काफ़िर-20
आलिया मेरा इंतजार कर रही थी। मुझे देखते ही
वह बोली… कैसी मुलाकात रही? मैने उसे सारी बात से अवगत करा कर कहा… यह लिस्ट दी है।
एक क्रम से नाम लिखे हुए थे…सैयद फार्म्स, काजी फार्म्स, कचरु फार्म्स, अबदुल्लाह फार्म्स,
सेन्चुरी फार्म्स और पेराडाइज फार्म्स। …समीर, हमारे फार्म को मिला कर कुल सात नाम
है। अब आगे क्या करोगे? कुछ सोच कर मैने कहा… अब बाकी का काम तुम्हे करना है। हमको
यह तो पता है कि सभी फार्म्स की बिलिंग बैंक के जरिये से होती है। अब तुम्हें यह पता
करना है कि इन सब फार्म्स के अकाउन्ट कौन से बैंको मे है। …यह कैसे पता चलेगा? धीरे
से उसके गाल को सहला कर मैने कहा… इस छोटे से सिर मे एक महत्वपूर्ण हिस्सा दिमाग कहलाता
है। उसका इस्तेमाल करो। इन सब फार्म्स के फोन नम्बर इकठ्ठे करो फिर कभी डार के आफिस
की ओर से और कभी लोन के आफिस की ओर से कभी गोल्डन ट्रांसपोर्ट के आफिस की ओर से पूछना
कि आपका पेमेंट रिलीज किया था लेकिन आपके बैंक द्वारा हमे पेमेन्ट की स्वीकृती नहीं
मिली है। कृपया एक बार अपना बैंक अकाउन्ट, बैंक का नाम और बैंक का कोड वेरीफाई कर दिजिए।
यह इलेक्ट्रानिक पेमेन्ट्स के लिये आम कार्यवाही है। अभी तक यह लोग जिस टेक्नोलोजी
का फायदा उठा रहे थे अब वही टेक्नोलोजी के कारण यह सभी जेल जाएँगें। आलिया ने खुश होकर
मुझे चूमते हुए कहा… समीर, थैंक यू। मै अभी से काम पर लग जाती हूँ। उसने अपना फोन उठाया
और काम पर लग गयी थी।
आलिया को वहीं छोड़ कर जीप लेकर मै कोम्प्लेक्स
से बाहर निकल गया था। दोपहर को ट्रेफिक भी कम था। डल लेक को पार करके खीरभवानी माता
के मंदिर से जैसे ही आगे निकला मेरी नजर युनीवर्सिटी के गेट के पास एक पीसीओ की दुकान पर पड़ी तो मै जीप
रोक कर उसकी ओर चल दिया। मैने बूथ मे जाकर एक नम्बर मिलाया तो कुछ देर घंटी बजती रही
फिर किसी महिला की सुरीली आवाज मेरे कान मे पड़ी… हैलो। …मुश्ताक डार से बात कराओ।
…ठहरिए। एक मिनट के बाद भारी आवाज मेरे कान मे गूँजी… मुश्ताक बोल रहा हूँ। …मुश्ताक
मेरी बात ध्यान से सुन। एक खबर दे रहा हूँ। मुख्यमंत्री और लोन के बीच जो कुछ भी हुआ
है वह रज्जाक और जमात का चलाया हुआ चक्कर है। पिछली बार लोन ने रज्जाक का माल जम्मू
मे पकड़वाया था इसीलिए लोन से बदला लेने के लिए रज्जाक और जमात की ओर से मकबूल बट ने
मिल कर लोन का माल पकड़वाने की यह साजिश रची थी। …आप कौन बोल रहे है जनाब? …मै एजाज
चौधरी बोल रहा हूँ। इस काम के लिए मै आज ही सीमा पार से आया हूँ। यह खबर अब्दुल लोन
तक पहुँचाना अब तुम्हारी जिम्मेदारी है। इतनी बात करके मैने फोन काट दिया था।
मैने अबकी बार अब्बा का नम्बर मिलाया तो तुरन्त
उनकी आवाज मे कान मे पड़ी… हैलो। …मकबूल बट मै जम्मू से हाजी जुबैर का भाई इकबाल बोल
रहा हूँ। मेरी बात ध्यान से सुन। एक खबर दे रहा हूँ। मुख्यमंत्री और लोन के बीच जो
कुछ भी हुआ है वह रज्जाक और डार का चलाया हुआ चक्कर है। पिछली बार लोन ने रज्जाक का
माल जम्मू मे पकड़वाया था इसीलिए लोन और जमात से बदला लेने के लिए रज्जाक और डार ने
मिल कर लोन का माल पकड़वाने की यह साजिश रची थी। इन्हीं दोनो ने मेरे भाई को भी मरवा
दिया क्योंकि रज्जाक पैसे लेकर माल डिलिवर नहीं कर पा रहा था। अब यह तेरी जिम्मेदारी
है कि इस साजिश का मुख्यमंत्री को पता चल जाए। खुदा हाफिज़। मैने फोन काट दिया था।
मैने अपना काम कर दिया था। वहाँ से मै अम्मी
के पास चला गया था। अम्मी मुझे बाहर लान मे बैठी हुई मिल गयी थी। वह सिर झुकाये किसी
गहरी सोच मे डूबी हुई थी। मुझे आते हुए देख कर वह चौंक गयी थी। …क्यों समीर आज क्या
छुट्टी है? …क्यों अम्मी? …तू वर्दी मे नहीं है। मैने हँस कर कहा… आज बाहर का काम था
इसीलिये वर्दी नहीं पहनी थी। आप यहाँ बैठी किस सोच मे डूबी हुई है? वह चुप रही तो मै
समझ गया कि जरुर अब्बा ही उनकी चिन्ता के पीछे है। …समीर, आज सुबह तेरे अब्बा जबरदस्ती
तीन लाख रुपये लेकर गये है। पता नहीं वह यह पैसे किस पर लुटा रहे है। मै समझ गया कि
मकबूल बट अपने इस खेल मे बुरी तरह उलझ गया है तो बात बदलने के लिये मैने कहा… अम्मी,
आप सैयद फार्म्स वालों को जानती हो क्या? वह चौंक कर तुरन्त बोली… क्यों क्या हुआ?
