रविवार, 25 सितंबर 2022

 

 

काफ़िर-3

 

बोर्ड की परीक्षा देने के बाद हमारे सिर पर से पढ़ाई का भार हट गया था परन्तु आफशाँ के कम्पटीशन की परीक्षा की तैयारी निरन्तर चल रही थी। इन सबके बीच सेब का सीजन भी आरंभ हो गया जिसके कारण मुख्य रुप से मेरा काम अपने सेब के बागों की देखरेख का हो गया था। घर और सेबों के बीच मै उलझ कर रह गया था। अंधेरे मे घर से निकलता और जब तक थक हार कर घर लौटता तब तक सब सो चुके होते थे। जब कभी बाग नहीं जाना होता तब अम्मी को लेकर श्रीनगर मे स्थित सेबों के व्यापारियों के आफिस के चक्कर लगाने मे व्यस्त हो जाता था। उस दिन के बाद आयशा भी कभी मेरे सामने नहीं आयी थी। उसके घर के सामने से निकलते हुए हर बार उससे मिलने की चाह उग्र रुप ले लिया करती परन्तु उसके अब्बू और भाई के बारे मे सोचते ही सारी चाहत पल भर मे ही काफुर हो जाती थी।

बोर्ड की परीक्षा का नतीजा किसी भी दिन आ सकता था। इसी कारण हम तीनों के चेहरे पर डर के बादल मंडरा रहे थे। घर मे सिर्फ आलिया ही चारों ओर कूदती फांदती दिखाई देती थी। एक रोज हम तीनों मे कमरे मे बैठ कर बोर्ड की परीक्षा और उसके बाद आगे क्या करने के संधर्भ की बहस मे उलझे हुए थे कि अचानक अम्मी की आवाज हमारे कान मे पड़ी… आफशाँ तेरी सहेली आयी है। हम तीनो चुप हो गये और आफशाँ जल्दी से उठ कर कमरे से बाहर निकल गयी थी। …समीर, सच बता कि तू आगे क्या करने की सोच रहा है? अदा के प्रश्न ने मुझे यथार्थ की दुनिया मे ला कर पटक दिया था। …इस बारे मे अभी मैने कुछ सोचा नहीं है। वैसे भी इन नतीजों का मुझ पर क्या फर्क पड़ने वाला है। अम्मी ने तो पहले से तय कर रखा है कि आगे चल कर मुझे सेब के बागों का काम संभालना है। …नहीं समीर, अगर तू इस काम मे लग गया तो अब्बू तुझे जमात के काम मे उलझा देंगें। मै कुछ बोलता उससे पहले आयशा ने कमरे मे प्रवेश करते हुए कहा… अदा, यह काम समीर के बस का नहीं है। वहाँ तो अरबाज और अनवर जैसे ही कामयाब हो सकते है। उसकी बात सुन कर एक पल के लिये मै झेंप गया परन्तु अगले ही उसके मुख से अनवर का नाम सुनते ही मेरे तन बदन मे आग लग गयी थी। दोनो सहेलियाँ मुस्कुराती हुई हमारे सामने आकर बैठ गयी थी। मै आयशा को कुछ गुस्से मे बोलना चाहता था परन्तु आफशाँ और अदा के सामने मेरी आवाज नहीं निकल सकी थी। तीनो लड़कियों को वहीं छोड़ कर मै उठ कर कमरे से बाहर निकल गया था।

बाहर लान मे कुर्सी डाल कर अम्मी धूप सेक रही थी। खिन्न मन से चलते हुए मै उनके पास चला गया था। मुझे देखते ही अम्मी ने कहा… समीर, वह दोनो कहाँ रह गयी? मैने चौंक कर कहा… कौन? …आयशा और आफशाँ स्कूल जा रही थी। उनको क्या हुआ? मैने मुस्कुरा कर कहा… लड़कियों को बात करने से फुर्सत मिले तो वह स्कूल के बारे सोचे। तिकड़ी मेरे कमरे मे बैठी हुई है। …समीर, तू इन दोनो को स्कूल पर छोड़ कर गियासुद्दीन की दुकान से कुछ सामान ले आना। सामान की लिस्ट आफशाँ के पास है। इतना बोल कर अम्मी आँख मूंद कर बैठ गयी। मै कुछ नानुकुर करता उससे पहले आफशाँ की आवाज मेरे कान मे पड़ी… चल समीर। हमे स्कूल जाना है। अम्मी अपना फरमान सुना चुकी थी इसलिये मै चुपचाप जीप की ओर चल दिया।

कुछ दूर निकलने आयशा ने कहा… आफशाँ तू स्कूल से हम दोनो के सर्टीफिकेट निकाल लेना और मै कोचिंग क्लास से दोनो के सर्टिफिकेट निकाल लूँगी। मैने जल्दी से कहा… मै तुम दोनो को स्कूल के बाहर छोड़ दूँगा क्योंकि मुझे गियासुद्दीन की दुकान से सामान लाना है। आफशाँ ने भड़कते हुए कहा… तो क्या हुआ। जब तक आयशा कोचिंग क्लास से सर्टीफिकेट लेगी तब तक तू गियासुद्दीन की दुकान से सामान खरीद कर इसे लेकर वापिस स्कूल आ जाना। क्या तू चाहता है कि हम बसों मे धक्के खाते हुए घर पहुँचे। आफशाँ की एक घुड़की से मेरी जुबान को ताला लगा दिया था। स्कूल के बाहर आफशाँ को छोड़ कर मै कोचिंग क्लास की दिशा मे चल दिया। कुछ दूर निकलने के आयशा ने धीरे से कहा… उस दिन के बाद न तो तू मिला न ही तू ने कोई बात की। क्या मेरी किसी बात से नाराज है? मैने कोई जवाब नहीं दिया तो वह मेरे पास सरक कर आ गयी और मेरी बाँह पकड़ कर बोली… समीर, मुझसे बात नहीं करेगा। एक पल चुप रहा और फिर चिड़ कर कहा… क्या तुझसे अनवर की बात करुँ? मेरा कटाक्ष सुन कर वह सिर झुका कर बैठ गयी थी। गुस्से मे बोलने के तुरन्त बाद ही मुझे लगा कि मुझे ऐसे नहीं बोलना चाहिये था। आगे का रास्ता चुपचाप कटा और आयशा को कोचिंग क्लास के बाहर छोड़ कर मै गियासुद्दीन की दुकान की ओर चला गया था।

