रविवार, 24 सितंबर 2023

  

गहरी चाल-27

 

अजीत सर ने मेरी ओर देखते हुए पूछा… समीर, क्या हुआ? मैने गरदन हिलाते हुए कहा… सर, आज सुबह एयरपोर्ट पर मैने नेपाली न्युज मे इस खबर को देखा था। मुझे जिसका डर था वह सच साबित हो गया है। एक बात मुझे समझ मे नहीं आयी है कि पाकिस्तानी दूतावास ने इतनी जल्दी हत्या का कैसे पता चल गया और उन्होंने लाश की शिनाख्त कैसे कर दी? मै यकीन से कह सकता हूँ कि शुजाल बेग के शरीर पर ऐसी कोई चीज नहीं थी जिससे उसके पाकिस्तानी होने की बात का पता चल सके तो फिर नेपाल पुलिस उस हत्या की तफ्तीश करते हुए पाकिस्तानी दूतावास के पास कैसे पहुँच गयी? जब यह बात सोचता हूँ तो मुझे एक कवर-अप आप्रेशन लगता है। शुजाल बेग का कहना था कि यहाँ से आगे का रास्ता उसे खुद तैयार करना होगा। क्या शुजाल बेग ने इस तरह अपना आगे का रास्ता बनाया है? इन सब सवालों के जवाब तो वहीं जाकर मिल सकते है। मेरी बात सुन कर दोनो गहरी सोच मे डूब गये थे।

तभी वीके ने कमरे मे प्रवेश करते हुए कहा… अभी मुझे गोपीनाथ ने सुचित किया है कि उस भारतीय सेवानिवृत नेवल कमांडर का इरान के बार्डर से तालिबान ने अपहरण किया था। उसके बाद अफगानिस्तान मे उसे आईएसआई के लोगों के हवाले किया है। अजीत का ख्याल सही है कि शुजाल बेग के अपहरण की खबर सुन कर आईएसआई ने अपनी इज्जत बचाने के लिये यह ड्रामा रचा है। वह सोच रहे थे कि हम शुजाल बेग की घोषणा करेंगें इसीलिये बिना सोचे समझे हमसे बाजी मारने की कोशिश मे उन्होंने इसकी घोषणा कर दी है। जब शुजाल बेग उनके सामने आ जायेगा तब उनके पास कोई विकल्प नहीं बचेगा। अब वह इस कहानी को सालों तक खींचते रहेंगें। …वीके, अभी नेपाल से खबर मिली है कि शुजाल बेग की हत्या हो गयी है। वीके के सिर पर हाथ मारते हुए कहा…ओह नो। उसकी मौत से अब एक और नयी मुसीबत खड़ी हो जायेगी। पाकिस्तान हम पर इल्जाम लगायेगा कि हमने उसकी हत्या करवायी है। अजीत सर ने कहा… वीके उसकी लाश शाही मस्जिद से बरामद हुई है। यह काम करने की स्थिति मे कम से कम हम तो नहीं हो सकते है। …उसकी हत्या किसने की होगी? अबकी बार मैने कहा… सर, आईएसआई ने किसी तंजीम के द्वारा उसकी हत्या करवायी है। यह भी हो सकता है कि उसकी हत्या फारुख ने करवायी होगी।

अभी हम इस बात पर चर्चा कर रहे थे कि अचानक अजीत सर ने कहा… मेजर, तुम्हारा इस वक्त काठमांडू मे होना जरुरी है। हम यहाँ पर आप्रेशन खंजर की जानकारी के साथ एक बार फिर से एजाज मूसा और उसके साथियों से पूछताछ करते है। तुम तब तक काठमांडू मे शुजाल बेग की हत्या के बारे मे पता लगाने की कोशिश करो। शुजाल बेग की हत्या के बाद अब हमारा मुख्य ध्येय उस तंजीम का पता करना है जो हमारे तेल के संसाधनो पर हमला करने की तैयारी कर रही है। जनरल रंधावा ने तुरन्त कहा… अजीत सबसे पहले तुम्हें राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की मीटिंग बुला कर आप्रेशन खंजर की जानकारी सभी को दे देनी चाहिये। इस मीटिंग मे तीनो सेनाध्यक्षों को भी बुलाना चाहिये क्योंकि इसमे नौसेना का रोल बेहद महत्वपूर्ण होगा। वीके ने बीच मे टोकते हुए कहा… अजीत, राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की मीटिंग बुलाने से पहले तुमको आप्रेशन खंजर के बारे मे एक बार प्रधानमंत्रीजी से बात कर लेना चाहिये। दोनो ने अपना सिर हिला दिया था। हमने कुछ देर और बात की और फिर अपने कमरों की ओर चल दिये थे।

मैने अपना फोन निकाल कर आन किया और एक नजर अपनी घड़ी पर मारकर आफिस के बाहर निकल आया था। मुझे आज ही वापिस काठमांडू लौटना था। कुछ सोच कर जीप मे बैठते ही थापा को नौसेना भवन चलने के लिये कह कर अपनी पीठ पीछे टिका कर बैठ गया था। दस मिनट के बाद मै नौसेना भवन मे दाखिल हो गया था। आफशाँ बट और डेल्टा सोफ्टवेयर के आफिस को ढूंढते हुए मै एक बड़े से हाल मे पहुँच गया था। हाल के आखिरी सिरे पर बने हुए कमरे के दरवाजे पर आफशाँ बट नाम देख कर मै उसकी ओर बढ़ गया। मैने धीरे से दरवाजा खोल कर अन्दर झाँका तो आफशाँ किसी से फोन पर बात कर रही थी। मेरी शक्ल देख कर उसने फोन पर बात करते हुए मुझे अन्दर आकर बैठने का इशारा किया और वह फोन पर बात करने लगी थी।

मै उसके सामने जाकर बैठ गया। आफशाँ किसी से फोन पर बात करते हुए कह रही थी… सुधा तुमने डेटा की कोडिंग के लिये भुज के एयरपोर्ट के कोडिंग रेफ्रेंस मांगे थे। उधर से जवाब सुनने के बाद वह बोली… हाँ वही, मुझे एक प्रोग्राम मे उस जगह के ग्रिड रेफ्रेन्स डालने है। क्या तुम मुझे वह दे सकती हो? दूसरी ओर से किसी ने जो बताया उसने तुरन्त कागज पर जल्दी से लिखना आरंभ कर दिया था। मेरी नजर उसके पेड पर जमी हुई थी। उसने सात अंको के दो नम्बर जल्दी से कागज पर लिख कर फोन काट कर बोली… आज तुम यहाँ कैसे? …मै आज ही सुबह लौटा था। आफिस पहुँचते ही पता चला कि हमारी चौकी पर एक आदमी की हत्या हो गयी है। मुझे तुरन्त वापिस लौटने को कहा है। मै उस ओर निकल रहा था लेकिन रास्ते मे तुम्हारा आफिस देख कर मैने सोचा कि फोन के बजाय तुमसे मिल कर निकल जाता हूँ। …कब तक तुम्हारी वापिसी होगी? …आफशाँ पता नहीं। इस बार लगभग दस दिन लग जाएँगें। उसका चेहरा उतर गया था। …मेनका का स्कूल खुलने वाला है। तुम यहाँ होते तो कितना अच्छा होता। …अबकी बार लौटते ही मै कुछ दिन की छुट्टियाँ ले कर घर पर रह कर आराम करना चाहता हूँ। अच्छा चलता हूँ। यह कहते हुए मै उठ कर खड़ा हो गया था। वह तेजी से मेरी ओर आयी और मुझसे लिपट कर बोली… अब हम दोनो को तुम्हारी आदत पड़ गयी है। मैने उसे अपनी बाँहों मे जकड़ कर कहा… मै भी तुम दोनो को मिस करुँगा। मै अभी कुछ बोलना चाहता था कि उसके आफिस का दरवाजा खुला और किसी लड़की ने अंदर झाँका और फिर जल्दी से सौरी बोल कर चली गयी थी। …अब तुम्हारे आफिस मे खुसर-पुसर शुरु हो जाएगी। वह मुस्कुरा कर बोली… सब मेनका को जानती है। चलो मै तुम्हें बाहर तक छोड़ देती हूँ। हम दोनो बाहर निकले तो वह लड़की बाहर खड़ी हुई थी। आफशाँ ने कहा… सोफिया, यह मेरे हस्बैंड मेजर समीर बट है। मेरी मेज पर एक पैड रखा हुआ है। उस पर वह ग्रिड रेफ्रेन्स लिखे हुए है। सोफिया ने मुस्कुरा कर मेरा अभिवादन किया और फिर तेजी से आफशाँ के कमरे की ओर बढ़ गयी थी। हम दोनो जीप की ओर चल दिये थे।

मै एयरपोर्ट की ओर जा रहा था लेकिन मेरा दिमाग कुछ चंद मिनटों की अनायस बातचीत सुन कर उलझ कर रह गया था। ग्रिड रेफ्रेन्स सिस्टम की गोपनीयता हमारे लिये सर्वोपरि थी और इनके लिये महज एक जानकारी जिसे वह बड़े आराम से एक दूसरे के साथ बाँट रहे थे। आफशाँ की बातचीत से साफ था कि उसने भी किसी अन्य कंपनी के व्यक्ति से भुज एयरपोर्ट की जानकारी जुटा कर अपने साथी को मुहैया करा दी थी। ऐसे मे पता नहीं वलीउल्लाह कहीं बैठ कर ऐसी जानकारी किसी से लेकर लेकर आईएसआई को दे रहा था। अब वलीउल्लाह की पहचान करना और भी ज्यादा मुश्किल हो गया था। दिल्ली से काठमांडू के सफर मे मेरा दिमाग इसी मे उलझा रहा था। जब काठमांडू पर उतरने की घोषणा हुई तब कहीं जाकर इस मसले को मै अपने दिमाग से निकाल पाया था।

तबस्सुम मुझे एयरपोर्ट पर लेने आयी हुई थी। दिल्ली एयरपोर्ट से मैने उससे बात की थी। उसे भी पता चल गया था कि शुजाल बेग की हत्या हो गयी है। हम दोनो पार्किंग की ओर चले गये थे। …तुम चलाओ… कह कर मै उसके साथ जाकर बैठ गया था। इसुजु को पार्किंग से निकाल कर मुख्य सड़क पर आते ही वह बोली… जेनब और नफीसा आपसे बात करना चाहती थी। मैने उन्हें बता दिया था कि आप आज सुबह की फ्लाईट से दिल्ली जा चुके है। आपको क्या लगता है कि ब्रिगेडियर साहब की हत्या किसने की होगी? …अभी कुछ भी कहना मुश्किल है। यही बात करते हुए हम घर पहुँच गये थे। …तुम यहीं उतर जाओ। मै गोदाम से होकर आ रहा हूँ। …अब रात हो गयी है। कल सुबह चले जाईयेगा। …नहीं। यादव मेरा इंतजार कर रहा है। मै जल्दी वापिस आ जाउँगा। वह गाड़ी से नीचे उतर कर अन्दर चली गयी और मै गोदाम की ओर चल दिया था।

कैप्टेन यादव अपनी युनिट के साथ हाल मे मेरा इंतजार कर रहा था। आज के लिये लोडिंग और अनलोडिंग का काम समाप्त हो चुका था। सारा गोदाम सुनसान पड़ा हुआ था। मै सीधा हाल मे चला गया। मैने पहुँचते ही कहा… अब तक आपको पता चल गया होगा कि शुजाल बेग की हत्या हो गयी है। थापा को निकाल कर आपकी युनिट के तेइस लोग यहाँ पर है। कैप्टेन यादव आप तीन आदमी की चार स्काउट टीम कल सुबह तक बनाईये। हर टीम मे दो आदमी और एक उस टीम की परछाँई होगी। एक टीम उस लाश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट और पुलिस की रिपोर्ट निकालने पर लग जाएगी। एक टीम शाही मस्जिद पर नजर रखेगी। एक टीम बालाजु मे एजाज कंस्ट्रकशन्स यार्ड पर नजर रखेगी। एक टीम यहाँ पर स्टेंड बाय टीम का काम संभालेगी। खतरे को भाँपते ही जो भी परछाँई की तरह काम कर रहा होगा वह पहले स्टेंड बाय टीम का सूचना देकर अपने साथियों की मदद के लिये जाएगा। सभी अपने-अपने फोन का जीपीएस एक्टीवेट कर लेना। सभी टीमों का उद्देश्य शुजाल बेग से जुड़ी हुई जानकारी को एकत्रित करना और कोई भी ऐसा आदमी जिस पर जिहादी होने का शक हो उसकी निशानदेही करने की जिम्मेदारी होगी। बचे हुए ग्यारह लोग कल गोदाम का काम संभालेंगें। इतना बोल कर मै चुप हो गया था।

एक बार मैने फिर से बोलना आरंभ किया… कैप्टेन यादव, मुझे फरहान का फोन चाहिये और नूर मोहम्मद के साथियों के फोन से सारा डम्प किया डेटा भी दे दो। सज्जाद अफगानी और उसके साथियों के सारे फोन और नाईट कल्ब से जब्त किये फोन जो हमने अभी तक इकठ्ठे किये है वह सभी मुझे चाहिये। कश्मीर मे सेना ने एक साफ्टवेयर तैयार किया था जिसके द्वारा फोन की कोन्टेक्ट लिस्ट और वाह्ट्स एप के ग्रुप के सदस्यों के फोन नम्बरों का मिलान करके कुछ मुख्य लोगों की निशानदेही हो सकती है। कल रात को आठ बजे हम यहीं पर सब मिलेंगें और जो कुछ भी देखा होगा उस पर चर्चा करके अगले दिन का कार्यक्रम तैयार करेंगें। इतना बता कर मै चुप हो गया था। …सर, क्या अपने हथियार लेकर जा सकते है? …सिर्फ पिस्तौल रख सकते हो लेकिन सिर्फ स्काउट टीम बन कर जा रहे हो तो ‘नो एन्गेजमेन्ट’। यह निर्देश परछाँई पर लागू नहीं होगा क्योंकि स्काउट टीम की सुरक्षा का भार उस पर है। …किसी को कोई शक है तो पूछ सकता है। किसी ने कुछ नहीं पूछा और कैप्टेन यादव टेलीफोन और डेटा उठाने के लिये चला गया था। मैने कुशाल सिंह से कहा… तुम्हारा काम कल नूर मोहम्मद के फोन पर नजर रखने का है। जैसे ही शुजाल बेग के बारे मे कोई बात सुनो तो फौरन मुझे खबर कर देना। तब तक कैप्टेन यादव ने एक थैला मेरी ओर बढ़ा दिया था। मैने वह थैला उठाया और उनसे विदा लेते हुए कहा… कैप्टेन कल आप यहाँ से सारी टीमो का संचालन करेंगें। अच्छा मै चलता हूँ आप लोग बैठ कर अपनी टीम तैयार किजिये। यह बात करके मै वापिस घर की ओर चल दिया था।

खाना समाप्त करके हाल मे ड्युटी पर बैठे हुए अपने साथी को सारे फोन देकर कर कहा… सारे फोन चार्जिंग पर लगा दो। पूरा चार्ज करने की जरुरत नहीं है। मैने आते हुए कुछ युनीवर्सल चार्जर खरीद लिये थे वह उसको देते हुए कहा… बस इतना चार्ज हो जाए कि कुछ देर काम करने  लायक हो जाये। उसके जिम्मे यह काम डाल कर मै अपने कमरे मे चला गया था। तबस्सुम जाग रही थी। उसके साथ लेटते हुए मैने कहा… तुम सोई नहीं? …आपकी राह देख रही थी। अपना सिर मेरे सीने पर रख कर बोली… मै एक बार जेनब और नफीसा से मिलना चाहती हूँ।  मैने उसे समझाते हुए कहा… तुम्हें यह सब भूलना होगा क्योंकि मामला अब काफी संवेदनशील हो गया है। अगर वह चाहेंगी तो वह खुद तुमसे मिलने आ जाएँगी लेकिन तब तक तुम्हें उनको अपने दिमाग से निकालना होगा। वह चुप हो गयी थी परन्तु मै जानता था कि उसके दिमाग मे कुछ चल रहा था। मैने उसके बालों को सहलाते हुए कहा… इस हालत मे तुम्हें अपना ख्याल रखने की जरुरत है। वह अचानक बोली… पता नहीं मुझे क्यों लगता है कि यह सब झूठ बोल रहे है। ब्रिगेडियर साहब को कुछ नहीं हुआ है। मैने चौंक कर उसकी ओर देखा तो वह मेरे सीने मे मुँह छिपाये लेटी हुई थी। मेरी थकान मुझ पर हावी हो रही थी और मुझे पता ही नहीं चला कि कब मै सब कुछ भुला कर सो गया था।

मेरा दिन जल्दी आरंभ हो गया था। तबस्सुम सो रही थी जब तक मै तैयार होकर हाल की ओर निकल गया था। मैने सबसे पहले जनरल रंधावा से बात की थी। मैने उनसे कहा था कि मुझे उस सेना के साफ्टवेयर से जुड़ना है जो जिहादियों के फोन से नम्बर निकाल कर क्रास रेफ्रेम्सिंग करके मुख्य लोगों की निशानदेही करता है। जनरल रंधावा ने जनरल नायर से बात करके मेरी बात 15वीं कोर के डेटा सेन्टर मे करा दी थी। वहाँ से पता चला कि वह साफ्टवेयर से मुझको नहीं जोड़ सकते लेकिन अगर फोन का डेटा उनको दे दिया गया तो वह अपने डेटा सेन्टर मे क्रास रेफ्रेन्सिंग का काम करके उसका परिणाम मुझे दे सकते है। इसके लिये उन्होंने मुझसे कहा कि हर फोन के नम्बर के हिसाब से डेटा सेट अलग से देना पड़ेगा। मेरी सारी सुबह हर फोन के नम्बर निकालने मे निकल गयी थी। कमांड सेन्टर ने हर फोन की मिरर इमेज बना कर सारा डेटा सेट तैयार किया और फिर उसे श्रीनगर स्थित डेटा सेन्टर को देना आरंभ कर दिया था। बारह बजे तक सारे फोन का डेटा श्रीनगर के डेटा सेन्टर को दे दिया गया था। यह काम समाप्त करके ही मै कुछ खाने के लिये नीचे उतरा था। शाम को चार बजे उस क्रास रेफ्रेन्सिंग का परिणाम प्राप्त हुआ था। चालीस नम्बर मुख्य रुप से क्रास रेफ्रेन्सिंग द्वारा निकाले गये थे।

