बुधवार, 22 मार्च 2023

 

    गहरी चाल- प्रस्तावना


पाकिस्तान

रात गहरी होती जा रही थी। भारत की सीमा के पास एक गुप्त स्थान पर पाकिस्तान फौज का संचार केन्द्र लगातार काम कर रहा था। अलग-अलग टर्मिनल पर सैनिक कान पर हेडफोन लगाये लगातार स्क्रीन पर निगाहें गड़ाये हुए बैठे थे। एक टर्मिनल पर बैठा हुआ सैनिक अचानक चिल्लाया… वलीउल्लाह ने संपर्क साधा है। कुछ नये नम्बर दे रहा है। …उन नम्बरों को डिकोड करके भारत के नक्शे पर उन्हें तुरन्त रेखांकित करो। उसकी आवाज सुनते ही एकाएक हाल मे हड़कम्प मच गया था। सारे टर्मिनल्स पर काम करने वाले फौरन कोड को डिकोड करने मे जुट गये थे। कुछ देर के बाद बड़ी सी दीवार पर लगे हुए स्क्रीन पर भारत का नक्शा  दिखायी दिया जिस पर कुछ लाल निशान लगे हुए थे। तभी एक भारी भरकम आवाज गूँजी… मेजर महमूद, तुमसे कुछ गल्ती हो रही है। अरब सागर मे इंकित तीन लाल निशानों का क्या मतलब हो सकता है। एक बार दोबारा से चेक करो। मेजर महमूद एक बार फिर से अपने काम मे लग गया था। आधे घंटे तक सबकी नजर स्क्रीन पर टिकी रही और फिर मेजर महमूद ने कहा… सर, जो सूचना मिली है उसके अनुसार यह तीनो निशान सही है। उस आदमी ने एक पल सोचा और फिर बोला… मेरी बात फौरन जनरल मंसूर बाजवा से कराओ। एक सैनिक तुरन्त फोन मिलाने मे व्यस्त हो गया था।

…सर, सेन्ट्रल सर्वैलेन्स से ब्रिगेडियर शाहबाज बोल रहा हूँ। आज वलीउल्लाह ने संपर्क साधा है। उसने अरब सागर के बीच तीन ग्रिड रेफ्रेन्स भेजे है। जनरल बाजवा ने आश्चर्यचकित आवाज मे पूछा… बीच समुद्र मे तीन स्थानों का क्या मतलब हो सकता है? एक पल रुक कर वह फिर बोला… क्या भारतीय नौसेना कराँची पर कोई नया उत्पात मचाने की सोच रही है? …कुछ कहा नहीं जा सकता। इसके बारे मे अपनी नौसेना से पूछना पड़ेगा। …शाहबाज, फौरन पाकिस्तान एड्मिरल्टी से इस सूचना की पुष्टि करने का निर्देश देकर मुझे खबर करो। आज पहली बार उसने भारतीय नौसेना की सूचना दी है। …यस सर। वलीउल्लाह ने एक बात और कही है कि नये निजाम के आने से भारतीय स्ट्रेट्जिक कमांड कंट्रोल युनिट मे कुछ भारी फेर बदल हुआ है।

कुछ सोच कर जनरल बाजवा ने कहा… शाहबाज, उस लाईन पर चौबीस घंटे नजर रखो। शायद वलीउल्लाह कुछ और बताना चाहता है। फौरन मेरे पास चिंहनित किये गये तीन स्थानो का ग्रिड मैप भिजवाने का प्रबन्ध करो। पहली बार भारत के उच्चतम कंमाड आफिस मे हमारा आदमी पहुँच गया है  इसीलिए बेहद सावधानी बरतने की जरूरत है। तुम्हारी ओर से कोई भी उससे संपर्क साधने की कोशिश न करे। इस बार उसने कौनसी लाईन से संपर्क साधा था? …दुबई। …गुड। दूसरी ओर से लाईन कट गयी और ब्रिगेडियर शाहबाज अपने सैनिकों को नये निर्देश देने मे व्यस्त हो गया।


नई दिल्ली

भारत मे सरकार बदलने के कारण दिल्ली मे बैठे अधिकारियों और सफेदपोश दलालों मे खलबली मची हुई थी। सभी को चिन्ता सता रही थी कि दस साल के कार्यकाल की अगर फाईलें खुलनी आरंभ हो गयी तो बहुत से लोगों को जेल जाने की नौबत आ जाएगी। यही हाल भारतीय संचार तंत्र का भी था। पत्रकारिता की आढ़ मे जो लोग पिछली सरकार मे सरकारी मौज के साथ दलाली के पैसे बना रहे थे उनकी दुकाने भी नयी सरकार आने के कारण बन्द हो गयी थी। बुद्धिजिवियों का एक वर्ग जिसने सारी जिंदगी एक परिवार की चाकरी करके अपने लिये समाज मे जगह बनायी थी अब वह भी बेरोजगार हो गये थे। इसी समूह को दस साल मे अब तक यकीन हो चुका था कि वही करोड़ों भारतीयों के मानस को प्रभावित करने की शक्ति रखते है। वह जैसा सोचते और बोलते है वही आम नागरिकों के लिये पत्थर की लकीर हो जाती है। इसी समूह ने पिछले दस साल से जिस इंसान को फिरकापरस्त के नाम से प्रताड़ित किया था वही आज भारत का प्रधानमंत्री बन गया था। कैसे इतना बड़ा उलटफेर हो गया यह उनकी समझ से बाहर था। इसके लिये रोज किसी एक जगह पर एकत्रित होकर फुँके हुए कारतूसों का समूह अपने स्वर्ण दशक को याद करके नयी सरकार के प्रति अपना रोष जताया करते थे।

