काफ़िर-4
अभी दिन पूरी तरह से निकला नहीं था कि मै जीप
मे बैठ कर अम्मी का इंतजार कर रहा था। तभी आफशाँ भागती हुई बाहर आयी… समीर, तुम्हें
अम्मी बुला रही है। उस औरत को अभी अस्पताल लेकर जाना होगा। मै तुरन्त जीप को छोड़ कर
उस औरत के कमरे की ओर चल दिया था। जब मै कमरे मे पहुँचा तो उस औरत को घर के सभी लोग घेर कर खड़े हुए थे। अम्मी उसे संभालने
की कोशिश मे लगी हुई थी। उस औरत की साँसे उखड़ती हुई लग रही थी। मुझे देखते ही अम्मी
ने रुआँसी होकर चीखी… समीर इन्हें उठा और तुरन्त अस्पताल चल। एक पल के लिए मै ठिठका
और फिर उस औरत को अपनी बाँहों मे उठा कर बाहर चल दिया था। आफशाँ से अब्बा को खबर करने
के लिए कह कर अम्मी मेरे पीछे जीप की ओर आ गयी थी। …सीधे फोर्टिस अस्पताल चल। पीछे
की सीट पर उस औरत को लिटा कर अम्मी ने उसका सिर अपनी गोद मे रख लिया और फिर मुझे चलने
का इशारा किया। हम तुरन्त फोर्टिस अस्पताल की ओर रवाना हो गये थे।
सड़क पर जगह-जगह पुलिस के बेरीकेड लगे होने
के कारण जीप रोक कर बताने मे समय व्यर्थ जा रहा था। एक दिन पहले फौजी ट्रक पर हमला
होने के कारण श्रीनगर शहर को भारतीय फौज ने छावनी बना दिया था। लगातार देर होती जा
रही थी। अम्मी रोती जा रही थी और मुझसे जल्दी चलने के लिए कहे जा रही थी। मैने झल्ला
कर कहा… अम्मी इसके लिए इतनी परेशान क्यों हो रही हो। मै क्या करुँ जगह-जगह बेरीकेडिंग
हो रखी है। अम्मी कुछ नहीं बोली बस उन्होनें दुआ पढ़नी आरंभ कर दी थी। रुकते-रुकाते
जब तक हम अस्पताल पहुँचे तब तक सब समाप्त हो चुका था। डाक्टर ने उस औरत का नीरिक्षण
करके सिर्फ इतना कहा… सब खत्म हो गया है। अब कुछ नहीं हो सकता। अम्मी ने एक पल मेरी
ओर देखा और फिर बोली… समीर, इसे हिन्दूओं के शमशान घाट की ओर
लेकर चलो। यह सुन कर मुझे गहरा धक्का लगा था। पहली बार मुझे पता चला था कि एक काफ़िर
औरत हमारे घर मे इतने सालों से रह रही थी। मुझे काफ़िरों के शमशान घाट की जानकारी नहीं
थी इसीलिए मैने मुड़ कर अम्मी से पूछा… यह शमशान घाट कहाँ है? …तू घर की ओर चल मै रास्ता
बताती हूँ। मैने चुपचाप जीप को घर की दिशा मे मोड़ दिया। वह शमशान घाट हमारे घर से ज्यादा
दूर नहीं था। हमारी कोलोनी से हिन्दुओं का शमशान घाट मुख्य सड़क के दूसरी ओर कुछ दूरी
पर था। जब भी आते-जाते हुए उस जगह पर हमारी नजर पड़ती तो वह जगह एक वीरान खंडहर की तरह
बाहर से दिखती थी। जब कोई फौजी या पुलिस वाला शहीद होकर वहाँ पर लाया जाता बस तभी कुछ
लोग उस वीरान जगह पर दिखायी दे जाते थे।
अम्मी मुझे जीप मे उस औरत के पास छोड़ कर वहाँ
के छोटे से दफ्तर मे बात करने के लिए चली गयी थी। इतने नजदीक से मैने उस औरत को पहली
बार देखा था। वैसे भी पहली बार मैने किसी मृत व्यक्ति को देखा था। उसके चेहरे पर शांति
छायी हुई थी परन्तु उसे देख कर पता नहीं क्यों मुझे उसको छूने का मन कर रहा था। मैने
जैसे ही उसके चेहरे को छुआ तो न जाने कैसे मेरी आँखों मे स्वत: ही पानी तैर गया था।
शायद इसीलिए कि मैने अपने घर मे पहली मौत देखी थी। चाहे उस पर शैतानी छाया थी परन्तु
हर दिन उसे शून्य मे देखते हुए हमारे बीच मे एक इन्सानी संबन्ध तो बन ही गया था। मै
उसके चेहरे को निहार रहा था कि अम्मी की आवाज मेरे कान मे पड़ी… समीर। उन्हें उठा कर
यहाँ जमीन पर ला कर रख दो। मैने उसे अपनी बाँहों मे उठाया और अम्मी की ओर चल दिया।
वह फूल सी हल्की लग रही थी। जहाँ अम्मी ने बताया मैने उसे वहीं जमीन पर लिटा दिया और
चुपचाप अम्मी के साथ जाकर खड़ा हो गया। एक आदमी उस औरत के पास बैठ कर कुछ पूजा पाठ करने
बैठ गया था। मेरे लिये यह सब कुछ नया था। मै हैरतभरी नजरों से सारा काम होते हुए देख
रहा था। पूजा समाप्त होने के बाद पंडित ने कहा… इन्हें उठा कर वहाँ ले चलिए और लकड़ियों
पर रख दीजिए। एक बार फिर से मैने उसे अपनी बाँहों मे उठाया और
कच्ची जमीन पर बिछी हुई लकड़ियों पर लिटा कर एक ओर खड़ा हो गया। दो आदमी लकड़ियाँ जमाने
मे लग गये थे।
अम्मी मेरे साथ आकर खड़ी हो गयी थी। वह धीरे
से बोली… समीर, बेटा तुझे मेरी कसम है कि जो भी यह पंडितजी तुझे बताए वह चुपचाप करते
चले जाना। अल्लाह बहुत रहमदिल है। तेरे हाथ लगने से यह बेचारी जन्नतनशींन हो जाएगी।
उस दिन जैसा पंडित ने बताया मै चुपचाप वैसा करता चला गया था। उस औरत को आग देते हुए
एक पल के लिए दिल मे टीस जरुर उठी थी कि अब से वह हम मे से किसी को दोबारा नहीं दिखेगी।
