रविवार, 4 सितंबर 2022

 


 

काफ़िर -1

               

मेरी कहानी भी उसी वर्ष और उसी उच्चवर्गीय कोलोनी से आरंभ हुई थी। मेरा नाम समीर बट है। मेरी अम्मी हमेशा मेरा जन्म उस नरसंहार के परिणाम के रुप मे ही याद रखती थी। चार बहनों के बीच मै अकेला बेटा होने के कारण अपनी अम्मी और बहनों का हमेशा से लाडला रहा था। आसिया और आफशाँ मुझसे बड़ी थी और अदा और आलिया मुझसे छोटी थी। मेरे अब्बा मकबूल बट के होने या न होने से मेरी छोटी सी दुनिया पर कोई फर्क नहीं पड़ता था। वैसे भी उनका सारा समय घर से बाहर गुजरता था। उनके लौटते ही सारा घर शांत हो जाता और फिर देर रात तक हमारी बैठक मे लोगों का आना जाना लगा रहता था। इसीलिए उनकी जिन्दगी मे हमारे लिए और हमारी जिन्दगी मे उनके कोई जगह नहीं थी। मेरी अम्मी और बहनें ही मेरी दुनिया थी। इन से बाहर की दुनिया को मैने सिर्फ घृणा और हिकारत भरी नजरों से देखा था। शायद एक कारण वह औरत भी थी जो हमारे घर मे रहती जरुर थी परन्तु उसका हमसे कोई सरोकार नहीं था। वह हमेशा कमरें मे बंद रहती थी। मेरी अम्मी और अब्बा ही उसके कमरे जाया करते थे और बाकी सभी को उसके कमरे मे जाने की सख्त मनाही थी।  

उस औरत को दिन मे मैने हमेशा गुम सुम बैठा हुआ देखा था। बहुत बार रात मे उसकी दर्दनाक चीखें भी सुनी थी। उसकी चीखें सुन कर हम सभी बच्चे एक दूसरे का हाथ पकड़े लिहाफ मे दुबक जाया करते थे। कई बार हमने अम्मी से उस औरत के बारे मे पूछा भी था परन्तु वह हमेशा यह कह कर बात टाल देती… बेचारी दुखियारी है। उस नरसंहार मे इसका सब कुछ चला गया था। आसिया मुझसे चार साल बड़ी थी इसलिए उसे जल्दी अक्ल आ गयी थी। एक रात जब उस औरत की चीखें सुन कर हम लिहाफ मे दुबके हुए बैठे थे तब आसिया ने रहस्योद्घाटन किया कि अब्बा उस औरत मे छिपे हुए शैतान को निकालने के लिए पीट रहे है। तब से हमारे मन मे एक बात बैठ गयी थी कि उस औरत मे शैतान बैठा हुआ है। जब भी आसिया को बात मनवानी होती तो वह हमसे कहती कि उस औरत के कमरे मे छोड़ कर आ जाएगी तो हम सब उसकी बात तुरन्त मान लेते थे।  

आसिया और आफशाँ उम्र मे बड़ी होने के कारण मुझ पर जान छिड़कती थी। अदा मेरी दोस्त की तरह हमेशा छाया की तरह मेरे साथ रहती थी और आलिया से हर बात पर तकरार होती थी। हमारे बीच सुबह से शाम तक कई बार किसी न किसी बात पर तकरार होती परन्तु आज तक हमारी कोई शिकायत अम्मी तक नहीं पहुँचती थी। आसिया ही हमारे सारे झगड़े सुलझा दिया करती थी। जब भी हम पाँचों मे से किसी एक से भी कोई गलती या नुकसान हो जाता तो हम सभी अम्मी के सामने सिर झुका कर खड़े हो जाते थे। बच्चों पर अब्बा के गुस्से की गाज गिरने से पहले अम्मी हमेशा ढाल की तरह उनके सामने खड़ी हो जाती थी। सभी की स्कूली पढ़ाई भी आरंभ हो गयी थी। चारों ने लड़कियों के स्कूल मे जाना आरंभ कर दिया था और मुझे लड़को के स्कूल मे भर्ती करा दिया था। रोज रात को सोने से पहले हम सब दिन भर की स्कूल की बातें सुनाया करते थे। समय के चक्र के साथ ऐसे ही कुछ छोटी-छोटी खुशियाँ आपस मे बाँटते हुए हमारा बचपन बीत रहा था।   

एक रात आसिया घबरायी हुई कमरे मे आयी और चुपचाप मेरे पास आकर बैठ गयी। उसका चेहरा लाल सुर्ख हो रहा था। उसकी साँसे तेज चल रही थी। …आसिया क्या हुआ? मैने धीरे से पूछा तो वह चौंक गयी थी। …तू अभी सोया नहीं? …तुम्हारे बिना मुझे नींद नहीं आती है। तुम कहाँ गयी थी और क्या हुआ? वह कुछ नहीं बोली बस मुझे अपनी बाँहों मे जकड़ कर लेट गयी थी। उत्तेजनावश उसका जिस्म काँप रहा था। उसकी जकड़ से आजाद होने के लिये मैने धीरे से उसके उभरे हुए सीने को धकेलते हुए अलग होना चाहा तो आसिया के मुख से दबी हुई एक आह निकल गयी थी। मैने जल्दी से फुसफुसा कर पूछा… तुम्हें क्या हो गया है? आसिया मेरे गाल पर बोसा देकर धीरे से मेरे कान मे बोली… समीर, मेरे सीने मे हल्का दर्द हो रहा है। प्लीज इन्हें थोड़ा सहला दे। मैने रबर जैसी गोलाईयों को धीरे-धीरे सहलाना आरंभ कर दिया। कुछ ही देर मे उसके मुख से अजीब सी आहें विस्फुटित होने लगी थी। एकाएक उसने मेरा हाथ पकड़ कर रोक कर कहा… समीर, अब ठीक हो गया। मै चुपचाप उसके उभरे हुए सीने मे एक बार फिर से मुँह छिपा कर लेट गया और उसकी बाँहे स्वत: मेरे इर्द-गिर्द लिपट गयी थी। सुबह तक मै सब कुछ भूल गया था।