दिल्ली की खान मार्किट के काफी हाउस मे कुछ इसी समूह के लोग बैठ कर अपनी कुंठा प्रदर्शित कर रहे थे। …अब तो सरकारी अफसर भी कन्नी काटने लगे है। मैने हाल ही मे वागले से मिलने का समय मांगा था लेकिन उसके पीए ने साफ मना कर दिया था। तभी एक महिला पत्रकार बोली… आप तो सिर्फ मिलने का समय मांग रहे थे। मै तो सुब्रामनयम की प्रेस कान्फ्रेंस मे गयी थी तो उस कमीने ने तो सबके सामने पहचानने से ही इंकार कर दिया था। सभी अपना-अपना दुखड़ा रो रहे थे कि एक सामाजिक संस्था की निदेशक ने पूछा… मेरे सुनने मे आया कि नयी सरकार अब विदेशी चंदे पर रोक लगाने की सोच रही है। माधुरी इस खबर मे कितनी सच्चायी है? …मै अब तुम्हें यह कैसे बताऊँ। एक वक्त होता था कि यहीं बैठ कर एक फोन पर पता चल जाता था कि सरकार क्या करने का विचार कर रही है परन्तु अब सभी मंत्रालयों से मेरे संपर्क कट गये है। पीआईबी कार्ड होने बावजूद कोई बात करने के लिये राजी नहीं है। चुनाव मे हारे हुए एक सांसद ने कहा… पाँच साल तो यह सरकार कहीं नहीं जाने वाली लेकिन उस नीच आदमी के खिलाफ तो मोर्चा खोल सकते है। अचानक एक स्त्री जो अभी तक सबकी बात सुन रही थी वह अचानक सांसद से बोली… शंकर, हमारी संस्था इस्लामाबाद मे भारत-पाक रिश्तों पर एक “अमन की आशा” नाम की कान्फ्रेंस करवा रही है। क्या आप उसमे भाग लेना चाहेंगें? आपके आने-जाने और रहने का खर्चा हम उठाएँगें। शंकर ने मुस्कुरा कर बड़ी बेशर्मी से कहा… जरुर अगर तुम साथ चलोगी तो? …सौरी, मै तो नहीं जा सकूँगी लेकिन आप इच्छुक है तो मुझे बता दिजीएगा। माधुरी नाम की पत्रकार तुरन्त बोली… शमा, अब पाँच साल शंकर के पास कोई काम नहीं है। मै जानती हूँ कि यह जरुर जाएगा तो तुम इसकी ओर हाँ समझ लो। शंकर ने जोर से ठहाका लगा कर कहा… अब इसकी बात मै कैसे टाल सकता हूँ।

उसी समय साउथ ब्लाक के मीटिंग रुम मे रा के निदेशक गोपीनाथ ने प्रवेश किया और मेज पर एक प्रिंट आउट रख कर बोला… अजीत, बुरी खबर है। संयुक्त मोर्चा ने तीन जगहों पर एक साथ फिदायीन हमला करने की योजना बनायी है। उनका उद्देश्य हमारी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुँचाने का है। एकाएक कमरे मे शांति छा गयी थी। मीटिंग मे उपस्थित सभी व्यक्ति सिर पर मंडराते हुए गहरे खतरे की सूचना पा कर गहरी सोच मे डूब गये थे।


जीएचक्यू, रावलपिन्डी

जनरल मंसूर बाजवा का चेहरा धुआँ हो रहा था। परेशानी की लकीरें वहाँ बैठे हुए सभी लोगों के चेहरे पर दिखायी दे रही थी। …जनरल मंसूर, एक महीने मे तीसरी बार भारतीय फौज ने हमारा माल पकड़ा है।  एक बार तो इत्तेफाक हो सकता परन्तु यह कार्यवाही तीन बार कैसे इतनी सटीक हो सकती है? हर बार हमें आर्थिक नुकसान उठाने के साथ ही हमारी साख पर भी बट्टा लग रहा है। इसके लिये कौन जिम्मेदार है? …जनाब यह सच है कि इतनी मेहनत से बनाया गया नेटवर्क जब से छिन्न-भिन्न हुआ है तभी से सब कुछ बिखरता जा रहा है। अब यह रास्ता भारतीय सुरक्षा एजेन्सियों की नजर मे आ गया है। हमे अपनी रणनीति मे बदलाव लाना पड़ेगा। जनरल शरीफ अपने सामने बैठे हुए जनरल मंसूर और सभी तंजीमों के मुखियाओं पर गुस्से से गर्जा… अगर अगले कुछ दिनों मे सीमा पार कोई कार्यवाही नहीं हुई तो वह लोग पैसे देना बन्द कर देंगें। अगर ऐसा हो गया तो तुम्हारी दुकान भी बन्द हो जाएगी। अचानक बोलते हुए उसकी निगाह मंसूर की ओर चली गयी थी जो फोन पर किसी से बहस कर रहा था। …मंसूर तुम्हारी काहिली के कारण बहुत नुकसान हो रहा है। अब बलूचिस्तान जाने की तैयारी आरंभ कर देना। मंसूर ने जल्दी से फोन बन्द किया और घबराते हुए बोला…  जनाब, एक बुरी खबर श्रीनगर से मिली है। मुझे अभी मुजफराबाद के लिये निकलना होगा। मंसूर के चेहरे पर आये हुए तनाव को देख कर जनरल शरीफ ने कहा… तुम जा सकते हो परन्तु वहाँ पहुँच कर मुझे पूरी रिपोर्ट देना। जनरल मंसूर वहाँ से तेजी से कमरे से बाहर निकल गया और जनरल शरीफ आये हुए तंजीमों के मुखियाओं से बात करने मे व्यस्त हो गया।

मुजफराबाद

उसी समय मुजफराबाद मे किसी अनाम जगह पर तीन आदमी बैठ कर बात कर रहे थे। …यह रास्ता तो बन्द हो गया है। आज मंसूर बाजवा ने कहलवाया है कि सभी तंजीमे अब से नेपाल के रास्ते से भारत मे प्रवेश करेंगी। तभी एक बूढ़ा आदमी बोला… यहाँ से नेपाल पैदल तो नहीं जा सकते जैसे यहाँ से कश्मीर पहुँच जाते थे। वहाँ पर अपने गाजियों को कैसे भेजेंगें? अपनी दाड़ी को सहलाते हुए एक बूढ़े मौलवी ने पूछा… उस मजलिस मे मंसूर बाजवा से किसी ने यह सवाल नहीं पूछा कि क्या वह उड़ कर नेपाल जायेंगें? …पीर साहब, काउन्सिल मे यह सवाल किसी ने नहीं पूछा लेकिन कुछ ऐसा पता चला है कि कश्मीर मे बाजवा के किसी मंसूबे को गहरा धक्का लगा है। …सलाहुद्दीन, कश्मीर मे आये दिन कुछ न कुछ होता रहता है। संयुक्त मोर्चे की कमान हमारे हाथ लगने वाली थी लेकिन तुम खुद देख लो कि अचानक वहाँ क्या हो गया था। अगर उस मजलिस मे बाजवा सच मे परेशान था तो इसका मतलब है यही है कि उसको कोई बहुत भारी आघात लगा है। …पीर साहब आपका फर्जंद आजकल वहीं है तो आप उससे खुद क्यों नहीं पूछ लेते? …मुन्नवर इस वक्त सीमा के हालात बेहद संवेदनशील है। फारुख से जब आखिरी बात हुई थी तब उसने कहा था कि अब्बू इस बार संयुक्त मोर्चा एक ऐसे काम को अंजाम देगा कि इंशाल्लाह काफ़िर घुटनों के बल आ जाएँगें। दोनो आदमियो ने चौंक उस बूढ़े की ओर देखा तो वह बूढ़ा काफी संजीदा दिख रहा था। उसकी बूढ़ी आँखो मे एक चमक दिखायी दे रही थी।

