काफ़िर-11
मै उसी रात को श्रीनगर के लिए निकल गया था।
मुझे अपने घर गये पाँच साल से ज्यादा हो गये थे। पता नहीं वहाँ का क्या हाल होगा यह
विचार मन मे लिए मै अम्मी से मिलने के लिये सोनमर्ग जाने वाले एक कोन्वोय से श्रीनगर
के लिए चल दिया था। रात भर सफर करने के बाद प्रात: ही उन्होंने मेरे घर की ओर जाने
वाली सड़क पर छोड़ दिया था। चारों ओर बर्फ की चादर बिछी हुई थी। दिन मे भी घने बादलों
के कारण चारों ओर अंधेरा व्याप्त था। सड़क पर इक्का-दुक्का लोग ही दिखाई दे रहे थे।
अपना किटबैग कंधे पर डाल कर मै पैदल घर की ओर चल दिया था। नाले के पास मुड़ते ही मुझे
उस रात आयशा से मुलाकात की याद ताजा हो गयी थी। अपनी सड़क पर पहुँचते ही दूर से ही अपना
घर देख कर दिल मे एक हूक सी उठी फिर अचानक मुझे कौल परिवार के मकान का स्मरण हुआ तो
मेरा मन खिन्न हो गया था। अब मुझे इसका एहसास हो गया था कि कितनी लाशों पर यह सारे
आलीशान मकान बने हुए थे। मेरे कदमों की तेजी एकाएक धीमी हो गयी थी। बाहर मेरा घर वीरान
सा लग रहा था। लोहे का गेट खोल कर अन्दर प्रवेश करते हुए मेरी नजर पुराने नौकर पर पड़ी
जो झुरमुटों के पीछे बैठा चिलम पी रहा था। मैने जोर से आवाज लगायी… रहीम मियाँ। मेरी
आवाज सुन कर वह चौंक कर उठ गया और अपनी चिलम फेंक मेरी ओर भागते हुए आया लेकिन तभी
अम्मी के कमरे का दरवाजा खुला और अम्मी बाहर निकल आकर खुशी से चीखीं… समीर। मैने भी
दौड़ कर अम्मी के सीने से लग गया था।
हम बात करते हुए अन्दर आ गये थे। …वहाँ से
कब चला था? …रात को एक आर्मी का कोन्वोय मिल गया था। उसी ने मुझे बाहर सड़क पर छोड़ दिया
था। …तुम बैठो मै चाय लेकर आती हूँ। आज बहुत ठंड है। कल ही बर्फ गिरी थी। मै टहलते
हुए अपने कमरे की ओर चला गया। सब कुछ वैसा ही था जैसा मै छोड़ कर गया था। इस कमरे से
अतीत की बहुत सी पुरानी यादें जुड़ी हुई थी। जब से होश संभाला था मै इसी कमरे मे रहा
था। पहले हम पाँचो बच्चे इसी कमरे मे रहते थे। बोर्ड की परीक्षा के लिए आसिया और आफशाँ
अलग कमरे मे चली गयी थी। अगले साल आलिया निकल गयी और आखिर मे अदा यह कमरा मेरे हवाले
कर गयी थी। …क्या देख रहे हो? अम्मी ने चाय पकड़ाते हुए पूछा तो मैने कहा… अम्मी इस
कमरे से बहुत सी यादें जुड़ी हुई है। बारी-बारी सब लोग बाहर चले गये। …हाँ बेटा सभी
चले गये बस मै और आलिया रह गये है। वह भी इस साल चली जाएगी। …तो अम्मी आप पठानकोट आ
जाइए। यहाँ पर आप अकेली क्या करेंगीं। …बेटा अगर मै चली गयी तो हमारे बागों को कौन
संभालेगा? रात भर का जगा हुआ है कुछ देर आराम कर ले। यह कह कर वह चली गयी। मैने जल्दी
से कपड़े उतारे और लिहाफ मे घुस गया था। बर्फ जैसा बिस्तर हो रहा था। जैसे ही थोड़ी गर्मायी
मिली तो मै अपने सपनों की दुनिया मे खो गया था।
मुझे पता ही नहीं चला कि कब और कैसे अदा मेरे
सुनहले सपनों मे आ गयी थी। शायद डेढ़ साल की विरह के कारण अतीत मेरे जहन पर हावी हो
गया था। अदा को अपने आगोश मे जकड़ कर उसके कोमल होंठों का रस सोख रहा था। उसके कमसिन
उभारों के साथ मै लगातार खिलवाड़ कर रहा था। मेरी सारी दबी हुई भावनाएँ सिर उठा कर अचानक
खड़ी हो गयी थी। वह मेरे आगोश मे मचल रही थी परन्तु मेरी शक्ति के आगे वह बेबस थी। मेरे
होंठ उसके उभारों से रस सोखने मे लगे हुए थे और मेरी उँगलियाँ उसके स्त्रीत्व के द्वार
को टटोल रही थी। अब मुझसे रुकना असहनीय हो रहा था। मेरा पौरुष उत्तेजना से तड़प रहा
था। वह मुझसे छूटने का यत्न कर रही थी लेकिन मै उसके स्त्रीत्व को भेदने के लिए तत्पर
था। मेरी उत्तेजना चरम पर पहुँच चुकी थी। अदा के गदराये मखमली जिस्म को देख कर रोमांचित
हो गया था। उसके हर स्पर्श और घर्षण के साथ एकाएक बाँध टूट गया और लावा बेरोकटोक बहने
लगा। मैने अचकचा कर आँखें खोली तो एक अस्तव्यस्त गुड़िया मेरे साथ लिपटी हुई गहरी साँसे
ले रही थी। मेरा बाक्सर भीग चुका था। इतने दिनों से दबी हुई मेरी भावनायें अपने अतीत
मे पहुँच कर एकाएक निरंकुश हो गयी थी। ऐसा मेरे साथ पहली बार हुआ था।
मैने उस अस्तव्यस्त जीती जागती गुड़िया के चेहरे
से जैसे ही बिखरे बालों को हटा कर उसका चेहरा देखा तो एक पल के लिये मेरी साँस रुक
गयी थी। वह उनींदी आँखों से मेरी ओर एकटक देख रही थी। जब मुझे लगा कि मै कुछ बोलने
