रविवार, 28 मई 2023

 

 

गहरी चाल-10

 

फारुख की आवाज मेरे कानों मे पड़ते ही एक पल के अन्तराल के बाद मै चौकन्ना हो गया था। …मेजर, उसका कुछ पता चला? …अभी तक तो नहीं लेकिन मै उसके बहुत करीब पहुँच गया हूँ। जल्दी ही खबर दूंगा। …मेजर, जिस दिन तुम उसकी मौत की खबर मुझे दोगे उसी दिन मै तुम्हें हया की जानकारी दे दूंगा। अब तुम्हारे उपर है कि यह काम तुम जितनी जल्दी पूरा करोगे तो उतनी जल्दी वलीउल्लाह के द्वारा होने वाले नुक्सान को रोक सकोगे। मेरा नम्बर स्टोर कर लो क्योंकि यही नम्बर आगे चल कर तुम्हारे काम आयेगा। इतना बोल कर उसने फोन काट दिया था। तबस्सुम भी उठ कर बैठ गयी थी। …क्या हुआ आपके चेहरे पर हवाईयां क्यों उड़ी हुई है। किसका फोन था? मै उसे क्या बताता तो बिना कुछ बोले मै आंख मूंद कर वापिस लेट गया था। कुछ देर तबस्सुम मुझे देखती रही और फिर मेरे सीने पर सिर रख कर बोली… अब्बू का फोन था। उसकी बात सुन कर मुझे ऐसा लगा कि जैसे एक बिजली के झटके से मेरा पूरा जिस्म झनझना गया था।

तबस्सुम मेरी आँखों मे झाँकते हुए बोली… वह मेरे कत्ल की बात कर रहे थे, है न? मैने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया बस उसे अपनी बाँहों मे जकड़े काफी देर तक सोचता रहा था। मुझे यकीन था कि  फारुख ने मेरे आगे चारा डालने की कोशिश की थी परन्तु अगर वह सच बोल रहा था तो क्या मै अपने साथ लेटी हुई तबस्सुम की हत्या कर सकता था? उस रात जितनी बार मैने यह प्रश्न अपने आप से किया परन्तु एक बार भी मुझे मेरे अन्तर्मन से हाँ का जवाब नहीं मिला था। मैने सिर घुमा कर उसकी ओर देखा तो वह अभी भी जाग रही थी और मेरे कुर्ते को अपने आसुओं से भिगो रही थी। मैने धीरे से उसके गाल को सहलाते हुए कहा… जब तक मै जिंदा हूँ तुम्हारे अब्बू या हया और उनके साथ पूरी मोमिनों की फौज भी आ जाये तो भी वह तुम्हें छू नहीं सकेगी। अगर जब मै दोजख पहुँच गया तो बानो यह भी तो तय है कि तुम भी वही मेरे पीछे-पीछे आओगी। तब वहाँ पर भी हम तुम साथ-साथ ही होंगें तो फिर फिक्र किस बात की है। आराम से सो जाओ। उसने चिढ़ कर मेरी छाती पर मुक्का जमाते हुए कहा… खुदा खैर करे। उस रात को बहुत देर तक मुझे नींद नहीं आयी थी। वह भी मेरे सीने से लगी जाग रही थी। पता नहीं कब तक सोता रहता लेकिन सुबह फोन की घंटी ने मुझे उठा दिया था। मैने जल्दी से फोन उठा कर कहा… हैलो। …मेजर आज टाइम से आफिस पहुँच जाना। एक मीटिंग बुलायी हुई है। …जी सर। दूसरी ओर से फोन कट गया था। मैने तबस्सुम को अपने से अलग किया और तैयार होने के लिये चल दिया था।

टाइम से पहले ही आफिस पहुँच गया था। अपनी सीट पर बैठ कर आईबी की दी हुई फाईल देख रहा था। मेरी छठी इंद्री बार-बार मुझे उन चेहरों को देख कर सावधान कर रही थी। उन 496 लोगों मे 465 पुरुष और 31 महिलाएँ थी। एक खास बात मैने नोट की थी कि सभी शक्ल से 20-25 उम्र मे लग रहे थे। पिछले एक साल मे एक आदमी ने इतने सारे लोगों को जाली कागजात देकर न जाने कहाँ-कहाँ पहुँचा दिया था। इस उम्मीद पर कि हया के कागज भी अगर इसी ने बनवाये होगे तो मैने अपना ध्यान 31 महिलाओं पर केन्द्रित किया। सौम्या कौल को छोड़ कर मै किसी पर भी शक करने की स्थिति मे नहीं था। मै उन महिलाओं के नाम और विवरण को पढ़ रहा था कि तभी अजीत सर के निजि सचिव ने आकर कहा… आपको साहब ने बुला रहे है। मै उस फाइल को लेकर उनके आफिस की ओर चल दिया। आफिस मे प्रवेश करते ही मेरी नजर कुछ लोगों पर पड़ी तो मै सावधान हो गया था। आईबी के निदेशक दीपक शर्मा, जनरल रंधावा, वीके और गोपीनाथ पहले से ही वहाँ बैठे हुए थे।

मैने फौजी सैल्युट से सभी का अभिवादन किया और चुपचाप खाली कुर्सी पर जाकर बैठ गया था। …मेजर बट ने अभी एक आप्रेशन के दौरान साबिर अली नाम के व्यक्ति को पकड़वाया है जिसने पिछले एक साल मे लगभग पाँच सौ घुसपैठियों के लिये उक्त विभाग के कुछ कर्मचारियों के साथ मिल कर उनके जाली कागाजात तैयार करवाये थे। आईबी ने उन सभी की नयी पहचान का पता लगा लिया है। अब आगे कैसे बढ़ना है इस विषय पर यह मीटिंग बुलाई गयी है। इतना बोल कर अजीत सर ने जनरल रंधावा की ओर देखा तो उन्होंने मेरी बंगाल मे दारुल उलुम की कहानी बताते हुए कहा… हमे शक है कि कहीं यही वह लोग तो नहीं है जो बांग्लादेश मे प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे थे अन्यथा प्रशिक्षण के लिये वहाँ जा रहे थे। हम अपनी ओर से इन सभी का विवरण सारी सुरक्षा एजेन्सियों को दे दिया है परन्तु स्थानीय पुलिस इसके बारे मे क्या करेगी उस पर किसी को विश्वास नहीं है। तभी दीपक शर्मा ने कहा… सर, पिछले दो दिन मे आईबी की टीमें इसमे दिये गये सभी पतों पर हो आयी है। ज्यादातर पते गलत है या फिर कुछ पते ठीक है तो वहाँ पर रहने वालो ने पुष्टि की है कि इस नाम का कोई व्यक्ति वहाँ कभी रहा ही नहीं था। इतना बोल कर वह चुप हो गया था।

अजीत सर ने सब पर एक नजर डाल कर कहा… अब हमारे पास इस नेटवर्क को तोड़ने का एक तरीका है। साबिर अली की निशानदेही पर आईबी की टीम ने युआईडी के तीन कर्मचारियों और चुनाव आयोग के चार कर्मचारियों को हिरासत मे लेकर पूछताछ शुरु कर दी है। वह क्या सिर्फ साबिर अली के लिये काम करते थे या और किसी के लिये भी इस प्रकार के कागजात तैयार करते थे। साबिर अली ने पासपोर्ट आफिस मे भी दो लोगों की निशानदेही की है। उन्हें भी जल्द ही हिरासत मे ले लिया जाएगा। मेजर बट ने एक साबिर अली को पकड़ लिया तो इतने घुसपैठियों का पता चल गया परन्तु न जाने दिल्ली मे या पूरे देश मे कितने साबिर अली है? तो अब हमारे सामने दूसरी चुनौती उन लोगो को पकड़ कर उनसे अन्य घुसपैठियों को पकड़ने की है। तभी गोपीनाथ ने कहा… हमारे पास पुख्ता जानकारी है कि नेपाल और बांग्लादेश घुसपैठ के हाटस्पाट बन गये है। उनकी सरकारों ने इसके लिये ढुलमुल रवैया अपनाया हुआ है क्योंकि वह जानते है कि उनका देश तो सिर्फ ट्रांसिट पोइन्ट है इसी कारण वहाँ की सुरक्षा एजेन्सियाँ भी कुछ पैसे के लालच मे उन लोगो को आसानी से आने-जाने देती है। अचानक वीके ने कहा… आप सब परेशानी बता रहे है लेकिन कोई उसका इलाज नहीं बता रहा है।

अजीत सर ने कहा… मेजर का विचार है कि दोनो राजधानियों मे हमारी आब्सर्वेशन पोस्ट होनी चाहिये। हमारे पास पाँच सौ नाम है और हो सकता है कि अभी और भी नाम इसमे जुड़ जाएँगें। उस पोस्ट के द्वारा सबसे पहले इन सभी चेहरो पर ध्यान केन्द्रित किया जाये। अगर एक भी आदमी की पहचान हो जाती है तो फिर उसके जरिये उसके अन्य साथियों को भी जोड़ते चले जाएँगें। यह तरीका बेहद धीरे है परन्तु इसके अलावा किसी के पास और कोई सुझाव है तो बताईये। चुंकि यह गोपीनाथ के कार्यक्षेत्र का मामला था इसलिये सबकी नजरें उसकी ओर लगी हुई थी। गोपीनाथ ने कुछ सोचने के बाद कहा… दोनो राजधानियों मे हमारे दूतावास मे कुछ लोग है जो ऐसे काम करते है परन्तु वह सिर्फ कुछ खास लोगों पर नजर रखते है जो नितिगत फैसले लेते है। हमारा स्टाफ ऐसे लोगों से डील करने के लायक नहीं है।  आईएसआई ने हाल ही मे नेपाल मे अपना मजबूत नेटवर्क खड़ा कर दिया है। आईएसआई का ब्रिगेडियर शुजाल बेग दूतावास मे बैठ कर पूरे नेटवर्क का संचालन कर रहा है। इसलिये मेरा सुझाव है कि हमारे दूतावास मे आप कुछ एमआई के लोगों को बिठा दिजिये क्योंकि वह उन लोगों से भिड़ने मे सक्षम है। लेकिन प्लीज एक बात के लिये सावधान रहने की जरुरत है कि अगर वहाँ मुठभेड़ होगी तो फिर दूतावास पर बात आ जाएगी। नेपाल मे तो कोई ज्यादा परेशानी की बात नही है परन्तु बांग्लादेश मे हमारी कोशिश रहती है कि वहाँ पर मुस्लिम को ही पोस्ट किया जाये जिससे हमारी छवि पर कोई आँच न आये।

मुझे काफी देर हो गयी थी उन सब को सुनते हुए तो मैने कहा… सर, मै कुछ कहना चाहता हूँ। मेरा सुझाव है कि इस काम के लिये हमे दूतावास के बजाय कारोबार के लिये एक कंपनी खोलनी चाहिये और उसमे कुछ एमआई और स्पेशल फोर्सेज के चुने हुए लोगों को नौकरी के बहाने वहाँ स्थापित कर दिया जाये तो बहुत सी मुश्किलों का हल निकल जाएगा। अगर आईएसआई  ने अपना नेटवर्क खड़ा कर लिया है तो मुठभेड़ जरुर होगी परन्तु दूतावास का नाम बीच मे नहीं आयेगा लेकिन वक्त पड़ने पर वह एक भारतीय कारोबारी के लिये तो आसानी से खड़े हो सकते है। शुजाल बेग को पाकिस्तान मे नुकसान पहुँचाना बेहद मुश्किल होगा परन्तु नेपाल मे उसको ठिकाने लगाना ज्यादा आसान होगा। किसी ने कुछ नहीं कहा और अपना सिर हिला कर मेरे सुझाव को स्वीकृति दे दी थी। अबकी बार वीके ने कहा… इस काम मे एक मुश्किल है। कंपनी खोलने का मतलब पैसा और उस पैसे का इंतजाम कैसे होगा? इस खर्चे को बजट मे नहीं दिखा सकते और न ही सरकार के खजाने से इस काम के लिये निकाले जा सकते है। गोपीनाथ ने पूछा… इस काम के लिये कितने पैसों की आवश्यकता पड़ेगी? अजीत ने मेरी ओर देख कर कहा… शुरुआत मे पाँच करोड़ की जरुरत पड़ेगी। गोपीनाथ ने तुरन्त कहा… हम दस करोड़ तक इस काम के लिये हम अपनी ओर से दे सकते है। बस कुछ कागजी कार्यवाही करनी पड़ेगी। अजीत ने वीके से कहा… आप कागजी कार्यवाही देख लेना और हम काठमांडू मे अपनी कंपनी खोल रहे है। अब आईएसआई के साथ दो-दो हाथ पश्चिमी कमान के बजाय पूर्वी कमान मे होगी। इसी के साथ मीटिंग समाप्त हो गयी थी।

गोपीनाथ और दीपक शर्मा के जाने के बाद अजीत सर ने कहा… वीके हमे कंपनी खोलने की क्या जरुरत है। इतने सारे उद्योगपति यहाँ पर बैठे है। अगर एक भी आदमी को तुमने कह दिया तो वह खुशी से काठमांडू मे एक कंपनी खुलवा देगा। इससे नेपाल सरकार भी खुश हो जाएगी और आईएसआई का ध्यान भी उस नयी कंपनी की ओर आकृष्ट नहीं होगा। अब तो सभी लोग अपने बैठे हुए थे तो मैने कहा… सर, इसमे किसी की जरुरत नहीं पड़ेगी। हम एक इम्पोर्ट-एक्स्पोर्ट फर्म खोल रहे है। मुझे कार्यवाही आरंभ करने मे आपकी बस एक मदद चाहिये। आईएसआई के एक कंटेनर ट्रक को लूट कर उसके पैसे को आपको किसी बैंक के जरिये नेपाल मे ट्रांस्फर करवाना होगा। उन्हीं के पैसों से उन्हीं को नुकसान पहुँचाएंगें तो मुझे ज्यादा खुशी होगी। एक लिस्ट उनके सामने रख कर मैने कहा… यह बीस लोग मुझे उस कंपनी के लिये चाहिये। यह मेरी स्पेशल फोर्सेज की टीम और सुरक्षा कवच के लोग है। यह लोग इन कामों मे पूर्णत: सक्षम है क्योंकि इन्होंने मेरे साथ काम किया है। जनरल रंधावा यहाँ से बैठ कर सारे आप्रेशन का संचालन करेंगें और ब्रिगेडियर शुजाल बेग को मौका लगते ही अगुवा करके यहाँ लाने की कोशिश करेंगें। एक बार वह हाथ लग गया तो कोडनेम वलीउल्लाह का पर्दाफाश भी हो जाएगा। मेरे तीनो कमांडर मेरी शक्ल देख रहे थे। …मेजर, वह कोई बकरी का बच्चा नहीं है जिसको भाग कर तुम पकड़ लोगे और फिर उसे लेकर नेपाल की सीमा से निकाल लाओगे। …सर तभी मैने कहा है कि मौका मिलते ही उसे धर दबोचूँगा। मै जानता हूँ कि उसकी सुरक्षा के कड़े इंतजाम होंगें परन्तु उन्हें हर दम चौकस रहना होगा और हमे सिर्फ एक मौका चाहिये। आईएसआई भी यही घुट्टी अपने आतंकवादियों को पिलाती है है कि सुरक्षा एजेन्सियों को हर हमले को असफल करना है और उन्हें सिर्फ एक हमला सफल करना है। तभी जब हम सौ को मारते है उसके बावजूद फिदायीन हमले होने बन्द नहीं हुए है। उनका एक हमला सफल हो जाता है तो सारे अखबारों की सुर्खियाँ बन जाती है। नेपाल मे आईएसआई का डोज उन्हीं को देना चाहता हूँ। अजीत ने कहा… मेजर, हमारे लिये संयुक्त मोर्चे द्वारा फिदायीन हमले को रोकना और वलीउल्लाह का पता करना प्राथमिकता है। यह कैसे करोगे यह हम तुम पर छोड़ते है। तुम्हारी जो भी मांग है वह बता दो। …यस सर। अब मुझे आप्रेशन आघात के बाद आप्रेशन काठमांडू को आरंभ करने की इजाजत दिजिये। जनरल रंधावा ने उठते हुए कहा… मेजर हमारी ओर से जो सहायता चाहिये हो वह निसंकोच होकर कह देना। उनको वहीं छोड़ कर मै अपने आफिस की ओर आ गया था।

दोपहर के बाद मै नीलोफर से मिलने के लिये चला गया था। मैने नीलोफर को उसके फ्लैट के बजाय शापिंग माल मे मिलने के लिये बुलाया था। उसे पहुँचने मे थोड़ी देर हो गयी थी। उसे लेकर मै एक महंगे काफी शाप मे चला गया था। …किस लिये बुलाया है? मैने आईबी की फाईल उसके सामने रख कर कहा… इनमे से किसी को जानती हो? उसने फाइल देखनी शुरु की और कुछ देर बाद बोली… नहीं। …उन स्त्रियों मे कोई भी हया नहीं है? …समीर, जब मैने हया को कभी देखा ही नहीं है तो भला उसको मै कैसे पहचान सकती हूँ। …क्या किसी को देख कर तुम्हें शक होता है? …नहीं। इनमे से मुझे कोई भी हया नहीं लगती। मैने फाईल बन्द करके पूछा… आईएसआई का करेंसी आप्रेटर नेपाल मे कौन है? …क्या मतलब? …किसने वह दो ट्रक तुम्हारे पास भिजवाये थे? वह अचानक चुप हो गयी थी। …नीलोफर, मेरे पास ज्यादा समय नहीं है। इसलिये अच्छा होगा कि तुमसे जो पूछ रहा हूँ उसका जवाब सच-सच दे दो। …उस एजेन्ट का नाम नूर मोहम्मद है। आईएसआई की मदद से उसने वहाँ पर अपना ट्रांस्पोर्ट का कारोबार शुरु किया है। उसके ट्रक ही आईएसआई का माल कश्मीर पहुँचाते है। …उसकी ट्रांस्पोर्ट कंपनी का नाम? …बिलावल ट्रांस्पोर्ट। …तुम्हारे पैसों का क्या हुआ? …दोनो ट्रक दीपक सेठी के गोदाम मे खड़े हुए है। अभी तक उसने कुछ नहीं किया है। …इसका मतलब यह हुआ कि फारुख के दस करोड़ हथियाने के बाद भी उस पैसे का तुम्हे कोई फायदा नहीं मिल रहा है। उसने कुछ नहीं कहा बस अपना सिर हिला दिया था। काफी का बिल चुका कर मै चलने लगा तो नीलोफर ने उठते हुए कहा… क्या उस पैसो को तुम बाहर निकलवा सकते हो? …हाँ अगर आधे पैसे मुझे दोगी तो मै जरुर निकलवा सकता हूँ। वह मुस्कुरा कर बोली… तुम मजाक कर रहे हो। चलो पहले मुझे मेरे फ्लैट पर छोड़ दो। …तुम्हारी मर्जी। कन्धे उचका कर मै अपनी जीप की ओर चल दिया था।