…बड़े मियाँ आपकी बेटी के साथ ऐसा क्या हो गया? एकाएक उस वृद्ध के चेहरे की सारी चमक और खुशी गायब हो गयी थी। वह गुस्से मे बड़बड़ाया… काश पैदा होते ही मर गयी होती तो सब के लिये अच्छा होता। पूरे खानदान के चेहरे पर हरामखोर ने कालिख पोत दी। मैने तो उसके नाम का फातिहा पढ़ दिया है। उस लड़की से अब हमारा कोई नाता नहीं है। एक पल के लिये सब चुप हो गये थे। …पीर साहब फिलहाल आप उसके बारे मे भूल जाईये। हमारे लिये यह जरुरी है कि दोनो परिवार आपस मे जल्दी से जल्दी सुलह कर लें जिससे फारुख को किसी प्रकार की अड़चन का सामना न करना पड़े। हमारे उद्देशय के लिये यही जरुरी है। बूढ़े पीरजादा ने अपना सिर हिला दिया था। दोनो व्यक्ति खड़े हो गये और उस बूढ़े को वहीं पर छोड़ कर कमरे से बाहर निकल गये थे। उनके जाने के बाद पीरजादा गहरी सोच मे डूब गया था। उसको एहसास था कि उसके बनाये हुए साम्राज्य को दूसरी तंजीमे लगातार चुनौती दे रही थी।

 

नयी सरकार बनने के बाद पाकिस्तान मे भी उथल पथल मच गयी थी। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को शपथ समारोह मे बुला कर नयी सरकार ने उनकी फौज एस्टिबलिशमेन्ट को सीधे चुनौती दे दी थी जिसके कारण पाकिस्तानी फौज अपने प्रधानमंत्री से नाराज हो गयी थी। हम लोग भी तैयार बैठे हुए थे। हमे पता था कि पाकिस्तानी फौजी एस्टेबलिश्मेन्ट कश्मीर मे आतंकवाद को हवा देगा अन्यथा वह कारगिल जैसी हिमाकत करने की कोशिश करेगा। हमारी नजर उन पर टिकी हुई थी और जैसे ही हमे पाकिस्तानी फौज मे हलचल दिखायी देती हम तुरन्त ही अपना जवाब तैयार कर लेते थे। अचानक अमरीका ने अफगानिस्तान से निकलने का जैसे ही अपना फैसला सुनाया उसके कारण पाकिस्तानी फौज और आईएसआई के लिये चरमपंथी तंजीमो ने बखेड़ा खड़ा कर दिया था। इसी के साथ अमरीकी डालर की पाइपलाइन भी अब लगभग बन्द होने के कागार पर आ गयी थी। कमाई का स्त्रोत बन्द होते ही तेहरीक-ए-तालिबान और हक्कानी नेटवर्क व अन्य सभी छोटी बड़ी तंजीमे पाकिस्तानी फौज से नाराज हो गयी थी। आखिर इतने सालों से वह तंजीमें अपने गाजियों को निजाम-ए-मुस्ताफा का सपना दिखा कर जिहाद के लिये प्रेरित कर रहे थे तो अब वह उनका कैसे सामना करते। उत्तरीय पाकिस्तान मे कुछ तंजीमो ने अपनी फौज को ही निशाना बनाना आरंभ कर दिया था। दिन पर दिन हालात खराब होते जा रहे थे। एक हादसे ने एस्टेबलिशमेन्ट और तंजीमों के बीच समनव्य को हमेशा के लिये धाराशायी कर दिया था। आर्मी स्कूल पर फिदायीन हमले के कारण बहुत से मासूम बच्चों की मौत हो गयी थी। ज्यादातर वहाँ पढ़ने वाले बच्चे फौजियों के थे तो पाकिस्तान फौज ने जवाब मे उत्तरी वजीरीस्तान मे जर्ब-ए-अज़्ब आप्रेशन आरंभ कर दिया था। इस कार्यवाही के कारण पाकिस्तानी फौज का दिमाग कश्मीर से कुछ वक्त के लिये हट गया था।

राष्ट्रीय रक्षा कालेज से औपचारिक रुप से निकलने मे मुझे दो हफ्ते से ज्यादा का समय लग गया था। जिस दिन फौज से आर्डर मिला उसके अगले दिन ही मैने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का आफिस जोइन कर लिया था। नयी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत सुब्रमन्यम के आफिस मे एक पाकिस्तान डेस्क स्थापित करके अपनी नीति पहले दिन से ही साफ कर दी थी। साउथ ब्लाक मे पहुँच कर पहली बार मुझे उनके पदों की महत्वता का पता चला था। अजीत ने पाकिस्तान डेस्क मेरे सुपुर्द कर दी थी। इसी के साथ अजीत ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार होने की हैसियत से मुख्य स्ट्रेटजिक सेन्ट्रल कमांड कमेटी की सचिव श्रेणी की तैमासिक कमेटी पर मुझे एक पर्यवेक्षक के तौर पर नियुक्त कर दिया था। इस नियुक्ति पर जनरल रंधावा ने हम सभी को उसी शाम सचेत किया… वीके, तुम भूल रहे हो कि उस कमेटी पर कुछ महत्वपूर्ण मंत्रालयों के सचिव बैठते है। वह शासकीय धूर्त इस मेजर को बड़ी असानी से चबा जाएँगें। मेरी ओर से पैरवी करते हुए वीके ने जवाब दिया… रंधावा, मेजर भले ही ओहदे और अनुभव मे उनसे जुनियर है परन्तु वह सेना की कार्यप्रणाली और कश्मीर को उन सबसे बेहतर जानता है। जुनियर होने के कारण वह धूर्त मेजर को अपना प्रतिद्वन्द्वी हर्गिज नहीं मानेंगें। उस कमेटी मे उनके लिये खतरा आईबी और रा के निदेशकों की ओर से होगा तो ऐसी हालत मे मेजर को उनका विश्वास जीतने का मौका मिल जाएगा। एक प्रकार से उन तीनो की छ्त्रछाया मे मैने अपना राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के आफिस मे अपना कार्यभार संभाल लिया था।

