काफ़िर-14
अगले दिन मैने उसके फोन का सारा दिन इंतजार
किया परन्तु उसका फोन नहीं आया। रात को नौ बजे खाना समाप्त करने के पश्चात जब मै अपने
कमरे मे बैठ कर आफशाँ का इंतजार कर रहा था कि तब उस आदमी का फोन आया… कैप्टेन बट क्या
हम अभी मिल सकते है। बहुत कोशिश करने के बाद अब मै फ्री हो सका हूँ। उस आदमी से मिलने
की उत्सुक्ता के कारण मैने जल्दी से कहा… बताईए कहाँ आना है? …मै ताज होटल मे ठहरा
हूँ। उसकी बार मे मिलते है। …सर, मुझे पहुँचने मे टाइम लगेगा। …कोई बात नहीं मै इंतजार
कर रहा हूँ। मै जल्दी से तैयार हो कर कमरे से बाहर निकला कि तभी मेनका को सुला कर आफशाँ
बाहर निकल रही थी। मुझे इस हालत मे देख कर वह तुनक कर बोली… इस वक्त कहाँ जा रहे हो?
…मुझे किसी से मिलने जाना है। लौटने मे देर हो जाएगी। तुम मेरा इंतजार मत करना। बस
इतना कह कर मै फ्लैट से बाहर निकल गया था। रात होने के कारण ट्रेफिक ज्यादा नहीं था।
मैने जब ताज होटल की बार मे कदम रखा तब तक वहाँ काफी भीड़ भाड़ हो गयी थी। मै ठिठक कर
खड़ा हो गया और मेरी आँखे चारों ओर वीके नरसिंहमन की तलाश कर रही थी। तभी किसी ने मेरे
कन्धे पर हाथ रख कर कहा… कैप्टेन। मैने जल्दी से सावधान की मुद्रा मे खड़े होकर कहा…
जनरल। वह मुस्कुरा कर बोला… रिटायर्ड कहो। आओ तुम्हे कुछ लोगों से मिलवाता हूँ। मै
चुपचाप उसके साथ चल दिया था।
एक मेज पर वह जाकर रुक गया था। दो आदमी वहाँ
पहले से बैठे हुए थे। मुझे देख कर औपचारिकतावश दोनो खड़े हो गये थे। …कैप्टेन समीर बट
यह मिस्टर अजीत सुब्रामन्यम है। रिटायर्ड निदेशक आईबी। उस छोटे से आदमी ने अपना हाथ
आगे बढ़ा दिया था। मैने उनसे हाथ मिलाया और फिर दूसरे आदमी की ओर इशारा करके बोला… यह
भी मेरी तरह सेवा निवृत मेजर जनरल हरदीप सिंह रंधावा, एमआई, और मुझे तुम पहले से जानते
हो वीके नरसिंहमन। जनरल रंधावा ने मुस्कुरा कर कहा…आओ बैठो। हम चारों बैठ गये थे। वीके
ने कहा… स्काच चल रही है। अगर तुम कुछ और चाहो तो आर्डर दे सकते हो। …नो सर। स्काच
ही ठीक है। सभी सरकार के सेवा निवृत उच्चपदाधिकारी थे। यह सब जानते बूझते मै सावधान
हो कर उनके सामने बैठ गया था। वीके ने अपने गिलास से एक घूँट भर कर कहा… कैप्टेन तुमने
एक रिपोर्ट अपने सीओ को दी थी। हम उसके बारे मे बात करना चाहते है। जनरल हक की डाक्ट्रीन
का अमल हमारे लगभग सभी संस्थानों मे बड़ी कुशलता से हो रहा है। तुम्हारी रिपोर्ट मे
यह बात साफ उभर कर सामने आयी है। तुम इसके बारे क्या कहना चाहते हो?
एक पल कुछ सोच कर मैने बोलना आरंभ किया… सर,
मैने जमीनी हकीकत को नजदीक से देखा है। बचपन से मैने जमातियों और मौलवियों को नजदीक
से देखा है। कश्मीर मे हजार से ज्यादा मदरसे है। वहाँ पर 6-13 साल के बच्चों को इस्लाम
के लिए जिहाद और काफ़िरों के खिलाफ नफरत की शिक्षा दी जाती है। आप ही बताईए कि वह बच्चे जो दिमाग मे इस प्रकार का जहर लेकर
निकलेंगें तो वह फौज को पत्थर क्यों नहीं मारेंगें। बड़े होने पर जब उन बच्चों का मदरसे
से संपर्क टूट जाता है तो फिर हर जुमे की नमाज के बाद वहाबी मौलवियों के खुत्बे उसे
वही सबक दोबारा याद करा देते है। मै भी शाम को रोजाना तीन घंटे के लिए दीन की शिक्षा
लेने मदरसे मे जाया करता था। वहाँ मुझे बताया गया था कि काफ़िरों से दूर रहूँ क्योंकि
उनको तो जहन्नुम मे जाना है। मै ही नहीं लाखों मोमिन बच्चे काफ़िरों को हिकारत की नजरों
से देखते है। हमको यही सिखाया गया था कि यह काफ़िरों की फौज है और जो मोमिन
इनसे टकरायेगा उसे गाजी के खिताब से नवाजा जाएगा। यह तो खुदा का शुक्र है कि मेरी अम्मी के कारण मै
उस जहर से बच गया था परन्तु ऐसे कितने बच्चे है जो इस प्रकार के जहर का प्रतिकार कर
सकते है। मै हैरान हूँ कि आजतक किसी सरकार ने कभी यह जानने की कोशिश नहीं करी कि मदरसों
मे बच्चों को किस प्रकार की शिक्षा दीन के नाम पर दी जाती है। इतना बोल कर मैने सामने
रखे हुए ग्लास का एक घूँट भर के गला तर किया और फिर अपनी बात जारी रखी।
…सर, आज मै देख रहा हूँ कि पाकिस्तानी फौज
सुरक्षित अपने इलाके मे बैठ कर इस्लामिक कट्टरपंथियों के द्वारा हमारी फौजी ताकत पर
लगातार चोट कर रही है। उनका एक भी फौजी नहीं मरता जबकि लगातार हमारे फौजी इन अनपढ़ गरीब
जाहिल जिहादियों को मारते हुए बेवजह शहीद हो रहे है। यही “लो इन्टेसिटी कान्फ्लिक्ट’”
