बुधवार, 8 मार्च 2023

  

काफ़िर-45

 

मै अपने कान पर फोन लगाये अभी भी कमांड अस्पताल के बाहर खड़ा हुआ था। कुछ क्षण पहले ब्रिगेडियर चीमा ने फोन पर बुरहान की सूचना दी थी। अम्मी और आलिया का हत्यारा हमारे रेडार पर आ गया था। उसकी मौत तो मेरे हाथ से निश्चित थी परन्तु पहले मै उससे हया के बारे मे जानना चाहता था। भले ही गोली उसने चलाई थी परन्तु दिमाग तो हया नाम की आईएसआई आप्रेटिव का था। बस एक ही बात मेरे दिमाग मे घूम रही थी। मुझे कल तक श्रीनगर हर हालत मे पहुँचना था। कुछ सोच कर मै डाक्टर बेदी से मिलने के लिये चला गया था। …सर, अब अदा के बारे मे क्या रिपोर्ट है? …मेजर, अब वह बिल्कुल नार्मल है। उसे बस कुछ दिन अपना ख्याल रखने की जरुरत है। …सर, इमरजेन्सी ड्युटी के लिये मेरी छुटियाँ रद्द कर दी गयी है। मुझे तुरन्त वापिस लौटना है। क्या उसे यहाँ अकेला छोड़ कर मै वापिस जा सकता हूँ? …मेजर, तुम्हारे और उसके बीच मे कुछ दिन संपर्क बना रहना चाहिये लेकिन उसके रोजमर्रा के रुटीन मे कोई बदलाव नहीं आना चाहिये। …यस सर। फोन से भी संपर्क किया जा सकता है। क्या सभी दवाईयाँ जारी रहेंगी? …बस उसे एक गोली सुबह उठ कर लेनी पड़ेगी। बाकी सभी दवाईयाँ उसे अब बन्द कर देनी चाहिये। क्या उसने रात की दवाई लेना खुद ही बन्द कर दिया है? …यस सर। …ठीक से नींद आ रही है? …यस सर। वह रात को सोने के बाद एक बार भी नहीं उठती। …गुड। लेकिन उसे बता देना कि अगर किसी कारण नींद नहीं आये तो वह एक गोली ले सकती है। …यस सर। बस इतनी बात करके मै डाक्टर बेदी के कमरे से निकल कर अदा के पास चला गया था।

उसकी आईसीयू वार्ड मे ड्युटी थी। मुझे देख कर वह चहक कर बोली… यहाँ कैसे आना हुआ? …तुम्हारी ड्युटी कब आफ हो रही है? …चार बजे। …अदा, श्रीनगर से खबर आयी है कि मेरी छुट्टी कैन्सिल हो गयi है। मुझे तुरन्त ड्युटी जोईन करनी पड़ेगी। यह सुनते ही उसका चेहरा उतर गया था। …अम्मी और आलिया का कातिल बहुत दिनो के बाद हमारे रेडार पर आया है। उन दोनो का हिसाब चुकाने के लिये मुझे वापिस जाना होगा। अगर देर हो गयी तो एक बार फिर से वह सीमा पार भाग जाएगा। कुछ सोच कर अदा ने कहा… तुम जाओ। मै भी दिल्ली की पोस्टिंग के लिये कोशिश करती हूँ। …हाँ। लेकिन तब तक तुम अपने रोजाना के रुटीन मे कोई बदलाव नहीं करना। मै रोज शाम को तुमसे फोन पर बात कर लिया करुँगा। …तुम बेफिक्र हो कर जाओ। उसने अपने गले मे पड़े मंगलसूत्र को मुझे दिखा कर कहा… तुम्हारी निशानी मेरे पास है। अब मुझे किसी की चिन्ता नहीं है। एक पल के लिये मै उसे देखता रह गया था। उसके चेहरे पर आत्मविश्वास की झलक दिख रही थी। मुझे अचानक चुप देख कर उसकी भौहें चिरपरिचित अंदाज मे हमेशा की तरह जैसे ही तनी मैने जल्दी से कहा… डाक्टर बेदी ने कहा है कि सुबह की एक गोली को छोड़ कर बाकी सभी दवाईयाँ बन्द कर देना। अगर रात को किसी कारण नींद नहीं आये तो नींद की गोली ले सकती हो। वह मुस्कुरा कर बोली… समीर, मेरी फिक्र मत करो। मै अपना ख्याल रख सकती हूँ। …हाँ जैसे तुमने अपना ख्याल पहले रख रहीं थी। वह झेंप कर बोली… वह सब तुम्हारे कारण हुआ था। अब मै वह गलती दोबारा नहीं दोहराऊँगी। प्रामिस। …ठीक है मै अपनी टिकिट का इंतजाम करने जा रहा हूँ। शाम को तुमसे मिल कर ही जाऊँगा। इतनी बात करके मै वापिस अपने गेस्ट हाउस की ओर निकल गया था।

गेस्ट हाउस पर पहुँचते ही तबस्सुम को वापिस लौटने की सूचना देकर मै वापिसी की टिकिट कराने मे जुट गया था। शाम की पाँच बजे की जम्मू की फ्लाईट मिल गयी थी। हमारे पास ज्यादा सामान नहीं था। रोजमर्रा का सामान और कुछ कपड़े पैक करने मे ज्यादा समय नहीं लगा था। हम लंच टाईम तक अस्पताल पहुँच गये थे। पहले मै श्री को अपने जाने की सूचना देने चला गया था। मेरी जाने की बात सुन कर वह थोड़ा विचलित हो गयी थी। मैने उसे डाक्टर बेदी के निर्देश बताने के पश्चात उससे कुछ दिन अदा पर नजर रखने के लिये कहा तो वह जल्दी से बोली… मै तो उस पर अभी भी नजर रख रही हूँ। तुम्हारे आने से तीन हफ्ते मे ही उसमे काफी सुधार आ गया है। …श्री तुम्हें जैसे ही कुछ बदलाव दिखे तो मुझे तुरन्त खबर कर देना। मै सब कुछ छोड़ कर फौरन वापिस आ जाऊँगा। वैसे भी मै अदा से तो रोज फोन पर बात करुँगा लेकिन तुम्हें भी उसकी जानकारी लेने के लिये कभी-कभी डिस्टर्ब किया करुँगा। …नो प्राब्लम। इतनी बात करके मै अदा के पास चला गया था।

