काफ़िर-19
सुबह हो चुकी थी। आलिया को लेकर मै वापिस कोम्पलेक्स
मे आ गया था। मैने रास्ते मे आलिया को जन्नत की सारी कहानी सुना दी थी। वह भी चकरा
कर रह गयी थी। उसे भी जन्नत का बर्ताव समझ मे नहीं आया था। मेरे पास नाम इकठ्ठे होते
जा रहे थे परन्तु उसके द्वारा क्या करना चाहिए यह मेरी समझ से बाहर था। मै तैयार होकर
आफिस चला गया था। एक कागज पर सभी दागी राजनेताओं, अलगावादियों, चरमपंथियों, व्यापारियों,
मौलवियों व पत्थरबाजों के नाम मैने लिखने आरंभ कर दिये थे। लिस्ट लंबी होती चली जा
रही थी। एजाज के रहस्योद्घाटन ने मुझे चौंका दिया था। वह उन सभी स्थानों पर कुछ ऐसी
पेटियाँ छोड़ कर आया था जहाँ पिछले कुछ सालों मे ब्लास्ट हुए थे। चुँकि तारीख का पता
नहीं चला था इसलिए ब्लास्ट का सही आंकलन लगाना मुश्किल था। फिर भी जाँचने के लिये मैने
एक लिस्ट तैयार कर दी थी।
दोपहर को मेरे पास फरहत का फोन आया… समीर भाई,
मैने अभी भारतीय सीमा मे प्रवेश किया है। मै माल लेकर जम्मू की ओर जा रहा हूँ। श्रीनगर
से बाहर निकलते ही बडगाम के पास से निकलूँगा। अगर आप कल सुबह अपने फार्म पर आ जाएँगें
तो मै ट्रक को आधे घंटे के लिए वहाँ रोक दूँगा। …फरहत कल सुबह कितने बजे तक पहुँचोगे?
…समीर भाई लगभग 6-7 बजे तक उम्मीद कर रहा हूँ। …ठीक है मै वहीं अपने फार्म पर मिलूँगा।
कोई खतरा उठाने की जरुरत नहीं है। …जी समीर भाई। फिर बडगाम मे
मिलते हैं। उससे फोन पर बात समाप्त करके मैने अपने बैचमेट से बात करके एक खोजी कुत्ते
का इंतजाम किया। मैने तय किया कि सुबह पाँच बजे कुत्ते के साथ उसके हैंडलर को अपने
साथ लेकर बडगाम निकल जाएँगें। शाम तक सारे इंतजाम करने के बाद अपने घर वापिस लौटा तो
आलिया किसी से फोन पर उलझी हुई थी। मै अपने काम मे लग गया था। अपनी बात समाप्त करके
आलिया जब मेरे पास आयी तो मैने पूछा… किसके साथ बहस मे उलझी हुई थी? …शाहीन से बात
कर रही थी। वह अपने भाई के लिए काफी चिन्तित है क्योंकि वह उस रात से गायब है। इस बात
पर मैने अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी क्योंकि मुझे पूरा विश्वास था कि वह अपने पाकिस्तानी
आकाओं से बचता फिर रहा होगा।
सुबह चार बजे मै चलने के तैयार था। अवैध माल
मिलने पर मै अपनी योजना तैयार कर चुका था। ठीक पाँच बजे मैने खोजी कुत्ते और उसके हैन्डलर
को उनकी युनिट से लेकर बडगाम की ओर निकल गया था। चारों ओर गहरा अंधकार था। वातावरण
मे ठंडक थी। …क्या नाम है इसका? मैने एक नजर काले लेब्राडर पर डाल कर हैन्डलर से पूछा।
…जूली, जनाब। …यह क्या सूँघ सकती है? …जनाब, यह सभी प्रकार के एक्सप्लोसिव्स को सूँघने
मे पारंगत है। कुछ हद तक यह ड्र्ग्स की भी पहचान कर लेती है। …गुड। हम बात करते हुए
बडगाम पहुँच गये थे। मै सीधे अपने फार्म की ओर चला गया। मैने लोहे के गेट को खोलने
की कोशिश की तो उस पर ताला पड़ा हुआ था। गेट से अन्दर कूद कर जब अपने चौकीदार को ढूँढने
के लिए आगे बढ़ा तो पता चला कि वह कम्बल तान कर अपने कमरे मे आराम से सो रहा था। सबसे
पहले उसकी क्लास लगायी और फिर लोहे के गेट
को खोल दिया जिससे फरहत को अन्दर आने मे कोई परेशानी का सामना न करना पड़े।
छ्ह बज चुके थे। आसमान से अंधकार धीरे-धीरे
छँटता जा रहा था। हैन्डलर और जूली पूरी तरह से तैयार थे। इंतजार का हर मिनट बड़ा भारी
लग रहा था। सात बजे मेरे फोन की घंटी बजी तो मैने तुरन्त काल उठाते हुए कहा… हैलो।
…समीर भाई मै बडगाम पहुँच गया हूँ। …मै अपने फार्म पर तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ।
…बस अगले दस मिनट मे वहाँ पहुँच जाऊँगा। इतना बोल कर उसने फोन काट दिया था। मै लोहे
के गेट के पास जाकर खड़ा हो गया। ट्रक की हेडलाइट्स चमकते ही मै तैयार हो गया था। जैसे
ही ट्रक नजदीक आया तो मै सड़क पर आ गया था। वह ट्रक धीमा हुआ और हमारे गेट पर पहुँचते
ही ट्रक ने बड़ी कुशलता से मोड़ काटा और बिना गति धीमी किये हमारे फार्म मे प्रवेश कर
गया था। मैने जल्दी से गेट बन्द किया और जब तक मै ट्रक तक पहुँचा तब तक फरहत ट्रक से
