच गयी थी। पीरजादा ने साथ बैठे हुए मौलवी से पूछा… क्या हुआ? …कोई भारतीय जासूस था जिसकी पकड़-धकड़ चल रही है। जकीउर लखवी जल्दी से उठा और सभागार के बाहर निकल गया था।  

बुधवार, 22 मार्च 2023

 

    गहरी चाल- प्रस्तावना


पाकिस्तान

रात गहरी होती जा रही थी। भारत की सीमा के पास एक गुप्त स्थान पर पाकिस्तान फौज का संचार केन्द्र लगातार काम कर रहा था। अलग-अलग टर्मिनल पर सैनिक कान पर हेडफोन लगाये लगातार स्क्रीन पर निगाहें गड़ाये हुए बैठे थे। एक टर्मिनल पर बैठा हुआ सैनिक अचानक चिल्लाया… वलीउल्लाह ने संपर्क साधा है। कुछ नये नम्बर दे रहा है। …उन नम्बरों को डिकोड करके भारत के नक्शे पर उन्हें तुरन्त रेखांकित करो। उसकी आवाज सुनते ही एकाएक हाल मे हड़कम्प मच गया था। सारे टर्मिनल्स पर काम करने वाले फौरन कोड को डिकोड करने मे जुट गये थे। कुछ देर के बाद बड़ी सी दीवार पर लगे हुए स्क्रीन पर भारत का नक्शा  दिखायी दिया जिस पर कुछ लाल निशान लगे हुए थे। तभी एक भारी भरकम आवाज गूँजी… मेजर महमूद, तुमसे कुछ गल्ती हो रही है। अरब सागर मे इंकित तीन लाल निशानों का क्या मतलब हो सकता है। एक बार दोबारा से चेक करो। मेजर महमूद एक बार फिर से अपने काम मे लग गया था। आधे घंटे तक सबकी नजर स्क्रीन पर टिकी रही और फिर मेजर महमूद ने कहा… सर, जो सूचना मिली है उसके अनुसार यह तीनो निशान सही है। उस आदमी ने एक पल सोचा और फिर बोला… मेरी बात फौरन जनरल मंसूर बाजवा से कराओ। एक सैनिक तुरन्त फोन मिलाने मे व्यस्त हो गया था।

…सर, सेन्ट्रल सर्वैलेन्स से ब्रिगेडियर शाहबाज बोल रहा हूँ। आज वलीउल्लाह ने संपर्क साधा है। उसने अरब सागर के बीच तीन ग्रिड रेफ्रेन्स भेजे है। जनरल बाजवा ने आश्चर्यचकित आवाज मे पूछा… बीच समुद्र मे तीन स्थानों का क्या मतलब हो सकता है? एक पल रुक कर वह फिर बोला… क्या भारतीय नौसेना कराँची पर कोई नया उत्पात मचाने की सोच रही है? …कुछ कहा नहीं जा सकता। इसके बारे मे अपनी नौसेना से पूछना पड़ेगा। …शाहबाज, फौरन पाकिस्तान एड्मिरल्टी से इस सूचना की पुष्टि करने का निर्देश देकर मुझे खबर करो। आज पहली बार उसने भारतीय नौसेना की सूचना दी है। …यस सर। वलीउल्लाह ने एक बात और कही है कि नये निजाम के आने से भारतीय स्ट्रेट्जिक कमांड कंट्रोल युनिट मे कुछ भारी फेर बदल हुआ है।

कुछ सोच कर जनरल बाजवा ने कहा… शाहबाज, उस लाईन पर चौबीस घंटे नजर रखो। शायद वलीउल्लाह कुछ और बताना चाहता है। फौरन मेरे पास चिंहनित किये गये तीन स्थानो का ग्रिड मैप भिजवाने का प्रबन्ध करो। पहली बार भारत के उच्चतम कंमाड आफिस मे हमारा आदमी पहुँच गया है  इसीलिए बेहद सावधानी बरतने की जरूरत है। तुम्हारी ओर से कोई भी उससे संपर्क साधने की कोशिश न करे। इस बार उसने कौनसी लाईन से संपर्क साधा था? …दुबई। …गुड। दूसरी ओर से लाईन कट गयी और ब्रिगेडियर शाहबाज अपने सैनिकों को नये निर्देश देने मे व्यस्त हो गया।


नई दिल्ली

भारत मे सरकार बदलने के कारण दिल्ली मे बैठे अधिकारियों और सफेदपोश दलालों मे खलबली मची हुई थी। सभी को चिन्ता सता रही थी कि दस साल के कार्यकाल की अगर फाईलें खुलनी आरंभ हो गयी तो बहुत से लोगों को जेल जाने की नौबत आ जाएगी। यही हाल भारतीय संचार तंत्र का भी था। पत्रकारिता की आढ़ मे जो लोग पिछली सरकार मे सरकारी मौज के साथ दलाली के पैसे बना रहे थे उनकी दुकाने भी नयी सरकार आने के कारण बन्द हो गयी थी। बुद्धिजिवियों का एक वर्ग जिसने सारी जिंदगी एक परिवार की चाकरी करके अपने लिये समाज मे जगह बनायी थी अब वह भी बेरोजगार हो गये थे। इसी समूह को दस साल मे अब तक यकीन हो चुका था कि वही करोड़ों भारतीयों के मानस को प्रभावित करने की शक्ति रखते है। वह जैसा सोचते और बोलते है वही आम नागरिकों के लिये पत्थर की लकीर हो जाती है। इसी समूह ने पिछले दस साल से जिस इंसान को फिरकापरस्त के नाम से प्रताड़ित किया था वही आज भारत का प्रधानमंत्री बन गया था। कैसे इतना बड़ा उलटफेर हो गया यह उनकी समझ से बाहर था। इसके लिये रोज किसी एक जगह पर एकत्रित होकर फुँके हुए कारतूसों का समूह अपने स्वर्ण दशक को याद करके नयी सरकार के प्रति अपना रोष जताया करते थे।