सारा कार्य समाप्त होने के बाद पंडित ने कहा… कल सुबह अस्थियों को चुन कर तावी नदी
मे प्रवाह करना होगा। मैने सिर हिला दिया और अम्मी को लेकर वापिस घर की ओर चल दिया
था। …अम्मी यह कौन थी? मै अभी भी उलझा हुआ था कि भला एक काफ़िर इतने दिनों से हमारे
घर मे क्या कर रही थी? अम्मी पूरे रास्ते चुप रही थी। मै भी समझ नहीं पा रहा था कि
आखिर यह सब क्या चक्कर है। अचानक अम्मी ने कहा… समीर, मेरे लिए सिर्फ तू ही है। चाहे
कुछ भी हो जाए लेकिन मेरे मरने के बाद मेरी मिट्टी को सिर्फ तू ही हाथ लगाना। तुझे
कसम दे रही हूँ कि अगर किसी और ने मुझे हाथ लगाया तो मै तुझे कभी माफ नहीं करुँगी।
मेरी आंखों से अनायस ही आँसू बहने लगे और मैने धीरे से अम्मी का हाथ दबा कर अपना सिर
हिला दिया था।
घर मे घुसते ही अम्मी आफशाँ पर बरस पड़ी… तूने
अपने अब्बा को खबर नहीं करी? …अम्मी मैने अब्बा को खबर कर दी थी। उन्होंने कहा कि वह
श्रीनगर से बाहर जा रहे है और वह नहीं आ सकेंगें। अम्मी से कह देना कि वह उसको किसी
से कह कर रहमती कब्रिस्तान मे दफना दे। अम्मी कुछ नहीं बोली लेकिन मुझसे कहा… अपने
पहने हुए कपड़े मुझे देकर तू नहाने चला जा और फिर उसके कमरे मे आ जाना। मैने अपने सारे
कपड़े उतार कर एक ओर रख दिये और फिर तौलिया बांध कर नहाने चला गया। कुछ देर के बाद तैयार
होकर मै उस कमरे मे गया लेकिन तब तक वह कमरा पूरी तरह से साफ हो चुका था। बस एक कोने
मे दिया जल रहा था। …समीर, अगले तेरह दिन तू यहीं पर सोयगा। अपनी पाँचो पहर की नमाज
भी यहाँ अदा करेगा। हम सभी यहीं आ जाया करेंगें। उस दिन घर का माहौल बोझिल बना रहा
था। अगले दिन सुबह अजान की आवाज कान मे पड़ते ही नमाज के बाद अम्मी मुझे अपने साथ लेकर
उसी शमशान घर की ओर चल दी थी। पंडित ने पूजा समाप्त करके मुझसे अस्थियाँ इकठ्ठी करने
के लिए कहा तो अम्मी ने मुझे समझाते हुए कहा… बेटा इस राख मे कुछ जिस्मानी अधजली चीजें
अलग से इकठ्ठी कर लो। बाकी यह लोग कर देंगें। मैने राख मे हाथ डाल कर फिराया तो कुछ
अधजली हड्डियों के टुकड़े मेरे हाथ मे आ गये थे। मैने उन्हें एक ओर रख दिया और फिर पंडित
के लोग राख मे से हड्डियों के टुकड़े इकठ्ठे करने जुट गये थे। शमशान का काम समाप्त करके
पंडित को लेकर हम दोनो जीप से तावी नदी के तट की ओर चल दिये थे।
तावी नदी के तट पर पंडित ने पूजा करायी और
फिर सारी राख नदी मे प्रवाहित करके मुझे नदी मे नहाने के लिए कहा तो मैने एक बार अम्मी
की ओर देखा तो उन्होंने सिर्फ सिर हिला दिया। मै अपने कपड़े उतार कर आगे बढ़ा ही था कि
तभी नाई ने मुझे रोकते हुए कहा… आपके सिर के बाल उतारने होगे। मै जोर से चिल्लाया…अम्मी,
मै बाल नहीं कटवाउँगा। अम्मी मेरे पास आकर धीरे से बोली… क्या जब मै मरुँगी तब भी तू
यही कहेगा? एक पल के लिए मैने कुछ बोलना चाहा परन्तु अम्मी का चेहरा देख कर मै चुपचाप
जमीन पर बैठ गया था। नाई ने बेरहमी से उस्तरा चलाकर कुछ ही मिनटों मे मुझे गंजा करके
सिर्फ एक छोटी सी चुटिया छोड़ दी थी। अभी तक जिन बालों की लटों को फिल्मी अन्दाज मे
तरह-तरह से बना कर आईने मे देख कर खुश होता था अब वह बाल अब जमीन पर निर्जीव पड़े हुए
थे। मै नदी के बर्फ से ठँडे पानी मे दो चार डुबकी लगा कर काँपते हुए बाहर निकला तो
अम्मी ने मुझे कपड़े पकड़ा दिये थे। चलने से पहले अम्मी ने मेरे हाथ मे नोटों की एक गड्डी
रखते हुए कहा… यह पंडित को दे दो। मैने वह गड्डी पंडित के हाथ मे रख दी तब अम्मी ने
उससे कहा… अब आप उसका सारा काम स्वयं कर दीजिएगा और तेरवहें दिन
हम मन्दिर मे आ जाएँगें। यह कह कर हम वापिस घर की ओर चल दिये थे।
सारे रास्ते अम्मी कुछ नहीं बोली परन्तु घर पहुँचने से पहले मेरे गंजे सिर पर
हाथ फेरते हुए बोली… समीर इतनी ही शिद्दत से तू मेरा सारा काम पूरा करेगा। बेटा भूलना
नहीं कि तेरे सिवा मुझे और कोई हाथ नहीं लगाएगा। बस इतनी बात हमारे बीच मे हुई थी फिर
सब कुछ पहले जैसा हो गया था। अब्बा का कोई अता पता नहीं था। तेरह दिन तक हम सब उसी
कमरे मे बैठते थे। अकेला दिया जलता रहता था। जब भी तेल कम होने लगता तभी अम्मी उस दिये
को तेल से भर देती थी। अकेली आलिया मेरे गंजेपन और मेरी चुटिया का मजाक बनाती परन्तु
आफशाँ और अदा पूरी संजीदगी के साथ तेरह दिनों तक मेरा साथ निभाती रही थी। तेरहवें दिन
हम सब को लेकर अम्मी मंदिर गयी थी। वहाँ मुझसे पूजा करा कर जब हम घर लौटे तब तक नौकर