नीलोफर को उसके फ्लैट पर छोड़ कर मैने मोनिका को फोन किया तो उसने तुरन्त मेरी काल उठा कर कहा… मै बस तुम्हें ही फोन करने वाली थी। अच्छा हुआ तुमने खुद फोन कर दिया। …जानेमन मै कुछ दिनो के लिये आज दिल्ली पहुँचा हूँ। कब तुम्हारी सेवा करने आ जाऊँ? …दीपक अगले हफ्ते बाहर जा रहे है। उनके जाते ही फोन करुँगी। …मोनिका, मैने सुना है कि सेठी साहब के पास कोई गोदाम है। …हाँ, उनकी कंपनी ने एक गोदाम इंडस्ट्रियल एरिया मे किराये पर लिया है। क्यों पूछ रहे हो? …मै अपने सेबों के वितरण के लिये दिल्ली मे एक गोदाम ढूंढ रहा हूँ। तभी बात करते हुए एक बार दीपक ने उसका जिक्र किया था। मैने सोचा कि उनसे गोदाम के बारे मे पूछ लेता हूँ। …तुम्हारी दीपक से कब बात हुई? …हम कारोबारी लोग है। करोबार की बातें हम बीवीयों और प्रेमिकाओं को नहीं बताते है। तुमने पूछा है तो बता रहा हूँ कि अंसार रजा ने एक बार मुझे तुम्हारे पति से मिलवाया था। क्या तुम्हें पता है कि कितना बड़ा गोदाम है? …गोदाम क्या है, वह तो इंडस्ट्रियल शेड है जिसे गोदाम के लिये दीपक इस्तेमाल करते है। …ठीक है जानेमन, जब दीपक चला जाये तो इस नाचीज को याद कर लेना। इतना बोल कर मैने फोन काट दिया और इंडस्ट्रियल एरिया की ओर चल दिया था।

थोड़ी देर के बाद मै इंडस्ट्रियल एरिया मे सेठी के गोदाम की तलाश कर रहा था। चाय की दुकान हर इंडस्ट्रियल एरिया की पहचान होती है। हर चौराहे पर एक दो दुकानें मिल जाती है। सेठी साहब के गोदाम के बारे मे लोगो से पूछ्ते हुए आखिरकार वहाँ पहुँच गया था। वह गोदाम नहीं बल्कि इंडस्ट्रियल शेड था। काफी विशाल शेड पर बड़ा सा लोहे का मुख्य द्वार था। हथियारों से लैस दो चौकीदार गेट पर पहरा दे रहे थे। मै जीप से उतर उनके पास पहुँच कर सरकारी लहजे मे बोला… इस शेड का मालिक कौन है? …दीपक सेठी साहब। …नहीं इसका मालिक तो हमारे कागजों मे कोई और है। मैने हाथ मे आईबी की फाईल थी। उसे खोल कर देखते हुए कहा तो तुरन्त एक चौकीदार बोला… सेठी साहब यहाँ के मालिक नहीं है। उन्होंने इस शेड को किराये पर लिया हुआ है। साहब आप कौन है? …मै तो भाई उद्योग विकास प्रधिकरण के सतर्कता विभाग से आया हूँ। हमारे पास शिकायत आयी है कि यहाँ के बहुत से कारोबारी अपनी फैक्टरियाँ बन्द करके शेड का इस्तेमाल गोदाम के लिये कर रहे है। उसकी जाँच करने आया हूँ।

लोहे के गेट के पास पहुँच कर मैने पूछा… यह किस चीज की फैक्टरी है? …साहब पता नही। …दरवाजा खोल कर दिखाओ। …साहब हम तो चौकीदार है। आपको सेठी साहब से बात करनी पड़ेगी। …नम्बर मिला कर मेरी बात कराओ। दोनो एक दूसरे की ओर देखने लगे तो मैने कहा… क्या सोच रहे हो। सरकारी काम मे रुकावट डालोगे तो मुझे पुलिस बुलानी पड़ेगी। एक चौकीदार जल्दी से बोला… साहब हमे तो सिक्युरिटी कंपनी ने यहाँ नियुक्त किया है। सेठी साहब के बजाय आप हमारे ठेकेदार से बात कर लिजिये। …मै यह फैक्टरी सील कर रहा हूँ। तुम लोगों ने मुझे क्या समझ रखा है। तुम्हीं ने बताया है कि आजकल वह इसे गोदाम के लिये इस्तेमाल कर रहे है। मैने जल्दी से फाइल मे से एक कागज निकाल कर कुछ लिखा और उनकी ओर बढ़ाते हुए कहा… यह तुम्हारा बयान है कि इस शेड का इस्तेमाल गोदाम की तरह हो रहा है। इस कागज पर दस्तखत करो क्योंकि यह शेड मुझे अभी सील करना है। यह साले पैसे वालो ने कानून को मजाक समझ लिया है।

मामला तूल पकड़ता हुआ देख कर एकाएक दोनो चौकीदारों ने हाथ जोड़ते हुए कहा… हम लोग गरीब आदमी है साहब। इस पचड़े मे हमे मत उलझाईए।  …तुम्ही ने बताया है कि वह इसे गोदाम की तरह इस्तेमाल कर रहे है। मुझे अब इसे सील करना पड़ेगा। अब तक सड़क पर कुछ फैक्टरी मे काम करने वाले लोग भी इकठ्ठे हो गये थे। वह भी हमारी बात सुन रहे थे। अबकी बार मैने उनसे कहा… भई इन्हें आप ही समझाओ कि सरकारी काम मे रुकावट डालने के जुर्म मे दोनो को अन्दर करवा दूंगा। मैने इनसे कहा कि अगर तुम्हें कुछ भी पता नहीं है तो दरवाजा खोल कर अन्दर से दिखा दो तो यह दरवाजा खोलने को तैयार नहीं है। फैक्टरी के बारे मे पूछता हूँ तो कहते पता नहीं है। खुद बताते है कि यह गोदाम है तो जब मै पूछता हूँ कि किस चीज का गोदाम है तो कहते है साहब से जाकर पूछ लो। जब इनसे इनके बयान पर दस्तखत लेकर फैक्टरी सील करना चाहता हूँ तो अब यह फिर मुझे टहलाने की कोशिश कर रहे है। इतना बोल कर मै चुप हो गया तो वहाँ खड़े हुए कुछ लोगों मे एक आदमी बोला… साहब यह गरीब लोग है। इन बेचारों को क्या पता? मैने उसे तुरन्त टोकते हुए कहा… शिकायत हुई है तो जाँच के लिये आया हूँ। साले मालिक छिप कर बैठ जाते है और इनके साथ हमे सिर फोड़ना पड़ता है। भाई अगर तुम्हें कुछ भी पता नहीं है तभी तो मैने कहा था कि गेट खोल कर अन्दर से दिखा दो ताकि मै अपनी रिपोर्ट तो बना दूँ। यह उसके लिये भी तैयार नहीं है। अचानक एक आदमी बोला… यार खोल कर दिखा दे तो यह अपनी रिपोर्ट बना कर चला जाएगा। एकाएक चौकीदार बोला… चलो साहब, मै आपको दिखा देता हूँ। इस मामले को यहीं खत्म कर दिजिये। बस आपकी रिपोर्ट मे हमारा नाम नहीं आना चाहिये। मामला सुलझते ही जमा हुई भीड़ छटने लग गयी थी।

लोहे के गेट का ताला खोल कर एक चौकीदार मेरे साथ चल दिया और दूसरा चौकीदार गेट पर तैनात हो गया था। शेड खाली पड़ा था। एक कोने मे जंग लगा हुआ कुछ सामान बिखरा हुआ पड़ा था। दूसरे कोने मे कुछ आफिस का टूटा और पुराना फर्नीचर पड़ा था। नीलोफर के दोनो सील्ड कंटेनर ट्रक एक किनारे मे खड़े हुए थे। दोनो ट्रकों पर बिलावल ट्रांस्पोर्ट लिखा हुआ था। …इन ट्रकों मे क्या है? …पता नहीं साहब। जब से हमारी ड्युटी लगी है तभी से यह ट्रक यहाँ ऐसे ही खड़े है। वापिस लौटते हुए मैने कहा… यह तो खाली शेड है और तुम इसे गोदाम कह रहे थे। अगर मै अपनी रिपोर्ट मे गोदाम का जिक्र कर देता तो सेठी साहब तुम्हारी खाल खिंचवा देते। शेड को खुलवाने मे बीस लाख से कम का जुर्माना नहीं लगता। बात करते हुए हम दोनो बाहर निकल आये थे। एक बार गेट को ताला लगा कर मेरे पास आकर वह चौकीदार बोला… जनाब हमारा जिक्र मत करना। हम गरीब लोग है। मैने जीप मे बैठते हुए मुस्कुरा कर कहा… तुम्हारा जिक्र नहीं करुँगा। यह बंदूक लेकर खड़े हुए हो क्या इसको चलाने की ट्रेंनिंग ली है? दोनो झेंप कर हँस दिये थे। उन्हें वहीं छोड़ कर मै अपने आफिस की ओर चल दिया था।

रात के आठ बज रहे थे। मैने अजीत सर को फोन मिलाया लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया तो मैने जनरल रंधावा को फोन किया…हैलो। …सर, मै समीर बोल रहा हूँ। एक रेड के लिये मुझे दस बारह सैनिकों की टुकड़ी आज रात को चाहिये। उनमे दो ट्रक चलाने वाले ड्राईवर भी होने चाहिये। अजीत सर को फोन मिला रहा था लेकिन वह शायद फोन लेने की स्थिति मे नहीं है इसलिये आपको तकलीफ दे रहा हूँ। …मेजर, फौरन आफिस पहुँचो। बस इतनी बात करके उन्होंने फोन काट दिया था। जब मै आफिस पहुँचा तो माहौल मे काफी तनाव लग रहा था। मै अपने आफिस मे अभी पहुँचा भी नहीं था कि अजीत सर अपने कमरे से निकल कर वीके के कमरे मे जा रहे थे कि तभी उनकी नजर मुझ पर पड़ी तो वह रुक गये थे। …क्या हुआ मेजर? आओ चलो मेरे साथ। हम दोनो वीके के कमरे के साथ लगे हुए कान्फ्रेन्स रुम मे प्रवेश कर गये थे। पहले से ही अलग-अलग सुरक्षा एजेन्सियों के वरिष्ठ अधिकारी बैठे हुए थे। अजीत सर मुझे छोड़ कर वीके के साथ जाकर बैठ गये थे।

अजीत ने बोलना आरंभ किया… आज दोपहर को उरी सेक्टर मे एक फिदायीन हमले मे हमारे सात सैनिक शहीद हो गये थे। उन शहीदों मे एक लेफ्टीनेन्ट कर्नल भी थे। हमारी फोर्सेज के द्वारा तीन आतंकवादी भी मारे गये थे। यह मीटिंग इस हमले की खबर देने के लिये नहीं बुलायी गयी है। आईबी की ओर से आपके पास पांच सौ लोगों के फर्जी नाम व पता भेजे गये थे। तीन मरने वाले आतंकवादियों मे एक उन पाँच सौ मे से था। उसके पास जो कागजात मिले है वह उसका नाम सोहनलाल बिष्ट बता रहे है। उस आदमी की शिनाख्त हो गयी है। वह पाकिस्तान के मुल्तान प्रान्त से यहाँ आया था। उसका नाम जमाल शेख है और वह जैश से जुड़ा हुआ था। आज की मीटिंग आपको यह बताने के लिये बुलायी गयी है कि इस बार आईबी की चेतावनी को हल्के मे नहीं लेना है। मेरा अनुभव बताता है कि यह किसी बड़ी आतंकी घटना की टेस्टिंग हुई है। आने वाले समय मे ऐसी वारदातें और भी होंगी इसलिये आप लोग इन लोगो को ढूंढने मे अपने सारे संसाधन लगा दिजिये। इतना बोल कर अजीत ने वीके की ओर देखा तो वीके ने कहा… प्रधानमंत्रीजी की ओर से सख्त निर्देश है कि आतंकवादी हमला अब देश मे कहीं नहीं होना चाहिये। जैसे पिछले कुछ सालों मे आतंकवाद कश्मीर घाटी से निकल कर पूरे देश मे फैल गया था लेकिन अब उसे कश्मीर घाटी तक सिमित रखना है। सख्त आदेश का मतलब इस सरकार मे सख्त माना जाना चाहिये। अगर किसी से कोई चूक हुई तो फिर परिणाम भुगतने के लिये तैयार रहियेगा। जो डीजीपी आज किसी कारणवश नहीं आ पाये है उनको भी इस मिटिंग के बारे मे सुचित कर दिया जायेगा।

अचानक एक डीजीपी ने कहा… सर, पाँच सौ लोगो की फर्जी जानकारी भेज कर आईबी ने अपने हाथ झाड़ लिये है। अगर कोई घटना नहीं घटती तो कोई बात नहीं मगर जब घट जाती है तो सारा दोष हमारे सिर पर मढ़ दिया जाता है। आप ही सोचिये कि ऐसी खबर पर हम कैसे आगे बढ़ सकते है? अचानक अजीत ने उस डीजीपी की ओर देखते हुए कहा… मिस्टर मूर्ती आपकी बातों से मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आप इस खतरे को सही से आंकलन करने मे अस्मर्थ है। मुझे नहीं लगता कि आप इतनी बड़ी पुलिस फोर्स के मुखिया बनने के लायक है। अगर आपको ऐसा लगता है कि आप मुख्यमंत्री के लिये काम कर रहे है तो अच्छा होगा नौकरी छोड़ कर राजनीति मे उतर जाइये। अब अगर आपके राज्य मे एक भी वारदात हुई तो मै खुद आपके खिलाफ एक्शन लूँगा और कोशिश करुँगा कि आपको उन मौतों का दोषी बनाया जाये। एक पल मे ही सारे डीजीपी और अन्य सुरक्षा एजेन्सियों के अधिकारी चौकन्ने हो गये थे। मूर्ति की भरी सभा मे जिस प्रकार की बेइज्जती की गयी थी वह अब कुछ भी बोलने की स्थिति मे नहीं था। तभी वीके ने कहा… मिस्टर मूर्ति एक और बात आप को बतानी है। सतर्कता आयोग की रिपोर्ट हमारे पास पहुँच गयी है। केन्द्र सरकार एक दो दिन मे उस पर कार्यवाही आरंभ कर देगी। अगर आप लोग सभी पिछली केन्द्र सरकार के ढुलमुल रवैया की सोच बना कर बैठे हुए है तो मेरी सलाह है कि जाग जाईये। अगर यह खतरा इतना बड़ा नहीं होता तो इस खतरे से आगाह करने के लिये आप लोगों को आज यहाँ बुलाया नहीं गया होता। इसलिये इस चेतावनी को गंभीरता से लिजिये। किसी और को कुछ कहना है तो हम सुनने के लिये ही बैठे है। एक दो मिनट शांति छायी रही और फिर वीके ने उठते हुए कहा… थैंक्स जेन्टलमेन। इतना बोल कर अजीत और वीके उन्हें वहीं छोड़ कर निकल गये थे। मै कुछ पल रुका और फिर उनके पीछे निकल गया था। अजीत ने मुड़ कर मेरी ओर देखा और पीछे आने का इशारा करके दोनो अपने आफिस मे चले गये थे।

…सर, मुझे एक सेना की टुकड़ी चाहिये। शायद आज ही काठमांडू आप्रेशन के पैसों का इंतजाम हो जाएगा। अजीत ने वीके की ओर एक बार देख कर कहा… रक्षा मंत्रालय पर स्पेशल फोर्सेज की एक युनिट तैनात है। मै उनके सीओ से कह देता हूँ। वह तुम्हारे साथ चले जाएँगें। …सर, एक बात और बता दिजिये कि वह ट्रक वहाँ से निकाल कर कहाँ पहुँचाना है? अबकी बार वीके ने कहा… ट्रक को मानेसर मे एनएसजी के कैंम्पस मे पहुँचा देना। वहीं के बैंक मे पैसा जमा हो जाएगा और वहीं से काठमांडू भिजवा दिया जाएगा। …यस सर। मै वहाँ से उठ कर रक्षा मंत्रालय की दिशा मे चल दिया था। रक्षा मंत्रालय पहुंच कर मै सीधे मुख्य सुरक्षा अधिकारी कर्नल जसवन्त सिंह से जाकर मिला था। वह मेरा इंतजार कर रहा था। मुझे देखते ही वह बोला… मेजर बट। मैने सैल्युट करके पूछा… सर, आपकी कौनसी टीम जा रही है। मुझे उस टीम मे दो ऐसे लोग चाहिये जिन्हें ट्रक चलाना आता हो। …आईये मेजर। मै उसके साथ चल दिया था। एक फौज का ट्रक मंत्रालय के बाहर खड़ा हुआ था। कर्नल साहब ने स्पेशल फोर्सेज की टुकड़ी के लीडर से मिलाते हुए कहा… यह कैप्टेन यादव है। यह अपनी टीम को लेकर आपके साथ जाएँगें। मेरे पास समय कम था तो सभी औपचारिक्ताओं को छोड़ कर मैने जल्दी से कहा… कैप्टेन आपके ट्रक की जरुरत नहीं है। आठ लोग आराम से मेरी जीप मे बैठ सकते है। आईये मेरे साथ। इतना बोल कर मै अपनी जीप की ओर निकल गया था। थोड़ी देर मे हम सब एक जीप मे बैठ कर इंडस्ट्रियल एरिया की दिशा मे जा रहे थे।