कुछ दिन बाद मै स्कूल से लौटा तो देखा कमरे मे आसिया और आफशाँ किसी गहरी चर्चा मे डूबी हुई थी। मुझे देखते ही दोनो चुप हो गयी तो मैने पूछा… क्या हुआ? …कुछ नहीं समीर। यह बोल कर दोनो कमरे से बाहर चली गयी। मै भी अपना बैग पटक कर उनके पीछे चला गया। मुझे अपने पीछे आता हुआ देख कर आसिया ने कहा… समीर एक बात कहूँ तो किसी को बताएगा तो नहीं। …नहीं, क्यों क्या हुआ? आसिया ने आफशाँ की ओर देखा और वह कुछ बोलती कि तभी आफशाँ जल्दी से बोली… आसिया ने अब्बा को उस औरत के अन्दर छिपे हुए शैतान को बाहर निकालते हुए देखा है। यह सुन कर मै चौंक गया था। उस औरत के नाम से हम सभी बेहद खौफ खाते थे। मैने हैरानी भरे स्वर मे पूछा… तुमने यह कब देख लिया? दोनो कुछ नही बोली और एकटक मेरी ओर देखती रही और फिर वापिस कमरे मे चली गयी। मै उनके पीछे कमरे मे आ गया और बोला… आसिया एक बार मुझे भी देखना है। तभी अदा और आलिया ने कमरे मे प्रवेश किया तो आसिया ने मेरा हाथ कस कर दबा कर चुप रहने का इशारा किया।

…क्या देखना है समीर? अदा ने मुझसे पूछ लिया। अब बात दबानी दोनो के लिए भारी हो गयी थी। आफशाँ ने अदा से कहा… पहले दरवाजा बंद कर दे। अगले ही पल हम सिर जोड़ कर उसी औरत के अन्दर से शैतान भगाने की बात कर रहे थे। सभी अपनी ओर से समझने की कोशिश कर रहे थे परन्तु आसिया द्वारा वर्णित  क्रिया किसी के समझ मे नहीं आ रही थी। एकाएक आसिया ने कहा… समीर और अदा तुम दोनो अपने कपड़े उतारो। सर्दी के मौसम मे भला कोई कैसे कपड़े उतार सकता है। मैने जल्दी से कहा… नहीं इतनी ठंड मे तो बिल्कुल नहीं। तुम वैसे ही बता दो। एकाएक सारी लड़कियाँ मेरे कपड़े उतरवाने के पीछे पड़ गयी और आखिरकार उन्होंने मेरे कपड़े उतरवा कर ही दम लिया। थोड़ी देर मे अदा और मै जन्मजात नग्न उन तीनों के सामने खड़े हुए सर्दी से काँप रहे थे। आसिया ने उस रात हम दोनो के जरिए सभी को शैतानी ताकतों से लड़ने और उनको मार भगाने के रहस्य का पर्दाफाश किया था। उस दिन पता चला कि अल्लाह ने मुझे उस शैतान को मारने का हथियार दिया है और अदा के पास वह गुफा थी जहाँ शैतान छिप कर बैठ जाता है। उसी रात शैतान ने आसिया पर हमला कर दिया था।

अन्धेरे से डर लगने के कारण मै हमेशा आसिया के साथ सोता था। उस रात सोते हुए वह अचानक दर्द से तड़पते हुए उठी और अपना पेट पकड़ कर दोहरी हो गयी और उसको करहाते देख कर मै भी उठ गया था। मैने लाईट जलाई और अम्मी को बुलाने के लिए जा रहा था कि तभी मेरी नजर बिस्तर पर पड़ी तो मै चौंक गया। हमारी चादर खून से रंग गयी थी। उसकी शलवार की ओर इशारा करके मैने जल्दी से कहा… आसिया, तुम्हारी उसी जगह से खून निकल रहा है। इस हंगामे मे अब तक सारी चौकड़ी उठ कर बैठ गयी थी और हैरत से आसिया की शलवार से रिसते हुए खून को देख रही थी। उसे दर्द मे तड़पते हुए मै देख नहीं सका तो भाग कर अम्मी को बुलाने के लिए चला गया। अम्मी ने जब आसिया की हालत देखी तो वह मुस्कुरा कर बोली… घबराने की कोई बात नहीं है। वह आसिया को अपने साथ ले गयी और हम चुपचाप एक किनारे मे सहमे हुए खड़े रह गये थे। सबसे ज्यादा अदा और मेरी हालत खराब थी क्योंकि हमे लग रहा था कि अब शैतान का अगला हमला हम पर होगा। उस रात आसिया वापिस नहीं आयी लेकिन शैतान को भगाने के लिए हम सब इकठ्ठे हो कर मौलानाजी की कुछ रटी हुई आयतें बुदबुदाते रहे थे।

