रविवार, 18 दिसंबर 2022

 

 

काफ़िर-24

 

कुछ देर तक मै स्क्रीन को ताकता रहा था। मेरा जिस्म एकाएक ठंडा पड़ गया था। मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। बस का शोर भी मेरे कान मे नहीं सुनाई दे रहा था। अचानक बस ने ब्रेक मारा और मै अपने झोंक मे आगे की सीट से टकराया जिसके कारण मेरे हाथ से सेटफोन छूट कर मेरी गोदी मे गिरा तो एकाएक मेरा सुन्न दिमाग तुरन्त हरकत मे आ गया था। मैने जल्दी से अपने आपको संभाला और जिस्मानी अनैच्छिक क्रिया के कारण सेटफोन नीचे गिरने के बजाय मेरे दोनो पाँव के बीच फँस गया था। मै वापिस अपनी दुनिया मे आ चुका था। मुझे तुरन्त वापिस लौटना है। परन्तु कैसे? मुजफराबाद के रास्ते से वापिस लौटने का मतलब था कि दो दिन का सफर करना पड़ेगा। बस अपनी गति से आगे बढ़ती जा रही थी। मैने पीछे मुड़ कर देखा तो महमूद आराम से पाँव फैला का सो रहा था। …महमूद भाईजान। मैने जल्दी से उसे जगाया और उसे आगे आने का इशारा किया। मेरे चेहरे पर आये हुए तनाव को देख कर वह तुरन्त उठ गया और मेरे पास बैठते हुए बोला… क्या हुआ भाईजान? …महमूद मियाँ, मुझे तुरन्त बार्डर पार करना है। मै आपके साथ जफरवाल नहीं जा सकता। मुझे आपकी मदद चाहिए। क्या आसपास कोई ऐसी जगह है जहाँ से सीमा पार कर सकता हूँ? वह कुछ देर मेरी ओर देखता रहा तो मैने जल्दी से कहा… महमूद मियाँ मेरे पास समय नहीं है। …ऐसा क्या हो गया भाईजान? उसके चेहरे पर भी घबराहट झलकने लगी थी। …महमूद भाई, आज किसी ने मेरी अम्मी और बहन की श्रीनगर मे हत्या कर दी है। मुझे जल्दी-से जल्दी वापिस पहुँचना है।

वह कुछ देर सोच कर बोला… भाईजान, अगले बस स्टाप बाजरा गड़ी पर उतर जाते है। यहाँ से सीमा कुछ घंटे का पैदल का सफर है। जब तक सीमा के पास पहुँचेंगें तब तक अंधेरा हो जाएगा। मै जैसे ही आपको इशारा करुँ आप दर्रे मे उतर कर पगडंडी पकड़ कर बढ़ते चले जाना। एक घंटे पैदल चलने के बाद आप कँटीली तारों की फेन्सिंग के सामने निकलेंगें। यहाँ पर पाकिस्तान की सीमा समाप्त होती है। आपको उधर सावधान रहना पड़ेगा क्योंकि पाकिस्तानी रेन्जर का पेट्रोलिंग दस्ता हर एक घन्टे पर वहाँ से गुजरता है। आपको तार काटने की जरुरत नहीं पड़ेगी। वहाँ पर फेन्सिंग पहले से ही कटी हुई है। उसको हटा कर इतनी जगह बन जाती है कि आप आसनी से उसमे से निकल कर सीमा पार पहुँच सकते है। …उस जगह से भारतीय चौकी कितनी दूर है? …दो किलोमीटर। …भारत मे किस जगह पहुँच जाऊँगा? …बार्ले और पारला के बीच खेत फैले है। अगर तीन मील और चलते है तो मगोवाली पहुँच जाएँगें। …सीमा पार करने मे और कोई खतरा? वह मुस्कुरा कर बोला… भाईजान, यहाँ से वहाँ जाना आसान है परन्तु हमारे लिये असली खतरा तो फेन्सिंग पार करने के बाद आरंभ होता है।

मै चुपचाप बैठ गया। मुझे सीमा पार करते ही ब्रिगेडियर चीमा को अपने कुअर्डिनेट्स भेजने थे जिससे वह मुझे तुरन्त वहाँ से एयर लिफ्ट करके श्रीनगर पहुँचा दें। मैने अपने बैग मे सेटफोन रखते हुए अपनी ग्लाक पिस्टल को टटोल कर देख लिया था। जैसे ही बस ने बाजरा गड़ी का मोड़ काटा महमूद ने ड्राईवर को आवाज लगा कर बस रुकवा दी थी। हमारे उतरते ही बस आगे बढ़ गयी थी। शाम का धुंधलका फैलता जा रहा था। महमूद रास्ता दिखाते हुए आगे चल रहा था। लहलहाते हुए खेत और खलिहान के बीच मे होते हुए हम आगे बढ़ते जा रहे थे। मै चुपचाप चारों ओर निगाह घुमा कर आने वाले खतरे का सामना करने के लिये अपने आपको तैयार कर रहा था। इतनी देर मे दिमाग की सभी उलझनों और भावनाओं की तिलांजली देकर मै एक मिशन मोड मे आ गया था। मै जब भी अपनी टीम को लेकर कैंम्प से बाहर निकलता था तो दिमाग मे होने वाली सभी चिन्ताओं को दरकिनार करके अपने उद्देश्य पर ध्यान केन्द्रित कर लेता था। अब मै एक बार फिर से स्पेशल फोर्सेज का सैनिक बन गया था।