उस हक डाक्ट्रीन का मुख्य उद्देश्य भी था। वह कामयाब होते जा रहे और हम एक मजबूत फौज
होने के बाद भी उनसे लगातार हारते चले जा रहे है। ऐसा कैसे हो रहा है? मुझे लगता है
कि इसके लिए केन्द्र और राज्य की सरकारें दोनो ही जिम्मेदार है। वह जानबूझ कर फौज को
बलि का बकरा बना कर अपना राजनीतिक उल्लू सीधा कर रहे है। एक ओर वह जिहादियों को भटके
हुए लोग कहते है और दूसरी ओर वह हमारी फौज के खिलाफ स्थानीय लोगों को भड़काते है। उनके
कारण कट्टर इस्लामीकरण की सोच अब कश्मीर तक सिमित नहीं रही है। भारत के लगभग सभी मुख्य
राज्यों के मुस्लिम बहुल स्थानों मे कश्मीर जैसी सोच पनप रही है। कश्मीर मे वह फौज
से टकरा रहे है क्योंकि पुलिस उनके साथ है और कश्मीर के बाहर वह पुलिस से टकरा रहे
है क्योंकि वह उनके साथ नहीं है। सभी भारतीय राजनीतिक पार्टियाँ जानते बूझते हुए भी
वोट के लालच मे कोई कड़ा फैसला लेने मे अस्मर्थ है। यह मेरा अनुमान नहीं बल्कि ठोस इंटेल
रिपोर्ट्स इस ओर इशारा कर रही है। इतना बोल कर मै चुप हो गया था। लगातार बोलते हुए
एक बार फिर से मेरा गला सूख गया था।
आईबी के रिटायर्ड निदेशक अजीत ने मेरी रिपोर्ट
पर अपनी राय रखते हुए बोला… तुम्हारा आंकलन बहुत हद तक ठीक है परन्तु इसमे एक कमी मुझे
दिख रही है। यह तुम्हारी गलती नहीं है क्योंकि अभी तुमने कश्मीर के बाहर के हालात पर
रिपोर्ट्स नहीं देखी है। अन्य राज्यों मे एक काकटेल तैयार हो रहा है जो आंतरिक सुरक्षा
के बहुत बड़ा खतरा बन कर उभर रहा है। यह काकटेल इस्लामी कट्टरपंथी और वामपंथियों के
बीच मे हो रहा है। कट्टरपंथी दंगा करते है और जब पुलिस एक्शन होता है तो वामपंथी दुनिया
भर मे उन्हें पिड़ित बना कर पेश करते है। वामपंथी बुद्धिजीवी बड़ी दक्षता से कहानी मे
बदलाव करके हमालावर को पिड़ित साबित कर देते है।
मिलिट्री इन्टेलीजेन्स के रिटायर्ड मेजर जनरल
रंधावा ने कहा… कैप्टेन तुम्हारी रिपोर्ट मे बहुत बड़ी कमी दिखायी दे रही है। बिना पैसे
के कोई काम नहीं हो सकता लेकिन यह सारा काम इतने सालों से कैसे चल रहा है? तुम्हारा
कहना है कि पाकिस्तान की आईएसआई पैसों का प्रबन्ध कर रही है परन्तु जो देश आर्थिक रुप से कंगाल है तो सिर्फ एक मकसद के लिए वह इतने सालों से करोड़ों रुपये
लगातार पानी की तरह कैसे बहा रहा है। तुम्हारी रिपोर्ट मे न तो स्त्रोत का जिक्र है
और न ही उनकी कार्यप्रणाली के बारे मे कोई जानकारी है। हाँ एक बात जो इंटेल रिपोर्ट
के द्वारा तुमने बतायी है कि हवाला के जरिये कश्मीर मे तंजीमो के पास पैसा पहुँच रहा
है। तुम्हारा सुझाव है कि उनके पैसो के स्त्र्तोत पर हमला करना चाहिए परन्तु कैसे?
इस सवाल पर तुम्हारी रिपोर्ट खामोश है।
सबसे आखिर मे वीके ने बोला… कैप्टेन हम तीनों
मानते है कि तुमने बीमारी नब्ज पकड़ ली है। जनरल हक की डाक्ट्रीन कामयाब हो रही है।
हमारा यह भी मानना है कि यह रिपोर्ट तुम्हारी अपनी ओर से की गयी पहल है जबकि यह तुम्हारा
काम नहीं है। हम यह सोच रहे कि अगर तुम्हें इसी काम पर लगा दिया जाए तो परिणाम बहुत
बेहतर और सटीक होंगे। इस के बारे मे तुम्हारी क्या राय है? …सर, इसके बारे मे मै क्या
कह सकता हूँ। हाँ, जनरल रंधावा की टिप्पणी
पर मै कुछ नये तथ्य आपके सामने रखना चाहता हूँ। यह बोल कर मैने ड्र्ग्स, हथियार और
सेब के व्यापार का गठजोड़ उनके सामने खोल कर रख दिया था। अब तीनों मेरी ओर बड़े ध्यान से देख
रहे थे।
वीके ने एक बार अपने साथियों पर नजर डाल कर
कहा… कैप्टेन, तुम सोच रहे होगे कि हम सब सेवानिवृत अधिकारी है तो भला तुम्हारी रिपोर्ट
से अब हमारा क्या लेना देना है? तुम नहीं भी जानना चाहते तो भी हमे बताने मे कोई परेशानी
नहीं है। मेजर जनरल रंधावा प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार समिति के सदस्य
है। तुम्हारी रिपोर्ट आर्मी की ओर से वहाँ पर चर्चा के लिए रखी गयी थी। वर्तमान सरकार
का रुख पाकिस्तान के प्रति ढुलमुल होने के कारण तुम्हारा आंकलन उन्हें पसंद नहीं आया
तो उन्होंने वह रिपोर्ट दबा दी थी। रंधावा साहब ने उस रिपोर्ट को अनौपचारिक तौर पर
हम दोनो के साथ साझा की थी। हमारी राय तुम्हारी रिपोर्ट के बारे मे एक थी कि अगर तुम्हें
स्वतंत्र रुप से इस पर काम करने दिया जाए तो इसके परिणाम बेहतर
और भारतीय फौज के दूरगामी उद्देश्य सिद्ध हो सकते है। अब हमे यह सोचना है कि इस बारे
मे तुम्हारी क्या राय है?