सुबह अम्मी ने आकर हमारे सहमे हुए चेहरे देख कर एक नया रहस्योद्घाटन किया कि आसिया बिल्कुल ठीक है और उस पर किसी शैतान ने हमला नहीं किया था अपितु अब वह बच्ची नहीं रही है। अम्मी ने प्यार से समझाया कि हर लड़की जब बचपन से जवानी मे कदम रखती है तो सभी के साथ ऐसा होता है। मेरी तीनों बहने आँखें फाड़ कर कौतुहलवश अम्मी की बातें ध्यान से सुन रही थी। तभी अदा ने पूछा… अम्मी, समीर को खून नहीं निकलेगा? एक पल के लिए अम्मी झेंप गयी और फिर मुझे अपनी बाँहों मे भर कर बोली… यह सिर्फ लड़कियों के साथ होता है। यह बात बता कर उस दिन पहली बार हमारी एकता को अम्मी ने छिन्न-भिन्न कर दिया था। तीनों मेरी ओर अजीब नजरों से देख रही थी। मै अन्दर ही अन्दर खुश था कि मुझ पर शैतान कभी भी हमला नहीं कर सकेगा। दो दिन के बाद रात को आसिया मेरे साथ लेटते हुए बोली… समीर, स्कूल मे तेरी अरबाज से किस बात पर लड़ाई हुई थी। मैने जल्दी से आसिया के मुँह पर हाथ रख कर कहा… तुझे खुदा की कसम है कि यह बात किसी को नहीं बताएगी। आसिया ने फिर दबी आवाज मे पूछा… कसम से किसी को नहीं बताउँगी पर हुआ क्या था? मुझे उसकी बहन आयशा ने बताया कि तेरे साथ उसकी मार पिटाई हुई थी। वह बदमाश लड़का है तू उस से दूर ही रहना। जब मैने कोई जवाब नहीं दिया तो वह बोली… ठीक है तो कल मै अरबाज से पूछ लूँगी। मैने जल्दी से कहा… वह तेरे बारे मे गलत बोल रहा था इसीलिए हमारे बीच लड़ाई हुई थी। …क्या बोल रहा था? …यही कि मेरी मोहब्बत का पैगाम आसिया तक पहुँचा दे क्योंकि अब तेरी बहन जवान हो गयी है। आसिया ने मुझे अपनी बाँहों जकड़ते हुए कहा… वह तुझसे बड़ा है। तुझे डर नहीं लगा। …मै किसी से नहीं डरता। अगर उसने फिर तुम्हारे बारे मे बकवास की तो वह दुबारा पिटेगा। मेरी बात सुन कर आसिया कुछ देर चुप पड़ी रही और मेरा हाथ पकड़ कर अपने दिल पर रख कर धीरे से बोली… समीर, तू भी कसम खा कि हमारे बीच की बात को किसी को नहीं बताएगा। …खुदा की कसम, मरते मर जाऊँगा पर किसी को नहीं बताऊँगा।

कुछ देर तक वह मुझे अपनी बाँहों मे जकड़ी पड़ी रही फिर अचानक आसिया का हाथ सरक कर नीचे मेरे पाजामे मे छिपे हुए खुदाई हथियार पर पहुँच गया तो मैने झपट कर उसका हाथ पकड़ लिया। वह धीरे से मेरे कान मे फुसफुसा कर बोली… समीर, मेरी गुफा मे शैतान छिप कर बैठ गया है। मुझे डर लग रहा है। प्लीज मुझे मत रोक। एक पल के लिये शैतान के खौफ के कारण मेरा जिस्म अकड़ कर रह गया था परन्तु आसिया का ख्याल आते ही मैने उसका हाथ तुरन्त छोड़ दिया। आसिया एकाएक अपनी कोहनी के बल उठी और मेरे चेहरे पर झुक कर मेरे होंठ चूम कर बोली… तुझे कसम है। कुछ देर तक वह उस हथियार को पजामे के उपर से सहलाती रही और फिर उसने मेरा पाजामा नीचे सरका दिया। वह कभी मेरे गाल को चूमती और कभी मेरे होंठों को अपने होंठों मे दबा कर चूसने की कोशिश करती। मै चुपचाप उसके हर कार्य मे सहयोग कर रहा था। हर घड़ी उसकी उत्तेजना की तीव्रता बढ़ती चली जा रही थी। एक अजीब से नशे से मेरी आँखें भी बोझिल हो रही थी। एकाएक उसने अपने उभरे हुए सीने को मेरे मुख पर लगा कर कहा… समीर, मेरा दूध पी ले। मैने उसके कुर्ते के उपर से ही उसके अरिपक्व स्तन को अपने मुख मे भर कर उसका दूध सोखना आरंभ कर दिया। एक पल के लिये वह तड़प कर मचली परन्तु फिर उसने मेरा हाथ पकड़ कर शलवार से ढकी हुई अपनी गुफा पर रख कर रगड़ना आरंभ कर दिया। …समीर, शैतान को बाहर निकालने के लिये मेरी गुफा को धीरे-धीरे सहला जैसे मै तेरे हथियार को सहला रही हूँ। जैसा वह कहती गयी, उसी के अनुसार मै करता चला गया। कुछ देर तक उसका साथ निबाहने के बाद मैने कहा… आसिया, वह बाहर निकला कि नहीं। मै थक गया हूँ। एकाएक उसके मुख से अजीब सी सिसकारी निकली और उसका जिस्म काँपने लगा। सब कुछ छोड़ कर मै उठ कर बैठ गया और उसकी ओर देखा तो वह आँखें बन्द किये किसी दूसरी ही दुनिया मे खोई हुई थी। मैने दबे स्वर मे उसे पुकारा… आसिया। उसने कोई जवाब नहीं दिया तो मैने उसे पकड़ कर हिलाया। अबकी बार उसने धीरे से आँखें खोली और मुझे देख कर मुस्कुरा कर बोली… शैतान कम्बख्त निकल भागा। यह कह कर उसने मुझे अपनी बाँहों मे जकड़ लिया और चुपचाप लेट गयी। मुझे बस इतना ही समझ मे आया कि मैने आसिया की गुफा मे छिपे हुए शैतान को बाहर निकाल फेंका है। इसी खुशी मे जल्दी ही मै भी अपनी सपनों की दुनिया मे खो गया था।