ने पूरे कमरे की सफाई कर दी थी। वह दिया भी वहाँ से हटा दिया गया था। हम चारों को उस
कमरे मे बिठा कर अम्मी ने कहा… आज मै तुम्हारे सामने जो कुछ भी बोल रही हूँ वह सच है।
उस सच का हमारे रिश्तों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। एक पल रुक कर वह बोली… उस औरत का नाम
मेनका था। वह समीर की माँ थी। उसी के यहाँ आसिया और आफशाँ का बचपन बीता था। एक रात
दंगे मे उसके पूरे परिवार को उसकी आँखों के सामने कत्ल कर दिया था। इस कारण वह बेसुध
दिखती थी। मै उसे किसी तरह वहाँ से बचा कर निकाल लायी थी वर्ना वह लोग तो उसे भी वहीं
जिंदा जला देते। हम सब चुपचाप अम्मी को सुन रहे थे। बोलते हुए अम्मी की आँखों से लगातार
अश्रुधारा बह रही थी। उनको रोता हुआ देख कर हम सभी की आँखों से आँसू छलक रहे थे।
एकाएक अम्मी ने मुझसे कहा… समीर भले ही उसने
तुझे पैदा किया था लेकिन जिस दिन से तू इस दुनिया मे आया है उस दिन से मैने तुझे अपना
बेटा मान कर पाला है। तेरी हर जरुरत को मैने आज तक तेरी माँ बन कर पूरा किया है और
आगे भी करुँगी। मै तेरी अम्मी जैसे पहले थी और वैसे ही हमेशा रहूँगी। वह भले ही काफ़िर
थी परन्तु वह तेरी माँ थी। इसीलिए मैने उसके सारे अंतिम कार्य तेरे हाथ से करवाये लेकिन
इसके कारण तू मेरे लिए काफ़िर नहीं हो गया है। तेरे अब्बा और अम्मी आज भी वही है और
हमेशा रहेंगें। तू मेरा बेटा है इससे बड़ा कोई और सच नहीं है। उस वक्त मै कुछ भी समझने
की स्थिति मे नहीं था। मै पत्थर की मूर्ति बना हुआ उस औरत के बारे मे सोच रहा था। वह
मेरी माँ थी जिसे मैने आज तक नफरत और हिकारत भरी नजरों से देखा था। सभी की नजरें मुझ
पर जमी हुई हुई थी लेकिन इस वक्त मै कुछ भी बोल पाने मे अस्मर्थ था। अम्मी उठ कर मेरे
पास आयी और मेरे सिर पर हाथ फेर कर बोली… बेटा मै तेरी मनोस्थिति समझ सकती हूँ। बस
इतना समझ ले कि मै तेरी अम्मी हूँ और इस बात को कभी नहीं भूलना। यह कह कर वह चली गयी।
धीरे-धीरे सभी मुझे अकेला छोड़ कर कमरे से बाहर निकल गये थे। मै बस अपने ख्यालों मे
गुम न जाने कितनी देर तक वहीं उस कमरे मे बैठा रहा था। न चाहते हुए भी काफ़िर का लेबल
अब हमेशा के लिये मेरे माथे पर चिपक गया था।
शाम को अदा मेरे पास आकर बोली… समीर, अम्मी
ने कहा है आज से तुम अपने कमरे मे चले जाओ क्योंकि आज से यहाँ अम्मी रहेंगी। मै उसका
सहारा लेकर खड़ा हुआ और सिर झुका कर अपने कमरे की ओर चल दिया। एक बार फिर से वही रोजमर्रा
की दिनचर्या शुरु हो गयी थी परन्तु मेरे अन्दर एक अनिश्चितता
ने घर बना लिया था। आफशाँ और अदा पहले की तरह मुझसे बात करने लगी थी परन्तु अब मेरी
ओर से ही उनके लिये दीवार सी बन गयी थी। पहले उनकी बात काटने अन्यथा लड़ने मे मुझे सोचना
नहीं पड़ता था परन्तु अब मेरे अन्दर एक झिझक घर कर गयी थी। आलिया भी अब मुझसे बहसबाजी
नहीं करती थी। अचानक मैने महसूस किया कि अब तीनो मुझसे दूर रहने लगी थी। हमेशा की तरह
अजान की आवाज से उठ कर हम सब अम्मी के कमरे मे चले जाते थे और नमाज अदा करके हमारी
दिनचर्या आरंभ हो जाती थी। जिस दिन अब्बा घर लौटे उस दिन रात को एक बार फिर हम सब ने
अम्मी को अब्बा से लड़ते हुए सुना था। उसके अगले दिन अब्बा फिर से दौरे पर निकल गये
थे। वह अब कम ही घर पर आते थे। जब भी वह घर पर आते थे तब वह सिर्फ बैठक तक सिमित रहते
थे।
हमारा रिजल्ट निकला और हम सभी अच्छे नम्बरों
से पास हो गये थे। आफशाँ इन्जीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए आसिया के पास बैंगलौर चली
गयी थी। आफशाँ के जाने के बाद अदा उसके कमरे मे आलिया के साथ रहने चली गयी और मै अकेला
अपने कमरे मे रह गया था। एक दिन पता नहीं अम्मी को क्या हुआ वह मेरे पास आकर बोली…
समीर, मै चाहती हूँ कि तू फौज मे भर्ती हो जाए। यह बात सिर्फ तेरे और मेरे बीच मे रहनी
चाहिए। …अम्मी यह आप क्या कह रही है? अम्मी की बात मेरी समझ से बाहर थी। हर कश्मीरी
युवा भारतीय फौज को हिकारत की नजर से देखता था। मुझे भी उस वर्दी से घृणा थी क्योंकि
हम सभी को अभी तक यही पता था कि वह हमारे दुश्मन है। अगर कोई अपना है तो वह सरहद पार
बैठी हुई फौज है जो हमे आजाद कराने के लिए मौके का इंतजार कर रही है। …बेटा मेरी यही
इच्छा है। इसे पूरा करना तेरा फर्ज है। इसके बाद मेरे लिए भारतीय फौज मे जाना पत्थर
की लकीर बन गयी थी। अम्मी ने मेरा लक्ष्य तय कर दिया था।