उतर कर पीछे की ओर आ गया था। उसने पीछे का शटर खोला और अन्दर रखी पेटियाँ उजागर हो
गयी थी। सेब की खुश्बू से सारा कन्टेनर महक रहा था। मैने हैन्डलर को इशारा किया तो
उसने जूली को कुछ निर्देश दिये और उसे उठा कर कन्टेनर मे छोड़ दिया। जूली ने पेटियाँ
सूँघने मे जुट गयी थी।
मै अभी भी पूरी तरह से आश्वस्त नहीं था कि
खोजी कुत्ता बन्द पेटी को सूँघ कर एक्स्प्लोसिव्स और ड्र्ग्स की पहचान कर सकता है।
तभी जूली ने एक पेटी को सूँघ कर भौंकना शुरु कर दिया। फरहत और
फैयाज ने मिल कर उस पेटी को ट्रक से उतार कर एक किनारे मे जमीन पर रख दिया था। वह एक
बार फिर से सूँघने के काम मे लग गयी थी। वह फिर एक पेटी के पास पहुँच कर भौंकने लगी
थी। उन दोनो ने जल्दी से उस पेटी को भी बाहर निकाल दिया था। तब तक मैने पहली पेटी को
खोल कर चेक किया तो भूसे और सेब के नीचे करीने से सेम्टेक्स की सिल्लियाँ रखी हुई थी।
दूसरी पेटी खोली तो उसमे टाइमर्स और डिटोनेटर्स रखे हुए थे। जूली पेटियों की निशानदेही
कर रही थी, फरहत और फैयाज उन पेटियों को ट्रक से तुरन्त हटाने मे लगे हुए थे, और मै
उन पेटियों के ढक्कन खोल कर सामान का निरीक्षण कर रहा था। एक मिलिट्री आप्रेशन की तरह
सभी अपने-अपने काम बड़ी मुस्तैदी से कर रहे थे। अगले बीस मिनट मे आठ पेटियाँ ट्रक के
बाहर निकाल कर जमीन पर रख दी गयी थी।
सभी जमीन पर रखी हुई पेटियों के ढक्कन हट चुके
थे। एक को छोड़ कर बाकी सातों पेटियों मे असला बारुद मिला था। एक पेटी मे सैकड़ों छोटे-छोटे
पोलिथीन बैग कत्थई रंग के पाउडर से भरे हुए करीने से रखे हुए थे। मै जब तक हर पेटी
को खोल कर चेक कर रहा था तब तक हैन्डलर, फरहत और फैजाज ने हमारे फार्म की आठ सेब की
पेटियाँ उस ट्रक मे रखवा दी थी जिससे कन्टेनर की पेटियों की संख्या मे कोई कमी न रहे।
अगले दस मिनट मे फैयाज ने कन्टेनर का शटर बन्द किया और अगले कुछ पलों मे ट्रक फार्म
के गेट से बाहर निकल गया था। जमीन पर आठ पेटियाँ खुली हुई पड़ी थी। एक पेटी मे शुध्द
चरस थी और बाकी सात मे असला बारुद रखा हुआ था। चौकीदार से चाय बनाने के लिए कह कर मैने
हैंडलर से पूछा… जूली को इनाम मे आप लोग क्या देते है? वह मुस्कुरा कर बोला… मेजर साहब
यह सैनिक है। क्या इस काम के लिए आपको कोई इनाम मिलेगा? मैने झेंपते हुए जूली के सिर
पर हाथ फेर कर कहा… सैनिक सिर्फ देश हित मे काम करता है। हम चाय पी रहे थे तब तक चौकीदार
पेटियों को बन्द करने मे जुट गया था।
चाय पीकर हमने आठों पेटियाँ अपनी जीप मे रखवाई
और कुछ ही देर मे हम कोम्पलेक्स की ओर चल दिये थे। सबसे पहले हैन्डलर और जूली को उनकी
युनिट पर छोड़ कर मैने अपनी सुरक्षा युनिट को फोन करके कोम्पलेक्स के मुख्य द्वार पर
आने के लिए कह कर दूसरा फोन मैने ब्रिगेडियर चीमा को मिलाया। …हैलो। …सर, मेजर बट बोल
रहा हूँ। क्या आप कोम्पलेक्स के मुख्य द्वार पर आ सकते है? …क्या हुआ? …सर आपकी मदद
चाहिए। अवैध हथियारों का केस है। …मै आ रहा हूँ। मैने फोन काट कर अपनी जीप को कोम्पलेक्स
की दिशा मे मोड़ दिया था। मुझे मालूम था कि इन पेटियों के साथ मै कोम्पलेक्स मे प्रवेश
नहीं कर सकूँगा इसीलिए मैने यह सब किया था। जब मै मुख्य द्वार पर पहुँचा तब तक मेरी
सुरक्षा युनिट पहुँच चुकी थी। मैने अपनी जीप को द्वार से कुछ पहले एक किनारे मे छोड़
कर पैदल ही अपनी सुरक्षा युनिट की ओर चल दिया था। मुझे पैदल आते हुए देख कर वह मेरी
ओर जीप लेकर आ गये थे।
अपनी जीप की ओर इशारा करके मैने कहा… आप लोग
मेरी जीप की सुरक्षा कीजिए। उसके पास किसी भी आदमी के जाने की
मनाही है। वह तुरन्त मेरी जीप की ओर चले गये और उसे घेर कर खड़े हो गये थे। मुख्य द्वार
पर खड़ी हुई सुरक्षा युनिट ने थोड़ी सी दूर पर हलचल होती हुई देखी तो वह भी चौकन्ने हो
गये थे। उनकी एक टीम जाँच के लिए मेरी जीप की ओर चल दी थी। तभी हूटर बजाती हुई ब्रिगेडियर
चीमा की जीप मुख्य द्वार से बाहर निकली और मुझे सड़क के बीचोंबीच खड़ा देख कर रुक गयी
थी। ब्रिगेडियर चीमा जीप से उतर कर मेरे पास आकर बोले… मेजर यह क्या हाल बना रखा है?