जैसे ही इंडस्ट्रियल एरिया मे प्रवेश किया मेरी नजर निकासी द्वार की ओर चली गयी थी। दो एक जैसे दिखने वाले ट्रक निकासी द्वार पर पेपर चेक करवाने के लिये खड़े थे। दोनो के उपर बिलावल ट्रांसपोर्ट लिखा हुआ देख कर मैने जल्दी से ब्रेक मारे और जब तक जीप मोड़ कर निकासी की सड़क पर उनके पीछे पहुँचता तब तक वह मुख्य सड़क की ओर मुड़ते हुए दिख गये थे। दोनो ट्रक सामान्य गति से अपने गंतव्य स्थान की ओर जा रहे थे। मैने पीछे वाले ट्रक के नम्बर को चेक किया तो यकीन हो गया कि वही ट्रक था जिसे मैने शाम को दीपक सेठी के गोदाम मे देखा था। अगर किसी कारण आज थोड़ी देर हो जाती तो हमे गोदाम खाली मिलता। अपने साथ बैठे हुए कैप्टेन यादव को मैने इंटर्सेप्शन का इशारा किया और जीप की गति बढ़ाते हुए दोनो ट्रक से आगे निकल गया। कुछ देर उनके आगे चलते रहा और जैसे ही एक सुनसान जगह दिखी मैने अपनी जीप आढ़ी खड़ी कर सड़क के बीचोंबीच रोक दी थी। जब तक दोनो ट्रक वहाँ तक पहुँचते तब तक आठ सैनिक सड़क पर अपनी स्वचलित एके-203 तान कर खड़े हो गये थे। मैने हाथ देकर उन्हें ट्रक रोकने का इशारा किया। दोनो ट्रकों ने इमरजेन्सी ब्रेक लगाये जिसके कारण टायर घिसने की आवाज हुई और फिर गति धीमी करते हुए हमारे सामने आकर रुक गये थे।

…अपने कागज दिखाओ। ट्रक चालक ने अपने कागज निकाल कर उसमे कुछ नोट रख कर मेरी ओर बढ़ा दिये थे। मैने एक सरसरी नजर मार कर कहा… अबे ट्रक के कागज नही चाहिये। मुझे सामान की इन्वोइस दिखा। एक पल के लिये वह मेरी बात सुन कर घबरा गया था। वह जल्दी से बोला… खाली ट्रक है साहब। तब तक कैप्टेन यादव पीछे वाले ट्रक के ड्राईवर और क्लीनर को भी वहीं ले आया था। तब तक एक सैनिक ने मेरी जीप बीच रास्ते से हटा दी थी। मैने दूसरे ड्राईवर से भी वही सवाल किया तो उसका भी जवाब वही था। …चलो खोल कर दिखाओ। अबकी बार सभी के चेहरे पर हवाईयाँ उड़ती हुई साफ दिख रही थी। मै उन्हें लेकर पीछे निकल गया था। कंटेनर के दरवाजे पर सील लगी देख कर मैने कहा… खाली ट्रक के दरवाजे को भी सील लगा कर ले जाते हुए मैने पहली बार देखा है। दूसरे ट्रक का ड्राईवर ज्यादा समझदार बनते हुए बोला… साहब, जाने दिजिये। कुछ और पैसे रख लिजिये। उसने सिर्फ इतना बोला ही था कि कैप्टेन यादव ने घुमा कर उसके गाल पर एक झन्नाटेदार तमाचा जड़ दिया था। …चटाख… की आवाज रात की वीरानी मे गूंज गयी थी।

मैने जल्दी से कहा… कप्टेन दोनो ट्रकों को कब्जे मे ले लिजिये। ट्रक नेपाल का है। कोई पर्मिट की कापी नहीं है। कन्टेनर सीलबंद है परन्तु उसमे रखे हुए सामान की इन्वोइस नहीं है। …तेरा क्या नाम है? …गुड्डू। कैप्टेन यादव ने एक बार फिर हाथ दिखा कर बोला… साले सही नाम बोल। …परवेज मोहम्मद। …ड्राईविंग लाईसेन्स दिखा। …साहब नहीं है। मैने इशारा किया तो कैप्टेन यादव ने उनके हाथ से ट्रक की चाबी लेकर अपने साथ खड़े एक सैनिक के हाथ मे देते हुए कहा… दोनो ट्रकों को लेकर पीछे आओ। मैने जल्दी से एक कागज पर एक फर्जी पुलिस स्टेशन का पता लिख कर परवेज मोहम्मद के हाथ मे रखते हुए कहा… नेपाल से ट्र्क के मालिक और सामान के मालिक को बुलवा कर थाने मे पहुँच जाना। वहीं पर उनके सामने सब कुछ खोल कर जो भी जुर्माना बनेगा उसे जमा करके छुड़ा लेना। इस सड़क पर ट्रक प्रतिबन्धित है। यह सड़क सिर्फ सेना की गाड़ियों के लिये है। अगर इतना भी नहीं पता है तो भुगतो। उन चारों को वहीं छोड़ कर उनके मोबाईल और कागजात लेकर हम कुछ ही देर मे मानेसर की ओर जा रहे थे।

…सर, इस ट्रक मे क्या है? …यह तो मुझे भी नहीं पता है। हमे बस खबर मिली थी कि नेपाल से दो ट्रकों के द्वारा भारत मे जाली करेंसी लायी जा रही है। रास्ते के सारे नाके चेक करते हुए हमे पता चला था कि वह दोनो ट्रक इंडस्ट्रियल एरिया मे है। जैसे ही मेरी नजर इन दो ट्रकों पर पड़ी तो मैने शक के आधार पर इनका पीछा किया था। नेपाल का रजिस्ट्रेशन नम्बर देख कर मैने इन्हें इन्टर्सेप्ट करने का निर्णय लिया था। अब कैंम्पस मे पहुँच कर देखेंगें कि इन ट्रकों मे क्या है। …मेजर साहब, आप कौनसी युनिट से है। …15वीं कोर के आप्रेशन्स विंग। …आप श्रीनगर से है। …हाँ। तुम लोग कहाँ से आये हो? …सर, हम पहले असम मे थे। पिछले महीने ही हमने यहाँ जोईनिंग दी है। …वहाँ का क्या हाल है? …सर, घुसपैठ के कारण बुरा हाल है। सीमा सुरक्षा बल वाले सोते रहते है या पैसे खा कर घुसपैठ होने देते है। सारी घुसपैठ बंगाल की सीमा पर धड़ल्ले से चल रही है। वहाँ से वह असम और पूर्वी राज्यों मे चले आते है। यही बात करते हुए हम एनएसजी के कैंम्पस मे प्रवेश कर गये थे। बड़ा विशाल कैंम्पस था। जैसे ही हम आगे बढ़े कि तभी मेरी नजर एक कार पर पड़ी जिसके साथ जनरल रंधावा खड़े हुए थे। मैने जीप उनके पास लेजा कर रोक दी और मुस्तैदी से सैल्युट करके पूछा… सर, आप इतनी रात को यहाँ कैसे? …मेजर, दोनो ट्रकों को लेकर सामने वाले शेड मे खड़ा कर दो। मैने कैप्टेन यादव को इशारा किया और वह मेरी जीप और दोनो ट्रकों अपने पीछे लेकर चल उस दिशा मे चल दिया था।

…आओ मेजर। मै जनरल रंधावा की कार मे बैठ कर उस शेड की ओर चल दिया था। शेड मे पहुँचते ही जनरल रंधावा ने कंटेनर की सील तोड़ कर दरवाजा खोलने के का इशारा किया तो दो सैनिक सील तोड़ने मे जुट गये थे। मुश्किल से पाँच मिनट मे दोनो कंटेनर के दरवाजे खुल गये थे। दो ट्रकों मे आठ लोहे के बड़े-बड़े ट्रंक रखे हुए थे। एक सैनिक ट्रक पर चढ़ गया और एक ट्रंक का डक्कन खोल कर जैसे ही टार्च की रौशनी मे अन्दर देख कर जोर से चीखा… साबजी, यह तो नोटों से भरा हुआ है। थोड़ी देर मे सभी ट्रंक खोल कर देखने के बाद जनरल रंधावा ने कहा… मेजर, आप्रेशन काठमांडू लांच करने का समय आ गया है। …सर, इसके आधे पैसे हमे उस इन्फार्मर को देने पड़ेंगें जिसने इसकी सूचना मुझे दी थी। …कोई बात नहीं। फिलहाल यह युनिट आज रात को यही पहरा देगी। कल सुबह इसे बैंक के हवाले कर देंगें। तुम अब क्या करोगे? …सर, मै इनके साथ यहीं पर गार्ड ड्युटी पर हूँ। कल आप लोग सुबह आ जाईएगा। बैंक का काम समाप्त करके ही फिर वापिस जाऊंगा। …ओके माईबोय। यह बोल कर जनरल रंधावा वहाँ से चले गये थे।

कैप्टेन यादव की युनिट मे दबी जुबान मे अन्दाजा लगाया जा रहा था। कुछ देर बाद कैप्टेन यादव ने पूछा… सर, कितना होगा? …लगभग दस करोड़ रुपये है। यह आईएसआई के पैसे है जिन्हें वह यहाँ पर विस्फोट और आतंकवाद के लिये इस्तेमाल करने वाले थे। सारी युनिट वाले मेरी बात सुन रहे थे। तभी एक सैनिक बोला… साबजी अगर हमारे भी कुछ लोग सीमा पार होते तो इसी पैसों से उनके कुछ इलाकों मे हम भी तहलका मचा देते। मियाँ जी की जूती और मियाँ जी का सिर वाली कहावत चरितार्थ हो जाती। सभी ने उसकी बात पर एक जोर का ठाहाका लगाया और एक बार फिर से दोनो ट्रकों की सुरक्षा मे जुट गये थे।

अगली सुबह अजीत, वीके और जनरल रंधावा दस बजे तक मानेसर पहुँच गये थे। उन्होंने आते ही सबसे पहले आठों लोहे के ट्रंक बैंक के सुपुर्द कर दिये गये थे। हम एनएसजी की मेस मे बैठ कर नाश्ता कर रहे थे कि अजीत सर ने पूछा… मेजर, रंधावा ने बताया है कि इस सूचना के लिये आधे पैसे इन्फार्मर को देने है। कौन है तुम्हारा इन्फार्मर? मै एक पल चुप रहा और फिर मैने जल्दी से कहा… सौम्या कौल। तीनों के चेहरे पर एक मुस्कान तैर गयी थी। अजीत ने हंसते हुए कहा… यह वही फारुख के पैसे है जिसे लेकर नीलोफर गायब हो गयी थी। …यस सर। वीके ने हंसते हुए कहा… मै जानता था। …परन्तु सर, एक बहुत बड़ा मौका हमारे हाथ से निकल गया। यह ट्रक दीपक सेठी के गोदाम मे खड़े हुए थे। अगर यह ट्रक वहाँ पकड़े जाते तो वामपंथी प्रोपोगंडा चलाने वाले की गरदन हमारे हाथ मे आ जाती। …मेजर, दीपक सेठी की गरदन अभी भी हमारे हाथ मे है। तुम उसकी चिन्ता छोड़ दो। आप्रेशन काठमांडू की योजना तैयार करो। …सर, मै सिर्फ अपने पेपर्स के तैयार होने का इंतजार कर रहा हूँ। हम लोग बात करते हुए मेस से बाहर निकल आये थे। वह तीनो आफिस के लिये निकल गये थे और मै अपने फ्लैट की ओर चल दिया था। कैप्टेन यादव ने अपने लिये ट्रांस्पोर्ट का इंतजाम पहले ही कर लिया था और वह अपनी युनिट को लेकर वापिस चला गया था।

 

रविवार, 21 मई 2023

  

गहरी चाल-9

 

जनरल हेडक्वार्टर्स, रावलपिंडी

जनरल शरीफ के सामने आईएसआई का निदेशक लेफ्टीनेन्ट जनरल मंसूर और पाकिस्तानी नौसेना का मुखिया एड्मिरल शौकत मिर्जा मेज पर बिछे हुए नक्शे पर निगाहें गड़ाये हुए दबे हुए स्वर मे बात कर रहे थे। जनरल मंसूर ने धीरे से कहा… जनाब, पिछले भेजे हुए कुअर्डिनेट्स इस हिस्से मे है। आप्रेशन खंजर के लिये यही उपयुक्त टार्गेट लगता है। भारत की खुफिया एजेन्सियाँ सोच भी नहीं सकती कि हम उनके सीने पर भी वार कर सकते है। शौकत क्या आप्रेशन खंजर को अंजाम दिया जा सकता है? एड्मिरल शौकत मिर्जा काफी देर से सारी योजना को चुपचाप सुन रहा था। कुछ सोच कर बोला… जनरल शरीफ, यह सही है कि अगर फिदायीन दस्ता किसी तरह से उन कुअर्डिनेट्स पर पहुँच गये तो हमारी नौसेना उनको सुरक्षा कवर दे सकती है। उसके बाद भारतीय नौसेना को रोकना हमारे लिये बेहद  आसान हो जाएगा। इस योजना मे एक ही मुश्किल है कि उन कुअर्डिनेट्स पर वह लोग कैसे पहुँचेंगें।

जनरल शरीफ ने जनरल मंसूर की ओर देखा तो वह जल्दी से बोला… जनाब, आईएसआई इस आप्रेशन का संचालन नेपाल से करेगी जिसके लिये हमारी कुछ तंजीमे बांग्लादेश मे अभी से सक्रिय हो गयी है। …हमारी कौनसी तंजीम इस कार्य को करेगी? …जनाब, हमारी तंजीमों का संयुक्त जिहाद मोर्चा इस काम को अंजाम देगा।  दारुल-उलुम-हक्कनियाँ और जमात की देखरेख मे जैश, लश्कर और हरकत-उल-अंसार इस आप्रेशन को अंजाम देंगी। जैश और लश्कर कश्मीर मे सेना का ध्यान भटकायेगी, हरकत-उल-अंसार संसाधन और जिहादियों के प्रशिक्षण का इंतजाम करेगी और हिज्बुल और अन्य तंजीमों से से छाँटे हुए जिहादियों का उन कुअर्डिनेट्स पर हमला होगा। इंशाल्लाह अगर सही समय पर खंजर दुश्मन मुल्क के सीने मे घुस गया तो उसकी चीख निकल जाएगी। एड्मिरल शौकत मिर्जा ने तुरन्त टोकते हुए कहा… जनरल मंसूर, उन कुअर्डिनेट्स पर पहुँचना उनके लिये क्या इतना आसान होगा?

जनरल शरीफ ने सिर हिलाते हुए कहा… जनरल मंसूर, नेपाल मे आईएसआई का कौन संचालन कर रहा है? …जनाब, ब्रिगेडियर शुजाल बेग ने वहाँ की कमान संभाल रखी है। वही हमारे ढाका दूतावास के जरिये तंजीमो के साथ संपर्क मे है। …मंसूर, उन कुअर्डिनेट्स पर पहुँचने की क्या योजना है? …जनाब, संयुक्त तंजीमों का मोर्चा उसी योजना को अंतिम रुप देने मे व्यस्त है। जनरल शरीफ ने उठते हुए पूछा… शौकत, आज ही करांची वापिस जा रहे हो? …जी जनाब। …ठीक है। जनरल मंसूर से लगातार संपर्क मे रहना। आप्रेशन खंजर मे हमारी नौसेना की मुख्य भुमिका रहेगी इसीलिए तैयारी मे कोई ढील नहीं होनी चाहिये। …जी जनाब। …अल्लाह हाफिज। इतनी बात करके जनरल राहिल शरीफ कमरे से बाहर निकल गया और उसके पीछे दोनो बात करते हुए अपनी-अपनी कारों की ओर निकल गये थे।

 

आफिस मे बैठ कर मै रात की बात सोच रहा था। तबस्सुम मेरे दिमाग पर छायी हुई थी जिसके कारण मै ठीक से सोच भी नहीं पा रहा था। उसने बताया था कि पेंडारकार परिवार हमे हिन्दु समझते है। उसकी बात सुन कर मै चौंक गया था। जब मैने पूछा कि उन्हें इस मामले मे झूठ बोलने की जरुरत क्या थी तो उसने मुझे मेरी असलियत याद दिलाते हुए कहा कि मैने तो सच ही तो बताया था कि आप काफ़िर है। उन्होंने मुझसे तो नहीं पूछा था कि मै कौन हूँ। मै जितनी बार भी उससे बात करता उतनी बार मै अपनी ही नजरों मे और गिरता जा रहा था। अब मुझे इस झूठ के रिश्ते मे घुटन महसूस होने लगी थी। आफिस पहुँच कर भी तबस्सुम की बातें मेरे दिमाग मे घूम रही थी। सुबह आफिस के लिये निकलते हुए उसने मुझसे काले मनकों की एक माला खरीद कर लाने के लिये कह दिया था। तबस्सुम अब शिखा का अनुसरण करते हुए अपने आप को उसके अनुसार ढालने का प्रयास कर रही थी। इतने दिन साथ रहने के कारण अब मुझे उसकी आदत सी हो गयी थी। अब मुझे उसके लिये कोई स्थायी इंतजाम करने की जरुरत महसूस होने लगी थी।  

फोन की घंटी ने मेरा ध्यान तोड़ दिया था। …हैलो। अजीत सर की आवाज मेरे कान मे पड़ी… मेजर, मेरे आफिस मे आ जाओ। दिमाग की सारी खलल त्याग कर मै अजीत सर के आफिस की ओर चला गया था। वहाँ पहले से ही वीके और जनरल रंधावा बैठे हुए थे। अजीत ने मुझे देखते ही पूछा… मेजर, क्या उन फाईलों को देख लिया? मैने अचरज से उनकी ओर देखा तभी वीके ने कहा… अजीत अभी मैने इसको वह फाईले नहीं दी है। पहले इसके आफिस मे लाकर का इंतजाम करना पड़ेगा। अजीत खड़े होकर बोले… तो चले? सब उठ कर आफिस के बाहर चल दिये थे। मै भी उनके साथ चल दिया था। थोड़ी देर के बाद साउथ ब्लाक के मुख्य द्वार पर एक फौज की मिनी बस के सामने हम खड़े हुए थे। हम चारों के बैठते ही मिनी बस वहाँ से निकल गयी थी। कुछ ही देर मे एक अज्ञात सुरंग से निकलते हुए हम एक स्थान पर पहुँच कर रुक गये थे। वह पार्किंग जैसी जगह लग रही थी। ड्राइवर ने दरवाजा खोलने से पहले कहा… आप सब अपना फोन और सभी इलेक्ट्रानिक समान यहीं छोड़ दिजिये। सभी अपने फोन स्विच आफ करके ड्राइवर के हाथ मे पकड़ा कर मिनी बस से उतर कर एक दिशा मे चल दिये थे।