लायक हो गया तो फुसफुसा कर कहा… तुम यहाँ क्या कर रही थी? वह कुछ भी बोलने की स्थिति
मे नहीं थी। वह तो किसी और ही दुनिया मे खोयी हुई थी। मैने उसे हिलाते हुए कहा… आलिया।
उसने चौंक कर मेरी ओर देखा और फिर धीरे से मुस्कुरा कर कहा… तुम्हें अदा याद आ रही
थी। है न? मुझे काटो तो खून नही ऐसी हालत हो गयी थी। अचानक वह बिस्तर से उठते हुए बोली…
समीर तुम बहुत ज़ालिम हो गये हो। उसकी बात को अनसुना करके मै जल्दी से उठा और बैग मे
से एक बाक्सर निकाल कर बाथरुम मे घुस गया। अपना बाक्सर बदल कर
जब बाहर निकला तब तक आलिया अपने उपर रजाई डाल कर बिस्तर पर बैठ गयी थी। छोटी सी कांगरी
बिस्तर के किनारे रखी हुई थी और उसमे अंगारे सुलग रहे थे जिसके कारण कमरे मे गर्माहट
हो गयी थी। मै चुपचाप उसके साथ जाकर लिहाफ मे बैठ गया था। …अब बताओगी कि तुम यहाँ क्या
कर रही थी। वह तुनक कर बोली… अम्मी ने कहा कि अपनी काँगरी समीर के बिस्तर के पास रख
दे तो रखने आयी थी। मेरी नजर उसके गले पर पड़ी तो मैने उसके गले पर बने हुए निशान को
छूते हुए कहा… आलिया दर्द हो रहा है। …नहीं। मै उसको देख रहा था। वह अब बड़ी हो गयी
थी।
वह मेरे कन्धे पर सिर रख कर किसी सोच मे डूबी
हुई थी। …क्या हुआ आलिया? उसने मेरी ओर देखा और फिर कुछ बोलने से पहले शर्मा गयी थी।
उसके गाल लाल हो गये थे। …पढ़ाई कैसी चल रही है? …मुझे आगे नहीं पढ़ना। तभी अम्मी कमरे
मे प्रवेश करते हुए बोली… इसको समझाओ समीर। यह इसका आखिरी साल है। पढ़ लिख लेगी तो यहाँ
से निकल जाएगी वर्ना इसके अब्बा यहीं किसी लड़के साथ इसका निकाह करा देंगें। …अम्मी,
मैने सोच लिया है। मै समीर के साथ पठानकोट चली जाऊँगी। अम्मी भी वही हमारे साथ बैठ
गयी थी। …अम्मी, अब अब्बा यहाँ नहीं आते? …नहीं। हाल मे ही कोई पाकिस्तानी पीर की बेटी
से निकाह का उनके लिये पैगाम आया है। उसके लिये आजकल नया मकान बनवा रहे है। अभी कुछ
दिन पहले ही वह पैसे लेने आये थे। तभी बता रहे थे कि वह किसी काम से पाकिस्तान जा रहे
है। मै चुपचाप उनकी विवशता को देखता रहा। अचानक आलिया बोल उठी… अम्मी, मौलवी साहब बता
रहे थे कि इस आजादी की मुहिम मे लड़कियों को भी आगे आना चाहिए। वह कह रहे थे कि अगली
बार जब लड़के फौज की गाड़ियों पर पत्थर बरसाएँगें तब लड़कियाँ उनके आगे ढाल की तरह खड़ी
हो जाएँगीं। इसके लिए लड़को को पाँच सौ रुपये और लड़कियों को दो सौ रुपये दिये जाएँगें।
मैने तुरन्त पूछा… कौन है यह मौलवी? …शमशाद साहब, वह हमारे स्कूल मे दीन की शिक्षा
देने आते है। अम्मी ने मेरी ओर देखा और फिर बोली… आलिया, क्या तुम्हारे पास अभी भी
दीन का विषय है? …नहीं अम्मी, वह तो आठवीं मे ही छूट गया था पर वह कभी-कभी बड़ी क्लास
मे जिहाद का अर्थ समझाने के लिए आते है। मैने एक नजर घड़ी पर डाली तो शाम के चार बज
रहे थे। अम्मी उठ कर जाने लगी तो मैने पूछा… अम्मी, अपना सेब का व्यापार क्या अभी भी
आप देखती है या इसका जिम्मा अब्बा ने ले लिया है? …क्यों क्या हुआ समीर? …अम्मी, जब
आपने बताया कि वह काम के सिलसिले मे पाकिस्तान जा रहे है तो मैने सोचा कि वह कहीं सेब
बेचने के लिए पाकिस्तान तो नहीं जाते है। … नहीं समीर, उनका हमारे बागों से कोई संबन्ध
नहीं है। बस वह सेब बिकवाने मे मदद कर देते है। तुम्हारे अब्बा ने इस साल सेब की बिलिंग
साठ लाख की करवायी है। उनकी बात सुन कर मै चौंक गया था। …अम्मी, क्या आपने कुछ और सेब
के बाग खरीद लिये है? …नहीं बेटा, इस साल हमने तो तीस लाख के सेब बेचे थे। बाकी तीस
लाख तो अब्बा ने अपने हिस्से के मुझसे वापिस ले लिये थे। आजकल सभी बाग वाले सेब की
बिलिंग दुगनी कीमत पर कर रहे है। इतना बोल कर वह बाहर चली गयी और मै गहरी सोच मे डूब
गया था।
उनके जाते ही आलिया मेरे गले मे बाँहे डाल
कर झूल गयी और बोली… तुम मेरे लिए क्या लाये? …जो मै पहले लाया था वह भी तुमने पहन
कर नहीं दिखाया तो इस बार मै तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं लाया। यह सुन कर उसका चेहरा
उतर गया था। मैने उसे अपनी बाँहों मे जकड़ते हुए कहा… पहले वह कपड़े पहन कर दिखाओ फिर
मै तुम्हारे लिए कुछ लेकर आऊँगा। वह तेजी से उठी और कमरे से बाहर निकल गयी थी। वह जब
लौट कर आयी तो वही पुरानी फेयरन और पजामी पहने हुए थी। कमरे मे घुसते ही उसने दरवाजा