सावधानी से कदम रखते हुए हम छिपते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। अब तक अंधेरा हो गया था। कुछ दूर चलने के बाद महमूद ने कहा… भाईजान, अब हम उस दर्रे के पास पहुँचने वाले है। कुछ देर के लिये हमे झाड़ियों मे छिप कर देखना पड़ेगा कि वहाँ पर किसी की नजर तो नहीं है। जब भी कुछ लोगों को भेजने की योजना होती है, तंजीमे पहले अपने स्काउट को भेज कर दर्रे का निरीक्षण करवा लेती है। हम दोनो झाड़ियों के झुरमुटों मे बैठ गये थे। कुछ देर बैठने के बाद जब कोई हलचल नहीं दिखी तब महमूद ने कहा… पहले मै आगे निकलता हूँ। आप मेरे पीछे आईए। वह धीरे से जमीन पर लेट गया और कोहनी के बल सरकते हुए आगे बढ़ गया। मै भी उसके पीछे कोहनी के बल आगे बढ़ने लगा। मुश्किल से सौ मीटर हम कोहनी के बल बढ़े थे कि मेरी नजर थोड़ी दूर एक गड्डे पर चली गयी थी। अंधेरे मे बस इतना पता चल रहा था की अचानक जमीन नीचे धसक गयी है। अचानक महमूद उठ कर बैठ गया और मुड़ कर बोला… भाईजान, दर्रा आ गया। यहाँ से आपको अकेले आगे जाना पड़ेगा। मै आपके साथ चलता परन्तु मुझे घर पहुँच कर वापिस सियालकोट सिविल अस्पताल पहुँचना है। अच्छा खुदा हाफिज। इतना बोल कर वह मुड़ा और वापिस कोहनी के बल लेट गया।

…रुको महमूद मियाँ। वह रुक गया। मैने अपनी जेब से सारे पाकिस्तानी रुपये निकाले जो मैने सियालकोट मे बदले थे। वह रुपये उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा… मियाँ तुम्हारा मुझ पर एहसान है। यह पैसे उसके एवज मे कुछ भी नहीं है। तुम्हारे अब्बा अस्पताल मे है। जाओ जाकर उनका इलाज कराओ। प्लीज दोनो बहनों को बता देना कि किन हालात मे मुझे वापिस लौटना पड़ रहा है। अगर वह वापिस आना चाहे तो आप उनकी लौटने मे मदद कर देना। खुदा हाफिज। बस इतना कह कर मै रेंगते हुए दर्रे मे उतर गया। पतली सी प्राकृतिक पगडंडी बनी हुई थी। दोनों ओर उँची मिट्टी की प्राकृतिक दीवार बनी हुई थी। बस इतनी जगह थी कि उसमे से एक आदमी आराम से निकल सकता था। ऐसा लग रहा था कि जैसे धरती फट कर थोड़ी सी जगह बन गयी थी। दोनो हाथ से मिट्टी की दीवार के सहारे मै आगे बढ़ता चला गया था। मेरा कुर्ता पसीने से भीग चुका था। सारा जिस्म मिट्टी से अट गया था। एक घंटे चलने के बाद अचानक रात रौशन हो गयी थी। मुझे समझ मे आ गया कि मैं सीमा पर कंटीले तारों की फेन्सिंग के करीब पहुँच गया था।  

दर्रे के अन्त पर पहुँच कर मै सपाट जमीन पर पहुँच गया था। घने पेड़ों और झाड़ियों के बीच से मेरे सामने मेरी मंजिल दिख रही थी। कंटीले तार की फेन्सिंग मेरे सामने थी। मैने घड़ी पर नजर मारी तो रात के ग्यारह से कुछ मिनट उपर हो गये थे। खबर मिलने के पश्चात बस से उतर कर पाकिस्तानी सीमा तक पहुँचने मे पाँच घंटे लग गये थे। बार्डर पार करने के लिये अभी मेरे पास काफी समय था। मै उस दर्रे से कुछ दूरी बना कर झाड़ियों की आढ़ लेकर बैठ गया। मै पाकिस्तानी और भारतीय पेट्रोल के समय को चेक करना चाहता था। पाकिस्तानी भले ही मुझे जिहादी समझ कर छोड़ सकते थे परन्तु भारतीय फौज के किसी जवान ने उत्साह मे अगर ट्रिगर दबा दिया तो मेरा अन्त निश्चित था। प्रशिक्षण यहाँ बहुत काम आया था। किसी भी आम इंसान के लिये ऐसी हालत मे धैर्य रखना बेहद मुश्किल होता है। सामने मंजिल है और दूर-दूर तक कोई नहीं दिख रहा है तो ऐसी चूक किसी से भी हो सकती है। आधे घंटे के बाद मेरे सामने से सबसे पहले भारतीय पेट्रोलिंग दल निकला था। मैने टाइम नोट कर लिया था। उसके पन्द्रह मिनट के बाद पाकिस्तानी रेन्जर्स की जीप निकल कर गयी थी। एक बार मैने सोचा कि अब निकला जाए लेकिन फिर कुछ सोच कर चुपचाप बैठ गया था।

अगली बार ठीक एक घंटे के बाद भारतीय दल निकला और एक बार फिर उनके पन्द्रह मिनट के बाद पाकिस्तानी रेन्जर्स निकले परन्तु इस बार उनकी जीप ठीक दर्रे के सामने पहुँच कर रुक गयी थी। दो सैनिक बड़ी फुर्ती से जमीन पर कूदे और दर्रे की ओर चल दिये। उन्होंने टार्च मार कर दर्रे का नीरिक्षण किया और फिर एक नजर चारों ओर डाल कर अपनी जीप मे बैठे और आगे निकल गये। उन्होने मेरे दस मिनट बेकार कर दिये थे। अब निकलने का समय हो गया था। मेरे पास अब सिर्फ पेतींस मिनट बचे थे। मुझे कंटीले तार को हटा कर उस जगह से सरकते हुए निकल कर सीमा पार जाना था। भारतीय पेट्रोलिंग दल की निगाह से भी बचने के लिये मुझे भागते हुए एक किलोमीटर दूर खेतों तक पहुँचना जरुरी था। मैने अपने खुदा को याद किया और भागते हुए फेन्स के पास पहुँच कर उस जगह को तलाशने लगा जिधर से फेन्स मे निकलने की जगह बनी हुई थी। टाईम निकलता जा रहा था। मै सावधानी से आगे बढ़ता जा रहा था लेकिन फेन्स टस से मस होने का नाम नहीं ले रहा था। भारतीय पेट्रोल के लौटने मे बस बीस मिनट शेष थे जब फेन्स का एक हिस्सा दबाव से एक ओर हटता चला गया था। मै जल्दी से कोहनी के बल सरकते हुए कंटीली तार के फेन्स के नीचे से निकल गया और उसको दबा कर यथा स्थान पर टिका कर खेतों की ओर दौड़ पड़ा। मेरे जीवन मे सिर्फ सलेक्शन के दिन मै इतनी तेज भागा था लेकिन शायद उस रात मैने अपने सारे पुराने रिकार्ड तोड़ दिये थे। भागते हुए मेरी नजर अपनी घड़ी के डायल पर टिकी हुई थी। जैसे ही भारतीय पेट्रोल के आने मे पाँच मिनट शेष रह गये मैने सामने छोटी झाड़ियों की ओर छलांग लगा कर जमीन पर चित्त लेट गया था।

