बुधवार, 28 दिसंबर 2022

 

 

काफ़िर-27

 


मै जमील अहमद की सोच मे गुम था कि एक आवाज मेरे कान मे पड़ी… क्या मै आ सकती हूँ। स्त्री स्वर सुन कर मेरी नजर दरवाजे की ओर चली गयी थी। आयशा खड़ी हुई थी। मैने जल्दी से कहा… आ जाओ लेकिन इतनी रात को यहाँ आने का सबब मुझे समझ मे नहीं आया। …तुम तो कभी बुलाओगे नहीं तो सोचा बिना बुलाये ही मिलने चलती हूँ। वह मेरे सामने आकर बैठ गयी थी। …कैसे आना हुआ? …समीर, जो कुछ भाईजान ने बताया था उसमे कितनी सच्चायी है? …पता नहीं, मुझे उसकी कहानी चेक करने का समय ही नहीं मिला। …मै यही बताने के लिये आयी हूँ  कि वह सच बोल रहे थे। आज दोपहर को भाईजान ने अपना निर्णय अब्बा को सुना दिया और निशात को अपने साथ लेकर कुछ दिनों के लिये कुपवाड़ा चले गये है। …ओह। एक बर फिर हमारे बीच मे शांति छा गयी थी। …तो फिर आगे के लिये क्या सोचा? …कुछ नहीं। …तुमने बताया नहीं कि तुम्हारा निकाह किसके साथ हुआ था? …छोड़ो वह बात। तलाक के साथ ही सब खत्म हो गया है। मैने ज्यादा कुरेदना ठीक नहीं समझा तो बात बदलते हुए पूछा… अब यहीं रहोगी? …पता नहीं। अब हमारे बीच बातचीत मुझे भारी लगने लगी थी। मैने साफ शब्दों मे पूछा… साफ-साफ बताओ कि क्या काम है? वह कुछ पल मुझे देखने बाद बोली… अकेलेपन से थक गयी थी सो तुमसे मिलने चली आयी थी। मुझे कुछ-कुछ समझ मे आ रहा था। वह कुछ देर टुकुर-टुकुर मुझे देखने बाद उठते हुए बोली… अच्छा चलती हूँ। उसे छोड़ने के लिये मै जैसे ही उठ कर खड़ा हुआ अचानक वह आगे बढ़ कर मुझसे लिपट गयी। एक पल के लिये मै सकते मे आ गया था। मेरे स्कूल के समय का ख्वाब हकीकत मे तब्दील होता हुआ लग रहा था। निशात बाग के बाद पता नहीं अपने ख्वाब मे उसके साथ मैने क्या-क्या नहीं किया था परन्तु इस वक्त वह मेरी बाँहों मे थी परन्तु अब मै उसको रुसवा नहीं कर सकता था। मैने धीरे से उसे अपने से अलग किया और उसकी आँखों मे झाँकते हुए कहा… आयशा, कुछ भी करने से पहले एक बार ठंडे दिमाग से सोच लो। कहीं कुछ दिनों के बाद हम दोनो ही अपनी नजरों मे न गिर जाएँ। मैने धीरे से उसके माथे को चूम कर उसके साथ चलते हुए गेट पर आ गया। वह कुछ पल सिर झुकाये खड़ी रही और फिर वह धीमे कदमों से चलते हुए अपने घर की ओर निकल गयी थी। 

अगली सुबह मै बारामुल्लाह चला गया था। उस पते को ढूँढते हुए मै जमील अहमद के घर पहुँच गया था। एक बूढ़ा सा आदमी दालान मे बैठा हुआ हुक्का गुड़गुड़ा रहा था। …बड़े मियाँ, सलाम। जमील अहमद से मिलना है। उसने जमील के लिये आवाज लगायी तो एक बच्ची उपर की खिड़की से चेहरा निकाल कर बोली… जमील अपने दोस्तों के साथ बाहर गया है। उस बूढ़े ने एक खेलते हुए बच्चे से कहा… देख जमील कहीं अपने दोस्तों के साथ सिगरेट की दूकान के पास पुलिया पर तो नहीं बैठा है। अगर मिल जाये तो कहना कि कोई मिलने आया है। वह बच्चा भागते हुए घर के बाहर निकल गया था। पता नहीं क्यों यह नाम जमील अहमद बार-बार मेरे दिमाग पर चोट मार रहा था। कुछ ही देर मे एक युवक ने मकान मे प्रवेश किया और अपनी निगाहें चारों ओर डाल कर बोला… कौन मुझसे मिलने आया है। मै जमील अहमद हूँ। …जमील मियाँ, मै आपसे मिलने के लिये आया था। जमील शक्ल-सूरत से कालेज का छात्र लग रहा था। कान मे महंगे वाला इयरफोन और हाथ मे आई-फोन लिये वह मेरे सामने आकर खड़ा हो गया और मुझ पर उपर से नीचे एक नजर डाल कर बोला… बताईये। …उस फिदायीन हमले की पूछताछ के लिये आया हूँ। मैने महसूस किया कि एकाएक वह सावधान हो गया था। 