हम एक लम्बे से गलियारे को पार करके लिफ्ट के सामने पहुँचे तब वीके ने कहा… मेजर, यह हमारा स्ट्रेटिजिक सेन्ट्रल कमांड सेन्टर है। यहाँ से आगे की हर बात गुप्त रहनी चाहिये। …यस सर। सुरक्षाकर्मियों ने हमारी तलाशी ली और एक्सरे मशीन के सामने से निकाल कर ही हम आगे जा सके थे। लिफ्ट ने हमे एक जगह छोड़ा जहाँ से फिर एक गलियारे से होते हुए हम एक विशाल से हाल मे पहुँच गये थे। उस हाल मे प्रवेश करते ही मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी थी। दीवार पर विशाल पाँच सक्रीन लगे हुए थे। चारों ओर कंप्युटर टर्मिनल पर सेना के अधिकारी बैठे हुए अपने-अपने काम मे व्यस्त थे। करीब पचास-साठ लोगों की उपस्थिति होने के बावजूद वहाँ सन्नाटा छाया हुआ था। हाल के बीचोंबीच बड़ी सी गोल शीशे की मेज लगी हुई थी और उसके चारों ओर खाली कुर्सियाँ पड़ी हुई थी। एक लेफ्टीनेन्ट जनरल की रैंक का अधिकारी हमारी ओर आया और वीके को सैल्युट करके बोला… सर, आपका मेसेज मिल गया था। बताईये क्या करना है? हम चलते हुए एक किनारे मे बने हुए रुम मे आ गये थे। सबके बैठते ही मै भी एक किनारे मे बैठ गया था। कुछ क्षण शान्ति छायी रही और फिर वीके ने बोलना आरंभ कर दिया।

…यह हमारा स्ट्रेटिजिक कमांड सेन्टर है। इसको हम लोग लास्ट लाइन आफ डिफेन्स कहते है। जनरल मोहन्ती की देखरेख मे यह सेन्टर चौबीस घंटे काम करता है। देश के कुछ चुनिन्दा लोगों को इसकी जानकारी है। यहाँ पर बाहर का कोई आदमी नहीं घुस सकता और इस जगह की सुरक्षा हमारे लिये सर्वोपरि है। यह कमांड सीधे एनएसए अजीत सुब्रामन्यम के आधीन है। जनरल मोहंती आप जनरल रंधावा को तो अच्छी तरह से जानते है। यह मेजर समीर बट है। यह एनएसए के विशेष सहायक के पद पर काम कर रहे है। इतना बोल कर वीके चुप हो गये थे। जनरल मोहन्ती ने कहा… सर प्रोटोकोल बताने से पहले आपको सारे स्टेशन्स से परिचय करा देता हूँ। इतना बोल कर वह हमे लेकर वापिस हाल मे आ गया था।

जनरल मोहन्ती एक किनारे मे खड़े होकर बोले… इस वक्त हम सेटेलाईट-1 स्टेशन पर खड़े हुए है। यह स्टेशन पृथ्वी के चक्कर लगाती हुई हमारी सभी सेटेलाइट्स पर निगाह रखता है। जरुरत पढ़ने पर हम उनसे दुनिया के किसी भी हिस्से की जानकारी ले सकते है। सेटेलाईट-2 स्टेशन हमारी सभी सैन्य सेटेलाईट से संपर्क मे रहता है। हम यहाँ से इसरो के द्वारा उन सेटेलाइट्स को अपनी जरुरत के अनुसार दुनिया के किसी भी स्थान पर केन्द्रित कर सकते है। पाँच सैन्य अधिकारी कान पर हेडफोन लगाये लगातार इसरो के स्टेशन से संपर्क स्थापित किये हुए थे। उनके कंप्युटर स्क्रीन पर लगातार सात अंकों के नम्बर उभर कर आते जा रहे थे जिनको देखते ही वह सामने लगी हुई बड़ी सी स्क्रीन पर नक्शे पर देख कर लगातार इसरो को निर्देश देते जा रहे थे। सेटेलाईट स्टेशन-3 भारतीय संचार माध्यम से जुड़ी हुई है। यह भारत मे होने वाली सभी प्रकार की ट्रांसमिशन्स का रियल टाइम सूचना केन्द्र है। इस स्टेशन पर ज्यादा कंप्युटर टर्मिनल लगे हुए थे। सभी अधिकारियों की नजरे अपनी-अपनी स्क्रीन पर जमी हुई थी। हम जैसे देखने वालों के लिये लाल-हरी-नीली-संतरी रंगों की रेखाओं के बुने हुए जाल से ज्यादा कुछ नहीं था। …सर, इसको हम लिसनिंग आउटपोस्ट कहते है। यहाँ पर मोबाईल फोन, रेडियो और टीवी के ट्रांसमिशन्स पर लगातार नजर रखी जा रही है। जनरल रंधावा ने सिर हिला दिया और आगे बढ़ गये थे। मैने आगे बढ़ते हुए हुए जनरल मोहन्ती से पूछा… सर, सोशल मिडिया पर आप कैसे नजर रखते है? …मेजर, सिर्फ वही हमारी पकड़ के बाहर है। वह सभी बाहर की कंपनियाँ है और उनके सर्वर भी देश के बाहर है। उनका सारा डाटा हमारे नेटवर्क पर आते ही हमारी नजर मे आ जाता है परन्तु एन्क्रिप्शन के कारण हम उसे पढ़ने, सुनने और समझने की स्थिति मे नहीं है। जब तक वह अपने एन्क्रिप्शन कोड का एक्सेस नहीं देते तब तक वह हमारे लिये कचरे से ज्यादा कुछ नहीं है। इन सभी स्टेशन्स को हम सेन्ट्रल सेटेलाइट टर्मिनल कहते है।

जनरल मोहन्ती ने हाल के दूसरे कोने की ओर जाते हुए कहा… सर, अब हम स्ट्रेटिजिक कमांड के नर्व सेन्टर की ओर जा रहे है। हम एक नये विशाल से स्टेशन पर पहुँच गये थे। यहाँ कंप्युटर टर्मिनल ज्यादा थे और उसी के अनुसार बैठे हुए लोग भी ज्यादा थे। सभी वायुसेना की वर्दी मे थे तो पहली नजर मे पता चल गया था कि यह वायुसेना से जुड़ा हुआ स्टेशन है। …यह ट्रमिनल-2  हमारी वायुसेना का कमांड स्टेशन है। हमारी वायुसेना का छोटे से छोटा रेडार इस स्टेशन से जुड़ा हुआ है। सारे उड्यन सिविल व वायुसेना के एयरपोर्ट्स इस स्टेशन से जुड़े हुए है। उसे देखते हुए हम और आगे बढ़ गये थे। …यह टर्मिनल-3  हमारी नौसेना के साथ जुड़ा हुआ है। हमारे सभी प्रकार के बंदरगाह इससे जुड़े हुए है। यहीं पर नौसेना की रियल टाइम सूचना मिलती है कि हमारी नौसेना के जहाज, पनडुब्बियाँ और अन्य बेड़े दुनिया के किस कोने मे स्थित है। यहाँ पर सभी नौसैनिक बैठे थे।

…आईये आपको टर्मिनल-1 की ओर लेकर चलता हूँ। हम उस हाल की तीसरे हिस्से की ओर चल दिये थे। यह हमारी थलसेना का टर्मिनल है। इसी टर्मिनल पर हमारे सारे स्ट्रेटेजिक आधुनिक मिसाईल सिस्टम का नियंत्रण केन्द्र है। त्रिशूल, नाग, आग्नि, इत्यादि व अन्य परमाणु केरियर्स यहीं से कंट्रोल होते है। उस ओर आप देख रहे है वह हमारी थलसेना की रियल टाइम जानकारी रखते है। हमारी बारह सैन्य सेटेलाइट इसी ट्रमिनल से संपर्क मे रहती है। यहाँ देश के पूर्वी छोर से पश्चिमी छोर तक हमारी सीमा पर लगातार यह टर्मिनल नजर रखता है। हमारा चक्कर अभी भी पूरा नहीं हुआ था। एक ओर टर्मिनल बना हुआ था। परन्तु वह हमे उधर नहीं ले गया था। जनरल रंधावा ने उसके आफिस मे प्रवेश करते हुए कहा… एक टर्मिनल के बारे मे आपने बताया नहीं। जनरल मोहन्ती ने कहा… वह विदेश मंत्रालय और रा का टर्मिनल है। हमारा कुछ देशों के साथ सुरक्षा मामले मे कुछ सूचना के आदान-प्रदान की संधियाँ है। वक्त पड़ने पर जरुरत के हिसाब से हम समय-समय पर इसे चालू कर देते है। यहीं से प्रधानमंत्री आफिस की हाटलाइन दुनिया के कुछ महत्वपूर्ण राष्ट्राध्यक्षों के साथ जुड़ी हुई है।

कमरे मे बैठ कर जनरल मोहन्ती ने प्रोटोकोल के बारे बताना आरंभ कर दिया था। कौनसे टर्मिनल पर किसके आदेश पर तुरन्त जानकारी ली जा सकती है। मेरी इतनी हैसियत ही नहीं थी तो मै आराम से कमांड सेन्टर के बारे मे सोचने बैठ गया था। प्रोटोकोल की  कहानी समाप्त होते ही मैने कहा… सर, यहाँ पर हर काम करने वाला तो कोई भी जानकारी निकाल सकता है। मेरी बात को बीच मे काटते हुए जनरल मोहन्ती ने कहा… नहीं मेजर। प्रोटोकोल सिर्फ एक बात है परन्तु यहाँ पर हर नेटवर्क स्टेन्ड अलोन यानि एकल नेटवर्क है। एक स्क्रीन पर बैठे हुए आदमी को दूसरी स्क्रीन की कोई खबर नहीं होती है। एक स्टेशन को पता नहीं कि दूसरे स्टेशन पर क्या हो रहा है। …सर, यह सारी सूचना यहीं पर एकत्रित होती है अन्यथा अलग-अलग जगह पर एकत्रित होकर एक उप्युक्त टर्मिनल पर भेजी जाती है? …मेजर, सारी सूचना इकठ्ठी करने का काम अलग होता है। उस सूचना को एन्क्रिप्ट करने का काम अन्य स्थान पर होता है। वहाँ से फिर उस सूचना को छान कर जरुरत के अनुसार इस केन्द्र मे भेजा जाता है। बेहद आधुनिक नेटवर्क सिस्टम है। इसमे सेंधमारी करना नामुमकिन है।

हमारा टूर पूरा हो गया तो वीके हम तीनो को उसी कमरे मे ले आये थे। अबकी बार अजीत सर ने पहल करते हुए कहा… जनरल रंधावा आप के बैठने का इंतजाम यहाँ पर कर दिया जाएगा। सारा फील्ड आप्रेशन का संचालन यहीं से होगा। मेजर भी यहीं पर आपसे संपर्क किया करेगा। कुछ देर बात करने के बाद हम सब वापिस चल दिये थे। रास्ते मे मैने वीके से कहा… सर, बड़े व्यापक पैमाने पर तैयार किये हुए कमांड सेन्टर मे आईएसआई सेंधमारी करने मे कैसे सफल हो गया? …मेजर यही तो तुम्हें पता करना है कि आखिर वह गद्दार कोडनेम वलीउल्लाह आखिर कौन है? यहाँ आने का यही कारण था कि तुम समझ लो कि सेटेलाइट ग्रिड रेफ़ेरेन्स सिस्टम कितना जटिल है तो भला कोई यहाँ से जानकारी निकाल कर दुश्मन को कैसे दे रहा है। इतना सब कुछ देखने और सुनने के बाद तो मै और भी ज्यादा उलझ गया था। थोड़ी देर मे हम वापिस अपने आफिस पहुँच गये थे।

शाम हो गयी थी। मै अपने घर जाने के लिये जीप मे बैठा ही था कि आफशाँ का फोन आ गया… हैलो। …तुम्हें एक खुशखबरी देनी है कि मेरी कंपनी ने मुझे दिल्ली के आफिस का हेड बना कर मेरा ट्रांस्फर वहाँ कर दिया है। अगले हफ्ते तक मै वहाँ पहुँच जाऊँगी। इतने दिनो के बाद अब हम साथ रह सकेंगें। वह अपनी खुशी मे बोलती जा रही थी। …आफशाँ यह तो बड़ी अच्छी खबर सुनायी है। तुम बताओ मेनका कैसी है? मेरे पास बोलने को कुछ था नहीं परन्तु सोचने के लिये दर्जन से ज्यादा चीजें हो गयी थी। …तुमने आसिया को नहीं बताया कि तुम दिल्ली मे हो? …तुम तो जानती हो कि सेना का जीवन कैसा होता है। अभी दो दिन पहले ही बंगाल से लौटा था। …समीर, अब तुम्हारी कोई कहानी नहीं चलेगी। मेरी कंपनी मुझे घर और कार की सुविधा दे रही है। अब यह तुम्हारी घुमन्तु लोगों वाली जिंदगी नहीं चलेगी। …तुम आ जाओगी तो फिर मै क्यों ऐसे रहना चाहूँगा। कुछ देर उसने मुझसे बात करी और फिर फोन काट दिया था। अदा के स्थानान्तरण के आर्डर भी हो गये थे। उसकी पोस्टिंग चंडीगड़ के कमान्ड अस्पताल मे हो गयी थी। मेरी जिन्दगी उलझती जा रही थी। कुछ देर मै ऐसे ही जीप मे बैठ कर सोचता रहा और जब कुछ समझ मे नहीं आया तो जीप स्टार्ट करके अपने फ्लैट की ओर चल दिया।

अभी कुछ दूर ही गया था कि कुछ ध्यान मे आया तो मैने जीप सड़क से उतार कर एक पेड़ के नीचे खड़ी करके एक नम्बर लगाया। …हैलो। …नीलोफर, मुझे तुम्हारी मदद चाहिये। तुमने सौम्या कौल के कागजात कैसे बनवाये थे? …क्यों क्या हो गया? …तुम बताओगी या नही? …उखड़ क्यों रहे हो? निजामुद्दीन मे साबिर अली नाम का ट्रेवल एजेन्ट है। उसने मेरे कागज बनवा दिये थे। …क्या मुझे किसी की सिफारिश की जरुरत पड़ेगी? …अंसार रजा ने मेरे कागज उसी से बनवाये थे। वैसे भी मै तुमसे मिलना चाहती थी। यह बताओ कि कब मिल सकते हो? …कहाँ मिलना है? …समीर, तुमसे मै बाहर नहीं मिल सकती तो तुम्हें उसी फ्लैट पर आना पड़ेगा। …ठीक है। कल सुबह दस बजे मिलते है। इतनी बात करके फोन काट दिया और अपने फ्लैट की दिशा मे चल दिया।

मैने जब फ्लैट मे प्रवेश किया तो मेरी नजर तबस्सुम पर पड़ी जो किसी से फोन पर बात कर रही थी। मुझे देखते ही वह जल्दी से बोली… दीदी, वह आ गये है। अब फोन रखती हूँ। इतना बोल कर उसने फोन काट दिया और मेरी ओर देखते हुए बोली… आज चेहरा क्यों उतरा हुआ है? …कुछ नहीं बस आजकल आफिस मे काम का भार ज्यादा है। …कुछ पियेंगें? …चाय पिला दोगी तो अच्छा होगा। आरफा कहाँ है? …वह कमरे मे है। इतना बोल कर वह किचन मे चली गयी थी। मै आरफा के कमरे मे चला गया था। वह बेड पर बैठी किसी सोच मे डूबी हुई थी। मुझे देखते ही वह खड़ी होने लगी तो मैने कहा… बाहर आ जाओ। तबस्सुम चाय बना रही है। अभी भी वह हिन्दी समझती नहीं थी लेकिन इशारे और साधारण हिन्दी के शब्द समझने लगी थी। वह मेरे साथ बाहर निकल आयी थी।

…आरफा, अब आगे का क्या सोचा है? वह जब मेरी बात नहीं समझी तो एक बार फिर मैने धीरे से समझाते हुए पूछ लिया था। उसने रुक-रुक कर कहा… वापिस नहीं जाउँगी। …तो फिर यहाँ रहने के लिये तुम्हारे कागज बनवाने पड़ेंगें। पता नहीं उसे कितना समझ मे आया परन्तु कागज की बात समझ कर उसने जल्दी से सिर हिला दिया था। तबस्सुम चाय मेरे सामने रखते हुए बोली… अगर इसके कागज बन भी गये तो फिर यह क्या करेगी? …इसके बारे मे मुझे अपने आफिस मे बात करनी पड़ेगी। कुछ सोच कर मैने पूछा… आरफा, तुमने तो मूसा और शाकिर के साथियों को भी देखा होगा? एक बार फिर से वही भाषा की मुश्किल खड़ी हो गयी थी। एक ही सवाल को दो-तीन बार अलग-अलग तरीके से दोहराते हुए जब मैने पूछा तो उसने जल्दी से कहा… हाँ। …तुम उन्हें पहचान सकती हो? …हाँ कुछ लोगों को पहचान लूँगी। चाय पीकर मै अपने कमरे मे कपड़े बदलने के लिये चला गया था। हमेशा की तरह मेस से खाना आ गया था।

अगले दिन मै अजीत सर के सामने बैठा हुआ था। …सर, मैने आरफा चौधरी को काठमांडू आप्रेशन मे अपने साथ ले जाना चाहता हूँ। …क्या प्लान है तुम्हारा? …सर, आरफा ने मूसा और शाकिर के साथियों को देखा है। उसका कहना कि वह उनमे से कुछ को पहचान सकती है। अगर हमे ब्रिगेडियर शुजाल बेग की गतिविधियों पर नजर रखनी है तो काठमांडू मे अपनी आब्सर्वेशन पोस्ट बनानी पड़ेगी। आरफा ने अगर बांग्लादेश के किसी आदमी को काठमांडू मे पहचान लिया तो फिर इस साजिश से जुड़ी हुई कड़ियाँ अपने आप खुलनी आरंभ हो जाएगी। …मेजर, आरफा को लेकर तुम बांग्लादेश क्यों नहीं चले जाते? …सर, सारा संचालन काठमांडू से हो रहा है। बांग्लादेश मे तो प्यादे बैठे हुए है। उन प्यादों का वजीर एजाज मूसा अब हमारे कब्जे है तो उनका सारा काठमांडू का नेटवर्क फिलहाल उसे खोज रहा होगा। यही सही समय है जब हम काठमांडू मे उनके नेटवर्क के जरिये उस साजिश का पता लगा सकते है। …इसके लिये तुम्हें क्या चाहिये? …आरफा और मेरे लिये नया परिचय चाहिये। सर, फारुख की लड़की के भी कागजात तैयार करने पड़ेंगें। कुछ पैसे चाहिये जिससे वहाँ पर एक कंपनी स्थापित की जा सके। अजीत सर ने फोन उठाकर किसी से बात करने के बाद बोले… मेजर, दोनो लड़कियों को लेकर दिवाकर के पास चले जाओ। वह तुम्हारे लिये उप्युक्त कागज तैयार करवा देगा। काठमांडू आप्रेशन के लिये वीके और जनरल रंधावा के साथ गोपीनाथ से भी बात करनी पड़ेगी। तुम कागजात बनवा लो लेकिन काठमांडू के लिये एक-दो दिन मे निर्देश दूंगा। …यस सर। इतनी बात करके मै उनके आफिस से निकल कर दिवाकर के पास चला गया था।