बन्द कर दिया और लैच लगा कर अपना फेयरन उतार कर अपनी टी-शर्ट दिखाते हुए बोली… कैसी
लग रही हूँ? …टी-शर्ट छोटी हो गयी है। वह तुरन्त अपने पंजे पर घूमती हुई बोली… नहीं
तो। मैने इशारे से उसे अपने करीब बुलाया और उसके उभरे हुए हिस्से को अपने हाथों मे
भर कर कहा… यह बड़े हो गये है। ठंड और मेरे स्पर्श के कारण उसके स्तनाग्र अकड़ गये थे।
उसकी टी-शर्ट मे उभरे हुए दोनो अंकुरों को अपनी उंगलियों से पकड़ कर धीरे से ऐंठते हुए
मैने कहा… यह इतने कड़े हो गये है की इस टी-शर्ट मे छेद हो जाएँगें। मैने उसके गोलाईयों
को सहला कर धीरे से दबाया तो उसके मुख से एक ठंडी आह निकल गयी थी। उसके गाल पुन: दहकने
लगे थे।
आलिया की सांसें तेज चल रही थी। …चलो जीन्स
दिखाओ। उसने अपनी पजामी नीचे सरका दी तो उसकी
जीन्स देख कर मुझे हंसी आ गयी थी। वह बड़ी हो गयी थी और जीन्स उसके लिये छोटी हो गयी
थी। वह जीन्स के बटन और ज़िप नहीं लगा पा रही थी। उसके नितंब पर हाथ फिराते हुए मैने
कहा… यह भारी होने के कारण जिप नहीं लग रही है। मैने जिप को खींचने के लिए जैसे ही
हाथ बढ़ाया तो वह बिदक दूर हो गयी थी। मैने इशारे से उसे अपने पास बुलाया तो उसने गरदन
हिला कर मना कर दिया और अपनी पजामी उठाने लगी। मैने झपट कर उसे पकड़ा और अपने पास खींच
लिया था। वह छूटने के लिए मचली लेकिन मेरी गिरफ्त से छूट नही सकी थी। मैने उसको पकड़
कर खड़ा करके जैसे ही जिप को पकड़ने लगा तो मेरी उँगलियों पर कुछ बालों का स्पर्श हुआ
तो मुझे कारण समझ मे आ गया था। मैने उसकी ओर देखा तो वह आंख बंद करके खड़ी हुई थी। मेरी
उँगली जिप को छोड़ कर अन्दर उन बालों को सुलझाते हुए उसके योनिच्छेद की गहराई नापने
मे व्यस्त हो गयी थी। मेरी हरकत से उसकी सांसे उखड़ने लगी थी। मेरा दूसरा हाथ उसके स्तन
को निचोड़ने मे लगा हुआ था। कुछ देर मे ही वह मेरे हाथों मे मोम की गुड़िया बन गयी थी।
एकाएक वह सूखे पत्ते की भाँति काँपी फिर कुछ झटके लेकर निढाल हो गयी थी। मैने उसे छोड़ते
हुए कहा… जल्दी से कपड़े बदलो। मै तुम्हारे
लिए एक चीज लाया हूँ। वह स्खलित हो चुकी थी परन्तु वह अभी भी किसी और दुनिया मे थी।
मेरी छुट्टी की अर्जी मंजूर होते ही पठानकोट
के मुख्य बाजार से अम्मी के लिए एक शाल और आलिया के लिए घड़ी खरीदी थी। अपने बैग से
दोनो चीजें निकाल कर मैने बिस्तर पर रख कर बैठ गया। आलिया बाथरुम मे
कपड़े बदलने चली गयी थी। जब वह बाहर निकली तो सिर पर स्कार्फ, जिस्म पर ढीला सा फेयरन
और पजामी पहने कर वह फिर से अपने पुराने स्वरुप आ गयी थी। वह
निगाहें झुकाये मेरे पास आकर खड़ी हो गयी तो मैने उसका हाथ पकड़ कर उसकी कलाई पर घड़ी
बाँध कर पूछा… कैसी लग रही है। उसने एक नजर घड़ी पर डाली और फिर मुस्कुरा कर बोली… मुझे
कुछ और चाहिए। …क्या चाहिए। एक नजर मैने घड़ी पर डाली तो सात बज गये थे। …कल तुम्हे
बाजार ले जाऊँगा। तुम्हें जो चाहिए वह खरीद लेना। वह चुपचाप खड़ी रही तो मैने उसे अम्मी
की शाल दिखाते हुए कहा… यह अम्मी के लिए लाया था। कैसी है? उसने धीरे से हाथ फिरा कर
कहा… अच्छी है। चलो चल कर दे दो।
वह मेरे पास चुपचाप बैठ तो गयी थी परन्तु मुझे
लग रहा था कि वह कुछ छिपा रही है। कोई शरारत करके अपनी बड़ी बहनों और अम्मी से बचने
के लिए वह मुझे अपने साथ मिला लेती थी। परन्तु शरारत बताने से पहले वह मेरे पास आकर
चुपचाप बैठ जाती थी। बार-बार मेरी ओर देख कर फिर मुँह फेर कर बैठ जाती जब तक मै उसे
पकड़ कर नहीं कहता… क्या बात है, कुछ कहना है तो बोल दे? बस फिर वह मुझे अपनी कसम देकर
सब कुछ बता देती थी। आज भी वह यही कर रही थी। मैने उसके गले मे बाँहे डाल कर जकड़ते
हुए कहा… क्या बात है? वह धीरे से बोली… समीर, मेरी क्लास की कुछ लड़कियाँ…बोल कर वह
चुप हो गयी थी। कुछ देर निगाहें झुका कर बैठी रही और फिर मेरी ओर देख कर बोली… हमारे
प्रिसिंपल और दो और टीचरों के साथ संबन्ध है। मै उसकी बात समझ गया था परन्तु उसके मुख
से सुनना चाहता था। …कैसे संबन्ध? वह एक पल के लिए शर्मायी और फिर मेरे वर्जित क्षेत्र
पर हाथ लगा कर बोली… इसके साथ। मैने उसकी आँखें मे देखते हुए पूछा… आलिया क्या उनके
साथ तुम्हारा भी संबन्ध है? उसकी आखों मे शरारत थी परन्तु वह निगाहें झुका कर बैठ गयी
थी। उसकी बात सुन कर मेरे कान खड़े हो गये थे। लड़कियों के स्कूल मे भला यह सब क्या चल
रहा है?