…आपने पुलिस कंट्रोल रुम को खबर दी थी। …जी। …कितने बज रहे थे? …जनाब मैने कोई समय नहीं देखा था। सुबह-सुबह की बात थी। …कंट्रोल रुम का फोन रिकार्ड मे 6:31 बता रहा है। आपने क्या देखा था? …यही कुछ नकाबपोश लोग हवा मे अपनी क्लाशनीकोव को हिलाते हुए उस घर से बाहर निकले थे। एक ने बाहर निकल कर हवा मे फायर भी किया था। यह देख कर मैने छिप कर पुलिस कंट्रोल रुम मे खबर कर दी थी। …क्या आप उन लोगों के बारे मे कुछ बता सकते है? …सभी अपने चेहरे पर कपड़ा बाँधे हुए थे। अल्लाह-ओ-अकबर का नारा लगा कर वह एक कार मे बैठे और मेरे सामने से निकल गये थे। …कौन सी कार थी? …पता नहीं। …कितने लोग थे? …मियाँ, मै डरा हुआ था। मैने गिना नहीं था। चार-पाँच लोग थे। …फोन करने के बाद आपने क्या किया? …क्या करता। मै वहाँ से जान बचा कर भाग निकला था। …आपने अन्दर जाकर देखने की जरुरत नहीं समझी। वह चुप रहा तो मैने खड़े होते हुए कहा… आपकी मदद का शुक्रिया। यह बोल कर मै वापिस चलने के लिये कदम बढ़ाया ही था कि तभी मैने मुड़ कर पूछा… आपका कोई जानकार उस कोलोनी मे रहता है क्या? …क्या मतलब? …यही कि इतनी सुबह आप उस कोलोनी मे क्या करने गये थे? इस सवाल को सुन कर वह गड़बड़ा गया था। उसे जब कुछ नहीं सूझा तो वह बड़बड़ाने लगा… पहले पुलिस की मदद करो और फिर उनके उल्टे-सीधे सवाल का जवाब दो। मै वहाँ सुबह टहलने गया था। …बारामुल्ला से? इतना बोल कर मै उसके घर से बाहर निकल आया था। बाहर स्कूली लड़कों का मजमा लगा हुआ था। मै चुपचाप वहाँ से बाहर निकला और जीप मे बैठ कर वापिस चल दिया था। 

रास्ते मे एक किनारे जीप रोक कर मैने शाहीन का नम्बर मिलाया और उसकी आवाज सुनते ही मैने कहा… शाहीन मै बोल रहा हूँ। क्या आज तुम घर से निकल सकती हो? …जी। …कहाँ पर? …मै आपको कुछ देर मे बता दूँगी। फोन काट रही हूँ। इतना बोल कर उसने फोन काट दिया। मुझे जमील अहमद का नाम सुन कर शक हुआ था। उसके घर की हालत और उसके हाथ मे इतना महंगा फोन देख कर मुझे लगा कि वह हाजी मोहम्मद और मकबूल बट जैसे नेताओं के लिये काम करता है। एक बार मुझे शाहीन ने बताया था कि उसके अब्बा ने बारामुल्ला के छात्र नेता को पैसे दिये थे। मै वहाँ से सीधा पुलिस थाने चला गया था। ड्युटी आफीसर को अपना परिचय पत्र दिखा कर मैने कहा… आपके थाना क्षेत्र मे पत्थरबाजी की कितनी नामजद रिपोर्ट है। एक पल के लिये वह चौंक गया था फिर अपने एक सिपाही को आवाज लगा कर बोला… रजिस्टर लेकर यहाँ आओ। इतने साल स्पेशल फोर्सेज मे बिताने के कारण मै पुलिस महकमे की कार्यशैली से अच्छी तरह से परिचित था। …जनाब, मुझे कागजों मे मत उलझाओ। मै सिर्फ यह जानना चाहता हूँ कि आपके थाना क्षेत्र मे वह कौन से मुख्य आरोपी है जिनके उपर आपने पत्थरबाजी की नामजद रिपोर्ट जमा करी और वार्निंग देकर छोड़ दिया था। …मै ऐसे कैसे बता सकता हूँ। रजिस्टर मे देखना पड़ेगा। …भाईजान, मै सिर्फ मुख्य आरोपियों के नाम जानना चाहता हूँ। ऐसे लोग जिनका नाम ऐसे मामलों मे बार-बार आता है। एक पल के लिये उसने सोचा और फिर बोला… जमील अहमद, फिरोज बख्त, महरुनिस्सा शेख, मुम्ताज अयुब, कुछ नाम है जिन्हें सब जानते है। यह सब कालेज छात्र संघ मे है और बाकी अगर डिटेल चाहिए तो रजिस्टर मे देख कर ही पता चलेगा। मुझे जो जानना चाहता था वह पता लग गया था। मै वहाँ से अपने घर की ओर चल दिया था।

जब घर पहुँचा तब तक दोपहर भी ढल चुकी थी। मै लान मे बैठ गया और जमील अहमद के बारे मे सोच रहा था कि तभी मेरा फोन बज उठा था। शाहीन का फोन था। …हैलो। …समीर, क्या आप अभी सर्कल रोड पर आ सकते है। बड़ी मुश्किल से एक घंटे के लिये घर से निकल सकी हूँ। …मेरा इंतजार करो। मै अभी पहुँच रहा हूँ। मै उल्टे पैर वापिस चल दिया था। डल झील किनारे की सड़क पर एक सिरे से आगे की ओर चल दिया था। धीमी गति से जीप चलाते हुए मेरी आँखें शाहीन को तलाश कर रही थी। बुर्के और हिजाब के कारण शाहीन को पहचानना मुश्किल था। अनायस ही एक पेड़ की आढ़ से हिजाब पहने शाहीन निकली और सड़क के किनारे खड़ी होकर हाथ हिलाकर मुझे रुकने का इशारा किया तो मैने उसके समीप पहुँच कर जीप खड़ी कर दी। वह जल्दी से जीप मे बैठ कर बोली… चलिये भाईजान। …शाहीन। …भाईजान, मै शाहीन की बहन हया हूँ। आपको शायद पता नहीं कि शाहीन दो हफ्ते से लापता है। जिस दिन उसको पता चला की उसकी सहेली आलिया की हत्या हो गयी है उसी दिन वह घर से कहीं जाने के लिये निकली थी उसके बाद से उसका किसी को पता नहीं है। वह निकलने से पहले अपना फोन मुझे देकर गयी थी। आपका आज फोन आया तो मै आपसे मिलने चली आयी थी। मै उसकी बात सुन कर खुद ही सदमे आ गया था। पहले आलिया और फिर शाहीन, यह क्या चक्कर है। मैने साथ बैठी हुई लड़की पर नजर डाली तो उसकी आँखें ही दिख रही थी। उसने अपना चेहरा और सिर महीन से कपड़े से छिपा रखा था।

