रविवार, 26 फ़रवरी 2023

  

काफ़िर-43

मै सुबह तैयार हो कर अपने आफिस निकल गया था। सीधे अपने आफिस जाने के बजाय मै बेसमेन्ट की ओर चला गया था। नीलोफर के फोन की रिकार्डिंग यही पर हो रही थी। मुझे देखते ही ड्युटी आफीसर तुरन्त बोला… सर, नीलोफर के नम्बर से पिछले दो दिन मे उस नम्बर पर सौ से ज्यादा काल की गयी है। …क्या कोई बात हुई? …नहीं सर। वह एक नम्बर पर तीन बार बात कर चुकी है। क्या आप वह रिकार्डिंग सुनना चाहेंगें? …उसने सुलेमान से बात की थी। …यस सर। …रहने दो, उसमे कोई काम की बात नही है। …किसी और नये आदमी ने उसे संपर्क किया है? …नहीं सर। उस रिकार्डिंग का क्या करना है? …वह और इन सारी रिकार्डिंग को उसके निजि अकाउन्ट मे डाल दो। अब हमे उसकी कोई जरुरत नहीं है।

इतनी बात करके मै अपने आफिस मे आ गया था। ब्रिगेडियर चीमा के आफिस मे खबर कर दी थी कि मै अपने आफिस मे हूँ। दोपहर को ब्रिगेडियर चीमा की काल आ गयी थी। मै उनसे मिलने चला गया था। दिग्गजों की तिकड़ी वहीं बैठी हुई थी। मुझे देखते ही ब्रिगेडियर चीमा ने कहा… मेजर, फारुख की ओर से ग्रीन सिगनल मिल गया है। उसकी सिर्फ एक शर्त है वह तुम्हें कभी भी अपने हैन्डलर की भुमिका मे नहीं देखना चाहता है। …सर, तो फिर अब आप उसे हैंडल किजीए। अब नीलोफर भी आपके ही चार्ज मे है। इसी के साथ आप्रेशन आघात-2 की मेरी जिम्मेदारी समाप्त हो गयी है। उन सबके इस निर्णय ने मुझे काफी निराश किया था। सारी मेहनत मेरी थी और जब नतीजे का समय आया तो मुझे दूध की मक्खी की तरह बाहर निकाल कर फेंक दिया। मन मे अनेक विचार आ रहे थे परन्तु उनके सामने बोलने की हिम्मत नहीं जुटा सका था। तभी वीके ने कहा… नहीं मेजर। हमारे सामने एक बहुत बड़ी चुनौती खड़ी हुई है। लेकिन उससे पहले यह जानना जरुरी है कि तुम्हारे साथ यह काफ़िर का क्या चक्कर है। सुनने मे आया है कि वह हमेशा तुम्हें काफ़िर ने नाम से पुकारता है। मेरे ख्याल से यही कारण है कि वह तुम्हारे साथ काम नहीं करना चाहता। आखिर क्यों?

…सर, यह सारा जायदाद का चक्कर है। अम्मी ने सारी जायदाद मेरे नाम कर दी थी जिसके कारण मकबूल बट पैसे के लिये मोहताज हो गया था। उसने अम्मी और मुझे बेइज्जत करने के लिये अपने सर्कल मे यह कहना शुरु कर दिया था। चुंकि मकबूल बट मुझे काफ़िर के नाम से पुकारता है तो उसका हर जानने वाला भी मुझे उसी नाम से बुलाता है। अचानक अजीत ने मेरी बात बीच मे काटते हुए कहा… समीर, दुनिया के लिये यह कहानी तो ठीक हो सकती है परन्तु जो सच है हम वह जानना चाहते है। सभी की आँखें मुझ पर टिकी हुई थी। कुछ सोच कर मैने कहा… सर, यह 1989 की बात है। मैने अपनी सारी कहानी उनके सामने रख दी थी। …सर, आपके विश्वास को मै नहीं तोड़ सकता था इसीलिये मैने सच्चायी आपके सामने रख दी है। यह बोल कर मै सिर झुका कर बैठ गया था। वीके अपनी कुर्सी छोड़ कर मेरे पास आया और मेरी पीठ थपथपा कर बोला… समीर, इसमे शर्मसार होने की कोई जरुरत नहीं है। उसके बाद एक साथ सभी बोलने लगे थे।

कुछ देर के बाद वीके ने कहा… समीर, वह सात अंकों वाले नम्बरों को डिकोड कर लिया गया है। वह साधारण जीपीस स्थानीय कोड नहीं है। वह हमारे सेटेलाईट रिमोट सेन्सिंग के स्थानीय ग्रिड कोड है। कोई आदमी या तो इसरो मे बैठ कर यह कोड पाकिस्तान को दे रहा है अन्यथा सेन्ट्रल कमांड स्टेशन पर से कोड दुश्मन के हाथों मे दे रहा है। दोनो ही जगह हमारी पहुँच से बाहर है। जनरल रंधावा किसी हद तक उनके संपर्क मे है परन्तु उसके हाथ भी बंधे हुए है। ब्रिगेडियर चीमा का मानना है कि अब यहाँ के हालात काबू मे आ गये है। हमे फारुख और नीलोफर की सियासत से कोई परेशानी नहीं है जब तक कि वह कोई आंतरिक खतरा उत्पन्न नहीं करते है। तभी अजीत ने टोकते हुए कहा… वीके साफ शब्दों मे कहो तो बेहतर होगा। समीर, हम लोगो का मानना है कि तुम्हारे को यहाँ से निकालने का समय आ गया है। हक डाक्ट्रीन एक समस्या है परन्तु उसका उद्देश्य तो गजवा-ए-हिन्द और निजाम-ए-मुस्तफा का है। आईएसआई की सौ करोड़ की योजना तो सिर्फ एक पहलू है। इस साजिश मे न जाने कितने और फारुख इस देश मे कहाँ-कहाँ अपने पाँव जमा रहे है। इन सबसे टकराने से पहले इनको समझना ज्यादा जरुरी है। इसी लिये हमने सोचा है कि तुम्हें राष्ट्रीय रक्षा कालेज मे स्थानन्तरित करवा दिया जाये। इस बारे मे तुम्हारा क्या ख्याल है?

…सर, मै तो सैनिक हूँ। आप जहाँ भेजेंगें वहाँ तो जाना पड़ेगा लेकिन दिल्ली जैसी जगह मे जहाँ राजनीति का हर क्षेत्र मे दखल है वहाँ मुझे लगता है कि शायद मै अपने आप को वहाँ के अनुसार ढाल नही सकूँगा। कुछ सोच कर वीके ने कहा… मेजर, जिस उद्देशय से तुम हमारे साथ जुड़े थे वह दिल्ली से होकर ही गुजरता है। जिस काउन्टर आफेन्सिव के लिये हम तुम्हें तैयार कर रहे है वह सिर्फ कश्मीर तक सिमित नहीं है। अजीत का सारा जीवन पुलिस और इन्टेलीजेन्स मे बीता है। मेरा और जनरल रंधावा का सारा जीवन वर्दी मे निकला परन्तु असलियत समझने के लिये हमे अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलना पड़ा था। एक पहेली को सुलझाने के लिये एक से ज्यादा तरीके हो सकते है और इसीलिये तुम्हें यहाँ से निकालना चाहते है। हम तुम पर कोई दबाव नहीं डाल रहे है लेकिन जो तुम्हारे भविष्य के लिये अच्छा है हम उसके बारे मे बात कर रहे है। कोई जल्दी नहीं है। आराम से सोच कर बता देना। मैने उनसे विदा लेकर बाहर निकल आया था।

मै अपने आफिस मे बैठ कर तिकड़ी के साथ हुई बातचीत के बारे मे सोच रहा था। वह सच कह रहे थे। अभी तक मेरी सोच सिर्फ इस राज्य की सीमाओं से बंधी हुई थी। मुझे नहीं पता था कि बाकी देश मे क्या चल रहा था। आखिर नीलोफर और फारुख की लिस्टों मे दिये गये नाम ज्यादातर राज्य से बाहर के थे। ड्र्ग्स का सारा करोबार भी कश्मीर के बाहर पूरे भारत मे फैला हुआ था। जमात-ए-इस्लामी भी पूरे भारत मे फैली हुई थी। अगर फारुख जैसों से टकरना है तो फिर ऐसी संकीर्ण सोच से बाहर आना पड़ेगा। मै इन्हीं सोच मे गुम बैठा हुआ था कि अचानक दरवाजा खुला और तीनो दिग्गज मेरे कमरे मे आ गये थे। उन्हें देखते ही मै सावधान की मुद्रा मे खड़ा हो गया। वीके सोफे पर बैठते हुए बोला… मेजर, काफी मंगाओ। मैने बजर देकर काफी मंगा ली थी। अजीत ने कहा… समीर, हम एक मामले मे तुम्हारी राय लेने आये है। …सर, मै आपकी बात समझ गया हूँ। मै दिल्ली जाने को तैयार हूँ। …मेजर, वह बात नहीं है। वह सात अंको के नम्बर की कहानी के बारे मे हम तुमसे बात करना चाहते है। उन सात अंकों की सारी कहानी सुना कर वीके ने कहा… जब से हमे इसके बारे मे पता चला है तभी से हम लोग इसके बारे मे सोच रहे है। यहाँ पर तुम सिर्फ नम्बर इकठ्ठे कर सकते हो परन्तु सोर्स पता लगाने के लिये यहाँ से बाहर निकलना पड़ेगा।

अजीत ने हामी भरते हुए कहा… तुम्हें दिल्ली भेजने का हमारा यही उद्देश है। राष्ट्रीय रक्षा कालेज मे आफीसर्स के प्रशिक्षण शिविर लगते रहते है। वहाँ पर रिमोट सेन्सिंग और कमांड सेन्ट्रल से लोग लेक्चर देने आते रहते है। उन्हीं के माध्यम से पता लगाने की कोशिश करना। …जी सर। परन्तु मै वहाँ करुँगा क्या? मै एनडीए पास आउट हूँ। युद्ध के सिवा मुझे किसी और विषय का कोई अनुभव नहीं है। …मेजर, आतंकवाद को समझना और समझाना भी एक विषय है। जो कुछ तुमने अब तक जमीन पर काम करते हुए सीखा है वह किसी किताब से नहीं सीखा जा सकता। हक डाक्ट्रीन को जैसे तुमने देखा है बहुत से विशेषज्ञ वह चीज नहीं देख पाते। इसलिये उसकी चिन्ता छोड़ दो। उन सात अंकों के नम्बर पर ध्यान केन्द्रित करो। हमारी काफी समाप्त हो चुकी थी।

वह जैसे ही उठ कर जाने लगे मैने कहा… सर, एक बात बतानी रह गयी थी। हमसे छिपा कर नीलोफर ने फारुख की बेटी को यहाँ लाने की योजना बनायी थी। वक्त रहते मुझे पता चल गया था तो मै उसकी बेटी तबस्सुम को अपने साथ लेकर यहाँ आ गया। इस वक्त नीलोफर, फारुख का परिवार, जैश और लश्कर के सभी लोग उसको ढूंढ रहे है लेकिन वह मेरे पास है। मेरी बात सुन कर वह तीनो वापिस बैठ गये थे। …सर, मुझे लगा कि नीलोफर मुझे फँसाने के लिये उस लड़की को मुजफराबाद से यहाँ लाने की कोशिश कर रही है क्योंकि मैने फारुख को धमकी दी थी कि उसकी बेटी हमारे पास है। मुझे लगा कि अगर नीलोफर के पास फारुख की बेटी पहुँच गयी तो वह फिर हमारी सारी योजना पर हावी हो जाएगी। फारुख अपनी बेटी मांगेगा और उसकी बेटी हमारे पास नहीं हुई तो फिर नीलोफर अपनी मांग मनवाने के लिये हमे मजबूर करगी। इसीलिये चार रात पहले मै मुजफराबाद के लिये बिना किसी को बताये निकल गया था। उस लड़की को लेकर कल रात को मै यहाँ सुरक्षित पहुँच गया था। वह मासूम लड़की बेवजह मेरे कारण इनके चक्रव्युह मे फँस गयी है। मै उस लड़की को ब्रिगेडियर चीमा के हवाले हर्गिज नहीं करना चाहता। अब आप बताईये कि आगे क्या करना चाहिये? तीनो गहरी सोच मे डूब गये थे।

कुछ देर के बाद वीके ने कहा… अजीत तुम क्या सोचते हो? …वीके, वह लड़की हमारी स्ट्रेटिजिक एस्सेट है। उस लड़की की खबर किसी को कानोकान नहीं होनी चाहिए। वह फारुख और नीलोफर को समय पर काउन्टर करने के काम आयेगी। जिस दिन नीलोफर आँखें दिखाये तो उसकी रिकार्डिंग उसे सुनवा देना। फारुख जिस दिन हम पर दबाव डालेगा तो उसे बता देना कि उसकी बेटी फौज के कब्जे मे है। बस उस लड़की को सही से हैंडल करने की जरुरत है। समीर, यही अच्छा होगा कि यह बात ब्रिगेडियर चीमा को भी नहीं पता चलनी चाहिए क्योंकि वह फारुख और नीलोफर का हैन्डलर है। कुछ देर तीनो बात करते रहे और फिर वीके ने पूछा… तुम उस लड़की को अपने पास सुरक्षित रख सकते हो? …जी सर। …तो ठीक है। उसे अपने पास रखो लेकिन उसके बारे मे किसी को पता नहीं चलना चाहिये। अजीत सही कह रहा है कि वक्त पड़ने पर वह लड़की हमारे लिये बेहद महत्वपूर्ण एस्सेट साबित होगी। इतना बोल कर तीनो वहाँ से चले गये थे। मेरे लिये एक नयी चुनौती खड़ी हो गयी थी।

शाम हो गयी थी तो मै घर की ओर चल दिया था। सुबह जब आफिस के लिये निकला था तब तक तीनो सो रही थी। अब जैसे ही घर मे प्रवेश किया तो सब कुछ सामान्य सा लग रहा था। जन्नत और आस्माँ अपनी बातों मे उलझी हुई थी। …तबस्सुम कहाँ है? …वह कमरे मे बैठी हुई है। मै उसके कमरे मे चला गया। वह सिर झुकाये किसी गहरी सोच मे डूबी हुई थी। मेरे कदमों की आहट सुन कर उसने चेहरा उठा कर मेरी ओर देखा तो अचानक आतंकित हो गयी। उसकी बड़ी-बड़ी आँखों मे डर के साथ आँसू आ गये थे। मैने दरवाजे से ही कहा… मुझसे डरने की कोई जरुरत नहीं है। जन्नत और आस्माँ भी दरवाजे पर आ गयी थी। मैने अपने सिर पर लगी हुई कैप हटा कर कहा… तुम मेरे साथ ही मुजफराबाद से यहाँ तक आयी हो। क्या भूल गयी? उसके बिस्तर से कम्बल उठा कर अपनी वर्दी पर लपेट कर दिखाया लेकिन अभी भी उसके चेहरे पर भय के बादल कम नहीं हुए थे। वह धीरे से बड़बड़ायी… तुम तो काफ़िर फौज के अफसर हो। एकाएक उसके भय का कारण मै समझ गया था। मैने जल्दी से कहा… तुम मिरियम को जानती हो जिसका निकाह मकबूल बट के साथ हुआ था। मिरियम का नाम सुन कर एक हल्की सी शिकन उसके चेहरे पर उभरी थी। मैने अपने सीने की नेम प्लेट दिखाते हुए कहा… मेरा नाम समीर बट है। मै मकबूल बट का बेटा हूँ। पल भर मे उसके चेहरे पर छाये भय के बादल छ्ट गये थे और होंठों पर एक मुस्कान तैर गयी थी। मुस्कुराने से उसके गाल के गड्डे उभर आये थे।