…कुछ नहीं अम्मी। कल एक रेड मे उनका नाम आया था इसलिये पूछ रहा था। अम्मी के चेहरे
पर से चिन्ता के बादल एकाएक छँट गये और वह बोली… यह सैयद नहीं सईद है। सईद साहब की
अपनी राजनीतिक पार्टी है। उनका बड़ा रसूख वाला परिवार है। उनकी बेटी रुखसार उनके सारे
सेब के बागानों का काम संभालती है। दामाद तो हर दम नेतागिरी मे व्यस्त रहता है। आजकल
वह उनकी पार्टी का विधायक है। तब तक रहमत कुछ खाने का सामान मेज पर रख कर वापिस चला
गया था। मैने जल्दी से कहा… अम्मी आपने नाश्ता अभी तक नहीं किया? …समीर, सुबह काजी
साहब की बीवी आ गयी थी इसीलिये नाश्ते मे देर हो गयी।
…अम्मी, मैने आज लोन साहब के आफिस मे काजी
फार्म्स के इकबाल काजी को देखा था। …अच्छा, वह वहाँ क्या करने आया था? …मुझे क्या पता।
पेमेन्ट के लिये आया होगा। अबकी बार अम्मी ने कुछ सोचते हुए कहा… मुझे नहीं लगता कि
लोन साहब का काजी परिवार के साथ कोई ताल्लुक हो सकता है। तुझे कोई गलतफहमी हुई है।
वह इकबाल काजी नहीं हो सकता। …क्यों अम्मी? …अरे दोनो परिवार एक दूसरे के जानी दुश्मन
है। शफीकुर लोन ने काजी की बेटी को बर्गला कर उसका निकाह अपने एक कर्मचारी से करवा
दिया था। उसी दिन से इनके बीच मे दुश्मनी चली आ रही है। मैने बीच मे टोकते हुए कहा…
अम्मी यह प्यार-मोहब्बत की दुश्मनी ज्यादा दिन नहीं खिंच पाती। कुछ दिन बाद सब सामान्य
हो जाता है। …ओह, पहले तो आलिया ही ऐसी बात करती थी अब तू भी करने लगा। बेटा यह प्यार
मोहब्बत का चक्कर नहीं था। काजी के होटलों का काम उसकी बेटी सबीहा के नाम पर चल रहा
था। सबीहा के साथ अपने कर्मचारी का निकाह करा कर शफीकुर लोन ने उसके सारे होटलों को
अपने कब्जे मे कर लिया था। यह दुश्मनी और भी बढ़ गयी थी जब सबीहा की अचानक कार दुर्घटना
मे मौत हो गयी थी। एक पल के लिये मै अपनी अम्मी का चेहरा हैरानी से ताकता रह गया था।
न जाने उनके सीने मे कितने राज दफन है कोई नहीं जानता था। अम्मी ने मेरी ओर देख कर
कहा… क्या हुआ समीर, खाते-खाते रुक क्यों गया? …कुछ नहीं अम्मी। मैने मुस्कुरा कर कहा…
तुम तो यहाँ की चलती फिरती एन्साइक्लोपिडिया हो। भला तुमसे किसी की बात छिपी हुई है।
कुछ देर के बाद जब अम्मी अपना नाश्ता समाप्त
कर चुकी थी तो मैने पूछा… और कचरू, अबदुल्लाह और सेन्चुरी फार्म्स की क्या कहानी है।
मैने नोट किया कि अम्मी आचानक सावधान हो गयी थी। वह उठ कर जाने लगी तो मैने रोकते हुए
पूछ लिया… क्यों अम्मी, क्या इन लोगों की भी कोई कहानी है जो आप मुझसे छिपा रही है।
कचरु फार्म्स के मालिक तो वही है न जो अब्बा की जमात-ए-इस्लामी के अभी तक मुखिया थे।
अम्मी ने चलते हुए कहा… समीर तू इनके चक्कर मे मत पड़। मुझे लगता है कि आलिया को बाग
के काम मे डाल कर मैने गलती कर दी है। यह चुहिया न जाने कहाँ से खोद-खोद कर चीजें ला
रही है कि मुझे अब उसकी चिन्ता होने लगी है। इतना बोल कर वह अपने कमरे मे चली गयी थी।
मैने उनको जाता हुआ देख कर सोचने लगा कि कहीं ऐसा न हो कि मैने अनजाने मे आलिया और
शबनम को किसी मुसीबत मे डाल दिया है। यह सभी बेहद खतरनाक लोग है। वहाँ से लौट कर मै
सीधे कोम्पलेक्स मे पहुँच कर आलिया से कहा… इस रास्ते पर बड़ी सावधानी से कदम उठाना
पड़ेगा। शबनम को भी इस बात के लिये आगाह कर देना कि वह भी सावधान रहे। हल्का सा भी खतरा
लगे तो वह तुरन्त फोन पर खबर कर दे। आलिया ने हँसते हुए एक कागज हवा मे हिलाते हुए
कहा… सब के अकाउन्ट नम्बर और बैंक की जानकारी निकाल ली है। कुछ पल के लिये मेरी जुबान
मे ताला पड़ गया था। …समीर, सभी फार्म्स का अकाउन्ट जम्मू और कश्मीर बैंक मे है। मैने
अपना काम कर दिया है अब आगे क्या करना है। मैने उसके हाथ से फोन छीन कर उसका सिम कार्ड
निकाल कर कहा… सबसे पहले तुम्हें नया सिम कार्ड लेना पड़ेगा। …मेरे फोन नम्बरों का क्या
होगा? …मै सभी नम्बर निकाल कर तुम्हें दे दूँगा लेकिन अब इस फोन नम्बर का तुम फिर कभी
इस्तेमाल नहीं करोगी।
अगले कुछ दिन स्थिति सामान्य रही थी। अभी तक
मेरे फोन का असर नहीं दिखा था। सत्ता और विपक्ष के बीच वाकयुद्ध अखबारों के माध्यम
से पता चल रहा था परन्तु इसके बाद भी कोई पुख्ता कार्यवाही नहीं हो रही थी। सुबह अम्मी
ने फोन करके बताया था कि आज अब्दुल लोन के आफिस मे पिछले पेमेन्ट के तकाजें के लिए