दिल्ली की खान मार्किट के काफी हाउस मे कुछ इसी समूह के लोग बैठ कर अपनी कुंठा प्रदर्शित कर रहे थे। …अब तो सरकारी अफसर भी कन्नी काटने लगे है। मैने हाल ही मे वागले से मिलने का समय मांगा था लेकिन उसके पीए ने साफ मना कर दिया था। तभी एक महिला पत्रकार बोली… आप तो सिर्फ मिलने का समय मांग रहे थे। मै तो सुब्रामनयम की प्रेस कान्फ्रेंस मे गयी थी तो उस कमीने ने तो सबके सामने पहचानने से ही इंकार कर दिया था। सभी अपना-अपना दुखड़ा रो रहे थे कि एक सामाजिक संस्था की निदेशक ने पूछा… मेरे सुनने मे आया कि नयी सरकार अब विदेशी चंदे पर रोक लगाने की सोच रही है। माधुरी इस खबर मे कितनी सच्चायी है? …मै अब तुम्हें यह कैसे बताऊँ। एक वक्त होता था कि यहीं बैठ कर एक फोन पर पता चल जाता था कि सरकार क्या करने का विचार कर रही है परन्तु अब सभी मंत्रालयों से मेरे संपर्क कट गये है। पीआईबी कार्ड होने बावजूद कोई बात करने के लिये राजी नहीं है। चुनाव मे हारे हुए एक सांसद ने कहा… पाँच साल तो यह सरकार कहीं नहीं जाने वाली लेकिन उस नीच आदमी के खिलाफ तो मोर्चा खोल सकते है। अचानक एक स्त्री जो अभी तक सबकी बात सुन रही थी वह अचानक सांसद से बोली… शंकर, हमारी संस्था इस्लामाबाद मे भारत-पाक रिश्तों पर एक “अमन की आशा” नाम की कान्फ्रेंस करवा रही है। क्या आप उसमे भाग लेना चाहेंगें? आपके आने-जाने और रहने का खर्चा हम उठाएँगें। शंकर ने मुस्कुरा कर बड़ी बेशर्मी से कहा… जरुर अगर तुम साथ चलोगी तो? …सौरी, मै तो नहीं जा सकूँगी लेकिन आप इच्छुक है तो मुझे बता दिजीएगा। माधुरी नाम की पत्रकार तुरन्त बोली… शमा, अब पाँच साल शंकर के पास कोई काम नहीं है। मै जानती हूँ कि यह जरुर जाएगा तो तुम इसकी ओर हाँ समझ लो। शंकर ने जोर से ठहाका लगा कर कहा… अब इसकी बात मै कैसे टाल सकता हूँ।

उसी समय साउथ ब्लाक के मीटिंग रुम मे रा के निदेशक गोपीनाथ ने प्रवेश किया और मेज पर एक प्रिंट आउट रख कर बोला… अजीत, बुरी खबर है। संयुक्त मोर्चा ने तीन जगहों पर एक साथ फिदायीन हमला करने की योजना बनायी है। उनका उद्देश्य हमारी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुँचाने का है। एकाएक कमरे मे शांति छा गयी थी। मीटिंग मे उपस्थित सभी व्यक्ति सिर पर मंडराते हुए गहरे खतरे की सूचना पा कर गहरी सोच मे डूब गये थे।


जीएचक्यू, रावलपिन्डी

जनरल मंसूर बाजवा का चेहरा धुआँ हो रहा था। परेशानी की लकीरें वहाँ बैठे हुए सभी लोगों के चेहरे पर दिखायी दे रही थी। …जनरल मंसूर, एक महीने मे तीसरी बार भारतीय फौज ने हमारा माल पकड़ा है।  एक बार तो इत्तेफाक हो सकता परन्तु यह कार्यवाही तीन बार कैसे इतनी सटीक हो सकती है? हर बार हमें आर्थिक नुकसान उठाने के साथ ही हमारी साख पर भी बट्टा लग रहा है। इसके लिये कौन जिम्मेदार है? …जनाब यह सच है कि इतनी मेहनत से बनाया गया नेटवर्क जब से छिन्न-भिन्न हुआ है तभी से सब कुछ बिखरता जा रहा है। अब यह रास्ता भारतीय सुरक्षा एजेन्सियों की नजर मे आ गया है। हमे अपनी रणनीति मे बदलाव लाना पड़ेगा। जनरल शरीफ अपने सामने बैठे हुए जनरल मंसूर और सभी तंजीमों के मुखियाओं पर गुस्से से गर्जा… अगर अगले कुछ दिनों मे सीमा पार कोई कार्यवाही नहीं हुई तो वह लोग पैसे देना बन्द कर देंगें। अगर ऐसा हो गया तो तुम्हारी दुकान भी बन्द हो जाएगी। अचानक बोलते हुए उसकी निगाह मंसूर की ओर चली गयी थी जो फोन पर किसी से बहस कर रहा था। …मंसूर तुम्हारी काहिली के कारण बहुत नुकसान हो रहा है। अब बलूचिस्तान जाने की तैयारी आरंभ कर देना। मंसूर ने जल्दी से फोन बन्द किया और घबराते हुए बोला…  जनाब, एक बुरी खबर श्रीनगर से मिली है। मुझे अभी मुजफराबाद के लिये निकलना होगा। मंसूर के चेहरे पर आये हुए तनाव को देख कर जनरल शरीफ ने कहा… तुम जा सकते हो परन्तु वहाँ पहुँच कर मुझे पूरी रिपोर्ट देना। जनरल मंसूर वहाँ से तेजी से कमरे से बाहर निकल गया और जनरल शरीफ आये हुए तंजीमों के मुखियाओं से बात करने मे व्यस्त हो गया।