सुबह मुझे आसिया ने उठाया और अपनी कसम याद दिला कर वह तैयार होने चली गयी। स्कूल मे एक बार फिर मेरा सामना अरबाज से हुआ लेकिन वह अपने दोस्तों के साथ मुझे अनदेखा करके निकल गया था। हमारी लड़ाई की खबर अब तक स्कूल मे फैल गयी थी। मेरे दोस्त भी उस दिन के बाद से मुझे तवज्जो देने लगे थे। शाम को मदरसे से लौटा तो कमरे मे चारों लड़कियों की कमरे मे सभा चल रही थी। मुझे देखते ही सब चुप हो गयी तो मैने अपना बस्ता एक किनारे मे फेंक कर पूछा… क्या बात चल रही है। अदा तुरन्त तुनक कर बोली… समीर, तू स्कूल मे क्या गुल खिला रहा है। अरबाज के साथ क्यों मारपीट की थी? मैने आसिया की ओर घूर कर देखा तो वह सिर हिला कर मना करते हुए बोली… समीर, इनकी भी सहेलियों के भाई तेरे स्कूल मे पढ़ते है। उसी वक्त एक बात मुझे समझ मे आ गयी थी कि स्कूल की बात इनसे छिपाना नामुमकिन है। इलाके मे रहने वाले सभी परिवारों के बच्चे उन्ही स्कूल मे जाते थे जहाँ मै और मेरी बहनें जाती थी। इसका मतलब साफ था कि यह बात जल्दी ही अम्मी और अब्बा तक भी पहुँच जाएगी। मै अभी इसका तोड़ सोच ही रहा था कि तभी नाश्ता लेकर अम्मी ने कमरे मे प्रवेश किया और मुझे देखते ही बोली… समीर, तेरा चेहरा क्यों उतरा हुआ है। आलिया को मौका मिल गया और उसने जल्दी से कहा… अम्मी, यह अब स्कूल मे गुन्डागर्दी करने लगा है। अम्मी ने मेरी ओर देखा लेकिन तभी अदा बोली… अम्मी, वह अरबाज तो हर किसी को परेशान करता है। वह तो अपनी बहनो के साथ भी मार पिटाई करता रहता है। बस फिर क्या था मेरी सारी बहने एक साथ अरबाज की कहानी सुनाने बैठ गयी थी। उस वक्त तो अम्मी ने कुछ नहीं कहा परन्तु रात को सोने से पहले मेरे पास आकर बोली… समीर, ऐसे लड़कों से दूर रहा कर। तुझे कुछ हो गया तो मै जीतेजी मर जाऊँगी। मुझे अपनी बाँहों मे भर कर कुछ देर रोती रही और फिर चुपचाप उठ कर चली गयी। चारों लड़कियाँ चुपचाप सारा दृश्य देखती रही और अम्मी के जाते ही मुझे घेर कर लड़ाई का किस्सा सुनने के लिये बैठ गयी थी। उस रात स्कूल के लड़कों और लड़कियों के कहानी-किस्सों का दौर देर रात तक चलता रहा था।

अगले दो दिन मेरी दिनचर्या सामान्य रही स्कूल से मदरसा और मदरसे से घर परन्तु तीसरे दिन शाम को अरबाज और उसके साथियों ने मुझे मदरसे से अकेले लौटते हुए देख कर घेर लिया था। एक बार फिर से लड़ाई का दौर आरंभ हो गया था। मार खाने के बाद जब तक घर लौटा तब तक मेरी कमीज फट चुकी थी और नाक से खून बह रहा था। अम्मी और नौकरों से छिपते-छिपाते जब मै अपने कमरे मे पहुँचा तो मेरी हालत देख कर चौकड़ी मे हड़कम्प मच गया था। आसिया ने बात संभालते हुए सबको चुप कराया और वह मेरी मरहम पट्टी मे जुट गयी थी। सभी लड़कियों ने अम्मी को न बताने की कसम खाई और फिर मेरी तीमारदारी मे लग गयी। अगले ही दिन हमारी सारी कोशिशों पर पानी फिर गया था। इमरान काजी, अरबाज के अब्बा, अपने बेटे को लेकर शाम को हमारे घर पर आ गये और अब्बा से मेरी शिकायत कर दी कि मैने पत्थर मार कर उनके बेटे का सिर फोड़ दिया है। जब तक मै मदरसे से घर पहुँचा तब तक तो सारा कांड समाप्त हो चुका था। आसिया, आफशाँ, अदा और आलिया ने अम्मी के सामने मेरी पैरवी कर दी थी। मेरी फटी हुई रक्त-रंजित कमीज अम्मी को दिखा कर बताया कि कैसे अरबाज ने अपने कुछ साथियों के साथ मिल कर मुझे अकेला देख कर मारा था। उसके बाद तो मेरी अम्मी ने अब्बा के सामने इमरान काजी को ऐसी खरी खोटी सुनायी कि बाप और बेटा चुपचाप वापिस चल दिये थे। मेरे घर मे प्रवेश करते ही अदा मुझे पकड़ कर एक किनारे मे ले गयी और सारी बात बता कर कहा… अम्मी कमरे मे तेरा इंतजार कर रही है। मै डरते-डरते अम्मी के सामने पहुँचा तो मुझे देखते ही मुझसे लिपट कर रोने लगी और काजी परिवार को जम कर कोसने लगी। मै उन्हें समझा ही रहा था कि तभी अब्बा की आवाज मेरे कानों मे पड़ी… अरे मर्द बच्चा है। इस उम्र मे यह सब नहीं करेगा तो कब करेगा। तुम इसे अपने आँचल मे कब तक बांध कर रखोगी। अब्बा दरवाजे पर खड़े हुए दिखे तो झपट कर मै अपनी अम्मी की आढ़ मे चला गया। अब्बा कुछ पल खड़े रहे और फिर बोले… मै बाहर जा रहा हूँ। हो सकता है लौटने मे कुछ दिन लग जाये। बस इतना बोल कर वह वहाँ से चले गये। अम्मी कुछ देर मेरे साथ बैठी रही और फिर प्यार पुचकार कर रसोई की ओर चली गयी थी।

उसी रात आसिया पर एक बार फिर से शैतान ने हमला किया लेकिन इस बार आसिया एक कदम आगे बढ़ गयी थी। अबकी बार उसने अपना कुर्ता और शलवार दोनो ही ढीला करके अपने जिस्म से अलग कर दिया। पहली बार अंधेरे मे मैने उसके बेदाग जिस्म की मुलायम चिकनी त्वचा को छूआ था। नींबू के आकार की गोलाईयाँ और उनके शिखर पर किश्मिश को अपने मुख मे दबा कर उसका रस सोखता तो वह उतना ही फूल कर अकड़ जाता था। एक बैचेनी का एहसास मुझे अपने हथियार मे भी महसूस होने लगा था। मेरे शैतानी मेरुदंड को आसिया कभी सहलाती और कभी हिलाती जिसके कारण अब उसमे ऐंठन आरंभ होने लगी थी। उसकी गुफा के मुख पर मेरा हाथ रखते ही वह मचलती और उसके मुख से दबी हुई आहें और सिसकारी निकलनी आरंभ हो जाती थी। उसकी गुफा से लगातार कुछ पनीला सा द्रव्य बहता रहता था जिसके कारण मेरा हाथ पूरा भीग जाता था। कुछ ही रातों के बाद मुझे शैतान के निकलने की पहचान भी हो गयी थी। जैसे ही वह मचल कर काँपती थी तो मुझे समझ मे आ जाता था कि अब शैतान निकल कर भाग गया है। धीरे-धीरे इस खेल मे हम दोनो ही पारंगत होते चले जा रहे थे। अब मुझे शैतान को भगाने मे मजा आने लगा था। बोर्ड की परीक्षा के कारण आसिया के बारहवीं मे आते ही अम्मी ने आसिया और आफशाँ को अलग कमरा दे दिया और हम तीन ही उस कमरे मे रह गये थे।