जाना होगा। ब्रिगेडियर चीमा के साथ मेरी साप्ताहिक मीटिंग होने के कारण यह तय हुआ कि
मै आलिया को उसके आफिस के बाहर छोड़ कर वापिस आ जाऊँगा और वह काम समाप्त करके अम्मी
के पास चली जाएगी। आलिया को लोन के आफिस के बाहर छोड़ कर मै वापिस आ गया था। हमारी साप्ताहिक
मीटिंग पूरे सप्ताह के काम की समीक्षा और आगे की रणनीति के लिए होती थी। मुझे कश्मीर
मे अराजकता के नेटवर्क के बारे मे काफी कुछ पता चल चुका था। अब आगे क्या करना चाहिए
इसके बारे मे काफी देर तक चर्चा होती रही थी। …मेजर, अभी तक कोई नतीजा सामने नहीं आया
है। बस आरोप और प्रत्यारोप का दौर जारी है। अब आगे क्या करने की सोच रहे हो? मै कुछ
बोलता कि तभी फोन की घंटी बज उठी थी। ब्रिगेडियर चीमा ने कुछ मिनट बात की और फिर फोन
काट कर चिन्तित स्वर मे बोले… गोल्डन ट्रांस्पोर्ट के मालिक अब्दुल रज्जाक की हत्या
हो गयी है। मै भी एक पल के लिए चौंक गया था। …कैसे? …पता नहीं। इंटेल जानकारी लेने
मे जुटा हुआ है। मुझे जनरल ने बुलाया है। हम बाद मे बात करेंगें। इसके साथ ही हमारी
मीटिंग समाप्त हो गयी थी।
बहुत खोजने बाद भी मुझे अभी तक जम्मू और कश्मीर
बैंक मे कोई जानकार नहीं मिल सका था। उन अकाउन्ट्स की जानकारी कोई बैंक का कर्मचारी
ही दे सकता था। इसी उहापोह के बीच रज्जाक की हत्या हो गयी थी। ब्रिगेडियर चीमा के आफिस
से निकल कर मै बाहर आकर सड़क पर टहलते हुए सोच रहा था कि क्या मेरे फोन के कारण उसकी
हत्या हो गयी थी? अब्दुल रज्जाक कोई आम नागरिक नहीं था। वह अलगावादियों मे एक जाना
माना नाम था। कश्मीर की राजनीति मे भी उसकी अच्छी पकड़ थी। तो भला उसकी हत्या कौन कर
सकता है? मुझे नहीं लग रहा था कि मुख्यमंत्री या लोन ने उसकी हत्या करवाई होगी क्योंकि
वह दोनो ही अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को ठिकाने लगाने के लिए समय-समय पर अलगावादियों
से मदद लिया करते थे। अब्दुल रज्जाक की भुमिका ऐसे काले कारनामों मे काफी महत्वपूर्ण
होती थी तो क्या उसकी हत्या के पीछे जमात का हाथ है? एकाएक मुझे अब्बा का ख्याल आते
ही बिना देर किये मै अपने घर की ओर चल दिया। अब तक एक बात साफ हो चुकी थी कि अब्बा
जमात-ए-इस्लामी के महत्वपूर्ण नेता होने के साथ ही हिजबुल मुजाहीदीन के मुख्य फाईनेन्सर
भी थे और उनके इशारे पर हिजबुल के जिहादी रज्जाक की हत्या कर सकते थे।
मुझे आर्मी की युनीफार्म मे देख कर अम्मी ने
चौंकते हुए कहा… समीर क्या हुआ? …अम्मी, आलिया कहाँ है? अम्मी ने आश्चर्यचकित हो कर
कहा… समीर क्या हो गया तुम्हे। आलिया तो तुम्हारे साथ थी। मैने जल्दी से अम्मी को बताया
कि मैने उसे लोन के आफिस के बाहर छोड़ते हुए कह दिया था कि वह काम समाप्त करके सीधी
यहाँ आ जाए। …तो वह आ जाएगी। तू इतना फिक्रमन्द क्यों हो? …अम्मी, आज सुबह अब्दुल रज्जाक
की हत्या हो गयी है। मुझे शक है कि इस हत्या के पीछे अब्बा का हाथ है। अगर यह बात सही
हुई तो आलिया और आपके लिए खतरा बढ़ जाएगा। अम्मी थोड़ी विचलित हो कर बोली… क्या अब्दुल
रज्जाक की हत्या हो गयी है! …जी अम्मी लेकिन अब्बा इस वक्त कहाँ है? …मेरी जानकारी
के हिसाब से वह यहीं है। …मुझे उनसे मिलना है। …नहीं समीर। ऐसा हर्गिज मत करना। …अम्मी
आप समझने की कोशिश कीजिए। अगर उसकी हत्या मे उनका हाथ होगा तो
मै आप दोनो को यहाँ नहीं रहने दूँगा। …नहीं समीर। रज्जाक तुम्हारे अब्बा के पुराने
दोस्त थे। वह ऐसा हर्गिज नहीं कर सकते। तुम बेवजह उन पर शक कर रहे हो। हम बात कर रहे
थे कि तभी आलिया की आवाज गूँजी… समीर तुम जल्दी कैसे आ गये? …आज सुबह अब्दुल रज्जाक
की हत्या हो गयी है। …ओह। यह खबर सुन कर आलिया भी सोच मे डूब गयी थी।
हम शाम तक घर पर रहे थे। अम्मी मानने को तैयार
नहीं थी कि रज्जाक की हत्या मे अब्बा का हाथ हो सकता है। हम बात कर रहे थे कि तभी अम्मी
ने कहा… लोन के पेमेन्ट का क्या हुआ? आलिया ने गरदन हिलाते हुए कहा… अभी कुछ पैसे की
तंगी चल रही है। एक दो दिन मे पेमेन्ट मिल जाएगा। …वह हमेशा इसी प्रकार पेमेन्ट करने
मे देर करते है। मै सुहेल से पूछ कर देखती हूँ कि आखिर पैसों की तंगी है या फिर वह
लोग टहला रहे है। आलिया ने तुरन्त पूछा… अम्मी यह सुहेल कौन है? …अपने पड़ोसी काजमी
साहब। वह आजकल गंदरबल मे बैंक मैनेजर है। …कौने से बैंक मे? …जम्मू और कश्मीर बैंक।