उनका कमेन्ट मेरे कपड़ों पर था। …सर, आप आईए मेरे साथ। आपको कुछ दिखाना है। हम पैदल
जीप की ओर चल दिये। ब्रिगेडियर चीमा को देख कर मेरी सुरक्षा युनिट सावधान खड़ी हो गयी
थी। …एक पेटी जीप से उतार कर जमीन पर रखो। दो सुरक्षाकर्मी ने तुरन्त एक पेटी को उठा
कर जमीन पर रख दिया। मैने उसके लकड़ी के कवर को हटा कर ब्रिगेडियर चीमा को सेम्टेक्स
की सिल्लियाँ दिखाते हुए कहा… सर, इन सभी सेब की पेटियों मे यही असला बारुद है जिसे
मैने आज सुबह गोल्डन ट्रांस्पोर्ट कंपनी के एक ट्रक से जब्त किया है। इतनी बड़ी प्लास्टिक
एक्सप्लोसिव्स की खेप देख कर ब्रिगेडियर चीमा की आँखें फटी की फटी रह गयी थी। वहाँ
पर खड़ी हुई मेरी सुरक्षा युनिट के साथ कोम्पलेक्स की सुरक्षा युनिट जो अब तक वहाँ पहुँच
चुकी थी, सभी हैरत से उस पेटी को देख रहे थे।
…मेजर जरा मुझे साफ शब्दों मे समझाओ कि यह
क्या माजरा है? मैने अपनी युनिट से कहा… इसका ढक्कन बन्द करके वापिस जीप मे रख दो।
वह अपने काम मे लग गये तो मैने ब्रिगेडियर चीमा से कहा… सर, यह सभी पेटियाँ अवैध रुप से मुज़फराबाद से हमारी सीमा मे घुसी थी। इसकी डिलिवरी जम्मू मे
मस्जिद-ए-जाबिल के इमाम हाजी जुबैर मोहम्मद को देनी थी। ऐसी ही एक डिलीवरी जमिया मस्जिद
के हाजी मंसूर के यहाँ कुछ दिन पहले भी हुई थी। उसके बारे मे भी मैने आपको बता दिया
था। …अब क्या करने की सोच रहे हो? …सर, मै यह सारी पेटियाँ अब्दुल लोन के गोदाम मे
पहुँचा कर इन लोगों के बीच मे दरार डालने की कोशिश करना चाहता हूँ परन्तु इसी हालत मे यह पेटियाँ को उनके पास पहुँचा दिया
तो हमारे लिए बहुत बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा। अब मेरे सामने दो विकल्प है कि पहला हम
इन सब को किसी प्रकार से बेकार कर के फिर उनके गोदाम मे पहुँचा दें और दूसरा इसकी डिलिवरी
के कुछ मिनट के बाद सुरक्षा एजेन्सी गोदाम पर छापा मार के सारा असला बारुद जब्त कर
ले। दोनो ही विकल्प मे मुझे आपकी जरुरत है। ब्रिगेडियर चीमा के
सामने मैने अपनी योजना को खोल कर रख दिया था। …मेजर, जिसे इस माल की डिलिवरी देनी थी
उसकी तो हत्या हो गयी है। यह खबर सुन कर मुझे गहरा धक्का लगा था। इससे पहले मै कुछ
और पूछता ब्रिगेडियर चीमा ने कहा… तुम्हारे दोनो ही विकल्पों मे इसकी जानकारी बहुत
से लोगों को हो जाएगी लेकिन फिलहाल इसके अलावा मुझे कोई तीसरा विकल्प इस समय नहीं सूझ
रहा है। मेरे दिमाग मे इमाम जुबैर मोहम्मद की हत्या की खबर घूम रही थी।
कुछ देर सोचने के बाद ब्रिगेडियर चीमा ने कहा…
तुम आगे चलो। जैसे ही तुम इसकी डिलीवरी करके बाहर आओगे उसके बाद ही हम छापा मार कर
सारा सामान को जब्त कर लेंगें। तुम्हारी सुरक्षा युनिट और द्वार की सुरक्षा युनिट को
लेकर मै तुम्हारे पीछे चल रहा हूँ। इन डिब्बे पर पहले मार्किंग कर लेनी चाहिए जिससे
कोई पेटी मिस न हो जाए। मेरे निर्देश पर सभी पेटियों पर जीप के मोबिल आयल से निशान
लगा दिया गया था। थोड़ा सा मोबिल आयल मैने अपनी जीप की नम्बर प्लेट पर भी पोत दिया था।
तब तक ब्रिगेडियर चीमा ने वहाँ खड़े हुए सभी सुरक्षाकर्मियों को अपनी योजना समझा चुके
थे। हम चलने को तैयार थे। ब्रिगेडियर चीमा की ओर से चलने का इशारा मिलते ही मैने अपनी
जीप आगे बढ़ा दी। मुझे अब्दुल लोन के गोदाम का पता था इसीलिए बिना किसी परेशानी के ट्रांस्पोर्ट
नगर पहुँच गया था। मै सीधे लोन के गोदाम पर चला गया था। ट्रकों पर कहीं सेब की पेटियाँ
चढ़ाई जा रही थी और किसी जगह उतारी जा रही थी। गोदाम के मुख्य द्वार पर गार्ड्स की पूरी
फौज खड़ी हुई थी। मेरी जीप रुकते ही वह वहीं से चिल्लाये… गेट से हटा। मैने उन्हें अनसुना
कर दिया और जीप से उतर कर उनके पास चला गया। अभी तक मुझे उनके पास हथियार नहीं दिखे
थे लेकिन जैसे ही मै उनके पास पहुँचा तो कुछ के हथियार निकल आये थे।
…कौन है? गाड़ी वहाँ से हटा। मै कुछ पल चुपचाप
खड़ा रहा और फिर दबी आवाज मे बोला… माल लेकर आया हूँ। मुन्नवर राना को बुलाओ। उनको चुप
कराने के लिए वह नाम काफी था। अचानक सभी चुप हो गये और उनमे से एक गार्ड गोदाम के अन्दर
