काफ़िर-10
कुछ ही दिनों के इंटेल रिपोर्ट्स का गहन अध्ययन
करके एक बात मुझे समझ मे आ गयी थी कि सीमा पार से पैसे, हथियार और जिहादी तो बीते सालों
से लगातार आ ही रहे थे परन्तु अब स्थानीय लोगो की सहभागिता भी इन कट्टरपंथी तंजीमो
के साथ गहरी होती चली जा रही थी। वहाबी और देवबंधी मौलवी, इस्लामिक कट्टरपंथी और वामपंथी
विचारधारा रखने वाले लोग भारत के अन्य राज्यों से यहाँ आकर स्थानीय लोगो मे अपनी जड़े
फैला रहे थे। आर्मी की इंटेल रिपोर्ट किसी नाम विशेष पर आधारित होती थी परन्तु उन रिपोर्ट्स
मे सभी छोटी-छोटी सूचनाओं को जोड़ कर अगर बड़े चित्र मे परिवर्तित किया जाता तो राज्य
की स्थिति बड़ी भयावह होती हुई लग रही थी। श्रीनगर मे आईसिस के झँडे इस बात की
ओर इशारा कर रहे थे कि अब जिहादी सीमा पार से ही नहीं अपितु इराक और सीरिया से पाकिस्तानी
तंजीमों की मदद से कश्मीर मे घुसपैठ कर रहे थे। इंटेल की सूचनाओं मे उस पाकिस्तानी
रिपोर्ट का भी जिक्र था जिसे जनरल हक ने तैयार किया था। उस रिपोर्ट को देख कर मैने
जब उन छोटी-छोटी घटनाओं को गहरायी से देखना आरंभ किया तो मुझे जनरल हक की रिपोर्ट अक्षरशः
कार्यान्वित होती हुई लग रही थी। सुरक्षा एजेन्सियों के लिये बड़ी विकट समस्या उत्पन्न
हो गयी थी।
इसी बीच एक शाम को मेरे साथ अनहोनी
घटना घट गयी थी। नमाजी के वेष मे जुमे की नमाज के बाद मै वापिस कैंप की ओर लौट रहा था। मुख्य सड़क
को छोड़ कर कैंप की ओर एक छोटा कच्चा रास्ता खेतों के बीच से होकर निकलता था। उस रास्ते
पर हर खेत के साथ छोटे इक्का-दुक्का कच्चे मकान बने हुए थे। मेरा अनुमान था कि खेत
पर काम करने वालों का परिवार उन मकानों मे रहता होगा। उस शाम अभी अंधेरा पूरी तरह से
नहीं हुआ था कि मेरी नजर कुछ लोगों पर पड़ी जो एक कच्चे मकान मे घुस रहे थे। सभी ने
अपना चेहरे पर कपड़ा और जिस्म को ऊनी चादर से ढक रखा था। सर्दी की शुरुआत हो चुकी थी
तो यह पहनावा अजीब नहीं था परन्तु जिस माहौल को कुछ देर पहले देख कर लौटा था उसके कारण
मन कुंठित था। एक ओर प्रशासन ने हमारे हाथ बाँध दिये थे और दूसरी ओर नये-नये जिहादी
कन्धे पर राइफलें टांग कर किसी भी घर मे घुस कर गरीब परिवारों का शोषण करते हुए दिख
जाते थे। उनको घर मे घुसते हुए देख कर मै चलते-चलते एक पल के लिये रुक गया। तभी उस
कच्चे मकान से एक चीख की आवाज मेरे कानो मे पड़ी तो मैने तुरन्त पास के खेत मे छलांग
लगा दी और दूर से उस मकान पर निगाहें गड़ा कर बैठ गया था।
अंधेरा हो चुका था। कुछ सोच कर मै पेट के बल
सरकता हुआ झाड़ियों की आढ़ लेते हुए उस मकान के करीब पहुँच गया था। धमकी भरी आवाजें अन्दर
से साफ सुनाई दे रही थी। उनकी भाषा से साफ था कि वह स्थानीय लोग नहीं थे। मै अजीब सी
उलझन मे फँस गया था। मेरे पास कोई हथियार भी नहीं था। मै अपने अगले कदम के बारे मे
सोच रहा था कि तभी एक आदमी मकान से निकल कर खेत के किनारे झाड़ियों की ओर जाता हुआ दिखायी
दिया तो मै दबे पाँव उसके पीछे चल दिया। झाड़ियों मे शायद वह अपनी प्राकृतिक जरुरत के
लिये गया था। मै सांस रोक कर बैठ गया। वह जैसे ही फारिग हो कर खड़ा हुआ मैने उस पर छलांग
लगा कर धर दबोचा और घसीटते हुए उस जगह से दूर ले गया। दो तीन सधे हुए हाथ पड़ते ही उसके
कस बल ढीले पड़ गये थे। वह जमीन पर पड़ा हुआ करहा रहा था। मैने झुक कर उसके चेहरे पर
बंधा कपड़ा हटाया तो उसका चेहरा देख कर मै चौंक गया क्योंकि अंधेरे मे भी वह शक्ल से
मुझे बच्चा लग रहा था। उसकी राईफल कब्जे मे लेकर मैने पूछा… अन्दर क्या चल रहा है?