पहले वह यहीं निशात बाग की ब्रांच मे थे अभी हाल मे ही उनका ट्रांस्फर वहाँ हो गया
है। यह सुन कर मैने आलिया की ओर देखा तो मेरी ओर देख रही थी। हमारी निगाह मिली तो उसके
चेहरे पर एक मुस्कान तैर गयी थी।
रात को खाना खाने के बाद हम दोनो कोम्प्लेक्स
जा रहे थे कि अचानक आलिया ने कहा… समीर, यह काजमी साहब बड़े दिलफेंक आदमी है। …तुम्हें
कैसे पता? वह सिर झुका कर बैठ गयी और फिर कुछ देर के बाद मेरी ओर देख कर बोली… शाहीन
और मुझ पर वह बुरी तरह फिदा था। मैने जीप चलाते हुए उसकी ओर घूर कर देखा तो वह सिर
झुका कर बोली… समीर, मुझे नहीं पता था कि वह बैंक मे काम करता है। अचानक आलिया का अतीत
उसके सामने आ गया था। आत्मग्लानि मे डूबी आलिया एक बार फिर से सिर झुका कर बैठ गयी
थी। …समीर, क्या मुझसे नाराज हो? मैने जल्दी से उसका हाथ अपने हाथ मे लेकर कहा… पगली,
यह कारण नहीं है। मै चाहता हूँ कि तुम्हारे जहन से वह सब पुरानी बातें हमेशा के लिये
निकल जानी चाहिए। उसने झिझकते हुए मेरी ओर देखा तो मैने मुस्कुरा कर कहा… तुम्हारे
सुहेल अंकल को सबक सिखाने का समय आ गया है। आलिया ने मुझ पर प्रश्नवाचक दृष्टि डाली
परन्तु तब तक मेरी आँखें सड़क पर केन्द्रित हो गयी थी लेकिन सुहेल काजमी के लिये मेरे
दिमाग मे एक योजना जन्म ले चुकी थी।
अगले दिन सुबह आफिस पहुँच कर शाहीन का नम्बर
मिलाया उसकी आवाज सुनते ही… हैलो, शाहीन क्या हम बात कर सकते है? …समीर, मै थोड़ी देर
मे फोन करती हूँ। इतनी बात करके मैने फोन काट दिया था। शाहीन का फोन एक घंटे के बाद
आ गया था। …समीर। …शाहीन क्या एक दिन के लिये तुम घर से निकल सकती हो? …पता नहीं। आजकल
घर के हालात वैसे ही बहुत नाजुक हो गये हैं। भाईजान गायब हो गये है और पुलिस अब्बा
को उस जामिया मस्जिद के ब्लास्ट के कारण रोजाना परेशान करने आ जाती है। …तुम कहो तो
मै और आलिया तुम्हारे घर पर आकर उनसे बात कर लेते है? कुछ सोच कर शाहीन ने कहा… अब्बा
दोपहर को दो दिन के लिये बाहर जा रहे है। तुम और आलिया शाम को अम्मी से बात करोगे तो
वह शायद मुझे तुम्हारे साथ जाने की मंजूरी दे देंगी। …ठीक है। हम दोनो शाम को तुम्हारे
घर आ रहे है। अपनी अम्मी को बता देना। इतनी बात करके मैने फोन काट दिया था। आफिस से
घर लौट कर मैने आलिया को सारी बात बता कर कहा… आज शाम को शाहीन के घर चलना है। उसने
मुझसे कुछ नहीं पूछा बस सिर हिला दिया था।
शाम को शाहीन के घर की ओर जाते हुए आलिया ने
बताया… समीर, कल मै नीलोफर लोन से मिली थी। वह कश्मीर मे लड़कियों के लिए एक समाज सेवी
संस्था चला रही है। वह मुझे भी उसकी संस्था से जुड़ने के लिये कह रही थी। नीलोफर का
नाम आते ही मै सावधान हो गया था। …उसने बताया कि उसकी संस्था क्या काम करती है? …कुछ
खास नहीं। बस इतना कहा कि एक बार मुझे उसके केन्द्र को देखना चाहिये। ऐसे ही बात करते
हुए हम शाहीन के घर पहुँच गये थे। आज उसके घर के बाहर पहले जैसी भीड़भाड़ नहीं थी। सब
कुछ शांत दिख रहा था। मै और आलिया घर के अन्दर चले गये थे। बाहर की बैठक भी सुनसान
पड़ी हुई थी। …शाहीन। मैने जैसे ही आवाज लगायी तो एक पर्दानशीं लड़की बाहर निकली और जल्दी
से बोली… अन्दर बैठक मे चले जाईये। मै और आलिया उसी छोटी बैठक की ओर बढ़ गये थे। शाहीन
और उसकी अम्मी तख्त पर बैठी हुई थी। हम दोनो ने उन्हें सलाम किया और उनके सामने पड़े
हुए सोफे पर बैठ गये। …बेटा इसने मुझे बताया था कि आप दोनो शाम को मिलने आने वाले है।
तभी वह लड़की जिसने हमे अन्दर भेजा था वह भी वहीं एक किनारे मे आकर खड़ी हो गयी थी।
…देखिये कल इन दोनो लड़कियों को किसी की शिनाख्त करनी है। इन दोनो को अपने साथ ले जाना
चाहता हूँ। शाहीन की अम्मी बोली… बेटा हमारे उपर तो मुसीबतों का पहाड़ टूट कर गिरा है।
इसके अब्बा भी इधर-उधर भाग रहे है। यही अच्छा होगा कि तुम इसे अपने साथ ले जाओ। यहाँ
पर रोज ही कभी पुलिस वाले आ धमकते है और कभी पार्टी वाले इसके भाई के बारे मे पूछने
के लिये आ जाते है। मैने जल्दी से कहा… इमाम साहब को तो कोई ऐतराज नहीं होगा? …बेटा,
वह अपनी ही मुश्किलों मे घिरे हुए है। मै उन्हें समझा दूँगी। तुम इसे अपने साथ ले जाओ।
थोड़ी देर के बाद शाहीन को लेकर हम दोनो वापिस कोम्पलेक्स की ओर जा रहे थे।
घर से दूर होते ही शाहीन चहकते हुए बोली… समीर,
सुबह उठते ही मैने हंगामा सुना तो मै समझ गयी थी कि यह सब तुमने किया होगा। मैने आलिया