अगले दो दिन मुझे स्ट्रेटजिक सेन्ट्रल कमांड कमेटी की कार्यप्रणाली समझने मे लग गये थे। सरकार द्वारा बनायी गयी इस कमेटी के अध्यक्ष स्वंय प्रधानमंत्री थे। इस कमेटी के अन्य सदस्य रक्षा, वित्त, गृह, विदेश और वाणिज्य के मंत्री थे। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार उस कमेटी के सचिव थे। यह उच्चस्तरीय कमेटी रक्षा नीति के साथ राष्ट्रीय मिसाईल और भारतीय परमाणु डाक्ट्रीन का अवलोकन भी करती थी। साल मे दो बार इस उच्चस्तरीय कमेटी की बैठक होती थी। इसी कमेटी के आधीन सचिव श्रणी कमेटी की बैठक हर तीन महीने मे एक बार नीतिगत फैसलों की विवेचना करने के लिये होती थी। इसी सचिव स्तरीय कमेटी मे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की ओर से एक पर्यवेक्षक के तौर पर मुझे नियुक्त किया गया था। इस कमेटी मे तीनों सेना के अध्यक्ष व आईबी और रा के निदेशक भी बैठते थे। एक रोज शाम को आफीसर्स मेस मे पाकिस्तान डेस्क के कार्यभार पर चर्चा चल रही थी। जनरल रंधावा ने कहा… मेजर, सबसे पहले देश मे छिपे जयचंदों और मीर जाफरों की पहचान करो। …परन्तु कैसे? तब कुछ सोच कर वीके ने सुझाव दिया… हरेक उच्चस्तरीय नियुक्ति से पहले आईबी से उस व्यक्ति की रिपोर्ट मांगी जाती है। उसको पढ़ कर शायद वलीउल्लाह के बारे मे कोई सुराग मिल जाये। अगले ही दिन वीके की मदद से इस कमेटी के सभी सदस्यों की आईबी रिपोर्ट्स मुझे मिल गयी थी। मेरा सारा समय उन रिपोर्ट्स को पढ़ने मे निकलने लगा था। कोडनेम वलीउल्लाह  पर काम करने के लिये पहले हया नाम की पाकिस्तानी आप्रेटिव की तलाश जरुरी थी परन्तु किसी सुराग के आभाव मे अभी तक कोई निर्णय नहीं ले सका था। नीलोफर के द्वारा दिये गये नामों का अवलोकन करने का भी मुझे समय नहीं मिल रहा था। एक अजीब सी परिस्थिति मे अपने आप को उलझा हुआ महसूस कर रहा था।

नयी जगह थी और नया माहौल था। मेरा ज्यादा समय भारत राष्ट्र की आंतरिक चुनौतियों को समझने मे निकल रहा था। एक महीने यहाँ काम करके पता चला कि पंचमक्कार की जमात ही भारत की सबसे बड़ी आंतरिक चुनौती है। तिकड़ी के अनुसार दकियानूसी मुल्ला, ईसाई मिशनरी, माओइस्ट, मैकाले के अनुयायी और वामपंथी मिडिया मिल कर पंचमक्कार नामक एक बेमेल अलगावादी जमात बनाते है जिसका उद्देश्य सिर्फ भारत को अन्दर से कमजोर करने का है। मुल्ला और मौलवियों की गतिविधियों से मै अच्छी तरह परिचित था। बाकी चार की मक्कारी को मै यहाँ आकर समझने की कोशिश कर रहा था। यह सार्वजनिक जानकारी थी कि ग्रामीण अंचलों मे ईसाई मिशनरी सामाजिक कार्य की आढ़ मे धर्म परिवर्तन के काम मे लगे हुए थे। यह बात कश्मीर के मदरसों और मस्जिदों मे भी काफी प्रचलित थी कि ईसाई मिशनरियों से दूरी बना कर रखनी चाहिए। यहाँ तक कि उनके स्कूल और डिस्पेन्सरी मे भी जाने की मनाही थी। माओइस्टो और नक्सलवादियों के बारे मे मुझे यहाँ आकर पता चला कि यह समूह का भारतीय संविधान मे विश्वास नहीं था। चीन के प्रति उनकी वफादारी के कारण सुरक्षा तंत्र भी उनके प्रति चौकस था। इस समूह का अराजकता मे विश्वास होने के कारण सिर्फ रक्तिम क्रांति के द्वारा ही समाज मे बदलाव लाने की कोशिशों मे जुटे हुए थे। कुछ दिन यहाँ बिता कर मैने महसूस किया कि आंतरिक सुरक्षा के बारे मे मेरा ज्ञान कितना अधूरा था। कश्मीर मे इतने सारे मुनाफिक लोगो से मेरा सामना कभी नहीं हुआ था।

