काफ़िर-13
मकबूल बट को देखते ही मेरे मुख पर ताला लग
गया था। मुझे देखते ही उसकी त्योरियाँ चढ़ गयी थी। वह कुछ बोलता कि तभी आफशाँ अपने कमरे
से बाहर निकल कर मेरी ओर आते हुए बोली… कौन आया है? अपने अब्बा को दरवाजे पर खड़ा हुआ
देख कर वह स्तब्ध रह गयी थी। मकबूल बट और उसके साथ आये हुए लोग आँखें फाड़ कर आफशाँ
को देख रहे थे। मेरी नजर आफशाँ पर पड़ी तो मै भी देखता रह गया था। आज तो वह जैसे बिजलियाँ
गिरा रही थी। साड़ी मे वह एक अप्सरा लग रही थी। लो-कट बलाउज और साड़ी मे लिपटा हुआ उसका
दूधिया गदराया बदन साँचे मे ढली हुई मूर्ती सा प्रतीत हो रहा था। मकबूल बट घुर्राया…
फ़ाहिशा लग रही है बेशर्म। जाकर सीना और सिर ढक कर आ तब तक हम यहीं खड़े है। आफशाँ मुड़
कर जाने लगी लेकिन तभी मैने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया… यह हमारा घर है। कोई बाहर वाला
आकर नहीं बता सकता कि हम यहाँ पर कैसे रहे। इनको अन्दर आना है तो आये अन्यथा खुदा हाफिज
क्योंकि हम अभी बाहर जा रहे है। आफशाँ मुझसे सट कर खड़ी हो गयी थी। बड़े अधिकार से मैने
अपना एक हाथ उसके कन्धे पर रख कर उन्हें अन्दर प्रवेश करने के लिए रास्ता दे दिया था।
मकबूल बट अपने तीन साथियों के साथ चुपचाप अन्दर
आ गया। सोफे पर बैठते हुए उसने आफशाँ से कश्मीरी मे कहा… इसको कहो कि मुझे तुमसे बात
करनी है तो कुछ देर के लिए वह हमे अकेला छोड़ दे। तब तक उसके साथी भी हम से आदाब करके
दूसरे सोफे पर जम गये थे। मेनका को लेकर मै डाईनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठ गया था।
आफशाँ ने एक बार मेरी ओर देखा और फिर कश्मीरी मे बोली… इनको आपकी भाषा नहीं आती। आप
बेफिक्र हो कर बोलिये। मकबूल बट ने एक बार मेरी ओर देखा और फिर आहिस्ता से बोला… आफशाँ अभी तक इसने तेरे साथ निकाह नहीं किया है।
तुझे इस गुनाह की जिन्दगी से निकालने के लिए फारुख सब कुछ भुला कर तेरे साथ निकाह करने
को तैयार है। इस गुनाह की जिंदगी को छोड़ कर मेरे साथ चल। फारुख से निकाह के बाद वैसे
भी तुझे कुपवाड़ा मे रहना है। यही तेरे लिये अच्छा होगा क्योंकि तेरा मुंबई से हमेशा
के लिए पीछा छूट जाएगा। आफशाँ ने एक बार मेरी ओर देखा और फिर धीरे से बोली… मेरी बच्ची
का क्या होगा। …कुछ नहीं होगा। बच्ची को इसके पास छोड़ कर मेरे साथ चल। …अब्बा मै अपनी
बच्ची को छोड़ कर कहीं नहीं जाने वाली। तभी फारुख बोला… कोई बात नहीं बट साहब। अगर यह
बच्ची अपने साथ रखना चाहती है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है।
मै उनकी बात चुपचाप सुन रहा था। मुझे समझ मे
नहीं आ रहा था कि आफशाँ का निकाह कराने मे दोनो इतने आतुर क्यों है। तभी मेरे कान मे
मकबूल बट की आवाज पड़ी… तुझे उस काफ़िर का कुछ पता चला? आफशाँ ने एक बार फिर से मेरी
ओर देख कर बोली… अब्बा, अम्मी से बात हुई थी तो उन्होंने बताया है कि समीर आजकल श्रीनगर
मे है। यह सुनते ही मकबूल बट का पारा चड़ गया था। …मै जानता था कि वह काफ़िर की औलाद
श्रीनगर मे ही है और वह मुझसे अपना बदला ले रहा है। मै उसे हर्गिज नहीं छोड़ूँगा। उसने
मेरा सारा जमा जमाया काम बर्बाद कर दिया। मकबूल बट कुछ देर तक बड़बड़ाता रहा और फिर धीरे
से बोला… आफशाँ, क्या तू उस काफ़िर के घर का पता लगा सकती है? …पता चल गया तो बता दूँगी
परन्तु अब्बा मुझे यह समझ मे नहीं आया कि आप यहाँ किस लिए आये है? एक क्षण के लिये
मकबूल बट गड़बड़ा गया और फिर जल्दी से बोला… मै जमात की मजलिस मे शामिल होने के लिये
मुंबई आया था। यह मौलवी मुन्नवर सैयद है जो यहाँ पर जमात का काम देखते है और वह मौलवी
मुनिस रिजा है। यह अजमेर से यहाँ आये है। आफशाँ सिर झुकाये बैठी रही थी। तभी मकबूल
बट बोला… अब चल मेरे साथ। कल सुबह ही तेरा निकाह फारुख से कर दूँगा। आफशाँ उठ कर मेरे
पास आ गयी और मेरा हाथ पकड़ कर बोली… नहीं अब्बा, इतने साल इस काफ़िर के साथ रह कर अब
मै इसको नहीं छोड़ सकती। यह सुन कर मकबूल बट के मुँह से गालियों की झड़ी लग गयी थी। दोनो
मौलवी भी आफशाँ को गुनाह और जहन्नुम का हवाला देते हुए काफ़िर से रिश्ता खत्म करने की
दुहाई देने लगे थे। सिर्फ फारुख चुपचाप बैठा हुआ मुझे गौर से देख रहा था।
अचानक मौलवी सैयद साहब ने आफशाँ से कहा… बेटी
इनसे पूछो कि क्या यह तुम्हारे लिए इस्लाम कुबूल करने के लिए तैयार है? मै वादा करता
हूँ कि मै तुम दोनो का निकाह करा दूँगा। आफशाँ तो चुप रही लेकिन चुंकि यह बात हिन्दी
मे की गयी थी तो मैने मुस्कुरा कर कहा… हाँ मै अपना धर्म बदल दूँगा अगर आफशाँ अपना
धर्म बदलने को तैयार हो जाती है। मौलवी साहब मेरी बात सुन कर बिदक गये थे। वह मुझे
कुरान का वास्ता देकर गुनाह न करने की सलाह देने लगे। उन्होंने तो मासूम मुस्लिम लड़की
को गुमराह करने का इल्जाम भी मुझ पर थोप दिया था। जब आफशाँ पर किसी का कोई जोर नहीं
चला तो फारुख ने पहली बार मुझसे कहा… आपके कारण पूरा बट परिवार परेशान है। अगर आप इनसे
निकाह कर लेते है तो कोई बात नहीं लेकिन इस तरह गुनाह की जिंन्दगी जीने से अच्छा होगा
कि आप खुद ही इन्हें छोड़ दें। अगर इन्हें छोड़ने के लिए आपको कुछ चाहिए तो बताईए हम
उसका भी इंतजाम कर सकते है।
पहली बार वह मुझसे सीधा रुबरु हुआ था। कुछ
सोच कर मैने कहा… फारुख साहब एक बात मुझे समझ मे नहीं आ रही कि इसमे आपकी मंशा क्या
है? आप जानते है कि हम इतने दिनों से साथ रह रहे है और हमारी एक बच्ची भी है। उसके
बाद भी आप आफशाँ से निकाह करने के लिये तैयार है। क्या आप अपना असली मकसद बताना चाहेंगें?