मुझे देखते ही वह बोली… तुम तो मेरी ड्युटी आफ होने के बाद जा रहे थे? …आज शाम को श्रीनगर की कोई डायरेक्ट फ्लाईट नहीं है। जम्मू की आखिरी फ्लाईट शाम पाँच बजे की है। रात को नौ बजे जम्मू पहुँच कर बस से सुबह तक श्रीनगर पहुँच जाऊँगा। अपनी कलाई की घड़ी पर एक नजर डाल कर वह बोली… तो तुम्हें तीन बजे तक एयरपोर्ट पहुँचना होगा। …हाँ, इसीलिये मै तुमसे यहाँ मिलने के लिये आ गया था। वह आगे बढ़ कर मेरे सीने से लग कर धीरे से बोली… समीर, तुम मेरी फिक्र मत करना। मै जल्दी ही तुम्हें दिल्ली मे मिलूँगी। अम्मी और आलिया के हत्यारे को हर्गिज मत छोड़ना। कुछ देर उसे अपनी बाँहों बांध कर खड़ा रहा और फिर धीरे से उसका माथा चूम कर उसकी ओर बिना देखे मुख्य द्वार की दिशा मे चल दिया। मै जानता था कि वह भीगी पल्कों से मुझे जाते हुए देख रही होगी पर मेरी हिम्मत उसकी ओर देखने की नहीं थी। तबस्सुम को टैक्सी मे छोड़ कर आया था तो वह मेरा टैक्सी मे इंतजार कर रही थी। टैक्सी मे बैठते ही हम एयरपोर्ट की दिशा मे निकल गये थे।

प्लेन के उड़ान भरने के कुछ समय बाद तबस्सुम ने धीरे से पूछा… हम वापिस क्यों जा रहे है? दोपहर के बाद पहली बार तबस्सुम ने मुझसे बात की थी। …मेरा ट्रांस्फर दिल्ली हो गया है। मुझे वापिस ड्युटी जोइन करके अपने ट्रांस्फर आर्डर लेने है। …अब आपकी दोस्त की कैसी तबियत है? …पहले से ठीक है। उसने अपनी ड्युटी जोइन कर ली है। वह सिर झुका एक बार फिर से बैठ गयी थी। रात को नौ बजे तक हम दोनो जम्मू एयरपोर्ट पर उतर गये थे। मैने पहला फोन अदा को किया और कुछ देर उसके हालचाल पूछने के बाद अगला फोन आफशाँ को किया। …हैलो समीर। …आफशाँ वहाँ के क्या हाल चाल है? कुछ देर उसने मेनका के स्कूल के बारे बताया और फिर अपने काम की व्यस्तता के बारे मे बता कर कहा… तुम छुट्टी पर कब आ रहे हो? …आफशाँ मैने छुट्टी के लिये कहा है लेकिन शायद मेरी पोस्टिंग दिल्ली होने वाली है जिसके कारण मै अभी छुट्टी नहीं ले सकूँगा। …यह तो खुशी की बात है कि तुम दिल्ली जा रहे हो। मुझे अगले हफ्ते चार दिन के लिये काठमांडू जाना है। मैने आज ही अदा से मेनका के बारे मे बात की थी। वह मुंबई आने के लिये तैयार हो गयी है। अब लौट कर मै भी दिल्ली आने का प्रयास करुँगी। …गुड। हम तीनो के लिये यही अच्छा होगा। इतनी बात करके मैने जब फोन काटा तो मेरी नजर तबस्सुम पर पड़ी जो बड़े ध्यान से मुझे देख रही थी। …क्या देख रही हो? …आपको देख रही थी। आफशाँ आपकी बीवी का नाम है। …हुँ। …और मेनका आपकी बेटी है? …हाँ। चलो अब श्रीनगर पहुँचने की सवारी का इंतजाम किया जाये। हम दोनो एयरपोर्ट से बाहर निकल आये थे।

एयरपोर्ट के बाहर निकलते ही श्रीनगर जाने के लिये टैक्सी मिल गयी थी। जम्मू शहर से बाहर निकलने से पहले एक ढाबे मे बैठ कर पेट पूजा करके देर रात को श्रीनगर की ओर चल दिये थे। कुछ दूर निकलने के बाद तबस्सुम ने पूछा… आपकी बचपन की दोस्त भी आफशाँ को जानती है? एक पल के लिये उसका प्रश्न सुन कर मै गड़बड़ा गया था। मेरे सारे ही रिश्ते ही बेहद विवादस्पद थे। उसे अपने रिश्तों के बारे मे कैसे बता सकता था। …क्यों क्या आप फिर से कोई झूठी कहानी सुनाने की सोच रहे है? …ऐसा नहीं है। मेरी बचपन की साथी आफशाँ की छोटी बहन अदा है। …तभी आपने मुझे उससे नहीं मिलवाया था। यह तो मै उसी वक्त समझ गयी थी। इतना बोल कर वह चुप हो गयी। …तबस्सुम तुम्हें याद है कि तंगधार में मैने क्या बोला था? …जी आपने कहा था कि बानो, यहाँ से आगे तुम्हें बहुत सी बातों का पता चलेगा लेकिन डरने की जरुरत नहीं है। …हाँ, अब एक बात इसमे और जोड़ रहा हूँ। मै तुम्हारी नजर मे भले ही अच्छा इंसान नहीं हूँ लेकिन तुम पर कोई आँच नहीं आने दूँगा। तुम्हारे अब्बू और पीर साहब चाहे अपनी सारी फौज तुम्हें सजा देने के लिये लगा दें लेकिन जब तक मै जिवित हूँ तब तक वह तुम्हें छू भी नहीं सकेंगें। वह अंधेरे मे मुझे कुछ पल देखती रही फिर मुस्कुरा कर बोली… याद रखूँगी। मै आँखें मूंद कर सीट पर अपनी पीठ टिका कर बोला… तुम आराम से सो जाओ। लम्बा रास्ता है। सुबह की पहली किरण निकलने से पहले हम श्रीनगर पहुँच जाएँगें।    