जब सारा सामान जीप मे लदवा कर वापिस कोचिंग क्लास पर पहुँचा तो आयशा सड़क के किनारे खड़ी हुई मेरा इंतजार कर रही थी। उसके जीप मे बैठते ही हम स्कूल की दिशा मे चल दिये थे। बड़ी हिम्मत करके मैने धीरे से कहा… आयशा। वह मुझे अनसुना करके बाहर देखती रही तो मैने एक बार फिर से कहा… आयशा मुझे माफ कर दे। इस बार उसने सिर घुमा कर मेरी ओर देखा तो मैने जल्दी से कहा… आई एम सौरी। वह कुछ पल एकटक मुझे घूरती रही फिर बोली… समीर, जीप को एक किनारे मे खड़ी कर दे। मैने तुरन्त जीप को धीमी करते हुए एक किनारे मे खड़ी कर दी थी। अबकी बार वह धीरे से बोली… तू मुझे फाहिशा और बदचलन समझता है। मैने जल्दी से कहा… हर्गिज नही। मै तेरे बारे ऐसा सपने मे भी नहीं सोच सकता। यह सही है कि उस दिन तुझे अनवर के साथ देख कर मेरा दिल टूट गया था। मुझे पता था कि आयशा मुझे अभी भी घूर रही है लेकिन मेरी हिम्मत उस से आँख मिलाने की नहीं हो रही थी। अचानक वह बोली… समीर, जीप स्टार्ट कर और चल जल्दी। आफशाँ इंतजार कर रही होगी। आफशाँ का नाम सुनते ही मै तुरन्त हरकत मे आ गया और जीप स्टार्ट करके स्कूल की ओर चल दिया।

…तूझे पता है कि मै तुझसे उम्र मे बड़ी हूँ। मैने जीप चलाते हुए धीरे से कहा… तो क्या हुआ? अनवर भी तो मेरा सहपाठी है। …तू निरा बेवकूफ है। वह अरबाज की उम्र का है। मैने चकरा कर उसकी ओर देखा तो वह मुस्कुरा कर बोली… मुझे नहीं पता कि तू मुझ पर फिदा था। मैने झेंपते हुए कहा… मेरे स्कूल के सभी लड़के तुझ पर फिदा है। तुझसे दोस्ती करने के लिये तो वह छुट्टी होने से पहले तेरे स्कूल के बाहर चक्कर लगा रहे होते है। …मैने तुझे तो अपने स्कूल के बाहर कभी नहीं देखा। उसकी बात सुन कर मेरी रही सही हिम्मत भी जवाब दे गयी थी। स्कूल करीब आ गया था। मैने जल्दी से कहा… तेरे स्कूल मे मेरी चार बहनें पढ़ती है और अगर किसी एक ने भी मुझे तुम्हारे स्कूल के बाहर खड़ा देख लिया तो सोच ले मेरे घर पर मेरी कैसी गत बनेगी। स्कूल आ गया है प्लीज इस बात का जिक्र आफशाँ के सामने कभी मत करना। वह जल्दी से बोली… ठीक है लेकिन आज शाम को मुझे उसी पुलिया के पास मिलना। मै जब तक कोई जवाब देता तब तक जीप स्कूल के गेट के पास पहुँच गयी थी। जीप को देख कर आफशाँ तुरन्त सड़क पर आ गयी और जैसे ही जीप रुकी तो वह जल्दी से जीप मे सवार होते हुए बोली… इतनी देर कैसे लग गयी? मैने जल्दी से कहा… गियासुद्दीन की दुकान पर आज बहुत भीड़ थी। कुछ ही पलों मे दोनो सहेलियाँ अपनी बातों मे व्यस्त हो गयी थी। मै उन दोनो को लेकर घर की ओर चल दिया।

शाम हो गयी थी। मै कमरे से बाहर निकला तो मेरी नजर बाहर लान मे बैठी हुई अम्मी और तिकड़ी पर पड़ गयी थी। मै चलते-चलते ठिठक कर रुक गया। मेरी सारी उम्मीदों पर पानी फिरता हुआ दिख रहा था। मै कुछ सोच पाता कि तभी कारों और लोगों से भरी हुई जीपों का काफिला हमारे दरवाजे पर रुका तो एकाएक लान मे भगदड़ मच गयी थी। अम्मी को वहीं छोड़ कर तिकड़ी तेजी से कमरे की ओर निकल गयी थी। अगले कुछ पलों मे लोहे का गेट खोल कर अब्बू आते हुए दिख गये थे। बिना किसी से बात किये अब्बू अपने साथियों को लेकर बैठक की ओर बढ़ गये थे। अम्मी उठ कर रसोई की ओर चली गयी थी। बाहर निकलने का मौका देख कर मै तेज कदमों से चलते हुए घर के बाहर निकल गया था। सड़क पर जमात के कार्यकर्ताओं का जमघट लगा हुआ था। सभी से बचते-बचाते हुए मै पुलिया की दिशा मे निकल गया।