फारुख ने एक पल मुझे घूर कर देखा और फिर आफशाँ की ओर देखते हुए बोला… क्योंकि आप अपनी
जिम्मेदारी उठाने के लिये तैयार नहीं है। आपके इसी रवैया के कारण आफशाँ और उसकी बच्ची
गुनाह की जिन्दगी जीने को मजबूर है। उसकी यह बात मुझे चुभ गयी थी। मैने आफशाँ से कहा…
देखो मै तुमसे निकाह तो नहीं कर सकता। हाँ अगर तुम गुनाह की जिंदगी नहीं जीना चाहती
तो मेरे साथ अभी मन्दिर चलो हम शादी कर लेंगें। आफशाँ जल्दी से बोली… चलिए अभी मन्दिर
चलते है जिससे यह हमेशा की चिख-चिख समाप्त हो जाए। मकबूल बट और उसके साथ आये लोग आफशाँ
की बात सुन कर हम दोनो को कोसने लगे और अचानक उठ कर बाहर की ओर चल दिये। मकबूल बट जोर
से चिल्लाते हुए उठ कर चलने लगा… मियाँ मै इन गुनाहगारों का कत्ल करवा दूँगा। मै किसी
को नहीं छोड़ूँगा। जाते हुए मकबूल बट को देख कर मै खड़ा हो कर जोर से कश्मीरी मे बोला…
अब्बा एक मिनट ठहरो और जाने से पहले मेरी एक बात सुन कर जाओ।
मकबूल बट चलते-चलते लड़खड़ा गया था। वह मौलवी
सैयद का सहारा लेते हुए मुड़ा और फटी हुई आँखों से मेरी ओर देखता रह गया था। उसकी आँखे
बता रही थी कि वह मुझे पहचान गया था। वही नहीं उसके साथ आये सभी लोग भी मेरी ओर हैरत
भरी निगाहों से मुझे देख रहे थे। …अब्बा, तुम अब मेरी बात सुन कर जाना। अगर अम्मी या
किसी लड़की को जरा सी खरोंच आपके कारण आयी तो कसम खुदा की मै तुम्हें जान से मार दूँगा।
अगर आप कत्ल करने की धमकी देकर जा रहे तो सिर्फ इतना याद रखिएगा कि काफ़िरों की बहु-बेटियों
के साथ हैवानियत करने मे और कत्ल करने मे बहुत फर्क होता है। कत्ल के मामले मे आप मुझसे
मुकाबला नहीं कर सकेंगें। मेरे कारनामो से आप खुद परिचित है। इसलिए कभी सपने मे भी
कत्ल के बारे मे सोचना नहीं अन्यथा आपके लिये परिणाम बहुत भयंकर होंगें। बस इतना कहना
था। अब आप जा सकते है। मकबूल बट और उसके साथी अभी भी वहीं खड़े हुए हैरत से मेरी ओर
देख रहे थे। मैने उन सभी पर नजर डाल कर इस बार हिन्दी मे बोला… आप लोग भी मुझे अच्छे से पहचान लिजिये।
मेरा नाम कैप्टेन समीर बट, स्पेशल फोर्सेज, दक्षिण कश्मीर सेक्टर। खुदा हाफिज़। मकबूल
बट मुड़ा और चुपचाप बाहर निकल गया था। उसके पीछे उसके साथी भी चले गये थे।
मेरा जिस्म तनाव से अकड़ गया था कि तभी पीछे
से आफशाँ ने मुझे अपनी बाँहों मे जकड़ कर कहा… अब यहीं खड़े रहना है या मन्दिर चलोगे?
