रविवार, 29 जनवरी 2023

 

 

काफ़िर-36

 

रावलपिंडी

पाकिस्तान जीएचक्यू मे माहौल तनावपूर्ण था। जनरल शरीफ बेहद गुस्से मे था। जनरल मंसूर बाजवा का इंतजार हो रहा था। पिछले पाँच मिनट मे दस बार मंसूर बाजवा के बारे मे पूछ लिया था। अभी कुछ देर पहले बलूचिस्तान की ओर से भी बुरी खबर आयी थी कि एक पेट्रोलिंग पार्टी पर फिदायीन हमले मे आठ सैनिक शहीद हो गये थे। जनरल मंसूर बाजवा के कार से उतरते ही जीएचक्यू मे एकाएक शांति छा गयी थी। खबर आग की तरह फैल गयी थी कि आज मंसूर बाजवा की सारी हेंकड़ी निकल जाएगी। जनरल शरीफ का असिस्टेन्ट दरवाजे के बाहर पहुँच गया था। मंसूर बाजवा के पहुँचते ही उसने जनरल साहब को खबर पहुँचा दी थी। दरवाजे पर धीरे से दस्तक देकर मंसूर बाजवा अन्दर चला गया। सभी लोगों की नजर जनरल शरीफ के आफिस की ओर लगी हुई थी।

…आईये मंसूर। वहाँ क्या हुआ? …जनाब, मैने इज्तिमा को स्थगित कर दिया है। मेरे अफसर ने एक ही वार मे बाजार के मुख्य खिलाड़ियों को किनारे लगा दिया है। अब वह जमात पर काबिज होने की तैयारी कर रहा है। एक बार जमात-ए-इस्लामी पर हमारा आदमी काबिज हो गया तो भारत के सभी हिस्सों मे पहुँचने का हमें रास्ता मिल जाएगा। …उन तंजीमों से क्या कहोगे? …सर, कुछ पैसे और असला दिखा कर उन्हें चुप कराने मे कोई मुश्किल नहीं आयेगी। …शतरंज की बिसात पर प्यादे शहीद करके अपने वजीर को एक सुरक्षित स्थान पर बिठा कर तुमने बेहद महत्वपूर्ण काम को अंजाम दिया है। अब आगे क्या? …जनाब, हमारा एक नकली करेन्सी का कन्साईन्मेन्ट पकड़ा गया है। अगर इसमे वह कन्साईन्मेन्ट बच गया होता तो काफिरों के यहाँ दीवाली तीन महीने पहले मन जाती परन्तु अब कुछ दिन इंतजार करना पड़ेगा। …वलीउल्लाह की ओर से क्या खबर है? …जनाब, समय-समय पर खबर देता रहता है परन्तु अभी तक स्ट्रेटिजिक लोकेशन्स की खबर नहीं मिली है। एक युनिट को मैने सिर्फ इसी काम पर लगा रखा है। …उस पर दबाव डालने की जरुरत नहीं है। किसी महत्वपूर्ण स्थान पर पहुँचने के लिये उसे समय दो। वह हमारा डीप एस्सेट है और उसका इस्तेमाल सही वक्त पर करना है। …जी जनाब, इसीलिये हम अपनी ओर से कभी संपर्क नहीं करते है। …गुड। जीएचक्यू मे आज चर्चा गर्म है कि आईएसआई चीफ की खातिरदारी होने वाली है। …सर, सबको खुश होने दिजिये। जल्दी ही आपको जमात की ओर से खुशखबरी मिल जाएगी। जनरल मंसूर बाजवा अपनी कुर्सी छोड़ कर उठ कर खड़ा हुआ और मुस्तैदी से जनरल शरीफ को सैल्युट करके कमरे से बाहर निकल गया था।   

जीएचक्यू की सैकड़ों आँखे मंसूर बाजवा के उतरे हुए चेहरे को देख कर अन्दर ही अन्दर खुशी से झूम रही थी। जीएचक्यू मे फोन खड़कने आरंभ हो गये थे।

 

मै कुछ देर उसके फ्लैट के सामने खड़ा रहा था। घंटी बजाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। तभी अचानक मुख्य द्वार खुला और आसिया सामने खड़ी हुई मुझे घूर रही थी। मै कुछ कहता कि तभी वैजयंती और एक और लड़की हँसते हुए आसिया के पीछे बाहर निकल आयी थी। …तू ठीक कह रही थी। यह अन्दर आने से डर रहा था। …अब अन्दर आना है या आज बाहर पैसेज मे सोने का इरादा है। आसिया की घुड़की सुन कर मै तुरन्त अन्दर चला गया था। …समीर, आज पी कर आया है? मै इसी प्रश्न से बचने का प्रयत्न कर रहा था। मैने हिचकिचाते हुए धीरे कहा… हाँ। आसिया सेना की मीटिंग मे कभी जबरदस्ती पीनी पड़ जाती है। तभी वैजयंती बोली… और खाना? …मै डिनर करके आया हूँ। आसिया की ओर देखने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी। वह सब सोफे पर जा कर बैठ गयी थी। शर्मसार होकर मै एक विद्यार्थी की भाँति उन तीनो के सामने खड़ा हो गया था। अचानक मेज के नीचे से बोतल और ग्लास मेज पर रखती हुए उस अनजान लड़की ने कहा… हम सोच रहे थे कि आज तुम्हारे आने की पार्टी करेंगें। खैर गर्ल्स तुम अपने ग्लास तो खाली करो। मै भौंचक्का सा आसिया को देख रहा था। उसने एक साँस मे अपना ग्लास खाली किया और मेज पर ग्लास रख कर बोली… शाम से तुम्हारा इंतजार चल रहा था। यह मेरी दोस्त यासमीन है। यह भी हमारे साथ अस्पताल मे काम करती है। उसके अन्दर आये हुए इस बदलाव को देख कर मै स्तब्ध खड़ा रह गया था।

मै उनके सामने बैठ गया परन्तु मेरी नजर आसिया पर टिकी हुई थी। उन्होंने जल्दी से अपनी ड्रिंक्स समाप्त की और खाना खाने बैठ गयी। …आसिया मै कपड़े बदल कर आता हूँ तब तक आप लोग भोजन किजीये। यह बोल कर मै अपने कपड़े बदलने चला गया। जब तक कपड़े बदल कर आया तब तक उनका खाना समाप्त हो गया था। …इतनी जल्दी। …समीर, डाक्टरों की जिंदगी ऐसी ही होती है। ड्युटी को छोड़ कर बाकी सभी काम जल्दी-जल्दी करने पड़ते है। कुछ देर उनकी कहानी सुनी और फिर आसिया ने कहा… समीर, तुम मेरे कमरे मे सो जाओ। मै यासमीन के साथ सो जाऊँगी। सब कुछ वैसे छोड़ कर तीनों सहेलियाँ उठ कर चल दी थी। मै कुछ देर वहाँ बैठा रहा फिर कुछ सोच कर मेज पर रहे हुए बर्तनों को उठा कर किचन मे रखा और फिर मेज साफ करके बिखरा हुआ सामान और खाली बोतल डस्ट बिन मे डाल कर सोने चला गया था।

सुबह कहीं मोटर चलने की आवाज से मेरी नींद टूट गयी थी। मै आँख मल कर उठ कर बैठने लगा तो मेरी नजर आसिया पर पड़ी जो हेयर ड्रायर से अपने बाल सुखाने मे व्यस्त थी। मुझे उठते हुए देख कर बोली… सौरी। मेरी शिफ्ट है तो जाने के लिये तैयार हो रही थी। पता नहीं उसे तैयार होते हुए देख कर मुझे अंजली की याद आ गयी थी क्योंकि वह भी सुबह ऐसे ही तैयार होकर भागती हुई दिखती थी। …क्या देख रहा है? मैने मुस्कुरा कर कहा… अंजली भी सुबह ऐसे ही भागती हुई दिखती थी। उसने जल्दी से अपना सफेद कोट उठाया और स्टेथेस्कोप गले मे लटका कर बोली… समीर आज घर जल्दी आ जाना। बस इतना बोल कर वह चली गयी थी। मै आराम से उठा और अपने लिये चाय बनाने के लिये चल दिया। किचन मे यासमीन अपने लिये चाय बना रही थी। मुझे देख कर उसने एक कप पानी और डाल कर बोली… आसिया तो चली गयी होगी? …हाँ। आपको कितने बजे जाना है। …मेरी ओपीडी है। नौ बजे पहुँचना है। …और वैजयंती? …उसकी दोपहर की शिफ्ट है। हमने आराम से बात करते हुए चाय पी और फिर रोजमर्रा के काम मे व्यस्त हो गये थे।

आसिया ने कैन्टीन से नाशता भिजवा दिया था। नाश्ता करके मै आप्रेशन आघात-2 की रुपरेखा तैयार करने मे जुट गया था। मै दोपहर तक उसमे डूबा रहा था। आसिया के आगमन पर हमने साथ लंच किया और फिर वह जाते हुए एक बार बोली… आज टाइम से घर आ जाना। …आज मै कहीं नहीं जा रहा हूँ। आज जल्दी लौट आना। आसिया विदा लेकर चली गयी थी और मै एक बार फिर से अपने काम मे लग गया था।

चार बजे आसिया अस्पताल से आ गयी थी। …आसिया आज का क्या प्रोग्राम है? …कोई खास नहीं। …तो चलो सबको लेकर बाहर चलते है। …नहीं समीर, यासमीन तो कुछ देर मे आ जाएगी। वैजयंती आठ बजे ही आ सकेगी। हम चाय पीने बैठ गये थे। कुछ देर के बाद यासमीन भी आ गयी थी। सात बजे तक उन्होंने अपने अस्पताल के बारे बहुत कुछ जानकारी मुझे दे दी थी। आसिया उठते हुए बोली… समीर, कल हम वोदका ले रहे थे। क्या तुम्हारे लिये वोदका चलेगी? …चलेगी। मेरी कोई खास प्रीफ्रेन्स नहीं है। …टोमेटो सूप या आरेन्ज जूस। …तुम दोनो कैसे लेती हो? …आरेन्ज जूस। …ठीक है। मै भी आरेन्ज जूस से ले लूंगा। यासमीन कैन्टीन से कुछ खाने का सामान ले आयी थी। सारा सामान मेज पर सजा कर पीने बैठ गये थे।

एक घूँट गले से उतार कर मैने पूछा… तुमने इतनी सारी बातें अस्पताल के बारे मे बता दी कि अगर अब तुम मुझे अपने अस्पताल मे छोड़ दोगी तो भी बिना बताये मै सबको बड़ी आसानी से पहचान लूँगा। उस रात हम देर तक खाते पीते रहे थे। ग्यारह बजे आसिया ने महफिल बर्खास्त करते हुए कहा… सुबह सात बजे की शिफ्ट की ड्युटी है। मैने उसे टोकते हुए कहा …आसिया, मै कल सुबह नौ बजे चला जाऊँगा। …तुम्हारी फ्लाईट तो दो बजे की है। मै बारह बजे तक आ जाउँगी फिर साथ लंच करेंगें। …आसिया,  सुबह की मीटिंग के बाद मै वहीं से फ्लाईट पकड़ने के लिये एयरपोर्ट निकल जाऊँगा। एक ही पल मे आसिया के चेहरे पर मायुसी छा गयी थी। …आसिया, इसमे उदास होने की क्या बात है। अब तो मेरे चक्कर लगते रहेंगें। वह मुस्कुरा कर बोली… समीर, जब से मैने श्रीनगर छोड़ा है तब से मेरे घर का कोई सदस्य मेरे साथ नही रहा है। आफशाँ बैंगलौर मे रही परन्तु वह मुझसे कालेज मे मिलने आती थी। वह कभी मेरे रुम पर नहीं आयी। यह मेरी अकेले की कहानी नहीं है। यासमीन भी जब से हैदराबाद से आयी थी तभी से वह भी अकेली रह रही है। हम साल-दो साल मे कुछ दिन अपने घर पर गुजारने के लिये जरुर चले जाते है परन्तु अपने लोगों से ही कट कर रह गये है। अब तो अम्मी भी नहीं रही और जैसा तुम बता रहे हो कि अब्बा की हालत भी नाजुक है तो मुझे अब अकेले रहने मे डर लगने लगा है।

उसने मुझे अपने दिल मे छिपी हुई शिकायत से अवगत करा दिया था। मैने उठ कर उसे अपनी बाँहों मे जकड़ कर कहा… आसिया, बचपन से मै तुम्हारे साथ रहा हूँ। जब भी रात मे डर लगता तो तुम्हारे सीने मे मुँह छिपा कर सो जाता था। तुम मेरे होते कभी अकेली नहीं हो सकती। जब भी अकेलापन महसूस करो तो वहाँ आ जाना वर्ना मुझे खबर कर देना। उसकी दोनो सहेलियाँ रुआँसी सी हम दोनो को देख रही थी। कुछ हम सब पर नशे का असर था और कुछ एकाकीपन का डर था। हम सबके हालात लगभग एक जैसे ही थे। कुछ देर बात करने के बाद वैजयंती, फिर आसिया और यासमीन सोने चली गयी थी। मै सारा सामान समेट कर आसिया के कमरे मे चला गया था।

मै अपने बिस्तर पर पड़ा हुआ नीलोफर और फारुख की युगलबंदी के बारे मे सोच रहा था कि अचानक दरवाजा खुला और आसिया लड़खड़ाती हुई कमरे मे आकर बोली… समीर। मैने उठ कर उसे संभाल कर बिठाते हुए पूछा… क्या हुआ? …समीर, उस शाम घर के पास वाली पुलिया की बात याद है। एकाएक मेरा अतीत मेरी आँखों के सामने आ गया था। …हाँ, मुझे सब याद है। …तो मै आज वापिस अपने बिस्तर पर आ गयी हूँ। एक पल के लिये उसकी बात सुन कर मै चौंक गया था। मै कुछ बोलने के लिये मुँह खोला ही था कि मुझे अपनी मनोस्थिति का ख्याल आया जब आसिया ने यह बात मुझसे उस शाम कही थी। मेरा दिल टूट गया था। मैने धीरे से उसे बिस्तर पर लिटाया तो उसकी बाँहे मेरे गले के इर्द गिर्द लिपट गयी थी। मैने धीरे से झुक कर उसके होंठ चूम कर कहा… आसिया, हम दोनो नशे मे है। वह झुंझलाते हुए बोली… नशे मे होने के कारण ही तो मै यहाँ आने की हिम्मत जुटा सकी हूँ। क्या तुम भी मुझे अपनी जिंदगी से सभी की तरह एक फटे पुराने कागज की तरह उठा कर बाहर फेंक दोगे? एक बार बचपन का समीर मुझ पर दुबारा हावी हो गया था। मैने उसके सीने मे सिर छिपा कर उससे अपनी बाँहों मे जकड़ कर लेट गया था।

उसने नशे मे लड़खड़ाती हुई आवाज मे कहा… …समीर, शैतान मेरी गुफा मे छिप कर बैठ गया है। मुझे डर लग रहा है। मै अपने बचपन मे लौट आया था। उसने मेरे होंठों को अपने होंठों मे दबा कर रस सोखना आरंभ कर दिया था। कुछ देर तक मेरे होंठों के साथ खेलेने के पश्चात उसने अपना कुर्ता उतार कर अपना सीना अनावृत करके एक स्तन को मेरे मुख पर लगा दिया था। एक पल के लिये मै रुक गया और उसके उपर छाने के बजाय मेरी उँगलिया उसके स्तन की गोलाईयों को नाप रही थी और उनके सिरे पर उत्तेजना से अकड़े हुए स्तनाग्र छेड़ रही थी। वह नशे मे बड़बड़ाती जा रही थी और उसके मुख से लगातार सिस्कारियां विस्फुटित हो रही थी। उत्तेजना से उसके स्तानग्र अकड़ गये थे। मेरे होंठ, जुबान और उँगलियों ने उन पर वार करना आरंभ कर दिया था। थोड़ी देर के बाद मैने उसकी शलवार निकाल कर  उसकी टांगों को अलग करके जाँघों के बीच मे आ गया और कोमल हिस्से को लाल करने मे जुट गया था। वह मचल रही थी परन्तु मै उपर की ओर बढ़ता चला गया। बाल रहित योनिमुख मेरे सामने आ गया था। मेरी उँगलियों ने उसके स्त्रीत्व के द्वार को खोल कर उसके अंकुर पर अपनी जुबान से पहला वार किया और फिर एक लम्बा दौर आरंभ हो गया था। मेरे होंठ उसके अंकुर पर टिक गये थे और मेरी उंगली गुफा मे छिपे हुए शैतान को निकालने मे जुट गयी थी। आसिया की घुटी हुई आहें और चीखें लगातार निकल रही थी।  वह बार-बार उठने की कोशिश करती परन्तु मेरी शक्ति के आगे वह हिलने की स्थिति मे नहीं थी। उत्तेजना के चरम पर पहुँच कर उसने मेरे गले को अपनी जाँघों मे जकड़ लिया था। एक पल के लिये उसका जिस्म अनियंत्रित हुआ और एक गहरा झटका खाकर पूरे जिस्म मे कंपन आरंभ हो गया था। …शैतान भाग गया। मै धीरे से बड़बड़ाया और उसको अपनी बाँहों मे बाँध कर लेट गया। उसकी तेज चलती हुई साँसे धीरे-धीरे सामान्य हुई और वह जल्दी ही नींद मे खो गयी थी। मै अपने चेहरे को उसके सीने मे छिपा कर सो गया था।