मुझे कानों मे अपने दिल की धड़कन सुनाई पड़ रही थी। पाँच मिनट के बाद भारतीय सेना की एक टुकड़ी पेट्रोल करती हुई मेरे पीछे से निकल गयी थी। मै साँस रोक कर कुछ देर लेटा रहा और फिर उठ कर गन्ने के खेतों मे घुस गया। कुछ दूर चलने के बाद एक खाली सपाट जगह देख कर मै जमीन पर बैठ गया और बैग से सेटफोन निकाल कर आन कर दिया। दो मिनट के बाद आनलाईन आते ही मैने ब्रिगेडियर चीमा को फोन लगाया। अगले ही पल उनकी आवाज मेरे कान मे पड़ी… मेजर कहाँ पहुँच गये? …सर, कुअर्डिनेट्स भेज रहा हूँ। ट्रान्सपोर्ट चाहिए। …भेज रहा हूँ। तैयार रहना। बस इतना बोल कर उन्होंने फोन काट दिया था। जीपीएस पर आये हुए कुअर्डिनेट्स तुरन्त भेज कर मै आराम से आँखे मूंद कर बैठ गया। रात के दो बज रहे थे। अम्मी और आलिया की मौत की खबर सुने हुए नौ घंटे हो गये थे परन्तु अभी तक उनके खोने का दर्द महसूस नहीं किया था। शायद हालात ऐसे थे कि मै उनके बारे मे सोच भी नहीं सकता था। अब जब मै श्रीनगर जाने के लिए हेलीकाप्टर का इंतजार कर रहा था तब उनके खोने का एहसास एक घन की तरह मेरे दिलोदिमाग पर लगा और मेरी आँखें झरझर बहने लगी थी। अम्मी की हर बात मुझे याद आ रही थी। मै चुपचाप अकेले बैठा काफी देर तक रोता रहा और जब सारा गुबार निकल गया और अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हुआ तो आँखें पौंछ कर अपने पर्स से सिम कार्ड निकाल कर फोन चालू किया। एक-एक करके यह दुखद खबर आसिया, आफशाँ और अदा को देकर जैसे ही मैने आखिरी काल काटी तभी मेरे कानों मे हेलीकाप्टर के इंजिन की आवाज पड़ी तो मैने जल्दी से अपने सेट फोन के जीपीएस के बीकन को आन कर दिया। इसका मतलब था कि हेलीकाप्टर की कामन फ्रीक्वन्सी पर जैसे कोई लगातार चीख रहा हो कि ‘मै यहाँ पर हूँ’। दस मिनट बाद हेलीकाप्टर जमीन पर उतरा और अपने आप को बचाते हुए मै तेजी चलते हुए उसमे बैठ गया। मेरे बैठते ही हेलीकाप्टर हवा मे उठा और एक झोंका खाकर श्रीनगर की ओर चल दिया।

सारे रास्ते मेरा दिमाग अम्मी और आलिया के बारे सोच रहा था। हेलीकाप्टर ने मुझे श्रीनगर एयरबेस पर उतार दिया था। सुबह की पहली किरण ने आसमान लाल कर दिया था परन्तु मै तो अंधेरे मे डूबा हुआ था। मेरी जीप बेस पर खड़ी हुई थी। मै झटपट उसमे बैठा और अपने घर की ओर चल दिया। घर के बाहर सेना की ओर से कुछ लोग नियुक्त कर दिये गये थे। अपने घर पहुँचते ही मै जीप से उतर कर भागते हुए लोहे का गेट खोल कर अन्दर घुसा तो पूरे मकान मे मौत सी शांति छायी हुई थी। मै ठिठक कर रुक गया क्योंकि सामने की दीवार गोलियाँ चलने से उधड़ गयी थी। ब्रिगेडियर चीमा कमरे से बाहर निकलते हुए बोले… मेजर कल सुबह तुम्हारे घर पर फिदायीन हमला हुआ था। तुम्हारी अम्मी और आलिया इस हमले मे मारे गये थे। पुलिस अपना काम करके जा चुकी है। यह मामला निशात बाग पुलिस थाना देख रहा है। एसआई इश्तियाक हुसैन इस केस की तहकीकात कर रहा है। तुम्हारी अम्मी और आलिया को पोस्टमार्टम के लिये भेज दिया गया है। माई बोय फिलहाल पूछताछ चल रही है। तुम अपने आप को संभालो और जो भी हमारी ओर से जरुरत हो तो निसंकोच कह देना। बोलने की स्थिति मे तो पहले से नहीं था तो मैने अपना सिर्फ सिर हिला दिया था। … मेजर तुम पहले इस काम से फारिग हो जाओ बाद मे आराम से बैठ कर बात करेंगें। इतना कह करके वह चले गये थे।

अब तक मै सयंत हो चुका था। मै बाहर पड़ी हुई कुर्सी पर बैठ गया और अब्बा का नम्बर मिलाया तो कुछ देर घंटी बजने के बाद एक महीन सी आवाज कान मे पड़ी… हैलो। …मकबूल बट से बात कराईए। …वह बाहर गये है। हफ्ते के बाद लौटेंगें। यह सुन कर मैने फोन काट दिया और फिर निशात बाग पुलिस स्टेशन चला गया। एस आई इश्तियाक हुसैन अभी पहुँचा ही था। …जनाब मेरा नाम समीर बट है। कल के फिदायीन हमले मेरी अम्मी और बहन की हत्या हो गयी थी। उसी की जानकारी लेने के लिये आपके पास आया हूँ। …मेजर साहब, हमने तो ब्रिगेडियर साहब को सब बता दिया था। मैने जल्दी से कहा… मै आपके मुँह से सुनने आया हूँ। आपको किसने सूचना दी थी? …जनाब, मेरे पास तो कंट्रोल रुम से फोन आया था। किसी ने वहाँ पर गोलियाँ चलने की आवाज सुन कर 100 नम्बर पर खबर की थी। हम तो चेक करने के उद्देशय से गये थे। सारी दीवार उधड़ी हुई पड़ी थी इसीलिए पूरे घर की जाँच करने के लिए जब हमने अन्दर प्रवेश किया तब हमे गोलियों से छलनी दो लाशें कमरे मे मिली थी। एक-47 का इस्तेमाल हुआ था। हमारी फोरेन्सिक टीम भी पहुँच गयी थी। गोलियों के खाली खोल और उंगलियों के निशान हमारी टीम ने उठा लिये है।  

