रविवार, 9 अक्टूबर 2022

  

काफ़िर-5

 

रावलपिंडी

एक विशाल कमरे मे कुछ लोग बैठे हुए गहन चर्चा मे व्यस्त थे। आईएसआई का निदेशक जनरल मंसूर बाजवा अपनी रिपोर्ट सबके सामने रखने के बाद बोला… जनरल, आप्रेशन टोपेक की कामयाबी है कि हमारी द्वारा बनायी हुई तंजीमो ने मकबूजा कश्मीर को हिन्दु विहीन कर दिया है। अब हमारी पकड़ उस इलाके मे और भी ज्यादा मजबूत हो गयी है। …बाजवा, आप्रेशन टोपेक सिर्फ मकबूजा कश्मीर तक सिमित नहीं है। अब हमे पूरे भारत मे अपनी योजना को कार्यान्वित करना है। इसके लिये मैने एक तीन सदस्यीय टीम का गठन किया है। मिस्टर स्टोन का सुझाव है कि इस टीम को सरकार की बन्दिशों से बाहर रखा जाये। यहाँ आये दिन राजनीतिक उथल-पथल मची रहती है। इसीलिए यह टीम सरकार से बाहर रह कर काम करेगी। इसका बजट और कार्यक्षेत्र रावलपिंडी के द्वारा निर्धारित होगा। इस टीम ने आईएसआई के लिये एक कार्य रेखांकित किया है। आईएसआई भारत के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों मे अपना नेटवर्क खड़ा करेगी। फौज की आईएसपीआर का काम यहाँ के सूचना तंत्र के द्ववारा भारतीय मुस्लिमों मे अपनी सरकार के प्रति अविश्वास पैदा करना होगा। तभी बैठे हुए एक व्यक्ति ने जनरल को बीच मे टोकते हुए पूछा… जनाब, उस टीम ने बजट का क्या इंतजाम सुझाया है? जनरल ने मुस्कुरा कर उस व्यक्ति की ओर देखते हुए कहा… शाहिद मियाँ, तुम फौज के बजट की चिंता करना छोड़ दो। इस काम के बजट का इंतजाम अलग से किया जा रहा है। हमारी फौज का एक इदारा जो सबकी नजरों से छिप कर काम करता है वही इसके लिये पैसों का इंतजाम करेगा। शाहिद ने झेंपते हुए कहा… सर, मेरा मतलब वह नहीं था। आईएसआई का निदेशक मंसूर बाजवा ने तुरन्त कटाक्ष मारा… जनरल शाहिद भले ही फौज के वित्त विभाग के मालिक है परन्तु खुद को पाकिस्तान के वित्त मंत्री से कम नहीं समझते है। इससे पहले शाहिद कुछ बोलता कि तभी जनरल ने घुर्राते हुए टोका… मंसूर, जो जिसका काम है उसे वह करने दो। अफगानिस्तान की ड्र्ग्स को भारत मे पहुँचाने के लिये अब समुद्री रास्ता सुरक्षित नहीं रहा है। दुबई भी भारतीय सुरक्षा एजेन्सियों की नजरों मे आ गया है। अचानक एक विदेशी महिला जो अभी तक चुपचाप उनकी बातें सुन रही थी वह बोली… जनरल, मेरी सरकार की मध्यस्था के कारण भारत सरकार मकबूजा कश्मीर के व्यापार को बढ़ाने के लिये मुजफराबाद का रास्ता खोलने की सोच रही है। आप लोग उस रास्ते का उचित इस्तेमाल करने के लिये सोचिये। बस इस बात का ख्याल रखिएगा कि उस रास्ते से कभी अपने जिहादी मत भेजिएगा। इस खबर ने बैठे हुए सभी लोगों को अचानक हैरत मे डाल दिया था। वह विदेशी महिला बस इतना बोल कर अपनी योजना सबके सामने बताने मे व्यस्त हो गयी थी।  

 

उसी रात शिया-सुन्नी के दंगों के कारण श्रीनगर शहर मे कर्फ्यु लग गया था और उस घटना के बाद से मै कमरे मे कैद होकर रह गया था। अब्बा तो उसी रात घर छोड़ कर चले गये थे। बस अम्मी चुपचाप मेरे पास आती और खाना खिला कर वापिस चली जाती थी। उस दिन के बाद से मेरे साथ कोई बात नहीं कर रहा था। अठारह साल साथ रहने के बाद अब मै सबकी नजर मे एक काफ़िर हो गया था। कमरे मे अकेला बैठे रहने के कारण मेरे दिमाग मे हजारों सवाल आते परन्तु उन सवालों का जवाब देने वाला कोई नहीं था। जो इंसान मेरे सवालों का जवाब दे सकता था उसने भी मुझसे बात करना बन्द कर दिया था। कुछ दिन ऐसे ही गुजर गये तब मेरा सब्र जवाब देने लगा था। कुछ सोच कर मैने अपना बैग बाँध लिया और अम्मी के आने के इंतजार मे बैठ गया। अम्मी ने खाना मेज पर लगाया और मेरे सामने वह हमेशा की तरह सिर झुका कर बैठ गयी थी।