भारतीय फौज मे भर्ती होने का रास्ता खोजने के लिये अगले दिन बड़ी हिम्मत करके मै श्रीनगर बस स्टैन्ड की ओर चला गया था। मैने बहुत से फौजियों को वहाँ से जम्मू की बस पकड़ते हुए देखा था। अभी तक स्कूल और मदरसे मे हमे भारतीय फौज से दूरी बना कर रखने के लिये कहा गया था। अगर कोई कश्मीरी किसी फौजी के साथ बात करता हुआ दिख जाता तो उसका सारा मोहल्ला उसे फौज के मुखबिर की उपाधि देकर उसके परिवार का बहिष्कार कर दिया करता था। काफी देर तक बस स्टैन्ड की बेन्च पर बैठ कर किसी अकेले फौजी को खोज रहा था। सुबह से दोपहर हो गयी थी लेकिन मेरी किसी से बात करने की हिम्मत नहीं हो रही थी। …बेटे इतनी देर से यहाँ बैठ कर किसका इंतजार कर रहे हो? मैने गरदन घुमा कर देखा तो मेरे से कुछ दूरी पर बैठा हुआ आदमी मेरी ओर देख रहा था। उसे देख कर मेरा जिस्म एक पल के लिये काँप गया था। वह सादे कपड़ों मे जरुर था परन्तु देखने से वह फौजी लग रहा था। वह उठ कर मेरे पास आकर बैठ गया। …क्यों बेटा क्या परीक्षा मे फेल हो गये? मैने जल्दी से उठते हुए कहा… नहीं। मेरा हाथ पकड़ कर जबरदस्ती बैठाते हुए वह बोला… तो घर से क्यों भाग रहे हो? अबकी बार बोलते हुए मेरी आवाज काँप गयी थी… नहीं मै घर से नहीं भाग रहा। …तो सुबह से यहाँ क्यों बैठे हो?
एक पल रुक कर मैने धीरे से कहा… मुझे पता करना
है कि फौज मे कैसे भर्ती होती है? वह कुछ देर तक मुझे देखता रहा और फिर मुस्कुरा कर
बोला… कितना पढ़े हो? …अभी दसवीं की परीक्षा पास की है। …कितने नम्बर आये? …88 प्रतिशत।
…हूँ…अफसर बनना चाहते हो या सिपाही? …अफसर बनूँगा। अब तक मेरी झिझक चली गयी थी। …बेटा
भारतीय फौज मे अफसर बनने के दो रास्ते है। बारहवीं के बाद राष्ट्रीय रक्षा अकादमी की
परीक्षा पास करके अथवा ग्रेजुएट बन कर सीडीएस की परीक्षा पास करके तुम फौज मे अफसर
बन सकते हो। अधिक जानकारी तुम भारतीय फौज की वेबसाइट पर आसानी से मिल जाएगी। मै चुपचाप
उसकी बात सुन रहा था कि अचानक वह उठते हुए बोला… बेटा अब फौरन यहाँ से चले जाओ। इतना
बोल कर वह तुरन्त मुझे वहीं छोड़ कर बस स्टैन्ड मे प्रवेश करती हुई बस की ओर चल दिया
था। तभी अचानक फौज के जवानों की टुकड़ी न जाने कहाँ से निकली और उस बस के रुकते ही उसे
चारों ओर से घेर कर खड़ी हो गयी थी। खतरे का आभास होते ही मै भी बस स्टैन्ड के बाहर
निकल गया था। शाम तक भारतीय फौज की वेबसाईट से सारी जानकारी निकालने के पश्चात मैने
साइंस विषय को लेकर राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के इम्तिहान को पास करने का निर्णय कर लिया
था।
स्कूल आरंभ होने से पहले एक रात सबके सोने
के बाद अदा मेरे कमरे आयी और मुझे उठा कर बोली… समीर, एक बात करनी है। मै हड़बड़ा कर
उठ कर बोला… मेरे कमरे मे इस वक्त तू क्या कर रही है। …मुझे तुमसे बात करनी है। मेरी
नींद टूट गयी थी तो मै उठ कर बैठ गया… हाँ बोलो क्या जरुरी बात करनी है जो तुम सुबह
तक नहीं रुक सकती थी। …तुम ग्यारहवीं मे कौनसा विषय लेने की सोच रहे हो समीर? …क्यों
तुम्हें क्या करना है? …मै भी वही विषय लूँगी जिससे मै तुम्हारे साथ जा सकूँगी। अब
मै उसे क्या बताता कि मैने क्या करने का निर्णय लिया है। …अदा तुम्हें जो विषय पसन्द
है वह लेना चाहिए। …समीर, मुझे तुम्हारे सिवाय कोई पसन्द नहीं है। तुम जो भी विषय लोगे
मै भी वही विषय लूँगी तो जल्दी से बताओ क्योंकि कल सुबह स्कूल जाना है। मै बड़े धर्म
संकट मे फँस गया था। इस घर की सभी लड़कियाँ अम्मी की तरह जिद्दी थी और मै सीख चुका था
कि उनके सामने हथियार डाल देने मे ही भलाई है। अब तक उन्हें संभालने के लिये मैने कुछ
पैंतरे सीख लिये थे। …ठीक है। मेरी कसम खा कर बोलो कि जो कुछ भी मै कहूँगा वह तुम्हारे
दिल मे हमेशा के लिए दफन हो जाएगा। वह बात तुम किसी से नहीं कहोगी और न ही मुझे मना
करोगी। मेरे सिर पर तुरन्त हाथ रख कर वह बोली… खुदा की कसम किसी को नहीं बताऊँगी।
…अदा, मैने सोचा है कि मै भारतीय फौज मे जाऊँगा इसीलिए साइंस और गणित लेने की सोच रहा
हूँ। यह सुनते ही वह बिदक गयी थी। …काफ़िरों की फौज मे तो बिल्कुल नहीं जाने दूँगी।
…तुमने मेरी कसम खायी है। वह कुछ देर चुप होकर बैठ गयी। एकाएक मेरे गले मे बाँहें डाल
कर धीरे से बोली… फौज मे ही क्यों और भी तो बहुत से काम कर सकते हो। उसको धीरे से अलग
करते हुए मैने कहा… बस मैने तय कर लिया है। वह काफी देर तक गुहार लगाती रही लेकिन जब
