शनिवार, 22 अक्टूबर 2022

आप आप सभी मित्रों को मेरी ओर से दीपावली के शुभ अवसर पर ढेर सारी शुभकामनाएँ। उम्मीद करता हूँ  कि माँ लक्षमी आपके उपर धनधान्य की वर्षा करे और आपके और आपके परिवार के लिये सुख समृद्धि का आशीर्वाद दें।

आपका वीर 

 🙏

  काफ़िर- 8

 

एक नजर अदा पर डाल कर मै आगे बढ़ गया और उसके कमरे की सजावट को देखते हुए कहा… बहुत अच्छे से सजाया है। वह चुपचाप कुछ पल मुझे देखती रही और फिर अचानक झपटी और मुझे बाँहों मे जकड़ कर खड़ी हो गयी। मैने धीरे से उसके हाथ पकड़ कर अलग होते हुए पूछा… यह क्या कर रही हो। तुम्हारी फ्लैटमेट क्या सोचेंगी। वह तुनक कर बेड पर बैठते हुए बोली… क्या सोचेंगीं। उनके भी तो बोयफ्रेन्ड यहाँ आते है। मै उसके पास बैठते हुए बोला… परन्तु मै तुम्हारा बोयफ्रेन्ड नहीं हूँ। मै नहीं चाहता कि बेवजह तुम्हारी बदनामी हो। वह मुस्कुराते हुए बोली… वह सब जानती है कि तुम मेरे बोयफ्रेन्ड नहीं हो। मैने एक चैन की साँस लेकर कहा… अब बताओ कि इतने दिन से मुझसे क्यों खफा थी। …तुम जूते उतार कर आराम से बैठो। आज हम कहीं नहीं जा रहे है। शाम को आठ बजे तक हम यहीं है। मै तुम्हें नौ बजे वहीं बस स्टाप पर छोड़ दूँगी। मै जूते उतार कर आराम से बेड पर फैल गया और वह मेरे पास आकर बैठते हुए बोली… क्या तुम अब तक यह सोच रहे थे कि काफ़िर होने के कारण हम लोग तुमसे दूरी बना रहे थे? मैने उसकी ओर देखा तो उसकी नजर मुझ पर टिकी हुई थी।

उससे नजरें मिलाने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी। मकबूल बट ने मेरे माथे पर काफ़िर का दाग लगा कर मुझे सभी से इतना दूर कर दिया कि अब कुछ भी बोलने से पहले मुझे दस बार सोचना पड़ता था। …तुम नहीं समझोगी अदा कि उस वक्त मुझे कैसा लग रहा था। एक पल तो लगा कि मेरी दुनिया ही उजड़ गयी है। अचानक वह मेरे करीब आ गयी और मेरे सीने मे अपना चेहरा छिपा कर बोली… समीर, हम सभी की हालत तुमसे भिन्न नहीं थी। बचपन से जिसके साथ रहे और अचानक एक दिन पता चले के सभी रिश्ते झूठ पर टिके थे तो इंसान का वुजूद हिल जाता है। वह एक पल के लिये चुप हो गयी और फिर धीरे से बोली… इतने दिन तुमसे बात नहीं करने का सिर्फ एक ही कारण था। मै समझ नहीं पा रही थी कि मै तुम्हें किस नजर से देखती हूँ। एक बचपन की शरारत ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था कि मेरी आसक्ति तुम्हारे लिए किस प्रकार की है। जिस दिन तुम घर छोड़ कर गये उसी दिन मेरे लिए सब कुछ साफ हो गया था कि मै तुम्हारे बिना नहीं रह सकती। जिस दिन यह साफ हो गया बस उसी दिन से मेरे लिए सब कुछ आसान हो गया था। उसकी बात सुन कर मै सन्न रह गया क्योंकि मै तो आज उसको अंजली की हकीकत बताने के लिये आया था।

वह धीरे से मेरी ओर झुकी और उसके होंठ मेरे होंठ से जुड़ गये थे। उसका चेहरा उत्तेजना से दहक रहा था। उस रात जो कुछ भी मैने उसके साथ किया था वह अक्षरश: मेरे साथ कर रही थी। एक लम्बे अंतराल के बाद वह अलग हो कर बोली… कैसा लगा? …एक्स्क्युजिट। और तुम्हें? …हेवनली। वह मुस्कुरायी और फिर खिलखिला कर हँस पड़ी थी। मै उसकी ओर ध्यान से देख रहा था। …तुम्हारे जाने बाद अब्बू ने फर्मान जारी किया था कि तुमसे अब सभी रिश्ते समाप्त हो गये है। मकबूल बट का जिक्र आते ही मुझे अंजली का ख्याल आ गया था। अभी तक मैने अदा को हमेशा अपने सबसे करीब पाया था। उसको मैने कभी एक लड़की की तरह नहीं देखा था। मुंबई आने के बाद मानसिकता मे हुए परिवर्तन के कारण अब मेरा नजरिया बदल गया था। वह स्कूल वाली अदा नहीं रही थी। वह देखने मे तो पहले से ही सुन्दर थी परन्तु अब उसका चेहरा मदमस्त यौवन से दमक रहा था। उसकी आँखों मे शरारत के साथ आमन्त्रण के भाव भी पढ़ रहा था। उसके सीने की गोलाईयाँ भी अपना पूरा आकार ले चुकी थी। वह शुरु से पतली दुबली थी परन्तु अब मुझे उसके कुछ खास हिस्सों पर भराव साफ विदित हो रहा था। …क्या देख रहे हो? उसने मुस्कुराते हुए पूछा तो मैने उसके चेहरे को अपने हाथों मे लेकर अपने नजदीक लाकर उसकी आँखों झाँकते हुए धीरे से कहा… बचपन मे शैतान को भगाने का तरीका समझते हुए मैने जिसे देखा था उसमे अब काफी बदलाव आ गया है। उसका गुलाबी चेहरा लाल होने लगा था।  …तो क्या पता चला? …बस देख रहा था कि तब और अब मे काफी फर्क आ गया है।