एक दिन मै रोहिंग्या शरणार्थियों के बारे मे जानकारी एकत्रित कर रहा था कि इन्टरकाम की घंटी बज उठी। …हैलो। …मेजर, आज दोपहर तीन बजे स्ट्रेटिजिक कमांड की सचिव लेवल कमेटी की मीटिंग है। टाइम से वीके के आफिस मे पहुँच जाना। …जी सर। फोन कटने के बाद कुछ सोच कर मै उसी समय वीके के आफिस की ओर चला गया था। वीके ने मुझे देखते ही कहा… मेजर, तुम्हें आज की मीटिंग की खबर मिल गयी होगी। अच्छा हुआ तुम खुद आ गये क्योंकि मै एजेन्डा पेपर्स तुम्हारे पास भिजवा रहा था। बैठो मै फाईल यहीं मँगवा लेता हूँ। मै चुपचाप वीके के सामने बैठ गया। …मेजर, कोडनेम वलीउल्लाह  बहुत संवेदनशील मसला है। उस गद्दार का पता लगाना बेहद जरुरी है जो दुश्मन मुल्क को हमारी गोपनीय जानकारी दे रहा है। …सर, बहुत सोचने पर एक पैटर्न उभरता हुआ दिख रहा है। लगभग सभी जानकारी जो अब तक हमारे सामने आयी है वह मारे गये आतंकवादियों के पास से मिली है। अगर ग्रिड रेफ्रेन्स पाकिस्तान फौज को मिल रहे है तो वह पल भर मे हमारे फौजी संसाधनों को धूल मे मिला सकते है। उनकी शाहीन और गजनवी मिसाइल्स इसके लिये पर्याप्त है तो भला वह यह सूचना आतंकवादी तंजीमों को क्यों दे रहे है? …मेजर, मिसाइल का इस्तेमाल तुरन्त युद्ध का बिगुल बजा देगा और फिर हमारी ओर से इससे कड़ी प्रतिक्रिया भी होगी परन्तु आतंकवादी हमले के लिये सिर्फ हम उन्हें दोषी बता सकते है परन्तु हमारी ओर से कोई फौजी प्रतिक्रिया नहीं हो सकेगी। …यही मै भी सोच रहा था कि हक डाक्ट्रीन को नये स्वरुप मे कार्यान्वित किया जा रहा है। हम बात कर रहे थे कि एजेन्डा की फाइल आ गयी थी। मैने फाइल उठाई और अपने कमरे की ओर चल दिया था।

पहली बार पर्यवेक्षक के तौर पर उच्च अधिकारियों की मीटिंग मे जा रहा था तो तीन बजने से कुछ मिनट पूर्व एजेन्डा फाईल उठाये मै वीके के आफिस के साथ लगे हुए कान्फ्रेंस हाल मे दाखिल हो गया था। हाल के एक किनारे मे लगी हुई मेज पर चाय और काफी का इंतजाम था। कुछ लोग उस मेज के पास खड़े हुए काफी पीते हुए बात कर रहे थे। मै उधर जाने के बजाय मेज पर लगी हुई नेमप्लेट पढ़ते हुए अपनी जगह पर जाकर बैठ गया। ठीक तीन बजे केबिनेट सेक्रेटरी नरसिम्हन कुछ लोगों के साथ हाल मे प्रवेश किया और एकाएक हाल मे इधर-उधर खड़े हुए लोग भी अगले कुछ मिनटों मे अपनी जगह पर बैठ गये थे। नरसिम्हन मेज ने चारों ओर नजर डाल कर कहा… सब आ गये है। मीटिंग आरंभ करते है। मेरी नजरे नेमप्लेट पर से होती हुई उसके पीछे बैठे हुए व्यक्ति के चेहरे को दिमाग मे बिठाने मे व्यस्त हो गयी थी। वाणिज्य सचिव निखिल वागले को अपने दिमाग मे बिठा कर वित्त सचिव बी सुब्रमन्यम पर अपनी निगाहें टिका दी थी। गृह सचिव अनिल चंद्रशेखर केबिनेट सेक्रेट्ररी के बाँये और रक्षा सचिव वी दत्तात्रेय दाँये बैठे हुए थे। एक ओर आईबी के निदेशक दीपक शर्मा और रा के निदेशक गोपीनाथ साथ-साथ बैठे हुए थे। मेरी पहली मीटिंग थी तो मै चुपचाप बैठ कर उनकी बात सुन रहा था।

पहला मुद्दा भारतीय सेना से संबन्धित था। रक्षा सचिव दत्तात्रेय ने थल, वायु और नौसेना के बारे मे जानकारी देते हुए बताया कि पाकिस्तानी फौज लगातार सीमा पर फेर बदल कर रही है। उनका तोपखाना पिछले तीन महीने मे तीन पर स्थानन्तरित हुआ है। लगभग ऐसा ही उनकी वायुसेना के द्वारा भी देखने को मिला है। उसको देखादेखी भारतीय फौज ने भी अपना तोपखाना और सेना की तैनाती को रणनीतिक तौर पर बदल दिया था। तीनों अंगों की इन्टेलीजेन्स का एक ही मत है कि हमारी सेना से संम्बधित गोपनीय सूचना आईएसआई तक किसी तरह पहुँच रही है। कुछ देर इस पर चर्चा करने के पश्चात, गोपीनाथ ने बताया कि आईबी की सूचना के आधार पर सीमा सुरक्षा बल के द्वारा नेपाल सीमा पर लगातार नजर रखी जा रही है। पता चला है कि पाकिस्तानी तंजीमो की घुसपैठ के लिये आईएसआई आजकल नेपाल मे काफी सक्रिय हो गयी है। इसी सिलसिले मे आईबी की ओर से दीपक शर्मा ने अपनी ओर से जोड़ते हुए बताया की बांग्लादेश सीमा से भी लगातार घुसपैठ जारी है क्योंकि बंगाल की राज्य सरकार राजनीतिक कारणों से अवैध घुसपैठ रोकने मे ढिलाई बरत रही है। अभी हाल मे ही मुर्शीदाबाद के धमाकों की जाँच के बाद यह शक पैदा हुआ है कि आतंकवादी वहाँ से भारत मे अवैध तरीके से घुसे थे। नेपाल और बांग्लादेश सीमाओं ने हमारे लिये एक नयी मुश्किल खड़ी कर दी है। वह मीटिंग दो घंटे चली थी और उस मीटिंग के समाप्त होते ही मै अजीत से मिलने के लिये चला गया था।     