भागता हुआ चला गया था। मुन्नवर राना का नाम मुझे उन ड्राइवरों के माध्यम से मिला था
जो अब्दुल लोन का माल उठाने हमारे फार्म पर आये थे। कुछ देर के बाद वह गार्ड अपने साथ
एक खुंखार से दिखने वाले व्यक्ति के साथ आता हुआ दिखा तो सारे गार्ड अलग खड़े हो गये
थे। वह मेरे पास आया और उपर से नीचे तक देख कर घुर्राया… किसने भेजा है तुझे? …नीलोफर
मैडम ने। अपना सामान उतार लो और मुझे फारिग करो। एक पल के लिए वह स्तब्ध होकर मुझे
देखता रहा फिर मेरे साथ जीप की ओर चल दिया। उसके पीछे-पीछे सभी गार्ड्स भी चल दिये
थे। उसने लकड़ी की पेटियों पर नजर डाल कर खड़े हुए गार्ड को इशारा किया तो वह मुस्तैदी
के साथ सामने पड़ी हुई पेटी के ढक्कन को खोल कर भूसे और सेब की परत हटाकर वह बोला… भाईजान
आप खुद देख लिजिए। मुन्नवर राना ने पेटी मे ग्रेनेड देखे तो तुरन्त उसने लकड़ी का ढक्कन
उठा कर ढकते हुए कहा… कितनी पेटियाँ है? …आठ। मियाँ यह सारे सवाल जवाब नीलोफर मैडम
से करना। अपना सामान उठाओ मुझे और भी काम है। वह पल भर के लिए ठिठका और फिर उसने कहा…
यह सारा सामान तहखाने मे रखवा दो। सभी गार्डस उन पेटियों को उतारने मे व्यस्त हो गये
थे। जैसे ही मेरी जीप खाली हुई मै बिना कुछ कहे जाकर जीप मे बैठ गया और असमंजस मे खड़े
हुए मुन्नवर राना से कहा… मियाँ खुदा हाफिज़। वह कुछ बोलता उससे पहले मैने जीप का गियर
बदला और जीप रिवर्स करके वापिस चल दिया। किसी ने मुझे रोकने की कोशिश नहीं की थी।
मै उस सड़क से निकल कर जैसे ही मुख्य सड़क पर
आया कि तभी ब्रिगेडियर चीमा की जीप और उसके पीछे दो सुरक्षाकर्मियों की जीप लोन के
गोदाम की ओर मेरे सामने से तेजी से निकल गयी थी। अभी मुश्किल से मै आगे बढ़ा ही था कि
तभी सीआरपीफ और पुलिस का भारी भरकम काफिला भी उस गोदाम की ओर मुड़ते हुए दिखा था। मैने
अपना काम कर दिया था अब देखना था कि ब्रिगेडियर चीमा अपनी भुमिका कैसे निभाते है। तभी
मुझे एक ख्याल आया तो मैने अपनी जीप सड़क से उतार कर खड़ी करके ब्रिगेडियर चीमा का नम्बर
लगाया… हैलो। …सर उन पेटियाँ को गोदाम के किसी तहखाने मे रखवाया गया है। बस इतनी बात
करके मैने फोन काट कर चल दिया था। हाजी जुबैर मोहम्मद की हत्या की खबर सुनते ही मुझे
जन्नत का ख्याल आया था। यही सोच कर मै उसके घर की ओर चल दिया था।
जीप सड़क पर छोड़ कर मै उस गली से जब जन्नत के
घर की ओर जा रहा था कि तभी फरहत की पर्दानशींन बीवी अपने घर से निकली थी। हमारी आँखे
चार होते ही वह ठिठक कर रुक कर बोली… आप जन्नत से मिलने जा रहे है? मैने झेंपते हुए
कहा… तुम कहीं जा रही हो? उसने अपने चेहरे पर पड़ी हुई चिलमन को उठा कर धीरे से कहा…
जन्नत अपने घर पर नहीं है। …ओह। वह कब तक वापिस आएगी? …पता नहीं। शायद कभी नहीं। …तुम्हारा
क्या नाम है? …आस्माँ। इतना बोल कर वह आगे बढ़ गयी थी। उसके जवाब ने पल भर के लिये मुझे
उलझा दिया था। उसको जाते हुए देख कर मै तेज कदमों से चलते हुए उसके पास पहुँच कर बोला…
आस्माँ रुको। वह रुक कर मेरी ओर देखते हुए बोली… जल्दी बोलिए, मुझे जाना है। …चलो मै
तुम्हारे साथ चलता हूँ। रास्ते मे बात कर लेंगें। यह कह कर मै उसके साथ चल दिया। …जन्नत
कहाँ गयी? …पता नहीं। जिस दिन वह जम्मू से लौटी उसी दिन दोपहर को मुझे अपने मकान की
चाबी देकर बोली कि उसको काम मिल गया है और वह हमेशा के लिए यह जगह छोड़ कर जा रही है।
मैने उससे पूछा भी परन्तु उसने मुझे कुछ नहीं बताया तो मैने समझा कि शायद वह तुम्हारे
साथ रहने के लिए चली गयी है। मैने हैरानी से पूछा… यह तुमने कैसे सोच लिया कि जन्नत
मेरे साथ रहने के लिए गयी है। …मियाँ, मै अन्धी नहीं हूँ। मुझे पता है कि तुम दोनो
के बीच मे क्या चल रहा है। …आस्माँ तुम्हें कोई गलतफहमी हुई है। हमारे बीच मे कुछ नहीं
चल रहा है। आस्माँ चिड़ कर बोली… रहने दो, तुम सब मर्द एक जैसे होते हो। यह बोल कर वह
आगे बढ़ गयी थी।
मै चुपचाप उसके पीछे चलता हुआ सोच रहा था कि
आखिर जन्नत के साथ उस इमाम जुबैर मोहम्मद ने ऐसा क्या किया कि जन्नत के व्यवहार मे
इतना बदलाव आ गया था। यहाँ पहुँच कर वह अपने बच्चे को लेकर न जाने कहाँ चली गयी थी?