कुछ सोच कर मैने दिल कड़ा करके कहा… अम्मी मै जा रहा हूँ। अम्मी ने सिर उठा कर मेरी ओर देखा तो उनकी आँखो से आँसू बह रहे थे। …मै जा रहा हूँ। बस मुझे इतना बता दीजिए की आखिर मेरा वुजूद क्या है। मै कौन हूँ? इतने दिनों मे पहली बार अम्मी ने सिसकते हुए कहा… तू मेरा बेटा है। क्या इतना काफी नहीं है। …अम्मी तुम्हारा बेटा तो मै मरते दम तक रहूँगा। मै तो आज तक उस औरत को अपनी माँ के रुप मे स्वीकार नहीं कर सका जिसने मुझे पैदा किया था। लेकिन ऐसा कब तक चलेगा। …समीर, अगर तू दुनिया के लिए काफ़िर है तो भी तू सिर्फ मेरा बेटा है और मेरा ही रहेगा। तेरी माँ को तो पता भी नहीं था कि उसका एक बेटा है। उस बेचारी को तो सिर्फ इतना ही पता था कि वह प्रेगनेन्ट है। उस रात वह दरिंदा उसकी आबरु तार-तार करके उसे वहीं जलने के लिए छोड़ गया था। मै उसको सबकी नजरों से बचा कर यहाँ अपने पास ले आयी थी। इसके आगे अगर तुम पुराने घाव छेड़ने की कोशिश करोगे तो सिर्फ मवाद ही निकलेगा। …अम्मी मुझे समझ मे नहीं आ रहा है कि मै क्या करुँ? मुझे ऐसा लगता है कि हर कोई मुझे काफ़िर कह कर चिड़ा रहा है। अम्मी उठ कर मेरे पास आकर बोली… समय सारे घाव भर देता है। तू जाना चाहता है तो मै तुझे रोकुँगी नहीं। यहाँ से बाहर निकल कर दुनिया देख और उसे समझ लेकिन इतना याद रखना की तेरी एक माँ है। मेरी इस जायदाद का सिर्फ तू अकेला वारिस है। इस जायदाद को तेरी माँ ने बनाया और सींचा है। इसमे उस आदमी का कोई हाथ नहीं है। बस अपनी खैर खबर देते रहने और मेरी कसम को कभी मत भूलना। इतना बोल कर अम्मी बाहर निकल गयी थी।

मैने अपना बैग कन्धे पर डाला और चलने से पहले अदा और आलिया से मिलने के लिए उनके कमरे की ओर चला गया। दोनो अपनी सोच मे गुम थी जब मैने उनके कमरे मे प्रवेश किया था। मुझे देखते ही दोनो सावधान होकर बैठ गयी थी। …मै जा रहा हूँ। पता नहीं अब कब मिलना होगा। खैर तुम दोनो हमेशा मेरी दुनिया मे सबसे हसीन याद के रुप मे रहोगी। खुदा हाफिज़। बस इतना कह कर मै उन्हें वही छोड़ कर बाहर निकल आया था। दरवाजे पर अम्मी खड़ी हुई थी। वह मेरे पास आयी और मेरे हाथ मे कुछ नोटों की गड्डियाँ रखते हुए बोली… मेरी दुआ हमेशा तेरे साथ रहेंगी। एक इंसान का आज भी तुझ पर हक है। वह तेरी बुआ है। उस वक्त वह मुंबई मे डाक्टरी पढ़ रही थी। उसका नाम अंजली कौल है। अगर कभी मुंबई जाना हो तो एक बार उससे मिलने की जरुर कोशिश करना। मै अम्मी से गले मिला और एक बार उन लड़कियों के भिड़े हुए दरवाजे पर नजर डाल कर उस घर से हमेशा के लिये विदा लेकर मै वहाँ से चल दिया था।

उसी शाम श्रीनगर से बस पकड़ कर मै जम्मू की ओर निकल गया था। मुझे समझ मे नहीं आ रहा था कि बारहवीं पास इंसान के लिए इस दुनिया मे क्या भविष्य है। मेरे मन मे आया कि जब कुछ करने को नहीं है तो एक बार मुंबई चल कर अपनी बुआ को ढूँढा जाए क्योंकि तब तक बोर्ड की परीक्षा और फौज का भी नतीजा आ जाएगा। यही सोच कर जम्मू से मुंबई के लिए चल दिया था। एक बार पहले भी रेल का सफर कर चुका था इसीलिए मुंबई पहुँचने मे कोई ज्यादा मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा था। मुंबई सेन्ट्रल पर पहुँच कर पहली बार मेरा इंसानी भीड़ से सामना हुआ था। सभी किसी दौड़ मे भाग ले रहे थे। किसी के पास किसी के लिए समय नहीं था। स्टेशन से बाहर निकल कर मेरी नजर एक छोटी सी मस्जिद पर पड़ी तो उस ओर चला गया था। मेरे लिए सिर्फ वही एक जानी पहचानी जगह थी जहाँ इस भीड़ मे खुद को महफूज समझ सकता था। मुझे अन्दर आते हुए देख कर मौलवी साहब ने टोका… क्यों मियाँ किस से मिलना है? …जनाब श्रीनगर से आया हूँ। यहाँ की भीड़ देख कर जरा घबरा गया था तो सुकून से सोचने के लिए यहाँ आ गया। …क्या नाम है? …समीर बट। …कौन मुसलमान हो? यह प्रश्न सुन कर एक पल लिए मेरी सारी सोच गडमड हो गयी थी। अपने आप को संभालते हुए मैने जवाब दिया… पता नहीं जनाब। परन्तु सारा जीवन दीन की शिक्षा ली है। मेरे जवाब से मौलाना नाखुश से दिखे और फिर त्यौरियाँ चड़ा कर बोले… मियाँ क्या फिल्म की चाहत मुंबई खींच लाई है? …नहीं जनाब। अपनी बुआ को ढूँढने के लिए आया हूँ। वह किसी अस्पताल मे काम करती है। …यहाँ तो हजारों अस्पताल है। …मौलना साहब कहीं ठहरने का इंतजाम हो जाए तो फिर उसके बारे सोचूँगा। …मियाँ मस्जिद मे तो आजकल ठहराना मना है लेकिन पास ही कुरैशी का होटल है। वहाँ की डारमेटरी मे ठहर सकते हो। कुछ पैसे है कि नहीं? …थोड़े से पैसे लेकर चला था। …चलो मै बात कर लेता हूँ लेकिन याद रहे हर जुमे की नमाज के लिये इसी मस्जिद मे आना होगा। …जी जनाब।