वह थोड़ी देर मुझे देखती रही फिर मेरे कान मे बुदबुदायी… ऐसे तो फर्क पता नहीं चलेगा। उसकी बात सुन कर मेरी कनपटी तड़कने लगी थी। मेरे चेहरे पर छायी हुई लालिमा को देखते ही वह तुरन्त बोली… मै भी तुम्हारे अन्दर आये हुए फर्क को देखना चाहती हूँ। हमारी बातों कि दिशा जिस ओर जा रही थी मुझे अब डर लगने लगा था। आज उसके सामीप्य और स्पर्श ने मेरे अन्दर उसके प्रति दबी हुई भावनाओं को पुन: भड़का दिया था। वह मेरे नजदीक सरक आयी और अपना उभरा हुआ सीना मेरी बाँह पर रगड़ते हुए बोली… क्या मौलवी साहब की कहानी याद आ गयी? अब मुझसे अपने उपर नियन्त्रण रखना मुश्किल हो गया था। …अदा प्लीज मुझसे दूर हो कर बैठ जाओ। …क्यों क्या मै पहले जैसी नहीं रही? उसकी आँखों मे एक नशा था। उसकी गर्म साँसे मेरे चेहरे पर टकरा रही थी। वह मेरे कान मे धीरे से बोली… मै तुम्हारा साया हूँ। क्या अब भी इसका मुझे सुबूत देना पड़ेगा। एक कमजोर पल मे मेरे सारे नियन्त्रण की धज्जियाँ उड़ गयी थी। एक करवट लेकर उसको अपनी बाँहों मे जकड़ कर अपने नीचे दबा कर उसके होंठों का रस सोखने मे लग गया। मेरे हाथ और उंगलियों ने उसके उभारों को छेड़ना आरंभ कर दिया था। वह मेरी गिरफ्त से निकलने के लिए कभी मचलती और कभी मेरे स्पर्श की अग्नि से जल कर तड़पती। जितना वह निकलने की कोशिश करती उतनी ही भीषणता से कामाग्नि प्रज्वलित होती जा रही थी। मेरे विवेक पर अदा की आसक्ति हावी होती चली गयी थी। हमारे कपड़े अब हमे असहनीय लगने लगने लगे थे।

मैने उसकी आँखों मे झाँकते हुए कहा… अदा सोच लो कि क्या एक काफ़िर की हमेशा बन कर रह सकोगी? एक बार इस दिशा मे हम बढ़ गये तो फिर वापिस नहीं लौटा जा सकता। अचानक उसे पता नहीं क्या हुआ कि उसने मुझे एक ओर धकेल कर बिस्तर के दूसरे सिरे पर जा कर बैठ गयी थी। उसकी इस हरकत से मै भी असमंजस मे पड़ गया था। वह धीरे से रुआँसी आवाज मे बोली… मैने तो तुम्हें अपना मान लिया परन्तु मुझे लगता है कि मै तुम पर दबाव डाल कर अपना बनाने की कोशिश कर रही हूँ। मै ऐसा तो हर्गिज नहीं चाहती। इसीलिए जिस दिन तुम खुद मुझे अपना बनाना चाहोगे उसी दिन मै तुम्हारी हो जाऊँगी। इतना बोल कर वह चुप हो गयी थी। मै चुपचाप लेट कर उसने जो बोला था उसके बारे मे सोच रहा था कि तभी अदा की सिसकी मुझे सुनाई दी तो हड़बड़ा कर मै उठ कर बैठ गया। उसे रोता हुआ देख कर मै उसके निकट पहुँच कर पूछा… अरे क्या हुआ? वह रोती रही लेकिन मुझसे कुछ नहीं बोली। मेरी बहुत मिन्नत करने के बाद उसने कहा… मुझे अपना बनाने के लिए तुम्हें इतना सोचना पड़ रहा है। मै सही थी कि मै ही तुम पर दबाव डाल रही हूँ। पता नहीं उसका शिकायत भरा स्वर था या मेरे कन्धे पर सिर रख कर उसका रोना लेकिन एकाएक मै अपने अतीत मे पहुँच गया था। मैने तमक कर कहा… क्यों जब तुम्हें मेरी बनने का निर्णय लेने मे आठ महीने लगे तो अब तुम मुझे एक घंटा भी नहीं दोगी सोचने के लिए। एक पल के लिए वह स्तब्ध हो कर मेरी ओर देखती रही और फिर जैसे ही उसे मेरी बात समझ मे आयी वह हमेशा की तरह मुझ पर झपटते हुए चीखी… समीर। और फिर रोना भूल कर मुझ पर पिल पड़ी। बचपन से आज तक हमारी बहस का हमेशा अंत इसी तरह से होता था।

उस वक्त हम अपने उसी कमरे मे पहुँच गये थे जहाँ हमारा बचपन बीता था। कामोत्तेजना मे आनन-फानन मे हमारे कपड़े जिस्म से जुदा हो गये थे। उसकी गुलाबी गोलाईयाँ मेरे सामने थी। उन गोलाईयों के शिखर पर लालिमा लिये तड़कते हुए स्तनाग्र सिर उठाए मुझे अपनी ओर आमन्त्रित कर रहे थे। मेरी निगाह का पीछे करते हुए जैसे ही उसे एहसास हुआ उसने शर्मा कर अपने वर्जित क्षेत्र को हाथों से ढकते हुए मुड़ने का प्रयत्न किया लेकिन तभी मैने उसे झपट कर पकड़ लिया और करवट लेकर उसे अपने नीचे दबा लिया। मैने धीरे से उसके माथे को चूमा और फिर उसके कानों को चूम कर उसके गालों से रस निचोड़ने मे लग गया। उसके गालों को लाल करने के बाद उसके कांपते हुए लबों को अपनी जुबान से तर करके उनका रसपान करने मे व्यस्त हो गया। काफी देर तक उसके होंठों को लाल करने के बाद मै नीचे सरक कर उसके कोमल गले पर जा कर रुक गया था। मैने उसकी आँखों मे देखते हुए कहा… अदा, आज मै तुम्हें अपनी मोहब्बत की इतनी निशानी देकर जाऊँगा कि तुम छिपाना भी चाहो तो भी छिपा नही सकोगी। इतना कह कर मैने उसके गले और कन्धे को चूमना आरंभ कर दिया था।