रविकांत दिवाकर हमारे आफिस मे एडमिनिस्ट्रेशन काम संभालता था। वह एक समय पर अजीत सर के साथ आईबी मे इन्सपेक्टर के पद पर काम करता था। सेवानिवृत होने के बाद अजीत सर ने उसे अपने आफिस मे सारे ऐसे कामों के लिये रखा हुआ था जिन कामो को किसी दूसरे मंत्रालय के द्वारा करवाया जाता था। दिवाकर के बारे मे अजीत सर ने बताया था कि सरकार का ऐसा कोई मंत्रालय नहीं था जहाँ दिवाकर किसी को जानता नहीं था। उसका एक कारण भी था कि उसके आईबी जीवन का एक बहुत बड़ा हिस्सा वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों, न्यायाधीशों व मंत्रियों और उनके निजि स्टाफ की जाँच की रिपोर्ट बनाने मे गुजरा था। किसी महत्वपूर्ण पद की नियुक्ति बिना आईबी की रिपोर्ट के नहीं हो सकती थी और इसीलिये दिवाकर को सभी छोटे और बड़े अधिकारी जानते थे। अजीत सर के साथ काम किया था तो उसकी इमानदारी और कर्मठता पर कोई प्रश्नचिन्ह भी नहीं लगा सकता था। मै उस वृद्ध आदमी के सामने बैठ कर बोला… दिवाकर सर, छ्द्म नाम के कागजात बनावाने है? …मेजर साहब, आप सर बोल कर मुझे शर्मिन्दा मत किया किजिये। …देखिये यह सर आपके अनुभव के लिये है न की रैंक। …आपको क्या चाहिये? …आधार कार्ड, वोटर कार्ड और पासपोर्ट। …किसके लिये? …तीन लोगों के लिये। उसने मेरी ओर एक बार देखा और फिर बोला… यह किस काम के लिये चाहिये? …यह मै आपको नहीं बता सकता। आप इसके बारे मे अजीत सर से पूछ सकते है। …ठीक है मेजर साहब, उन तीनों के फोटो दे दिजिये। मैने पेन ड्राईव उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा… सर, मुझे सभी के हिन्दु नाम से पहचान पत्र बनवाने है। उसने तब तक तीनो फोटो अपने कंप्युटर पर उतार कर कहा… कोई पता दे दो। मैने अपने और तबस्सुम का पता मुंबई के फ्लैट का देते हुए कहा… यह फ्लैट अंजली कौल के नाम पर पंजीकृत है। उसकी मृत्यु हो चुकी है तो तबस्सुम को आप आसानी से अंजली कौल की पहचान दे सकते है। उसके पति के रुप मे मुझे समीर कौल के नाम से अपना पहचान पत्र चाहिये। …दूसरी लड़की के लिये आपने कोई नाम सोचा है? …आप उसको सौम्या बिस्वाका नाम दे दिजिये। …ठीक है मेजर साहब। मुझे कुछ समय दिजिये। मै आप तीनो के कार्ड और पासपोर्ट तैयार करवाता हूँ। उसको धन्यवाद कह कर मै वापिस अपने आफिस मे आ गया था। बहुत सोचने के पश्चात मै इसी नतीजे पर पर पहुँचा था कि इस तरह शायद तबस्सुम का भविष्य को हमेशा के लिये सुरक्षित हो सकता है। 

मुझे साबिर अली के बारे मे नीलोफर ने बताया था कि वह अंसार रजा के कहने पर जाली कागज तैयार करवाता था। दारुम उलुम की कहानी सुनने के बाद मेरी नजर सिकन्दर रिजवी पर थी परन्तु नीलोफर के कहने पर अब साबिर अली पर आकर टिक गयी थी। अगर वह जाली पहचान पत्र तैयार करवाता था तो जरुर उसके पास इस बात की जानकारी जरुर होगी कि पिछले कुछ सालों मे उसने किन लोगों को नयी पहचान दी थी। यही सोच कर एक बार फिर अजीत सर के पास पहुँच गया था। …मेजर, दिवाकर से मिल कर उसे काम समझा दिया? …जी सर, उन्होंने मुझसे पूछा था किस काम के लिये तो मैने कह दिया कि इसके बारे मे वह आप से पूछ ले। …कोई बात नहीं। वह मुझसे नहीं पूछेगा। …सर, मुझे पता चला है कि साबिर अली नाम का आदमी ट्रेवल एजेन्सी की आढ़ मे नकली पहचान पत्र बनाता है। उसको प्रदेश के एक विधायक अंसार रजा का संरक्षण प्राप्त है। निजामुद्दीन मे उसकी ट्रेवल एजेन्सी का आफिस है। उसके कंप्युटर पर उन सभी लोगों की जानकारी मिल सकती है जिनके लिये उसने नयी पहचान तैयार करवायी होगी। गाजियों की सेना के कुछ प्यादे उसके पास भी मिल सकते है। …मेजर, इस काम के लिये अच्छा होगा कि एक छद्म आप्रेशन करके उसे रंगे हाथ पकड़ा जाये। तुम दीपक से बात करो उसकी टीम इन कामों मे काफी तेज है। …सर, आईबी को ऐसे काम मे उलझाना क्या ठीक होगा। मुस्लिम नेता का संरक्षण, मुस्लिम बहुल क्षेत्र और मुस्लिम आरोपी मिल कर बेहद संवेदनशील काकटेल बन जाता है। अगर आप्रेशन मे कोई कमी रह गयी तो सभी के लिये मुश्किल खड़ी हो जाएगी और वह साफ बच कर निकल जाएगा। अजीत सर ने कुछ सोच कर कहा… शायद तुम ठीक कह रहे हो। अगर यह बात सच नहीं साबित हुई तो हंगामा खड़ा हो जाएगा तो तुम क्या करने की सोच रहे हो? …सर अभी मैने सोचा नहीं है। एक बार मै उस जगह को देख लेता हूँ उसके बात ही मै कोई जवाब दे सकूँगा। …ठीक है। मै कमरे से बाहर निकल आया और फिर कुछ सोच कर मै निजामुद्दीन की ओर निकल गया था।

साबिर अली नाम के ट्रेवल एजेन्ट को ढूंढने मे टाईम जरुर लगा परन्तु वह दुकान आखिरकार मुझे मिल गयी थी। पुलिस थाने के साथ एक पतली सी गली मे साबिर अली की ट्रेवल एजेन्सी की दुकान थी। अपनी जीप थाने की दीवार के साथ लगा कर मै गली मे चला गया था। ट्रेवल एजेन्सी का दरवाजा खोल कर जैसे ही मैने अन्दर प्रवेश किया तो मेरी नजर साबिर अली पर पड़ी जो अपने फोन पर कोई फिल्म चला कर देखने मे व्यस्त था। अधेड़ उम्र का आदमी था। आँखों मे सुरमा, दाड़ी और सिर के बालों को मेहंदी से रंग कर सफेद चिकन के कुर्ते मे साबिर अली शक्ल से ही चालू किस्म का इंसान लग रहा था। …स्लाम वालेकुम बड़े मियाँ। मैने प्रवेश करते ही अभिवादन किया और उसके सामने रखी हुई कुर्सी पर बैठ गया। वह मुझे पहचानने की कोशिश करते हुए बोला… वालेकुम मियाँ, कैसे आना हुआ? मैने दबी हुई आवाज मे कहा… जनाब, एक बांग्लादेशी लड़की के लिये कागजात तैयार करवाने है। कितने पैसे लग जाएँगें? वह मुझे घूर कर देखते हुए घुर्राया… कोई तुम्हें गलतफहमी हुई है। हम हवाई जहाज की टिकिट कराते है। चलो निकलो यहाँ से मियाँ। मैने जल्दी से कहा… जनाब मुझे आपके पास विधायक अंसार रजा साहब ने भेजा है। वह तेजी से बोला… अबे चुप। नेताजी का नाम ऐसे खुलेआम नहीं लेते है। खैर जिसके कागज तैयार करवाने है वह तुम्हारी क्या लगती है? …आपको उससे क्या करना है। आप तो पैसे बताईये। …ओह इश्क का चक्कर है। खैर पन्द्रह हजार का आधार कार्ड और दस हजार का वोटर कार्ड है। दोनो बनवाओगे तो बीस मे काम हो जाएगा। …ठीक है आप दोनो बना दो। …मियाँ तुम सब्जी नहीं खरीद रहे हो। उसको यहाँ लाओ क्योंकि उसकी हर कार्ड के हिसाब से फोटो खिंचेगी उसी के बाद कार्ड बनेगा। अब तो शाम हो गयी है कल ग्यारह बजे तक उसे ले आओगे तो शाम तक दोनो कार्ड बन जाएँगें। मैने उठते कहा… ठीक है जनाब। कल उसे लेकर आ जाऊँगा। यह बोल कर मै उसकी दुकान से बाहर निकल गया था।

रात को आठ बजे वह अपनी दुकान को बन्द करके चला गया था। मै दो घन्टे और बैठा रहा और फिर गली का एक नजारा लेकर गली से बाहर निकल आया। मैने उसकी दुकान और गली का जायजा ले लिया था। गली मे दर्जन से ज्यादा दुकानें थी। सभी दुकाने दस बजे तक बन्द हो गयी थी। वह गली अब सुनसान हो गयी थी। रात होते ही गली से बाहर पुलिस की पिकेट लग गयी थी। मै अपनी जीप की ओर बढ़ा तो एक पुलिस वाला दौड़ते हुए आया और मुझे हड़काने वाले अंदाज मे बोला… यहाँ पुलिस की पार्किंग मे जीप खड़ी करके कहाँ घूमने गया था। अब इसका चालान कटने के बाद ही कल सुबह जीप मिलेगी। …दीवानजी, यहीं पर कुछ ले-देकर मामला रफा दफा कर दिजिये। उसने एक नजर इधर उधर मार कर कहा… चल हजार रुपये दे और जीप ले जा। मैने जेब से पर्स निकाल कर पाँच सौ का नोट निकाल कर उसके आगे बढ़ाते हुए कहा… फिलहाल इससे काम चल सकता है तो ठीक है वर्ना कल सुबह चालान के पैसे भर कर जीप ले जाऊँगा। उसने जल्दी से पाँच सौ का नोट लिया और वापिस पिकिट पर लौटते हुए बोला… चल अब जल्दी से निकल यहाँ से क्योंकि दरोगाजी बस निकलने वाले है। अचानक मेरे दिमाग मे एक बात आयी और मै जीप मे न बैठ कर थाने के अन्दर चला गया। कश्मीर मे थाने मे घुसते ही हलचल मच जाती थी परन्तु आज सादी ड्रेस मे थाने मे घुसते हुए किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया था। एसएचओ के कमरे मे कुर्सी पर बैठ कर थानेदार साहब रात की पाली के बारे मे निर्देश दे रहे थे।

मुझ पर नजर पड़ते ही थानेदार चुप हो गया और मुझे घूर कर बोला… क्या काम है? मैने उसके सीने पर लगी हुई नेमप्लेट पर उसका नाम पढ़ा… वीरेन्दर सिंह।  …सिंह साहब, आपके पाँच मिनट चाहिये। आप बात कर लिजिये। मै बाहर इंतजार कर रहा हूँ। थानेदार ने उठते हुए कहा… मेरी बात खत्म हो गयी है। बोलिये क्या काम है? मैने अपना परिचय पत्र निकाल कर उसके सामने करते हुए कहा… इनके सामने नहीं। परिचय पत्र को देखते ही उसका जिस्म एकाएक सीधा होकर तन गया और सैल्युट करते हुए बोला… साहब मुझे बस एक मिनट दिजिये। अपने थानेदार को इस मुद्रा मे देख कर उसके मातहत भी तुरन्त कमरे से बाहर निकल गये थे। …जनाब बताईये। …इस गली मे साबिर अली नाम का एक ट्रेवल एजेन्ट है। …जी जनाब। मै उसे जानता हूँ। बेहद बदमाश आदमी है। वह राजनीति मे भी दखल रखता है। …हमे सूचना मिली है कि यह विदेशी घुसपैठियों के लिये जाली कागजात तैयार करवाता है। हमे अभी शक है परन्तु कोई पुख्ता सुबूत नहीं है। अगर किसी तरह उसकी दुकान के कंप्युटर की हार्ड ड्राईव निकाल ली जाये तो सारे सुबूत मिल जाएँगें। इसमे वीरेन्द्र सिंह मुझे आपकी मदद चाहिये।

वीरेन्द्र सिंह अति उत्साहित होकर बोला… साहब, आज रात को ही साले गद्दार की दुकान का ताला तोड़ कर उसके कंप्युटर की ड्राईव्स निकाल कर आपके हवाले कर देता हूँ। इसी आदमी ने पिछले साल लोगो को भड़का कर थाने पर पत्थरबाजी करायी थी। उसमे हमारे चार सिपाही घायल हो गये थे। इसका फिर भी कुछ नहीं बिगड़ा परन्तु दरोगा राना साहब के साथ आठ सिपाही लाइन एटैच हो गये थे। पहली बार इसके खिलाफ कार्यवाही करने का मौका मिला है। साहब पूरा थाना इस काम मे आपकी मदद करेगा। एक बार यह हमारे हाथ लग गया तो इसकी सारी नेतागिरी एक रात मे ही निकाल देंगें। …ठीक है। कुछ सोच कर मैने कहा… मै यहीं बैठा हुआ हूँ। आप अपना काम किजिये और अगर कुछ गड़बड़ होती है तो आप सेना पर डाल दिजियेगा। मै संभाल लूँगा। वीरेन्द्र सिंह ने रात की पाली के एसआई और हवलदार को बुला कर निर्देश देना आरंभ कर दिया था।

बारह बजे तक चोरी के मामले मे एक हिस्ट्रीशीटर याकूब को घर से उठवा कर थाने ले आये थे। अपने हवलदार के साथ याकूब को साबिर अली की दुकान पर भेज दिया था। पुलिस पिकिट पर सावधान रहने का निर्देश देकर खुद वीरेन्द्र सिंह वहाँ खड़ा हो गया था। एक बजे तक दोनो ड्राईव्स मेरे सामने रखी हुई थी। मैने खुद उसकी दुकान मे घुस कर उसकी अलमारी, मेज की दराज, एक छोटी सी तिजोरी का निरीक्षण करके दर्जन से ज्यादा पासपोर्ट, आधार कार्ड और वोटर कार्ड के साथ कुछ फाईलें व फोटो जब तक जब्त किये तब तक तीन बज चुके थे। तिजोरी से कुछ कैश भी बरामद हुआ था तो वह मैने वीरेन्द्र सिंह के हवाले करते हुए कहा… इसे अपने लोगों मे बँटवा देना। पूरे आप्रेशन की जानकारी सिर्फ तीन लोगों के पास थी। बाकी स्टाफ को यही पता चला था कि कोई रेड की तैयारी की जा रही है। सारी चीजें मेरे पास आ गयी तब वीरेन्द्र सिंह ने कहा… साहब अब आप निकल जाईये। अब पुलिस को अपना काम करने दिजिये। मैने सारा सामान उठाया और अपनी जीप मे रख कर जैसे ही चलने लगा वही पिकिट पर खड़ा हुआ सिपाही डरते हुए पाँच सौ का नोट लौटाते हुए बोला… साहब माफ कर दिजिये। मुझसे गलती हो गयी। मैने मुस्कुरा कर कहा… इसे रख लो। यह बोल कर मै वहाँ से अपने फ्लैट की दिशा मे चल दिया था।

अगले दिन सुबह साबिर अली के आफिस का सारा सामान मैने आईबी के निदेशक दीपक शर्मा के हवाले करते हुए कहा… आज दोपहर तक इन हार्डड्राइव्स पर जितने भी लोगों के इस आदमी ने जाली कागजात तैयार करवाये है हमे उसका पूरा विवरण चाहिये। यह हमारी जांच के लिये बेहद जरुरी है। करीब दो बजे तक 496 नाम उनकी फोटो और उनके पते व अन्य जानकारी के साथ मेरी मेज पर रखी हुई थी। लगभग बारह लोगों के कागजात उस दुकान से बरामद हुए थे। आईबी की ओर से निजामुद्दीन के थाने मे शिकायत दर्ज कराते ही वीरेन्द्र सिंह ने साबिर अली को थाने मे ही गिरफ्तार कर लिया था। जब शाम को मै वीरेन्द्र सिंह से मिला तब उसने बताया कि सुबह चार बजे हमने साबिर अली को चोरी की खबर देकर थाने बुला लिया था। उसको तभी से किसी न किसी बहाने से रोक रखा था। जैसे ही आईबी की शिकायत थाने मे दर्ज हुई हमने तुरन्त उसे हिरासत मे लेकर पूछताछ शुरु कर दी थी। मैने मुस्कुरा कर पूछा… इस वक्त नेताजी के क्या हाल है? वीरेन्द्र सिंह ने ठहाका लगा कर कहा… फिलहाल नेताजी की हम सेवा कर रहे है। पूरा थाना एक बार हाथ साफ कर चुका है और अब रात की पाली आरंभ होते ही कल सुबह तक वह भी अपने हाथ साफ कर लेंगें। …उसने कुछ बताया? …साहब, हम उससे कुछ पूछ ही नहीं रहे है। आईबी वाले कल दोपहर को जब उसे लेकर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करेंगें तब तक हम इस इलाके मे उसकी नेतागिरी को हमेशा के लिये समाप्त कर देंगें। अभी तक दस-पन्द्रह सिफारिशें और अलग-अलग मौलानाओं का डेलीगेशन आ चुका है। सभी को हम एक ही जवाब दे रहे है कि इस पर देशद्रोह और आतंकवादियों के लिये जाली कागजात बनवाने का इल्जाम है। आईबी के हाथ सुबूत लग गये है इसलिये इस पचड़े मे आप न ही पड़े तो अच्छा होगा अन्यथा आप भी आईबी के घेरे मे आ जाएंगें। यह सुनने के बाद एक बार भी किसी ने जिरह करने की कोशिश नहीं की थी। उससे विदा लेकर मै अपने फ्लैट की ओर चल दिया था।