मौलाना की मदद से बीस रुपये मे एक बिस्तर मिल गया था। मैने अपना बैग सिरहाने लगाया और सोचने बैठ गया कि बुआ का कैसे पता लगाया जाए। मेरे जन्म पर मेरी बुआ यहाँ पर डाक्टरी की पढ़ाई कर रही थी। बस इसी सूचना के सहारे अपनी बुआ को ढूँढने के लिए निकल गया था। सड़क पर चलते हुए मुझे एक डाक्टर की दुकान दिखाई दी तो कुछ सोच कर मै उसकी दुकान मे घुस गया। इक्के-दुक्के मरीज अपने नम्बर की प्रतीक्षा कर रहे थे तो मै भी चुपचाप लाइन मे बैठ गया था। दोपहर का समय था तो ज्यादा भीड़ नहीं थी। मेरा जब तक नम्बर आया तब तक दुकान काफी खाली हो चुकी थी। वृद्ध डाक्टर ने मेरी ओर देखते हुए कहा… क्या तकलीफ है? …मुझे कोई तकलीफ नहीं है। मुझे सिर्फ यह जानना है कि अगर किसी डाक्टर का पता लगाना हो तो क्या करना चाहिए? …क्या मेरा समय खराब करने के लिए निकले हो? …डाक्टर साहब आपकी फीस के पैसे तो दे रहा हूँ। मेरी तकलीफ मैने आपको बता दी अब आप उसका इलाज बता दीजिए। एक बार मुझे उसने घूर कर देखा और फिर कुछ सोच कर बोला… तुम बाहर जाकर बैठो। बेचारे जो तकलीफ मे बाहर बैठे है पहले मै उनको देख लेता हूँ। मै बाहर जाकर बैठ गया। एक-एक करके जब सभी लोग चले गये तब मै एक बार फिर से उसके सामने जाकर बैठ गया।

…हाँ अब बताओ कि क्या चक्कर है? …मेरी बुआ 1989 मे यहीं के किसी कालेज से डाक्टरी की पढ़ाई कर रही थी। मै उसको ढूँढ रहा हूँ। आप डाक्टर है तो क्या आप बता सकते है कि उसको कैसे ढूँढा जा सकता है। वह कुछ देर तक सोचता रहा और फिर बोला… काउन्सिल के दफ्तर चले जाओ। कालेज से निकलने के बाद हर डाक्टर को काउन्सिल मे पंजीकृत करना अनिवार्य है। अगर तुम्हारी बुआ ने डाक्टरी की पढ़ाई यहाँ से की है तो उसकी सारी जानकारी वहाँ से मिल जाएगी। डाक्टर ने काउन्सिल का पता लिख कर उठते हुए कहा… अगर तुम्हें मुश्किल हो तो मेरा एक जानकार वहाँ काम करता है। मेरा नाम लेकर तुम उस से मिल लेना वह तुम्हारी जरुर मदद कर देगा। उसका नाम म्हात्रे है। आफिस सुप्रिटेन्डेन्ट के पद पर काम करता है।…आपकी क्या फीस है? …जब बुआ मिल जाए तब फीस की बात कर लेंगें। लेकिन अब जाने की जरुरत नहीं है क्योंकि जब तक तुम पहुँचोगे तब तक शाम हो जाएगी। कल सुबह ही वहाँ पहुँच जाना तो रिकार्ड ढूँढने के लिए काफी समय मिल जाएगा। इतनी जानकारी लेकर मै समुद्र के किनारे घूमने चला गया था। देर रात को मै कुरैशी होटल वापिस पहुँच गया था।

रात तक वहाँ के सभी बिस्तर भर चुके थे। सभी लोग फिल्मी बातों मे उलझे हुए थे। एक नये चेहरे को देख कर पल भर के लिए चुप हो गये थे। मै चुपचाप अपने बिस्तर पर जाकर लेट गया तो एक बार फिर से बातों का दौर आरंभ हो गया था। कोई नयी फिल्म की लांच हुई थी। कश्मीर मे तो सभी सिनेमा हाल पर ताला पड़ गया था इसीलिए फिल्मों की मुझे कुछ खास जानकारी नहीं थी। अचानक मेरे साथ बैठे हुए आदमी ने मुझसे कहा… क्या फिल्मों मे काम करने आये हो? …नहीं। वह हंस कर बोला… शुरु मे सभी यही कहते है लेकिन फिर जल्दी ही उनकी परतें खुलनी शुरु हो जाती है। मै भी यहाँ हीरो बनने के लिये आजमगड़ से आया था। परन्तु अब छोटे-मोटे किरदार फिल्मों मे कर रहा हूँ। उनमे से एक बोला… जहीर भाई, कल मेरे मास्टर ने बताया कि रेड्डी को कुछ लोगों की जरुरत है। एक बार रेड्डी से मिल कर देखिए शायद कोई रोल मिल जाए। कुछ देर तक मै उनकी बात सुनता रहा और फिर करवट लेकर सो गया।

अगली सुबह मै मेडिकल काउन्सिल के आफिस के बाहर नौ बजे तक पहुँच गया था। दो बसें बदल कर आधी मुंबई देखते हुए वहाँ पहुँचा था। मैने गेट पर खड़े हुए चौकीदार से म्हात्रे के बारे मे पहले ही पूछ लिया था। म्हात्रे के आते ही उसने मुझे इशारा करके बुला कर उससे मिला दिया था। …सर, मुझे डाक्टर डाले ने आपके पास भेजा है। यह कह कर मैने उसको अपनी परेशानी से अवगत करा दिया। म्हात्रे ने पहले कुछ टालमटोल किया फिर चाय पीने के बहाने बाहर ले जाकर बोला… कुछ पैसे लगेंगे। …कितने? …पाँच हजार। …म्हात्रे साहब, मै बीस रुपये रोज के बिस्तर पर सो रहा हूँ। इतने पैसे तो नहीं दे सकूँगा। हाँ अगर मेरी बुआ मिल गयी तो इनाम के तौर पर जरुर आपको उनसे कुछ पैसे दिलवा दूँगा। म्हात्रे बड़ा घाघ बुढ्ढा था। काफी देर तक कहानी करने के बाद पाँच सौ रुपये पर बात आकर रुक गयी थी। आखिरकार मैने अपनी जेब खाली करके उसके आगे तीन सौ रुपये रखते हुए कहा… सारे पैसे आपके सामने है। यह पैसे लेकर इसमे से भी आपको दस रुपये देने होंगें क्योंकि मेरे पास वापिस लौटने के बस का किराया नहीं होगा। कुछ देर तक वह अनाप-शनाप बोलता रहा और फिर पैसे लेकर उसने कहा… यहाँ रुको मै अभी आता हूँ। वह अन्दर चला गया और एक घंटे के बाद एक कागज मेरे हाथ मे देते हुए बोला… यह लो। यह उसके रजिस्ट्रेशन फार्म की कापी है। …दस रुपये? उसने एक बार मेरी ओर मुस्कुरा कर देखा और फिर एक दस का नोट मेरी हथेली पर रख कर बोला… बुआ मिल जाए तो मेरा इनाम मत भूलना। मैने हाथ मिलाया और वहाँ से चल दिया। उस कागज पर मेरी बुआ की धुंधली सी तस्वीर थी और मुंबई के ग्रांट मेडिकल कालेज और चर्चगेट का अस्थायी पता लिखा हुआ था। जो खास बात मुझे उस कागज मे देखने को मिली थी वह कि अंजली कौल का स्थायी पता ही आजतक मेरा श्रीनगर का पता रहा था। अंजली कौल के पिता का नाम डाक्टर इश्वर प्रसाद कौल था। मुझे मेरे अस्तित्व का एक सिरा आखिरकार मिल गया था। मै वहाँ से सीधा चर्चगेट के पते पर चला गया था।