…आस्माँ एक मिनट रुको। मैने पीछे से आवाज दी। वह चलते-चलते रुक गयी और मुड़ कर बोली…
समीर अगर मेरा पीछा करना नहीं छोड़ा तो मै शोर मचा दूँगी। मै उसके पास पहुँच कर बोला…
मै तुम्हारी मदद करना चाहता हूँ लेकिन तुम भी जन्नत की तरह मुझे धोखा देने की कोशिश
कर रही हो। …खुदा के लिए मुझे जाने दो। वह रुआँसी होकर बोली तो मै पल भर के लिए चौंक
गया था। पहले मुझे लगा था कि वह ईर्ष्या के कारण ऐसा कर रही थी परन्तु अब मुझे उसकी
आवाज मे बेबसी झलक रही थी। मैने जल्दी से कहा… मेरे साथ चलो। तुम्हे जहाँ जाना है मै
तुम्हें छोड़ दूँगा। वह चुपचाप खड़ी रही तो एक बार फिर से मैने कहा… अब चलो। अब तुम्हें
देर नहीं हो रही। यह बोल कर मै अपनी जीप की ओर चल दिया। वह चुपचाप मेरे साथ चल दी थी।
वह चुपचाप जीप मे मेरे साथ बैठ गयी। …कहाँ चलना है? …बस स्टैन्ड की ओर चलो। मैने जीप
को बस स्टेन्ड की दिशा मे मोड़ दिया था। …फैयाज और फरहत के बारे मे क्या सोचा? …उनके
बारे मे क्या सोचना। उनके साथ हमारा कोई निकाह थोड़े हुआ था। इस रहस्योद्घाटन ने मेरा
दिमाग घुमा कर रख दिया था।
दिन मे बस स्टैन्ड की सड़क पर कुछ ज्यादा भीड़
नजर आ रही थी। मेरा सारा ध्यान सड़क पर लगा हुआ था। तभी मुझे अपनी पसली पर किसी धारदार
चीज की चुभन महसूस हुई तो मैने चौंक कर अपना हाथ गियर से हटा कर पसली पर लगाते हुए
देखा तो आस्माँ ने मीट काटने की छुरी मेरी पसली पर टिका रखी थी। उसके हाथ की मजबूत
पकड़ से साफ था कि वह कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार थी। मैने दोनो हाथ स्टीयरिंग पर
टिकाते हुए कहा… यहाँ से भागने के लिए पैसों की जरुरत पड़ेगी।
तुम्हारे पास पैसे है? मैने बस स्टैन्ड के पास जीप रोक कर अपनी जेब से पर्स निकाल कर
सारे नोट आस्माँ की ओर बढ़ाते हुए कहा… यह पैसे यहाँ से भागने मे तुम्हारी मदद कर देंगें।
इतनी देर मे पहली बार हमारी निगाहें मिली थी। उसने अभी भी छुरी मेरी पसली पर टिका रखी
थी। हम दोनो एक दूसरे को कुछ पल देखते रहे फिर वह मेरे हाथ से सारे नोट लेकर जीप से
उतर कर बोली… शुक्रिया। …आस्माँ, मेरा फोन नम्बर रख लो। अगर किसी मुसीबत मे पड़ जाओ
तो खबर कर देना। मैने एक कागज पर अपना नम्बर लिख कर उसकी ओर बढ़ाया तो वह एक पल के लिये
मुझे देखती रही और फिर धीरे से बोली… अफसोस आपने हमको अभी तक नहीं पहचाना। मैने चौंक
कर उसकी ओर देखा तो वह दबी हुई आवाज मे बोली… किश्तवार। बस इतना बोल कर वह मुड़ी और
तेज कदमों से चलते हुए बस स्टैन्ड की भीड़ मे खो गयी और मै वहीं जीप मे बैठ कर उस कठुआ
की घटना को याद कर रहा था।
बहुत से प्रश्नों के सवाल के जवाब अभी मुझे
ढूँढने थे। कुछ समय जन्नत के साथ बिता कर एक बात तो मै समझ चुका था कि वह हर्गिज़ वैसी
नहीं थी जैसा वह दिखा रही थी। जन्नत और आस्माँ का संबन्ध का खुलासा होने के बाद तो
मै और भी ज्यादा उलझ कर रह गया था। पता नहीं क्यों मेरा अन्तर्मन बार-बार उन दोनो की
मदद करने के लिए कह रहा था। जिस्मानी सुख की चाह और अन्तर्मन की आवाज के फर्क को अंजली
ने मुझे भली भाँति समझा दिया था। यही सोचते हुए मै कोम्पलेक्स की ओर जा रहा था कि तभी
ब्रिगेडियर चीमा का फोन आया… मेजर कहाँ हो? …सर रास्ते मे हूँ। कोम्पलेक्स जा रहा हूँ।
…तुम अभी तक बाहर घूम रहे हो। फौरन जीओसी के आफिस मे रिपोर्ट करो। स्वत: मेरा पाँव
एक्सेलेटर पर दब गया और जीप की गति बढ़ गयी थी। मै सीधे घर गया और जल्दी से युनीफार्म
पहन कर जीओसी जनरल नायर के आफिस की ओर चला गया। जब मै उनके आफिस मे दाखिल हुआ तो वहाँ
तो उच्चाधिकारियों की पूरी जमात बैठी हुई थी। 15 कोर की कमान संभाल रहे लेफ्टीनेन्ट
जनरल नायर और चार अन्य अधिकारी सोफे बैठे हुए थे। ब्रिगेडियर चीमा एक किनारे मे खड़े
हुए थे। मैने कमरे मे घुसते से ही मुस्तैदी के साथ सैल्युट किया और सावधान की मुद्रा
मे खड़ा हो गया।
…बैठिए मेजर। लेफ्टीनेन्ट जनरल की आवाज कमरे
मे गूंजी तो मै चुपचाप एक खाली कुर्सी पर बैठ गया। मेरे लिए खतरे की घंटी बज उठी थी।
…मेजर, एक बार पहले भी आपके कारण यहाँ भूचाल आ गया था। आज एक बार फिर से आपने पूरी
कमांड को यहाँ की सरकार के सामने खड़ा कर दिया है। आपको क्या कहना इस बारे मे? मुझे
कुछ समझ मे नहीं आया था। …सर, मेरा ऐसा कोई मकसद नहीं था। मेरे पास पुख्ता खबर थी कि
सेब के व्यापार की आढ़ मे सीमा पार से अवैध हथियारों का जखीरा जम्मू जा रहा है। उसके
बाद जो कुछ हुआ वह ब्रिगेडियर चीमा को पता है। बस इतना बोल कर मै चुप हो गया था। ब्रिगेडियर