शाम गहरी हो गयी थी। पुलिया के पास पहुँच कर मैने अपनी नजरें चारों ओर दौड़ायी लेकिन आसपास कोई नहीं था। कुछ देर पुलिया के पास चहलकदमी करने के बाद जब आयशा नहीं दिखी तो वापिस लौटने के लिये जैसे ही मुड़ा तभी एक साया झाड़ियों के बीच से निकला और मेरा हाथ पकड़ कर झाड़ियों के पीछे खींच लिया। …आयशा! …बेवकूफ, वहाँ क्या कर रहा था। पिछली बार भी मै झाड़ियों के पीछे तेरा इंतजार कर रही थी। मेरे मुख से कोई आवाज नहीं निकली बस मै एकटक उसे देख रहा था। आज वह बुर्के के बजाय हिजाब मे थी। …क्या देख रहा? मेरी दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। मैने झिझकते हुए कहा… तू बहुत खूबसूरत है। वह मुस्कुरा कर मेरे सिर पर चपत लगा कर बोली… बेवकूफ, आफशाँ मुझसे कहीं ज्यादा खूबसूरत है। मै कुछ बोलता उससे पहले मेरा हाथ पकड़ कर लगभग खींचते हुए बोली… चल उस ओर वहाँ पर इस वक्त कोई खतरा नहीं होगा। मै उसके साथ चल दिया। नाले के साथ एक छोटी सी पगडंडी पर चलते हुए हम कुछ ही देर मे एक शान्त सी जगह पर पहुँच गये थे। पहाड़ी नाला वहाँ से थोड़ी दूरी पर बह रहा था। एक साफ सी जगह देख कर वह बैठते हुए बोली… यह जगह ठीक है। एक नजर घुमा कर मैने उस स्थान का अंधेरे मे जायज़ा लिया तो वह जगह हमारे घरों के पीछे तराई का हिस्सा लग रही थी। मै उसके साथ चुपचाप बैठ गया।

…समीर। …हुँ। …तू मुझ पर फिदा है? …हुँ। …कुछ बोलेगा या सिर्फ ऐसे ही बैठा रहेगा? अबकी बार अपनी सारी झिझक और शर्म की तिलांजली देकर मैने जल्दी से कहा… आयशा, बहुत दिनो से कहना चाहता था लेकिन कहने की हिम्मत नहीं हुई। मै तुझसे मोहब्बत करता हूँ। वह चुपचाप मेरी ओर देखती रही और फिर धीरे से मेरा हाथ थाम कर बोली… समीर, कभी तो एक बार मुझसे अपने दिल की बात कहता। मैने हमेशा तुझे आफशाँ के भाई के रुप मे देखा है। मै चुप रहा तो वह धीरे से बोली… उस दिन अनवर के साथ देख कर क्या अब भी तू मुझसे मोहब्बत करने की सोच सकता है। उसके सवाल का जवाब देने की हिम्मत मुझमे नहीं थी। उसका हाथ मेरे हाथ मे था लेकिन मै कुछ भी बोलने की स्थिति मे नहीं था। अचानक वह बोली… समीर, अब सब कुछ पहले जैसे नहीं रहा। कसम से अगर मुझे तूने पहले एक इशारा भी किया होता तो मै अपनी जान तेरे नाम कर देती लेकिन अब बहुत देर हो गयी है। उसने मेरा चेहरा अपने दोनो हाथों मे लिया और मेरी आँखों मे झाँकते हुए बोली… समीर, तुझे मेरी कसम। उन लोगों का साथ छोड़ दे। अनवर अपने साथ दोस्तों के साथ कुछ महीनो के लिये सीमा पार जा रहा है। मैने उसकी ओर चौंक कर देखा तो वह तुरन्त बोली… तेरे और मेरे बीच मे अब कभी अनवर नहीं होगा। तेरे साथ मेरा दिल का रिश्ता है। इतना बोल कर वह मुझ पर झुकी और धीरे से मेरे होठों पर उसने अपने होंठ रख दिये थे। हमारे होंठों के स्पर्शमात्र से ही मेरे जिस्म मे एक बिजली कौंध गयी थी। मेरे लिये समय रुक गया था। कुछ पल के बाद वह अलग होते हुए बोली… यह हमारी आखिरी मुलाकात है। उसकी बात सुन कर मुझे गहरा धक्का लगा… क्यों? …समीर, मुझे यह गम जिन्दगी भर रहेगा कि मैने नादानी मे क्या खो दिया। न चाहते हुए भी अनवर का साया हमारे बीच मे हमेशा रहेगा इसीलिये यही हम दोनो के लिये अच्छा होगा। इतना बोल कर वह खड़ी हो गयी और तेजी से चलते हुए अंधेरे मे गुम हो गयी। मै कुछ देर वहीं बैठ कर बदले हुए हालात और अपने लुटे हुए अरमानों को संजोता रहा फिर उठ कर अपने घर की ओर चल दिया।

हमारे घर के बाहर भीड़ छंट चुकी थी। मैने दबे पाँव घर मे कदम रखा तो बैठक से अब्बा की दहाड़ती हुई आवाज कानों मे पड़ी… शमा, कल मुझे दो लाख रुपये चाहिये। मै दीवार के किनारे अंधेरे मे छिप कर खड़ा हो गया। अम्मी की आवाज मुझे साफ सुनाई दी… अभी दो दिन पहले ही तो आप पाँच लाख लेकर गये थे। ऐसे अगर खर्च करेंगें तो कुछ ही दिन मे हम सब सड़क पर आ जाएँगें। …बकवास मत करो। राजनीतिक पार्टी चलाने के लिये बहुत पैसे चाहिये। मुझे अगले हफ्ते सीमा पार जाना है। उसके लिये तैयारी करनी है। …कुछ अपने बच्चों के भविष्य के बारे मे भी सोच लिजिये। …अगर पैसों की कमी हो रही है तो एक बाग बेच दो। अम्मी की गुस्से मे आवाज गूँजी… हर्गिज नहीं। क्या आपको लगता है कि मुझे नहीं मालूम कि आप किस पर पैसे लुटा रहे है। बस इतना ही सुन सका था कि कमरे से मारने पीटने की आवाज आने लगी थी। मै अपने आप को रोक नहीं सका और तेजी से अम्मी के कमरे की ओर बढ़ा लेकिन तभी अंधेरे से निकल कर तिकड़ी ने मेरा रास्ता रोक लिया और वह मुझे पकड़ कर कमरे मे ले गयी। कमरे मे घुसते ही रुआँसी आवाज मे आफशाँ ने कहा… क्या कर रहा है समीर? …आफशाँ, वह अम्मी को मार रहे है तो मै कैसे चुप होकर बैठ जाऊँ। एक साथ तिकड़ी रोते हुए मुझे समझाने बैठ गयी और बेबस होकर वहीं बैठ गया। उस रात हम काफी देर तक चुपचाप बैठे रहे थे।