अम्मी ने ओवरबिलिंग की कहानी सुनाई थी। आलिया
ने मौलवी साहब और पत्थरबाजों की कहानी सुना कर सारा उनका रहस्य खोल दिया था। अब यह
स्कूल की लड़कियों की कहानी सुन कर तो मै हैरत मे पड़ गया था। यहाँ पर मेरे स्कूल के
दोस्तों के साथ कोई खास संबन्ध कभी नहीं रहे थे तो मेरी जानकारी बस सिमित लोगो से थी।
बचपन के दो दोस्त फईम और अनवर से भी मेरा संपर्क टूट गया था। …आलिया क्या तुमने कभी
मेरे दोस्त फईम और अनवर को देखा है? वह चौंक कर मेरी ओर देखते हुए बोली… समीर, अनवर
तो एक फौजी एन्काउन्टर मे मारा गया। तुम्हें नहीं मालूम? अम्मी से पूछ लेना वह उसके
बारे सब जानती है। यह सुन कर मै चुप हो गया था। कुछ देर के बाद खाना खाने के लिए हमे
अम्मी बुलाने आ गयी थी। हम सबने साथ खाना खाया और फिर अम्मी के साथ उनके कमरे की ओर
चल दिये थे। अम्मी आज भी उसी कमरे मे रह रही थी जहाँ एक वक्त मेरी माँ रहती थी।
मैने शाल अम्मी के हाथ मे रखते हुए कहा… यह
आपके लिए लाया हूँ और एक चीज आपको लौटानी है। यह कह कर मैने नोटो के बंडल अम्मी के
सामने रखते हुए कहा… यहाँ से जाते हुए आपने यह मुझे दिये थे। खुदा बहुत रहमदिल है,
अम्मी मुझे इसकी जरुरत ही नहीं पड़ी। जिस दिन मै पूणे पहुँचा उस
दिन से मुझे सरकारी वजीफा मिलना शुरु हो गया था। बाकी कुछ दिन
मुंबई मे रहने का खर्चा अंजली ने उठा लिया था। इसीलिए अब मुझे इसकी जरुरत
नहीं है। यह शाल भी मै इस लिए लाया हूँ क्योंकि जिस दिन मै यहाँ आपसे मिलने के लिए
निकला था उसी दिन मुझे पदोन्नति की चिठ्ठी मिली थी। अब मै कैप्टेन बन गया हूँ। अम्मी
ने दोनो हाथ हवा मे उठा कर दुआ पढ़ते हुए बोली… खुदा का शुक्र है। यह कह कर वह उठी और
कुरान-ए-पाक को सजदा करके बोली… समीर जब भी मै तुम्हें देखती हूँ तो खुशी से सीना चौड़ा
हो जाता है। …अम्मी, आप तो मेरे दोस्त फईम और अनवर को तो जानती है। क्या उनके बारे
मे आपको कुछ पता है? अम्मी कुछ देर चुप रही फिर धीरे से बोली… बेटा, फईम तो पुलिस की
हिरासत मे है और अनवर को सेना ने एक एन्काउन्टर मे मार दिया था। दोनो लड़के मुजाहिद
बन गये थे। मैने सुना है कि वह दोनो जमात के सक्रिय सदस्य बन गये थे। …क्या दोनो इन्डियन
मुजाहीदीन के लिये काम करते थे? …बेटा शायद तुम्हें मालूम नहीं कि इन्डियन मुजाहीदीन
का नाम बदल गया है। तुम्हारे अब्बा बता रहे थे कि अब वह हिजबुल मुजाहीदीन ने नाम से
काम करते है। मेरे लिए यह एक नयी खबर थी। कुछ देर बात करने के बाद जैसे ही मै चलने
लगा तो अम्मी ने मेरे हाथ मे वही बंडल रखते हुए कहा… बेटा यह तुम्हारे कैप्टेन बनने
के लिए मेरी ओर से इनाम समझ कर रख लेना। मै निरुत्तर हो गया था। मैने वह बंडल उठाये
और अपने कमरे की ओर चल दिया।
मै कमरे मे लेट कर सारी घटनाओं के बारे मे
सोच रहा था कि यहाँ कितना बदलाव आ गया है। अम्मी और आलिया की बातों ने मुझे नये सिरे
से सोचने पर मजबूर कर दिया था। मेरी रिपोर्ट मेरे दिमाग मे घूम रही थी। घरों मे भाई-बहनों
और अन्य के बीच मे नापाक रिश्तों के बारे मे मैने स्कूल मे अपने दोस्तों से बहुत सुना
था। स्कूल के प्रिंसीपल और टीचरों के साथ ऐसे रिश्तों की जानकारी मेरे लिये नयी थी।
मैने जब अपने, आसिया और अदा के बारे मे अंजली को बताया था तब उसने बताया कि मुस्लिम
घरों मे ऐसी घटनाओं का होना कोई नयी बात नहीं है। हर वह समाज और घर जहाँ पर दकियानूसी
सोच और आंतरिक पाबन्दियों का चलन होता है वहाँ ऐसे रिश्ते अकसर बन जाते है। घर मे कठोर
पर्दे का प्रचलन, लड़के और लड़कियों के बीच भेदभाव, लड़कियों के घर से बाहर निकलने की
मनाही के कारण बड़ती हुई उम्र की जरुरतों को पूरा करने के लिए ऐसे रिश्ते बन जाना कोई
मुश्किल बात नहीं है। उस वक्त जब अंजली मुझे बता रही थी तो मुझे लगा कि शायद वह मेरी
आत्मग्लानि को कम करने की कोशिश कर रही थी परन्तु आलिया से मिल कर मुझे उसकी बात मे
कुछ सच्चायी दिख रही थी। मै इसी सोच मे डूबा हुआ था कि हल्की सी खटकने की आवाज हुई
तो मेरी नजर दरवाजे की ओर चली गयी थी। मैने उठ कर दरवाजा खोला ही था कि आलिया मुझे
एक ओर धकेलते हुए अन्दर प्रवेश करते हुए दबी हुई आवाज मे बोली… जल्दी से दरवाजा बन्द
कर दो। मै कुछ बोलता उसने कमरे की लाईट बुझा दी थी।
कांगरी मे जलते हुए अंगारों की धीमी रौशनी
मे टटोलता हुआ मै अपने बिस्तर पर आया तब तक आलिया मेरे बिस्तर मे घुस गयी थी। …यहाँ
क्या कर रही हो? अम्मी को पता चल गया तो आफत आ जाएगी। अपने बिस्तर मे घुसते हुए मैने
कहा तो उसने मेरे मुँह पर हाथ रख कर कहा… थोड़ी देर मे चली जाऊँगी। मै उसके साथ लेट
गया और उसकी अगली हरकत का इंतजार करने लगा। मेरी ओर करवट लेकर वह धीरे से बोली… समीर