…सर, मै आपकी तरह ही एक फौजी हूँ। मुझे जो
भी काम दिया जाता है उसे पूरा करना मेरा फर्ज है। जहाँ तक इस रिपोर्ट की बात है तो
यह सही है कि मैने यह रिपोर्ट वहाँ के हालात से खिन्न हो कर तैयार की थी। मुझे ऐसा
लग रहा था कि हमको वर्दी पहना कर सिर्फ बलि चड़ाने के लिए वहाँ पर रखा हुआ है। मै यह
मानने को तैयार नहीं हूँ कि प्रशासन और पुलिस चंद पत्थबाजों के सामने बेबस हो सकते
है। कश्मीर मे अलगावादी सोच और तुष्टिकरण की राजनीति का लाभ आतंकवादी तंजीमो ले रही
है। उनके जिहादी जब चाहे हमारी फौज पर फिदायीन हमला करते है और जब हम उनके खिलाफ कार्यवाही
करते तो यही पत्थरबाज हमारा रास्ता रोक कर खड़े हो जाते है। जब हम उन पत्थरबाजों के
खिलाफ कड़ा एक्शन लेने की कोशिश करते तो हम पर सरकार और कोर्ट की ओर से रोक लगा दी जाती
है। इन हालात मे हमारी फौज दो पाटों मे फँस कर रह गयी है। मुझ जैसे फ्रंट लाईन के लोगों
को आफिस की मेज पर हाथ बाँध कर बिठा दिया जाता है। अब आपकी बात का जवाब कि अगर मुझे
स्वतंत्र रुप से इस रिपोर्ट पर काम करने दिया जाए तो क्या होगा?
मै यकीन से कह सकता हूँ इन कट्टरपंथी और पृथकवादी तंजीमो की कमर तोड़ दूँगा। इतना बोल
कर मै चुप हो गया था।
उसके बाद भी हम काफी देर तक बात करते रहे थे।
जब चलने का समय आया तो वीके ने कहा… अब हमे सोचने का समय दो। मै जल्द ही तुमसे इस मसले
पर बात करुँगा। इसी के साथ हमारी बातचीत का अंत हो गया था। उस रात घर मे प्रवेश करते
हुए तीन बज चुके थे। आफशाँ गहरी नींद मे सोई हुई थी। मैने जल्दी से कपड़े उतारे और बिस्तर
मे घुस गया लेकिन काफी देर तक मुझे नींद नहीं आयी थी। उनसे बात करके बहुत से मसले भारत
के परिपेक्ष मे जानने का अवसर मिला था। मुझे तो अभी वामपंथी विचारधारा के बारे मे लेशमात्र
भी नहीं पता था। कश्मीर घाटी मे वह लोग भले ही छद्म रुप मे सामने
आते हो परन्तु जिस काकटेल का विवरण दिया गया था उनके जैसे बहुत से लोग मैने टीवी और
अखबारों मे देखे थे। मुझे याद है एक दृश्य जब बारामुल्ला मे पाँच सौ से ज्यादा की भीड़
ने सीआरपीएफ की एक चार जवानों की पोस्ट पर अचानक पत्थरों से हमला कर दिया था। उन्होंने
हथियारों का इस्तेमाल तब तक नहीं किया था जब तक कुछ लोगों ने उनसे उनके हथियार छीनने
की कोशिश नहीं की थी। उस गोलीबारी मे बारह लोग मारे गये थे। मरने वालों मे एक आठ साल
के लड़का भी था। उस लड़के की तस्वीर ने सारे राज्य मे हंगामा खड़ा कर दिया था। उस तस्वीर
को दिन मे सैकड़ों बार दिखा कर फौज के निर्मम चेहरे के बारे सैकड़ों लेख प्रकाशित हुए
थे। राजनीतिक दल फौज को हटाने की माँग उठा कर केन्द्र सरकार पर दबाव डाल रहे थे।
उस समय हम लोग मेस मे बैठ कर यह चर्चा किया
करते थे कि पत्थरबाजों की भीड़ मे आठ साल का लड़का क्या कर रहा था। क्या उस पत्थरबाजों
की भीड़ से फौजी जवान को अपनी और अपने हथियार की रक्षा नहीं करनी चाहिए थी? परन्तु सारे
अखबार और टीवी चैनल हर पल सिर्फ फौज को कोसते हुए दिखते थे। जो असलियत मे उस दिन पिड़ित
था उसको पत्रकारों ने निर्मम आक्रमणकारी बना दिया था और जो आक्रमणकारी थे उनको पिड़ित
बना कर दुनिया के सामने पेश कर दिया था। अब मुझे उस इस्लाम-वामपंथ के काकटेल का मतलब
समझ मे आ गया था। पूर्व आईबी निदेशक ने मेरी रिपोर्ट मे एक और अध्याय को जोड़ने का अवसर
दे दिया था। तभी आफशाँ ने करवट ली और अपना हाथ मेरे गले मे डाल कर मेरे सीने मे चेहरा
छिपा कर फिर सो गयी थी। उसके जिस्म के कोमल स्पर्श ने मेरे सारे ध्यान को पल भर मे
छिन्न-भिन्न कर दिया था। कुछ व्हिस्की का नशा दिमाग पर छाया हुआ था और कुछ आफशाँ के
गदराये हुए जिस्म का नशा दिमाग पर हावी हो रहा था। तभी आफशाँ ने करवट ली और एकाएक मुझ
पर शैतान हावी हो गया था। उस रात मैने बड़ी निर्दयता से उसके जिस्म को भोगा था। उसकी
सिस्कारियाँ और दबी हुई चीखों के बीच फर्क करने मे मै अस्मर्थ था। जब तक मेरा दिमागी
तूफान शान्त हुआ तब तक बेचारी आफशाँ पूरी तरह से थक कर चूर हो गयी थी।
सुबह उठते ही वह बोली… समीर, कल रात को तुम
पी कर आये थे। मुझे यह समझ मे नहीं आया कि वह मुझे बता रही थी या पूछ रही थी। मै कुछ