कुछ बात न बनी तो उसने मुझसे कहा… ठीक है। देख लेना कि मै कैसे भी तुम्हारे साथ ही
फौज मे भर्ती हो जाऊँगी। बस इतनी बात हमारे बीच मे हुई फिर मेरे होंठों को चूम कर बोली…
तो फिर हम फौज मे मिलेंगें। उस रात वह जैसे आयी थी वैसे ही वापिस चली गयी थी।
अगले दिन हमारा स्कूल का नया सत्र आरंभ हो
गया था। उसने भी साइंस का विषय चुना था लेकिन उसे गणित से अलर्जी थी तो डाक्टरी की
लाईन लेकर उसकी पढ़ाई आरंभ हो गयी थी। अब हम दोनो एक ही स्कूल मे जाने लगे थे परन्तु
अलग-अलग शिफ्ट हो गयी थी। जब मै स्कूल जा रहा होता था तो अदा स्कूल से लौट रही होती
थी। हम दोनो की मुलाकात अब स्कूल के बाहर होने लगी थी। मेरे दोनो बचपन के दोस्तों ने
पढ़ाई छोड़ कर अपने अब्बा के काम मे हाथ बटाना आरंभ कर दिया था। नये लोगों के बीच दो
साल न जाने कैसे निकल गये पता ही नहीं चला था। रोजमर्रा की जिन्दगी मे बस पढ़ाई और अम्मी
के साथ बगान का सारा काम मैने संभाल लिया था। इसी दौरान मुझे पता चला कि अनवर और आयशा के बीच किसी बात पर अनबन हो गयी है तो पता नहीं क्यों
लेकिन यह सुन कर मुझे अच्छा लगा था। अपनी दिनचर्या के कारण मेरा सब पुराने लोगों के
साथ संपर्क टूट कर रह गया था। अब्बा भी अब बहुत कम घर पर दिखाई देते थे। ग्यारहवीं
के बाद मैने गुपचुप राष्ट्रीय रक्षा अकादमी का फार्म भर दिया जिसका सिर्फ अदा को ही
पता था। फौज का इम्तिहान देकर चुपचाप मै अपनी बारहवीं की परीक्षा की तैयारी करने मे
जुट गया था। अदा भी अपनी पढ़ाई मे कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो गयी थी।
बारहवीं की परीक्षा से कुछ महीने पहले घर मे
एक विस्फोट हुआ। अब्बा गुस्से मे घर मे घुसते से ही दहाड़े… समीर। किस्मत की बात थी
उस वक्त मै घर पर नहीं था। वह गुस्से से आग-बबूला होकर बैठक मे जाकर बैठ गये थे। मै
और अम्मी पहलगाम के पास अपने बाग को देखने गये हुए थे। जब हम लौटे तो अदा और आलिया
घर से बाहर नाले के पास हमारे लौटने का इंतजार कर रही थी। हमारी जीप को देखते ही वह
दोनो सड़क के बीचोंबीच खड़ी हो गयी थी। जीप रुकते ही दोंनो बदहवासी मे एक साथ बोलने लगी
तो अम्मी ने उन्हें टोकते हुए कहा… एक-एक करके बोलो। …अम्मी, अब्बा सुबह से बैठक मे
गुस्से से भरे हुए बैठे है। …किसलिए? …बार-बार समीर को पूछ रहे है। यह सुन कर अब मेरे
चेहरे पर भय की लकीरें खिंच गयी थी। अम्मी ने कहा… समीर तू चिन्ता मत कर। मै सब देख
लूँगी। अम्मी का साथ मिलते ही मैने जीप घर की ओर बढ़ा दी थी। घर मे घुसते ही अब्बा की
दहाड़ सुन कर एक बार फिर से मेरी धड़कन बढ़ गयी थी। मै धीमे कदमों से चलते हुए बैठक की
ओर चल दिया। मेरे पीछे-पीछे अम्मी और दोनो लड़कियाँ भी आ गयी थी।
…आदाब अब्बा, आप कब आये? अचानक एक लिफाफा मेरे
चेहरे की ओर उछालते हुए उन्होंने गुस्से से चीखते हुए कहा… यह क्या मजाक है। मैने जमीन
पर से लिफाफा उठा कर उसकी ओर देखते हुए कहा… यह क्या है? …यही तो मै पूछ रहा हूँ कि
मुझसे बात किये बिना तुमने यह क्या किया है। मैने लिफाफे मे से कागज निकाल कर पढ़ते
हुए एकाएक खुशी से चीखा… अम्मी मैने फौज का लिखित इम्तिहान पास कर लिया है। मै बिल्कुल
भूल गया था कि सामने अब्बा बैठे हुए है। वह उठ कर मेरी ओर मारने के लिए दौड़े लेकिन
तब तक अम्मी बीच मे आ गयी थी। …हाय अल्लाह। आप यह क्या कर रहे है। जवान लड़के पर हाथ
उठाएँगें क्या। अम्मी को सामने देख कर अब्बा का सारा गुस्सा एक पल मे ही उतर गया था।
…देख लो तुम अपने लाड़ले को। अब यह काफ़िरों की फौज मे जाने की सोच रहा है। अम्मी ने
मेरी ओर देखते हुए कहा… क्या सच मे तू फौज मे जाएगा? अबकी बार मैने संभल कर कहा… अम्मी
मैने तो अभी लिखित परीक्षा पास की है। अभी
तो इंटरव्यु और फिजिकल टेस्ट बाकी है। फिलहाल तो बारहवीं की परीक्षा पास करना मेरी
पहली जिम्मेदारी है। अम्मी ने तुरन्त कहा… जाओ समीर तो इम्तिहान की तैयारी करो। आज
का सारा दिन तो बाग के काम मे निकल गया। मै बाहर निकलने के लिए बढ़ा तभी अब्बा की आवाज
गूँजी… फौज का ख्याल निकाल दो। इंटरव्यु मे जाने की जरुरत नहीं
है। …जी अब्बा। कह कर मै बाहर निकल गया था। मेरे पीछे-पीछे अम्मी भी बाहर निकल आयी
थी। मै उनके लिए खड़ा था। मैने उनको बाँहों मे भर कर उठा कर नाचने लगा। …अरे गिर जाऊँगी।
मुझे नीचे उतार। लेकिन मै उन्हें उठाए उनके कमरे की ओर चल दिया। …समीर, कब जाना है?