मैने वहीं दरवाजे से पूछा… क्या मै अन्दर आ जाऊँ? उसने धीरे से कहा… प्लीज आ जाईये। मै तो डर गयी थी कि काफ़िरों की फौज ने मुझे धोखे से पकड़ लिया है। मै उसके सामने बिस्तर पर बैठ कर बोला… मिरियम तुम्हारी क्या लगती थी? …फूफी। …तुम नीलोफर को जानती हो? इस बार उसने सिर हिला कर हामी भर दी थी। …कैसे? …वह हमारे मदरसे मे पढ़ाने आती थी। अचानक उसने मेरी ओर देख कर पूछा… तो नीलोफर बाजी ने मुझे लाने के लिये आपको भेजा था? मैने कोई जवाब देने के बजाय उससे पूछा… तबस्सुम तुम कहाँ तक पढ़ी हो? …बारह क्लास। …स्कूल जाती थी या मदरसा? वह तुनक कर बोली… सेन्ट मेरी कान्वेन्ट। मैने आगे बढ़ कर उसका हाथ पकड़ कर उठते हुए कहा… चलो बाहर बैठ कर आराम से बात करते है। उसने हाथ छुड़ाने की कोशिश नहीं की और मेरे साथ चल दी। जन्नत और आस्माँ भी हमारे पीछे बैठक मे आ गयी थी।

अपने साथ सोफे पर बिठा कर मैने कहा… तुम्हें कुछ चीजे पता होनी चाहिये। फिर तुम जो भी कहोगी मै वैसा ही करुँगा। बस इतना याद रखना कि मुझसे डरने की जरुरत नहीं है क्योंकि सिर्फ तुम्हें बचाने के लिये मै वहाँ गया था। तुमने चलने से पहले एक बार भी नहीं सोचा कि तुम्हारे साथ क्या हो सकता था? बस मुँह उठाया बाजी के कहने पर किसी अनजान सुलेमान मियाँ के साथ अपने अब्बू से मिलने चल दी थी। अगर मेरी जगह सुलेमान पहुँच जाता और तुम्हारी खूबसूरती पर फिदा हो गया होता तो क्या होता? तुम्हें अकेली देख कर वह तुम्हारी इज्जत तार-तार कर देता या तुम्हे लाहौर की मंडी मे बेच देता तो फिर किसको मुँह दिखाती। वह मुझे देखती रही फिर धीरे से बोली… अल्लाह अपने बन्दो पर जरा सी आंच नहीं आने देता इसीलिये तो कहते है कि खुदा पर भरोसा रखो। उसकी बात सुन कर एक पल के लिये अपना सिर दीवार पर मारने का किया कि कान्वेन्ट मे पढ़ने वाली लड़की के ऐसे विचार थे। वह धीरे से बोली… तभी तो मुझे बचाने के लिये आपको खुदा ने भेज दिया था। उसके लाजिक के आगे मैने अपना सिर झुका दिया था।

मैने अपनी वर्दी दिखाते हुए कहा… तबस्सुम यह काफ़िरों की फौज की वर्दी है। यह तो तुम जानती हो। …हुँम। …इसका मतलब यही हुआ कि तुम्हारे अब्बू और बाजी का मै जानी दुश्मन हूँ। यह बात सुन कर वह थोड़ा सावधान हो गयी थी। जब उसने कोई जवाब नहीं दिया तो मैने पूछा… अगर मुजफराबाद के बाजार मे तुम्हें पता चलता कि मै काफिर फौज का अफसर हूँ तो तुम क्या करती? अबकी बार वह धीरे से बोली… पुलिस मे पकड़वा देती। …क्यों? उसकी आवाज तेज हो गयी थी… तुम दुश्मन मुल्क से हो इसलिये। …बिल्कुल ठीक। अब यही बात मुझ पर लागू करो कि जब मुझे पता चला कि दुश्मन देश के तुम्हारे अब्बू फारुख मीरवायज और नीलोफर बाजी यहाँ पर घूम रहे है तो मुझे क्या करना चाहिए था? अबकी बार वह मेरी बात समझ गयी थी जिसकी निशानी उसके चेहरे पर दोबारा लौट आयी थी। वह धीरे से बोली… आप भी उन्हें पुलिस से पकड़वा देते। …बहुत समझदार हो। बिल्कुल ठीक लेकिन यहाँ पर तो मै ही पुलिस हूँ तो मुझे दोनो दुश्मनों को पकड़ लेना चाहिए था। इस बार उसने धीरे सिर हिला दिया था।

मैने अपने कन्धे की ओर उसका ध्यान खींच कर कहा… जब मै तुम्हारे अब्बू को पकड़ने के लिये गया तो उन्होंने मुझे यहाँ गोली मारी थी। उसकी आँखें फैल गयी थी। …इन दोनो लड़कियों से पूछ लो कि मुझे किसने गोली मारी थी? जन्नत और आस्माँ ने जल्दी से कहा… तुम्हारे अब्बू ने तो दिल का निशाना लेकर गोली मारी थी लेकिन खुदा का लाख शुक्र है कि गोली कन्धे पर लगी थी। मैने उसका हाथ पकड़ कर कहा… तो फिर तुम्हारे अब्बू को हमने पकड़ लिया था। यह सुन कर उसके चेहरे का सारा रंग जैसे किसी ने निचोड़ दिया था। …अपनी जान बचाने के लिये तुम्हारी बाजी ने ही हमे तुम्हारे अब्बू की खबर दी थी। अब तक मेरी सारी कहानी उसके जहन मै बैठ गयी थी। उसके चेहरे से साफ दिख रहा था कि उसके ख्वाबों का महल पल भर मे चकनाचूर हो गया था।

एक बार फिर से उसे समझाने के अंदाज मे कहा… तुम्हारी बाजी को पता था कि तुम्हारे अब्बू उसकी गद्दारी के लिये कभी माफ नहीं करेंगें तो उसने तुम्हें यहाँ बुलाने की योजना बनाई कि जिससे तुम्हारी जान के बदले वह अपनी जान बचाने मे कामयाब हो सके। यह तो किस्मत की बात है कि उसके फोन पर हमारी नजर जमी हुई थी। जब मुझे पता चला कि वह कोई ऐसा चक्कर चला रही है तो उसी रात को मै मुजफराबाद के लिये निकल गया था। सुलेमान से पहले मुझे तुमसे मिलना था इसीलिये मैने फोन करके मानशेरा के बजाय मुजफराबाद बुलाने की पेशकश की थी परन्तु तुमने मुझे गड़ी हबीबुल्लाह आने के लिये कह दिया था। मै यह सोच कर मान गया कि इस बहाने तुम मानशेरा तो नहीं जाओगी। सुलेमान की जगह मै तुमसे मिला और फिर जो कुछ भी हुआ तुमने खुद देख लिया था। यह सच्चायी जानना तुम्हारे लिये जरुरी था इसी लिये मैने सारी बात तुम्हें बता दी है। अब तुम पर है कि तुम क्या चाहती हो। तुम चाहो तो मै तुम्हें वापिस तुम्हारे घर पर छुड़वा सकता हूँ। इतना बोल कर मै चुप हो गया था।

वह गहरी सोच मे डूब गयी थी। मै उसकी हालत समझ सकता था लेकिन बिना उसकी सहमति के कुछ भी नहीं कर सकता था। अचानक उसने मेरे होल्स्टर से पिस्तौल निकालने की कोशिश करी लेकिन मैने उसका हाथ पकड़ कर कहा… मुझे गोली मार कर क्या तुम यहाँ से निकल सकोगी? पहली बार उसके चेहरे पर आसुओं की झड़ी लगते हुए देखी थी। वह रोते हुए बोली… मै आपको नही अपने आपको गोली मारना चाहती हूँ। अब घर किस मुँह से जाऊँगी। बाजी ने कहा था कि अब्बू की हालत बहुत नाजुक है और वह मुझे एक बार देखना चाहते है। आज तक अब्बू ने कभी मुझे पूछा नहीं तो मै बिना सोचे समझे उनसे मिलने के लिये चल दी थी। पीर साहब मुझे जिंदा खेत मे गड़वा देंगें। मै अब कहीं की नहीं रही। इतना बोल कर वह फूट-फूट कर रो पड़ी थी। मै चुपचाप बैठ गया। वह काफी देर रोती रही थी।

जब उसके दिल का सारा गुबार निकल गया और वह शांत हो गयी तो मैने कहा… अगर तुम खुदा की कसम खा कर कहती हो कि मरने-मारने की बात फिर कभी नहीं करोगी तब मै एक रास्ता बता सकता हूँ। वह अब तक शांत हो चुकी थी। अपनी भीगी पलकें झपका कर बोली… बताईये। …ऐसे नहीं पहले खुदा की कसम खाओ कि आज के बाद मरने-मारने की बात कभी नहीं करोगी तभी बताऊँगा। …चलिये खुदा की कसम खाती हूँ कि आज के बाद मै कभी भी मरने-मारने की बात नहीं करुँगी। …तुम आराम से यहाँ इसे अपना घर समझ कर रहो। मौका मिलते ही मै तुम्हारे अब्बू से मिलाने की कोशिश करुँगा। वह बिल्कुल ठीकठाक है और उन्हें कोई बीमारी नहीं है। हो सकता है कि मेरी सरकार तुम्हारे अब्बू को कुछ दिन जेल मे रख कर छोड़ दे तब तुम आराम से अपने अब्बू के पास जाकर रह सकती हो। वह अविश्वास भरी निगाहों से मुझे देख रही थी। मैने जल्दी से अपने दिल पर हाथ रख कर कहा… खुदा की कसम। एक पल के लिये वह सिर झुका कर बैठी रही फिर अचानक वह झपट कर मुझसे लिपट गयी और मुझे अपनी बाँहों मे जकड़ कर बोली… तुमने खुदा की कसम उठाई है। मैने जल्दी से उसे अपने से अलग करते हुए कहा… तुम मेरा कन्धा खराब करके ही मानोगी। हल्का सा दबाव पड़ने से दर्द होता है। वह तुरन्त मेरा कन्धा धीरे से सहलाते हुए बोली… सौरी। मुझे माफ कर दिजिये। एकाएक घर का माहौल बदल गया थ।

दो दिन और ऐसे ही निकल गये थे। आफिस मे बैठ कर मै सारी फाइल्स, पेन ड्राईव और पेपर्स देख रहा था। गद्दारों की लिस्ट बढ़ती जा रही थी। जिहादियों के फोन का स्टैन्डर्ड प्रोटोकोल बन गया था। उनकी कोन्टेक्ट लिस्ट निकाले और व्हाट्स एप के सारे सद्स्यों का नाम निकाल कर क्रास रेफ़्रेन्सिंग करके सभी लोगों की जानकारी काउन्टर इन्टेलीजेन्स विंग के पास जाने लगी थी। अगले दो दिन कुछ को उन्होंने हूरों से मिलने भेज दिया था और कुछ को अपना मुखबिर बनने के लिये मजबूर कर दिया था। ब्रिगेडियर चीमा और ब्रिगेडियर शर्मा ने राज्य के आतंकी नेटवर्क की कुछ ही दिनों मे कमर तोड़ दी थी। मेरा सारा समय आफिस मे फाइलें पढ़ने मे गुजर रहा था और घर उन तीनो लड़कियों से गुलजार हो गया था। रात को खाना खाने के बाद मेरे लैपटाप पर तीनो लड़कियाँ हिन्दी फिल्म देखने बैठ जाती थी। इतने दिनो मे एक बार भी नीलोफर ने मुझसे बात नहीं की थी क्योंकि अब वह ब्रिगेडियर चीमा से निर्देश लिया करती थी।

श्रीनगर मे भी बर्फबारी आरंभ हो गयी थी। मुजफराबाद का रास्ता भी बन्द हो गया था। मेरा ट्रस्ट का काम भी मेजर हसनैन ने संभाल लिया था। तीनों के साइन किये पेपर्स वापिस मिलते ही फैयाज खान ने शमा बट फाउन्डेशन का पंजीकरण करवा दिया था। उसके साथ ही फाउन्डेशन का अकाउन्ट खुलवा कर अम्मी के अकाउन्ट के सारे पैसे आसानी उसमे ट्रांस्फर हो गये थे। फोन पर आफशाँ से एक दो दिन मे बात हो जाती थी। हफ्ते मे एक बार आसिया और अदा से भी उनके हालचाल पूछ लेता था। एक दोपहर को जन्नत और आस्माँ को लेकर मै अपने फाउन्डेशन का काम देखने के लिए निकल गया था। मेजर हसनैन अली हमारे घर के जीर्णोंद्धार का काम देख रहे थे। गेस्ट हाउस का काम लगभग पूरा हो गया था। वही पर किनारे मे फाउन्डेशन का एक छोटा सा आफिस बना लिया था। हम चारों लान मे बैठ कर शमा बट फाउन्डेशन के कार्य पर चर्चा कर रहे थे। …मेजर साहब आप आगे क्या काम करने की सोच रहे है? …समीर, यहाँ पर महिलाओं और बच्चों के कार्यक्रम आरंभ करने की सोच रहा हूँ। जैसे गरीब महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई और हस्तशिल्प का प्रशिक्षण दिया जाए तो उनके परिवार की बदहाली मे काफी बदलाव लाया जा सकता है। गरीब बच्चों के लिए खेल-कूद द्बारा पढ़ाई के बहुत से देशव्यापी कार्यक्रमों मे से किसी एक को चुन कर यहाँ पर आरंभ किया जा सकता है। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि जमात-ए-इस्लामी के मदरसों के सामने एक विकल्प खड़ा किया जाए। …मेजर साहब आप इन कार्यक्रमों का सालाना बजट तैयार कीजिए उसके बाद हम बैठ कर उस पर चर्चा करेंगें। बस इतनी बात करके हम वापिस चल दिये थे।

मैने नोट किया था कि दोनो बहनें बड़े ध्यान से सारी बात सुन रही थी। रास्ते मे मैने पूछा… जन्नत तुम्हारा इसके बारे मे क्या विचार है? वह कुछ सोच कर बोली… ऐसे कार्यक्रम तो नये नहीं है। यह सब तो हमने किश्तवार मे बहुत जगह पर देखे है। हम इसी बारे मे बात करते हुए घर पहुँच गये थे। मैने महसूस किया था कि दोनो बहनें पहली बार किसी विषय मे इतनी रुचि दिखा रहीं थी। रात को डाईनिंग टेबल पर जन्नत ने कहा… मेजर साहब के साथ मिल कर हम दोनो इस काम मे उनका हाथ बटाना चाहती है। किश्तवार और बांदीपुरा मे हमारे समाज के बहुत से लोग रहते है। हम दोनो बहने उनके लिये कुछ करना चाहती है। मेजर साहब की बात सुन कर हमे लगता है कि हम दोनो भी बहुत कुछ सीख सकती है। मैने उनका उत्साह बड़ाते हुए कहा… इससे बेहतर क्या हो सकता है कि तुम अपने समाज के लिये कुछ अच्छा करने की सोच रही हो। आस्माँ ने पूछ लिया… तबस्सुम तुम भी हमारे साथ इस काम मे हाथ बटाओ। मैने मना करते हुए कहा… इसको बक्शो। इसके अब्बा के बाहर आते ही यह उनके पास वापिस चली जाएगी। उसके बाद पता नहीं कि वह यहाँ रहेगी या मुजफराबाद चली जाएगी। एक कारण से वह दोनो तबस्सुम से चिड़ती भी थी क्योंकि उसके रहते हुए मैने दोनो को अपने कमरे मे आने से मना कर दिया था।