बोलता कि तभी वह अपने नग्न जिस्म को ढकते हुए बोली… अब मुझे समझ मे आया कि शराब आदमी
को जालिम बना देती है। वह अपने सीने पर उभरे हुए निशान को सहलाते हुए मुझे घूर रही
थी। मैने जल्दी से अपनी सफाई मे कहा… फौज के तीन वरिष्ठ अधिकारियों के साथ एक बार मे
मीटिंग थी तो मुझे उनका साथ देने के लिए पीनी पड़ी थी। वह कुछ देर मुझे घूरती रही और
फिर मुस्कुरा कर बोली… आज जब नमाज पढ़ो तो तौबा कर लेना। यह कह कर वह उठ कर तैयार होने
चली गयी और मै आँखे मूंद कर लेट गया था। रात के प्रणय की कहानी जगह-जगह पर उसके जिस्म
पर इंकित थी। उसके पुष्ट नितंबों पर पड़े हुए निशानों को देख कर मुझे झटका लगा था। एकाएक
मुझे याद आया कि कल रात को पहली बार नशे मे मैने उसे अप्राकृतिक गुदा-मैथुन के लिये
मजबूर किया था।
एक बार फिर से वही दिनचर्या आरंभ हो गयी थी।
उस रात के बाद हम स्वच्छन्द प्रणयमिलन के रास्ते पर अग्रसर हो गये थे। एकाकार के नये-नये
प्रयोग मे आफशाँ बढ़-चढ़ कर भाग लेने लगी थी। वह मेरे लिये परिपूर्ण अभिसारिका साबित
हो रही थी। हर रात हम दोनो के लिये एक नया अनुभव था। मेरी छुट्टियाँ समाप्त होने वाली
थी कि आफशाँ ने मेरे हाथ मे एक मोबाइल फोन रखते हुए कहा… मै हैरान हूँ कि आज इसका इस्तेमाल
छोटे से छोटा व्यक्ति कर रहा है लेकिन तुम पता नहीं क्यों इसका इस्तेमाल नहीं करते।
अब से यह हमेशा अपने पास रखना जिससे मै तुमसे रोज बात कर सकूँगी। …आफशाँ इस मोबाईल
फोन को मैने जानबूझ कर अपने से दूर रखा है। पता नहीं किस नाजुक घड़ी मे इसकी घंटी बज
कर मेरे लिए खतरा खड़ा कर दे। वैसे भी मै अकेला रह रहा था तो मुझे इसकी जरुरत
महसूस नहीं हुई। …कोई बात नहीं। अब शादी हो गयी है और दो लोगों के लिए यही एक संपर्क
का माध्यम है। इसलिए इसे अपने साथ हमेशा रखना। इसे सारा दिन बन्द रखना और रात को घर
पहुँच कर आन कर देना। वह निर्णय ले चुकी थी तो चुपचाप मैने उसे अपनी जेब मे रख लिया
था। इस बीच वीके की ओर से कोई फोन नहीं आया था। मै भी उस मीटिंग के बारे मे भूल चुका
था।
दो महीने मेनका के साथ रहने से वह मुझे पहचानने
लगी थी। अब वह मुझे आफशाँ से अलग करने के बजाय जब साथ बैठे देखती तो हमारे बीच मे आकर
बैठ जाती थी। इन दो महीनों मे मैने एक बार भी अदा से मिलने या फोन करने की चेष्टा नहीं
की थी। हर दूसरे दिन अम्मी से बात हो जाती थी। वह आलिया के बारे मे बेहद चिन्तित थी।
…अम्मी, आप उसे मेरे पास पठानकोट भेज दिजीए। मै उसको संभाल लूँगा। आप बस ब्रिगेडियर
चीमा को फोन पर बता दिजिएगा। वह आसानी से आलिया को पठानकोट भिजवा देंगें। इसी के साथ
मैने उनको ब्रिगेडियर चीमा का नम्बर दे दिया था। उनसे बात करने के बाद मैने ब्रिगेडियर
चीमा से भी बात कर ली थी। ब्रिगेडियर चीमा ने आलिया को पठानकोट सुरक्षित भिजवा दिया
था और मेरे अर्दली ने उसके खाने और रहने की व्यवस्था मेरे क्वार्टर मे कर दी थी। अदा
के साथ मेरे हालत बदल चुके थे। मै जानबूझ कर उससे अपनी दूरी बढ़ा रहा था। एक बार आफशाँ
ने सुझाव भी दिया था कि दो दिन के लिए पूणे घूमने चलते है परन्तु मैने ही कोई बहाना
बना कर टाल दिया था। जिस दिन मै मुंबई से पठानकोट के लिए चला था उस दिन आफशाँ और मेनका
मुझे छोड़ने आयी थी। इतने दिन साथ रहने के कारण मुझे अब उनकी आदत सी हो गयी थी। मैने
एक बार आफशाँ से कहा था कि वह भी पठानकोट चले परन्तु उसने मना कर दिया था। उसका कहना
था कि मेनका की परवरिश एक जगह रह कर ही बेहतर हो सकती है। दोनो ने मुझे रोते हुए विदा
किया था। भारी कदमों से जब मै उनको छोड़ कर आगे बढ़ा तो एक बार फिर मैने वैसा ही महसूस
किया जैसा उस दिन अपना घर छोड़ कर मुंबई के लिये निकला था। बस उनकी यादें समेट कर अपने
साथ ले जा रहा था।
पहले दिल्ली और फिर पठानकोट मे अपने फ्लैट
के सामने पहुँच कर सोच ही रहा था कि आलिया के लिये क्या करना चाहिए कि तभी अचानक दरवाजा खुला और आलिया खुशी
से चिल्लाते हुए मुझ पर झपट पड़ी थी। उसके पीछे-पीछे शाहीन भी सहमी हुई दरवाजे पर आकर
खड़ी हो गयी थी। एक पल के लिये शाहीन को उसके साथ देख कर मै चौंक गया था। कुछ देर उनसे
बात करके मै सीओ को रिपोर्ट करने चला गया। सीओ ने मुझे बताया की 15 कोर की कमांड हेडक्वार्टर्स