…समीर, मै जा रही हूँ। मैने आँख खोल कर उसकी ओर देखा तो वह जल्दी से झुकी और मेरे होंठ चूम कर कमरे से बाहर चली गयी थी। मै भी जल्दी से तैयार हुआ और नाश्ता करके एयरपोर्ट की ओर निकल गया। मै आज वक्त से पहले पहुँच गया था। आफीसर्स वेटिंग लाउन्ज खाली पड़ी हुई थी। यहाँ पर सिर्फ सेना के तीनों अंगो के सर्विंग आफीसर ही प्रवेश कर सकते थे। दस बजे जनरल रंधावा और वीके आते हुए दिखायी दिये तो मै खड़ा हो गया। अजीत कुछ देर के बाद पहुँचे थे। जब सब बैठ गये तो वीके ने कहा… बोलो मेजर, क्या सोचा? …सर, मेरा टार्गेट नीलोफर लोन है। मकबूल बट और नीलोफर के बीच हुई बातचीत की एक रिकार्डिंग मेरे पास है। उसी बातचीत के जरिये हमने कटरा मे तीन ट्रकों को जब्त किया था। उन ट्रकों मे आठ करोड़ के जाली करेंसी नोट और चरस का एक भारी कनसाइनमेन्ट मिला था। मै उचित मौका देख कर नीलोफर को अनौपचारिक रुप से अपनी हिरासत मे लूँगा। उसे दुनिया की नजरों से दूर करके कुछ दिन डिटेन्शन मे रख कर उसकी रिकार्डिंग सुना कर जवाब मागूँगा। मुझे पता है कि उसके पास इसका कोई जवाब नहीं होगा तो उसको थोड़ा सा सेना के टार्चर का अनुभव करवा कर फारुख के असली उद्देश्य को पता करने की कोशिश करुँगा। तीनो चुपचाप मेरी योजना को बड़े ध्यान से सुन रहे थे।

… सर, जब यह सब उसके साथ हो रहा होगा तब मै उन्हीं के एक आदमी के द्वारा जमात मे यह खबर फैलवा दूँगा कि उसके गायब होने मे फारुख मीरवायज का हाथ है। इसकी जानकारी मुजफराबाद मे मुन्नवर लखवी के पास पहुँचा कर मै उसे बता दूँगा कि फारुख ने अपने रास्ते से हटाने के लिये नीलोफर को काउन्टर इन्टेलीजेन्स के हवाले कर दिया है। उसके बाद मै नीलोफर के सामने एक प्रस्ताव रखूँगा कि अगर वह फारुख के खिलाफ कोई पुख्ता सुबूत देगी तो मै उसे सुरक्षित सीमा पार पहुँचा दूँगा। मुझे लगता है कि कुछ दिन सेना के टार्चर के बाद वहाँ से छूटने के लिये वह कुछ भी करने को तैयार हो जाएगी। एक बार फारुख के खिलाफ सुबूत हमारे हाथ लग गये फिर हम कानूनी रुप से फारुख को हिरासत मे ले सकते हैं। मैने अपनी योजना की मुख्य रुपरेखा उनके सामने रख दी थी।

कुछ देर सोचने के बाद अजीत ने कहा… समीर, मेरी मानो तो फारुख को कानूनी शिकंजे से दूर रख कर उसके खिलाफ सुबूत दिखा कर उसे हमारे लिये काम करने के लिये मजबूर करो। अगर वह इंकार करे तो उसको धमकी दो कि हम उसे प्लेट मे सजा कर लखवी परिवार को सौंप देंगें। हमे कुछ ऐसा करना चाहिये कि मंसूर बाजवा का वजीर हमारा प्यादा बनने के लिये मजबूर हो जाए। वीके और रंधावा ने तुरन्त अजीत की बात का समर्थन कर दिया। …सर, वह आईएसआई का आप्रेटिव है। इतनी आसानी से उसका मनोबल नहीं टूटेगा। …तो नीलोफर से उसकी किसी कमजोरी का पता लगाओ। हमारा उद्देश्य उसको अपना प्यादा बनाने का होना चाहिये। …सर, ब्रिगेडियर चीमा की मदद के बिना यह काम संभव नहीं है। वीके ने तुरन्त कहा… हम ब्रिगेडियर चीमा से बात कर लेंगे परन्तु तुम्हारी पूरी कोशिश होनी चाहिये कि फारुख हमारे लिये काम करने के लिये मजबूर हो जाये। यह हमारा वादा है कि आप्रेशन आघात-2 को ब्रिगेडियर चीमा की ओर से पूरी मदद मिलेगी। कुछ देर तक हम हर पहलू पर बात करके पूरे आप्रेशन को फाईन ट्यून करने मे जुट गये थे। एक बजे से पहले तीनों मुझे वहीं छोड़ कर चले गये और मै सिक्युरिटी चेक के लिये निकल गया।

शाम को साढ़े चार बजे जब श्रीनगर एयरपोर्ट पर उतरा तब तक मेरी योजना एक पुख्ता रुप ले चुकी थी। मेरी जीप एयरपोर्ट पर मेरा इंतजार कर रही थी। जीप मे बैठते ही मै कमांड अस्पताल की ओर निकल गया था। ड्युटी डाक्टर ने बताया कि मकबूल बट और अब्दुल लोन की हालत अब स्थिर हो गयी है परन्तु खतरा अभी टला नहीं है। कुछ देर वहाँ बैठ कर मै मकबूल बट के घर की ओर चला गया था। मकबूल बट का मकान एक वीरान खंडहर की तरह दिख रहा था। बड़े-बड़े शीशे की जगह सिर्फ छेद दिख रहे थे। बाहर की दीवार पूरी तरह से उधड़ गयी थी। बड़ा सा हरा भरा लान अब उजड़ा हुआ दिख रहा था। मकान के लोहे के गेट पर पुलिस द्वारा नोटिस लगा हुआ था। एक नजर चारों ओर डाल कर लोहे का गेट खोल कर मै अन्दर चला गया। मेरे लिये बहुत सी मिरियम की यादें इस घर से जुड़ी हुई थी। मकान मे प्रवेश करते ही मेरी नजर मकबूल बट के स्टडी रुम पर पड़ी तो मै दरवाजा खोल कर अन्दर चला गया था। मेरी टीम भी मेरे साथ अन्दर चली आयी थी। कुछ सोच कर मैने कहा… सुजान सिंह कल सुबह मुझे आफिस छोड़ने के बाद एक माइन स्वीपर का इंतजाम करना। …जी सर। …इस  घर मे एक तिजोरी कहीं है जिसका पता हमे लगाना है। …जी जनाब। इतनी बात करके मै वहाँ से निकल कर मिरियम के कमरे की ओर चल दिया। तभी हूटर बजाती हुई पुलिस की जीप लोहे के गेट के पास रुकी और कुछ पुलिस वाले भागते हुए अन्दर आ गये थे।

मै सादे कपड़ों मे था लेकिन मेरे साथ पाँच सैनिक अत्याधुनिक हथियारों से लैस खड़े हुए थे। शायद इसीलिये उन्होंने थोड़ी इज्जत से पूछा… आप यहाँ क्या कर रहे है? … मकबूल बट मेरे अब्बा है। मेरे अब्बा का मकान मेरा भी है। मै मकान का हाल देखने आया था। इस मकान को ऐसे तो नहीं छोड़ा जा सकता है। आपका कैसे आना हुआ? …जनाब, आपके पड़ोसी ने थाने मे खबर की थी कुछ लोग घर मे घुसे है। हम चेक करने आये थे। आपका नाम? मैने अपना परिचय पत्र दिखा कर कहा… समीर बट। उस रात यहाँ कितने लोग मारे गये थे? …चौबीस आदमी और एक औरत। …मुझे मरने वालों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट की कापी चाहिए। कुट्टी आप इनके साथ थाने चले जाएँ और सबकी पोस्टमार्टम की रिपोर्ट की कापी लेकर यहीं आ जायें। दीवानजी आपको कोई एतराज तो नहीं। …जी नहीं जनाब। मेरी गुजारिश है कि अब हम यहाँ पर कोई गार्ड नहीं दे सकते। आपको मकान की रखवाली के लिये अपना ही कुछ इंतजाम करना पड़ेगा। …दीवानजी, कल तक आप यह जिम्मेदारी उठा लीजिये। कल शाम तक मै किसी का इंतजाम कर दूँगा। इतनी बात करके हम मकान से बाहर निकल आये थे। पुलिस के दो सिपाही वहीं छोड़ कर बाकी सिपाही वापिस थाने चले गये थे। मेरी जीप लेकर कुट्टी भी उनके पीछे चला गया था।

अंधेरा होने लगा था। बिजली के बल्ब से सड़क रौशन हो गयी थी। हम लोहे के गेट पर खड़े हुए बातचीत मे उलझे हुए थे परन्तु मेरी नजर पड़ौस के मकानों पर जमी हुई थी। आसपास के पड़ौसी सामने आने के बजाय अपनी खिड़की से हमे देख रहे थे। कुट्टी के आते ही हम जीप मे सवार हुए और दोनो सिपाहियों से अल्विदा करके घर की ओर निकल गये थे। जीप की आवाज सुन कर दोनो बहनें बाहर निकल आयी थी। मुझे छोड़ कर जीप वापिस कोम्पलेक्स वापिस चली गयी थी। …कहाँ गये थे? …दिल्ली। उन दोनो के साथ इसी प्रकार से बात आरंभ होती थी और फिर वह बात देर रात तक घूमते हुए बिस्तर पर पहुँच कर समाप्त हो जाती थी। चाय पीते हुए मैने पूछा… नीलोफर का कुछ पता चला? …समीर हमने वहाँ जाना बन्द कर दिया है। बेकार समय खराब होता है। …आयशा भी तो जाती है तो तुम्हें जाने मे क्या परेशानी है? …उसने भी जाना बन्द कर दिया है। मै कुछ बोलता उससे पहले मेरे मोबाईल की घन्टी बज उठी थी। …हैलो। …समीर, मै फैयाज खान। …बोलिये अंकल, हमारे केस का क्या हुआ? …बेटा तीन दिन से तुम्हारा फोन  लगाने की कोशिश कर रहा था। तुम्हें बताना था कि प्रोबेट का काम पूरा हो गया है। तुम्हें अब कानूनी रुप से सारी जायदाद का चार्ज लेना है। मै कागज भिजवा दूँगा तुम साइन करके मेरे पास भिजवा देना। …अंकल, आप अगर घर आ सकें तो आपसे एक कानूनी सलाह लेनी है। आपके पेपर्स भी साइन हो जाएँगें और उस मसले को भी सुलझा लूँगा। …ठीक है बेटा कल शाम को पेपर्स लेकर घर आ जाऊँगा। यह बोल कर फैयाज खान ने फोन काट दिया था।

खाने के बाद मै अपने कमरे मे बैठ कर पच्चीस पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स देखने बैठ गया था। कुछ के चेहरे साफ दिखाई दे रहे थे और कुछ के चेहरे वीभत्स की श्रेणी मे भी रखने लायक नहीं थे। मुझे उनके मरने के कारणों से कोई सरोकार नहीं था। मै उनके बारे मे जानना चाहता था। अगर मरने वाले लोग फारुख के साथ आये थे तो फिर वह पीरजादा द्वारा भेजा गया जैश का जिहादी लशकर हो सकता था। अगर यह जिहादी हिज्बुल या लश्कर-ए-तैयबा के थे तो मेरा बहुत बड़ा काम हल हो सकता था। परन्तु मृतकों की पहचान कौन कर सकता था? मेरे सामने यह सवाल खड़ा हुआ था। दोनो लड़कियाँ देर रात को मेरे कमरे आयी तो मुझे सोच मे डूबे हुए देख कर मेरे निकट आकर बैठ गयी थी। जन्नत ने पूछा… क्या सोच रहे हो? मैने जल्दी से सभी कागज इकठ्ठे करके उसके सामने रख कर कहा… देखो इन लोगों को और बताओ कि क्या तुमने पहले कभी इनको देखा है? उन मृतकों के चेहरे देखते हुए आस्माँ मुँह बनाते हुए बोली… ऐसे डरावने चेहरा दिखा कर तुम क्या अपना पीछा छुड़ाना चाहते हो? अचानक जन्नत ने एक आदमी को पहचानते हुए कहा… यह तो शफीकुर लोन के लिये गोल्डन के गोदाम मे काम करता था। आस्माँ यह आदमी एजाज और फरहत के साथ कई बार घर पर आया था। आस्माँ ने वह चेहरा ध्यान से देखा और फिर बोली… यह तो गोदाम मे काम करता था। इसका क्या नाम था? कुछ सोच कर आस्माँ ने कहा… जावेद। मैने उस आदमी की पोस्टमार्टम की रिपोर्ट पर नाम देखा तो उस पर जावेद लिखा हुआ था। एकाएक मै उठ कर बैठ गया था।

इसका मतलब यह अब्दुल लोन के साथ वहाँ आया था। उन्होंने चौबीस तस्वीरें देख कर सिर्फ तीन लोगों की शिनाख्त की थी परन्तु मेरे लिये इतना ही काफी था।  मैने जल्दी से एक सेट तैयार किया जिसमें वह तीन थे। जिनके चेहरे गोलीबारी से नष्ट हो गये थे उनको अलग रख दिया क्योंकि उनकी शिनाख्त नहीं हो सकी थी। कुल मिला कर वह ग्यारह लोग थे। बाकी दस मृतकों का एक सेट तैयार करने पश्चात हम तीनो पिछले कुछ दिनों की कसर पूरी करने मे जुट गये थे। जन्नत और आस्माँ अब तक मेरी जिस्मानी जरुरतों से पूरी तरह परिचित हो गयी थी। उनके साथ रात बिता कर सुबह तैयार होकर अपने आफिस निकल गया था।

आफिस मे पहुँचते ही मेरे फोन की घंटी बज उठी थी। …हैलो। …सर, मै कैप्टेन नीलकंठ फ्राम एमआई। …बोलिये कैप्टेन। …सर आपको कुछ दिखाना है। आपने सात अंकों के नम्बर ढूँढने के लिये कहा था। इसीलिये आपको कुछ दिखाना है। मैने जल्दी से कहा… कैप्टेन आप मेरे आफिस आ जाईये। …सर, आपको यहाँ आना पड़ेगा। …कैप्टेन, कहाँ आना है? …सर, बेसमेन्ट की फारेन्सिक लैब मे आ जाईये। मै जल्दी से उठा और बेसमेन्ट की ओर चल दिया। पहली बार मैने अपने आफिस के बेसमेन्ट को देखा था। पूरा बेसमेन्ट ही फारेन्सिक लैब बना हुआ था। कैप्टेन नीलकंठ मुझे लिफ्ट के सामने ही मिल गया था। कैप्टेन नीलकंठ मुझे कंप्युटर लैब मे ले गया जहाँ लाइन से लोग कंप्युटर टर्मिनल पर काम कर रहे थे। कैप्टेन नीलकंठ एक कंप्युटर के सामने जाकर रुक गया और फिर एकाएक उसका काला स्क्रीन जिवित हो उठा था। एक एक्सेल फाइल खुली हुई थी जिसमें सात अंको के दो नम्बर और उसके आगे एक तारीख दी हुई थी। ऐसी उसमे चार एन्ट्री थी और सारी तारीखें सिर्फ एक महीने का पुराना रिकार्ड था। उन सात अंकों के नम्बरों को देख कर मेरे दिल की धड़कन बढ़ गयी थी। …सर, अभी तक हम इसको पुरी तरह से डिकोड नहीं कर पाये है। बहुत कठिन एन्क्रिप्शन टेक्नोलोजी इस्तेमाल की है। …कैप्टेन, क्या गूगल का कनेक्शन यहाँ मिल सकता है? …नहीं सर। डेटा सीक्रेसी के कारण। यहाँ पर कोई एप्लीकेशन काम नहीं करती है। …मै फिर यह चार तारीखें लिख लेता हूँ। मैने जल्दी से चारों तारीख लिखी और कैप्टेन नीलकंठ को धन्यवाद कह कर अपने आफिस की ओर चल दिया।

आफिस पहुँचते ही एक-एक करके मैने चारों तारीख गूगल सर्च पर डाल कर देखी तो पहली तारीख पर रजौरी मे सीआरपीएफ की चौकी पर हमले के साथ दो चार महत्वपूर्ण राजनीतिक खबरें थी। दूसरी तारीख पर सोनमर्ग जाती हुई ग्रेनेडियर्स की युनिट पर फिदायीन हमले की कोशिश की गयी थी परन्तु उस हमले को विफल कर दिया गया था। सारे हमलावर मारे गये थे। उस तारीख को बहुत सी और कश्मीर से संबन्धित महत्वपूर्ण खबरें थी। मै तो अपने हिसाब से उन खबरों मे से एक खबर निकाल रहा था। यही हाल बाकी दो तारीखों का भी था। बहुत सी खबरो मे से मैने फिदायीन हमले तो चुने थे परन्तु उस दिन खबरे तो और भी थी जैसे कि राज्य सरकार मे उठापटक या नये मंत्रियों की घोषणा इत्यादि। कुछ सोच कर मैने कैप्टेन नीलकंठ को कुछ और समय देने का निर्णय लिया क्योंकि आधा-अधुरा ज्ञान हमें भ्रमित कर सकता था।