…अपना हिजाब हटाओ। एक पल के लिये वह झिझकी और जल्दी से बोली… मै उसकी बहन हूँ आप यकीन किजीए। ऐसे मुझे रुसवा मत किजिये। मैने उसकी आँखों मे झाँकते हुए कहा… उसका फोन दो। हया ने अपना फोन मेरी ओर बढ़ा दिया था। मैने उसका फोन लेकर जीप सड़क के किनारे खड़ी करके पुराने काल रिकार्ड देखना शुरु किया तो पाया कि जिस सुबह हमारे घर पर फिदायीन हमला हुआ था उस दिन से पहले के सभी काल रिकार्ड साफ थे। मैने धीरे से हया का हाथ अपने हाथ मे लिया और फिर अचानक अपने हाथ का शिकंजा कसते हुए कहा… हया, मुझे नहीं मालूम तुम्हारी क्या मंशा है। एक बात यकीन से कह सकता हूँ कि मेरे साथ इस प्रकार की चालाकी तुम्हे कहीं का नहीं छोड़ेगी। अगर मै अपनी पर आ गया तो फिर कभी किसी को अपना यह सुन्दर मुखड़ा नहीं दिखा सकोगी। शाहीन कहाँ है? वह दर्द से बिलबिला रही थी परन्तु चीखने की हालत मे नहीं थी। मैने डैशबोर्ड से अपनी पिस्तौल निकाल कर अपने साथ रखते हुए कहा… हया बीबी तुम्हारा हाथ छोड़ रहा हूँ। अगर तुमने चीखने या जीप से कूदने की कोशिश की तो मुझे गोली मारने मे जरा सी भी हिचक नहीं होगी। इतना बोल कर उसका हाथ छोड़ कर मैने जीप आगे बढ़ा दी और फिर गति पकड़ते हुए अपने घर की ओर चल दिया। अचानक हया ने कहा… भाईजान, अगर एक घंटे मे अपने घर नहीं पहुँची तो फिर मै कभी घर वापिस नहीं जा सकूँगी। हम निशातबाग और विश्वविद्यालय के कन्वेन्शन सेन्टर के बीच मे पहुँच गये थे। मेरा घर यहाँ से ज्यादा दूर नहीं था परन्तु उसकी आवाज मे छिपे हुए डर का एहसास होते ही मैने एक बार फिर से जीप सड़क से उतार कर खड़ी कर दी।

…शाहीन कहाँ है? …पता नहीं। मैने आपको सच ही बताया है कि उस दिन के बाद से उसे किसी ने नहीं देखा है। …मुझे कैसे जानती हो? …मै आपको नहीं जानती। आपने फोन किया तो आपसे मिलने चली आयी थी। …इस फोन के सारे काल रिकार्ड किसने साफ किये थे। …मुझे नहीं पता। शाहीन यह फोन मुझे देकर गयी थी। इतने दिनों से यह फोन शांत पड़ा था। उसके जाने के बाद पहली बार इस फोन पर आपकी काल आयी थी। आपने भी जिस तरह फोन पर बात की थी तो मुझे लगा कि वह आपके काफी करीब है। इसीलिए मैने सोचा कि आपसे मिल कर शाहीन का पता लगाने की कोशिश कर सकती हूँ। …मुझे कैसे पहचाना जो तुम मेरी जीप के सामने आ गयी। …मैने आपको एक बार अपने घर पर देखा था। उसकी बतायी हुई कहानी क्रमवार तो सही लग रही थी। अचानक उसने पूछा… आपका शाहीन से क्या रिश्ता है? उसकी कोई बात मुझे समझ मे नहीं आयी और न ही मै समझ पा रहा था कि इसको कितना बताना चाहिए। वह फिर जल्दी से बोली… आप दोनो एक दूसरे से मोहब्बत करते है क्या? अबकी बार मैने उसे समझाते हुए कहा… मै आलिया का भाई हूँ इसीलिये मै शाहीन को जानता हूँ। मै ही तुम्हारे घर उसे छोड़ने के लिये आया था। तुम्हारे घर का हाल देख कर मै कभी-कभी उससे फोन पर उसके हालचाल पूछ लिया करता था। अचानक वह बिफरते हुए बोली… आप झूठ बोल रहे है। वह आपके बुलाने पर आपसे मिलने जाती थी। तभी तो आज भी आपने मिलने के लिये उसको फोन किया था। सच बताईये क्या शाहीन आपके पास है? 