धीरे से सरकते हुए उसके सीने की घाटी को चूम कर मैने दोनो पहाड़ियों पर एक साथ हमला बोल दिया था। एक पहाड़ी को मेरा हाथ छेड़ता तो उसी समय दूसरी पहाड़ी पर मेरे होंठ अपने निशान छोड़ रहे थे। जितना मै उस गुलाबी शिखर की जुबान से मालिश करता और होंठों मे लेकर दबाता उतना ही वह ऐंठ कर कड़े हो जाते थे। दूसरे शिखर को मेरी उँगलियों के बीच फँसा कर कभी तरेड़ता और कभी खींचता और कभी कस कर दबा देता था। इस दो तरफे हमले से वह उत्तेजना से पागल हो कर अपना सिर पटक रही थी। काफी देर तक उसके सीने की पहाड़ियों के साथ खेलने के बाद मैने उसे छोड़ दिया और उसकी नाभि को चूम कर उसके स्त्रीत्व पर नजर डाली तो वह लगातार बह रही थी। उसके स्त्रीत्व के बन्द द्वार पर जैसे ही मैने अपनी जुबान से दस्तक दी तो वह चिहुंक कर उठने लगी परन्तु उसके नितंबों को तब तक मैने जकड़ लिया था। मेरी जुबान पूरी दरार को भिगोने मे लग गयी थी। वह मेरी पकड़ मे कभी मचलती और कभी तड़पती परन्तु मेरी जकड़ से निकलने मे पूर्णत: अस्मर्थ थी। उसके मुख से उत्तेजना की सीत्कार निरन्तर विस्फुटित हो रही थी। उसके नितंब को छोड़ कर मेरी उँगलियों ने धीरे से उसके स्त्रीत्व के द्वार को खोल कर छिपे हुए अंकुर को अनावरित किया। मेरी जुबान ने जिस पल उस अंकुर पर पहला वार किया अदा के मुख से घुटी हुई एक चीख निकल गयी थी। उसके बाद तो वह मेरा सिर पकड़ कर कभी दबाती और कभी हटाने का असफल प्रयास करती। अदा इतनी देर न जाने कितनी पर स्खलित हो गयी थी।

मैने उसे छोड़ दिया लेकिन वह आँखें मूंदे पड़ी रही। कुछ देर के बाद उसने आँखे खोल कर मेरी ओर देख कर बोली… क्या हुआ रुक क्यों गये? उसकी नजर झूमते हुए मेरे पौरुष पर टिकी हुई थी। उसने आगे बढ़ कर तन्नाये हुए अंग को अपनी उँगलियों मे जकड़ कर स्थिर करके चूमा और फिर मेरी ओर देख कर बोली… समीर। हमारी नजरें टकरायी तो अदा ने उस रात की कहानी दोहरानी आरंभ कर दी थी। मेरे अन्दर का लावा अब उबलने लगा था। मैने उसे रोक दिया। अब एकाकार के लिए हम दोनों तैयार थे। एक बार मैने उसकी आँखों झाँकते हुए इशारे से पूछा तो उसकी पल्कों ने झपक कर मुझे अपनी स्वीकृति दे दी। मैने उत्तेजना मे झूमते हुए अपने पौरुष को पकड़ कर स्थिर किया और धीरे से उसके स्त्रीत्व के द्वार पर जा कर टिका दिया। अंग को अंग से छूते ही उसका जिस्म काँप उठा था। मैने धीरे से द्वार पर दबाव डाला तो दोनों पट मेरे अंग की कठोरता के आगे टिक नही सके और खुल गये। हम दोनो की धड़कन बड़ गयी थी। मैने धीरे-धीरे दबाव बढ़ाया और मेरा अंग उसके द्वार को थोड़ा और खोल कर अन्दर सरक गया था। अदा के मुख से दबी हुई आह निकल गयी थी। मै कुछ पल रुक कर अदा के जिस्म मे होते हुए स्पन्दन और संकरेपन को महसूस करने लगा। मैने एक बार फिर से उसकी कमर पकड़ कर दबाव डाला तो मेरा कामांग थोड़ा सा आगे सरक गया परन्तु रुकावट के कारण वह सिर अटका कर वहीं पर रुक गया था। एलिस और अंजली के साथ मैने इस प्रकार की रुकावट का सामना नहीं किया था। मैने एक बार फिर से थोड़ा दबाव बढ़ाया परन्तु आगे बढ़ने मे असफल रहा। एक नजर मैने अदा पर डाली तो पीड़ा की लकीरे उसके चेहरे पर खिंची हुई थी। एलिस की सीख मुझे याद आ गयी थी जो उसने मुझे पहली बार दी थी।

मैने धीरे-धीरे से उस रुकावट पर चोट मारनी आरंभ करते हुए दबाव बढ़ाया तो वह रुकावट एकाएक ढह गयी और मेरा तन्नाया हुआ कामांग सारी बाधाओं और संकरेपन को खोलते हुए धीरे-धीरे अन्दर सरकता चला गया था। रुकावट की दीवार के ढहते ही अदा के मुख से घुटी हुई एक तेज चीख निकल गयी थी। मैने झुक कर उसके होंठों को अपने होंठों से सील कर दिया। एक बार धीरे से अपने आपको स्थिर करने के लिए थोड़ा पीछे हटा और फिर अपनी कमर पर लगातार दबाव बढ़ाते हुए अपने कामांग को अंदर धकेलता चला गया जब तक वह जड़ तक जा कर बैठ नहीं गया था। अदा मचली, छ्टपटायी और फिर तड़पी लेकिन मेरी जकड़ के आगे उसकी एक न चली। मैने उसके होठो को छोड़ दिया और उसके कमसिन उभारों को छेड़ना आरंभ कर दिया। जब उसकी पीड़ा से ज्यादा जिस्मानी उत्तेजना बढ़ने लगी तब उसके जिस्म मे एक बार फिर से स्पंदन आरंभ हो गये थे। अब वह एकाकार के लिए पूर्णत: तत्पर हो गयी थी।