इसका मतलब यह था कि अभी तक जितने भी आईएसआई, हरकत उल अंसार के जिहादियों और अन्य उनसे जुड़े हुए लोगों की कोन्टेक्ट लिस्ट और व्हाट्स ऐप ग्रुप्स मे सर्वाधिक लोगों के पास यह चालीस नम्बर मिले थे। मैने उन चालीस मे से एक-एक नम्बर को ध्यान से देखना आरंभ कर दिया था। दो नम्बर तो देखते ही मै पहचान गया क्योंकि एक नूर मोहम्मद नम्बर था और दूसरा शुजाल बेग का नम्बर था। फरहान का भी नम्बर उस लिस्ट मे था। मै उन पर निशान लगा कर बाकी के बारे कोई रणनीति बनाने मे लग गया था। कुछ नम्बर देखने से ही पता चल गये थे कि वह नम्बर भारत के है। बाइस नम्बर नेपाल के थे जिनमे ज्यादातर नम्बर एनटीसी और कुछ यूटीएल के थे। कुछ नम्बर पाकिस्तान के थे। कुछ समय लगा कर मैने सभी नम्बर की अलग-अलग लिस्ट तैयार कर ली थी।

मैने जनरल रंधावा से बात करने के लिये कमांड सेन्टर से कहा तो अगले ही पल जनरल रंधावा का चेहरा स्क्रीन पर उभर आया था। मैने भारत की लिस्ट देते हुए कहा… सर, यह सारे नम्बरों के जिन लोगों के नाम पर है  उन सभी का विवरण चाहिये। पाकिस्तान के नम्बरों कि एक और अलग से लिस्ट दे रहा हूँ उनके बारे मे भी मुझे जानकारी चाहिये। जनरल रंधावा ने दोनो लिस्ट देख कर पूछा… यह क्रास रेफ्रेन्सिंग के द्वारा नम्बर मिले है? …जी सर। वह चालीस नम्बरों की लिस्ट आपके पास भी है। सर क्या इन सभी नम्बरों को हम कश्मीर के डेटाबेस के साथ भी चेक कर सकते है? …हाँ, परन्तु इसका का उद्देश्य क्या है? …सर, फिलहाल तो मै अंधेरे मे हाथ पाँव मार रहा हूँ। मुझे एक सिरे की तलाश है जो मुझे वलीउल्लाह या मेजर हया या आप्रेशन खंजर की प्रमुख तंजीम के समीप ला कर खड़ा कर दे। …ओके मेजर। कुछ शुजाल बेग के मामले मे पता चला? …आज शाम को कुछ पता चलेगा। आपको रात को सुचित करुँगा। हमारी बातचीत का अंत हो गया था।

अगला कनेक्शन मैने अजीत सर का मांगा था लेकिन वह अभी बात करने की स्थिति मे नहीं थे। मैने वीके को कनेक्ट करने के लिये कहा तो उनसे तुरन्त बात हो गयी थी। …बोलिए मेजर? …सर, ग्रिड रेफ्रेन्स की जाँच मे एक ऐसी बात सामने आयी है कि उसके बारे मे आपको बताना जरुरी हो गया है। साफ्टवेयर इंडस्ट्री मे काम करने वाले लोगों के बीच मे अप्रत्यक्ष गठजोड़ रहता है। उदाहरण के तौर पर एक साफ्टवेयर कंपनी जो वायुसेना के लिये काम कर रही है वह भुज के एयरपोर्ट के ग्रिड रेफ्रेंस के लिये औपचारिक तौर पर जनरल मोहंती के सामने अपनी मांग रखती है। जनरल मोहंती उस कंपनी की जरुरत अनुसार उसको एयरपोर्ट के ग्रिड रेफ्रेन्स दे देते है। अब कोई दूसरी साफ्टवेयर की कंपनी जो नौसेना के लिये काम कर रही है उसमे काम करने वाला व्यक्ति अगर चाहे तो वायुसेना के लिये काम करने वाली साफ्टवेयर कंपनी मे कार्यरत अपने दोस्त से एयरपोर्ट के ग्रिड रेफ्रेन्स मांग सकता है। इसी प्रकार उस एयरपोर्ट के ग्रिड रेफ्रेन्स न जाने और कितने लोगो के पास इस तरह पहुँच जाते है। इसी प्रकार वह एक दूसरे की मदद के बहाने हमारी गोपनीय जानकारी हर किसी के पास पहुँच जाती है। अब मै इसी नतीजे पर पहुँचा हूँ कि उन हजारों साफ्टवेयर इंजीनियर्स मे वलीउल्लाह कोई भी हो सकता है बस उसे इतना पता होना चाहिये कि उस जानकारी से संबन्धित कौनसी साफ्टवेयर एजेन्सी काम कर रही है और उस कंपनी मे उसका कौनसा दोस्त काम कर रहा है। मेरे सामने भुज एयरपोर्ट का किस्सा आया था। एक इन्जीनियर ने दूसरी कंपनी मे बैठे हुए अपने दोस्त से बड़ी आसानी वह जानकारी लेकर अपने किसी साथी को मेरे सामने ही दे दिया था। मुझे नहीं लगता कि तीनों को उस जानकारी के महत्व और गोपनीयता के बारे कुछ पता होगा। वीके चुपचाप मेरी बात सुन रहे थे। उन्होंने कुछ सोचेने के बाद कहा… मेजर, मै इसके बारे मे पता करता हूँ। अगर तुम्हारी बात सच है तो यह हमारे पूरे सूचना तंत्र की कमजोरी है और हमे तुरन्त इस प्रकार की कमजोरी को अपने सूचना तंत्र से दूर करना पड़ेगा। हमारी बात समाप्त हो गयी थी। मेरा काम यहाँ पर समाप्त हो गया था।

एनटीसी की लिस्ट मैने बिस्ट के लिये अपनी जेब मे रख कर हाल से बाहर निकल कर गोदाम की दिशा मे निकल गया था। गोदाम मे ट्रक पर माल लादा जा रहा था। स्टैन्ड बाय युनिट हाल मे बैठी हुई थी। कैप्टेन यादव अपने आफिस मे बैठा हुआ था। मुझे हाल की दिशा मे जाते हुए देख कर वह भी पीछे-पीछे आ गया था। उसको देखते ही मैने पूछा… स्काउट टीम्स अभी तक वापिस लौट कर नहीं आयी है? …सर, पुलिस और पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स लाने वाली टीम आ चुकी है। बाकी दोनो टीमे भी सात बजे तक आ जाएगी। कैप्टेन यादव और मै बात करते हुए संपर्क केन्द्र मे चले गये थे। ड्युटी पर तैनात सैनिक से मैने पूछा… नूर मोहम्मद के फोन का क्या हाल है? …सर, आज सुबह से न तो उस पर कोई काल आयी है और न ही कोई काल की गयी है। मुझे ऐसी उम्मीद नहीं थी। हम हाल मे जाकर बैठ गये थे। सात बजे तक सभी लोग वापिस लौट आये थे। कुछ ही देर मे सब हाल मे इकठ्ठे हो गये थे।

…लेफ्टीनेन्ट सावरकर, क्या रिपोर्ट है? …सर, शाही मस्जिद के इमाम मौलवी कादरी ने उस लावारिश लाश की खबर सुबह आठ बजे स्थानीय थाने को दी थी। पुलिस रिपोर्ट मे कादरी ने लिखवाया था कि मस्जिद के कारिन्दे ने लाश की खबर दी थी। पुलिस की जाँच मे पता चला कि सुबह चार बजे फज्र की नमाज के समय पर वह लाश वहाँ पर नहीं थी। बाद मे कारिन्दे ने अपने बयान मे लिखवाया है कि सुबह छ्ह बजे जब वह सफाई के लिये मस्जिद मे गया था तब उसने वह लाश देखी थी। पुलिस का मानना है कि उस आदमी की हत्या कहीं और हुई थी और मस्जिद खुलने के बाद 4-6 बजे के बीच मृतक को वहाँ डाला गया था। पुलिस उस लाश की शिनाख्त नहीं कर पा रही थी क्योंकि उसका चेहरा पूरी तरह से क्षत-विक्षत था। पाकिस्तान दूतावास का सेकन्ड सेक्रेटरी अपने मिलिट्री अटाचे ब्रिगेडियर शुजाल बेग की गुमशुदगी की रिपोर्ट करने थाने पर आया था। इत्तेफक से उसे जब वह लाश दिखायी गयी तो उसने उस लाश की तुरन्त शिनाख्त कर दी थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट मे मरने की वजह सिर पर चोट बतायी गयी और मरने का समय रात के 12-4 के बीच का बताया गया है। सावरकर इतना बता कर चुप हो गया था। तभी उसके साथ गया सैनिक खड़ा होकर बोला… साहबजी, थाने के सभी लोग इसको पाकिस्तानी दूतावास का रचा हुआ एक ड्रामा बता रहे थे। उन सब का मानना है कि वह आदमी दूतावास मे रची हुई किसी साजिश का शिकार हुआ होगा जिसे बाद मे दूतावास ने मौलाना कादरी के साथ मिल कर उसकी लाश को मस्जिद मे फिकवा दिया होगा।। यह बोल कर वह बैठ गया था।

दूसरी टीम से एक्स्प्लोसिव एक्स्पर्ट जमीर ने बताया कि मौलाना कादरी दोपहर को मस्जिद मे अपने लश्कर के साथ आया था। उनसे मिलने आये व्यक्तियों मे एक वर्तमान सरकार का मंत्री और कुछ पाकिस्तान दूतावास के लोग भी थे। मैने बीच मे टोकते हुए पूछा… क्या नूर मोहम्मद भी आया था? …नहीं सर। दूतावास के कुछ दूसरे अधिकारी आये थे। सर, आम दिनों मे मौलाना कादरी सबसे मिल कर पाँच बजे अपने घर चला जाता है परन्तु आज वह वहीं पर अभी तक रुका हुआ था। जब हम वहाँ से चले थे वह तब भी मस्जिद मे बैठा हुआ था। उसके सुरक्षाकर्मी बाहर बैठ कर उसके निकलने का इंतजार कर रहे थे। हमे दो लोगों पर शक हुआ था। उनके हावभाव ही कुछ ऐसे प्रतीत हो रहे थे कि वह जैसे किसी की तलाश मे वहाँ पर बैठे हुए थे। हमने उनकी तस्वीर उतार ली है। यह बोल कर उसने अपना फोन मेरी ओर बढ़ा दिया था। मैने एक नजर दोनो तस्वीरों पर डाल कर यादव से कहा… दोनो तस्वीरों को कंप्युटर पर डाल कर स्क्रीन पर दिखाओ। कुछ मिनट के बाद उनकी तस्वीरें बड़े स्क्रीन दिखायी दे रही थी। …कैप्टेन यादव, कल एक स्काउट टीम इन दो आदमियों की खोज मे जाएगी। जो टीम शाही मस्जिद पर होगी वह इन दो आदमियों का चेहरा अच्छी तरह से पहचान ले क्योंकि अगर वह दोनो कल फिर वहीं पर आते है तो वह टीम तुरन्त इस टीम को सुचित कर देगी। यह टीम फिर उनका वहाँ से पीछा करेगी। पीछा करने वाली टीम को बस इतना पता लगाने की कोशिश करनी है कि वह कहाँ जाते है, उनका ठिकाना कहाँ है और वह किन लोगों से मिलते है।

मैने तीसरी टीम की ओर देखा तो ड्राईवर विजय कुमार ने बताया… सर, वह देखने मे कंस्ट्रक्शन यार्ड जरुर लगता है परन्तु वहाँ पर कुछ काम होता हुआ नहीं दिख रहा है। कुछ लोग भारी मशीनरी से सामान हटा कर जमीन समतल बनाने की कोशिश कर रहे थे परन्तु वहाँ पर ज्यादातर लोग खाली बैठे हुए दिख रहे थे। हमे तो ऐसा लग रहा था कि जैसे वह लोग वहाँ पर टाइम पास के लिये बैठे हुए है। बातचीत और कपड़ों से भी वह किसी भी हालत मे मेकेनिक या आप्रेटर नहीं लग रहे थे। हमने एजाज कंस्ट्रक्शन के बारे कुछ स्थानीय लोगों से भी बात की थी। उनका कहना था कि दो साल पहले ही इस कंपनी ने वह यार्ड नेपाल के राज परिवार से खरीदा था। इस कंपनी ने सारे पुराने लोगों को निकाल कर अपने लोग भरने आरंभ कर दिये है। वहाँ पर किसी को नहीं पता है कि एजाज कंस्ट्रक्शन का काम आजकल कहाँ चल रहा है। यार्ड मे खड़ी हुई भारी भरकम मशीनरी को भी कभी यार्ड के बाहर निकलते हुए किसी ने नहीं देखा है। …किसी के पास हथियार दिखे थे? …नहीं सर। हथियार तो किसी के पास नहीं थे। …कैप्टेन कुछ दिन और उस यार्ड पर नजर रखते है। मैने एक नजर अपनी कलाई की घड़ी पर नजर मारी तो रात के दस बज रहे थे। मै अगले दिन का काम बता कर वापिस घर की ओर चल दिया था।

हमारे आफिस के बाहर एक कार खड़ी हुई देख कर मै तुरन्त सावधान हो गया। अपनी ग्लाक-17 को कार के डैशबोर्ड से निकाल कर अपनी बेल्ट मे खोंस कर गेट पर तैनात बहादुर से पूछा… कौन आया है? …मेमसाहब से मिलने कुछ लेडीज आयी है। एक नजर कार पर डाल कर मै पहली मंजिल की ओर चल दिया। इतनी रात को भला कौन तबस्सुम से मिलने के लिये आ सकता था। यही सोचते हुए मै जब अपने दरवाजे पर पहुँचा तो मुझे तबस्सुम खड़ी दिख गयी थी। …आपने आने मे बड़ी देर लगा दी। हम कब से आपकी राह देख रहे थे। प्रवेश करते ही मेरी नजर सोफे पर बैठी हुई शबाना और जेनब पर पड़ी और दूसरे सोफे पर आरफा के साथ नफीसा बैठी हुई थी। मै चुपचाप उनके सामने बैठते हुए तबस्सुम से कहा… मुझे फोन कर देती तो मै पहले आ जाता। …आपका फोन बन्द पड़ा हुआ है। इस वक्त तीनो के चेहरे पर तनाव के लक्षण साफ झलक रहे थे।

सबसे पहले बोलने वाली जेनब थी। …यहाँ पर सब कुछ गलत हो रहा है। कल सुबह वह अब्बू की लाश को लेकर पाकिस्तान जा रहे है। यह बोलते ही वह रो पड़ी तो तबस्सुम उसके पास बैठ कर बोली… रोने से कुछ नहीं होगा। इनको सब कुछ साफ-साफ बता दो। तभी नफीसा ने कहा… हमारे को नहीं लगता कि वह अब्बू है लेकिन दूतावास मे पाकिस्तान से आये हुए कर्नल शौकत जबरदस्ती उन्हें अब्बू बता रहे है। …क्या उन्होंने तुमसे तुम्हारे अब्बू की शिनाख्त नहीं करवायी है। …नहीं। हम आज दूतावास गये थे लेकिन उन्होंने दिखाने से मना कर दिया। उनका कहना है कि उनका चेहरा इतना बिगड़ गया है कि वह हमे नहीं दिखा सकते। …तुम्हारे नूर अंकल तो आजकल दूतावास मे है। क्या वह भी ऐसा सोचते है? अबकी बार शबाना रुआँसी होकर बोली… भाईजान दो दिन पहले सुबह वह दूतावास जाने के लिये तैयार हो रहे थे कि तभी उनके पास किसी का फोन आया था। वह किसी को बताये बिना ही तुरन्त चले गये थे। उसके बाद उनको किसी ने नहीं देखा है। जब वह उस दिन शाम को नहीं लौटे तो हमने दूतावास मे पता किया तो पता चला कि वह उस दिन दूतावास नहीं गये थे। उनका फोन भी तभी से बन्द पड़ा हुआ है। अगले दिन सुबह दूतावास ने हमे ब्रिगेडियर साहब की हत्या की जानकारी दे दी थी। पाकिस्तान से आये हुए कर्नल शौकत अजीज ने दूतावास के सभी कर्मचारियों को हमसे बात करने के लिये मना कर दिया है। दूतावास मे कोई भी कुछ भी बताने की स्थिति मे नहीं है कि आखिर वहाँ क्या हो रहा है। प्लीज क्या आप हमारी कुछ मदद कर सकते है?