मीटिंग मे हुई सारी बातचीत का ब्यौरा देने के पश्चात अजीत ने कहा… मेजर, आज शाम को सात बजे क्या कर रहे हो? …कुछ खास नहीं, बताईये क्या करना है? …एक न्युज मिडिया के मालिक दीपक सेठी अपने फार्म हाउस पर एक पार्टी दे रहा है। वह साधारण शब्दों मे एक सफेदपोश दलाल है। माओइस्टो और नक्सलवादियों के लिए पैसे और हथियारों का इंतजाम करता है। पिछली सरकार मे वह रक्षा सौदे व अफसरों की ट्रांस्फर और पोस्टिंग की दलाली मे भी लिप्त था। मै चाहता हूँ कि तुम उस पार्टी मे जाओ और उच्चवर्गीय सफेदपोश लोगो से मिल कर हालात को समझने की कोशिश करो। वहाँ पर बहुत से देश विरोधी गतिविधियों मे भाग लेने वाले लोग भी आयेंगें। ऐसी पार्टियाँ तुम्हारे लिये अच्छा मौका होंगी कि जब तुम कुछ सफेदपोश और संभ्रात नागरिकों को देश के दुश्मनों के रुप मे देखने का मौका मिलेगा। नीलोफर की लिस्ट मे दिये हुए कुछ नाम भी तुम्हें वहाँ देखने को मिल जाएँगें। उनकी भी निशानदेही कर लोगे तो आगे का काम आसान हो जाएगा। यह बोल कर उन्होंने एक कार्ड मेरी ओर बढ़ा दिया था। मै कुछ पूछना चाहता था परन्तु कुछ सोच कर चुप हो गया और वापिस अपने आफिस मे आकर शाम की पार्टी के बारे मे सोचने बैठ गया।

कार्ड पर दिये गये फार्म हाउस को ढूंढने मे कुछ समय लगा तो इसलिये मै थोड़ा देर से पहुँचा था। एक विशाल लान मे पार्टी का आयोजन किया गया था। वातावरण संगीतमय हो रखा था। हर उम्र के लोग लान मे बिखरे हुए थे। कुछ समूह मे खड़े हुए ड्रिंक्स करते हुए किसी चर्चा मे डूबे हुए थे और कुछ जोड़े बना कर बातचीत मे व्यस्त थे। जिस दिशा मे मेरी नजर गयी वहीं कुछ ऐसा ही माहौल दिख रहा था। वहाँ की भव्यता को देख कर मेरी चाल मे झिझक आ गयी थी। मै चुपचाप एक भीड़ मे जाकर खड़ा हो गया। उस भीड़ मे कुछ जाने पहचाने चेहरे दिखाई दे रहे थे। मैने उनको टीवी पर बहुत बार बकवास करते हुए देखा था। नारी शक्ति भी अपने हावभाव, पहनावे और बातों से आधुनिकता की चरम पर विद्यमान होती लग रही थी। सभी लोग ड्रिंक्स हाथ मे लिए राजनीतिक बातों मे उलझे हुए थे। कुछ लोग राजनीति मे आये हुए बदलाव पर बहस कर रहे थे और कुछ लोग अर्थव्यवस्था की हालत पर चर्चा कर रहे थे। एक नजर सब पर डाल कर मैने जाते हुए वेटर की ट्रे से एक ड्रिंक्स का ग्लास पकड़ा और धीमे कदमों से चलते हुए एक समूह के साथ खड़ा हो गया।

…यह सरकार ज्यादा कुछ नहीं कर सकेगी। तभी एक पाश्चात्य वेशभूषा मे अर्धनग्न नवयुवती धाराप्रवाह अंग्रेजी मे बोली… मै आज ही उनकी प्रेस कांफ्रेन्स मे गयी थी। निहायत ही बेवकूफ और रुढ़िवादी विचार वाले लोग सत्ता मे आ गये है। देश को पचास साल पीछे ले जाने की बात कर रहे थे। तभी एक अधेड़ सा दिखने वाला व्यक्ति बोला… यह सब संघी लोग ठहरे और इनसे क्या उम्मीद कर सकते है। प्रधानमंत्री आवास मे कल शाम को सरकार के सभी सचिवों को बुलाया गया था। वहाँ मै भी गया था। तीस साल की नौकरी मे आज तक मैने ऐसा प्रधानमंत्री नहीं देखा जो सबसे कह रहा था कि किसी राजनीतिक दबाव मे आने की जरुरत नहीं है। उस समूह मे मुझे दोपहर की मीटिंग मे शामिल होने वाले दो चेहरे भी दिख गये थे। वित्त सचिव सुब्रामनयम और वाणिज्य सचिव वागले हँसते हुए सभी से बात कर रहे थे। …निखिल इस आदमी को यहाँ का कुछ पता नहीं है इसीलिए वह ऐसा कर रहा है। कुछ ही दिनो मे इसे भी पता चल जाएगा कि हमारे बिना यहाँ पर पत्ता भी नहीं हिलता है। तभी एक बड़ी सी लाल बिंदी माथे पर लगाये अधेड़ सी औरत बोली… उस गंवार की सबसे बड़ी परेशानी विदेश नीति रहेगी। पाकिस्तान ने जिस तरह अपना अमरीका और युरोप की राजधानियों मे जाल फैलाया है तो मुझे लगता है कि वह उनसे कभी पार नहीं पा सकेगा। एक और स्त्री जो उसके साथ खड़ी हुई थी वह उसकी हाँ मे हाँ मिलाते हुए बोली… नये प्रधानमंत्री की सबसे बड़ी मुश्किल दुनिया भर के मुस्लिम देश होंगें। भले ही वह चुनाव जीत कर आ गया है परन्तु साउथ ब्लाक मे ज्यादा दिन टिक नहीं सकेगा। 