मुजफराबाद

उसी समय मुजफराबाद मे किसी अनाम जगह पर तीन आदमी बैठ कर बात कर रहे थे। …यह रास्ता तो बन्द हो गया है। आज मंसूर बाजवा ने कहलवाया है कि सभी तंजीमे अब से नेपाल के रास्ते से भारत मे प्रवेश करेंगी। तभी एक बूढ़ा आदमी बोला… यहाँ से नेपाल पैदल तो नहीं जा सकते जैसे यहाँ से कश्मीर पहुँच जाते थे। वहाँ पर अपने गाजियों को कैसे भेजेंगें? अपनी दाड़ी को सहलाते हुए एक बूढ़े मौलवी ने पूछा… उस मजलिस मे मंसूर बाजवा से किसी ने यह सवाल नहीं पूछा कि क्या वह उड़ कर नेपाल जायेंगें? …पीर साहब, काउन्सिल मे यह सवाल किसी ने नहीं पूछा लेकिन कुछ ऐसा पता चला है कि कश्मीर मे बाजवा के किसी मंसूबे को गहरा धक्का लगा है। …सलाहुद्दीन, कश्मीर मे आये दिन कुछ न कुछ होता रहता है। संयुक्त मोर्चे की कमान हमारे हाथ लगने वाली थी लेकिन तुम खुद देख लो कि अचानक वहाँ क्या हो गया था। अगर उस मजलिस मे बाजवा सच मे परेशान था तो इसका मतलब है यही है कि उसको कोई बहुत भारी आघात लगा है। …पीर साहब आपका फर्जंद आजकल वहीं है तो आप उससे खुद क्यों नहीं पूछ लेते? …मुन्नवर इस वक्त सीमा के हालात बेहद संवेदनशील है। फारुख से जब आखिरी बात हुई थी तब उसने कहा था कि अब्बू इस बार संयुक्त मोर्चा एक ऐसे काम को अंजाम देगा कि इंशाल्लाह काफ़िर घुटनों के बल आ जाएँगें। दोनो आदमियो ने चौंक उस बूढ़े की ओर देखा तो वह बूढ़ा काफी संजीदा दिख रहा था। उसकी बूढ़ी आँखो मे एक चमक दिखायी दे रही थी।

…बड़े मियाँ आपकी बेटी के साथ ऐसा क्या हो गया? एकाएक उस वृद्ध के चेहरे की सारी चमक और खुशी गायब हो गयी थी। वह गुस्से मे बड़बड़ाया… काश पैदा होते ही मर गयी होती तो सब के लिये अच्छा होता। पूरे खानदान के चेहरे पर हरामखोर ने कालिख पोत दी। मैने तो उसके नाम का फातिहा पढ़ दिया है। उस लड़की से अब हमारा कोई नाता नहीं है। एक पल के लिये सब चुप हो गये थे। …पीर साहब फिलहाल आप उसके बारे मे भूल जाईये। हमारे लिये यह जरुरी है कि दोनो परिवार आपस मे जल्दी से जल्दी सुलह कर लें जिससे फारुख को किसी प्रकार की अड़चन का सामना न करना पड़े। हमारे उद्देशय के लिये यही जरुरी है। बूढ़े पीरजादा ने अपना सिर हिला दिया था। दोनो व्यक्ति खड़े हो गये और उस बूढ़े को वहीं पर छोड़ कर कमरे से बाहर निकल गये थे। उनके जाने के बाद पीरजादा गहरी सोच मे डूब गया था। उसको एहसास था कि उसके बनाये हुए साम्राज्य को दूसरी तंजीमे लगातार चुनौती दे रही थी।

 

नयी सरकार बनने के बाद पाकिस्तान मे भी उथल पथल मच गयी थी। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को शपथ समारोह मे बुला कर नयी सरकार ने उनकी फौज एस्टिबलिशमेन्ट को सीधे चुनौती दे दी थी जिसके कारण पाकिस्तानी फौज अपने प्रधानमंत्री से नाराज हो गयी थी। हम लोग भी तैयार बैठे हुए थे। हमे पता था कि पाकिस्तानी फौजी एस्टेबलिश्मेन्ट कश्मीर मे आतंकवाद को हवा देगा अन्यथा वह कारगिल जैसी हिमाकत करने की कोशिश करेगा। हमारी नजर उन पर टिकी हुई थी और जैसे ही हमे पाकिस्तानी फौज मे हलचल दिखायी देती हम तुरन्त ही अपना जवाब तैयार कर लेते थे। अचानक अमरीका ने अफगानिस्तान से निकलने का जैसे ही अपना फैसला सुनाया उसके कारण पाकिस्तानी फौज और आईएसआई के लिये चरमपंथी तंजीमो ने बखेड़ा खड़ा कर दिया था। इसी के साथ अमरीकी डालर की पाइपलाइन भी अब लगभग बन्द होने के कागार पर आ गयी थी। कमाई का स्त्रोत बन्द होते ही तेहरीक-ए-तालिबान और हक्कानी नेटवर्क व अन्य सभी छोटी बड़ी तंजीमे पाकिस्तानी फौज से नाराज हो गयी थी। आखिर इतने सालों से वह तंजीमें अपने गाजियों को निजाम-ए-मुस्ताफा का सपना दिखा कर जिहाद के लिये प्रेरित कर रहे थे तो अब वह उनका कैसे सामना करते। उत्तरीय पाकिस्तान मे कुछ तंजीमो ने अपनी फौज को ही निशाना बनाना आरंभ कर दिया था। दिन पर दिन हालात खराब होते जा रहे थे। एक हादसे ने एस्टेबलिशमेन्ट और तंजीमों के बीच समनव्य को हमेशा के लिये धाराशायी कर दिया था। आर्मी स्कूल पर फिदायीन हमले के कारण बहुत से मासूम बच्चों की मौत हो गयी थी। ज्यादातर वहाँ पढ़ने वाले बच्चे फौजियों के थे तो पाकिस्तान फौज ने जवाब मे उत्तरी वजीरीस्तान मे जर्ब-ए-अज़्ब आप्रेशन आरंभ कर दिया था। इस कार्यवाही के कारण पाकिस्तानी फौज का दिमाग कश्मीर से कुछ वक्त के लिये हट गया था।