क्या तुमने अदा के साथ किया है? अचानक उसके हाथ का एहसास हुआ जो बाक्सर मे छिपे हुए
मेरे कामांग पर रखा हुआ था। मै चुप पड़ा रहा तो उसकी उँगलियों ने मेरे कामांग को सहलाना
आरंभ कर दिया था। …समीर बताओ न। मैने धीमी आवाज मे कहा… हाँ किया है। तो इसमे क्या।
हम एक दूसरे से मोहब्बत करते है और हमेशा साथ रहने की हमने कसम खायी है। वह चुपचाप
मेरे कामांग से खेलती रही और फिर मेरे बाक्सर को पकड़ कर नीचे खींचती हुई बोली… इसे
हटा दो वर्ना सुबह की तरह यह भी खराब हो जाएगा। मै उसकी प्रबल कामेच्छा को महसूस कर
रहा था। …तुम हटाओगी तो मै हटाऊँगा। उसने मेरा हाथ पकड़ा और अपना फेयरन उठा कर अपनी
नाभि पर रख दिया। मेरी उँगलियाँ टटोलते हुए आगे बड़ी तो मुझे एहसास हुआ कि उसका जिस्म
पहले से पजामी-रहित था। मैने अपना बाक्सर नीचे सरका दिया और उसकी ओर करवट लेकर बोला…
आलिया सच बताओ। क्या यह पहले भी किया है? वह चुपचाप मेरे कामांग को पकड़ कर सहलाती रही।
मैने एक बार दोबारा पूछा तो जैसे ही हमारी नजरे मिली तो उसने धीरे से सिर हिला दिया
था।
मैने उसे अपने सीने से लगा लिया। वह कुछ देर
ऐसे ही अपना चेहरा मेरे सीने मे छिपाये पड़ी रही थी। मै उसकी धड़कन को महसूस कर रहा था।
वह धीरे से अलग हुई और उसने अपना चेहरा मेरे चेहरे के सामने ला कर मेरे होंठों पर अपने
काँपते हुए होंठों को रख कर बड़ी कुशलता से रस सोखना आरंभ कर दिया था। गुलाब सी पंखड़ियों
से उसके होंठ कुछ ही समय मे मेरे चेहरे पर छा गये थे। मेरे हाथ उसके फेयरन को उतारने
के लिये जैसे ही आगे बढ़े तभी वह अलग हो कर बोली… नहीं ऐसे ही करो। मैने अबकी बार उसकी
एक नहीं सुनी और उसके फेयरन और कुर्ता जबरदस्ती उसके जिस्म से अलग कर दिया था। पल भर
मे ही मुझे उसकी मंशा समझ मे आ गयी थी। उसके सीने पर जगह-जगह नीले निशान पड़े हुए थे।
किसी ने बड़ी बेदर्दी से उसके कमसिन उभारों को नोचा-खसोटा था। मेरे लम्बे चौड़े जिस्म
के सामने वह एक छोटी सी नाजुक गुड़िया सी लग रही थी। मेरे उपर हावी होते हुए वह बोली…समीर।
अब जल्दी से करो न। मुझे वापिस जाना है। उसकी बात सुन कर मेरी सारी उत्तेजना काफुर
हो गयी थी लेकिन फिर भी मैने अपने आप को उसके हवाले करते हुए कहा… ठीक है तुम्हारे
को जैसे करना है वैसे कर लो। उसका हाथ तुरन्त मेरे कामांग पर चला गया और एक बार फिर
से वह मेरी कामाग्नि प्रज्वलित करने मे जुट गयी थी। उसके हाथों की चपलता और मुख की
कुशलता को देख कर मै खुद हैरान हो गया था। मेरा कामांग जब तैयार हो गया तब वह मुझ पर
सवार हो गयी। उसने मेरे झूमते हुए कामांग को अपने हाथों से स्थिर किया और फिर धीरे
से उस पर दबाव डाल कर एक लंबी आह भरते हुए बैठ गयी थी। पल भर रुक कर उसने धीरे से अपने
नितंबों को हिलाया और एक लंबी साँस लेकर अपने जिस्म मे मेरे कामांग को जड़ तक बिठाने
के बाद उसने मेरी ओर देखा। हमारी नजरें मिलते ही वह मुस्कुरायी और फिर उसकी सवारी आरंभ
हो गयी थी।
उस रात वह जैसे आयी थी वैसे ही वापिस चली गयी
थी। हमारे बीच मे एकाकार हुआ भी और नहीं भी हुआ था। उसी रात को पहली बार मुझे समझ मे
आया कि स्खलन होने से हमारी वासना की आपुर्ति नहीं होती है। भावनाओं रहित स्खलन सिर्फ
एक क्रिया लगी जो अंत मे एक खालीपन और अधूरापन छोड़ जाती है। उसके जाने के बाद मै इसी नतीजे पर पहुँचा था
कि उसके एकाकार मे सिर्फ एक व्यावसायिक प्रेम-रहित तीव्रता थी जो मुख्यत: गणिकाओं मे
नजर आती है। यही सोचते हुए मै सो गया था। हमेशा की तरह मै अपने समय से जाग गया था।
बाहर बर्फ पड़नी आरंभ हो गयी थी। अपने कमरे मे ही मैने कुछ देर वर्जिश की और फिर चाय
बनाने के लिए रसोई की ओर चला गया था। बचपन से अब तक सिर्फ अम्मी से मिलने के लिए मैने
रसोई मे प्रवेश किया था। मेरा रसोई मे प्रवेश अब्बा के निर्देशानुसार निषेध था। मैने
अपने लिए चाय बनायी और मग मे चाय डाल कर दलान मे खड़ा हो गया। अभी भी अंधेरा था लेकिन
बल्ब की रौशनी मे बाहर गिरती हुई बर्फ की फुहार बेहद मनोरम दृश्य लग रहा था।
सुबह सात बजे तक मै तैयार हो चुका था। अम्मी
रसोई मे व्यस्त हो गयी थी। मै रसोई मे पहुँचा तो अम्मी मुझे तैयार हुए देख कर हैरत
से बोली… समीर कहीं जा रहा है? …अम्मी कुछ खाने को दे दीजिए मुझे
किसी से मिलना है तभी फिर कुछ सोच कर पूछा… आलिया का स्कूल कितने बजे का है? …पता नहीं
आज वह जाएगी कि नहीं क्योंकि जब बर्फ पड़ रही होती है तब यहाँ के स्कूलों की छुट्टी
हो जाती है। वह अपने काम मे लग गयी और मै दलान मे कुर्सी डाल कर गिरती हुई बर्फ देखने