एक शाम नीलोफर का फोन आया… समीर, मुझे तो तुमने भुला दिया है। मेरे पास तबस्सुम बैठी हुई थी मैने जल्दी से उसका हाथ पकड़ कर अपने पास खींच लिया था। फोन को स्पीकर पर डाल कर मैने कहा… मजाक कर रही हो। अब तुम ब्रिगेडियर साहब से बात करने लगी हो। उनके और मेरे बीच दो रैंक का फर्क है। मै एक साधारण मेजर हूँ। मुबारक हो कि तुम्हारी उन्नति हो गयी है। …समीर, मै एक मुश्किल मे फँस गयी हूँ। …क्या हुआ? …तुम्हारे लिये मै तबस्सुम को यहाँ लाने का प्रयास कर रही थी लेकिन… मैने उसकी बात को बीच मे काटते हुए कहा… जिस दिन यह सवाल उठा था मैने उसी दिन तुम्हें मना कर दिया था कि तबस्सुम को इसमे मत घसीटो तो फिर मुझसे बिना पूछे उसे लाने की कोशिश क्यों की थी। …क्या मै तुम्हारे और मिरियम के संबन्धों के बारे मे नहीं जानती थी? अपने दोस्त की खातिर मैने ऐसा किया था परन्तु तुम्हारे बास के हाथ मे मेरी और तबस्सुम की बातचीत की रिकार्डिंग लग गयी है। अब वह मुझ पर दबाव डाल रहे है कि तबस्सुम को उनके हवाले कर दूँ।

कुछ रुक कर मैने कहा… इसमे मुश्किल क्या है। उसे मेरे लिये लायी थी तो इतने दिन उसे मुझसे दूर क्यों रखा था। अब जब ब्रिगेडियर साहब उसे मांग रहे है तो कर दो उनके हवाले इसमे भला मै क्या कर सकता हूँ। …यही तो मुश्किल हो गयी है कि तबस्सुम ने आखिरी समय पर अपना मन बदल लिया और वह वहाँ नहीं पहुँची जहाँ उसे पहुँचना था। मैने ब्रिगेडियर साहब को इतना समझाया परन्तु वह मेरी बात मानने को तैयार नहीं है। वह कह रहे कि तबस्सुम उसी रोज से अपने घर से गायब है। अब तुम ही बताओ कि मै उन्हें कैसे यकीन दिलाऊँ? …नीलोफर, वह मेरे बास है। मै उन्हें सिर्फ कह सकता हूँ लेकिन उन पर कोई दबाव नहीं डाल सकता। वह किस बात की धमकी दे रहे है? …यही कि वह फारुख को बता देंगें कि मैने तबस्सुम का अपहरण करवाया है। …मै अपने सीओ को अच्छे से जानता हूँ कि जब तक तुमने कोई दबाव नहीं डाला होगा तब तक वह ऐसा कदम कभी नहीं उठाते। तुमने उनसे क्या कहा था? एकाएक नीलोफर चुप हो गयी थी।

…हैलो। …समीर मैने सिर्फ इतना कहा था कि मेरे दोनो ट्रक छोड़ दो। …उन ट्रकों मे क्या था? …एक मे रुपये थे और दूसरे मे ड्र्ग्स थी। अब तुम ही सोचो बिना पैसे के सारी तंजीमे मेरे खिलाफ हो जाएँगी। मेरी मदद करने के बजाय वह मुझे ही मरवाने पर तुल जाएँगें। क्या फारुख तुम्हारे लिये काम करने के लिये तैयार हो गया है? …मुझे पता नहीं। मै आज कल कुछ और काम मे लगा हुआ हूँ। ठीक है एक बार उनसे बात करने की कोशिश करुँगा लेकिन मुझे नहीं लगता कि वह मेरी बात मानेंगे। मेरी बात सुन कर नीलोफर ने लाईन काट दी थी।

तबस्सुम मेरे सीने पर सिर रख सारी बात सुन रही थी। …सुन लिया तुमने अपनी बाजी की कहानी। वह उठ कर बैठ गयी और मेरी ओर देख कर बोली… तुम्हारा मेरी फूफी के साथ क्या सबन्ध था? उसका सवाल सुन कर मेरे दिमाग मे खतरे की घंटी बज गयी थी। मै भी उठ कर बैठते हुए बोला… तुम्हे उस दिन बताया तो था कि मेरे अब्बा मकबूल बट का निकाह तुम्हारी फूफी मिरियम के साथ हुआ था। मेरी बात सुन वह चुप तो हो गयी थी परन्तु उसके चेहरे से साफ लग रहा था कि वह अभी भी किसी सोच मे उलझी हुई थी। …समीर, फिर वह यह क्यों कह रही थी कि तुम्हारे लिये वह मुझे यहाँ बुला रही थी। बात टालने के लिये मैने कहा… तुम्हारी बाजी पाँच बात बोलती है तो उसमे से चार झूठ होती है। …तुम मुझे अगर सच नहीं बोलोगे तो मै बाजी को फोन करके पूछ लूंगी। उसकी धमकी सुनते ही मुझे लगा कि अब इसे बताना ही पड़ेगा। मैने फारुख को दी हुई धमकी के बारे मे बता कर कहा कि तुम्हारे अब्बू पर दबाव डालने के लिये मैने ऐसा बोला था। किसी जासूस का मुँह खुलवाने के लिये फौज मे या तो टार्चर करते है या उसके किसी परिवार के आदमी के द्वारा उस पर दबाव डालते है। तुम्हारे अब्बू एक फौजी अफसर थे तो मै नहीं चाहता था कि उनके साथ टार्चर किया जाए इसीलिये तुम्हारा नाम लेकर मैने उन पर दबाव डालने की कोशिश की थी। यह भी सच है कि उनके सेल से बाहर निकलते ही मैने सभी से मना कर दिया था कि तुम्हें इसमे घसीटने की कोशिश न करें। मैने किसी तरह उस दिन बात संभाल ली थी परन्तु कब तक ऐसा रख सकूँगा इसका पता मुझे खुद को भी नहीं था।

ब्रिगेडियर चीमा से तो वैसे ही रोज मुलाकात हो जाती थी लेकिन आप्रेशनल मुद्दों पर अब हमारी बात नहीं होती थी। मेरा काम अब मेज तक ही सिमित रह गया था। ऐसे ही दिन निकलते जा रहे थे। तबस्सुम भी अपने अब्बू से मिलने की रोज बात करने लगी थी। मै जैसे-तैसे कोई कहानी बना कर टाल रहा था। नीलोफर और तबस्सुम ने जिस तरह का वर्णन किया था उसके परिपेक्ष मे मुझे तबस्सुम की चिंता होने लगी थी। आप्रेशन आघात के कारण डेढ़ साल से मै छुट्टी पर भी नहीं जा सका था। आफशाँ का भी काम फैलता चला जा रहा था और मेनका का भी स्कूल शुरु हो गया था। हर तरफ मै अपने आपको उलझनों मे घिरा पा रहा था लेकिन कोई उनका हल दूर-दूर तक नहीं दिख रहा था।

 

मुजफराबाद

आलीशान वैभवपूर्ण कमरे मे पीरजादा मीरवायज गहरी सोच मे डूबा हुआ था। उसके सामने आईएसआई का निदेशक जनरल मंसूर बाजवा और जकीउर लखवी बैठे हुए थे। …पीरजादा साहब, अब आगे के बारे मे क्या सोचा है?  पीरजादा ने अपनी दाड़ी पर धीरे से हाथ फिरा कर धीरे से कहा… आप लोग अपना काम देखिये। वह नामुराद लड़की दुनिया के किसी भी कोने मे छिप जाये लेकिन वह छिनाल ज्यादा दिन बच नहीं सकेगी। मंसूर बाजवा जल्दी से बोला… पीरजादा साहब इस वक्त हमारे लिये फारुख प्राथमिकता है। हमारे लोगों का मानना है कि फारुख अपनी बेटी को बचाने के लिये श्रीनगर से गायब हुआ है। आपका एक वक्तव्य सारी स्थिति को संभाल सकता है। क्या कुछ दिनों के लिये उस लड़की को भुलाया नहीं जा सकता? …जनरल साहब, मै अपने लोगों को क्या मुँह दिखाऊँगा। तभी जकीउर लखवी जो अब तक चुप बैठा हुआ था वह बोला… जनाब बहुत कुछ दाँव पर लगा हुआ है। एक छिनाल के कारण हमारे मंसूबे को धवस्त मत किजिये। …पीरजादा साहब, जकीउर लखवी सही बोल रहा है। सभी तंजीमों का भी यही विचार है। गुनाहगार को सजा जरुर मिलेगी परन्तु फिलहाल आपकी ओर से एक वक्तव्य फारुख को आश्वस्त कर देगा। अबकी बार पीरजादा ने कुछ सोच कर धीरे से अपना सिर हिला कर कहा… जनाब आप्रेशन खंजर को क्या कुछ समय के लिये मुल्तवी नहीं किया जा सकता है? बाजवा तुरन्त बोला… हर्गिज नहीं। अब जमीन पर उस योजना को उतारने का समय आ गया है। बहुत कुछ दाँव पर लगा हुआ है इसलिये अब पीछे हटना मुम्किन नहीं है।

…ठीक है। मै आपकी बात से सहमत हूँ। उस छिनाल के लिये सब कुछ दाँव पर नहीं लगाया जा सकता। इस जुमे की तकरीर मे अबकी बार मै फारुख के नाम अपना पैगाम दे दूँगा। लखवी तुरन्त उठा और घुटनों के बल बैठ कर पीरजादा का हाथ चूम कर बोला… इस बार जैश और लश्कर दुश्मन के सीने को छलनी करने के लिये तैयार है। पीरजादा ने उठते हुए कहा… आमीन। मंसूर बाजवा भी उनके साथ उठते हुए बोला… मकबूजा कश्मीर मे हमारे सारे एजेन्ट एक्टिव हो गये है। फारुख तक आपका पैगाम पहुँच जाएगा। इतनी बात करके तीनो उस कमरे से बाहर निकल गये थे।

रविवार, 19 फ़रवरी 2023

  

काफ़िर-42

 

अँधेरा गहरा होता जा रहा था। बिजली के बल्बों से मुजफराबाद का बाजार रौशन हो गया था। खरीदारों की भीड़ भी बढ़ गयी थी। …बानो आओ चले। वह उठ कर खड़ी हो गयी और चुपचाप मेरे पीछे चल दी थी। मै बाजार से निकल कर तंग गलियों से होते हुए अन्दाजन हाईवे की दिशा मे चल पड़ा था। एक घंटे चलने के बाद हम मुजफराबाद शहर से बाहर निकल आये थे। एस-3 हाईवे पर पहुँच कर पेड़ों की आढ़ लेकर गंतव्य स्थान की दिशा मे चल दिये थे। सड़क के किनारे लहलहाते खेतों के साथ हमारे सामने पहाड़ सिर उठाये खड़ा था। अब हमे सड़क पर चलने वाले लोगो की नजरों से बच कर खेतों के रास्ते से होते हुए पहाड़ की तलहटी तक पहुँचना था। वह खालाओं जैसा बुर्का पहने मेरे पीछे चल रही थी। शहर मे बुर्का पहने स्त्री पर कोई दूसरी बार नजर नहीं डालता परन्तु इस वीराने मे बुर्कापोश स्त्री दूर से किसी का ध्यान खींचने के लिये काफी थी। अंधेरा घना होता जा रहा था तो मैने महसूस किया कि अब उसका हुलिया बदलने का समय आ गया है। चारों ओर नजर घुमा कर देखने के बाद उसका हाथ पकड़ कर खींचते हुए मै उसे पेड़ों के झुरमुट के पीछे ले गया। वह अपना हाथ झटकार कर छुड़ाते हुए घुर्रा कर बोली… बड़े मियाँ आप यह क्या कर रहे है।

झाड़ियो और पेड़ की आढ़ मे पहुँच कर मैने कहा… बानो, अपना बुर्का उतारो। …बड़े मियाँ, आप यह क्या कह रहे है। मै आपके सामने बेपर्दा नहीं हो सकती। मेरा धैर्य अब अपने चरम पर पहुँचने लगा था। …बानो क्या तुम कंपनी बाग मे घूमने जा रही हो। वह चिढ़ कर बोली… बड़े मियाँ आप कैसा मजाक कर रहे है। आपको नहीं पता कि कहाँ जाना है। …तो वहाँ कैसे जाओगी। इस तरफ पाकिस्तान की फौज और सीमा के दूसरी ओर भारत की फौज बैठी हुई है। वह किसी को भी सीमा पर देख कर बिना चेतावनी के गोली मार देते है। अब तुम्हें सोचना है कि तुम्हें बेपर्दा होना है या तुम शहादत देने की ठान के आयी हो। मेरी बात सुन कर शायद पहली बार उसको इस नये खतरे का एहसास हुआ था। उसके मुख से अनायस ही निकल गया… हाय अल्लाह। …बानो जल्दी करो। पूरी रात चलना है। दिन की पहली रौशनी से पहले हमे हिन्दुस्तान मे दाखिल हो जाना है। मेरे पास उसके लिये अब समय नहीं था। मैने घुर्रा कर कहा… बानो मै जा रहा हूँ। अगर मेरे साथ चलना है तो इसे जल्दी से उतारो वर्ना वापिस चली जाओ। यह बोल कर मै चलने लगा। वह जल्दी से मेरी ओर बढ़ी और मेरा हाथ पकड़ कर बोली… बड़े मियाँ, ठहरिये उतार रही हूँ। उसने पहले अपनी चिलमन हटाई और फिर धीरे से बुर्के के बटन खोलने आरंभ किये। अब तो मेरे धैर्य की इन्तिहा हो गयी थी।

मै आज की रात हर हालत मे पाकिस्तानी सीमा पार करना चाहता था। मै आगे बढ़ा और उसके बुर्के को पकड़ कर एक झटका दिया तो अगले ही पल सारे बटन एक ही बार मे या तो खुल गये और जो नहीं खुल सके थे वह सिलाई समेत उधड़ कर जमीन्दोज हो गये थे। उसके कुर्ते को देख कर मैने अपने सिर पर हाथ मारा क्योंकि चमकीली कढ़ाई का नमूना मेरी आँखों के सामने था। मैने जल्दी से अपने बैग से अपना कुर्ता निकाल कर जमीन पर कुछ देर रगड़ कर उसकी ओर बढ़ाते हुए… इसको पहन लो। अबकी बार उसने बिना किसी हील-हुज्जत के चुपचाप गन्दी मिट्टी से अटे हुए कुर्ते को पहन लिया। अंधेरे मे मुझे उसका चेहरा तो साफ नहीं दिख रहा था परन्तु कद-काठी से वह एक जवान स्त्री दिख रही थी। एक बार दिमाग मे आया कि उसका नाम पूछ लिया जाये परन्तु फिर कुछ सोच कर चुप हो गया था।