अब कमरे मे धीरे-धीरे चक्रवाती तूफान वेग पकड़ने लगा और हम दोनो उसके वेग मे बहते चले गये। उसकी सिस्कारियों और सित्कारियों के साथ कमरे मे हम दोनो के जिस्म टकराने की आवाज भी गूँज रही थी। उत्तेजना की चरम सीमा की ओर हम दोनो ही निरन्तर अग्रसर हो रहे थे। एक समय ऐसा आया कि लगा जैसे की वक्त थम सा गया था। हम दोनो के जिस्म मे एक बिजली सी कौंधी और सारे बाँध ढहते चले गये। उत्तेजना मे अदा ने कस कर मुझे जकड़ लिया था। एकाएक वह एक झटका लेकर बेरोकटोक बहने लगी और उसके साथ मेरे अन्दर सुलगता हुआ जवालामुखी भी फट गया और कामरस बेरोकटोक बहने लगा। हम दोनो लस्त होकर काफी देर तक बिस्तर पर पड़े रहे थे। जब हिलने योग्य हुए तो मै उससे अलग होकर उठ कर बैठ गया। मेरी नजर अदा के जिस्म पर पड़ी तो वह दमक रही थी। एकाकार के पश्चात उसका चेहरे देदीप्यमान हो रहा था। वह धीरे से कराहते हुए उठी तो मेरी नजर बिस्तर की चादर पर पड़ी जहाँ एक बड़ा सा लाल धब्बा बना हुआ था। मैने उसे सहारा दे कर बिठाते हुए कहा… कैसा लग रहा है? उसके चेहरे पर पीड़ा साफ झलक रही थी परन्तु वह मुस्कुरा कर बोली… एक्स्क्युजिट। उसका जवाब सुन कर मै खिलखिला कर हँस दिया था। शाम तक अदा और मै एक दूसरे के जिस्म से खेलते रहे थे। हमने खाना बाहर से मंगा लिया था। साथ खाना खा कर मैने कहा… तुम आराम करो। मै खुद चला जाऊँगा। उसकी जिद्द के सामने हमेशा की तरह मैने जल्दी हथियार डाल दिये थे। मुझे बस स्टाप पर उतार कर वह वापिस चली गयी थी।

मेरी ट्रेनिंग और पढ़ाई का भार धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था। जब भी मुझे बाहर जाने का मौका मिलता तो पूरा दिन अदा के साथ गुजरता था। इन सबके बावजूद हर दो दिन बाद अंजली और अम्मी से फोन पर बात हो जाती थी। एक दिन अंजली ने बताया कि अब किसी भी दिन डिलीवरी हो सकती है। यह सुनते ही मैने एक हफ्ते की छुट्टी की अर्जी लगा दी थी। जैसे ही छुट्टी मिली मै अदा को बता कर मुंबई चला गया था। अंजली फ्लैट छोड़ कर अस्प्ताल मे शिफ्ट हो गयी थी। स्टेशन पर उतरते ही मै अस्पताल चला गया और फिर एक दिन बाद सुबह की पहली किरण के साथ अंजली ने एक सुन्दर सी बिटिया को जन्म दिया। अगले तीन दिन अस्पताल मे न जाने कैसे निकल गये थे। अंजली के घर लौटते ही हमने मिल कर अपनी बच्ची को मेनका का नाम दे दिया था। एक हफ्ते की छुट्टी समाप्त करके जिस दिन मै मुंबई से पूणे के लिए निकला था तब तक अंजली और बच्ची की देखभाल की सारी व्यवस्था का इंतजाम हो गया था।

राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के तीन साल ने मुझे एक शर्मीले सहमे हुए अठारह साल के लड़के को अनुशासन, कठिन परिश्रम, बंधुत्व और नेतृत्व के लिये तैयार कर दिया था। पहले दिन ही मेरा अनुशासन से परिचय हो गया था। उठने से लेकर सोने तक का समय टाइमटेबल के अनुसार तय हो गया था। सुबह पाँच बजे उठ कर ग्राउन्ड पर हाजिरी के बाद कब दिन समाप्त होता पता ही नहीं चलता था। मेरे बहुत से साथी यह सोच कर आये थे कि यहाँ आने के पश्चात पढ़ाई से पीछा छूट जाएगा परन्तु ऐसा हुआ नहीं। क्लासरुम की पढ़ाई ने मुझे बहुत सी नयी जानकारियों से अवगत कराया था। हैंड-टु-हैन्ड कोम्बेट से लेकर आधुनिकतम हथियारों से मेरा परिचय कराया गया था। क्लासरुम मे शायद ही कोई ऐसा विषय था जिसकी जानकारी नहीं दी गयी थी। आधी डाक्टरी का ज्ञान मुझे क्लासरुम मे मिल गया था। एनेटामी की क्लास मे इंसानी जिस्म मे नर्वस सिस्टम की जानकारी देकर अतिसंवेदनशील नर्व्स को चिंहनित करके बताया गया कि हल्की सी चोट इंसान को निष्क्रिय कर देती है। इसी प्रकार सभी विषय की इन्जीनीयरिंग का ज्ञान भी क्लासरुम मे मिल गया था। सितारों की पहचान मैप रीडिंग की क्लास के दौरान करायी गयी थी। अगर कहा जाये कि तीन साल मे इतना ज्ञान क्लासरुम मे मिला था जो शायद मै आम जिन्दगी मे हर्गिज नहीं ले सकता था तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। बहुत बार क्लास मे कैडेट्स का एक ही सवाल होता था कि इसको पढ़ने की उन्हें क्या जरुरत है और सभी इंस्ट्रक्टरों का एक ही जवाब होता था कि किसी रोज तुम्हारी और तुम्हारे साथियों की जान बचाने के लिये इसकी जरुरत पड़ेगी।    