बैठ गया था। रात से ही मेरे दिमाग मे एक बात घूम रही थी। मुझे पता नहीं क्यों लेकिन
उस वक्त कर्नल चीमा का नाम याद आ गया था। उन्होंने बताया था कि वह श्रीनगर मे कहीं
काम कर रहे है। मै तुरन्त उठ कर फोन के पास गया और श्रीनगर मे 15 कोर के आफिस का नम्बर
मिला कर कर्नल चीमा के बारे मे पूछा तो पता चला कि अब वह ब्रिगेडियर चीमा है लेकिन
अभी आफिस मे आये नहीं है। कुछ सोच कर मैने अपना नम्बर रिसेप्शन पर छोड़ते हुए कहा… जब
वह आफिस पहुँच जाये तो उन्हें बता दीजिएगा कि कैप्टेन समीर बट,
स्पेशल फोर्सेज, दक्षिण कश्मीर सेक्टर ने फोन किया था। बस इतनी बात करके मैने फोन रख
दिया था। अम्मी ने नाश्ता मेज पर लगाते हुए पूछा… समीर, कब वापिस जाना है? …अम्मी,
मै सोच कर आया था कि कल चला जाऊँगा। लेकिन पता नहीं अभी मेरे अफसर से बात नहीं हो पायी
है। …बेटा, बस इतना ख्याल रखना कि तेरे अब्बा कल पाकिस्तान से लौट रहे है। इतना बोल कर वह चली गयी थी। पता नहीं उन्होंने मुझे
सुचित किया था या मुझे इशारे से कहा था कि जल्दी से वापिस लौट जाओ।
आलिया भी उठ कर वहीं आ गयी थी। वह अपनी युनीफार्म
मे थी। मैने नोट किया कि वह नाश्ता करके जाने की जल्दी मे थी। …आलिया, अम्मी बता रही
थी कि बर्फ पड़ने के कारण स्कूल की छुट्टी हो जाती है तो आज स्कूल क्यों जा रही हो?
नाश्ता करते हुए वह बोली… छुट्टी सिर्फ आठवी क्लास तक होती है। बोर्ड की क्लासें तो
लगती है। हमारे फोन की घन्टी बजी तो मैने उठ कर फोन लिया तो तो दूसरी ओर से… कैप्टेन
बट प्लीज। …बोल रहा हूँ। …काग्रेच्युलेशन्स, पदोन्नति हो गयी लेफ्टीनेन्ट। …गुड मार्निंग
सर। आपको भी मेरी ओर से कांग्रेच्युलेशन्स। …थैंक्स। तुमने फोन किया था। कोई काम है
क्या कैप्टेन? …सर, आपसे मिलना था। कब मिल सकता हूँ? …आज मै आफिस मे हूँ। कभी भी आ
जाओ। मै यहीं हूँ। …थैंक्स सर। बस हमारे बीच मे इतनी बात हुई थी। आलिया अपना नाश्ता
समाप्त करके मुझे जाती हुई दिखी तो एक पल मैने उसे रोकने की सोची फिर कुछ सोच कर मै
चुप हो गया था।
मै उठ कर अपने कमरे मे चला गया और कुछ देर
मे अपनी युनीफार्म पहन कर बाहर निकल आया और
अपनी लाल बेरेट सिर पर लगाते हुए अम्मी की ओर चला गया था। मुझे युनीफार्म मे अम्मी
पहले भी देख चुकी थी परन्तु मुझे आज देख कर वह चौंक गयी थी। उनके चेहरे पर भय के बादल
छा गये थे। अपने आप को जल्दी से संभालते हुए
बोली… कहीं जा रहा है? …जी अम्मी, जिस अफसर से मिलना था उनसे बात हो गयी है। वह मेरा
इंतजार कर रहे है। मैने अपनी पिस्तौल को चैक करके ऊनी जैकट के होल्स्टर मे डालते हुए
पूछा… अम्मी जीप की चाबी चाहिए। वह बिना कुछ कहे चाबी लेने चली गयी और लौट कर मेरे
हाथ मे चाबी पकड़ाते हुए बोली… बेटा, यहाँ फौज की युनीफार्म मे निकलना खतरे से खाली
नहीं है। यहाँ पर फौजी हमेशा पत्थरबाजों और जिहादियों के निशाने पर होते है। मैने अपने
कैप की ओर इशारा करते हुए कहा… अम्मी, आप यह मरुन कैप देख रही है। स्पेशल फोर्सेज के
लोगों से ऐसे सभी लोग हमेशा दूरी बना कर रखते है। इतना बोल कर मै चल दिया। इसमे कोई
शक नहीं था कि यहाँ युनीफार्म मे बाहर निकलने मे खतरा है परन्तु 15 कोर की आप्रेशन्स
कमांड मे प्रवेश करना आसान बात नहीं थी। सादे कपड़ो मे तो मुझे उस सड़क पर कोई फटकने
भी नहीं देता।
मैने जीप स्टार्ट करके पहियों से बर्फ को काटते
हुए जीप आगे बढ़ा दी थी। आलिया के स्कूल के सामने से गुजरते हुए अचानक मुझे उसकी रात
की कही बात याद आ गयी थी। कुछ सोच कर मैने जीप को स्कूल के बाहर सड़क के किनारे रोक
कर पैदल चलता हुआ स्कूल के अन्दर चला गया। सारा स्कूल वीरान पड़ा हुआ था। ऐसा लग रहा
था कि जैसे आज छुट्टी थी। मै चलते हुए स्कूल की इमारत तक पहुँच गया था कि तभी एक वृद्ध
चौकीदार भागता हुआ मेरी ओर आया तो मैने जल्दी से कहा… वारे च्छु। उसने भी कश्मीरी मे
जवाब देकर कहा… आज स्कूल की छुट्टी है। …बड़े मियाँ मै यहाँ आलिया को लेने आया हूँ।
उसने गौर से मेरी वर्दी को देखा और फिर जल्दी से बोला… आलिया। एक मिनट यहाँ रुको मै
पता करके आता हूँ। वह जैसे ही जाने लगा मैने उसको गुद्दी से पकड़ा और अपनी जैकेट को
थोड़ा सा हटा कर पिस्तौल दिखाते हुए कहा… बड़े मियाँ चुपचाप मेरे साथ चलो। उसे अपने साथ
लेकर जीप मे आकर बैठ गया। मै आगे की कार्यवाही के बारे मे सोच ही रहा था कि तभी एक
विदेशी कार सीधी स्कूल के कम्पाउन्ड मे घुसती चली गयी थी। स्कूल की इमारत के मुख्य
द्वार पर वह कार रुक गयी और उसमे से एक आदमी बाहर निकल कर स्कूल के अन्दर चला गया था।
मैने चौकीदार से पूछा… यह कौन है? वह चुप रहा। मेरी नजर मुख्य द्वार पर लगी हुई थी।