वह चुपचाप पड़ा रहा तो एक बार फिर से मेरी ठोकर उसकी पसली पर पड़ी तो उसने जल्दी से कहा…
हम सिर्फ आज की रात गुजारने के लिए आये है। उसकी आवाज सुनते ही मुझे झटका लगा तो मैने
उसके सिर पर बन्धा हुआ कपड़ा खींचते हुए घुर्राया… तू कौन है बे? पगड़ी के खुलते ही उसके
लम्बे बालों ने उसके चेहरे को ढक दिया था।
मैने जल्दी से उसे बिठाया और उसके चेहरे पर
से बाल हटा कर पूछा… लड़की तू इनके साथ यहाँ क्या कर रही है। वह सिर झुकाये बैठी रही
तो मैने धमकाते हुए कहा… साफ-साफ बोल कि तुम लोग कौन हो और यहाँ क्या कर रहे हो। अगर
नहीं बोली तो तूझे फौज के हवाले कर दूँगा। अबकी बार वह डरते-डरते बोली… हम किश्तवार
जा रहे है। …कितने लोग हो? …आठ। …कहाँ से आयी है? कुछ पल चुप रही फिर धीरे से बोली…
जफरवाल। मैने चौंक कर कहा… पाकिस्तान से? वह बोली कुछ नहीं बस उसने अपना सिर हिला कर
हामी भर दी थी। मै चुपचाप उसके साथ वही जमीन पर बैठ गया था। कुछ सोच कर मैने कहा… जल्दी
से अपने कपड़े ठीक कर। किश्तवार मे किसके पास जा रहे हो? …पता नहीं। …कल सुबह निकल रहे
हो? उसने एक बार फिर से सिर हिला दिया। …क्या नाम है तेरा? …आस्माँ। कुछ सोच कर मैने
अबकी बार नर्म आवाज मे कहा … देख आस्माँ, मै तुझे छोड़ रहा हूँ। उसकी राईफल उसके हाथ मे थमा कर मैने कहा… इस बात का जिक्र किसी
से मत करना वर्ना तू फालतू मे मारी जाएगी। चल जल्दी से निकल यहाँ से। वह कुछ पल मुझे
देखती रही फिर झाड़ियों से निकल कर उसने मकान की ओर सरपट दौड़ लगा दी थी। मै चुपचाप वहाँ
से अपने कैंम्प की ओर निकल गया था।
अपने सीओ के पास पहुँच कर मैने रात को ही सारी
रिपोर्ट उसके सामने रख दी थी। …समीर, अब क्या करने की सोच रहे हो? …सर, आठ लोग है।
सभी हथियारों से लैस है। हमारे डायरेक्ट एक्शन से उस मकान मे रहने वाला परिवार मारा
जाएगा। मेरा ख्याल है कि जब सुबह वह मकान छोड़ कर बाहर निकले तब हमारी कार्यवाही आरंभ
होनी चाहिए। …गुड, यही ठीक रहेगा। अभी अपने दो सैनिक उस मकान पर नजर रखने के लिये
तैनात कर दो। …जी सर। सीओ से बात करके मै अपनी टीम के साथ बैठ गया था। एक घन्टा चर्चा
करने के बाद मेरी टीम ने रात को ही उस मकान की घेरा बन्दी कर ली थी। जबसे हमारी कार्यवाही
पर अंकुश लगा था तभी से मेरी टीम कुंठित बैठी थी। किस्मत से आज मौका मिला था तो सभी
साथी इस वक्त पूरे जोश मे थे। सुबह चार बजे कुछ लोग मकान से निकले और झाड़ियों की ओर
फारिग होने चले गये। मैने अपने टू-वे स्पीकर पर जल्दी से कहा… नो एक्शन। लाई लो। उनके
लौटने के बाद फिर चार लोग झाड़ियों मे फारिग होने के लिये चले गये थे। सुबह की पहली
किरण निकलते ही उस मकान से एक-एक करके आठ लोग निकले और चार-चार के झुन्ड मे बात करते
हुए मुख्य सड़क की ओर चल दिये थे।
जैसे ही सब खुले खेत मे पहुँचे मैने जल्दी
से स्पीकर पर कहा…एक्शन। नायक रघुबीर गुर्जर ने एक हवाई फायर किया और लाउडस्पीकर पर
चिल्लाया… हाल्ट। सभी जमीन पर हाथ फैला कर लेट जाओ। तुम घेर लिये गये हो। अगर भागने
या गोली चलाने की कोशिश की तो मारे जाओगे। रिपीट…एक बार फिर से रघूबीर ने वही बात दोहरा
दी थी। पहले फायर की आवाज से आठों अपनी जगह पर ठिठक कर रुक गये थे। उस घोषणा के बाद
किसी ने हिम्मत नहीं दिखायी और चुपचाप हाथ उठा कर खड़े हो गये थे। मेरी टीम तुरन्त हरकत
मे आयी और सभी को इकठ्ठा किया और उनके हथियारों को अपने कब्जे मे लेकर उन्हें वहीं
खेत मे एक किनारे मे बिठा दिया। जब मेरी टीम उनको पकड़ने मे व्यस्त थी तब मै उस मकान
मे बंधकों से मिलने चला गया था। छ्ह लोगों का परिवार एक कोने मे डरा हुआ बैठा हुआ था।
एक आदमी के सिर पर कपड़ा बंधा हुआ था। मुझे देख कर एक बार तो वह सभी आतंकित हो उठे थे।
…बोयज पूरे कमरे की तलाशी लेकर इन सब को बाहर लेकर आओ। इतना कह कर मै उन आठों घुसपैठियों
के पास चला गया। सबके चेहरों से कपड़ा हट चुका था। हमारे सिर पर सजी हुई ‘रेड बेरट’
का खौफ सबकी नजरों मे झलक रहा था।
मेरी नजरें आस्माँ को तलाश कर रही थी। रात
के अंधेरे मे मैने उसका चेहरा साफ तो नहीं देख सका था परन्तु अन्दाजन हर चेहरे को देख
कर उसे पहचानने की कोशिश कर रहा था। तभी गुरप्रीत ने मुझसे कहा… सर, इनका क्या करना
है? …कुछ बताया इन्होंने? …सर, यह लोग किश्तवार जा रहे थे। …इनके पेपर्स चेक किये?