एक नजर उसके कपड़ो पर मार कर मैने उसके बुर्के को बीच मे से फाड़ कर दो भागों मे कर दिया। पहले उसकी लम्बी सी गुथी हुई चोटी को पकड़ कर मरोड़ कर एक जूड़े मे तब्दील किया और फिर बुर्के के कपड़े के एक हिस्से को उसके सिर पर पगड़ी की तरह बाँध कर अलग हो गया। वह कुछ पल वहीं खड़ी मुझे घूरती रही परन्तु बोली कुछ नहीं। उससे निगाह मिलाते हुए मैने बचे हुए कपड़े को उसके चेहरे पर बाँध कर ढक दिया था। अंधेरे मे अपनी कलाकारी पर एक नजर मार कर मैने कहा… अब ठीक है। आओ चलो। अंधेरे का सहारा लेकर हम दोनो पगडंडी पकड़ कर खेतों की ओर निकल गये थे। एक घंटे चलने के बाद हम पहाड़ की तलहटी पर पहुँच गये थे। मैने रुक कर दिशा ज्ञान के अनुसार अपने दिमाग मे बिठाये हुए चिन्हों को पहचानने की अंधेरे मे कोशिश कर रहा था। मेरी आँखें पहाड़ी दर्रे की तलाश कर रही थी। जब कुछ नहीं सूझा तो आगे बढ़ गया। हमे चलते-चलते काफी समय हो गया था परन्तु अभी तक वह पहाड़ी नाला नहीं मिला था जिसके साथ-साथ चलते हुए मै उतर कर यहाँ पहुँचा था। …बड़े मियाँ क्या तलाश कर रहे है? मैने कुछ बोलना उचित नहीं समझा और आगे बढ़ गया। कुछ ही दूर चलने के बाद बहते पानी की आवाज सुन कर मै तेजी से उस दिशा की ओर चल दिया। वह पीछे रह गयी तो मैने रुक कर उसे झिड़कते हुए कहा… बानो, एक बात गाँठ बांध लो कि मै अब रुक नहीं सकता। इसलिये अब यहाँ से तुम्हें मेरे साथ कदम से कदम मिला कर चलना पड़ेगा। थोड़ी दूर चलते ही नाले के साथ बना हुआ वह दर्रा भी मिल गया था जहाँ से मै पहाड़ से नीचे उतरा था।

उसकी आवाज मेरे कान मे पड़ी… बड़े मियाँ थक गयी हूँ। अब आगे नहीं चला जाता। अबकी बार मैने प्यार से समझाते हुए कहा… बानो, आगे खड़ी चढ़ाई है। एक बार हम पहाड़ पर चढ़ गये फिर आगे का रास्ता आसान है। वहाँ पहुँच कर आराम भी कर लेना और कुछ खा भी लेना। सारी रात चलना है। बिना कुछ कहे वह लड़खड़ाती हुई मेरे पीछे चल दी थी। अंधेरे मे अपना हाथ भी नहीं दिख रहा था फिर भी जैसे तैसे हम आगे बढ़ते जा रहे थे। अब तापमान भी अचानक गिर गया था। सर्दी ने अपना प्रकोप दिखाना आरंभ कर दिया था। पता नहीं मुझे कि वह कैसे मेरे साथ चल रही थी परन्तु हर पल मै अपने गंतव्य की ओर बढ़ता चला जा रहा था। खड़ी चड़ाई पर एक दूसरे को सहारा देते हुए लड़खड़ाते हुए हम बढ़ते जा रहे थे। इस बीच उसने एक बार भी रुकने के लिये नहीं कहा था। पहाड़ के समतल स्थान पर पहुँच कर एक सुरक्षित स्थान को देख कर मै धम्म से जमीन पर बैठ गया और वह भी लड़खड़ाते हुए मेरे साथ बैठ गयी थी। हम दोनो हाँफ रहे थे। एक ओर पहाड़ की चट्टानों की आढ़ थी और सामने लम्बे चीनार और देवदार के पेड़ हमे सुरक्षा दे रहे थे। कुछ समय हमे अपनी साँसों को नियन्त्रण करने मे लग गया था।  

मैने अपना बैग खोला और रुमाली रोटी मे कुछ सालन रख कर उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा… बानो। लम्बा सफर है। कुछ खा लो। वह चुपचाप बैठ कर खाने लगी। कुछ देर आराम करने के बाद मैने कहा… आगे का रास्ता आसान है परन्तु जरा सावधान रहना क्योंकि यहाँ से पाकिस्तानी फौज की पोस्ट अब ज्यादा दूर नहीं है। मैने बैग से अपनी घड़ी निकाल कर अपनी कलाई पर बाँधते हुए समय पर नजर डाली तो रात का दूसरा पहर समाप्त होने वाला था। पाकिस्तानी सीमा के लिये अभी तीन घंटे का सफर बकाया था। मै चलने के लिये उठ कर खड़ा हो गया और मुझे देख कर वह भी उठ कर खड़ी हो गयी थी। एक बार फिर से हमारा सफर आरंभ हो गया था।

दो घन्टे चलने के बाद हम उस मोड़ पर पहुँच गये थे जहाँ से पाकिस्तानी पोस्ट कुछ दूरी पर थी। अब हमे एक लम्बा चक्कर लगा कर पाकिस्तानी सीमा को पार करना था। मै एक पल के लिये रुक कर अपने दिल की धड़कन की आवाज को अनसुना करके आसपास का जायजा ले रहा था कि अचानक कुछ कदमों की आहट और बातचीत की आवाज मेरे कान मे पड़ी। मेरे पीछे चलती हुई वह अपने झोंक मे आगे बढ़ती चली गयी थी। मैने उसकी ओर छलांग लगायी और उसे अपनी बाँहों मे जकड़ कर जमीन पर लोट कर चट्टान की आढ़ मे चला गया। इस चक्कर मे लुढ़कते हुए मेरा घायल कन्धा सीधे जाकर चट्टान से टकरा गया और अगले ही क्षण भीषण पीड़ा की तीव्र लहर मेरे जिस्म मे दौड़ गयी थी। बस किसी तरह मेरी चीख मुँह मे घुट कर रह गयी थी। वह मेरे नीचे दब कर कसमसायी और मचली परन्तु मेरे वजन के नीचे दबी होने कारण वह हिल भी नहीं पा रही थी। मेरा एक हाथ उसके मुख पर कस गया था। कुछ ही मिनट के बाद तीस मीटर की दूरी से पाकिस्तानी रेन्जर्स का एक दल बात करता हुआ हमारे सामने से निकल गया था। हम उनसे बाल-बाल बचे थे। मेरी धड़कन मुझे अपने कानों मे सुनाई दे रही थी। मै उस पर पड़ा रहा जब तक वह लोग मेरी आँखों के सामने से ओझल नहीं हो गये थे।

मेरे एक हाथ ने काम करना बन्द कर दिया था। मैने अपना कम्बल संभाला और उस पर से हट कर एक किनारे मे अपना हाथ पकड़ कर बैठ गया। वह कुछ दबे स्वर मे बड़बड़ायी लेकिन दर्द से मेरा सिर भन्ना रहा था। कुछ देर हम वहीं चट्टान की आढ़ मे बैठे रहे और मै उस दल के लौटने की राह देख रहा था। बीस मिनट के बाद वह दल बात करता हुआ हमारे सामने से चलता हुआ अपनी पोस्ट की ओर निकल गया था। उनके जाने के बाद मुझे अपने निष्क्रिय हाथ का ख्याल आया। अचानक मैने महसूस किया कि मेरे कुर्ते की बाँह गीली हो गयी है। खून की चिचिपाहट महसूस करते ही मैने अपने बैग से एक कपड़ा निकाला और उसे फाड़ कर उसके हाथ मे देते हुए दबे स्वर मे कहा… बानो, मेरे कन्धे से शायद खून बह रहा है इसलिये इस कपड़े से मेरे कन्धे और बाँह को जकड़ कर बांध दो जिससे खून का दौरा धीमे हो जाये। वह कुछ पल अंधेरे मे मुझे घूरती रही फिर मेरे हाथ से कपड़ा लेकर बड़ी बेदर्दी से मेरा कन्धा बाँध कर बोली… और टाइट कर दूँ। मै उसके गुस्से को समझ सकता था इसलिये बिना कुछ कहे एक बार अपना हाथ धीमे से हिला कर कसाव को महसूस करके कहा… …शुक्रिया। इतना काफी है।

मै उठ कर खड़ा हो गया। …आओ चले। एक बार फिर से उसी रास्ते पर निकल गये थे जिस दिशा मे पेट्रोलिंग दल गया था। चट्टानों को पार करते हुए हम उस जगह पर पहुँच गये थे जहाँ से कुछ दूरी पर कँटीले तारों की बाढ़ दिखाई दे रही थी। …बानो, आगे का रास्ता खतरनाक है तो संभल कर चलना। हम दोनो एक दूसरे का सहारा देते हुए एक-एक कदम जमाते हुए आगे बढ़ते चले जा रहे थे। अभी भी वह पहाड़ी नाला नहीं आया जिसके साथ चलते हुए मै पाकिस्तान की सीमा मे दाखिल हुआ था। वहाँ बाढ़ टूटी हुई थी। अंधेरे मे उबड़ खाबड़ रास्ते पर चलते हुए एक बार फिर से तेज पानी के बहाव की आवाज सुन कर दिशा ज्ञान के अनुसार मै उस ओर चल दिया। मुश्किल से कुछ कदम ही चले थे कि तभी टप से मेरे सिर पर कुछ गिरा और फिर फूल से रोएँ जैसी बर्फ की बारिश आरंभ हो गयी थी। अंधेरे मे कहीं कोई सिर ढकने की जगह नहीं दिख रही थी। ठंड से दांत किटकिटाने लगे थे। बर्फबारी मे चट्टानों पर चलना और कठिन हो जाता है। हमेशा फिसलने और रपटने का अंदेशा बना रहता है।

कँटीले तारों की बाढ़ की ओर अंधेरे मे इशारा करते हुए मैने कहा… बानो, बस वह तार देख रही हो। उसके पार जाना है। मैने उसका हाथ पकड़ा और संभल कर चट्टान पर पाँव जमाते हुए खाली जगह की दिशा मे चल दिया। बर्फ की पहली फुहार चट्टान पर पड़ कर एक चादर के जैसे जमीन को ढकती जा रही थी। फिसलन के कारण बगल मे बहते हुए बर्फीले पानी के नाले मे गिरने का भी खतरा सदैव बना हुआ था। एक दूसरे को संभालते हुए और सहारा देते हुए हमने तारों की बाढ़ पार करके भारतीय सीमा मे प्रवेश कर गये थे। सुबह के पाँच बज रहे थे परन्तु अभी भी गहरा अंधेरा बना हुआ था। एकाएक मुझे महमूद की बात याद आ गयी थी। …जनाब हमारी तरफ तो वैसे ही कोई खतरा नहीं है। हमारे लिये खतरा तो तार पार करने पश्चात आरंभ होता है।  उसका हाथ थामे मै चलता चला गया था। वह भी घिसटते हुए और कभी लड़खड़ाते हुए मेरे साथ कदम से कदम मिला कर चल रही थी। सीमा पार किये एक घन्टा हो गया था। बर्फबारी मे आगे बढ़ना मुश्किल होता चला जा रहा था। एक स्थान पर पहुँच कर मै रुक गया। यहाँ पेड़ों का जाल ऐसा बुना हुआ था कि बर्फबारी से काफी हद तक बचाव हो रहा था। घनी झाड़ियों को देख कर मैने कहा… बानो कुछ देर आराम कर लेते है। पेड़ों के नीचे घनी झाड़ियों की आढ़ मे छिप कर हम दोनो बैठ गये थे।

चलते हुए सर्दी का कहर महसूस नहीं हुआ था परन्तु बैठते ही कुछ देर मे ही लहू जमा देने वाली ठंड महसूस होने लगी थी। अपना कम्बल मैने अपने चारों ओर कस लिया परन्तु फिर भी ठंड महसूस हो रही थी। वह मेरे पास सरक कर बोली… बड़े मियाँ ठंड लग रही है। मैने जल्दी से कम्बल का एक सिरा खोल कर उसको ढक दिया परन्तु उसके कारण हम दोनो ही ठिठुरने लगे थे। शर्म और लिहाज को तिलांजली देकर मैने उसे अपनी एक बाँह मे जकड़ कर अपने सीने से लगा कर कम्बल को कस कर चारों ओर लपेट कर बैठ गया। एक बार उसने छूटने की चेष्टा की थी परन्तु हालात को समझते हुए मेरे सीने मे वह अपना चेहरा छिपा कर मेरे आगोश मे सिमट कर बैठ गयी थी। कुछ ही देर मे जिस्मानी गर्मी ने कुछ हद तक कंपा देने वाली सर्दी से हमे निजात दिला दी थी। मेरा एक हाथ सुन्न पड़ा हुआ था जिसे वह अपने सीने से लगा कर बैठी हुई थी। दूसरा हाथ से उसकी पतली कमर को पकड़ कर मैने उसे अपने जिस्म से चिपका रखा था। एक घंटे गिरती बर्फ मे हम एक दूसरे को बाँहों मे बाँधे बैठे रहे थे। मैने अपनी कलाई की घड़ी पर नजर डाली तो सुबह के सात बज रहे थे। बादलों के कारण अंधेरा अभी भी घना था। …आओ चले। वह मुझे पकड़ कर बैठी रही। …बानो, चलने का समय हो गया है। बस एक घंटे का रास्ता बचा है। वहाँ पहुँच कर जितनी देर आराम करना चाहो तुम कर लेना। यहाँ पर खतरा है।

मैने उसे एक बार फिर हिला कर कर कहा… बानो उठो। यह कह कर जैसे ही मै उठने लगा उसने मेरा चोट खाया हाथ और कस कर अपने सीने पर दबा दिया था। मेरा हाथ तो सुन्न था परन्तु उसके दबाव के कारण एक दर्द की लहर ने मेरे सारे जिस्म को हिला कर रख दिया था। मै उस पर बरसता लेकिन उसकी अधखुली आँखों को देख कर मै तुरन्त अपने दर्द को पी गया और हड़बड़ा कर उससे अलग हो गया। मैने जल्दी से कम्बल को अपने जिस्म पर लपेट कर उसे जबरदस्ती उठा कर चल दिया था। मेरे कदम तेजी से बढ़ने लगे थे। वह मेरे पीछे खिंचती हुई चल पड़ी थी। भारतीय सेना की आउटपोस्ट की रौशनी दूर से दिख रही थी। तंगधार अब यहाँ से कुछ घँटो का सफर था। उसे लेकर मै कुछ दूर और चला लेकिन मेरी शक्ति क्षीण होती जा रही थी। एक पुरानी आउटपोस्ट का खंडहर देख कर मै उस ओर बढ़ गया। उस खंडहर मे पहुँचने से गिरती हुई बर्फ से फिलहाल बचाव तो हो गया था। अब कंधे का दर्द असहनीय होता जा रहा था। पेन किलर की डोज लेकर एक साफ जगह देख कर मै जमीन पर फैल गया और वह भी मेरे साथ आकर बैठ गयी थी। मैने अपना कम्बल खोल कर एक सिरा उस पर डाल कर लेट गया। मै कुछ ही देर मे अपनी सपनो की दुनिया मे खो गया था। मुझे याद नहीं वह कब मेरे सीने मे चेहरा छिपा कर सो गयी थी। जब मेरी आँख खुली तब हम दोनो एक दूसरे से गुथे हुए पड़े थे। बर्फ गिरनी बन्द हो गयी थी। बादल होने के बावजूद अब तक दिन निकल आया था। बर्फ की सफेद चादर ने जमीन को ढक दिया था। जैसे ही मैने अपने आप को उससे अलग किया वह करवट लेकर फिर सो गयी थी। अपनी घड़ी पर नजर डाली तो दोपहर के दो बज रहे थे। मै उठ कर उस खंडहर से बाहर निकल गया था।