वह किसी राम निवास टिक्कू का पता था। यहाँ पर मुझे नये सिरे से कहानी करनी थी। मेरा अतीत इतना उलझा हुआ और अधूरा था कि मै उन्हे क्या और कैसे बताता इसीलिए मैने अपनी कहानी को थोड़ा सा बदल दिया था। राम निवास टिक्कू कश्मीरी विस्थापित परिवार था जो 1990 मे यहाँ आ कर बस गया था। उनका बेटा भी उसी दौर मे यहाँ इन्जीनीयरिंग कालेज मे पढ़ रहा था। राम निवास टिक्कू ने ही दरवाजा खोला था। मुझे देखते ही बोला… कश्मीरी। मैने सिर्फ सिर हिला दिया था। …अन्दर आओ बेटा। उसने कश्मीरी भाषा मे बोलना शुरु कर दिया था। जैसे ही मैने उसे अपना नाम समीर बट बताया उसका चेहरा एक पल भर के लिए उतर गया था। मेरी मुस्लिम पहचान जान कर वह थोड़ा विचलित हो गया था। उसकी पत्नी भी आकर सामने बैठ गयी थी। …मेरा नाम समीर बट है। मेरे पिता मकबूल बट का कश्मीर मे सेबों का कारोबार है। मै अंजली कौल से मिलना चाहता हूँ। उनके पिता डाक्टर इश्वर प्रसाद कौल हमारे पड़ौसी थे। मै यहाँ पढ़ाई के लिए आ रहा था तब मेरे अब्बा ने बताया कि उनकी एक मुँह बोली बहन अंजली कौल इस पते पर रहती है। यह सोच कर कि इतने बड़े शहर मे मै किसी और को तो नहीं जानता तो अपनी मुँह बोली बुआ से मिलने चला आया था।

मेरा परिचय सुनते ही वह वृद्ध भड़कते हुए बोला… तुम मेरे घर आये हो लेकिन यह तो मत कहो कि उस गद्दार मकबूल बट का यहाँ कोई जानकार नहीं है। यहाँ तो उसके न जाने कितने जानकार शहर भर मे फैले हुए है। …सर आप मेरे दादा के उम्र के है। मेरी अम्मी शमा बट ने हमे उनके सभी राजनीतिक संबन्धों से हमेशा दूर रखा है। सच पूछिए तो मेरी अम्मी ने ही मुझे अंजली कौल के बारे मे बता कर मिलने के लिए कहा था। वह वृद्ध मेरी बात सुन कर थोड़ा नर्म हुआ और फिर मेरी ओर देख कर बोला… तुम उस मरदूद की औलाद हर्गिज नहीं लगते। वह जब भी बोलता है तो हिन्दूओं के खिलाफ जहर ही उगलता है। क्या पढ़ने के लिए आये हो? अचानक सवाल सुन कर मुझे समझ मे कुछ नहीं आया तो कल रात की बात दिमाग मे होने के कारण मैने तुरन्त कह दिया… तीन साल का फिल्म का कोर्स करने आया हूँ। तब तक उसकी पत्नी ने किसी को आवाज देकर कहा… चाय यहीं ले आओ। वह आदमी मुस्कुरा कर बोला… यहाँ कहवा नहीं अपितु चाय का चलन है। खैर बेटा अपनी जगह की बहुत याद आती है। बुरा नहीं मानना बेटा लेकिन तुम्हारे अब्बा जैसे अलगावादियों ने जन्नत को दोजख मे तब्दील कर दिया है। …इसमें बुरा क्या मानना क्योंकि यही सच है। तभी तो आज मुझ जैसे हजारों लोग पढ़ाई और काम की तलाश मे अपना घर छोड़ कर दर-दर भटक रहे है। मेरी बहने बैंगलोर मे पढ़ रही है और मै यहाँ आ गया हूँ। तब तक नौकर ने चाय लाकर सामने रख दी थी।  हमने कुछ देर और बात की फिर मै अपने असली मुद्दे पर आ गया।

…दादाजी, अंजली कौल आज कल कहाँ रह रही है? …बेटा, उसका पता हमारे पास नहीं है। परन्तु उसका फोन नम्बर ले लो। वह आजकल सायन अस्पताल ने हाउस सर्जन है।  मैने बुआ का नम्बर ले लिया और सायन अस्पताल का पता लेकर वहाँ से चल दिया था। बाहर निकलते हुए एक बार फिर से उसने कहा… बेटा बुरा मत मानना। दिल के छाले है जब कोई वहाँ का अपना मिलता है तो दर्द छलक जाता है।

उनसे खुदा हाफिज करके मैने घड़ी पर नजर मारी तो शाम हो गयी थी। आराम से मुंबई की चमक देखते हुए मै वापिस होटल आ गया था। आज भी वही फिल्मी धमा चौकड़ी लगी हुई थी। मै चुपचाप अपने बिस्तर पर जा कर जम गया। मै उस वृद्ध की बातों के बारे मे सोच रहा था कि भले ही मकबूल बट नाम का दरिंदा उसके परिवार के कत्ले आम का जिम्मेदार था परन्तु ऐसा क्यों कि सभी कश्मीरी हिन्दु उस दरिंदे से इतनी घृणा करते है? मुझे पहली बार अपने राज्य की राजनीति के इतिहास के बारे जानने की तीव्र इच्छा होने लगी थी। मै अभी इसके बारे मे सोच ही रहा था कि तभी मुझे बुआ के फोन नम्बर का ख्याल आया परन्तु काफी रात हो चुकी थी। फिर भी सिर्फ नम्बर चेक करने के लिए मैने कुरैशी से पूछा… पब्लिक फोन कहाँ है? …सामने स्टेशन मे दर्जनों फोन है। मै वापिस आकर बिस्तर पर लेट गया।