राष्ट्रीय रक्षा कालेज से औपचारिक रुप से निकलने मे मुझे दो हफ्ते से ज्यादा का समय लग गया था। जिस दिन फौज से आर्डर मिला उसके अगले दिन ही मैने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का आफिस जोइन कर लिया था। नयी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत सुब्रमन्यम के आफिस मे एक पाकिस्तान डेस्क स्थापित करके अपनी नीति पहले दिन से ही साफ कर दी थी। साउथ ब्लाक मे पहुँच कर पहली बार मुझे उनके पदों की महत्वता का पता चला था। अजीत ने पाकिस्तान डेस्क मेरे सुपुर्द कर दी थी। इसी के साथ अजीत ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार होने की हैसियत से मुख्य स्ट्रेटजिक सेन्ट्रल कमांड कमेटी की सचिव श्रेणी की तैमासिक कमेटी पर मुझे एक पर्यवेक्षक के तौर पर नियुक्त कर दिया था। इस नियुक्ति पर जनरल रंधावा ने हम सभी को उसी शाम सचेत किया… वीके, तुम भूल रहे हो कि उस कमेटी पर कुछ महत्वपूर्ण मंत्रालयों के सचिव बैठते है। वह शासकीय धूर्त इस मेजर को बड़ी असानी से चबा जाएँगें। मेरी ओर से पैरवी करते हुए वीके ने जवाब दिया… रंधावा, मेजर भले ही ओहदे और अनुभव मे उनसे जुनियर है परन्तु वह सेना की कार्यप्रणाली और कश्मीर को उन सबसे बेहतर जानता है। जुनियर होने के कारण वह धूर्त मेजर को अपना प्रतिद्वन्द्वी हर्गिज नहीं मानेंगें। उस कमेटी मे उनके लिये खतरा आईबी और रा के निदेशकों की ओर से होगा तो ऐसी हालत मे मेजर को उनका विश्वास जीतने का मौका मिल जाएगा। एक प्रकार से उन तीनो की छ्त्रछाया मे मैने अपना राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के आफिस मे अपना कार्यभार संभाल लिया था।

अगले दो दिन मुझे स्ट्रेटजिक सेन्ट्रल कमांड कमेटी की कार्यप्रणाली समझने मे लग गये थे। सरकार द्वारा बनायी गयी इस कमेटी के अध्यक्ष स्वंय प्रधानमंत्री थे। इस कमेटी के अन्य सदस्य रक्षा, वित्त, गृह, विदेश और वाणिज्य के मंत्री थे। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार उस कमेटी के सचिव थे। यह उच्चस्तरीय कमेटी रक्षा नीति के साथ राष्ट्रीय मिसाईल और भारतीय परमाणु डाक्ट्रीन का अवलोकन भी करती थी। साल मे दो बार इस उच्चस्तरीय कमेटी की बैठक होती थी। इसी कमेटी के आधीन सचिव श्रणी कमेटी की बैठक हर तीन महीने मे एक बार नीतिगत फैसलों की विवेचना करने के लिये होती थी। इसी सचिव स्तरीय कमेटी मे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की ओर से एक पर्यवेक्षक के तौर पर मुझे नियुक्त किया गया था। इस कमेटी मे तीनों सेना के अध्यक्ष व आईबी और रा के निदेशक भी बैठते थे। एक रोज शाम को आफीसर्स मेस मे पाकिस्तान डेस्क के कार्यभार पर चर्चा चल रही थी। जनरल रंधावा ने कहा… मेजर, सबसे पहले देश मे छिपे जयचंदों और मीर जाफरों की पहचान करो। …परन्तु कैसे? तब कुछ सोच कर वीके ने सुझाव दिया… हरेक उच्चस्तरीय नियुक्ति से पहले आईबी से उस व्यक्ति की रिपोर्ट मांगी जाती है। उसको पढ़ कर शायद वलीउल्लाह के बारे मे कोई सुराग मिल जाये। अगले ही दिन वीके की मदद से इस कमेटी के सभी सदस्यों की आईबी रिपोर्ट्स मुझे मिल गयी थी। मेरा सारा समय उन रिपोर्ट्स को पढ़ने मे निकलने लगा था। कोडनेम वलीउल्लाह  पर काम करने के लिये पहले हया नाम की पाकिस्तानी आप्रेटिव की तलाश जरुरी थी परन्तु किसी सुराग के आभाव मे अभी तक कोई निर्णय नहीं ले सका था। नीलोफर के द्वारा दिये गये नामों का अवलोकन करने का भी मुझे समय नहीं मिल रहा था। एक अजीब सी परिस्थिति मे अपने आप को उलझा हुआ महसूस कर रहा था।

नयी जगह थी और नया माहौल था। मेरा ज्यादा समय भारत राष्ट्र की आंतरिक चुनौतियों को समझने मे निकल रहा था। एक महीने यहाँ काम करके पता चला कि पंचमक्कार की जमात ही भारत की सबसे बड़ी आंतरिक चुनौती है। तिकड़ी के अनुसार दकियानूसी मुल्ला, ईसाई मिशनरी, माओइस्ट, मैकाले के अनुयायी और वामपंथी मिडिया मिल कर पंचमक्कार नामक एक बेमेल अलगावादी जमात बनाते है जिसका उद्देश्य सिर्फ भारत को अन्दर से कमजोर करने का है। मुल्ला और मौलवियों की गतिविधियों से मै अच्छी तरह परिचित था। बाकी चार की मक्कारी को मै यहाँ आकर समझने की कोशिश कर रहा था। यह सार्वजनिक जानकारी थी कि ग्रामीण अंचलों मे ईसाई मिशनरी सामाजिक कार्य की आढ़ मे धर्म परिवर्तन के काम मे लगे हुए थे। यह बात कश्मीर के मदरसों और मस्जिदों मे भी काफी प्रचलित थी कि ईसाई मिशनरियों से दूरी बना कर रखनी चाहिए। यहाँ तक कि उनके स्कूल और डिस्पेन्सरी मे भी जाने की मनाही थी। माओइस्टो और नक्सलवादियों के बारे मे मुझे यहाँ आकर पता चला कि यह समूह का भारतीय संविधान मे विश्वास नहीं था। चीन के प्रति उनकी वफादारी के कारण सुरक्षा तंत्र भी उनके प्रति चौकस था। इस समूह का अराजकता मे विश्वास होने के कारण सिर्फ रक्तिम क्रांति के द्वारा ही समाज मे बदलाव लाने की कोशिशों मे जुटे हुए थे। कुछ दिन यहाँ बिता कर मैने महसूस किया कि आंतरिक सुरक्षा के बारे मे मेरा ज्ञान कितना अधूरा था। कश्मीर मे इतने सारे मुनाफिक लोगो से मेरा सामना कभी नहीं हुआ था।