से एक टीम उन्हें यहाँ लायी थी। उन लड़कियों की जान पर मंडराते हुए खतरे को देख कर हेडक्वार्टर्स
की ओर से सख्त निर्देश दिये गये थे कि इसकी चर्चा किसी से नहीं की जाए। ड्युटी पर रिपोर्ट
करके मै अपने आफिस मे बैठ कर सारे हालात समझने की कोशिश कर रहा था। अब्बा के आने के
बाद अम्मी ने कैसे उन्हें आलिया के बारे समझाया होगा। अम्मी से मेरी बात होती रहती
थी परन्तु एक बार भी आफशाँ या आलिया की बात मुझसे नहीं छेड़ी थी। मै चाह कर भी अम्मी
को अपने और आफशाँ के बारे मे बता नहीं सका था। मेरी जिन्दगी मे सब कुछ गड़बड़ा गया था।
आलिया ने शाम को अपनी कहानी बताते हुए एक और
विस्फोट किया… समीर, तुम्हारी और आफशाँ की तीन साल की बेटी है और तुमने आज तक किसी
को इसके बारे मे कुछ नहीं बताया। कब से तुम दोनो साथ रह रहे थे? यह बात सुन कर अम्मी
को गहरा धक्का लगा था। …यह बात अम्मी को किसने बतायी? …अब्बा ने फोन किया था। अब बहुत
कुछ मेरे लिए साफ हो गया था। मै समझ गया था कि सारी आग अब्बा द्वारा लगायी गयी थी।
फोन पर अम्मी को अपनी सफाई नहीं दे सकता था। अब तक तो अदा और आसिया को भी मेरे बारे
सब कुछ पता चल गया होगा। अदा के प्रति बेवफाई के गुनाह का भार सदैव मेरी आत्मा को कचोटता
था। मैने यही सोचा कि जब समय आएगा तब अम्मी और अदा को सारे सच से अवगत करा दूँगा। अगले
कुछ दिन चुपचाप गुजरे लेकिन रोज रात को अपने कमरे मे पहुँच कर आफशाँ और मेनका से फोन
पर बात हो जाती थी। मैने आफशाँ को उन दोनो के बारे मे बताते हुए अब्बा की कहानी से
भी अवगत करा दिया था। आलिया और शाहीन ने स्टोर को अपना कमरा बना लिया था। शाम को ही
उनसे बात हो पाती थी क्योंकि सुबह पाँच बजे उठने के बाद से शाम तक मै अपने कामों मे
व्यस्त रहता था। डिनर के बाद वह दोनो अपने कमरे मे चली जाती थी।
रोजाना एक घंटा सीओ के कमरे मे निकलता था।
दो कैप्टेन और तीन लेफ्टीनेन्ट रोजाना उनके सामने सुबह दस बजे बैठते और नये निर्देश
लेकर गश्त ड्युटी पर निकल जाते थे। मेरी टीम को गश्त ड्युटी के बजाय स्टैंड बाय ड्युटी
पर रखा हुआ था। तीन सीमावर्ती जिलों मे कहीं पर आतंकवादी घटना के होते ही हमे निकलना
होता था। अब नये निर्देशानुसार हमको वारदात की जगह पर तुरन्त एक्शन लेने की इजाजत नहीं
थी। जब पैरा-मिलिट्री के लोग खतरे से निबटने मे असफल होते थे तब उनके कहने पर हमारी
टीम आगे बढ़ती थी अन्यथा वहीं एक किनारे बैठ कर सारे आप्रेशन का संचालन देखते रहते थे।
हमारी और उनकी कार्यशैली मे बस एक फर्क था कि वह शुरुआती कुछ
घंटे उन्हें आत्मसमर्पण करवाने की कोशिश करते थे। जब आतंकवादियों की ओर से फायरिंग
होती तब हम एक्शन मोड मे आते थे। हमारे साथ एक बात साफ थी कि हम जैसे ही कमान हाथ मे
लेते थे तभी से उनकी मौत तय हो जाती थी। अगर उन्होंने किसी को बन्धक बना रखा हुआ भी
होता था तब भी हमारा उद्देश्य उनको साफ करने का होता था। बन्धक की मौत को हमारी भाषा
मे ‘कोलेट्रल लास’ कहा जाता था। ‘लाईन आफ ड्युटी’ मे हम ऐसे नुकसान को
उठाने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। यही वजह थी कि हमारा ज्यादा समय बाउंड्रीलाईन पर
इंतजार करते हुए निकलता था।
आफिस मे बैठना और जहाँ आप्रेशन चल रहा होता
वहाँ पर भी ऐसे बैठना मन को लगातार कुंठित कर रहा था। वैसे तो अभी भी ‘रेड बेरट’
का खौफ काफी था। उसको देख कर चरमपंथी कभी सीधे
टकराने की कोशिश नहीं करते थे। कभी कुछ नये रिक्रूट फौज की गाड़ियाँ समझ कर हमला करने
की कोशिश भी करते तो फिर एक-एक को चुन कर उनको दोजख की ओर रवाना कर दिया जाता था। इतने
सारे एन्काउन्टर के बाद खुदा की खैर थी मेरी टीम मे अभी तक कोई हताहत नहीं हुआ था।
समय ऐसे ही निकलता चला जा रहा था। सरकारी आदेश के बाद अब स्टैंड बाय ड्युटी से भी स्पेशल
फोर्सेज को हटा दिया गया था। हमारे लिये ड्रिल और आफिस मे बैठ कर इंटेल रिपोर्ट्स देखने
का काम रह गया था। एक दो बार मैने सीओ से गश्त ड्युटी पर जाने के लिए पूछा भी था परन्तु
हमेशा यह कह कर टाल दिया जाता था कि मेरे पास फील्ड एक्शन का काफी अनुभव होने के कारण
बेस पर होना अनिवार्य है।
कुंठा और अकेलेपन के कारण मै अशांत होता जा