अगली सुबह जब अम्मी ने उठाया तो घर मे सब कुछ सामान्य सा लग रहा था। …समीर, बैंक जाना है सो जल्दी से तैयार होजा। मै तैयार होने चला गया और हम सब एक बार फिर से अपने रोजमर्रा कार्यों मे व्यस्त हो गये थे। बैंक से लौटते हुए अम्मी ने एक नोटों का बंडल मेरे हाथ मे थमाते हुए कहा… मुझे घर पर छोड़ कर यह बंडल अपने अब्बू के पास पहुँचा देना। नोटों का बंडल हाथ मे पकड़ते ही कल रात की बात का रोष मेरी जुबान पर एकाएक आ गया… अम्मी, मै उनके पास नहीं जाऊँगा। मै जानता हूँ कि कल उन्होंने आपके साथ क्या किया था। गुस्से मे मेरी आवाज भर्रा गयी और बेबसी से मेरी आँखे छलक गयी थी। अम्मी ने प्यार से मेरी पीठ सहलाते हुए कहा… बेटा तू जल्दी से बड़ा होकर यह सारा काम संभाल लेगा तो तेरे अब्बा के अत्याचारों से मैं भी बच जाऊँगी। अपनी अम्मी को सांत्वना देते हुए मैने कहा… अम्मी, आप चिन्ता मत किजीए। यह बंडल कहाँ पहुँचाना है? एक पल के लिये अम्मी कुछ बोलने से झिझकी और फिर धीरे से बोली… आलम साहब के घर पर तेरे अब्बू इस बंडल का इंतजार कर रहे होंगें। …अपनी कोलोनी के बैंक वाले आलम साहब? …हाँ। अम्मी को घर के बाहर छोड़ कर मै आलम साहब के घर की ओर चल दिया।

हमारी कोलोनी के दूसरे छोर पर आलम साहब का घर था। मैने जैसे ही दरवाजे की घंटी बजाई तो कुछ पलों के बाद आलम साहब की बेटी शहनाज बाहर निकली और मुझे देखते ही चिड़ कर बोली… यहाँ किस लिये आया है? मै शहनाज को जानता था। वह आसिया के साथ पढ़ती थी। बोर्ड की परीक्षा के बाद उसने आगे पढ़ने से मना कर दिया था। आज उसके रंगढंग मुझे बदले हुए लग रहे थे। मैने हवा मे बंडल लहराते हुए कहा… अब्बू को यह बंडल देना है। वह दरवाजे से चिल्लायी… मकबूल साहब, समीर आया है। एक पल के लिये उसके मुख से अब्बू का नाम सुन कर मै चौंक गया था। जब तक हालात को समझ पाता तब तक अब्बू बाहर आते हुए दिखे तो मै सावधान हो गया। उन देख कर मैने धीरे से नजरें झुका कर कहा… सलाम अब्बू। …पैसे ले आया? …जी। इतना कह कर मैने नोटों का बंडल अब्बू के आगे कर दिया था। उन्होंने बंडल लेते हुए कहा… एक बार फिर से कह रहा हूँ कि जमात से जुड़ने का यही समय है। पढ़ाई करके तूने कौनसा लाट साहब बनना है। मेरे साथ काम करेगा तो यह लोग तेरी गुलामी करेंगें। मैने नजरें उठा कर अब्बू की ओर देखा तो वह शहनाज के कंधे पर बड़ी आत्मीयता के साथ हाथ रख कर मुझसे बात कर रहे थे। मैने जल्दी से कहा… मुझे इजाजत दिजीये। खुदा हाफिज। वह कुछ बोलते मै मुड़ कर अपने घर की दिशा मे चल दिया लेकिन शहनाज की चुलबुली हँसी मेरे कानों पड़ गयी थी।

अम्मी लान मे बैठी हुई मेरा इंतजार कर रही थी। मुझे देखते ही उन्होंने पूछा… अब्बू मिल गये? …जी अम्मी। नोटों वाला बंडल उनके हवाले कर दिया है। …वह और कुछ बोले? …वह एक बार फिर से मुझे जमात के साथ जुड़ने के लिये कह रहे थे। …तूने क्या कहा? …कुछ नहीं। इतनी बात करके मैने अपने कमरे की ओर रुख किया। मेरे कमरे मे पहले से ही तिकड़ी मोर्चा खोल कर बैठी हुई थी। मुझे देखते ही आफशाँ ने पहला सवाल दागा… समीर, क्या यह सच है कि अब्बू आजकल शहनाज के साथ रह रहे है? मैने बस अपना सिर हिला दिया और अपने बेड पर लेट गया। आज जो कुछ भी देखा था वह मुझे काफी अटपटा सा लग रहा था। कुछ सोचते हुए मैने कहा… पता नहीं क्यों लेकिन शहनाज को देख कर ऐसा लगता है वह अब्बू के काफी करीब है। तभी अदा ने दबे हुए स्वर मे कहा… तो यह बात अफवाह नहीं अपितु सच है कि अब्बू ने दूसरा निकाह कर लिया है। उसकी बात सुनते ही मै झट से उठ कर बैठते हुए चौंक कर बोला… शहनाज से दूसरा निकाह? एकाएक तिकड़ी के बीच दबे हुए स्वर मे बहस आरंभ हो गयी थी।