…समीर, आज क्या कुछ काम मिला? मेरे साथ वाले बिस्तर पर जमीर आकर लेट गया था। …नहीं। …एक काम करो मेरा दोस्त एक माडलिंग कार्य के लिए कुछ नये लड़के तलाश रहा है। एक बार उस से मिल कर देख लो। …नहीं भाईजान, भला मै क्या माडलिंग करूँगा। …अरे मियाँ, छ्ह फुटे आदमी हो और देखने मे भी अच्छे हो तो इसके अलावा और क्या माडलिंग के लिए चाहिए। …नहीं भाईजान यह काम मुझसे न हो पाएगा। …अरे भाईयों जरा समीर को देख कर बताओ कि क्या यह माडल बनने के लायक है कि नहीं?  जमीर के यार दोस्तों ने मेरी ओर देख कर कहा… जमीर भाई सही कह रहे है। कोशिश करने मे क्या हर्ज है। अगर उसने चुन लिया तो एक दिन मे पाँच से दस हजार रुपये तक मिल जाएँगें। जमीर ने एक कार्ड मेरी ओर बड़ाते हुए कहा… पता और नम्बर नोट कर लो मियाँ। अगर उसे पसन्द आ गये तो रोगनजोश की पार्टी करवा देना। उसका दिल रखने के लिए मैने जल्दी से पता और नम्बर नोट करके कहा…भाईजान, शुक्रिया। अगर मेरा काम हो गया तो कुरैशी भाई की रोगनजोश की पार्टी मेरी ओर से आप सभी के लिए तय है। …भाई, रोगनजोश की पार्टी से काम नहीं चलेगा। हमारे लिए तो बोतल भी खोलनी पड़ेगी। सभी ने हाँ मे हाँ मिलाते हुए कहा… रोगनजोश और व्हिस्की की पार्टी। मैने सिर्फ अपना सिर हिला दिया परन्तु मै हैरान था कि यह सभी मुस्लिम हो कर शराब कैसे पी सकते है।

अगली सुबह मै अपने नियमित टाईम से तैयार होकर स्टेशन की ओर निकल गया था। पब्लिक फोन मिलते ही मैने बुआ का नम्बर मिलाया तो घंटी बजने लगी थी। हर पल के साथ मेरी धड़कन बड़ती जा रही थी। …हैलो। एक महीन खनकती हुई आवाज मेरे कान मे पड़ी तो मैने जल्दी से पूछा… डाक्टर अंजली कौल। …यस, आप कौन बोल रहे है। उसी क्षण मेरी हिम्मत जवाब दे गयी और मैने तुरन्त फोन काट दिया था। मै काफी देर युंहि स्टेशन पर खड़ा रहा लेकिन दोबारा फोन मिलाने की हिम्मत नहीं जुटा सका था। कुछ सोच कर मै सायन अस्पताल की ओर चल दिया। बुआ से बात करने से पहले मै उन्हें देखना चाहता था। रास्ते भर सोचता रहा कि मै उन्हें क्या बताऊँगा लेकिन कुछ समझ मे नहीं आ रहा था। सायन अस्पताल मे भीड़ देख कर एक बार तो मैने अन्दर जाने का विचार त्याग दिया था। फिर यही सोच कर कि बाहर खड़े रह कर बुआ का कैसे पता चलेगा तो अपना दिल कड़ा करके मै भी भीड़ मे घुस गया।

रिसेप्शन काउन्टर पर कार्ड बनवाने वालों की लम्बी लाईन लगी हुई थी। मै चुपचाप लाईन मे लग गया था। एक घंटा लाईन मे बिताने के बाद जब मेरा नम्बर आया तो उसने पूछा… कौन सा डिपार्टमेन्ट? मैने जल्दी से कहा… हाउस सर्जन डाक्टर अंजली कौल। …पेशन्ट का नाम बताओ? …समीर बट। उसने कार्ड मेरी ओर बढ़ा दिया था। मै चुपचाप वह कार्ड लेकर गंतव्य वार्ड की ओर चल दिया। चारों ओर लोगो की भीड़ थी। बचते-बचाते मै एक कमरे के बाहर खड़ा हो गया जिसके दरवाजे पर बुआ का नाम लिखा हुआ था। उस कमरे के बाहर मरीजों की एक लंबी लाईन लगी हुई थी। मै चुपचाप एक किनारे मे खड़ा हो गया था। अन्दर आने-जाने वालो की लाइन समाप्त ही नहीं हो रही थी। कमरे के बाहर लगी हुई लम्बी सी बेंच पर जगह मिलते ही मै बैठ गया और समय के साथ धीरे-धीरे लोग कम होते जा रहे थे। दो बज गये थे लेकिन बुआ अभी तक बाहर नहीं आयी थी। एकाएक दरवाजे पर हलचल हुई और एक साथ तीन चार डाक्टर बाहर निकलते हुए दिखे तो मै उनको देखने के लिए खड़ा हो गया था। उनमे से कोई भी ऐसा नहीं लग रहा था जो तस्वीर मैने फार्म पर देखी थी। मै वापिस दरवाजे की दिशा मे मुड़ा तो एक पल के लिए मेरे दिल ने धड़कना बन्द कर दिया था।