अबकी बार बोलते हुए मेरी आवाज जरा कड़ी हो गयी… हया मेरी बात ध्यान से सुनो। मै आलिया का बड़ा भाई हूँ। मै शाहीन को बहुत अच्छे से जानता था क्योंकि दोनो मेरे साथ कुछ दिन मेरे घर पर रही थी। मैने उसे आज मिलने के लिये एक कारण से फोन किया था कि वह सावधान रहे क्योंकि मुझे शक था कि उसकी जान को भी खतरा हो सकता है। तुम्हें एक घन्टे मे घर पहुँचना है। इसलिये समय कम है। अगर तुम्हें किसी पर जरा भी शक है तो मुझे बता दो। यह बोल कर जीप को मोड़ कर मै उसके घर की दिशा मे चल दिया। वह मेरी ओर देख रही थी। अभी भी मेरी पिस्तौल मेरी गोद मे रखी हुई थी। …तुम्हें कहाँ छोड़ दूँ। मैने उसकी ओर देखा तो वह जैसे किसी गहरी सोच मे बैठी हुई थी। मैने घुर्रा कर कहा… हया। वह नींद से एकाएक जाग गयी और मेरी ओर भयभीत नजरों से देखने लगी। …तुम्हें कहाँ छोड़ दूँ। …यहीं छोड़ दिजीये। मै टेम्पो से चली जाऊँगी। मैने एक नजर घड़ी पर डाल कर कहा… बीस मिनट है। क्या समय से घर पहुँच जाओगी? उसने सिर्फ सिर हिला दिया था। …हया मै तुम्हारे टेम्पो के पीछे आ रहा हूँ। अगर घर पहुँच कर हल्का सा खतरा महसूस हो तो बिल्कुल देर मत करना तुरन्त यह स्पीड डयल का बटन दबा देना मै तुरन्त तुम्हारे घर पहुँच जाऊँगा। इस वक्त सावधान रहने की जरुरत है। जब तुम ठीक समझो तो मुझसे फोन पर बात कर लेना मै तुम्हें सब कुछ बता दूँगा। इतना बोल कर मैने एक खड़े हुए टेम्पो के पास जीप रोक दी। वह जल्दी से जीप से उतर कर सामने खड़े हुए टेम्पो मे बैठ गयी थी। कुछ और यात्रियों को बिठाकर टेम्पो चल दिया और मै उसके पीछे हो लिया। वह रुकते रुकाते हुए हाजी मोहम्मद के घर के सामने रुका और हया उतर कर घर के अन्दर चली गयी थी। मै कुछ देर एक किनारे मे जीप खड़ी करके बैठा रहा और जब कुछ समय निकल गया तो जीप मोड़ कर अपने घर की ओर चल दिया था। रास्ते भर शाहीन मेरे दिमाग मे छायी रही थी।

अंधेरा हो गया था। घर पहुँच कर मै बाहर लान मे बैठ गया था। रहमत से खाना लगाने के लिये बोल कर जमील अहमद और शाहीन के बारे मे सोचने लगा कि उनके बीच मे क्या कनेक्शन था। कुछ याद आते ही मै अपने कमरे मे लैपटाप खोल कर बैठ गया। अपनी पुरानी रिपोर्ट को देखते हुए जब जमील अहमद का नाम मेरे सामने आया तो बहुत सी बातें साफ हो गयी थी। शाहीन ने ही बताया था कि मकबूल बट के पैसों मे से हाजी मोहम्मद ने बारामुल्ला के जमील अहमद को पच्चीस हजार दिये थे। इतनी सूचना ही मेरे लिये काफी थी कि जमील अहमद को पकड़ कर फौजी तरीके से पूछताछ करनी पड़ेगी। इतना तो समझ गया था कि उसके इलाके से उठाना इतना आसान नहीं होगा क्योंकि छात्र नेता होने के कारण उस पर वहाँ हाथ डालने का मतलब हंगामा होना तय था। उसको उसके बिल से बाहर निकाल कर पकड़ने की जरुरत थी। खाना समाप्त करके मै अपनी योजना बनाने मे जुट गया था।

करीब रात को बारह बजे मेरे फोन की घंटी बजी तो शाहीन का नम्बर देख कर मैने फोन लिया… हया बोलो। दूसरी ओर मुझे उसकी तेज चलती हुई साँस साफ सुनाई पड़ रही थी। वह कुछ पल चुप रही और फिर दबी हुई आवाज मे बोली… मै हया बोल रही हूँ। …घर पर समय से पहुँच गयी थी। …जी। …कोई परेशानी तो नहीं हुई। …नहीं। मै एक पल के लिये चुप हो गया तो वह भी चुप हो गयी थी। मैने कुछ सोच कर कहा… तो फोन किस लिये किया था। वह झिझकते हुए बोली… आपने अपना नाम नहीं बताया। …मेरा नाम समीर है। मै फौज मे काम करता हूँ। शाहीन और आलिया एक चक्कर मे फँस गयी थी इसीलिये उनको बचाने के लिये मै उन्हें अपने साथ लेकर चला गया था। जब सारा मामला ठँडा हो गया तो मै शाहीन को उसके घर पर छोड़ आया था। तुम्हारे अब्बा का गुस्सा तो तुम जानती हो इसलिये मै समय-समय पर उससे फोन से बात कर लेता था। तुमने ठीक कहा था कि वह मेरे बुलाने पर मुझसे मिलने भी आ जाती थी। …तो क्या आप एक दूसरे से मोहब्बत करते थे? …नहीं। मोहब्बत के बजाय हमारे बीच मे बस गहरी दोस्ती थी। …आप सच बोल रहे है। मैने अपना दिल कड़ा करके कहा… यह सही है कि हमारे बीच मे जिस्मानी संबन्ध थे परन्तु मोहब्बत के बजाय हम दोस्त ज्यादा थे। जो सच है वह मैने तुम्हें बता दिया है। इतना बोल कर मै चुप हो गया था। …समीर, शाहीन के गायब होने से एक रात पहले मैने बड़े भाईजान को शाहीन के कमरे मे जाते हुए देखा था। उनके बीच मे काफी कहासुनी हुई और फिर भाईजान ने बेल्ट से उसकी पिटाई की थी। अगले दिन ही वह यहाँ से चली गयी थी। उसकी बात सुन कर गुस्से से मेरी कनपटियाँ तड़कने लगी थी। …हया, तुम्हारे उस भाईजान का क्या नाम है? वह जल्दी से बोली…  अब्दुल्लाह नासिर। …तुम संभल कर रहना। कोई खतरा महसूस करो तो स्पीड डायल का बटन दबा देना। …जी। शब्बा खैर। उसने फोन काट दिया था।