पल भर मे ही सारा तनाव हवा मे उड़ गया था। …चलो, मै मेनका को लेकर चलता हूँ तुम दरवाजा
लाक करो। मेनका भी सहमी हुई डाईनिंग टेबल पर बैठी हुई हम को देख रही थी। मैने मेनका
को उठाया और बाहर निकल गया। हम जब लिफ्ट का इंतजार कर रहे थे तो मैने एक भरपूर नजर
आफशाँ पर डाल कर कहा… आज तुम बेहद सुन्दर लग रही हो। पता नहीं आज कितनो के दिल घायल
होंगें। …पर जिसको घायल करने के लिए यह सब किया है वह पता नहीं कब घायल होगा। मै कोई
जवाब देता उससे पहले लिफ्ट आ गयी थी। कुछ ही देर मे हम गेटवे की दिशा मे जा रहे थे।
अचानक आफशाँ ने कहा… पहले किसी मन्दिर चलो। खिड़की के बाहर देखती हुई मेनका के सिर को
चूम कर वह बोली…आज मेनका को उसकी अम्मी मिल जाएगी। पल भर मे मुझे अपनी बचपन की मोहब्बत
का आशियाना उजड़ता हुआ लगा परन्तु सब कुछ इतना अचानक हो गया था कि मुझे समझ मे नहीं
आ रहा था कि क्या करना चाहिए।
एक ओर अदा थी और दूसरी ओर आफशाँ। मेनका की
आवाज ने एक क्षण मे मेरी सारी दुविधा को दूर कर दिया था। दोनो अपनी नाक से नाक लड़ाते
हुए खिलखिला कर हँस रही थी। आफशाँ ने मुड़ कर मेरी ओर देखा तो मेनका अम्मी-अम्मी चिल्लाते
हुए उसका चेहरा पकड़ कर अपनी ओर करने लगी। हमारी एक पल के लिए नजरें मिली थी फिर उसका
ध्यान मेनका मे लग गया था। दोनो एक बार फिर से उसी खेल मे लग गयी थी। रास्ते मे महालक्षमी
मंदिर पड़ा तो मैने कार को पार्किंग मे खड़ा करते हुए कहा… तुम खुद हमारे लिव-इन रिश्ते
को तोड़ रही हो। एक बार फिर सोच लो। मेनका को सस्पेन्डर मे डालते हुए वह बोली… सोच लिया।
अब हमारे बीच मे एक बेहतर रिश्ता बनने जा रहा है। …आफशाँ सिर्फ मेनका के लिये ऐसा कदम
उठाना ठीक नहीं होगा। वह मेरी ओर देख कर बोली… समीर भले ही तुम आसिया और अदा के ज्यादा
करीब रहे हो लेकिन मैने तुम्हें हमेशा अपना माना है। यहाँ पर तुम्हें मैने एक नये इंसान
के रुप मे देखा और जाना है। मुझे यकीन है कि तुमसे बेहतर मेरा कोई और साथी नहीं हो
सकता। इस रिश्ते के बाद मै भले ही अंजली नहीं बन सकूँ परन्तु आज वादा करती हूँ कि मोहब्बत
करने मे उससे कम किसी भी हालत मे नहीं रहूँगी। अपने आप को हालात के हवाले करके उसका
हाथ थाम कर हम मन्दिर के अन्दर चले गये थे।
एक बार पहले मैने मंदिर मे बिना पूछे अंजली
की मांग मे सिंदूर भरा था। हमारी मोहब्बत की निशानी अब आफशाँ की गोदी मे थी। मेनका
ने तो सिर्फ आफशाँ को ही अपनी माँ के रुप मे देखा था क्योंकि
बेचारी अंजली उसके साथ ज्यादा दिन नहीं रह सकी थी। यही सोचते हुए मै मंदिर मे उनके
साथ चल रहा था। दोनो ही पहली बार शायद मंदिर मे आयी थी तो चारों ओर नजरें दौड़ा रही
थी। जैसे ही मैने घंटा बजाया तो दोनो खिलखिला कर हँस पड़ी थी। एकाएक दोनो मे घंटा बजाने
की होड़ लग गयी थी। …चलो पहले पूजा कर लें उसके बाद खेलते रहना। उन दोनो को माता के
सामने लाकर खड़ा किया और पूजा करने के बाद माता की थाली से रोली उठा कर आफशाँ की माँग
भर कर माता के चरणों मे पड़ा हुआ पीला धागा उसके गले मे डाल कर हमेशा के लिए उसे मेनका
की अम्मी बना दिया था। हाथ मे कलावा बँधवाने के बाद हम तीनो मंदिर से बाहर निकल आये
थे।
आफशाँ मन्दिर मे जाते हुए बेहद खुश थी परन्तु
लौटते हुए वह किसी सोच मे डूबी हुई थी। कुछ देर बाद गेटवे की ओर जाते हुए मैने उसका
हाथ अपने हाथ मे लेकर पूछा… क्या सोच रही हो? …यही की किस्मत भी क्या खेल करती है।
मै यह सोच रही थी कि यह मुझे अम्मी बनाने लिए इस दुनिया मे आयी है या फिर इस बेचारी
ने मेरे कारण अपनी माँ को खो दिया। …यह भी तो हो सकता है कि हम दोनो को सहारा देने
के लिए खुदा ने तुम्हें भेज दिया। अचानक उसकी आँखे झरझर बहने लगी और उसने मेनका को
सीने मे कस कर जकड़ लिया था। मै चुपचाप कार चलाता रहा और गेटवे की पार्किंग मे कार रोक
कर मैने पूछा… अगर वापिस चलना चाहती हो तो वापिस चलते है। उसने झिलमिलाती हुई आँखों
से मेरी ओर देखते हुए कहा… इस रिश्ते से तुम तो खुश हो? मैने एक बार भी तुमसे नहीं
पूछा कि तुम क्या चाहते हो। …चलो कार से उतरो तभी तो बताऊँगा। वह मेनका को लेकर कार
से उतर गयी और मै कार लाक करके उसकी ओर चला गया। वह चाहतभरी निगाहों से मेरी ओर देख
रही थी। दोनो को अपनी बाँहों मे समेट कर उसके गाल को चूम कर मैने धीरे से उसके कान
मे कहा… घर लौट कर तुम्हें पता चल जाएगा कि मै क्या चाहता हूँ। मेरी बात सुन कर वह
शर्म से दोहरी हो गयी थी।
हम गेटवे पर खड़ी बोट मे बैठ कर दूर समुद्र