मै चुपचाप उसकी बात सुन रहा था। बीच-बीच मे वह अपने सिपाहियों को भी निर्देश दे रहा था। …हमने सारी जाँच करने के बाद वह दोनो लाशें पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी थी। आज शाम तक या कल सुबह तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल जाएगी उसके बाद ही हमारी जाँच आगे बढ़ेगी। वैसे आप कहाँ गये हुए थे मेजर साहब? …मै उस वक्त सीमावर्ती चौकियों के निरीक्षण के लिये गया हुआ था। ब्रिगेडियर साहब को किसने सूचना दी थी? …आपके नौकर ने बताया कि आप 15वीं कोर के कोम्प्लेक्स मे रहते है तो हमने आपकी कोर के कंट्रोल रुम मे खबर कर दी थी। मुझे नहीं पता था कि ब्रिगेडियर साहब खुद आ जाएँगें। …अम्मी और आलिया की लाशें कौन से अस्पताल भेजी गयी है? …सिविल अस्पताल। इतनी बात करके मै सिविल अस्पताल की ओर निकल गया था।

पुलिस केस होने के कारण उन्होंने मुझे उन दोनो को दिखाने से मना कर दिया था। मै वापिस घर की ओर चल दिया। अम्मी की मौत से मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण अध्याय समाप्त हो गया था। आलिया की मौत से मेरे अन्दर कुछ मर सा गया था। अपने घर को बाहर से देख कर बचपन से अब तक अम्मी के साथ बिताये हुए हर क्षण याद हो आया था। बस रह-रह कर एक ही मलाल हो रहा था कि काश उस वक्त मै यहाँ पर होता। अम्मी के कमरे मे उनकी डायरी से अब्बा का मोबाईल नम्बर निकाल कर फोन किया तो कुछ देर घंटी बजने के बाद सोती हुई अब्बा की आवाज मेरे कान मे पड़ी… हैलो। एक पल के लिए मै चुप रहा तो अबकी बार घुर्राहट भरी आवाज कान मे पड़ी… बोलते क्यों नहीं। हैलो। …अब्बा, मै समीर बोल रहा हूँ। कल सुबह घर पर फिदायीन हमला हुआ था। अम्मी और आलिया को उन्होंने मार दिया। आज शाम तक या कल सुबह तक दोनो के पोस्टमार्टम के बाद उनके शव मिल जाएँगें। अगर आप समय पर आ जाएँगें तो अच्छा रहेगा। कुछ मिनट दूसरी ओर से कोई आवाज नहीं आयी और फिर अब्बा की घरघराती हुई आवाज मेरे कान मे पड़ी… यह रिश्ता तो बहुत पहले खत्म हो गया था। मेरी बीवी बनने से ज्यादा वह तेरे जैसे नाशुक्रे काफ़िर की अम्मी बनी रहना चाहती थी। मै इस वक्त बाहर हूँ तो मै नमाज़-ए-जनाज़ा मे शरीक नहीं हो सकूँगा। वैसे भी उसके सारे काम तो तुझको करने है तो मेरे वहाँ आने का कोई मतलब नहीं है। यह कह कर अब्बा ने फोन काट दिया। एक पल के लिए उनकी बात सुन कर मेरा खून खौल गया परन्तु अम्मी का ख्याल आते ही मैने अपने आप को संभाल लिया था।

शाम तक आसिया, आफशाँ और अदा भी श्रीनगर पहुँच गयी थी। एक जगह सभी को देखने का मेनका के लिये पहला अवसर था। उनको क्या बताता कि मै उस वक्त कहाँ पर था। मुझे जो पुलिस से पता चला था वह सारा मैने उन्हें बता दिया था। वह रात हम चारों ने सीने पर भारी बोझ के साथ काटी थी। अगली सुबह तक पोस्टमार्टम हो गया था। इश्तियाक हुसैन ने मुझे इसकी सूचना दे दी थी। आसिया आसपास के जानकारों और कुछ रिश्तेदारों को इस हादसे की सूचना देने मे व्यस्त हो गयी और मै अस्पताल चला गया था। दोपहर तक एम्बुलैंस से अम्मी और आलिया को घर ले आया था। रहमत को भेज कर मौलवी साहब को बुलवा कर फिर गुस्ल, कफ़न और दफ़न के इंतजाम मे जुट गया था। कुछ पड़ोस के परिवार और रिश्तेदार इकठ्ठे हो गये थे। उन दोनो के पार्थिव शरीर को मैने अपने कमरे मे रखवा दिया था। मौलवी साहब के कहने पर गुस्ल मैय्यत की क्रिया के लिए स्त्रियाँ उस कमरे मे चली गयी थी। उन स्त्रियों की देखरेख मे जल्दी ही गुस्ल मैय्यत के सभी कार्य सम्पन्न हो गये थे।

कफ़न के कपड़ों का इंतजाम आफशाँ और अदा ने कर दिया था। एक लम्बी तहनित प्रक्रिया के बाद दोनो के जनाज़े तैयार हो गये थे। कमरे के बाहर खड़े हुए मौलवी साहब समय और कार्य अनुसार आयात पढ़ते चले गये और कमरे के अन्दर उपस्थित स्त्रियों ने पूरे रीति-रिवाज के साथ दोनो को कफ़न मे लपेट दिया था। मौलवी साहब ने एक बार दोनो पर नजर डाल कर सलातुल मैय्यत का एलान कर दिया और नमाज़-ए-जनाज़ा के आरंभ होते ही मौलवी साहब ने पाँच तकबीरें सबके सामने दोहराई और फिर सुराह-ए-फ़ातिहा पढ़ कर दफ़न की प्रक्रिया आरंभ करने से पहले आखिरी बार उनका चेहरा सभी को दिखा कर ढक दिया था। मैने भी अम्मी और आलिया के माथे को चूम कर अन्तिम कार्य की तैयारी करने के किए चल दिया। दफ़नाने के लिए हम सभी लोग दोनो ताबूतों को उठा कर एम्बुलैंस मे रखवा कर कब्रिस्तान की ओर चल दिये थे। 