उस रात मै सो नहीं सका था। मुझे समझ मे नहीं आ रहा था कि आलिया, शाहीन और अब्दुल्लाह के बीच क्या कनेक्शन था? अब तो जमील अहमद को घेरना बेहद जरुरी हो गया था। मैने आयशा से फोन पर बात करके अपने घर पर बुलवाया और उसको सारी बात समझा कर कहा कि वह जमील अहमद से बात करके किसी भी तरह उसे निशात बाग मे मिलने के लिये बुला ले। आयशा ने मेरे सामने जमील अहमद से बात करके दोपहर को निशात बाग मे मिलने के लिये बुला लिया था। मै अपनी सुरक्षा टीम के साथ निशात बाग के मुख्य द्वार के पास घेराबन्दी करके बैठ गया था। जमील अहमद करीब तीन बजे मोटर साईकिल से निशात बाग पहुँच गया था। कुछ मामला ही ऐसा था कि वह आयशा से मिलने अकेला आया था। मोटर साईकिल खड़ी करके जैसे ही छैला बाबू आँख मे सुरमा लगाये मुख्य द्वार पर पहुँचे मेरी सुरक्षा टीम ने उसे धर दबोचा और फिर अगले कुछ मिनट मे उसे बख्तरबंद जीप मे डाल कर कोमप्लेक्स मे ले गये थे। उसे उन्होंने एक कमरे मे बन्द करके उसका फोन लाकर मेरे सामने रख दिया था। उस रात हमने उससे कोई बात नहीं की थी। एक रात की डिटेन्शन मे ही उसकी सारी नेतागिरी स्वाहा हो गयी थी।

अगली सुबह छ: बजे मै उसके सामने बैठा हुआ था। उसका सारा आशिकी का भूत उतर चुका था और अब वह भयभीत दिख रहा था। …जमील अहमद, मुझे पहचाना। उसने सिर्फ गरदन हिला कर हामी भर दी थी। …तुम्हें यह तो समझ मे आ गया होगा कि तुम इस वक्त भारतीय फौज की हिरासत मे हो तो समझ गये होगे कि अब तभी घर जा सकोगे जब हम चाहेंगे। वह सिर झुकाये बैठा रहा था। उसका फोन उसके सामने रखते हुए कहा… तुम अपने घर सिर्फ एक काल कर सकते हो। एक पल के लिये वह झिझका और फिर जल्दी से लाक खोल कर अपने घर का नम्बर मिलाने लगा लेकिन तब तक उसके हाथ से फोन छीन लिया गया था। हमारे एक्सपर्ट ने लाक हटा कर वह फोन मुझे वापिस कर दिया। उसी के सामने मैने उसके काल रिकार्ड्स चेक किये तो उसमे दूसरा नम्बर भी मिल गया था। यह वही नम्बर था जिसने आलिया से बात की थी। एक कनेक्शन तो मेरे सामने आ गया था। मैने हमले वाले दिन से एक दिन पहले और एक दिन बाद तक सारे काल रिकार्ड देखना आरंभ कर दिया। मै कुछ नम्बर कागज पर लिखता जा रहा था। वह मुझे दूर से देख रहा था। मैने उसकी डायरेक्टरी चेक की तो उसमे बहुत से संवेदनशील लोगों के नाम मिल गये थे। मेरी नजर अब्दुल्लाह नासिर का नम्बर ढूंढ रही थी। वह नम्बर भी उसके फोन मे था। मैने उसके व्हाट्स एप चेक करना आरंभ किया तो एक और खजाना मेरे हाथ लग गया था। बहुत सारे जिहादी ग्रुप्स का वह सदस्य बना हुआ था और कुछ ग्रुप्स का वह एड्मिन भी था। उनमे से एक ग्रुप का नाम पत्थरबाज जिहादी का था। मैने उसकी चेट पर नजर डाली तो पिछले डेड़ साल की चार जिलों- बारमुल्ला, बांदीपुरा, कुपवाड़ा और पूँछ मे हुई पत्थरबाजी की पूरी दास्तान मिल गयी थी। एक घन्टे मे जमील अहमद के फोन से उसकी जन्मपत्री लेकर मै उसके सामने जाकर बैठ गया था।

…जमील, तुम्हे अब तक यह तो समझ मे आ गया होगा कि तुम बुरी तरह से फँस गये हो। मेरा सिर्फ एक ही सवाल है कि निशात बाग कोलोनी मे हुए फिदायीन हमले मे किसका हाथ है? मै जानता था कि हर अपराधी हिरासत मे आकर एक ही ढर्रे पर सोचता है। पहले वह अपने आप को बेकसूर बताता है। जब उसका सच्चायी से सामना होता है तो फिर वह कुछ सच और कुछ झूठ मिला कर एक नयी कहानी गड़ता है। उसके बाद जब उसके जिस्म को कुछ नर्म किया जाता है तो फिर खुदा का वास्ता देकर धीरे-धीरे सच्चायी उगलने लगता है परन्तु फिर भी इस तरह से सुनाता है कि जैसे वह तो बेचारा धोखे से इस चक्कर मे फँस गया था क्योंकि असली गुनाहगार तो कोई और है। सात दिन की डिटेन्शन के बाद जब उसे लगता है कि अब सच बोलने के सिवा उसके पास कोई चारा नहीं है तब वह सच्चायी सुबूत के साथ बयान करने लगता है। मै इतने सारे झमेलों मे नहीं पड़ना चाहता था तो मैने सीधे चेतावनी देते हुए कहा… जमील अहमद, यहाँ पर मै ही कानून हूँ। मुझे सुबूत और गवाह की जरुरत नहीं है। मेरा मानना है कि उस हमले मे तुम्हारी मुख्य भुमिका है। यह जान लो कि मरने वाली मेरी अम्मी और मेरी बहन थी। यह कह कर मैने अपनी पिस्तौल का सेफ्टी-लाक हटा कर मेज पर रखते हुए कहा… अब तुम यहाँ से बाहर अपने कदमों पर जाओगे अन्यथा चार कन्धों पर जाओगे। यह निर्णय अब तुम्हारे हाथ मे है। एक बार फिर से सवाल पूछ रहा हूँ… इस हमले के पीछे किसका हाथ है? मेरी सुरक्षा टीम भी खड़ी हुई सब देख रही थी। मै आराम से अपनी पिस्तौल को मेज पर रख कर धीरे से घुमाने लगा।