मैने जल्दी से कहा… इस मामले मे भला मै आपकी क्या मदद कर सकता हूँ। आपकी बात सुन कर तो मुझे लग रहा है कि इस वक्त कर्नल शौकत अजीज के कब्जे मे पूरा दूतावास है। वहाँ से जब आपको कुछ नहीं पता चल रहा है तो फिर भला मुझे कोई कैसे बता सकता है। मैने जेनब से पूछा… तुम्हें क्यों लगता है कि वह तुम्हारे अब्बू नहीं हो सकते है? जेनब ने कोई जवाब नहीं दिया और नफीसा भी सिर झुका कर बैठ गयी थी। मैने तबस्सुम की ओर देखा तो वह मेरी ओर देख रही थी। अचानक वह बोली… सुबह से मैने आपको डिस्टर्ब नहीं किया क्योंकि मुझे पता है कि आप ब्रिगेडियर साहब के बारे जानने की कोशिश मे जुटे हुए है। यह बड़ी आस लेकर आपके पास आयी है। प्लीज कुछ तो इनकी मदद किजिए। …अंजली, यह इनकी फौज का मामला है। मै इनके मामले मे कुछ भी दिलचस्पी दिखाउँगा तो इनके लिये मुश्किलें बढ़ जाएँगी। तुम समझने की कोशिश करो कि इन्होंने यहाँ आकर ही बड़ी भारी भूल कर दी है। कर्नल शौकत ने उस दिन से ही इनकी निगरानी पर अपने लोग लगा दिये होंगें। तबस्सुम उठ कर मेरे पास आकर बोली… भाड़ मे जाये कर्नल शौकत। आप इनकी मदद कैसे करेंगें यह अब आपको सोचना है। अगर आप नहीं करेंगें तो फिर मुझे कुछ करना पड़ेगा। तबस्सुम को पकड़ कर अपने साथ जबरदस्ती बिठा कर मैने समझाते हुए कहा… तुम्हें इस हालत मे डाक्टर ने तनाव लेने या गुस्सा करने से मना किया है। वह जल्दी से संभल कर बोली… पता नहीं आज कल मुझे बड़ी जल्दी गुस्सा आने लगा है।

कुछ सोच कर मैने कहा… मुझे नूर मोहम्मद के बारे मे पता नहीं था। आज मैने उस लाश की पुलिस रिपोर्ट देखी है और वहाँ पर उपस्थित पुलिस वालों से भी बात की थी। मुझे इतना तो यकीन हो गया है कि वह लाश ब्रिगेडियर साहब की तो नहीं है। पुलिस वालों को लग रहा है कि पाकिस्तानी दूतावास ने कोई फुहड़ सा ड्रामा रचा है। जेनब और नफीसा इसलिये तुम्हें अपने अब्बू के लिये ज्यादा चिन्ता करने की जरुरत नहीं है। कर्नल शौकत जो कुछ करना चाहता है उसे करने दो। यह जो गलती तुमसे हो गयी है उसके लिये तुमसे कल सुबह कोई न कोई दूतावास का आदमी अवश्य पूछने आयेगा। उसके लिये आप लोग अपना जवाब तैयार रखना। शबानाजी, जहाँ तक आपके खाविन्द नूर मोहम्मद की बात है तो मुझे लगता है कि वह इस वक्त ब्रिगेडियर साहब के साथ है लेकिन एक बात मेरी चिन्ता बढ़ा रही है कि पाकिस्तानी दूतावास ने नूर मोहम्मद को खोजने की कोई चेष्टा अभी तक क्यों नहीं की है। इतना बोल कर मै चुप हो गया था। सभी की नजरें मुझ पर टिकी हुई थी लेकिन कोई भी कुछ बोल नहीं रहा था। अचानक नफीसा उठ कर मेरे पास आयी और जब तक मै समझ पाता उसने झुक कर मेरे गाल को चूम लिया और घुटनो के बल मेरे सामने बैठ गयी थी।

नफीसा की आवाज एकाएक बोलते हुए लड़खड़ा गयी थी। …मैने इनसे कहा था कि आप हमे जरुर सच्चायी से रुबरु करा देंगें। अपने सीने पर भारी बोझ लिये यहाँ आये थे लेकिन अब यहाँ से एक उम्मीद लेकर वापिस जा रहे है। आपका तहे दिल से शुक्रिया। मै अचरज से उसकी ओर देखता रह गया था। जेनब और शबाना भी आश्चर्य से नफीसा को देख रही थी। वह जेनब की ओर देख कर बोली… बाजी अब हमे चलना चाहिये। काफी देर हो गयी है। जेनब और शबाना जल्दी से उठ कर खड़ी हो गयी और नफीसा के साथ चल दी थी। …अंजली और आरफा तुम इन्हें कार तक छोड़ दो जिससे जो भी इन पर नजर रख रहा होगा वह अच्छी तरह से देख ले कि तीनों तुमसे मिलने आयी थी। इतना बोल कर मै उन्हें वहीं छोड़ कर उपर हाल मे चला गया था।

मैने एक बार फिर से नूर मोहम्मद की रिकार्डिंग सुनने बैठ गया था। जिस दिन सुबह मैने शुजाल बेग को छोड़ा था उस दिन की रिकार्डिंग निकाल कर सुनने बैठ गया था। उस दिन सबसे पहली काल का जिक्र शबाना ने किया था। मैने उस वक्त इस काल पर कोई ज्यादा ध्यान नहीं दिया था क्योंकि उस समय मुझे लगा कि दूतावास से बुलावा आया होगा लेकिन शबाना के अनुसार वह यह सुनते ही चला गया था। उसके बाद नूर मोहम्मद की पाँच रिकार्डिंग और थी। मै अबकी बार शुजाल बेग के परिपेक्ष मे उसकी बात को समझने की कोशिश कर रहा था। पहली काल का नम्बर मैने उस लिस्ट मे चेक किया तो वह नम्बर उन चालीस नम्बर मे से एक था। अगली दो काल नूर मोहम्मद ने दो अलग नम्बरों पर की थी। उनमे वह किसी को बता रहा था जरुरी काम के सिलसिले मे वह आज उनसे नहीं मिल सकेगा। मैने उन दोनो नम्बरों को लिस्ट से चेक किया तो वह दोनो नम्बर भी मिल गये थे। उसके बाद तीन काल और थी। वह एक ही नम्बर से आयी थी। किसी स्त्री की काल थी। उसने काल करके बताया था कि वह उसका इंतजार कर रहे है। दूसरी काल कुछ मिनट के बाद आयी जिसमे उसी स्त्री बताया था कि सभी लोग पहुँच गये है। कब तक पहुँच रहे है? उसी स्त्री की काल थी जिसमे वह बता रही थी कि मौलाना साहब को जल्दी वापिस लौटना है। सारी बातचीत से साफ था कि अगर पहला काल शुजाल बेग से आया था तो बाकी सभी काल का मजमून किसी स्त्री के यहाँ होने वाली मीटिंग के संदर्भ मे था। सभी नम्बर एनटीसी के थे। अपने कमरे मे लौटते हुए मैने अगले दिन सुबह सरिता बिस्ट से मिलने का मन बना लिया था।

तबस्सुम मेरा इंतजार कर रही थी। मैने उसके साथ लेटते हुए कहा… तुम बिना सोचे समझे क्यों बोलना शुरु कर देती हो। अगर कर्नल शौकत को पता चल गया कि वह भारतीय सेना के अधिकारी से रात को उसके घर पर मिली थी तो क्या तुम्हें नहीं पता इनका क्या हश्र होगा। मै जितना तुम्हें इन लोगों से दूर रखने की कोशिश करता हूँ तुम उतना ही एक के बाद एक इनके चक्कर मे उलझती जाती हो। ब्रिगेडियर शुजाल बेग की असलियत तुम्हें जिस दिन पता लग गयी तो तुम खुद उसे गोली मार दोगी। सच पूछो तो मुझे उसके साथ कोई हमदर्दी नहीं है लेकिन फिलहाल उसका जिंदा रहना हमारे लिये जरुरी है। मुझे इसमे कोई एतराज नहीं है कि अगर तुम्हारा पाकिस्तान प्रेम जोर मारता है। ऐसा होना भी चहिये लेकिन मुझसे निकाह करने के बाद तुम भारतीय सेना के अधिकारी की बीवी बन गयी हो और इसीलिये पाकिस्तानी फौज के मामले अब तुम्हें सावधान रहने की जरुरत है। दोनो ओर खड़ी हुई फौज कभी भी तुम्हारे जज्बे को अच्छी नजरों से नहीं देखेंगें। यहाँ की फौज तुम्हें वहाँ का जासूस समझेंगी और वहाँ वाले लोग तुम्हें गद्दार समझेंगें और ध्यान रहे कि दोनो की सजा सिर्फ मौत है। तुमने शुजाल बेग की बात उस दिन नहीं सुनी थी इसीलिये उसके प्रति इतनी हमदर्दी हो रही है। अगर तुम सुन लेती कि वह मेरे साथ पाकिस्तान मे क्या करता तो तुम हर्गिज उसे छोड़ने की जिद्द नहीं करती। इसीलिये मै कह रहा हूँ कि तुम अब पूरी तरह अंजली बन जाओ। इतना बोल कर जैसे ही मैने अपनी बाँह उसकी ओर बढ़ायी वह मेरा हाथ पकड़ कर बोली… मुझे इससे कोई मतलब नहीं कि फौज क्या सोचती है। क्या आप मेरे बारे मे ऐसा सोचते है जैसा कि मेरे बारे मे भारतीय फौज सोचती है?

मै एक पल के लिये उसे देखता रहा और फिर बोला… जिसका अंश तुम पाल रही हो क्या वह तुम्हारी विश्वसनीयता पर कोई शक कर सकता है? ऐसा सवाल ही बेमानी है। लेकिन हकीकत से कभी मुँह नहीं मोड़ना चाहिये। मै जानता हूँ कि उस दिन भी शुजाल बेग ने सच ही बोला था। अचानक वह मुझसे लिपट कर अपनी बाँहों मे जकड़ कर बोली… जब तक मै हूँ तब तक वह लोग आपके बाल को भी नहीं छू सकेंगें। मैने हँसते हुए कहा… मेरी झाँसी की रानी अब सो जाओ। इस हालत मे तुम्हें आराम की जरुरत है। बेकार के मसलों मे खुद को मत उलझाओ। वह बेहद भावुक हो गयी थी। उसकी डाक्टर ने मुझसे कहा था कि इस बदलाव के कारण मुझे उसके मूड स्विंग्स का खास ख्याल रखना पड़ेगा। आज उसकी बात सुन कर मै अपने आप को रोक नहीं सका था लेकिन अब पछता रहा था कि मैने फालतू मे उसे भावुक कर दिया। बड़ी मुश्किल से उसे शांत करके सुलाया और जब वह सो गयी उसके बाद ही काफी देर तक मुझे नींद नहीं आयी थी।

मै सुबह तैयार होकर सरिता बिस्ट से मिलने के लिये चला गया था। वह ड्युटी पर थी तो उसने मुझे कुछ देर इंतजार करने के लिये कहलवा दिया था। मै बाहर आकर एक किनारे मे पेड़ के नीचे बैठ गया। एक घंटे के बाद वह बाहर निकली और मेरे पास आकर बड़े रुखे स्वर मे बोली… बोलिये क्या काम है? मैने मुस्कुरा कर कहा… यहाँ एक काम से आया था। तुम्हारे पिछले काम के बाकी के पैसे तो तुम्हें मिल गये होंगें? वह एकाएक रुँआसी हो कर बोली… आपके पैसों के कारण ही मेरा घर टूट गया। उस पचास हजार के लिये बिस्ट साहब ने मुझे हमेशा के लिये छोड़ दिया है। अब वह मुझसे बात भी नहीं करते है। मै उसके चेहरे को देखता रह गया था। उसने अपनी कहानी सुना कर कहा… बताईये आपको अब किस नम्बर को टैप करना है? मै उस वक्त कुछ भी बोलने की स्थिति मे नहीं था। …इस बार दो नम्बर है। एक का पता मालूम करना है दूसरे को टैप करना है। …उतने ही पैसे लगेंगे। उसकी बात सुन कर मै सोच रहा था कि जीवन के एक ही झटके मे छुईमुई सी सरिता मे कितना बदलाव आ गया था।

रविवार, 17 सितंबर 2023

  

गहरी चाल-26

 

अजीत सर ने कहा… मेजर, नफीसा को बाहर ले जाओ और हमारा इंतजार करो। मै नफीसा के पास चला गया और उसकी कलाई थाम कर बोला… चलो नफीसा। वह चुपचाप शुजाल बेग को छोड़ कर मेरे साथ चल दी थी। हम दोनो पर्दा हटा कर बाहर निकल कर आये थे। काउन्टर पर पहुँच कर मैने अपनी ग्लाक-17 लेकर उसकी मैगजीन और सेफ्टी लाक चेक किया और फिर अपनी होल्स्टर मे डाल कर मुख्य द्वार की ओर बढ़ गया जहाँ नफीसा मेरा इंतजार कर रही थी। …सौरी। मैने उसकी ओर देखा तो वह मुझे ही देख रही थी। …अब्बू को देख कर मै अपने आप को रोक नहीं सकी। पहली बार मै उसको ध्यान से देख रहा था। अभी तक मेरे दिमाग मे उसकी वही स्कूली छात्रा वाली छवि थी जो मैने नूर मोहम्मद के घर पर देखी थी। ढीले-ढाले वस्त्रों के बावजूद उसके चेहरे पर मासुमियत के साथ मुझे अजीब सी कशिश महसूस हो रही थी। …क्या देख रहे है? मैने झेंप कर खुले ग्राउन्ड की ओर देखते हुए कहा… तुम्हें देख रहा था। …क्यों? मैने उसकी ओर देखा तो वह अभी भी मुझे देख रही थी। उसकी आँखों मे पहले जैसी घबराहट और असहजता के बजाय एक नटखटपन झलक रहा था। वह मुझसे नजरे मिला कर बात कर रही थी जिसके कारण मै असहज होता चला जा रहा था। …मेजर साहब क्या मै इतनी खराब दिखती हूँ कि आप मेरी ओर देखना भी नहीं चाहते। इतना कह कर उसने मेरा हाथ पकड़ लिया था। एक क्षण के लिये मुझे लगा कि नंगे बिजली के तार को मैने बेध्यानी मे छू दिया है। मैने जल्दी से अपना हाथ छुड़ा कर उससे दूर होते हुए बोला… यह मिलिट्री कम्पाउन्ड है। …ओह सौरी। आप अभी वर्दी मे है। इतना बोल कर वह मेरे साथ आकर खड़ी हो गयी थी।    

हम लगभग आधा घंटा बाहर खड़े रहे थे लेकिन फिर किसी ने भी बात करने की कोशिश नहीं की थी। जनरल रंधावा और अजीत सर मुख्य द्वार से निकल कर मेरे पास आकर बोले… मेजर, नफीसा को उसके अब्बा के पास ले जाओ। ब्रिगेडियर तुमसे भी कुछ कहना चाहता है। कल सुबह नौ बजे मेरे आफिस मे मिलो। …यस सर। इतना बोल कर दोनो वापिस चले गये थे। नफीसा को अपने साथ लेकर एक बार फिर से वही पिस्तौल और फोन की औपचारिकता पूरी करके हम दोनो शुजाल बेग के सेल की ओर चल दिये थे। शुजाल बेग अपने सेल मे टहल रहा था। हमने जैसे ही कमरे मे प्रवेश किया तो वह नफीसा की ओर आकर बोला… नफीसा तुम कुछ देर के लिये बाहर चली जाओ। मुझे मेजर से कुछ कहना है। वह जैसे ही जाने लगी तो मैने उसे रोकते हुए कहा… तुम्हें कहीं जाने की जरुरत नहीं है। ब्रिगेडियर साहब आपको कुछ भी कहने की जरुरत नहीं है। आप लोग बात कर लिजिये और मै बाहर इंतजार कर रहा हूँ। यह बोल कर मै सेल से बाहर निकल गया था। सेल के लोहे के गेट पर खड़े हुए कमांडो से कहा… सैनिक एक कुर्सी का इंतजाम करो। पता नहीं कितनी देर लगेगी। एक कमांडो तेजी से निकल गया और कहीं से एक कुर्सी लाकर रख दी थी। मै आराम से बैठ गया। बाप और बेटी के बीच मे न जाने क्या बात हुई लेकिन आधे घंटे बाद वह बाहर निकल कर आयी और मुझसे बोली… प्लीज उनसे एक बार बात कर लिजिये। उसका दिल रखने के लिये मै अन्दर चला गया था।

शुजाल बेग चलते हुए मेरे पास आया और मेरे कंधे पर हाथ रख कर बोला… मेजर, मेरी बात इतनी बुरी लग गयी कि अब बात भी नहीं करना चाहते। …सर, ऐसी कोई बात नहीं है। …मेजर, मुझे खुशी है कि मेरी मुलाकात तुमसे हो गयी। अभी तक मेरा पाला सिर्फ ऐसे लोगों के साथ रहा है कि मै फौज की वर्दी मे शैतान बन गया था। तुमने मुझे इस वर्दी की अहमियत सिखा दी है। नफीसा कब वापिस जा रही है? …सर, वह कल सुबह काठमांडू चली जाएगी। बेचारी जेनब उसे वहाँ कवर कर रही है। …मेजर यह सच है क्या कि नूर मोहम्मद ने मुझे फँसाया है? …सर, आपने भी उसको फँसाया था तो यह सब सोचने की जरुरत नहीं है। एक बात आपसे पूछना चाहता हूँ कि क्या आप फारुख मीरवायज को जानते है? …हाँ, अफगानिस्तान मे उसने मेरे साथ कुछ दिन काम किया था। बेहद बददिमाग और बहुत महत्वाकांक्षी इंसान है। …क्या आप मेजर हया इनायत मीरवायज को जानते है? …हया जनरल मंसूर बाजवा के स्टाफ मे थी। रावलपिंडी मे कैप्टेन हया ने मेरी युनिट जोईन की थी। …आपके अनुसार आजकल मेजर हया रावलपिंडी के जीएचक्यू मे काम कर रही है। …हाँ, उसके बारे मे मुझे बस इतना ही पता है। …आप अंजली से मिल चुके है। क्या आपने उसमे और हया मे कोई समानता देखी थी? शुजाल बेग ने एक पल मेरी ओर ध्यान से देखा और फिर बोला… नहीं, दोनो मे जमीन-आसमान का फर्क है। मेजर, अंजली को मेरी ओर से शुक्रिया कह देना। उसी के कारण मे आज अपनी बेटी से मिल सका हूँ। खुदा उसको सुखी रखे। वह तुम्हारे लिये खुदा की नेयमत है उसे संभाल कर रखना। अचानक वह मुझसे गले मिल कर बोला… तुमसे मिल कर मुझे बहुत खुशी हुई। वह अलग होकर बोला… खुदा हाफिज। मै उसे वहीं छोड़ कर बाहर निकल आया था। अपने साथ नफीसा को लेकर मै वापिस चल दिया।