चीमा ने कहा… सर, अलगावादियों और उनको कवर देने वाले राजनीतिज्ञों के बीच समन्वय को
नष्ट करने के लिए मेजर बट ने यह किया था। मै भी इसकी योजना से सहमत था लेकिन मै इसमे
आर्मी को नहीं उलझाना चाहता था। इसीलिए यह मेरा निर्णय था कि स्थानीय प्रशासन के द्वारा
इस साजिश का पर्दाफाश होना चाहिए। मैने यह नहीं सोचा था कि इसके तार सीधे मुख्यमंत्री
के साथ जुड़े हुए थे। इतना बोल कर ब्रिगेडियर चीमा चुप हो गये परन्तु मुख्यमंत्री की
बात सुन कर एक पल के लिये मै चौंक गया था।
जनरल नायर घुर्राते हुए बोले… ब्रिगेडियर शर्मा
आपकी इन्टेलिजेन्स क्या कर रही है? आपकी नाक के नीचे से दो बार सीमा पार से अवैध रुप से असला बारूद लाया गया और आपको इसके बारे मे कोई खबर नहीं है।
आप्रेशन्स के लोग अब इन्टेलीजेन्स का काम बखूबी कर रहे है तो आपका नेटवर्क क्या कर
रहा है? मैने ब्रिगेडियर शर्मा की ओर देखा तो वह मुझे घूर रहे थे। मैने जल्दी से कहा…
सर मुझे कुछ बोलने की इजाजत चाहिए। इशारा मिलते ही मैने कहा… यह काम इन्टेलीजेन्स नेटवर्क
के द्वारा तो हो ही नहीं सकता था। मुझे यह सब सिर्फ इसलिए पता चल सका क्योंकि मै यहीं
पला बड़ा हुआ हूँ। मेरे पास इसकी जानकारी मेरे बचपन के दोस्तों से अनायस मिली थी। वह
नहीं जानते है कि मै फौज मे हूँ। उन्होंने भी कोई सीधे जानकारी नहीं दी थी परन्तु उनसे
मिली हुई जानकारी और इंटेल की रिपोर्ट्स के आंकलन के कारण ही मै इस काम मे सफल हुआ
था। इसीलिए एमआई का काम किसी भी तरह से कम करके नहीं आंका जा सकता है। यह बोल कर मै
चुप हो गया। कुछ देर तक सभी लोग मेरे काम के परिणामस्वरुप सरकार
मे आये हुए भूचाल से निबटने की चर्चा करने व्यस्त हो गये थे। आखिरकार लेफ्टीनेन्ट जनरल
नायर खड़े होकर बोले… आज के हालात पर गवर्नर के साथ मेरी मीटिंग है। यह बोल कर वह बाहर
चले गये और उनके पीछे-पीछे सभी लोग भी बाहर निकल गये थे।
ब्रिगेडियर चीमा अपनी सीट पर बैठते हुए बोले…
मेजर, आज तुमने अब्दुल लोन को ही नहीं अपितु मुख्यमंत्री को भी फंसा दिया है। जिस गोदाम
को तुम अब्दुल लोन का गोदाम समझ रहे थे वह असलियत मे मुख्यमंत्री का गोदाम था। उस तहखाने
मे तुम्हारी पेटियों के साथ ड्र्ग्स का भारी जखीरा भी मिला था। पुलिस को भी यही लगा
था कि अब्दुल लोन का गोदाम है लेकिन जब तक माल जब्त करके अब्दुल लोन के खिलाफ कार्यवाही
हो रही थी कि तभी मुख्यमंत्री का निजि सचिव आ धमका था। उसने पुलिस को कार्यवाही करने
से मना किया परन्तु हमारे सामने वह ऐसा नहीं कर सकते थे। इसीलिए उन्होंने कार्यवाही
पूरी करके सारा माल और हथियार जब्त कर लिये थे। वहाँ उपस्थित सभी लोगों को भी हिरासत
मे ले लिया था। दोपहर को अब्दुल लोन सामने आकर बोला कि वह गोदाम उसका नहीं है। शाम
को मुख्यमंत्री ने सामने आकर कहा कि वह गोदाम उसने अब्दुल लोन को किराये पर दिया था।
पुलिस एक ही पार्टी के दो दिग्गज नेताओं की आपसी लड़ाई मे फँस गयी है। अब विपक्ष ने
सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। तुम्हारा काम तो हो गया क्योंकि उनमें
फूट पड़ गयी लेकिन राज्य सरकार मे भूचाल आ गया है।
…सर, इमाम जुबैर की हत्या के बारे मे किससे
बात करनी चाहिए? …क्या करने की सोच रहे हो? …सर, मुझे उसकी हत्या की एफआईआर की कापी
चाहिए। ब्रिगेडियर चीमा ने कुछ सोच कर किसी को फोन किया और फिर बात करने के बाद बोले…
कुछ देर मे फैक्स पर रिपोर्ट की कापी मिल जाएगी। जुबैर का क्या चक्कर है? …सर, पुरानी
इंटेल रिपोर्ट्स देख रहा था तो पता चला कि गंदरबल और किश्तवार मे हुए कत्लेआम मे इसके
हाथ होने का शक है। हाल ही मे मुझे पता चला है कि यह जम्मू मे व्यापक तौर पर लव जिहाद
के लिए कालेज और स्कूल के लड़कों को प्रलोभन दे रहा था। यह बता कर मैने उस दिन जो मस्जिद
मे सुना था वह सब बताने के बाद कहा… इसकी हत्या होने से मेरी योजना की एक कड़ी टूट गयी
है। मै जानना चाहता हूँ कि इसकी हत्या के पीछे कौन था। अगर इसकी हत्या के पीछे बदले
की मंशा थी तो कोई बात नहीं लेकिन अगर तंजीमों के बीच आपसी रंजिश का मामला है तो फिर
अब सुरक्षा एजेन्सियों के लिए दुगना खतरा उत्पन्न हो गया है। हम बात कर रहे थे कि जम्मू
से फैक्स आ गया था। मैने फैक्स लिया और ब्रिगेडियर चीमा को शुक्रिया कह कर चलने लगा
तो उन्होंने कहा… मेजर गुड जाब एन्ड वेल डन। बहुत बड़ा खतरा टल गया।
अंधेरा हो गया था। मै भी घर की ओर चल दिया।
आलिया से सुबह से बात नहीं हुई थी। वह भी मेरे इंतजार मे बैठी हुई थी। मुझे देखते ही
बोली… समीर सुबह से कहाँ थे। बीच मे कब आये और कब चले गये पता ही नहीं चला। बडगाम मे