से मुंबई शहर की जगमगाती हुई रौशनी, अठखेलियाँ करती हुई उँची लहरें, तेज हवा के थपेड़े,
हिचकोले खाती हुई बोट और एक दूसरे के साथ का अनुभव लेकर एक घंटे के बाद वापिस गेटवे
पर आ गये थे। मेनका सो गयी थी। एक दूसरे की कमर मे हाथ डाल कर मेरीन ड्राईव पर टहलते
हुए आगे बड़ते चले गये थे। रात मे मेरीन ड्राईव जगमगा रही थी। कुछ देर वहाँ बिताने के
बाद मैने पूछा… सड़क पर बैठ कर खाना है या किसी रेस्त्रां मे चलोगी। …यहीं बैठ कर खा
लेते है। यहाँ कितना अच्छा लग रहा है। एक स्टाल पर आर्डर देकर हम वहीं फुटपाथ पर खाना
खाने बैठ गये थे। मेनका भी गाड़ियों के शोर से उठ गयी थी। …आफशाँ क्या लगता है कि अब
अब्बा खामोश हो कर बैठ जाएँगे? …समीर, उनका सारा नजला अब अम्मी पर निकलेगा। वह चुप
बैठने वालों मे से नहीं है। …मुझे नहीं लगता उन्होंने अभी तक इस बारे मे अम्मी से कोई
बात की है क्योंकि अगर उन्होंने अम्मी से मेनका का जिक्र किया होता तो उन्हें सच्चायी
का अब तक पता चल गया होता। …लेकिन अम्मी को कैसे मेनका के बारे मे पता होगा जब उन्हें
तुम्हारे निकाह के बारे मे पता नहीं है। एक पल के लिये मेरी झूठी जिंदगी की सच्चायी
मेरे सामने आ गयी थी। …अम्मी बस इतना जानती है कि मेनका मेरी बुआ अंजली की बेटी है।
आफशाँ के कुछ भी समझ मे नहीं आया तो वह बोली… समीर, मै समझ नहीं सकी हूँ कि आखिर मेनका
से तुम्हारा क्या संबन्ध है। अब आफशाँ को सच्चायी बताने का समय आ गया था। वहीं मेरीन
ड्राईव पर एक बेन्च पर बैठ कर मैने उसके सामने मेनका और अंजली की सारी सच्चायी खोल
कर रख दी थी।
वह कुछ देर गहरी सोच मे डूबी रही फिर फिर उठ
कर खड़ी हो कर बोली… अब से एक ही सच्चायी है कि मै मेनका की अम्मी हूँ और तुम उसके अब्बा।
आज के बाद यही सबके लिये सच होगा। चलो घर चलें। हम वापिस गेटवे की ओर चल दिये थे। मै
उसको सब कुछ बता कर अपने आप को काफी हल्का महसूस कर रहा था। हम अपने फ्लैट मे देर रात
तक पहुँचे थे। मै अपने कमरे मे चला गया और आफशाँ मेनका को लेकर अपने कमरे मे चली गयी
थी। सारी शाम हम दोनों मे प्रणय की चिंगारी सुलग रही थी परन्तु मेरीन ड्राईव की बेन्च
पर हुई बातचीत ने मेरा सारा जोश ठंडा कर दिया था। अपने कपड़े बदल कर अलमारी से अंजली
का मंगलसूत्र निकाल कर देखते हुए मै सोच रहा था कि अंजली की एक निशानी मेरे पास थी
जिसे मैने अदा के लिए संभाल कर रख लिया था परन्तु इंसान सोचता कुछ है और होता कुछ है।
मै उस मंगलसूत्र को देख कर सोच मे डूबा हुआ था कि तभी आफशाँ ने मेरे कमरे मे प्रवेश
किया और दरवाजा हल्के से भिड़ा कर मेरे पास आकर खड़ी हो गयी… क्या सोच रहे हो? मेरे हाथ
मे मंगलसूत्र देख कर उसने तुरन्त दूसरा सवाल दाग दिया… यह तुम्हारे हाथ मे क्या है?
अंजली का मंगल सूत्र दिखाते हुए मैने कहा… मेरे पास मेनका की अम्मी की सिर्फ एक यही
निशानी है। आज मै इसे तुम्हें देना चाहता हूँ। यह कहते हुए मैने उसकी साड़ी का पल्लू
हटाया तो उसके ब्लाउज मे से आधी से ज्यादा बाहर झाँकती हुई गोलाईयों को देख कर एक पल
के लिए रुक गया था। उसका ब्लाउज बड़ी मुश्किल से उन गोलाईयों को बाँधे हुए था। उसके
गले मे मंगलसूत्र डालने के पश्चात गले मे पड़े हुए पीले धागे को मंगलसूत्र के इर्दगिर्द
लपेटने के कारण मेरी उंगलियाँ उसके उघड़े हुए सीने को बार-बार स्पर्श कर रही थी। मेरे
हर स्पर्श से वह सिहर उठती थी।
मंगलसूत्र पर पीले धागे को लपेट कर मैने धीरे
से उसकी आँखों मे झाँका तो पल भर मे ही उसकी मेरे प्रति आसक्ति का आभास हो गया था।
सब कुछ भुला कर मैने उसके चेहरे को उठाया और उसके तपते हुए सूखे हुए होठों पर उँगली
फेरते हुए कहा… आज मुझे इनका रस पीने से मेनका भी नहीं रोक सकेगी। वह मेरी बाँहों मे
सिमट गयी थी। उसके बंधे हुए बालों को धीरे से खोल कर फैलाते हुए मेरे होंठ उसके गालों
को विचर रहे थे। मेरे हाथ ने उसकी नग्न पीठ को धीरे से सहलाना आरंभ कर दिया था। उसके
सीने की पहाड़ियाँ मेरे सीने को अपनी पुष्टता
का एहसास करा रही थी। अचानक मेरा हाथ उसकी पीठ को सहलाते हुए ब्लाउज के हुक से टकरा
गया था। हल्के से दबाव से ही सारे हुक खुलते चले गये। उसका ब्लाउज खुलते ही उसकी पीठ
पूर्णत: नग्न हो गयी थी। मैने ब्लाउज को पकड़ कर उसे धीरे से अलग किया तो खुला हुआ ब्लाउज
खिंचते हुए उसके सीने से अलग हो गया था। उसने जल्दी से अपने हाथों से ब्लाउज को सीने
से लगा कर शिकायती नजरों से मेरी ओर देख कर बोली… समीर लाईट तो बुझा दो। …नहीं। साल