…सभी हीरापुर के है। उसकी बात सुन कर मै चौंक गया था। आस्माँ ने बताया था कि वह सब
जफरवाल से आये थे। यह सभी तो स्थानीय लोग निकले। उनमे से एक आदमी आगे बढ़ कर बोला… जनाब
हमसे क्या खता हो गयी है जो आपने हमे रोक रखा है। हमे जाने दिजिए। मुझे कुछ समझ मे
नहीं आ रहा था। उनकी तलाशी मे हमे कुछ नहीं मिला था। मै सबके चेहरे को देखते हुए आगे
बढ़ता चला गया। आखिरकार मैने कहा… इन सबको स्थानीय पुलिस के हवाले कर दो। फिलहाल वही
ठीक रहेगा। मै अभी बोल कर मुड़ा ही था कि तभी एक चेहरा मुझे कुछ जाना पहचाना सा लगा
तो मै उसकी ओर बढ़ गया। मुझे अपनी ओर आते देख कर उसके चेहरे का रंग उड़ गया था। मैने
झपट कर उसको गुद्दी से पकड़ कर घसीटते हुए दूर ले गया और फिर उसे धक्का देकर धीरे से
कहा… आस्माँ। यह सुनते ही आश्चर्य से उसकी आँखें फैल गयी थी।
वह जमीन पर पड़ी हुई मुझे विस्मय से देख रही
थी। …मुझे पहचाना। कल रात को मिले थे। मेरे चेहरे पर वार पेन्ट और जिस्म पर कोम्बेट
डंगरी थी। मेरी आवाज सुन कर वह घिघिया कर बोली… आप। मैने डपटते हुए पूछा… यह क्या चक्कर
है। यह तो अपने आपको हीरापुर का बता रहे है। वह जल्दी से बोली… खुदा के लिये हमे जाने
दो। रात को उन्होंने यहाँ आने से पहले अपने साथ लाया हुआ सारा सामान उधर पेड़ के पास
झाड़ियों मे छिपा दिया था। तभी गुरप्रीत मेरे पास आकर बोला… सर, पुलिस को इसकी खबर दे
दी गयी है। वह इनको लेने आ रहे है। इतना बोल कर वह चला गया था। वह गिड़गिड़ा कर बोली…
साहब, हमे पुलिस को मत सौंपियें। उसकी आवाज मे कुछ ऐसा था कि मै सोचने के लिये मजबूर
हो गया था। सबकी नजर हम पर जमी हुई थी। मैने उसके गुद्दी को पकड़ कर झिंझोंड़ते हुए धीरे
से पूछा… इनमे से तुम्हारा कोई अपना है? उसने जल्दी से कहा… मेरे अब्बा और मेरी बहन।
…इनमे से तुम्हारी तरह और कोई लड़की है? …नहीं। मैने उसकी कमर पर लात जमा कर जमीन पर
धकेल दिया और आगे बढ़ गया। उसको जमीन पर गिरते हुए देख कर उन लोगों मे से दो लोग दौड़
कर उसकी ओर भागे लेकिन तभी मेरे एक साथी ने उन्हें वहीं रोक दिया था। मैने उसको इशारा
किया तो वह दोनो आस्माँ की ओर चले गये और मै टहलते हुए आस्माँ की बतायी हुई जगह की
ओर चल दिया। तब तक पुलिस भी पहुँच गयी थी। आस्माँ और उसके साथ दोनो कुछ दूर पर जमीन
पर बैठे हुए मुझे देख रहे थे। जैसे ही मै पेड़ के पास पहुँचा मेरी नजर झाड़ियों मे पड़े
हुए आठ स्कूल बैग्स पर पड़ी तो मैने अपने स्पीकर पर कहा… सावधान। विजय और शेखर तुरन्त
मेरे पास पहुँचों। कुछ ही देर मे मेरे साथी सभी बैग को उठा कर सबके सामने पहुँच गये
थे। पुलिस अभी भी अपनी तफतीश मे व्यस्त थी।
विजय की आवाज मेरे कान पर लगे हुए माईक्रोफोन
पर सुनायी दी… सर, इन बैग्स मे ड्रग्स के साथ आरडीएक्स, सेम्टेक्स के पैकेट के साथ
कुछ छोटे हथियार भी है। यह सुनते ही मेरी टीम फौरन चौकन्नी हो गयी थी। अब यह केस पुलिस
के हाथ से निकल गया था। …गुरप्रीत, पुलिस को दफा करो और सभी को अपने कब्जे मे ले लो।
उन तीनो को वहीं बैठे रहने देना। अभी मुझे उनसे कुछ पूछ्ताछ करनी है। अगले कुछ मिनट
पुलिस को दफा करने मे खराब हो गये थे। उनके जाने के बाद मैने अपनी टीम से कहा… रघुबीर
सभी जब्त किया हुआ सामान और लोगों लेकर कैंम्प चले जाओ। कुछ ही मिनटों मे सबको ट्रक
पर सामान के साथ लेकर मेरी टीम चल दी थी। मै अपने साथ जीप मे आस्माँ, उसके अब्बा और
उसकी बहन को लेकर उनके पीछे चल दिया। …आस्माँ बताओ अब क्या करना है। इन लोगो से तो
अब फौज पूछ्ताछ करेगी। तीनो को तो जैसे साँप सूंघ गया था। किसी के मुँह से आवाज नहीं
निकल रही थी। एकाएक जैसे ही हमारा ट्रक कैंम्प की ओर मुड़ा तो मैने एक किनारे मे अपनी
जीप खड़ी करके दोबारा पूछा… आस्माँ जल्दी से बताओ तुम क्या चाहती हो? उसने एक बार अपने
अब्बा की ओर देखा और फिर धीरे से बोली… खुदा के लिये हमे जाने दे। …कहाँ जाओगी? अबकी
बार उसके अब्बा ने कहा… साहब इसको आप रख लो और हम दोनो को यहाँ से जाने दो। पहली बार
मे उसकी बात मुझे समझ नहीं आयी परन्तु जैसे ही उसकी बात मुझे समझ मे आयी तो मै तुरन्त
जीप से उतर कर भड़कते हुए बोला… बड़े मियाँ तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है। यह
तुमने कैसे सोच लिया? मुझे भड़कता देख कर तीनों हाथ जोड़ कर खुदा का वास्ता देने लगे
थे।
अपने गुस्से को जल्दी से काबू मे करके मैने