क्या हुआ? चाय पीते हुए मैने सारी कहानी सुनाने के बाद कहा… यह तो अनजाने मे दोनो के
बीच मे फूट पड़ गयी है। मै तो गोल्डन ट्रांस्पोर्ट कंपनी के मालिक अब्दुल रज्जाक सैयद
और अब्दुल लोन के बीच मे फूट डालना चाहता था। मै सोच रहा हूँ कि किसी तरह मुख्यमंत्री
को खबर पहुँचा दूँ कि इसके पीछे अब्दुल रज्जाक का हाथ है तो मुख्यमंत्री उसकी खाल खिंचवा
देगा। …समीर, मुख्यमंत्री को खबर करने का सबसे अच्छा तरीका अब्बू है। अगर उन तक यह
खबर पहुँच गयी तो वह तुरन्त मुख्यमंत्री को खबर कर देंगें। …उन तक कैसे इस बात को पहुँचाएँ।
मेरी बात सुन कर अबकी बार आलिया के चेहरे पर मुस्कान और आँखों मे चमक आ गयी थी। वह
कुछ बोलती तभी मैने कहा… अम्मी। उसने सिर्फ सिर हिला दिया था। …नहीं इस काम मे अम्मी
को मै नहीं डाल सकता। कोई और तरीका सोचना पड़ेगा।
हमने बात करते हुए खाना खाया और फिर बेडरुम मे चले गये थे। मैने फैक्स निकाल कर पढ़ना शुरु किया।
उसकी विकृत लाश अगले दिन सुबह मिली जब उसके कमरे की सफाई करने के लिए मस्जिद का चौकीदार
आया था। उसी ने बताया था कि किसी ने इमाम साहब को सुबह आते हुए नहीं देखा था। पिछली
शाम को कुछ कालेज के लड़के मिलने आये थे उसके बाद इमाम साहब घर चले गये थे। उनके घरवालो
ने बताया था कि वह रात को घर नहीं आये थे लेकिन ऐसा तो पहले भी कई बार हुआ था। इमाम
साहब ने किसके साथ रात बिताई थी इसका किसी को पता नहीं था। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट
का इंतजार है। बस इतना ही फैक्स मे लिखा हुआ था। जन्नत और मेरे बारे मे उस रिपोर्ट
मे कहीं कोई जिक्र नहीं था। इसका सिर्फ मुझे एक ही कारण लगा कि जन्नत के बारे मे न
बता कर वह बूढ़ा चौकीदार इमाम जुबैर की काली करतूत पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहा था।
…समीर, अब पढ़ना बन्द करो। मैने आलिया की ओर देखा तो वह मदभरी अंगड़ाई ले रही थी। उसका
रुप दिन प्रति दिन निखरता जा रहा था। उसका सीना और नितंब भी भारी
होने लगे थे। मैने फैक्स को पास रखे हुए स्टूल पर रख दिया और करवट लेकर आलिया को अपनी
बाँहों मे जकड़ कर कहा… आलिया आज तुम्हारी खैर नहीं। हमेशा की तरह कुछ ही देर में वह
मुझ पर हावी हो गयी थी।
सुबह के अखबार को पढ़ कर कल की सारी राजनीतिक
उठापटक की कहानी का पता चल गया था। जब तक मै तैयार होकर आफिस जाने के लिए बाहर निकला
तो आलिया ने मेरा रास्ता रोक कर एक कागज मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा… यह अब्बा का फोन नम्बर
है। अगर अम्मी को बीच मे नहीं डालना चाहते तो तुम कहो तो मै उन्हें खबर कर देती हूँ।
…नहीं आलिया। हम मे से कोई उनको खबर नहीं करेगा। तुमने यह नम्बर कहाँ से लिया है?
…शाहीन से। मैने उसे रात को इसके बारे मे बताया था तो उसने सुबह अपने अब्बा की डायरी
से यह नम्बर निकाल कर मुझे दे दिया था। मैने उसके हाथ से कागज लेकर अपनी जेब मे रखते
हुए कहा… आलिया आज मै शबनम से मिलने जा रहा हूँ। आलिया ने आँखें तरेरते हुए कहा… कोई
फालतू का वादा मत कर बैठना। तुम्हारी सारी जरुरतों के लिये मै हूँ। मैने उसके गाल पर
चिकौटी काट कर कहा… उस से मिलने की सिर्फ एक ही वजह है कि वह मुझे आज उन नामों की लिस्ट
दे रही है जिन बागों से सेब के साथ मुश्ताक डार ओवरबिलिंग करता है। तुम चलना चाहो तो
तुम भी चलो। आलिया एक पल के लिये कुछ कहने के लिये झिझकी फिर बोली… आज नहीं समीर, बस
उससे कोई झूठा वादा मत कर देना। वह बेचारी अच्छी लड़की है और मुझे लगता है कि वह तुम
पर मर मिटी है। …आलिया, मै जानता हूँ इसीलिये आज मिल कर उसकी सारी गलतफहमी दूर कर दूंगा।
आलिया को वहीं छोड़ कर मै शबनम से मिलने के लिये चल दिया।
शबनम अपने आफिस के नीचे उसी बस स्टैन्ड पर
मेरा इंतजार कर रही थी। मेरी जीप देखते ही वह सड़क पर आ गयी थी। जीप रुकते ही वह मेरे
साथ बैठ गयी थी। आज वह बेहद खुश लग रही थी। …शबनम, मेरी लिस्ट लायी हो। उसने बिना कुछ
बोले अपने पर्स से एक मुड़ा हुआ कागज मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा… समीर, मैने आज पहली बार
ऐसा काम किया है। अगर किसी को पता चल गया तो मेरा क्या होगा। …शबनम, अगर यह जरुरी नहीं
होता तो यह काम करने के लिये मै तुमसे कभी नहीं कहता। मैने जीप सड़क के किनारे पर रोक
कर खड़ी कर दी और उस कागज को खोल कर उस पर लिखे हुए नाम पढ़ने लगा। उस पर छ: नाम लिखे
हुए थे। उन सभी फ़ार्म्स के मालिकों मै जानता था। सभी समाज के बड़े घरानो से जुड़े हुए
थे। …आफिस मे क्या बोल कर आयी हो? शबनम ने सिर झुका कर कहा… आज मैने तबियत खराब होने