इतना सब कुछ होने के बाद भी कभी दिन के उजाले मे न तो मैने न ही आसिया ने इसके बारे मे कोई बात की थी। हम दोनो ही अपनी-अपनी कसमों से बंधे हुए थे। मुझे याद है कि उस के बाद से आसिया और आफशाँ के व्यवहार और वेषभूषा मे भी काफी बदलाव आ गया था। वक्त के साथ मै अपने स्कूल के दोस्तों मे व्यस्त होता चला गया। मेरा ज्यादा समय उनके साथ गुजरने लगा था। मदरसे मे जाकर दीन की शिक्षा लेना लड़कों के लिए अनिवार्य था इसीलिए स्कूल से आकर मुझे दो घंटे मदरसे मे जाकर नमाज और कुरान की आयतें रटनी पड़ती थी। खुत्बे और तकरीरों के दौर मे जिहाद का मतलब समझाया जाता था। अल्लाह की ओर से काफिरों के लिए दिये गये दिशा निर्देशों के बारे मे बताते हुए मौलवी साहब हमे यकीन दिलाते थे कि कैसे इस्लाम की नींव को पुख्ता करने के लिए काफिरों का कत्ल वाजिब है। मेरे लिए मदरसा एक इस्लामी शिक्षा का केन्द्र बन गया था। सच्चे इस्लाम की पैरोकारी करते हुए कभी-कभी मौलवी साहब मदरसे के बच्चों को जिहादी बनने के लिए अलग-अलग कार्य देते थे। कभी कुछ लड़कों को सड़क के पास बनी हुई फौजी चौकी पर जा कर दूर से सिपाहियों को देख कर जमीन पर तीन बार थूक कर वापिस आना होता था। कभी जमीन पर पड़ा हुआ पत्थर उठा कर उनकी चौकी पर फेंकना होता था। कभी पाँच दस बच्चों का झुन्ड बना कर उन फौजियों को गाली देना अन्यथा उनके सामने पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगा कर वापिस आना होता था। मै भी इस काम मे बड़-चड़ कर हिस्सा लेने लगा था। स्कूल मे वह आजादी नहीं थी लेकिन अपने दोस्तों के बीच बड़ा और निडर होने की यही पहचान बन गयी थी। एक दिन की घटना ने मौलवी साहब और मदरसे से मेरा मोह भंग कर दिया था।

बहुत दिनों से मेरी कक्षा के कुछ लड़के घर लौटते हुए मौलवी साहब के बारे ऊल-जुलूल बातें सुना रहे थे। मुझे तो हर्गिज विश्वास नहीं हुआ कि कोई खुदा का नेक बन्दा ऐसी गलीच हरकत भी कर सकता है। अन्त मे मेरे कुछ दोस्तों ने तय किया कि एक बार खुद देख लिया जाए कि उनकी बात मे कितनी सच्चायी है। तय कार्यक्रम के अनुसार, एक शाम हम मस्जिद के पीछे कुछ दूरी पर बने हुए मौलवी साहब के अहाते मे जाकर छिप कर खड़े हो गये थे। कुछ देर के बाद मौलवी साहब आते हुए दिखाई दिये तो मेरी धड़कन बढ़ गयी थी। उनके साथ एक छोटा लड़का भी चल रहा था। मौलवी साहब उसके सिर पर हाथ फिराते हुए प्यार से बात करते हुए अपने कमरे मे चले गये और दरवाजा भिड़ा कर अन्दर से बन्द कर दिया। कुछ देर हम चुपचाप खड़े रहे और फिर दबे पाँव जाकर भिड़े हुए दरवाजे की झिरी मे से अन्दर झाँकने लगे। उस लड़के को गोद मे बिठा कर मौलवी साहब कुछ समझा रहे थे कि तभी उनकी एक अजीब सी हरकत ने मुझे चौंका दिया था। वह कुछ बोलते हुए धीरे से झुके और एकाएक उन्होने उस लड़के के होंठ को चूम लिया। मै जड़वत खड़ा रह गया था। मै ही क्यों मेरे साथ आये दोनो लड़के भी हैरानी से अन्दर का दृश्य देख रहे थे।

मौलवी साहब ने बात करते हुए एक बार धीरे से उस लड़के को फिर से चूमा और उसके होंठों को अपने होंठों मे दबा कर चूसने लगे। पल भर मे मुझे शैतान वाला खेल याद आ गया था। वह लड़का उनकी पकड़ मे छटपटाया परन्तु मौलवी साहब ने उसे कस कर थाम लिया था। अचानक अनवर धीरे से फुसफुसाया… मौलवी के हाथ पर नजर डाल। हमारी नजर उस ओर अनायस ही चली गयी तो देखा कि मौलवी का एक हाथ उस लड़के की झूलती हुई टाँगो के बीच मे उसकी नुन्नी को पकड़ कर धीरे से सहला रहा था। हम लोग एक पल के लिए दरवाजे से पीछे हट गये और जाने लगे तभी फईम ने कहा… यार देख तो ले कि वह मौलवी उस लड़के के साथ और क्या करता है। यह हम तीनों के लिए एक नया अनुभव था। एक बार फिर से तीन जोड़ी आँखे दरवाजे की झिरी पर टिक गयी थी। इस बार का दृश्य देख कर मेरे जिस्म मे अचानक वही पुरानी ऐठन होने लगी थी। मौलवी साहब ने अब तक अपना पजामा खोल कर नीचे गिरा दिया था। वह जबरदस्ती उस लड़के की गरदन पकड़ कर उसके मुख मे अपना लिंग डालने की कोशिश कर रहे थे। वह लड़का रो रहा था लेकिन मौलवी साहब ने जबरदस्ती अपना लिंग उसके मुँह मे ठूस दिया। इससे आगे अब देखना मुझे असहनीय लग रहा था।