अचानक दरवाजा खुला और एक बेहद सुन्दर महिला सफेद कोट पहने गले मे आला लटकाए वार्ड बोय से बात करती हुई कमरे से बाहर निकली तो मै उसे ठगा सा देखता रह गया था। उसके चेहरे पर एक शालीनता के साथ एक आकर्शक व्यक्तित्व भी झलक रहा था। मेरी नजर उस पर ठहर गयी थी। वह वार्डबोय को कुछ निर्देश देकर एक उड़ती नजर बेन्च पर बैठे हुए लोगों पर डाल एकाएक मुड़ी और दूसरी दिशा की ओर चल दी। पहली नजर मे ही मै उन्हें पहचान गया था कि यही अंजली कौल है। अब जब बुआ को देख लिया तो मै भी चलने के लिए उठ कर खड़ा हो गया था। पता नहीं क्या हुआ कि अचानक वह मुड़ कर मेरी ओर आ गयी और मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी। पल भर के लिए मुझे ऐसा लगा कि जैसे उनके चेहरे का गुलाबी रंग किसी ने निचोड़ दिया था। वह जल्दी से अपने आप को संभाल कर बोली… क्या तुम पहले भी मुझे दिखा चुके हो? जरा अपना कार्ड दिखाना। मैने जल्दी से कार्ड उनकी ओर बढ़ा दिया। …समीर बट। कश्मीरी…अबकी बार एक भरपूर नजर मुझ पर डाल कर बोली… पहली बार दिखा रहे हो। क्या तकलीफ है? मै चुप रहा लेकिन वह तुरन्त बोली… देखो मुझे अभी अस्पताल के राउन्ड पर जाना है। कल मेरी ओपीडी नहीं है। परसों जल्दी आ जाना मै देख लूँगी। जाने से पहले बड़ी आत्मीयता से बोली… तुम्हारी शक्ल मे मुझे किसी अपने की झलक दिखी थी तो मुड़ कर देखने चली आयी थी। खैर कोई बात नही परसों आकर दिखा देना। यह कह कर मुड़ी और चल दी। मै उसके पीछे तेज कदमों से चलते हुए बोला… डाक्टर मुझे कोई तकलीफ नही है। मै आपसे कुछ बात करना चाहता हूँ। …चलो चलते-चलते बात कर लो। …नहीं मै श्रीनगर से यहाँ सिर्फ आपसे मिलने आया हूँ। कहीं बैठ कर बात करनी है। वह रुक कर मेरी ओर ध्यान से देखते हुए बोली… तुम कौन हो? …समीर बट। डाक्टर प्लीज। …ठीक है। क्या तुम इंतजार कर सकते हो क्योंकि मेरी ड्युटी चार बजे समाप्त होती है? …जी डाक्टर। …मुझे यही मिलना। यह कह कर वह मुड़ी और अस्पताल की ओर चली गयी थी।

मै वहीं बेन्च पर बैठ गया और बुआ से बात करने की भुमिका बनाने मे व्यस्त हो गया था। पता नहीं वह मकबूल बट को कैसे और कितना जानती है। मुझे नहीं पता था कि क्या वह भी सभी कश्मीरी हिन्दुओं की भांति मकबूल बट के नाम से इतनी घृणा करती थी। अब तक सारी भीड़ छँट चुकी थी और ओपडी मे सिर्फ चन्द लोग ही दिख रहे थे। जैसे-तैसे चार बजे लेकिन बुआ का दूर-दूर तक कोई अता-पता नहीं दिख रहा था। मै वहीं बेन्च पर बैठा रहा। पाँच बजे मुझे वह आती हुई दिखी तो मै खड़ा हो गया। मेरे पास आकर बोली… चलो मेरे साथ। मै उनके साथ चल दिया। न जाने कहाँ-कहाँ से घुमाते हुए एक कमरे का दरवाजा खोल कर बैठ गयी और मेरी ओर देख कर बोली… बैठ जाओ। बताओ क्या कहना चाहते हो।

…आप आखिरी बार कश्मीर कब गयी थी? …क्यों, बहुत साल पहले गयी थी। …क्यों नहीं गयी? …वहाँ के हालात खराब हो गये थे। एक पल रुकी और फिर कुछ सोच कर बोली… उन दरिंदों ने मेरे अपनों मे से किसी को भी नहीं छोड़ा था तो मै वहाँ जा कर क्या करती। मुझे सुनने मे आया था कि उन्होंने मेरे घर को भी आग लगा दी थी। भगवान उन्हें कभी माफ नहीं करेगा। अपने घर की याद करके एक पल के रुआँसी हो गयी थी। एकाएक वह बोली… क्या यही पूछने आये थे? मैने उनसे नजरें मिला कर धीरे से कहा… नहीं। मुझे शमा बट ने आपसे मिलने के लिए भेजा है। मै उनके चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रहा था परन्तु उस नाम की पहचान के उनके चेहरे पर कोई लक्षण नहीं दिख रहे थे। मैने रुक कर कहा… मै आपके पड़ौसी मकबूल बट के बारे मे बात करने आया हूँ। इस नाम को सुन कर उनके चेहरे पर एक शिकन उभरी लेकिन फिर भी वह चुप रही और मुझे ताकती रही। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे इनके सामने अपनी सच्चायी को रखूँ लेकिन बिना अपनी असलियत बताये मेरा उद्देश्य भी पूरा होता हुआ नहीं दिख रहा था।  

मैने दिल कड़ा करते हुए कहा… आप मेनका कौल को जरुर जानती होगी। अभी हाल मे उनकी मृत्यु हुई है। अबकी बार बुआ की आँखों मे हैरत के साथ एक अनजान भय उभर आया था। अबकी बार उनकी आवाज बोलते हुए काँप रही थी… तुम कौन हो? …मेरा नाम समीर बट है। स्कूल के रिकार्ड मे मेरे अब्बा का नाम मकबूल बट और अम्मी का नाम शमा बट लिखा है परन्तु हाल मे मेनका कौल कि मृत्यु पर मेरी अम्मी का कहना था कि मेरी माँ का नाम मेनका कौल है। डाक्टर अंजली कौल की आँखे पल भर के लिए पथरा गयी थी। उनकी जुबान लड़खड़ा रही थी और चाह कर भी उनसे बोला नहीं जा रहा था। एकाएक वह उठ कर मुझ पर झपटी और मेरे चेहरे को पकड़ कर अपने सीने मे छिपाते हुए जोर से चीखी और फूट-फूट कर रोने लगी। ऐसा लग रहा था कि भावनाओं का सैलाब आँखों के रास्ते बह रहा था। मुझे सीने से लगाये वह काफी देर तक रोती रही और उनको देख कर मेरी आँखें भी स्वत: बहने लगी थी। बार-बार वह भगवान का शुक्रिया अदा कर रही थी।