से बात की तो उसने बताया कि कैसे रात को तुम उसे लेकर मस्जिद चले गये थे। वहाँ क्या
बहुत सारा असला बारुद जमा कर रखा था? …आलिया से ही पूछ लो। न जाने कितने सारे लोगों
की मौत का इंतजाम तुम्हारे भाईजान ने किया था। …समीर, मैने अब्बा से सुना था कि भाईजान
ने 15 कोर के हेडक्वार्टर्स को उड़ाने के लिये सारा इंतजाम किया था। इस रहस्योद्घाटन
ने मुझे हिला दिया था। मैने दोनो पर नजर डाल कर कहा… तुम दोनो अभी 15वीं कोर के हेडक्वार्टर्स
जा रही हो। सोचो कितनी बड़ी तबाही होने से बच गयी। मेरी सुरक्षा टीम साथ होने के कारण
हम लोग कश्मीरी मे बात कर रहे थे। कुछ ही देर मे मेरी सुरक्षा टीम हमे फ्लैट के बाहर
छोड़ कर वापिस चली गयी थी।
अपने फ्लैट पर पहुँच कर मैने उनको अपनी योजना
से अवगत कराया और फिर हम अपनी योजना को कार्यान्वित करने मे जुट गये थे। देर रात तक
सारा काम समाप्त करके बहुत दिनों के बाद हम तीनो मिल रहे थे तो बेडरुम
मे उधम मचना तो तय था। अगली सुबह हम तीनों मेरी आफिस की जीप और सुरक्षाकर्मियों
को लेकर गंदरबल की ओर चले गये थे। ग्यारह बजे तक हम जम्मू और कश्मीर बैंक के बाहर पहुँच
गये थे। बैंक मे काफी भीड़ थी। दो सुरक्षाकर्मियों और दोनो लड़कियों को काजमी के केबिन
के बाहर छोड़ कर मै सीधा काजमी के केबिन मे चला गया था। स्पेशल फोर्सेज और दो लड़कियों
को देख कर बैंक मे हड़कंप सा मच गया था। सबकी नजरें काजमी के केबिन पर टिक गयी थी। काजमी
के केबिन मे घुसते ही काजमी हड़बड़ा कर सीट छोड़ कर खड़ा हो गया था। अधेड़ उम्र के काजमी
के चेहरे पर तनाव साफ दिख रहा था। वह धीरे से बड़बड़ाया… जनाब, बताईये मै आपके लिये क्या
कर सकता हूँ। …सुहेल काजमी। उसने जल्दी से अपना सिर हिला दिया था।
मैने उसको घूरते हुए कहा… बैठ जाईये। एक केस
के सिलसिले मे आपसे पूछ्ताछ करनी है। वह धम्म से अपनी कुर्सी पर बैठ गया था। मैने उस
पर एक भरपूर नजर डाल कर जेब से छोटा सा रिकार्डर निकाल कर मेज पर रखते हुए कहा… स्कूल
की लड़कियों वाले केस की पूछताछ मे दो लड़कियों का बयान आपको सुनवा रहा हूँ। आप एक बार
सुन लिजीये फिर आगे बात करेंगें। मैने रिकार्डर का बटन दबा कर चालू कर दिया। पहले आलिया
ने अपने जिस्मानी शोषण का वर्णन किया और फिर उस अधेड़ आदमी के बारे मे बताते हुए कुछ
खास पहचान बता कर वह चुप हो गयी थी। उसके बाद शाहीन ने अपने प्राकृतिक और अप्राकृतिक
जिस्मानी शोषण का वर्णन किया। उसने भी उस आदमी का भी वही विवरण दिया था। जब सारी रिकार्डिंग
समाप्त हो गयी तो मैने सुहेल काजमी से कहा… क्या यह दोनो लड़कियाँ आपके बारे मे बता
रही थी? सुहेल काजमी का चेहरा उसकी हालत बयान कर रहा था।
वह रुआँसी आवाज मे बोला… जनाब शायद आपको कोई
गलतफहमी हो गयी है। …कैसी गलतफहमी काजमी साहब। आपकी शिनाख्त करने के लिये दोनो लड़कियाँ
यहाँ आयी है। सारी गलतफहमियाँ पल भर मे दूर हो जाएँगी। काजमी के चेहरे पर उसकी काली
करतूत की परछांई साफ दिख रही थी। …अगर उन दोनो लड़कियों ने आपकी पहचान कर ली तो नाबालिग
लड़कियों के शोषण का जुर्म मे जेल मे चक्की पीसना। वह झटके से उठा और तुरन्त जमीन पर
बैठ कर मेरे पाँव पकड़ कर गिड़गिड़ाने लगा… खुदा के लिये उन्हें अन्दर मत बुलाईये। मुझे
बक्श दिजीये। मै बर्बाद हो जाऊँगा मेजर साहब। मुझ पर नहीं तो मेरे परिवार पर रहम खाईये।
वह मेरे पाँव पकड़ कर पागलों की तरह रोता रहा तो मैने उसे कन्धे से पकड़ कर उठाते हुए
कहा… काजमी साहब पहले उठ कर अपनी कुर्सी पर बैठ जाईये। मैने उसे जबरदस्ती कुर्सी पर
बिठा कर कहा… तो यह सही कि वह आपके बारे मे बोल रही है? उसने कोई जवाब नहीं दिया बस
अपनी निगाहें झुका कर बैठा रहा। मैने अपनी आवाज नर्म करके कहा… आप क्या चाहते है। उसने
जल्दी से कहा… मेरे मालिक बस आप मुझे इस मुसीबत से किसी तरह से निजात दिला दें। यह
बन्दा आपका सारी जिंदगी गुलाम रहेगा।
मैने एक कागज उसके सामने रख कर कहा… इस मुसीबत
से निजात मिल सकती है लेकिन मुझे इन सारे अकाउन्टस की पिछले तीन साल की डिटेल चाहिए।
उस कागज पर उन सभी सातों फार्म्स के नाम और अकाउन्ट नम्बर लिखे हुए थे। उसने कुछ नहीं
पूछा बस वह अपने कंप्युटर पर जुट गया था। उसके प्रिंटर की आवाज कमरे मे गूँजने लगी।
मुश्किल से आधे घंटे मे सातों अकाउन्ट्स का लेखाजोखा कागज पर छप कर मेरे सामने रखा