मे दस महीने तुमसे अलग रहूँगा तो तुम्हें याद रखने के लिए मेरे पास कोई आधार होना चाहिए।
बस यह दो महीने तुम्हे रोज देख कर अपने दिल और दिमाग मे बसा लूँगा तो अगले दस महीने
आराम से गुजर जाएँगें। यह कह कर मैने उसके दोनो हाथ पकड़ कर धीरे से ब्लाउज उसके सीने
से जुदा कर दिया। दो उन्नत कलश मेरी आँखों सामने थे। उन दोनो कलश के शिखर पर गुलाबी
स्तनाग्र सिर उठाये मुझे ताक रहे थे। उत्तेजना से उसका दुधिया जिस्म गुलाबी होने लगा
था। मैने धीरे से उन सिर उठाये स्तनाग्रों को उंगली से छेड़ा तो वह और ज्यादा घंमड मे
ऐंठ गये थे। भरपूर गोलाईयाँ होने के बावजूद वह गुरुत्वाकर्षण के सारे नियम को फेल कर
रहे थे। मेरी हथेलियाँ उसके दोनो कलश पर काबिज हो गयी थी। आफशाँ को धीरे से धकेलते
हुए पीठ के बल बिस्तर पर लिटा दिया था। उसका जिस्म नाभि तक अनावरित हो गया था। मै उसे
अपने साथ लेकर बेड पर लेट गया।
पूरी रात अपनी थी तो माथे को चूम कर उसके गालो
का रस सोखने मे जुट गया। उसके गालों पर जहाँ मेरे होंठ टिकते वही जगह खून सी लाल हो
जाती थी। उसके गुलाबी होंठ उत्तेजना की तपिश से सूख गये थे। मेरे होंठों के स्पर्श
मात्र से वह फड़फड़ा उठे थे। एक लम्बा दौर उसके होंठों को लाल करने मे लग गया था। मेरे
भार के नीचे वह मचल रही थी लेकिन निकलने मे अभी तक असफल रही थी। हमारी जुबाने एक दूसरे
का रसास्वादन कर रही थी और हमारे होंठ एक दूसरे के अधरों का रसपान कर रहे थे। जब मै
उसके होंठों को छोड़ कर नीचे गले की ओर सरका तब तक उसके होंठ गुलाबी से सुर्ख लाल हो
गये थे। उसकी आखों मे झाँका तो उसकी आँखे नशे मे मुंदी हुई थी। मैने मुस्कुराते हुए
कहा… यह जिहादी साले बेवकूफ है जो हूरों से मिलने की चाह मे बेवजह जान दे रहे है। उनको
गधों पता नहीं कि असली हूर तो मेरे पहलू मे है। उसने अपनी आँखें खोल कर मेरी ओर देखा
तो मैने सिर हिलाते हुए कहा… खुदा की कसम सच बोल रहा हूँ। वह मुस्कुरायी और मै उसके
सीने की ओर अग्रसर हो गया था।
सबसे पहले उन पहाड़ियों की घाटी मे पड़े हुए
मंगलसूत्र को चूमा और फिर गुलाबी बुर्जियों से सुज्जित्त उरोजों पर मेरे होंठों और
ऊँगलियों ने हमला कर दिया था। एक उरोज पर मेरा हाथ काबिज हो गया और दूसरे उरोज पर मेरे
होंठों ने कब्जा कर लिया था। मेरा हाथ उस पुष्ट उरोज को कभी सहलाता और कभी रौंदता।
मेरी उँगलियों मे फँसे हुए अकड़े हुए गुलाबी मोती समान स्तनाग्र को पकड़ खींचता और कभी
तरेड़ता और कभी दबा देता। कभी गुलाबी परिधि पर मेरी जुबान चक्कर लगा कर सिर उठाये मोती
से खिलवाड़ करती और कभी उस मोती को होंठों मे दबा कर उसका रस निचोड़ने मे जुट जाती। मेरे
होंठों के बीच फँसा हुआ गुलाबी मोती कभी जुबान का प्रहार सहता और कभी बेचारा दांतों
के बीच फँस कर छटपटाता। हर वार पर वह तड़प उठती थी। कभी छूटने की चेष्टा करती और कभी
मेरा सिर पकड़ अपने सीने पर जकड़ लेती। आफशाँ किसी दूसरी दुनिया मे पहुँच चुकी थी। उसके
सीने पर सैकड़ों निशान देकर मै उसकी कमर और नाभि पर छा गया था। मेरे हाथ उसकी साड़ी और
अन्तरवस्त्र को हटाने मे प्रयासरत हो गये थे। वह भी उतनी ही बेसब्री से उन वस्त्रों
को अपने जिस्म से जुदा करने का प्रयास कर रही थी। कुछ ही पलों मे वह पूर्णत: निवस्त्र
होकर बिस्तर पर जल बिन मछली की भांति तड़प रही थी। कमरे मे बस उसकी आहें और सिस्कारियाँ
गूंज रही थी। उसकी केले के तने जैसी चिकनी माँसल जाँघें एक दूसरे से उलझ कर रह गयी
थी। कामोत्तेजना से मेरा जिस्म भी काँप रहा था।
मै उसे छोड़ कर उठ कर खड़ा हो गया और अपनी टी-शर्ट
और बाक्सर निकाल कर उसके साथ लेट गया। उसकी ओर करवट लेते ही उत्तेजना मे फुफकारते हुए
मेरे भुजंग ने उसकी जाँघ पर चोट मारी तो वह अचकचा कर उठ कर उस हमलावर को देखने लगी।
मस्ती मे लहराते हुए भुजंग को उसने गरदन से पकड़ लिया और फिर उसका ध्यान से निरीक्षण
करने लगी। उसकी उंगली सिर से सरकती हुई जड़ तक चली गयी थी। अचानक वह बोली… समीर, उस
दिन और आज मे इसके अन्दर बहुत बदलाव आ गया है। उसकी नाजुक उंगलियों के स्पर्श से मेरे
अन्दर खून के बहाव तेज हो गया था। अबकी बार उसे जबरदस्ती लिटा कर मै उस पर छा गया।
मेरा कामांग अब उसके वर्जित क्षेत्र पर बार-बार चोट मार रहा था। मेरी उँगलियाँ सरकते
हुए उसके स्त्रीत्व द्वार पर जा कर ठहर गयी थी। अपने वर्जित क्षेत्र पर मेरे स्पर्श
के एहसास होते ही उसने बैठने की कोशिश की परन्तु उसके पुष्ट नग्न गोल नितंब मेरे शिकंजे
