काफ़िर-44
अब तक मेरे कंधे का
घाव भी ठीक हो गया था और स्लिंग भी हट गयी थी। ब्रिगेडियर चीमा को आघात-2 की फाईनल
रिपोर्ट देकर मै अपने कमरे की ओर जा रहा था कि मेरे फोन की घंटी बज उठी थी। मैने चलते
हुए फोन अपने कान पर लगा कर कहा… हैलो। एक अनजान महिला की आवाज दूसरी ओर से आयी… मेजर
समीर बट। …जी मै समीर बोल रहा हूँ। आप कौन? …समीर, मै एएफएमसी से डाक्टर श्री विद्या
बोल रही हूँ। आप मुझे शायद भूल गये है। मै अदा की रुममेट हूँ। एकाएक मेरे जहन मे श्री
का धुन्धला सा चेहरा तुरन्त उभर आया था। मैने जल्दी से कहा… श्री, आई एम सौरी। मै आपको
पहचान गया। बोलिये आप कैसी है। …मै तो ठीक हूँ लेकिन मुझे लगता है कि अदा की हालत ठीक
नहीं है। क्या आप यहाँ आ सकते है? अदा की तबियत के बारे मे सुनते ही मेरे पाँव के नीचे
से जमीन खिसक गयी थी। मै चलते-चलते रुक गया और बरामदे की रेलिंग का सहारा लेकर खड़ा
हो गया।
…श्री उसे क्या हुआ?
…मुझे ऐसा लग रहा है कि वह नर्वस ब्रेक डाउन का शिकार हो गयी है। …क्या मतलब? …समीर
वैसे तो वह दिन मे ठीक रहती है। उसके काम के बारे मे भी कोई कम्प्लेन्ट नहीं है परन्तु
पिछले कुछ दिनो से अकेले मे वह अजीब सी हरकतें करने लगी है। रात को अपने कमरे मे वह
अपने आप से बात करती है और कभी अचानक फूट-फूट कर रोने लगती है। …श्री यह कब से हुआ
है? …पता नहीं समीर, परन्तु मेरा अनुमान है कि जब से वह श्रीनगर से लौटी है तभी से
उसमे बदलाव आया है। पहले ऐसा कभी-कभी होता था। उस वक्त मैने इस बदलाव पर कोई ज्यादा
ध्यान नहीं दिया क्योंकि मुझे उसकी ट्रेजिडी का ज्ञात था। परन्तु ऐसा अब लगभग रोज रात
को हो रहा है। मुझे समझ मे नहीं आ रहा है कि कौनसा गम उसे धीरे-धीरे खा रहा है। अगर
नर्वस ब्रेकडाउन की बात आफिस मे पता चल गयी तो उसका कैरियर चौपट हो जाएगा। मै तुम्हारे
और उसके सबन्धों के बारे मे शुरु से जानती हूँ। कल मैने उसके मुँह से तुम्हारा नाम
सुना तो इसलिये आज उसके फोन से तुम्हारा नम्बर निकाल कर तुम्हें खबर कर रही हूँ। अगर
जल्दी कुछ नहीं किया तो शायद बहुत देर हो जाएगी। मै उसकी बात चुपचाप सुन रहा था परन्तु
मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे उसके मुख से निकला हर शब्द मेरा दिल निचोड़ रहा था।
…हैलो। …श्री क्या अभी भी तुम उसी पुराने फ्लैट मे रहती हो? …नहीं, हम दोनो कमांड अस्पताल
के पास अलग फ्लैट लेकर रह रहे है। …श्री मै कल तक पुणे पहुँच रहा हूँ। अपना पता लिखा
दो। श्री ने जल्दी से अपना पता लिखवा कर कहा… समीर क्या मै तुम्हें एयरपोर्ट से पिक
करुँ? …नहीं। मै पहुँच जाऊँगा लेकिन मेरे आने की सूचना अदा को पता नहीं चलनी चाहिये।
…ओके बाय। इतना बोल कर श्री ने फोन काट दिया था।
मै वापिस ब्रिगेडियर
चीमा के आफिस की ओर चल दिया। मुझे दोबारा आये हुए देख कर वह चौंक कर बोले… क्या हुआ
मेजर कोई बुरी खबर है? …नो सर। अब चुँकि मेरा आप्रेशन आघात-2 आपके पास आ गया है और
अब दिल्ली जाने की बात चल रही है तो फिलहाल
मेरे पास कोई काम नहीं है। मै सोच रहा था कि नयी ड्युटी जोइन करने से पहले मै अपनी
वार्षिक छुट्टी पर चला जाऊँ। डेड़ साल से मैने कोई छुट्टी नहीं ली है तो क्या आप मुझे
वार्षिक छुट्टी लेने की अनुमति दे सकते है। ब्रिगेडियर चीमा कुछ सोच कर बोले… मेजर,
मेरे पास अपने पेपर्स भेज देना। तुम चाहो तो आज और अभी से छुट्टी पर जा सकते हो। मै
जल्दी से उनके कमरे से निकल कर अपने आफिस मे आया और छुट्टी के पेपर्स तैयार करके उनके
पीए को थमा कर अपने फ्लैट की दिशा मे चल दिया। मै निर्णय ले चुका था परन्तु अपने फ्लैट
पर लौटते हुए एक प्रश्न मुझे परेशान कर रहा था। मेरी अनुपस्थिति मे उन तीनो का क्या
होगा? जन्नत और आस्माँ को तो मै अपने घर पर छोड़ सकता था परन्तु तबस्सुम को अकेला यहाँ
छोड़ा नहीं जा सकता था। क्या उसे अपने साथ पूणे ले जाना उचित होगा? यही सोचते हुए मै
अपने फ्लैट पर पहुँच गया था।
अपनी जीप से उतर कर
मै फ्लैट मे प्रवेश कर रहा था कि तभी मेरे फोन की घंटी ने मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित
किया। ब्रिगेडियर चीमा ने फोन करके कहा… मेजर, तुम कल से छुट्टी पर जाना। फारुख कुछ
दिनों से तुमसे मिलने की जिद्द कर रहा है। आज शाम को उससे एक बार मिल लो लेकिन कोई
ऐसी बात मत करना कि वह हिंसा पर उतर आये या वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठे। बहुत मुश्किल
से वह हमारे साथ काम करने के लिये तैयार हुआ है। …सर, उसे इस वक्त कहाँ रखा हुआ है?