कहा… सबसे पहले यह पगड़ी और नकाब वगैराह हटा कर इंसान बन जाओ। तीनो ने जल्दी से पगड़ी
हटाई और जिस्म पर लादे हुए कम्बल को अलग करके बैठ गये थे। पहली बार मैने आस्माँ को
उसके सही स्वरुप मे देख कर कहा… कल चेहरे पर ज्यादा चोट तो नहीं
लगी। पहली बार वह मुस्कुरायी और जल्दी से सिर हिला कर मना करते हुए बोली… मेरी पसली
मे चोट लग गयी थी। मैने बड़े मियाँ की ओर रुख किया… आपकी बेटी के कारण हमे आज कामयाबी
मिली है इसीलिये मै आप सभी को छोड़ने की सोच रहा था। आपकी बेटी को अपने पास रखने के
लिये नहीं बल्कि आप तीनो को उन जिहादियों से बचाने के लिये अलग किया था। वह बूढ़ा बाप
चुपचाप सुनता रहा और फिर जीप से उतर कर बोला… साहब, बड़ी मुश्किल से उन दरिंदों से इन्हें
बचा कर लाया हूँ। खुदा के लिये मेरी इतनी मदद कर दिजीये कि हम सही सलामत किश्तवार पहुँच
जाये। वहाँ पर हमारा पूरा परिवार है। …बड़े मियाँ कुछ पैसे है आपके पास? …जनाब, सब कुछ
तो उनके पास रह गया है। एक नजर आस्माँ पर डाल कर उसकी बहन से पूछा… तुम दोनो मे बड़ी
कौन है? …मै। …क्या नाम है तुम्हारा? अबकी बार उसने शर्मा कर कहा… जन्नत। दोनो देखने
मे सुन्दर थी परन्तु ऐसा लग रहा था कि जैसे उन्होंने कई दिन से अपना मुँह भी नहीं धोया
था। उन सबके चेहरे पर मैल की परत चड़ी हुई थी और रुखे बाल बेतरतीबी से उलझे हुए थे।
मैने उस बूढ़े से पूछा… तुम लोग जफरवाल कैसे
पहुँच गये जब कि तुम्हारा परिवार किश्तवार मे है? उस बूढ़े ने बताया… हम बक्खरवाल कबीले
से है। जफरवाल हमारे कबीले का पुश्तैनी जिला है। पिछले कुछ साल से हमारे लोग दो और
तीन के समूह मे ऐसे ही सीमा पार करके किश्तवार और उत्तरी कश्मीर मे जाकर बसते जा रहे
थे। कभी अफीन और चरस के बदले हमे सीमा पार करने का मौका मिल जाता था और कभी परिवार
की एक लड़की को उन दरिंदों के हवाले करनी पड़ती थी। मुफलिसी और बढ़ती हुई भुखमरी के कारण
वहाँ से सब लोग इधर की ओर आ रहे थे। …तो बड़े मियाँ तुमने किसका सौदा किया था? वह बूढ़ा
तो कुछ नहीं बोला लेकिन जन्नत ने कहा… इन्होंने मुझे उस जल्लाद मंसूर के हवाले किया
था। जन्नत पर एक नजर डाल कर मैने आस्माँ की ओर देख कर कहा… इसीलिये बड़े मियाँ अब तुमको
मेरे हवाले कर रहे थे। मैने उस वृद्ध के कन्धे पर हाथ रख कर कहा… बड़े मियाँ आपकी दोनो
बेटियाँ आपको मुबारक हो। जल्दी से जीप मे बैठो। यह कह कर मै ड्राईविंग सीट पर बैठ गया
और फिर उनके बैठते ही मैने कठुआ शहर की ओर जीप मोड़ दी थी। कुछ ही देर मे हम कठुआ के
बस स्टैन्ड के बाहर पहुँच गये थे। अपने पर्स से कुछ नोट निकाल कर जन्नत के हाथ मे रखते
हुए मैने कहा… तुम बड़ी तो यह पैसे तुम्हें दे रहा हूँ। यहाँ से किश्तवार की बस मिल
जाएगी। अपने अब्बा और बहन को लेकर किश्तवार चली जाना। अगर किसी मुश्किल मे पड़ जाओ तो
मुझे खबर कर देना। यह कह कर मैने एक कागज पर अपना फोन नम्बर लिख कर उसे पकड़ाते हुए
धमकाया… अगर फिर तुम मे से किसी को सीमा के आसपास देख दिया तो अबकी बार देखते ही गोली
मार दूँगा। इतना बोल कर उन तीनो को वहीं बस स्टैंड के बाहर छोड़ कर मैने जीप वापिस घुमायी
और अपने कैंप की ओर चल दिया था।
कैंम्प मे पकड़े गये लोगो से पूछताछ चल रही
थी। किसी ने मुझसे उन तीनो का जिक्र नहीं किया परन्तु इतना बता दिया कि पकड़े गये लोगो
से घुसपैठ के नये रास्ते का पता चल गया है। पहली बार हमारी फोर्सेज को बार्डर फेन्स
के नीचे से सुरंग द्वारा घुसपैठ करने का पता लगा था। मै अपनी रिपोर्ट तैयार करने के
लिये चला गया था। शाम तक पकड़े हुए सभी घुसपैठियों को पूछताछ के एमआई के हवाले कर दिया
गया था। एक बार फिर से हमारी रोजमर्रा की ड्रिल और ट्रेनिंग आरंभ हो गयी थी। बाकी का
सारा दिन मेरा आफिस मे इंटेल रिपोर्ट्स पढ़ने मे निकल जाता था। ऐसे ही हमारे दिन बीत
रहे थे।
एक दिन कुछ सोच कर मैने अपने विचार कागज पर
लिखने आरंभ कर दिये और अपनी समझ के अनुसार क्या करना चाहिए वह सुझाव भी उसमे जोड़ना
आरंभ कर दिया था। दो महीने के अथक परिश्रम के बाद मैने एक रिपोर्ट- “हक डाक्ट्रीन:
सामरिक प्रत्युत्तर” तैयार कर दी थी। कुछ सोच
कर वह रिपोर्ट लेकर मै अपने सीओ से मिला और उनके हाथ मे वह रिपोर्ट देकर मैने कहा…
जनाब यह मैने तैयार की है। आप इसे एक बार पढ़ कर देख लें। अगर आपको इसमे कुछ काम की
चीज लगती है तो आप इसे आगे बढ़ा दीजिएगा अन्यथा यह मुझे वापिस