रहा था। एक दिन मै फोन पर आफशाँ से बात कर रहा था कि मुझे लगा कि कोई दरवाजे के पीछे
से खड़ा होकर हमारी बातें सुन रहा है तो मै बात करते हुए दबे पाँव जाकर दरवाजा खोल कर
देखा तो दोनो लड़कियाँ छिप कर मेरी बात सुन रही थी। उनको वहाँ देख कर अचानक मेरी सारी
दबी हुई कुंठा मेरे नियन्त्रण मे नहीं रह पायी थी। उस रात उन दोनो को डाँट-डपट कर भगा
दिया था। कुछ देर के बाद जब सारा गुस्सा शान्त हो गया तब उठ कर उनके पास चला गया था।
दोनो उस कमरे मे सहमी हुई बैठी थी। आज तक मैने आलिया या घर मे किसी से भी उँचे स्वर
मे बात नहीं की थी। शायद यही कारण था कि आलिया को मेरे बर्ताव से गहरा धक्का लगा था।
मुझे देखते ही वह मुँह फेर कर बैठ गयी और शाहीन सहमी हुई एक कोने मे सिकुड़ कर बैठ गयी।
देर रात तक आलिया को मनाता रहा लेकिन वह तो जैसे कसम खा कर बैठ गयी थी। अगले कुछ दिन
वह दोनो बस अपने कमरे तक ही सिमित होकर रह गयी थी। एक रात आफशाँ को अपने आलिया के साथ
हुए झगड़े के बारे बताया तो वह सारी कहानी सुन कर खिलखिला कर हंस पड़ी थी। वह हंसते हुए
बोली… अब तुम्हें समझ मे आया होगा कि बट परिवार की सभी लड़कियाँ कितनी जिद्दी है। …तुम
एक बार उससे बात करके देखो तो शायद वह मान जाए। भला ऐसे कब तक चलेगा। आफशाँ ने अपने
हाथ झाड़ते हुए जवाब दिया… समीर, वह तुमसे नाराज है तो तुम खुद ही उसे मनाओ। हमारी बात
समाप्त करने के बाद एक बार फिर से मैने उसे मनाने की कोशिश की परन्तु उसने तो बात न
करने की कसम खा ली थी। शाहीन के साथ मेरे रिश्ते पहले से बेहतर हो गये थे। इसीलिए जो
भी आलिया को मुझसे कहना होता था वह शाहीन के जरिए मुझ तक पहुँचा देती थी।
उन्हीं दिनों मे एक बार इंटेल रिपोर्ट मिली
जिसमे कुछ चरमपंथी कठुआ के पास कहीं रेलवे लाईन को उड़ाने की फिराक मे है। यह सुनते
ही मुझे अपनी टीम को लेकर कठुआ जाना पड़ा था। जब उन लोगों को पता लगा कि स्पेशल फोर्स
द्वारा वह घेर लिये गये है और उनके बच कर निकलने के सारे रास्ते बन्द हो गये है तो
उन्होंने अपने साथ लाये हुए बारुद को ब्लास्ट कर दिया जिसमे वह चारों वहीं मारे गये
थे परन्तु ब्लास्ट के एक स्प्लिन्टर ने मेरे कन्धे को घायल कर दिया था। वहाँ पर मेडिकल
किट से जो उपचार हो सकता था वह करके मै सीधा कमांड अस्पताल चला गया था। लौटते हुए शाम
हो गयी थी इसीलिए पेन किलर के कारण एक रात के लिए मुझे वहीं अस्पताल मे रोक लिया था।
घर पर मेरे किसी साथी ने खबर पहुँचा दी कि कैप्टेन साहब रेड मे घायल हो गये तो उन्हें
फिलहाल कमांड अस्पताल मे भर्ती कर दिया गया है। बस यह सुनते ही आलिया और शाहीन अस्पताल
पहुँच गयी थी। मै तो दवाई के नशे मे बेहोश हो कर सोता रहा लेकिन जब सुबह मेरी आँख खुली
तो मैने देखा आलिया मेरा हाथ पकड़ कर बैठी हुई थी। जैसे ही मै उठने के लिए हिला तो उसकी
नींद टूट गयी और मुझे जागा हुआ देख कर मुझसे लिपट कर रोने लगी। जब तक मुझे उन्होंने
बैन्डेज करके डिस्चार्ज नहीं किया तब तक दोनो लड़कियाँ मुझे छोड़ने को तैयार नहीं थी।
घर पहुँच कर अगले दो दिन दोनो ने मुझे बिस्तर से उठने नहीं दिया था। आफशाँ को भी इस
हादसे का पता चला तो वह भी मेनका को लेकर पठानकोट आ गयी थी। वह दोनो मेरे साथ तीन दिन
बिता कर वापिस चले गये थे।
उनके जाने के बाद एक रात को आफशाँ से
बात करके मै पानी पीने के लिए फ्रिज की ओर गया तो स्टोर से अजीब सी आवाजें आ रही थी।
एक बार तो मै उस आवाज को अनसुना करके अपने कमरे की ओर चल दिया था परन्तु एक बार उत्सुक्ता
का बीज अंकुरित हो जाए तो अपने आप पर नियन्त्रण करना मुश्किल हो जाता है। मै दबे पाँव
स्टोर की ओर चला गया और दरवाजे पर कान टिका कर खड़ा हो गया। अन्दर से कामावेश से ओत
प्रोत सिस्कारियाँ फूट रही थी। कुछ देर मै बाहर खड़ा रहा क्योंकि दिमाग आगे बढ़ने के
लिए मना कर रहा था परन्तु उत्सुकता मुझे अन्दर देखने के लिए धकेल रही थी। मैने दरवाजे
की झिरी पर आँख टिकाई और अन्दर का दृश्य देखने की चेष्टा की परन्तु कुछ साफ नहीं दिख
रहा था। मैने थोड़ा सा झिरी को बड़ा करने के लिए दरवाजे पर दबाव बढ़ाया तो एकाएक दरवाजा
खुलता चला गया। दोनो लड़कियाँ एक दूसरे पर छायी हुई थी। उनके नग्न जिस्म एक दूसरे के