हुआ था। अभी भी वह मुझसे आँख नहीं मिला पा रहा था। …काजमी साहब। उसने निगाहें उठा कर
देखा तो मैने रिकार्डर मे से छोटी सी कैसेट निकाल कर उसके सामने रखते हुए कहा… यह उन
लड़कियों का बयान है। आपको जो ठीक लगता है इस कैसेट के साथ वही किजीये। कैसेट वहीं छोड़
कर कागजों का सेट लेकर मै कमरे से बाहर निकल आया था। कुछ ही देर मे हम वापिस श्रीनगर
की ओर जा रहे थे। मेरी नजरें कागज पर छ्पे हुए अंकों को पढ़ने मे जुट गयी थी।
घर पर बैठ कर मैने बट फार्म्स के साथ बाकी
सभी छ: फार्म्स का तीन साल का लेखाजोखा देख कर सारी नगद पैसे निकालने की एंट्री जोड़नी
आरंभ कर दी। कुछ ही देर मे तीन साल की सारी नगदी के निकासी का जोड़ कुल मिला कर 138
करोड़ रुपये बना था। आलिया और शाहीन को दिखाते हुए मैने कहा… पिछले तीन साल मे लगभग
सेब के व्यापार से 138 करोड़ रुपये पत्थरबाजी और अन्य अवैध अलगाववादी कामों के लिये
खर्च किये गये है। आलिया ने कुछ सोचते हुए कहा… समीर, इनमे से कुछ नगद पैसा तो उन्होंने
मजदूरी और सामान के लिये भी खर्च किया होगा। …हाँ तुम सही कह रही हो लेकिन अब उन्हें
अपने सारे नगद खर्चों का हिसाब किताब तो देना पड़ेगा। मेरे लिये आप्रेशन आघात का फेस-1
अब लगभग पूरा हो गया था।
अगले दिन मै अपने आफिस मे बैठ कर एक बार फिर
से हर अकाउन्ट की हरेक नगद एन्ट्री को क्रासचेक कर रहा था। ब्रिगेडियर चीमा ने फौरन
मुझे आने के लिए कहा तो मै सारे कागज लेकर उनके आफिस मे चला गया था। जब मैने उनके आफिस
मे प्रवेश किया तो वहाँ पर ब्रिगेडियर चीमा के साथ वीके, रंधावा और अजीत पहले से ही
बैठे हुए थे। अभिवादन करके मै उनके सामने बैठ गया। सबसे पहले वीके ने कहा… मेजर, हमने
सुना है कि तुमने यहाँ पर स्थापित अराजकता के नेटवर्क के फाईनेन्स की ट्रेल का पता
लगा लिया है। …जी सर, वह ट्रेल मेरे सामने है। सेब व्यापार से जुड़े हुए चार मुख्य व्यापारी
मुश्ताक डार, गुलाम नबी बट, मुजफ्फर हुसैन और शफीकुर गनी लोन है। उनके मुख्य सात सप्लायर
बट फार्म्स, सैयद फार्म्स, काजी फार्म्स, कचरु फार्म्स, अबदुल्लाह फार्म्स, सेन्चुरी
फार्म्स और पेराडाइज फार्म्स है जिनके पास ओवरबिलिंग के पैसे पहुँचते है जिसको बाद
मे जमात मौलाना, मौलवियों और छात्र परिषद के नेताओं के पास पहुँचा देते है। उस पैसे
से स्कूल के बच्चों और बच्चियों से पत्थरबाजी करने के लिये देते है। हर लड़के को पाँच
सौ रुपये और लड़की को दो सौ रुपये इस काम के मिलते है। पिछले तीन सालों मे उन सात फार्म्स
ने 138 करोड़ रुपये कैश निकाले है। मेरे पास इसका सुबूत है और अब जब यह पैसों की ट्रेल
खुल कर सामने आ गयी है तो अब यहाँ से आगे की कार्यवाही आपको सोचनी है। मेरी ओर से आप्रेशन
आघात का पहला फेस पूरा हो गया है। मैने सभी फार्म्स के अकाउन्ट्स का विवरण व पुरानी
रिपोर्ट्स उनके सामने रखते हुए कहा… मकबूल बट फाईनेन्सर का काम करता है। एक पल के लिये
चारों ने मेरी ओर देखा और फिर मेज पर रखे हुए कागज उठाकर देखने बैठ गये।
कुछ देर चारों बैठ कर माथापच्ची करते रहे फिर
अजीत ने कहा… वीके, मेरे ख्याल से आर्थिक मसला है तो इनकम टैक्स
और एन्फोर्समेन्ट को इनके पीछे लगवा देना चाहिए। यह उनके अधिकार क्षेत्र मे आता है।
उनके पास इनके सारे बैंक अकाउन्ट को सील करने का अधिकार है। जनरल रंधावा ने मना करते
हुए कहा… अजीत, इसमे समय लगेगा। क्यों न इनमे से हरेक आदमी को एक-एक करके दोजख भेज
दें। वीके ने तुरन्त कहा… इससे क्या होगा क्योंकि एक आदमी के
मरने से व्यापार तो चलता रहेगा। बैंक अकाउन्ट सील हो गये तो पैसों की आवक-जावक पर रोक
लग जाएगी। इन हालात मे अजीत का सुझाव बेहतर है। ब्रिगेडियर चीमा ने भी इसी प्रस्ताव
का समर्थन करते हुए कहा… कुछ भी करने से पहले यह जान लेना चाहिये कि इस राज्य के विशेष
दर्जे के कारण बहुत से भारत के कानून यहाँ लागू नहीं होते। अजीत ने तुरन्त कहा… यह
सही है परन्तु सभी केन्द्रीय वित्तीय कानून यहाँ पर लागू है। आयकर ही एक ऐसा कानून
है जिसके जरिये हम इन सबके उपर अंकुश लगा सकते है। अबकी बार सबने एक मत से अजीत सर
की बात का समर्थन कर दिया था।
ब्रिगेडियर चीमा ने कुछ सोच कर कहा… मेजर,
आप्रेशन आघात का दूसरा फेस उस बड़े खेल का है जिसको हक डाक्ट्रीन के नाम से जानते है।