कर दीजिएगा। सीओ ने अपने हाथ मे रिपोर्ट लेकर तौलते हुए कहा…
समीर इतना लिखने का तुम्हें समय कैसे मिल गया। मुझे लगता है कि तुम ड्रिल वगैराह मे
भाग नहीं ले रहे हो। …सर आप बाहर जाने नहीं दे रहे तो क्या करता। आपने हमे एक्शन से
बाहर रखा हुआ है तो मैने यह तैयार कर दिया है। …चलो मै पढ़ कर देखता हूँ कि तुमने कितनी
मेहनत की है। मै उनके आफिस से बाहर निकल कर अपने साथियों के साथ जा कर बैठ गया था।
दक्षिण जम्मू और कश्मीर के हिस्से को सुरक्षित
रखने की जिम्मेदारी हमारी टुकड़ी पर डाली गयी थी। मै अपनी टीम के साथ सीमा पर स्थानीय लोगो की पहचान और
फौजी चौकियों की स्थिति की जानकारी इकठ्ठी करने मे जुट गया था। जब भी पुलिस अन्यथा
पैरामिलिट्री फोर्स की आतंकवादियों से मुठभेड़ होती तब हमे तुरन्त उनकी सहायता के लिये
जाना पड़ता था। सुबह से शाम तक हम किसी भी क्षण निकलने के लिये तैयार रहते थे लेकिन
अब ‘रेड बेरट’ टीम को बुलाने के लिये कोई सुरक्षा एजेन्सी तैयार नहीं
थी। अगर किसी इमर्जेन्सी मे हमे बुलाना भी पड़ भी जाता तब भी स्टैंड बाय के तौर पर रखा
जाता था। पहले पैरा मिलिट्री के लोग ही आगे रहते और जब वह आतंकवादियों को काबू करने
मे विफल रहते और जब उनकी ओर से फायरिंग आरंभ हो जाती तभी हमे आगे बढ़ने के लिये कहा
जाता था। हमारी कार्यवाही आरंभ उनके इशारे पर जरुर होती थी परन्तु कार्यवाही की समाप्ति
हम पर निर्भर करती थी। हमेशा हमारी कार्यवाही का अंत आतंकवादियों की मौत से होता था।
हमारा ज्यादातर समय अपने कैंम्प मे निकल रहा
था। इंटेल रिपोर्ट्स का आंकलन और दक्षिण कश्मीर सेक्टर के भूगोल का सर्वे करके किसी
तरह हम अपने आप को व्यस्त रख रहे थे। ऐसे ही एक दिन सीआरपीएफ के दल से हमे वायरलैस
पर खबर मिली की उनकी टीम लखनपुर से बारह मील जंगलों मे आतंकवादियों की भारी फायरिंग
के मध्य फँस गयी है। उनके तीन जवान हताहत और कप्तान साहब घायल हो गये है। तुरन्त मदद
के लिये उन्होंने फ्री फ्रिक्वेन्सी पर यह सूचना दी थी। मैने जल्दी से कुअर्डिनेट्स
नोट किये और कोड रेड का सिगनल देकर तुरन्त अपनी टीम को लेकर हेलीपेड की ओर चल दिया
था। कोड रेड का अर्थ इमर्जेन्सी आप्रेशन का आरंभ होना था जिसके लिये मुझे सीओ को रिपोर्ट
करने की जरुरत नहीं थी। स्टैंड बाय पर खड़े हुए हेलीकाप्टर पर सवार होकर तुरन्त दिये
गये कुअर्डिनेट्स की दिशा मे चल दिये थे। मुश्किल से बीस मिनट मे हम उस स्थान पर पहुँच
गये थे। रास्ते मे ही मैने अपने साथियों को आप्रेशन की विस्तृत जानकारी देते हुए आज
की कार्यवाही समझा दी थी। यह रेस्क्यू आप्रेशन था सो हमारी पहली प्राथमिकता उन सिपाहियों
को वहाँ से सुरक्षित निकालने की थी।
हेलीकाप्टर के पहले चक्कर मे हमने नोट कर लिया
था कि फायरिंग का दायरा कितना बड़ा था। नायक रघुबीर को हवाई मदद का काम सौंप कर उस दायरे
से कुछ दूरी पर अपने आठ साथियों को लेकर हम जमीन पर उतर गये थे। पहाड़ी उबड़-खाबड़ रास्ता
होने के कारण हेलीकाप्टर जमीन पर नहीं उतर सकता था इसीलिये हमे रस्सी से स्लाइड करते
हुए नीचे उतरना पड़ा था। अगले पाँच मिनट मे जमीन पर उतर कर नक्शे पर दिखाते हुए अपने
आठ साथियों को निर्देश देकर मै आगे बढ़ गया था। सूचना मिलने और एक्शन आरंभ होने मे मुश्किल
से तीस मिनट से कम लगे थे। उनके चक्रव्युह के सबसे मजबूत मोर्चे पर हमने पीछे से हमला
आरंभ किया था। हेलीकाप्टर से ग्रेनेड अटैक और हमारी ओर से सधी हुई फायरिंग के सामने
उस मोर्चे को ध्वस्त करने मे हमे बीस मिनट से ज्यादा नहीं लगे थे। उनकी हेवी मशीन गन
पर कब्जा होते ही आतंकवादी पीछे हटने पर मजबूर हो गये थे। अब उनकी मशीन गन ने उन पर
ही फायर करना आरंभ कर दिया था। कुछ ही मिनट की सधी हुई फायरिंग से उनका चक्रव्युह छिन्न-भिन्न
होकर बिखर गया था। तीन साथियों को उस मशीन गन पर छोड़ कर अपने साथ पाँच सैनिकों को लेकर
हम उस चक्रव्युह की परिधि पर धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए पीछे हटते हुए जिहादियों की सफाई
करने मे जुट गये थे।
तीन सैनिक एक दिशा मे और अपने साथ एक सैनिक
को लेकर विपरीत दिशा पकड़ कर मैने कोम्बिंग आप्रेशन आरंभ कर दिया था। कुछ ही देर मे
चक्रव्युह को छोटा करते हुए एक-एक करके जिहादियों को जन्नत की ओर डिस्पैच करते हुए