…वहीं पर है। …ठीक है सर, मै उसे आज शाम को ही मिल लूँगा। इतनी बात करके उन्होंने फोन
काट दिया था। फ्लैट मे दाखिल होते ही मैने तबस्सुम को बुला कर अपने सामने बैठा कर कहा…
आज शाम को मुझे तुम्हारे अब्बा से मिलने जाना है। मै सोच रहा था कि तुम्हें भी अपने
साथ ले जाऊँ। अभी मैने अपनी बात भी पूरी नहीं की थी कि वह खुशी से झूमती हुई मुझ पर
झपट पड़ी। उसे अपने से अलग करते हुए मैने झिड़कते हुए कहा… तुम पूरी बात सुनती नहीं हो
और बस खुश होकर झूमने लगती हो। वह एक पल के लिये सहम गयी थी। अदा की खबर ने मुझे पहले
से ही विचलित कर दिया था और अब फारुख से मुलाकात की बात ने मुझे असमंजस मे डाल दिया
था।
तबस्सुम का बुझा चेहरा
देख कर मैने जल्दी से उसका हाथ पकड़ कर अपने साथ बैठा कर समझाने वाले अंदाज मे कहा…
आज तुम सिर्फ अपने अब्बू को शीशे के पीछे से देख और सुन सकती हो परन्तु मिल नहीं सकोगी
क्योंकि उनसे मिलने की सभी को मनाही है। आज तुम्हारे अब्बू ने मुझे खुद मिलने के लिये
बुलाया है इसीलिये मुझे उनसे बात करने की अनुमति मिली है। मेरी बात सुन कर उसका चेहरा
उतर गया था। …तबस्सुम, यह क्या कम है कि इतने दिनो के बाद तुम अपने अब्बू को दूर से
देख और सुन सकोगी। अगली बार फिर कोई ऐसा मौका मिलेगा तो मै जरुर तुम्हे उनसे मिलवा
भी दूँगा। वह उठते हुए बोली… चलिये। एक बार फिर से उसे बिठा कर मैने कहा… तुम वहाँ
ऐसे नहीं जा सकती। कुछ हुलिये मे बदलाव करना पड़ेगा जिससे कोई तुम्हें पहचान न सके।
चलो मेरे साथ। उसको अपने साथ लेकर अपने कमरे मे आ गया और दरवाजा बन्द करके मैने अपनी
अलमारी से अपनी कोम्बेट युनीफार्म निकाल कर उसको देते हुए कहा… तुम यह पहन कर मेरे
साथ वहाँ जाओगी। वह कुछ नहीं बोली बस उस काले कपड़े को देखती रही। …जाओ बाथरुम मे जाकर
यह कपड़े उतार कर इसको पहन लो जैसे मै पहन कर दिखा रहा हूँ। मैने जल्दी से अपने कपड़े
उतार कर उसे डंगरी पहन कर दिखाते हुए कहा… ऐसे पहन कर बाहर आ जाओ। मैने डंगरी उतार
कर उसको पकड़ा दी और अपनी युनीफार्म पहनने मे जुट गया। वह डंगरी लेकर बाथरुम मे चली
गयी थी।
कुछ देर बाद वह डंगरी
पहन कर झिझकते हुए बाहर निकली तो वह एक नमूना लग रही थी। …अब सीधे खड़ी हो जाओ। एक कैंची
लेकर पहले डंगरी की बाँहे उसके हिसाब से छोटी करके उसकी कमर पर मध्य भाग टिका कर डंगरी
के पाँव छोटे किये। अब उसके कन्धे, सीना और कमर को ठीक करना बच गया था। एक स्टेपलर
लेकर मैने पहले कन्धे ठीक किये और जैसे ही उसके सीने की ओर हाथ बढ़ाया तो वह छिटक कर
दूर खड़ी हो गयी… आप यह क्या कर रहे है। …अब्बू से मिलना है कि नहीं? वह कुछ देर खड़ी
रही और फिर मेरे पास आकर खड़ी हो गयी। डंगरी को उसके सीने के उभार पर ठीक से जमाने मे
मुश्किल हो रही थी तो मै एक पल के लिये झिझका और फिर उसके उभरे हुए बाँये हिस्से पर
जेब को टिका कर उसके स्तन को पकड़ कर कपड़े मे पिन लगा कर अटका दिया। यही उसके दूसरे
स्तन को पकड़ कर मैने सीने पर आये हुए झोल कर ठीक से सेट करके अलग हो गया। मैने उस पर
नजर डाली तो वह सांस रोक कर खड़ी हुई थी। शर्म से उसका चेहरा सिन्दुरी हो गया था। उसकी
स्थिति को अनदेखा करके मैने उसकी पतली कमर पर डंगरी के मध्य भाग को सेट करके कपड़ा बाँध
कर स्थिर किया फिर टांगों के जोड़ पर अपना हाथ रख कर पूछा… मेरी ओर झुको। एकाएक वह मुझे
धक्का देकर रुआँसी हो कर बिस्तर मे मुँह छिपा कर बैठ गयी थी। …क्या हुआ? वह कुछ नहीं
बोली तो मैने जल्दी से कहा… इतना शर्माने की क्या जरुरत है। क्या कपड़े बनाने के लिये
पहले तुम्हारा नाप किसी ने नहीं लिया है? वह अचानक पलट कर मुझे घूरती हुई बोली… कोई
छूता नहीं बस अन्दाजे से बना देते है। आपने तो आज हद पार कर दी। भला कोई ऐसे किसी को
हाथ लगाता है। …मै पेशे से दर्जी नहीं हूँ। रहा मेरे हाथ लगाना वह सब इंसान की नीयत
पर निर्भर होता है। इसलिये मुझे जो काम करना है वह करने दो। मैने उसे जबरदस्ती खड़ा
किया और एक बार फिर से निशान लगा कर उससे कहा… अब इसे उतार कर मुझे दे दो। वह बेहद
गुस्से मे थी और पाँव पटकते हुए बाथरुम मे चली गयी थी।
शाम होने से पहले
उसकी डंगरी और एक जोड़ी जूते का इंतजाम हो गया था। मैने कोम्बेट डंगरी उसके हाथ मे देने
से पहले एक पैकेट पकड़ाते हुए कहा… अब तुम बड़ी हो गयी हो तो इनको पहले पहन कर ही डंगरी
पहनना। उसने पैकट हाथ मे लेकर बाथरुम मे घुसते हुए चिड़ कर कहा… मुझे सब पता है। हम
लोग घर मे ऐसे ही रहते है। थोड़ी देर के बाद जब वह बाहर निकली तो डंगरी की फिटिंग बहुत
हद तक ठीक हो गयी थी। …जो पैकट दिया था वह पहन लिया कि चेक करके देखूँ? उसने घूर कर
देखा और फिर शर्म से उसका चेहरा गुलाबी हो गया था। उसके बाल खोल कर जूड़ा बना कर उसके
सिर पर पटका बाँध कर कहा… अब जाकर शीशे मे देख कर बताओ कि क्या तुम्हारी फौज मे कोई
इससे ज्यादा खूबसूरत फौजी है। उसने अपने आपको शीशे मे निहारा और फिर मुस्कुरा कर बोली…
हमारी फौज को छोड़िये लेकिन मुझे यकीन है कि काफिरों की फौज मे भी मुझसे बेहतर फौजी