मै वहाँ से हटने लगा परन्तु फईम और अनवर के आगे मेरी एक नहीं चली। अन्दर मौलवी साहब की बहशियानी हरकत बड़ती जा रही थी। वह लड़का अब चुपचाप मौलवी साहब के आदेशानुसार अपने मुख का इस्तेमाल कर रहा था। एकाएक मौलवी उठ कर खड़ा हो गया और उसने लड़के को गोदी मे उठा कर तख्त पर उल्टा लिटा कर उसका पाजामा नीचे सरका दिया। वह लड़का चुपचाप तख्त पर पड़ा रहा और मौलवी ने अपने तने हुए अंग को उसके नितंबों के बीच मे फंसाने मे जुट गये थे। हमें अब मौलवी साहब का सिर्फ नग्न पीछे का हिस्सा दिख रहा था। अचानक मौलवी साहब ने अपनी कमर को जोर से धक्का दिया तो उस लड़के की चीख कमरे मे गूँज गयी थी जिसे सुनकर हम तीनों डर के मारे काँप गये थे। मौलवी साहब उस लड़के को कमर से पकड़ कर रौंदने मे लग गये। आगे मुझसे देखा नहीं गया और मै वहाँ से हट कर दूर जाकर खड़ा हो गया था। मेरी कनपटी तड़क रही थी। मेरी साँसे तेज चल रही थी। मुझे समझ मे नहीं आ रहा था कि वहाँ क्या हो रहा था। कुछ देर बाद फईम और अनवर मेरे पास आकर बोले… मौलवी साहब फारिग हो गये है। भागों यहाँ से। हम अपना थैला लेकर वहाँ से सरपट भाग लिये थे। अपने मोहल्ले के पास पहुँच कर रुके और जैसे ही हमारी नजरें मिली तो तीनों एक बार जोर का ठहाका मार कर हँस पड़े थे। सारा तनाव पल भर मे उड़ गया था। अनवर ने धीरे से कहा… बहुत बेगैरत और हरामी मौलवी है। तुम्हें पता है कि वह लड़का कौन है? तुरन्त फईम ने कहा… वह मदरसे के अनाथालय का लड़का है। मैने उसे कई बार मदरसे मे देखा है। मैने अपनी जिज्ञासा मिटाने के लिए पूछ लिया… वह हरामी मौलवी कर क्या रहा था? दोंनो ने मेरी ओर आश्चर्य से देख रहे थे। …समीर तुझे पता नहीं कि वह हरामी क्या कर रहा था? इसी के साथ मेरे दोस्तों ने मेरी अज्ञानता समाप्त करने हेतु स्त्री-पुरुष संबन्धों और जन्नत मे हूरों और गुलाम लड़कों के साथ क्या होता है बताना शुरु कर दिया। देर रात को जब मै अपने घर मे घुसा तब तक एक अबोध बालक से युवक बन गया था।

…समीर कहाँ रह गया था? मुझे देखते ही अम्मी ने पूछा लेकिन मै तो अब किसी दूसरी दुनिया मे था। …अम्मी अब मै बड़ा हो गया हूँ। तुम मेरी चिन्ता मत किया करो। यहीं बाहर नाले पर दोस्तों से बात कर रहा था। …अच्छा जी। तू अभी आठवीं मे आया है और अभी से अपने आप को बड़ा समझने लगा। मै तो तेरी चिन्ता तब भी करुँगी जब तेरे बच्चे बड़े हो जाएँगें। चल कर खाना खाले। अब तक सब खाना खा चुके है। तेरे अब्बा भी आने वाले होंगें। अब्बा का सुनते ही सारी हेंकड़ी पल भर मे निकल गयी और अपनी अम्मी से लिपटते हुए मैने जल्दी से कहा… अम्मी भूख लग रही है। मेरी अम्मी हँसते हुए बोली… अब्बा का नाम सुनते ही नवाब साहब को भूख लगने लगी। यह कह कर वह मुझे लेकर रसोई की ओर चल दी। खाना खा कर मै जब कमरे मे घुसा तो अदा मेरी राह देख रही थी। …तुम कहाँ रह गये थे? मै उसे क्या बताता कि मै क्या सीख कर आया हूँ। …बस दोस्तों के साथ बैठ गया था। अदा मेरे पास आकर खड़ी हो गयी और फिर धीरे से बोली… समीर मै खाने पर तुम्हारा इंतजार कर रही थी। तुमने खाना खा लिया? अचानक मुझे अपनी गलती का एहसास होते ही मैने पुचकारते हुए कहा… मै भूल गया था। मैने खाना खा लिया। यह सुन कर उसका चेहरा उतर गया था। वह चुपचाप बाहर चली गयी और मै वहाँ खड़ा पछता रहा था। आसिया और आफशाँ पर पढ़ाई के दबाव के कारण हमारा मिलना कम हो गया था। आलिया कभी फुदकती हुई हमारे पास आ जाती और कभी उनके पास चली जाती थी। सिर्फ अदा ही हम उम्र होने के कारण मेरे साथ रहती थी। हम साथ खाते और साथ पढ़ते थे। उस रात मुझे लगा कि वह कड़ी भी मैने तोड़ दी थी।