हम सुबह पाँच बजे तक अपने फ्लैट पर पहुँच गये थे। सफर की थकान के कारण तबस्सुम अपने कमरे मे सोने चली गयी लेकिन मेरी दिनचर्या आरंभ हो गयी थी। समय से पहले मै कोम्बेट गियर पहन कर तैयार होकर आफिस पहुँच गया था। सुरक्षा गाड़ियों का काफिला मुख्य द्वार के बाहर खड़ा हुआ देख कर मै समझ गया कि ब्रिगेडियर चीमा भी आफिस मे आ गये थे। मै सीधा उनके कमरे की ओर चला गया। एक दस्तक देकर उनका दरवाजा खोल कर मैने अन्दर झाँका तो वह अपने कमरे मे नहीं थे। कुछ सोच कर मैने उनका नम्बर मिलाया और तुरन्त उनकी आवाज मेरे कान मे पड़ी… मेजर कहाँ पहुँच गये? …सर, आपके आफिस के बाहर खड़ा हूँ। …मेजर, कम्युनिकेशन्स आप्रेशन्स के सेन्टर मे आ जाओ। इतना बोल कर उन्होंने फोन काट दिया था। कुछ ही देर बाद मै और ब्रिगेडियर चीमा एक हाल मे खड़े हुए थे। यहाँ पर वायरलैस उपकरणों का जाल बिछा हुआ था। एक सुबेदार बार-बार अपना कालिंग साइन देकर कनेक्शन जोड़ने मे व्यस्त था। …मेजर, हमारी एक टीम इस वक्त बारामुल्ला शहर के एक मकान पर नजर रख रही है। उसके टीम लीडर मेजर यादव से संपर्क साधने की कोशिश चल रही है। …सर, क्या बुरहान उस मकान मे है? …पता नहीं। मेरी टीम ने बुरहान की एक प्रेमिका जुबैदा की पहचान करके उस पर दबाव डाला है। हमारे कहने पर उसने बुरहान को अपने घर पर बुलाया है। कल रात से आप्रेशन टीम उस मकान के आसपास फैली हुई है। मेरे विचार से तुम तुरन्त बारामुल्ला चले जाओ और वहाँ पर मेजर यादव से मिल कर अपनी देखरेख मे इस आप्रेशन का चार्ज ले लो। मै वायरलैस पर मेजर यादव को अपने फाईनल आर्डर के साथ तुम्हारे पहुँचने की सूचना भी दे दूँगा। …यस सर। मै अभी निकल रहा हूँ। बस इतना कह दिजियेगा कि मेरे पहुँचने से पहले कोई एक्शन न लें। इतना बोल कर मै भागते हुए अपनी जीप की ओर निकल गया था। जीप मे बैठते ही अपनी सुरक्षा टीम को लेकर मै बारामुल्ला की दिशा मे निकल गया था।   

कुछ दिन पहले ही घाटी मे बर्फबारी होकर चुकी थी। ऐसा लग रहा था कि जैसे घाटी सफेद चादर से ढक गयी थी। इस बार आप्रेशनल कमांड लेने मे मुझे अटपटा सा लग रहा था। ट्रेफिक और बर्फ के कारण बारामुल्ला शहर पहुँचने मे मुझे डेढ़ घन्टा लग गया था। आधा घन्टा आप्रेशन्स की टीम और उस मकान को चिन्हित करने मे निकल गया था। कोम्बेट युनीफार्म के कारण मै उनसे आबादी वाले हिस्से मे सीधे संपर्क भी नहीं कर सकता था। सर्दी के कारण कुछ दुकाने ही खुली हुई दिख रही थी परन्तु सड़क पर भीड़-भाड़ नहीं थी। इक्के-दूक्के लोग सर्दी से बचने के लिये कांगरी थामे किसी काम से बाहर निकले थे। हमने सड़क किनारे एक छोटी सी चाय की दुकान के अन्दर डेरा डाल कर बैठ गये थे। मेरी नजर उस मकान पर टिकी हुई थी जहाँ आप्रेशन्स की टीम ने मोर्चाबंदी लगा रखी थी। सब कुछ फिलहाल शान्त दिख रहा था परन्तु हम सभी मुठभेड़ के लिये पोजीशन लेकर तैयार बैठे हुए थे। …सुजान सिंह किसी तरह उस मकान पर पहुँच कर मेजर यादव को हमारी पोजीशन की जानकारी दे दो। …जी जनाब। इतना बोल कर जैस ही वह हिला कि मेरी नजर एक दिशा मे चली गयी थी। मै दबी आवाज मे बोला… हाल्ट। सुजान सिंह के कदम वहीं पर जम गये थे।