हमारे अन्दर बन्धुत्व की भावना जागृत करने के लिये कोई क्लास नहीं लगी थी परन्तु यह भावना धीरे-धीरे हर केडेट के मानस मे घर कर गयी थी। एक केडेट की गल्ती पर अनुशासनातम्क कार्यावाही सारे बैच को झेलनी पड़ती थी। मुझे अपनी ट्रेनिंग के पहले हफ्ते मे समझ मे आ गया था कि अगर हम पहला टर्म पास करेंगें तो सभी करेंगें अन्यथा सभी को दोबारा रिपीट करना पड़ेगा। हमारा एक बैचमेट श्रवण दिल्ली के पब्लिक स्कूल से आया था। ट्रेनिंग आरंभ होने के दूसरे दिन ही हमारे बैच के अधिकारी हमारे विचार और सुझाव जानने के लिये आये थे। उन्होंने आते ही हमसे पूछा… किसी को कोई तकलीफ तो नही है? श्रवण ने हाथ उठा कर कहा… मास्टर ब्रेकफास्ट की टेबल पर जब तक हम पहुँचते है तब तक सेकन्ड इअर का बैच सब कुछ साफ कर देते है और हमारे को बचाकुचा ही मिलता है। …अच्छा ऐसी बात है। अपने साथ आये हुए गार्ड को उन्होंने तुरन्त कहा… सेकन्ड इअर के रेप को लेकर आओ। हम सब श्रवण की ओर बड़ी इज्जत से देख रहे थे क्योंकि हम मे से किसी ने यह कहने की हिम्मत नहीं दिखायी थी। वह गर्वीले अंदाज मे एक दृष्टि हम सब पर डाल कर बोला… सर, आप अगर मेस मे हमारी टेबल अलग लग जाएगी तो सब ठीक हो जाएगा। कुछ ही देर मे सेकन्ड इअर का रेप वहाँ पर हाजिर हो गया था। उस अधिकारी ने गर्जते हुए कहा… तम्बी तुम सेकन्ड इअर वाले नये केडेट्स के सामने कैसा उदाहरण पेश कर रहे हो। तुम्हें शर्म नहीं आती कि तुम इन्हें इस प्रकार की ट्रेनिंग दे रहे हो कि यह बेचारे मेस की टेबल तुम्हारे छोड़े हुए सामान को देख कर परेशान हो रहे है। अभी तक हम सब श्रवण को मन ही मन धन्यवाद दे रहे थे। …तम्बी इन लोगो को आज रात इतना टाइट कर देना कि कल से इन्हें मेस की टेबल पर अगर कुछ भी न मिले तो भी यह परेशान न हों। एक पल के लिये हम सभी को सांप सूंघ गया था। वह अधिकारी मुड़ा और श्रवण की ओर देख कर बोला… कैडेट अगर कोई और परेशानी हो तो बताओ? श्रवण जो अब तक हीरो बना हुआ था अचानक एन्टीक्लाईमेक्स देख कर अब अपने आप को दोषी मान रहा था।

उस रात अपनी दुर्गति का क्या बयान करुँ परन्तु सेकन्ड इअर वालों ने पूरी रात हमारी ऐसी गत बनायी कि बता नहीं सकता और अगली सुबह ठीक पाँच बजने से कुछ मिनट पहले उन्होंने हमे छोड़ दिया था। रातभर जागे थे परन्तु हमारी दिनचर्या आरंभ हो गयी थी। ब्रेकफास्ट की टेबल पर खाने के लिये बिस्किट का टुकड़ा भी नहीं मिला था। एक दिन मे ही हमे सारी परेशानियों से निजात मिल गयी थी। यह कार्यक्रम हमारे साथ पूरे एक हफ्ते तक चला था। श्रवण की मानसिक हालत देख कर हम सभी का रुख उसकी ओर सहानुभुति वाला हो गया था। एक हफ्ते बाद वही अधिकारी दोबारा आये और एक बार फिर से वही सवाल पूछा… अब तो किसी को कोई परेशानी नहीं है? उन्होंने श्रवण की ओर देखा तो वह सिर झुकाये बैठा हुआ था। एक दो बार पूछने के बाद वह वापिस चले गये थे। अगले दिन से सब ठीक हो गया था। उसके बाद तीन साल हम साथ रहे लेकिन फिर किसी ने नाश्ते, खाने या अन्य किसी सुविधा के बारे मे भूल से भी कुछ नहीं कहा था। इसी प्रकार अगर कोई कैडेट से कोई गल्ती होती तो उसका दंड पूरे बैच को भुगतना पड़ता था। कुछ ही दिन मे यह बात समझ मे आ गयी थी कि साठ कैडेट्स का भविष्य एक साथ जुड़ा हुआ है। इसका असर यह हुआ कि जो कैडेट्स पढ़ाई मे अच्छे थे वह कमजोर कैडेट्स को पढ़ने मे मदद करते थे। यही मानसिकता ड्रिल, एक्सर्साइज, वार गेम्स, हथियार चलाना व स्पोर्ट्स के अन्दर भी बन गयी थी। एक दूसरे का हाथ पकड़ कर हमारे तीन साल गुजरे थे। किसी ने बंधुत्व के बारे मे नहीं बताया था परन्तु यह भावना पहले साल जो अंकुरित हुई वह तीन साल मे पास आउट के समय एक वृक्ष के रुप मे जड़ पकड़ गयी थी।

निशानेबाजी, घुड़सवारी व अन्य सैन्य युद्ध की कलायें सिखायी गयी थी। मुझे पता ही नहीं चला कि कब और कैसे मेरे व्यक्तित्व मे इतना बदलाव आ गया था। तीन साल मे एक शर्मीला, सहमा हुआ लड़का जेन्टलमेन कैडेट बन गया था। उन तीन साल मे मेरी कायाकल्प हो गयी थी। शुरुआती महीनो मे दूसरों को देख कर मै अपना काम चला लेता था। जब पहला इम्तिहान हुआ और फिजिकल और फील्ड एक्सर्साईज आरंभ हो गयी तब दस कैडेट की अगुआई का जिम्मा मेरे उपर आ गया था। उस स्थिति मे तब निर्णय लेने की क्षमता स्वत: ही मेरे व्यक्तित्व मे पुख्ता होने लगी थी। असंख्य बार वार गेम्स मे मुझे ऐसे निर्णय लेने पड़ते थे जिसका सीधा असर मेरे साथियों और उद्देश्य पर पड़ता था। सच पूछिये तो नेतृत्व की कोई क्लास नहीं हुई थी परन्तु रोजमर्रा जिंदगी मे बंधुत्व की तरह नेतृत्व भी मेरे व्यक्तित्व मे निखरता चला गया था। खडगवासला मे तीन साल गुजारने के बाद हमारा समूह बिखर गया था परन्तु वह मेरे जिन्दगी भर के लिये ब्रदर कैडेट्स बन गये थे। किसी ने नहीं बताया परन्तु अपने आप समझ मे आ गया था कि सेना मे न जाने कब और कहाँ जाना पड़ जाये। पता नहीं खाने को मिले या न मिले, सोने के लिये जगह मिले या न मिले, व अन्य छोटी-छोटी चीजों के लिये परेशान होने की जरुरत नहीं है। परेशानी तो उस वक्त भी नहीं होती जब दुश्मन की गरजती हुई तोप दिखती है जब कि उसमे जान जाने का खतरा सदैव बना रहता है। आगे चल कर मुझे समझ मे आया कि एक सैनिक को असली परेशानी तो उस वक्त होती जब वह अपने साथी की शहादत की खबर उसके परिवार को देने जाता है।    