कुछ देर के बाद अदा खाना खाकर कमरे आयी तो मैने उसे पकड़ कर कहा… अदा आज के बाद मै फिर कभी ऐसे नहीं करुँगा। मुझे माफ कर दे। चल बैठ पहले होम वर्क निपटा लेते है फिर मै तुझे आज की कहानी सुनाऊँगा। उसके बाद हम स्कूल का काम करने बैठ गये लेकिन मेरा दिमाग तो मौलवी साहब मे लगा हुआ था। …समीर आज तुम्हें क्या हो गया है? इतनी देर मे तुमने एक अक्षर भी नहीं लिखा है। मै जल्दी से स्कूल का काम निपटाने मे लग गया। एक ही कक्षा मे होने के कारण हम एक दूसरे की पढ़ाई मे मदद करते थे। बहुत बार मै उसका काम कर देता था और बहुत बार वह मेरा काम करने मे मदद कर देती थी। रात को स्कूल का सारा काम सामप्त करके सोने के लिए अपने-अपने बिस्तर मे घुस गये थे। कुछ देर तक आलिया की कहानी सुनने के बाद मैने कहा… सोने दे आलिया। कल सुबह स्कूल जाना है। यह कह कर मै सिर ढक कर सो गया। कुछ देर के बाद किसी के हिलाने से मेरी नींद टूट गयी तो मुझे एहसास हुआ कि अदा मेरे साथ लेटी हुई थी। मैने चौंक कर दबी आवाज मे कहा… तुम यहाँ क्या कर रही हो। क्या हुआ? …समीर तुमने कहा था कि तुम बताओगे कि आज क्या हुआ था। एकाएक मेरे मुख को ताला लग गया था। …बोल न क्या हुआ था? मुझे मालूम था कि यह बिना सुने मेरा पीछा नहीं छोड़ेगी इसलिए मैने धीरे से कहा… मेरी कसम खा कर बोल कि यह बात किसी को भी नहीं बताएगी। उसने सिर उठा कर एक बार मेरी ओर देखा फिर कसम दोहरा कर बोली… चलो बताओ। एक पल रुक कर मैने मौलवी साहब की कहानी शुरु से आखिर तक उसे सुना दी थी। वह चुपचाप सारी कहानी सुन कर उठी और अपने बिस्तर पर जाकर सो गयी। उस कहानी को दोहरा कर एक बार फिर से मेरे जिस्म मे तनाव उत्पन्न होना आरंभ हो गया था।

अगले कुछ दिन मै स्कूल मे खाली समय मे अपने दोस्त फईम और अनवर के साथ बैठ कर उनके अधकचरे स्त्री-पुरुष संबन्धी ज्ञान को लेकर अपनी ज्ञान वृद्धी मे जुट गया था। उस दिन के बाद ही मैने अम्मी से मदरसे जाने के लिए मना कर दिया था। उन्होंने मुझ पर ज्यादा जोर नहीं दिया परन्तु घर पर अपने साथ नमाज पढ़ने के लिए बिठाना आरंभ कर दिया था। अब दीन की तालीम मुझे अम्मी देने लगी थी। एक दिन हमारे घर पर बिजली गिरी जब अब्बा ने दहाड़ते हुए मुझे पुकारा… समीर इधर आईए। पूरे घर मे हड़कम्प मच गया था। आसिया, आफशाँ, अदा और आलिया दौड़ती हुई आंगन मे इकठ्ठी हो गयी थी। मै उनकी आढ़ मे खड़ा हुआ डर से काँप रहा था। तभी अम्मी रसोई से निकल कर मेरे पास आयी और मेरा हाथ पकड़ कर बोली… चल मेरे साथ। एक बार फिर से अब्बा की दहाड़ गूँजी… समीर। अम्मी उनके कमरे मे घुसती हुई बोली… क्या हुआ? मै उनकी आढ़ लेकर खड़ा हो गया था। मेरी नजर सामने पड़ी तो मौलवी साहब बैठे हुए दिखे तो मै और ज्यादा घबरा गया था। …समीर मेरे सामने आओ। मेरी अम्मी मेरा हाथ पकड़ कर खड़ी रही और इस बार वह बोली… क्या हुआ पहले बताईए? अम्मी को इस तरह से बोलते हुए देख कर अब्बा की आवाज मे हल्की सी नरमी आयी… यह पिछले पाँच दिन से मदरसे नहीं जा रहा है तो आखिर यह कहाँ जाता है?  …कहीं नहीं जा रहा है। घर मे रहता है और मेरे से दीन की तालीम ले रहा है। क्यों क्या तालीम लेने के लिए इसका मदरसे जाना जरुरी है? अब्बा चुपचाप मौलवी साहब की ओर देखने लगे तो मौलवी साहब गला खंखारते हुए धीरे से बोले… बीबी दीन की तालीम कहीं से भी मिल सकती है। परन्तु उस तालीम से जुड़ी हुई कुछ खास बातें जो इस्लाम मे हुजूर ने सिर्फ मर्दों के लिए बताया है वह उसे सिर्फ मदरसे मे ही मिल सकती है। इसीलिए मैने बट साहब से अर्ज किया था कि उनके साहेबजादे का मदरसे मे आना जरूरी है।

मेरी अम्मी ने पहली बार मेरे अब्बा के सामने खिलाफत का झंडा बुलन्द करते हुए कहा… मौलवी साहब आपका कहना सही है परन्तु उस तालीम को वह कभी भी ले सकता है। फिलहाल मै उसे तालीम दे रही हूँ वही काफी है। मै जानती हूँ कि आप मदरसे मे इन बच्चों से दीन की तालीम की आढ़ मे क्या करवा रहे है। मै नहीं चाहती कि यह हिन्दुस्तानी फौजियों को जा कर पत्थर मारे या उन्हें गाली दे। कल को इसे कुछ हो गया तो मै क्या करुँगी। फिर अम्मी ने अपना आखिरी और सबसे पुख्ता वार अब्बा पर आँसू बहाते हुए किया… कसम है आपको। मुझे अपने से चिपका कर बोली…मै अपने इकलौते बेटे को इनके पास जिहादी बनने तो हर्गिज नहीं भेजूँगी। यह बोल कर मेरा हाथ पकड़ अम्मी मुझे खींचते हुए कमरे से बाहर निकल आयी थी।  मेरे अब्बा चुपचाप सारी बात सुन कर मौलवी साहब के साथ अन्य बात करने मे व्यस्त हो गये थे। मै अपनी अम्मी के साथ चलते हुए खुशी से हवा मे कूदा… मेरी प्यारी अम्मी। एक साथ चारों बहनें मुझसे लिपट गयी और अम्मी को हँसते हुए पकड़ कर झूल गयी थी। एक ही पल मे अब्बा का सारा खौफ सभी के जहन से निकल गया था। सभी के समझ मे आ गया था कि अब्बा से बचने के लिए अम्मी से बड़ी हमारे पास कोई ढाल नहीं है।