नित्य कर्म से निवृत होकर जब तक मै लौटा तो देखा कि वह अभी भी कम्बल मे मुँह ढक सो रही थी। मेरा हाथ बिलकुल जाम हो गया था। मैने अपनी बाँह पर नजर डाली तो दिन की रौशनी मे सफेद कुर्ते की बाँह पर कत्थई रंग चढ़ गया था। मै समझ गया कि उस पत्थर की चोट के कारण रात को काफी खून बह गया था। मैने धीरे से उसके चेहरे पर से कम्बल हटाया तो उसका चेहरा देख कर एक पल के लिये मेरी धड़कन रुक गयी थी। उसके चेहरे पर बंधा हुआ कपड़ा खुल गया था। हुबहू मिरियम की छवि मेरी आँखों के सामने थी। कुछ देर तक मै उसके चेहरे मे खो गया था। मुझे अभी भी अपनी नजरों पर यकीन नहीं हो रहा था। मैने धीरे से उसके चेहरे छू कर देखा तो वही रंग और रुप था। मै एक टक उसे घूर रहा था कि अचानक उसकी पल्कें हिली और धीरे से खुली फिर झपकी और एकाएक वह चीख कर उठ कर बैठ गयी। उसकी चीख ने मुझे यथार्थ मे लाकर पटक दिया था। …बानो मै हूँ। सुलेमान। उसने धीरे से अपनी आँखें खोल कर झपकायी और फिर मेरी ओर देखते ही उसकी बड़ी-बड़ी आँखें फैल गयी थी। अपने कन्धे को दिखाते हुए मैने जल्दी से कहा… अब उस गाँठ को खोल दो। उसने उठ कर जल्दी से कन्धे पर बंधी हुई गाँठ को खोल दिया। गाँठ खुलते ही खून का दौरा जोर पकड़ता हुआ सा मुझे लगा तो एक बार उस हाथ को धीरे से हिला कर देखा तो वह हिलने योग्य हो गया था। मै जल्दी से कहा… बाथरुम जाना है तो पीछे चली जाओ। वहाँ पर पानी का इंतजाम भी है। यह बोल कर मैने अपना बैग खोल कर मार्फीन के इन्जेक्शन का एक डोज तैयार किया और अपनी हाथ की नस को ढूंढ कर इन्जेक्शन लगा कर बैठ गया। वह अभी भी आँखें फाड़े मुझे देख रही थी।

वह धीरे से बोली… बहुत दर्द हो रहा है? मैने मुस्कुरा कर कहा… बानो, क्या अब्बा से मिलने नहीं जाना है। बाथरुम के लिये पीछे चली जाओ। हमे अभी कुछ दूर और चलना है। मेरी बात सुन कर अचानक उसे करन्ट सा लगा और वह झपट कर खड़ी हो गयी। मैने उँगली से पीछे की ओर इशारा किया तो वह उस दिशा मे चली गयी। थोड़ी देर के बाद वह मेरे साथ बैठती हुई कांपती आवाज मे बोली… आप कौन है? मैने मुस्कुरा कर कहा… सुलेमान। …नहीं। आप सुलेमान नहीं हो सकते। …चलो। अब तुम तो अपना नाम बता सकती हो? …तबस्सुम। उसका नाम सुन कर मुझे एक धक्का लगा और फिर मन ही मन मैने अपने खुदा का शुक्रिया किया क्योंकि मेरा अंदाजा सही था। नीलोफर अपनी इंश्योरेन्स पालिसी का इंतजाम करने की कोशिश कर रही थी।  …चलो तबस्सुम तुम्हें तुम्हारे अब्बू के पास पहुँचाना है। वह दबे स्वर मे बोली… क्या आप अब्बा के लिये काम करते है? मैने प्यार से उसकी पगड़ी पर हाथ मार कर उसे हटाते हुए कहा… बानो धीरे-धीरे तुम्हें सब पता चल जाएगा। सबसे पहले हमे जल्दी से जल्दी श्रीनगर पहुँचना है। अभी भी वह अविश्वास से मुझे ताक रही थी। कुछ सोच कर मैने कहा… बानो पहले कुछ पेट पूजा कर लेते है। यहाँ से शाम को आगे का रास्ता तय करेंगें। इतना बोल कर अपने बैग से बचाकुचा पैकेट खोल कर उसके सामने रख दिया था।

खाना खाते हुए उसने एक बार फिर पूछा… सच बताईये कि आप कौन है? मैने मुस्कुरा कर कहा… तबस्सुम मै तुम्हारा दुश्मन हर्गिज नहीं हो सकता। वह अभी भी मुझे शक भरी नजरों से देख रही थी। खाना समाप्त करने पश्चात मैने उठते हुए पूछा… क्या सुलेमान को तुम जानती हो? उसने अपना सिर हिला कर मना किया तो मैने हँसते हुए कहा… इसका मतलब यह हुआ कि तुम किसी बूढ़े से आदमी की उम्मीद कर रही थी? वह मेरी बात सुन कर झेंप गयी थी। कोई जवाब देने के बजाय वह जल्दी से उठ कर खड़ी हो गयी थी। दिन ढलना आरंभ हो गया था। कुछ ही देर मे अपना सामान समेट कर हम दोनो तंगधार की दिशा मे चल दिये थे। यहाँ से आगे का रास्ता बेहद आसान था। चीनार और देवदार के पेड़ों की आढ़ मे चलते हुए अंधेरा होने से पहले हमारा आमना-सामना बीएसफ की स्काऊट पार्टी से हो गया था। …हाल्ट। मै वहीं स्थिर खड़ा हो गया था। तबस्सुम मेरा हाथ पकड़ कर मेरी आढ़ मे खड़ी हो गयी थी। उसका जिस्म अनजाने डर से काँप रहा था। …बानो डरो मत। इतना बोल कर मैने अपनी बाँह उसकी कमर मे डाल कर अपने से सटा कर खड़ा हो गया था।

तीन सिपाहियों की स्काउट पार्टी ने हम दोनो कवर कर लिया था। दो सिपाही अपनी मशीन गन तान कर कुछ दूरी पर खड़े हो गये थे। हवलदार रैंक का सिपाही मेरे पास आकर बोला… कौन है भाई? मैने कश्मीरी मे कहा… जनाब हम बक्खरवाल समाज से है। इतना बोल कर मैने अपना पीआरसी कार्ड उसकी ओर बढ़ा दिया था। …समीर बट। …जी जनाब। …यह कौन है? …मेरी बीवी तबस्सुम है। उस हवलदार ने तबस्सुम के चेहरे पर टार्च की रौशनी मार कर मेरी ओर देख कर पूछा… इस वक्त यहाँ क्या कर रहा है? …जनाब, यहाँ से कुछ दूरी पर इसके अब्बा की कब्र है। आज ही के दिन दो साल पहले एक आतंकवादी हमले मे वह फौत हो गये थे। उनकी कब्र पर फातिहा पढ़ने के लिये हम आज यहाँ आये थे। मै जानता था कि उसके समझ मे मेरी कोई बात नहीं आ रही थी। उसके लिये बस वह पीआरसी कार्ड ही मेरी पहचान थी। मै अपनी असलियत अभी जाहिर नहीं करना चाहता था। …कहाँ रहता है? …कुपवाड़ा। कुछ पल वह चुप रहा और कुछ सोच कर मेरा पीआरसी कार्ड मेरी ओर बड़ाते हुए बोला… तेरी घरवाली का कार्ड कहाँ है? …जनाब घर पर है। …कोई बात नहीं। इसे हमारे पास छोड़ जा और तू घर जाकर इसका कार्ड लेकर वापिस आजा। तबस्सुम चुपचाप सारी बात सुन रही थी।

अचानक वह हिली तो मैने उसको कस कर अपने से सटाते हुए पहली बार साफ हिन्दी मे कहा… हवलदार साहिब आप 15 कोर मे वायरलैस पर ब्रिगेडियर चीमा से मेरे बारे मे शिनाख्त कर सकते है। आपने जो अभी मेरी बीवी के बारे मे कहा है वह इसे आपकी पहली गलती समझ कर अनसुना कर रहा हूँ। आप चाहे तो हमे हिरासत मे ले लिजिये। मेरी बात सुन कर हवलदार सकते मे आ गया था। काउन्टर इन्टेलीजेन्स के मुखिया ब्रिगेडियर चीमा के नाम से इस हिस्से मे तैनात सभी लोग परिचित थे। हवलदार तुरन्त बात बदल कर बोला… तुम चीमा साहब को कैसे जानते हो? …जनाब, मै उनके घर पर काम करता हूँ। …तुम दोनो यहीं खड़े रहो। मै अभी आता हूँ। इतना बोल कर वह हमे वहीं छोड़ कर अपने साथियों की ओर चला गया। तबस्सुम को अभी भी मैने अपनी बाँह मे जकड़ रखा था। वह कुछ देर अपने साथियों के साथ मंत्रणा करने के पश्चात वह लौट कर बोला… तुम दोनो जल्दी से दफा हो जाओ क्योंकि शिफ्ट बदलने का समय हो गया है। वह कुछ और बोलता उससे पहले तबस्सुम को लेकर मै तंगधार की दिशा मे आगे बढ़ गया था। अंधेरा गहरा होता जा रहा था।

उस मुठभेड़ के बाद हमारा आमना-सामना किसी और स्काउट पार्टी से नहीं हुआ था। कुछ दूर निकलने के बाद वह चलते हुए बोली… अगर वह दबाव डालते तो क्या आप मुझे उनके पास छोड़ कर चले जाते? मैने मुस्कुरा कर कहा… जब मैने तुम्हें अपनी बीवी बताया तो यह बात उसी वक्त तय हो गयी थी कि मै तुम्हें वहाँ अकेला उनके पास छोड़ कर नहीं जा सकता था। उसके बाद वह कुछ नहीं बोली थी। मेरा कन्धा पके फोड़े की तरह तड़क रहा था। मेरा हाथ पीड़ा से लगातार झनझना कर सुन्न पड़ता जा रहा था। दर्द के कारण चलते हुए मै असावधान हो गया था। अचानक मेरा पाँव उबड़-खाबड़ जमीन पर पड़ा जिसके कारण मै लड़खड़ा गया था। मुझे सहारा देने के लिये उसने तुरन्त आगे बढ़ कर मेरा घायल हाथ पकड़ लिया तो मेरे मुख से एक दर्दभरी आह निकल गयी थी। उसने जल्दी से मेरा हाथ छोड़ कर पूछा… क्या बहुत दर्द हो रहा है? मैने मना करते हुए कहा… बानो कुछ देर यहीं रुक जाते है। इतना बोल कर मै धम्म से जमीन पर बैठ गया था। वह मेरे नजदीक बैठते हुए बोली… अब कितनी दूर है? …अब थोड़ी दूर रह गया है। इतना बोल कर मैने मार्फीन का एक डोज तैयार किया और इन्जेक्शन लगा कर आँख मूंद कर पेड़ का सहारा लेकर बैठ गया। वह चुपचाप मुझे ताक रही थी। वह मेरा हाथ पकड़ कर धीरे सहलाते हुए बोली… आप कुछ देर आराम कर लिजिये। मार्फीन का असर होना आरंभ हो गया था। मुझे याद नहीं लेकिन जब मैने अपनी आँखें खोली तो वह मेरा सिर अपनी गोद मे लिये बैठी हुई थी।

…अब दर्द कैसा है? मैने उठते हुए कहा… बानो, अब ठीक है। आओ चले। इतना बोल कर मै खड़ा हो गया। हम दोनो तंगधार की दिशा मे चल दिये थे। सुबह की पहली किरण निकलते ही हम तंगधार पहुँच गये थे। उसे रोक कर उसकी आँखों मे झाँकते हुए मैने कहा… बानो, यहाँ से आगे तुम्हें बहुत सी बातों का पता चलेगा लेकिन डरने की जरुरत नहीं है। उसने धीरे से अपना सिर हिला दिया था। हम आगे बढ़ गये थे। मेरी जीप मुझे वहीं खड़ी हुई मिल गयी थी जहाँ मैने उसे छोड़ा था। कोई आसपास नहीं दिखा तो मैने जीप का हार्न बजा दिया। अगले ही क्षण मेरा ड्राईवर एक कमरे से निकल कर भागता हुआ बाहर आया और मुझे देखते ही एक करारा सा सैल्युट मार कर बोला… साबजी, वह सामने होटल मे ठहरी हुई है। मै अभी उन्हें बुला कर लाता हूँ। इतना बोल कर वह दौड़ते हुए उनको बुलाने के लिये चला गया था। कुछ ही देर मे दोनो बहने उसके साथ चलती हुई बाहर आ गयी थी। मुझे देखते ही दोनो तेजी से भागते हुए मेरी ओर आयी परन्तु मेरी रंगी हुई बाँह को देख कर दोनो की चीख निकल गयी थी। मैने जल्दी से कहा… कुछ नहीं हुआ है। सब ठीक है। तुमने होटल का हिसाब कर दिया? जन्नत ने जल्दी से कहा… जी। …चलो जीप मे बैठो। अभी बहुत लम्बा सफर करना है। हम लोग जीप मे बैठ कर तुरन्त श्रीनगर की ओर चल दिये थे।

एक बार बीच मे कुछ खाने के लिये रुक कर रात तक हम श्रीनगर मे दाखिल हो गये थे। मैने ड्राइवर से कहा… पहले कमांड अस्पताल चलो। यह हाथ दिखाना है। थोड़ी देर मे कमांड अस्पताल की इमर्जेन्सी मे अपना कन्धा दिखाने पहुँच गया था। उन्होंने घाव का निरीक्षण किया और दोबारा बैन्डेज करके मेरे हाथ को स्लिंग मे डाल कर कहा… मेजर साहब, इन्फेक्शन हो गया था। उसका इलाज कर दिया है लेकिन इसे हाथ को स्थिर रखिये वर्ना यह घाव नहीं भरेगा। उन्होंने कुछ गोलियाँ खाने के लिये देकर मुझे जाने की इजाजत दे दी थी। अपना इलाज करा कर मै दूसरी मंजिल पर स्थित आईसीयू की ओर चला गया था। ड्युटी डाक्टर से मैने मकबूल बट के बारे पूछा तो पता चला कि अब उसकी तबियत स्थिर हो गयी है लेकिन अभी भी वह बेहोश है। यह जानकारी लेकर मै अस्पताल से बाहर निकल कर जीप के पास पहुँचा तो तबस्सुम के चेहरे पर हवाईयाँ उड़ी हुई थी। जब से तंगधार मे हमारे बीच मे बातचीत हुई थी उसके बाद से तबस्सुम चुप हो गयी थी। मै जानता था कि उसकी समझ से सब कुछ बाहर है लेकिन मैने फिलहाल कोई सफाई देने की कोशिश नहीं की थी। अपने घर पहुँच कर मैने कहा… तबस्सुम इसे अपना घर समझो। आज इनके साथ इनके कमरे मे सो जाओ। कल तुम्हारे लिये दूसरा इंतजाम कर दूंगा। अब मै सोने जा रहा हूँ। बस इतना बोल कर मै अपने कमरे मे चला गया और बिस्तर पर पड़ते ही अपने सपनों की दुनिया मे खो गया था।    

 