मेरी आँखों के सामने कुछ महीने पहले का एक दृश्य घूम रहा था। जमात-ए-इस्लामी द्वारा छात्रों के लिये आयोजित एक कार्यक्रम में अनवर और फईम मुझे अपने साथ लेकर गये थे। उस कार्यक्रम मे जमात के युवा मोर्चे के कुछ छात्र नेताओं ने इस्लामिक जिहाद पर तकरीर करने के बाद एक पाकिस्तान से आये हुए मौलवी साहब के साथ मंच साझा किया था। उस मौलवी ने सीमा पार प्रशिक्षण के लिये सभी छात्रों को आमंत्रित करते हुए जन्नत का जिस तरह से वर्णन किया उसको सुनने के पश्चात शायद ही कोई होगा जो जमात-ए-इस्लामी से जुड़ना नहीं चाहता होगा। साथ ही सीमा पार जाने हर छात्र को पाँच हजार रुपये की छात्रवृत्ति देने का वादा भी किया जा रहा था। उसके बाद सभी लोग जमात का सदस्यता फार्म भरने मे व्यस्त हो गये थे। फार्म भरने के लिये अनवर और फईम ने मुझ पर बहुत दबाव डाला परन्तु अम्मी की हिदायत को याद करके उन्हें वहीं छोड़ कर मै चुपचाप बाहर निकल आया था।

उसी शाम को मैने पहली बार अब्बू को आलम साहब के घर के बाहर शहनाज के साथ देखा था। उस वक्त मुझे लगा कि शायद वह आलम साहब से बैंक के सिलसिले मे मिलने आये होंगें परन्तु इस रहस्योद्धाटन के पश्चात तो मेरी सारी सोच उलट गयी थी। शहनाज हमारे घर अकसर पढ़ाई के सिलसिले मे आसिया के साथ आती थी। इसी कारण हम सब उससे परिचित थे परन्तु इसके बारे मे तो कोई सोच भी नहीं सकता था। …समीर! अम्मी की आवाज गलियारे मे गूंजी तो एकाएक सभी सावधान हो गये थे। मै उठ कर बाहर जाने के लिये खड़ा हुआ था कि अम्मी ने कमरे मे प्रवेश करते हुए कहा… तेरे दोस्त बाहर बुला रहे है। तिकड़ी के सवाल-जवाब से बचने की मंशा से जल्दी से मै कमरे से बाहर निकल गया। गलियारे मे पहुँचते ही मेरी नजर लोहे के गेट के पर पड़ी जहाँ अनवर और फईम मेरा इंतजार कर रहे थे। उनको वहाँ खड़ा हुआ देख कर एक पल के लिये मै चौंक गया था।

अनवर और फईम आजतक कभी मेरे घर मे नहीं आये थे। वह दोनो हमेशा बाहर पुलिया पर ही मिला करते थे। अब्बू का खौफ मुझ पर ही नहीं मेरे दोस्तों पर भी काफी था। उनके पास पहुँच कर मैने दबे हुए स्वर मे पूछा… तुम दोनो यहाँ क्या कर रहे हो? अनवर ने जल्दी से कहा… अपनी जीप निकाल क्योंकि हमे कहीं पहुँचना है। …नहीं यार, मै जीप नहीं निकाल सकता क्योंकि अम्मी मुझे इसकी इजाजत हर्गिज नहीं देंगी। दोनो एक पल के लिये सकते मे आ गये लेकिन फिर फईम ने कहा… जीप को छोड़ हमारे साथ चल। मुझे समझ मे नहीं आ रहा था कि वह क्या करना चाह रहे है। मैने एक बार मुड़ कर देखा तो अम्मी गलियारे मे खड़ी हुई हमे देख रही थी। …अम्मी, मै पुलिया तक जा रहा हूँ। कुछ देर मे वापिस आ जाउँगा। यह बोल कर मैने गेट खोला और बाहर निकल गया। कुछ दूर चलने के बाद मैने रुक कर पूछा… क्या चक्कर है? अबकी बार अनवर ने जवाब दिया… यार तुझे याद होगा कि हमने उस दिन जमात का फार्म भरा था। आज सुबह ही उन्होंने खबर की है कि कल वह हमे चार हफ्ते के लिये सीमा पार भेज रहे है। क्या तुझे भी बुलाया है? …मैने उनका फार्म ही नहीं भरा था तो भला वह मुझे क्यों बुलायेंगे। एकाएक दोनो चलते-चलते रुक गये थे। उनके चेहरे पर अब डर साफ झलक रहा था।

फईम ने अविश्वास से मुझे घूरते हुए पूछा… तूने फार्म नहीं भरा था। …नहीं। अनवर ने एक भद्दी सी गाली देकर कहा… यार हम दोनो इनके चक्कर मे फँस गये। मैने उनसे मना करने की कोशिश की थी तो वह धमकी देकर गये है कि कल अगर हम जमात के आफिस मे नहीं पहुँचे तो वह मेरे परिवार का समाजिक बहिष्कार कर देंगें। फईम ने भी उसकी हाँ मे हाँ मिलाते हुए कहा… यार, वह यही बात मुझसे भी कह कर गये है। हम बात करते हुए पुलिया तक पहुँच गये थे। उस पुलिया के एक किनारे पर बैठते हुए मैने पूछा… इसमे भला मै क्या कर सकता हूँ? …यार तू अपने अब्बा से बात करके सारे मामले को रफा-दफा करवा दे। हम सीमा पार जाना नहीं चाहते। अब्बू का जिक्र आते ही मै उठ कर खड़ा हो गया था। …पागल हो गये हो क्या, इस बारे मे बात की तो अब्बू मेरी खाल खींच लेंगें। इसमे मै तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता। सारी दोस्ती को पल भर मे तिलांजली देकर दोनो ने एक साथ ही मुझ पर गालियों की बौछार कर दी थी।