वहाँ के बहुत सारे अच्छे और बुरे संस्मरण मुझे आज भी याद है। जिस दिन मुझे कमीशन मिली उस दिन सिर्फ अम्मी और अंजली आ सकी थी। अदा के इम्तिहान चल रहे थे। हमने अभी तक अम्मी को अपने बदले हुए रिश्ते के बारे मे नहीं बताया था। जब अम्मी को पता चला कि अंजली ने अपनी बेटी का नाम मेनका रखा है तो वह अंजली के गले लग कर काफी देर तक रोती रहीं थी। अम्मी ने अंजली से जब उसकी शादी और पति के बारे मे पूछा तो उसने वही समीर कौल की गड़ी हुई कहानी उन्हें सुना दी थी। अम्मी अकेली आयी थी और परेड समारोह के अगले दिन ही वह वापिस चली गयी थी। अंजली मेरे साथ तब तक रही जब तक मेरी पहली नियुक्ति के आर्डर नहीं मिले थे। वह बीस दिन मेरी जिंदगी के सबसे बेहतरीन दिनों मे से थे। उन्हीं दिनों मे एक रात मैने हिम्मत जुटा कर अंजली को अदा के बारे मे भी बता दिया था। मै यकीन से तो नहीं कह सकता लेकिन पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगा कि मेरे और अदा के रिश्ते के बारे मे जान कर अंजली को बेहद सुकून मिला था। यह भी हो सकता कि वह मेरा भ्रम हो लेकिन उसकी एक बात सुन कर मुझे लगा कि अंजली को यह बात सुन कर बुरा नहीं लगा था। मुझे पता नहीं कि उसने वह बात संजीदा हो कर कही थी अथवा नहीं लेकिन एक रात एकाकार के बाद जब हम अपने अतीत को टटोल रहे थे तभी वह अचानक बोली… समीर, बट परिवार को कभी माफ मत करना। कौल परिवार का बदला लेने के लिए उसकी एक बेटी से काम नहीं चलेगा। उसके वंश का नाश होना चाहिये जैसे उसने कौल परिवार के वंश का नाश किया था। उस वक्त मै उसके चेहरे को देखता रह गया था। पता नहीं उसके मन मे क्या चल रहा था परन्तु इतना बोल कर वह जोर से खिलखिला कर हँस दी थी। कुछ देर बाद वह संजीदा स्वर मे बोली… समीर, मकबूल बट को उसके परिवार से हमेशा अलग रख कर देखना क्योंकि शमा भाभी का कौल परिवार पर एक एहसान है जिसके लिये मै हमेशा उनकी ॠणी रहूँगी। इतना बोल कर अचानक वह मुझसे लिपट कर रोने लगी। मै उसको चुप कराने मे लग गया था।

अगले दिन हम पूना मे पार्वती हिल्स पर मंदिर से बाहर निकल रहे थे कि अचानक वह बोली… मै अदा से मिलना चाहती हूँ। …अभी। …हाँ। …अंजली उसके इम्तिहान चल रहे है। इस वक्त उससे मिलना ठीक नहीं होगा। वह कुछ नहीं बोली परन्तु मै उसकी जिज्ञासा को समझ रहा था। हम जब तक वहाँ रहे अंजली ने अदा के बारे मे फिर कभी कोई जिक्र नहीं किया था। उन तीन सालों मे मैने महसूस किया था कि अंजली और अदा मे कोई ज्यादा फर्क नहीं था। दोनो ही मुझ पर जान छिड़कती थी परन्तु दोनो ही मुझ पर हावी रहती थी। मेरे लिये तो उनका एक ही नियम था- कह दिया सो कह दिया। अदा की सच्चायी से अंजली परिचित थी परन्तु अभी तक अदा को अंजली की सच्चायी का पता नहीं था। एक बार अंजली से इस बारे मे बात भी हुई थी तब उसने सलाह दी थी कि अदा की पढ़ाई समाप्त होने के बाद ही बताना ठीक रहेगा क्योंकि पता नहीं वह इस एक सच्चायी को किस प्रकार लेगी। जैसे ही मेरी नियुक्ति का आर्डर मिला तो मेनका को लेकर अंजली वापिस मुंबई लौट गयी थी।

मेरा तीन साल का स्कोर अपने बैच मे पहले दस मे था इसीलिए मेरी नियुक्ति आर्मी की स्पेशल फोर्सेज कोर मे हो गयी थी। उसकी विशेष ट्रेनिंग के लिये मुझे दो महीने के लिये महु और फिर दो महीने के लिये वेलिंगटन भेजा गया था। वहाँ की ट्रेनिंग ने मुझे सैनिक से एक चलती-फिरती मौत मे तब्दील कर दिया था। मानसिक तौर पर मेरे अन्दर काफी बदलाव आ गया था। अकेले जब अड़तालीस घंटे जंगल और दलदल मे निकालना पड़े तब काफी आत्मज्ञान अपने आप हो जाता है। मुश्किल से मुश्किल परिस्थिति मे जिवित रहने की कला और जीवन के प्रति एक श्रद्धा का जज्बा अंकुरित हो जाता है। इसी प्रकार स्पेशल फोर्सेज की ट्रेनिंग मे रोजाना विभिन्न प्रकार की मानसिक एवं शारिरिक क्षमता की परीक्षा हुआ करती थी। वहाँ किसी भी प्रकार की कमजोरी के लिये कोई जगह नही थी। वहाँ पर सिर्फ एक ही जज्बा कूट-कूट कर भरा गया था कि दुश्मन की मौत ही तुम्हारा जीवन है। अगर वह बच गया तो तुम्हारा अंत निश्चित है। जब जीवन और मौत के बीच संघर्ष करना पड़े तब जीवन इंसान के दिमाग व शरीर के सौ प्रतिशत कार्यक्षमता और कौशल पर निर्भर करती है।    