एक दिन मै रोहिंग्या शरणार्थियों के बारे मे जानकारी एकत्रित कर रहा था कि इन्टरकाम की घंटी बज उठी। …हैलो। …मेजर, आज दोपहर तीन बजे स्ट्रेटिजिक कमांड की सचिव लेवल कमेटी की मीटिंग है। टाइम से वीके के आफिस मे पहुँच जाना। …जी सर। फोन कटने के बाद कुछ सोच कर मै उसी समय वीके के आफिस की ओर चला गया था। वीके ने मुझे देखते ही कहा… मेजर, तुम्हें आज की मीटिंग की खबर मिल गयी होगी। अच्छा हुआ तुम खुद आ गये क्योंकि मै एजेन्डा पेपर्स तुम्हारे पास भिजवा रहा था। बैठो मै फाईल यहीं मँगवा लेता हूँ। मै चुपचाप वीके के सामने बैठ गया। …मेजर, कोडनेम वलीउल्लाह  बहुत संवेदनशील मसला है। उस गद्दार का पता लगाना बेहद जरुरी है जो दुश्मन मुल्क को हमारी गोपनीय जानकारी दे रहा है। …सर, बहुत सोचने पर एक पैटर्न उभरता हुआ दिख रहा है। लगभग सभी जानकारी जो अब तक हमारे सामने आयी है वह मारे गये आतंकवादियों के पास से मिली है। अगर ग्रिड रेफ्रेन्स पाकिस्तान फौज को मिल रहे है तो वह पल भर मे हमारे फौजी संसाधनों को धूल मे मिला सकते है। उनकी शाहीन और गजनवी मिसाइल्स इसके लिये पर्याप्त है तो भला वह यह सूचना आतंकवादी तंजीमों को क्यों दे रहे है? …मेजर, मिसाइल का इस्तेमाल तुरन्त युद्ध का बिगुल बजा देगा और फिर हमारी ओर से इससे कड़ी प्रतिक्रिया भी होगी परन्तु आतंकवादी हमले के लिये सिर्फ हम उन्हें दोषी बता सकते है परन्तु हमारी ओर से कोई फौजी प्रतिक्रिया नहीं हो सकेगी। …यही मै भी सोच रहा था कि हक डाक्ट्रीन को नये स्वरुप मे कार्यान्वित किया जा रहा है। हम बात कर रहे थे कि एजेन्डा की फाइल आ गयी थी। मैने फाइल उठाई और अपने कमरे की ओर चल दिया था।

पहली बार पर्यवेक्षक के तौर पर उच्च अधिकारियों की मीटिंग मे जा रहा था तो तीन बजने से कुछ मिनट पूर्व एजेन्डा फाईल उठाये मै वीके के आफिस के साथ लगे हुए कान्फ्रेंस हाल मे दाखिल हो गया था। हाल के एक किनारे मे लगी हुई मेज पर चाय और काफी का इंतजाम था। कुछ लोग उस मेज के पास खड़े हुए काफी पीते हुए बात कर रहे थे। मै उधर जाने के बजाय मेज पर लगी हुई नेमप्लेट पढ़ते हुए अपनी जगह पर जाकर बैठ गया। ठीक तीन बजे केबिनेट सेक्रेटरी नरसिम्हन कुछ लोगों के साथ हाल मे प्रवेश किया और एकाएक हाल मे इधर-उधर खड़े हुए लोग भी अगले कुछ मिनटों मे अपनी जगह पर बैठ गये थे। नरसिम्हन मेज ने चारों ओर नजर डाल कर कहा… सब आ गये है। मीटिंग आरंभ करते है। मेरी नजरे नेमप्लेट पर से होती हुई उसके पीछे बैठे हुए व्यक्ति के चेहरे को दिमाग मे बिठाने मे व्यस्त हो गयी थी। वाणिज्य सचिव निखिल वागले को अपने दिमाग मे बिठा कर वित्त सचिव बी सुब्रमन्यम पर अपनी निगाहें टिका दी थी। गृह सचिव अनिल चंद्रशेखर केबिनेट सेक्रेट्ररी के बाँये और रक्षा सचिव वी दत्तात्रेय दाँये बैठे हुए थे। एक ओर आईबी के निदेशक दीपक शर्मा और रा के निदेशक गोपीनाथ साथ-साथ बैठे हुए थे। मेरी पहली मीटिंग थी तो मै चुपचाप बैठ कर उनकी बात सुन रहा था।

पहला मुद्दा भारतीय सेना से संबन्धित था। रक्षा सचिव दत्तात्रेय ने थल, वायु और नौसेना के बारे मे जानकारी देते हुए बताया कि पाकिस्तानी फौज लगातार सीमा पर फेर बदल कर रही है। उनका तोपखाना पिछले तीन महीने मे तीन पर स्थानन्तरित हुआ है। लगभग ऐसा ही उनकी वायुसेना के द्वारा भी देखने को मिला है। उसको देखादेखी भारतीय फौज ने भी अपना तोपखाना और सेना की तैनाती को रणनीतिक तौर पर बदल दिया था। तीनों अंगों की इन्टेलीजेन्स का एक ही मत है कि हमारी सेना से संम्बधित गोपनीय सूचना आईएसआई तक किसी तरह पहुँच रही है। कुछ देर इस पर चर्चा करने के पश्चात, गोपीनाथ ने बताया कि आईबी की सूचना के आधार पर सीमा सुरक्षा बल के द्वारा नेपाल सीमा पर लगातार नजर रखी जा रही है। पता चला है कि पाकिस्तानी तंजीमो की घुसपैठ के लिये आईएसआई आजकल नेपाल मे काफी सक्रिय हो गयी है। इसी सिलसिले मे आईबी की ओर से दीपक शर्मा ने अपनी ओर से जोड़ते हुए बताया की बांग्लादेश सीमा से भी लगातार घुसपैठ जारी है क्योंकि बंगाल की राज्य सरकार राजनीतिक कारणों से अवैध घुसपैठ रोकने मे ढिलाई बरत रही है। अभी हाल मे ही मुर्शीदाबाद के धमाकों की जाँच के बाद यह शक पैदा हुआ है कि आतंकवादी वहाँ से भारत मे अवैध तरीके से घुसे थे। नेपाल और बांग्लादेश सीमाओं ने हमारे लिये एक नयी मुश्किल खड़ी कर दी है। वह मीटिंग दो घंटे चली थी और उस मीटिंग के समाप्त होते ही मै अजीत से मिलने के लिये चला गया था।     