सारी भड़ास निकालने के बाद फईम ने पूछा… क्या तेरे अब्बू के अलावा इस मामले मे हमारी कोई और इंसान मदद कर सकता है। कुछ सोच कर मैने कहा… काजी साहब का बेटा अरबाज जमात के युवा मोर्चे का लीडर है। एक बार उससे बात करके देख लो। दोनो ने एक स्वर मे कहा… वही साला तो आज सुबह हमे धमकी देकर गया था। एक बार फिर हम तीनों इस मुसीबत से बचने के बारे मे चर्चा करने बैठ गये थे। …अगर तुम दोनो अरबाज की दी हुई धमकी के बारे मे उसके अब्बू काजी इमरान साहब को बता दोगे तो शायद वह तुम्हारी इस मामले मे कोई मदद कर दें। दोनो को मेरा सुझाव तुरन्त पसन्द आ गया और उठते हुए बोले… शाम की नमाज के बाद उनसे बात करके देख लेते है। बस इतना बोल कर दोनो वापिस चले गये थे। मै अपने घर की ओर चल दिया था।

तिकड़ी लान मे बैठ कर मेरा इंतजार कर रही थी। मुझे देखते ही आफशाँ ने पूछा… वह दोनो यहाँ किस लिये आये थे। बात को टालते हुए मैने कह दिया… वह पूछने आये थे कि परीक्षा का नतीजा कब तक आ जाएगा। आलिया ने तुरन्त कहा… समीर झूठ बोल रहा है। वह इसको बुरी-बुरी गालियाँ दे रहे थे। मैने अपने कानों से सुना है। अनवर ने तो इसे धक्का देकर सड़क पर गिरा दिया था। तीनों मुझे घूर रही थी और मुझे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। एकाएक मैने दबे स्वर मे जल्दी से कहा… रात को कमरे पर सब बात दूँगा। अगर अम्मी को पता चल गया तो वह बहुत नाराज होंगी। मेरे मामले मे तिकड़ी मे अभी भी एकता थी। हमारी बात हमारे बीच मे रहती थी और अपने ज्यादातर मसले हम आपस मे ही सुलझा लिया करते थे। इसी कारण हम मे से किसी की शिकायत अम्मी और अब्बू के सामने सिर्फ घर के बाहर से ही पहुँच पाती थी। पहले आसिया हमारी लीडर थी और अब आफशाँ के कन्धे पर यह भार आ गया था। आफशाँ ने कहा… अब चुप हो जाओ। रात को बात करेंगें। मैने चैन की साँस ली क्योंकि मामला रात तक टल गया था।

रात को खाना खाने के पश्चात अम्मी अपना सारा काम निपटा कर जब अपने कमरे मे चली गयी तब आफशाँ और आलिया ने हमारे कमरे मे प्रवेश किया था। मै और अदा उन दोनो का इंतजार कर रहे थे। …अब बता समीर क्या बात थी? मैने जमात की मीटिंग से लेकर अरबाज की धमकी तक की सारी बात उनके सामने खोल कर रख दी थी। …तू उस मीटिंग मे क्यों गया था? …बस ऐसे ही अपने दोस्तों के साथ चला गया था। मेरा कोई खास मकसद नहीं था। किसी ने कुछ नहीं कहा बस तीनो गहरी सोच मे डूब गयी थी। कुछ देर के बाद आफशाँ ने कहा… समीर, इन लोगो का साथ छोड़ दे वर्ना एक दिन किसी बड़ी मुसीबत मे फँस जाएगा। तभी अदा ने उसकी बात काट कर कहा… अब्बू भी हमारे स्कूल मे लड़कियों को जमात से जोड़ने के लिये एक तकरीर देने के लिये आये थे। मैने जल्दी से पूछा… तुम मे से किसी ने तो वह फार्म नहीं भर दिया था? …जब मुझे यहाँ रहना ही नहीं है तो मै वह फार्म क्यों भरती। हम सभी जानते थे कि आफशाँ ने कश्मीर से बाहर निकलने का फैसला बहुत पहले से कर रखा था। हमारी महफिल कुछ देर के बाद बर्खास्त हो गयी और वह दोनो अपने कमरे मे वापिस चली गयी थी।

अपने बिस्तर पर लेटते हुए मैने पूछा… अदा, तूने तो वह फार्म नहीं भर दिया था। अपने लिहाफ से सिर निकाल कर वह बोली… तुझसे बिना पूछे तो मै वह फार्म नहीं भरती। क्यों क्या तू मुझे बिना बताये वह फार्म भर देता? …नहीं। एक बार फिर से कमरे मे शांति छा गयी थी। मेरे मन मे लगातार एक बात शाम से खटक रही थी। मुझे समझ मे नहीं आ रहा था कि इस बारे मे किस से बात करुँ। मै उठ कर अदा के बेड की ओर चला गया और उसके सिरहाने के पास खड़ा होकर पूछा… अदा सो गयी क्या? उसने अपना चेहरा लिहाफ से निकाल कर मेरी ओर देख कर बोली… क्या नींद नहीं आ रही है? …नहीं, मुझे एक बात परेशान कर रही है। क्या अब्बा पाकिस्तान के लिये काम करते है? मेरी बात सुन कर वह उठ कर बैठ गयी और मेरा हाथ पकड़ कर अपने साथ बैठाते हुए बोली… तू ऐसी बात उनके बारे कैसे सोच सकता है। …जब वह अम्मी से लड़ रहे थे तो उन्होंने कहा था कि वह किसी काम के लिये सीमा पार जा रहे है। उनकी जमात के लोग अनवर और फईम जैसे लड़कों को प्रशिक्षण देने के लिये सीमा पार भेज रहे है। यहाँ पर तैनात भारतीय फौज आये दिन यहीं के लोगों को सीमा पार से आये आतंकवादी समझ कर गोली मार रही है। अब मुझे अब्बू के लिये डर लगने लगा है। मैने अपने मन की बात अदा के सामने खोल कर रख दी थी। अदा को देर तक जब कोई जवाब नहीं सूझा तब उसने कहा… तू बेकार अपना दिमाग इसमे लगा रहा है। अब्बू ऐसा कभी नहीं कर सकते है। उसकी बात सुन कर मेरा मन कुछ शांत हुआ और मै वापिस अपने बिस्तर पर आकर लेट गया था।