नहीं मिलेगा। उसके चेहरे पर दोपहर से आयी टेन्शन समाप्त हो गयी थी। थोड़ी देर के बाद
मै अपनी सुरक्षा टीम के साथ डिटेन्शन सेन्टर की ओर जा रहा था। तबस्सुम उन सभी के बीच
मे घिरी हुई बैठी थी।
लोहे का दरवाजा खोल
कर जैसे ही मैने फारुक के सेल मे प्रवेश किया तो वह मुझे देखते ही बोला… तुम्हारे से
बात करने के लिये बहुत मिन्नतें करनी पड़ती है। …ऐसी कोई बात नहीं है। तुम्हीं ने तो
मुझे अपने केस से हटाने के लिये ब्रिगेडियर साहब पर दबाव डाला था। एक पल वह मुझे देखता
रहा और फिर संजीदा स्वर मे बोला… समीर, मेरा एक काम कर दोगे तो खुदा कसम मै तुम्हारा
सारी जिन्दगी एहसान मानूँगा। मैने जो मिरियम के साथ किया था उसके लिये भी तुमसे माफी
मांग लूँगा। इतना बोल कर वह एक पल के लिये चुप हो गया और फिर मेरी ओर देख कर बोला…
अगर मेरी बेटी तबस्सुम तुम्हारे पास है तो खुदा के लिये उसका कत्ल कर दो। बस उसे वापिस
सीमा पार मत भेजना।
मै जानता था कि मेरी
एक हल्की बात ब्रिगेडियर चीमा की सारी मेहनत पर पानी फेर देगी इसीलिये कुछ बोलने से
मै कतरा रहा था। कुछ सोच कर मैने पूछा… और अगर मेरे पास तबस्सुम नहीं है तो फिर? …तो
फिर उसे ढूंढ कर तुम्हें उसका कत्ल करना पड़ेगा क्योंकि तुम्हारे सीओ ने बताया है कि
वह अपने किसी यार के साथ घर से भाग गयी है। मै कुछ देर उसको देखता रहा और समझने की
कोशिश कर रहा था कि आखिर इसके दिमाग मे क्या चल रहा है। …अगर मुझे पता चला कि वह अपने
यार के बजाय तुम्हें ढूंढने के लिये घर से भागी है तो उस हालात मे मुझे क्या करना चाहिये
यह भी बता दो? वह एक पल चुप रहा और फिर धीरे से बोला… तब भी वही कहूँगा। वह जिस वक्त
उस घर की चारदीवारी से बाहर निकली तभी उसने हमसे अपने सभी रिश्ते तोड़ दिये थे। तुम
कभी सोच भी नहीं सकते कि अगर वह पीर साहब के हाथ लग गयी तो उसका क्या हश्र होगा। मै
जानता हूँ कि वह लोग उसके साथ क्या करेंगें। सिर्फ तुम ही मेरा यह काम कर सकते हो तो
खुदा के लिये मेरे लिये इतना काम कर दो। …अगर वह पाकिस्तान मे है तो यह काम मै कैसे
करुँगा? अबकी बार वह अपना धैर्य खोते हुए बोला… वह वहाँ पर नहीं है। यह मै जानता हूँ
वर्ना तो तुम्हारा सीओ अब तक मुझे उसकी हत्या की खबर दे चुका होता। इतना बोल कर वह
चुप हो गया था।
मै अजीब स्थिति मे
फँस गया था। मै जानता था कि इस कमरे मे होने वाली हर बात शीशे के उस पार सभी सुन रहे
थे। मुझे तबस्सुम की फिक्र हो रही थी क्योंकि वह भी अपने कत्ल का फरमान अपने अब्बा
के मुख से सुन रही थी। अचानक आईएसआई से जुड़ा हुआ एक नाम बिजली की तेजी से मेरे दिमाग
मे कौंधा तो उसके निवारण के लिये मैने तुरन्त कहा… ठीक है। तुम्हारा अगर मै यह काम
कर दूँगा तो भी इसमे मेरा क्या फायदा है। क्या तुम्हारे यहाँ कोई हया नाम की ओपरेटिव
है जो इस सेक्टर मे सक्रिय है? उसने धीरे से सिर हिला कर हामी भरते हुए चादर से हाथ
निकाल कर सबकी नजरों से बचा कर एक कागज मेरे हाथ मे थमा कर दबी आवाज मे कहा… हया से
इसका पता कर लोगे तो तुम्हारी बहुत सी परेशानी हल हो जाएँगी। मैने एक नजर अपनी मुठ्ठी
मे बंद उस कागज पर डाल कर मुड़ते हुए उस कागज को अपने मुँह मे रख कर चबाते हुए कमरे
से बाहर निकल गया था।
उस कागज पर उर्दू
मे एक नाम लिखा हुआ था- ‘कोडनेम वलीउल्लाह’
मेरे लिये हया नाम
की स्त्री और ‘कोडनेम वलीउल्लाह’ अनसुलझी पहेली बन चुके थे। मेरी अम्मी और आसिया
की हत्या के पीछे हया नाम की स्त्री का हाथ था। कोडनेम वलीउल्लाह एक ऐसा रहस्य था जिसके बारे मे सिर्फ हया ही बता
सकती थी। तबस्सुम अपने अब्बू की बात सुन कर उस दिन गुमसुम हो गयी थी। रात को भोजन के
समय पर भी जब वह कमरे से बाहर नहीं निकली तब मुझे उसकी चिंता हुई और मै उठ कर उसके
कमरे मे चला गया था। वह बिस्तर मे मुँह छिपा कर लेटी हुई थी। …तबस्सुम। मेरी आवाज सुन
कर वह तुरन्त उठ कर बैठ गयी। …मेरे साथ बाहर चलो। मुझे तुमसे कुछ बात करनी है। वह चुपचाप
मेरे साथ घर के पीछे लान मे आ गयी थी। …क्या तुम्हारे घर परिवार मे ऐसा कोई नहीं है
जो तुम्हारे साथ खड़ा हो सके जैसे कि तुम्हारी अम्मी? उसने धीरे से सिर उठा कर पल भर
के लिये मेरी ओर देखा और फिर धीरे से बोली… मेरी अम्मी नहीं है। उसकी आँखों मे आँसू
नहीं थे परन्तु उसकी बेसुधी उसके टूटे हुए दिल के दर्द का एहसास मुझे करा रही थी। मेरी
भी हालत उसकी जैसी थी जब मकबूल बट ने पहली बार मुझे काफ़िर की औलाद कह कर पुकारा था।
उस वक्त मुझे भी समझ मे नहीं आया था कि क्या करुँ शायद इसीलिये आज मै उसके दर्द को
महसूस कर रहा था।
वह मेरे सामने सिर
झुका कर खड़ी हो गयी थी। मै अपने आप को रोक नहीं सका उसे अपनी बाँहों मे जकड़ कर बोला…
कोई और हो न हो पर मै तो तुम्हारे साथ खड़ा हूँ। तुम्हें किसी और के बारे मे सोचने की
कोई जरुरत नहीं है। अचानक मेरे सीने अपना मुख छिपाये वह फफक कर रो पड़ी थी। शाम से उसकी
दबी हुई कुंठित भावनाओं का सैलाब उमड़ कर बहने लगा था। उसकी पीठ सहलाते हुए मैने कहा…