सब शांत होने के बाद बुआ ने काँपती हुई आवाज मे पूछा… तो तुम अब तक शमा भाभी के पास रह रहे थे। उन्होंने मुझे अब तक इसकी जानकारी क्यों नहीं दी? मै कुछ जवाब देता कि अचानक वह ठहरी हुई आवाज मे बोली… उस आदमी ने तुम्हारी जान क्यों बक्श दी? वह तो…इतना बोल कर एकाएक वह चुप हो गयी थी। …क्योंकि अम्मी ने उन्हें अभी तक यही बताया था कि मै उनके पाप की निशानी हूँ। एकाएक बुआ के मुख से निकला… हे भगवान। इतना बोल कर वह चुप हो कर बैठ गयी थी। कुछ देर के बाद उन्होंने कहा… तो तुमने मुझे कैसे ढूँढ लिया? …अम्मी ने मुझे सिर्फ इतना बताया था कि जिस साल मै पैदा हुआ उस साल आप मुंबई मे डाक्टरी की पड़ाई करने गयी थी। इसी जानकारी को लेकर मै मेडिकल काउन्सिल के आफिस चला गया था। मैने बैग से रजिस्ट्रेशन की कापी निकाल कर उनके सामने रखते हुए कहा… वहाँ से मुझे यह पता मिला था। मै मिस्टर राम निवास टिक्कू से मिला और उन्होंने आपका फोन नम्बर और अस्पताल का पता दे दिया था। इतनी देर मे पहली बार बुआ मुस्कुरा बोली… समीर, तुम काफी समझदार हो गये हो। मेरे चेहरे को अपने हाथ मे लेकर बोली… उपर वाले को हम पर दया आ गयी होगी। कहाँ ठहरे हुए हो? …कुरैशी होटल, मुंबई सेन्ट्रल। …समीर चलो चल कर तुम्हारा सामान वहाँ से लेकर आते है। …बुआ, मेरा सारा सामान इस बैग मे है। …समीर, आओ घर चले। काफी देर हो गयी है। हम दोनो उठकर बाहर की ओर चल दिये थे।

रास्ते मे चलते हुए बुआ ने पूछा… समीर, कौन से कालेज मे पढ़ते  हो? …इसी साल मैने बारहवीं की परीक्षा दी है। नतीजे का इंतजार कर रहा हूँ। …आगे क्या करने की सोच रहे हो? …फौज मे जाना चाहता हूँ। बुआ ने चलते हुए मेरी ओर देखा ओर देखा और फिर मुस्कुरा कर बोली… क्यों? …मेरी अम्मी चाहती है। …बहुत प्यार करते हो अपनी अम्मी से? …कौन नहीं करता। यह बात करते हुए हम पार्किंग मे आ गये थे। बुआ अचानक मेरी ओर देख कर बोली… समीर कार चला सकते हो? …हाँ क्यों नही। …आज मुझे लग रहा है कि किसी ने मेरी सारी शक्ति निचोड़ दी है। तुम कार चलाओ। मै रास्ता बताती हूँ। मैने कार की चाबी उनके हाथ से ली और स्टीयरिंग संभाल लिया। कुछ ही देर मे हम बुआ के घर की ओर जा रहे थे। हम दोनो ही अपनी सोच मे गुम थे। बस रास्ता बताने के लिये वह कभी-कभी बोल उठती थी।

बुआ का फ्लैट मुंबई के बाहरी इलाके मे था। यहाँ ज्यादा भीड़-भाड़ नहीं थी। इस इलाके मे सभी इमारतें बहुमंजिला थी। मेरे लिये यह अनुभव नया था। फ्लैट मे प्रवेश करते ही बुआ ने कहा… समीर, इस फ्लैट मे मेरे साथ एक लेडी डाक्टर भी रहती है। अभी उसको हमारे रिश्ते के बारे बताने की जरुरत नहीं है। यहाँ के लोग वहाँ के हालात और हमारे रिश्ते को समझ नहीं सकेंगें। …बुआ यह तो उसको वैसे ही पता चल जाएगा। बुआ कुछ देर सोचने के बाद बोली… अभी सिर्फ इतना ही बताना कि हमारे पुराने पारिवारिक संबन्ध है। मैने सिर हिलाते हुए कहा… ठीक है बुआ, जैसी आपकी इच्छा। बुआ मेरे पास आयी और मेरे सिर पर हाथ फिराते हुए बोली… समीर, जब भी तुम्हें देखती हूँ मेरे दिल मे एक टीस उठती है। मेरे माथे को चूमते कर बोली… पता नहीं क्यों लेकिन तुम्हें देखते रहना चाहती हूँ। मै कपड़े बदल कर खाने का इंतजाम करती हूँ तब तक तुम आराम करो। मै सोफे पर बैठ कर बुआ की उमड़ती हुई भावना को समझने की कोशिश कर रहा था। यह स्वाभाविक था कि अभी तक वह भी अपने आपको दुनिया मे अकेली समझ रही थी और अचानक मेरे आने के कारण अब उनको एक अपना मिल गया था।

कपड़े बदल कर बुआ किचन मे व्यस्त हो गयी थी। मै उठ कर बुआ के पास चला गया था। …बुआ, क्या कोई अपने परिवार से कश्मीर मे अभी भी है? …पता नहीं। मैने सुना था कि मेरे मामा अपने परिवार के साथ जम्मू मे आकर बस गये थे। हमारा बहुत बड़ा परिवार था समीर परन्तु उस साल ऐसे बिछड़े कि मै सभी से कट कर रह गयी थी। तुम्हें मै रवि भैया की शादी की कुछ तस्वीरें दिखाऊँगी तब देखना कि तुम्हारी शक्ल अपने पिता से कितनी मिलती है। मै उनसे बात कर रहा था कि तभी मेरे अन्दर भावनाओं का बवंडर सा उठा और अपनी बुआ को अपनी बाँहों मे जकड़ कर वहीं खड़ा हो कर रोने लगा। मेरी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे। बुआ सब कुछ छोड़ कर मुझसे लिपट कर मुझे चुप कराने मे लग गयी थी। …क्या हुआ समीर? वह बड़बड़ा रही थी लेकिन मेरे आँसू थम नहीं रहे थे। जब सब शांत हो गया तो बुआ ने कहा… तुम्हें अचानक क्या हो गया था? …बुआ, जब आपसे मिलने के लिए श्रीनगर से चला था तो मन मे एक डर था। अपनी जड़े खोजने के लिए मै अकेला निकला था। आपकी बात सुन कर मुझे एहसास हुआ कि इस दुनिया मे मेरा भी कोई अपना है जो मुझे मेरी जड़ों से जोड़ सकता है। तभी एक आवाज मेरे कान मे पड़ी… अंजली, यह कब से चल रहा था। हम दोनो छिटक कर अलग हो गये थे।