मे फँस गये थे। मेरे हर वार पर वह कभी तड़प कर बचने की कोशिश करती और कभी उत्तेजना से
ओतप्रोत होकर मुझे अपनी बाँहों मे जकड़ लेती। इतनी देर मे उसके गदराये मखमली जिस्म से
उठने वाले स्पन्दन और कंपन मुझे आगे बढ़ने के प्रेरित कर रहे थे।
हम दोनो एकाकार के लिए तैयार थे। मेरी उंगलियों
ने उसके स्त्रीत्व के द्वार खोले और उसने मेरे झूमते हुए कामांग को गरदन से पकड़ कर
दिशा दिखाते हुए धीरे से टिकाया और गहरी साँस लेकर रुक गयी थी। मैने धीरे से दबाव बढ़ाया
तो उसके मुख से उत्तेजना भरी एक लम्बी सित्कार निकल गयी थी। मेरा कामांग अन्दर सरक
गया था। मै कुछ पल रुका और फिर एकाएक लगातार दबाव बढ़ाता चला गया और एक आँख वाला अजगर
सारी बाधाएँ पार करता हुआ अन्दर सरकता चला गया जब तक हमारे जोड़ एक दूसरे टकरा नहीं
गये थे। उसके चेहरे पर दर्द के साथ उत्तेजना की लहर दिख रही थी। एक पल के लिए मै रुक
गया था। उसके जिस्म ने मुझे इशारा किया और हम दोनो अपनी मंजिल की ओर अग्रसर हो गये
थे। कामावेश मे सिर्फ सिस्कारियाँ गूँज रही थी और कमरे मे तूफान वेग पकड़ चुका था। एक
पल आया कि हम दोनो के लिए वक्त थम सा गया था। वह जोर से काँपी और धनुषाकार बनाते हुए
हवा मे उठ गयी थी। उसके जिस्म ने तीव्र झटका खाया और फिर काँपते हुए वह बिस्तर पर लस्त
हो कर पड़ गयी। तभी मुझे भी ऐसा एहसास हुआ कि जैसे उसने मेरे कामांग को अपने शिकंजे
जकड़ कर दोहना आरंभ कर दिया है। उसके गदराये हुए जिस्म के हर स्पंदन से मेरा जिस्म कामाग्नि
से धधक रहा था। मै अपने चरम पर पहुँच गया था। मैने आखिरी बार एक भरपूर वार किया और
अचानक उसी के साथ मेरे सारे बाँध छिन्न-भिन्न होकर बिखर गये और कामरस बेरोकटोक बहने
लगा। हमारी साँसे उखड़ रही थी। गहरी साँसे लेते हुए हमने अपने आपको सयंत किया और फिर
हम एक दूसरे को बाहों मे लेकर बिस्तर पर पड़ गये थे।
मुझे नींद नहीं आ रही थी। मै अपनी आने वाली
जिन्दगी के बारे सोच रहा था कि एकाएक आफशाँ उठ कर बैठ गयी और बिस्तर पर पड़ी हुई चादर
पर कुछ देखने लगी। …क्या हुआ आफशाँ? मेरी नजर उसके चेहरे पर पड़ी तो वह भयग्रस्त दिखाई
दे रही थी। मै जल्दी से उठ कर बैठ गया। पहले मैने सोचा था कि शायद अब उसे पछतावा हो
रहा है। उसके चेहरे के भाव बता रहे थे कि वह किसी बात से डरी हुई लग रही थी। जब वह
शांत नहीं हुई तो मैने मेनका की कसम देकर पूछा तब उसने डरते हुए कहा… समीर, चादर पर
खून के दाग नहीं है। मैने चकराते हुए पूछ… खून के दाग किस लिए? वह चुप हो गयी थी। वह
झिझकते हुए धीरे से बोली… शब-ए-वस्ल के बाद चादर पर दाग बताते है कि लड़की पाक साफ है।
…किसको बताते है? अब उसकी आवाज बोलते हुए काँप रही थी। …तुम सोचोगे कि मै पहले भी किसी
के साथ हमबिस्तर हो चुकी हूँ। अब मुझे उसकी परेशानी का सबब समझ मे आ गया था। …जिनीयस,
यह जानकारी तुम्हे किसने दी थी? …मौलवी साहब ने दीन की शिक्षा के दौरान हदीसों का हवाला
देते हुए सभी लड़कियों को बताया था। …और अगर चादर पर दाग नहीं मिले तो क्या होगा? …तो
आदमी अपनी औरत को तलाक दे सकता है। वह अभी भी डरी हुई थी। मैने उसे अपनी बाँहों मे
जकड़ते हुए कहा… तुम्हारा निकाह हुआ है या शादी? …हमारी मन्दिर मे शादी हुई है। …मन्दिर
की शादियों मे चादर के दाग का कोई महत्व नहीं है। वहाँ की शादी ने तुम्हें सात जन्मों
के लिए मेरे साथ बाँध दिया है। अब तुम पीछा भी छुड़ाना चाहो तो भी नहीं छूटेगा।
मैने मन ही मन मासूम लड़कियों को बर्गलाने वाले
मौलवियों को गाली देकर आफशाँ को अपने आगोश मे जकड़ कर उसके नाजुक अंगो के साथ खिलवाड़
करते हुए कहा… जीनियस एक बार फिर से कोशिश करते है। शायद इस बार खून के दाग लग जाए।
अबकी बार आफशाँ ने मुझे धक्का देकर दूर करते हुए कहा… मुझे नहीं दाग लगवाने। अब सो
जाओ। मेरे सामने उसकी एक नही चली और कुछ देर के बाद हम एक बार फिर से एक दूसरे की कामाग्नि
शांत करने मे जुट गये थे। जब तक हम दोनो अपनी मंजिल पर पहुँचे तब तक थक कर चूर हो गये
थे। कुछ ही देर मे हम दोनो एक दूसरे को बाँहो मे लिए सपनों की दुनिया मे खो गये थे।
सुबह आया के आगमन की घंटी सुन कर हम दोंनो जागे थे। जल्दी से तन ढकने को जो भी मिला
पहन कर मै दरवाजा खोलने के लिए चला गया और आफशाँ अपने कपड़े समेट कर बाथरुम मे चली गयी थी। जब तक मै लौट कर अपने कमरे मे आया तब तक आफशाँ कपड़े
पहन कर बाहर निकल आयी थी।
आया ने आकर घर का काम संभाल लिया था। मेनका