एक काले शीशे वाली सफेद मारुति वैन हमारे सामने से निकल कर आप्रेशन्स टीम के मकान के सामने जाकर रुक गयी थी। उसके वैन के रुकते ही सब सचेत हो गये थे। आप्रेशन्स टीम भी हरकत मे आ गयी थी। कुछ मिनट के बाद उस वैन मे से एक आदमी उतरा और चारों ओर नजर डाल कर कुछ कदम आगे बढ़ा और फिर न जाने क्या हुआ कि वह तेजी से वापिस लौटते हुए हवा मे हाथ हिलाते हुए चिल्लाया… खतरा। भागो यहाँ से। अगले ही क्षण वैन तेज गति से आगे बढ़ गयी थी। जब तक वह वैन उस आदमी के पास पहुँच पाती तब तक आप्रेशन्स के स्नाईपर की एक गोली ने उसका काम तमाम कर दिया था। फायरिंग की आवाज गूंजते ही सड़क पर अफरातफरी मच गयी थी। वह वैन जब तक हमारी आँखो के सामने से ओझल होती तभी सामने से फौज का शक्तिमान ट्रक एक मकान की आढ़ से निकल कर अचानक वैन के रास्ते मे आ गया था। वैन ने तुरन्त ब्रेक मारे और अगले ही पल मोड़ काटते हुए खिड़की से दो एके-47 बाहर निकली और आप्रेशन्स टीम की दिशा मे अन्धाधुन्ध फायरिंग करते हुए ड्राइवर ने वैन को कच्चे मे उतार कर निकलने का प्रयास किया। तब तक हमारी फोर्सेज तुरन्त एक्शन मे आ गयी थी।

बर्फ की चादर से ढकी हुई धरती पर फिसलन होने के कारण वैन अपने झोंक मे कच्चे मे उतर कर पहाड़ से नीचे उतरती चली गयी थी। हम भी तैयार बैठे थे और अपनी जीप मे तुरन्त सवार होकर उस वैन के पीछे चल दिये। उबड़ खाबड़ पथरीले पहाड़ से नीचे उतरते हुए हम उस वैन का पीछा कर रहे थे। दूसरी ओर से स्पेशल फोर्सेज की जीप भी मे उस वैन के पीछे पहाड़ से उतर कर घेरने की कोशिश कर रही थी। बुरहान का एन्काउन्टर आरंभ हो गया था। स्पेशल फोर्सेज ने पहले उस वैन के एक पहिये को निशाना बनाया जिसके कारण वैन ने एक ओर झुकते हुए अपना बैलेंन्स खो दिया और ढलान की दिशा मे लुढ़क गयी। …हाल्ट। मै जोर से चिल्लाया और मेरी जीप बर्फ पर फिसलती हुई कुछ दूर जा कर रुक गयी थी।  हम तेजी से जीप से उतर कर लुड़कती हुई वैन के पीछे कोम्बेट फार्मेशन बना कर चल दिये थे। तब तक स्पेशल फोर्सेज की टीम भी दूसरी ओर से उस वैन को कवर कर रही थी। एक सपाट स्थान पर वैन पहुँच कर छत के बल स्थिर खड़ी हो गयी थी। मुश्किल से एक मिनट के लिये वह हमारी नजरों के सामने से ओझल हुई थी लेकिन जब तक हम वैन तक पहुँचे तब तक तीन साये तेजी से जंगल की ओर बढ़ते हुए दिखायी दिये। स्पेशल फोर्सेज की टीम ने भी उन सायों को देख लिया था। उनके टीम लीडर ने हमले का इशारा करते हुए हमे उनका पीछा करने का हाथ से इशारा किया और फिर अपने दो सैनिकों को उस वैन पर छोड़ कर वह अपनी टीम को लेकर दूसरी दिशा मे निकल गया था। मै समझ गया कि वह उनको घेरने का इंतजाम कर रहा था। हम तेजी से उन तीनो के पीछे चल दिये थे।

वह बार-बार मुड़ कर हमारी ओर देख कर आगे बढ़ते चले जा रहे थे। हमारे कपड़े व जूते बर्फ पर चलने के लायक नहीं थे लेकिन उसकी चिन्ता किये बिना हमे उनका पीछा करते हुए बीस मिनट से ज्यादा हो गये थे। अचानक दूसरी दिशा से एक स्नाईपर फायर हुआ और आगे बढ़ते हुए उन तीनो मे से एक जिहादी उसी क्षण अपनी हिस्से की हूरों से मिलने के लिये निकल गया था। मै उसी समय समझ गया था कि वह दोनो अब स्पेशल फोर्सेज की जद मे आ गये थे। उन दोनो जिहादियों का ध्यान हमारी ओर लगे होने के कारण वह स्पेशल फोर्सेज की टीम की निशानदेही नहीं कर सके थे। अब वह अपने बचाव की मुद्रा मे बर्फ पर लेट कर आगे बढ़ने लगे थे। तलहटी पर ज्यादा बर्फ होने के कारण अब हमे भी आगे बढ़ने मे कठिनाई हो रही थी। घुटने तक बर्फ मे धंसे हुए थे। हमारे पाँव ठंड से सुन्न हो गये थे। कोम्बेट जैकेट के नीचे हमने एक ऊनी स्वेटर पहना हुआ था जो अब तक गीला हो चुका था। बस दिन होने के कारण एक ही राहत थी कि वह दोनो अभी भी हमारी नजरों के सामने थे परन्तु हमारे बीच का फासला कम होता हुआ नहीं दिखाई दे रहा था।