के कारण छुट्टी ली है। समीर, हम कहाँ जा रहे है? एक पल के लिये मै कुछ बोलते-बोलते
रुक गया क्योंकि आलिया की बात मुझे याद आ गयी थी। अपने आप को संभालते हुए मैने जीप
को आगे बढ़ाते हुए कहा… कहीं बैठ कर तुमसे बात करना चाहता हूँ। वह जल्दी से बोली… तो
चलो मै बताती कि कहाँ चले। …कहाँ? …तुम चलो, मै तुम्हें रास्ता बताती हूँ। यह बोल कर
वह मुझे रास्ता बताने लगी और मै उसके बताये हुए रास्ते पर चल दिया।
कुछ देर मे हम एक ऊँची पहाड़ी की चोटी पर पहुँच
गये थे। …यह कौनसी जगह है। …चलो तो सही। मै बताती हूँ। मैने जीप एक ओर खड़ी की और उसके
साथ चल दिया। मै पहली बार यहाँ आया था। वहाँ से सारा श्रीनगर शहर दिख रहा था। अचानक
मेरे कान मे घंटियों का शोर पड़ा और तभी सामने एक मन्दिर का द्वार दिखा तो मैने पूछा…
यह तुम कहाँ लेकर आ गयी। …यह शंकराचार्य का मंदिर है। …तो क्या तुम मुझे मंदिर लेकर
जा रही हो? …नहीं तुम चलो तो सही। इतना बोल कर वह आगे बढ़ गयी और मंदिर की दीवार के
साथ चलते हुए चट्टानों के बीच से निकल कर एक ऐसी जगह ले आयी जहाँ से पूरी वादी आँखों
के सामने थी। ठंडी हवा पूरे वेग से चल रही थी। संभल कर हुए चलते हुए वह एक चट्टान पर
बैठ कर बोली… यहाँ से देखो तो पूरी वादी हमारे सामने है। मै उसके साथ जाकर बैठ गया।
सच मे वहाँ से श्रीनगर का बेहद सुन्दर नजारा दिख रहा था। एक ओर डल झील और शिकारे दिख
रहे थे और दूसरी ओर शहर की असंख्य आबादी मेरे सामने थी। हजरत बल का गुम्बद और बिना
छ्त की जामिया मस्जिद भी हमारी आँखों के सामने थी। शबनम मेरे निकट आ गयी और मेरी बाँह
पकड़ कर मेरे कंधे पर सिर रख कर बोली… यह जगह कैसी लगी? मैने कोई जवाब नहीं दिया लेकिन
उसकी दिल की धड़कन को हर पल महसूस कर रहा था।
…शबनम। वह किसी और ही सोच मे गुम थी। एक बार फिर से मैने कहा… शबनम तुम मेरे बारे मे कितना जानती हो? वह एकाएक संभल कर बैठ कर बोली… तुम्हें बचपन से जानती हूँ। मै तुम्हारी बहन आफशाँ और अदा के साथ पढ़ती थी। …बस इतना ही या और कुछ और भी जानती हो? अबकी बार उसकी आँखों मे एक भय झलक रहा था। …तुम क्या कहना चाहते हो? …यही की मै जानता हूँ कि तुम्हारे मन मे क्या चल रहा है परन्तु मै चाहता हूँ कि आगे बढ़ने से पहले अच्छी तरह से सोच लो कि तुम्हारे लिये क्या अच्छा होगा। अब वह सजग होकर सुन रही थी। …यह सही है कि हमारे सेब के बाग है परन्तु तुम्हारे लिये यह जानना जरूरी है कि मै भारतीय फौज मे काम करता हूँ। एक साथ ही उसका चेहरा कुम्हला गया था। मैने उसके सामने अपना परिचय पत्र दिखाते हुए कहा… जिस ‘रेड बेरट’ की चर्चा यहाँ खूनी दरिंदों के नाम से होती है मै भी उनमे से एक हूँ। पता नहीं कब किस मुठभेड़ मे जिंदगी की शाम हो जाए मुझे पता नहीं लेकिन कुछ भी निर्णय लेने से पहले तुम ठंडे दिमाग से सोच लो। यह सच्चायी मै तुम पर कभी जाहिर न करता लेकिन तुम बेहद जहीन और अच्छी लड़की हो और मै नहीं चाहता कि तुम किसी मुगालते मे रहो। इतना बोल कर मै चुप हो गया और सामने वादी को निहारने लगा। वह कुछ देर चुप बैठी रही और फिर धीरे से बोली… अगर फिर भी मै तुमसे मिलना चाहूँगी तो तुम्हारा क्या जवाब होगा? अबकी बार मैने उसके कुम्हलाये हुए चेहरे को अपने हाथों मे लिया और उसकी आँखों देख कर मुस्कुरा कर कहा… फिर कौन अहमक होगा जो ऐसी खूबसूरती पर फिदा न हो जाएगा। मेरी बात सुन कर उसका चेहरा खिल उठा था। वह कुछ बोलने को हुई लेकिन मैने उसके होंठों पर उँगली रख कर कहा… आराम से ठंडे दिमाग से सोच कर जवाब देना। हमारी दोस्ती तो आज से शुरु हुई है। बस इतनी बात करके हम वापिस चल दिये थे। उसके घर के पास छोड़ते हुए एक बार फिर से मैने कहा… ठंडे दिमाग से सोच कर ही अपना जवाब देना। वह मुस्कुरा कर बोली… दिल है कि मानता नहीं। मैने सिर की ओर इशारा करते हुए कहा… लेकिन इस मामले मे दिमाग का इस्तेमाल करना। बस इतनी बात करके मै कोम्प्लेक्स की दिशा मे चल दिया था।
बहुत ही खूबसूरत अंक और समीर जहां एक छोटी सी चिंगारी लगाने की सोच रहा था वहां किसी एक के साम्राज्य जलने पर आ गई है। शबनम कुछ तो कहना चाहती है मगर शायद समीर का उससे दोस्ती करने की खुशी उसके ऊपर हाभी हो गई और यहां जन्नत और अस्मा तो कुछ और निकली।खैर उनका ऐसे अचानक से कहानी में आना और फिर गायब हो जाना कुछ दिमाग में खलल डाल रही है।
जवाब देंहटाएंमित्र हर किरदार का अपना महत्व होता है। आगे-आगे देखिये कि उनका इस कहानी मे क्या रोल है। शुक्रिया
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