इस्लामाबाद

जनरल मंसूर अपने सामने बैठे हुए अफसरों पर नाराज हो रहा था। …फारुख कँहा है। उसकी किसी को खबर नहीं है। जमात -ए-इस्लामी की ताजपोशी के दिन से वह गायब है। हमारे लोग क्या कर रहे है? …जनाब, नीलोफर को पता है। वही फारुख के साथ लगातार संपर्क मे है। जिस दिन ताजपोशी होनी थी उस दिन फारुख के कहने पर उसे मुल्तवी कर दिया गया था। शायद उसे पहले से किसी खतरे का अंदाजा हो गया था। दूसरा अफसर अचानक उसकी बात को काटते हुए बोला… जनाब, मुजफराबाद से फारुख की बेटी तबस्सुम अपने किसी यार के साथ भाग गयी है। जैश के लोग तीन दिन से कुत्तों की तरह सारे इलाके को छान रहे है। इसकी पुष्टि अभी तक मीरवायज परिवार ने नहीं किया है परन्तु हमारे स्काउट ने यह खबर दी है। जनरल मंसूर जोर से दहाड़ा… उन हरामखोरों को वहाँ पर किस लिये तैनात किया था। उस घर के लोगों पर चौबीस घंटे निगाह रखने के लिये उन्हें वहाँ छोड़ा था तो वह लड़की उनकी निगाह से बच कर कैसे निकल गयी। जनरल मंसूर गुस्से मे चहलकदमी करने लगा था।

एक अफसर जो अभी तक चुप था वह बोला… जनाब, उस लड़की का फोन बरामद कर लिया है। गायब होने से पहले उसके नम्बर पर तीन काल श्रीनगर से आयी थी। हमारा अनुमान है कि वह नम्बर फारुख या नीलोफर का हो सकता है लेकिन अभी तक पुष्टि नहीं हो सकी है। …नीलोफर से बात हुई? …नहीं जनाब। इस वक्त नीलोफर के खिलाफ सेना की ओर से नोटिस निकला हुआ है तो सावधानीवश हम उसको सीधे काल नहीं कर रहे है। लखवी के जरिये ही हमे श्रीनगर की सूचना मिल रही है। मेरी बात जकीउर लखवी से हुई थी और मैने उसे फारुख का पता लगाने के लिये कहा है। मकबूल बट अभी भी अस्पताल मे है तो जमात का कनेक्शन भी फिलहाल के लिये कटा हुआ है। जनरल मंसूर ने पूरी ताकत से मेज पर हाथ मार कर कहा… हमारे जितने भी एजेन्ट कश्मीर मे बैठे हुए उन्हें तुरन्त एक्टिव कर दो। फारुख का पता लगना बेहद जरुरी है।

एक वृद्ध अफसर बोला… जनाब, मुझे एक शक हो रहा है। कहीं फारुख अपनी बेटी ढूंढने के लिये तो नहीं गायब हुआ है? उस बुढ्ढे मीरवायज के हाथ अगर वह लड़की लग गयी तो उसका हश्र बेहद दर्दनाक होगा। इसी कारण फारुख अपनी बेटी को बचाने के लिये यहाँ न पहुँच गया हो? जनरल मंसूर अपनी कुर्सी पर बैठ कर बोला… एक छिनाल के लिये पूरा आप्रेशन खतरे मे पड़ गया है…लाहौल विला कुव्वत। इतना बोल कर वह गहरी सोच मे डूब गया था।  

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2023

  

काफ़िर-41

 

अगली सुबह तैयार होकर मै अपने आफिस चला गया था। ब्रिगेडियर चीमा के आफिस मे सभी बैठे हुए फारुख के विषय पर चर्चा कर रहे थे। …आओ मेजर। तुम्हारा इंतजार चल रहा था। सबका अभिवादन करके मै एक किनारे मे बैठ गया। वीके ने कहा… सुरिंदर तुमने जवाब नहीं दिया? मैने प्रश्नवाचक दृष्टि ब्रिगेडियर चीमा पर डाली तो अजीत ने कहा… हमने यह सवाल किया है कि क्या हम फारुख के परिवार मे से किसी को यहाँ ला सकते है? हम जिस माहौल को बनाने की बात कर रहे है वह यही है। उसको अगर पता चलता है कि उसके परिवार का कोई हमारे पास है तो उसका टूटना आसान हो जाएगा। मै तो कुछ बोलने की स्थिति मे नहीं था परन्तु वीके ने कहा… अजीत अगर हम ऐसा करते है तो फारुख का पुरानी स्थिति मे लौटना मुश्किल हो जाएगा। उसके वापिस लौटने पर मंसूर बाजवा कभी उस पर विश्वास नहीं करेगा। जनरल रंधावा ने कहा… परिवार की बात जाने दो। उसकी बेटी तबस्सुम का यहाँ होना ही उसके मनोबल को तोड़ने के लिये पर्याप्त होगा। अबकी बार मैने जल्दी से कहा… सर, मुझे नहीं लगता कि यह सब इतना आसान होगा। मीरवायज का परिवार जैश की सुरक्षा घेरे मे रहता है। यह सब मैने अपनी आँखों से देखा है। मै काफी हद तक वीके सर की बात का समर्थन करता हूँ।

अजीत ने मेरी ओर देखते हुए कहा… मेजर, अब सबसे बड़ा सवाल है कि वह वापिस अपने लोगों के बीच मे कैसे जाएगा? तुम उसे उठा लाये। यह भी मान लिया कि वह तुम्हारे लिये काम करने के लिये तैयार हो गया है। अब वह अपने लोगों मे वापिस कैसे जायेगा? यह समझ लो कि सबसे पहले उसे मंसूर बाजवा को आश्वस्त करना पड़ेगा कि वह किसी खास काम से बाहर गया था। उसे अपने नेटवर्क को बताना पड़ेगा कि आखिर क्यों वह इतने दिन उनके संपर्क मे नहीं था। इसके लिये वह जो भी कहानी सुनायेगा उसके लिये उसे उप्युक्त साक्ष चाहिए जो उसकी कहानी की पुष्टि करेंगें। इसलिये मै माहौल बनाने की बात कर रहा था। अगर उसकी बेटी गायब हो गयी तो फिर क्या होगा? सबसे पहले उसके लोग जो उससे उसके गायब होने की बात पूछने वाले है वही लोग उसे उसकी बेटी के गुम होने की खबर देने की कोशिश करेंगें। एक तरह से फारुख को गायब होने की वजह मिल जाएगी और जब वह अपनी बेटी को लेकर वापिस अपने घर जाएगा तो अपने साथियों मे वापिस जाने का उसे रास्ता भी मिल गया।

तीनो की रणनीति तबस्सुम पर केन्द्रित होने के कारण मुझे नीलोफर की कही बात याद आ रही थी। ब्रिगेडियर चीमा ने मेरी ओर देखा तो मैने जल्दी से कहा… सर, तबस्सुम को छोड़ कर कोई और माहौल बनाने की सोचते है। लेकिन पहले हमे नीलोफर लोन उर्फ नीलोफर लखवी का क्या करना है? वह भी वापिस अपनी दुनिया मे जाने के लिये तैयार बैठी हुई है। अजीत ने मेरी ओर देख कर कहा… मेजर, वह अगर ऐसे ही वापिस चली गयी तो आईएसआई बिना सवाल पूछे ही उसकी हत्या करवा देगी। इन्टेलीजेन्स सर्कल मे आउट आफ साईट का मतलब सिर्फ एक ही होता है कि दुश्मन ने तुमसे संपर्क साधा है। उसके बाद अगर तुम उनके एजेन्ट को तोड़ कर अपने साथ नहीं ला सके तो इसका मतलब है कि तुम्हारा कवर नष्ट हो गया है और फिर तुम उनके किसी काम के नहीं रहे। अगर तुम उसे बिना तोड़े वापिस चले गये तो हमेशा के लिये एक तलवार तुम्हारे सिर पर मंडराती रहेगी कि कहीं तुमको तो उसने तो नहीं तोड़ दिया है। दोनो ही मामले पूरे आप्रेशन के लिये घातक साबित हो सकते है।

इन लोगों की बात सुन कर तो मुझे अब नीलोफर की चिन्ता होने लगी थी। …सर पहले तो मुझे नीलोफर के बारे मे सोचना है कि कैसे उसे यहाँ से बाहर निकला जाये? अजीत ने एक बार फिर से कहा… मेजर, वह क्या अपने उन्हीं लोगों मे वापिस लौटना चाहती है? अगर ऐसा है तो फिर तुम्हें उसके लिये भी माहौल बनाना पड़ेगा। अगर वह उनके बीच वापिस नहीं जाना चाहती तो फिर तो बहुत आसान है कि उसे एक नया परिचय देकर हम दुनिया मे कहीं भी भेज सकते है। …सर, आज पूछ के देखता हूँ कि वह क्या चाहती है। …मेजर, एक तरीका यह भी हो सकता है कि वह फारुख का काम यहाँ पर संभाल कर एक कहानी तैयार करे कि फारुख किसी जरुरी काम से कश्मीर से बाहर गया है। फिलहाल वह उसके काम को संभाल रही है। कुछ दिनो के बाद फारुख वापिस आकर अपना काम संभाल लेगा और तब नीलोफर को हम नया परिचय देकर कहीं और भेज देंगें। उस रोज पहली बार मैने महसूस किया था कि इतने दिन अजीत सुब्रामन्यम के साथ काम करके मुझे पर्दे के पीछे होने वाले काम का काफी अनुभव हो गया था।

कुछ सोच कर मैने कहा… सर, मै नीलोफर से आज बात करुँगा लेकिन अजीत सर ने जैसा कहा है मै अभी से दोनो पहलुओं पर काम करना आरंभ कर दूँगा। नीलोफर और फारुख के लिये जैसा भी माहौल बनाना ठीक होगा मै बनाने की कोशिश करुँगा। उसी के आधार पर नीलोफर और फारुख की वापसी की योजना बन जाएगी। सब मेरी ओर देखने लगे थे। वीके ने हँसते हुए कहा… अजीत तुमने मेजर को अपना चेला बना लिया है। तुम दोनो ही पाकिस्तान घूम कर आये हो इसीलिये अब तुम दोनो की सोच एक सी होती जा रही है। जनरल रंधावा ने कहा… वीके, क्या इस बार सरकार बदलने के कुछ आसार नजर आ रहे है? वीके ने कहा… रंधावा कोई भी सरकार बने लेकिन बस कमजोर सरकार नहीं बननी चाहिये क्योंकि सौ करोड़ की योजना आगे चल कर देश के लिये बेहद घातक साबित होगी। कुछ देर राजनीतिक गलियारों की कहानी सुनने के बाद मैने उनसे विदा ली और अपने घर की ओर चल दिया।

हमेशा की तरह नीलोफर सोफे पर बैठ कर कुछ पढ़ रही थी। जन्नत और आसमाँ मेरे कमरे मे बैठ कर अपनी बातों मे उलझी हुई थी। …नीलोफर, तुमसे एक सवाल पूछना चाहता हूँ। क्या तुम अपनी उसी दुनिया मे वापिस जाना चाहती हो? उसने मेरी ओर देखा और एक पल सोच कर बोली… कभी नहीं। मैने हिचकिचाते हुए कहा… क्या कुछ दिनो के लिये तुम फारुख का काम संभाल सकती हो। जैसे तुम पहले काम करती थी वैसे ही कुछ दिन और उसकी अनुपस्थिति मे तुम उसका काम संभाल  लेना चाहिये जिससे फारुख के वापिस लौटने के पश्चात हम तुम्हें एक नया परिचय देकर तुम जहाँ भी रहना चाहोगी उसमे हम तुम्हारी मदद करेंगें। …नहीं। मै अब यह काम नहीं कर सकती। …आखिर क्यों? …समीर, मै उस दुनिया मे कभी वापिस नहीं जाना चाहती। …कोई बात नहीं परन्तु यह तो बता सकती हो कि आगे के बारे मे क्या सोचा है? …कल से यही सोच रही हूँ पर कुछ समझ मे नहीं आ रहा है। कभी सोचती हूँ कि दिल्ली, मुंबई या कलकत्ता चली जाऊँ परन्तु वहाँ पर मेरे बहुत से जानने वाले है। कमरे मे पड़े रहने से भी अब मै बोर हो गयी हूँ और मै जल्दी से जल्दी बाहर निकलना चाहती हूँ। …तुम्हारी सुरक्षा के कारण ही मै तुमसे यह कह रहा था। तुम्हारे गायब होने के कारण सभी सरकारी एजेन्सियाँ तुम्हारी तलाश कर रही है। अगर तुम कुछ दिन फारुख की जगह संभाल लोगी तो इस अनुपस्थिति को लोग आसानी से भूल जाएँगें। जब मामला ठंडा हो जाएगा तब आराम से तुम किसी भी जगह जा सकोगी। वह कुछ देर सोचने के बाद बोली… अब जब मै वापिस अपने घर जाऊँगी तो क्या कहूँगी? …यह मुझ पर छोड़ दो। मै जैसा कहता जाऊँ बस तुम वैसा करती जाना तो सभी के लिये एक पुख्ता जवाब मिल जाएगा। …ठीक है। पहले मुझे सोचने दो।

मै वहाँ से अपने बिस्तर पर जाकर लेट गया। मेरे कन्धे मे दर्द रुक-रुक कर उठ रहा था। मैने एक पेन किलर को लिया और सोचने बैठ गया कि क्या तबस्सुम को यहाँ लाया जा सकता है? …क्या सोच रहे हो? नीलोफर की आवाज सुन कर मैने दरवाजे की ओर देखा तो वह वहाँ खड़ी हुई मुझे देख रही थी। …कुछ नहीं। तबस्सुम को यहाँ लाने के बारे मे सोच रहा हूँ। मेरी बात सुन कर उसकी आँखें विस्मय से फैल गयी थी। …पागल हो गये हो क्या। …नहीं, मै सोच रहा हूँ। अभी कुछ निर्णय नहीं लिया है। …अच्छा है। तबस्सुम को तुम भूल जाओ। …तुम समझ नहीं रही हो। कुछ दिन बाद फारुख अपने लोगों के बीच मे वापिस कैसे जायेगा। यही सोच कर मुझे लगा कि तबस्सुम एक अच्छा बहाना हो सकता है। नीलोफर मेरे पास आकर बैठ गयी और कुछ देर सोचने के बाद वह बोली… समीर, तुम्हारे लिये मै तबस्सुम को यहाँ ला सकती हूँ। एक पल के लिये मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। …क्या? …तबस्सुम को मै वहाँ से निकाल कर ला सकती हूँ। …कैसे? …इन दोनो लड़कियों की मदद से उसे मै यहाँ ले आऊँगी लेकिन मेरी एक शर्त है। उठ कर बैठते हुए मैने कहा… फिर वही लेन-देन पर उतर आयी हो। बोलो क्या शर्त है। …तुम्हारा काम हो जाने के बाद तुम तबस्सुम को मेरे हवाले कर दोगे। मैने उसको घूर कर देखा और फिर झिड़कते हुए कहा… कभी नहीं। तबस्सुम को मै दूसरी नीलोफर नहीं बनने दूँगा। मुझे समझाने के अंदाज मे नीलोफर ने कुछ सोच कर कहा… मेरी बात ध्यान से सुनो। अगर तुम यह बताओगे कि उसकी बेटी यहाँ पर तुम्हारे पास है तो क्या फारुख कभी मानेगा कि उसकी बेटी का दामन पाक साफ है? जरा सोच कर देखो कि एक काफ़िर जिसने उसको धमकी दी थी भला क्या उसके पास उसकी बेटी महफूज रह सकती है? कभी नहीं बल्कि मौका मिलते ही वह उसका कत्ल कर देगा। तुम्हें मीरवायज परिवार के बारे कुछ पता नहीं है। आज भी अरब के कबीलों के दकियानूसी रिवाजों पर उनका घर चलता है। मैने जल्दी से कहा… तो फिर तबस्सुम के बारे मे भूल जाओ। उस बेचारी मासूम को जीने दो जैसे जी रही है। मै कोई और तरीका सोचता हूँ।