जैसे आज तुम्हारे अब्बू ने कहा था वैसे ही एक रोज मेरे अब्बू ने भी मेरे साथ किया था।
उन्होंने मुझे काफ़िर की औलाद कह कर घर से निकल जाने के लिये कह दिया था। उस वक्त मेरे
पास मेरी अम्मी थी जिसके कारण मै आज तुम्हारे सामने खड़ा हुआ हूँ।। हम दोनो की कहानी
एक जैसी है। जिनको इतने साल तक हमने अपना सरमायेदार माना था उन्होंने पल भर मे सारे
रिश्ते तोड़ दिये थे। उन्होंने एक बार भी नहीं सोचा कि हमारे दिल पर क्या गुजरेगी। एक
दूसरे को अपनी बाँहों मे बाँधे हुए हम काफी देर तक ऐसे ही खड़े रहे थे। उसे एक सहारे
की जरुरत थी और उस रात से मै उसका सहारा बन गया था।
जब वह शान्त हो गयी
तो उसके साथ बैठते हुए मैने पूछा… तबस्सुम, कल मुझे कुछ दिनो के लिये पुणे जाना है।
क्या तुम मेरे साथ चलोगी या इनके साथ यहाँ रहना चाहोगी। वह सिर झुकाये बैठी रही। …मेरे
साथ पुणे चलो। नयी जगह और नये लोगो के बीच तुम्हारा दर्द कम हो जाएगा। उसने जब कोई
जवाब नहीं दिया तो मै उसे वहीं छोड़ कर अपने कमरे मे चला गया था। अपने बिस्तर पर सोने
की कोशिश कर रहा था लेकिन नींद कोसों दूर थी। अदा और तबस्सुम के साथ मेरे द्वारा हुए
किये गये अन्याय का भार अब मेरे सीने पर बढ़ता जा रहा था। मैने करवट ली तो मेरी नजर
दरवाजे पर खड़ी हुई तबस्सुम पर पड़ी जो पता नहीं कब से वहाँ पर खड़ी हुई थी। हमारी नजरें
मिलते ही वह कमरे मे प्रवेश करते हुए बोली…मुझे आपसे कुछ कहना है। जब से वह फारुख के
पास से लौटी थी तभी से मैने महसूस किया था कि उसका बचपना एकाएक न जाने कहाँ खो गया
था। मै उठ कर बैठ गया और उसे बैठने का इशारा करके बोला… क्या कहना चाहती हो? वह बोलते
हुए एक पल के लिये झिझकी और फिर धीरे से बोली… मै जानती हूँ कि आपका उन दोनो बहनों
के साथ क्या संबन्ध है। इसीलिये आपके साथ चलने से पहले मै जानना चाहती हूँ कि आप मुझे
किस हैसियत अपने साथ लेजा रहे है? एकाएक ऐसे सवाल को सुन कर एक पल के लिये मेरी सारी
सोच गड़बड़ा गयी थी। मेरा यथार्थ से सामना हो गया था। बात तबस्सुम अकेली की नहीं थी बल्कि
मेरी भी थी। भारतीय सेना मे होने के कारण मै एक पाकिस्तानी लड़की के साथ कैसे रह सकता
था?
मैने उसकी ओर देखते
हुए पूछा… तुम ही बताओ कि तुम किस हैसियत से मेरे साथ रहना चाहती हो? उसने बिना पलकें
झपके तुरन्त कहा… क्या आप मुझसे निकाह कर सकते है? वैसे तो मै यह पूछने के लायक नहीं
हूँ लेकिन शायद इस तरह मेरी बाकी की जिंदगी आपके साये मे गुजर जाएगी। अबकी बार मैने
संभल कर कहा… क्या तुम जानती हो कि मै काफ़िर हूँ। वह कुछ नहीं बोली तो मैने जल्दी से
दूसरी दलील दी… क्या तुम जानती हो कि मेरा निकाह हो चुका है और मेरी एक बेटी है। वह
चुप बैठी रही। …और सबसे जरुरी बात है कि मै भारतीय सेना के लिये काम करता हूँ और कानूनन
मै दूसरा निकाह नहीं कर सकता। वह कुछ नहीं बोली और उठ कर जाने लगी तो मैने रोक कर पूछा…
कहाँ जा रही हो? …वापिस अपने घर। इतना बोल कर वह कमरे से बाहर निकल गयी थी। मै उसके
पीछे भागा और उसको रोक कर कहा… पागल हो गयी हो क्या? …नहीं मुझे अक्ल आ गयी है। मुझसे
एक भूल हो गयी थी जिसकी भरपाई तो मुझे ही करनी होगी। अब पीर साहब जो भी सजा देंगें
उसको खुदा की मर्जी मान कर कुबूल कर लूँगी।
मैने जल्दी से कहा…
तबस्सुम तुम जो कुछ भी करना चाहती हो वह मेरे लिये कल सुबह तक मुल्तवी कर दो। आज मेरी
बात सुन लो और उसके बाद तुम जैसा चाहोगी मै वैसा ही करुँगा। मै उसका हाथ पकड़ कर वापिस
कमरे की ओर चल दिया। वह चुपचाप खिंचती हुई मेरे पीछे आ गयी थी। उसे अपने बिस्तर पर
बिठा कर मैने अपने बैग से तीन चीजें निकाल कर उसके सामने रखते हुए कहा… यह मिरियम का
पीआरसी कार्ड, वोटर कार्ड और पास्पोर्ट है। एक बार इस पर लगी हुई फोटो पर एक नजर डाल
कर देख लो। तीनो चीजों पर नजर डाल कर वह बोली… यह तो फूफी के है। मैने कहा… जो अब इस
दुनिया मे नहीं है। तुम्हारे अब्बा ने उसकी हत्या करी या करवा दी इसका मुझे पता नहीं
है परन्तु इसी के लिये वह मुझसे माफी मांग रहे थे। वह आश्चर्य से मेरी ओर देखते हुए
बोली… तो आप इतने दिनों से मुझसे झूठ बोल रहे थे। मैने कहा… हाँ। लेकिन पहले तुम्हें
यह समझना जरुरी है कि यहाँ पर रहने के लिये सबसे पहले तुम्हारी पहचान जरुरी है। अब
वह चुपचाप मेरी बात ध्यान से सुन रही थी।
मैने एक गहरी साँस
लेकर कहा… अगर तुम चाहो तो यह तीनों चीजे तुम्हारे काम आसानी से आ सकती है क्योंकि
तुम दोनो का चेहरा काफी हद तक मिलता है। मिरियम बट की पहचान के साथ तुम इस देश मे ही
नहीं पुरी दुनिया मे आसानी से घूम सकती हो। अब तुम्हें यह समझने की जरुरत है कि रिश्ते
मे मिरियम बट मेरी छोटी अम्मी लगती थी। अब तुम्हारे सवाल का जवाब दे रहा हूँ कि तुम
छोटी अम्मी की हैसियत से मेरे साथ आराम से रह सकती हो लेकिन इसका एक सच और भी है जिसके
कारण तुम्हारे अब्बा ने उसकी हत्या की थी। मै एक पल के लिये बोलते-बोलते रुक गया था।
अब इसके आगे का हमारा रिश्ता मिरियम और मेरे संबन्धों के सच पर टिका हुआ था।