…अम्मी बोर्ड के इम्तिहान के बाद दिल्ली मे इंटरव्यु है और उसके बाद फिजिकल की तारीख
मिलेगी। अम्मी ने चुपचाप सुना और फिर धीरे से बोली… तुझे यह दोनो इम्तिहान पास करना
है। मै उनके गाल को चूम कर बाहर निकल गया था।
रात को एक बार फिर से अब्बा की अम्मी के साथ
किसी बात पर बहस हुई थी। मुझे यकीन था कि अदा आज रात को वह जरुर आएगी
इसलिए मै जाग रहा था। मैने काफी देर तक उसका इंतजार किया परन्तु उस रात वह नहीं आयी।
अब्बा देर रात को ही चले गये थे। बोर्ड की परीक्षा सिर पर थी इसीलिए हम दोनो का सारा
समय पढ़ाई मे गुजर रहा था। अदा की कोचिंग क्लासेज के कारण वह भी अब कम ही दिखाई देती
थी। जबसे उसे पता चला था कि मेरा फौज मे जाना निश्चित सा हो गया था तबसे वह मुझसे कटी-कटी
सी रहने लगी थी। बोर्ड की परीक्षा आरंभ हो गयी और कब समाप्त भी हो गयी पता ही नहीं
चला। एक बार फिर से दिमाग पर पड़ा हुआ भार हट गया था। इंटरव्यु की तारीख भी नजदीक आ
रही थी। एक दिन मैने अम्मी से कहा… अम्मी अगले हफ्ते मेरा इंटरव्यु है। मुझे दिल्ली
जाना है। अम्मी ने कुछ नहीं कहा बस सिर हिला दिया था। कुछ देर के बाद वह बोली… समीर,
तुम अकेले दिल्ली कैसे जाओगे? यही सवाल तो
मुझे भी परेशान कर रहा था। अम्मी ने मेरे सिर पर हाथ फिरा कर कहा… तुम अपनी तैयारी
करो। मै देखती हूँ कि कौन तुम्हारे साथ दिल्ली जा सकता है। यह कह कर अम्मी चली गयी
थी। दो दिन बाद अम्मी ने कहा… समीर, श्रीनगर से दिल्ली और दिल्ली से श्रीनगर की सीधी
फ्लाईट है। इंटरव्यु से एक दिन पहले पहुँच जाना और उसके अगले दिन वापिसी की फ्लाईट
से यहाँ वापिस पहुँच जाओगे। दो रात गुजारने के लिए तुम्हारा ठहरने का इंतजाम भी करवा
दूँगी तो कैसा रहेगा? …अम्मी आप भी चलती तो कितना अच्छा होता। …मै जाना तो चाहती थी
परन्तु क्या करुँ अदा की डाक्टरी की परीक्षा भी नजदीक है। तुम चिन्ता मत करो मैने अपनी
एक सहेली से बात कर ली है वह सब इंतजाम कर देंगी।
अम्मी ने सारा इंतजाम कर दिया था। मैने भी
अपनी तैयारी कर ली थी। अगले दिन दोपहर की फ्लाईट थी। उससे एक रात पहले मै अदा के कमरे
मे चला गया था। अदा अपनी पढ़ाई मे व्यस्त थी और आलिया अपने कान पर हेडफोन लगाये गाने
सुन रही थी। मुझे इतनी रात मे अन्दर आते हुए देख कर दोनो चौंक गयी थी। …मै कल दिल्ली
जा रहा हूँ। अदा तुम्हारे इम्तिहान के लिए बेस्ट आफ लक कहने के लिए आया हूँ। बेस्ट
आफ लक। अदा ने मुस्कुरा कर कहा… तुम्हारे इंटरव्यु के लिए भी बेस्ट आफ लक। आलिया ने
तुरन्त वही बात को दोहरा कर वापिस हेडफोन अपने कान पर लगा लिया था। मन मसोस कर मै वापिस
अपने कमरे मे आ गया था। अगले दिन मै दिल्ली के लिए चल दिया। अम्मी मुझे एयरपोर्ट पर
छोड़ने आयी थी। मेरी पहली फ्लाईट थी इसीलिए थोड़ी घबराहट भी थी लेकिन एयरपोर्ट से ही
जो कुछ भी देख रहा था वह मेरे लिए सब कुछ नया सा था। मैने अभी तक सिर से पाँव तक स्कार्फ
और फेयरन मे ढकी हुई लड़कियाँ और कुर्ते-पाजामे और सिर पर गोल टोपी लगाये लड़के देखे
थे परन्तु एयरपोर्ट पर सब कुछ बदला हुआ सा लग रहा था।
दिल्ली एयरपोर्ट पर मेरी मुँहबोली खाला और उनका लड़का हामिद आये थे। वह मुझे अपने घर ले गये परन्तु तब
तक मै एहसास-ए-कमतरीं का शिकार हो चुका था। मुझे अपने उपर शर्म आ रही थी। सभी लोग कितने
स्मार्ट और तहजीब वाले लग रहे थे। कुर्ता-पजामा की जगह पेन्ट और टी-शर्ट पहने हुए लड़के
और तितलियों सी उड़ती हुई लड़कियाँ चारों ओर दिख रही थी। मेरी खाला की
बेटियाँ भी मेरी हम उम्र थी। हामिद का टायरों का काम था। उसका छोटा भाई इमरान डाँसिंग
क्लास चलाता था। अगली सुबह मै जल्दी उठ कर तैयार होने चला गया। जब तक मै तैयार हुआ
तब तक सभी गहरी नींद मे सो रहे थे। मुझे साड़े नौ बजे तक इंटरव्यु के लिए पहुँचना था
तो मैने सोते हुए हामिद को उठाया… हामिद भाईजान, मुझे इंटरव्यु के लिए जाना है। प्लीज
मुझे वहाँ छोड़ दीजिए। बेचारे हामिद भाईजान नींद से बोझिल आँखे
लिये अपनी मोटरसाईकिल पर बिठा कर मुझे छोड़ने के लिये चल दिये थे। उन्होनें इंटरव्यू
के स्थान के बाहर छोड़ते हुए मुझसे कहा… समीर मियाँ जब इंटरव्यु खत्म हो जाए तो मुझे