…सुजान सिंह क्या उनको इतनी दूरी से घायल किया जा सकता है? …जनाब, हमारे पास एके-203 आटोमेटिक वेपन है। इतनी दूरी से लेटे हुए व्यक्ति को घायल करना नामुमकिन है। स्नाइपर राइफल होती तो घायल कर सकते थे। मेरे हाथ मे मेरी ग्लाक थी लेकिन वह दोनो उसकी रेन्ज से बाहर थे। मै अभी अगले एक्शन के बारे मे सोच ही रहा था कि तभी एक के बाद एक चार फायर हुए और दोनो बर्फ पर सरकते हुए जिहादी शान्त हो गये थे। जब तक मै उनके पास पहुँचा तब तक वह औंधे मुँह निर्जीव स्थिति मे बर्फ पर पड़े हुए थे। आठ सैनिकों का स्पेशल फोर्सेज का दस्ता अलग-अलग दिशाओं से निकल कर हमारे सामने आ गया था। …मेजर बट। मैने धीरे से सिर हिलाते हुए अभिवादन करके पूछा… मेजर यादव। …यस सर। …कितने जिहादी थे? …इस आप्रेशन मे वैन मे दो, तीन ट्रेल मे और एक सड़क पर मारे गये है। …इनकी शिनाख्त करना जरुरी है। क्या बुरहान मारा गया? …सर, पाँच मिनट दिजिये। इतना बोल कर यादव ने अपने टू-वे स्पीकर पर निर्देश देना आरंभ कर दिया था। मुश्किल से तीन मिनट के बाद यादव ने बताया कि बुरहान इस एन्काउन्टर मे मारा गया लेकिन जाकिर राशिद बट उन मरने वालो मे नहीं था। उन तीन भागते हुए जिहादियों मे पहला मरने वाला बुरहान मुज्जफर वानी था। मेरा काम यहाँ पर समाप्त हो गया था। मैने मेजर यादव से विदा ली और अपनी टीम को लेकर वापिस श्रीनगर की ओर चल दिया था।

वहाँ से लौटते हुए दिल मे एक मलाल था। बुरहान मेरा शिकार था लेकिन मेरे हाथ से यह मौका निकल गया था। आज की कार्यवाही की कमजोरियों के विषय मे सोच रहा था। मुझसे पहली गलती तो आप्रेशन की कमांड न लेने के कारण हुई थी। अगर पूरी तैयारी के साथ समय से पहले पहुँच गया होता तो मेजर यादव को निर्देश देने की स्थिति मे होता। मै भलि-भाँति जानता था स्पेशल फोर्सेज सिर्फ मृत जिहादियों को इकठ्ठा किया करते है। वह स्ट्राईक फोर्स होती है जिन्हें जिहादियों को घायल या आत्मसमर्पण करने के लिये कभी प्रशिक्षित नहीं किया जाता। दूसरी गलती मुझसे यह हुई थी कि मै बिना टू-वे संचार माध्यम के स्पेशल फोर्सेज की टीम से अलग होकर काम कर रहा था। इन गलतियों के कारण मै हया नाम की आप्रेटिव के बारे मे बुरहान से पूछताछ भी नहीं कर सका था। इसी बात का अफसोस मुझे सारे रास्ते रहा था। हम शाम होने से पहले श्रीनगर लौट आये थे। ठंड के कारण सारा जिस्म अकड़ गया था। श्रीनगर मे प्रवेश करते ही ब्रिगेडियर चीमा का फोन आ गया था। वह आफिस मे मेरा इंतजार कर रहे थे।

आफिस पहुँचते ही मै ब्रिगेडियर चीमा से मिलने चला गया था। …कान्ग्रेच्युलेशन्स मेजर। आज बुरहान का अन्त हो गया। …यस सर। …मेजर यादव ने बताया कि तुम्हारी टीम उनकी मदद के लिये समय पर पहुँच गयी थी। …यस सर। लेकिन जाकिर राशिद बट अभी भी फरार है। …वह भी मिल जाएगा। अब आगे क्या सोचा है? …सर, अपनी अगली पोस्टिंग का इंतजार कर रहा हूँ। …मेजर, नीलोफर हमारे लिये रोज नयी परेशानी खड़ी कर रही है। अब वह दबाव डाल रही है कि उसके दो ट्रक को छोड़ दिया जाये जिससे वह जमात पर अपनी पकड़ मजबूत कर सके। तुम जानते हो कि दो ट्रक उनके हवाले करने का क्या नतीजा होगा। …सर, आप ठीक कह रहे है लेकिन यह भी तो सच है कि जब तक फारुक वापिस नहीं आता तब तक नीलोफर ही जमात और उससे जुड़ी हुई तंजीमों को हमारे निर्देश अनुसार नियन्त्रित कर सकती है। उसके लिये हमे भी उसकी मदद करनी पड़ेगी। बस हमे इस बात का ख्याल रखना होगा कि उन ट्रक्स मे हथियार नहीं होने चाहिये। …तुम एक बार उससे क्यों नहीं मिल लेते? …सर, इन हालात मे मेरा उससे मिलना ठीक नहीं होगा। कुछ देर नीलोफर की कार्यशैली के बारे मे बात करके मै अपने फ्लैट पर चला गया था।