रात को आईबी की फाईल देखने बैठ गया था। मेरी नजर एक नाम को खोज रही थी। सौम्या कौल का नाम सामने आते ही नीलोफर का कवर हट गया था। तबस्सुम मेरे साथ लेटी हुई थी। मैने नीलोफर को फोन लगाया तो उसे फोन उठाने मे कुछ देर लगी थी। …बोलो समीर तुम्हें मेरी अब याद आयी। दस बजे मिलने की बात कह कर तुम गायब हो गये। मुझे अपनी भूल का एहसास होते ही मैने कहा… क्योंकि तुम्हारे साबिर अली को कल रात आईबी उठा कर ले गयी थी। तुम्हारा सौम्या कौल का कवर आईबी की नजर मे आ गया है। तुम कहो तो मै तुम्हारा आधार कार्ड का नम्बर अभी सुना दूँ? वह जल्दी से बोली… नहीं, मेरे पास कितना समय है यहाँ से सुरक्षित निकलने के लिये? …मेरे ख्याल से अगर इस कवर के बल पर निकलने की योजना बना रही हो तो तुम जल्दी से जल्दी यहाँ से निकल जाओ। उसके सभी क्लाईन्ट की जानकारी आईबी के हाथ मे है और शायद कल तक पुलिस इस मामले मे हरकत मे आ जाएगी। उसके बाद इस नाम से तुम एयरपोर्ट या अन्य किसी रास्ते से सीमा पार नहीं कर सकोगी। …समीर, मुझे यहाँ से अभी निकलने के लिये कुछ दिन चाहिये। वैसे भी इस पते की जानकारी सिर्फ तुम्हें है और कोई यहाँ का पता नहीं जानता। …मैने तुम्हें सावधान कर दिया है। अब आगे तुम्हारी मर्जी। कल सुबह यह जानकारी मै ब्रिगेडियर चीमा को भी दे दूंगा। वह एकाएक तेजी से चीखते हुए बोली… नहीं समीर। मेरे लिये प्लीज सिर्फ कुछ दिन के लिये रुक जाओ। अगर ब्रिगेडियर चीमा को इसकी जानकारी मिल गयी तो शर्तिये यह बात फारुख को भी पता चल जाएगी। बस किसी तरह अगर मुझे एक हफ्ते की मोहलत मिल गयी तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। मै कोई वादा तो नहीं कर सकता परन्तु कोशिश करुँगा कि तुम्हें यहाँ से सुरक्षित निकलने के लिये कुछ समय मिल जाये। तुमने मेरा काम किया? …कौन सा? …तुम्हें हया के बारे मे कोई सुराग देना था। …मैने तुम्हें बताया था कि सिकन्दर रिजवी को पकड़ लोगे तो वह जरुर हया का पता बता देगा। …सिकन्दर रिजवी कहाँ मिलेगा। वह तो गायब हो गया है। …कल तक तो वह यहीं दिल्ली मे था। अब मुझे पता नहीं कि वह कहाँ होगा लेकिन इतना पता है कि एक हफ्ते बाद वह दीपक सेठी के साथ काठमांडू जा रहा है। …क्या उनके साथ तुम भी जा रही हो? …नहीं, वह वहाँ प्रोबीर मित्रा के बुलावे पर किसी नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के प्रोग्राम मे जा रहे है। अच्छा मै फोन रख रही हूँ। बस इतनी बात करके उसने फोन काट दिया था। …यह हया कौन है? मैने चौंक कर देखा तो तबस्सुम मुझे देख रही थी। मै उसके बारे मे तो बिल्कुल भूल गया था। …क्या वह भी कोई तुम्हारी पुरानी दोस्त है? मै कोई जवाब देता कि मेरी फोन घंटी बज उठी थी। मैने नम्बर चेक किया तो कोई नया नम्बर था। …हैलो। …मेजर, तुमने तो मुझे बिल्कुल भुला दिया है। वह आवाज सुनते ही मै उचक कर बैठ गया था। मेरे सामने तबस्सुम बैठी हुई थी और फोन पर बात करने वाला फारुख मीरवायज था। एक पल के लिये मेरा जिस्म ठंडा पड़ गया था और मै कुछ भी बोलने की स्थिति मे नहीं था।

 

मुजफराबाद

घने जंगलों मे किसी जगह पर एक विशाल से आउटहाउस के बड़े से कमरे मे दर्जन से ज्यादा लोग बैठ कर चर्चा कर रहे थे। सिर पर पगड़ी और मौलवी के वेष मे ज्यादातर लोग थे परन्तु सभी की गोदी मे कलाशनीकोव रखी हुई थी। …जनरल मंसूर अगले हफ्ते यहाँ आ रहा है लेकिन अभी तक योजना तैयार नहीं हो सकी है। …जनाब, फारुख के गायब होने के कारण बड़ी मुश्किल हो गयी थी। खबर मिली है कि फारुख भाईजान वापिस आ गये। एजाज भाई और उनके साथी भी भारत मे प्रवेश कर गये है और जल्दी ही श्रीनगर पहुँच कर हमसे संपर्क साधेंगें। …जाकिर, तुमने फिदायीन हमलों के बारे मे कुछ सोचा? …चचाजान, हमने सोचा है कि पहले कुअर्डिनेट पर पहुँचने के लिये सेना का ध्यान वहाँ से हटा कर कश्मीर की ओर खींचना पड़ेगा। इसके लिये जैश और लश्कर के फिदायीन एक ही समय पर अलग-अलग जगहों पर हमला करेंगें। जब तक उन्हें समझ मे आएगा तब तक पहला कुअर्डिनेट फतेह हो जाएगा। इसी प्रकार दूसरे और तीसरे कुअर्डिनेट्स पर फतेह हासिल करेंगें। एकाएक मनके गिनते हुए मौलवी साहब की आवाज गूँजी… अभी भी सिर्फ बातें हो रही है। आज सभी तंजीमों को जरुरी समान की फेहरिस्त लेकर आने के लिये कहा गया था। क्या आप लोग पूरी तैयारी करके आये है? एकाएक सभी चुप हो गये और एक दूसरे का चेहरा ताकने लगे तभी एक आदमी खड़ा हुआ और सलाम करके बोला… हाफिज मियाँ, ऐसे कुछ नहीं हो सकेगा। किसी को पता नहीं कि किस समूह का क्या काम होगा। अगर एक बार आप सभी समूहों को उद्देश्य और काम बता देंगें तो फिर उसके अनुसार फेहरिस्त बनाना आसान हो जाएगा। कोई भी समूह किसी अन्य समूह से बात करने के लिये तैयार नहीं है। आपको ही इस काम की बागडोर अपने हाथ मे लेनी पड़ेगी। इतना बोल कर वह बैठ गया।

कुछ देर तक कमरे मे चुप्पी छायी रही फिर अपनी मनको की माला को मुठ्ठी मे भर कर हाफिज ने धीरे और आसान शब्दों मे कहा… अगर सबकी यही राय है तो इस आप्रेशन की कमान मै अपने हाथ मे लेता हूँ। किसी ने कुछ नहीं कहा तो हाफिज ने योजना के अलग-अलग पहलुओं पर बात करना आरंभ कर दिया। सभी चुपचाप उसकी बात सुनने मे मग्न हो गये थे।

रविवार, 14 मई 2023

 

 

गहरी चाल-8

 

अगली सुबह चांदनी को नींद से जगाते हुए मैने कहा… कामरेड अब उठ जाओ। वह पल्कें झपकाते हुए उनींदी आवाज मे मेरे गले मे अपनी बाँहे डाल कर लटकती हुई बोली… क्या तुम कहीं जा रहे हो? उसके नग्न वक्ष को धीरे से सहलाते हुए मैने उसके होंठ चूम कर जवाब दिया… हाँ। मुझे जाना है। वैसे भी तुमने तो आज का दिन अपने वामपंथी साथियों के साथ बिताने का निर्णय लिया है। वह मुझे अपने उपर खींचते हुए बोली… तुम्हारे कारण मुझे लगता नहीं कि मै चल सकूँगी? …क्यों क्या हुआ? कुछ बोलते हुए उसकी निगाह अचानक शर्म से झुक गयी थी। वह धीरे से बोली… ऐसा मैने पहली बार तुम्हारे साथ किया है। सारा जिस्म दुख रहा है। अपने आप को उसकी बाँहों की कैद से छुड़ाते हुए मैने उसके होंठों को चूम कर जल्दी से कहा… इसके लिये थैंक्स। मै वादा करता हूँ कि आज रात को तुम्हारे जिस्म का सारा दर्द सोख लूँगा लेकिन अभी मुझे जाना होगा चांदनी। तुम कारण जानती हो। वह कुछ कहती उससे पहले उसे वहीं छोड़ कर मै कमरे से बाहर निकल गया था।

जेसी के आफिस मे बैनर्जी और वह बंगाली स्त्री मेरा इंतजार कर रहे थे। मैने पहुँचते ही बैनर्जी को मंजूर का हालचाल देखने के लिये भेज दिया और फिर मैने उस स्त्री पर एक नजर डाल कर पूछा… तुम्हारा क्या नाम है? एक पल के लिये वह झिझकी और फिर निगाहें झुका कर जल्दी से बोली… आरफा चौधरी। …आरफा तुम हरकत उल अंसार के लिये क्या काम करती हो? उसने अपनी अनिभिज्ञता जाहिर करते बंगाली मे कुछ जल्दी से कहा तो मैने इशारों मे समझाते हुए कहा… धीरे-धीरे बोलो। तभी मेरे कान मे बैनर्जी की आवाज पड़ी… साहब, यह उनके जिहादियों के लिये लड़कियों का इंतजाम करती थी। मैने सामने देखा तो बैनर्जी और मंजूर खड़े हुए थे।

मैने जल्दी से पूछा… क्या मुदस्सर का पता चल गया? मंजूर ने सिर हिला कर हामी भरते हुए कहा… मुदस्सर ने अपनी असलियत को सभी से छिपा कर रखा हुआ है। जिसको सब लोग मुदस्सर के नाम से जानते है वह शाकिर नाम का दलाल है। मैने एक बार फिर से फाईल निकाल कर उसके सामने रखते हुए कहा… वह कौन है? उसने आरफा के बताये हुए चित्र की ओर इशारा करते हुए कहा… सभी लोग इसे मुदस्सर बता रहे है परन्तु यह शाकिर है। उसने कुछ चित्रों को पलटते हुए एक नये चेहरे को मेरे सामने करते हुए कहा… यह मुदस्सर है। इसका असली नाम एजाज मूसा है। यह बांग्लादेश स्थित हरकत-उल अंसार का कमांडर है। पाकिस्तानी और बांग्लादेशी की पहचान उनके रंग से आसानी से की जा सकती है। जिसको अभी तक सभी मुदस्सर बता रहे है वह रंग मे सांवला है जब कि पाकिस्तानियों का रंग काफी साफ होता है। एक ही झटके मे मुझे सब कुछ समझ मे आ गया था। मुदस्सर ने अपनी पहचान छिपाने के लिये शाकिर नाम के व्यक्ति का इस्तेमाल किया था। आरफा ने जिन पाँच लोगों की पहचान की थी उनमे से एक मूसा भी था लेकिन उसकी असलियत से वह भी अनजान थी।

जेसी भी अपना अधिकारिक राउन्ड लेकर आ चुका था। …जेसी, पहले इन पाँचों को सबसे अलग करना पड़ेगा। मै कुछ और बोल पाता कि तभी मेरे फोन की घंटी बज उठी थी। मैने जल्दी से फोन कान से लगाते हुए कहा… हैलो। …मेजर, बांग्लादेश मे हरकत उल अंसार की उपस्थिति की पुष्टि हो गयी है। जो पाँच फोटो तुमने भेजे थे उनमे से सभी की पहचान हो गयी है। उनमे से एक जाकिर मूसा का भाई है जो साल भर पहले कश्मीर मे हिज्बुल का कमांडर था। एकाएक यह सुन कर मेरी धड़कन बढ़ गयी थी। मैने जल्दी से कहा… सर, उसके भाई का नाम एजाज मूसा है। वही बांग्लादेश मे आजकल हरकत उल अंसार का कमांडर है। …मेजर, यह हमारे लिये बहुत बड़ी कामयाबी की बात है। उन सभी को अब वहाँ नहीं रखा जा सकता। मै उनको यहाँ लाने का इंतजाम करवाता हूँ लेकिन तब तक उन सबकी सुरक्षा की जिम्मेदारी तुम्हारी है। …यस सर। मै बस इतना ही बोल पाया कि दूसरी ओर से फोन कट गया था। मंजूर और बैनर्जी उत्सुक्ता से मेरी ओर देख रहे थे। मै उठ कर खड़ा हो गया और मंजूर की पीठ थपथपाते हुए कहा… तुम नहीं जानते कि तुमने कितने बड़े काम को अंजाम दिया है। जेसी उन पाँचों के लिये इंतजाम करने के लिये बाहर चला गया था।

मेरे सामने कमरे मे बैनर्जी और मंजूर के साथ आरफा भी एक किनारे मे चुपचाप बैठी हुई थी। आरफा की ओर इशारा करते हुए मैने बैनर्जी से पूछा… अब इसका क्या करना है? …साहब, आप कहे तो अब इसको वापिस इसके साथियों के पास भिजवा देता हूँ। …हाँ, इसको उनके साथ रख सकते है क्योंकि अब इसको कोई खतरा नहीं है। तभी आरफा जल्दी से बंगाली मे बोली… साहब, मुझे उनके पास मत भेजिये। वह लोग मुझे मार देंगें। मुझे उसकी बात समझ मे नहीं आयी परन्तु मंजूर ने सिर हिलाते हुए कहा… यह सही कह रही है साहब। फौज अब सबको सीमा पार वापिस भेजने की कार्यवाही करेगी। अब तक सबको मालूम हो गया होगा कि उन पाँचों को पकड़वाने मे इसका हाथ है। सीमा पार करते ही इसकी मौत निश्चित है। …तो तुम्हीं बताओ कि इसका क्या करें? अबकी बार आरफा ने फिर से कहा… साहब, आप मुझे दिल्ली भिजवा दिजीए। उसकी बात का हिन्दी मे अनुवाद सुन कर एक पल के लिये हम सभी चौंक गये थे। मै कुछ कहता कि तभी आरफा ने मंजूर की ओर देखते हुए कहा… साहब, मुझे अकेले मे आपसे कुछ बात करनी है। एक पल के लिये मैने बैनर्जी और मंजूर की ओर देखा तो वह दोनो भी आश्चर्य से आरफा को देख रहे थे। कुछ सोच कर मैने उन दोनो को कमरे से बाहर जाने का इशारा किया और उनके जाने के बाद मैने आरफा से कहा… बोलो। वह एक पल के लिये सकपकायी और फिर धीरे से टूटी-फूटी हिन्दी मे बोली… साहब, मुझे दिल्ली मे गोपीनाथ साहब से मिलना है। मुझे बताया गया था कि वह भारत सरकार के आला अफसर है। यह नाम सुन कर एक पल के लिये मेरा सारा दिमाग झनझना गया था। जिस गोपीनाथ को मै जानता था वह भारत की सबसे गोपनीय संस्था रा का निदेशक था।

इस खुलासे के बाद तो दिल्ली और कलकत्ता के बीच वार्ताओं का तांता आरंभ हो गया था। हम लोगों के उपर से दबाव हट गया था। हम शाम को खाने की टेबल पर बैठ कर आरफा चौधरी के बारे मे चर्चा कर रहे थे कि तभी अचानक मंजूर बोला… साहब, कहीं बेग का दलाल यही शाकिर मुस्तफा तो नहीं है? मै मूसा के चक्कर मे मंजूर की बेटियों के बारे मे तो बिल्कुल भूल चुका था। खाना समाप्त करके हम तीनो शाकिर मुस्तफा नाम के दलाल से पूछताछ करने के लिये निकल गये थे। जेसी ने पहले शाकिर मुस्तफा और शाकिर अली की असली पहचान जानने के लिये उसके कस बल ढीले कर दिये थे। जब यह तय हो गया कि शाकिर मुस्तफा और शाकिर अली एक ही आदमी के नाम है तो फिर मैने पूछा… क्या तुमने बेग से दो लड़कियों का सौदा किया था? …साहब हम तो शरणार्थी कैंम्पों को चलाने वालों से ही लड़कियाँ खरीदते है। बेग से भी मैने दर्जन से ज्यादा लड़कियाँ खरीदी है। एक पल के लिये हमारे मुँह पर ताला लग गया था। तभी मंजूर ने अपनी बेटियों के हुलिये और उम्र के बारे मे बता कर पूछा… क्या तुमने ऐसी दो लड़कियों को बेग से खरीदा था? शाकिर कुछ देर सोचने के बाद बोला… भाईजान ज्यादातर लड़कियों की उम्र और हुलिया इसी प्रकार का होता है। कोई फोटो है तो दिखा दो? मंजूर ने बेबसी मे अपना सिर्फ सिर हिला कर मना कर दिया था। कुछ देर मैने उससे उसके काम के बारे मे पूछताछ की तो उसने बताया कि वह सिर्फ यहाँ पर शरणार्थी कैंम्पों मे दलाल का काम करता है। यहाँ से खरीदी हुई लड़कियों को वह मुंबई और हैदराबाद के एजेन्टों को सौंप देता है। उसके बाद किसी को पता नहीं कि उन लड़कियों के साथ क्या होता है। शाकिर से जब उसके एजेन्टों को बारे पूछा तो उसने कुछ नाम बता कर कहा… साहब, हमारे पास कोई स्थायी एजेन्ट नहीं होते है। जब किसी के पास कोई खरीददार होता है वह हमसे संपर्क साधता है। उसकी जरुरत के अनुसार हम लड़कियों का इंतजाम करते है। मुझे नहीं पता कि वह खरीददार उन्हें अपने पास रखता है अथवा उन्हें आगे बेच देता है। देर रात तक हम उससे पूछते रहे लेकिन उन दो लड़कियों का कोई पुख्ता सुराग नहीं मिल सका था। आखिरकार मंजूर ने सब कुछ खुदा के भरोसे छोड़ कर कहा… साहब, अगर किस्मत मे होगा तो मेरी बेटियाँ मिल जाएगी लेकिन अब से खुदा की कसम शरणार्थी कैंम्पों से एक भी लड़की नहीं बिकने दूँगा। इतनी बात करके हम अपने होटल वापिस आ गये थे।