फोन पर खबर कर देना। मै आकर ले जाऊँगा। इतना बोल कर वह वापिस चले गये थे।
इंटरव्यु के तुरन्त बाद ही एक फौजी अफसर ने
मेरे हाथ मे एक ट्रेवल वारन्ट थमा कर कहा… ट्रेन पकड़ कर परसों सुबह आठ बजे तक एलाहाबाद
आर्मी ट्रेनिंग सेन्टर मे रिपोर्ट करो। बस इतना कह कर वह वापिस चला गया था। मैने हामिद
भाई को फोन करके बता दिया कि वह आकर मुझे ले जाएँ परन्तु उन्होंने बताया कि उनको पहुँचने
मे दो घन्टे लग जाएँगें। मेरे पास कोई काम नहीं था तो मै बस स्टाप पर बैठ कर आने जाने
वाले लोगो को देख कर सोच रहा था कि हमारा इलाका अभी तक कितना पिछड़ा हुआ है। श्रीनगर
की वादी और महानगर मे कितना फर्क है। वहाँ आये दिन विस्फोट और कर्फ्यु का डर सताता
रहता था और यहाँ पर लोग बेहिचक और बेपरवाह होकर कैसे घूम रहे थे। हामिद भाई ने आते
ही पूछा… कैसा रहा इंटरव्यु? …ठीक था। बस एक नयी मुश्किल खड़ी हो गयी है भाईजान। मुझे
आज रात को ही एलाहाबाद जाना होगा। …क्यों? …मुझे फिजीकल टेस्ट के लिए वहाँ भेजा गया
है। उनके घर पहुँच कर जब यह खबर मैने टेलीफोन पर अम्मी को दी तो वह बेचैन हो गयी थी।
…समीर, तुम यह सब कैसे करोगे? …आप बेफिक्र रहिए अम्मी। बस लौटने की टिकिट कैन्सिल करवा
दीजिएगा। मै अपने आप दो चार दिन मे श्रीनगर पहुँच जाऊँगा। बस
दुआ करिए की मै सभी इम्तिहान मे पास हो जाऊँ। कुछ देर बात करने के बाद मैने कहा… बस
कुछ भी करके अब्बा को आप संभाल लेना। इतना कह कर मैने फोन काट दिया था।
शाम को हामिद भाई मुझे रेलवे स्टेशन पर छोड़
कर वापिस चले गये थे। मै रेलवे स्टेशन पर वारन्ट आफीसर का कमरा ढूँढते हुए जब तक वहाँ
पहुँचा तब तक कुछ जाने पहचाने चेहरे उस कमरे के बाहर खड़े हुए दिखाई दिये तो उनको देख
कर मेरी हिम्मत बढ़ गयी थी। मैने उन्हें इंटरव्यु के दौरान वहीं आफिस मे अपनी बारी का
इंतजार करते हुए देखा था। कुल मिला कर हम बीस लड़के थे। सभी अलग-अलग जगह से आये थे।
रात की तीन बजे की ट्रेन मे हमे जगह मिली थी। हम सब एक समूह बना कर बैठ गये और अपने-अपने
किस्से कहानी सुनाने मे व्यस्त हो गये थे। पहली बार मुझे लगा कि मै अब अकेला नहीं हूँ।
हम अगले दिन दोपहर तक एलाहाबाद पहुँच गये थे। आर्मी का एक ट्रक स्टेशन के बाहर हमारे
लिए खड़ा था। हम सभी उसमे बैठ कर सेन्टर की ओर चल दिये थे। हम तीन दिन वहाँ रुके और
वहीं पर हमारा फिजिकल और मेडिकल टेस्ट हुआ और फिर अपने-अपने शहरों तक पहुँचने का वारन्ट
बनवा कर वापिस चल दिये थे। मै ट्रेन से एलाहाबाद से दिल्ली और फिर वहाँ से जम्मू बिना
किसी परेशानी के पहुँच गया था। जम्मू से श्रीनगर जाने के लिए जम्मू स्थित वारंट आफीसर
की मदद से मुझे लेह जाने वाले आर्मी कोनवोय के एक ट्रक मे जगह मिल गयी थी। सातवें दिन
मै सुरक्षित वापिस घर पहुँच गया था।
अम्मी को देखते ही मै उनसे लिपट गया था। अम्मी
की आँखों से आसुओं की झड़ी लग गयी थी। अदा और आलिया भी दौड़ कर आयी और हमसे लिपट गयी
थी। उनके लिए भी यह पहला अवसर था कि मै सात दिन घर से गायब रहा था। मेरी हालत भी उनसे
भिन्न नहीं थी। उनसे मिल कर मुझे अन्दरुनी खुशी का एहसास हो रहा था। कुछ पलों के लिये
दिमाग से काफ़िर वाला बोझ निकल कर वापिस बचपन मे आ गया था। मै सभी से खुल कर बात कर
रहा था। मेरे अन्दर आये हुए इस बदलाव को देख कर अम्मी ही नहीं अपितु अदा, आलिया और
सारे नौकर चाकर भी हैरान थे। खाना खिलाते हुए अम्मी ने कहा… समीर, सात दिन मे तुम्हारी
काया पलट हो गयी है। तुम पहले वाले मासूम और सहमे से समीर नहीं रहे। …अम्मी, दिल्ली
तक तो मै डरा हुआ था। जब मै एलाहाबाद के लिए निकला तब से मुझमे अचानक बदलाव आने लगा
था। मुझको मिला कर मेरे जैसे बीस लड़के थे। उनके साथ तीन दिन बिताने के बाद अपने आप
ही आत्मविश्वास आ गया था। उस दिन हम काफी देर तक दिल्ली और एलाहाबाद की बात करते रहे
थे। अचानक पता नहीं क्यों अम्मी ने कहा… चलो मैने तेरी आँखों से यह दोनो जगह देख ली
है। मै तो यहाँ से आज तक बाहर नहीं निकल सकी शायद इसीलिए मैने आसिया और आफशाँ को अपनी
जिन्दगी अपने हिसाब से जीने के लिए बैंगलौर भेज दिया था। एक पल के लिए मुझे अम्मी के
