काफ़िर-21
रावलपिंडी
जनरल शरीफ ने अपने सभी उच्च अधिकारियों की
इमर्जेन्सी मीटिंग बुलाई हुई थी। गुस्से से उसका चेहरा तमतमा रहा था। …जनरल मंसूर यह
सब कैसे हो गया? पहले वह स्कूल गर्ल्स स्कैन्डल, फिर जामिया मस्जिद और अब यह बवाल।
हमारी आईएसआई क्या कर रही है? …जनाब, ऐसा लग रहा है कि जमात मे वर्चस्व की लड़ाई चल
रही है जिसके कारण हमारी लगभग सभी योजनाएं असफल हो गयी है। …मियाँ योजना असफल हो जाती
है तो कोई गम नहीं परन्तु इतने सालों की मेहनत पर पानी फिरता हुआ लग रहा है। वादी मे
बिछाया हुआ सारा नेटवर्क एक-एक करके छिन्न-भिन्न होता जा रहा है। अबकी बार लगता है
कि वादी की सरकार भी इसके चपेट मे आ गयी है। …जनाब, मैने आपसे पहले ही कहा था कि अगर
आप इजाजत दें तो मै अपना सबसे जांबाज अधिकारी सीमा पार भेज सकता हूँ जिस से सभी तंजीमो
के बीच अच्छा तालमेल बन सके। …तुम एक कार्यरत अधिकारी को जासूस बना कर वहाँ भेजना चाहते
हो परन्तु इतना बवाल मचने के बाद क्या इस समय उसे वहाँ भेजना उचित होगा?
वहाँ बैठे हुए सभी लोगो के मुख पर जैसे ताला
पड़ गया था। पिछले दो हफ्तों मे जान, माल और साख का जो नुकसान हुआ तो हुआ परन्तु अब
तो उनकी कठपुतली राज्य की सरकार के गिरने की बात चल रही थी। अगर केन्द्र सरकार के हाथ
मे शासन की बागडोर चली गयी तो वहाँ के अलगावादियों और चरमपंथियों के हालात और भी गंभीर
हो जाएंगें। काफी देर तक चर्चा करने के बाद जनरल शरीफ ने मीटिंग समाप्त करते हुए जनरल
मंसूर से कहा… इस्लामाबाद लौटने से पहले मुझसे मिल कर जाना। जनरल मंसूर ने जल्दी से
हामी भरी और कमरे से बाहर निकल गया था।
उस तिकड़ी से विदा लेकर मै अपने आफिस मे बैठ
कर उन दोनो लड़कियों के बारे मे सोच रहा था। पाँच साल पहले उन्होंने अपने अब्बा के साथ
अवैध रुप से भारत मे प्रवेश किया था। दूसरे फेस के बारे मे सोचते हुए मुझे उनका ध्यान
अचानक आ गया था। जुबैर की हत्या के कारण दोनो बहने न जाने कहाँ भटक रही होंगी। अगर
जन्नत को पता चल जाता कि उसका नाम कहीं नहीं आया है तो वह ऐसे भागने की कोशिश नहीं करती।
अभी मै उसके बारे सोच ही रहा था कि तभी ब्रिगेडियर चीमा ने फोन पर कहा… मुझे अब्दुल
लोन के घर जाना है। तुम भी साथ चलो। कुछ ही देर मे ब्रिगेडियर चीमा का काफिला अब्दुल
लोन के घर की ओर जा रहा था। ब्रिगेडियर चीमा का विशेष सुरक्षा दस्ते के आलावा हमारे
साथ ब्लेक केट कमांडोज की एक टुकड़ी भी चल रही थी। अब्दुल लोन का घर श्रीनगर शहर की
घनी आबादी के बीच मे था। शफीकुर लोन की हत्या के कारण वहाँ का वातावरण काफी संवेदनशील
हो गया था। हम लोग बाजार के बीचोंबीच स्थित पुरानी सी आलीशान हवेली के बाहर पहुँच गये
थे। सुरक्षा दस्ते और कमांडोज ने बाहर का मोर्चा संभाल लिया था। हमे आये हुए देख कर
सड़क पर भीड़ इकठ्ठी होने लगी थी। दुकानों के शटर गिरने आरंभ हो गये थे।
हम दोनो उस इमारत के मुख्य द्वार को पार करके
अन्दर चले गये थे। हमे अन्दर आता हुआ देख कर दो आदमी दौड़ते हुए आये और हमारा रास्ता
रोक कर खड़े हो गये। उनमे से एक आदमी ने कश्मीरी भाषा मे पूछा… आपको किस से मिलना है?
मैने जल्दी से कहा… अब्दुल लोन से मिलना है। उनको बता दिजीये कि ब्रिगेडियर सुरिन्दर
सिंह चीमा उनसे मिलने आये है। ब्रिगेडियर चीमा ने एक कदम आगे बढ़ाया कि तभी सामने खड़े
हुए आदमी ने ब्रिगेडियर चीमा की छाती पर हाथ रख कर पीछे धकेलने की कोशिश की परन्तु
तब तक उसके जबड़े पर पूरी शक्ति से मेरा हाथ पड़ गया था। वह एक पल हवा मे लहराया और फिर
जमीन पर चक्कर खाकर बैठ गया था। दूसरा आदमी डर के मारे दो कदम पीछे हट गया और मुझे
घूरने लगा तो मैने दहाड़ती आवाज मे कहा… कभी भूल कर भी फौज की वर्दी को हाथ लगाने की
गलती मत करना।
अब जाकर अब्दुल लोन से बोल कि ब्रिगेडियर साहब ने उसे नीचे बुलाया है। वह आदमी जल्दी
से मुड़ा और वापिस चला गया। जमीन पर पड़े हुए कराहते हुए आदमी को ब्रिगेडियर चीमा ने
सहारा देकर उठाते हुए कहा… बेटा तुम खुशकिस्मत हो वर्ना ऐसी हरकत करने वालों को फौज
सीधे गोली मार देती है। तभी पहली मंजिल से एक आवाज हमारे कान मे पड़ी… जनाब हम फौज का
बहुत सम्मान करते है। हमारी नजरे अनायस ही उपर की ओर चली गयी थी। अब्दुल गनी लोन रेलिंग
पकड़ कर हमारी ओर देख रहा था। …आदाब। जनाब आप लोग बैठक मे चल कर मे बैठिए। मै अभी आता
हूँ। एक आदमी हमें रास्ता दिखाते हुए बोला… आईए। हम उसके पीछे चल दिये थे। वह हमे एक
बड़े से हाल मे ले गया जहाँ बड़े करीने से सोफे
और कुर्सियाँ लगी हुई थी। उसने जल्दी से हाल की लाइट जला कर पूरे हाल को रौशन कर दिया
और हम चुपचाप सोफे पर जा कर बैठ गये थे।
हाथ मे मोतियों की तस्बीह लिये अब्दुल लोन
ने कमरे प्रवेश किया और एक बार फिर से आदाब करके हमारे सामने बैठते हुए बोला… ब्रिगेडियर
साहब बताईए कैसे आना हुआ। ब्रिगेडियर चीमा ने अपने सिर पर लगी हुई टोपी को उतार कर
अपने पास रखते हुए कहा… हम आपके गम मे शरीक होने के लिए आये है। शफीकुर के बारे मे
जान कर बेहद दुख हुआ। …सब खुदा की मर्जी है। मै अब्दुल लोन की हर हरकत नोट कर रहा था।
उसके बेटे की आज सुबह हत्या हुई थी लेकिन दुख का एक भी चिन्ह उसके चेहरे पर नहीं दिख
रहा था। …हम उन हथियारों के बारे मे कुछ पूछने आये है। अब्दुल लोन ने अपनी दाड़ी पर
उंगलियाँ फिराते हुए कहा… जनाब उसके साथ हमारा कोई सारोकार नहीं है। भला मै आपको उसके
बारे मे क्या बता सकता हूँ। …मै जानता हूँ। बस आपसे एक निवेदन करना चाहता हूँ कि क्या
आप हमे उस गोदाम के तहखाने का निरीक्षण करने की इजाजत दे सकते है? …भला मै कैसे आपको
इजाजत दे सकता हूँ। वह गोदाम और तहखाना तो अब पुलिस ने सील कर दिया है। कुछ देर तक
ब्रिगेडियर चीमा और अब्दुल लोन के बीच मे बातचीत का दौर चलता रहा था। ब्रिगेडियर चीमा
कुछ भी बोलते उसके जवाब मे अब्दुल लोन सिर्फ हाथ झाड़ता हुआ लग रहा था। अचानक ब्रिगेडियर
चीमा ने कहा… मेजर तुम्हें कुछ पूछना है तो पूछ लो। एक पल के लिए मै चौंक गया था।
…सर, क्या मै इनके परिवार के बारे मे कुछ पूछ
सकता हूँ? ब्रिगेडियर चीमा कुछ बोलते कि तभी अब्दुल लोन ने कहा… हाँ क्यों नहीं, पूछिए।
…आपके परिवार मे कितने लोग है और वह क्या काम करते है? इस एक सवाल ने एकाएक उसे सावधान
कर दिया था। उसने दाड़ी को सहलाना बन्द कर दिया और उसके हाथ मे तस्बीह भी एकाएक स्थिर
हो गयी थी। …जनाब मेरे परिवार का इस से क्या संबन्ध हो सकता है? फिर भी आपने पूछा है
तो बता देता हूँ कि मेरे तीन बेटे और दो बेटियाँ है। मेरे तीनों बेटों का अपना कारोबार
है। दोनो बेटियों का निकाह हो गया है। मेरा एक दामाद मेरी तरह राजनीति मे है। दूसरा
दामाद का भी अपना कारोबार है। …जनाब आपका क्या करोबार है? वह बोलते हुए एक पल के रुक
गया था। मेरी ओर घूर कर देखते हुए बोला… हमारा काम बहुत फैला हुआ है। सेब का काम है।
हमारे पास सात सेब के बाग है। रिअल एस्टेट और कन्सट्रक्शन का काम है। सरकारी इमारत
और सड़क बनाते है। कुछ बड़ी कंपनियों की एजेन्सी ले रखी है। बस ऐसे ही गुजारा हो जाता
है। …आप तो राजनीति मे है तो इतना बड़ा कारोबार कौन संभालता है? यह तो मै समझ गया कि
शफीकुर सेब का कारोबार संभालता था। रिअल एस्टेट का काम कौन संभाल रहा है? …मेरा मंझला
बेटा हैदर इस काम को संभालता है। …और एजेन्सियों काम? …मेरा सबसे छोटा बेटा बुरहान।
इनका शफीकुर के काम से कोई नाता नहीं है।
…सर, एक और प्रश्न है। ब्रिगेडियर चीमा की
इजाजत मिलते ही मैने कहा… नीलोफर लोन आपकी क्या लगती है? एकाएक हमे लगा कि जैसे उसको
किसी बिच्छु ने काट लिया है। उसको अपने आप को संभालने कुछ समय लगा फिर वह धीरे से बोला…
वह मेरी मुँहबोली बेटी है। …तो असल मे वह किसकी बेटी है? उसने मुझे खा जाने वाली निगाहों
से देखा और फिर ब्रिगेडियर चीमा की ओर रुख करके बोला… यह कैसा बेहूदा सवाल है। जैसे
ही ब्रिगेडियर चीमा ने मेरी ओर देखा तो मैने जल्दी से कहा… सर, वही आजकल शफीकुर लोन
का कारोबार संभालती है। ब्रिगेडियर चीमा ने तुरन्त कहा… लोन साहब क्या हम आपकी मुँहबोली
बेटी से बात कर सकते है? मैने जल्दी से कहा… अगर वह पर्दे मे रह कर भी बात न करना चाहें
तो वह अपने किसी नौकर के जरिए हमसे बात कर सकती है। अब्दुल लोन किसी सोच मे डूब गया
था। तभी हमारे पीछे से एक महिला की आवाज आयी… ब्रिगेडियर साहब हम लोग इतने भी दकियानूसी
नहीं है। क्या बात करना चाहते है आप? हमने मुड़ कर देखा तो नीलोफर खड़ी थी।
उसको देख कर हम दोनो खड़े हो गये थे। नीलोफर
बड़ी अदा से चलती हमारे सामने से गुजरी और अब्दुल लोन को झुक कर सलाम करके उसके साथ
खड़ी हो गयी। हम दोनो की नजरे उस पर टिक गयी थी। आधुनिक शलवार-सूट मे होने के बावजूद
उसने सिर और चेहरे को हिजाब से ढका हुआ था। वह देखने व बोलचाल से बेहद सौम्य और सभ्य
प्रतीत हो रही थी। …ब्रिगेडियर साहब आप मुझसे कुछ पूछना चाहते थे। हम दोनो को खड़ा देख
कर अब्दुल लोन जल्दी से बोला… आप लोग तशरीफ रखिये। मैने जल्दी से कहा… जनाब, महिला
हमारे सामने खड़ी है तो हम बैठ नहीं सकते। नीलोफर ने किसी को इशारा किया और तुरन्त एक
आदमी अब्दुल लोन की बगल मे एक कुर्सी रख कर चला गया था। नीलोफर बड़ी शान से उस बैठते
हुए बोली… प्लीज आप लोग तशरीफ रखिए। हम दोनो जल्दी से बैठ गये।
…आप मुझसे कुछ पूछना चाह रहे थे। मैने जल्दी
से कहा… हम सिर्फ यह जानना चाहते है कि चुँकि शफीकुर लोन का काम आप देख रही थी तो क्या
आपको उन अवैध हथियारों के बारे मे कुछ पता है? …मुझे माफ किजिएगा। मुझे उन अवैध हथियारों
के बारे मे कुछ भी पता नहीं है। मै तो साधारण सी स्वयं सेवी संस्था चलाती हूँ। शफीकुर
भाईजान ने मसरुफियत के कारण कुछ दिन पहले मुझसे बिल पेमेन्ट्स के लिये मदद माँगी थी।
उनकी मदद करने के लिये हफ्ते मे तीन दिन मै उनके आफिस चली जाती थी। मुझे नहीं मालूम
कि उस गोदाम मे क्या चल रहा था। इतना बोल कर वह चुप हो गयी थी।
अब्दुल लोन जल्दी से बोला… ब्रिगेडियर साहब
नमाज का वक्त होने वाला है। अब मुझे जाना है। यह सवाल-जवाब का दौर फिर किसी दिन हो
जाएगा। मुझे इजाजत दीजिए। यह बोल कर वह खड़ा हो गया। उसके साथ
हम सभी खड़े हो गये थे। हमने अपनी कैप सिर पर लगायी और शुक्रिया कह कर बाहर की ओर चल
दिये। अचानक मै चलते-चलते रुक गया और जाते हुए अब्दुल लोन से कहा… जनाब आपको एक आखिरी
बात बतानी है। सेब के कारोबार मे चार मुख्य कारोबारी थे जो अब घट कर तीन रह गये है।
ऐसे ही ट्रांस्पोर्टर की जमात मे भी एक आदमी कम हो गया है। सभी जमात-ए-इस्लामी से जुड़े
हुए थे। क्या ऐसा नहीं लगता कि इस वक्त जमात मे नेतृत्व की जंग चल रही है? अब्दुल लोन
और नीलोफर ठिठक कर रुक गये थे। मुझे घूरते हुए अब्दुल लोन बोला… मेजर साहब लगता है
कि आप सेब के कारोबार के बारे मे बहुत कुछ जानते है। मुझे नहीं मालूम आप किस नेतृत्व
की बात कर रहे है। यह बोल कर वह आगे बढ़ गया था। मै भी तेज कदमों से चलते हुए ब्रिगेडियर
चीमा के साथ उस इमारत के बाहर निकल गया था। जब हम अन्दर गये थे तब बाजार मे भीड़ लगनी
आरंभ हुई थी परन्तु जब बाहर आये तो हजार से ज्यादा लोग इमारत के बाहर हमारी कार और
ट्रक के आसपास इकठ्ठे हो गये थे। बाजार की दुकाने भी लगभग बन्द हो गयी थी। हम दोनो
जल्दी से कार मे बैठे और हमारे बैठते ही कार का हूटर बजना आरंभ हो गया था। कार के हिलते
ही भीड़ ने स्वत: ही हट कर कार को निकलने का रास्ता दे दिया था।
…सर, ब्रिगेडियर शर्मा से कह कर इस लोन परिवार
के सभी लोगों और उनके कारोबार पर निगाह रखने के लिए कहा जा सकता है। मुझे लगता है कि
अब्दुल लोन जल्दी ही कुछ करेगा। ब्रिगेडियर चीमा ने मुस्कुराते हुए कहा… मेजर, तुम
तो जानते हो कि ब्रिगेडियर शर्मा काउन्टर आप्रेशन्स विंग से कितना नाराज है। एमआई को
वह इस काम पर एक ही शर्त पर लगा सकता है कि जब तुम उसके पास जाकर खुद कहोगे कि तुम्हें
शक है कि यहाँ पर कुछ बड़ा होने वाला है। उसके उपर डाल दोगे तो वह जरुर
उन सब पर नजर रखेगा लेकिन हमे तब तक नहीं बताएगा जब तक कि उसके पास कोई संवेदनशील
जानकारी नहीं मिलती। …ठीक है सर। कुछ ही देर मे हम अपने आफिस पहुँच गये थे। अपने आफिस
मे बैठ कर अब्दुल लोन और नीलोफर के साथ हुई मुलाकात के बारे मे सोच रहा था।
शाम को घर पहुँचा तो आलिया घर मे नहीं थी।
अर्दली से पूछा तो पता चला कि वह दोपहर को एक फोन आने के बाद वह चली गयी थी। मैने कुछ
देर उसका इंतजार किया फिर अम्मी का नम्बर मिलाया लेकिन काफी देर तक घंटी बजने के बाद
भी जब किसी ने जवाब नहीं दिया तो मैने फोन काट दिया और सोचने बैठ गया कि आलिया मुझे
बिना बताये कहाँ जा सकती है। तभी मेरे मोबाईल की घंटी बजी तो मैने जल्दी से फोन उठा
कर बोला… हैलो। …भाईजान, फरहत बोल रहा हूँ। पाकिस्तान से माल लेकर अभी मैने भारतीय
सीमा मे कदम रखा है। हम सुबह तक श्रीनगर पहुँच जाएँगें। इस बार मेरे साथ दो ट्रक और
भी चल रहे है जिसके कारण अबकी बार मै फार्म पर नहीं आ सकता। …फरहत यह ट्रक कहाँ जा
रहे है? …भाईजान हमसे सिर्फ यह कहा गया है कि हमे तीनों ट्रक लेकर पठानकोट पहुँचना
है। वहाँ पर बताया जाएगा कि आगे किसके पास माल छोड़ना है। …कुछ पता है कि इन ट्रकों
मे क्या है? …नहीं। इस बार हमे सीलबंद ट्रक मिला था। …कितने बजे तक श्रीनगर पहुँच रहे
हो? …सुबह सात बजे। अभी तो हम बार्डर पार करके खाना खाने के लिए ढाबे पर बैठे है। कुछ
देर आराम करके दो बजे यहाँ से चलेंगें। बस इतनी बात हमारे बीच हुई थी। मैने घड़ी पर
नजर डाली तो सब कुछ तैयारी करने के लिए सिर्फ बारह घंटे थे। मैने जल्दी से ब्रिगेडियर
चीमा को फोन पर मिलने का समय मांगा तो उन्होंने मुझे घर पर बुला लिया था। मै जल्दी
से वर्दी पहन कर तैयार हुआ और थोड़ी देर के बाद ब्रिगेडियर चीमा के सामने बैठा हुआ था।
…सर, खबर मिली है कि तीन ट्रक सीमा पार करके
पठानकोट जा रहे है। मुझे पूरा शक है कि उन ट्रकों मे कुछ अवैध सामान लाया जा रहा है।
मै चाहता हूँ कि उन्हें रास्ते मे इन्टरसेप्ट करके जाँच की जाए।
…कोई सुबूत है? …नहीं सर। …तो औपचारिक तौर पर हम उन्हें नहीं रोक सकते। …जी सर। ब्रिगेडियर
चीमा कुछ देर तक गहरी सोच मे डूबे रहे और फिर बोले… मेजर, तुम्हारे पास कितने लोगों
की सुरक्षा टीम है? …पाँच सैनिक और एक ड्राईवर। …मेरी सुरक्षा ड्युटी पर आठ लोग है।
कुल मिला कर तेरह की टीम से क्या इस मिशन को अंजाम दे सकते हो? …सर इतने काफी रहेंगें।
…यह सोचो कि इन्टरसेप्ट कहाँ करोगे? उन्होने मेज पर एक नक्शा खोल कर फैला दिया और फिर
बोले… अच्छा रहेगा कि इन्टरसेप्शन पोइंट सैनिक छावनी के आसपास
करो जिससे स्थानीय पुलिस तुम्हारे काम मे कोई रोड़ा नहीं अटका सके। मैने हाईवे पर उँगली
से इंगित करते हुए कहा… पुलवामा चौक बेहतर जगह रहेगी। ब्रिगेडियर चीमा ने मना करते
हुए कहा… चौक के बजाय उससे कुछ किलोमीटर पहले सुनसान जगह पर अपना बेरियर लगा लोगे तो
बेहतर होगा। चौक पर बेरियर लगते ही सीआरपीएफ और स्थानीय पुलिस तुरन्त हरकत मे आ जाएगी।
मैने सहमति मे अपना सिर हिला दिया। ब्रिगेडियर चीमा ने तुरन्त फोन पर अपने निर्देश
जारी कर दिये थे। मैने भी अपनी टीम को फोन करके तैयार रहने के लिए कह दिया था।
उनके पहुँचते ही मैने सभी लोगों को उनका कार्य समझाते हुए कहा… तीन ट्रकों को इन्टरसेप्ट करना है। यह बता कर मैने अपनी योजना की रुपरेखा उनके सामने रख दी थी। सभी सैनिक थे तो उन्हें समझाने मे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी थी। दो जीप और एक ट्रक और सड़क पर लगाने के लिए कुछ बेरियर लेकर हम रात को दो बजे चलने के लिए तैयार हो गये थे। कुछ सोच कर बीच रात को ही मैने जूली और उसके हैंडलर को भी अपने साथ ले लिया था। मेरे निर्देशानुसार सभी स्पेशल फोर्सेज की मरुन कैप और कोम्बेट जैकेट मे थे। सब तैयारी करके हम अपने गंतव्य स्थान की ओर चल दिये थे। दो घंटे के सफर के बाद सुबह सात बजे तक पुलवामा से कोई दो किलोमीटर पहले एक सुनसान जगह पर हमने अपना चेक पोइन्ट बना लिया था। एक जीप को बेरियर पार करके कुछ दूरी पर खड़ा कर दिया था। बेरियर से बीस कदम पहले हमने जीप और ट्रक को इस प्रकार खड़ा कर दिया था कि उस जगह से एक समय पर सिर्फ एक ट्रक ही निकल सके। सब तैयारी करने के बाद तेरह सैनिकों को उपयुक्त स्थानों पर तैनात करके उन तीन ट्रकों के आगमन के लिये हम तैयार हो गये थे। सड़क पर निकलने वाले हर व्यक्ति को लग रहा था कि रात को फौज की जीप और ट्रक की भिड़न्त हो गयी है।
आठ बजे फरहत का फोन आया। …समीर भाईजान हम बडगाम
से आगे निकल चुके है। आप कहाँ पर है? …पुलवामा चौक से कुछ पहले दो गाड़ियाँ भिड़ गयी
है। वहीं पर बेरियर लगा रखा है। …भाईजान हमारे आगे कुपवाड़ा से एक पुलिस जीप और कार
चल रही है। वह सारे बेरियर और टोल पोइंट पर रुक कर हमारे लिये रास्ते साफ करा रही है।
आज ट्रक को रोकना मुश्किल होगा। …गोल्डन ट्रांस्पोर्ट के ट्रक है? …भाईजान, एक गोल्डन
ट्रांस्पोर्ट का ट्रक है और दो ट्रक एजाज ट्रांसपोर्ट के है। सभी साथ चल रहे है। मै
सबसे आगे चल रहा हूँ। …तुम चिन्ता मत करो। अगर रोकना मुश्किल होगा तो नहीं रोकेंगें।
इतनी बात करके उसने फोन काट दिया था। मैने जल्दी से अपने निर्देश मे थोड़ा बदलाव किया
और हम सभी उन तीन ट्रको के लिए तैयार हो गये थे। आधे घंटे के अंतराल के पश्चात एक पुलिस
जीप लगातार हूटर बजाते हुए आती हुई दिखी तो मैने सभी को सजग रहने का इशारा कर दिया।
उसी जीप से कुछ दूरी बना कर एक नीली बत्ती लगी हुई सफेद कार भी चल रही थी। जैसे-जैसे
वह नजदीक आ रहे थे वैसे ही अब तीनों ट्रक भी साफ दिखायी दे रहे थे। अपनी स्पेशल फोर्सेज
की मरुन कैप सिर पर सजा कर कलाश्नीकोव एके-203 को अपने कंधे पर लटका कर मुठभेड़ के लिये मै तैयार हो गया था।
हूटर बजाती हुई पुलिस जीप की गति धीरे हुई
और फिर ट्रक पर तैनात सैनिकों पर थानेदार अपना रूल हवा मे लहराते हुए दहाड़ा… सड़क को
साफ करो। एसपी साहब पीछे आ रहे है। बेरियर पर तैनात सैनिकों ने उन्हें आगे बढ़ने का
इशारा किया तो थानेदार एक भद्दी गाली देता हुआ बोला… साले अपने बाप की सड़क समझ कर बैठे
है। तभी जीप बेरियर के सामने आकर रुकी और थानेदार जीप से कूद कर मेरे पास आकर बोला…
एसपी साहब निकल रहे है। जल्दी से सड़क क्लीयर करो। उसके मुँह से शराब का भभका मेरे चेहरे
से टकरा गया था। वह मुझे धक्का देकर बोला… जल्दी से सड़क क्लीयर करो। वह इतना ही बोला
था कि तभी मेरा हाथ पूरी ताकत से उसके चेहरे पर पड़ा…चटाख…थप्पड़ की आवाज गूंज गयी थी।
एक ही थप्पड़ मे थानेदार लहराते हुए चक्कर खाकर जमीन पर बैठ गया था। उसके ड्राईवर पर
मै जोर से दहाड़ा… इस कूड़े को यहाँ से हटाओ। एकाएक जीप से लड़खड़ाते हुए चार पुलिस वाले
उतर कर और मेरी ओर झपटे लेकिन तब तक मेरी एके-203 ने उनको निशाने पर ले लिया था। …चुपचाप
जमीन पर बैठ जाओ। अचानक मेरे पीछे से तीन सैनिक अपनी सेमी ओटोमेटिक गन लेकर सामने आ
गये थे। फटाफट वह सभी अपने थानेदार के साथ जमीन पर जल्दी से बैठ गये थे। तभी सफेद कार
मेरे सामने आकर रुकी और शीशा नीचे करके जमीन पर बैठी हुई अपनी फोर्स को देख कर एसपी
साहब घुर्राये… यहाँ क्या हो रहा है? तब तक तीन ट्रकों का काफिला उनकी कार के पीछे
आकर रुक गया था। मै उस एसपी को पहचानता था। यह कुपवाड़ा का एसपी इंतिजार हुसैन था।
मैने अपने साथ खड़े तीनो सैनिकों से बुलन्द
आवाज मे कहा… एसपी साहब को भी इज्जत से कार से उतारो। इन खाकी वर्दी वालों को आज तमीज
सिखा कर वापिस भेजेंगें। अगर इनमे से किसी ने भी हिलने की कोशिश करी तो बेझिझक गोली
मार देना। इतना कह कर मै ट्रकों की ओर चला गया था। मरुन कैप के कारण किसी ने भी विरोध
करने की कोशिश नहीं की थी। सभी जानते थे कि ‘रेड बेरेट’ चलते फिरते खूनी दरिंदे है और अगर कह दिया है तो
गोली मारने से नहीं हिचकेंगें। मेरे सैनिकों ने तीनों ट्रको को अपने कब्जे मे ले लिया
और सभी ड्राईवरों और क्लीनरों को इकठ्ठा करके उन्होंने एक किनारे मे खड़ा करवा दिया
था। फरहत और फैयाज चुपचाप खड़े हुए थे। इतनी देर मे सड़क पर कारों और ट्रकों की लाईन
लग गयी थी। मेरे दो सैनिक पुलिस की जीप और कार हटवा कर रास्ता साफ करने मे लग गये थे।
तब तक मेरे दो सैनिक ट्रक कन्टेनर की सील तोड़ कर हैन्डलर और जूली के साथ ट्रक के सामान
का निरीक्षण करने मे लग गये थे। पहली क्रेट पर ही जूली अटक गयी थी। हैन्डलर एक बार
पहले भी मेरी सारी कार्यवाही देख चुका था। क्रेट खोलते ही वह जोर से चिल्लाया… सर।
ड्र्ग्स का कनसाइन्मेंट है। मै फरहत के पास पहुँच कर बोला… इन्वोइस। उसने जल्दी से
इन्वोइस मेरे हाथ मे थमा दी थी। …इस ट्रक को जब्त कर लो। दूसरा ट्रक चेक करो। यह बोल
कर मै वापिस पुलिस वालों के पास चला गया था।
…एसपी साहब उठिए। वह चुपचाप मेरे सामने आकर
खड़ा हो गया था। उसके चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था। वह कुछ बोलता उससे पहले मैने पूछा…
क्या यह सभी कंटेनर आपके है? एसपी ने जल्दी से अपना सिर हिलाते हुए कहा… नहीं, मै तो
जम्मू जा रहा था। क्यों क्या हुआ? …एसपी साहब आपके पीछे वाले ट्रक मे ड्र्ग्स निकली
है। तभी एक सैनिक मेरी ओर दौड़ते हुए आया… सर आप चल कर बाकी सामान भी देख लिजिए। इंतिजार
हुसैन को वहीं छोड़ कर मै उसके साथ दूसरे ट्रक की ओर चल दिया। दूसरे ट्रक मे भी ड्र्ग्स
थी परन्तु तीसरे ट्रक का सामान देख कर एक पल के लिए मै भी चौंक गया था। पूरा ट्रक भारतीय
करेन्सी से ठसाठस भरा हुआ था। बात करते हुए मैने फरहत को इशारा किया और मौका देखते
ही वह दोनो निकल भागे थे। दिखाने के लिए मेरे सैनिकों ने उनका कुछ दूर तक पीछा किया
और कुछ ब्लैंक फायर किये फिर वह वापिस लौट आये थे। बाकी दोनो कंटेनर ट्रकों की इन्वोइस
उनके ड्राईवरों से लेकर मैने तीनों इन्वोइस एसपी के सामने रखते हुए कहा… हम अभी तीनों
ट्रकों को जब्त कर रहे है। दो कंटेनर ट्रक्स मे ड्रग्स है और एक मे नकली भारतीय करेंसी
निकली है। आप गवाही दे दीजिए। अपने साथ खड़े हुए एक सिपाही से
मैने कहा… एसपी साहब को जब्त माल दिखा कर इनसे सभी इन्वोइस पर गवाही के दस्तखत ले लेना।
सबसे पहले अपना पीछा छुड़ा कर भागने वाला एसपी
इंतिजार हुसैन था। उसने कुछ देर न नुकुर की परन्तु ड्रग्स और नकली करेंसी देख कर उसके
पाँव तले जमीन खिसक गयी थी। उसने जल्दी से सारी इन्वोइस पर गवाह के दस्तखत किये और
वहाँ से निकल गया। जब तक सारे बेरियर हटा कर फौज के ट्रक पर रखवाये तब तक मैने थानेदार
को उसके मातहतों के सामने जलील करते हुए कहा… खाकी वर्दी पहन कर शराब मे झूम रहे थे।
तुम्हें शर्म आनी चाहिए। अगर तुम सबके नाम इन कंटेनरों के साथ जोड़ दूँ तो सबकी नौकरी
चली जाएगी और सारी जिंदगी जेल मे चक्की पीसोगे। सारा नशा उतर चुका था। थानेदार रोते
हुए बोला… हुजूर माफ कर दीजिए। एसपी साहब ने बताया था कि मंत्री
युसुफजयी ने निर्देश दिये थे कि तीनो कंटेनर ट्रकों को सुरक्षित पठानकोट पहुँचाना है।
फिलहाल मै ज्यादा बखेड़ा करना नहीं चाहता था। इसीलिए मेरा इशारा मिलते ही वह थानेदार
अपने पुलिसवालों को लेकर तुरन्त वहाँ से निकल गया था। उनके जाने के बाद सुरक्षा की
दृष्टि से किसी भी कार्यवाही के लिए हर ट्रक पर तीन सैनिक तैनात कर दिये थे। फौज का
ट्रक सबसे पीछे चल रहा था। मशीन गन पर से कवर हटा कर उसे फौज के ट्रक पर माउन्ट कर
दी गयी थी। कुछ ही देर मे दो जीप और चार ट्रक मेरे नेतृत्व मे वापिस कोम्पलेक्स की
ओर जा रहे थे। सारे रास्ते किसी ने हमे रोकने की चेष्टा नहीं की थी। दोपहर तक तीनों
ट्रक सामान समेत लेकर हम सुरक्षित कोम्पलेक्स मे पहुँच गये थे। ब्रिगेडियर चीमा बाहर
ही मिल गये थे। सारा सामान उनको सौंप कर मै जूली और उसके हैंडलर को छोड़ने के लिये चला
गया था।
दो घंटे के बाद ब्रिगेडियर चीमा को मै
सारी कहानी उन्हें सुना रहा था। मैने तीनों इन्वोइस उनके सामने रखते हुए कहा… सर, भेजने
वाली कंपनी रावलपिन्डी की गोल्डन एन्टरप्राइज है। सामान लाने वाली कंपनी का नाम गोल्डन
ट्रांस्पोर्ट कंपनी है। यह लोग जिसको सामान पहुँचा रहे थे उस कंपनी का नाम गोल्डन एक्सिम
प्राईवेट लिमिटिड है। गोल्डन नाम तीनों मे है परन्तु एक का पता रावलपिन्डी का है, दूसरे
का पता श्रीनगर का है और तीसरे का पता कुपवाड़ा का है। कुपवाड़ा से मंत्री युसुफजयी के
निर्देश पर स्थानीय पुलिस सभी ट्रकों को सुरक्षा दे रही थी। दो ट्रक भले ही एजाज ट्रांस्पोर्ट
के है परन्तु मुझे लगता नहीं कि कोई भी इन तीन ट्र्कों या सामान के बारे पुलिस मे रिपोर्ट
करेगा। अपनी बात रख कर मै चुप हो गया था। ब्रिगेडियर चीमा भी कन्टेनर ट्रक मे रखा हुआ
सामान देख कर सोच मे डूब गये थे।
…मेजर, यह गोल्डन कम्पनी का रहस्य तो खोलना
पड़ेगा। रावलपिंडी, कुपवाड़ा और श्रीनगर के बीच मे क्या संबन्ध है? …सर, लगता है कि अब
हमे भी रावलपिंडी से श्रीनगर तक सड़क नापनी पड़ेगी। असली खेल सीमा पार से चल रहा है और
हम यहाँ पर उसे रोकने की कोशिश कर रहे है। पता नहीं ऐसे कितने कन्टेनर अब तक यहाँ से
निकल कर जा चुके है। इस बार हमारे पास पुख्ता जानकारी थी तो हमने एसपी और थानेदार को
भी नहीं बक्शा था। ब्रिगेडियर चीमा ने हाँ मे हाँ मिलाते हुए कहा… तुम ठीक कह रहे हो।
अब सवाल बनता है कि कैसे। …सर, मुझे कुछ समय चाहिये एक पुख्ता योजना बनाने के लिये।
…मेजर, जो भी करना सोच समझ कर करना क्योंकि सीमा पार का चक्कर है। उनके हवाले कंटेनर
की चाबियाँ करके मै अपने घर की ओर चल दिया। पूरी रात जागने के कारण सिर घूम रहा था।
जब तक घर पहुँचा तब तक आलिया वापिस आ चुकी थी।
आलिया को देखते ही मै उस पर बरस पड़ा… कल कहाँ
गयी थी? …समीर, कल अम्मी के साथ बडगाम गयी थी। गुलाम नबी का माल लोड करना था। उसने
सुबह अम्मी से कहा था कि उसे आज ही चार ट्रक माल चाहिए तो बताओ क्या करती। …मुझे फोन
पर बता तो सकती थी। …तुम्हारे आफिस फोन किया तो तुम आफिस मे नहीं थे। तुम्हारे मोबाइल
पर फोन किया लेकिन तुम्हारा फोन नहीं मिला। हमे देर हो रही थी तो हम निकल गये थे। मैने
अपनी दिनचर्या के बारे मे सोचा तो याद आया सुबह ब्रिगेडियर चीमा के पास था और दोपहर
को अब्दुल गनी लोन से बात करने के लिये गया था। अबकी बार आलिया बरस पड़ी… तुम कल पूरी
रात गायब रहे। तुमने खबर दी थी क्या? एकाएक शिकारी अब शिकार बन गया था। मैने मनाने
वाले स्वर मे कहा… कल रात को एक फौजी आप्रेशन को अंजाम देने के लिये पुलवामा जाना पड़
गया था। मामला गोपनीय था तो किसी को बता भी नहीं सकता था। काफी देर उसके सामने गिड़गिड़ाने
के बाद वह शान्त हुई थी।
रात को एकाकार के बाद पिछली रात की कहानी सुनाने
के बाद मैने पूछा… एक बार मै फरहत के साथ सीमा पार जाने की सोच रहा हूँ। मेरी बात सुनते
ही वह बिदक गयी… पागल हो गये हो क्या? मै तुम्हें वहाँ हर्गिज नहीं जाने दूँगी। बहुत
देर तक मै उसको समझाता रहा लेकिन वह टस से मस नहीं हुई तब मैने कहा… ठीक है सीमा पार
नहीं जाऊँगा लेकिन मुझे कल किश्तवार जाना है। …मै भी चलूँगी। मैने उसे बहुत टालने की
कोशिश परन्तु वह तो जिद्द पर अड़ गयी थी। आखिरकार मैने कहा… ठीक है मेरे साथ चलो लेकिन
फिर मुझे वहाँ से कुपवाड़ा जाना है। वहाँ हर्गिज तुम्हें नहीं लेजा सकता। तुम सोच लो।
उस रात को हमारे बीच मे आखिरकार यह तय हो गया कि वह किश्तवार से स्थानीय बस से वापिस
आ जाएगी और मै अकेला कुपवाड़ा निकल जाऊँगा। सुबह अम्मी का फोन आ गया था कि दोपहर को
बिलिंग के लिये गुलाम नबी के आफिस जाना है। आलिया मन मसोस कर रह गयी थी। अपनी जीप उसके
पास छोड़ कर मै स्थानीय बस से दोपहर तक किश्तवार पहुँच गया था।
किश्तवार जाने का उद्देश्य सिर्फ जन्नत और
आस्माँ को ढूँढने का था। वह दोनो सीमा पार से आयी थी। मै उनसे घुसपैठ के रास्ते के
बारे मे जानना चाहता था। बस स्टैन्ड पर उतर कर बाहर निकलते ही दिमाग मे बस एक ही बात
घूम रही थी। एक अनजान जगह पर बिना किसी पते के उन दोनो कैसे ढूँढा जाये। कुछ सोच कर
मै किश्तवार की मुख्य सड़क पर बनी हुई एक पुरानी सी मस्जिद मे चला गया था। मौलवी साहब
एक किनारे मे बैठ कर ऊँघ रहे थे। मेरे कदमों की आहट सुन कर वह चौंक कर खड़े हो गये और
बोले… मियाँ कहाँ चले आ रहे हो? …जनाब बहुत दूर से किसी को ढूँढते हुए यहाँ पहुँचा
हूँ। क्या आप बता सकते है कि बक्खरवाल समाज का डेरा कहाँ है? मौलवी साहब कुछ सोच कर
बोले… मियाँ, उनके बारे मे सिर्फ गड़रिये ही बता सकते है। वह लोग तो घुमन्तु जाति के
है तो पता नहीं उन्होंने कहाँ अपना डेरा जमाया होगा। इस सड़क के आखिर मे एक कब्रिस्तान
है और उसके पीछे कुछ गड़रियों का डेरा है। वहाँ से पता चल जाएगा कि बक्खरवाल समाज ने डेरा कहाँ लगाया है। मौलवी साहब का शुक्रिया करके मै उस कब्रिस्तान की ओर चल दिया था।
जैसा बताया गया था वैसा ही एक डेरा कब्रिस्तान
के पीछे बना हुआ था। भेड़ और बकरियों की तादाद देख कर साफ था कि यही गड़रियों का डेरा
है। एक बूढ़ा आदमी पत्थर पर बैठ कर बीड़ी पीता हुआ दिखा तो मै उस ओर चला गया। …सलाम बड़े
मियाँ। एक नजर मुझ पर डाल वह फिर अपनी सोच मे गुम हो गया था। …बड़े मियाँ, यह बक्खरवाल
समाज कहाँ ठहरा हुआ है। पहली बार इस प्रश्न को सुन कर उसका ध्यान मेरी ओर गया था।
…बेटा, इन दिनों मे बक्खरवाल समाज यहाँ नहीं होता है। वह तो जब बर्फ पड़ती है तभी यहाँ
का रुख करते है। उनसे अभी मिलना है तो बांदीपुरा या जंस्कार चले जाओ। एक पल के लिये
मेरी सारी आशा निराशा मे बदल गयी थी। कुछ सोच कर वह बूढ़ा फिर से बोला… पाँच-दस बक्खरवाल
परिवार इस पहाड़ी के पार डेरा डाल कर रह रहे है। वहाँ पर सिर्फ कुछ औरतें और बच्चे ही
मिलेंगें क्योंकि सारे मर्द तो इस समय पहाड़ पर गये हुए है। तुम्हें उनसे क्या काम है?
…बड़े मियाँ मै एक परिवार की तलाश कर रहा हूँ। उन्हें एक जरुरी जानकारी देनी है। बड़े
मियाँ को खुदा हाफिज करके मै पहाड़ी पगडंडी पर चलते हुए शाम तक बक्खरवाल के डेरे पर
पहुँच गया था। शाम की ठंडक अपना रंग दिखाने लगी थी और अब भूख भी सता रही थी। चार-पाँच
कच्ची झोपड़ियाँ एक दूसरे से कुछ दूरी पर बनी हुई थी। कुछ बच्चे इधर-उधर खेल रहे और
स्त्रियाँ अपने घरेलू कार्य मे व्यस्त थी। कुछ देर दूर से उनको देखता रहा क्योंकि समझ
मे नहीं आ रहा था कि किससे कैसे बात आरंभ करुँ। आदमी से बात करना तो आसान था परन्तु
स्त्रियों से बात करना वह भी अकेले मे बेहद मुश्किल लग रहा था। कुछ हिम्मत करके मै
एक झोपड़ी की ओर चला गया और बाहर बैठी हुई स्त्री से कुछ दूरी बना कर पूछा… जन्नत कहाँ
रहती है। मैने अंधेरे मे तीर चलाया था। मेरी आवाज सुन कर पहले तो वह झपट कर खड़ी हो
गयी और फिर मुँह पर एक झीना सा पर्दा गिरा कर बोली… मियाँ किसको पूछ रहे हो? …जन्नत।
वह कुछ सोच कर बोली… इस नाम का यहाँ कोई नहीं रहता। हमारी बातचीत सुन कर बच्चे और अन्य
स्त्रियाँ भी आसपास इकठ्ठे हो गये थे। …क्या आस्माँ का नाम सुना है? उस स्त्री की आवाज
एकाएक तेज हो गयी और एक अनजान भाषा मे कुछ बोलने लगी। मै किसी परेशानी का शिकार नहीं
होना चाहता था तो मैने जल्दी से माफी मांगते हुए कहा… अच्छा, मै जा रहा हूँ। यह बोल
कर मै मुड़ा और वापिस पगडंडी की ओर चल दिया।
कुछ कदम चलते ही एक बच्चा मेरा कुर्ता पकड़ कर खींचते हुए कुछ बोला तो मैने रुक कर उसकी ओर देखा तो वह इशारे से कुछ दिखाने की कोशिश कर रहा था। पहाड़ की तलहटी मे अंधेरा होने के कारण अब साफ दिख नहीं रहा था। वह लगातार मेरा कुर्ता खींच रहा था तो मै उसके साथ चल दिया। कुछ दूर चलने के बाद वह एक झोंपड़ी मे घुस गया था। मुझे समझ मे नहीं आया कि अन्दर जाना चाहिए कि नहीं। इसी पेशोपश मे कुछ देर मै बाहर खड़ा रहा कि तभी अन्दर से आवाज आयी… भीतर चले आईए। मैने झोंपड़ी के अन्दर जैसे ही कदम रखा तो मेरी सारी थकान एकाएक चली गयी थी। लालटेन की रौशनी में लहंगा चोली पहने जन्नत मुझे घूर रही थी। …यहाँ क्यों आये हो? मैने मुस्कुरा कर कहा… न दुआ न सलाम। मैने हमेशा तुम्हारी मदद की है और तुम मेरे साथ इतना रुखा बर्ताव कर रही हो। मेरी नजर उस पर टिकी हुई थी लेकिन वह आँख मिलाने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी। मै कारण जानता था परन्तु मै उसके मुख से सुनना चाहता था। जन्नत कुछ देर चुप रही और फिर धीरे से बोली… क्या पुलिस साथ लाये हो? …क्यों? अबकी बार जन्नत खीजते हुए चिल्लायी… सच बोलो क्या अपने साथ पुलिस लाये हो? मै उसकी ओर बढ़ा तो वह दो कदम पीछे हट कर फूस की दीवार से सट गयी। तभी कुछ स्त्रियाँ बाहर इकठ्ठी होकर बोलने लगी तो जन्नत मुझे वहीं छोड़ कर बाहर निकल कर उनसे बात करने चली गयी थी। थोड़ी देर के बाद वह मेरे सामने बैठते हुए बोली… समीर, तुम यहाँ क्यों आये हो? यह बोल कर वह मेरे सामने जमीन पर बैठ गयी। मै भी फूस की दीवार पर पीठ टिका कर बैठ गया था। …जन्नत तुम्हारा बच्चा कहाँ है? …मर गया। वह सिर झुका कर बैठ गयी थी। मै उठ कर उसके पास जाकर बैठ गया और उसकी पीठ को सहलाते हुए पूछा… उसे क्या हो गया था? उसके मुख एक दर्द भरी सिसकी निकल गयी थी। वह धीरे से बड़बड़ायी… बेचारे को बीमारी खा गयी। इतना बोल कर वह फूट-फूट कर रो पड़ी थी। उसके मुख से निकलने वाली हर आह मे गहरा दर्द छिपा हुआ था। मैने उसको रोने दिया। कुछ देर बाद जब उसका सारा गुबार शान्त हुआ तो मैने कहा… मै यहाँ तुम्हें सिर्फ यह बताने आया था कि तुम्हें छिपने की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि हाजी जुबैर मोहम्मद के कत्ल की पुलिस फाइल मे तुम्हारा कोई जिक्र नहीं है। इतनी देर मे उसने पहली बार मेरी ओर ध्यान से देखा था। उसकी आँखे पूछ रही थी कि मै कहीं दिलासा तो नहीं दे रहा था। …कसम खुदा की तुम्हारा नाम पुलिस रिकार्ड मे नहीं है। तुम आजाद हो और अब पुलिस से छिपने की जरुरत नहीं है। वह सिर झुका कर बैठ गयी थी। मै बहुत कुछ पूछना चाहता था परन्तु उसके बच्चे की मृत्यु के बारे मे जान कर मेरे मुख पर ताला पड़ गया था।
हर अंक की तरह ये अंक भी बहुत ही जबरदस्त रहा और आज के अंक में पता चला की जो भी सब कार्य हो रहा है उसमे एक चीज समान है गोल्डन नाम का और कहीं ना कहीं छद्म नाम लेकर कोई एक रहनुमा इसको चला रहा है और लगता है समीर भी अब सीमा पार जा कर ही इसकी पोल पट्टी खोलेगा मगर सीमा पार जाने का रास्ता जन्नत के झोपड़ी से होके गुजर रहा क्या समीर की इस सफर में जन्नत कुछ मदद कर पाएगी या फिर कोई नया किरदार आएगा समीर को इस भूल भुलैया से बचने।
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम देरी के लिये माफ करना भाई। मुझे खुशी है कि आपको यह अंक पसन्द आया। शुक्रिया…
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