अगली शाम को आर्मी के कार्गो हवाईजहाज मे बैठ कर मै दिल्ली की ओर जा रहा था। मेरे सामने बेड़ियों मे जकड़े हरकत उल अंसार के पाँचो कैदी बैठे हुए थे। उन सबकी शिनाख्त हो गयी थी। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के आदेश पर पूर्वी कमांड की देखरेख मे उन पाँचों चरमपंथियों को दिल्ली भेजा जा रहा था। मेरे साथ चांदनी बैठी हुई थी परन्तु उसके चेहरे पर असमंजस से ज्यादा उत्सुक्ता के भाव नजर आ रहे थे। सारी भारतीय सुरक्षा एजेन्सियों को हरकत उल अंसार के बारे मे सूचना दे दी गयी थी। इसी बीच आरफा की मांग ने अजीत को भी चौंका दिया था। इसी कारणवश तुरन्त सभी को दिल्ली लाने का आदेश दिया गया था। नेपाल-बांग्लादेश कारीडार अब सभी सुरक्षा एजेन्सियों की नजरों मे आ गया था। कलकत्ता मे स्थित उनके सभी कार्यालय अब तक सतर्क हो गये थे। इसकी पुष्टि कल रात को बैनर्जी ने भी कर दी थी। कलकत्ता से चलने से पहले जनरल बक्शी और कैप्टेन जेसी के साथ बैठ कर बंगाल मे उभरते हुए बरेलवी और देवबंदी चुनौतियों पर अंकुश लगाने की योजना पर काफी देर चर्चा हुई जिसके बाद जनरल बक्शी ने कहा कि वह अजीत सुब्रामन्यम से इस बारे मे बात करके ही किसी योजना पर अमल कर सकेंगें। मंजूर इलाही ने कैप्टेन जेसी के साथ काम करने का फैसला किया था। मेरी सिफारिश पर फौज ने मंजूर को जेसी की टीम मे गाइड के काम पर नियुक्त कर दिया था।

हवाईजहाज के शोर मे अचानक चांदनी ने अपनी कोहनी मेरी पसली मे मारते हुए पूछा… यह लोग कौन है? मैने मना करते हुए जवाब दिया… मुझे क्या मालूम। मेरा जवाब सुन कर चांदनी चुप हो गयी थी। तीन घंटे का सफर कुछ देर पहले ही आरंभ हुआ था। मेरा दिमाग एजाज मूसा की बतायी हुई बातों मे उलझा हुआ था। पाकिस्तानी आईएसआई को नेपाल से भारत मे घुसपैठ और बांग्लादेश पहुँचने का नया रास्ता मिल गया था। एजाज मूसा ने पूछताछ के दौरान यह भी बताया कि बांग्लादेशी और रोहिंग्या शरणार्थियों को एक खास उद्देश्य के लिये मुस्लिम बहुल क्षेत्रों मे भेजने की जिम्मेदारी उस पर डाली गयी थी। उसके अनुसार हरकत-उल-अंसार का मुख्यत: एक ही उद्देश्य था कि शरणार्थियों के द्वारा उपयुक्त समय पर अराजकता फैला कर भारत मे आंतरिक अस्थिरता पैदा करना था। यह बात सुन कर अजीत ने तुरन्त पाँचों को लेकर दिल्ली पहुँचने का मुझे निर्देश दिया था। मै गहरी सोच मे डूबा हुआ था कि चाँदनी की आवाज एक बार फिर से मेरे कान मे पड़ी… समीर, उस बंगालिन को अपने साथ लेकर क्यों आये हो? मैने अपना सिर घुमा कर कुछ दूरी पर सिर झुकाये बैठी आरफा पर एक नजर डाल कर मुस्कुरा कर कहा… क्यों कामरेड उसे देख कर जलन हो रही है? चांदनी ने आँखें तरेरते हुए कहा… मै उस काली कलूटी से भला क्यों जलने लगी। यह बोल कर वह मुँह फेर कर बैठ गयी थी।  

बांग्लादेशी तस्करों को जेल और बाकी सभी पकड़े गये लोगों को शरणार्थी कैम्प मे स्थानान्तरण कर दिया गया था। मेरे कहने से आरफा का नाम अवैध रुप से घुसपैठ करने वाले शरणार्थियों की लिस्ट से हटा दिया गया था। मै सारे रास्ते आरफा की बतायी हुई कहानी मे उलझा रहा था। उसने बताया था कि ढाका स्थित भारतीय दूतावास मे अब्दुल गनी चौधरी नाम के एक व्यक्ति के साथ उसके जिस्मानी संबन्ध बन गये थे। उसी के कहने पर वह शाकिर मुस्तफा से मिली थी जिसने बाद मे उसे एजाज मूसा से मिलवाया था। कुछ दिन पहले एक रात को चौधरी उसके पास आया तो वह काफी घबराया हुआ था। उसने जाने से पहले अपनी मोहब्बत की दुहाई देकर कहा था कि अगर उसे कुछ हो गया तो वह किसी भी तरह दिल्ली मे गोपीनाथ से मिल कर उनको चौधरी के बारे मे बता देगी। दो दिन के बाद जब उसे पता चला कि चौधरी की हत्या हो गयी है तो उसने शाकिर मुस्तफा की मदद से सीमा पार करने की योजना बनायी थी। इसी पेशोपश मे सारे रास्ते उलझा रहा कि मुझे पता ही नहीं चला कि हम कब दिल्ली पहुँच गये थे। एयरपोर्ट पर हथियारों से लैस सैनिकों का दस्ता हमारा इंतजार कर रहा था। पाँचों चरमपंथियों को अपनी हिरासत मे लेकर वह लोग तुरन्त चले गये थे। हम तीनों एयरपोर्ट से निकल कर टैक्सी पकड़ कर शहर की दिशा मे चल दिये थे।

रास्ते मे कुछ दूर चलने के बाद चांदनी ने पूछा… समीर, तुम कश्मीर वापिस कब जा रहे हो? …अभी तो सीजन शुरु नहीं हुआ है तो कुछ दिन यहाँ रहूँगा क्योंकि मेरी बीवी भी अब तक यहाँ पहुँच गयी होगी। कुछ दिन उसे दिल्ली घुमा कर वापिस चला जाऊँगा। …तुम्हारा निकाह हो गया है तुमने बताया नहीं? …कामरेड, तुमने पूछा नहीं तो भला मै कैसे बताता। अचानक यह बात सुन कर उसका चेहरा उतर गया था। मैने मुस्कुरा कर कहा… कामरेड, वैसे भी तुम्हारी विचारधारा किसी रिश्ते को तो मानती नहीं तो फिर क्या फर्क पड़ता है। लेकिन क्या तुम मेरी एक मदद कर सकती हो? उसने कोई जवाब नहीं दिया तो मैने कहा… मेरी बीवी गांव की गंवार और कम पढ़ी लिखी है। मै चाहता हूँ कि तुम उसे अपनी तरह आधुनिक बना दो। तुम्हारा नशा मेरे सिर पर इतना चढ़ गया है कि अब अपनी बीवी के साथ रहना मुश्किल हो जाएगा। अगर उसमे हल्की सी तुम्हारी झलक आ गयी तो शायद मेरे लिये जीना आसान हो जायेगा। क्या हमारी दोस्ती की खातिर तुम इतना नहीं कर सकती? मेरी बात सुन कर वह एकाएक चुप हो गयी थी। जामिया मिलिया के गर्ल्स हास्टल के बाहर वह उतर गयी और बिना कुछ बोले अन्दर चली गयी थी। टैक्सी ड्राइवर को अपने कैंम्पस का पता देकर चलने का इशारा किया और पीठ टिका कर आराम से बैठ गया। सफर की थकान अब दिमाग पर हावी हो रही थी। कुछ ही देर मे हम कैंम्पस मे प्रवेश कर गये थे।

मेरा फ्लैट अंधेरे मे डूबा हुआ था। मैने टैक्सी से उतर कर एक बार अपने फ्लैट पर नजर डाली और फिर अपनी चाबी से फ्लैट का दरवाजा खोल कर अन्दर प्रवेश करते ही समझ गया कि तबस्सुम फ्लैट मे नहीं है। मैने फ्लैट को रौशन किया और उसके कमरे मे जाकर चेक किया तो सभी कपड़े और उसका सामान यथावत अलमारी मे रखा हुआ था। वह कहाँ चली गयी? यह सोचते हुए मै किचन की ओर चला गया तो वहाँ पर भी सब कुछ साफ रखा हुआ था। रात के आठ बज रहे थे और मुझे समझ मे नहीं आ रहा था कि इस वक्त तबस्सुम कहाँ गयी होगी? मै जैसे ही मुड़ा तो मेरी नजर आरफा पर पड़ी जो फ्लैट के दरवाजे पर अभी भी खड़ी हुई थी। मै उसके पास चला गया और इशारे से तबस्सुम का बेडरुम दिखाते हुए कहा… लंबे सफर से थक गयी होगी। तुम वहाँ आराम से रह सकती हो। मुझे पता नहीं उसे मेरी बात कितनी समझ मे आयी परन्तु वह मेरा इशारा समझ कर बेडरुम की ओर चली गयी थी। अब मुझे तबस्सुम की चिन्ता खाये जा रही थी। रह-रह कर मन मे बुरे ख्याल आ रहे थे। आरफा का ख्याल आते ही रात के खाने का इंतजाम करने के लिये जैसे ही मै फोन की ओर बढ़ा तभी दरवाजे पर हल्का सा खटका हुआ तो मैने मुड़ कर दरवाजे की ओर देखा तो एक पल के लिये मै चौंक गया था। तबस्सुम दरवाजे पर खड़ी हुई अचरज भरी नजरों से मुझे देख रही थी। उसे सामने देख कर मेरे मन मे एक खुशनुमा एहसास हुआ और जब तक वह समझ पाती तब तक मै तेजी से आगे बढ़ कर उसे अपनी बाँहों मे जकड़ कर बोला… तुम इस वक्त बाहर कहाँ गयी थी। तुम्हें यहाँ न देख कर मेरा दिल बैठ गया था।

मै लगातार कुछ पल बड़बड़ाता रहा और वह असमंजस मे चुप खड़ी रही थी। जब सब कुछ शांत हो गया तो उसको छोड़ कर मैने पूछा… तुम कहाँ गयी थी? …तीन मकान छोड़ कर वहाँ एक नया परिवार रहने आया है। उनके घर गयी थी। आप कब आये? …अभी कुछ देर पहले आया था। तुम्हें यहाँ न देख कर मेरा दिल बैठ गया था। …आप तो एक हफ्ते के लिये गये थे तो जल्दी कैसे वापिस आ गये? मैने मुस्कुरा कर कहा… काम जल्दी खत्म हो गया तो तुम्हारी याद खींच लायी। वह मुस्कुरा कर बोली… आप मुझे बना रहे है। अचानक उसका लिबास देख कर मैने कहा… यह कब बदलाव आया? पहली नजर मे मुझे कुछ अजीब नहीं लगा था क्योंकि एक हफ्ते से चांदनी को ऐसे कपड़े मे देख रहा था। वह फुलवारी प्रिंट की लम्बी सी फ्राक पहने हुए थी। उस फ्राक मे उसके जिस्म के सभी उभार, कटाव, उतार व चड़ाव ज्यादा उभरे हुए लग रहे थे। उसकी मजबूत गोरी टाँगे ट्युबलाइट की रौशनी मे चमक रही थी। मैने जब यह फ्राक खरीदी दी तब मैने सोचा नहीं था कि इन कपड़ों मे तबस्सुम की काया पलट हो जाएगी। आज इस फ्राक मे भी वह काफी सहज दिख रही थी। मैने महसूस किया कि एक हफ्ते मे उसके व्यक्तित्व मे काफी बदलाव आ गया था। वह झेंपते हुए बोली… क्या यह ठीक नहीं लग रही है। …तुम बहुत सुन्दर लग रही हो। इसमे तुम्हारे अब्बा भी तुम्हें पहचान नहीं सकेंगे। मेरी बात सुन कर पल भर मे उसका चेहरा खिल गया था।

अचानक मुझे आरफा की याद आयी तो मैने कहा… तबस्सुम तुम्हारे कमरे मे आज की रात एक बंगाली औरत को ठहरा दिया है। वह कल तक चली जाएगी। …वह कौन है? …बांग्लादेशी है। उसे हमारी भाषा समझ मे नहीं आती। …उसका क्या नाम है? …आरफा। अचानक आरफा कमरे से बाहर निकल कर सामने आ गयी थी। तबस्सुम को देख कर वह ठिठक कर वहीं खड़ी रह गयी। दोनो ने एक दूसरे को देखा और फिर मुस्कुरा कर आरफा ने कुछ बंगाली मे मुझसे कहा लेकिन हम दोनो के पल्ले कुछ नहीं पड़ा तो मैने अपना सिर हिला दिया था। उस रात मैने मेस से खाना मंगा लिया था। रात को तबस्सुम मेरे साथ लेटते हुए बोली… क्या कल मेरे साथ उनके घर चलेंगें? …हाँ, आफिस से लौट कर उनके यहाँ चलेंगें। वह कुछ देर बात करना चाहती थी परन्तु सफर की थकान मुझ पर हावी हो रही थी। मुझे बस इतना याद है कि वह उस परिवार के बारे मे बता रही थी। उसको सुनते हुए मैने सपनो की दुनिया मे खो गया था।

अगली सुबह आरफा को लेकर मै टाइम से पहले अपने आफिस पहुँच गया था। अजीत सर ने आते ही मुझे बुला कर कहा… गोपीनाथ कुछ देर मे पहुँच रहा है। वह लड़की कहाँ है? …सर, मेरे आफिस मे बैठी है। …यह आईएसआई का बांग्लादेश कनेक्शन बेहद संवेदनशील है। कुछ ही देर मे वीके और जनरल रंधावा भी वही आ गये थे। सबसे पहले वीके ने कहा… मेजर, हसनाबाद की घटना के बारे मे तुम्हारी रिपोर्ट और स्थानीय मिडिया रिपोर्ट्स मे जमीन आसमान का अन्तर क्यों है। मुख्य मिडिया रिपोर्ट्स पिछले पाँच दिनों से उस घटना को सांप्रदायिक दंगा बता रहे है। नयी सरकार आने के बाद से हिन्दु चरमपंथी हो गया है और हिन्दुओं मे बढ़ती हुई असहिष्णुता के कारण अब यहाँ पर मुस्लिम अपने आप को असुरक्षित समझ रहे है। …सर, यह बिल्कुल झूठ है। अजीत ने मुस्कुरा कर कहा… यह हम जानते है परन्तु देश वही जानता है जो मिडिया उनके सामने रखता है। राजधानी मे बैठे हुए पत्रकार के भेष मे दलाल लोग उसी बेमेल गठजोड़ का परिणाम है। यह गठजोड़ तीन असमानतर सतहों पर काम करता है। सबसे पहली सतह वामपंथी बुद्धिजीवियों की होती है जिनकी जिम्मेदारी भुमिका, कथानक और योजना बनाने की होती है। यह बाहरी ताकतों के साथ मिल कर पैसों और हथियारों का इंतजाम करते है। दूसरी सतह पर स्थानीय राजनीतिक पार्टियाँ और समाज सेवी संस्थाओं और उनके अनुयायी होते है। यह लोग स्थानीय सतह पर योजना को कार्यान्वित करते है। वह लोग आन्दोलन, मोर्चा, बन्द और चक्का जाम जैसी वारदात मे हमेशा लिप्त रहते है। तीसरी सतह पर मिडिया, लेखक और सामान विचार रखने वाले वामपंथी विचारक होते है जो मुख्यत: पहली और दूसरी सतह पर कार्य करने वालो को बचाने का काम करते है। उनका मुख्य उद्देश्य अपने साथियों को समाज के सामने पिड़ित बताना होता है। इन्हीं लोगो ने हसनाबाद की घटना को सांप्रदायिक दंगा बता कर गरीब मुस्लिम समाज को पिड़ित बता कर केन्द्र सरकार को घेरने का प्रयत्न किया है।

मैने एक नजर सभी पर डाल कर पूछ लिया… सर, इस कहानी के पीछे कौन है? अजीत ने मुस्कुरा कर कहा… जिस रोज तुमने इस घटना की खबर की थी उसी दिन से मै सभी खबरों पर नजर रख रहा था। पहली सतह पर बंगाल का मार्क्सवादी चेहरा तपन बिस्वाऔर उसके वामपंथी साथी काम कर रहे थे। अगले दिन ही बंगाल के दूसरे जिलों मे कट्टरपंथी इस्लामिक गुट एकाएक वामपंथी कार्यकर्ताओं के साथ मिल कर सक्रिय हो गये थे। शिया-सुन्नी दंगों की खबर को दबाने के लिये उन्होंने मालदा, मिदनापुर और अलग-अलग जिलों मे सांप्रदयिक दंगा भड़काने की कोशिश दूसरी सतह पर की थी। इसके कारण हसनाबाद की घटना दब गयी थी। तीसरी सतह पर राजधानी मे बैठे हुए सेठी के चैनल ने इस कहानी को सबसे पहले उठाया और बाद मे विशाल बैनर्जी और अन्य दलाल पत्रकारों ने इस कहानी को अन्तरराष्ट्रीय हेडलाईन बना दिया था। अगले दिन से अन्य मिडियाकर्मियों ने सोशल मिडिया पर इस खबर को फैलाना आरंभ कर दिया कि नयी सरकार आने के बाद से मुस्लिम समाज अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहा है। उसके बाद कलकत्ता उच्च न्यायालय मे जनहित की याचिका डालते ही यह कहानी राष्ट्रीय पटल पर एक बड़ी खबर बन कर उभरी थी। अगर एक लाइन मे समझना है तो पंच मक्कारों की मिली भगत ने तस्करी की आपसी रंजिश को पहले शिया-सुन्नी मे बदला और फिर हमारे उदारवादी संचार माध्यम ने इसे सांप्रदायिक दंगे मे तब्दील करके भारत मे अल्पसंख्यक आबादी को पिड़ित घोषित कर दिया। मेजर अब तुम्हें समझ मे आ गया होगा कि दुश्मन की रणनीति और कार्यशैली कैसे झूठ पर टिकी हुई है। इसी को हाईब्रिड वार कहा जाता है। 