घर पहुँचते हुए शाम हो चुकी थी। जीप के दरवाजे पर रुकते ही मेनका ने दरवाजा खोला और भाग कर मुझसे लिपट गयी। उसे अपनी गोदी मे उठा कर उसकी कहानी सुनते हुए मै अन्दर आ गया था। नफीसा भी हमारे साथ अन्दर आ गयी थी। चाय के लिये कह कर मै अपने कपड़े बदलने चला गया था। कुछ देर बाद चाय पीते हुए मेनका की दिन भर की कहानी सुन रहा था। नफीसा मेरे फोन से जेनब से बात कर रही थी। तभी आफशाँ की कार अन्दर घुसती हुई देख कर मेनका खुशी से चिल्लायी… अम्मी आ गयी। मैने जल्दी से उसे उसकी प्रामिस के बारे मे याद दिला कर सावधान किया और दरवाजे की ओर बढ़ गया। आफशाँ ने कार से उतरते ही मुझे दरवाजे पर खड़ा देख कर तेजी से मेरी ओर बढ़ी और मुझसे लिपट कर बोली… मिस्ड यू। तब तक मेनका भी आकर आफशाँ से लिपट गयी थी। उन दोनो के साथ मै अन्दर चला आया। ड्राइंग रुम के सोफे पर नफीसा को देख कर आफशाँ एकाएक ठिठक कर रुक गयी तो मैने जल्दी से कहा… यह नफीसा है। मेरे सीओ साहब की बेटी है। आफशाँ मुस्कुरा कर बोली… हैलो। नफीसा ने भी हाथ हिला कर उसका अभिवादन किया। तब तक आफशाँ का ड्राईवर कार से सामान निकाल कर अन्दर आ गया था। आफशाँ ने उसे अपने कमरे की ओर इशारा करके कहा… सब सामान उस कमरे मे रख दो। वह मेरे साथ बैठते हुए बोली… चार दिन भागते हुए निकले है। मै थक गयी हूँ। …ढाका कैसा था? …अरे ढाका तो ठीक था लेकिन उस काम को बीच मे छोड़ कर एक इमर्जेन्सी काल के कारण रविवार को पहली फ्लाईट पकड़ कर काठमांडू पहुँचना पड़ा था। मैने मेनका की ओर देखा तो वह अपनी आँखें नचाते हुए मेरी ओर देख रही थी। मैने झेंप कर जल्दी से कहा… फिलहाल अब तुम कहाँ से आयी हो? …अभी तो काठमांडू से आ रही हूँ।

तभी मेनका बोली… नफीसा दीदी, कल काठमांडू वापिस जा रही है। कमाल है इस घर मे कोई काठमांडू से आया है और कोई जा रहा है। आफशाँ ने नफीसा से पूछा… सही मे तुम कल काठमांडू जा रही हो या यह शैतान की नानी फिर कोई नयी कहानी बना रही है। नफीसा ने मुस्कुरा कर कहा… मेनका सही कह रही है। मै कल सुबह काठमांडू जा रही हूँ। …ओह, यह क्या संयोग है। दोनो हँस पड़ी थी। कुछ देर हमारे साथ बैठने के बाद आफशाँ कपड़े बदलने के लिये चली गयी थी। नफीसा को पकड़ कर मेनका अपना कमरा दिखाने के लिये ले गयी। मै अपने आप को कोस रहा था कि क्यों मैने वहाँ इतना बखेड़ा खड़ा किया था। ब्रिगेडियर शुजाल बेग ने वलीउल्लाह का जो विवरण दिया था उसके अनुसार स्ट्रेटिजिक कमांड युनिट मे कोई सेना की महिला कर्मचारी थी। मेरे दिमाग के सभी शक के कीड़े जो कल और आज तक कुलबुला रहे थे वह अब शांत हो गये थे। अब सिर्फ मुझे कमांड सेन्टर मे उस महिला कर्मचारी को ढूंढना था जिसका किसी कश्मीरी तंजीम के नेता के साथ कोई नाता रहा होगा। मै आराम से पाँव फैला कर बैठ गया। मन पर रखा हुआ बोझ एकाएक हटने से अपने आप को हल्का महसूस कर रहा था। फारुख की बात भी झूठ निकली थी। अचानक अंजली का चेहरा मेरी आँखों के सामने आ गया तो मैने महसूस किया कि तबस्सुम का चेहरा धीरे-धीरे अंजली की जगह ले रहा था।

…यहाँ अकेले कैसे बैठे हुए हो और मेनका कहाँ गयी? आफशाँ मेरे साथ सटते हुए बैठ गयी थी। …वह नफीसा की टूर गाईड बन कर उसे अपना कमरा दिखाने ले गयी है। अचानक वह मुझसे लिपटते हुए बोली… नफीसा को देख कर एक पल के लिये मै घबरा गयी थी कि तुमने कोई अपने लिये दूसरी पसंद कर ली है। मैने उसे गले मे बाँह डाल कर जकड़ते हुए कहा… तुम्हारे भेजे मे इसके सिवा और कुछ नहीं आता है। तुम्हारी शैतान की नानी मेरा सिर तोड़ देगी जिस दिन उसे पता चला कि मै उसके लिये दूसरी अम्मी लेकर आया हूँ। अपने आप को मेरी गिरफ्त से छुड़ा कर बोली… मुझे उस पर पूरा विश्वास है कि अगर तुम उसे मुझसे दूर रखने की कोशिश करोगे तो वह तुम्हारा सिर जरुर तोड़ देगी। …आफशाँ यही विश्वास मेरी अम्मी को मुझ पर था। बस यही एक गम है कि उस समय जब उन्हें मेरी सबसे ज्यादा जरुरत थी तब मै उनके पास नहीं था। अचानक वातावरण बोझिल हो गया था। तभी मेनका की आवाज कान मे पड़ी… दीदी आप कुछ दिन यहीं पर रुक जाओ। उसकी आवाज सुनते ही हम अलग हो गये थे। नफीसा और मेनका सीड़ियों से उतर कर हमारे पास बैठ गयी थी।

सब सोने चले गये थे। मै और आफशाँ भी सोने की तैयारी कर रहे थे। अचानक आफशाँ ने कहा… समीर, क्या कभी तुम्हें मुझ पर शक नहीं होता? …मुझे तुम पर क्यों शक होगा। हमारी शादी को ग्यारह साल हो गये है। तुम्हें अगर मुझे छोड़ कर जाना होता तो तुम अब तक जा चुकी होती। मै तुम्हें बचपन से जानता हूँ। अदा और तुममे एक फर्क है। वह किसी का दिल रखने के लिये एक बार के लिये अपना मन मार लेगी परन्तु तुम किसी के आगे नहीं झुक सकती। अगर मै भी कहूँगा तो भी तुम मेरी नहीं सुनोगी। अब ऐसी लड़की को मेरे सिवा और कौन बर्दाश्त करेगा। वह अचानक मुझ पर झपट पड़ी और मुझ पर अपना वजन डाल कर बोली… क्या मै ऐसी हूँ? बस उसके बाद हम एक दूसरे को पकड़ कर जोर आजमाइश मे जुट गये थे। जब थक कर चूर हो गये तो फिर एक दूसरे को बाँहों मे जकड़ कर सो गये थे।

सुबह मुझे नौ बजे से पहले आफिस पहुँचना था। मै जल्दी तैयार होकर नाश्ता करके आफिस निकल गया था। आफिस पहुँचते ही सबसे पहले नफीसा की टिकिट करायी और फिर वीके की फाइल खोल कर बैठ गया था। स्ट्रेटिजिक कमांड युनिट मे बैठने वालों की संख्या सौ की थी। बाकी और सभी को मिला कर स्टोर, सुरक्षा, कंप्युटर और अन्य पदाधिकारियों को मिला कर यही संख्या चार सौ के करीब हो रही थी। उनमे महिलाओं की संख्या भी डेड़ सौ से उपर थी। स्ट्रेटिजिक कमांड युनिट मे बैठने वाली महिलाओं की संख्या चालीस थी। मैने हरेक नाम और उसके आगे दिया गया विवरण ध्यान से पढ़ना आरंभ कर दिया था। भारत के सुदूर कोने से महिलायें आयी हुई थी। उस चालीस मे से तीन जम्मू और दो कश्मीर डिविजन से आयी थी। जम्मू डिविजन से आयी तीनों महिलायें कश्मीरी पंडित थी। कश्मीर डिविजन से आयी एक महिला सिख थी और एक मुस्लिम थी। सभी का सेना मे बेहतरीन रिकार्ड मेरे सामने रखा हुआ था। किसी की देश भक्ति पर लेशमात्र भी शक नहीं किया जा सकता था।

ठीक नौ बजे इन्टर्काम पर बुलावा आ गया था। मै उठ कर अजीत सर के कमरे मे चला गया था। वहाँ पर तीनो बैठे हुए थे। वीके ने पूछा…मेजर, वलीउल्लाह का कुछ पता चला? मैने सुबह का सारा ज्ञान उनके सामने रख कर कहा… अन्दर बैठने वाली युनिट मे तो वह नहीं हो सकती है। मुझे कुछ और समय चाहिये। अजीत सर ने कहा… मेजर, शुजाल बेग का क्या करना है? …सर, मेरी सलाह है कि उसे फारुख के हवाले कर दिया जाये। वह यहाँ रहेगा तो हमारे लिये मुश्किल खड़ी हो जाएँगी। …उसके लिये तुमने कोई योजना बनायी है? …अभी तो नहीं लेकिन उसकी बेटी दोपहर की फ्लाईट पकड़ कर चली जायेगी तो फिर उसके बारे मे सोचूँगा। अजीत सर ने वीके से कहा… पहले शुजाल बेग की रिकार्डिंग सुन लो फिर इसके बारे मे बात करेंगें। इतना बोल कर उन्होंने जनरल रंधावा को इशारा किया। तभी स्पीकर पर अजीत सर की आवाज गूंजी…

…शुजाल बेग आप्रेशन खंजर क्या है?

…आप्रेशन खंजर तुम्हारी अर्थव्यवस्था को चौपट करने की योजना है। जिहाद काउंसिल से जुड़ी हुई सभी चरमपंथी तंजीमे एक ही समय पर जम्मू मे दो जगह और कश्मीर मे दो जगह फिदायीन हमला करेंगी। यह कवरिंग आप्रेशन होगा क्योंकि आप्रेशन खंजर के निशाने पर मुख्य रुप से तुम्हारे अरब सागर मे स्थित तेल के संयत्र है। जब तुम्हारी सेना जम्मू और कश्मीर मे उलझी हुई होगी तभी दो फिदायीन युनिट अरब सागर मे तुम्हारे तेल के संसाधनों पर हमला करके उन्हें अपने कब्जे मे लेकर नष्ट कर देंगी। जब तक तुम्हारी नौसेना हरकत मे आयेगी तब तक हमारी नौसेना उस इलाके मे अपनी उपस्थिति दर्ज करवा देगी।

… कुछ करोड़ रुपये का नुकसान होगा और इससे ज्यादा क्या होगा? 

…तुम्हारी अर्थव्यवस्था के दिल पर खंजर से वार होगा। तुम कहोगे कि तुम्हारी नौसेना का उद्देश्य फिदायीन के खिलाफ एक्शन लेने का है और हम कहेंगें कि यह सैनिक कार्यवाही हमारी नौसेना और हमारी संप्रभुता पर हमला है। दोनो नौसेना जब आमने-सामने खड़ी होंगी तब अनौपचारिक रुप से खाड़ी से मिलने वाले तुम्हारे तेल का रास्ता भी रुक जायेगा। हमारी ओर से कोशिश होगी कि इसको जितने दिनो के लिये रोका जाये उतना ही अच्छा होगा और तुम चाहोगे कि जल्दी से जल्दी वह रास्ता खुल जाये। ऐसी हालत मे तुम्हारे पास सैन्य कार्यवाही का विकल्प बचता है परन्तु क्या आज तक तुम्हारी सरकार ने कभी फिदायीन हमले के लिये हमारे खिलाफ कोई सैन्य कार्यवाही की है जो अब करोगे? दूसरी ओर तुम्हारे संयत्रो का लाखों गैलन तेल समुद्र को प्रदुषित कर रहा होगा जिसको तुम पहले रोकने की कोशिश करोगे। तुम्हें तीन तरफा मार पड़ेगी और इतनी बड़ी सेना होने के बावजूद तुम कुछ नहीं कर सकोगे। अगर कुछ करने की कोशिश भी करोगे तो फिर हमारी शाहीन, गजनवी और हत्फ मिसाइल किस काम आँयेगी। हमे पूरा यकीन है कि तुम कुछ नहीं करोगे। हमारे चन्द फिदायीन के आगे तुम्हारी अर्थव्यवस्था घुटनों पर आ जायेगी।

…शुजाल बेग, यह कब करने की सोच रहे हो? …तीन महीने मे इस काम को अंजाम देना था। जब गर्मी लगभग पूरे भारत पर अपने चरम पर होगी तब यह हमले होने है। तब तक हमारे घुसपैठ के रास्ते भी खुल जाते और तुम्हारे यहाँ तेल की खपत भी अपने चरम पर होती। अगर तीन महीने तेल की सप्लायी रुक गयी तो फिर तुम्हारी अर्थव्यवस्था का क्या होगा? जरा सोच कर देखो कि खुदाई खंजर की चोट तुम्हें कितनी महंगी पड़ेगी।

कुछ देर के लिये कमरे मे सन्नाटा छा गया था। वीके ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा… आप्रेशन खंजर को रोकना हमारी प्राथमिकता है। अजीत सर ने हामी भरते हुए कहा… अब काउन्टर औफेन्सिव का समय आ गया है। आप्रेशन खंजर एक मूल सिद्धांत पर टिका हुआ है कि हम फिदायीन हमले के खिलाफ पाकिस्तान पर सैन्य कार्यवाही नहीं कर सकते। हमे उसके इसी सिद्धांत पर वार करना है। परमाणु शक्ति होने के कारण अभी तक हमारी ओर से सैन्य कार्यवाही पर अंकुश लगा हुआ था। अब हम उनके हर फिदायीन हमले के लिये उनकी दो तीन चौकियाँ नष्ट कर देंगें और जरुरत पड़ी तो उनके घर मे घुस कर उनको मारेंगें। इसी बहाने उनकी परमाणु शक्ति वाली गीदड़ भभकी को भी टेस्ट करके देख लिया जाये। वीके ने भी अपना समर्थन देते हुए कहा… अगली राष्ट्रीय सुरक्षा कमेटी मे इस सुझाव को रख देना। पाकिस्तान की फौजी हुकूमत को अब बताने का समय आ गया है।

जनरल रंधावा ने कुछ सोचते हुए कहा… यह नीतिगत फैसला है। अजीत यह ठीक है लेकिन आप्रेशन खंजर तो हमारे सिर पर लटका हुआ है। इसके लिये भी तैयारी करनी है। अजीत सर ने कहा… सरदारजी, कुछ महीने पहले की पाकिस्तानी नौसैनिक एक्सरसाइज याद है। उसको अगर अनमोल बिस्वाकी भेजी हुई जानकारी के साथ मिला कर देखोगे तो पता चल जाएगा कि एक्सरसाईज नही बल्कि आप्रेशन खंजर की तैयारी का ट्रेलर मात्र था। उनकी नौसेना के सभी जहाज और पनडुब्बियाँ हमारे चार सबसे बड़े तेल के प्लेटफार्म सम्राट, विराट, विशाल और अनंन्त से कोई 800 नाटिकल मील दूरी पर थे। उस वक्त हमने यह सवाल किया था कि क्या उनके निशाने पर यह तेल के कुएँ हो सकते है? हमने उस वक्त सोचा था कि ऐसी बेवकूफी की उम्मीद उनसे नहीं है। आप्रेशन खंजर इस बात का प्रमाण है कि वह ऐसी बेवकूफी करने की सोच रहे है। जनरल रंधावा अब हमारे पास दो विकल्प है कि उन्हें यह बेवकूफी करने दे और फिर एक ही वार मे उनकी सारी फ्लीट को नेस्तनाबूद करके चैन से बैठ जाये। दूसरा विकल्प है कि हमे उनके टार्गेट का पता है तो अपनी सुरक्षा बढ़ा देते है। उनकी कोशिश को समय से पहले ही विफल कर दिया जाये तो आप्रेशन खंजर हमेशा के लिये फाइल मे दब कर रह जायेगा। हम तीनो अजीत सर के चेहरे को देख रहे थे।