मीटिंग मे हुई सारी बातचीत का ब्यौरा देने के पश्चात अजीत ने कहा… मेजर, आज शाम को सात बजे क्या कर रहे हो? …कुछ खास नहीं, बताईये क्या करना है? …एक न्युज मिडिया के मालिक दीपक सेठी अपने फार्म हाउस पर एक पार्टी दे रहा है। वह साधारण शब्दों मे एक सफेदपोश दलाल है। माओइस्टो और नक्सलवादियों के लिए पैसे और हथियारों का इंतजाम करता है। पिछली सरकार मे वह रक्षा सौदे व अफसरों की ट्रांस्फर और पोस्टिंग की दलाली मे भी लिप्त था। मै चाहता हूँ कि तुम उस पार्टी मे जाओ और उच्चवर्गीय सफेदपोश लोगो से मिल कर हालात को समझने की कोशिश करो। वहाँ पर बहुत से देश विरोधी गतिविधियों मे भाग लेने वाले लोग भी आयेंगें। ऐसी पार्टियाँ तुम्हारे लिये अच्छा मौका होंगी कि जब तुम कुछ सफेदपोश और संभ्रात नागरिकों को देश के दुश्मनों के रुप मे देखने का मौका मिलेगा। नीलोफर की लिस्ट मे दिये हुए कुछ नाम भी तुम्हें वहाँ देखने को मिल जाएँगें। उनकी भी निशानदेही कर लोगे तो आगे का काम आसान हो जाएगा। यह बोल कर उन्होंने एक कार्ड मेरी ओर बढ़ा दिया था। मै कुछ पूछना चाहता था परन्तु कुछ सोच कर चुप हो गया और वापिस अपने आफिस मे आकर शाम की पार्टी के बारे मे सोचने बैठ गया।

कार्ड पर दिये गये फार्म हाउस को ढूंढने मे कुछ समय लगा तो इसलिये मै थोड़ा देर से पहुँचा था। एक विशाल लान मे पार्टी का आयोजन किया गया था। वातावरण संगीतमय हो रखा था। हर उम्र के लोग लान मे बिखरे हुए थे। कुछ समूह मे खड़े हुए ड्रिंक्स करते हुए किसी चर्चा मे डूबे हुए थे और कुछ जोड़े बना कर बातचीत मे व्यस्त थे। जिस दिशा मे मेरी नजर गयी वहीं कुछ ऐसा ही माहौल दिख रहा था। वहाँ की भव्यता को देख कर मेरी चाल मे झिझक आ गयी थी। मै चुपचाप एक भीड़ मे जाकर खड़ा हो गया। उस भीड़ मे कुछ जाने पहचाने चेहरे दिखाई दे रहे थे। मैने उनको टीवी पर बहुत बार बकवास करते हुए देखा था। नारी शक्ति भी अपने हावभाव, पहनावे और बातों से आधुनिकता की चरम पर विद्यमान होती लग रही थी। सभी लोग ड्रिंक्स हाथ मे लिए राजनीतिक बातों मे उलझे हुए थे। कुछ लोग राजनीति मे आये हुए बदलाव पर बहस कर रहे थे और कुछ लोग अर्थव्यवस्था की हालत पर चर्चा कर रहे थे। एक नजर सब पर डाल कर मैने जाते हुए वेटर की ट्रे से एक ड्रिंक्स का ग्लास पकड़ा और धीमे कदमों से चलते हुए एक समूह के साथ खड़ा हो गया।

…यह सरकार ज्यादा कुछ नहीं कर सकेगी। तभी एक पाश्चात्य वेशभूषा मे अर्धनग्न नवयुवती धाराप्रवाह अंग्रेजी मे बोली… मै आज ही उनकी प्रेस कांफ्रेन्स मे गयी थी। निहायत ही बेवकूफ और रुढ़िवादी विचार वाले लोग सत्ता मे आ गये है। देश को पचास साल पीछे ले जाने की बात कर रहे थे। तभी एक अधेड़ सा दिखने वाला व्यक्ति बोला… यह सब संघी लोग ठहरे और इनसे क्या उम्मीद कर सकते है। प्रधानमंत्री आवास मे कल शाम को सरकार के सभी सचिवों को बुलाया गया था। वहाँ मै भी गया था। तीस साल की नौकरी मे आज तक मैने ऐसा प्रधानमंत्री नहीं देखा जो सबसे कह रहा था कि किसी राजनीतिक दबाव मे आने की जरुरत नहीं है। उस समूह मे मुझे दोपहर की मीटिंग मे शामिल होने वाले दो चेहरे भी दिख गये थे। वित्त सचिव सुब्रामनयम और वाणिज्य सचिव वागले हँसते हुए सभी से बात कर रहे थे। …निखिल इस आदमी को यहाँ का कुछ पता नहीं है इसीलिए वह ऐसा कर रहा है। कुछ ही दिनो मे इसे भी पता चल जाएगा कि हमारे बिना यहाँ पर पत्ता भी नहीं हिलता है। तभी एक बड़ी सी लाल बिंदी माथे पर लगाये अधेड़ सी औरत बोली… उस गंवार की सबसे बड़ी परेशानी विदेश नीति रहेगी। पाकिस्तान ने जिस तरह अपना अमरीका और युरोप की राजधानियों मे जाल फैलाया है तो मुझे लगता है कि वह उनसे कभी पार नहीं पा सकेगा। एक और स्त्री जो उसके साथ खड़ी हुई थी वह उसकी हाँ मे हाँ मिलाते हुए बोली… नये प्रधानमंत्री की सबसे बड़ी मुश्किल दुनिया भर के मुस्लिम देश होंगें। भले ही वह चुनाव जीत कर आ गया है परन्तु साउथ ब्लाक मे ज्यादा दिन टिक नहीं सकेगा। 