दिन गुजरते चले गये और हम सब अपनी स्कूली पढ़ाई मे व्यस्त हो गये थे। हमारे मोहल्ले के बाहर जिहाद जोर पकड़ता जा रहा था। हमारे स्कूल के लड़के भी सड़को पर उतर कर भारतीय फौज पर पत्थरबाजी करने लगे थे। अरबाज बारहवीं कक्षा के दल का मुखिया बन गया था। आये दिन वह अपने साथियों के साथ निकल कर स्कूल के अन्य लड़को को जिहादी फरमान सुना दिया करता था। स्कूल अब जिहादी अड्डा बन गया था। टीचर और अन्य स्टाफ भी मूक दर्शक बन कर बैठ गया था।

एक दिन अरबाज अपने कुछ साथियों के हमारी कक्षा मे आकर बोला… आज स्कूल की छुट्टी है और सभी बच्चे यहाँ से मदरसे चौक के लिये निकलेंगें। इतना बोल कर उसने अपने एक साथी को इशारा करके बोला… असद, अपनी देखरेख मे इस क्लास के सभी लड़को को वहाँ पर एकत्रित करने कi जिम्मेदारी तेरी है। बस इतना बोल कर वह असद को वहीं छोड़ कर अपने बाकी साथियों को लेकर बाहर निकल गया था। कुछ ही देर मे स्कूली बच्चों की भीड़ मदरसे चौक की ओर चल पड़ी थी। स्कूली बच्चों की भीड़ कुछ ही देर मे चौक पर एकत्रित हो गयी थी। मै भी अपने साथियों के साथ भीड़ से हट कर एक किनारे मे खड़ा हो गया था। कुछ ही मिनट बीते थे कि इन्डियन आर्मी के काफिले की अगवानी करने वाली आर्मी की जीप हूटर बजाते हुए आती हुई दिखाई दी तो एक पल के लिये बच्चों भगदड़ मच गयी थी। जब तक जीप चौराहे पर पहुँची तब तक सारी सड़क पर स्कूली बच्चे इधर-उधर भागते हुए दिख रहे थे। वह जीप चौराहे से कुछ दूरी पर आकर रुक गयी और उसके साथ ही फौज का काफिला भी एकाएक रुक गया था। जब तक किसी के समझ मे आता तब तक अचानक छ्तों से पत्थर बरसने आरंभ हो गये थे। एकाएक फौजी दस्ता ट्रक से कूद कर चौराहे की ओर दौड़ा कि तभी एक पेट्रोल बम्ब हवा मे तैरते हुए उनके सामने गिरा और फिर सड़क पर आग फैल गयी थी। फौजी कमांडर लगातार हवा मे फायर करते हुए अपने माइक पर सड़क खाली करने का निर्देश देने लगा और फौजी दस्ता अपनी गन हमारी दिशा मे तान कर बढ़ने लगा। मेरा जिस्म पत्थरा कर जड़वत खड़ा रह गया था।

…समीर भाग यहाँ से। मेरे कान मे अनवर की आवाज सुनायी दी तो मै होश मे आ गया और अपने कदम पीछे खींचते हुए हम मुड़ कर स्कूल की दिशा मे भाग लिये थे। मेरे कानों मे गोलियाँ चलने की आवाज निरन्तर गूंज रही थी। मुझे याद नहीं कि कैसे परन्तु अपने स्कूल के पास पहुँच कर ही हम रुके थे। मेरे दोनो साथियों की हालत भी कुछ मेरी तरह थी। हमारे चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थी और सारा जिस्म तनाव से काँप रहा था। स्कूल पहुँचते ही हम धम्म से धरती पर बैठ गये थे। हमारी सांस उखड़ती हुई लग रही थी। …भाई आज बाल-बाल बच गये। अकरम ने मेरी पीठ पर धौल जमा कर काँपती हुई आवाज मे कहा लेकिन मेरी समझ मे कुछ नहीं आ रहा था। अपने आप को सयंत करके हम अपने-अपने घर की ओर चले गये थे। उस शाम सब कुछ बदल गया था। अब फौज भी पत्थरबाजों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने लगी थी। ज्यादा हंगामा होने के कारण अब वह गोलियाँ भी चलाने लगे थे। आये दिन कहीं बम्ब फटता और कहीं पत्थरबाजी हो जाती थी। परिणामस्वरुप किसी न किसी घर मे आये दिन मौत का मातम मन रहा होता था अन्यथा कर्फ्यु लग जाता था। भारतीय फौजी कार्यवाही भी लगातार बढ़ती जा रही थी। हम भी स्कूल से लौटते हुए कभी-कभी उस जनाजे मे शामिल हो जाते थे। यह सब देख कर मेरे मन मे भी फौज के प्रति रोष भरता जा रहा था। अब्बा भी राजनीतिक गलियारे मे कदम रख चुके थे और कट्टर इस्लामिक पृथकवादियों के समूह मे जाने माने नाम बन कर उभर रहे थे। हर जुमे को उनकी तकरीर किसी न किसी मस्जिद मे होने लगी थी। रोजाना वह कौम के मुद्दों पर बोलते हुए लोकल चैनल पर दिख जाते थे। उनकी इस व्यस्तता के कारण हम पाँचों खुश थे क्योंकि हमारे दिमाग से अब्बा के डर का साया हट गया था। 

6 टिप्‍पणियां:

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  2. प्रणाम विरभाई बहोत अर्सेके बाद आपका मेसेज देखा, दिलको सुकूनसा मिला. फिर एक बार आपको आपकी नई रचनाके लिये ढेर सारी शुभकामना...

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  3. नई कहानी की शुरवात के लिए बहुत बहुत सुभ कामनाएं वीर भाई,missed you very much

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