फ्लैट मे प्रवेश करते ही मेरा सामना तबस्सुम से हो गया था। …आप मुझे बताये बिना कहाँ चले गये थे? मैने जल्दी से कहा… तुम्हारे सभी सवालों का जवाब कुछ देर मे दे दूँगा। इतना कह कर मै अपने कमरे मे चला गया था। गर्म पानी से नहा कर सबसे पहले मै तरोताजा हुआ। जिस्मानी ठिठुरन को शान्त करके जब मै बाहर निकला तो तबस्सुम सोफे पर बैठी हुई मेरा इंतजार कर रही थी। …कुछ खाने के लिये है? उसने कोई जवाब नहीं दिया बस उठ कर दोपहर का खाना गर्म करके टेबल पर रख कर बोली… आप बिना बताये कहाँ चले गये थे। खाना खाते हुए मैने कहा… तबस्सुम मै सारा दिन आफिस मे व्यस्त था। तुम सो रही थी इसलिये तुम्हें डिस्टर्ब करना नहीं चाहता था। अब तुम्हें मेरे साथ रहना है तो इसकी आदत डालनी पड़ेगी। वह कुछ नहीं बोली और चुपचाप सिर झुकाये बैठी रही। …क्या तुम जन्नत और आस्माँ के पास जाना चाहती हो? वह जल्दी से उठी और अपने कमरे मे जाते हुए बोली… नहीं। अब अकेले रहने की आदत डालनी पड़ेगी। मैने कुछ नहीं कहा और खाना खा कर चुपचाप आज की कार्यवाही के बारे मे सोचने बैठ गया। मेरे दिमाग मे बस हया का नाम घूम रहा था। बुरहान की मौत से उसको जोड़ने वाली आखिरी कड़ी भी टूट गयी थी। अब हया का कैसे पता किया जाये? थकान अब दिमाग पर हावी हो रही थी। अदा से कुछ देर बात करके मै सोने चला गया था।

अगले दिन रोजमर्रा की तरह तैयार होकर जब बाहर निकला तो मेरा सामना तबस्सुम से हो गया था। मुझे कमरे से बाहर निकलते देख कर वह उठ कर किचन की ओर जाने लगी तो मैने उसे रोक कर कहा… तुम भी मेरे साथ नाश्ता कर लो। …अभी नहीं। इतना बोल कर वह रसोईये के पास चली गयी। कुछ देर मे नाश्ता मेज पर लग गया था। मै नाश्ता कर रहा था कि तभी मेरे फोन की घंटी बजी तो मैने जल्दी से फोन लिया… हैलो। …समीर। नीलोफर की आवाज सुनते ही सामने खड़ी तबस्सुम को चुप रहने का इशारा करके स्पीकर का बटन दबा कर मैने पूछा… कैसे याद आ गयी? …मुझे पता चला है कि कल तुमने हिज्बुल के बुरहान का एन्काउन्टर कर दिया। …हाँ। बड़े दिनो से उसके पीछे लगे हुए थे। कल वह हमारे हत्थे चढ़ गया। क्यों तुम्हें कोई तकलीफ है? …नहीं। …तो किसलिये फोन किया? …समीर, क्या तुमने ब्रिगेडियर साहब से मेरे बारे मे बात करी? …हाँ। मैने बात की थी परन्तु तुम जानती हो कि वह मेरे बास है और मै उन पर कोई दबाव नहीं डाल सकता। कुछ समय दोगी तो वह शायद तुम्हारी मदद करने के लिये राजी हो जाएँगें। …ठीक है लेकिन ज्यादा देर नहीं होनी चाहिये। …नीलोफर, क्या तुमने हया नाम की आईएसआई आप्रेटिव का नाम सुना है? वह कुछ पल चुप रही और फिर धीरे से बोली… हाँ। मैने यह नाम सुना है। तुम उसके बारे मे क्यों पूछ रहे हो? …क्या वह इस सेक्टर मे अभी भी सक्रिय है? …नहीं। मै समझ गया कि अगर इसे मालूम होगा तो भी यह नहीं बतायेगी तो मैने बात समाप्त करने हेतु जल्दी से कहा… अगर कोई और काम नहीं है तो फोन काट रहा हूँ। मुझे आफिस पहुँचना है। बस इतना बोल कर मैने फोन काट दिया था। मैने जल्दी से नाश्ता समाप्त किया और सामने खड़ी तबस्सुम की ओर देख कर बोला… मै आफिस जा रहा हूँ। अब तो ठीक है। वह बोली कुछ नहीं बस इस बात पर मुस्कुरा दी थी। मेरी टीम मेरा बाहर इंतजार कर रही थी। जीप मे सवार होते ही हम आफिस की दिशा मे निकल गये थे।

आफिस पहुँचते ही ब्रिगेडियर चीमा ने मुझे अपने आफिस मे बुला कर कहा… मेजर, आज सुबह मेरे पास तुम्हारे ट्रांस्फर के निर्देश मिले है। तुम्हें राष्ट्रीय रक्षा अकादमी मे जल्दी से जल्दी रिपोर्ट करना है। मुझे खुशी है कि तुम्हे वहाँ काम करने का मौका मिला है। वहाँ पर तुम्हें बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। इतना बोल कर उन्होंने आर्डर मेरी ओर बढ़ा दिया था। मैने वह आर्डर अपनी जेब मे रख कर कहा… सर, आपके साथ काम करके मैने भी बहुत कुछ सीखा है। …मेजर, कभी मेरी जरुरत पड़े तो बेहिचक कहना। …यस सर। थैंक यू। मैने उन्हें सैल्युट किया और जैसे ही उनके कमरे से बाहर निकलने के लिये बढ़ा कि उन्होंने ने पूछा… मेजर तुम कुछ दिन पहले तंगधार किस सिलसिले मे गये थे। कुछ दिनो से मै इस सवाल का उचित जवाब तलाश कर रहा था। मैने मुस्कुरा कर पूछा… सर, आपके पास इसकी खबर पहुँच गयी। …सर्विंग आफीसर किसी अनजान स्त्री के साथ निषेध हिस्से मे पाया जाता है तो उसका प्रमाणित करने के लिये रुटीन पेपरवर्क मे दर्ज करना होता है। मेरे आफिस को बीएसएफ की ओर से सूचना मिली थी। …यस सर, जन्नत अपने अब्बा की तीसरी बरसी पर उनकी कब्र पर फातिहा पढ़ने की जिद्द कर रही थी। उसको लेकर वहाँ गया था। अचानक बर्फबारी होने के कारण लौटने मे उस दिन देर हो गयी थी। …कौन जन्नत? …सर वही बक्खरवाल समाज की लड़की जिसने हमे मुजफराबाद का रास्ता दिखाया था। तीन साल पहले लश्कर के आतंकवादियों ने उसके अब्बा की हत्या तंगधार के पास एक पहाड़ी पर की थी।  …अच्छा वह लड़की। नेवर माइन्ड। मै इस बात का सत्यापन करके बीएसएफ को भिजवा दूँगा। इतनी बात करके मै उनसे इजाजत लेकर मै बाहर आ गया था।