कथन मे कहीं दुखी मन की पीड़ा का एहसास हुआ था।
…समीर। मैने सिर उठा कर देखा तो दरवाजे पर
अदा और आलिया खड़ी थी। …हम अन्दर आ जाए? …क्या तुम दोनो पहले कभी इस कमरे मे पूछ कर
आयी हो जो आज पूछ रही हो। दोनो चलते हुए मेरे पास आकर चुपचाप खड़ी हो गयी थी। वह कुछ
समझ पाती इससे पहले मैने उन दोनो को अपनी बाँहे फैला कर जकड़ कर खड़ा हो गया। वह दोनो
हाथ-पाँव चलाती हुई हवा मे झूल रही थी। यह उनके साथ पहली बार हुआ था। जब से मुझे अपनी
असलियत का पता चला था तभी से मै सबसे दूरी बना कर झिझकते हुए ही बात करता था। इतने
दिनों के बाद वह खुल कर हँस रही थी। कुछ देर हवा मे झुलाने के बाद मैने नीचे उतारते
हुए कहा… तुम दोनो के लिए मै कुछ लाया हूँ। वह दोनो आँखें फाड़े हैरत से मुझे देख रही
थी। …क्या हुआ? आलिया ने मुस्कुराते हुए कहा… समीर तुम बदल गये हो। …हाँ। अभी तक मै
अनजान था परन्तु आज तुम दोनो को देख कर मुझे समझ मे आया कि तुम दोनो से हसीन और शोख
दुनिया मे कोई नहीं है। मै जल्दी से दरवाजा भिड़ा कर अपना बैग उठा कर ले आया। …दिल्ली
मे खाला की लड़कियों को देख कर मुझे एहसास हुआ कि हम लोग कितने
पिछ्ड़े हुए है। मैने बैग से उनके लिए टी-शर्ट और जीन्स की पेन्ट निकाल कर उनके हाथ
मे रखते हुए कहा… यह फेयरन और पजामी का जमाना चला गया। आज लड़कियाँ पेन्ट और स्कर्ट
मे खुले आम सड़क पर हील की सैन्डल और जूते पहन कर घूमती है। मै अपनी रौ मे बोलता चला
जा रहा था और वह दोनो अचरज से मेरी ओर देख रही थी। उनके लिए जो लाया था बिस्तर पर रखते
हुए मैने कहा… यह सब तुम्हारे लिए है। आलिया फौरन अपना सामान छाँटने मे लग गयी थी।
आलिया अपना सामान उठा कर चली गयी लेकिन अदा वहीं खड़ी रही। मैने बचा हुआ सारा सामान
इकठ्ठा करके उसके हाथ मे रखते हुए कहा… मै तुम्हारे लिए लाया था। वह चुपचाप कुछ देर
खड़ी रही फिर बचा हुआ सामान उठाकर चली गयी। मुझे समझ मे नहीं आ रहा था कि उसको क्या
हो गया है। एक काफ़िर होने के डर का बीज एक बार फिर से अंकुरित हो गया था। मै चुपचाप
एक बार फिर से बिस्तर पर बैठ गया था।
उसी शाम वादी मे शिया-सुन्नी के दंगे हो गये
थे। उसी शाम अब्बा का भी आगमन हो गया था। पता नहीं किसी बात पर दो गुटों के बीच मे
कहा सुनी हो गयी तो उनकी आवाजें बैठक मे गूँजने लगी थी। जब आवाज तेज होने लगी तो मै
भी कमरे से बाहर निकल आया था। …धाँय…गोली चलने की आवाज के साथ ही सब कुछ शान्त हो गया
था। अब्बा बैठक से निकल कर आंगन मे तेजी से आये तो उनकी नजर मुझ पर पड़ी तो ठिठक कर
रुक गये थे। उनके चेहरे पर बदहवासी और आँखों मे दरिंदगी टपक रही थी। …साले काफ़िर की
औलाद छिप कर क्या सुन रहा था? मै अपनी जगह पर जड़वत खड़ा उनके इस नये रुप को देख रहा
था। उनके हाथ मे पिस्तौल नजर आते ही अम्मी ने मुझे धक्का देकर बोली… समीर भाग यहाँ
से। मुझे कुछ समझ मे नहीं आया और मैने तेजी से चार कदम लेकर पूरी ताकत से अब्बा के
सीने पर अपने कन्धे से वार किया तो वह लुड़कते हुए हुए दीवार से जा टकराये थे। उनकी
पिस्तौल उनके हाथ से छिटक कर जमीन पर गिर गयी थी। मैने आगे बढ़ कर पिस्तौल उठा कर अब्बा
पर तान दी परन्तु तभी पीछे से अम्मी निकल कर मेरे सामने खड़ी हो गयी… नहीं समीर। इसके
गुनाह की सज़ा खुदा देगा। इस जालिम के लिए तू अपने भविष्य को मत बर्बाद कर। तुझे मेरी
कसम। जाने दे इसे। यह कहते हुए अम्मी आगे बढ़ी और मेरे हाथ से पिस्तौल छीन कर मुझे खींचते
हुए कमरे मे ले गयी और अन्दर धकेल कर दरवाजा बन्द कर दिया। मेरे कान मे बस एक ही चीज
गूँज रही थी… काफ़िर की औलाद।
Bahut badhiya bhaag hai aakhir Samir ko Sachayi ka pata chal gaya magar apne asli maa ko upar huye darindgi ko uske ammi ne chupa gayi magar akhri mein Sameer ko jo uske abbu ne bola woh shayad bahut din tak uske Jehan mein bajti rahegi....
जवाब देंहटाएंमित्र शुक्रिया कि आप इस कहानी के साथ जुड़ गये है। सही बात है कि काफ़िर का टैग लगने के बाद दिशा और दशा ही बदल जाती है।
हटाएंएक और बेहतरीन अपडेट🙏
जवाब देंहटाएंलाजवाब ....... बेहतरीन......शानदार..........
जवाब देंहटाएं