हम एक घंटे मे सीआरपीफ की टीम के करीब पहुँच गये थे। अभी भी एक ओर से रुक-रुक कर फायरिंग
हमारी दिशा मे हो रही थी। मैने अपने साथियों को फायरिंग रोकने का इशारा किया और फायरिंग
के स्थान की पहचान करके अपने दो सैनिको को उस थ्रेट को समाप्त करने के लिये भेज कर
दिया। अपने बाकी साथियों को लेकर मै सीआरपीफ की टीम की ओर बढ़ गया गया था। वायरलैस आप्रेटर
घायल अवस्था मे एक चट्टान की आढ़ मे मिल गया था। उसने बताया था कि एक सूचना के आधार
पर उनकी आठारह सिपाहियों की टुकड़ी इस इलाके मे कोम्बिंग आप्रेशन के लिये आयी थी। यहाँ
पहुँच कर अचानक उनकी टुकड़ी पर फायरिंग शुरु हो गयी थी। देखते-देखते जब तक वह मोर्चा
संभालते तब तक उनको चारों दिशा से घेर लिया गया था। मै उससे हालात समझने की कोशिश कर
रहा था कि तभी मेरे कान मे आवाज सुनाई दी… अल्फा थ्रेट ओवर। …फौरन सीआरपीएफ के अठारह
सिपाहियों की तलाश करो और घायलों का विवरण दो। ओवर। इतनी बात करके मैने उस आप्रेटर
को सहारा देकर खड़ा किया और फिर एक साफ स्थान देख कर उसे बिठा कर नुकसान का आंकलन करने
के लिये चल दिया।
आधे घंटे के बाद सीआरपीफ टीम की पाँच लाशें, नौ घायल और नाजुक हालत मे तीन सिपाही जमीन पर लिटा दिये गये थे। वायरलैस आप्रेटर अपने बेस कैंम्प के साथियों से संपर्क साधने मे व्यस्त हो गया था। अपने हेलीकाप्टर से घायलों को एयरलिफ्ट करवा कर अस्पताल भिजवा कर हम मुठभेड़ का आंकलन करने के लिये निकल गये थे। एक-एक करके जिहादियों के मृत शरीरों को इकठ्ठा करना आरंभ कर दिया था। शाम तक हमने अड़तीस जिहादियों की लाशों को इकठ्ठा कर लिया था। सर्च आप्रेशन समाप्त करके हम आठों वहीं एक किनारे मे बैठ कर अपने हेलीकाप्टर की प्रतीक्षा कर रहे थे। …गुरप्रीत सबकी तस्वीरें ले ली है। …जी जनाब। लेकिन आज हमे ग्रेनेड का इस्तेमाल नहीं करना चाहिये था। उसकी वजह से चार क्षत-विक्षत लाशों की शिनाख्त नहीं हो सकती। …तो क्या हुआ? …जनाब इन चार बेचारों की हूरें इन्हें कैसे पहचानेगी? उसकी बात सुन कर रात के अंधरे मे एक ठहाका गूंज गया था। …जनाब इन जिहादियों को ऐसे तो यहाँ छोड़ कर नहीं जा सकते। तभी वायरलैस आप्रेटर ने आकर कहा… सर, हमारी एक युनिट आपके हेलीकाप्टर से यहाँ आ रही है। आपको इन सभी लाशों को उनके सुपुर्द करना है। मैने कोई जवाब नहीं दिया बस अपना सिर हिला कर उबड़खाबड़ जमीन पर लेट गया था।
अंधेरा हो चुका था जब हेलीकाप्टर की आवाज हमारे
कान मे पड़ी थी। मैने अपने साथियों से तुरन्त कहा… टार्च जला कर रौशनी कर दो जिससे पिकअप
पोइन्ट पहचानने मे कठिनाई न हो। गुरप्रीत ने अपने बैग से टार्च निकाल कर आन करते हुए
कहा… सर, अब तो हमारी वापिसी हो जाएगी। तभी उसके साथ बैठे हुए सीआरपीफ के आप्रेटर ने
मुस्कुरा कर पूछा… सरदारजी क्या इनके साथ बैठने मे डर लग रहा है? सभी ने खुल कर एक
ठहाका लगा कर रात की शांति भंग कर दी थी। गुरप्रीत ने खिसिया कर जल्दी से कहा… इनसे
क्यों डर लगेगा। इनमे से हरेक अपने हिस्से की बहत्तर हूरों के साथ मजे कर रहे होंगें।
अचानक गुरप्रीत का साथी बोला… सरदार अगर तू इनकी हूरों के साथ मजे करना चाहता है तो
लाश को आग लगा दे। जिहादी तो गायब हो जाएगा और उसकी हूरें उसको ढूंढते हुए तेरे पास
आ जाएँगी। एक बार फिर से मौत की शांति मे सभी की हँसी गूंज गयी थी।
आर्मी का हेलीकाप्टर हमारे सिर पर आकर मंडराने
लगा था। वह जैसे ही स्थिर हुआ तो चार विशेष रस्से हेलीकाप्टर के साइड से जमीन पर गिरे और अगले ही क्षण चार-चार के समूह मे सीआरपीफ के जवान जमीन पर उतरने लगे
थे। वायरलैस आप्रेटर तुरन्त अपने अफसर को लेकर मेरे पास आ गया था। …सर डिप्टी कमान्डेन्ट
अजय बिश्नोई रिपोर्टिंग। …लेफ्टीनेन्ट समीर बट। यह लाशें आपके सुपुर्द कर रहा हूँ।
यहाँ की कार्यवाही अब आपके जिम्मे है। हम अपने कैंम्प वापिस लौट रहे है। उन घायलों
का क्या हाल है? …सर, रास्ते मे दो की मृत्य हो गयी थी। अब तक टोटल डेथ सात हो गयी
है। …ओह सारी। बस इतनी बात हो सकी थी। सीआरपीफ की युनिट ने लाशों का चार्ज ले लिया
था।
…गुरप्रीत अंधेरे मे लिफ्ट आफ खतरनाक होता
है। अपने सारे हुक और बक्कल को चेक करके ही लिफ्ट आफ का सिगनल देना। …जी जनाब। लिफ्ट
आफ का खतरा अंधेरे मे इसलिये ज्यादा होता है क्योंकि जमीन से हेलीकाप्टर मे खींचने
का काम मोटर करती है। पहला खतरा अंधेरे मे स्लिंग अटैचमेन्ट का होता है। हल्का सा भी