अभी शाम होने मे कुछ समय था। कब्रिस्तान मे मौलवी साहब जैसा बताते गये वैसा मै चुपचाप करता चला गया। मौलवी साहब ने अंधेरा होने से पूर्व सारे काम रीति-रिवाज अनुसार सम्पन्न करा दिये थे। जब तक मै घर पहुँचा तब तक बहुत से लोग जा चुके थे। जो कुछ रह भी गये थे वह भी कुछ देर ठहर कर अपना दुख जता कर चले गये थे। मै हैरान था कि इतने सारे लोग आये थे लेकिन किसी ने अब्बा के बारे एक बार भी नहीं पूछा था। आखिरी जाने वाला इंसान अम्मी का वकील फैयाज खान था। अगले दिन शाम को आने की कह कर वह भी चला गया था। गुस्ल अल-मैय्यत के बाद अम्मी के कमरे मे जाकर हम चारों ने अम्मी और आलिया की फोटो के सामने दो दिये जला कर रख दिये थे। मै एक किनारे मे लेट गया था। एक-एक करके आसिया और अदा भी वहीं लेट गयी थी। आफशाँ मेनका को लेकर अपने कमरे मे चली गयी थी। हम तीनों अपने ध्यान मे बचपन को याद करते कब सो गये किसी को पता ही नहीं चला था।

अगले दिन सुबह तैयार होकर मै पुलिस स्टेशन चला गया था। एसआई इशितियाक हुसैन से मिल कर मैने कंट्रोल रुम से वह नम्बर निकलवा लिया जिसने फोन पर हमले की सूचना दी थी। वहाँ से लौटते हुए अम्मी और आलिया के मृत्यु प्रमाण पत्र लेकर जब तक घर पहुँचा तब तक सभी बाहर लान मे बैठे हुए धूप का आनन्द ले रहे थे। …समीर सुबह उठ कर कहाँ चला गया था? …पुलिस स्टेशन गया था। कुछ कागजी कार्यवाही पूरी करनी थी। कुछ देर के बाद मुझे फैयाज खान आते हुए दिखा तो मैने कहा… वकील सहब शाम की कह कर गये थे परन्तु अभी आ गये है। फैयाज खान को लेकर बैठक की ओर चलते हुए मैने कहा… तुम तीनों भी चलो। बैठक मे हम चारों फैयाज खान के सामने बैठ गये थे।

फैयाज खान ने अपनी फाईल खोलते हुए पूछा… समीर, आज दोनो के मृत्यु प्रमाण पत्र ले आये? मैने सिर हिलाते हुए दोनो मृत्यु प्रमाण पत्र उनकी ओर बढ़ा दिये थे। उसने एक नजर प्रमाण पत्रों पर डाल कर कहा… तुम्हारी अम्मी सब कुछ तुम्हारे नाम वसीयत करके गयी है। इस्लामिक कानून के अनुसार तुम्हारे अब्बा उनकी वसीयत को कोर्ट मे दावा करके सारी जायदाद मे आधे हिस्से की मांग करेंगें। अब तुम पर है कि तुम क्या चाहते हो? मैने एक नजर उन तीनो पर डाल कर कहा… वकील साहब, फौज मे होने के कारण पता नहीं कब मेरे जीवन की शाम हो जाए इसलिए जल्दी से जल्दी मेरी ओर से सारी जायदाद को इन तीनों मे बराबर बाँट दीजिए। एकाएक आसिया उठ कर खड़ी हो कर बोली… नहीं समीर। हमे कुछ नहीं चाहिए। साथ बैठी हुई अदा और आफशाँ ने भी आसिया की बात का समर्थन कर दिया था।

वकील फैयाज खान ने मुझे समझाते हुए कहा… समीर, शरिया कानून के अनुसार बिना वसीयत के लड़कियों को पैतृक सम्पति मे सिर्फ एक तिहाई हिस्सा मिलता है। इसलिए ऐसी गलती मत करो। यह वसीयत करा कर तुम्हारी अम्मी ने बड़ी समझदारी का परिचय दिया है। फिलहाल के लिए मै तुम्हें इसके लिए मना करूँगा। अभी तो तुम्हारे और तुम्हारे अब्बा के बीच मे तय होगा कि सारी जायदाद तुम्हें मिलेगी या तुम्हें उसका सिर्फ आधा हिस्सा मिलना चाहिए। एक बार कोर्ट द्वारा तुम्हारा हिस्सा तय हो गया तो फिर तुम अपना हिस्सा जिसे देना चाहो उसे दे देना। सबसे पहले तो कल ही कोर्ट मे मुझे यह कागज दाखिल करने है जिससे तुम्हारी अम्मी की वसीयत को प्रोबेट कराया जा सके। इन पर तुम्हारे दस्तखत चाहिए। यह कहते हुए उन्होंने कुछ कागज मेरी ओर बढ़ा दिये थे। सारी कागजी कार्यवाही समाप्त होने के बाद फैयाज खान लड़कियों के हालचाल पूछने मे व्यस्त हो गये थे। मै कुछ देर उनके साथ बैठा रहा और फिर उठ कर अम्मी के कमरे मे चला गया था।