भी उठ कर हमारे पास आ गयी थी। हम दोनो बिस्तर पर बैठे हुए मेनका की शरारतों को देख
रहे थे। …आफशाँ अब हमे अपने कमरों को नये सिरे से व्यवस्थित करना पड़ेगा। आफशाँ मेरी
मंशा समझ गयी थी। अब हमारा अलग-अलग कमरे मे रहना उसे भी उचित नहीं लग रहा था परन्तु
तभी आफशाँ का हाथ पकड़ कर मेनका अपने कमरे मे जाने की जिद्द करने लगी। आफशाँ ने आँखों
से इशारा किया तो मैने हथियार डालते हुए कहा… ठीक है। जैसा चल रहा है चलने दो। आफशाँ
खिलखिला कर हँस पड़ी… मुझे तुम्हारे साथ देख कर इसको अच्छा नहीं लगता है। मै उठ कर तैयार
होने चला गया था। जब मै तैयार होकर बैठक मे आया तो मैने देखा की आफशाँ और आया के बीच
मे कुछ बात चल रही थी। …क्या पूछ रही थी? …तुम्हारे मतलब की बात नहीं है। मै चुपचाप
जमीन पर खेलती हुई मेनका को देखने बैठ गया। कुछ देर के बाद आफशाँ मेरे पास आकर बोली…
मै इससे रोली और बिंदी के बारे मे पूछ रही थी। …यह मुझसे पूछ लेती। मै उठ कर अपने कमरे
मे गया और अंजली के सामान मे से रोली की डिब्बी और बिंदियों का पैकट उसके हाथ मे रखते
हुए कहा… इन चीजों को लगाना न लगाना तुम्हारी इच्छा पर निर्भर है। उसके सीने पर लटकते
हुए मंगलसूत्र की ओर इशारा करके कहा… बस यह पहने रहना। यह विवाहित स्त्री की निशानी
है। मेरे हाथ से दोनो चीजें लेकर वह बोली… तुम्हें क्या पता है। इस मामले मे तुम्हारी
हालत कोई मुझसे बेहतर नहीं है। नाश्ता वगैराह समाप्त करके मैने टीवी चला दिया था। समाचार
मे दादर मे हुई हिंसा की खबर चल रही थी। जमात-ए-इस्लामिया की मजलिस मे आये कुछ लोगों
से बाजार के कुछ कारोबारियों से झड़प हो गयी थी जिसने बेहद तेजी से दंगे का रुप ले लिया था। पुलिस एक्शन मे आते ही फिलहाल सब कुछ शांत हो गया था।
मैने टीवी बन्द दिया और सोचने बैठ गया। जनरल हक की रिपोर्ट मे बड़ी साफगोई से लिखा था
कि मुस्लिम बहुल इलाकों मे स्थानीय लोगो मे रोष पनपा कर दंगा भड़काया जाए जिससे भारत
की आंतरिक स्थिति कमजोर की जा सके।
शाम तक समाचार ने एक नया मोड़ ले लिया था। कश्मीर
मे राजनितिक गलियारों मे एक भयानक विस्फोट हुआ जिसके कारण वहाँ की सरकार हिल गयी थी।
एक टीवी चैनल पर पदासीन मंत्री की काली कारतूत की फिल्म दिखायी जा रही थी। विपक्ष के
लोग सरकार पर दबाव डाल रहे थे कि कोर्ट की निगरानी मे इसकी जाँच की जाए। स्कूली छात्रा
सेक्स कांड के सामने आने से सरकार और समाज मे हड़कम्प मच गया था। उस दिन के बाद रोजाना
किसी न किसी सफेदपोश के बारे मे स्थानीय कश्मीरी अखबार या टीवी पर इस काँड से जुड़े
होने की खबर आने लगी थी। मुझे विश्वास था कि इसके पीछे ब्रिगेडियर चीमा का हाथ है।
कुछ ही दिनों मे प्रशासन मे एक डर का महौल पैदा हो गया था। सभी उच्चाधिकारियों और नेताओं
को खौफ सताने लगा था कि अगले दिन कहीं उनका तो नाम मिडिया मे तो नहीं आ जाएगा। बस इस
उहापोह की स्तिथि मे एक दिन वहाँ की सरकार अपने ही भार और अन्तरकलह के कारण गिर गयी
थी। गवर्नर शासन लगने के कारण सारे प्रशासन की बागडोर केन्द्र सरकार के पास चली गयी
थी।
इन सभी घाटी मे बदलते हुए हालात से अनिभिज्ञ
मै अपने गृहस्त जीवन मे व्यस्त था। आफशाँ ने आफिस जाना आरंभ कर दिया था। रोजाना सुबह
मै उसे आफिस छोड़ देता था और शाम को लेने चला जाता था। सुबह से शाम तक मेरा दिन मेनका
के साथ गुजरता था और रात को मेनका को सुला कर आफशाँ मेरे साथ गुजारती थी। उस दिन के
बाद से मकबूल बट की कहानी हमारे लिए समाप्त हो गयी थी। मेरी छुट्टी का एक महीना कैसे
गुजरा मुझे पता ही नहीं चला था। एक दिन शाम को हम बैठे हुए चाय पी रहे थे कि हमारे
फोन की घंटी बजी तो आफशाँ ने बात की और फिर फोन मेरी ओर बड़ाते हुए बोली… तुम्हारा फोन
है। …हैलो। एक अनजान आवाज दूसरी ओर से बोली… कैप्टेन बट, मेरा नाम वीके नरसिंहमन है,
सेवानिवृत लेफ्टीनेन्ट जनरल। आपने कुछ समय पहले एक रिपोर्ट अपने सीओ को दी थी। वह रिपोर्ट
कुछ दिन पहले मेरे पास पहुँची थी। मै इसी सिलसिले मे आपसे बात करना चाहता हूँ। मै जानता
हूँ कि आप मुंबई मे है। क्या हम मिल सकते है? …बताईए सर कब और कहाँ मिलना है? …मै कल
मुंबई पहुँच कर फोन करुँगा। थैंक्स… इतना बोल कर उसने फोन काट दिया था।
…किसका फोन था? …किसी रिटायर्ड लेफ्टीनेन्ट
जनरल का फोन था। कल मिलना चाहता है। आफशाँ को इतना बता कर चुप तो करा दिया था लेकिन
अब एक सवाल दिमाग मे घूम रहा था… कौन है यह आदमी और यह मुझ तक यहाँ कैसे पहुँच गया?