एकाएक वह भरभरा कर रोते हुए बोला… भाई, खुदा की कसम मेरा इस काम मे मेरी सिर्फ बिचौलिये की भुमिका थी। अब्दुल्लाह ने कहा था कि उसे हिज्बुल के किसी आदमी से मिलवा दूँ। बस मैने बुरहान भाई से उसकी बात करा दी थी। …कौन अब्दुल्लाह? …अब्दुल्लाह नासिर अपने जामिया मस्जिद वाले हाजी मोहम्मद साहब का बड़ा बेटा है। …तू उसे कैसे जानता है? …मै अब्दुल्लाह को नहीं जानता लेकिन उसके अब्बा के लिये कभी-कभी पत्थरबाजी के लिये लड़के और लड़कियों का इंतजाम करता था। इस बिचौलिये के काम के लिये कितने पैसे मिले थे? वह कुछ पलों के लिये चुप रहा और फिर धीरे से बोला… भाईजान, बुरहान भाई के साथ मेरा तय हुआ था कि जो भी पैसा मिलेगा उसमे से वह मुझे दो लाख देंगें। …उसका कितने मे यह सौदा तय हुआ था। …दस लाख। मैने अपनी पिस्तौल उठाई और खड़े होते हुए पूछा… अब्दुल्लाह के निशाने पर कौन था? …कसम खुदा की मुझे नहीं पता। …मुझे बुरहान भाई ने सिर्फ इतना काम दिया था कि उनके जाने के बाद मै पुलिस कंट्रोल पर फोन पर फिदायीन हमले की खबर कर दूँ। अचानक मुझे कुछ याद आ गया तो मैने चलते हुए पूछा… तेरी डायरेक्टरी मे यह करीना कौन है। एक पल के लिये वह चौंक गया था। मै चलते-चलते रुक गया और उसकी ओर देखने लगा तो वह जल्दी से बोला… भाई एक खातून है लेकिन मै उससे आजतक नहीं मिला हूँ। उसी के जरिये मेरी बात बुरहान से हुई थी। पुलिस कंट्रोल को खबर करने के बाद मैने उसे सिर्फ फोन पर बताया था कि काम हो गया है। जमील को वहीं छोड़ कर मै बिना कुछ बोले उसका फोन लेकर बाहर आ गया था। मै वहाँ से सीधा ब्रिगेडियर चीमा के पास चला गया था।

…सर, एक पत्थरबाजी का एस्सेट हमारे हाथ लगा है। आप्रेशन आघात का फेस-2 अब आरंभ किया जा सकता है। आई-फोन उनके सामने रख कर कहा… इसमे व्हाट्स एप चेट से चार जिलों मे लगभग सभी मुख्य पत्थरबाजों नाम पता चल जाएँगें। इसकी डायरेक्टरी मे हिज्बुल के कुछ मुख्य लोगों का फोन नम्बर भी मिल जाएगें। यह हमारे लिये हाई-वेल्यू एस्सेट है। इसका क्या करना है? …मेजर, इस आदमी को हमारी काउन्टर इन्टेलीजेन्स युनिट के हवाले कर दो। वह इसको निचोड़ लेंगें। …सर, फिलहाल वह डिटेन्शन रुम मे मेरी सुरक्षा टीम की देख रेख मे बैठा है। उसको लेने के लिये आप अपनी टीम को भेज दिजीये। ब्रिगेडियर चीमा ने तुरन्त किसी से बात करके मुझसे कहा… लेफ्टीनेन्ट राठौर पहुँच रहा है। उसके चार्ज मे दे दो। मै वापिस डिटेन्शन रुम की ओर चल दिया। अपनी टीम को निर्देश देकर मै अपने घर की ओर निकल गया था।

एक खातून जिसका छ्द्म नाम करीना, अब्दुल्लाह और बुरहान मेरे निशाने पर आ गये थे। मै बुरहान और अब्दुल्लाह के बारे मे जानता था परन्तु वह खातून कौन है? मैने इतनी बार उस नम्बर पर फोन किया लेकिन हमेशा ही वह नम्बर आउट आफ रीच ही मिला था। अब अब्दुल्लाह की बारी थी। यही सोचते हुए मै अपने लान मे बैठ कर चाय पी रहा था कि जब आयशा लोहे का गेट खोल कर मेरे पास पहुँच कर बोली… क्या जमील अहमद आया था? …हाँ, वह आया था। उससे बात हो गयी है। वह मुस्कुरा कर बोली… देख लो आज भी मै किसी को भी रिझा सकती हूँ। मैने मुस्कुरा कर कहा… अगर उसकी लिस्ट बनाओगी तो सबसे उपर मेरा नाम ही आयेगा। …समीर, मै तय नहीं कर पा रही हूँ। उसने निगाहें नीचे करके धीरे से कहा तो मैने उसका हाथ पकड़ कर कहा… आएशा, जिस्मानी जरुरत एक बात है लेकिन हमारे बीच मे इतने साल की दोस्ती है। इसीलिये मैने उस दिन ऐसा कहा था। आज भी साफ कह रहा हूँ  कि अगर भविष्य मे तुम मेरे साथ कोई रिश्ता बनाने की सोच रही हो तो वह नामुम्किन है। आयशा मेरी बात सुन कर संजीदा हो गयी थी। वह कुछ देर बैठ कर वापिस चली गयी थी। 