पूरक बने हुए थे। दरवाजा खुलने के बाद भी वह एक दूसरे की कामाग्नि को शान्त करने मे
डूबी हुई थी। उन दोनो को इस मुद्रा मे देख कर मेरे जिस्म मे भी हलचल होने लगी थी। मैने
कुछ बोलने के लिए मुँह खोला ही था कि तभी आलिया की नजर मुझ पर पड़ी तो वह छिटक कर शाहीन
से अलग हो गयी। उसके अचानक हटने के कारण उन्माद मे डूबी हुई शाहीन ने तड़प कर आँखे खोली तो सामने मुझे खड़ा
पाया तो उसकी चीख निकल गयी थी।
…यह क्या कर रही थी? दोनो चुप बैठी रही लेकिन
दोनो ने एक बार भी अपने तन को ढकने की कोशिश नहीं की थी। मै आलिया के पास बैठ कर बोला…
क्या हो गया है तुम दोनो को और यह कब से कर रही हो? आलिया ने एक बार शाहीन की ओर देखा
और फिर धीरे से बोली… समीर, तुम्हारी नजर मे हम दोनो फ़ाहिशा है इसलिए हम तुम्हारे काबिल
नहीं है। लेकिन हमारी भी कुछ जिस्मानी जरुरतें है तो तुम ही बताओ कि हम क्या करे? उसकी
एक बात सुन कर मुझे अंजली की याद ताजा हो गयी थी। उस रात को उसने रोते हुए मुझसे कहा
था कि वह मेरे काबिल नहीं है। मैने आलिया को अपनी बाँहों मे कस कर जकड़ते हुए कहा… पगली
यह कैसे सोच लिया कि मै तुम्हें फ़ाहिशा समझता हूँ। उसने मेरी आँखों मे झाँकते हुए पूछा…
तो फिर मुझसे इतनी दूरी क्यों बना ली थी। जब से तुम आये हो तुम हमेशा ही दूर-दूर रहे
हो। …आलिया तुम समझ नहीं सकोगी। आफशाँ मेरी बच्ची की अम्मी है। मै नहीं चाहता कि हमारे
रिश्ते मे किसी के कारण से कोई दरार आये। बस यही कारण है कि मै तुमसे दूरी बनाए हुए
था। वह मुझे चुपचाप देख रही थी लेकिन उसने धीरे से मेरे अर्धसुप्त जनांनग को सहलाना
आरंभ कर दिया था। मैने उसे नहीं रोका और वह अपनी मनमानी करती रही। कुछ ही देर मे वह
दोनो मुझ पर ऐसे छा गयी कि जैसे उनके हाथ मे कोई खिलौना लग गया था। सब कुछ भुला कर
मैने भी अपने आप को उनके हवाले कर दिया था। अगली सुबह तक स्टोर मे सब कुछ अस्तव्यस्त
हो गया था।
अगले कुछ दिनों के लिए मुझे एक्टिव ड्युटी
से हटा कर आफिस मे इंटेल रिपोर्ट के आंकलन पर लगा दिया गया था। चौबीस घंटे मे सैकड़ों
ऐसी रिपोर्ट मेरी मेज पर आ जाती थी जो बताती कि कौन सी तंजीम का नेता किस से मिला,
किस इलाके मे पत्थरबाजों के जमघट लगने की संभावना है, कहाँ हमला हुआ था और कितने लोग
हताहत हुए, कहाँ पर किस तंजीम ने लोगो को बाहर निकलने का आहवान दिया और कितने जिहादी
सीमा पार से घुसने की फिराक मे है। इस प्रकार की हर रिपोर्ट को पढ़ने के बाद सीओ और
सारे टीम लीडर्स के साथ बैठ कर हालात की समीक्षा करके उनके दिन भर के ड्युटी चार्ट
बनाने की जिम्मेदारी मुझ पर आ गयी थी। कुछ दिन यह काम करके मुझे सारे जम्मू और कश्मीर
के हर जिले और उधर होने वाली हर उत्पात और सक्रिय तंजीमो की जानकारी हो गयी थी। सीओ
साहब छुट्टी पर जा रहे थे तो हमारी युनिट का चार्ज लाइट इन्फेन्ट्री के सीओ को सौंप
दिया गया था परन्तु वहाँ स्थित पूरी स्पेशल फोर्सेज का कार्यकारी इन्चार्ज मुझको नियुक्त
कर दिया गया था। इसके कारण अब मेरा सारा समय आफिस मे निकल रहा था। 15 कोर की कमान के
आधीन होने के कारण अब श्रीनगर भी चक्कर लगने आरंभ हो गये थे।
घर पर भी सारी व्यवस्था बदल गयी थी। हम तीनों
एक बेड रुम मे शिफ्ट हो गये थे। मै हैरान था कि इतनी कम उम्र
मे दोनो लड़कियाँ कामक्रीड़ा के परिपेक्ष मे काफी पारंगत हो गयी थी। उस दौरान उन्होंने
मुझ पर न जाने कितने प्रकार के प्रयोग किये थे। उनके जिस्म के कुछ खास हिस्सों पर धीरे-धीरे
भराव आना आरंभ हो गया था। एक दिन हम तीनों थक कर चूर एक दूसरे के साथ गुथे हुए पड़े
थे कि शाहीन ने पूछा… समीर तुम आदमियों को स्त्री से बलात्कार करने मे क्या ज्यादा
मजा आता है? मैने चौंक कर उसकी ओर देखा तो वह बेहद संजीदा हो कर पूछ रही थी। कुछ सोच
कर मैने कहा… नहीं तो। जब लड़की पूरे समर्पण के साथ हमबिस्तर होती है तो वह हमारे लिए
ज्यादा संतोषजनक होता है। तभी आलिया ने मुझे काटते हुए कहा… शाहीन यह बात किससे पूछ
रही है। भला क्या तुझे लगता है कि समीर ने किसी लड़की के साथ जबरदस्ती की होगी? मै खुद
ही उसके प्रश्न पर हैरान था तो इसलिए मैने पूछ लिया… शाहीन, तुमने ऐसा क्यों पूछा?