अगले दो दिन मै अम्मी के साथ सेब के व्यापारियों के आफिसों मे चक्कर लगाने मे व्यस्त रहा था। इस बीच मे अनवर और फईम की ओर से कोई खबर नहीं मिली थी। जुमे के रोज आफिस बन्द होने के कारण मै आराम से उठ कर तैयार हुआ और नाश्ता करने के बाद कुछ देर बाहर टहलने के लिये निकल गया था। रोजमर्रा की तरह तिकड़ी अपने काम मे व्यस्त थी। बाहर निकल कर पुलिया की ओर जाते हुए एकाएक अनवर और फईम का ख्याल आया तो मेरे कदम ठिठक कर रुक गये थे। पिछले दस साल से साथ होने के बावजूद उनके घर का पता मुझे मालूम नहीं था। बस इतना जानता था कि अनवर के अब्बू का टायरों का काम था। हम लोगों का साथ स्कूल और मदरसे तक ही रहता था। वह दोनो मुझे पुलिया पर छोड़ कर आगे निकल जाते थे। आसिया और आफशाँ की सहेलियाँ बोर्ड की परीक्षा के कारण पिछले दो सालों से हमारे घर आने लगी थी। शायद अब्बू के कारण हमारे सभी साथी आरंभ से ही हम से दूरी बना कर रखते थे। बहुत सोचने के बाद भी जब कोई हल समझ मे नहीं आया तो अरबाज से उनकी जानकारी लेने के लिये मै काजी साहब के घर की ओर मुड़ गया।

काजी इमरान साहब का घर हमसे कुछ मकान छोड़ कर था। जुमे की नमाज का समय हो गया था। काजी साहब तो घर पर नहीं होंगें और यही सोच कर मैने उनके द्वार पर लगी हुई घंटी का बटन दबा दिया। काजी साहब की नौकरानी ने दरवाजा खोल कर बाहर की ओर झाँका तो मैने जल्दी से उसके सामने आकर कहा… मै पड़ोस के बट साहब के मकान मे रहता हूँ। क्या अरबाज घर पर है? तभी बालकोनी से आयशा ने बाहर झांका और मुझे देखते ही बोली… समीर क्या काम है? …मुझे अरबाज से काम है। क्या वह घर पर है? …रुक मै नीचे आती हूँ। यह बोल कर वह ओझल हो गयी और उसकी नौकरानी दरवाजा खोल कर अन्दर चली गयी। कुछ देर के बाद आयशा दरवाजे पर आकर बोली… अन्दर चल। मैने मना करते हुए पूछा… अरबाज से मिलना था। क्या वह घर पर है? …वह यहाँ नहीं है। दो दिन पहले वह अब्बा के काम से एक महीने के लिये बाहर गया है। मैने दबे हुए स्वर मे पूछा… सीमा पार? आयशा ने जल्दी अपना सिर हिला दिया तो इसके आगे बिना कोई बात किये उससे विदा लेकर मै अपने घर की ओर वापिस चल दिया था।

कुछ कदम चलने के बाद पता नहीं क्या सोच कर अपने घर के बजाय आलम साहब के घर की ओर मुड़ गया। मेरे दिमाग मे कल रात के प्रश्न घूम रहे थे। मुझे अब्बू के लिये चिन्ता सताने लगी थी। दो महीने पहले ही हमारे पड़ौस मे रहने वाले सैयद साहब को उनके घर से भारतीय फौज ने गिरफ्तार किया था। वह श्रीनगर कोरपोरेशन मे अधिकारी थे। उनकी गिरफ्तारी के बाद हमारी कोलोनी मे ही नहीं अपितु पूरे शहर मे बहुत से राजनीतिक दलों ने हंगामा किया परन्तु आज तक सैयद साहब का पता नहीं चल सका था। जैसे ही मै आलम साहब के घर की सड़क पर पहुँचा तो वहाँ अफरातफरी मची हुई थी। पुलिस और सेना के अधिकारी सैयद साहब के मकान की तलाशी मे जुटे हुए थे। सैयद साहब का परिवार सड़क पर खड़ा हुआ रोते हुए खुदा की दुहाई दे रहा था। शहनाज भी अपने घर से बाहर निकल कर सैयद साहब की बेइज्जती और बर्बादी की सारी कार्यवाही देख रही थी। मै जैसे ही कुछ कदम आगे बढ़ा तो शहनाज की नजर मुझ पर पड़ गयी थी। वह तेजी से मेरी ओर बढ़ी और मेरा हाथ पकड़ कर खींचते हुए मुख्य सड़क की दिशा मे चल दी थी।

मुख्य सड़क पर पहुँचते ही वह घुर्रा कर बोली… तू वहाँ क्या करने आया था? मैने अपना हाथ छुड़ाते हुए जल्दी से कहा… अब्बू से मिलने आया था। …वह घर पर नहीं है। …शहनाज वह कब से बाहर है? अचानक उसने घूम कर एक तमाचा मेरे गाल पर जड़ते हुए कहा… अबसे तमीज से बात करना सीख ले। एकाएक वार ने मुझे पल भर के लिये स्तब्ध कर दिया था। उसकी बात सुन कर मेरा ध्यान आसपास की ओर चला गया था। चारों ओर देखने पर जब आश्वस्त हो गया कि सड़क पर कोई नहीं था तो बीच सड़क पर हुई बेइज्जती से मेरा जिस्म गुस्से से काँपने लगा और मैने झपट कर उसका हाथ मरोड़ कर उसे पेड़ की आढ़ मे घसीटते हुए घुर्राया… आज तेरे इस हाथ को तोड़ दूँगा। तेरी इतनी हिम्मत कि तू मुझे मारेगी। वह दर्द से तड़प कर चीखी… कमीने तेरे अब्बू से कह कर तेरी खाल खिंचवा दूँगी। मेरा हाथ छोड़ नहीं तो शोर मचा कर लोगों को इकठ्ठा कर दूँगी। मैने अपनी पकड़ ढीली करते हुए कहा… मुझे क्यों मारा जबकि मै तुझसे कुछ पूछ रहा था? पकड़ ढीली होते ही वह छिटक कर मुझसे दूर होते हुए रुआंसी होकर बोली… क्या तूझे पता नहीं कि अब हमारा क्या रिश्ता है। मैने झेंपते हुए पूछा… तू ही बता दे कि हमारे बीच क्या रिश्ता है? अबकी बार वह सपाट स्वर मे बोली… मै तेरी अम्मी लगती हूँ। आगे से मुझसे इज्जत से बात किया कर। मेरा रोष अब मेरी आवाज मे झलक रहा था। …शहनाज, तूझे यह बोलते हुए शर्म नहीं आ रही है। मेरी अम्मी ने तुझे बिन माँ की बच्ची समझ कर हमेशा आसिया के सामान स्नेह दिया और आज तू उनकी बराबरी करने की कोशिश कर रही है। अगर अभी भी कहीं शर्म बची हो तो जाकर डूब मर। इतना कह कर मै उसे वहीं छोड़ कर चल दिया था। …समीर। उसने आवाज दी तो एक पल के लिये रुक गया था। वह मेरे करीब आयी और धीरे से बोली…  तेरे अब्बू दो दिन पहले शहर से बाहर गये है। मैने उसकी ओर मुड़ कर भी नहीं देखा और अपने घर की दिशा मे चल दिया।