चन्द मिनट के पश्चात आलिया के साथ एक और लड़की उस आदमी के साथ आती हुई दिखायी दी तो
अपनी जीप स्टार्ट करके मै चलने के लिए तैयार हो गया।
तीनो जल्दी से कार मे बैठे और जैसे ही उस कार
ने सड़क पर पहुँच कर गति पकड़ी तभी मैने भी जीप को घुमा कर उस पीछे हो लिया। …यह लड़कियाँ
कहाँ जा रही है? वह चुपचाप बैठा रहा लेकिन अब उसके चेहरे पर भय व्याप्त था। वह कार
श्रीनगर शहर से बाहर हाईवे की ओर निकल गयी थी। मै चुपचाप दूरी बना कर उसके पीछे चलता
चला गया। कुछ देर के बाद वह कार प्रतिबन्धित क्षेत्र मे प्रवेश कर गयी और चेकपोस्ट
बेरियर के सामने पहुँच कर खड़ी हो गयी थी। मैने जल्दी से जीप रोक कर अपनी कैप लगायी
और गले मे अपना आईडेन्टिटी कार्ड लटका कर बेरियर की दिशा मे बढ़ गया था। जब तक मै वहाँ
पहुँचा तब तक वह कार आगे निकल गयी थी। एक पुलिसवाला दौड़ कर मेरी ओर आया लेकिन मुझे
देखते ही उसने जल्दी से बेरियर पर खड़े हुए आदमी को इशारा कर दिया। बेरियर हटते ही मैने
जीप को आगे बढ़ा दिया और उस कार की तलाश मे आगे बढ़ता चला गया। कुछ दूर जाने के बाद मुझे
वह कार एक इमारत के सामने खड़ी दिखाई दी जिसमे से दोनो लड़कियाँ कार से उतर कर उस आदमी
के साथ अन्दर जा रही थी। मैने जीप वहीं खड़ी कर दी थी। कुछ देर मै वहीं जीप मे बैठा
रहा फिर उस चौकीदार को अपने साथ लेकर उस इमारत के अन्दर चला गया।
श्रीनगर से बाहर वह वीआईपी सर्किट हाउस था।
सामने रिसेप्शन पर एक कश्मीरी आदमी खड़ा हुआ था। चौकीदार को एक ओर धकेलते हुए मै रिसेप्शन
पर पहुँच कर उस आदमी से कश्मीरी मे कहा… दो लड़कियाँ एक आदमी के साथ यहाँ पर अभी आयी
थी। वह किस कमरे मे गयी है? फौज की वर्दी देख कर उसके चेहरे का रंग तो पहले ही उड़ गया
था। वह कुछ बेजाह हरकत करने की सोचता उससे पहले मैने अपनी जैकट की जिप खोल कर होल्स्टर
मे रखी हुई ग्लाक-17 की झलक दिखा कर कहा… कमरों की मास्टर चाबी लेकर मेरे साथ चलो।
इतना बोल कर मैने अपनी पिस्तौल हाथ मे लेकर उसे बाहर निकलने का इशारा किया। कुछ ही
मिनट मे हम तीनों तीसरी मंजिल पर पहुँच गये थे। जैसे ही हम लिफ्ट से बाहर निकले तो
मेरी नजर उसी आदमी पर पड़ी जो उन लड़कियों को लेकर आया था। वह हाथ मे सिगरेट लिए गलियारे
मे चहलकदमी कर रहा था। हम तीनों को अपनी ओर आते हुए देख कर वह तेज कदमों से चलता हुआ
हमारी ओर घुर्राते हुए आया… तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो। उन दोनो के पीछे से निकल
कर उसके सामने आकर मैने पूछा… अन्दर कौन है? वह चुप खड़ा रहा लेकिन उसकी जेब मे वायरलेस
देखते ही मै समझ गया था कि यह कोई पुलिस वाला है। वह कुछ बोलता उससे पहले मेरी पिस्तौल
उसके मुख से पूरे वेग से टकरायी और अगले ही क्षण वह मुँह पकड़ कर जमीन पर बैठ गया था।
मैने उसका वायरलैस निकाला और अपनी जेब के हवाले करके मैने रिसेप्शनिस्ट से पूछा कि
अन्दर कौन है। गार्ड की हालत तो वह देख चुका था। वह जल्दी से बोला… 13 मे सिटी एसपी
है और 14 मे राज्य मंत्री है। …इनकी सिक्युरिटी डिटेल कहाँ है? …सभी नीचे लाऊँज मे
बैठ कर टीवी पर मैच देख रहे है। मेरी नजर रिसेप्शनिस्ट के हाथ पर पड़ी जिसमे उसने महंगा
सा मोबाइल फोन पकड़ा हुआ था। उसके हाथ से फोन लेते हुए मैने पूछा… क्या इसमे कैमरा है?
उसने जल्दी से सिर हिला दिया तो मैने कहा… चल विडियो बनाना शुरु कर।
मै उसे धकेलते हुए 13 नम्बर कमरे के सामने खड़ा करके पूछा… विडियो चल रहा है? उसने जल्दी
से सिर हिला दिया।
मैने आराम से मास्टर की घुमा कर दरवाजे को
अन्दर धकेला लेकिन अन्दर से चिटखनी लगी हुई थी। मै दो कदम पीछे गया और पूरी ताकत से
दरवाजे के चिटखनी वाले हिस्से पर अपने कन्धे से प्रहार किया तो दरवाजा एक झटके के साथ
खुलता चला गया था। श्रीनगर का सिटी एसपी जन्मजात नग्न अवस्था मे लड़की को सिर के बल
को झुका कर पीछे से गुदा मैथुन मे व्यस्त था। मै हैरान था कि दरवाजा खुलने के बाद भी
उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा था। वह अभी भी अपने दुश्कृत्य मे डूबा हुआ था। मैने जल्दी
से आगे बढ़ कर उसकी वर्दी के नीचे दबी पिस्तौल को उठा कर रिसेप्शनिस्ट की ओर देखा तो
उसने जल्दी से कहा… फिल्म बना रहा हूँ। मैने पूरी ताकत लगा कर उस मर्दूद एसपी के पिछवाड़े
पर अपने मिलिट्री बूट से प्रहार किया और वह डकराते हुए बिस्तर पर उस लड़की पर औंधे मुँह
गिर कर लुड़क गया था। मेरी नजर अब गार्ड पर टिकी हुई थी। मेरी पिस्तौल का निशाना उसके
सिर पर लगा हुआ था। …इसके कपड़ो से ही इसके हाथ पाँव बाँध दो। गार्ड जल्दी से उस बेगैरत
व्यक्ति को बाँधने मे जुट गया था। मैने रिसेप्शनिस्ट से पूछा… फिल्म बन रही है न?