वह कुछ देर चुप रही फिर धीरे से बोली… मैने सुना है कि लड़को को मदरसे मे यही बताया
जाता है। यह सुन मेरा सिर चकरा गया था। कुछ सोच कर मैने कहा… मुझे मदरसे मे यह बताया
गया था कि काफ़िरों की स्त्रियों के साथ बलात्कार करना जायज है। अचानक आलिया ने अपनी
कोहनी से धीरे से मुझ पर प्रहार किया तो मै तुरन्त चुप हो गया परन्तु शायद शाहीन के
दिमाग मे कुछ अलग ही चल रहा था।
…समीर, क्या मदरसे मे तुम्हें यह बताया था
कि औरत के बारे मे हदीसों मे क्या लिखा है? मै उठ कर बैठ गया था। …आज तुम्हें क्या
हो गया शाहीन? आलिया उठ कर बैठती हुई बोली… यह पागल हो गयी है। एक आदमी की बात को यह
अपने दिल से लगा कर आज तक बैठी हुई है। …वह कौन है जिसने इसको गुमराह किया है? आलिया
ने एक नजर शाहीन पर डाली जो किसी सोच मे डूबी हुई थी फिर धीरे से बोली… इसके अब्बा
इसके भाई को समझा रहे थे कि हदीसों मे लिखा है कि औरत को अपना गुलाम बनाने के लिए उसके
साथ बलात्कार करना जरुरी है। मैने धीरे से शाहीन को अपने सीने से लगाते हुए कहा… तुम
खुद सोच कर देखो कि अल्लाह भला स्त्री के साथ ऐसी बेइंसाफी कैसे कर सकता है। यह सब
जाहिलो और काहिलों के द्वारा बनायी हुई कहानी है जिसे धर्म के ठेकेदार अल्लाह का नाम
लेकर अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करते है।
शाहीन के बालों से खेलते हुए आलिया ने कहा…
समीर, तुम इसके अब्बा को नहीं जानते। इसके अब्बा हाजी मोहम्मद उल मंसूर सैयद श्रीनगर
की सबसे बड़ी जामिया मस्जिद के इमाम है। उनका कहा सभी के लिए पत्थर की लकीर होती है।
मैने जल्दी से कहा… मेरा यह मतलब नहीं था। शाहीन ने मेरी ओर देखते हुए कहा… यही तो
मै भी सोचती हूँ कि भला परवरदिगार हमारे साथ कैसे इतनी बेइंसाफी कर सकता है। आधी रात
तक हमारे बीच मे यही बात चलती रही थी। आलिया थक कर सो चुकी थी। मेरी भी आँखें भारी
हो रही थी। अचानक शाहीन मुझसे लिपटते हुए बोली… समीर, आज तक यह बात किसी आदमी से पूछने
की मै हिम्मत नहीं जुटा सकी थी। आलिया और तुम्हारे साथ इतने दिन रह कर मुझे लगा कि
तुम मेरी बात का बुरा नहीं मानोगे। शुक्रिया। हमारे बीच मे उस रात बस इतनी बात हुई
थी।
सुबह मै जब आफिस मे बैठ कर इंटेल रिपोर्ट्स
देख रहा था तभी मेरी नजर एक सुने हुए नाम पर पड़ी हाजी मोहम्मद उल मंसूर सैयद। उस रिपोर्ट
मे उसकी तखरीर का जिक्र करते हुए बताया गया था कि वह सुन्नी मुसलमानों को शियाओं के
खिलाफ भड़का रहा था। उसने आहवान दिया था कि कश्मीर की आजादी मे शिया रोड़े अटका रहे है।
इसी लिये उसने अपने सुन्नी फिरके को नारा दिया था- काफ़िर, काफ़िर, शिया काफ़िर।
इसकी सोच का एक अंश तो एक रात पहले मुझे शाहीन ने दे दिया था। अब यह नाम मेरे जहन मे
छ्प चुका था। अबसे इसकी हर रिपोर्ट को बड़े ध्यान से देखना होगा। जब तक मेरे सीओर छुट्टी
पर रहे थे तब तक मुझे दो बार श्रीनगर जाने का मौका मिला था परन्तु वहाँ रुकने का एक
भी मौका नहीं मिला था।
मेरे सीओ के लौटने के कुछ दिन बाद उन्होंने
मुझे बुलाया और मेरे हाथ मे एक आर्डर थमाते हुए कहा… कैप्टेन समीर तुम्हें 15 कोर की
आप्रेशन्स कामांड मे तुरन्त ब्रिगेडियर चीमा को रिपोर्ट करना है। सारे क्लीयरेन्स लेने
के लिए तुम्हारे पास अड़तालीस घंटे है। तुम फौरन इस काम पर लग जाओ। मै उनका चेहरा देखता
रह गया था। क्लीयरेन्स का मतलब फौजी जिन्दगी मे स्थायी स्थानांतरण था। …सर, क्या मुझे
स्पेशल फोर्सेज से हटाया जा रहा है? उन्होंने एक क्षण मुझको देखा और फिर मुस्कुरा कर
बोले… हाँ, अब तुम ब्रिगेडियर चीमा को रिपोर्ट करोगे तो मैरुन कैप से हाथ धोना पड़ेगा।
मै कुछ नहीं बोला बस एक करारा सा सैल्युट मार कर कमरे से बाहर निकल आया था। मैने अपने
एक सैनिक को क्लीयरेन्स लेने के लिए भेज दिया और सीधे घर आकर आलिया से कहा… मेरा ट्रांस्फर
श्रीनगर हो गया है। यह खबर सुन कर दोनो के चेहरे उतर गये थे। यहाँ की स्वछंद जिन्दगी
पर इस ट्रांस्फर से अंकुश लगने वाला था।
हमेशा की तरह जबरदस्त अंक रहा, जहां आलिया और शाहीन की एक अलग ही रूप देखने को मिला और इसके साथ लगता है जल्द ही समीर फिर से एक्शन मोड में जाने वाला है मगर कहीं न कहीं इस बार वो अपनी मरून कैप को मिस जरूर करेगा।
जवाब देंहटाएंआप्रेशन आघात को आरंभ करने के लिये वर्दी और बिना वर्दी की कार्यशैली का अन्तर रचना मे दिखाना जरुरी है। फौजी है तो उसे एक्शन मोड मे हमेशा रहना पड़ेगा। शुक्रिया।
हटाएंअगले अंक के इंतेजार में।
जवाब देंहटाएंअभी तो कहानी शुरू हुई है,इतनी जबर्दस्त है,तूफान आने बाकी है,जबर्दस्त अंक
जवाब देंहटाएंहरमन भाई आगे-आगे देखिये होता है क्या। शुक्रिया कि आपको कहानी पसन्द आ रही है।
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