पता नहीं क्यों अब हर पल मुझे यहाँ पर भारी लगने लगा था। मै आँखे मूंद कर जमीन पर लेट गया। अम्मी की याद आते ही मेरी आँखें एक बार फिर से स्वत: ही बहने लगी थी। इतने दिनों से मै इस आघात को अपने सीने मे दबाये घर और बाहर के काम मे व्यस्त रहा था। अपनी माँ की मौत के बाद मै तेरह दिन इसी कमरे मे रहा था। इस कमरे मे लेटे हुए मन मे एक विचार आया था कि अब कभी भी मै उन दोनो का मुस्कुराता हुआ चेहरा नहीं देख सकूँगा तो दिल मे एक टीस उठी और आँसू बहने लगे थे। आसिया, आफशाँ और अदा कब कमरे मे आ गयी और सामने बैठ गयी मुझे पता ही नहीं चला था। …समीर। क्या सोच रहे हो? …कुछ नहीं। उनकी आवाज सुन कर जल्दी से अपने आँसू पौंछते हुए मैने बैठते हुए कहा… अब तुम तीनों को सोचना है कि यहाँ का क्या करना है? आसिया ने कहा… समीर यह तो तुमको सोचना है। तभी आफशाँ ने पूछा… क्या अब्बा आये थे? …नहीं। मेरी बात हुई थी। वह शहर से बाहर है। तभी आसिया ने कहा… समीर, उन्होंने तुमसे झूठ बोला है। आज भी वह अपने घर पर ही है। …आसिया, अब इसके बारे मे सोच कर क्या करना है। जो होना था वह हो गया है। हाँ, आज के बाद एक बात तो तय हो गयी है कि मै भी उनके साथ वही करुँगा जो उन्होंने अम्मी के साथ किया है।

हम सब अतीत की यादों मे खो गये थे। कुछ देर के बाद रहमत मेनका को लेकर आया और बोला… यह नींद से जाग गयी थी इसीलिए इसे यहाँ ले आया। आज खाने मे क्या बनना है? मैने पर्स निकाल कर कुछ नोट उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा… इनसे पूछ कर बाजार से ले आना। मेनका भाग कर आफशाँ के पास चली गयी थी। तीनो ने कुछ बात की फिर रहमत को आर्डर देते हुए कहा… थोड़ी देर से लाना। रहमत बाहर चला गया और एक बार फिर से कमरे मे शांति छा गयी थी। …समीर। मैने सिर उठा कर देखा तो मेनका मेरी ओर देख रही थी। तीनों उसकी ओर देख कर मुस्कुरा रही थी। मेनका ने एक बार फिर से कहा… समीर। मैने इशारे से उसको अपने पास बुलाया तो वह आफशाँ की गोदी मे और सिमट कर बैठ गयी थी। आसिया ने पूछा… समीर, क्या मेनका तुम्हारी और आफशाँ की बेटी है? …हाँ। यह आफशाँ और मेरी बेटी है। …तो अंजली कौल कौन है? यह सवाल सुन कर एक पल के लिए मै चुप हो गया था। आफशाँ ने कुछ बोलने के लिए मुँह खोला ही था कि तभी अदा ने कहा… बाजी आपको सब कुछ पता है तो अब पूछने की क्या जरुरत है। …अदा, इसको देखो कि आज यह कैसे निगाहें चुरा रहा है। मै इसे बचपन से जानती हूँ। इसने हम चारों से कभी भी कोई बात नहीं छिपाई थी लेकिन मैने महसूस किया है जब से अम्मी ने इसकी सच्चायी बतायी है तभी से यह हमसे कटता जा रहा है। मुझे लगता है कि अब अम्मी के बाद यह हमेशा के लिए हमसे दूर हो जाएगा। आसिया मुझे देख रही थी और मै उससे आँख मिलाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।

असिया हम सब से उम्र मे बड़ी थी। हमेशा मेरे लिए उसका बेहद पक्षपाती रवैया रहता था। मेरी गलतियों पर उसने हमेशा पर्दा डाला था और मैने भी उसे हमेशा अपना सरपरस्त माना था। यह भी सही था कि जब से अम्मी ने मेरी सच्चायी उजागर की थी तभी से एक झिझक की दीवार हमारे बीच मे खड़ी हो गयी थी। काफ़िर के नाम से चिह्नित होने के कारण रिश्तों पर मेरा विश्वास डगमगा गया था। आसिया ने यही बात समझ कर सबके सामने उजागर कर दी थी। मुझे कुछ भी समझ मे नहीं आ रहा था। आसिया ने धीरे से कहा… समीर, एक बार हम चारों को मिल कर सच्चायी का सामना करना पड़ेगा। हमको पता है कि आफशाँ से तुमने मंदिर मे शादी की है। मेनका तुम्हारी और अंजली की बेटी है। अंजली के बारे मे हम तीनों अच्छे से जानते है। अदा और तुम्हारे बीच क्या संबन्ध है क्या हमे नहीं मालूम। हम सब जानते है तो सबके सामने सच्चायी बोलने मे तुम क्यों झिझकते हो। पल भर मे आसिया ने मेरे सारे अवरोध और झिझक को नष्ट कर दिया था। एकाएक मुझे आलिया की कही बात याद आ गयी थी।

एक बार मैने आलिया से पूछा था कि जब मौलवी साहब ने हमे यह बताया है कि काफिरों के साथ दोस्ती या संबन्ध रखना कुफ्र जैसा पाप है तो तुम सब कुछ जान कर भी कैसे मेरे साथ रह सकती हो? एक पल के लिए वह खामोश हो गयी थी परन्तु वह कुछ पल सोचने के बाद बोली… समीर, अगर मुझे कभी कुछ हो गया तो सबसे पहले मेरी रक्षा के लिये कौन खड़ा होगा? मै उसकी ओर देखते हुए बोला… और किसी का तो पता नहीं लेकिन एक बात जानता हूँ कि मेरे रहते तुम पर कोई आँच नहीं आने दूँगा। वह मुस्कुरा कर बोली… समीर, मैने जब से आँख खोली है तब से सिर्फ तुम्हें अपने साथ देखा है। मदरसे मे कुछ भी बताया गया हो लेकिन आज भी मै जानती हूँ कि एक तुम ही हो जो मेरे लिए अपनी जान भी दे सकते हो। इतना विश्वास तो मै अपने अब्बा पर भी नहीं कर सकती। वैसे भी तुमने आज तक हमारे साथ नमाज पढ़ी है। हमारे साथ रमजान मे रोजा रखा है। अगर सिर्फ पैदा होने से तुम काफ़िर हो गये तो मै कुफ्र की सजा भुगतने के लिए भी तैयार हूँ। मै ही क्यों यही सवाल तुम अम्मी, आसिया, आफशाँ और अदा से पूछ कर देख सकते हो। मुझे पूरा विश्वास है कि उनका भी यही जवाब होगा। आसिया की बात सुन कर एक बार फिर से आलिया की यादें मेरे जहन पर छा गयी थी।