मै मन ही मन सोच रहा था कि नीलोफर सही कह रही थी। फारुख यह बात मानने हर्गिज तैयार नहीं होगा। तभी मुझे उन दिग्गजों का ख्याल आया कि अब उनके सामने यह काम न करने की क्या दलील दूँगा। अभी रात आरंभ ही हुई थी कि ब्रिगेडियर चीमा का फोन आ गया… मेजर, अब्दुल लोन की दिल के दौरे से मौत हो गयी है। यह सही समय है कि जब नीलोफर सबके समने आ सकती है। मेरे निर्देश पर उन्होंने कल सुबह तक यह खबर दबा दी है। तुम उससे बात कर लो और रात ही रात मे उसे अस्पताल पहुँचा दो। कल तक हम उसके वापिस जाने के लिये माहौल तैयार कर देंगें।

इंसान सोचता कुछ है और होता कुछ है। मै तुरन्त उठ कर नीलोफर के कमरे मे चला गया था। वह जाग रही थी। मुझे देखते ही वह बोली… क्या हुआ समीर? …बुरी खबर है। तुम्हारे अब्बा की दिल के दौरे से मौत हो गयी है। …हाय अल्लाह। एक दर्द भरी आह उसके मुख से निकल गयी थी। वह बेहद संजीदा स्वर मे बोली… इसी के साथ लखवी परिवार से मेरा आखिरी तार भी टूट गया। अब इस दुनिया मे अपना कहने के लिये मेरा कोई नहीं है। वह सिर झुका कर बैठ गयी थी। मै भी चुपचाप उसके गम मे शरीक हो गया था। …समीर, तुम्हारे अब्बा का क्या हाल है? …पता नहीं। …सच पूछो तो मुझे कुछ भी इस वक्त महसूस नहीं हो रहा है। …नीलोफर इस गम का धीरे-धीरे एहसास होगा। फिलहाल तुम्हारे अब्बा की मृत्यु की जानकारी सुबह तक दबा दी गयी है। मेरे अधिकारियों का कहना है कि यही एक मौका है जिसके कारण तुम वापिस अपने लोगों के बीच मे आसानी से जाकर अपने अब्बा की गमी मे शरीक हो सकोगी। मै यह सब बोलते हुए शर्मसार हो रहा था परन्तु मेरे पास इसके सिवा कोई और रास्ता भी नहीं था। नीलोफर ने मुझे घूर कर देखा तो मैने जल्दी से कहा… मुझे गलत मत समझना लेकिन मै भी उनके सुझाव से सहमत हूँ। …समीर मै उस जिंदगी मे वापिस नहीं जाना चाहती। …मै जानता हूँ। मेरा बस चलता तो मै तुम्हें उस जिंदगी मे कभी वापिस जाने के लिये नहीं कहता लेकिन अगर कुछ दिन के लिये तुम वापिस चली जाती हो तो तुम हमेशा के लिये सुरक्षित हो जाओगी। हम दोनो काफी देर तक हर पहलू पर बात करने के पश्चात इस नतीजे पर पहुँचे कि नीलोफर कुछ दिनो के लिये फारुख का कार्यभार संभाल लेगी। इसी दौरान उसको भी अपने सुरक्षित भविष्य के बारे मे भी ठंडे दिमाग से सोचने का समय मिल जाएगा। उसकी हामी मिलते ही हम लोग उसकी सुरक्षित वापिसी की तैयारी मे जुट गये थे।

सुबह अब्दुल लोन के फौत होने की खबर मिलते ही जमात-ए-इस्लामी के सभी दिग्गज नेता कमांड अस्पताल पहुँच गये थे। फौजी अस्पताल होने के कारण किसी को अन्दर नहीं जाने दिया गया था। सबको अस्पताल से कुछ दूरी पर मुख्य सड़क पर रोक दिया गया था। दोपहर को सफेद कपड़ों और हिजाब पहने नीलोफर अस्पताल से बाहर निकल कर भीड़ को संबोधित करके वापिस चली गयी थी। हमारी मदद से नीलोफर ने अब्दुल लोन की सियासी विरासत पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी। लोन के बाकी परिवार वाले भी दोपहर तक आ गये थे जब उसका शव परिवारजनों के हवाले किया था तब तक सारी कागजी कार्यवाही नीलोफर ने पूरी की थी। मकबूल बट के कारण मै भी वहीं पर उसके साथ खड़ा हुआ था। कुछ जमात के बूढ़े लोगों ने नीलोफर से उसकी अनुपस्थिति के बारे पूछा तो उसने कह दिया कि वह तब से अस्पताल मे थी और जब तबियत ज्यादा बिगड़ी तो वह दिल्ली और मुंबई के बड़े डाक्टरों से सलाह मश्विरा लेने चली गयी थी। नीलोफर का आगमन बिना किसी सवाल-जवाब के आसानी से तय हो गया था।

तीन दिन के लिये वह अब्दुल लोन की हवेली मे रहने चली गयी थी। उसके साथ मेरी बात सिर्फ फोन पर होती थी। उस समय मै उसके लिये फारुख बन गया था। आखिरी दिन मै भी अब्दुल लोन के घर श्रद्धाँजलि देने के लिये चला गया था। जमात-ए-इस्लामी के लोगों ने मकबूल बट की तबियत के बारे मे मुझसे पूछा था और मैने भी वही हमेशा का जवाब दिया… सब खुदा के हाथ मे है। तीन दिन बाद अपने घर पहुँच कर नीलोफर ने फारुख के फोन की मांग रखी तो एक पल के लिये मै सोच मे पड़ गया था। ब्रिगेडियर चीमा का विचार था कि नीलोफर को इतना महत्व नहीं देना चाहिये। अगर वह जमात पर काबिज हो गयी तो वह हमारे लिये एक नयी मुश्किल बन कर खड़ी हो जाएगी। नीलोफर को समझाते हुए मैने कहा… फारुख के फोन को अभी तक हम क्रेक नहीं कर सके है। जैसे ही उसका कोड क्रेक हो जाएगा वह फोन हम तुम्हें सौंप देंगें। तब तक तुम अपने फोन से काम चलाओ। इसी के साथ हमने उसका फोन रिकार्ड करना आरंभ कर दिया था। फारुख के फोन को हमने क्रेक करके उसमे फारुख की मशीनी आवाज रिकार्ड कर दी थी। जैसे ही कोई उसके फोन पर काल आती तो फारुख की आवाज की रिकार्डिंग चालू हो जाती थी… मै फिलहाल बात करने की स्थिति मे नहीं हूँ तो इसीलिये यह काल नीलोफर को फार्वर्ड कर रहा हूँ। उसके बाद फारुख की हर काल नीलोफर के पास जाने लगी थी। एक तरीके से कुछ ही दिनो मे हमने फारुख के सारे नेटवर्क की बागडोर नीलोफर के हाथ मे दे दी थी।

हमारे पास नीलोफर की हर काल रिकार्ड हो रही थी। दो आदमी चौबीस घन्टे इसी काम पर लग गये थे। सुबह से शाम तक वह सारी रिकार्डिंग सुन कर ब्रिगेडियर चीमा को रिपोर्ट दे देते थे। कोई मेरे काम की बात होती तो मुझे बुला लिया जाता था। मै इसी बीच फारुख से भी मिल रहा था। उसके कहने पर एक दिन मैने उसे वह दोनो फिल्में भी दिखा दी थी। वह लगभग टूटने की कागार पर था जिसके लिये ब्रिगेडियर चीमा ने कमांड अस्पताल से कुछ मनोविज्ञान के डाक्टर भी फारुख से बात करने के लिये भेजने आरंभ कर दिये थे। नीलोफर ने मुझसे मिलने के लिये बहुत बार कहा परन्तु मैने उसे समझाया कि हम दोनो दुनिया के सामने एक साथ नहीं दिख सकते है। एक शाम मै अपने घर के लान मे बैठा हुआ आसमान निहार था। शाम की चादर पर ढलते सूरज की लालिमा बिखरी हुई बेहद सुन्दर दिख रही थी। अंधेरा भी होने लगा था और ठंडक भी बढ़ गयी थी। तभी नीलोफर का फोन आया… समीर, एक महीने मे बर्फ के कारण मुजफराबाद का रास्ता बन्द हो जाएगा। उससे पहले कुछ करने की जरुरत है। …जमात वाले पैसों के लिये शोर मचा रहे है। कम से एक ट्रक तो निकलने दिया करो। …ठीक है। पैसों का ट्रक जब आयेगा तब मुझे खबर कर देना। मै अपनी देख रेख मे उस ट्रक को तुम्हारे पास पहुँचा दूँगा। मैने उसकी काल जैसे ही काटी कि तभी मेरे आफिस से फोन आ गया… सर, अभी आ जाईये। आपको एक रिकार्डिंग सुननी चाहिये। मैने अपने आफिस की ओर चल दिया।

मेरे पहुँचते ही उन्होंने एक रिकार्डिंग चला दी थी। नीलोफर किसी स्त्री से बात कर रही थी। …बानो तुम मानशेरा के पास ट्रेनिंग कैम्प पर पहुँच जाना। वहाँ पर तुम्हें सुलेमान मियाँ मिल जाएँगें। …मै कैसे उन्हें पहचानूँगी। …वह तुम्हें पहचान लेगा। वह तुम्हें आसानी से बार्डर पार करा कर मेरे पास छोड़ देगा। तुम्हारे अब्बू की हालत नाजुक है। वह तुमसे मिलना चाहते है। दूसरी स्त्री रुआँसी होकर बोली… बाजी, मै जुमे की नमाज शुरु होते ही घर से निकल जाऊँगी और शाम तक मानशेरा के ट्रेनिंग कैम्प पर पहुँच जाऊँगी। …बानो ख्याल रहे कि इसकी किसी को कानोकान खबर नहीं होनी चाहिये। तुम्हारे अब्बू की जान खतरे मे है। मै बड़ी मुश्किल से तुमसे बात कर पायी हूँ। अच्छा बानो सुलेमान नाम याद रखना। खुदा हाफिज।  रिकार्डिंग समाप्त हो गयी थी।

 …सर, मुझे यह समझ मे नहीं आया कि यह रिकार्डिंग किस विभाग मे डाली जाये। इसीलिये मुझे ब्रिगेडियर चीमा ने कहा कि आपसे बात करके ही तय कर सकता हूँ। …क्या ऐसी काल पहले भी की गयी है? …नही सर, वैसे तो कुछ निजि मसलों पर काल होती रहती है लेकिन हम उन्हें ज्यादा महत्व नहीं देते है। जब काल मे किसी कन्साइन्मेन्ट या ट्रक अथवा किसी मीटिंग या घुसपैठ की बात होती है तभी हम सावधान हो जाते है और फिर ब्रिगेडियर चीमा को रिपोर्ट कर देते है। बातों से यह चुंकि घुसपैठ से जुड़ी हुई काल लग रही थी परन्तु यह वैसी तंजीमो के घुसपैठ की बात नहीं थी तो मेरे समझ मे नहीं आया कि इसे निजि माना जाये या घुसपैठ की काल मान कर तुरन्त बार्डर पर सूचना दूँ। इसीलिये मैने आपको काल किया था। क्या आप बता सकते है कि इस काल को किस श्रेणी मे डाला जाये?

मेरा दिमाग इस वक्त बहुत तेजी से चल रहा था। आखिर बानो कौन है और नीलोफर क्या करने की सोच रही है? कुछ सोच कर मैने जल्दी से पूछा… यह काल कहाँ की गयी थी मुझे इसका नम्बर दो। उसने जल्दी से एक नम्बर कागज पर लिख कर मेरी ओर बढ़ा दिया था। मै नम्बर हाथ मे लेकर सोच रहा था कि आज सोमवार है। चार दिन बाद वह स्त्री मानशेरा के ट्रेनिंग कैम्प पहुँच जाएगी। अचानक मुझे नीलोफर की एक बात ने दिमाग पर हथौड़े की तरह प्रहार किया जिसके कारण मेरा जिस्म झनझना गया था। अगर वह लड़की तबस्सुम हुई और वह नीलोफर के हाथ लग गयी तो वह हमारा खेल हम पर भारी पड़ जाएगा।  उसको इस्तेमाल करके वह हमारे लिये एक ऐसी मुश्किल खड़ी कर देगी जिसके कारण उसका पलड़ा भारी हो जाएगा। मैने जल्दी से कहा… इस काल को फिलहाल निजि स्लाट मे डाल दो। मै एक दो दिन मे जाँच करके बता दूँगा कि इसका क्या करना है। मै वहाँ से सीधे घर लौट आया था।

क्या नीलोफर ने फारुख की लड़की को अगुवा करने की योजना बनायी है? अगर ऐसा हुआ तो हम बड़ी मुश्किल मे फँस जाएँगें। एक मासूम लड़की हमारे चक्रव्युह मे अकारण ही तीन मुख्य धड़ों की केन्द्र बिन्दु बन जाएगी। अगर मेरी सोच गलत सबित हो गयी तो नीलोफर हमारे हाथ से निकल जाएगी और कहीं मेरी सोच सही साबित हो गयी तो हम नीलोफर के जाल मे बुरी तरह फंस जाएँगें। इसका जिक्र मै ब्रिगेडियर चीमा से भी नहीं कर सकता था। उनके लिये तो वह लड़की एक मोहरे से ज्यादा नहीं थी। फारुख और नीलोफर को अपने काबू मे करने के लिये वह तुरन्त फारुख की लड़की का अगुवा करने का निर्देश जारी कर देंगें। ऐसी हालत मे मुझे क्या करना चाहिये? कुछ सोच कर मै उठ कर जन्नत के पास चला गया… जन्नत हमें अभी मुजफराबाद के लिये निकलना है। आस्माँ तुरन्त बोली… आपका घायल कंधा अभी पूरी तरह से ठीक नहीं हुआ है। भला ऐसी हालत मे क्या आप सफर कर सकेंगें? …देखो जुमे तक मेरा मुजफराबाद पहुँचना जरुरी है। जल्दी से सामान बांधो और चलो।

अपने कन्धे की हालत देख कर मुझे लगा कि इतनी लम्बी ड्राईविंग मेरे लिये मुश्किल होगी तो मैने रात को ही अपने ड्राईवर को बुलवा लिया था। जल्दी से अपने स्कूली बैग मे अपनी पिस्तौल और कुछ पुराने बक्खरवाल समाज के कपड़े रख कर चलने के लिये तैयार हो गया था। मैने एक मोटा सा कम्बल अपने जिस्म पर लपेट लिया और रात को दस बजे दोनो लड़कियों को लेकर मै कुपवाड़ा के लिये निकल गया था। अगर फारुख की बेटी तबस्सुम को यहाँ लाने की नीलोफर साजिश रच रही है तो यह मै हर्गिज नहीं होने दे सकता था। …जन्नत बार्डर पार करके मुजफराबाद पैदल पहुँचने मे कितना समय लग जाएगा? …लगभग डेड़ दिन लगता है। सीमा पार तो सिर्फ अंधेरे मे ही कर सकते है लेकिन सीमा तक पहुँचने मे आठ घंटे और फिर सीमा पार करके मुजफराबाद तक का रास्ता तय करने मे आठ घंटे लग जाते है। जन्नत से कुछ और जानकारी लेकर मै आराम से पैर फैला कर जीप मे लेट गया था।  

नान-स्टाप चल कर हम सुबह दस बजे तक कुपवाड़ा पहुँच गये थे। कुछ खाने पीने का सामान बैग मे डाल कर शाम होने से पहले हम तंगधार पहुँच गये थे। वहाँ आस्माँ, जीप और ड्राईवर को छोड़ कर जन्नत को अपने साथ लेकर पहाड़ी नालो के सहारे चलते हुए अपनी आखिरी आउटपोस्ट पर हम दोनो देर रात तक पहुँच गये थे। मेरा कन्धे का घाव अब तड़क रहा था और धीरे से हिलने पर पूरा हाथ दर्द से झनझना उठता था। एक पेन किलर लेकर हम दोनो पेड़ों की आढ़ मे बैठ गये। …अब यहाँ से आगे का रास्ता बताओ। जन्नत ने आगे का रास्ता इशारे से दिखाते हुए कहा… इस नाले के साथ-साथ चलते हुए आप सीमा पर पहुँच जाएँगें। सीमा पर कंटीले तारों की बाढ़ लगी हुई है। आपको कंटीले तार के साथ चलते हुए टूटी हुई बाढ़ को खोजना पड़ेगा। वह जगह नीचे के बजाय ऊँचे स्थान पर मिलने की ज्यादा संभावना है। आपने बाढ़ को पार कर लिया तो वहाँ से आठ घंटे का रास्ता है। मै आपके साथ चल तो रही हूँ। …नहीं जन्नत, यह काम मुझे अकेले ही करना पड़ेगा। तुम यहाँ से वापिस लौट जाओ। तंगधार पहुँच कर रविवार दोपहर तक मेरा इंतजार करना उसके बाद वापिस श्रीनगर चले जाना। बस इतना ख्याल रखना कि किसी को इसकी खबर नहीं होनी चाहिये। खुदा हाफिज। जन्नत कुछ बोल पाती उससे पहले मै नाले के साथ चलते हुए अंधेरे मे खो गया था।

स्पेशल फोर्सेज के दौरान ऐसे रास्तों पर चलने का मुझे काफी अनुभव था परन्तु एक साल से ज्यादा आफिस मे बैठने के कारण थोड़ी देर मे ही उबड़-खाबड़ जगह पर चलने के कारण पाँव कांपने लगे थे। गहरे अंधकार मे अनुमान से लगातार मै आगे बढ़ता चला जा रहा था। जन्नत के अनुसार पगडंडी का रास्ता अंधेरे मे चलने के लिये सुरक्षित था। बस उस रास्ते पर तंजीमों की घुसपैठ का खतरा हमेशा मंडराता रहता था। कुछ दूर निकलने के पश्चात मैने सावधानीवश नाले की पगडंडी छोड़ कर उससे कुछ समानतंर दूरी बना कर चलना आरंभ कर दिया था। जन्नत से मिली जानकारी और नक्शों के कारण इस रास्ते के घुसपठियों के लगभग सभी ठिकानो का मुझे पता चल गया था। अपने आप को उनकी नजर से बचा कर मै आगे बढ़ता जा रहा था। वैसे भी अकेले आदमी को अंधेरे मे छिपने के लिये अनेक जगह मिल जाती है। ठंड बढ़ती जा रही थी परन्तु लगातार उबड़-खाबड़ रास्ते पर चलने के कारण कुछ ही देर मे मेरा जिस्म पसीने से भीग गया था। पाँच घंटे लगातार चलने के बाद कुछ दूरी पर भारतीय पोस्ट की रौशनी मुझे दिख गयी थी। दिन निकलने मे अभी कुछ घंटे शेष थे। मै जल्दी से जल्दी कंटीले बाढ़ पार करके पाकिस्तानी सीमा मे पहुँचना चाहता था। उससे पहले भारतीय सीमा पर तैनात पेट्रोलिंग पार्टी का अभी मुझे इंतजार करना था।

मै कुछ देर के लिये चट्टानों की आढ़ लेकर आराम करने के लिये बैठ गया। साँस तेज चल रही थी और तापमान भी लगातार गिर रहा था। आधे घंटे के इंतजार के बाद भारतीय पेट्रोलिंग पार्टी मेरे सामने से आगे निकल गयी थी। उनके वापिस लौटने के लिये मै चुपचाप वहीं बैठा रहा था। उनके लौटते ही मै चट्टानों के पीछे से निकल कर कंटीले बाढ़ की ओर चल दिया। इस रास्ते का बस एक फायदा मुझे बताया गया था कि यहाँ पर कंटीले तारों की बाड़ जगह-जगह से टूटी हुई थी। कभी पत्थर खिसकने के कारण और कभी भीषण हिमपात से तारों की बाड़ नष्ट हो जाती थी। एक लम्बा सा चक्कर काट कर मै आध घन्टे मे भारतीय सीमा के पार पहुँच गया था। पाकिस्तानी पोस्ट की रौशनी यहाँ से साफ दिख रही थी। सर्द रात मे चौकी के गार्ड्स पेट्रोलिंग के बजाय आराम से अन्दर बैठना पसन्द करते है और बस इसी का फायदा उठा कर मै आसानी से पाकिस्तान की सीमा मे प्रवेश कर गया था। जब तक मै पाकिस्तान की सीमा मे प्रवेश किया तब तक सुर्य की पहली किरण ने आसमान रौशन कर दिया था। अब यहाँ से आगे बढ़ना खतरे से खाली नहीं था। चट्टानों से बनी हुई खोह मे एक उपयुक्त स्थान देख कर मैने अपना डेरा वहीं डाल दिया था।

मेरा घायल कन्धा अब तड़कने लगा था। असहनीय पीड़ा के कारण मेरा जिस्म और दिमाग भी सुन्न हो गया था। पेन किलर की एक डोज लेकर मै आँखें मूंद कर बैठ गया। सुर्य की थोड़ी सी गरमाहट मिलते ही मै गहरी नींद मे खो गया था। थकान और दवाई के कारण कब दिन निकला और फिर कब दोपहर हुई मुझे पता ही नहीं चला था। जब मेरी आँख खुली तब तक दिन ढलना आरंभ हो गया था। उसी खोह मे अपने रोजमर्रा के कार्य करने के पश्चात थोड़ी पेट पूजा करके मै आगे बढ़ने के लिये तैयार हो गया था। बस अब मुझे अंधेरा होने का इंतजार था। अंधेरा होते ही मैने पहाड़ की चढ़ाई आरंभ कर दी थी। चार मील की सीधी चढ़ाई के पश्चात बाकी का रास्ता आसान था। मुश्किल से दो घंटे मे ही मेरी धौंकनी चलनी आरंभ हो गयी थी। बिना रुके मै आगे बढ़ता चला गया था। आधी रात को मैने पहाड़ पार कर लिया था अब सिर्फ पहाड़ से उतरना बचा था। पेन किलर की एक डोज लेकर कुछ देर मैने आराम किया और फिर आगे चल दिया। तीन घन्टे चलने के बाद आगे का रास्ता कुछ जाना पहचाना सा लगने लगा था। एक बरसाती नाला पकड़ कर आगे चल दिया। शुक्रवार की फज्र की नमाज से पहले मै मुजफराबाद शहर मे पहुँच गया था। बस स्टैन्ड के शेड की आढ़ मे एक किनारे मे लेट गया और थकान से बेहाल होकर जल्दी ही गहरी नींद मे डूब गया था। सुबह बसों के शोर से मेरी नींद टूट गयी थी। वहीं बस स्टैन्ड पर मै नित्य कामों से निवृत होकर एक ठेले से कुछ खाने का सामान लिया और सड़क के किनारे बैठ कर नाश्ता करके फोन की दुकान की ओर बढ़ गया था।

टेलिफोन बूथ से मैने वही नम्बर मिलाया जिस पर नीलोफर ने फोन किया था। कुछ देर घन्टी बजने के बाद एक पतली सी दबी हुई आवाज मेरे कानो मे पड़ी… हैलो। …बानो, मै सुलेमान बोल रहा हूँ। …आप फोन क्यो कर रहे हो। मै टाईम से पहुँच जाऊँगी। …बानो, मेरी बात सुनो। मेरे कन्धे मे चोट लग गयी है इसलिये समय पर मानशेरा नहीं पहुँच सकूँगा। मुजफराबाद के परेड ग्राउन्ड के साथ ही एक बस स्टैन्ड है। क्या तुम वहाँ पहुँच सकती हो? …बड़े मियाँ, वहाँ बहुत से लोग मुझे पहचानते है। फिर कुछ सोच कर वह बोली… आप दो बजे तक गड़ी हबीबुल्लाह के बस स्टैन्ड पर आ जाईये। मै आपको वहीं मिल जाऊँगी। …ठीक है। मै वहाँ पहुँचने की कोशिश करता हूँ। बानो, एक बात का ख्याल रखना कि इस फोन को बन्द करके वहीं घर पर छोड़ कर आना वर्ना वह लोग इसके जरिये आसानी से तुम्हें ढूंढ लेंगें। …जी बड़े मियाँ। मै आपको दो बजे गड़ी के बस स्टैन्ड पर मिल जाऊँगी। अल्लाह हाफिज।

मैने उसी दुकान से कुछ हिन्दुस्तानी रुपये बदलवा कर एक बस पकड़ कर गड़ी हबीबुल्लाह की ओर निकल गया था। मै एक बजे तक गड़ी हबीबुल्लाह के बस स्टैन्ड पर पहुँच गया था। लश्कर के जिहादियों की तरह मैने अपने सिर पर अफगानी पगड़ी और चेहरे को चेक के गमछे से ढका हुआ था। उसको दो बजे आना था तो अपना कम्बल ओढ़ कर बस स्टैन्ड के शेड मे बैठ गया था। जैसे तैसे समय निकलता जा रहा था। दो बजे एक बस आयी और उसमे कुछ लोग उतर कर अपने रास्ते चले गये थे। वह लड़की नदारद थी। अगली बस भी ऐसे ही आकर चली गयी थी। तीन बजने वाले थे और अब मुझे खतरे का निरंतर आभास हो रहा था। कुछ सोच कर मै उठ कर खड़ा हुआ तभी एक बुर्कापोश महिला अचानक बस स्टैन्ड के पीछे से निकली और झिझकते हुए मेरे पास आकर दबी आवाज मे बोली… सुलेमान मियाँ। मैने उसकी ओर देख कर जल्दी से सिर हिला दिया। काले बुर्के की चिलमन से मुझे उसकी सिर्फ दो बड़ी-बड़ी आँखें दिखाई दी थी। इस रुप मे उस स्त्री के चेहरे और उम्र का अन्दाजा लगाना मेरे लिये कठिन था। मैने जल्दी से कहा… बानो, तुम कहाँ रह गयी थी। इतनी देर हो गयी कि मै अब वापिस जा रहा था। …बड़े मियाँ, मै यहाँ से कुछ दूर पहले उतर गयी थी। वहाँ से पैदल यहाँ पहुँची हूँ। आपके कन्धे को क्या हो गया था। मैने जल्दी से कहा… कुछ नहीं बिटिया, आज सुबह एक बस से टकरा गया था। सब ठीक है। आओ चले। यह बोल कर सड़क पार करके मै मुजफराबाद की दिशा मे जाने वाले बस स्टैन्ड पर खड़ा हो गया था।

वह जल्दी से मेरे पीछे आयी और दबी आवाज मे बोली… बड़े मियाँ हम वहाँ नहीं जा सकते। वहाँ मुझे लोग पहचान लेंगें। …बानो, वहीं से हमे सीमा पार करनी है। तुम चिन्ता मत करो। अचानक उसकी आवाज तीखी हो गयी… बड़े मियाँ आप समझ नहीं रहे है। मै वहाँ नहीं जा सकती। …ठीक है, तो फिर सियालकोट चलते है। …बड़े मियाँ, मुझे श्रीनगर जल्दी से जल्दी पहुँचना है। हम इतनी दूर नहीं जा सकते। इंतजार की कुंठा और घायल कन्धे की पीड़ा से मेरा दिमाग से झनझना रहा था। वह बिना सोचे समझे लगातार मेरी बात काट रही थी। मेरा दिमाग गर्म होने लगा था। अबकी बार मेरी आवाज थोड़ी कड़ी हो गयी… बानो, मै यहाँ आराम से बैठ जाता हूँ। तुम सोच कर बता दो कि जल्दी पहुँचना है या देर से। क्योंकि जल्दी पहुँचना है तो मुजफराबाद जाना पड़ेगा अन्यथा अगर तुम्हें कोई और छोटा रास्ता पता है तो मुझे बता दो। मै कम्बल लपेट कर दीवार पर पीठ टिका कर बैठ गया। वह कुछ देर चुपचाप बैठी रही और इसी दौरान मुजफराबाद जाने वाली दो बसें और मेरे सामने से निकल गयी थी। मै अपने उपर नियन्त्रण खोता जा रहा था। हर बीतते पल के साथ मुझे खतरा बढ़ता हुआ दिख रहा था।

अबकी बार जैसे ही मुजफराबाद की बस आयी मैने जबरदस्ती उसका हाथ पकड़ा और लगभग खींचते हुए उस बस मे चढ़ गया था। बस मे भीड़ होने के कारण वह कुछ बोलने की स्थिति मे नहीं थी। शाम पाँच बजे तक हम मुजफराबाद पहुँच गये थे। बस स्टैन्ड पर उतर कर मै बाजार की दिशा मे चल दिया। वह चुपचाप मेरे पीछे चलती हुई आ गयी थी। एक बिरयानी के ठेले की आढ़ मे उप्युक्त स्थान देख कर हम दोनो बैठ गये। मेरा कन्धा एक बार फिर से दर्द से झनझना रहा था। अपना ध्यान दर्द से हटा कर मैने धीरे से पूछा… बानो, अपने साथ कुछ खाना वगैराह लायी हो? उसने सिर हिला कर मना किया तो मैने ठेले से कुछ रुमाली रोटियाँ और मटन सालन खरीद कर अपने बैग मे रख लिया और उसी के ठेले से अपनी बोतल मे पानी भर कर रात की तैयारी पूरी कर ली थी। लम्बा पहाड़ी सफर था जिसके लिये फिलहाल मुझे आराम करना जरुरी था। अंधेरा होने मे अभी कुछ समय था तो कम्बल मे मुँह छिपा कर बैठ गया था।

अचानक बाजार मे शोर मच गया जिसके कारण मैने कम्बल से बाहर झाँक कर देखा तो जीपों का काफिला नजर आया। हर जीप मे राईफलें टाँगे जवान लड़को का झुन्ड बैठा हुआ था। वह डर से सरक कर मेरे निकट आ गयी थी। मैने महसूस किया कि उसका जिस्म कांप रहा था। मैने धीरे पूछा… बानो, यह तुम्हें ढूंढ रहे है? वह धीरे से बुदबुदायी… जी। मैने एक हाथ उसके कन्धे पर रख कर अपने निकट खींच कर कर कहा… अपना सिर मेरे कन्धे पर रख कर आँख मूंद कर बैठ जाओ। डरो नहीं बानो। तुम्हें कुछ नहीं होगा। एक पल के लिये वह झिझकी और फिर धीरे से अपना सिर मेरे कंधे पर रख कर बैठ गयी थी। मेरी नजर उन जिहादियों पर टिकी हुई थी और वह लोग बाजार मे इधर-उधर भाग रहे थे। कोई बस स्टैन्ड मे खड़ी हुई बसों के अन्दर झाँक रहा था और कोई होटलों मे घुस कर छानबीन कर रहा था। एक घन्टे तक बाजार मे अफरातफरी का माहौल बना रहा था। अचानक हल्ला हुआ और फिर सारे लड़के गाड़ियाँ मे भर कर हाईवे की ओर निकल गये थे। उसने एक गहरी साँस छोड़ कर कहा… बड़े मियाँ, मुझे इसी का डर था। मैने धीरे से उसकी पीठ थपथपा कर कहा… बानो अब खतरा टल गया है। अंधेरा होते ही हम यहाँ से चल देंगें। वह चुपचाप बैठ गयी थी।