मैने झिझकते हुए बोलना
आरंभ किया… मिरियम का एकाकीपन उसे मेरे करीब ले आया था। वह मेरी बातों मे ऐसी उलझी
कि सभी रिश्तों को भुला कर वह मेरी मोहब्बत मे पागल हो गयी थी। उस वक्त मेरे लिये वह
एक सुन्दर हसीन खिलौने से ज्यादा कुछ भी नहीं थी। सच पूछो तो उसकी मासूम मोहब्बत को
मैने अपनी वासना के लिये खुल कर इस्तेमाल किया था। पता नहीं कैसे हमारे संबन्धों का
राज तुम्हारे अब्बा को पता लग गया तो उन्होंने मुझसे दुश्मनी निकालने के लिये उसकी
हत्या करवा दी थी। हो सकता है कि मै उसे एक टूटे हुए खिलौने की तरह छोड़ कर आगे बढ़ गया
होता परन्तु उस दिन उसकी रक्त रंजित लाश को देख कर पहली बार मुझे उसकी मोहब्बत का एहसास
हुआ था। एक खेल से आरंभ हुआ रिश्ता पता ही नहीं कब मोहब्बत मे तब्दील हो गया जिसका
मुझे एहसास उसकी मौत के बाद हुआ था। मिरियम की मौत का बोझ अपनी आत्मा पर उठाये अब तक
जी रहा था लेकिन उस खंडहर मे जब मैने पहली बार तुमको देखा तो मुझे लगा खुदा ने मुझे
मेरी मिरियम लौटा दी है। उसी पल मेरी सारी योजना धरी की धरी रह गयी थी। यह सही है कि
तुम्हें नीलोफर से बचाने के लिये यहाँ लाया था। मुझे श्रीनगर पहुँच कर तुम्हें तुरन्त
अपनी फौज के हवाले कर देना चाहिये था। मै ऐसा नहीं कर सका और इतने साल की नौकरी और
इज्जत को दाँव पर लगा दिया। इतना बोल कर मै चुप हो गया था।
मुझे एहसास ही नहीं
हुआ कि बोलते हुए पश्चाताप के आँसू मेरी आँखों से लगातार बह रहे थे। इतने दिनों मे
पहली बार मिरियम के लिये आँसू स्वत: ही बह रहे थे। वह चुपचाप बैठी हुई मेरी कहानी सुन
रही थी। उसने एक बार भी बीच मे टोकने की कोशिश नहीं की थी। मै सिर झुकाये कुछ देर बैठा
रहा और जब विचलित मन शांत हो गया तो मैने उसकी ओर देख कर कहा… यही सच्चायी है। उस बेचारी
के लिये तो मै कुछ नहीं कर सका लेकिन शायद तुम्हें नया जीवन देकर मेरी आत्मा पर रखा
हुआ बोझ कुछ हल्का हो जाएगा। अब आगे तुम्हारी मर्जी है। वह उठ कर कमरे से बाहर निकल
गयी और मै उसे जाते हुए देखता रह गया परन्तु उस रात उसे रोकने की हिम्मत नहीं जुटा
सका था।
अगली सुबह मै जन्नत
और आस्माँ को अपने पुणे जाने की जानकारी दे रहा था। …तुम्हें कुछ दिन अब मेरे घर पर
ठहरना पड़ेगा क्योंकि सुरक्षा कारणों से मै यहाँ पर तुम्हें अकेला नहीं छोड़ सकता। तबस्सुम
का ख्याल रखना क्योंकि इस वक्त वह बेहद नाजुक दौर से गुजर रही है। मै कुछ और बोलता
कि तभी कमरे मे प्रवेश करते हुए तबस्सुम बोली… मै आपके साथ चल रही हूँ। मैने उसको अनसुना
करके बोलना जारी रखते हुए कहा… तुम दोनो मेजर हसनैन से काम सीखने की कोशिश करना क्योंकि
आगे चल कर सिर्फ हुनर ही इंसान के काम आता है। उनको भेजने से पहले कुछ रुपये जन्नत
के हाथ मे रख कर कहा… जन्नत, यह तुम दोनो की जरुरत के लिये दे रहा हूँ। अगर किसी चीज
की जरुरत पड़े तो निसंकोच होकर मेजर हसनैन अली से मांग लेना। सब कुछ समझा कर कुछ देर
के बाद मैने उन दोनो को अपनी जीप से अपने घर पर छुड़वा दिया था।
दोपहर की फ्लाईट पकड़
कर हम दोनो पुणे के लिये निकल गये थे। तबस्सुम की यह पहली हवाई यात्रा थी परन्तु वह
मानसिक रुप से मुझे काफी सामान्य दिख रही थी। उड़ने के कुछ देर के बाद मैने कहा… तबस्सुम,
पुणे मे मेरी बचपन की साथी रहती है। वह इस वक्त मुश्किल मे है। मै यह भी जानता हूँ
कि मै ही उसकी परेशानी का सबब हूँ। …क्योँ? अब मै उसके सवाल का क्या जवाब देता तो इसलिये
मैने चुप रहना ही बेहतर समझा। जब हम पुणे एयरपोर्ट पर उतरे तब तक शाम हो चुकी थी। वहाँ
पर आर्मी का गेस्ट हाउस था तो हम वहीं पर ठहर गये थे। उसके बाद सारे रास्ते हमारे बीच
मे कोई बात नहीं हुई थी। थकान से जिस्म टूट रहा था। बेड के एक किनारे पर आंखें मूंद
कर मै लेट गया था। वह सरक कर मेरे करीब आकर बोली… मेरा कार्ड दिखा कर आपने मुझे अपनी
बीवी क्यों बताया? …अगर मेरे साथ रहने का तुमने फैसला किया है तो अब से बाहर वालों
के सामने तुम्हारी यही पहचान होगी। छोटी अम्मी की पहचान सिर्फ मेरे जानकारों सामने
होगी क्योंकि वह सभी मेरी बीवी आफशाँ को जानते है। बस इतना बोल कर मै आँख मूंद
कर लेट गया था।
श्री से बात करके
यह तय हुआ था कि रात को दस बजे तक मै उसके फ्लैट पर पहुँच जाऊँगा। उसकी मदद से मै आसानी
से फ्लैट मे प्रवेश करके अदा की अर्धविक्षिप्त हालत अपनी आँखों से देख लूँगा। साढ़े
नौ बजे तबस्सुम को बता कर मै उनके फ्लैट की ओर निकल गया था। उनके फ्लैट के दरवाजे के
बाहर पहुँच कर मैने श्री को मिस काल दी तो उसने तुरन्त दरवाजा खोल दिया था। …श्री वह
आ गयी? …हाँ कुछ देर पहले वह डिनर लेकर अपने कमरे मे गयी है। मेरे साथ चलो। वह मुझे
अपने कमरे मे ले गयी और स्टडी चेयर की ओर इशारा करके बोली… कुछ देर मे तुम्हें सब कुछ
सुनने को मिल जाएगा। समीर शी नीड्स मेडिकल हेल्प बट शी इज इन अ डिनाईल मोड। मैने धीरे
से श्री का कंधा थपथपा कर कहा… डोन्ट वरी। मै आ गया हूँ। अब सब ठीक हो जाएगा। हम दोनो
चुपचाप बैठ गये थे।