…जी जनाब। वह लड़की बिस्तर पर पड़ी हुई थरथर काँप रही थी। पहली बार मेरी नजर उस लड़की
के चेहरे पर पड़ी थी। देखने मे आलिया की हम उम्र लग रही थी। …जल्दी से अपने कपड़े पहनो।
मैने चौकीदार से कहा इस लड़की को लेकर बाहर खड़े हो जाओ।
रिसेप्शनिस्ट अभी भी फिल्म बनाने मे लगा हुआ
था। उसकी गुद्दी पर धौल जमा कर मैने कहा… इसको बन्द करके मुझे शुरु से
रिकार्डिंग दिखाओ। उसने जल्दी से फोन की स्क्रीन को मेरे सामने कर दिया था। बड़ी साफ
फिल्म बनी थी। कमरे मे घुसने से लेकर कपड़े पहनने के लिए लड़की के उठ कर भागने तक की
फिल्म बन गयी थी। एक नजर नशे मे धुत बंधे हुए एसपी साहब पर डाल कर गार्ड को गन पोइन्ट
पर लेकर मै 14 नम्बर कमरे की ओर चल दिया। एक बार फिर से मैने चाबी घुमा कर दरवाजे पर
दबाव डाला तो अबकी बार दरवाजा बेरोकटोक खुलता चला गया था। वह आदमी आलिया के जिस्म को
बड़ी निर्दयता से रौंदने मे लगा हुआ था। एक बार मैने गेस्ट हाउस के रिसेप्शनिस्ट पर
नजर डाली तो वह फिल्म बना रहा था। मैने उस नग्न दरिंदे को गरदन से पकड़ कर खींचते हुए
कैमरे के सामने खड़ा कर दिया था। …यह आपके चुने हुए प्रतिनिधि है। भौंचक्के से मंत्री
जी को तो जैसे लकवा मार गया था। उन्हें समझ मे नहीं आ रहा था कि अचानक उनके साथ यह
क्या हो गया था। मुझे देख कर आलिया का चेहरा पीला पड़ गया था। उसको देख कर मै घुर्राया…
जल्दी से कपड़े पहनो। वह जल्दी से उठी और अपने कपड़े पहनने मे लग गयी थी। मेरे पिस्तौल
के इशारे को समझ कर गार्ड अपने मालिक को बाँधने मे लग गया था।
यहाँ का काम समाप्त हो गया था। चलने से पहले
मैने गार्ड को बाँध कर उसके नंगे मालिक के साथ ही बिठा दिया था। मैने रिसेप्शनिस्ट
को इशारा किया तो उसने एक बार वह फिल्म शुरु से दिखा दी थी। आलिया
के आते ही मैने उस गार्ड से कहा… तेरा वायरलैस और एसपी की पिस्तौल इसको देकर जाऊँगा।
मैने आलिया का हाथ पकड़ा और कमरे से बाहर निकल
कर दरवाज लाक करके लिफ्ट की दिशा मे चल दिया। चौकीदार और वह लड़की लिफ्ट के पास सिर
झुकाये खड़े हुए थे। हम सभी लिफ्ट मे सवार होकर नीचे चल दिये। गेस्ट हाउस से बाहर निकलने
मे फिर कोई ज्यादा परेशानी नहीं आयी थी। मंत्री की गार्ड डिटेल अभी भी टीवी पर मैच
देखने व्यस्त थी। वहाँ से निकलने से पहले मैने वायरलैस और पिस्तौल रिसेप्शन पर रखते
हुए कहा… तुम्हारा फोन लेकर जा रहा हूँ। उन तीनो को बता देना कि अगर इसके बारे मे कोई
कार्यवाही करने की कोशिश करी तो यह दोनो फिल्में इन्टर्नेट पर डाल दूँगा। इतना बोल
कर दोनो लड़कियों को लेकर मै बाहर निकल गया था। यहाँ का सारा काम समाप्त होने मे तीस
मिनट लग गये थे। कुछ देर के बाद हम 15 कोर की आप्रेशन कमांड आफिस की ओर जा रहे थे।
तीन जगह सुरक्षा जाँच के लिए रोका गया था। रिसेप्शन एरिया मे पहुँच कर मैने उन तीनों
को एक किनारे मे बिठा दिया और दरवाजे पर पहरा देने वाले सैनिक को उनकी रखवाली करने
के लिए कह कर मै ब्रिगेडियर चीमा से मिलने के लिए चल गया था।
बहुत खूब समीर को अपने ही घर से बहुत सी संवेदनशील बातें के बारे में पता चला और अपने दोस्तों के बारे में भी उसको पता चला मगर उसका पहला प्यार अब कहां है यह पता नही किया फिर आलिया के वो बदले हुए स्वरूप अब आखिरी में पता चला या फिर कुछ अगले अंक के लिए बाकी रह गया है। अब सेब के भाव इतना कैसे बढ़ गए यह जवाब समीर को ढूंढना ही पड़ेगा। और पिछले अंक में जिस के साथ वो mulla ki लड़की की शादी होने वाली है वो समीर के अब्बा निकले। बहुत ही दिलचस्प अंक रहा इसबार।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मित्र। तुम्हारी टिप्पणी का हमेशा इंतजार रहता है।
हटाएंकहानी दिलचस्प और खतरनाक होती जा रही है,हमेशा की तरह सस्पेंस जबर्दस्त है
जवाब देंहटाएंरचना को दिलचस्प और यथार्थ के साथ जोड़ने की हमेशा मेरी कोशिश रहती है। आपकी टिप्पणी देख कर एक असीम संतोष की अनुभुति हुई। शुक्रिया दोस्त।
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