दो दिन रोज आफिस मे बैठ कर मै अब्दुल्लाह नासिर से मुलाकात करने की योजना बनाता और शाम तक उसे कचरे के डिब्बे मे डाल कर फिर से नये सिरे से सोचने बैठ जाता था। इसी बीच ब्रिगेडियर चीमा ने उस रेड मे जब्त की गयी सेम्टेक्स, आरडीएक्स और डिटोनेटर्स को एक पार्सल मेरे हवाले कर दिया था। स्पेशल फोर्सेज मे था तो मेरे साथ बारह जांबाजों की एक पूरी टीम थी। सभी किसी न किसी युद्ध कला ने निपुण थे। यहाँ पर भी मुझे सुरक्षा कवच के तौर पर पाँच सैनिकों की टीम दी गयी थी। सभी ब्लैक केट कमांडो युनिट से आये थे परन्तु उस काल सेन्टर को ध्वस्त करने के लिये मै उनका इस्तेमाल नहीं कर सकता था। तभी दिमाग मे आया कि अगर वह दोनो बहनें यहाँ होती तो उनके साथ मै इस काम को आसानी से अंजाम दे सकता था। मुझे सिर्फ डाईवर्जन और लुक आउट के लिये दो साथी चाहिए थे। दो महीने से उपर हो गये थे मुझे यहाँ वापिस आये हुए लेकिन उनकी ओर से भी कोई खबर नहीं आयी थी। वहाँ से चलते वक्त महमूद ने अपना नम्बर दिया था। मैने अपने बैग से सेट्फोन निकाल कर महमूद का नम्बर मिलाया तो दूसरी ओर से जवाब मिला ‘यह नम्बर गलत’  है। एक दो बार कोशिश करने के बाद जब वही जवाब मिला तो मैने सेटफोन वापिस बैग मे रख कर उन बहनों के बारे मे सोचने बैठ गया था।

अब्दुल्लाह से बात करने कोई रास्ता नहीं मिल रहा था। कुपवाड़ा के आप्रेशन के लिये मुझे भरोसेमन्द साथी नहीं मिल रहे थे। समय निकलता जा रहा था लेकिन कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। एक दो दिन मे शाम को मेरी आफशाँ से बात हो जाती थी। इतने दिनों मे दो बार मैने आसिया और अदा से भी बात की थी। सभी मुझे मकबूल बट से सावधान रहने के लिये कहते थे। मै उनको कैसे बताता कि अब्बा से ज्यादा भयंकर चीजे मेरे सिर पर फिलहाल रखी हुई थी। इसी बीच मुझे पता चला कि आफशाँ की हवाई यात्राएँ बढ़ गयी थी। वह दो बार काठमांडू और एक बार ढाका हो आयी थी। दोनो बहनों के बीच फिलहाल यह तय हुआ था कि जब भी आफशाँ  बाहर जाएगी तो वह मेनका को अदा के पास छोड़ देगी। दोनो यह भी अच्छे से जानती थी कि यह व्यवस्था स्थायी नहीं हो सकती थी क्योंकि मेनका का स्कूल भी आरंभ होने वाला था। आफशाँ ने इस बात का जिक्र मुझसे कई बार किया था लेकिन अभी तक इसका कोई स्थायी उपाय नहीं मिला था। आफशाँ का कहना था कि समय आने पर वह अपनी सारी यात्राएँ बन्द कर देगी। मै भी उससे कुछ नहीं कह पाता था क्योंकि मै जानता था कि मेनका के कारण वैसे ही आफशाँ ने जीवन की बहुत सी खुशियाँ और मौज मस्ती को त्याग दिया था। बस ऐसे ही घिसटते हुए हमारी गृहस्थी की गाड़ी चल रही थी। 

एक हफ्ता और निकल गया था। अभी तक मै तय नहीं कर पाया था कि क्या करुँ। कई बार मैने सोचा कि हया से उसके भाई के बारे मे जानकारी लूँ परन्तु मेरा फोन उसके पास जाने का मतलब हम दोनो के लिये खतरा था। उस दिन के बाद तो हया ने भी फोन नहीं किया था। एक सुबह मै ब्रिगेडियर चीमा से मिलने चला गया था। …सर, एक परेशानी का सामना कर रहा हूँ। कुपवाड़ा के लिये मुझे दो-तीन भरोसेमन्द आदमी चाहिये। …मेजर, तुम्हारी सुरक्षा मे पाँच जांबाज कमांडो है। उन्हें क्यों नहीं इस्तेमाल करते? …सर, वह सब रेग्युलर सैनिक है। ऐसे काम मे उनका इस्तेमाल करना ठीक नहीं है। …क्यों? …आप तो जानते है है कि यह सब काम गैर कानूनी है। …मेजर, अपनी टीम पर भरोसा रखो। सभी लोग अपने-अपने क्षेत्र मे पूर्णता निपुण है। उनके युद्ध कौशल का लाभ उठाओ क्योंकि यह काम तुम कोई निजि फायदे के लिये नहीं कर रहे हो। यह आंतरिक सुरक्षा का मामला है और इस काम मे देरी करने की जरुरत नहीं है। …यस सर। ब्रिगेडियर चीमा से बात करके जैसे ही मै खड़ा हुआ तभी उन्होनें कहा… मेजर, जमील अहमद ने सब कुछ उगल दिया है। अगले कुछ दिन हम उन सभी को सर्वैलेन्स के घेरे मे लेंगें और फिर उनके खिलाफ सैनिक कार्यवाही आरंभ होगी। …सर, मुझे हिज्बुल के एक कमांडर बुरहान की लोकेशन का पता करना है। ब्रिगेडियर चीमा ने कहा… पहला टार्गेट कुपवाड़ा और अगला टार्गेट आप्रेशन आघात का फेस-2 के बाद ही कुछ और सोचना तुम। इतनी बात करके मै अपने आफिस मे वापिस आ गया था। मैने अपने पाँच सुरक्षाकर्मियों को बात करने लिये बुलवा लिया था कि तभी मेरे निजि मोबाईल की घंटी बज उठी थी। मैने जल्दी से काल लेते हुए कहा… हैलो। …समीर भाईजान मै फरहत बोल रहा हूँ। भाईजान इस बार जिहादियों की देखरेख मे गोल्डन ट्रांसपोर्ट के दो ट्रक अभी सीमा पार से आये है। मै तो ट्रक लेकर मुजफराबाद की ओर जा रहा था कि एक ढाबे पर उनसे मुलाकात हो गयी थी। दो बार मै उन्हें अपने ट्रक मे छिपा कर यहाँ लाया था इसलिये वह सब मुझे पहचानते थे। उनसे बातचीत करने पर पता चला कि दोनो ट्र्क बांदीपुरा जा रहे है। …तुम वापिस कब लौट कर आ रहे हो? …अगले हफ्ते, भाईजान उन ट्रकों के रजिस्ट्रेशन नम्बर नोट कर लिजिये। मुझे अब जाना है। मैने जल्दी से उन ट्रकों के नम्बर नोट किये और फोन काट दिया। मेरे साथी आ चुके थे। मैने उन्हें बैठने के लिये कह कर एक बार फिर तेज कदमों से चलते हुए ब्रिगेडियर चीमा के आफिस की ओर निकल गया था।