कुछ देर के बाद लगभग ग्यारह बजे से कुछ पहले किसी के सुबकने की
आवाज मेरे कान मे पड़ी तो मै सतर्क हो कर बैठ गया। श्री ने भी सुबकने की आवाज सुन ली
थी। रात के सन्नाटे मे मुझे अपनी बढ़ी हुई धड़कन की आवाज साफ सुनाई दे रही थी। एकाएक
अदा की दर्द भरी चीख मेरे कान मे पड़ी तो मै झपट कर उठा तो श्री ने मुझे रोकते हुए दबी
आवाज मे कहा… प्लीज यह तो आम बात है। तभी अदा फूट-फूट कर रोने लगी। वह कुछ देर रोती
रही और रोते हुए किसी गुनाह के लिये अल्लाह से रहम की भीख मांगती रही। कुछ देर तक उसकी
आहें और रुदन मुझे सुनाई देते रहे थे। एकाएक फिर सब शांत हो गया था। मैने श्री की ओर देखा
तो उसने अपने होंठों पर उँगली रख कर मुझे चुप होने का संकेत दिया और उठ कर खिड़की के
पास चली गयी। कमरे का सारा माहौल तनावग्रस्त हो गया था। थोड़ी देर तक मै ऐसे ही बैठा
रहा और जैसे ही मै उठने लगा कि तभी श्री ने मुझे खिड़की के पास आने का इशारा किया। मै
झपट कर खिड़की के पास चला गया था।
अदा की काँपती हुई आवाज मेरे कान मे पड़ी… हाय अल्लाह मै क्या
करुँ। उसे कैसे बताऊँ? वह काफी देर तक
लगातार यही दो वाक्य बड़बड़ाती रही और फिर अचानक जोर से बोली… समीर तुम कहाँ हो इस
वक्त। मै कहाँ जाऊँ और किसको बताऊँ कि मुझ पर क्या बीत रही है। एक तुम ही थे और अब
वह सहारा भी दूर हो गया है…। अब मै अपने आप को रोकने मे अस्मर्थ था। मै झपट कर
उसके कमरे की ओर चला गया और उसके दरवाजे को खोलने के लिये पूरी ताकत से उस पर अपने
कन्धे से चोट मारी तो वह दरवाजा अपनी चौखट समेत हिल गया था परन्तु खुला नहीं। …अदा
दरवाजा खोलो…चीखते हुए एक बार फिर से अपने कन्धे से दरवाजे पर पूरी शक्ति से चोट मारी
तो भड़ाक से चिटखनी समेत दरवाजा खुल गया था। एक पल के लिये मै ठिठक कर रुक गया था। अर्धविक्षिप्त
हालत मे अदा बालकनी मे रेलिंग पकड़े खड़ी हुई थी। वह बाहर अंधेरे मे देखती हुई अभी भी
लगातार बड़बड़ा रही थी। किसी अनर्थ की आशंका से डर कर मै तेजी से उसकी ओर गया और उसे
अपनी बाँहों मे जकड़ कर वापिस कमरे मे आ गया था। श्री ने तब तक लाइट जला कर कमरा रौशन
कर दिया था। उसने एक झटके से अपने आप को मेरी जकड़ से छुड़ा कर दूर होते हुए मुड़ कर मेरी
ओर देखा तो एक पल के लिये वह एकटक मुझे देखती
रही फिर जोर से चीखी… समीर। इतना बोल कर वह झपट कर मेरे सीने से लग गयी। मै कुछ बोलता
उससे पहले उसका जिस्म ढीला पड़ गया और वह मेरी बाँहों मे झूल गयी थी।
मैने जल्दी से उसे उठाया और उसे बेड पर लिटा दिया। तुरन्त श्री
उसकी नब्ज का नीरिक्षण करने मे जुट गयी थी। मै उसके सिरहाने खड़ा हुआ उसका चेहरा देख
रहा था। उसके चेहरे की रौनक न जाने कहाँ चली गयी थी। एक इन्जेक्शन लगा कर श्री ने कहा…
लो ब्लड प्रेशर और सडन एक्साईटमेन्ट से शाक मे चली गयी है। मैने नींद का इन्जेकशन लगा
दिया है। उसे आराम से सोने दो। कल सुबह तक वह ठीक हो जाएगी। इतना बोल कर वह कमरे से
बाहर निकल गयी थी। मै उसके पीछे बाहर निकल आया था। …श्री क्या यह ऐसे ही हर रात को
करती थी? …हाँ वह ऐसे ही बालकोनी मे खड़ी होकर आधी रात तक बड़बड़ाती रहती थी। क्या तुम दोनो के बीच मे कोई कहा सुनी
हो गयी है? मै उसे अपनी बेवफाई की कहानी किस मुँह से सुनाता तो मैने बात बदलते हुए
पूछा… इस स्थिति का क्या इलाज है? …इसमे घबराने की बात नहीं है। तुम इसे कल हमारे अस्पताल
मे मनोविज्ञान के विशेषज्ञ डाक्टर बेदी को दिखा देना। वह उस विभाग के हेड है। मै अस्पताल
पहुँच कर तुम्हारे लिये उनसे टाइम लेकर तुम्हें सुचित कर दूँगी। …क्या इससे अदा के
कैरियर पर कोई धब्बा तो नहीं लगेगा? कुछ देर सोचने के बाद श्री बोली… अगर हम डिपार्टमेन्ट
मे दिखायेंगे तो डाक्टर बेदी पर निर्भर करेगा कि वह क्या इसकी एडमिन मे रिपोर्ट करेंगें।
…तो क्या यह अच्छा नहीं है कि हम अदा को किसी और मनोचिकित्सक को दिखा दें। तुम डाक्टर
बेदी से किसी अच्छे मनोचिकित्सक का पता करके मुझे बता दोगी तो मै उसे दिखा दूँगा। …ठीक
है लेकिन समीर पहले इसकी छुट्टी के लिये तुम कल एमएस से बात कर लेना। कुछ देर बात करने
के पश्चात श्री सोने चली गयी और मै अदा के पास वापिस आ गया था।
अगली सुबह अदा को
सोते हुए छोड़ कर मै गेस्ट हाउस चला गया था। तबस्सुम को अदा की हालत बताने के पश्चात
मै अदा के फ्लैट की ओर निकल गया था। वह अभी भी गहरी नींद मे थी। उसको सोता हुआ छोड़
कर मै एमएस से मिलने के लिये कमांड अस्पताल चला गया था। एमएस को मकबूल बट की नाजुक
हालत के बारे मे बता कर अदा की दो हफ्ते की छुट्टी के लिये राजी करवा लिया था। जब तक
एमएस से फारिग हुआ तब तक श्री ने डाक्टर बेदी से बात कर ली थी। मै डाक्टर बेदी से मिला
तो उन्होंने मुझसे कुछ देर बात करने पश्चात कहा… माँ और बहन की हत्या और फिर बाप पर
जानलेवा हमले की खबर सुन कर कोई भी गहरे सदमे का शिकार हो सकता है। एक ओर लगातार काम
का दबाव और दूसरी ओर ऐसे सदमे के कारण अगर नर्वस ब्रेक डाउन हो भी गया है तो कोई बड़ी