वीके ने कहा… रंधावा हमे वापिस ड्राइंग बोर्ड पर बैठना चाहिये। आप्रेशन खंजर के लिये कमांड सेन्टर से तुम संचालन करो और समीर तुम फील्ड का काम संभालोगे। इसी के साथ रंधावा तुमने सीमा के साथ लगे हुए उन ठिकानों की निशानदेही कर ली है जिसका इस्तेमाल फिदायीन करते है। अगले फिदायीन हमले के जवाब की तैयारी अभी से शुरु कर देनी चाहिये। वीके ने अपनी घड़ी पर नजर मार कर उठते हुए कहा… आज शाम को एक बार फिर यहीं बैठ कर शुजाल बेग के बारे मे सोचते है। इसी के साथ हमारी मीटिंग समाप्त हो गयी थी। जनरल रंधावा ने मेरे कंधे पर हाथ मार कर कहा… समीर पुत्तर तूने उस शुजाल बेग को सही जवाब दिया था। उसे पता होना चाहिये कि वह किस फौज से लड़ने की सोच रहा था। अजीत सर ने उठते हुए कहा… रंधावा, यह तो मुझसे भी आगे निकल गया है। मेजर तुम समझ गये थे कि मैने तुम्हें वर्दी मे जाने के लिये क्यों कहा था? मैने झेंपते हुए कहा… नहीं सर। उस वक्त मुझे पता नहीं था। अगर सच पूछिये तो जब वह मोमिनों के जलाल की बात कर रहा था तो एक बार के लिये मेरा मन किया कि उसकी लड़की को बालों से पकड़ कर खींचते हुए उसके सामने लाकर पटक कर एक बार दिखा देता हूँ लेकिन फिर वर्दी का ख्याल आ गया था। उस वक्त मुझे एहसास हुआ कि शायद आप जानते थे कि ऐसा हो सकता है इसीलिये आपने मुझे वर्दी मे जाने के लिये कहा था। …समीर, शुजाल बेग को बेवकूफ समझने की गलती मत करना। उसके बारे मे सोचो कि उसके साथ क्या करना है। …सर, आप ही बताईये कि उसे फारुख के हवाले करना है या उसको आप सुरक्षित सीमा पार भिजवाना चाहते है? …मेजर, यह तुम्हें निर्णय लेना है। इतना बोल कर दोनो मुझे छोड़ कर आगे निकल गये थे। मेरे दिमाग मे एक नयी योजना ने जन्म ले लिया था।

मै अपने आफिस से निकला और मानेसर की ओर चल दिया था। थोड़ी देर के बाद मै शुजाल बेग के सामने बैठा हुआ था। …ब्रिगेडियर साहब, आपकी जान के लिये मुझे पाकिस्तान की ओर से फारुख मीरवायज ने मुँह मांगी कीमत देने की बात रखी है। आपकी फौज ही अब आपकी हत्या करने की तैयारी मे जुट गयी है। ऐसी स्थिति मे क्या आप वापिस जाना चाहते है? …मेजर, फारुख तो एक प्यादा है। यह सब मंसूर बाजवा का चलाया हुआ चक्कर है। मै अगर किसी तरह पाकिस्तान पहुँच गया तो उन सब की दुकान बन्द हो जाएगी। …मै आपको नफीसा के साथ काठमांडू भिजवा सकता हूँ। आपके लिये इतने दिन गायब रहने का बहाना भी मिल जायेगा और वहाँ से आप आसानी से पाकिस्तान पहुँच जाएँगें। वह कुछ देर मुझे देखता रहा और फिर धीरे से बोला… बेकार माइन्ड गेम मे पड़े बिना तुम्हें जो कुछ भी पूछना है वह पूछ लो। …आपको मेरी बात भले ही दिलासा लग रही होगी लेकिन इस वक्त मै आपको छोड़ने की बात कर रहा हूँ। …किस लिये? …कि आप पाकिस्तान पहुँच कर मेजर हया इनायत मीरवायज को मेरे हवाले कर देंगें। शुजाल बेग ने तुरन्त मना करते हुए कहा… मेजर, हो सकता है कि पहले अपनी आजादी के लिये मै तुम्हारे साथ उसका सौदा कर लेता परन्तु अब वर्दी की शान समझ मे आ गयी है इसलिये मै ऐसा हर्गिज नहीं कर सकता।

उसकी बात सुन कर एक बात समझ मे आ गयी थी कि शुजाल बेग के पाकिस्तान पहुँचते ही बहुत सी दुकाने बन्द हो जाएगी। अब इस आदमी को कैसे सुरक्षित पाकिस्तान पहुँचाया जाये? अब यह सवाल मेरे दिमाग मे घूम रहा था।  …क्या सोच रहे हो मेजर? …आपको सुरक्षित पाकिस्तान कैसे भेजा जाये? …अगर तुम सच मे मुझे छोड़ना चाहते हो तो नेपाल की सीमा मे छोड़ दो वहाँ से पाकिस्तान जाने का अपना रास्ता मै खुद बना लूंगा। मैने उठते हुए कहा… मै अजीत सर से बात करके आपके निकलने का इंतजाम करता हूँ। यह बोल कर मै बाहर निकल गया था। दोपहर तक मै अपने आफिस पहुँच गया था। जीप से उतरते ही थापा को नफीसा को लाने के लिये घर भेज दिया था। नफीसा के आते ही उसे एयरपोर्ट जाते हुए सारी बात समझा दी थी कि वह मिरियम का वोटर कार्ड को दिखा कर बोर्डिंग करे और त्रिभुवन एयरपोर्ट पर जेनब और अंजली उसको मिल जाएँगें। मैने उसे यह भी बता दिया था कि एक दो दिन मे उसके अब्बा भी काठमांडू पहुँच जाएँगे। यह सुन कर एक पल के लिये वह ठगी सी खड़ी रह गयी थी। अचानक अपनी बाँहें फैला कर मुझसे लिपट कर रोने लगी। मै कुछ बोलता उससे पहले अपना चेहरा मेरे सीने मे छिपाये वह धीरे से बोली… आपका एहसान मै जिन्दगी भर नहीं भूलूँगी।  मैने धीरे से उसके बालों को सहलाते हुए कहा… इसमे मेरा कोई एहसान नहीं है। अगर कोई परेशानी हो तो अंजली को खबर कर देना। अपनी निगाहें उठा कर मेरी ओर देखा तो उसकी आँखों मे आँसू झिलमिला रहे थे। मैने उसके चेहरे को अपने हाथों मे लेकर जल्दी से कहा… मै तो सोच रहा था कि यह खबर सुन कर तुम खुश हो जाओगी। उसके चेहरे पर एक मुस्कान तैर गयी थी। …अब्बू कह रहे थे कि उनसे मै आखिरी बार मिल रही हूँ। उनसे दोबारा मिलने की मेरी सारी उम्मीद खत्म हो गयी थी। आप सच कह रहे है। …मैने तुमसे अभी तक कोई झूठ बोला है? उसने एक बार मेरी ओर ध्यान से देखा और फिर गरदन हिला कर मना कर दिया। मै उससे अलग हो गया और इमीग्रेशन काउन्टर की ओर इशारा करके कहा… टाइम हो गया है। वह एक पल के लिये उसके होंठ कुछ बोलने के लिये फड़फड़ाये लेकिन वह एकाएक मुड़ी और आगे बढ़ गयी। मै वहाँ तब तक खड़ा रहा जब तक तो वह सिक्युरिटी चेक करा कर आगे नहीं चली गयी थी। उसके ओझल होते ही मै वापिस अपने आफिस की ओर चल दिया था।

पाँच बजे एक बार फिर इन्टर्काम पर बुलावा आ गया था। वह तीनो बैठे हुए किसी बात पर चर्चा कर रहे थे। …आओ मेजर। मेरे बैठते ही उन्होंने सवाल दाग दिया था। …शुजाल बेग का क्या सोचा? अपनी दिन भर की उठा पटक की बात करने के बाद मैने कहा… उसने हया के लिये साफ मना कर दिया है। …तो तुमने क्या सोचा? …सर, उसे छोड़ना तो है। पहले मै सोच रहा था कि उसको फारुख के हवाले कर दूँगा लेकिन एक बात तो तय है कि अगर वह सही सलामत पाकिस्तान पहुँच गया तो जनरल मंसूर बाजवा की दुकान बन्द हो जाएगी। अगर आईएसआई मे अस्थिरता हो गयी तो आप्रेशन खंजर को भी झटका लग जायेगा। मेरे सामने यह दो विकल्प है। पहला उसे सुरक्षित काठमांडू पहुँचा दिया जाये अन्यथा दूसरा उसे नेपाल की सीमा मे दाखिल करवा कर उसके पीछे फारुख को लगा दिया जाये। जिसके पास ज्यादा ताकत होगी वह बच जायेगा। तीनो ने एक दूसरे को देखा और फिर अजीत सर ने कहा… हमारे निशाने पर प्यादा नहीं है बल्कि उसके मालिक जनरल शरीफ और मंसूर बाजवा है। शुजाल बेग को सुरक्षित काठमांडू पहुँचा दिया जायेगा तो वह बेहतर विकल्प साबित होगा। …सर, उसे हमारे काठमांडू फ्रंट का पता लग चुका है। तीनो एक बार फिर से चर्चा करने बैठ गये थे। आखिर मे यही तय हुआ कि उसे काठमांडू पहुँचा देना ही ठीक रहेगा। अजीत सर ने कहा… आज रात के अंधेरे मे तुम दोनो को हेलीकाप्टर से उसी बीएसएफ के हेलीपेड पर उतार देते है जहाँ से लिया था। वहाँ से तुम दोनो सीमा पार करके काठमांडू की ओर निकल जाना।

मैने आफशाँ को फोन पर बता दिया था कि एक जरुरी काम के सिलसिले मे दो दिन के लिये बाहर जाना पड़ रहा है। रात के अंधेरे मे शुजाल बेग को एयरपोर्ट पहुँचा दिया गया था। देर रात को हम रक्सौल पहुँच कर नेपाल की सीमा मे दाखिल हो गये थे। बीरगंज से काठमांडू के लिये टैक्सी मिल गयी थी। लम्बा सफर था तो आराम से बात करने का मौका मिल गया था। …ब्रिगेडियर साहब, आपको मेरी असलियत का पता चल गया है। अब आप जब चाहेंगें आप मेरे कारोबार को बंद करा देंगें। शुजाल बेग ने मेरी ओर देख कर कहा… मेजर, तुम्हारा धमकी देने का तरीका नायाब है। तुम जानते हो कि मैने अगर तुम्हारे फ्रंट का राज खोलने की कोशिश की तो उस सेल की सारी रिकार्डिंग मुझे फायरिंग स्कायड के सामने खड़ा कर देगी। तुम्हारे पास अभी भी वह सीडी है जिसके कारण तुम मुझे कभी भी कान से पकड़ कर कुछ भी करवा सकते हो। मैने मुस्कुरा कर कहा… मै जानता था कि आप काफी समझदार है। आपको धमकी देने की मुझे जरुरत नहीं पड़ेगी। उस रात हमारी काफी देर तक अनेक विषयों पर बात हुई थी।

सुबह की पहली किरण निकलते ही हम काठमांडू मे प्रवेश कर गये थे। …मेजर मुझे शाही मस्जिद के पास उतार देना। यहाँ से आगे का रास्ता मुझे खुद तय करना होगा। शाही मस्जिद पर पहुँच कर मैने कहा… ब्रिगेडियर साहब, आपके सारे पत्ते अभी भी मेरे हाथ मे है लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि अगर मै आप पर हया के लिये अभी भी दबाव डालूँगा तब भी आप मुझे साफ इंकार कर देंगें। क्या मै गलत सोच रहा हूँ? शुजाल बेग टैक्सी से उतरते हुए बोला… तुम भी अब मुझे समझने लगे हो। …ऐसी क्या मजबूरी है। क्या उसके साथ कोई पुराना इश्क का चक्कर है? वह ठहाका मार कर हँस कर बोला… मेजर, वह जेनब की उम्र की है। उसके दिमाग का मै लोहा मानता हूँ। इतना बोल कर वह चल दिया था। टैक्सी मुझे मेरे घर के बाहर छोड़ कर वापिस चली गयी थी। आरफा ने दरवाजा खोला था। मुझे देख कर वह चौंक गयी तो मैने उसकी पीठ थपथपा कर कहा… मै ही हूँ। यह सपना नहीं है तुम भी जाकर सो जाओ। मै भी सोने जा रहा हूँ। यह बोल कर मै अपने कमरे मे चला गया था। तबस्सुम गहरी नींद मे सो रही थी। मैने जल्दी से कपड़े उतारे और बाक्सर पहन कर अपनी रजाई मे घुस गया था। थोड़ी सी गर्मी मिलते ही तेज नींद का झोंका आया और मै सपनो की दुनिया मे खो गया था।

जब नींद टूटी तो दोपहर ढल रही थी। तबस्सुम और आरफा कहीं नहीं दिखी तो तैयार होने चला गया। जैसे ही तैयार होकर बाहर निकला कि तबस्सुम सामने पड़ गयी थी। …तुमने यह नहीं पूछा कि मै आज यहाँ कैसे आ गया? …मुझे पता है कि आप ब्रिगेडियर साहब को छोड़ने आये है। एक पल के लिये मै उसकी ओर देखता रह गया था। मुझे समझ नहीं आया कि उसने यह कैसे अंदाजा लगाया था। अचानक वह आगे बढ़ कर अपने पंजों के बल उचकी और मेरे गाल को चूम कर बोली… अपने दिमाग पर जोर मत डालिये। जेनब ने फोन पर बताया था कि उसके अब्बू काठमांडू पहुँच गये है। उसने सिर्फ आपको शुक्रिया कहने के लिये फोन किया था। मैने उसे अपनी बाँहों मे भरते हुए कहा… आज रात को इस शुक्रिये का तुमसे हिसाब वसूल करुँगा। इतनी बात करके मै गोदाम की ओर चल दिया। अपने संपर्क केन्द्र मे पहुँच कर पहले मैने फोन पर अजीत सर को शुजाल बेग के सही सलामत काठमांडू पहुँचने की सूचना दी और फिर अपनी वापिसी के टिकिट को बुक कराने मे व्यस्त हो गया। अपना सारा काम समाप्त करके कुछ देर कैप्टेन यादव के साथ बिता कर मै अपने घर की ओर चल दिया था।

आफिस लगभग खाली हो गया था। अपनी गाड़ी पार्क करके मै अपने घर मे चला गया। दोनो अभी आफिस मे बैठी हुई किसी काम मे व्यस्त थी। चाय के लिये बोल कर मै अपने कमरे मे आ गया था। मै सोच रहा था कि शुजाल बेग के सामने आते ही पाकिस्तानी दूतावास मे हलचल मच जाएगी। तबस्सुम और आरफा भी गाड़ी को देख कर उपर आ गयी थी। सब रोजमर्रा के काम समाप्त करके जब सोने का समय हुआ तो तबस्सुम मेरे साथ लेटते हुए बोली… अब कुछ महीने के लिये छुट्टी हो गयी है। मैने कोई जवाब नहीं दिया बस उसको बाँहों मे लिये पड़ा रहा था। …आपकी आफशाँ से बात हुई? …हाँ उसने खुद ही बताया था कि काम के सिलसिले मे एक दिन के लिये उसे काठमांडू जाना पड़ा था। …तो फिर आप क्या सोच रहे है? …एक बात मुझे समझ नहीं आयी कि ब्रिगेडियर सब कुछ बताने को तैयार हो गया था परन्तु उस मेजर हया के लिये वह अपना सब कुछ दाँव पर लगाने के लिये तैयार था परन्तु क्यों? ब्रिगेडियर जैसे आदमी से मुझे ऐसी उम्मीद नहीं थी। तबस्सुम ने जब कोई जवाब नहीं दिया तो मैने अपना सिर झटकार कर कहा… मेरी जान कल सुबह की फ्लाईट है तो मुझे जल्दी उठना है। सो जाओ।

सुबह तबस्सुम ने मुझे टाइम से उठा दिया था। मै तैयार होकर जैसे ही निकलने वाला था कि तभी मुझे याद आया कि कैप्टेन यादव को बताना भूल गया था। …अंजली, कैप्टेन यादव को बुलाना भूल गया। इस वक्त यहाँ टैक्सी भी नहीं मिलेगी। मै गाड़ी लेकर एयरपोर्ट जा रहा हूँ। कैप्टेन यादव से कह देना कि वह पार्किंग से गाड़ी ले आये। वह मेरे साथ बाहर निकलते हुए बोली… चलिये मै आपको छोड़ देती हूँ। …तुम्हें गाड़ी चलानी आती है? …क्यों क्या सिर्फ इसे चलाने का ठेका आप मर्दों ने ही ले रखा है। मैने आश्चर्य से उसकी ओर देखते हुए कहा… तुमने मुझे आज तक इसके बारे मे कभी नहीं बताया। … कभी आपने पूछा नहीं तो मै क्यों बताती। अब चलिये। मै चुपचाप उसके साथ चल दिया। अपनी इसुजु की चाबी उसकी ओर उछाल कर मैने कहा… अब से तुम गाड़ी चलाओगी और मै आराम से बैठूँगा। उसने स्टीयरिंग संभाल लिया और स्टार्ट करके रिवर्स मे गाड़ी पार्किंग से बाहर निकाली और कुछ ही देर मे हम एयरपोर्ट की ओर चल दिये थे।