मैने सिर हिलाते हुए कहा… आप सही कह रहे है। अराजकता के पीछे मुख्य व्यक्तियों की पहचान
करने के बाद मुझे समझ मे नहीं आ रहा है कि कैसे आगे बढ़ा जाए। …क्यों मेजर? …सर, सलाफी
और वहाबी इस्लाम का जहर यहाँ के लोगो की नस-नस मे रच बस गया है। राजनेता और प्रशासनिक
अधिकारियों से लेकर स्कूल और मदरसों तक इस्लामिक कट्टरपंन की मानसिकता बन चुकी है।
जनरल हक की डाक्ट्रीन अब अक्षरशः लागू होती लग रही है। क्या चंद मुख्य लोगों का सफाया
होने से स्थिति सुधर जाएगी? ऐसा तो मुझे नहीं लगता है। एक व्यक्ति के हटते ही दूसरा
उससे भी ज्यादा कट्टर उसकी जगह पर काबिज हो जाएगा। बार्डर सील होने के बावजूद अभी भी
लगातार घुसपैठ हो रही है। बाइस जिलों मे से ऐसा कोई जिला नहीं है जहाँ जिहादियों की
उपस्थिति दर्ज नहीं है। इसके पीछे मुझे लगता है कि सिर्फ इस्लाम है जो सभी लोगो को
आज भी जोड़े हुए है।
अजीत मेरी बात सुन कर एकाएक बोला… मेजर पहले
यह स्थिति शायद जम्मू और कश्मीर की सीमा तक सिमित थी परन्तु अब यह स्थिति पूरे भारत
मे फैल गयी है। तुमने सही आंकलन किया है कि जनरल हक की डाक्ट्रीन अब अक्षरशः यहाँ लागू
हो गयी है। …सर, जनरल हक की डाक्ट्रीन ने साफ शब्दों मे कहा था कि पाकिस्तान की फौज
को सीधे लड़ने की जरुरत नहीं है। हिन्दुस्तान मे लगभग बीस करोड़
मुस्लिम रहते है। पाकिस्तान को बस इतना करने की जरुरत है उन बीस
करोड़ मुस्लिम आबादी को अगर किसी तरीके से इस्लाम के नाम पर भारत सरकार के विरुद्ध खड़ा
कर दिया जाए तो भारत की फौज चाह कर भी पाकिस्तान के खिलाफ कुछ भी नहीं कर पाएगी।
अजीत ने बीच मे टोकते हुए कहा… मेजर, तुम्हारे
हिसाब से इसका मुख्य कारण क्या है? …सर, यहाँ के बाइस जिलों मे लगभग 300 अधिकृत मदरसे
है। हर मदरसे मे औसतन 80-100 के करीब बच्चे पढ़ते है। यही वह प्रशिक्षण केन्द्र है जहाँ
पर इस्लामिक कट्टरपंथी सोच पनपती और पाली जाती है। सरकारी और गैर-सरकारी स्कूलों मे
पढ़ने वाले बच्चों को भी दीन की शिक्षा लेना अनिवार्य है। तभी जो मौलवी मदरसे मे पढ़ाता
है वही दीन की शिक्षा देने के लिए स्कूलों मे जाता है। मै भी ऐसी ही शिक्षा प्रणाली
से निकला हूँ। इसलिए मुझे पता है वहाँ क्या पढ़ाया जाता है। मौलवी साहब कुरान और हदीस
का हवाला देते हुए चार बातें प्रत्यक्ष एवंम परोक्ष रुप से अनिवार्य बताते है। पहला, कि दुनिया मे अगर किसी जगह शिर्क होगा या कुफ़्र होगा या इरत्ताद होगा तो उसकी
सज़ा सिर्फ मौत है और उसकी सज़ा को देने का हक हर मुस्लिम का है। दूसरा, दुनिया मे गैर-मुस्लिम सिर्फ कत्ल के लिए पैदा किये गये है जिसे इनकी
भाषा मे कहा जाता है कि काफ़िर वाजिबुल कत्ल है। तीसरा,
इस्लाम मे हर गैर-इस्लामिक हुकूमत एक नाजायज़ हूकूमत है और जब भी मोमिन के पास ताकत होगी तो उस गैर-इस्लामी हुकूमत का तख्ता पलटने का उन पर
फर्ज है। चौथा, जद्दीद यानि कि राष्ट्र और राज्य की सीमाएँ एक कुफ्र
है जिसकी इस्लाम मे कोई जगह नहीं है। इस्लाम उम्मा की पैरोकारी करता है। यहीं
पर मौलवी बच्चों के दिमाग मे नबीं के द्वारा दी गयी ग़जवा-ए-हिन्द के निर्देश के बारे
मे बताते है। यही सब बातें 6-14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों की सोच बन जाती है तो
फिर उसके बाद उनसे सर्व-धर्म संभाव की बात करना बेमानी होगा। इसीलिए मुझे लगता है कि
चाहे वह बड़े से बड़ा मुस्लिम राजनेता हो या छोटे से छोटा पंचर जोड़ने वाला, सभी की एक
ही सोच है जिसमे गैर-मुस्लिमों के लिए कोई स्थान नहीं है। इस्लाम ने उन पर यह जिम्मेदारी
फर्ज के रुप मे डाली है कि वह उनका जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करायें अन्यथा जो न माने
उनका कत्ल कर दें। सभी मुझे घूर रहे थे लेकिन कोई भी कुछ बोलने के लिए राजी नहीं था।
रंधावा कुछ सोच कर बोला… मेजर, तुम एक मुस्लिम
हो तो फिर तुम्हारी सोच फिर कैसे परिवर्तित हो गयी? …सर, किस्मत से मेरा शिक्षक कोई
मौलवी नहीं था। मुझे दीन की शिक्षा मेरी अम्मी ने दी थी। …मेजर, अगर मै ठीक समझ रहा
हूँ तो तालीम एक बात है और तालीम देने वाला दूसरी बात है। …बिल्कुल सर। अगर आप मदरसे
के मौलवियों पर नजर डालेंगें तो आपको पता चलेगा कि सभी सलाफी या वहाबी इस्लाम की तालीम
दे रहे है। भले ही वह कश्मीरी नहीं देवबंदी है परन्तु जमात के कारण यहाँ पर यूपी, बिहार