एक पल के लिए मैने सोचा और फिर मैने मेनका और अंजली की सच्चायी को उनके सामने रख दिया था। किन हालात मे आफशाँ के साथ मन्दिर मे शादी करने की बात सबके सामने रख कर मैने कहा… आफशाँ ने मेरे सबसे कमजोर क्षणों बिना किसी उम्मीद और वायदे के साथ दिया था। अंजली की मौत के बाद जब मै अन्दर से टूट गया था तब उसने मुझे और मेनका को बड़ी शिद्दत और मोहब्बत से संभाला था। अंजली की मौत के बाद आफशाँ ने मेनका को अपना कर मेरे बदरंग जीवन मे नये रंगों से भर दिया था। जब समय आया तो वह अब्बू के सामने मेरे लिये खड़ी हो गयी थी। सच पूछो तो अब्बू के प्रति मेरी नफ़रत इतनी नहीं है जितनी मै अम्मी और तुम सब से मोहब्बत करता हूँ। बचपन से आज तक सिर्फ तुम सबको ही देखा है और अपने से ज्यादा तुम पर भरोसा करता हूँ। एक बात कहना चाहता हूँ कि अम्मी की मौत के प्रति उन्होंने जो उदासीनता दिखायी है उसके कारण अब मेरे उनसे सभी रिश्ते समाप्त हो गये है। अब वह मेरे लिए सिर्फ एक मकबूल बट नाम का एक अलगावदी है जिसने धर्म के नाम पर मेरे परिवार की हत्या की थी और मेरी मासूम निरीह माँ का इतने साल शोषण किया था। अब से मकबूल बट इस काफ़िर को अपने हर नुकसान और पराजय के पीछे खड़ा देखा करेगा। मै कभी तुम्हे ऐसे किसी दोराहे पर नहीं खड़ा करुँगा कि तुम्हें सोचना पड़े कि किसका साथ दें। वह तुम्हारे अब्बू है इसलिये जैसा तुम्हें ठीक लगता है वह करो। मेरे रिश्ते जैसे आज तक तुम्हारे साथ है वैसे ही हमेशा बने रहेंगें। इतना बोल कर मै चुप हो गया था। तीनों चुपचाप मुझे देख रही थी। …तुमने सही कहा था आसिया। आज तुम सबके सामने सारी सच्चायी बता कर मै अपने आप को अन्दर से हल्का महसूस कर रहा हूँ। इतनी बात करके मै चुप हो गया था।

मै कुछ सोचना चाहता था। यही सोच कर मै घर से बाहर सड़क पर टहलने निकल गया था। वह किस उद्देश्य से यहाँ हमला करने के लिए आये थे? यह जग जाहिर बात थी कि यह मकबूल बट का मकान है लेकिन यह भी सब लोग जानते थे कि इस मकान मे सिर्फ अम्मी रहती थी। मकबूल बट तो यहाँ पर कभी-कभी आता था। मै पहले सोच रहा था कि यह हमला मकबूल बट की हत्या के उद्देश्य से हुआ होगा जिसमे बेवजह अम्मी और आलिया को जान से हाथ धोना पड़ गया था। अब मेरा सारा ध्यान अम्मी की ओर लगा हुआ था क्योंकि आलिया तो मेरे साथ रहती थी। वह यहाँ कैसे और कब पहुँच गयी? मेरे लिये एक नया प्रश्न खड़ा हो गया था। इसका मतलब था कि फिदायीन के निशाने पर अम्मी थी, तो भला अम्मी को कौन मारना चाहता होगा?  मै मन ही मन सवाल करता और फिर जवाब तलाशने की कोशिश करता। मै इस नतीजे पर पहुँचना चाहता था कि हमलावर के निशाने पर असलियत मे कौन था? अम्मी या आलिया अथवा दोनों। मै चलते-चलते रुक गया और एक नजर चारों ओर घुमा कर देखा तो एहसास हुआ कि मै सोचते हुए काफी दूर निकल आया था तो मुड़ कर वापिस घर की ओर चल दिया।

आसिया, आफशाँ और अदा तीनों बाहर लान मे कुर्सी डाल कर बैठी हुई थी और मेनका उनके इर्द गिर्द चक्कर लगा रही थी। रात की ठंडक मे खुले आसमान के नीचे अच्छा लग रहा था। लोहे का गेट खोल कर मै उनके पास चला गया और भागती हुई मेनका को पकड़ कर गोद मे उठाते हुए कहा… मै कौन हूँ? पहले वह अपने आप को छुड़ाने का यत्न करती रही और फिर चुप हो गयी तो आसिया ने कहा… मेनका यह कौन है? वह झिझकते हुए धीरे से बोली… समीर। यह सुन कर तीनों खिलखिला कर हँस पड़ी थी। मेनका को छोड़ते हुए मैने झेंपते हुए कहा… तुम तीनों के कारण अब यह मुझे समीर बुलाया करेगी। बड़ी मुश्किल से मुंबई मे मैने इसे अब्बू कहना सिखाया था। एक साल मे ही यह सब कैसे भूल गयी। तभी आफशाँ ने पूछा… समीर तुम यहाँ पर कहाँ रह रहे हो? …यहाँ से थोड़ी दूर पर 15वीं कोर के रेजिडेन्शियल कोम्पलेक्स मे रहता हूँ। …कल तुम्हारा मकान देखने चलेंगें। …हाँ क्यों नहीं। वैसे भी अब मुझे जल्दी ही वापिस ड्युटी पर जाना होगा लेकिन यहाँ का क्या करना है?