वह आराम से गाड़ी चलाते हुए बोली… आपको डर लग रहा है? …क्यों? …आप चुपचाप बैठे हुए है। मैने मुस्कुरा कर कहा… तुम इतनी रहस्यमयी हो कि हर बार मुझे चौंका देती हो। जब मुझे लगता है कि मै तुम्हे जानने लगा हूँ तभी तुम कुछ ऐसा कर देती हो कि मै सोचने पर मजबूर हो जाता हूँ कि अभी भी तुम्हारी बहुत सी परतें खुलना बाकी है। हम बात करते हुए एयरपोर्ट पहुँच गये थे। मै गाड़ी से नीचे उतर कर चलने लगा तो वह तेजी उतर कर मेरे पीछे आयी और मुझे अपनी बाँहों मे बाँध कर बोली… आपने मेरी ड्राईविंग के बारे मे कुछ नहीं कहा। मैने घूम कर उसकी आँखों मे झाँकते हुए कहा… अभी पता नहीं और कितने झटके दोगी। तुम ड्राइविंग टेस्ट मे पास हो गयी हो। उसने अपनी जेब से नेपाल का ड्राईविंग लाईसेन्स निकाल कर दिखाते हुए कहा… यहीं पर कार चलानी सीखी थी। पिछले हफ्ते ही लाईसेन्स बना है। मैने उसको बाँहों मे जकड़ कर कहा… बानो, यह सब मुझे पहले बता देती तो मुझे झटका तो नहीं लगता। …अगर आपको बता देती तो क्या आप सबके सामने मुझे ऐसे सबके सामने जकड़ते? मैने निगाहें घुमा कर देखा तो बहुत से लोग अपनी गाड़ियों से निकल कर फ्लाईट पकड़ने के लिये अन्दर जा रहे थे। किसी का ध्यान हमारी ओर नहीं था। बिजली की तेजी से झुक कर उसके होंठ चूम कर मै गेट की ओर बढ़ गया था। वह वहीं खड़ी हुई मुझे जाते हुए देखती रही थी। गेट पार करके मैने मुड़ कर उसकी ओर देखा तो वह हाथ हिला कर गाड़ी की ओर चली गयी थी।

अपना बोर्डिंग पास लेकर मै सिक्युरिटी चेक के लिये चला गया था। अभी बोर्डिंग मे टाइम था तो मै लाउन्ज मे बैठ कर टीवी पर नेपाल की न्युज देख रहा था। नेपाली भाषा मुझे समझ नहीं आ रही थी परन्तु माओइस्टों के प्रदर्शन को देख कर समझ गया था कि यहाँ पर काफी राजनीतिक हलचल हो रही थी। बोर्डिंग की घोषणा होते ही मै उठ कर खड़ा हो गया था। अचानक मेरी दृष्टि टीवी के स्क्रीन पर पड़ी तो एक खबर पढ़ कर चौंक गया था। पुलिस को एक लावारिस लाश शाही मस्जिद के परिसर से मिली थी। मेरे कदम आगे बढ़ते हुए रुक गये थे। स्क्रीन पर शाही मस्जिद की तस्वीर दिखा रहे थे और स्क्रीन के एक कोने मे लाश की तस्वीर फ्लैश हो रही थी। शुजाल बेग का ख्याल आते ही मेरे दिल की धड़कन बढ़ गयी थी। उसकी हत्या होने का मतलब था कि आप्रेशन खंजर अभी भी कार्यान्वित होने की दिशा मे बढ़ रहा है। एक बार मन हुआ कि मुझे रुक कर सारी परिस्थिति का आंकलन करके लौटना चाहिये परन्तु अगले ही पल ध्यान आया कि वह तीनो मेरी राह देख रहे होंगें।

अचानक एयरलाइन्स की ओर से मेरे नाम की घोषणा होने लगी थी। एयरलाइन्स का स्टाफ मुझे ढूँढने के लिये इधर-उधर भाग रहा था। कुछ सोच मै बोर्डिंग गेट की ओर चल दिया। मेरे पहुँचते ही आनन-फानन मे मुझे हवाई जहाज मे बिठा दिया गया और मेरे बैठते ही हवाई जहाज दिल्ली के लिये रवाना हो गया था। वैसे भी अगर शुजाल बेग की हत्या हो गयी थी तो भी मेरा दिल्ली जाना जरुरी था। अगर वह बच गया फिर तो कोई बात नहीं थी। यही सोच कर मै हवाईजहाज मे बैठ गया था। दिल्ली एयरपोर्ट पर थापा आ गया था। जीप मे बैठते ही मैने भारतीय दूतावास मे मनोहर लाल शर्मा से कहा कि वह पुलिस से पता लगा कर मुझे खबर करे कि शाही मस्जिद मे मरने वाले आदमी की क्या शिनाख्त हो गयी। बारह बजे आफिस पहुँचते ही एनएसए का सेक्रेटरी मेरे दरवाजे पर खड़ा हुआ मेरी राह देख रहा था। मुझे देखते ही बोला… आपको साहब ने बुलाया है। अपने आफिस न जाकर मै सीधे अजीत सर से मिलने चला गया था। अजीत सर और जनरल रंधावा बैठे हुए थे। मुझे देखते ही अजीत सर ने कहा… क्या तुम्हें पता चला कि शुजाल बेग की हत्या हो गयी है? अभी नेपाल से खबर मिली है कि शाही मस्जिद के अन्दर जो लाश मिली थी उसकी शिनाख्त पाकिस्तानी दूतावास ने कर दी है। दूतावास ने बताया है कि मरने वाले का नाम ब्रिगेडियर शुजाल बेग था।

सारे रास्ते मुझे जिसका डर था वही हो गया था। मेरी सारी मेहनत पर किसी ने पानी फेर दिया था।

रविवार, 10 सितंबर 2023

   

 

गहरी चाल-25

 

एक पल के लिये मै जड़वत बैठा रह गया था। जब मुझे कुछ समझ मे आया तो उसके पीछे भागा लेकिन वह बाहर दिखायी नहीं दे रही थी। मेरी नजर पहले मुख्य द्वार पर पड़ी तो दरवाजा बन्द था। इसका मतलब वह घर से बाहर नहीं गयी थी। आरफा का दरवाजा बन्द देख कर मै कुछ सोच कर मेनका के कमरे की ओर चला गया। मैने भिड़े हुए दरवाजे को धीरे से धक्का दिया तो वह झोंक मे खुलता चला गया था। तबस्सुम मेनका के पास बैठी हुई शून्य मे ताक रही थी। उसका चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था और बेबसी मे वह लगातार अपनी मुठ्ठियाँ भींच रही थी। मै दरवाजे के बीचोंबीच खड़े होकर दबी आवाज मे बोला… हर कुछ जो दिखता है वह सच नहीं होता। वह मुझे घूरती रही लेकिन मैने जैसे ही उसकी ओर कदम बढ़ाया तो वह फुर्ती से उठ कर खड़ी हो गयी थी। अपने कदम पीछे खींचते हुए मैने कहा… बानो, यह स्थिति एक बार श्रीनगर मे उस रात को भी हमारे सामने आयी थी। आज फिर कह रहा हूँ कि एक बार मेरी बात शांति से सुन लो फिर जो भी तुम कहोगी बिल्कुल वैसा होगा। अभी भी उसकी आँखों से अंगारे बरस रहे थे। गुस्से मे अभी भी उसकी मुठ्ठियाँ भिची हुई थी। मैने एक नजर सोती हुई मेनका पर डाल कर उसकी ओर देखते हुए दबी जुबान मे कहा… तुम जिस आदमी के साथ इतने दिन साथ रही बस उसे इतना ही समझ पायी कि वह एक हैवान है। अचानक वह धम्म से बिस्तर पर बैठ गयी और उसकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी।

मै उसके नजदीक चला गया था। उसको कंधो से पकड़ कर खड़ा किया और अपनी बाँहों मे जकड़ कर वहाँ से अपने कमरे की ओर चलते हुए कहा… मेरे साथ दोजख मे जाने का दम भरती हो लेकिन मुझ पर इतना भी विश्वास नहीं है। यह तुमने कैसे सोच लिया कि मै उस लड़की के साथ ऐसा कुछ कर सकता हूँ। तबस्सुम को अपने साथ बिस्तर पर बिठा कर मैने कहा… वह ब्रिगेडियर शुजाल बेग की बेटियाँ है। मै उनसे बस इसलिये अकेले मे मिलना चाहता था कि एक बार उन्हें उनके अब्बा से मिलवा दूँ जिससे वह अपनी जिद्द छोड़ कर सच्चायी बता दे। इतनी देर मे उसने पहली बार भीगी हुई पल्कों से मेरी ओर देखा तो  मैने कहा… मेरी बात पर विश्वास नहीं है तो कल सुबह मेरे साथ वहाँ चल कर देख लेना। उसके होंठ कुछ बोलने के लिये काँपे तो मैने उसके होंठों पर उँगली रख कर चुप कराते हुए कहा… दो दिन पहले तुम्हारे अब्बा से दिल्ली मे मिला था। वह ब्रिगेडियर शुजाल बेग की हत्या की नीयत से वहाँ आया हुआ था। मुझसे वह सौदा करना चाहता था कि आईएसआई की मेजर हया इनायत मीरवायज  के बदले मे उसे शुजाल बेग का पता चाहिये था। क्या तुम हया इनायत मीरवायज को जानती हो? मेरी निगाहें उस पर टिकी हुई थी लेकिन उस नाम को सुन कर उसके चेहरे पर हल्की सी भी प्रतिक्रिया नहीं दिखी थी।

वह अब तक सयंत हो चुकी थी। मेरी ओर भीगी पल्कों से देखते हुए धीरे से बोली… मुझे उनसे कोई मतलब नहीं है। मेरा रिश्ता अब आपसे है लेकिन आपने भी मुझे इतने दिन धोखे मे रखा। आप मुझे पहले ही बता देते तो ऐसी गलतफहमी तो नहीं होती। उसके एक ही वार ने मेरी सारी धूर्तता और चालाकी को धाराशायी कर दिया था। मैने उसके हाथों को अपने हाथ मे लेकर कहा… तबस्सुम, मै यहाँ पर सिर्फ ब्रिगेडियर शुजाल बेग के लिये आया था। मै स्थायी रुप से यहाँ रहने की मंशा से हर्गिज नहीं आया था। यही सच है लेकिन तुमने मेरे सारी योजना को गडमड कर दिया। तुम अगर निकाह के लिये जोर नहीं डालती तो मै कभी भी यहाँ पर इतना बड़ा करोबार जमाने की नहीं सोचता। अपने काम को अंजाम देने के लिये मुझे सिर्फ एक फ्रंट की जरुरत थी। एक बार तुम्हारे साथ निकाह हो गया तो उसके बाद ही मुझे तुम्हारे लिये कुछ स्थायी इंतजाम करने की जरुरत महसूस हुई थी। भारत मे तुम्हारे अब्बू की नजरों से मै ज्यादा दिन तुम्हें बचा कर नहीं रख सकता था। मुझे यह जगह सुरक्षित लगी तो यहाँ एक स्थायी कारोबार डालने के लिये गंभीरता से सोचने लगा था। मै बोलते हुए एक पल के लिये रुक गया था।

…आप यहाँ ब्रिगेडियर साहब के लिये क्यों आये थे? …श्रीनगर मे तुम्हारे अब्बू ने बताया था कि कोई वलीउल्लाह नाम का कोडनेम लिये गद्दार हमारे देश की कुछ महत्वपूर्ण सैन्य जानकारी आईएसआई को दे रहा है। वलीउल्लाह को पकड़ने के लिये तुम्हारे अब्बू ने मुझे वलीउल्लाह की हैंडलर मेजर हया इनायत मीरवायज को पकड़ने की सलाह दी थी। हया को तो मै खोज नहीं सका लेकिन दिल्ली और बंगाल मे एक कार्यवाही दौरान यह पता चला कि जिहादी काउंसिल कोई बहुत बड़ा फिदायीन हमला भारत मे करने की योजना बना रही है जिसका संचालन ब्रिगेडियर शुजाल बेग काठमांडू से कर रहा है। इसीलिये हम यहाँ पर शुजाल बेग को भारत ले जाने के लिये आये थे। …तो क्या उसने आपको बता दिया? …अभी नहीं लेकिन अगर उसने जल्दी नहीं बताया तो शुजाल बेग का पूरा परिवार बेवजह मारा जाएगा। हमारे पास शुजाल बेग की ऐसी सीडी है जिसे अगर हमने नेपाल सरकार को दे दी तो सारी पाकिस्तानी स्थित चरमपंथी तंजीमे शुजाल बेग को ही नहीं बल्कि उसके पूरे परिवार को बड़ी दर्दनाक मौत देंगी जिसमे जेनब और नफीसा भी शामिल है। मेरे सीओ साहब ने उस सीडी को नेपाल सरकार को देने का मन बना लिया था लेकिन मैने एक हफ्ते के लिये इस काम को टलवा दिया है। शुजाल बेग भले ही हमारा दुश्मन है लेकिन वह आखिर एक सैनिक है। उसके परिवार को उसके किये की सजा तो नहीं दी जा सकती बस यही सोच कर मैने शुजाल बेग का मुँह खुलवाने की जिम्मेदारी अपने सिर पर ले ली थी। अब अगर एक हफ्ते मे उसने वलीउल्लाह का राज और जिहादी काउंसिल की योजना का खुलासा नहीं किया तो वह सीडी नेपाल सरकार को दे दी जाएगी। मुझे लगता है कि जब जेनब और नफीसा उससे पूछेंगी तो हो सकता है कि वह शायद बता दे। वह अभी तक मेरी बात चुपचाप सुन रही थी।

अब तक वह शांत हो चुकी थी। मैने उसका हाथ छोड़ कर कहा… शुजाल बेग अपनी गलतियों को छिपाने के लिये नूर मोहम्मद को बलि का बकरा बना रहा था। मैने उसकी मदद की तो नूर मोहम्मद ने शुजाल बेग को प्लेट मे सजा कर हमारे हवाले कर दिया था। मैने सारी सच्चायी तुम्हारे सामने रख दी है। यह सब किसी सिविलियन को बताना मेरे लिये प्रतिबन्धित है। अब जब अपना जीवन ही तुम्हारे हाथ मे रख दिया है तो फिर तुमसे क्या छिपाना। मैने सारी सच्चायी तुम्हारे सामने रख दी है। अब जैसा तुम चाहोगी मै वही करुँगा। इतना बोल कर मै चुप हो गया था। वह सिर झुकाये चुपचाप बैठी रही फिर धीरे से नजरें उठा मेरी ओर देख कर बोली… प्लीज, आप मुझे और शर्मिन्दा मत किजिये। फोन पर आपकी बात सुन कर ऐसी बात मेरे मन मे ही क्यों आयी मुझे पता नहीं। इतने दिनो से आपके साथ रहने के बाद भी मैने इतनी भारी गल्ती कैसे कर दी कि मै खुद ही अपनी ही नजरों मे गिर गयी हूँ। अब किस मुँह से आपसे माफी मांगू मुझे समझ मे नहीं आ रहा है। वह सिर झुका कर बैठ गयी थी। मैने उसे पकड़ कर अपने सीने से लगा कर कहा… तुम्हारी कोई गल्ती नहीं है। यह तुम्हारी अच्छाई है कि तुमने शांति से मेरी बात सुनी वर्ना जरा सी बात पर लोगों के घर टूट जाते है। इस वक्त तुम्हारे शरीर मे बहुत से बदलाव हो रहे जिसके कारण गुस्सा आना स्वाभाविक है। उसके लिये मुझसे माफी मांगने की जरुरत नहीं है। बस एक बात गाँठ बांध लो कि जानबूझ कर मै कभी भी तुम्हारा दिल दुखाने की नहीं सोच सकता। बस अगर इतना विश्वास मुझ पर रखोगी तो वादा करता हूँ कि दोजख मे भी हमारा समय आराम से कट जाएगा। वह मुस्कुरायी और उसी के साथ हमारी सुलह हो गयी थी।

सुबह उठते ही तबस्सुम ने कहा… आप गार्डन आफ ड्रीम्स जा रहे है। हमे भी ले चलिये। इसी बहाने मेनका भी वहाँ घूम लेगी वर्ना कल सुबह तो आप दोनो वापिस चले जाएँगें। …तुम दोनो भी चलो। तुम अगर वहाँ होगी तो शायद जेनब बात करते हुए नहीं घबरायेगी। मै तैयार होने के लिये चला गया और तबस्सुम मेनका को तैयार करने के लिये चली गयी थी। दस बजे तक हम नाश्ता करके गार्डन आफ ड्रीम्स के लिये निकल गये थे। बेहद मनोरम प्रकृतिक धरोहर है। सर्दियों मे भी वहाँ पर चारों तरफ काफी हरियाली थी। दो काफी हाउस होने के कारण वहाँ पर पर्यटकों की काफी भीड़ लगी हुई थी। मेरी आँखें जेनब को तलाश रही थी। उस भीड़ मे उसे पहचानना मेरे लिये आसान भी नहीं था। मैने उसको सिर्फ एक बार देखा था तो अब मुझे भी अपने उपर शक होने लगा था। अचानक मेनका और तबस्सुम आगे बढ़ गये थे। मै उन्हें रोकने के लिये आवाज देने जा रहा था कि तभी मेरी नजर उन पर पड़ी जिनसे मिलने के लिये वह आगे बढ़ गये थे। जेनब नीचे झुक कर मेनका से बात कर रही थी और तबस्सुम से नफीसा बात कर रही थी। उनको देख कर मुझे लगा कि मेरे दिमाग मे जो उनकी जो छवि थी उससे तो वह काफी भिन्न दिख रही थी। नूर मोहम्मद के यहाँ तो वह दोनो ही मुझे स्कूल की लड़कियाँ लगी थी परन्तु इस समय टी-शर्ट और जीन्स मे तो दोनो ही उठती हुई उम्र की युवतियाँ लग रही थी।