ढीला होते ही उँचाई से नीचे गिरने का खतरा होता है। दूसरा खतरा रस्सी से हेलीकाप्टर
मे ट्रांसफर का होता है। दिन की रौशनी मे सब कुछ साफ दिख जाता है तो गलती होने की संभावना
कम होती है परन्तु रात के अंधेरे मे सब कुछ अन्दाजे से करना पड़ता है। हमने सबसे पहले
अपने हथियार और जब्त किये हुए हथियारों को हेलीकाप्टर मे पहुँचाया था। नायक रघुबीर
गुर्जर हेलीकाप्टर मे तैनात था। उसके बाद एक-एक करके हमारे सारे साथी बिना किसी एक्सीडेन्ट
के हेलीकाप्टर मे पहुँच गये थे। सबसे आखिरी जाने वाला मै था। लिफ्ट आफ का सिगनल देने
से पहले मैने सीआरपीफ की टीम को मुस्तैदी से सैल्युट किया और फिर उपर खींचने का सिगनल
दिखा दिया। एकाएक मेरे पाँव हवा मे लहराने लगे और मै तेजी से हवा मे उठता चला गया था।
एक खटका हुआ और मै हेलीकाप्टर के दरवाजे के सामने पहुँच कर रुक गया था। रघुबीर ने हाथ
बढ़ा कर रस्सी पकड़ कर मुझे अन्दर खींच लिया था। मेरे बैठते ही हेलीकाप्टर ने आगे की
ओर झुक कर एक झोंका खाया और फिर पठानकोट की ओर रवाना हो गया था।
रावी नदी पार करते ही टिमटिमाती हुई रौशनी
से पठानकोट शहर जगमगा रहा था। रात को आठ बजे हम अपने कैंम्प के हेलीपेड पर उतर गये
थे। अपने साथियों को विदा करके मै सीओ को रिपोर्ट करने के लिये उनके आफिस की ओर चला
गया था। सीओ मेरा इंतजार कर रहे थे। एक घंटे की ब्रीफिंग के पश्चात जब मै वापिस मेस
की ओर लौटा तो मेरे सभी साथी वहाँ पर मेरा इंतजार कर रहे थे। मेस मे घुसते ही तालियों
की आवाज ने मेरा स्वागत किया था। सभी के चेहरों पर जीत की खुशी चमक रही थी। हमने हंसी
मजाक करते हुए साथ बैठ कर खाना खाया और फिर मै अपने क्वार्टर की ओर चल दिया था।
अपने क्वार्टर मे पहुँच कर हमेशा की तरह मैने
सबसे पहले अम्मी से बात की थी। उनकी वही पुरानी शिकायत थी कि इतने दिनो से पठानकोट
मे होने के बावजूद भी मैने एक बार भी श्रीनगर का चक्कर नहीं लगाया था। हमेशा की तरह
मैने पहले आलिया के बारे मे पूछा और फिर उनकी तबियत के बारे मे पूछ कर आने का वायदा
करके फोन काट दिया था। दूसरा फोन आफशाँ को करके मेनका और उसके हालचाल जानने के पश्चात
जल्दी ही लौटने का वादा करके फोन काट दिया था। तीसरा और आखिरी फोन अदा को किया था।
…समीर कब छुट्टी पर आओगे? …पता नहीं। एक साल की छुट्टी ड्यु हो गयी है परन्तु कह नहीं
सकता कि छुट्टी कब मिलेगी। …मेरे फाइनल इम्तिहान अगले महीने शुरु हो जाएँगें। उससे
पहले एक चक्कर लगा लो। …तुम तो जानती हो कि मै फील्ड पोस्टिंग पर हूँ। अगले तीन साल
के बाद मुझे फैमिली पोस्टिंग मिल जाएगी। तब तक तुम्हारी भी स्थायी पोस्टिंग हो जाएगी
तो फिर मेरे लिये पोस्टिंग लेना आसान हो जाएगा। उसके बाद अगर तुम चाहोगी तो हम वहाँ
से अपनी नयी जिन्दगी शुरु कर सकते है। इस बार बोलते हुए उसकी आवाज काँप गयी थी… समीर
उसी आस मे तो अब तक जी रही हूँ। आई लव यू। …आइ लव यू टू। बस इतनी बात करके मैने फोन
काट दिया था। अपने तीन सबसे अजीज लोगों से बात की थी परन्तु आज की कार्यवाही की चर्चा
मै किसी से भी नहीं कर सकता था। क्या पता कि आज की मुठभेड़ मे उन सात सिपाहियों मे से
एक मै भी हो सकता था। ऐसा ख्याल आते ही मैने सिर को झटका दिया और अपने कपड़े बदल कर
बिस्तर पर लेट गया। सारे दिन की थकान के कारण लेटते ही नींद हावी हो गयी थी। यही मेरी
रोजमर्रा की जिंन्दगी थी।
ऐसे ही समय बीत रहा था। सर्दियाँ अपने पूरे
जोर पर थी। घाटी मे बर्फ पड़नी शुरु हो गयी थी। ऐसे ही एक दिन मेरे सीओ का बुलावा आया
तो मैने जल्दी एक कागज पर कुछ लिखा और उनसे मिलने के लिये चल दिया था। कुछ दिनो से
मै अपने सीओ से बात करना चाहता था। मै अपने सीओ के साथ बैठ कर कश्मीर के हालात पर चर्चा
करते हुए बोला… सर, वार्षिक छुट्टी का समय हो गया है। मेरे सभी साथी तीन के बैच मे
छुट्टियाँ गुजार कर वापिस आ गये है। अभी कोई जरूरी काम भी नहीं है तो क्या मै भी छुट्टी
पर चला जाऊँ। सीओ साहब कुछ देर तक मुझे देखते रहे और फिर मुस्कुरा कर बोले… लेफ्टीनेन्ट,
मै चाहता था कि अबकी बार तुम जब छुट्टी पर घर जाओ तो कैप्टेन बन कर जाना। अगर फिर भी
तुम छुट्टी पर जाना चाहते हो तो अपनी अर्जी दे दो। इस रोजमर्रा जिन्दगी से मै बोर हो
गया था तो मैने तुरन्त अपनी छुट्टी की अर्जी उनके सामने रख कर कहा… सर, लेफ्टीनेन्ट
हो या कैप्टन, इसका मेरे घरवालों पर क्या फर्क पड़ता है। यह बोल कर मै बाहर जाने