जब भी अंजली को समय मिलता तब दो-तीन दिन के लिये वह मेनका को लेकर महु और वेलिंगटन मे मुझसे मिलने आ गयी थी। अदा भी अपने इम्तिहान समाप्त करके एक हफ्ते के लिये महु आ गयी थी। ऐसे ही समय बीत गया था। मेरी सबसे पहली नियुक्ति पठानकोट मे हुई थी। अपनी पहली नियुक्ति पर ही मेरा सामना इस्लामिक जिहादियों से हुआ था। दक्षिण कश्मीर सेक्टर मे एन्काउन्टर और कोम्बिंग आप्रेशन का चार्ज मुझे दिया गया था। एक नायक और एक वायरलैस आप्रेटर के साथ दस सैनिक मेरी कमांड मे थे। सूचना मिलते ही एक जीप और बख्तरबंद मशीन गन कैरियर तुरन्त जिहादियों को उनकी हूरों से मिलवाने के लिये निकल जाते थे। मेरा पहला एन्काउन्टर रावी नदी के पार कुछ सात मील दूर राधा कृष्न मंदिर के प्रागंड़ मे हुआ था। हमे सूचना मिली थी कि चार पाकिस्तानी हथियारों से लैस जिहादी मंदिर के पुजारी और उसके परिवार को बंधक बना कर मंदिर मे बैठे हुए है। मेरे साथ सभी अनुभवी सैनिक थे। रास्ते मे नायक रघुबीर गुर्जर ने पूछा… जनाब, मंदिर मे छिपे हुए जिहादियों का क्या करना है? …उनकी लाशें लेकर वापिस लौटना है। …जी जनाब। बस इतनी बात हमारे बीच मे हुई थी।

जब हम राधा कृष्न मंदिर पहुँचे तब तक चारों जिहादी अलग-अलग जगह पर मोर्चबंदी करके बैठ गये थे। स्थानीय पुलिस ने हमे बताया कि सभी आधुनिक एके-47 से लैस है। पुजारी के साथ उसकी बीवी और तीन बच्चों को उन्होंने बंधक बना रखा है। पुलिस ने मंदिर के अन्दर का नक्शा हाथ से बना कर मुझे थमा दिया था। हथियार और बंधको की खबर मिलते ही मैने अपनी रणनीति पर काम करना आरंभ कर दिया था। अगले पन्द्रह मिनट मैने अपनी टीम के चार सदस्यों को मंदिर के अन्दर का नक्शा समझा कर उन्हें मंदिर की चारदीवारी से दूरी बना कर चक्कर लगाने के लिये भेज दिया। उनको ग्राउन्ड जीरो को समझने व उस स्थान का आंकलन करने काम सौंपा था। बाकी चार को मुख्य द्वार पर तैनात कर दिया था। हमे उनके छिपने के स्थान के बारे मे जानकारी चाहिये थी। नक्शे को देख कर मैने चार स्थानों पर निशान लगा कर कहा… यह चार ऐसे स्थान है कि जहाँ से जिहादी मुख्य द्वार पर निगाह जमा कर बैठे होंगें। …सर, इसका मतलब तो यह हुआ कि सामने से प्रवेश करना खतरनाक साबित हो सकता है। …हाँ। कुछ देर के बाद हमारे चार सैनिकों की टीम लौट कर बोली… पीछे से निकलने का कोई रास्ता नहीं है। आठ फीट उँची चारदीवारी है। आसपास के मकान भी सभी एक मंजिला है। उनसे बात करते हुए मेरी नजर कुछ दूरी पर एक ऊँची सी नयी बनती हुई इमारत पर पड़ी तो मैने जल्दी से इशारे से उस इमारत को दिखाते हुए कहा… गनर शेष राम अपनी राइफल लेकर उस इमारत की छत पर तैनात हो जाओ। हम तुम्हें निशानेबाजी के लिये आज भरपूर मौका देंगें। गनर शेष राम तुरन्त अपनी लम्बी दूरी की स्नाईपर राईफल लेकर उस ओर चला गया था।

पुलिस और सीआरपीएफ ने सारा इलाका सील कर दिया था। चार सैनिक मुख्य द्वार पर तैनात करके बाकी को अपने साथ लेकर मै उस मंदिर की दीवार कi ओर चल दिया था। …नायक साहब अगर मेरा अनुमान ठीक है तो यह जगह चारों का ब्लाइन्ड स्पाट होगा। यहाँ से मै अकेला आगे बढ़ रहा हूँ। आप मुझे कवर किजिये। जल्दी ही उनकी ओर से पहली फायरिंग होगी। बाकी आप सभी चारदीवारी के साथ फैल जाईये और उनके फायरिंग के स्थान की निशानदेही करने की कोशिश किजिये। कोई शक? मै तैयार हो गया था। एड्रीनलिन की मात्रा मेरे जिस्म मे बढ़ गयी थी। टू-वे माइक्रोफोन को सभी ने कान पर लगा लिया था। …शेष राम क्या पोजीशन है? …जनाब पूरी छत यहाँ से साफ दिख रही है। …दूरी? …50 मीटर के करीब। …ओके शूट टु किल। …यस सर।