किसी अन्य समूह की तलाश मे मैने जैसे अपनी नजरें चारों ओर घुमाई तो अचानक मेरी नजर नीलोफर पर पड़ी जो एक अधेड़ से दिखने वाले व्यक्ति के साथ लान के किनारे पर बनी हुई इमारत की ओर जा रही थी। उस आदमी का हाथ चलते-चलते उसकी कमर से हठ कर उसके नितंब पर पहुँच गया था। नीलोफर को देख कर मुझे तेज बिजली का झटका सा लगा था। वह तो श्रीनगर से फरार हो गयी थी। आज नीलोफर अपने नये अवतार मे दिख रही थी। वह गहरे नीले रंग के पारदर्शी सी साड़ी ब्लाउज मे थी। ललाट पर एक लाल बिंदी, कानों मे झुमके और गले मे एक महंगा जगमगाता हुआ हार पड़ा हुआ था। यह वेषभूषा उच्चवर्गीय स्त्रियों के लिए सामान्य बात थी परन्तु उसका ब्लाउज आगे से इतना कटा हुआ था कि आधे से ज्यादा सीने की गोलाईयाँ बाहर झाँक रही थी। पीछे से भी उसकी पीठ लगभग नग्न दिख रही थी। यही नहीं उसकी साड़ी भी नाभि से नीचे बंधी हुई थी जिसके कारण चलते हुए उसके नितंब थिरकते हुए लग रहे थे। पाँव मे बड़ी फैशनेबल हील की सैंडल थी। नीले रंग मे उसका दूध सा गोरा रंग अलग से दमक रहा था। अगर यह कहता कि वह बिजलियाँ गिरा रही थी तो अतिश्योक्ति नहीं होती। उसका यह रुप मेरे लिए नया ही नहीं अपितु रहस्यमयी भी था। ब्रिगेडियर चीमा ने उसके लिये लुकआउट नोटिस जारी किया था परन्तु यहाँ इस भीड़ मे वह कितनी सहज दिख रही थी।

एक स्त्री की आवाज मेरे कान मे पड़ी… सेठी साहब कश्मीरी सुन्दरियों के बेहद रसिक है। मैने मुड़ कर साथ खड़ी हुई स्त्री की ओर देखा तो वह मुस्कुरा कर मेरी ओर देखते हुए बोली… हैलो। …हैलो, माफ कीजिए मैने आपको पहचाना नहीं। अपनी असहजता पर काबू करने के लिए मैने अपने ग्लास से एक घूँट भरा और जल्दी से कहा… मेरा नाम समीर बट है। …मै मिसेज सेठी। आपको अकेले यहाँ खड़ा देख कर कंपनी देने के लिये आ गयी थी। आप उसको जानते है? …कौन? …जिसको आप देख रहे थे। सौम्या कौल हमारे पार्टी सर्किट की जान है। अबकी बार मैने बड़ी बेशर्मी के साथ कहा… मेरे लिये तो इस पार्टी की जान आप है मिसेज सेठी। वह झेंप कर बोली… प्लीज, मुझे मोनिका कहिये। आप क्या हमारी पार्टी मे पहली बार आये है? अब तक मै सहज हो चुका था। …मोनिका इस कायनात मे बिना खुदा की मर्जी के एक पत्ता भी नहीं हिल सकता तो मेरा मानना है कि तुमसे मुलाकात करनी थी तो मै आज यहाँ आ गया। वह खिलखिला कर हँसते हुए बोली… समीर, आप बेहद दिलचस्प इंसान है। मैने जेब से अपना मोबाईल निकाल कर पूछा… मोनिका तुम्हारा नम्बर क्या है? एक पल के लिए वह झिझकी और फिर अपना नम्बर बता कर बोली… बस दोस्ती से आगे कुछ नहीं। कुछ क्षण मोनिका को देखता रहा और फिर मैने मुस्कुरा कर कहा… मै कोई वादा नहीं कर सकता परन्तु मोनिका जब तुम फोन करोगी तभी हमारी बात होगी। मै फोन नहीं करुँगा। इतना बोल कर मैने एक मिस काल उसके नम्बर पर देकर बाहर की ओर चल दिया था। बाहर निकलते हुए मैने सोच लिया था कि नीलोफर तक पहुँचने के लिये मुझे मोनिका को शीशे मे उतारना पड़ेगा।

बाहर निकल कर एक बार मन मे विचार आया कि ब्रिगेडियर चीमा को नीलोफर की खबर कर दूँ परन्तु फिर कुछ सोच कर मै अपनी जीप मे जाकर बैठ गया था। दो घन्टे तक मै फार्म हाउस के बाहर जीप मे बैठा रहा था। मै नीलोफर का इंतजार कर रहा था। बहुत से लोग जा चुके थे। मेरी नजर मुख्य द्वार पर टिकी हुई थी। नीलोफर अभी भी अन्दर थी। थोड़ी देर बाद वह किसी आदमी की बाँहों मे झूलती हुई बाहर निकली और उसकी कार मे बैठ कर चल दी थी। मैने भी अपनी जीप उनके पीछे लगा दी। वह कार आधी दिल्ली घुमा कर सरकारी उच्च अधिकारियों की कोलोनी मे प्रवेश कर गयी थी। कुछ दूर जाकर वह कार एक विशालकाय सरकारी बंगले मे चली गयी थी। उस बंगले के बाहर सेना के गार्ड्स पहरा दे रहे थे। मैने अपनी जीप उस बंगले के गेट के सामने धीमी करके गेट पर लगी हुई नेमप्लेट को पढ़ते हुए आगे निकल गया था। बी चन्द्रमोहन, मै इस नाम से परिचित था। वह रक्षा मंत्रालय मे अतिरिक्त रक्षा सचिव के पद पर काम करता था। नीलोफर को उसके साथ देख कर अब मेरे दिमाग मे खतरे की घंटी लगातार बज रही थी।