और बंगाल के मौलानाओं ने अपना वर्चस्व स्थापित कर रखा है। अबकी बार अजीत सर ने पूछा…
मेजर, क्या तुमने इसका कोई हल निकाला है? …सर, यह काम फौज के बजाय सरकार का है। सरकार
को दीन की तालीम और तालीम देने वाले पर कड़ा नियन्त्रण करने की जरुरत
है। जैसे बाकी सभी विषयों पर सरकार नियन्त्रण रखती है वैसे ही दीन की शिक्षा को भी
नियन्त्रित किया जा सकता है।
…सर, आप्रेशन आघात के दूसरे फेस के लिये मैने
पत्थरबाजों के लिये एक तरीका सोचा है। फौज और पैरामिलिट्री की उपस्थिति इस वक्त लगभग
हर जिले मे है। अगर हर जिले मे हम उन कुछ मुख्य पत्थरबाजों को चिन्हित कर लें तो इस
समस्या पर अंकुश लगाया जा सकता है। …कैसे? …सर, हर पत्थरबाजी की घटना के बाद पुलिस
दस बीस लड़को और लड़कियों को हिरासत मे लेती है। एक वार्निंग देकर अगले दिन छोड़ देती
है। हम अगर पिछले एक साल की पतथरबाजी की घटनाओं मे पकड़े हुए लोगों की जिलेवार एक लिस्ट
बनाते है तो दो फायदे होंगें। एक उन लोगों पर कड़ी नजर रखी जा सकती है। उनके परिवार
पर दबाव डाला जा सकता है। उनको अगर पता चल गया कि हमारी उन पर नजर है तो वह इस प्रकार
खुल कर फिर सामने नहीं आएँगें। दूसरा फायदा यह होगा कि अगर उनमे से कोई जिहादी बनने
वाला होगा तो उसकी पहचान अभी से हो जाएगी। जिहादी कोई एक दिन मे नहीं बनता है। पहले
वह दूर से फौज पर थूकते और गाली देते है। थोड़ा दिल खुलने के बाद वह धक्का-मुक्की और
हाथापाई पर उतर आते है। जब वह इसमे कामयाब हो जाते है तो फिर वह फौज के खिलाफ मशीन
गन उठाने से भी नहीं हिचकिचाते। इस लिस्ट का यह फायदा होगा कि हम उन्हें गन उठाने से
पहले ही रोक सकेंगें। पहली बार चारों एक साथ सिर हिलाया और फिर मेरी ओर देख कर वीके ने कहा… मेजर, एक्सीलेन्ट आईडिया। क्या प्रयोग के लिये तुम कोई
स्टेन्डर्ड प्रोटोकोल तैयार कर सकते हो जिसको सभी सुरक्षा एजेन्सियों को दिया जा सके?
…सर, मै कोशिश कर सकता हूँ।
अबकी बार वीके ने सवाल किया… मेजर, स्थानीय तंजीमों मे भर्ती के बारे मे क्या कहना चाहते हो? …सर, सारी भर्ती की रणनीति पैसों पर टिकी हुई है। अफ़गानी ड्र्ग्स सेब के व्यापार के नाम पर भारत मे प्रवेश करती है और फिर यहाँ से सभी महानगरों मे भेज दी जाती है। ड्र्ग्स का पैसा घूम कर जिहादियों की भर्ती के काम आता है। एक और बात इसमे जोड़ना चाहता हूँ कि अब यह लोग यहाँ की लड़कियों और नवयुवतियों की भी भारी पैमाने मे भर्ती कर रहे है। वह उन्हें ड्रग्स केरियर, हनी ट्रेप और ब्लैकमेल के काम में इस्तेमाल कर रहे है। मेरे पास अभी कोई सुबूत नहीं है लेकिन मुझे बातों ही बातों मे पता चला है कि अब जिहादी तंजीमें लड़कियों के आत्मघाती दस्ते बनाने मे लगी हुई है। इस रहस्योद्घाटन ने उन सभी को हैरत मे डाल दिया था। अजीत सर ने मुझे टोकते हुए कहा… तुम्हें इसके बारे मे कैसे पता चला? …सर, पाकिस्तानी मूल की नीलोफर के बारे मे आप क्या जानते है? …हम उसके बारे मे सब जानते है। परन्तु जब से सीआईए की लिस्ट मे उसका नाम आया था तभी से वह गायब हो गयी थी। …सर, मुझे शक है कि वही नीलोफर इस वक्त कश्मीर मे अपना जाल फैला रही है। सभी गहरी सोच मे डूब गये थे। तभी ब्रिगेडियर चीमा के फोन की घंटी बज उठी थी। उन्होंने जल्दी से फोन पर बात करके लाइन काट कर बोले… मेजर, एक फिदायीन हमले मे अब्दुल लोन के बेटे शफीकुर गनी लोन की हत्या हो गयी है। उसी समय मेरे मुँह से निकला… सर, पहले रज्जाक और अब शफीकुर, ऐसा लगता है कि जमात-ए-इस्लामी मे नेतृत्व की लड़ाई आरंभ हो गयी है। सब लोग मेरे चेहरे को ताक रहे थे परन्तु शायद किसी के पास इस समस्या का कोई हल नहीं था।
एक ही एपिसोड में आपने कितनी उथल पुथल मचा दी वीर भाई🙄🙄
जवाब देंहटाएंजबरदस्त अंक और आखिर समीर ने पैसों की ट्रेल पकड़ ही ली और आलिया और शाहीन समीर की आंख और कान के साथ कभी कभी हाथ भी बन जाती है जहां वो खुद नही हाथ लगा पता जैसे वो बैंक वाले के कैसे में उन दोनो के नाम लेकर पूरा बाजी पलट दिया। अब दूसरी फेज में क्या एक्शन दिखता है यह देखना मजेदार होगा।
जवाब देंहटाएंइतना कुछ होने के बावजूद भी एविड भाई देशद्रोहियों पर अंकुश लगाना मुश्किल होगा। सरकार और सिस्टम तो उनके इशारे पर चलेगा। यह अंक आपको पसंद आया उसके लिये धन्यवाद।
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