दोपहर के बाद ब्रिगेडियर चीमा की काल आ गयी थी। मै उनसे मिलने चला गया था। …मेजर आप्रेशन आघात-2 के लिये क्या सोचा है? …सर, वह तीन ट्रक जो कटरा मे पकड़े थे। उसकी पूछताछ के लिये अब्दुल लोन की मुँहबोली बेटी नीलोफर लोन को यहाँ लाना पड़ेगा। आखिरकार उस रिकार्डिंग से साफ है कि नीलोफर सब कुछ जानती थी। उसने ही मुंबई से एक ट्रक का इंतजाम किया था। इन्वोइस के हिसाब से तो तीनों ट्रक मे सीमेन्ट प्लांट की मशीनरी बतायी गयी थी परन्तु उन ट्रकों मे जाली करेंसी और कच्ची पहाड़ी चरस का कनसाइनमेंट था। …मेजर, तुम नागिन की पूँछ नहीं उसका फन पकड़ने की सोच रहे हो। …सर, हम कौनसा उसे डिटेन कर रहे है।  हमारा तो बस इतना उद्देशय है कि वह जो भी जानती है इन तीन ट्रकों के मामले मे बस वह हमे साफ-साफ बता दे।  …ओके मेजर, उसे बुला लो। अगर नहीं आती है तो फिर उठाने की सोचना। …थैंक्स सर। उसे औपचारिक तौर पर यहाँ पूछताछ के लिये बुलाने के लिये आपके लेटर हेड पर नोटिस जारी करना पड़ेगा। यह बात मैने उठते हुए बोली तो ब्रिगेडियर चीमा ने मुझे बैठने का इशारा करते हुए कहा… आफिशियल तरीके से बुलाना चाहते हो तो अगर वह आ गयी तब क्या करोगे? मैने मुस्कुरा कर कहा… सर, इतने दिन मे आपने मुझे कुछ तो सिखाया होगा। आप बेफिक्र रहे वह हर्गिज नहीं आयेगी। …मेजर, संयुक्त मोर्चा के बारे क्या करने की सोच रहे हो?  …सर, फिलहाल के लिये वह स्थागित हो गया है। अब वही तो आप्रेशन आघात-2 का मुख्य उद्देश्य है। इतनी बात करके मै उनके कमरे से बाहर निकल कर अपने आफिस की ओर चल दिया था।

ऐसा हर्गिज नहीं था कि मै ब्रिगेडियर चीमा से छिपा कर कुछ करना चाहता था परन्तु मेरे सीओ होने के कारण मेरे हर कार्य के प्रति उनकी जवाबदेही थी। अगर सब कुछ जानते बूझते उन्होंने मुझे अपनी योजना को कार्यान्वित करने की आज्ञा दी होती तो मुझसे ज्यादा वह बड़ी मुश्किल मे घिर सकते थे। यहाँ तो मेरा सारा आप्रेशन ही गैरकानूनी आधार पर ही टिका हुआ था। यही कारण था कि ब्रिगेडियर चीमा के सामने पूरा आप्रेशन आघात-2 खोला नही जा सकता था। नीलोफर कहाँ मिलेगी? मै अभी यही सोच रहा था कि ब्रिगेडियर चीमा का नीलोफर के नाम का नोटिस मेरे पास भिजवा दिया गया था। मैने वह नोटिस अपनी जेब मे रख लिया और अपने आफिस के बाहर निकल गया। मेरी जीप और मेरे साथी बाहर खड़े हुए थे। मुझे आते देख कर सभी सावधान हो गये थे। मेरे जीप मे बैठते ही सब धड़धड़ाते हुए पीछे बैठ गये और कुछ ही देर मे जीप कोम्पलेक्स के बाहर निकल गयी थी। …सुजान सिंह माइन स्वीपर रख लिया है? …जी जनाब। बस उसके बाद हम सीधे मकबूल बट के घर पहुँच गये थे।

घर के बाहर सिपाही पहरा दे रहे थे। आज तो हम सभी वर्दी मे थे। हमको जीप से उतरते देख कर दोनो सिपाही सावधान हो गये थे। …हमे अन्दर जाना है। उन्होनें कुछ नहीं कहा बस जल्दी से लोहे का गेट खोल दिया था। सुजान सिंह अपने साथियों को लेकर मकान मे दाखिल हो गया। मै उनके पीछे-पीछे चलते हुए बाहर लान मे टहलने लगा। थोड़ी देर के बाद मै वही गेट पर खड़े हुए सिपाहियों से बात करने लगा… पिछले कुछ दिनो मे कोई और भी यहाँ आया था? …कभी-कभी आस-पड़ोस के लोग टहलते हुए आ जाते है। इधर-उधर की बात करके वापिस चले जाते है साहब। दो घंटे के अथक परिश्रम के पश्चात कुट्टी दौड़ते हुए बाहर निकला और बोला… सर, वह हमे मिल गयी। मै उसके पीछे तेज कदमों से चल दिया। माईनस्वीपर ने छिपी हुई लोहे की तिजोरी को आखिरकार ढूँढ लिया था। स्टडी रुम मे लकड़ी के बुक शेल्फ और उसके पीछे लकड़ी पैनल की आढ़ मे एक फुल साईज की गोडरेज की इलेक्ट्रानिक तिजोरी छिपी हुई थी। …सुजान सिंह, अब एक बार पहली मंजिल के उस बेडरुम को भी चेक कर लो। मेरे साथी मिरियम के बेडरुम मे तिजोरी ढूँढने चले गये थे।

मैने स्टडी टेबल के नीचे जहाँ माईक्रोफोन लगाया था वहीं पर पांच अंकों का एक नम्बर उर्दू मे हाथ से लिखा हुआ था। मेरी नजर उस नम्बर पर माईक्रोफोन चिपकाते हुए पड़ गयी थी परन्तु तिजोरी का अता-पता नहीं था। इसी कारण आज तिजोरी को ढूँढने के लिये आया था। मैने एक बार वह नम्बर दोबारा से पढ़ा और फिर इलेक्ट्रानिक लाक को आन करके वही पाँच अंक दबा दिये। एक धीमी आवाज के साथ चकरी सी घूमी फिर एक खटके की आवाज हुई और तिजोरी का दरवाजा धीरे से खुल गया था। मैने जल्दी से उसे खोला और उसमे से सारा सामान निकाल कर माइनस्वीपर के बाक्स मे रख कर तिजोरी को बन्द कर दिया। थोड़ी देर के बाद मेरे सभी साथी नीचे आ गये थे। …सर, उस कमरे मे कोई तिजोरी नहीं मिली। मैने लकड़ी के पैनल की ओर इशारा किया… इसे वापिस वैसे ही सेट कर दो जैसे यह पहले था। …थापा यह बाक्स ले जाकर जीप मे रख दो। थापा ने बाक्स उठाते ही मेरी ओर देखा तो मैने मुस्कुरा कर कहा… बाक्स बहुत भारी है क्या? थापा जल्दी से बोला… नहीं सर। वह बाक्स लेकर तुरन्त बाहर निकल गया था। मेरे साथियों ने पहले पैनल को पीछे धकेल कर दीवार से चिपका दिया और फिर किताबो की अलमारियों को अपनी जगह पर यथावत टिका कर पहले जैसा कर दिया था। एक नजर मार कर हम सब लोग मकान से बाहर निकल आये थे। सुजान सिंह के हाथ मे माईनस्वीपर देख कर एक सिपाही बोला… यह क्या चीज है साहब? सुजान सिंह ने कहा… यह मशीन जमीन और दीवारों छिपे हुए बम्ब को ढूँढ लेती है। …तो अन्दर कोई बम्ब मिला? …अगर मिलता तो यहाँ पर हम नहीं बोम्ब स्क्याड खड़ा होता। मैने उन सिपाहियों से कुछ कहने के लिये मुँह खोला ही था कि वही चमचमाती हुई औडी सामने वाले मकान से निकल कर हमारी जीप के साथ आकर खड़ी हो गयी थी।

नीलोफर लोन हिजाब से सिर और चेहरा ढके हुए उसी अंदाज मे कार से उतर कर मेरे पास आकर बोली… तुम यहाँ क्या कर रहे थे? मैने अपने साथियों की ओर देखते हुए कहा… सुजान सिंह हम यहाँ पर क्या कर रहे थे? …साहबजी विस्फोटक तलाश रहे थे। मैने नीलोफर की ओर देख कर कहा… सुन लिया। …समीर, यह ठीक नहीं है। मेरी आवाज एकाएक कड़ी हो गयी थी। …नीलोफर बीबी, यह मेरे बाप का मकान है। मै यहाँ पर कुछ भी करुँ इससे तुम्हें क्या मतलब? मेरे साथ खड़े साथी सब दांये बाँये देखने लगे थे। मैने झुक कर उसके कान के पास जाकर धीरे से कहा… तुम सही समझ रही हो। मै यहाँ उनकी तिजोरी की तलाश मे आया था। मेरी बात सुन कर वह चौंक कर दो कदम पीछे हट गयी थी। मैने आराम से अपनी जेब से ब्रिगेडियर चीमा का नोटिस निकाला और एक कापी उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा… मुझे पता था कि तुम आज यहाँ जरुर आओगी इसलिये यह नोटिस मै खुद लेकर आया था। …यह क्या है? …पहले इसकी दूसरी कापी पर दस्तखत करके पावती की रसीद दे दो उसके बाद आराम से पढ़ना और अपने वकील को पढ़वाना। उसने एक नजर उस नोटिस पर डाली और फिर मेरे हाथ से पेन और कापी छीन कर जल्दी से उस पर साइन करके मेरी ओर बढ़ा दिया। …इस पर आज की तारीख और पावती का समय डालो। यह सेना का नोटिस है कोई प्रेम पत्र नहीं है। वैसे भी सरकारी कागज को हल्के मे नहीं लेना चाहिए। उसने जल्दी से तारीख और समय डाल कर वह कापी मेरी ओर बढ़ा दी और अपनी कापी लेकर पढ़ने लगी। …सुजान सिंह, जीप को चलने के लिये तैयार करो।

वह अभी नोटिस पढ़ ही रही थी कि मैने एक बार फिर उसके कान मे धीरे से कहा… मुझे मकबूल बट की तिजोरी मिल गयी है। अब जल्दी ही तुम्हारा कच्चा चिठ्ठा भी खुल जाएगा। अच्छा चलता हूँ, खुदा हाफिज। यह सुन कर उसका हाथ मे पकड़ा हुआ नोटिस काँप गया था। उसका चेहरा तमतमा रहा था। उसका बस चलता तो वह उसी समय मेरा खून कर देती परन्तु इतने सारे लोगों के बीच वह चीख भी नहीं सकी थी। मै आराम से चलते हुए उसके पास से निकला और निकलते हुए मैने धीरे से कहा… मैने तिजोरी खोल कर उसका सारा सामान निकाल लिया है। इसलिये नीलोफर अब तुम इस मामले मे ज्यादा तकलीफ मत करना। वह मेरे पीछे आयी परन्तु तब तक मै अपनी जीप मे बैठ चुका था। वह मेरे पास आकर खड़ी हो गयी तो मैने कहा… नीलोफर, तुम लोग सबको अपनी तरह बेवकूफ समझते हो। इस कार को तो ऐसी जगह खड़ी करती जो इस पर किसी की नजर मे नहीं पड़ती। मुझे तो उसी दिन पता चल गया था कि तुम सामने वाले मकान मे रहती हो। अगर मै मिलने आता तो मुझे यकीन था कि तुम मुझसे नहीं मिलती। जब दो बार तुमने मुझे अन्दर जाते हुए देख लिया तो तुम अपने आप को रोक नहीं सकी और अपने आप सामने आ गयी। हिजाब से झाँकती हुई उसकी बड़ी-बड़ी आँखे बता रही थी कि वह कुछ बोलना चाहती थी परन्तु तब तक मैने अपने ड्राइवर को चलने का इशारा कर दिया था। मेरा इशारा मिलते ही जीप आगे बढ़ गयी और वह वहीं बेबस खड़ी हुई हमारी जीप को जाते हुए देखती रह गयी।

हम सीधे कोम्पलेक्स की ओर चल दिये थे। आफिस पहुँच कर मैने थापा से कहा… इस बाक्स लेकर मेरे आफिस मे पहुँचा दो। इतना बोल कर मै ब्रिगेडियर चीमा के आफिस की ओर चला गया था। उनके असिस्टेन्ट को उस नोटिस की कापी पकड़ाते हुए कहा… नोटिस सर्व कर दिया है। यह उसकी रसीद है। इसे संभाल कर रखना और कोई इसके बारे मे काल आये तो उसे मुझे ट्रांस्फर कर देना। इतना बोल कर मै अपने आफिस मे आ गया था। थापा उस बाक्स को मेज पर रख कर रख कर एक किनारे मे खड़ा हो गया था। उस बाक्स का सारा सामान और फाईलें मैने अपनी मेज पर फैला दी और खाली बाक्स थापा को पकड़ा कर कहा… माइनस्वीपर इसमे डाल कर वापिस कर देना। थापा खाली बाक्स लेकर वापिस चला गया था। उसके जाने के बाद मै मेज पर बिखरे हुए सामान का निरीक्षण करने मे व्यस्त हो गया।

बुधवार, 25 जनवरी 2023

  

काफ़िर-35

 

उस तकरीर के एक-एक शब्द को सुन कर मै रोमांचित हो रहा था। पूरी मस्जिद की दीवारें नारा-ए-तदबीर अल्लाह-ओ-अकबर के नारों से थर्रा गयी थी। उसकी तकरीर ने बैठे हुए सभी लोगों मे एक उन्माद भर दिया था। मै जिस काम से आया था वह भूल गया था। उस आवाज मे न जाने ऐसा क्या जादू था कि सभी पागल हो गये थे। मैने ऐसा उन्माद पहले कभी अनुभव नहीं किया था। उस उन्माद मे मेरे जिस्म के भी रोएँ खड़े हो गये थे। मै एक किनारे मे खड़ा हुआ नमाजियों को जाते हुए देख रहा था कि तभी मेरी नजर हाजी मंसूर पर पड़ी जिसके साथ अब्बा चल रहे थे। उन्हीं के साथ एक व्यक्ति सफेद लिबास मे बात करता हुआ चल रहा था। उसने सिर पर एक जालीदार कपड़ा बाँध रखा था जिसके कारण  उसका चेहरा साफ दिखाई नहीं दे रहा था। मै तेजी से भीड़ को काटता हुआ उनकी दिशा मे चल दिया। उस सफेदपोश के चेहरे पर नजर पड़ते ही मै ठिठक कर वहीं रुक गया था। वह फारुख मीरवायज था। इस वक्त उन्मादी भीड़ के बीच मै कुछ भी कर पाने की स्थिति मे नहीं था। मेरे लिए बस इतना ही काफी था कि फारुख मीरवायज की शिनाख्त हो गयी थी। वह सभी हाजी मंसूर के कमरे मे चले गये थे। भीड़ के साथ मै भी बाहर निकल आया था। अपनी जीप की ओर बढ़ते हुए मैने ब्रिगेडियर चीमा का नम्बर मिलाया… हैलो। …मेजर क्या खबर है? …सर, फारुख मीरवायज इस वक्त हाजी मंसूर और मकबूल बट के साथ मस्जिद मे है। मुझे नहीं लगता कि इस वक्त कोई फौजी कार्यवाही हो सकती है। …क्यों? मैने उसकी तकरीर और उन्मादी भीड़ के बारे मे बताते हुए कहा… सर दंगा हो जाएगा। हजार से ज्यादा की उन्मादी भीड़ उसके लिए मरने-मारने पर उतारु हो जाएगी। मेरा सुझाव है कि आप फिलहाल उस पर नजर रखिए और मौका मिलते ही उसको अपने कब्जे मे ले लिजिए। …मेरे फोन का इंतजार करो। यह कह कर उन्होनें फोन काट दिया था।

मै चुपचाप जीप मे जाकर बैठ गया। तभी अचानक भीड़ मे भगदड़ मच गयी। मेरी नजरों के सामने उन्मादी भीड़ एक वर्दीधारी पुलिसवाले को सड़क पर दौड़ा कर मार रही थी। वह खुदा का वास्ता देकर अपनी जान बक्श देने की गुहार लगा रहा था परन्तु कोई भी उसको सुनने को तैयार नहीं था। कुछ ही देर मे भीड़ छँटते ही उसकी क्षत विक्षित लाश सड़क पर पड़ी हुई थी। लोग उसके पास से होकर गुजर रहे थे परन्तु किसी ने भी उसको अभी तक उठाने की पहल नहीं की थी। यह बात मुझे बाद मे पता चली थी कि वह बेचारा पुलिस इंस्पेक्टर नमाज के लिये आया था परन्तु कुछ असमाजिक तत्वों ने हंगामा करने के लिये शोर मचा दिया और बाकी का काम उन्मादी भीड़ ने बिना सोचे समझे कर दिया था। मेरी आँखों के सामने सारी इंसानियत कुछ देर पहले शर्मसार हो गयी थी।