बात नहीं है। कुछ दवाई और अपनो का साथ मिलने से वह जल्दी से ठीक हो जाएगी। डाक्टर बेदी
की बात सुन कर मै काफी राहत महसूस कर रहा था। उनसे दोपहर के बाद मिलने का समय लेकर
मै अदा के फ्लैट पर वापिस लौट आया था।
उस फ्लैट के बन्द
दरवाजे के बाहर पहुँच कर एक पल के लिये रुक गया था। एक अजीब सी कैफियत महसूस कर रहा
था। मै अभी सोच ही रहा था कि तभी दरवाजा खोल कर अदा ने बाहर झाँका और वह मुझे देख कर
वह ठिठक कर खड़ी रह गयी थी। मैने तेजी से दो कदम बढ़ाये और उसको अपनी बाँहों मे जकड़ कर
बोला… तुमने यह क्या हाल बना लिया है। वह कुछ पल चुप रही और फिर धीरे से काँपती आवाज
मे बोली… समीर तुम कब आये? उसको अपनी बाँहों
मे जकड़ कर हवा मे उठाते हुए मैने कहा… अभी आया हूँ। वह मुस्कुरा कर बोली… क्या तुम्हारे
साथ आफशाँ और मेनका भी आयी है? …नहीं। मै श्रीनगर से सीधा यहीं आया हूँ। मेरी पोस्टिंग
दिल्ली हो गयी है। चार्ज लेने से पहले अपनी वार्षिक छुट्टी पर तुमसे मिलने सीधा यहीं
आ गया। वह कुछ नहीं बोली और हम दोनो बात करते हुए फ्लैट मे आ गये थे। …तुमने अभी तक
नहीं बताया कि यहाँ किस काम से आना हुआ? …क्या तुमसे मिलने के लिये मुझे किसी बहाने
की जरुरत है? मुझे अनसुना करके उसने कहा… मेरी आज आफ्टरनून मे आईसीयू मे ड्युटी है।
…तुम आज से दो हफ्ते की छुट्टी पर हो। मैने तुम्हारे एमएस से बात करके तुम्हारी छुट्टी
की मंजूरी ले ली है। वह चौंक कर मेरी ओर देख कर बोली… क्या? …हाँ कैप्टेन। आज से तुम्हारी
दो हफ्ते की छुट्टी है। वह कुछ बोलती उससे पहले मैने पूछा… क्या तुम्हारे अस्पताल मे
कोई डाक्टर बेदी है? अबकी बार वह तुरन्त बोली… वह मनोविज्ञान विभाग के हेड है। क्यों
तुम्हें क्या हो गया? …कुछ नहीं। स्पेशल फोर्सेज से निकल कर आफिस मे बैठने के लिये
मुझे उनके पास रेफर किया गया है। दोपहर को मुझे उनके पास लेकर चलना और मेरी जरा सी
सिफारिश भी कर देना। वह मुस्कुरा कर बोली… कभी नहीं। मेरा बस चले तो मै तुम्हें फौज
से हमेशा के डिस्चार्ज करवा दूंगी। कुछ देर बात करने के बाद वह तैयार होने के लिये
चली गयी थी। मै अदा की बीमारी के बारे सोचने बैठ गया था।
दोपहर को अदा के साथ
मै डाक्टर बेदी से मिलने के लिये चला गया था। डाक्टर बेदी अपने काम मे माहिर थे तो
मुझसे बात करते हुए उन्होंने अदा से बात करना आरंभ कर दिया था। जब तक वह कुछ समझ पाती
तब तक डाक्टर बेदी ने एक डाक्टर की तरह उससे पूछना शुरु कर दिया। कुछ देर के बाद उन्होंने
मुझे कमरे से बाहर जाने का इशारा किया तो मै उठ कर बाहर निकल गया था। हेड के सामने
अदा मुझसे ज्यादा कुछ नहीं कह सकी थी। एक घन्टे के बाद जब वह बाहर निकली तो काफी थकी
हुई लग रही थी। मुझे देखते ही वह मुझ पर बरस पड़ी लेकिन एक बार फिर हमेशा की तरह कान
पकड़ कर माफी मांगते हुए मै उसे बाहर छोड़ कर डाक्टर बेदी से मिलने चला गया था। डाक्टर
बेदी ने एक कागज मेरी ओर बढ़ा कर कहा… यह दवाईयाँ अभी से शुरु कर दो और दो दिन इसको
आब्सर्व करके डेली एक्टिविटी का चार्ट बना लेना। तीसरे दिन मुझसे आकर मिल लेना। …कोई
चिन्ता की बात तो नहीं है? …कोई भी बीमारी हमारे लिये चिन्ता की बात होती है। तभी हम
इलाज करते है। घबराने की जरुरत नहीं है बस इसे खुश रखने की कोशिश करो। जल्दी ही वह
ठीक हो जाएगी। इतनी बात करके हम दोनो वापिस फ्लैट पर आ गये थे।
अगले दो दिन मैने
उसके साथ बिताये थे। दोपहर से शाम तक मै तबस्सुम के पास चला जाता था। रात को मै अदा
के साथ सोता था। कुछ दवाई का असर और कुछ मेरा साथ होने के कारण अगली दो रात वह बड़े
चैन से सोई थी। मै आधी रात तक जागता रहता लेकिन वह बीच रात मे एक बार भी नहीं उठी थी।
सुबह उसको लेकर टहलने के लिये दूर तक निकल जाता था। दस बजे तक तैयार होकर हम दोनो वह
सभी स्थानों को देखने के लिये निकल जाते थे जहाँ अकसर मेरी उसके साथ छुट्टियाँ बीता
करती थी। तीसरे दिन डाक्टर बेदी ने एक बार फिर अदा से बात करने के पश्चात मुझे बुला
कर कहा… कुछ दवाईयाँ कम कर दी है। अब उसे एक हफ्ते बाद दिखाना। अच्छी प्रोग्रेस दिख
रही है। मेरी सलाह मानो तो अदा की छुट्टी कैंसिल करवा के इसे जल्दी से जल्दी वापिस
ड्युटी पर आ जाना चाहिये। जितनी जल्दी यह अपनी रोजमर्रा की जिंदगी मे आयेगी उतनी जल्दी
उसे दवाईयों से छुटकारा मिल जायेगा। बहुत बार मैने उससे उस रात के बारे मे बात करने
की सोची परन्तु हिम्मत नहीं जुटा सका था।
तबस्सुम अभी भी मुझसे
कटी-कटी रहती थी। कुछ पूछो तो एक शब्द या एक वाक्य मे जवाब देकर सामने से हट जाती थी।
एक हफ्ता हंसते खेलते गुजारने के बाद अदा के चेहरे पर रौनक लौट आयी थी। डाक्टर बेदी
का एक और सेशन होने के पश्चात अदा ने खुद ही अपनी छुट्टी कैंसिल करवा कर ड्युटी जोइन
कर ली थी। एक और हफ्ता उसके साथ बिताने के बाद एक रात को उसने पूछा… तुम यहाँ मेरे
पास हो क्या इसका पता आफशाँ को है? …नहीं। मुझ कोहनी मारकर वह मुस्कुरा कर बोली… पता
नहीं परायी स्त्री के चक्कर मे पड़ने के लिये शादीशुदा पुरुष इतने आतुर क्यों रहते है?