बुझे मन से जैसे ही मैने घर मे प्रवेश किया तो मेरा सामना अम्मी से हो गया था। …समीर इस वक्त कहाँ घूम रहा था। तुझे पता है कि आजकल यहाँ के हालात खराब चल रहे है। …अम्मी, सैयद साहब के घर की तलाशी लेने के लिये पुलिस और फौज के लोग आये हुए है। उनके परिवार वालों को घर से बाहर निकाल कर पूछताछ चल रही है। अम्मी ने जल्दी से हाथ उठा कर कहा… खुदा रहम कर। फिर मेरा हाथ पकड़ कर कमरे की ओर चलते हुए बोली… इसीलिये तो कह रही थी कि घर से बाहर मत निकला कर। तभी तिकड़ी से हमारा सामना हो गया और मुझे देखते ही आफशाँ ने पूछा… जनाब सारा दिन कहाँ घूम रहे थे? मै कोई जवाब देता तभी अम्मी ने कहा… तुम तीनो भी सुन लो कि अबसे कोई घर के बाहर फिजूल बात के लिये नहीं निकलेगा। उन तीनो ने मेरी ओर देखा तो मैने जल्दी से कहा…सैयद साहब के घर पर पुलिस और फौज का छापा पड़ा है। अम्मी मुझे वहीं उनके पास छोड़ कर अपने कमरे की ओर चली गयी थी। मैने अपने कमरे की ओर रुख किया कि तभी अदा ने पूछा… किससे थप्पड़ खा कर आया है? मै कुछ बोलता उससे पहले आलिया बोली… ऐसे ही आवारागर्दी करेगा तो किसी फौजी ने मारा होगा।

तीनो मेरे साथ कमरे मे आ गयी और मेरे गाल को ध्यान से देखने मे लग गयी थी। धीरे से अपने गाल को सहलाते हुए मैने कहा… मुझे शहनाज ने थप्पड़ मारा था। मेरी बात सुन कर कुछ पलो के लिये तीनो सन्न खड़ी रह गयी थी। इससे पहले कोई पूछता मैने अब्बा की बात को छिपा कर पहले सैयद साहब के परिवार की हालत बता कर शहनाज के साथ घटित घटना की सारी जानकारी दे दी थी। तीनो चुपचाप सुनती रही और फिर कमरे से बाहर निकल गयी थी। मै अपने बिस्तर पर आँख मूंद कर लेट गया था। न जाने मेरी आँख कब लग गयी थी। एकाएक मेरी आँखों के सामने सैयद साहब के परिवार के लोगों के बेबस और डरे हुए चेहरे दिख रहे थे। तभी अचानक उनकी जगह मुझे अपने परिवार के चेहरे दिखाई दे रहे थे। मै चौंक कर उठ कर बैठ गया था। …क्या हुआ समीर? अम्मी की आवाज मेरे कान मे गूंजी तो मैने जल्दी से उनकी ओर देख कर कहा… कुछ नहीं अम्मी। एक बुरा सपना दे रहा था। मेरे सिर को धीरे से सहलाते हुए अम्मी ने कहा… सैयद साहब के परिवार की दशा देख कर घबरा गया है? कुछ पल चुप रहने के बाद मैने धीरे से अम्मी की ओर देख कर कहा… मुझे आप सभी की चिन्ता हो रही है। अम्मी कुछ देर चुप रही और फिर मेरे गाल को सहला कर बोली… समीर फिर कभी उस घर पर मत जाना। मैने एक बार अम्मी को ध्यान से देखा और फिर अपना सिर हिला दिया था। अम्मी मुझे वहीं छोड़ कर उठ कर खड़ी हो गयी और बाहर जाते हुए बोली… समीर, आज जीप का टैंक फुल करा लेना क्योंकि कल सुबह हमको बडगाम चलना है।   

अगली सुबह हम बडगाम जाने की तैयारी कर रहे थे कि एक घटना ने मेरी जिंदगी की दिशा और दशा बदल कर रख दी थी। मेरे सपनों का महल चूर-चूर हो कर बिखर गया था। सब कुछ जिसे मैने आज तक अपना समझ रहा था वह सब एकाएक पराया और अनजाना हो गया था। एक घटना ने मुझे अपने ही परिवार वालों की नजर मे काफ़िर बना दिया था।

7 टिप्‍पणियां:

  1. हमेशा की तरह धासु अपडेट भाई🙏

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    1. दोस्त आपके प्रेरणादायक शब्दों के लिये शुक्रिया

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    1. दोस्त हर रविवार को अगला अध्याय अपडेट करने की कोशिश करता हूँ

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  3. वीर भाई आपकी कलम बहुत ही जानदार है जब चलती है तो ऐसा समा बांध देती है की उसके कदम चिह्नो से नजरे ही नहीं हटती।

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