के लिए मुड़ा तो उन्होंने मुझे रोक कर एक लिफाफा मेरी ओर बढ़ा दिया… यह तुम्हारे लिए
है। इतना बोल कर उन्होंने अपने अर्दली को बुलाने के लिये घंटी बजा दी थी। अगले ही पल
उनका अर्दली आफिस मे हाजिर हो गया था। वह मेरे करीब आया और मेरे कन्धे के दोनो फ्लिप्स
को खोल कर एक सितारा बाकी दो सितारों के साथ लगा कर हटते हुए बोला… कैप्टेन साहब कान्ग्रेच्युलेशन्स।
तब तक मै उस लिफाफे से अपनी पदोन्नति का पत्र निकाल कर पढ़ चुका था। मैने एक नजर अपने
कन्धे पर तीन चमचमाते हुए सितारों पर डाल कर अपने सीओ को मुस्तैदी से सैल्युट करके
सावधान की मुद्रा मे खड़े होकर कहा… थैंक्यू सर। सीओ ने मुस्कुरा कर कहा… गो होम एन्ड एन्जोय योर लीव सन। मै वहाँ से बाहर
निकल कर अपने क्वार्टर की ओर चल दिया था। मुझे पठानकोट मे आये हुए तीन साल हो गये थे।
मुजफराबाद
पीरजादा मीरवायज की जुमे की तकरीर समाप्त हो
गयी थी। एक-एक करके लोग मस्जिद से बाहर निकल रहे थे। मीरवायज अपने कागज समेट कर जैसे
ही उठने लगा कि तभी उसकी नजर अपने दोस्त मौलाना लखवी पर पड़ी जो एक किनारे मे खड़े हुए
जनरल मंसूर और फारुख से किसी चर्चा मे उलझा हुआ था। मीरवायज चलते हुए उनके साथ जाकर
चुपचाप खड़े हो गये थे। …लखवी साहब, आप की लड़की सुरक्षित श्रीनगर पहुँच गयी है। अब हमारी
मदद करने का समय आ गया है। …बताईये आप मुझसे क्या चाहते है? जनरल मंसूर ने एक नजर मीरवायज
पर डाल कर कहा… हम चाहते है कि आपकी तंजीम से जुड़े हुए लोग भारत के मुस्लिम बहुल इलाके
मे पहुँच कर वहाँ हमारा नेटवर्क स्थापित करने मे हमारी मदद करें। इसके लिये उनको जमात-ए-इस्लामी
के साथ मिल कर काम करना पड़ेगा। …ठीक है जनाब। ऐसा ही होगा। फारुख जो अभी तक चुप था
वह अचानक मीरवायज से बोला… अब्बा, जनरल साहब का सोचना है कि उस आदमी को साधने के लिये
आपको उस निकाह लिये अपनी रजामन्दी देनी पड़ेगी। …मुझे कोई एतराज नहीं परन्तु मुझे अभी
भी उस पर विश्वास नहीं है। …मीरवायज साहब, हमारी मुहिम की सफलता के लिये उसको शीशे
मे उतारना बेहद जरुरी है। कुछ देर तक चर्चा करने के पश्चात मीरवायज और लखवी चले गये
थे।
जनरल मंसूर और फारुख बात करते हुए अपनी कार
की ओर चल दिये थे। …फारुख, हमे कुछ वहाँ के पत्रकारों को इस योजना मे जोड़ना पड़ेगा।
…जनाब, मेरे पास एक सुझाव है। मेरे पास कुछ प्रचलित मिडियाकर्मियों और वामपंथी बुद्धिजीवियों
के नाम है। हमे उन लोगो को अपने साथ जोड़ना आसान होगा क्योंकि पहले भी हम उनकी मदद ले
चुके है। जनरल मंसूर कुछ सोचते हुए कार मे बैठते हुए बोले… मुझे रावलपिंडी मे मिलो।
…जनाब, एक बार आपको उस व्यक्ति से भी मिल लेना चाहिए। …फारुख, मैने लखवी और मीरवायज
को रावलपिंडी बुलाया है। वहाँ बैठ कर इस बात का निर्णय लेंगें। बस इतनी बात दोनो के
बीच मे हुई और फिर जनरल मंसूर का काफिला इस्लामाबाद की ओर चल दिया था।
शानदार अंक और समीर धीरे धीरे अपने काम में माहिर होते जा रहा है मगर कुछ अड़चनें भी आ रही है उसके सामने, और जहां समीर को 3 साल हो चुके हैं पठानकोट में पोस्टिंग लेते हुए दूसरी और उसके नाम के अब्बू भी अपनी सिक्का जमा चुके हैं जहां कोई भी उनकी बात काट नहीं सकता।खैर यह संघर्ष बाप बेटे में बहुत ही दिलचस्प होने वाली है।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया करम मेहबानी। मित्र आगे-आगे देखिये होता है क्या। यह काफ़िर की कहानी नजायज रिश्तों के साथ ही घाटी मे भारतीय सुरक्षा तंत्र की नाजुक स्थिति का वर्णन भी है। हमारे सैनिक, पैरामिलिट्री और पुलिस कैसी विषम परिस्थिति मे काम कर रहे थे।
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाह भाई, आपने फिरसे लिखना शुरू किया। ऐसे ही आपकी याद आई xossip के टाइम की तो सोचा एक बार ब्लॉग चेक कर लेता हु। कहानी पूरी होने के बाद ही पढ़ना शुरू कर देता हु। आप कहानी को बीच में ही छोड़कर चले जाते हो तो सारा मजा निकल जाता है।
जवाब देंहटाएंमित्र मै माफी चाहता हूँ कि आपको ऐसा अनुभव हुआ। एक बात की ओर आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूँ कि सीआईए को मैने अपडेट करना बीच मे बन्द कर दिया था क्योंकि जब मैने पूरी रचना सीआईए इधर पीडीएफ मे डाल दी थी तो उसके अपडेट देने का मुझे कोई औचित्य नहीं लग रहा था। वादा करता हूँ कि आगे से ऐसा नहीं होगा।
हटाएं