…बी टीम रेडी। …जी जनाब। फायरिंग आरंभ होते ही मंदिर मे घुस कर मोर्चा संभाल लेना। …जी सर। मेरे साथ आये हुए बाकी सैनिक अब तक मंदिर की कम्पाउन्ड वाल के साथ चलते हुए पोजीशन ले चुके थे। एक नजर मैने नायक पर डाली तो वह मुझे देख रहा था। मैने सिर हिला कर उसे इशारा किया और हाथ मे स्मोक ग्रेनेड के पिन को निकालते हुए माईक्रोफोन पर बोला… रेडी…गो। बास्केट बाल का गेम आरंभ हो गया था। कुछ दूरी से दौड़ते हुए मंदिर की दीवार पर पाँव जमा कर हवा मे उछलते हुए स्मोक ग्रेनेड अन्दर उछाल कर दीवार के सहारे आगे बढ़ गया था। एक क्षण के लिये मैने अपने आप को उस कथित स्थान के आगे प्रकट हुआ और फिर दीवार की आढ़ मे चला गया था। कोई फायर नहीं हुआ तो मेरा पहला अनुमान गलत साबित हो गया था। यही एक्सरसाइज मैने दूसरे स्थान के लिये भी की परन्तु फिर भी उनकी ओर से फायर नहीं हुआ तो अबकी बार मुझे लगा कि रणनीति बदलनी पड़ेगी लेकिन तभी राइफल फायर के साथ ही शेष राम की आवाज कान मे पड़ी… सर, वन डाउन। थ्री मोर टु गो। अब तक मंदिर का अन्द्रुनी हिस्सा धुएँ से अट गया था। पहली कामयाबी के साथ ही एक नया जोश सभी मे भर गया था। …बी टीम रेडी टु मूव इनसाइड। मैने सिर्फ चार स्मोक ग्रेनेड इस्तेमाल किये और शेष राम ने दो फायर किये थे। बी टीम को एके-203 अस्साल्ट राइफल से दो बर्स्ट फायर करने पड़े थे। चार जिहादी अगले बीस मिनट मे अपनी हूरों के साथ रंगरलियाँ मनाने के लिये डिस्पैच कर दिये गये थे। पुजारी और उसका परिवार एक कमरे से सकुशल निकाल लिया गया था। चार लाशों का निरीक्षण करके और उनकी तस्वीर निकाल कर हमने उन्हें स्थानीय पुलिस को सुपुर्द किया और अपना सारा सामान समेट कर वापिस पठानकोट की ओर चल दिये थे। …जनाब आप बास्केटबाल के खिलाड़ी है? …अकादमी मे खेलता था। …साबजी अपना हनुमान सिंह सर्विसिज की बास्केटबल टीम मे है। किसी दिन मैच हो जाये? बस ऐसे ही बातों-बातों मे हर बार मेरे साथी मेरी परीक्षा लेने की कोशिश मे लगे रहते थे। उनका विश्वास जीतने के लिये मुझे दुगनी मेहनत करनी पड़ती थी। ऐसे तीन एन्काउन्टर और चार कोम्बिंग आप्रेशन के बाद वह मुझे भी अपने जैसा अनुभवी मानने लगे थे।       

मुझे पठानकोट मे रहते हुए चार महीने हो गये थे। अब तक मै अपने साथियों की नजरों मे अफसर की इज्जत का हकदार बन गया था। सभी साथी मेरी सैन्य रणनीति पर विश्वास करने लगे थे। तभी एक दुर्घटना ने मेरी जिंदगी की दशा और दिशा को एक बार फिर से मोड़ दिया था। जुलाई मे मुंबई के सीरियल ब्लास्ट मे अंजली की मौत हो गयी थी। वह शाम को अस्पताल से घर जा रही थी तभी दादर के पास हुए एक ब्लास्ट की चपेट मे वह आ गयी थी। खबर मिलते ही मेरा दिल बैठ गया था। कौल परिवार से मुझे जोड़ने वाली मेरी आखिरी डोर भी टूट गयी थी। बस अब मेरी पहचान सिर्फ एक काफ़िर की रह गयी थी। पठानकोट से इमर्जेन्सी छुट्टी लेकर मुंबई पहुँच कर मैने अंजली का दाह संस्कार करवाया और उसके सारे आखिरी कार्य पति के रुप मे सम्पूर्ण किये थे। उसके अस्पताल और बैंक के सारे कार्य पूरे करने मे मेरा ज्यादातर समय निकल गया था। अब मेरी सबसे बड़ी समस्या मेनका की परवरिश की थी। ढाई साल की मेनका को मै अपने साथ नहीं रख सकता था क्योंकि मेरी फ़ील्ड पोस्टिंग थी। उसकी आया तो उसे संभाल रही थी परन्तु उसके भरोसे तो मेनका को मुंबई मे अकेला तो छोड़ा नहीं जा सकता था। मुझे समझ मे नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। एक बार अदा का ख्याल आया तो उसके आखिरी साल की जिम्मेदारी और इन्टर्नशिप कि सोच कर फिलहाल मेनका का भार उस पर डालना मुझे उचित नही लग रहा था। मुझे यह भी नहीं पता था कि वह मेनका की असलियत के बारे मे जान कर क्या निर्णय लेगी तो आखिरकार मैने मेनका को पठानकोट ले जाने का मन बना लिया था।

शाम को हमेशा की तरह अम्मी से बात कर रहा था कि बातों-बातों मे अम्मी ने बताया कि आफशाँ पिछले चार महीने से बैंगलोर छोड़ कर मुंबई मे नौकरी कर रही थी। जब से आफशाँ पढ़ने के लिये बैंगलौर गयी थी तब से हमारे बीच मे कोई संपर्क नहीं हुआ था। मेरे पास ज्यादा समय नहीं बचा था। मुझे तीन दिन मे वापिस पठानकोट पहुँचना था। पता नहीं क्या सोच कर मैने कार उठाई और आफशाँ से मिलने के लिये उसके आफिस पहुँच गया था।

3 टिप्‍पणियां:

  1. दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।और इसी के साथ कहानी ने अपनी रफ्तार पकड़ ली है और जहां समीर अपने कैडेट जीवन के उस मंजर से गुजरा जहां उसको जीवन को देखने की नजरिया ही बदल गई, और अदा की अदा देख कर बहुत खुश हुआ। मगर इसी बीच अंजली का मौत भी एक गहरा धक्का सा था और उसका भट्ट परिवार के लिए जो द्वेष है वो समीर को क्या क्या कर वायेगा यह देखना मजेदार होगा। अब अफंशा कैसे अपने भाई का हुआ कायाकल्प देख कर रिएक्ट करेगी वो देखना मजेदार होगा। बहुत खूब वीर भाई।

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  2. दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं सभि लोगों को।

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