मै उनके पास चला गया था। …सलाम। दोनो ने सलाम किया और नफीसा ने तबस्सुम से पूछा… आप लोग मेनका को घुमाने के लिये आये है। अबकी बार मैने कहा… अंजली, मेनका को घुमाने के लिए आयी है लेकिन मै तुमसे मिलने आया हूँ। मेरी बात सुन कर दोनो के चेहरे पर डर की लकीरें खिंच गयी थी। दोनो के चेहरे पर घबराहट देख कर तबस्सुम ने कहा… घबराने की कोई जरुरत नहीं। तुम इन्हें बेफिक्र होकर सुन लो और फिर जो ठीक समझो वह करना। तबस्सुम की बात सुन कर जेनब सहज होकर बोली… नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। मैने पूछा… क्या तुमने यहाँ किसी से मिलने की बात कह कर आयी थी? …नहीं। हम सिर्फ यह बोल कर आयी है कि हम घूमने जा रहे है। मैने एक बार चारों दिशाओं मे देख कर कहा… तुम दोनो हमारे साथ बात करती हुई चलो जैसे कि परिवार के लोग यहाँ घूमने आये है। हम सब गार्डन के अन्दर चले गये थे। पेड़ों के बीच मे घूमते हुए वह सब मेरे आगे कुछ देर बात करते हुए चलते रहे और मै आसपास देखता हुआ चल रहा था कि कोई हमारा पीछा तो नहीं कर रहा है। जब मै पूरी तरह आश्वस्त हो गया कि कोई उनका पीछा नहीं कर रहा है तो मै उनके साथ चलने लगा।

उनके साथ चलते हुए मैने कहा… तुम्हारे अब्बू बिल्कुल ठीक है और मै तुम्हें उनसे मिलवा सकता हूँ। नफीसा चलते-चलते रुक गयी तो मैने आवाज कड़ी करते हुए कहा… रुको नहीं बस चलती रहो। मेरी बात सुन कर दोनो के चेहरों पर हवाइयां उड़ गयी थी। प्राकृतिक धरोहर के बीचोंबीच बड़ा सा खुला मैदान देख कर हम उस ओर बढ़ गये थे। बहुत से सैलानी सर्दियों की धूप का मजा लेने के लिये वहाँ बैठे हुए थे। एक सुनसान कोने मे हम सब भी जाकर बैठ गये थे। मेनका बैठे हुए पंछियों को उड़ाने मे व्यस्त हो गयी थी।  

अपने विचारों को एक तारतम्य मे बिठा कर मैने कहा… मुझे तुम्हारी मदद चाहिये। अब यह तुम पर है कि क्या तुम एक अनजान आदमी पर विश्वास कर सकती हो। तुम्हारे अब्बा इस वक्त भारतीय सेना के हाई-सिक्युरिटी सेल मे बन्द है। उनसे मिलने के लिये तुम्हे मेरे साथ दिल्ली चलना पड़ेगा। मेरी कल सुबह नौ बजे की फ्लाइट है। मैने तुम्हारे अब्बा से सिर्फ दो सवाल पूछे है लेकिन वह जवाब देने से इंकार कर रहे है। अगर वह जवाब नहीं देंगें तो फिर उन्हें कोई नहीं बचा सकता। क्या ऐसी हालत मे तुम उनसे मिलना चाहोगी? दोनो सिर झुकाये बैठी हुई थी लेकिन वह मेरा एक-एक शब्द ध्यान से सुन रही थी। तभी तबस्सुम ने कहा… कोई भी जवाब देने से पहले तुम्हें यह जान लेना चाहिये कि यह काफ़िरों की फौज के अफसर है। यह दुश्मन है लेकिन मै पूरी शिद्दत से इनकी जामिन हूँ कि यह तुम्हारे अब्बू को ही नहीं बल्कि उनके पूरे परिवार को बचाने की कोशिश कर रहे है जिसमे तुम दोनो भी शामिल हो। एक पल रुक कर मैने कहा… उनसे एक भी ऐसा सवाल नहीं पूछा है जिसके जवाब देने के कारण उन्हें उनका कोई देशवासी गद्दार ठहरा सकता है। मै सिर्फ एक सैनिक की तरह दूसरे सैनिक की मदद करना चाहता हूँ। मै कोई गारन्टी नहीं दे रहा लेकिन यह भी हो सकता है कि अगर वह हमारी मदद करने के लिये तैयार हो गये तो हम उन्हें छोड़ भी सकते है।

वह दोनो चुपचाप मेरी बात सुन रही थी। …तुम दोनो को एक और बात समझना बहुत जरुरी है कि हमारे बीच मे हुई बात सिर्फ हमारे बीच मे रहनी चाहिये। अगर यह बात तुमने किसी और से की तो मैने साफ इंकार कर देना है क्योंकि औपचारिक तौर पर कोई नहीं जानता कि तुम्हारे अब्बा इस वक्त कहाँ पर है। पाकिस्तान मे उनके अधिकारी यह सोच रहे है कि वह पैसों की लालच मे हमसे मिल गये है जो कि बिल्कुल गलत है। इसीलिये उन्होंने अपने फिदायीन तुम्हारे अब्बा की हत्या करने के लिये भारत मे भेज दिये है। यह जानते हुए कि तुम्हारे अब्बू हमारे दुश्मन है मै फिर भी उन्हें सिर्फ फौजी होने के नाते बचाना चाहता हूँ। अब तुम्हें सोचना है कि क्या तुम उनसे एक बार मिल कर बात करना चाहती हो कि नहीं। बस इसमे मेरी ओर से सिर्फ एक ही शर्त है कि इसका निर्णय सिर्फ तुम दोनो को लेना है और इसके लिये तुम किसी और से सलाह नहीं ले सकती। मुझे तुम दोनो से बस इतनी बात करनी थी। अब मै मेनका को अपने साथ लेकर घूमने जा रहा हूँ और थोड़ी देर के बाद आऊँगा तब तक अपना जवाब सोच लेना। इतना बोल कर उन्हें तबस्सुम के पास छोड़ कर मै मेनका को लेकर घूमने के लिये निकल गया था।

आधे घंटे के बाद जब मै लौटा तो मैने देखा कि वह दोनो तबस्सुम से बात कर रही थी। मुझे देखते ही वह सब चुप हो गये थे। …तो फिर क्या सोचा? जेनब ने कहा… हमने सोच लिया है कि एक बार अब्बा से मिल कर उनसे बात करना जरुरी है। …तो मेरे साथ कौन चल रहा है? …हम दोनो चल रही है। …नहीं यह नहीं हो सकता। यहाँ से एक के जाने मे ही मुश्किल होगी और अगर दोनो यहाँ से चली गयी तो यहाँ पाकिस्तानी दूतावास मे विस्फोटक स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। वैसे भी एक यहाँ रुक कर दूसरी को आसानी से कवर कर सकती है। दोनो ने गुपचुप बात की और फिर जेनब ने कहा… नफीसा आपके साथ चली जाएगी। मै यहाँ पर सब कुछ संभाल लुँगी। …ठीक है। …नूर मोहम्मद अंकल को क्या कह कर जाओगी? इतनी देर मे तबस्सुम पहली बार बोली… नफीसा आज की रात हमारे यहाँ रुक जाएगी। सुबह वहीं से आपके साथ एयरपोर्ट चली जाएगी। जेनब वापिस जाकर शबाना बाजी से कह देगी कि नफीसा अपने दोस्तों के साथ पोखरा चली गयी है। दो-तीन दिन मे वापिस आ जाएगी। मै उसी वक्त समझ गया था कि तबस्सुम के कारण ही वह इतनी जल्दी मेरे साथ चलने के लिये तैयार हो गयी थी। …ठीक है। सारी बात तय होने के बाद हम लोग मेनका के कारण एक बार फिर से पारिवारिक स्थिति मे आ गये थे।

तबस्सुम मेरे साथ आकर बैठ गयी थी। …तुमने मुझसे पूछे बिना तो कोई वादा तो नहीं किया है। वह कुछ देर चुप रही और फिर मेरी ओर देख कर बोली… बस एक वादा किया है कि अगर उनके अब्बा आपकी मदद करने के लिये तैयार हो गये तो आप उन्हें छोड़ देंगें। मैने दबी आवाज मे झिड़कते हुए कहा… तुमने ऐसा वादा क्यों कर दिया। मैने सिर्फ यह कहा है कि हो सकता है कि हम उन्हें छोड़ देंगें लेकिन…। …लेकिन-वेकिन कुछ नहीं। आप अपनी ओर से उन्हें छुड़वाने की पूरी कोशिश करना। मैने झल्ला कर तबस्सुम के सिर को पकड़ कर हिला कर कहा… कभी तो इसका भी इस्तेमाल कर लिया करो। वह आईएसआई का सबसे दुर्दान्त अफसर है। अगर फिर कभी सामना हो गया तो बिना झिझके वह मुझे और तुम्हें जिन्दा दीवार मे चिनवा देगा। …कोई बात नहीं। यह क्या उसका कम एहसान होगा कि वह हमे एक साथ दीवार मे चिनवा देगा। मै जानता था कि शुजाल बेग को छोड़ना इतना आसान नहीं होगा लेकिन हम सभी जानते थे कि उसको वहाँ पर हमेशा के लिये रखा भी नहीं जा सकता था। मै उसे कैसे बताता कि इन दोनो के अब्बा या तबस्सुम के अब्बा मे से सिर्फ एक ही इंसान पाकिस्तान जिन्दा वापिस जायेगा।

मैने उठते हुए कहा… चलो कैफे मे बैठ कर कुछ खा-पी कर वापिस चलते है। वहीं से घर की ओर निकल जाएंगें। हम सभी कैफे की ओर चल दिये थे। हम पेड़ों के बीच बनी हुई पगडंडी पकड़ जैसे आये थे वैसे ही कैफे की ओर चल दिये थे। जैसे ही हम बाग से निकल कर सड़क पर पहुँचे कि अचानक मेरी नजर एक स्त्री और उसके दो साथियों पर पड़ी जो अपनी बातों मे उलझे हुए कैफे के सामने से गुजर रहे थे। मेरे कदम चलते-चलते एकाएक रुक गये थे। उस स्त्री को देख कर मेरा सारा जिस्म झनझना गया था। वही चेहरा और कद-काठी देख कर एक पल के लिये मेरे होश उड़ गये थे। तबस्सुम और दोनो बहने अपनी झोंक मे एक कदम आगे निकल गयी थी। मै मेनका का हाथ पकड़ कर खड़ा हुआ उस स्त्री को पीछे से देख रहा था। अचानक मेनका चिल्लायी… अम्मी। तबस्सुम ने घूम कर हमारी ओर देखा और तभी वह स्त्री भी चौंक कर आवाज की दिशा मे मुड़ी लेकिन तब तक मैने जल्दी से मेनका के मुख पर हाथ रख कर अपनी गोदी मे उठा लिया और पंजों पर घूम कर तेजी से कैफे के सामने इकठ्ठी हुई भीड़ मे घुस गया था। पल भर मे ही मेरा जिस्म पसीने से नहा गया था। मेरे हाथ और पाँव काँप रहे थे। आफशाँ तो ढाका गयी थी तो वह यहाँ काठमांडू मे क्या कर रही है और उसके साथ वह दोनो आदमी कौन थे? उनमे से एक आदमी को मैने नूर मोहम्मद की पार्टी मे देखा था।

तबस्सुम भीड़ को चीरते हुए मेरे पास आकर बोली… आपको क्या हुआ? मैने जल्दी से अपने आप को संभालते हुए कहा… कुछ नहीं। मेनका को गलतफहमी हो गयी थी। उसे लगा कि उसकी अम्मी उसके सामने से निकल गयी थी तो उसने आवाज लगा दी थी। इससे पहले कोई बखेड़ा खड़ा होता मै उसे लेकर यहाँ चला आया। मेनका तुरन्त बोली… नहीं अब्बू, मैने अम्मी को देखा था। …बेटा, तुम्हारी अम्मी यहाँ कैसे हो सकती है। वह इस वक्त ढाका मे है। आज तुम जरुर अंकल और आंटी के बीच लड़ाई करवा देती। अम्मी को आवाज लगाने से पहले देख तो लेती कि क्या वह तुम्हारी अम्मी है। चलो अब घर चलते है। मेरा मूड उखड़ गया था। मेनका भी मुझसे नाराज होकर चुप बैठ गयी थी। हम अपनी गाड़ी मे सवार हुए और वापिस चल दिये थे। मेरे दिमाग ने काम करना बन्द कर दिया था। कुछ दूर चलने के बाद जब दिमाग शांत हुआ तो मैने गाड़ी दरबार रोड की ओर मोड़ कर सीधे मैक्डोनल्ड के सामने ले जाकर खड़ी करके कहा… मुझे भूख लग रही है। जिसको भी कुछ खाना पीना है वह मेरे साथ चले। तबस्सुम, जेनब और नफीसा बोली कि हमे भी भूख लग रही है। तबस्सुम ने कहा… चलिये आज बर्गर ओर कोक का लंच हो जाए। मैने सिर झुकाये बैठी हुई मेनका से अपनी फौजी आवाज मे जल्दी से पूछा… जवान क्या बर्गर खायेगा? मेनका ने सिर उठा कर मेरी ओर देखा और फिर झेंपते हुए बोली… यस सर, जवान बर्गर खायेगा। यह बोल कर उसने तबस्सुम के सीने मे अपना चेहरा छिपा लिया था।

मैक्डोनल्ड मे प्रवेश करते ही मेनका के दिमाग से कैफे की घटना के बारे मे सब कुछ निकल गया और उसकी जगह अब बिग मैक ने ले ली थी। वह मेरे साथ लाइन मे लग गयी। हमारा नम्बर आते ही उसने अपना और बाकी सब का आर्डर लिखवाना शुरु कर दिया था। उसके सामान्य होते ही एक बार फिर उसकी बातों का सिलसिला आरंभ हो गया था। थोड़ी देर मे मेनका सबको अलग-अलग बर्गर और उनके साथ मिलने वाले खिलौनों के बारे मे बता रही थी। गार्डन आफ ड्रीम्स की घटना अब तक सबके दिमाग से निकल चुकी थी। लंच के दौरान यह तय हुआ कि जेनब लोकल टैक्सी लेकर अपने घर चली जाएगी और नफीसा हमारे साथ आज रात रहेगी। उन्होंने अपनी एक ही परेशानी हमारे सामने रखी थी कि नफीसा के लिये कपड़ों का कैसे इंतजाम होगा। उसकी मदद के लिये तबस्सुम ने कहा… मेरे पास कुछ कपड़े है। वह पहन कर देख लेना अगर फिट आ गये तो ठीक है वर्ना नये खरीद लेना। अच्छा है इसी बहाने नफीसा को नये कपड़े खरीदने का मौका तो मिलेगा। सारा माहौल इसी के साथ काफी खुशनुमा हो गया था।

जेनब को लोकल टैक्सी बैठाते हुए मैने कहा… मेरे साथ नफीसा सुरक्षित है। घबराने की जरुरत नहीं है। वह दो दिन मे वापिस आ जाएगी। बस दो दिन के लिये तुम यहाँ पर नूर मोहम्मद अंकल और शबाना आंटी को संभाल लेना। अगर तुम्हें नफीसा से फोन पर बात करनी हो तो अंजली के आफिस चली जाना तो वह तुम्हारी बात करा देगी। जेनब ने चलते हुए बस इतना कहा… प्लीज इसका ख्याल रखियेगा और अब्बा को मेरी ओर से सलाम कह दिजियेगा। मैने उसे आश्वस्त करके वापिस भेज दिया था। यह तो मै अच्छी तरह से जानता था कि जब नूर मोहम्मद को नफीसा नहीं दिखेगी तो सबसे पहले मुझ पर शक करेगा कि मैने उसे मनोहर लाल शर्मा के हवाले कर दिया होगा। मै यह भी जानता था कि वह इसके बारे मे वह किसी को कुछ भी बताने की स्थिति मे नही था तो वह जेनब की बताई हुई कहानी के अनुसार ही चलने के लिये बाध्य हो जाएगा।

मैक्डोनल्ड से निकल कर हम सभी गोदाम की ओर चले गये थे। उन्हें गाड़ी मे छोड़ कर मै यादव से मिलने चला गया। मुझे देखते ही उसने कहा… सर, उस गोदाम के बारे मे हमने पता लगाया है। मालिक एक करोड़ मांग रहा है। पांच एकड़ का प्लाट है लेकिन सिर्फ दो एकड़ कवर किया हुआ है। तीन डीलर तीन कीमत बता रहे है। अब आपको फाईनल करना है। …मुझे नहीं अंजली को फाईनल करना है। जो सबसे सस्ती कीमत बता रहा है उसे आफिस मे अंजली से मिला देना। लेकिन मै इसके लिये तुम्हारे पास नहीं आया हूँ। अभी से कमांड सेन्टर को सुचित कर दो कि पाकिस्तान दूतावास और नूर मोहम्मद पर चौबीस घंटे नजर रखें और अगर कोई हलचल दिखे तो तुरन्त मुझे खबर करे। कैप्टेन यादव ने वक्त की नजाकत समझते हुए कुछ नहीं कहा और वापिस लौटने लगा तो मैने उसे रोकते हुए कहा… कैप्टेन कल सुबह मुझे एयरपोर्ट जाने के लिये लिफ्ट चाहिये। सात बजे तक पहुँच जाईयेगा। …यस सर। बस इतनी बात करके वह संपर्क केन्द्र की ओर चला गया और मै अपनी गाड़ी की ओर चल दिया था। थोड़ी देर मे हम घर पर पहुँच गये थे। घर पहुँच कर सबसे पहले मैने नफीसा की टिकिट मिरियम बट के नाम से उसी फ्लाइट पर बुक करवायी और फिर मैने अपना फोन निकाल कर अजीत सर का नम्बर मिलाया। …हैलो। …सर, उसकी एक बेटी को मै अपने साथ लेकर कल सुबह दिल्ली पहुँच रहा हूँ। आप वहाँ उससे मिलने की इजाजत दिलवा दिजियेगा। …गुड। अजीत सर ने फोन काट दिया था।