अपने आफिस पहुँच कर मैने अपना ट्रांस्फर आर्डर पढ़ा तो पता चला कि अकादमी मे रिपोर्ट करने के लिये मेरे पास अभी एक हफ्ते का टाइम था। उसके बाद तो समय को जैसे पंख लग गये थे। अगले दो दिन हम दोनो बस इसी काम मे व्यस्त रहे कि कौन सा सामान गेस्ट हाउस जाएगा और कौन सा सामान मेरे साथ दिल्ली जाएगा। तीसरे दिन आर्मी के ट्रक द्वारा सारा सामान मैने अपने गेस्ट हाउस भिजवा दिया था। मेरे साथ दिल्ली जाने वाला सामान सारा फौज से जुड़ा हुआ था जैसे कि मेरी युनीफार्म, हथियार और आफिस मे रखा हुआ सामान था। मेरे कंप्युटर की हार्ड ड्राईव निकाल कर मुझे सौंप दी गयी थी। मेरी टीम के सभी सदस्यों को भी नयी पोस्टिंग मिल गयी थी। एक तरह से मेरी छोटी सी युनिट छिन्न-भिन्न हो गयी थी। बस उन सबके लिये एक अच्छी बात हुई थी कि सभी को तीन साल के लिये फैमिली स्टेशन मिल गया था। चौथे दिन तक मेरी जाने की तैयारी सम्पन्न हो गयी थी।

मकान का चार्ज क्वार्टरमास्टर के हवाले करके हम दोनो अपने घर पर आ गये थे। अगले दो दिन मेरा सारा समय शमा बट फाउन्डेशन के काम मे निकल गया था। कार्यक्रमों का बजट और उसके अनुसार बैंक से पैसे निकालने का अधिकार वगैराह जैसी चीजों मे सारा समय निकल गया था। जन्नत और आस्माँ ने कुछ सोच कर निर्णय लिया था कि वह मेजर हसनैन के साथ मिल कर अपने बक्खरवाल समाज के लिये काम करेंगी। दिल्ली जाने की तारीख नजदीक आती जा रही थी। एक शाम सारा काम समाप्त मैने तबस्सुम से पूछा… तुमने मेरे साथ रह कर देख लिया है। क्या दिल्ली मे इसी तरह रह सकोगी? तबस्सुम कुछ नहीं बोली तो मैने पूछा… क्या तुम यहाँ इनके साथ रहना चाहती हो? उसने एक बार मेरी ओर देखा और फिर धीरे से बोली… अब मेरे लिये सब कुछ बेमानी है। नसीब ने मुझे जब आपके साथ बाँध दिया है तो अब किस बात का गिला करना। उसने अपने अनुसार अपना जवाब सुना दिया था।

अगले दिन मै सुबह जल्दी तैयार हो कर आफिस मे मेजर हसनैन का इंतजार कर रहा था। उनके आते ही मैने कहा… मेजर साहब, मै यह जीप अपने साथ ले जा रहा हूँ। मेरे सामान का ट्रक से दिल्ली के लिये निकल चुका है। जैसे ही मेरे लिये वहाँ किसी ट्रांस्पोर्ट का इंतजाम हो जाएगा, इस जीप को वापिस आपके पास भिजवा दूँगा तब तक आप अपने लिये किसी दूसरे ट्रांस्पोर्ट का इंतजाम कर लिजियेगा। मकबूल बट की तिजोरी से जो रुपये पैसे निकले थे उसका बन्डल बना कर मैने उनके हाथ मे रखते हुए कहा… यह मकबूल बट के पैसे है। एक एन्काउन्टर के कारण उसके मकान मे काफी टूट-फूट हो गयी थी। मैने उनके हाथ मे पता देते हुए कहा कि इस पैसे से उसके मकान को आप ठीक करा दिजियेगा। रहमत ने तब तक मेरा सारा सामान जीप मे रख दिया था। मेजर हसनैन से बात करके जैसे ही मै अपनी जीप की ओर बढ़ा तो मेरी नजर तबस्सुम पर पड़ी जो पहले से ही जीप मे बैठी हुई थी। जन्नत और आस्माँ से मिलकर मै जीप मे बैठा और दिल्ली की ओर चल दिया था।