मेरी नजरें मस्जिद के मुख्य द्वार पर जमी हुई थी। अचानक मेरे फोन की घंटी बज उठी थी। मैने जल्दी से फोन उठा कर कहा… यस सर। …समीर, मै शाहीन बोल रही हूँ। …हाँ बोलो। …अब्बा की बैठक मे एक बुर्कापोश औरत बैठी हुई है। उसके साथ बहुत से हथियारबंद जिहादी आये हुए है। वह अब्बा का इंतजार कर रही है। …शुक्रिया। यह कह कर मैने जल्दी से फोन काट दिया क्योंकि हथियारबंद जिहादियों के जत्थे के बीच मुझे तीनों मस्जिद के मुख्य द्वार से बाहर निकलते हुए दिख गये थे। वह तीनो अब्बा की कार मे बैठे और आधे दर्जन से ज्यादा गाड़ियों के काफिले के बीच उनकी कार मेरे सामने से तेजी से निकल गयी थी। मैने एक बार फिर से ब्रिगेडियर चीमा का नम्बर मिला कर कहा… सर, फारुख का काफिला हाजी मंसूर के घर की ओर गया है। …मेजर हमारी एक टीम अब उनके पीछे लगी हुई है। उपयुक्त स्थान देख कर ही उसके खिलाफ एक्शन लिया जाएगा। इतना बोल कर उन्होंने फोन काट दिया था।

मै अपने घर की ओर चल दिया था। मेरा दिमाग फारुख मीरवायज मे उलझा हुआ था। क्या वह उसकी आवाज थी? अब ठंडे दिमाग से सोचने पर मुझे लगा कि उस तकरीर की बहुत सी बातें हक डाक्ट्रीन से उठायी हुई थी। आईएसआई का अफसर यहाँ पर सुन्नी पीर के रुप मे लोगो को कैसे खुले आम बर्गला रहा था। एकाएक मुझे ख्याल आया कि यह आवाज फारुख की हर्गिज नहीं हो सकती क्योंकि यह आवाज मैने पहले भी कहीं सुनी थी परन्तु कहाँ? अचानक मेरे दिमाग मे बिजली की गति से एक आवाज कौंधीं जिसको मैने मुजफराबाद की मस्जिद मे सुना था। पीरजादा मीरवायज की आवाज को मै पहचान गया था। फिलहाल हम उसके खिलाफ तो कोई एक्शन लेने की स्थिति मे नहीं थे। मेरे दिमाग मे उस नाम के आते ही मै घर जाने के बजाय मकबूल बट के मकान पर निगरानी कर रही टीम के पास चला गया था। फारुख आज रात कहाँ जा सकता है? कुछ सोच कर मै इसी नतीजे पर पहुँचा कि वह मकबूल बट या हाजी मंसूर के घर जा सकता था। पुराने श्रीनगर मे घनी मुस्लिम आबादी के बीच हाजी मंसूर का घर सबसे ज्यादा सुरक्षित था। नीलोफर के कारण वह अब्दुल लोन के घर भी जा सकता था। लोन का घर भी पुराने शहर के बीच बाजार मे था। दोनो ही जगह पर निगरानी करना मेरे लिये मुश्किल था और यही सोच कर मै मकबूल बट के घर पर निगरानी के लिये आ गया था।

…सर, लगता है कि मकबूल बट आ गया है। सुजान सिंह ने हेडफोन निकाल कर मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा तो मैने जल्दी से हेड्फोन कान पर लगाया और सुनने बैठ गया था।

…मकबूल भाई आपके साथ बहुत बुरा हुआ। इस मामले मे उसका क्या कहना है? …नीलोफर ने उनसे बात की थी लेकिन उन्होंने अपनी नाखुशी जताते हुए सब कुछ फारुख पर डाल दिया है। …इज्तिमे का क्या होगा? …मेरी बात फारुख से हाजी मंसूर के घर पर हुई थी। उसने इज्तिमा के बारे मे सुनने से इंकार कर दिया था। नीलोफर ने बीच मे पड़ कर कहा कि वह पैसों का इंतजाम करवा देगी तो फारुख ने नीलोफर को दो दिन का टाइम दिया है। …वह इस वक्त कहाँ है? …पता नहीं। उसका लश्कर हाजी मंसूर के घर के बाहर रुक गया है परन्तु फारुख बिना किसी को बताये न जाने कहाँ निकल गया। दोनो चुप हो गये थे।  

मै हेडफोन हटाने जा रहा था कि दूर से एक नयी आवाज सुनाई दी… अब्दुल लोन, बाजवा साहब का हुक्म है कि संयुक्त मोर्चा के लिये होने वाला इज्तिमा फिलहाल के लिये टाल दिया जाये।

मुझे यह जानी पहचानी आवाज लग रही थी। अगले ही पल फारुख मीरवायज का नाम एक हथौड़े की तरह मेरे दिमाग पर प्रहार किया और मैने जोर से कहा… फारुख, इस वक्त मकबूल बट के मकान मे है। मैने जल्दी से फोन निकाल कर ब्रिगेडियर चीमा का नम्बर मिलाया… बोलो मेजर। …सर, फारुख कहाँ है? …वह हाजी मंसूर के घर मे बैठा हुआ है। क्यों क्या हुआ? …सर, फारुख आप लोगो को धोखा देकर मकबूल बट के मकान पर पहुँच गया है। फौरन अपनी टीम यहाँ भेजिए और मै भी अन्दर जाने का प्रयास करता हूँ। …नहीं मेजर, तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगे। उसे हमे जिन्दा पकड़ना है। …परन्तु सर। …नो लोन वुल्फ अटैक। दस मिनट मे उसके घर पर रेड हो रही है। इंतजार करो। यह बोल कर उन्होंने फोन काट दिया था। ब्रिगेडियर चीमा ने मेरे हाथ बाँध दिये थे। मै चुपचाप जीप से उतर कर मकबूल बट के मकान की दिशा मे चल दिया। दूर से ही मुझे विदित हो गया था कि हथियारबंद जिहादियों की पूरी फौज ने मकबूल बट के मकान को किला बना दिया है। लोहे के गेट पर तैनात पुलिस सिक्युरिटी की जगह दर्जन से ज्यादा आधुनिक हथियारबंद जिहादियों ने ले ली थी। मकान की छत, मुख्य द्वार व मकान के आसपास आधुनिक हथियारों लैस जिहादी पहरा दे रहे थे।

दूर से मै पेड़ की आढ़ मे खड़ा हुआ सारी स्थिति का अवलोकन कर रहा था। …सर। कुट्टी दौड़ता हुआ मेरी ओर आते हुए जोर से चिल्लाया… उन्होंने वाईफाई और कम्युनिकेशन डिवाईस ट्रेस कर ली है। सारा कनेक्शन कट गया है। मै समझ गया कि अब सब कुछ खत्म हो गया है। रेड आरंभ होने से पहले ही दुश्मन हाथ से निकल जाएगा। कुट्टी की आवाज मेरे कान मे पड़ी… मकबूल बट की बीवी को उसने गोली मार दी है। इसके बाद मै कुछ और सुनने की स्थिति मे नहीं था। तभी फौज की दो बख्तरबंद गाड़ियाँ मकान के गेट के सामने पहुँच कर रुकी परन्तु तैनात जिहादियों ने उन पर अन्धाधुन्ध फायरिंग आरंभ कर दी थी। स्पेशल फोर्सेज की टीम को जीप से उतरने का मौका भी नहीं मिल सका था। वह तो ड्राईवर की सूझबूझ थी जिसने तुरन्त जीप को आगे बढ़ा दिया था। दोनो बख्तरबंद जीप सुरक्षित वहाँ से निकल कर एक सुरक्षित स्थान पर पहुँच गयी थी। स्पेशल फोर्सेज के जांबाज धड़धड़ाते हुए बाहर निकले और फिर पोजीशन लेकर दुश्मन की ओर फायरिंग करते हुए आगे बढ़ना आरंभ कर दिया था। सब कुछ मेरी आँखों के सामने हो रहा था लेकिन मेरे कान मे कुट्टी की आवाज गूँज रही थी… मकबूल बट की बीवी को उसने गोली मार दी है।  कुट्टी की एक बार फिर से आवाज मेरे कान मे पड़ी… सर। एकाएक मेरे जिस्म मे हरकत हुई और स्पेशल फोर्सेज की फायरिंग का लाभ उठा कर मै सर्विस लेन की दिशा मे भाग निकला था।

मकबूल बट के मकान की सर्विस लेन के एक सिरे को मै कवर करके बैठ गया था। मै जानता था कि फारुख किसी भी हालत मे अब आगे से निकलने की कोशिश हर्गिज नहीं करेगा। यही सोच कर मै सर्विस लेन मे उसके पीछे से निकलने का इंतजार कर रहा था। शाम के धुन्धलके मे सर्विस लेन मे कुछ साये दिखते ही मेरी ग्लाक-17 ने आग उगलनी आरंभ कर दी थी। दो साये तो वहीं गली मे ढेर हो गये थे। बाकी लोग अंधेरे का फायदा उठा कर विपरीत दिशा मे निकल गये थे। मैने एक नपातुला रिस्क उठाया था परन्तु उस दिन किस्मत ने साथ नहीं दिया था। उन्होंने भागने के लिये मेरी दिशा के बजाय विपरीत दिशा चुनी थी। इसी कारण वहाँ से कुछ लोग फरार होने मे कामयाब हो गये थे। पता नहीं फरार होने वाले लोगों मे फारुख था कि नहीं? इसका जवाब तो मकान मे प्रवेश करके ही पता चल सकता था। यही सोच कर मै मुख्य सड़क की दिशा मे चल दिया था। कुछ देर पहले तक मकबूल बट के मकान के बाहर मौत तांडव कर रही थी परन्तु अब सब शांत हो चुका था। स्पेशल फोर्सेज की टीम बाहर पड़े हुए शवों को एक किनारे मे रख रही थी।

हमारी सिग्नल्स की बख्तरबंद जीप मकबूल बट के मकान के सामने आकर खड़ी हो गयी थी। मेरे साथी मेरा इंतजार कर रहे थे। मुझे देखते ही वह मेरी ओर आ गये। …सर, अब क्या निर्देश है? मै सादे नमाजियों वाले कपड़ों मे था। …इस टीम के लीडर को बुलाओ। कुट्टी फौरन स्पेशल फोर्सेज के टीम लीडर को ढूंढने के लिये चला गया था। अपने कपड़े बदलने के लिये मै बख्तरबंद जीप मे चला गया था। जब तक टीम लीडर आता तब तक मै अपनी स्पेशल फोर्सेज की काली डंगरी पहन कर बाहर निकल आया था। एम्बुलैंस लोहे के गेट पर खड़ी हुई थी। मै जैसे ही लोहे के गेट की ओर बढ़ा तभी स्ट्रेचर पर मकबूल बट और अब्दुल लोन को लेकर कुछ लोग मकान से बाहर निकल रहे थे। …सर। मैने मुड़ कर देखा तो कुट्टी के साथ टीम लीडर आ गया था। …कैप्टेन अन्दर का क्या हाल है? …सर, सिचुएशन अन्डर कंट्रोल। …इन दोनो के अलावा कोई और सरवाईवर? …नन अलाइव सर। एक पल के लिये मेरे दिल मे टीस उठी थी। अपने आप को जल्दी से संभाल कर मै आगे बढ़ते हुए बोला… कैप्टेन, मुख्य आरोपी की शिनाख्त के लिये मुझे अन्दर प्रवेश करना है। …चलिये सर। एक किनारे मे रखे हुए जिहादियों के शवों पर नजर डाल कर मै दरवाजा की ओर चल दिया।       

मकान के अन्दर प्रवेश करते ही मेरी नजर मिरियम पर पड़ी जो सिड़ियों के पास खून मे लथपथ पड़ी हुई थी। यह वह क्षण था जब उसकी लाश को देख कर पहली बार मुझे अपने कृत्य पर अफसोस और ग्लानि हो रही थी। वह बेचारी तो मेरी मोहब्बत मे पड़ कर जान गंवा बैठी परन्तु मेरी आत्मा पर हमेशा के लिये पाप का बोझ छोड़ गयी थी। उसे बेचारी को तो यह भी मालूम नहीं था कि मैने उसका इस्तेमाल कर रहा था। स्पेशल फोर्सेज के टीम लीडर ने बताया कि आधे घन्टे मे ही सारे जिहादियों को उनकी हूरों से मिलने के लिये भेज दिया था। उनको मकबूल बट और अब्दुल लोन सोफे पर घायल अवस्था मे मिले थे तो दोनो को कमांड अस्पताल मे भेज दिया गया था। …कैप्टेन मुख्य आरोपी फरार हो गया है। आपको दो जिहादियों की लाशें सर्विस लेन मे मिल जाएगी। इतना बोल कर मै बाहर निकल गया। थोड़ी देर के बाद स्थानीय पुलिस ने आकर एन्काउन्टर की रिपोर्ट बनायी और मिरियम की लाश को पोस्टमार्टम के लिये भेज दिया। मेरा काम यहाँ पर खत्म हो गया था। मैने अपने साथियों से कहा कि वह लोग वापिस चले जाये और मै भारी मन से अपने घर चला गया था। आज की हार मुझे हर पल कचोट रही थी परन्तु मिरियम की मौत के कारण मै अपने आपको हर पल धिक्कार रहा था।

ब्रिगेडियर चीमा का फोन घर पहुँचते ही आ गया था। …मेजर, शिकार हाथ से निकल गया। …सर, हमेशा तो हम जीत नहीं सकते। बस अब हमे किसी तरह उन दोनो को बचाना है। वैसे एक जीत तो हमारी भी दर्ज हो गयी है कि अब इज्तिमा नहीं हो रहा है। मेरे पास उनकी रिकार्डिंग है। अब आप टाप ब्रास को बता सकते है कि इज्तिमा नहीं होगा और इसके बाद संयुक्त मोर्चे की कहानी कुछ महीने या साल भर के लिये टल गयी है। …मेजर, आज एक बात और गाँठ बाँध लो कि अगर जिन्दा रहोगे तभी दुश्मन पर अगला वार कर सकोगे। भावनाओं मे बह कर युद्ध भुमि मे इंसान सिर्फ जान से जाता है। नो लोन वुल्फ अटैक इज पर्मिटिड। …सौरी सर, मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है। अगली बार से ध्यान रखूँगा। थैंक्स।

लान मे बैठी हुई जन्नत और आस्माँ मेरा इंतजार कर रही थी। मेरे उतरे हुए चेहरे को देख कर आस्माँ ने कुछ बोलने के लिये मुँह खोला ही था कि मैने उसे चुप रहने का इशारा किया और अपने कमरे मे चला गया। मन अन्दर से खिन्न था तो मै कपड़े बदल कर बिस्तर पर पड़ गया। जन्नत ने आकर बताया कि आयशा आयी है। न चाहते हुए भी उठ कर बाहर आ गया था। आयशा से कह कर ही मैने दोनो को सिलाई-कढ़ाई सीखने के लिये वहाँ भेजा था। वह मेरे सामने बैठते हुए बोली… इतने दिन से कहाँ थे? …बाहर गया हुआ था। अभी कुछ देर पहले ही आया था। तुम सुनाओ तुम्हारा काम कैसा चल रहा है? …इन्होंने नहीं बताया कि वहाँ क्या चल रहा है। नीलोफर लोन के पास इस काम के लिये समय नहीं है। …आएशा, वह बहुत बड़े खेल का हिस्सा है। यह संस्था तो सिर्फ एक दिखावा है। …नहीं समीर। श्रीनगर का आफिस भले ही दिखावा हो परन्तु बाइस जिलों मे आफिस क्या कोई दिखावे के लिये खोल सकता है। …आयशा, वह जिस बड़े खेल की कल्पना कर रही है उस खेल मे तुम्हारा भाई एक अदना सा प्यादा है। तुम्हें जान कर शायद हैरानी होगी कि वह संयुक्त मोर्चे की वह एक महत्वपूर्ण सदस्या है। आयशा कुछ पल मुझे आश्चर्य से देखती रही फिर बोली… कई बार मै सोचती हूँ कि उसमे ऐसा क्या है जो हम मे नहीं है। मैने मुस्कुरा कर कहा… तुम तीनो मे नेता बनने का एक भी गुण नहीं है। तीनो एक साथ एक स्वर मे बोली… क्यों? …तुम मे जहरीली नागिन वाला एक भी गुण नहीं है। जहरीली नागिन हमेशा पलट कर वार करती है। उसकी चाल से उसके रास्ते का पता नहीं चलता, उसकी फुफकार से उसके डसने का पता नहीं चलता और जिसको वह डसती है वह पानी माँगने के काबिल नहीं रहता। यह सारे गुण नीलोफर मे है परन्तु तुम तीनों मे नहीं है। …लगता है कि तुम उसे बहुत अच्छे से जानते हो। मैने उनको कोई जवाब नहीं दिया परन्तु मन ही मन मै जानता था कि नीलोफर मे वह सारे गुण मौजूद है। एक ही बात मुझे सता रही थी कि वह मकबूल बट के साथ इतने दिनो से काम कर रही थी परन्तु आज के दिन ही वह वहाँ नहीं थी। क्या वह जानती थी कि वहाँ ऐसा कुछ होगा?  थोड़ी देर के बाद आयशा अपने घर चली गयी और मै अपने कमरे मे लेट कर उसी सवाल का जवाब ढूंढ रहा था।  

अगला दिन मेरा सारा समय जम्मू, कटरा और श्रीनगर की रिपोर्ट लिखने मे निकल गया था। एक बार मैने मिरियम की लाश के बारे पुलिस स्टेशन से पता लगाया परन्तु बहुत सी लाशें होने के कारण अभी तक उसकी लाश का पोस्टमार्टम नहीं हो सका था। उन्होंने मुझे अगले दिन पता करने के लिये कह दिया था। शाम को मै कमांड अस्पताल की ओर निकल गया था। दोनो ही आईसीयू मे थे। अब्दुल लोन के कुछ परिवार वाले मुझे मिल गये थे। मकबूल बट के परिवार से सिर्फ मै था। डाक्टर ने मुझे बताया कि सीने मे तीन गोलियाँ मारी गयी थी। दोनो फेफेड़ें घायल हो गये थे। अब्दुल लोन की भी लगभग वही स्थिति थी। दोनो को साँस लेने मे तकलीफ हो रही थी। मै जैसे ही अस्पताल से बाहर आया मेरी नजर नीलोफर लोन पर पड़ी जो एक बेन्च पर अकेली बैठी हुई किसी सोच मे डूबी हुई थी। कुछ सोच कर मै उसकी ओर चल दिया।

…यहाँ अकेली बैठी क्या कर रही हो? उसने चौंक कर मेरी ओर देखा और फिर मुस्कुरा कर बोली… तो अपने अब्बा को देखने तुम पहुँच गये। …मै तो तुम्हारे अब्बा को भी देखने आया था। …क्या मतलब? …तुम्हीं ने तो कहा था कि तुम अब्दुल लोन की मुँहबोली बेटी हो। …ओह। बस इतना बोल कर वह चुप हो गयी थी। मिरियम ने मुझे उसका लखवी वाला कनेक्शन बता दिया था परन्तु उसको जाहिर करने का यह वक्त नहीं था। …नीलोफर, कल मिरियम की लाश मिल जायेगी। क्या तुम उसके आखिरी काम करने मे मेरी मदद कर सकोगी? वह कुछ पल सोचने के बाद बोली… नहीं। मेरी कुछ मजबूरी है। मैने उठते हुए कहा… कोई बात नहीं। लेकिन फारुख को सिर्फ इतना मेरी ओर से कह देना कि मै जल्द ही सुबूत के साथ मिरियम की हत्या के बारे मे पीरजादा मीरवायज को बता दूंगा। मेरी बात सुन कर वह ऐसे खड़ी हुई जैसे उसे किसी बिच्छू ने डंक मार दिया था। मै रुका नहीं और न ही मैने उसको फिर मुड़ कर देखा और पार्किंग की दिशा मे चल दिया।

आयशा, जन्नत और आस्माँ ने मिल कर मिरियम के सारे आखिरी काम किये और फिर एक रिश्तेदार की हैसियत से मैने रीति रिवाज के अनुसार उसके सारे कार्य सम्पन्न करा दिये थे। मेरे सीने पर मिरियम की मौत का बोझ था। मेरे कारण ही फारुख ने उसकी हत्या की थी। एक तरीके से मैने उस बेचारी को मौत मे मुँह मे झोंक दिया था। यही आत्मग्लानि मुझे बार-बार कचोट रही थी। मेरी आत्मा पर बोझ बढ़ता जा रहा था। पहले अदा का बोझ क्या कम था कि अब उसमे मिरियम का नाम भी जुड़ गया था। पता नहीं अभी और कितने गुनाह मेरे खाते मे दर्ज होने वाले थे।

नीलोफर से कही हुई बात ने अगले दिन ही अपना असर दिखा दिया था। दोपहर को मेरे मोबाइल फोन पर फारुख ने काल किया… मेजर साहब, उसकी मौत के लिये आप जिम्मेदार है। मुझ पर तोहमत मत लगाईये। मैने तो बस उसकी बेवफाई की सच्चायी आपके अब्बा को बता दी थी। उस बेचारी को गोली तो आपके अब्बा ने मारी थी। वह मेरी सबसे प्यारी बहन थी लेकिन उसका गुनाह माफी के लायक नहीं था। इसलिये धमकी देना बन्द कर दिजीये। मिरियम के अब्बा को मैने खबर कर दी है कि एक काफ़िर ने मेरी बहन को पथभ्रष्ट कर दिया था जिसके कारण उसको सजा देने का हक सिर्फ उसके खाविन्द की जिम्मेदारी थी। …फारुख मियाँ इस बार आप बच कर निकल गये। अगली बार जरुरी नहीं कि आपकी किस्मत आपका साथ देगी। …मेजर साहब, आप धमकी मत दिजीये। अगर आपके पास कोई मेरे खिलाफ सुबूत है तो मुझे गिरफ्तार करके सजा दिलवाईये। अगर सिर्फ तोहमत लगा कर आप मुझे हिरासत मे रखने की सोच रहे है तो आपका कानून मुझे अगले दिन छोड़ देगा। मै एक इज्जतदार कारोबारी हूँ। मेरे खिलाफ पुख्ता सुबूत लाईये, मै वादा करता हूँ कि खुद को कानून के हवाले कर दूँगा। अच्छा खुदा हाफिज। इतना बोल कर उसने फोन काट दिया था।

अपना फोन मेज पर रखते हुए एक सवाल मेरे दिमाग मे आया कि क्या उसके खिलाफ हमारे पास कोई पुख्ता सुबूत है? हमारे पास एक भी सुबूत ऐसा नहीं था जिसको हम कोर्ट मे रख सकते थे। उसका आईएसआई का कनेक्शन और आब्सर्वेशन पोस्ट वगैराह जैसे मुद्दे सिर्फ शक और दूसरे लोगों के विचारों के आधार पर बनाये हुए थे। मिरियम के बताने पर ही मै इस नतीजे पर पहुँचा था कि वह आईएसआई मे काम करता था। अफगानिस्तान संबन्ध होने के कारण ही मुझे उस पर ड्र्ग्स और अवैध हथियार की तस्करी का शक हुआ था। परन्तु अभी तक मेरे पास ऐसा कोई ठोस सुबूत नहीं था जिसके कारण कानून से उसे सजा दिलवायी जा सकती थी। अनुमान के कारण किसी को दोषी नहीं कहा जा सकता था। शाम तक मै सारी पिछली बातों को सोचने के बाद इसी नतीजे पर पहुँचा था कि उसके खिलाफ कोई ठोस सुबूत हमारे पास नहीं था। एक मायने मे वह सच बोल रहा था कि हमारे पास उसके खिलाफ एक भी सुबूत नहीं है। पहली बार मुझे ऐसा लगा कि शायद मै ही अपने जाल मे फँसता चला जा रहा हूँ। कुछ सोच कर मैने अपने काल रिकार्ड से उसका नम्बर निकालने की सोची तो पहली नजर मे साफ हो गया था कि उसने सेटफोन से काल किया था। इसमे कोई शक नहीं था कि आम नागरिक के लिये सेटफोन का इस्तेमाल गैर कानूनी था। मेरी समस्या यह थी कि यह कैसे साबित होगा कि वह सेटफोन उसका था। एक पल मे ही मेरा विश्वास दोबारा से सुदृड़ हो गया था कि फारुख बेहद शातिर खिलाड़ी था।

शाम तक मै इसी नतीजे पर पहुँचा था कि मुझे अब अपनी रणनीति मे बदलाव लाना पड़ेगा। मेरे सामने कुछ लोग थे जो उसके काम से पूर्णत: वाकिफ थे। उनमे से दो तो जिन्दगी और मौत की जंग लड़ रहे थे। एक नीलोफर थी लेकिन उसका मुँह खुलवाना नामुमकिन था। दूसरा उसका कारोबारी पार्टनर युसुफजयी था लेकिन मुझे नहीं पता कि वह उसकी अस्लियत कितना जानता था। बाकी जो उसकी असलियत जानते थे वह सब सीमा के पार बैठे हुए थे। यही सोचते हुए मै अपने आफिस से निकल कर बाहर आ गया था। यही सोचते हुए मै अपने घर की ओर चल दिया। घर पर वीरानी सी छायी हुई थी। ठंड बढ़ने के कारण अब शाम को बाहर लान मे बैठना भी मुश्किल हो गया था। मैने जैसे ही घर मे कदम रखा वैसे ही दोनो बहनें अपने कमरे से निकल कर बाहर आ गयी थी। …तुम दोनो को उसके बारे मे कुछ पता चला? …कुछ नहीं। इतना बोल कर दोनो अपना मुँह लटका बैठ गयी थी। उन्हें वही छोड़ कर मै अपने कपड़े बदलने के लिये चला गया था।

अगले दो दिन मेरा सारा समय सारी पुरानी रिपोर्ट्स को देखने मे गुजरा था। इस बार उन रिपोर्ट्स को मै सिर्फ फारुख की दृष्टि से देखते हुए कोई पैटर्न तलाश रहा था। आप्रेशन आघात-1 मे मेरे निशाने पर चरमपंथी तंजीमों की पैसों के स्त्रोत और उनको इसमे मदद करने वाले मुख्य किरदार थे। चार सेब के व्यापारी, पाँच ट्रांसपोर्टर और सात फार्म मालिक मेरे निशाने पर थे। चार व्यापारियों मे से शफीकुर लोन की हत्या हो गयी थी। बाकी तीन व्यापारियों का धन्धा एन्फोर्समेन्ट विभाग ने चौपट कर दिया था। सेब के व्यापार का मैदान साफ हो गया था। पाँच ट्रांसपोर्टर मे से सबसे बड़े गोल्डन ट्रांस्पोर्ट कंपनी के मालिक अब्दुल रज्जाक की हत्या हो गयी थी। उसकी हत्या के कारण कंपनी की बागडोर अनौपचारिक तरीके से नीलोफर लोन के हाथों मे चली गयी थी। गोल्डन ट्रांस्पोर्ट कंपनी मूल रुप से लखवी परिवार की थी तो रज्जाक की मौत से उसकी बागडोर लखवी परिवार की बेटी के हाथ मे चली गयी थी। मुझे यह भी पता था कि बिना लखवी परिवार की मर्जी के कोई भी ट्रांस्पोर्टर काम नहीं कर सकता था। इसका अर्थ यही था कि बाकी चार ट्रांसपोर्टर भी लखवी परिवार पर आश्रित थे। सात सेब के फार्म मालिकों मे से शमा बट की हत्या हो गयी थी। बाकी छ: फार्म मालिकों के इतिहास का अंदाजा मुझे अम्मी ने दे दिया था। अप्रत्यक्ष तरीके से सभी सेब के बाग सात अलगाववादी और चरमपंथी नेताओं की बेनामी जायदाद थी।

आप्रेशन आघात-1 ने इन सबके बेहद संगठित और कार्यकुशल नेटवर्क को छिन्न-भिन्न कर दिया था। इसके कारण इनके काले बाजार मे नगदी की भारी तंगी हो गयी थी। पिछले एक साल मे उनके राज्य और राज्य से बाहर की अवैध धंधे की सप्लाई लाईन पर बार-बार हमला करके उनकी बची हुई नगदी के स्त्रोत भी लगभग बन्द कर दिये गये थे। इसका फायदा सेना और प्रशासन को होने लगा क्योंकि आतंकवाद और पत्थरबाजी की घटनाएँ जम्मू और कश्मीर मे कम हो गयी थी। सब कुछ मेरे सामने मेज पर रखा हुआ था लेकिन इसमे फारुख मीरवायज की भुमिका के बारे मे कुछ पता नहीं चल रहा था। आप्रेशन आघात-2 का लक्ष्य यहाँ की राजनीति और चरमपंथ के गठजोड़ पर प्रहार करने का था परन्तु उसके आरंभ होने से पहले ही संयुक्त मोर्चा के गठन ने हमारा सारा ध्यान भटका दिया था। जब मुझे कुछ भी समझ मे नहीं आया तो शाम को घर पहुँच कर मैने वीके से फोन पर बात की… सर, मुझे मार्ग दर्शन की आवश्यकता है। इतना बोल कर मैने उन्हें फारुख मीरवायज की सारी कहानी को सिलसिलेवार सुना कर पूछा… सर, फारुख मीरवायज का कनेक्शन और उसका उद्देशय मेरी समझ से बाहर है। आप्रेशन आघात-2 को आरंभ करने मे मेरी मदद किजीये। वीके ने कुछ सोच कर कहा… मेजर, क्या तुम दो दिन के लिये दिल्ली आ सकते हो। आराम से बैठ कर इस पर बात हो जाएगी। …यस सर। बस इतनी बात हमारे बीच मे हुई थी।

अगले दिन ब्रिगेडियर चीमा से तीन दिन की छुट्टी लेकर मै श्रीनगर से दिल्ली के लिये रवाना हो गया था। दिल्ली एयरपोर्ट पर उतर कर फोन पर वीके को जब अपने पहुँचने की सूचना दी तो उसने मुझे धौलाकुआँ के आफीसर्स मेस मे शाम को सात बजे मिलने का समय दे दिया था। मैने आसिया को अपने पहुँचने की सूचना दी तो उसने कहा… समीर, मै अभी ड्युटी पर हूँ। तुम मेरे अपार्टमेन्ट चले जाओ। हम शाम को मिलेंगें। …आसिया, शाम को मेरी मीटिंग है और मुझे पता नहीं कब तक चलेगी। इसीलिये मै अपने आफीसर्स मेस मे रुक रहा हूँ। …मै कुछ नहीं सुन रही। तुम्हारी मीटिंग जब भी खत्म हो तुम मेरे पास आ जाना। यहाँ पर कब तक हो? …दो दिन। …कोई बात नहीं। उसने इतनी बात करके फोन काट दिया था। मै आसिया के अपार्टमेन्ट की ओर चल दिया था। उसके अस्पताल से उसका घर ज्यादा दूर नहीं था। उसके दरवाजे की घंटी बजाते ही एक पतली दुबली नाजनीन ने स्वागत करते हुए कहा… हैलो समीर। आई एम वैजयंती। मै डाक्टर आसिया के साथ काम करती हूँ। उसने अभी फोन पर बताया कि आप आ रहे है। वह उसका कमरा है। …थैंक्स। यह बोल कर मै आसिया के कमरे मे चला गया था। साफ सुथरा कमरा था। दिल्ली एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही मुझे गर्मी का एहसास हो गया था। जब तक आसिया के कमरे मे पहुँचा तब तक पसीने से नहा गया था। मैने जल्दी से एसी आन किया और फिर नहाने के लिये चला गया। जब तक तैयार हुआ तब तक कमरा बैठने लायक हो गया था।

मैने अपने साथ लायी हुई सारी रिपोर्ट्स को मेज पर फैला कर बैठ गया था। कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई और फिर दरवाजा थोड़ा सा खुला और उसमे से आसिया का चेहरा निकला… हैलो। उसको देखते ही मै खड़ा हो गया और वह दरवाजा खोल कर मुझ पर झपटी और फिर मुझे कस कर बाहों मे भींच कर बोली… आज तो कमाल कर दिया। …क्या अस्पताल से छुट्टी ले ली है? …नहीं लंच ब्रेक था तो अपनी कैन्टीन से खाना लेकर यहाँ आ गयी। चलो बाहर, मुझे लंच करके जल्दी वापिस जाना है। अपनी मेज पर बिखरे हुए कागज देख कर वह कुछ बोलने को हुई तो मैने जल्दी से कहा… बेफिक्र रहना। जैसे पहले थी वैसे ही छोड़ कर जाऊँगा। हम दोनो कमरे से बाहर निकल आये और डाईनिंग टेबल पर खाना खाते बात करने लगे। …आसिया, एक बुरी खबर है। अभी कुछ दिन पहले एक आतंकवादी हमले मे अब्बा बुरी तरह से घायल होकर कमांड अस्पताल मे भर्ती है परन्तु उस हमले मे मिरियम की मौत हो गयी। यह सुन कर वह खामोश हो गयी और फिर उसने पूछा… अब कैसी हालत है? …तीन गोली सीने मे लगी थी। दोनो फेंफड़ों को नुकसान पहुँचा है फिलहाल उनकी हालत क्रिटिकल है। …और मिरियम? …उसका सारा काम मैने कर दिया था। …समीर, उन्हें इतनी आसानी से मरने मत देना। वह खाना बीच मे छोड़ कर उठ गयी और जाते हुए बोली… अच्छा शाम को मिलते है। वह रुकी नहीं और चली गयी।

शाम को मै तैयार होकर आफीसर्स मेस के लिये निकल गया था। आसिया तब तक अस्पताल से वापिस नहीं आयी थी। मैने आफीसर्स मेस की बार मे जब कदम रखा तो वह तिकड़ी एक कोने मे बैठी हुई दिख गयी थी। अभी बार मे भीड़ नहीं थी परन्तु लोगों ने आना आरंभ कर दिया था। उनका अभिवादन करके उनके सामने बैठ गया। वीके ने पूछा… हम स्काच ले रहे है। तुम क्या लोगे? …सर, मै भी वही ले लूँगा। जनरल रंधावा ने वहीं से किसी को इशारा किया और फिर बोले… हाँ मेजर, एक बार सारी कहानी दुबारा से सुना दो। मैने उनके सामने अपनी सारी कहानी खोल कर रखते हुए कहा… फारुख मीरवायज का इतिहास और उसके यहाँ आने का उद्देश्य मेरी समझ से बाहर है। सब कुछ जानते हुए भी उसने मुझे खुले आम चुनौती दी है। मै उसके इस आत्मविश्वास को देख कर जरा उलझ गया हूँ। मै यकीन से कह सकता हूँ कि वह कोई बहुत बड़ा खेल खेलने की फिराक मे है परन्तु मुझे उसकी मंशा समझ मे नहीं आ रही है। यह बोल कर मैने अपना गिलास उठा कर एक घूँट लेकर उनकी ओर देखने लगा।

अजीत ने सबसे पहले बोलना आरंभ किया… मेजर, एक मिनट के लिये उसके खेल के बारे सोचना बंद करके बस टेरर फाईनेन्स पर ध्यान केन्द्रित करो। एक सुव्यवस्थित सिंडिकेट का कार्यकुशल नेटवर्क तहस-नहस हो गया है। सप्लाई लाइन्स को तुमने अगर नष्ट नहीं किया है तो भी भारी नुकसान पहुँचा कर सभी के लिये एक आर्थिक मुश्किल खड़ी कर दी है। अब एक उन्मुक्त बाजार के रुप मे इसे देखने की कोशिश करोगे तो यह आर्थिक नियम है कि बाजार मे जब एक खिलाड़ी कमजोर पड़ता है तो उसकी जगह दूसरा ले लेता है। वह खिलाड़ी उस लड़खड़ाते हुए बाजार पर अपने संसाधनों के जरिये अपना एक छ्त्र एकाधिकार जमाने का प्रयत्न करता है। बाजार मे उपस्थित खिलाड़ियों की संख्या मे स्पर्धा सिर्फ खरीदारों के लिये अच्छी हो सकती है परन्तु उत्पादकों के लिये बाजार पर एकाधिकार ही ज्यादा फायदेमंद होता है। मेरा गिलास खाली हो गया था लेकिन मेरा दिमाग अजीत सर की बात सुन कर और भी ज्यादा उलझ गया था। हल्का सा सुरुर था तो मैने बिना झिझके कहा… सर, सच कहूँ तो आपकी बात भले ही आर्थिक नियमों पर एक अच्छी टिप्पणी हो सकती है परन्तु इसका मेरे सवाल से कोई संबन्ध निकलता हुआ तो नहीं दिख रहा है।

अजीत ने मुस्कुरा कर कहा… भई रंधावा, मुंडे का गिलास भरवाओ। इसके दिमाग मे पेट्रोल डालना पड़ेगा। तीनों ने एक साथ जोर से ठहाका लगाया और वीके ने कहा… मेजर, अब अजीत की बात को टेरर फाईनेन्स पर फिट करने की कोशिश करो। पहले सारा काला बाजार कुछ चन्द गिने चुने लोगों के हाथ मे था। उनका ही उस बाजार पर एकाधिकार होने के कारण उनका वहाँ की राजनीति पर भी प्रभाव था। वह भले ही सदस्य हो सकते है परन्तु सारे निर्णय वह खुद लेते थे कि सरकार किसकी होगी और वह उनके लिये क्या करेगी। इसीलिये अप्रत्यक्ष रुप से सारी सरकार पर भी उनका एकाधिकार था। वही हर जगह दिखाई देते थे चाहे वह सरकारी ठेका हो या व्यापार। अचानक एक आदमी ने उनकी सुव्यवस्थित संगठित नेटवर्क को छिन्न-भिन्न कर दिया और सारे बाजार मे आर्थिक मुश्किलों का दौर आरंभ हो गया। अचानक दुशमन देश का एक जासूस अपने आप को कारोबारी दिखाते हुए बाजार मे उतर जाता है। उसके पास संसाधनों की कमी नहीं है। वह उस बाजार पर अपना एकाधिकार जमा कर वहाँ की राजनीति को धीरे-धीरे पहले अपने प्रभाव क्षेत्र मे लाता है और फिर वह सरकार पर पूरी तरह काबिज हो जाता है। अबकी बार वीके के खुलासा सुनते ही दिमाग पर चड़ा हुआ सुरुर पल मे ही उतर गया था। मैने जल्दी से कहा… सर, फारुख तो यही कर रहा है।

जनरल रंधावा ने हँसते हुए कहा… अजीत तूने सही कहा था। पेट्रोल पड़ने से अब मेजर का दिमाग चलने लगा। यार एक और राउन्ड हो जाये। मैने झेंप कर नजरें नीची कर ली और सोचने लगा कि यह जरा सी बात मुझे समझ मे क्यों नहीं आयी कि फारुख एक-एक करके बाजार मे खड़े हुए लोगों को खरीद कर या हत्या करके सारे बाजार पर अपना एक छत्र एकाधिकार जमाने की कोशिश मे है। मैने निगाहें उठाकर अजीत सर की ओर देखा तो वह मुझे देख कर मुस्कुरा रहे थे। मैने अजीत से कहा… सर, मुझे माफ कर दिजीये। यह बातें समझने के लिये अनुभव होना जरुरी है। अजीत ने मेरी पीठ पर धीरे से हाथ मारते हुए कहा… यार हमारे पास तो तीस-चालीस साल का अनुभव है तभी तो यहाँ बैठ कर ज्ञान बाँट रहे है। एक बार फिर से तीनो ने ठहाका लगाया और तीसरा राउन्ड आरम्भ हो गया था।

…सर, आपने ऐसा पेट्रोल डाला है कि अब दिमाग चलने लगा है। आपके सामने अब एक नयी कहानी रख रहा हूँ। इसका सारा श्रेय अजीत सर आपको अभी से दे रहा हूँ। मीरवायज समूह ने आईएसआई की मदद से कश्मीर के टेरर के बाजार पर फारुख मीरवायज के जरिये एकाधिकार जमाने का प्रयास किया है। वहीं दूसरी ओर लखवी परिवार भी इसी एकाधिकार की कोशिश अब्दुल लोन के जरिये कर रहा था। इसमे कोई शक नहीं कि अब्दुल लोन ने काफी हद तक इस पर अपना एक छ्त्र एकाधिकार स्थापित कर लिया था। परन्तु इसी बीच मे हमने चाहे अनजाने मे ही सही लखवी परिवार और उनके समर्थकों के नेटवर्क को भारी नुकसान पहुँचा कर उनकी पकड़ को कमजोर कर दिया जिसके कारण मीरवायज को अपने पाँव जमाने के लिये जगह मिल गयी थी। हमारे प्रभाव को कम करने के लिये फारुख मीरवायज ने लखवी परिवार को उस बाजार मे बराबर का हिस्सा देने का वायदा करके संधि कर ली जिसके रुप मे नीलोफर लोन उर्फ नीलोफर लखवी भी फारुख के साथ बाजार मे स्थापित हो गयी है। इसके परिणामस्वरुप अब हमारे दोनो दुशमन एक होकर अब हमसे टकराने की फिलहाल रणनीति बना रहे है। इसका एक परिणाम तो संयुक्त मोर्चे के गठन से हो गया है। वह तो मैने मकबूल बट के घर मे सर्वैलेन्स सिस्टम फिट करके उनके सारे मंसूबे ध्वस्त कर दिये अन्यथा अब तक वह इज्तिमा करके आधिकारिक रुप से वहाँ की राजनीति और बाजार पर काबिज हो गये होते और सीमा पार बैठ कर आईएसआई का जनरल मंसूर बाजवा बड़े मजे से इन दोनो को कठपुतलियों को अपने हिसाब से नचाने मे लगा हुआ होता।

तीनों मेरी बात ध्यान से सुन रहे थे। अपने गिलास से एक घूँट भर कर मैने कहा… सर, आप्रेशन आघात-2 का लक्ष्य अब मेरे सामने है। हमे इन दोनो के बीच मे इतना मवाद फैला देना है कि इन दोनो परिवारों के बीच हुई संधि टूट जाये। वीके ने पूछा… मेजर,पर कैसे? …सर अभी मैने कुछ सोचा नहीं है। मुझे कुछ समय दिजिये। कल तक मै कुछ सोच कर आपके सामने अपनी योजना को रख दूँगा। अजीत ने कुछ सोचने के बाद कहा… वीके कल शाम को हम एक बार फिर यहीं पर मिलते है। मेजर तुम यहाँ कब तक हो? …कल यहीं हूँ लेकिन परसों मुझे वापिस लौटना है। …नहीं, कल शाम को नहीं मिल सकते। ऐसा करते है कि एयरपोर्ट पर मिल लेते है। …मेजर कितने बजे की फ्लाईट है? …दो बजे। …परसों सुबह ठीक है दस बजे एयरपोर्ट पर मिलते है। …यस सर, एक बात और है सर कि मैने ब्रिगेडियर चीमा को इस मीटिंग के बारे मे कुछ नहीं बताया है। अब वहाँ पहुँच कर आप्रेशन आघात-2 के बारे मे उन्हें बता दूँगा।

मैने घड़ी पर नजर डाली तो रात के दस बज चुके थे। तीनों ने कहा… आज देर हो गयी है। यहीं पर खाना खाकर चलते है। हम चारों डाईनिंग एरिया मे जाकर बैठ गये थे। खाने के दौरान उन्होंने मेरे परिवार के बारे पूछना आरंभ कर दिया तो मैने आफशाँ और मेनका के बारे मे बताते हुए कहा… वह मुंबई मे एक निजि साफ्टवेयर कंपनी मे काम करती है लेकिन वह नौकरी छोड़ भी दे परन्तु बच्ची के कारण वह एक सुरक्षित जगह रहना चाहती है। यही सब बातें करते हुए हमने खाना समाप्त किया और अल्विदा करके चल दिये। अजीत ने चलते हुए पूछा… मेजर, तुम्हारे पास कोई ट्रांस्पोर्ट है या फिर टैक्सी पकड़ने की सोच रहे हो। …सर, टैक्सी से जाऊँगा। …चलो मै छोड़ दूँगा। कहाँ ठहरे हुए हो? …सर, मै चला जाऊँगा। उसने हंसते हुए कहा… ड्राईवर है आओ तुम्हें मै छोड़ दूँगा। मैने पता बताया और उसके साथ चल दिया। बारह बजने मे कुछ मिनट थे जब मै आसिया के अपार्टमेन्ट के सामने उतरा था। इस वक्त उसके सामने नशे की हालत मे जाते हुए मेरी तबियत कोफ्त हो रही थी।  

बंद दरवाजे के सामने खड़ा हुआ अब मै पछता रहा था कि मै वहीं आफीसर्स मेस मे क्यों नहीं ठहर गया था।

सोमवार, 23 जनवरी 2023

 

 

काफ़िर-34

 

सुबह उठते ही मैने अपनी टीम से कहा कि वह सिगन्ल्स की एक बख्तरबंद जीप का इंतजाम करके मेरे घर पहुँचे। जब तक मै तैयार हुआ तब तक मेरी टीम आ गयी थी। कुछ ही देर के बाद उसी स्थान पर हमारी बख्तरबंद जीप खड़ी हो गयी थी। मैने रिकार्डिंग डिवाईस के कनेक्शन चालू करके मकबूल बट के घर मे होने वाली बात सुनने बैठ गया। मिरियम नौकरों को निर्देश दे रही थी। दोपहर तक मैने अपने साथियों को ट्रान्समिशन सिस्टम के बारे सब कुछ समझा दिया था। उसके बाद मकबूल बट के मकान की चौबीस घन्टे की सर्वैलेन्स आरंभ हो गयी थी। दो के समूह मे मेरे साथी उस बख्तरबंद जीप मे बैठ कर सारी बात सुनते और शाम को मेरे अन्य दो साथी उनकी जगह ले लेते थे। इस तरह दो दिन बैठे हुए हो गये थे लेकिन मकबूल बट का अब तक कोई अता पता नहीं था।

तीसरे दिन सुबह मै जब आया तब मकबूल बट की आवाज मेरे कान मे पड़ी…

आजकल नगदी की कमी चल रही है। भाईजान आप ही कुछ अपनी ओर से किजीये…अब्दुल लोन की भी हालत मुझसे बेहतर नहीं है।

मैने अनुमान लगाया कि वह फोन पर किसी से बात कर रहा था। मैने ड्युटी पर तैनात अपने साथी से पूछा… यह आदमी कब आया था। …सर, कल रात को यह काफी देर से आया था। मैने हेडफोन उसको पकड़ाते हुए पूछा… रात की रिकार्डिंग कहाँ है? एक साथी ने जल्दी से एक छोटी सी कैसेट निकाल कर मेरी ओर बढ़ा दी थी। रात की रिकार्डिंग मे सिर्फ अब्बा के जाहिलियाना एकाकार और मिरियम के मानसिक एवं जिस्मानी प्रताड़ना की कहानी दर्ज थी।

अगले दिन हमे पहली कामयाबी मिली थी। नीलोफर और मकबूल बट स्टडी रुम मे बैठ कर बात कर रहे थे।

…आपके लिये पैसों का इंतजाम हो गया है। अबकी बार उन्होंने नेपाल के रास्ते से दो ट्रक भिजवाये है। वह कल सुबह तक जम्मू पहुँच जाएँगें। …मुंबई की पेमेन्ट का क्या हुआ? …आप बेफिक्र रहिए। मेरी बात हो गयी है। उनका ट्र्क भी कल तक जम्मू  पहुँच जाएगा। बस इस बार उन तीनों ट्रकों को सुरक्षित श्रीनगर पहुँचाने की जिम्मेदारी आपकी होगी। …तुम चिन्ता मत करो। बस मुझे उन ट्रकों की जानकारी चाहिए। जम्मू टोल नाके से हिज्बुल के लोग उन ट्रकों को अपनी देखरेख मे तुम्हारे गोदाम पर पहुँचा देंगें। …ठीक है मै आपको सभी ट्रकों की जानकारी रात तक दे दूँगी।  

थोड़ी देर बात करने के बाद नीलोफर वापिस चली गयी थी। उसके जाते ही मकबूल बट ने किसी से फोन पर बात करने लगा…

…भाईजान, बस कुछ दिन की बात है। कल सुबह तुम को जम्मू टोल नाके से तीन ट्रकों को अपनी देखरेख मे सुरक्षित श्रीनगर मे गोल्डन ट्रांस्पोर्ट के गोदाम पर पहुँचाना है। …हाँ, सभी ट्रकों की जानकारी मै रात तक तुम्हें दे दूँगा। तुम्हें जाकिर के लौटने की कोई सूचना मिली? …।उसकी जब यहाँ जरुरत है तो वह सीमा पार रंगरलियाँ मनाने के लिये गया हुआ है। उसे सुचित करो कि वह तुरन्त श्रीनगर पहुँच जाये अन्यथा उसकी मौत मेरे हाथ निश्चित है। उसे बता देना कि मोर्चे की तैयारी आरंभ हो गयी है।

इसी प्रकार सारा दिन मेरी टीम उस घर पर निगाह रख कर बैठी हुई थी। मै तो पहली जानकारी मिलते ही अपने आफिस लौट गया था। ब्रिगेडियर चीमा से बात करके जम्मू के टोल नाके पर स्पेशल फोर्सेज की एक टीम को गुप्त रुप से तैनात करवा दिया गया था। मै भी शाम से पहले हेलीकाप्टर से जम्मू पहुँच गया था। हमारे सामने एक समस्या खड़ी हो गयी थी कि टोल नाके पर उन ट्रकों की निशानदेही करके उनके खिलाफ गोदाम पर एक्शन लेना चाहिये अन्यथा रास्ते मे उनके विरुद्ध एक्शन लिया जाये। मेरा कहना था कि उन्हें गोदाम पर पहुँचने दिया जाये और उसके बाद हम कोई एक्शन लेना चाहिये जिससे लोन परिवार के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जा सके। ब्रिगेडियर चीमा का कहना था कि ट्रक मे पता नहीं किस प्रकार का सामान है और क्या पता आखिरी समय मे उन ट्रकों के गंतव्य स्थान मे कोई बदलाव हो गया तो फिर रिस्क बढ़ जाएगा। इसलिये वह चाहते थे कि उन ट्रकों को रास्ते मे ही अपने कब्जे मे लेना ज्यादा ठीक होगा। काफी देर चर्चा के पश्चात उन्होंने इस बात का निर्णय मुझ पर छोड़ दिया था।

रात को मकबूल बट के मकान पर तैनात अपने साथियों से बात करके मैने उन ट्रकों की जानकारी के बारे मे पूछा तो उन्होंने बताया कि वह तो शाम को ही घर से बाहर निकल गया था। अब मेरे पास उन तीन ट्रकों के बारे मे सिर्फ इतना पता था कि दो ट्रक नेपाल से आ रहे थे और एक ट्रक मुंबई से आ रहा था। उस टोल नाके से एक रात मे हजार से ज्यादा ट्रक भारत के अन्य हिस्सों से जम्मू मे प्रवेश करते है तो फिर उनमे से उन तीन ट्रकों की पहचान कैसे की जाये? यह मेरी परेशानी का सबसे बड़ा सबब बन गया था। मेरे निर्देश पर स्पेशल फोर्सेज के लोग टोल नाके के पास संदिग्ध गाड़ियों की निशानदेही करने मे लग गये थे। एक टीम को टोल नाके से कुछ दूरी पर एक ढाबे पर काफी देर से एक जीप और पुरानी एम्बेसेडर कार खड़ी हुई दिखी थी। उसी ढाबे पर जिहादी मार्का वाले कपड़े गले मे बाँधे और कुछ अपने सिर को ढके हुए युवाओं का जमघट लगा हुआ देख कर जाँच करने वाली टीम को उन पर शक हुआ परन्तु मैने उन्हें दूर से दोनो गाड़ियों और उन लोगों पर सिर्फ नजर रखने के लिये कह दिया था। सभी सदस्यों को सावधान करके मै एक टोल बूथ मे जाकर बैठ गया। देर रात तक मुझे कोई ऐसा ट्रक नहीं दिखा जिस पर शक किया जा सकता था। मुंबई से आने वाले करीब तीस से ज्यादा ट्रक अब तक टोल पार करके राज्य मे प्रवेश कर गये थे परन्तु नेपाल का कोई ट्रक अभी तक वहाँ नहीं पहुँचा था।

सुबह चार बजे मै टोल बूथ मे बैठ कर ऊंघ रहा था कि बूथ का कर्मचारी एक इन्वोइस लेकर मेरे सामने रख कर बोला… सर, यह ट्रक तो हिन्दुस्तानी है पर यह टनकपुर से सामान लाया है। मैने एक नजर इन्वोइस पर डाल जैसे ही कुछ बोलने को हुआ कि तभी एक और कर्मचारी नयी इन्वोइस लेकर मेरे पास आकर बोला… सर, यह ट्रक नेपालगंज से माल लेकर आया है। मैने दोनो इन्वोइस को चेक किया तो दोनो ट्रक एक ही ट्रांसपोर्ट कंपनी के थे। दोनो इन्वोइस में उन ट्रकों मे एक ही प्रकार के सामान का विवरण दिया हुआ था। मैने जल्दी से अपनी टीम को उन दोनो ट्रकों के नम्बर देते हुए कहा… इन दोनो ट्रकों पर निगाह रखो। इतना बोल कर मै दोनो इन्वोइस लेकर उन ट्रकों की ओर चला गया था।

पहले ड्राईवर के हाथ मे इन्वोइस पकड़ा कर मैने पूछा… ट्रक मे क्या लाये हो? …सर, सीमेन्ट प्लांट की मशीनरी है। मेरा इशारा मिलते ही बेरियर हटा दिया गया था। वह ट्रक रेंगता हुआ धीरे से आगे बढ़ गया था। यही सवाल मैने इन्वोइस लौटाते हुए दूसरे ट्रक से पूछा तो उसने भी वही जवाब दिया था। मैने उसको भी निकलने का इशारा कर दिया। मै वापिस अपने बूथ की ओर लौट रहा था कि तभी मेरी नजर एक ट्रक पर पड़ी जो काफी देर एक किनारे मे खड़ा हुआ था। दोनो ट्रक निकल जाने के बाद जैसे ही रिक्त स्थान मिला वह ट्रक तेजी से बढ़ा और लाईन मे खड़े हुए ट्रकों को ओवरटेक करके रिक्त स्थान मे जाकर खड़ा हो गया था। सब कुछ अचानक हुआ था जिसके कारण लाईन मे पीछे लगे हुए ट्रकों हार्न बजा कर अपना गुस्सा दर्शा दिया। मै उस ट्रक की ओर चला गया। ट्रक पर महाराष्ट्र की नम्बर प्लेट लगी हुई थी। मैने ड्राईवर से इन्वोइस लेकर देखा तो वह ट्रक मुंबई से आया था। …इतनी देर से अलग खड़े हुए थे फिर अचानक लाईन तोड़ने की जरुरत क्या थी। …माईबाप, इतनी देर से मालिक से बात करने की कोशिश कर रहा था। जब बात हो गयी तो मै चल दिया। यह सब लाइन मे खड़े ट्रक मेरे बाद मे ही यहाँ पहुँचे थे। …क्या लाये हो? …जनाब सीमेंट प्लांट की मशीनरी है। उसकी इन्वोइस पर एक नजर मार कर उसकी ओर बढ़ा कर मैने कहा… भाई पहले आने का मतलब नहीं है। तुम्हें लाईन लगना चाहिये था। इतना बोल कर मैने टोल बूथ की ओर इशारा किया और टोल कर्मचारी पर्ची काटने मे जुट गया था।

टोलबूथ मे पहुँच मैने अपना हेड्फोन लगा कर अपनी टीम को मुंबई वाले ट्रक का नम्बर देकर पूछा… वह दो ट्रकों का क्या हुआ? …सर, वह दोनो ट्रक अब उसी ढाबे पर रुक गये है। मै अभी उस ढाबे के बारे सोच ही रहा था कि तभी दूसरी ओर से आवाज आयी… सर, मुंबई वाला ट्रक भी अभी-अभी यहीं पर आकर रुक गया है। तीनो ट्रकों के ड्राईवर जीप मे बैठे हुए एक आदमी से बात कर रहे है। मैने जल्दी से कहा… यही तीनों ट्रक है। अब यह तीनो ट्रक तुम्हारी आँख से ओझल नहीं होने चाहिये। इतना बोल कर मै चुप ही हुआ था कि अचानक टोल नाके से कुछ दूर खड़े एक ट्रक से टोल बूथ कि दिशा मे अधाधुंध फायरिंग आरंभ हो गयी थी। एकाएक टोल नाके पर अफरातफरी मच गयी।  मेरी टीम ने तुरन्त उस ट्रक को घेरना आरंभ कर दिया लेकिन तभी उसके आगे खड़े हुए ट्रक मे अचानक भयंकर विस्फोट हुआ जिसके कारण आगे बढ़ते हुए कुछ हमारे सैनिक भी घायल हो गये थे। हमारा सारा ध्यान उस ट्रक पर लग गया था जहाँ से फायरिंग आरंभ हुई थी। स्पेशल फोर्सेज के सैनिक अब तक सावधान हो गये थे। वह धीरे-धीरे उस ट्रक को घेरने के लिये चारों दिशा से आगे बढ़ रहे थे कि तभी उस ट्रक से एक ग्रेनेड हवा मे तैरता हुआ टोल बूथ की ओर आता हुआ दिखाई दिया तो फौरन ग्रेनेड की दिशा भाँपते हुए मेरे साथियों ने विपरीत दिशा मे छलांग लगायी और दूसरी दिशाओं से बढ़ती हुई टीम ने उस ट्रक पर फायरिंग आरंभ कर दी थी। एक साया ट्रक से उतर कर अंधेरे का फायदा उठा कर खड़े हुए ट्रकों की ओट लेकर ढाबे की दिशा मे भागा परन्तु वह हमें धोखा देने मे असफल रहा और कुछ कदम भागते ही वह मारा गया था। कुछ ही देर मे वह ट्रक मेरी टीम के कब्जे मे था। एक जिहादी सड़क पर और दो जिहादी ट्रक मे हमारी फायरिंग की चपेट मे आ गये थे। ग्रेनेड कोई नुक्सान नहीं कर पाया क्योंकि किसी कारणवश वह फटा नहीं था। मुश्किल से आधे घँटे मे सारी स्थिति काबू मे आ गयी थी।

अपने स्पीकर पर स्थिति की समीक्षा करते हुए मैने ढाबे पर तैनात टीम से पूछा… उन तीन ट्रकों की क्या स्थिति है? …सर, हम ब्लास्ट की आवाज सुन कर यहाँ टोल नाके पर मदद करने के लिये आ गये थे। मै जोर से चिल्लाया… जल्दी से ढाबे पर जाकर चेक करो। मेरी छ्टी इंद्री संकेत दे रही थी कि कुछ गड़बड़ हमसे हो गयी है। दो मिनट बाद ही मेरे कान मे आवाज सुनायी दी… सर, तीनों ट्रक और दोंने गाड़ियाँ जा चुकी है। …जल्दी से अपने लोगों को इकठ्ठा करो। दो सैनिकों को घायलों के पास छोड़ कर बाकी लोग मेरे पीछे आओ। वही तीन ट्रक हमारा टार्गेट है। इतना बोल कर मै दौड़ते हुए अपनी जीप की ओर चला गया और उसमे सवार होकर जम्मू-श्रीनगर हाईवे पर निकल गया था। रास्ते मे मैने ब्रिगेडियर चीमा को फोन पर सारी जानकारी देने बाद कहा… सर, उनके पास आधे घंटे का लीड टाईम है। …मेजर, एक सीआरपीफ का चेक पोइन्ट उधमपुर मे प्रवेश करने से पहले लगा हुआ है। मै उनसे बात करके सारे ट्रेफिक की गति धीमी करवाता हूँ। …यस सर। इससे हमे कुछ समय मिल जाएगा। मेरे ड्राईवर ने हूटर चालू कर दिया था जिसके कारण सड़क पर चलने वाले ट्रेफिक ने हमे रास्ता देना शुरु कर दिया था। स्पेशल फोर्सेज की बख्तरबंद जीप भी अब तक मेरे पीछे आ गयी थी।

हिज्बुल ने छ्द्म हमला करके दो बड़ी भारी गलतियाँ की थी। पहली गलती तो हमला करके भले ही उन्होंने कुछ देर के लिये हमारा ध्यान भटका दिया था परन्तु इस हमले से उन्होंने तीनों ट्रकों की पुष्टि कर दी थी। दूसरी गल्ती उन्होंने छद्म हमले के स्थान को चुन कर किया था। जम्मू से बाहर निकलने वाले टोल नाके पर हमला करके उन्होंने अपने आप को बस एक रास्ते तक सिमित कर लिया था। जम्मू और उधमपुर के बीच मे कोई और रास्ता नहीं था जिसके द्वारा वह श्रीनगर तक पहुँच सकते थे। तीनों ट्रकों के नम्बर अब तक सभी चेक पोइन्ट्स पर दे दिये गये थे। यही सारी बातें मेरे दिमाग मे घूम रही थी। एक के बाद एक गाड़ियों को पीछे छोड़ते हुए तेज गति से हम उधमपुर की ओर बढ़ते चले जा रहे थे। मैने स्पीकर फोन पर कहा… आगे बढ़ते हुए हर गाड़ी का नम्बर चेक करते रहना। नो एन्गेजमेन्ट, बस ट्रेक करो। थोड़ी देर के बाद हम उधमपुर चेक पोइन्ट पर पहुँच गये थे। मैने ड्युटी अफसर से उनके बारे मे पता किया तो उसने इन्कार करते हुए कहा… अभी कोई नहीं पहुँचा है। स्पेशल फोर्सेन का नेतृत्व करने वाला कैप्टेन भाटी बोला… सर, रास्ते मे हमे न तो वह गाड़ियाँ और न ही वह ट्रक देखने को मिले है। जम्मू से उधमपुर के बीच वह न जाने कहाँ खो गये? मेरा दिमाग तेजी से चल रहा था। …वह कहाँ जा सकते है? जीप के बोनट पर मैने नक्शा फैला रखा था। कैप्टेन भाटी ने कहा… सर, कहीं वह कटरा की ओर तो नहीं चले गये परन्तु वहाँ से तो श्रीनगर जाने का कोई रास्ता ही नहीं है। मैने नक्शे पर नजर डाल कर कहा… वह उस रास्ते पर कुछ दिनों के लिये छिप कर आसानी से किसी नये ट्रक पर सामान की अदला-बदली करके वापिस इसी रास्ते से श्रीनगर जा सकते है। कैप्टेन हमारे पास समय नहीं है। वापिस चल कर कटरा का रास्ता भी चेक कर लेते है। वहाँ से चलने से पहले सीआरपीफ के ड्युटी आफीसर को समझा दिया कि देखते ही तुरन्त खबर करना परन्तु रोकने की कोशिश मत करना। इतना बोल कर हम वापिस चल दिये और कटरा चौक पर पहुँच कर कटरा जाने वाली सड़क पर निकल गये थे।

कटरा पहुँचते हुए रात का अंधेरा छटने लगा था। कटरा शहर मे प्रवेश करते ही कप्टेन भाटी की आवाज मेरे कान मे गूँजी… सर, पाँचो गाड़ियों की निशानदेही हो गयी है। शहर मे प्रवेश करते ही पहले ढाबे पर लाईन से सारी गाड़ियाँ खड़ी हुई है। मैने जीप को रुकने का इशारा किया और मेरे पीछे आती हुई बख्तरबंद जीप भी रुक गयी थी। कैप्टेन भाटी मेरे पास आकर बोला… सर, अब क्या करना है? …कैप्टेन, एक बार चल कर देख लेते है। …सर, इस युनीफार्म को देख कर वह कहीं देखते ही हम पर हमला न कर दें। इस वक्त वह लोग काफी तनाव मे होंगें। …कैप्टेन, दो स्काउट भेज कर ढाबे की घेराबन्दी करने के लिये उप्युक्त स्थान तलाश करो। मै अभी आ रहा हूँ। अब कुछ भी हो जाये इन्हें अपनी नजरों से ओझल नहीं होने देना है। यह बोल कर मै उसे वहीं छोड़ कर निकल गया था।

कटरा बस स्टैन्ड पर सैलानियों और दर्शनार्थियों की काफी भीड़ दिख रही थी। तभी मेरे नजर कुछ पिठ्ठुओं पर पड़ी जो बस से उतरते हुए यात्रियों के पीछे भाग रहे थे। एक पिठ्ठू को मैने रोका तो मेरी वर्दी देख कर वह सहम गया था। …मुझे तुम्हारे यह कपड़े चाहिए। यह बोल कर मैने जेब से पर्स निकाल कर नोट दिखाते हुए कहा… आओ तुम्हें नये कपड़े दिलवा देता हूँ। वह एक पल के लिये चौंका और फिर मुस्कुरा कर बोला… चलिये। कुछ देर के बाद मै उसके मैले कुचैले कपड़े पहन कर अपनी जीप की ओर जा रहा था। उसके कपड़े साइज मे छोटे थे परन्तु फिलहाल मेरे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था। प्लास्टिक के बैग मे मैने अपनी वर्दी और जूते डाल दिये थे। जीप से उतर कर मेरा ड्राईवर साईड मे खड़ा हुआ मेरा इंतजार कर रहा था। …मांगेराम मेरी पिस्तौल लाकर दो और अपने कप्तान साहब से कहो कि मुझे दो ग्रेनेड चाहिए। एक पल के लिये वह भौंचका सा मेरी ओर देखता रह गया और फिर तेजी से जीप की ओर बढ़ गया। मेरी पिस्तौल देकर वह कैप्टेन भाटी के पास चला गया था। थोड़ी देर के बाद मै पैदल उस ढाबे की ओर जा रहा था। मेरे कुर्ते की जेब मे दो ग्रेनेड रखे हुए थे और पाजामे के नाड़े मे पिस्तौल फँसी हुई थी। अब मै स्काउट की भुमिका निभा रहा था और मेरे साथ आयी स्पेशल फोर्सेज की टीम ढाबे पर मोर्चा लगाने मे व्यस्त हो गयी थी।  

ढाबे पर इक्का-दुक्का आदमी बैठे हुए थे। मै आराम से उन तीन ट्रकों के पास रखी हुई खाट पर बैठ गया और वहीं से चिल्ला कर नाश्ते का आर्डर देते हुए निगाहें घुमा कर तीन ट्रकों और दोनो गाड़ियों की स्थिति का अवलोकन किया। तीन आदमी जीप मे बैठे हुए बातचीत कर रहे थे। ट्रक मे कोई नहीं दिख रहा था। कार मे भी कुछ लोग बैठे हुए थे। मुझे ऐसा लग रहा था कि वह किसी का इंतजार कर रहे थे। मैने आराम से नाश्ता किया। कैप्टेन भाटी की टीम तब तक पोजीशन लेकर तैयार हो गयी थी। नाश्ता करने के बाद पानी का जग लेकर कुल्ला करने के लिये उनमे से एक ट्रक की आढ़ मे चला गया और एक ग्रेनेड का टाइमर सेट करके धीरे से बीच के ट्रक के नीचे सरका कर पैसे देने के लिये काउनटर की मेज की ओर चल दिया। …एक…दो…तीन… मन ही मन गिनती के साथ कदम बढ़ाते हुए जैसे ही मै काउन्टर की मेज के पास पहुँचा उस ट्रक के नीचे एक धमाका हुआ और उसका इंजिन वाला हिस्सा टूट कर हवा मे बिखर गया लेकिन तब तक मै मेज के पीछे छ्लांग लगा चुका था। धमाके के साथ ही एकाएक वहाँ पर शोरगुल और भगदड़ सी मच गयी थी। स्पेशल फोर्सेज के निशाने पर जीप और कार थे। उस धमाके के तीन मिनट बाद आठ लाशें और बुरी तरह गोलियों से उधड़ी हुई दो गाड़ियाँ और क्षतिग्रस्त ट्रक रह गया था। बाकी दो ट्रकों को कोई क्षति नहीं पहुँची थी। जब तक शहर मे खबर फैलती तब तक स्पेशल फोर्सेज ने तीनों ट्रकों को अपने कब्जे मे ले लिये था।

राष्ट्रीय राइफल्स की युनिट ने ढाबे के आस-पास के पूरे हिस्से को कवर कर दिया था। स्थानीय पुलिस भीड़ को दूर रखने के कार्य मे जुट गयी थी। मैने जल्दी से कपड़े बदल कर तीनो ट्रकों की जाँच करने के लिये चला गया था। पहले ट्रक जिसके इंजिन के परखच्चे उड़ गये थे उसका दरवाजा खोल कर जैसे ही अन्दर झांक कर देखा तो वहाँ पर मशीन के बजाय आठ बड़े-बड़े ट्रंक रखे हुए थे। मै और कैप्टेन भाटी ट्रक पर चढ़ गये और एक ट्रंक के ढक्कन पर लगे हुए ताले को तोड़ कर जैसे ही खोला तो आँखें फटी रह गयी थी। वह ट्रंक नोटों से ठसाठस भरा हुआ था। कैप्टेन भाटी आठों ट्रंक खोल कर देखने मे लग गया और मै दूसरे ट्रक की ओर बढ़ गया था। उसमे भी वैसे ट्रंक रखे हुए थे। तीसरे ट्रक मे लकड़ी की पेटीयाँ रखी हुई थी। एक पेटी खोल कर देखा तो उसमे पहाड़ी चरस रखी थी। मै नीचे उतर कर ब्रिगेडियर चीमा को फोन पर अपनी रिपोर्ट देने मे व्यस्त हो गया था। दोपहर तक सारा जब्त किया सामान और करेंसी नोट के ट्रंक सेना की निगरानी मे 15वीं कोर के हेडक्वार्टर्स भिजवा दिये गये थे। यह सब होने के बाद सेना ने ट्रक और लाशें स्थानीय पुलिस के हवाले कर दी थी। मै वापिस जम्मू चला गया और वहाँ से हेलीकाप्टर मे बैठ कर शाम तक श्रीनगर पहुँच गया था। एयरपोर्ट से निकल कर मै सीधे मकबूल बट के घर पर निगरानी रख रहे अपने साथियों के पास पहुँच गया था।

…अन्दर के क्या हाल है? …सर सब शान्त है। मकबूल बट घर पर नहीं है। मुझे कल से अभी तक की रिकार्डिंग दे दो। उन्होनें मुझे चार कैसेट देते हुए कहा… कल आपके जाने के बाद मकबूल बट किसी के साथ आया था आप एक बार वह रिकार्डिंग जरुर सुन लिजिएगा। मैने जल्दी से कैसेट को डिवाईस मे लगाया और सुनने बैठ गया परन्तु मेरे साथ बैठे हुए कुट्टी ने आगे बढ़ने का इशारा किया तो मै फास्ट फार्वर्ड मोड मे चला गया था। कुट्टी ने एक जगह रोक कर कहा… सर, यह सुन लिजीये।

…मकबूल, मै कल श्रीनगर पहुँच रहा हूँ। इस जुमे की नमाज के लिए जामिया मस्जिद पहुँच जाना। मै तुम्हें वहीं मिलूँगा। अपने साथ नीलोफर को लेकर आना क्योंकि मुझे इज्तिमा के बारे मे चर्चा करनी है। पैसा मिल गया? …जी भाईजान। हिज्बुल के लोग अपनी देखरेख मे कंटेनर ट्रक ला रहे है। …मकबूल सावधान रहना। पहली बार हमने नेपाल का रास्ता लिया है। …आप बेफिक्र रहिये भाईजान। इस पैसे से हमारी मुहिम को काफी मजबूती मिल जाएगी। …अच्छा नये कुअर्डिनेट्स नोट कर लो। 3396623, 7473880, 3337382, 7431322, 3343514, 7519478, 3387190, 7489047 इज्तिमा के तुरन्त बाद इन सब जगह पर काफ़िरों की फौज की दीवाली होनी चाहिये।         

एक बार फिर से सात अंकों का कोड देख कर मेरी धड़कन बढ़ गयी थी। मैने तीन-चार बार वह रिकार्डिंग सुनी लेकिन उस आवज को सुन कर किसी का चेहरा दिमाग मे नहीं आ रहा था। क्या यह फारुख की आवाज थी? मैने एक बार उससे बात की थी इसलिये मै यकीन से कुछ भी कहने की स्थिति मे नहीं था। अचानक मेरे दिमाग मे एक बात आयी तो मैने पूछा… कुट्टी मैने तो सारे माईक्रोफोन बाहर लगाये थे तो फोन पर दूसरी ओर से बोलने वाले की रिकार्डिंग कैसे हो गयी? …सर, पहले दिन ही हमे इस परेशानी का ज्ञान हो गया था। उसी रात हमने उस मकान की टेलीफोन लाइन की तार तोड़ दी थी। मकबूल बट की ओर से जब सुबह कम्प्लेन्ट की गयी तब थापा लाईनमैन बन कर टेलीफोन के अन्दर एक माइक्रोफोन फिट कर आया था। उसके बाद हमने उनकी लाइन वापिस जोड़ दी थी। मैने कुट्टी की पीठ थपथपा कर कहा… गुड जाब, लगता है मुझे थापा के लिये एक स्ट्राईप की सिफारिश अब करनी पड़ेगी।

उनको वहीं छोड़ कर मै अपने घर की ओर निकल गया था कि तभी कुट्टी का फोन आ गया। …सर, यहाँ हंगामा मचा हुआ है। क्या आप अभी आ सकते है? मैने जीप वापिस मोड़ी और उनके पास चला गया। मैने हेडफोन जैसे ही कान पर लगाया तो मकबूल बट की आवाज मेरे कान मे पड़ी।

…मै बर्बाद हो गया। वह लोग अब मुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगें। …क्या हो गया आपको? …हमारे तीनों ट्रक उनके हाथ लग गये। हिज्बुल का एक भी आदमी नहीं बचा। बुरहान ने अभी कुछ देर पहले खबर दी है कि कटरा के भरे बाजार मे सबको स्पेशल फोर्सेज ने एन्काउन्टर मे मार डाला और तीनो ट्रक लेकर चले गये। नीलोफर अब मेरा क्या होगा? इतना बोल कर वह फूट-फूट कर रोने लगा। नीलोफर की आवाज गूँजी… मुंबई का ट्रक भी पकड़ा गया? …हाँ। साकिब ने बीच रात मे फोन पर कहा था कि वह सेना की आँख मे धूल झोंकने मे कामयाब हो गये थे और अब बता रहा है कि सुबह एन्काउन्टर हो गया। अब मै उसके सामने कैसे जाऊँगा। वह तो देखते ही मुझे गोली मार देगा। अब सिर्फ तुम ही हो जो मुझे उसके जलाल से बचा सकती हो नीलोफर। …आप शांत हो जाईये। मै उससे बात करने की कोशिश करती हूँ।

मै चुपचाप उनकी बात सुन रहा था। मेरा एक शक पुख्ता होता जा रहा था कि नीलोफर लोन इस पूरे खेल मे एक महत्वपूर्ण कड़ी बन कर उभर रही थी। मैने उठते हुए कहा… आज रात टेलीफोन का खास ख्याल रखना। बहुत सारे लोगों के साथ यह आदमी बात करेगा। इतना बोल कर मै अपने घर चला गया था। दो दिन की थकान के कारण बिना कपड़े बदले बिस्तर पर पड़ गया था। उस रात मुझ पर नींद इतनी हावी हो गयी थी कि मुझे पता ही नहीं चला और डेड़ दिन तक सोता रहा था। जब दोपहर ढलने के बाद मै उठा तो जन्नत ने मेरा फोन देते हुए कहा… इतने फोन आ रहे थे कि मै इसे उठाकर अपने साथ ले गयी थी। मैने जल्दी से फोन पर मिस्ड काल की लिस्ट देखी तो ब्रिगेडियर चीमा मुझे याद कर रहे थे।

…सर। …मेजर कल से फोन नहीं उठा रहे थे। कहाँ थे? …सर, नींद पूरी कर रहा था। …दो ट्रको मे बारह करोड़ रुपये निकले है। एक और बात बतानी है कि उसमे से आठ करोड़ नकली है। हमे शक हो रहा है कि यह पैसा नेपाल से कैसे आया होगा। तुम्हारा क्या ख्याल है? …आप ठीक सोच रहे है सर। मुंबई मे इतनी नकली करेंसी मिलना असंभव लगता है। क्या परसों रात की रिकार्डिंग सुनी है? …जी सर, एक बार फिर से सात अंकों के आठ नम्बर मिले है। उस आदमी के अनुसार उन स्थानों पर दीवाली मनाने की योजना है। …क्या वह आवाज पहचानते हो? …नहीं सर। …मेजर उस आदमी को ढूंढों तो बहुत सी बातें साफ हो जाएँगी। क्या तुम्हें लगता है कि मकबूल बट को इन स्थानों का पता होगा? …सर, उसकी बातचीत से पता नहीं लगता। आप कहें तो उसे अभी उठवा लेते है? …नहीं, पहले इज्तिमा को रोकना है। …तो सर, फिर हमे जुमे तक इंतजार करना चाहिये। फारुख उस दिन जामिया मस्जिद मे मिलेगा। हमारे बीच बस इतनी बात हुई थी।

मै अपने साथियों के पास बैठ कर बीते दिन के बारे बात कर रहा था। …कल से कितने फोन आये थे?  …सर, फोन तो बहुत सारे आये परन्तु मकबूल बट ने किसी से बात नहीं की थी। आज सुबह नीलोफर आयी थी। आप चाहे तो उसकी रिकार्डिंग सुन सकते है। …अगर कोई खास बात नहीं है तुम्हीं बता दो कि उसने क्या कहा था? …यही कि उसने बात की थी परन्तु उन्होंने सब कुछ फारुख पर छोड़ दिया है। सर, उसकी बातों से पता नहीं चला कि उसकी बात किसके साथ बात हुई थी। मै समझ गया था कि मकबूल बट की गरदन अब फारुख के हाथ मे आ गयी थी। कुछ देर उनके साथ बैठ कर मै रात को वापिस अपने घर की ओर चल दिया था।

मेरे मन एक संतोष था कि मेरे एक ही वार से मकबूल बट की सारे जीवन की राजनीतिक विरासत उसके हाथ से फिसल कर अब फारुख के हाथ मे चली गयी थी। उस रात मै बिस्तर पर लेट कर अपनी माँ के दुख और अम्मी की मजबूरी के बारे मे सोच रहा था। अगले दिन जुमा था उसका ख्याल आते ही कुछ सोच कर मैने शाहीन का नम्बर मिलाया …हैलो। …बोलिये समीर। …क्या कोई मेहमान हाजी साहब के पास आया हुआ है? …घर पर तो कोई नहीं है। क्यों? …कुछ नहीं। अगर कोई नया चेहरा दिखे तो फौरन मुझे खबर कर देना। …तुम्हारे भाईजान को तो हमने रिहा कर दिया अब तो हाजी साहब तो खुश होंगें। …समीर, मै उन्हें कभी माफ नहीं कर सकती। …मुझ पर विश्वास है न। पहले हया नाम की लड़की का पता लगाना है। उसके बाद हम दोनो मिल कर अब्दुल्लाह और हया को सजा देंगें। तुम कैसी हो? …ठीक हूँ। …अच्छा याद रखना कि कोई नया मेहमान आये तो मुझे तुरन्त खबर करना। इतनी बात करके मैने फोन काट दिया था।

ठीक समय पर मै जामिया मस्जिद पहुँच गया था। जुमे की नमाज के कारण आज काफी भीड़ नजर आ रही थी। मै भी भीड़ मे शामिल हो गया था। सभी के साथ वुजू करके मै अन्दर चला गया और एक कोने मे जाकर सभी के साथ शामिल हो गया था। कुछ देर के बाद जब काफी भीड़ हो गयी तब हाजी मंसूर की आवाज माईक पर गूंजी… जनाब आज की तखरीर के लिए मेरे अजीज बड़ी दूर से आये है। उनको सुनने के लिए कुछ देर इंतजार कीजिए। मेरी नजर नमाजियों की भीड़ मे फारुख को ढूँढने मे लगी हुई थी। उसकी शक्ल को अब तक भूला नही था तो मेरी आँखे उसको तलाश कर रही थी। तभी एक अनजानी आवाज लाउडस्पीकर पर गूँजी…

 

बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम

बिरादर मै आज आपको नबी का पैगाम याद कराने के लिये आया हूँ। गज्वा-ए-हिंद का समय मुकर्रर हो गया है। निज़ाम-ए-मुस्तफा को हिंद मे स्थापित करने के लिए हमे आज और अभी से ही नबीं के लश्कर के साथ जुड़ना होगा। इस लश्कर मे शरीक होने वाले मोमिन के लिए नबीं ने बताया है कि उसे आग भी जला नहीं सकेगी इसीलिए हमारी जीत तो तय है। तुम चाहे सुन्नी हो या शिया, देवबंदी हो या बरेलवी, अहले हदीस हो या अहमदी, अशअरी हो या इस्माईली, लेकिन यह मत भूलो कि हम सभी मोमिन है जो अल्लाह को मानते है। यही हमारी एकता गज्वा-ए-हिन्द की ताकत है जो यहाँ निज़ाम-ए-मुस्तफा को स्थापित करने मे मदद करेगी।

बिरादर, गज्वा-ए-हिन्द के लिए हदीसो मे पाँच निर्देश दिये गये है। पहला निर्देश है कि हर संभव तरीके से जनसांख्यिकीय संरचना मे बदलाव करना। पिछले दो दशक से हम लगातार इस काम मे जुटे हुए है। हमने घाटी को मुश्रिकों से आजाद तो करा दिया परन्तु आज भी भारतीय फौज यहाँ पर अपने नापाक पाँव जमा कर बैठी हुई है। अब वक्त आ गया है कि काफिरों की फौज को यहाँ से बेदखल किया जाए। इन्होंने हमारी बहनों और बच्चियों के साथ जो कुकृत्य किया है उसका बदला लेने का समय आ गया है। इसमे हमारी मदद के लिए उम्मा खड़ी हुई है। अल्लाह हमारे साथ है और हर हालत मे हमारी फतेह होगी। इस जिहाद मे हम सभी को एक होकर मुश्रिकों की फौज पर कहर बन कर टूटना है।

मोमिनो दूसरा निर्देश है कि हमे हिंद की लोकतांत्रिक व्यवस्था मे राजनीति और प्रशासन मे जनसंख्या के बल पर हिस्सेदारी के लिए लगातार संघर्ष करना है। हमारे बच्चों को ज्यादा से ज्यादा संख्या मे राजनीति और सरकारी ओहदों पर काबिज होना पड़ेगा। हमें काफिरों के कानून का इस्तेमाल करके ही उन्हें पीछे धकेल कर अपने बच्चों के लिए रास्ता बनाना होगा। अपने दुश्मन को पहचानो। वह असंख्य जाति मे बँटे हुए है। वह भाषाओं मे बँटे हुए है। वह असंख्य पंथ और विचारों मे बँटे हुए है। काफिरों के बीच इन्हीं दरारों को खाई मे तब्दील करके उनकी नींव को खोखला करने मे हमे ज्यादा समय नहीं लगेगा। मोमिन भाईयों जाग जाओ और आवाज दो हम एक है।

मेरे बिरादर तीसरा निर्देश है कि भारतीय सभ्यता के विरुद्ध मोर्चा खोल कर काफिरों के बीच डर और आतंक का माहौल बनाने का है। उनके धार्मिक स्थलों पर तोड़-फोड़ करके दंगा करा के उनके बीच मे डर का माहौल बनाना हमारी प्राथमिकता है। उनकी प्रशासनिक व्यवस्था को गोलियों और बम्ब विस्फोट द्वारा पंगु बना कर उनके घरों और कारोबार पर जबरदस्ती कब्जा करना है। उनके दिलों मे मोमिनों का डर बैठना चाहिए। इसके लिए सीमा पार बैठे हुए मोमिनों की गैर सरकारी फौज तैयार बैठी हुई है। वह बस हमारे इशारे का इंतजार कर रहे है।

अल्लाह के बन्दो चौथा निर्देश धर्म परिवर्तन का है। काफिरों की लड़कियों और औरतों को बहला फुसला कर इस्लाम धर्म कुबूल करवाओ। अगर वह धर्म परिवर्तन के लिए तैयार नहीं होती तो उन्हें जबरदस्ती कुबूल करवाओ। इसके लिए हमारे जवानों को आगे बढ़ना चाहिए। अल्लाह ने हमे चार बीवी रखने की आजादी है। हर मोमिन को चाहिए कि चार मे से एक बीवी तो काफिर होनी चाहिए। मौलवियों को अपने मदरसों मे लव जिहादी तैयार करने चाहिए। गरीबों को पैसों का लालच देकर धर्म परिवर्तन करवाओ और अमीरों को डरा कर जबरदस्ती उनसे इस्लाम धर्म कुबूल करवाओ।

आखिरी निर्देश शरिया को लागू करने का है। सबसे पहले इस कानून का पालन हम मोमिनों को करना चाहिए। अपने सारे घरेलू और बाहरी झगड़े और विवाद शरिया के अनुसार सुलझायें। इसके लिए मौलवियों को विशेष इंतजाम करना चाहिए। हमे सरकार पर दबाव डालना चाहिए कि हर जिले मे एक सरकारी शरिया कोर्ट स्थापित होना चाहिए। जो मोमिन सरकारी कोर्ट या पुलिस द्वारा अपने विवाद सुलझाने को प्राथमिकता देता है तो हमारे समाज को उसका बहिष्कार कर देना चाहिए।

बिरादर, रब्बा-ओ-अल-अमीन ने तुम्हें एक रास्ता दिखाया है। इतने साल से काफिरों और किताबवालों के हाथों से मर रहे हो और बेईज्जत हो रहे हो। क्या कभी सोचा है क्यों? इसका एक ही कारण है कि मुस्लिम ने दीन का रास्ता छोड़ दिया है। उसने खुदा को भुला दिया है। अपनी भूल सुधारने के लिए अल्लाह ने तुम्हें यही एक मौका अता किया है। नबीं के गज्वा-ए-हिन्द के लश्कर से जुड़ने के लिये तैयार हो जाओ। इसी के लिए आज से चौथी जुम्मे रात को एक इज्तिमा का आयोजन हो रहा है। इसका उद्देश्य कश्मीर को आज़ाद कराने का नही अपितु हिंद मे निजाम-ए-मुस्तफा स्थापित करना है। अल्लाह रहमदिल है। इस लड़ाई मे हमारी जीत निश्चित है। आमीन। इस लड़ाई मे जो शहादत देगा वह सीधा जन्नत जाएगा जहाँ बहात्तर हूरें उसका बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रही है।

नारा-ए-तदबीर अल्लाह-ओ-अकबर।

जामिया मस्जिद की दीवारे उस नारें से थर्रा रही थी।