सारी कहानी अब तक खुल कर मेरे सामने आ गयी थी। इस प्रकार के युद्ध का हक डाक्ट्रीन मे कोई जिक्र नहीं था परन्तु धूर्तता और धोखा तो हक डाक्ट्रीन का मूल मंत्र था। कुछ सोच कर मैने पूछा… सर, एजाज मूसा और उसके साथियों ने क्या कुछ बताया? अबकी बार वीके ने कहा… मेजर, किस्मत से हमारे हाथ एक महत्वपूर्ण जानकारी लगी है। आज की मीटिंग इसी पर चर्चा के लिये रखी है। जनरल रंधावा ने जल्दी से कहा… पाकिस्तान कोई बड़ा धमाका करने की योजना पर काम कर रहा है। इसके लिये जमात-ए-इस्लामी के नेतृत्व मे बारह से ज्यादा पाकिस्तानी स्थित तंजीमे पिछले कुछ दिनों से भारत के अलग-अलग हिस्सों मे सक्रिय हो गयी है। अभी तक यह पता नहीं चल सका है कि उन्होंने किस प्रकार के धमाके की योजना बनायी है? …सर, जमात अगर इस धमाके के पीछे है तो हमारे पास उनके लोगो की लम्बी फेहरिस्त है। हमे उन सभी लोगों की निगरानी बढ़ा देनी चाहिए। तभी अजीत ने टोकते हुए कहा… मेजर, आईबी हरकत मे आ चुकी है। हमारी ओर से उस लिस्ट के सभी लोगों पर कड़ी नजर रखी जा रही है। अभी हाल ही मे पाकिस्तानी दूतावास के एक कर्मचारी को हमने एक चीनी स्त्री के साथ देखा है। वह स्त्री चीन की नागरिक है परन्तु वह यहाँ पर एक चीन की संचार कंपनी मे पिछ्ले दो साल से कार्यरत है। इसीलिए अब हमारी सुरक्षा एजेन्सियाँ इस अभियान मे चीन के संबन्ध को भी तलाश कर रही है।

जनरल रंधावा कुछ सोच कर बोले… अजीत, हाल मे सुनने मे आया है कि चीन की फौज अचानक हमारे पूर्वी सिरे पर सक्रिय हो गयी है। यह भी हो सकता है कि चीन की फौजी मदद के द्वारा हमारी फौज का ध्यान बँटा कर पाकिस्तान कुछ पश्चिमी सिरे पर बड़ा करने की तो नहीं सोच रहा है? …इसके बारे मे कुछ कहा नहीं जा सकता परन्तु हमारी फौज सभी सीमाओं पर किसी भी झड़प के लिये तैयार है। अभी बात चल रही थी कि तभी फोन की घंटी घनघना उठी। अजीत ने जल्दी से फोन उठाया और फिर कुछ सुन कर कहा… अन्दर भेज दो। फोन रख कर अजीत ने कहा… गोपीनाथ आ गया है। तुम उस लड़की को लेकर कान्फ्रेन्स हाल मे पहुँच जाओ। हम सभी वहीं पहुँच रहे है। उनको वहीं छोड़ कर मै अपने कमरे मे चला गया था। आरफा एक किनारे मे सहमी हुई बैठी थी। मुझे आता देख कर वह उठ कर खड़ी हो गयी थी। …आओ मेरे साथ चलो। गोपीनाथ आ गये है। उसे अपने साथ लेकर मै कान्फ्रेंस हाल की ओर चल दिया। आरफा कुछ कदम चलने के बाद टूटी-फूटी हिंदी मे बोली… आप उन्हें पहचानते है? …तुम फिक्र मत करो। यह वही गोपीनाथ है जिसके बारे मे अब्दुल ने तुमसे जिक्र किया था। जब हमने कान्फ्रेंस हाल मे प्रवेश किया तो हाल खाली पड़ा हुआ था। हम दोनो चुपचाप मेज के एक किनारे मे बैठ गये थे।

थोड़ी देर के बाद तीनों दिग्गजों ने रा के निदेशक गोपीनाथ के साथ हाल मे प्रवेश किया और हमारे सामने आकर बैठ गये थे। गोपीनाथ की नजरें आरफा पर टिकी हुई थी। अजीत की आवाज गूँजी… गोपीनाथ, यह आरफा चौधरी है। गोपीनाथ कुछ बोलता उससे पहले मैने कहा… सर, कुछ भी बताने से पहले यह विश्वास करना चाहती है कि आप ही गोपीनाथ है। मेरी बात सुन कर गोपीनाथ ने मुस्कुरा कर अपनी जेब से अपना परिचय पत्र निकाल कर उसके सामने रख कर बंगाली मे कहा… जिस आदमी को तुम अब्दुल गनी चौधरी के नाम से जानती हो उसका असली नाम अनमोल बिस्वाथा। एकाएक आरफा के चेहरा खिल उठा था। कुछ बंगाली मे बड़बड़ाते हुए उसने अपने ब्लाउज मे हाथ डाल कर एक मुड़ा-तुड़ा कागज निकाल कर गोपीनाथ के सामने रख दिया था। सबकी आँखें उस कागज पर जम गयी थी। गोपीनाथ ने वह कागज उठाया और खोल कर पढ़ा और फिर अजीत की ओर बढ़ा दिया। तीनों ने एक नजर कागज पर डाल कर आरफा की ओर देखा तो वह संजीदा हो उठी थी। उसकी बड़ी-बड़ी आखों मे आँसू झिलमिला रहे थे। गोपीनाथ ने कुछ देर उससे बंगाली मे बात की और फिर उसे वापिस मेरे आफिस मे भिजवा दिया था।

उसके जाने के बाद गोपीनाथ ने कहा… मेजर, तीन हफ्ते पहले अनमोल की लाश ढाका पुलिस को एक गंदे नाले मे मिली थी। तुम्हारे अनुसार यह लड़की लगभग एक हफ्ते पहले सीमा पार करते हुए तुमने पकड़ी थी। मैने मेज पर पड़े हुए कागज को उठा कर उस नजर डालते हुए कहा… जी सर। उस कागज पर अंग्रेजी मे लिखे हुए शब्दों को पढ़ कर मेरा दिमाग चकरा गया था।

‘मेरा नाम अनमोल बिसवास है। इस कागज के टुकड़े को तुरन्त रा के निदेशक के पास पहुँचा दीजिए। इसमे भारत के खिलाफ कोडनेम वलीउल्लाह के नाम से आईएसआई की नापाक साजिश “आप्रेशन खंजर” का खुलासा किया गया है।‘

बस इतना ही लिखा हुआ था। मैने कागज को उलट-पलट कर देखा तो उसके सिवा और कुछ भी नहीं लिखा हुआ था। अजीत ने मुस्कुराते हुए कहा… मेजर, इसमे जितने भी अंग्रेजी अक्षर ‘आई’ पर बिन्दु है उसमे से एक माइक्रो डाट फिल्म हो सकती है। अनमोल शहीद हो गया परन्तु वह आरफा की मदद से अपना काम से पूरा कर गया है। अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि उसकी शहादत को हम जाया न होने दें। गोपीनाथ तुरन्त माईक्रोफिल्म को डीकोड करके मुझे इसकी जानकारी दो। हम यहीं पर तुम्हारा इंतजार कर रहे है। गोपीनाथ उस कागज के टुकड़े को लेकर हाल से बाहर निकल गया और मै आने वाली चुनौती के बारे मे सोचने लगा। एकाएक इस मीटिंग की मंशा अब मुझे समझ मे आ गयी थी। मूसा से मिली हुई जानकारी के कारण एकाएक भारतीय सुरक्षा तंत्र चौकन्ना हो गया था लेकिन ‘कोडनेम वलीउल्लाह’  और “आप्रेशन खंजर”  ने एक बार फिर से हमारे सामने एक नयी चुनौती खड़ी कर दी थी। अब वह नाम और उस नाम से जुड़ा प्रोजेक्ट खुल कर सबके सामने आ गया था।

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत के चेहरे पर परेशानी के भाव साफ विद्दमान थे। उसने सोचते हुए कहा… अब इसमे कोई शक नहीं है कि पाकिस्तान कुछ बड़ा करने वाला है। वह क्या करने वाले है और उनके निशाने पर कौन है अन्यथा वह कहाँ हमला करने की सोच रहे है? इन सवालों का जवाब पता करने के लिये हमारे पास ज्यादा समय नहीं है। हमने पहले से ही आईबी, रा और सीबीआई को इस बारे मे सुचित कर दिया है और वह सारे राज्यों की पुलिस के साथ सीधे संपर्क मे है। जनरल रंधावा ने तुरन्त कहा… अजीत, सभी सुरक्षा एजेन्सियाँ फिलहाल अंधेरे मे हाथ मार रही है। हमे जल्दी से जल्दी इस साजिश का पर्दाफाश करना पड़ेगा। …रंधावा, तुम सही कह रहे हो। यही बात मैने वीके से कही थी। अभी तक दुश्मन की रणनीति का हमारे पास कोई सुराग नहीं है। कल रात को रा के निदेशक के साथ इस मसले पर मेरी बात हुई थी परन्तु उसके पास भी इस बारे मे कोई जानकारी नहीं है परन्तु अब शायद इसका कोई सुराग लग जाए। मै अब इस काम की जिम्मेदारी मेजर पर डालना चाहता हूँ।

मैने चौंक कर अजीत सर की ओर देखा तो अजीत ने कहा… मेजर, हम सब की राय है कि तुम्हें फील्ड आप्रेशन को संभालना पड़ेगा और यहाँ आफिस मे जनरल रंधावा इस मुहिम का संचालन करेंगें। वह सभी सुरक्षा एजेन्सियों के साथ हर पल संपर्क मे रहेंगें। …यस सर। हम अभी चर्चा कर ही रहे थे कि गोपीनाथ ने तेजी से हाल मे प्रवेश किया और अजीत के सामने दो कागज रखते हुए कहा… अजीत, बुरी खबर है। पहली आतंकवादी तंजीमो का संयुक्त मोर्चा तीन जगहों पर एक साथ फिदायीन हमला करने की सोच रहा है जिसका उद्देश्य हमारी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुँचाने का है। अनमोल के अनुसार उनके जिहादी बांग्लादेश मे दो जगह प्रशिक्षण ले रहे है। पहला, दक्षिण बांग्लादेश के डेल्टा क्षेत्र पर उनके तीन फिदायीन समूह प्रशिक्षण ले रहे है। उनके दो समूह बंगाल की खाड़ी मे प्रशिक्षण ले रहे है। अनमोल ने खबर की है कि आईएसआई इस काम का संचालन नेपाल मे अपने फैले हुए नेटवर्क के द्वारा कर रही है। दूसरी खबर और भी ज्यादा खतरनाक है। कोई पाकिस्तानी एजेन्ट हमारी सेन्ट्रल कमांड मे बैठ कर हमारी खुफिया सैन्य जानकारी आईएसआई को दे रहा है। उस गद्दार का कोडनेम वलीउल्लाह है। इस वलीउल्लाह के जरिये वह आप्रेशन खंजर लाँच करने की साजिश रच रहे है। एकाएक कमरे मे शांति छा गयी थी। दोनो खबरें हमारे लिये बड़े भारी खतरे की सूचक थी।

कुछ देर तक चर्चा करने के बाद मैने पूछा… सर, आरफा चौधरी का क्या करना है। वह बांग्लादेशी नागरिक है। वीके ने कहा… आरफा को कुछ दिनो के लिये तुम अपने घर पर रख लो क्योंकि तुम्हारे  कैंम्पस जैसी सुरक्षित जगह और कहीं नहीं दिख रही है। है। तब तक हम उसके कागजात तैयार करवाते है। अजीत सर की योजना पर मौहर लगा कर गोपीनाथ, वीके और अजीत सर चले गये थे। जनरल रंधावा की देखरेख मे फील्ड आप्रेशन्स का मै संचालन करुँगा और जनरल रंधावा सभी सुरक्षा एजेन्सियों के साथ हर पल संपर्क बना कर रखेंगें। इस बीच मिलिट्री इन्टेलीजेन्स एजाज मूसा और पकड़े हुए अन्य फिदायीनों से पूछताछ करने मे जुट गयी थी। सब कुछ तय होने के बाद हाल मे जनरल रंधावा और मै रह गये थे।

…मेजर, सबसे पहले आने वाले खतरे से निपटने के लिये काठमांडू पर आईएसआई की गतिविधियों पर नजर रखनी पड़ेगी। इन्टेल रिपोर्ट्स के अनुसार हाल ही मे नेपाल मे स्थित पाकिस्तान दूतावास मे आईएसआई का सबसे कुख्यात ब्रिगेडियर शुजाल बेग नियुक्त हुआ है। मेरा अनुमान है कि वही इस आप्रेशन खंजर का संचालन कर रहा है। तुम काठमांडू जाने की तैयारी करो तब तक मै आईबी और रा से वहाँ पर स्थित अपने नेटवर्क से जानकारी इकठ्ठी करवाता हूँ। इतना बोल कर जनरल रंधावा अपने आफिस की ओर चले गये और मै अपने आफिस मे चला आया था। आरफा एक कोने पड़े हुए सोफे पर अकेली बैठी मेरा इंतजार कर रही थी। मुझको देखते ही वह खड़ी हो गयी थी। इतने दिनो मे पहली बार मैने आरफा पर एक भरपूर नजर डाली थी। सस्ते से सूती ब्लाउज और धोती से उसका साँचे मे ढला हुआ जिस्म ढके हुए होने के बाद भी उसकी उन्नत और पुष्ट जिस्मानी गोलाईयाँ का एहसास करा रहा था। उसकी निगाहें झुकी होने के बावजूद वह तिरछी निगाहों से मुझे देख रही थी। हमारी आँखें चार होते ही उसकी आँखों मे अभिसारिक चंचलता की झलक दिखायी दे रही थी। परस्त्री संसर्ग के कारण इन अदाओं से मै पूर्णता वाकिफ था लेकिन पता नहीं क्यों मै एक पल के लिये असहज हो गया था। जल्दी से अपने आप को संभालते हुये मैने कहा… काफी देर हो गयी है। आओ चले। अपना आफिस बन्द करके उसको अपने साथ लेकर मै फ्लैट की ओर चल दिया।  

फ्लैट पर पहुँचते ही तबस्सुम ने कहा… चलिये वह लोग हमारा इंतजार कर रहे है। …कहाँ जाना है? …आपको कल बताया था न कि अपने नये पड़ौसियों ने हमे चाय पर बुलाया है। आरफा को फ्लैट पर छोड़ कर मै उसके साथ चल दिया था। प्रोफेसर सुरेश पेंडारकर का राष्ट्रीय रक्षा कालेज मे लेकचरार के पद पर हाल ही मे नियुक्ति हुई थी। तबस्सुम की उनकी पत्नी शिखा से जान पहचान थी। बड़ी गर्मजोशी के साथ उन्होंने हमारा स्वागत किया था। प्रोफेसर साहब ने चाय पीते हुए कहा… आपकी पत्नी बता रही थी कि आप बाहर गये हुए थे। …जी। …आप इसी कालेज मे काम करते है? …नहीं सर, मै सेना मे काम करता हूँ। यहाँ पर डेप्युटेशन पर आतंकवाद और स्पेशल आप्रेशन्स विषय की आफीसर्स को प्रशिक्षण दिया करता था परन्तु हाल ही मे मेरी नियुक्ति वापिस सेना भवन मे हो गयी है। आप यहाँ पर कौन से कोर्सेज लेते है? …मै तो इसरो मे काम करता था। इसरो की ओर से मुझे भी यहाँ तीन साल के डेप्युटेशन पर भेजा गया है। मेरा विषय सूचना और संचार माध्यम है। तभी प्रोफेसर साहब की पत्नी शिखा ने कहा… घर आकर भी आफिस की बात कर रहे है। समीर आपकी पत्नी बेहद सीधी है। मै हैरान हूँ कि आज के जमाने मे कैसे उसे अभी तक यहाँ की हवा नहीं लगी है। उसकी वजह से मेरा मन लग गया है। आप खुशकिस्मत है वर्ना आज कल की लड़कियों के नखरों से तो भगवान बचाये। उसके बाद शिखा और तबस्सुम की कहानी आरंभ हो गयी थी। कुछ देर उनके साथ बैठ कर हम वापिस अपने फ्लैट की ओर चल दिये थे।

…तुमने उन्हें अपने बारे मे क्या बताया है? …मेरा नाम मिरियम बट है। मै उन्हें और क्या बता सकती थी। आपके बारे मे पूछा तो मैने आपका नाम बता दिया था। आप सेना मे अफसर है इससे ज्यादा मै आपके बारे मे क्या जानती हूँ जो उन्हें बताती। …हमारी शादी कब हुई? …बचपन मे हमारी शादी हो गयी थी। बस आपके साथ रहने कुछ महीने पहले आयी थी। मैने उसकी पीठ थपथपा कर कहा… बहुत अच्छे अब तुम भी मेरी तरह झूठ बोलने लगी हो। वह अचानक तमक कर बोली… अब जब मेरा सारा जीवन ही झूठ पर टिका है तो फिर अभी से मैने प्रेक्टिस आरंभ कर दी है। उसकी बात ने एक बार फिर से मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था। …उसको तो आप आज कहीं छोड़ कर आने वाले थे तो क्या हुआ? …जब तक उसके कागज तैयार होते है तब तक उसको यहीं रखना पड़ेगा। हम वापिस अपने फ्लैट मे आ गये थे। मैने मेस मे फोन करके खाना मंगा लिया था। आरफा ने हमारे साथ बैठ कर भोजन किया और फिर वह वापिस अपने कमरे मे चली गयी थी। बिना पूछे ही तबस्सुम ने मुझे अपना निर्णय बता दिया था। यही सोचते हुए मै उसे लेकर अपने कमरे मे आ गया था।