किसी अन्य समूह की तलाश मे मैने जैसे अपनी नजरें चारों ओर घुमाई तो अचानक मेरी नजर नीलोफर पर पड़ी जो एक अधेड़ से दिखने वाले व्यक्ति के साथ लान के किनारे पर बनी हुई इमारत की ओर जा रही थी। उस आदमी का हाथ चलते-चलते उसकी कमर से हठ कर उसके नितंब पर पहुँच गया था। नीलोफर को देख कर मुझे तेज बिजली का झटका सा लगा था। वह तो श्रीनगर से फरार हो गयी थी। आज नीलोफर अपने नये अवतार मे दिख रही थी। वह गहरे नीले रंग के पारदर्शी सी साड़ी ब्लाउज मे थी। ललाट पर एक लाल बिंदी, कानों मे झुमके और गले मे एक महंगा जगमगाता हुआ हार पड़ा हुआ था। यह वेषभूषा उच्चवर्गीय स्त्रियों के लिए सामान्य बात थी परन्तु उसका ब्लाउज आगे से इतना कटा हुआ था कि आधे से ज्यादा सीने की गोलाईयाँ बाहर झाँक रही थी। पीछे से भी उसकी पीठ लगभग नग्न दिख रही थी। यही नहीं उसकी साड़ी भी नाभि से नीचे बंधी हुई थी जिसके कारण चलते हुए उसके नितंब थिरकते हुए लग रहे थे। पाँव मे बड़ी फैशनेबल हील की सैंडल थी। नीले रंग मे उसका दूध सा गोरा रंग अलग से दमक रहा था। अगर यह कहता कि वह बिजलियाँ गिरा रही थी तो अतिश्योक्ति नहीं होती। उसका यह रुप मेरे लिए नया ही नहीं अपितु रहस्यमयी भी था। ब्रिगेडियर चीमा ने उसके लिये लुकआउट नोटिस जारी किया था परन्तु यहाँ इस भीड़ मे वह कितनी सहज दिख रही थी।

एक स्त्री की आवाज मेरे कान मे पड़ी… सेठी साहब कश्मीरी सुन्दरियों के बेहद रसिक है। मैने मुड़ कर साथ खड़ी हुई स्त्री की ओर देखा तो वह मुस्कुरा कर मेरी ओर देखते हुए बोली… हैलो। …हैलो, माफ कीजिए मैने आपको पहचाना नहीं। अपनी असहजता पर काबू करने के लिए मैने अपने ग्लास से एक घूँट भरा और जल्दी से कहा… मेरा नाम समीर बट है। …मै मिसेज सेठी। आपको अकेले यहाँ खड़ा देख कर कंपनी देने के लिये आ गयी थी। आप उसको जानते है? …कौन? …जिसको आप देख रहे थे। सौम्या कौल हमारे पार्टी सर्किट की जान है। अबकी बार मैने बड़ी बेशर्मी के साथ कहा… मेरे लिये तो इस पार्टी की जान आप है मिसेज सेठी। वह झेंप कर बोली… प्लीज, मुझे मोनिका कहिये। आप क्या हमारी पार्टी मे पहली बार आये है? अब तक मै सहज हो चुका था। …मोनिका इस कायनात मे बिना खुदा की मर्जी के एक पत्ता भी नहीं हिल सकता तो मेरा मानना है कि तुमसे मुलाकात करनी थी तो मै आज यहाँ आ गया। वह खिलखिला कर हँसते हुए बोली… समीर, आप बेहद दिलचस्प इंसान है। मैने जेब से अपना मोबाईल निकाल कर पूछा… मोनिका तुम्हारा नम्बर क्या है? एक पल के लिए वह झिझकी और फिर अपना नम्बर बता कर बोली… बस दोस्ती से आगे कुछ नहीं। कुछ क्षण मोनिका को देखता रहा और फिर मैने मुस्कुरा कर कहा… मै कोई वादा नहीं कर सकता परन्तु मोनिका जब तुम फोन करोगी तभी हमारी बात होगी। मै फोन नहीं करुँगा। इतना बोल कर मैने एक मिस काल उसके नम्बर पर देकर बाहर की ओर चल दिया था। बाहर निकलते हुए मैने सोच लिया था कि नीलोफर तक पहुँचने के लिये मुझे मोनिका को शीशे मे उतारना पड़ेगा।

बाहर निकल कर एक बार मन मे विचार आया कि ब्रिगेडियर चीमा को नीलोफर की खबर कर दूँ परन्तु फिर कुछ सोच कर मै अपनी जीप मे जाकर बैठ गया था। दो घन्टे तक मै फार्म हाउस के बाहर जीप मे बैठा रहा था। मै नीलोफर का इंतजार कर रहा था। बहुत से लोग जा चुके थे। मेरी नजर मुख्य द्वार पर टिकी हुई थी। नीलोफर अभी भी अन्दर थी। थोड़ी देर बाद वह किसी आदमी की बाँहों मे झूलती हुई बाहर निकली और उसकी कार मे बैठ कर चल दी थी। मैने भी अपनी जीप उनके पीछे लगा दी। वह कार आधी दिल्ली घुमा कर सरकारी उच्च अधिकारियों की कोलोनी मे प्रवेश कर गयी थी। कुछ दूर जाकर वह कार एक विशालकाय सरकारी बंगले मे चली गयी थी। उस बंगले के बाहर सेना के गार्ड्स पहरा दे रहे थे। मैने अपनी जीप उस बंगले के गेट के सामने धीमी करके गेट पर लगी हुई नेमप्लेट को पढ़ते हुए आगे निकल गया था। बी चन्द्रमोहन, मै इस नाम से परिचित था। वह रक्षा मंत्रालय मे अतिरिक्त रक्षा सचिव के पद पर काम करता था। नीलोफर को उसके साथ देख कर अब मेरे दिमाग मे खतरे की घंटी लगातार बज रही थी।