हम शाम तक जम्मू पहुँच गये थे। मैने पठानकोट मे रुकने का निर्णय लिया था। अगले दिन देर रात को हम दिल्ली पहुँच गये थे। उस रात होटल मे गुजार कर अगली सुबह मै अपनी ड्युटी पर रिपोर्ट करने के लिये राष्ट्रीय रक्षा कालेज पहुँच गया था। कागजी कार्यवाही पूरी करने मे दोपहर हो गयी थी। अकादमी के कैंम्पस मे फ्लैट मिलने मे कुछ दिन लगेंगें सुन कर मैने अपने रहने का प्रबन्ध  कुछ दिनों के लिये आफीसर्स मेस के गेस्ट हाउस मे करवा लिया था। शाम तक हम दोनो आफीसर्स मेस के गेस्ट हाउस मे आ गये थे। अगले दिन से रोजमर्रा की जिन्दगी आरंभ हो गयी थी। सुबह से शाम तक मेरा समय कालेज मे कटता और उसके बाद आफीसर्स मेस पहुँच कर तबस्सुम को दिल्ली घुमाने ले जाता था। दिल्ली की चमक-दमक देख वह पहले कुछ दिन तो वह चकरा कर रह गयी थी। एक शाम मै उसे हिन्दी फिल्म दिखाने के लिये सिनेमा घर भी ले गया था। उसके चेहरे से कभी-कभी ऐसा लगता कि जैसे वह किसी तिलिस्मी दुनिया मे आ गयी थी और कभी वह बेहद गमगीम और उखड़ी हुई लगती। उसके साथ रहने के कारण तबस्सुम और मेरे बीच बातचीत का सिलसिला आरंभ हो गया था। उसकी झिझक और घबराहट भी धीरे-धीरे कम होती जा रही थी। अभी तक तिकड़ी की ओर से कोई खबर नहीं मिली थी। कोडनेम वलीउल्लाह  पर काम आरंभ करने से पहले उन लोगों से बात करना जरुरी था तो कालेज मे मेरा सारा समय सिर्फ नीलोफर से मिली हुई लिस्ट मे दिये गये नामों के बारे मे जानकारी इकठ्ठा करने मे निकल रहा था। एक दो रोज मे मेरी बात आफशाँ, अदा और मेजर हसनैन से हो जाती थी। ब्रिगेडियर चीमा से पता चला था कि मकबूल बट की हालात ज्यों की त्यों बनी हुई थी।

कोडनेम वलीउल्लाह अभी भी मेरे लिये रहस्य बना हुआ था। यह मेरी समझ से बाहर था कि इस रहस्य की परत को कहाँ से खोलना आरंभ किया जाये। बस ऐसे ही हमारे दिन बीतते जा रहे थे।

 

मुजफराबाद

पीरजादा अपने आलीशान कमरे मे कदम रखते हुए गुस्से से जोर चिल्लाया… पठान। एक साढ़े छ: फुटा दैत्य जैसा पठान कमरे मे प्रवेश करते हुए बोला… जी मालिक। …मसूद अजहर अल्वी को फौरन मिलने के लिये खबर करो। …जी मालिक। इतना कह कर पठान वापिस चला गया था। जबसे जनरल मंसूर बाजवा का संदेश मिला था तब से पीरजादा गुस्से से आग बबूला हो रहा था। उसने खबर भिजवाई थी कि तबस्सुम अपने यार के साथ सीमा पार भाग गयी थी। आईएसआई के लोग लड़की के यार के घरवालों को कब्जे मे लेकर पूछताछ कर रहे है। जैसे ही कोई खबर मिलेगी वह तुरन्त पीरजादा को इसकी जानकारी दे देंगें। वह गुस्से से बड़बड़ाया… साली छिनाल तूझे पाताल से ढूंढ कर ऐसी सजा दूँगा कि पूरी कौम के लिये वह मिसाल बन जाएगी। वह बार-बार अपनी मुठ्ठी भींच कर अपने अन्दर उत्पन्न कुंठा को प्रदर्शित कर रहा था। 

उसी स्थान से कोई डेड़ सौ मील दूर एक ट्रेनिंग कैम्प मे कुछ लोग के बीच बातचीत का दौर जारी था। जकीउर लखवी ने कहा… कश्मीर मे लश्कर को खबर कर दी है कि वह फारुख का पता लगा कर उसे ठिकाने लगाने की कोशिश करें। हमारा प्यादा इस वक्त जमात पर अपना शिकंजा कसने मे लगा हुआ है। सही वक्त आने पर मुन्नवर को जमात का मुखिया बना दिया जायेगा। …जनाब उससे पहले श्रीनगर से खबर आयी है कि रुपये और ड्रग्स की पहली इन्स्टालमेन्ट जल्द से जल्द भेजी जाये। उसके लिये आपको मंसूर बाजवा कi मदद लेनी पड़ेगी। लखवी ने अपनी दाड़ी पर हाथ फेरते हुए कहा… मेरी जियानी साहब से बात हो गयी है। काठमांडू के रास्ते से दो ट्रक माल श्रीनगर भेजा जा रहा है। …जनाब जैश का क्या करना है? …जैश को फिलहाल उस छिनाल को ढूंढने दो। पीरजादा अपनी कौम पर पकड़ मजबूत रखने के इरादे से उस छिनाल को बचकर जाने नहीं देगा। बस हमे इसी बात का फायदा उठा कर आप्रेशन खंजर की कमान अपने हाथ मे लेनी है। जिस तंजीम के हाथ मे आप्रेशन खंजर की कमान होगी वही कश्मीर का आगे चल कर मालिक बनेगा। …इंशाल्लाह।

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही खूबसूरत अंक और समीर का आखिरी मिशन (अभी के लिए) कश्मीर में खतम हुआ मगर कुछ गलती के चलते उसको अपने कुछ सवालों को लेकर ही दिल्ली जाना पड़ रहा है, अब देखना है की दिल्ली में फिर कैसा माहोल होता है और समीर उस में ढल पाता है की नही।अदा भी शायद अब दिखने लगेगी उसकी दिल्ली ट्रांसफर के बाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. अल्फा भाई, इसी के साथ 'काफ़िर' की पहली कड़ी समाप्त हो गयी है। दिल्ली के सत्ताधीशों और सत्ता के गलियारों की झलक देखने के लिये इसकी अगली कड़ी 'गहरी चाल' से जुड़ने की कोशिश किजियेगा। इतने दिन साथ निबाहने के लिये धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं