बुधवार, 14 दिसंबर 2022

  

काफ़िर-23

 

मै नमाजियों के साथ चलते हुए इस्लामिया मस्जिद मे दाखिल हो गया था। मै हैरान था कि फज्र की नमाज मे काफी लोग मस्जिद मे जमा थे। नमाज के बाद लोग वापिसी करते है परन्तु सभी लोग नमाज अदा करने बाद भी अपनी जगह पर चुपचाप बैठे रहे थे। यह साफ था कि वह किसी का इंतजार कर रहे थे। सबकी नजरे उँचे से एक रिक्त स्थान पर टिकी हुई थी। अचानक कुछ हलचल हुई और एक वृद्ध व्यक्ति सिर पर पगड़ी और सफेद चोगा पहने धीमे कदमों से चलते हुए उस रिक्त स्थान की ओर बढ़ता चला जा रहा था। सभी नमाजियों ने झुक कर उसका सजदा किया और फिर चुपचाप बैठ गये थे। वहाँ पहुँच  कर वह एक पल के लिये खड़ा रहा और फिर तस्बीह पकड़े हुए हाथ को हवा मे उठा कर सभी नमाजियों का अभिवादन करके बैठ गया। उसने कुछ देर अल्लाह और इस्लाम के बारे मे बताया और फिर तुरन्त दुनिया मे मोमिनों पर होने वाले अत्याचार पर बोलने लगा। मै चुपचाप उसे सुन रहा था लेकिन मेरी नजरें उसके पीछे खड़े हुए लोगों पर टिकी हुई थी। सभी के कन्धों पर आधुनिक ओटोमेटिक हथियार लटक रहे थे। उसकी तकरीर मुश्किल से आधे घंटे चली थी। आखिर मे उसने आह्वान किया कि इस जिहाद मे ज्यादा से ज्यादा नौजवान उसके साथ जुड़े और फिर वह उठ कर चला गया था। उसके जाते ही सारी भीड़ पीरजादा मीरवायज के बारे मे बात करती हुए अपने-अपने घरों की ओर चल दी थी।

मै अपने होटल की ओर वापिस चल दिया। अभी भी अंधेरा पूरी तरह से छ्टा नहीं था। कुछ चाय की दुकानें खुल चुकी थी। मस्जिद से निकल कर इक्के-दुक्के लोग चाय पीने के लिये वहाँ बैठ गये और उनको देखा-देखी मै भी चाय पीने के लिये बैठ गया था। चाय की दुकान के किनारे बातचीत करते हुए लोग अचानक कुछ देख कर चुप हो गये क्योंकि तभी एक पुरानी सी लौरी मस्जिद के मुख्य द्वार पर तेजी से आकर रुकी और उसमे से तीस-चालीस जवान उतरे और तेज कदमों से चलते हुए मस्जिद मे दाखिल हो गये। उनके जाते ही एक बार फिर नमाजियों मे बातचीत का दौर आरंभ हो गया था। चाय पीकर मै भी वापिस होटल के कमरे मे आ गया था। आस्माँ अभी भी सो रही थी। आस्माँ को जगा कर मै तैयार होने चला गया। दिन निकलने साथ ही दुकानें खुलने लगी थी और कारोबार भी आरंभ हो गया था। मैने नाश्ता पैक कराया और वापिस कमरे की ओर चल दिया। आस्माँ भी तैयार हो चुकी थी। वह अपना मर्दों वाला वेष त्याग कर स्त्री के रुप मे आ गयी थी। हमने नाश्ता समाप्त किया और फिर अपने अगले कार्य के बारे मे बात करने बैठ गये थे। …आज तुम क्या करोगी? …बक्खरवाल समाज के डेरे को ढूंढने जाऊँगी। स्थानीय बस पकड़ कर यहाँ से गढ़ी, जाबा और बालाकोट का चक्कर लगा कर वापिस आ जाऊँगी। तुम क्या करोगे? …मै उस गोदाम पर जाकर लोगों से बात करके गोल्डन कंपनी के बारे मे जानकारी इकठ्ठी करुँगा। कुछ ही देर मे आस्माँ अपना बुर्का ओड़ कर चलने को तैयार हो गयी थी। हम दोनो अलग-अलग रास्ते पर निकल पड़े थे।

हमने तय किया था कि इन दो दिन मे आस्माँ अपने डेरे के लोगों को ढूंढने के बहाने मुजफराबाद के बीस मील के दायरे मे घूम कर सिर्फ इलाके का जायजा लेगी। कोई ट्रेनिंग सेन्टर जैसी जगह दिखे तो फोन के जीपीएस की मदद से नक्शे पर चिन्हित कर देगी। मैने साफ निर्देश दिये थे कि सिर्फ देख कर वहाँ से चल देना। मै सीधे उसी गोदाम पर पहुँच गया था। लदाई और ढुलाई का काम अपने पूरे जोरों पर था। मैने गोदाम के बाहर खड़े हुए आदमी से अल्ताफ के बारे मे पूछा तो उसने बताया कि वह अभी पहुँचा नहीं है। मै वहीं किनारे मे बैठ कर उसकी राह ताकने लगा। थोड़ी देर मे ही मुझे अल्ताफ आता हुआ दिखा तो मै उसकी ओर चल दिया। मुझे देखते ही वह बोला… वापिस नहीं गया? मै कुछ बोलता उससे पहले वह तेज कदमों से चलते हुए बोला… ठहर, पहले कार्ड पंच करके आता हूँ। वैसे ही आज देर हो गयी है। कुछ देर के बाद वह अपना रजिस्टर लेकर मेरी ओर आ गया था। …अल्ताफ भाई, कल तो सारा काम खत्म करने मे दस बज गये थे। सफर मे थक भी गया था इसलिये सोचा कि आज कुपवाड़ा के लिये निकल जाऊँगा। क्या आपका कोई ट्रक उस ओर जा रहा है? अल्ताफ ने मुझे घूर कर देखा और फिर बोला… ट्रक तो जाएँगें पर तू उसमे नहीं जा सकता। …क्यों भाईजान। मै भी तो आपका सामान ही लेकर आया था। आप सिर्फ ड्राईवर बता दो बाकी की बात तो मै कर लूँगा। हम ड्राइवर जात एक दूसरे के लिये इतना तो कर ही देते है। अल्ताफ ने हँसते हुए कहा… कोशिश करके देख ले। मै शर्त लगा सकता हूँ कि तेरे को यहाँ से कोई ड्राईवर अपने साथ लेकर नहीं जाएगा। मै हैरानी से उसका मुँह ताकता रह गया।

कुछ सोच कर मैने कहा… अल्ताफ भाई, क्या हुसैन साहब से बात करके देख लूँ। …मियाँ, इसकी इजाजत तो हुसैन भाई भी नहीं दे सकते है। यह निर्देश तो सीधे मुन्नवर भाई से आया है। कश्मीर मे जाने वाले हमारे किसी भी ट्रक मे सिर्फ हमारे ड्राईवर और क्लीनर ही बैठ सकते है। अगर कोई और बैठा हुआ पाया गया तो उसकी सजा सिर्फ मुन्नवर भाई ही तय करते है। एकाएक वह दबी हुई आवाज मे बोला… मियाँ, मेरी सलाह मानो कि तुम चुपचाप बस से निकल जाओ। इतना बोल कर वह खड़े हुए ट्रक पर चढ़ कर अपने काम मे व्यस्त हो गया था। इतनी गोपनीयता किस लिये? यह बात मेरी समझ से बाहर थी लेकिन एक बात तो तय हो गयी थी कि इस गोल्डन कंपनी का मालिक मुन्नवर लखवी था। मै अभी एक कोने मे खड़ा हुआ उसके बारे सोच ही रहा था कि तभी एक बेहद महंगी कार गोदाम के गेट पर आकर रुकी और उसके पीछे धड़धड़ाती हुई दो टोयोटा पिक-अप वेन तेजी से आकर रुक गयी थी। हर पिक-अप मे राईफल कंधे पर टांगे आठ-दस तालिबानी नौजवान थे। सभी के चेहरे कपड़े से ढके हुए थे। पिक-उप के रुकते ही सभी जमीन पर कूद गये और महंगी कार को चारों ओर से घेर कर खड़े हो गये थे। गोदाम मे भगदड़ मच गयी थी। उस महंगी कार का दरवाजा खुला और उसमे से एक मौलाना और एक जिहादी सा दिखने वाला आदमी जैसे ही उतरा तो वहाँ पर एक नारा गूँजा… नारा-ए-तदबीर…अल्लाह-ओ-अकबर और फिर तेजी से कदम बढ़ाते हुए सभी लोग गोदाम मे चल गये थे। मै कोने मे खड़ा हुआ यह नजारा देख रहा था। जकीउर लखवी को देखते ही पहचान गया था। वह अपने लश्कर के साथ इस गोदाम पर क्या करने के लिये आया था? अब यह बात मेरे दिमाग मे घूम रही थी।

उनके जाने के बाद ट्रक मे खड़ा हुआ सहमा सा अल्ताफ कूद के मेरे पास आकर खड़ा हो गया था। मैने पूछ लिया… यह कौन है? उसने घूर कर देखा और फिर धीरे से बुद्बुदाया… चुप। उस दिन मैने नोट किया कि सभी गोदाम मे काम करने वाले उनके आते ही अचानक गायब हो गये थे। …आज लगता है शहर मे कुछ हंगामा होगा। लश्कर पूरे जोश मे आया है। मैने फिर एक सवाल दाग दिया… कहाँ से आया है? अल्ताफ का ध्यान पिक-अप पर लगा हुआ था। उसने धीरे से कहा… बालाकोट मे इनका एक डेरा है। यह लोग वहीं से आये है। हम लगभग एक घंटे वही खड़े रहे थे। मजाल है कि कोई अपनी जगह से उस दौरान हिला था। उन सबके जाने के बाद ही एक बार फिर गोदाम मे काम शुरु हो सका था।

गोल्डन कंपनी का रहस्य किसी ने नहीं खोला परन्तु मेरे लिये यह साफ हो गया था कि इस कंपनी के पीछे लश्कर खड़ा हुआ है। मै वापिस होटल आ गया था। मैने महसूस किया था कि उस रोज बाजार मे एक भय का माहौल था। दोपहर से ही कुछ आटो मे लाउडस्पीकर से घोषणा होनी शुरु हो गयी थी कि शाम को पाँच बजे लश्कर कमांडर जकीउर लखवी परेड ग्राउन्ड पर पहुँच रहे है। शहर मे पुलिस की उपस्थिति भी बढ़ गयी थी। चार बजे तक सारा बाजार खाली हो गया था। कुछ सोच कर मै भी भीड़ मे शामिल हो गया और उनके साथ चलते हुए परेड ग्राउन्ड पहुँच गया था। कोई आदमी स्टेज से अपनी तकरीर दे रहा था। लाउडस्पीकर के नीचे एक किनारे मे खड़ा हुआ मै उसकी तकरीर सुन रहा था। वह कश्मीर मे भारतीय फौज के द्वारा जुल्म और बर्बरता की कहानी सुना रहा था। उसकी तकरीर समाप्त होने के बाद जमात-ए-इस्लामी के मकबूल बट का नाम पुकारा गया तो मै चौंक गया। अब्बा यहाँ पर क्या कर रहे है? अब्बा ने कश्मीर के बदलते हुए हालात और भारतीय फौज की दमन की दास्ताँ का राग अलापा और पाकिस्तानी भाईयों से अपील करी कि वह उन्हें आजाद कराने मे मदद करें। अब्बा के बाद दो और तकरीरें हुई फिर एकाएक भीड़ मे करंट सा फैल गया था। जकीउर लखवी अपने लश्कर के साथ स्टेज पर आता हुआ दिखाई दिया तो एक बार फिर वही नारा बुलंद हो गया। उसके बोलते हुए हर दो तीन लाईन के बाद वही नारा भीड़ लगाती हुई दिख रही थी। एक जिहादी पागलपन का माहौल चारों ओर व्याप्त हो गया था।

रात को आठ बजे तक परेड ग्राउन्ड का मजमा समाप्त हुआ और मैने महसूस किया कि बाजार मे एक बार फिर से रौनक लौट आयी थी। जब मै अपने होटल पहुँचा तब तक आस्माँ कमरे मे मेरा इंतजार कर रही थी। मुझे देखते ही वह बोली… बहुत देर हो गयी। कहाँ चले गये थे? मैने उसे परेड ग्राउन्ड की कहानी सुनायी तो उसने बताया की जिस रास्ते पर उसने सफर किया था आज वहाँ पर हर जगह जिहादी ही दिख रहे थे। …समीर, तुम सोच भी नहीं सकते कि गढ़ी, जाबा और बालकोट मे कितने सारे छोटे और बड़े कैंम्प खुले हुए है। …क्या तुम्हें वहाँ लड़कियों भी दिखी थी? …नहीं, दोपहर तक सब कुछ बन्द हो गया था। वह तो अच्छा हुआ कि सभी बसें भर-भर कर यहीं आ रही थी तो लौटने मे कोई परेशानी नहीं हुई वर्ना पैदल ही रास्ता तय करना पड़ता। उस शाम पुलिस का भारी बन्दोबस्त होने के कारण हमने कमरे मे ही रहने का फैसला किया था।  

…समीर, जन्नत आज रात को चल कर कल सुबह तक यहाँ पहुँच जाएगी। …हुँ। …उसके बाद? …वही करेंगें जो सोचा है। तुम्हारे गाँव चलेंगें। कुछ देर बात करके आस्माँ सो गयी और मै अगले दिन के बारे मे सोच रहा था। मुझे पता था कि दोनो बहनों ने अवैध तरीके से दक्षिण कश्मीर मे प्रवेश कठुआ की ओर से किया था। कल सुबह जन्नत मुजफराबाद मे अवैध रुप से प्रवेश कर रही थी। अब तक यह बात तय हो गयी थी कि घुसपैठ इन दो जगह से होती है। भारत-पाक सीमा का मुजफराबद उत्तरी छोर और जफरवाल दक्षिणी छोर है। इसीलिये मैने अपनी यात्रा मुजफराबाद से आरंभ करके जफरवाल पर समाप्त करने का निर्णय लिया था।

सुबह फज्र की नमाज के लिये मै समय पर मस्जिद पहुँच गया था। नमाज भी हुई और तकरीर भी हुई लेकिन फिर एक नयी बात देखने को मिली कि पीरजादा की शक्ति और प्रभाव वहाँ उपस्थित भीड़ पर क्या होता है। कुछ लोग अपने साथ बीमार को लेकर आये हुए थे। मीरवायज ने कुछ झाड़ा और फिर कोई आयात उसके कान मे सुना कर वापिस भेज दिया था। उसने कुछ समय बीमारों को दिया और फिर लोगों की फरियाद सुनने के लिये बैठ गया था। कुछ नमाजी तकरीर के बाद चले गये थे परन्तु कुछ मेरे जैसे वहाँ बैठ कर सारा हाल अपनी आँखों से देख रहे थे। एक फरियाद सुन कर मेरा दिमाग भन्ना गया था। एक इसाई माँ-बाप बिलखते हुए फरियाद कर रहे थे कि उनकी लड़की को मस्जिद के मौलाना ने अगुवा करके जबरदस्ती उससे इस्लाम धर्म कुबूलवा कर एक बूढ़े से निकाह करवा दिया है। वह अपनी बच्ची की वापिसी कि गुहार लगा रहे थे। उस वयोवृद्ध शौहर ने अपनी ओर से उस मौलाना को खड़ा किया जिसने उस लड़की का धर्म परिवर्तन करवा कर निकाह पढ़वाया था। जब उस लड़की को बुलवा कर पूछा गया तो उसने रोते हुए बताया कि वह अपनी मर्जी से धर्म बदल कर मोहब्बत के कारण उस वृद्ध से निकाह किया है। पीरजादा ने बड़ी बेहुदगी से उस बूढ़े और लड़की से हमबिस्तरी के बारे पूछा तो उस बूढ़े ने खीसे निपोरते हुए अपना सिर हिला दिया था। पीरजादा ने एक हदीस का हवाला देकर उस लड़की को उस वृद्ध के हवाले कर दिया। मै हैरानी से उसका इंसाफ देख रहा था। उस लड़की की उम्र मुश्किल से बारह साल होगी जिसे देख कर खिन्न मन से मै वहाँ से बाहर निकल आया था।  

आस्माँ मेरा इंतजार कर रही थी। वह तैयार हो चुकी थी और मै तैयार होने के लिये चला गया। दस बजे मै उसको लेकर बस स्टैन्ड की ओर चल दिया और एक खाली स्थान देख कर हम दोनो एक किनारे मे बैठ गये थे। अब हमे जन्नत का इंतजार था। दोपहर को वह अपने साथियों के साथ बस स्टैन्ड की ओर आती हुई दिखाई दे गयी थी। सावधानीवश हम उनको दूर से देखते रहे और फिर जब आश्वस्त हो गये तब हम दोनो जन्नत के सामने पहुँचे थे। हमे देख कर उसके चेहरे पर खुशी देखने लायक थी। उसने अपने साथ आये हुए सभी लोगों से मिलवाया और बताया कि यहाँ शाम की सियालकोट जाने वाली बस पकड़नी है। …यहाँ पहुँचने मे कोई मुश्किल तो नहीं हुई। …कुछ नहीं। सारे रास्ते कोई नहीं मिला लेकिन सीमा पार करने के कुछ देर के बाद दस-पन्द्रह लोगों के समूह से सामना हो गया था जो भारत मे प्रवेश करने का इंतजार कर रहे थे। समीर इन लोगों ने जगह-जगह पर अपने ठिकाने बना रखे है। दस-बीस के समूह मे पहले यह उन ठिकाने पर रुक कर सीमा पार के हालात की जानकारी इकठ्ठी करते है और जैसे ही मौका मिलता है सारे लोग सीमा पार कर लेते है। उनके जाते ही दूसरा समूह इनकी जगह ले लेता है। फिर वह अपने मौके का इंतजार करते है। इनका यही खेल बरसों से चल रहा है। …कितने ऐसे ठिकाने देखे थे? …इनके दस बारह ठिकाने सीमा पर तैयार है। सभी ठिकानों पर लगभग उतने ही आदमी मौजूद थे जितने हमे रास्ते मे मिले थे। …चौकी से कितनी दूर थी? …समीर, चौकी दूर है परन्तु पेट्रोलिंग निरन्तर जारी रहती है। सबको पता है कि कितने बजे पेट्रोलिंग पार्टी निकलेगी और उनके जाते ही इधर के लोग उधर और उधर के लोग इधर निकल जाते। जंगल मे हजारों रास्ते है। फौज हर रास्ते पर तो नहीं बैठ सकती है। …जन्नत अगर यह हाल यहाँ का है तो जफरवाल तक न जाने कितने घुसपैठ के रास्ते और हो सकते है।

दोनो बहने अपनी बातों मे व्यस्त हो गयी थी और मै सोच रहा था कि जन्नत को जैसा समझाया था क्या वह समय पर वह कार्य कर सकी थी? शाम को हम सियालकोट की ओर चल दिये थे। अंधेरा होने के बाद मैने साथ बैठी हुई जन्नत से पूछा… वह फोन मिल गया था? …जी। आप खुद देख लिजिए। …इन लोगों से बात करके कुछ पता चला कि यह लोग और कितने रास्तों से भारत मे दाखिल हुए है? …समीर, जफरवाल-कठुआ रुट तो तुम्हे पता है। मुजफराबाद-कुपवाड़ा रुट भी अब पता चल गया है। इन दो रास्तों को छोड़ घुसपैठ के पाँच रास्ते वह और जानते है परन्तु ज्यादातर रास्ते मुजफराबाद और सियालकोट के बीच मे है। बस के शोर मे बात करना मुश्किल हो रहा था। मै आगे की सीट पर सिर टिका कर सोने का प्रयास मे जुट गया। छोटी सी बस थी जिसमे सब एक दूसरे के साथ चिपक कर बैठे थे। आस्माँ खिड़की पास बैठ कर ऊँघ रही थी। जन्नत ने कोहनी मार कर मेरा ध्यान भंग किया… समीर, सो गये क्या? …बोलो। …जम्मू की यात्रा याद आ रही है। मै फौरन उठ कर बैठ गया और उसके बढ़ते हुए हाथ को पकड़ कर कहा… बिल्कुल नहीं। सो जाओ। कुछ देर के लिये वह चुप होकर बैठ गयी और एक बार फिर मै सोने की कोशिश मे जुट गया। उस छोटी सी पहाड़ की बस मे मेरे लिये बैठना मुश्किल हो रहा था। कभी घुटने सामने टकराते और कभी दो बहनों का बोझ मुझे सीट से सरका देता था। पूरी रात जागते हुए काटी थी। बस कुछ देर के लिये रावलपिंडी मे रुकी थी। यही पर पाकिस्तान आर्मी का हेडक्वार्टर्स स्थित था। रावलपिंडी से सियालकोट का रास्ता मुझे पता ही नहीं चला क्योंकि बैठते ही नींद हावी हो गयी थी। पहाड़ पीछे छोड़ कर मैदानी इलाके मे आते ही बस ने गति पकड़ ली थी।

सुबह दस बजे हम सियालकोट पहुँच गये थे। सियालकोट से जफरवाल का चार घंटे का सफर था। सियालकोट बस स्टैन्ड पर उतरते ही मैने जन्नत के साथ आये हुए एक साथी से कहा… जनाब, मुझे यहाँ सियालकोट मे दो दिन का काम है। अगर आपको कोई एतराज न हो तो हम तीनों यहाँ रुक जाते है। दो दिन के बाद हम जफरवाल पहुँच जाएँगें। बोलते हुए मेरी नजर जन्नत के चेहरे पर पड़ी तो उसके चेहरे को पढ़ते हुए मैने जल्दी से कहा… अन्यथा आप इन दोनो को अपने साथ ले जाईए, मै दो दिन बाद वहाँ पहुँच जाऊँगा। दोनो बहनें कुछ देर तक उनसे बात करती रही फिर जन्नत मेरे पास आकर बोली… समीर, हम इनके साथ निकल जाते है। जफरवाल पहुँच कर तुम किसी से भी जमालूद्दीन की कोठी पूछ लोगे तो वह तुम्हें हमारे पास पहुँचा देगा। …ठीक है। मेरा सामान मुझे दे दो। …मैने सारा सामान तुम्हारे बैग मे रख दिया है। यहाँ तुम जरा संभल कर रहना। अपने पर्स से कुछ नोट निकाल कर जन्नत को पकड़ा कर मै सीधे सियालकोट फल की मंडी चला गया था। पाकिस्तान की सबसे बड़ी फलों की मंडियों मे से एक सियालकोट मे थी। गोल्डन कंपनी का मुख्य आफिस सियालकोट फल मंडी मे था। इसकी जानकारी मुझे मुजफराबाद के गोदाम पर लगे हुए बोर्ड से मिली थी। इसी कारण मै सियालकोट पर रुक गया था।

मुजफराबाद मे मुझे पता चला था कि मुन्नवर लखवी की टक्कर का फलों का व्यापारी एजाज पठान सियालकोट से अपना कारोबार चलाता है। मै उसके गोदाम पर पहुँच कर उसके फोरमेन इमरान से कश्मीरी विक्रेता के तौर पर मिला था। कुछ देर भाव के मामले मे बात करने के बाद मैने कहा… मुन्नवर भाई तो माल की कीमत बहुत गिरा देते है। इमरान हँसते हुए बोला… समीर मियाँ, वह लोग व्यापारी नहीं है। आप जैसे लोगों की दाल वहाँ नहीं गल सकती। चरस और अफीम की बात करते तो उसके साथ  सौदा जरुर हो जाता। मैने चौंक कर कहा… क्या कह रहे हो इमरान भाई। पिछले एक साल से गोल्डन वाले मुझे टहला रहे है। आज तक एक आर्डर नहीं दिया बस चक्कर लगवा रहे है। अब थक हार कर मै यहाँ की मंडी मे बात करने आया हूँ। मुझे इमरान समझाते हुए बोला… भाईजान, तुम्हें किराया मार देगा। अभी सिर्फ दो जगह से भारत का माल पाकिस्तान मे आता है। अटारी बार्डर और कराँची। मुजफराबाद तो कुछ दिन पहले ही शुरु हुआ है। जब से यह रास्ता खुला है तभी से कुछ माल सियालकोट मे भी आना शुरु हुआ है वर्ना तो इतने भाड़े मे आपको युरोप माल भेजना सस्ता पड़ता। मै उसको सुन रहा था परन्तु मेरा दिमाग कुछ और सोच रहा था।

…भाईजान, मुजफराबाद कस्टम कंट्रोल पर तो मुन्नवर का एक छ्त्र राज है। …समीर मियाँ, बड़े भाई जकीउर लखवी के कारण किसी दूसरे व्यापारी का मुजफराबाद मे घुसना बेहद मुश्किल है। भाई आपको मुन्नवर की असलियत जाननी है तो कभी हमारे पठान साहब से बात करके देखना। अपनी मजबूरी बताते हुए मै इमरान से मुन्नवर की कहानी समझने की कोशिश कर रहा था। उसी ने बताया था मुन्नवर के सारे धन्धे सिर्फ गोल्डन एन्टरप्राइज के नाम से चलते है। बस रजिस्टर्ड आफिस का पता बदल जाता है और कभी उस नाम मे ग्लोबल लग जाता है और कभी एक्सिम और कभी ट्रांस्पोर्ट लग जाता है। एक तरीके से वह सरकारी इदारों की कागजी कार्यवाही को पूरा करके उसकी आढ़ मे फर्जी बिलींग और सारे अवैध काम आसानी से करता है। अगर आप मेरी बात नहीं मानते तो कंपनी आफिस चले जाओ। किसी को हजार रुपये का लालच दोगे तो गोल्डन एन्टरप्राईज का कच्चा चिठ्ठा आपके सामने पल भर मे खोल देगा। कुछ देर इमरान से बात करने के बाद दोबारा मिलने का वादा करके मै रजिस्ट्ररार आफ कंपनी के आफिस चला गया था।

पुरानी सी इमारत मे कंपनी का आफिस था। रिसेप्शन पर बैठी हुई महिला एक उर्दू की पत्रिका पढ़ने मे तल्लीन थी। …मोहतरमा, मुझे कुछ कंपनी के बारे मे मालूमात करनी है। मुझे किससे मिलना चाहिए? जैसे कोई मेज पर बैठी हुई मक्खी को उड़ाता है उसने भी उसी तरह हाथ हिलाते हुए बताया कि बड़े बाबू मोहम्मद इस्माईल के पास चले जाओ। मै इस्माईल से मिलने के लिये चल दिया। एक बड़े से हाल मे कुछ लोग इधर उधर बैठे हुए थे। बड़े बाबू के बारे मे पूछने पर किसी ने एक मेज की ओर इशारा कर दिया था। मैने उस दिशा मे देखा तो एक बूढ़ा आदमी फाइलों के अम्बार के पीछे छिपा बैठा हुआ था। …इस्माईल साहब। उसने अपने चेहरे पर टिकी हुई ऐनक को संभाल कर मेरी ओर देखा तो मैने जल्दी से कहा… मुझे एक कंपनी की तकनीकी मालूमात करनी है। …क्या मतलब? …जनाब, कंपनी के प्रमोटर, शेयर केपीटल, शेयर होल्डर, इत्यादि। …किस कंपनी के बारे मे मालूमात करनी है? एक पल के लिये मै झिझका और फिर कुछ सोच कर बोला… गोल्डन एन्टरप्राईज। उसने दो मिनट तक घूरा और फिर बोला… मियाँ आपको यह जानकारी किस लिये चाहिए? अबकी बार मैने दबी हुई आवाज मे कहा… जनाब, यह मै आपको नहीं बता सकता। मेरे क्लाइन्ट की गोपनीयता को खतरा हो जाएगा। …आप वकील है। मैने अपनी गरदन धीरे से हिला दी तो उसने एक नजर अपने साथियों पर डाल कर धीरे से कहा… चलिये चाय पीकर आते है। इतना बोल कर वह सीट छोड़ कर उठ गया और मेरे साथ आफिस के बाहर निकल गया था।

चाय पीते हुए इस्माइल ने कहा… वकील साहब, अब बताईये कि क्या चक्कर है? …मेरा क्लाईन्ट विदेश मे रहता है। उसके पास इस कंपनी की ओर से आफर आयी है। वह जानना चाहता है कि इस कंपनी मे पैसे लगाना क्या ठीक होगा। इसीलिये उन्होंने हमारी फर्म से संपर्क साधा है। इतना बता कर मै चुप हो गया और इस्माईल का चेहरा देखने लगा। वह चुपचाप चाय पीता रहा और चाय समाप्त करने के बाद बोला… मियाँ, इसमे एक मुश्किल है। गोल्डन एन्टरप्राईज नाम की लगभग पन्द्रह-बीस कंपनी पंजीकृत है। अब तुम बताओ कौन सी गोल्डन एन्टरप्राइज? …यह मै कैसे बता सकता हूँ। यह तो हमारे क्लाइन्ट ने भी नहीं बताया है। …उस कंपनी का क्या पता है। …जनाब मुझे नहीं मालूम। अबकी बार इस्माईल ने मुस्कुरा कर कहा… तो मियाँ फिर कैसे पता लगाओगे। …इस्माईल साहब, आप तो इस लाइन के बादशाह है। आप ही सुझाईये कि ऐसे मे क्या करना चाहिए? अबकी बार कुछ सोच कर बोला… आप सभी गोल्डन नाम से जुड़ी हुई कंपनियों के बारे मे मालूमात ले लिजिए लेकिन उसके लिये आपको कुछ खर्चा करना पड़ेगा। मैने जल्दी से कहा… पैसों की चिन्ता आप मुझ पर छोड़ दिजीए। बस आप मेरा काम कर दिजीए। …पाँच हजार रुपये। …ठीक है, काम हो जाने के बाद। सौदा पटते ही इस्माईल उठते हुए बोला… आप शाम को आफिस बंद होने से पहले यहीं आ जाईएगा। आपका काम हो जाएगा। इतना बोल कर इस्माईल वापिस चला गया था।

मै पैसे बदलवाने के लिये बाजार मे चला गया था। सड़क पर बैठे हुए बट्टे वाले से हिन्दुस्तानी रुपये देकर पाकिस्तानी रुपये लेकर एक सस्ते से होटल की तलाश मे निकल गया। कुछ देर होटल मे एक कमरा लेकर आराम किया। शाम को ठीक पाँच बजे मै उस कैन्टीन मे पहुँच गया था। सारे कर्मचारी चले जाने के बाद करीब सात बजे इस्माईल आफिस से बाहर निकलता हुआ दिखा। मेरे पास पहुँचते ही वह बोला… मेरे साथ आओ। इतना बोल कर वह आगे की ओर चल दिया। कैन्टीन से बाहर निकल कर सड़क पर पहुँच कर वह बोला… मियाँ, मुझे पता नहीं था कि इतनी सारी कंपनी एक ही नाम से चल रही है। उसने मोटा सा कागजों का गठ्ठा मेरे हाथ मे देते हुए कहा… मियाँ आप तसल्ली कर लें। सभी कंपनियों की जानकारी है। अगर कोई और जानकारी चाहिए तो वह भी मिल जाएगी। मैने एक सरसरी नजर कागजों पर डाली और फिर पाँच हजार रुपये की गड्डी इस्माइल के हाथ मे रख कर कहा… शुक्रिया जनाब। अगर जरुरत पड़ेगी तो फिर मिलने आ जाऊँगा। …मेरा फोन नम्बर रख लो। मुझे फोन कर देना तो मै बाहर आ जाऊँगा। इतना बोल कर वह जाने लगा तो मैने जल्दी से कहा… बड़े मियाँ, आप नोट तो गिन लिजीए। इस्माईल हँस कर बोला… जरुरत नहीं मियाँ। खुदा हाफिज। …बड़े मियाँ यह बात अपने तक ही रखिएगा क्योंकि अगर यह बात बाहर निकल गयी तो सारा मामला खटाई मे पड़ जाएगा। उसने सिर्फ सिर हिला दिया और वहाँ से वह चला गया। मै कुछ देर वहीं खड़ा रहा और आसपास देख कर जब आश्वस्त हो गया कि कोई मुझ पर नजर नहीं रख रहा है तो मै अपने होटल की ओर वापिस चल दिया।

खाना खाने के बाद मैने इस्माईल के दिये हुए सारे कागज बिस्तर पर बिछा दिये थे। अपने बैग से सेटफोन निकाला और एक-एक कागज की तस्वीर खीचनें मे व्यस्त हो गया। इस्माईल ने अस्सी पेज दिये थे जिसकी तस्वीर लेने मे मुझे तीन घन्टे से ज्यादा लग गये थे। मैने सेट फोन का जीपीएस रिकार्ड चेक किया तो सारे रास्ते और उन ठिकानों के साथ उनके ग्रिड रेफ्रेन्स चिन्हित हो गये थे जो जन्नत ने मुजफराबाद आते हुए रिकार्ड किये थे। मैने फोटो गैलरी को चेक किया तो जन्नत ने कमाल ही कर दिया था। उस रोज भारत मे घुसने वाले समूह की एक तस्वीर भी उसने उतार ली थी। सब काम समाप्त करके मै आराम से बिस्तर पर लेट कर सोचने लगा कि सही समय पर मैने यह कदम उठा कर कितना बड़ा काम अंजाम दे दिया था। जिस दिन मैने मुजफराबाद चलने का निर्णय लिया था उसी दिन मैने ब्रिगेडियर चीमा से कहा था कि मुझे सेट फोन की जरुरत है। वह खतरा भाँपते हुए बोले… समीर, बहुत बड़ा खतरा उठा रहे हो। …सर, मै उसका इस्तेमाल सिर्फ जीपीएस के तौर पर करना चाहता हूँ। जब मै सीमा के उस तरफ रहूँगा तब तक मै इसे फोन की तरह इस्तेमाल नहीं करुँगा। ब्रिगेडियर चीमा ने अपनी मुश्किल बताते हुए कहा कि कल सुबह दस बजे से पहले तक श्रीनगर से वह फोन मेरे पास कैसे भिजवा सकते है तो मैने उन्हें सारी कहानी सुना कर कहा… इसे बान्दीपुरा मे आप जन्नत के हवाले करवा दिजिएगा। मै उसे सब समझा दूँगा बस जिसके हाथ यह फोन भेजे उसे कह दिजीएगा कि वह जन्नत को उस फोन के द्वारा ग्रिड रेफ़्रेंस और फोटो खीचने का तरीका समझा दे।

जन्नत को मैने उसी रात को समझा दिया था कि मेरा कुछ सामान उसके पास बांदीपुरा मे पहुँच जाएगा। साथ मे यह भी बता दिया था कि जब भी मौका मिले तो फोटो और किसी भी जगह के ग्रिड रेफ्रेन्स जरुर निकाल लेना जिस से सेना की कार्यवाही मे फिर कोई बाधा न उत्पन्न हो सके। मै तो ट्रक लेकर निकल आया था और बाकी का काम ब्रिगेडियर चीमा ने अपने हाथ मे ले लिया था। सेट फोन मेरे पास सुरक्षित पहुँच गया था और रिकार्ड चेक करने बाद पता चल गया कि जन्नत को उन्होंने फोटो खींचना, ग्रिड रेफ्रेन्स की निशानदेही और सिर्फ निशाना लगा कर स्थान को चिह्नित करने जैसे कार्यों से अवगत करा दिया था। इस सेट फोन का अब फायदा समझ मे आ रहा था। अस्सी पेज का दस्तावेज अपने साथ लेकर मै कहाँ भटकता। अब उन कागजों की फोटो मेरे फोन मे थी। किसी भी सुरक्षित स्थान पर फोन चालू करके पल भर मे सभी रिकार्ड अपने आफिस भेज सकता था। अपने घर से निकले हुए एक महीने से ज्यादा हो गये थे। उस रात मै थकान के कारण बहुत दिनों के बाद गहरी नींद सोया था।

सुबह देर से जागा और आराम से तैयार हुआ। अपना सामान समेट कर होटल छोड़ कर एक बार फिर फलों की मंडी चला गया था। आज मै गोल्डन  कंपनी अथवा एन्टरप्राईज के आफिस और गोदाम पर नजर मारना चाहता था। बहुत ढूँढने के बाद भी गोल्डन कंपनी का आफिस और गोदाम नहीं मिला परन्तु हर कोई जवाब देने वाला मुझे सियालकोट गोल्डन एन्टरप्राईज के गोदाम की दिशा मे भेज देते थे। वहाँ के लोगों से पता किया तो मालूम चला कि उस गोदाम का मालिक कोई औरत है। इस रहस्य पर से पर्दा उठाने के लिये एक बार फिर मै इमरान से मिलने के लिये चला गया। इमरान बेहद व्यस्त लग रहा था। दुआ-सलाम होने के बाद भी वह काफी देर तक मुझसे बात नहीं कर पाया था। माल उतारने के लिये गोदाम के बाहर ट्रक लाईन लगा कर खड़े हुए थे। वह लोगों को इधर-उधर काम पर लगा रहा था जिससे जल्दी से जल्दी ट्रक खाली होकर निकल जाये। मै चुपचाप बैठ कर उनका काम देख रहा था कि तभी एक पठानी सूट और सर पर पगड़ी लगाये एक आदमी अन्दर से निकला और एक उड़ती हुई दृष्टि मुझ पर डाल कर इमरान की ओर चला गया। सभी लोग उसको देख कर अपने हाथ तेज चलाने लगे थे। वह इमरान से बात करके मेरे सामने से गुजरा और फिर रुक कर मुझसे बोला… क्या काम है। एक पल मै झिझका और फिर वही कहानी सुना दी जो मैने एक दिन पहले इमरान को सुनाई थी। वह मुस्कुरा कर बोला… ओह, तुम तो वही हो न जो कल यहाँ पर इमरान से मिल कर गये थे। उसने तुम्हें बता तो दिया था कि बेटा यहाँ माल भिजवाने का भाड़ा तुम्हें मार देगा। उसकी बातचीत से मै समझ गया था कि यही एजाज पठान है।

…जनाब, मै इस काम के लिये नहीं आया था। मै गोल्डन कंपनी का आफिस व गोदाम ढूँढ रहा था परन्तु सभी मुझे सियालकोट गोल्डन एन्टरप्राईज भेज रहे है। वहाँ पता करने पर मालूम हुआ कि उस कंपनी की मालकिन कोई औरत है। मै कुछ आगे बोलता तो पठान ने हँसते हुए कहा… जब तुम अगले साल यहाँ आओगे तो उसी गोदाम पर दोबारा जाना परन्तु तब तक सियालकोट गोल्डन की जगह लखवी गोल्डन काम कर रही होगी। उसका मालिक तो लखवी है परन्तु वह औरत मुन्नवर के किसी नौकर की बेटी, बीवी या माँ हो सकती है। बेटा तुम अपना समय बेकार मे इन खबीसों पर नष्ट कर रहे हो। इतना बोल कर वह जाने लगा तो मै जल्दी से उठते हुए बोला… आप बहुत बड़े आदमी है इसलिये आप ऐसा कह सकते है। एक साल से यह लोग मुझे घुमा रहे है लेकिन एक भी आर्डर नहीं दिया है। इतना पैसा बर्बाद करके अपने घर कैसे वापिस लौट सकता हूँ। वह मेरे पास आया और मेरे कन्धे पर हाथ रख कर बोला… बेटा, इसी मंडी मे मैने बोरियाँ उतारी और चढ़ाई है। यहीं पर मैने पहला माल भरा ट्रक खरीद कर काम शुरु किया था। अगर मै भी तुम्हारे जैसा सोचने लगता तो शायद आज भी बोरियाँ पीठ पर लाद कर किसी ट्रक पर चढ़ा रहा होता। मेरी बात मानो इन लोगों के चक्कर मे मत पड़ो और एक बार नये सिरे से फिर अपना काम शुरु करो।

…इमरान बता रहा था कि आप इन्हें बहुत अच्छे से जानते है। क्या यह सच है कि चरस और अफीम की तस्करी करते है? एकाएक वह सावधान होकर बोला… यह तुम्हें किसने बताया? मुझे लगा कि शायद मुझसे कोई गलती हो गयी तो मैने जल्दी से कहा… मुजफराबाद मे गोल्डन के जिस आदमी से काम के सिलसिले मे मिला था उसी ने बताया था कि फल का व्यापार तो बहाना है। उसकी आढ़ मे इन चीजों की तस्करी होती है। पठान ने एक मिनट मुझे घूरा और फिर मुझे अपने साथ लेकर अपने कमरे की ओर चलते हुए कहा… बेटा यह बात तुमने मेरे सामने तो बोल दी तो कोई बात नहीं परन्तु यह बात कभी भी अपनी जुबान पर फिर न लाना। यह बड़े खतरनाक लोग है। मै समझ रहा था कि वह क्या कहना चाह रहा है। कमरे मे पहुँच कर वह बोला… बैठ जाओ। मै चुपचाप उसके सामने बैठ गया। साधारण सा आफिस था। …क्या नाम है तुम्हारा? …समीर। …समीर, मै मुन्नवर को तब से जानता हूँ जब वह लाहौर की गलियों मे सब्जी और फलों का ठेला लगाता था। इसका बढ़ा भाई जकीउर लखवी वक्फ का दिया हुआ एक मदरसा चलाता था। समीउल हक्कानी का प्रभाव कम करने के लिये जिया उल हक ने जकीउर लखवी को संरक्षण दिया था जिसके कारण आज यह इतना बड़ा आदमी बन गया है। मुन्नवर तो बस एक नाम है परन्तु गोल्डन का असली मालिक तो उसका भाई है।

एक बार फिर समझाने की कोशिश करते हुए पठान बोला… मुन्नवर जिस काम मे हाथ डालता है उसका मतलब बाजार मे सिर्फ एक ही होता है कि लश्कर यह काम कर रहा है। मुजफराबाद का रास्ता खुलने के बाद जब मुन्नवर ने फलों के धन्धे मे हाथ डाला तो सबसे पहले वह मुझसे मिलने यहाँ आया था। उसने साफ शब्दों मे मुझसे कहा था कि वह रास्ता मेरे लिये नहीं है। ऐसा नहीं है कि उस रास्ते पर मुन्नवर के अलावा किसी और का ट्रक नहीं चलता परन्तु जिसका भी ट्रक उस रास्ते पर चलता है वह असलियत मे लखवी परिवार की इजाजत से ही चलता है। यह मै तुम्हें इसीलिए बता रहा हूँ कि मुझे अब तुम्हारी और तुम्हारे परिवार चिन्ता हो रही है। बेटा मेरी सलाह मानो और इस बात को हमेशा के लिये भूल जाओ।   अपने घर जाओ और नये सिरे से अपना काम आरंभ करो। …आप ठीक कह रहे। मै आज ही अपने घर वापिस चला जाता हूँ। अच्छा खुदा हाफिज। यह बोल कर मै उसके कमरे से बाहर निकल आया था।

मेरा काम सियालकोट मे समाप्त हो गया था। वहाँ से सीधा मै बस स्टैन्ड की दिशा मे निकल गया था। जफरवाल की बस छूटने मे अभी कुछ समय था। टिकिट लेकर मै बस मे जाकर बैठ गया। जैसे-जैसे चलने का समय करीब आया तो यात्री बस मे बैठने लगे थे। मै अपनी सोच मे डूबा हुआ था कि तभी एक आदमी मेरे साथ आकर बैठते हुए बोला… भाईजान, आप तो कल आने वाला थे। मैने उसकी ओर देखा तो उसका चेहरा जाना पहचाना सा लगा परन्तु मेरे कुछ बोलने से पहले उसने कहा… महमूद। लगता है मुझे आप भूल गये। जन्नत के साथ मै भी आया था। मैने जल्दी से कहा… नहीं ऐसी बात नहीं है। मै आपका नाम याद करने की कोशिश कर रहा था। आप यहाँ कैसे? …भाईजान, अब्बा को सिविल अस्पताल मे भर्ती करा कर वापिस जा रहा था। कल शाम को उनकी हालत बिगड़ गयी तो रात को ही लेकर हम यहाँ आ गये थे। …अब आपके अब्बा कैसे है? …खुदा की मेहर है। अब उनकी हालत ठीक है पर आप तो कल आने वाले थे? …हाँ। मेरा काम जल्दी समाप्त हो गया तो सोचा कि जफरवाल चला जाए। बस ने तभी हार्न बजा कर चलने का संकेत दिया और फिर अगले ही कुछ मिनट के बाद बस चल दी थी। बस मे कुछ ही लोग थे और सभी अपने ख्यालों मे खोये हुए थे।

…भाईजान, मै पीछे की सीट पर लेट कर जरा कमर सीधी कर लूँ क्योंकि अगले स्टैन्ड पर बस भर जाएगी। इतना बोल कर वह पिछली सीट पर जा कर लेट गया। तभी मेरे दिमाग मे आया कि चलती हुई बस मे सेटफोन को ट्रेक करना मुश्किल होगा तो अपने बैग मे रखे हुए सेटफोन को निकाल कर चालू किया जिससे अभी तक का फोन रिकार्ड ब्रिगेडियर चीमा को भेजा जा सके। सेटफोन को लाईन पर आने के लिये एक-दो मिनट लगते है तो मै आराम से बैठ गया। फोन चालू होते ही घंटी बजनी शुरु हो गयी थी। ब्रिगेडियर चीमा का फोन था। मैने जल्दी से फोन काट दिया। मै हैरान था कि आखिर क्यों ब्रिगेडियर चीमा फोन कर रहे है जबकि हमारे बीच मे यह तय हुआ था कि हम इस फोन पर कोई काल नहीं करेंगें। मै जल्दी से रिकार्ड भेजने के लिये ब्रिगेडियर चीमा का नम्बर मिला कर अब तक का सारा डेटा रिकार्ड भेजना आरंभ कर दिया। सारा रिकार्ड भेजते ही एक बार फिर से घंटी बज उठी थी। कुछ सोच कर मैने उनकी काल लेकर कहा… हैलो। …तुम फोन क्यों नहीं उठा रहे थे। तुम्हें अर्जेन्ट मेसेज भेजा है। मुझे खबर करो की कब और कहाँ से तुम्हे पिक करना है। बस इतनी बात हुई और फोन कट गया। मैने एक नजर स्क्रीन पर डाली तो एक मेसेज बार-बार फ्लैश रहा था।

मैने जल्दी से वह मेसेज खोला तो पहली लाईन पढ़ते ही मेरा सिर घूम गया था…

तुम्हारी माँ और बहन कि एक फिदायीन हमले मे मौत हो गयी है। फौरन बेस पर लौटने के लिये सुचित किजिए कब और कहाँ से पिक करना है…चीमा

7 टिप्‍पणियां:

  1. भाई लास्ट लाइन में तो झटका ही दे दिया आपने क्या आलिया किसी के नजर में आ गई थी जरूर कुछ न कुछ हुआ है और समीर कैसे इस से अपने आप को संभालेगा और सियालकोट में समीर को बहुत से अन सुलझे राज और गोल्डन कंपनी का राज का पता चल चुका है। जबरदस्त मगर झटके वाला अंक था भैया।

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    1. अब कहानी मे एक ट्विस्ट आया है क्योंकि साजिश का पर्दाफाश करने के लिये यह जानना जरुरी है कि आखिर फिदायीन हमले के निशाने पर कौन था- मकबूल बट या अम्मी या आलिया। शुक्रिया दोस्त।

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  2. बट फॅमिली और समीर को जोडनेवाली अम्मी नाम की कडी दुर्भाग्यवश टूट गयी.

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    1. प्रशान्त भाई इस कड़ी के टूटने से मकबूल बट का सुरक्षा कवच समाप्त हो गया है। अब जब भी उनका आमना सामना होगा तभी कड़वाहट प्रत्यक्ष रुप मे सामने आयेगी। जुड़े रहने के लिये धन्यवाद।

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    2. सही कहा भाई मकबूल बट को बचानेवाली कडी टूट गयी, मकबूल और समीर के बीच अब सर्फ एक बेरेटा एक बुलेट और देशद्रोही मकबूल का सर...

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  3. जबर्दस्त अंक था,लेकिन आखिर में इतना बड़ा हादसा

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  4. हरमन भाई जिन्दगी के उतार-चढ़ाव ही इन्सान को तपा कर उसे नायक बनाते है। इस अंक को याद रखियेगा क्योंकि इस घटना के बेहद दूरगामी परिणाम होंगें। आपका इस कहानी के साथ जुड़ने के लिये शुक्रिया।

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