…तुम मेरे लिये कभी परायी नहीं हो। तुम मेरी पहली मोहब्बत हो। …क्यों अंजली क्या तुम्हारी
पहली मोहब्बत नहीं थी? …नहीं। वह भले ही मेरी पहली पत्नी थी परन्तु तुम मेरी पहली मोहब्बत
हो। अचानक वह मुझसे लिपट कर बोली… एक बार अंजली मुझसे अस्पताल मे मिलने आयी थी। मै
चौंक कर उठ कर बैठ गया और उसकी आँखों मे झाँकते हुए पूछा… सच बताओ। …खुदा की कसम। वह
मुझसे मिली थी और तुम्हारे साथ अपने रिश्ते के बारे मे बता कर उसने अनजाने मे हम दोनो
के बीच मे आने की माफी भी मांगी थी। क्या तुमने हमारे रिश्ते के बारे मे उसे बताया
था? …हाँ। मैने उसे तुम्हारे बारे मे सब कुछ बता दिया था। वह कुछ देर लेटी रही और फिर
उठ कर अपनी अलमारी से कुछ निकाल कर मेरे सामने रखते हुए बोली… उस दिन यह मुझे देकर
अंजली ने कहा था कि तुम्हें मेरे साथ शेयर करने मे उसे कोई आपत्ति नहीं है। मेरी नजर
बिस्तर पर रखे हुए मंगलसूत्र पर जमी हुई थी। अंजली ने अपने जैसा मंगलसूत्र अदा को लाकर
दिया था। एक पल के लिये अंजली को याद करके मेरी पलक छलक गयी थी। …समीर, अगर अंजली का
एक्सीडेन्ट नहीं होता तो आज जैसे हमारे हालात नहीं होते। उस रात अदा के कहने पर मैने
उसके गले मे अंजली का मंगलसूत्र डाल दिया था। उस रात उसने नींद की गोली लेने से मना
कर दिया था।
श्रीनगर
…सर, हमारे पास पुख्ता
जानकारी है कि हिज्बुल कमांडर बुरहान मुज्जफर वानी घाटी मे है। ब्रिगेडियर चीमा तुरन्त
बोले… वह घाटी मे कहाँ पर है? …सर, हम उसकी एक प्रेमिका पर कुछ समय से नजर रख रहे है।
उसी के द्वारा हमे पता चला है कि वह कुछ दिन पहले ही सीमा पार करके कठुआ मे दाखिल हुआ
है। उसी लड़की ने बताया है कि वह घाटी मे कुछ बड़ा करने की मंशा लेकर आया है। …उस लड़की
पर नजर रखो। इस बार किसी भी हालत मे बुरहान को वापिस नहीं जाने देना है। …यस सर। उसके
लिये फाईनल आर्डर क्या है? …फिलहाल उसकी लोकेशन को ट्रेस करो। फाईनल आर्डर लोकेशन ट्रेस
करने के बाद दूँगा। ओवर एन्ड आउट।
ब्रिगेडियर चीमा ने
वायरलैस का रिसीवर वापिस करने के पश्चात अपना फोन निकाल कर एक नम्बर डायल करके बोले…
हैलो। मेजर तुम्हें छुट्टी समाप्त करके तुरन्त ड्युटी जोईन करनी पड़ेगी। हिज्बुल कमांडर
बुरहान मुज्जफर वानी हमारे रेडार पर आ गया है। अभी जाकिर राशिद बट की कोई खबर नहीं
है लेकिन हम उम्मीद कर रहे है कि वह भी उसके साथ होगा। …सर, मै कल तक श्रीनगर पहुँच
रहा हूँ। प्लीज आप एन्काउन्टर के आर्डर कल तक मत दिजियेगा। वह मेरा टार्गेट है। उसको
उसकी हिस्से की हूरों से मिलने से पहले मुझे उससे कुछ जवाब चाहिये। …माई बोय, कल तक
कोई एक्शन नहीं होगा। फौरन ड्युटी जोइन करो। …यस सर। फोन काट कर ब्रिगेडियर चीमा अपने
आफिस की दिशा मे चल दिये थे।
बहुत ही जबरदस्त अंक और अब अदा की भी बात हुई और समीर से अनजाने में हुई बेरुखी उसके मनोदशा को हिला के रख दिया है, तबस्सुम के लिए अब सब कुछ बेमानी सा हो चुका है अपने बाप और समीर के बातचीत सुन कर मगर एन मौके पर घाटी में अफरा तफरी मची हुई है और लगता है अगला अंक में कोई अपनी हूरों के पास जरूर जाएगा।
जवाब देंहटाएंअल्फा भाई, अम्मी और आलिया की हत्या का बदला लेने के लिये कातिल को हूरों के पास डिस्पैच करने का समय आ गया है। परन्तु क्या वह अपनी इस मुहिम मे कामयाब हो पायेगा, यह आपको अगले अंक मे पता चलेगा। शुक्रिया दोस्त।
हटाएंहुरोके पास जानेकीं बारी तो बुऱ्हाणकी आही चुकी अब, उसकी इस धरा की हूर ही उसे 72 हुरोंके पास भेजनेके लिये काफी है🤣🤣लगता तो है के अदा काफी शांत हो गई, छुट्टी खतम अब वापस ड्युटीपे जाने का वक्त आ गया🤔
जवाब देंहटाएंप्रशान्त भाई धन्यवाद। अदा कुछ हद तक ठीक हो गयी है परन्तु क्या उसके लिये सब कुछ वैसा हो जाएगा जैसा वह चाहती है। कम से कम आप लोग फौज की नौकरी की परेशानियों से इस बहाने वाकिफ हो गये कि छुट्टी मिलने के बावजूद जरुरत के अनुसार फौजी की छुट्टी कैन्सिल भी हो सकती है। अदा को जहन मे रख कर एक बार उन फौजियों के परिवार के बारे मे जरुर सोचना।
हटाएंबात 100% सही है भाई🙏
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