हमारे सामने जीन्स और टी-शर्ट मे एक सांवली सलोनी सी महिला खड़ी हुई थी। उसके गले मे डाक्टर का आला लटक रहा था। वह दरवाजे के बीचोंबीच खड़ी हुई अजीब सी नजरों से हमें घूर रही थी। बुआ जल्दी से आगे बढ़ कर बोली… समीर, यह मेरी दोस्त एलिस है। यह जसलोक मे डाक्टर है। वह बड़ी गर्मजोशी से मेरी ओर हाथ बड़ाते हुए बोली… हैलो समीर। मै एलिस जेकब हूँ। तुमसे मिल कर बड़ी खुशी हुई। मैने उससे हाथ मिलाया तो उसने फिर से एक कटाक्ष मारते हुए बुआ से कहा… अंजली तुमसे उम्र मे कुछ छोटा नहीं है? बुआ ने मुस्कुरा कर कहा… तेरे दिमाग मे बस एक चीज ही घूमती रहती है। यह मेरा भतीजा लगता है। इसके परिवार के साथ हमारे परिवार के पुराने संबन्ध है। वह झेंप कर जल्दी से बोली… ओह सौरी। मै कुछ और समझ बैठी थी। आज पहली बार अंजली मैने तुझे किसी आदमी की बाँहों मे देखा तो गलतफहमी हो गयी थी। अचानक वह जोर से हँसी और मेरी ओर देख कर बोली… तो मिस्टर समीर तुम कहाँ से उदय हो गये? मैने झेंपते हुए कहा… कश्मीर से आज ही आया हूँ। …ओह। तुम कश्मीर से आये हो। मैने तो सुना था कि वहाँ से सभी हिन्दु परिवार पलायन कर गये थे। …आप ने ठीक सुना है। मै मुस्लिम हूँ।

एकाएक मुझे लगा कि उसके चेहरे पर आयी हुई मुस्कान गायब हो गयी थी। शायद मेरे मुस्लिम होने की वजह रही होगी इसीलिये वह बिना कुछ बोले अपने कमरे की ओर चल दी थी। बुआ ने जल्दी से बात संभालते हुए कहा… खाना खा कर आयी है या बनाने की सोच रही है। …नहीं, आज बड़ा भारी दिन रहा था। मै बाहर से खाना मंगा लूँगी। यह बोल कर वह अपने कमरे मे चली गयी। इस तरह चले जाने के बाद मैने पूछा… इसे क्या हुआ बुआ? …कुछ नही। तुम आराम से बैठ जाओ।

यह बोल कर बुआ खाना बनाने मे व्यस्त हो गयी थी। मै बड़ी सी खिड़की के पास खड़ा होकर बाहर का नजारा लेने लगा। इतनी उँचाई से सड़क पर सब कुछ चीटीयों सामान लग रहा था। कुछ देर के बाद हमने साथ बैठ कर खाना खाया और फिर सारा काम समेट कर बुआ ने कहा… चल वहीं कमरे मे बैठ कर बात करेंगें। हम दोनो बुआ के कमरे मे आ गये थे। एक बिस्तर और एक मेज-कुर्सी के सिवा वहाँ और  कुछ नहीं था। …बुआ, मै बाहर सोफे पर सो जाऊँगा। आप यहाँ आराम से सो जाईए। …नहीं समीर, एलिस को यह पसंद नहीं है। जब वह किराये पर रहने के लिये यहाँ आयी थी तब उसने यह शर्त रखी थी कि अपने गेस्ट को अपने कमरे ही एड्जस्ट करना होगा जिससे कामन एरिया मे दूसरे व्यक्ति की आजादी मे कोई विघ्न न पड़े। चल तू कपड़े बदल कर बिस्तर पर बैठ आज मै तुझे कुछ दिखाती हूँ। मै अपने कपड़े बदलने के लिए बाथरुम मे चला गया और बुआ अपनी अलमारी मे किसी चीज को ढूँढने मे व्यस्त हो गयी थी। अपने लम्बे से कुर्ते और पजामे को पहन कर जब मै बाहर निकला तब तक बुआ बिस्तर पर बैठ कर एलबम खोल कर फोटो देख रही थी।

4 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार ,आपकी बाकी की कहानियां जैसे इसमें भी पूरा एक्शन होगा,je बात तो तह है

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    1. मेरा मनोबल बढ़ाने के लिये आपका शुक्रिया। उम्मीद करता हूँ कि मै आपकी उम्मीदों पर खरा साबित हूँ

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  2. पिछले अंक की आखरी वाला सीन में बहुत कुछ घटा जिसके तहत इस अंक में समीर को अपने घर छोड़ना पड़ा और उसको इस अंक में अपना कोई जो बिछड़ गया है उसको ढूंढ ने का जो बेकरारी दिखी उससे पता चलता है की पिछले कुछ दिन में जैसे वो अपने अपनो की बीच बेगाना हो गया उसको अब चाहिए कोई अपने जिससे समीर खुल के बात कर सके और आखरी में समीर अपनी बुआ से लिपट कर जैसे रोया वो साफ दरसाता है की उसकी मनोस्थिति अब क्या है और शायद अब अंजली उसको संभालेगी। अब आगे देखना मजेदार होगा जब समीर बचपन से सिखाई गई नफरत से ऊपर उठकर कैसे फौजी बनता है।बहुत ही सुंदर लेखनी और जितनी बार पढ़ें हमेशा लगता है ये अंक थोड़ा छोटी लगा 😁।

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    1. मित्र आपकी टिंप्पणी मे अकसर मुझे आगे बढ़ने का रास्ता मिल जाता है। प्लीज कीप अप द गुड वर्क्।

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