काठमांडू

पाकिस्तान दूतावास मे नियुक्त राजदूत फोन पर किसी से बात करने के बाद सामने बैठे हुए व्यक्ति से बोला… जनाब, जनरल साहब का आदेश है कि आपको दूतावास से बाहर रह कर काम करना होगा। आपकी सभी जरुरत को पूरा करना हमारी जिम्मेदारी है परन्तु आपसे हमारे दूतावास का कोई परोक्ष रुप से संबन्ध नहीं होगा। उन्होंने साफ हिदायत दी है कि जल्दी ही वह किसी को यहाँ नियुक्त करने वाले है जो आपके संपर्क मे रहेगा। …मिर्जा साहब, आपको जो कहा गया वह काम किजिये। जनरल बाजवा ने मुझे जो निर्देश दिये है उसका आपसे कोई संबन्ध नहीं है। फिलहाल मै आपके पास सिर्फ यह कहने के लिये आया था कि मुझे अगर इस दूतावास मे किसी से संपर्क स्थापित करना है तो वह कौन है। राजदूत मिर्जा ने त्यौरियाँ चड़ाते हुए पूछा… तुम हो कौन जो मुझे आदेश देने की हिमाकत कर रहे हो? वह कुर्सी से उठते हुए बोला… मिर्जा अपना सामान बाँध लो क्योंकि कल तक तुम्हारा स्थानांतरण हो जाएगा। मेरे बारे मे जानने की कोशिश करोगे तो अपनी कब्र खुद खोदने का इंतजाम करोगे। एकाएक राजदूत मिर्जा नरम पड़ते हुए बोला… मियाँ साहब, आप नाहक ही बुरा मान रहे है। जनरल साहब का आदेश है कि आपको सभी प्रकार की सुविधा प्रदान करनी है। मै इसके लिये मना नहीं कर रहा परन्तु मेरे लिये यह जानना जरुरी है कि आपको हमसे किस प्रकार की सुविधा चाहिये। …बस वीसा की सुविधा चाहिये। राजदूत मिर्जा ने जल्दी से कहा… यही तो मै जानना चाहता था। इस काम के लिये आप एजाज हुसैन से सीधे संपर्क कर लिया किजीए। मै उसको निर्देश दे दूंगा। …उसका फोन नम्बर? राजदूत मिर्जा ने जल्दी से कागज पर उसका नम्बर लिख कर उस व्यक्ति की बढ़ाते हुए कहा… आप हमारी मुश्किल समझने की कोशिश किजीए। उस आदमी ने एक नजर कागज पर लिखे हुए नम्बर पर डाली और बिना कुछ कहे कमरे से बाहर निकल गया था।

राजदूत मिर्जा अपनी कुर्सी पर बैठते हुए इन्टरकाम पर बोले… शबाना, एजाज को मेरे आफिस मे भेजना। …एक्सीलैन्सी, आपके लिये इस्लामाबाद से फैक्स आया है। …लाकर मुझे दिखाओ। …जी जनाब। राजदूत मिर्जा भद्दी सी गाली देकर बोला… इन वर्दीधारियों ने मेरा जीना हराम कर दिया है। तभी दरवाजे पर दस्तक देकर एक नाजनीन ने कमरे मे प्रवेश किया और फैक्स राजदूत मिर्जा की ओर बड़ाते हुए बोली… एक्सीलैन्सी, कल आईएसआई के ब्रिगेडियर शुजाल बेग दूतावास मे रक्षा सचिव का  पदभार संभालने के लिये काठमांडू पहुँच रहे है। राजदूत मिर्जा ने अपनी खीज मिटाते हुए शबाना पर चिल्लाया… अभी तक पिछले आईएसआई के अफसर की करतूतों को हमारा दूतावास भुगत रहा है और अब यह एक नयी मुसीबत खड़ी हो गयी है। न जाने यह दोनो अब यहाँ क्या गुल खिलायेंगे? एक पल रुक कर राजदूत मिर्जा ने पूछा… एजाज को खबर कर दी थी? …जी जनाब। बस इतना बोल कर शबाना कमरे से बाहर निकल गयी थी। राजदूत मिर्जा अपना सिर पकड़ कर बैठ गया था।


 

🍁"रिद्धि दे, सिद्धि दे, वंश में वृद्धि दे, ह्रदय में ज्ञान दे, चित्त में ध्यान दे, अभय वरदान दे, दुःख को दूर कर, सुख भरपूर कर, आशा को संपूर्ण कर, सज्जन जो हित दे, कुटुंब में प्रीत दे, जग में जीत दे, माया दे, साया दे, और निरोगी काया देमान-सम्मान दे, सुख समृद्धि और ज्ञान दे, शान्ति दे, शक्ति दे, भक्ति भरपूर दें..."🍁

 🍁आप सभी को २२ मार्च  से शुरू होने वाले  चैत्र मास के नव वर्ष विक्रम संवत २०८० के लिए मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएँ। 🙏


'काफ़िर' की दूसरी कड़ी 'गहरी चाल' का पहला अपडेट आज के इस शुभ दिन से आरंभ करने का मैने निर्णय लिया था। इस देरी के लिये आपका क्षमाप्रार्थी हूँ आज ही मेरी कृति 'गहरी चाल' की प्रस्तावना आपके सम्मुख रखूँगा। मुझे आशा है कि आप सभी मेरे साथ पहले की तरह जुड़े रह कर मेरा मनोबल बढ़ाएँगें।

आपका शुभेच्छु 

वीर