आसिया ने सवाल किया… समीर तुम यहाँ पर क्यों नहीं रहते? …अदा बेहतर समझ सकती है। आप्रेशन्स मे काम करने के कारण मुझे वहाँ रहना पड़ता है। तुम तो जानती हो कि फौज से यहाँ के स्थानीय लोग कितनी नफरत करते है। …पर क्यों? …मकबूल बट जैसे अलगावादी नेताओं और पाकिस्तान के टुकड़ों पर पलने वाले स्थानीय राजनीतिज्ञों और पत्रकारों ने लोगो को भ्रमित किया हुआ है। कुछ लोगों का विचार है कि यह आज़ाद मुल्क है जिस पर भारतीय फौज ने जबरदस्ती कब्जा किया हुआ है और कुछ का मानना है कि धर्म के अधार पर कश्मीर का विलय पाकिस्तान से होना चाहिए था। …तो क्या यह सोच गलत है? …अगर इतिहास के पन्ने को पलट कर देखा जाए तो यह सोच गलत ही नहीं बेबुनियाद भी है। मूल रुप से कश्मीर हिन्दु ॠषि कश्यप की तपोभुमि है। यहाँ पर तलवार के बल पर इस्लाम स्थापित हुआ था। भयग्रस्त हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन यहाँ बहुत बार हुआ परन्तु फिर भी हिन्दुओं की संख्या किसी भी सदी मे यहाँ कम नहीं हुई थी। अगर सच पूछो तो हर जिवित कश्मीरी के पूर्वज भी हिन्दु थे क्योंकि यहाँ कोई अरब से नहीं आया था। तीनों मेरी बात चुपचाप सुन रही थी। अचानक आफशाँ बोली… समीर, इस सोच मे क्या गलत है कि धर्म के आधार पर इस हिस्से का विलय पाकिस्तान मे होना चाहिए था? अबकी बार मेरी जगह अदा ने जवाब दिया… तुम्हारा प्रश्न ही बेबुनियाद है। जब धर्म के आधार पर बँटवारा हुआ तो भारत मे एक भी मुस्लिम नहीं रहना चाहिए था। सारे मुस्लिमों को भारत छोड़ कर पाकिस्तान मे चले जाना चाहिए था। इसका मतलब तो कश्मीर के मुस्लिमों को भी पाकिस्तान मे चले जाना चाहिए था। तो अब यहाँ के मुस्लिम किस विलय की बात कर रहे है?

आसिया ने पूछा… तो ऐसा क्यों नहीं हुआ? अबकी बार मैने जवाब दिया… राजनीति के कारण। पाकिस्तान तो मुस्लिमों ने बना लिया परन्तु कितने मुस्लिम अपनी पैतृक जमीन छोड़ कर पाकिस्तान गये थे? आसिया ने एक सवाल फिर किया… तो फिर अगर उन्हें वहाँ जाना नहीं था तो उन्होंने अपने लिए अलग देश क्यों बनाया था? …गौर मतलब है कि आज भी पाकिस्तान से ज्यादा मुस्लिम भारत मे रह रहे है। अचानक आसिया ने मुझे टोकते हुए पूछा… समीर, तुमने जो इतिहास पढ़ा है वह हम सभी ने पढ़ा है तो भला हमारे पढ़ने मे और तुम्हारे पढ़ने मे इतना फर्क कैसे है। उसका सवाल जायज था। एक पल के लिये मै कुछ बोलने से पहले रुक गया था। फिर कुछ सोच कर मैने कहा… विस्तारवाद के चक्कर मे पाकिस्तान फौज ने देश बँटते ही अफगानी कबाईलियों के रुप मे कश्मीर पर आक्रमण किया क्योंकि यहाँ का राजा हिन्दु और प्रजा मुस्लिम थी। भारतीय फौज ने उन्हें मार कर भगा दिया परन्तु हमारे नेताओं की एक एतिहासिक गलती के कारण पाकिस्तान ने कश्मीर का एक हिस्सा अपने कब्जे मे आज तक रखा हुआ है जिसे दुनिया आज़ाद कश्मीर का नाम से जानती है। वहाँ कितनी आज़ादी है वह किसी से छिपी नहीं है। आज़ाद कश्मीर अगर सच पूछो तो आज भी पाकिस्तान की रखैल की तरह है। पाकिस्तानी फौज का जब मन करता है वह वहाँ की आवाम का शोषण करते है अन्यथा अपने दोस्त अमरीका और चीन को उसका शोषण करने के लिए सौंप देते है। अगर मै सच कहूँ तो आज़ाद कश्मीर की हालत मेरी माँ जैसी है जिसको जबरदस्ती मकबूल बट ने इतने साल अपने पास रख कर शोषण किया था। एकाएक तैश मे मेरे मुख से ऐसी बात निकल गयी थी कि जिसने पल भर मे हम सभी को शर्मसार कर दिया था। 

5 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा अंक रहा जहां एक बेटे ने अपने मरे हुए मां और बहन के लिए अपने आखरी फर्ज अदा किया यही मकबूल बट्ट को उसने इत्ताल्ला भी किया उसके बीवी और बेटी के मरने के उपरांत मगर कहीं न कहीं वो रिश्ता मकबूल बहुत पीछे छोड़ चुका है इसी लिए अब उससे इस परिवार के बारे में सोचने की उम्मीद मूर्खता ही होगी जो आखिर समीर समझ चुका है। अब आएगा मजा जब समीर को बांधने वाली अम्मी न रही और जब मकबूल बट्ट सामने आएगा तो समीर उसको अपने आड़े हाथों लेगा।

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    1. इंसान का अतीत हमेशा उसका पीछा करता है। हमारे भविष्य की इमारत अतीत के नींव पर खड़ी होती है। धन्यवाद आपकी टिप्पणी के लिये।

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  2. आलिया और अम्मी की मौत कोई बड़ी साजिश लगती है,जा वह लोग समीर के लिए आए थे,मकबूल भट्ट के साथ अब समीर की आमने सामने की जंग होगी,ये घटना सच में मकबूल भट्ट की कहानी बदल देगी

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    1. क्या मकबूल बट के इर्द-गिर्द सारे पात्र घूम रहे है अथवा मकबूल बट इस साजिश मे एक अदना सा पात्र है। हरमन भाई जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ेगी इस सवाल का जवाब मिलना आरंभ हो जाएगा। शुक्रिया।

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  3. समीर का इतिहास का ग्यान मदरसेसे बाहर पडणेके बाद का है और आसीया आफशा का मदरसेवाला. हां अदा का भी समीर जैसा ही है, पर वो है जनूनी लडकी, मुझे उसने थोडा थोडा सुझीवाला हटधर्म दीखता है 😃

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