रावलपिंडी
उसी समय एक गुप्त स्थान पर कुछ लोग किसी मुद्दे
पर काफी देर से चर्चा कर रहे थे। कमरे को बाहर से दर्जन से ज्यादा हथियारों से लैस
जिहादियों ने घेर रखा था। …सर, उस आदमी की मदद से हमारा प्यादा सही जगह पर नियुक्त
कर दिया गया है। उसने खबर देना भी आरंभ कर दिया है। फिलहाल कश्मीर मे भारतीय फौज के
कुछ ठिकानो की पहली बार जानकारी मिली है। जनरल साहब, बस यह प्यादा सलामत रहे तो हवा,
पानी और जमीन के सभी अग्रिम मोर्चों की जानकारी हमारे पास होगी। आईएसआई का निदेशक जनरल
मंसूर बाजवा इतना बोल कर चुप हो गया था। …जनरल मंसूर, उस प्यादे को पहले अपनी जगह बनाने
दो। मै चाहता हूँ कि इस वक्त उस पर कोई दबाव नहीं डाला जाये। मुजफराबाद के रास्ते को
ड्रग्स के साथ असला और बारूद के लिये भी इस्तेमाल किया जाये। …सर, हमारी तरफ की सीमा
पर हमारे चुने हुए लोग नियुक्त कर दिये गये है। सीमा के उस पार की जिम्मेदारी वहाँ
की जमात-ए-इस्लामी ने ली है। उन्होंने अपना नेटवर्क वादी के साथ अब पूरे भारत मे जमा
लिया है। …परन्तु जमात तो खुद ही स्कूली छात्रा वाले काँड मे उलझी हुई है। वह हमारी
क्या मदद करेगी? …बिलकुल करेगी सर। आप बेफिक्र रहिए इसमे किसी को कुछ नहीं होगा। सभी
उस हमाम मे नंगे है। मेरा एक जांबाज मेजर इस वक्त मुजफराबाद मे उन तंजीमो के मुखियाओं
को आगे की योजना समझा रहा है। खुदा ने चाहा तो कुछ समय मे अच्छी खबर मिलनी आरंभ हो
जाएगी। …आमीन।
मुजफराबाद
मुजफराबाद मे मेजर कुछ देर तक चुपचाप उनकी
बात सुनता रहा और फिर एकाएक उठ कर खड़ा हो कर बोला… आईएसआई अगर तुम्हें खड़ा कर सकती
है तो वह तुम्हें साफ भी कर सकती है। अब से हम अपना पैसा और असला-बारुद केवल अपने उद्देश्य
को पूरा करने के लिये करेंगें। यह बात अब आपको समझ लेना चाहिए। यह बोल कर मेजर जैसे
ही जाने के लिये मुड़ा तभी झट से एक मौलाना उठ कर खड़ा होकर बोला… मेजर साहब, आपकी मांग
जायज़ है परन्तु आपको भी समझना चाहिए कि हमारी तंजीमो के कुछ और उद्देश्य भी होते है
जिनका आपके आफिस से कोई सरोकार नहीं है। …मियाँ, हम सभी का मुख्य उद्देश्य एक है कि
भारत को अन्दर से खोखला करना है। इसके लिये हम तीन दिशाओं पर काम कर रहे है। हक्कानी
और मीरवायज भी चुपचाप बैठ कर सबकी बात सुन रहे थे। एकाएक हक्कानी ने पूछा… मेजर साहब,
वह विषकन्या अपने उद्देश्य मे कितनी कामयाब हो सकी है? …यह गोपनीय है। आपको उससे कोई
मतलब नहीं होना चाहिए। आप हमे सिर्फ अपना काम बताईए और बाकी हम पर छोड़ दीजिए। खैर आप
सब बैठ कर इस बात पर चर्चा करके मुझे अपना जवाब बता दीजिएगा क्योंकि मुझे आपका संयुक्त
जवाब जनरल मंसूर को बताना है। इतना बोल कर वह जाने लगा तो लखवी उठ कर एकाएक बोला… इसमे
चर्चा करने की कोई बात ही नहीं है। आप जनरल साहब को हमारी सहमति दे दीजिएगा। मेजर ने
मुस्कुरा कर सभी को अल्विदा किया और उस कमरे से बाहर निकल गया।
बहुत ही तड़कती भड़कती अंक रहा ये हमे जो अपेक्षा थी की मकबूल और समीर के बीच कोई कहासुनी होगी वो तो हुई मगर आफशां और समीर आखिर एक हो गए मगर आखरी में ये क्या विशकन्या? कौन हो सकती है? और समीर का फाइल अब उच्च पदाधिकारी के सामने आ चुका है। अब देखते हैं कौन कहां से हमला करता है।
जवाब देंहटाएंअब तक साथ रहने के लिये धन्यवाद। उम्मीद करता हूँ कि कहानी के हर पहलू और किरदार पर आपकी पैनी नजर बनी हुई है। ऐसे ही बनाये रखियेगा।
हटाएंलगभग ३ हफ्ते की सारी घटनाये आज एक बैठक मे पढ डाली, आतंकी घटनाओंसे लेकर प्यार की गहराई तक झुलता समीर का जीवनपट पल दर पल उजागर हो रहा था. अदा की अटूट मोहोबत से लेकर अंजलीकी दुखद मौत फिर मेनका को आफशां का संभालना फिर हालातके हाथो मजबूर समीर-आफशां की शादी, आलिया का जिहादी चुन्गुलमे फसना, मुझे ये कॅरेक्टर कूछ कूछ अफगान वाली रुख्सार सा लगा. देखते है आगे मकबूल बट क्या गुल खिलाता है, कहाणी काफी रोमांचक मोड लेनेवाली है, क्युंकी अदा की फायनल भी तो समाप्त होनेवाली है 😉
जवाब देंहटाएं
हटाएंहां बात तो आपने बिलकुल सही कहा विरभाई, आपके सारे लेडी एनकाउन्टर का मै साक्षी हुं 😉😆
पर जो जूडाव झरीना और सकीना के कॅरेक्टर के साथ रहा वो यादगार है.
और क्या कहू हमेशा कि तरह कहाणी धमाकेदार तरीकेसे आगे बढ रही..