काठमांडू

पाकिस्तान दूतावास मे नियुक्त राजदूत फोन पर किसी से बात करने के बाद सामने बैठे हुए व्यक्ति से बोला… जनाब, जनरल साहब का आदेश है कि आपको दूतावास से बाहर रह कर काम करना होगा। आपकी सभी जरुरत को पूरा करना हमारी जिम्मेदारी है परन्तु आपसे हमारे दूतावास का कोई परोक्ष रुप से संबन्ध नहीं होगा। उन्होंने साफ हिदायत दी है कि जल्दी ही वह किसी को यहाँ नियुक्त करने वाले है जो आपके संपर्क मे रहेगा। …मिर्जा साहब, आपको जो कहा गया वह काम किजिये। जनरल बाजवा ने मुझे जो निर्देश दिये है उसका आपसे कोई संबन्ध नहीं है। फिलहाल मै आपके पास सिर्फ यह कहने के लिये आया था कि मुझे अगर इस दूतावास मे किसी से संपर्क स्थापित करना है तो वह कौन है। राजदूत मिर्जा ने त्यौरियाँ चड़ाते हुए पूछा… तुम हो कौन जो मुझे आदेश देने की हिमाकत कर रहे हो? वह कुर्सी से उठते हुए बोला… मिर्जा अपना सामान बाँध लो क्योंकि कल तक तुम्हारा स्थानांतरण हो जाएगा। मेरे बारे मे जानने की कोशिश करोगे तो अपनी कब्र खुद खोदने का इंतजाम करोगे। एकाएक राजदूत मिर्जा नरम पड़ते हुए बोला… मियाँ साहब, आप नाहक ही बुरा मान रहे है। जनरल साहब का आदेश है कि आपको सभी प्रकार की सुविधा प्रदान करनी है। मै इसके लिये मना नहीं कर रहा परन्तु मेरे लिये यह जानना जरुरी है कि आपको हमसे किस प्रकार की सुविधा चाहिये। …बस वीसा की सुविधा चाहिये। राजदूत मिर्जा ने जल्दी से कहा… यही तो मै जानना चाहता था। इस काम के लिये आप एजाज हुसैन से सीधे संपर्क कर लिया किजीए। मै उसको निर्देश दे दूंगा। …उसका फोन नम्बर? राजदूत मिर्जा ने जल्दी से कागज पर उसका नम्बर लिख कर उस व्यक्ति की बढ़ाते हुए कहा… आप हमारी मुश्किल समझने की कोशिश किजीए। उस आदमी ने एक नजर कागज पर लिखे हुए नम्बर पर डाली और बिना कुछ कहे कमरे से बाहर निकल गया था।

राजदूत मिर्जा अपनी कुर्सी पर बैठते हुए इन्टरकाम पर बोले… शबाना, एजाज को मेरे आफिस मे भेजना। …एक्सीलैन्सी, आपके लिये इस्लामाबाद से फैक्स आया है। …लाकर मुझे दिखाओ। …जी जनाब। राजदूत मिर्जा भद्दी सी गाली देकर बोला… इन वर्दीधारियों ने मेरा जीना हराम कर दिया है। तभी दरवाजे पर दस्तक देकर एक नाजनीन ने कमरे मे प्रवेश किया और फैक्स राजदूत मिर्जा की ओर बड़ाते हुए बोली… एक्सीलैन्सी, कल आईएसआई के ब्रिगेडियर शुजाल बेग दूतावास मे रक्षा सचिव का  पदभार संभालने के लिये काठमांडू पहुँच रहे है। राजदूत मिर्जा ने अपनी खीज मिटाते हुए शबाना पर चिल्लाया… अभी तक पिछले आईएसआई के अफसर की करतूतों को हमारा दूतावास भुगत रहा है और अब यह एक नयी मुसीबत खड़ी हो गयी है। न जाने यह दोनो अब यहाँ क्या गुल खिलायेंगे? एक पल रुक कर राजदूत मिर्जा ने पूछा… एजाज को खबर कर दी थी? …जी जनाब। बस इतना बोल कर शबाना कमरे से बाहर निकल गयी थी। राजदूत मिर्जा अपना सिर पकड़ कर बैठ गया था।


9 टिप्‍पणियां:

  1. कहाणी का आगाज तो बडा भयंकर हुवा, निलोफर का नया रूप क्या आगे भूचाल लानेवाला है? क्या ये हनी-टरयाप नयी मुसिबत खडी करेगा? बदले हुये निजाम की हवा ना पाक पहचान सका ना उसके पाले हुये पिठ्ठू ना बडी बिंदी दलाल पत्रकार न विदेशी चंदेपे पनपे NGO, आज 9 साल बाद इन भांड लोगोंकी ऐसी झंड लग गयी है के, मोदी नामकी कडवी गोली न निगलते बने न उगलते. विरभाई आगाज तो भयकारी है, उस्तुकता चरमपे है अगले कडीकी..

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    1. आपके चन्द शब्द भारी प्रेरणा के स्त्रोत है। धन्यवाद प्रशान्त भाई।

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  2. हैलो वीर भाई, मैंने अफगान, तालिबान और आतंक का अंत पढ़ी है। अब आपकी आगे की कहानियां पढ़ना चाहता हु तो किस क्रम में पढ़ू?

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    1. रैगनर भाई अब मै क्या जवाब दूँ क्योंकि प्रशान्त भाई ने सब कुछ तो बता दिया है। आपको अफ़गान सिरीज कैसी लगी इसके बारे मे कुछ नहीं बताया। कृपया अपने विचार से मुझे जरुर अवगत कराईयेगा। धन्यवाद मित्र।

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    2. भाई मै आपको Xossip के टाइम से फॉलो कर रहा हु। तब से अब तक अफगान सीरीज 3 बार पढ़ी है। अफगान सीरीज कैसी लगी यह सवाल ही गलत होगा। क्योंकि इतने साल बीत जाने के बाद भी लोग अब भी आपके साथ जुड़ने के लिए आपके ब्लॉग को केवल इसलिए विजिट करते है ताकि वो जान सके की आपने फिर से लिखना शुरू किया है या नही।

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  3. Ragnar Lothbrok भाई "अफगान, तालिबान, आतंक का अंत और निजाम ए मुस्तफा" यहा एक कडी खतम हुई, बाकी तो सिंगल ही है "सीआयए" "जंग मोहब्बत और धोका" और अभी चल रही "काफिर" और "गहरी चाल". अगर मानो तो "अफगाण से निजाम ए मुस्तफा" पहले कम्प्लीट करो, फिर जंग मोहब्बत और धोका, सीआयए, और लास्ट मे "काफिर" और "गहरी चाल" ये क्रम से पढो. पहले कहाणी का बेस बन जायेगा तो "काफिर और गहरी चाल" पढनेमे और मजा आयेगा..

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    1. आपको यकीन नाही होगा पर "अफगाण से निजाम ए मुस्तफा" अब ४थी बार पढ रहा हुं. हर कहाणी २ बार तो पढीही है, कितनी बार भी पढो मन नही भरता😁😁😁

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    2. प्रशान्त भाई पता नहीं क्यों यही बात मुझे कई मित्रों ने कहा है कि वह मेरी सभी रचनाओं को बहुत बार पढ़ चुके है। यह आप मित्रों की जर्रानवाजी है अन्यथा बिना आपके सहयोग के मेरी सारी मेहनत व्यर्थ थी। बहुत-बहुत शुक्रिया।

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