तबस्सुम और आरफा ने नफीसा का इंतजाम मेनका के साथ कर दिया था। सभी थक गये थे तो रात को कुछ हल्का खाकर सोने के लिये चले गये थे। तबस्सुम ने लेटते ही प्रश्न किया… वहाँ पर आफशाँ को आपने देखा था। …हाँ। वह वही थी। मेनका ने उसे पहचान लिया था। …आपने उसे रोका क्यों नही? मैने जल्दी से कहा… यह मत सोचना कि मै तुमसे नहीं मिलवाना चाहता था। वह जिनके साथ जा रही थी उनमे से एक आदमी को मैने नूर मोहम्मद की पार्टी मे देखा था। अब भला आफशाँ मुझे ढाका का बता कर काठमांडू मे क्या कर रही थी और ऐसे आदमी के साथ उसका क्या संबन्ध हो सकता है? इसका जवाब जाने बिना मुझे लगा कि वहाँ पर आफशाँ से बात करना उचित नहीं होगा। …आपने बेचारी मेनका को युंहि डाँट दिया। उस बेचारी का मुँह जरा सा रह गया था। …कमाल है कि तुम्हें उसका चेहरा दिखा लेकिन मेरी हालत नहीं दिखी जिसकी बीवी उससे कह कर गयी थी कि वह ढाका जा रही है और वह उसे काठमांडू के एक पार्क मे दो लोगों के साथ दिखायी देती है। वह मुझसे लिपटते हुए बोली… देखने मे आफशाँ बेहद खूबसूरत है। मै अपना दिमाग आफशाँ से हटाना चाह रहा था लेकिन तबस्सुम उसकी बात करके मुझे असहज किये जा रही थी। उसे अपनी बाँहों मे जकड़ कर मैने कहा… बानो, आज मै तुम्हारे और आफशाँ की हर खूबसूरत चीज के बीच समानता और असमानता के बारे बताता हूँ। अब ध्यान से गिनती चलो क्योंकि फिर कभी नहीं बताउँगा। उसने शर्मा कर छूटने का प्रयत्न किया परन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

सुबह तबस्सुम ने मुझे टाइम से जगा दिया था। मै तैयार होने के लिये चला गया और वह नफीसा और मेनका को तैयार होने के लिये कहने चली गयी थी। ठीक सात बजे कैप्टेन यादव अपनी पिक-अप लेकर आ गया था। कुछ ही देर मे हम एयरपोर्ट की दिशा मे जा रहे थे। यादव एयरपोर्ट पर हमे छोड़ कर वापिस चला गया था। जीन्स और टी-शर्ट छोड़ कर नफीसा ने तबस्सुम का कुर्ता और शलवार पहन लिया था। अपनी चुनरी से उसने अपना सिर ढक कर मेनका की उंगली पकड़ कर वह मेरे साथ चल रही थी। …नफीसा यह कार्ड और पासपोर्ट अपने पास रख लो। पाकिस्तानी या अमरीकन पासपोर्ट के साथ तुम भारत मे बिना वीसा के प्रवेश नहीं कर सकोगी। बस अपना नाम याद कर लो जिससे अगर किसी ने पूछा तो तुम्हें कोई तकलीफ नहीं होगी। मैने मिरियम का वोटर कार्ड और पासपोर्ट उसके हवाले कर दिया था। अब मेनका से बात करने की बारी थी। …मेनका हमारे बीच कौनसा सीक्रेट है? अचानक उसे याद आ गया तो वह झेंप कर बोली… सौरी। मै भूल गयी थी। …तुमने गाड प्रामिस किया है। अबकी बार यह गलती नहीं होनी चाहिये। जब हम काठमांडू गये ही नहीं तो तुमने अम्मी को कैसे देख लिया था। मैने मेनका को गोदी मे उठा लिया और नफीसा के साथ चलते हुए हम सिक्युरिटी चेक की ओर बढ़ गये थे। काठमांडू और दिल्ली एयरपोर्ट पर अपने कार्ड के साथ ही मैने मेनका और मिरियम का कार्ड को बढ़ा दिया था। बिना किसी परेशानी के हम लोग एयरपोर्ट से बाहर निकल आये थे। थापा हमारा इंतजार कर रहा था। उन दोनो को अपने साथ बैठा कर मै बारह बजे तक अपने घर पहुँच गया था।

मैने जल्दी से अपनी युनीफार्म पहनी और अपनी कैप लगाते हुए बाहर निकला तो देखा मेनका उसका हाथ पकड़ कर अपना मकान दिखाने मे जुटी हुई थी। …मेनका, नफीसा दीदी को मेरे साथ अभी जाना है। उसको शाम को सारा घर दिखा देना। मुझे युनीफार्म मे देख कर एक पल के लिये नफीसा थोड़ा असहज हो गयी थी। मै उसके नजदीक चला गया और मुस्कुरा कर कहा… तुमे यहाँ पर दोस्तों के बीच हो तो घबराने की जरुरत नहीं है। पहली बार उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान तैर गयी थी। कुछ देर के बाद हम मानेसर की ओर जा रहे थे। लम्बा रास्ता था और दिल्ली के बीच से गुजर रहे थे। वह मेरे साथ बैठी हुई अभी भी नर्वस लग रही थी। वह पहली बार यहाँ आयी थी तो इसलिये उसे सहज करने के लिये मै जीप चलाते हुए उसे दिल्ली दर्शन कराने लगा। हम जब भी किसी खास जगह के सामने से गुजरते तो उसके बारे मे बताता हुआ चल रहा था। …यह पाकिस्तान का दूतावास है। उसने चेहरा घुमा कर मस्जिदनुमा गुम्बद को देखते हुए कहा… यह हमारा दूतावास कम मस्जिद ज्यादा लग रही है। दूतावास तो वह इमारत लग रही है। …वह अमरीकन दूतावास है। बस इसी तरह की बात करते हुए जा रहे थे कि अचानक एक बस ने हमारी जीप को ओवरटेक किया और अचानक उसने सामने आकर ब्रेक मार दिया। उस बस से बचने के लिये मैने तुरन्त ब्रेक दबा दिये। नफीसा का ध्यान बाहर की ओर लगा हुआ था तो वह झोंक मे आगे की ओर झुकी तभी उसे बचाने के लिये मैने अपना हाथ स्टीयरिंग से हटा कर उसके सामने कर दिया था। वह अपने वेग आगे झुकते हुए मेरे हाथ से टकरायी और उसके मुख से एक दर्द भरी आह निकल गयी थी। मैने जीप रोक कर उसकी ओर देखा तो वह अपना सीना पकड़ कर बैठी हुई थी। …सौरी। मै इसके आगे कुछ नहीं बोल सका था। उसने डबडबायी आँखों से मेरी ओर देखा और फिर निगाहें झुका कर बैठ गयी। मैने पीछे बैठे हुए थापा से कहा… तुम स्टीयरिंग व्हील संभाल लो। इसे बीच मै बैठा लेते है। नफीसा को बीच मे बैठा कर हम कुछ देर मे एनएसजी कोम्पलेक्स पहुँच गये थे। मुख्य द्वार पर सुरक्षाकर्मियों को देख कर एक पल के लिये वह विचलित हो गयी थी। मैने उसका हाथ धीरे से अपने हाथ मे लेकर कहा… यहाँ पर तुम्हें डरने की कोई जरुरत नहीं है। बेरियर पर अपना परिचय पत्र दिखा कर हम सीधे उस ओर चल दिये जहाँ शुजाल बेग को रखा हुआ था।

थापा हम दोनो को मुख्य द्वार के सामने उतार कर वापिस पार्किंग की दिशा मे चला गया था। …नफीसा, क्या अभी भी सीने मे दर्द हो रहा है? वह कुछ नहीं बोली बस सिर झुका कर खड़ी रही। …एक बार मुस्कुरा दो वर्ना तुम्हारे अब्बू को लगेगा कि हमने तुम्हारे साथ ज्यादती की है। उसने धीरे से निगाह उठा कर मेरी ओर देखा और मुस्कुरा कर बोली… चलिये। हम दोनो डिटेन्शन सेन्टर के गेट की ओर चल दिये थे। मै काउन्टर की ओर चला गया और अपना परिचय पत्र दिखा कर कहा… शुजाल बेग से मिलना है। इतना बोल कर मैने अपनी ग्लाक-17 निकाल कर उसकी मेग्जीन चेक की और फिर सेफ्टी लाक चेक करके काउन्टर पर खड़े हुए आदमी की ओर बढ़ा दी थी। नफीसा की जाँच के लिये एक महिला सुरक्षाकर्मी को बुलाना पड़ा था जिसके कारण हमे काउन्टर पर कुछ देर लग गयी थी। सिक्युरिटी चेक के बाद दो सैनिक हमे शुजाल बेग के सेल की ओर लेकर चल दिये थे। जैसे पहले किया था वैसे ही एक सैनिक ने लोहे के दरवाजे पर पड़े हुए ताले को खोल कर एक किनारे मे खड़ा हो गया और फिर दूसरे सैनिक ने दरवाजा खोल कर मुझे अन्दर जाने का इशारा किया तो मैने कहा… तुम गेट के पास खड़ी रहना। पहले मै उनसे बात करुँगा, जब मै तुम्हें इशारा करुँ तब तुम उनके सामने आना। मैने उसका हाथ पकड़ा और हम दोनो उस कमरे मे दाखिल हो गये थे। लोहे का गेट बन्द होते ही एक नजर नफीसा पर डाल कर मै पर्दा हटा कर शुजाल बेग के सामने पहुँच गया था।

…आओ मेजर। मै चुपचाप उसके बिस्तर के पास रखे हुए स्टूल पर जाकर बैठ गया। …क्या बात है मेजर तुम अगले दिन की कह कर आज आ रहे हो।  …ब्रिगेडियर साहब, मुझे तीन दिन के लिये नेपाल जाना पड़ा था। आपने मेरे प्रश्न के बारे मे सोचा है? …हाँ सोचा था लेकिन कोई जवाब देने से पहले एक बात जानना चाहता हूँ। तुम कौन से बट हो? …क्यों? …तुम मोमिन तो हर्गिज नहीं हो क्योंकि मुझे तुम्हारी बातों से बुजदिल काफ़िर की बू आती है। …आपको काफ़िर बुजदिल लगते है? …और क्या। मै तुम्हारे कब्जे मे हूँ और फिर भी तुम मेरे आगे गिड़गिड़ा कर सवाल पूछ रहे हो। …तो आप ही बताईये कि आपकी मोमिनों की फौज कैसे पूछती? वह मुस्कुरा कर बोला… सवाल का जवाब नहीं मिलता तो तुम्हारे सारे नाखून खिंचवा देता और तुम्हारी थैली को शिकंजे मे फँसा कर पीस देता। शुजाल बेग ने एक गर्वीली मुस्कान के साथ बोला… हम लोग तो मुर्दे से उगलवा लेते है। हमारे जलाल के आगे तो अच्छे-अच्छे थर्रा जाते है। …तो आपको लगता है कि यह सब करके आप हम काफिरों का मुँह खुलवा सकते है। …हाँ क्यों नहीं। …तो क्या आप यह सब करके कैप्टेन कालिया का मुँह खुलवा सके थे? एक पल के लिये वह चुप होकर मुझे घूरने लगा तो मैने कहा… ब्रिगेडियर साहब, आपके साथ अगर मै यह सब करुँगा तो क्या आप सब कुछ मुझे बता देंगे। वह घुर्रा कर बोला… एक बार करके क्यों नहीं देख लेते।

मै उसको कुछ पल देखता रहा और फिर मैने आराम से कहा… जिस काफ़िर को आप बुजदिल कह रहे है तो क्या आप भूल गये कि वह काफ़िर आपके साथ आपके परिवार के सत्तर लोगों को मरवाने का दम रखता है। रही बात मेरी बात तो मै आपको इतना बता सकता हूँ कि मेरी रगों मे काफ़िर का खून है परन्तु एक मुस्लिम स्त्री ने मेरी परवरिश की है। शुजाल बेग का चेहरा धुआँ हो गया था। वह फटी हुई आँखों से मेरी ओर देख रहा था। मैने मुस्कुरा कर कहा… ब्रिगेडियर साहब, उस बुजदिल काफ़िर अजीत सर का सख्त निर्देश था कि आपसे पूछताछ करते हुए मुझे वर्दी मे होना होगा। क्या आपको पता है कि उन्होंने ऐसा निर्देश मुझे क्यों दिया था? शुजाल बेग मेरी ओर देख रहा था। एक पल रुक कर मैने कहा… सिर्फ इसलिये कि वह जानते है कि इस वर्दी की इज्जत की खातिर मै आपके साथ ऐसा कोई काम नहीं करुँगा जो इस वर्दी को शर्मसार कर देगी। यह वर्दी मेरे जिस्म पर न होती तो शुजाल बेग मै तुम्हें काफ़िरों की फौज का दूसरा चेहरा भी दिखा सकता था। मेरे हिसाब से उन जाहिलों को जिनको तुम पाल रहे हो उनके साथ रह कर तुम भी अपने आप को गाज़ी समझने लगे हो। ऐसा भी नहीं है कि मुझे तुम पर दया आ रही है। मै तुम्हारी विकृत मानसिकता से वाकिफ हूँ इसलिये तुम्हें देख कर मुझे नफरत होती है। यह बुजदिली सिर्फ इसलिये दिखा रहा हूँ क्योंकि एक फौजी होने के कारण मुझे तुम्हारे परिवार पर दया आती है।   

वह कुछ पल मुझे घूरता रहा और फिर संजीदा होकर बोला… बैठ जाओ मेजर। क्या सवाल है तुम्हारे? …वलीउल्लाह कौन है? …वलीउल्लाह एक कोडनेम है। एक कश्मीरी तंजीम के नेता ने हमारा संपर्क एक लड़की से कराया जो तुम्हारी सेना की स्ट्रेटिजिक कमांड युनिट के लिये काम कर रही थी। उसी लड़की का कोडनेम वलीउल्लाह है। मेरी युनिट की सबसे काबिल अफसर कैप्टेन हया इनायत मीरवायज वलीउल्लाह की हैंडलर थी। इसलिये पाकिस्तान के सारे फौजी इदारे मे सिर्फ कैप्टेन हया ने ही उसे देखा है। वलीउल्लाह के मामले को दबाने के लिये कैप्टेन हया को मेजर हया बना कर बाजवा ने उसे रावलपिंडी के एडमिन आफिस मे बिठा दिया था। वलीउल्लाह के बारे मे बस इतना ही जानता हूँ। …क्या आप उस कश्मीरी तंजीम का नाम या उसके नेता का नाम बता सकते है? …कश्मीरी तंजीमों के साथ मेरा सीधा संपर्क काठमांडू आकर ही हुआ था। मैने ज्यादा समय अफगानिस्तान और बलूचिस्तान मे बिताया है। आप्रेशन खंजर को कार्यान्वित करने के लिये जनरल शरीफ ने मुझे बलूचिस्तान से बुला कर कश्मीर डेस्क का चार्ज दिया था। उस तंजीम और उसके नेता को सिर्फ जनरल बाजवा जानता है। यह तुम्हारे पहले सवाल का जवाब है। इतना बोल कर शुजाल बेग चुप हो गया था। तभी मेरे कानों मे कदमों की आहट सुनाई पड़ी तो मैने मुड़ कर देखा तो मेरी नजर जनरल रंधावा पर पड़ी थी। उनके साथ अजीत सर और नफीसा खड़े हुए थे। नफीसा का चेहरा डर के मारे सफेद हो रखा था। मै उठ कर खड़ा हुआ और मुस्तैदी से सैल्युट करके एक किनारे मे खड़ा हो गया था।

शुजाल बेग की निगाहें नफीसा पर टिक गयी थी। उसकी आँखों से आँसू झरझर बह रहे थे। वह अचानक अपने अब्बू को देख कर जोर से चीखी और तेजी से उसके करीब पहुँच कर उससे लिपट कर फूट-फूट कर रोने लगी थी। मुझे कहर भरी आँखों से घूरते हुए शुजाल बेग घुर्राया… मेजर, तूने अपनी बुजदिली का सुबूत आखिर दे ही दिया। तू तो बहुत बड़ी-बड़ी बातें कर रहा था। मुझ पर दबाव डालने के लिये मेरी बेटी को यहाँ उठा लाया। इसके साथ तूने क्या किया? उसकी आँखों से अंगारे बरस रहे थे। नफीसा को अपने सीने से लगाये वह बोला… अब यह भी बता दे कि यह काफ़िर के गन्दे खून का असर है कि मोमिनों की परवरिश का नतीजा? उसकी बात सुन कर मै अपने आपको रोक नहीं सका था। मैने उसकी ओर बढ़ते हुए कहा… सर, कुछ देर पहले तो यह मोमिनों के जलाल की बात कर रहा था। अपनी बेटी को मेरे साथ देख कर इस मोमिन के जलाल की हवा निकल गयी। यह मोमिन तो बहुत बुजदिल निकला। मै कुछ और बोलता उससे पहले जनरल रंधावा की आवाज गूंजी… मेजर सावधान। अगले ही पल मेरे जिस्म मे आटो मोड प्रतिक्रिया हुई और मै सावधान की मुद्रा मे वहीं खड़ा हो गया था। अजीत सर उसके नजदीक पहुँच कर नफीसा के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले… ब्रिगेडियर, जो तुमने बलूचिस्तान, पख्तुनिस्तान और काठमांडू मे किया है तो भला उसके आगे तुम कैसे सोच सकते हो। यह बेटी इस वक्त काफ़िरों की फौज के संरक्षण मे है। इसकी मर्जी के बिना इसे कोई छू भी नहीं सकता। शुजाल बेग अपनी बेटी को चुप कराते हुए अभी भी मुझे खा जाने वाली निगाहों से घूर रहा था।