…सर, अभी खबर मिली है। यह बता कर मैने फरहत की सारी बात उनके सामने रख दी थी। ब्रिगेडियर चीमा कश्मीर के नक्शे के समक्ष खड़े हो कर सारे रास्ते देखते हुए बोले… मेजर, बांदीपुरा जाने के लिये उनके पास दो रास्ते है। एक वाया श्रीनगर और दूसरा वाया सोपोर। तुम्हें क्या लगता है? …सर, यह धूर्त लोग है। मुझे नहीं लगता कि अगर वह असला बारुद लेकर आ रहे है तो वह किसी को सही लोकेशन बताएँगें। हमे हर हालत मे उन्हें लिम्बर और बारामुल्ला के रास्ते मे कही रोकना होगा। …मेजर यह चलती हुई रोड है। इतने ट्रैफिक मे उन्हें रोकना खतरनाक हो सकता है। …सर, हम उन्हें बारामुल्ला तक भी नहीं पहुँचने देना चाहिये। उसके आगे तो खतरा और भी ज्यादा बढ़ जाएगा क्योंकि बारामुल्ला मे मंडी होने के कारण वह किसी भी गोदाम मे आसानी से अपना सामान उतार कर नये ट्रक मे लदवा कर कहीं भी निकल सकते है। अचानक ब्रिगेडियर चीमा ने कहा… अब तक वह उरी के पास पहुँचने वाले होंगें। उरी मे हमारा बेस है। वहाँ की टीम उन्हें बारामुल्ला से पहले रोकने मे सफल हो सकती है। अगले पन्द्रह मिनट मे ब्रिगेडियर चीमा ने उरी के कमांडर से बात करके उसे सब कुछ समझा दिया था। वहाँ पर स्पेशल फोर्सिज की टीम के साथ काउन्टर इन्टेलीजेन्स की टीम को यह काम देकर ब्रिगेडियर चीमा ने कहा… मेजर, लगता है कि तुम मेरे निर्णय से खुश नहीं हो? …नहीं सर ऐसी बात नहीं है। वैसे तो यह आप्रेशन हम भी कर सकते थे लेकिन आपने उनको चुना होगा तो जरुर कोई खास कारण रहा होगा। …मेजर, तुम अबसे काउन्टर आफेन्सिव टीम का नेतृत्व कर रहे हो। अबसे इनके जैसे ओपन-शट आप्रेशन्स के लिये दूसरी टीमों का इस्तेमाल करना सीख लो। इतनी बात करके मै वापिस अपने कमरे मे आ गया था। 

थोड़ी देर मे मै अपने आफिस मे बैठ कर अपनी सुरक्षा टीम को युसुफजयी की इमारत के बारे मे ब्रीफ कर रहा था। उनको समझाने के लिये मैने नक्शे मे उस इमारत की लोकेशन को दिखाते हुए समझाया कि कैसे वह इमारत एक आब्सर्वेशन पोस्ट बनी हुई है। हमारे हर आते-जाते कोन्वोय पर उनकी निगाह रहती है। वह जानते है कि कितना सामान और रसद सीमा पर भेजा जा रहा है। हमारा तोपखाना और टैंक्स किस संख्या मे भेजे गये है या वापिस लाये गये है। यह सारी जानकारी अगर पाकिस्तान पर लगातार पहुँच रही है तो फिर हमारे सिर पर कितना बड़ा खतरा मंडरा रहा है। इसीलिये इस इमारत को ब्लास्ट करके हम वह आब्सर्वेशन पोस्ट को हमेशा के लिये समाप्त करना है। मुझे एक डाइवर्जन और एक लुक आउट की जरुरत है। चुँकि यह काम हमारी सीमा मे करना है तो प्रशासनिक भाषा मे यह गैरकानूनी काम कहा जा सकता है। सैन्य नीति युद्ध काल मे काम करती है परन्तु शांति काल मे प्रशासन ही बेहतर विकल्प है। मै उनको अभी समझा रहा था कि तभी मेरे पास ब्रिगेडियर चीमा का फोन आया… मेजर, फौरन मेरे आफिस मे आओ। मै समझ गया कि उरी का आप्रेशन असफल हो गया इसीलिये सीओ साहब नाराज है। अपने साथियों को वहीं छोड़ कर मै ब्रिगेडियर चीमा के पास चला गया था।

ब्रिगेडियर चीमा आफिस मे चहलकदमी कर रहे थे। मुझे देखते ही बोले… क्या तुमने पाकिस्तान मे किसी से निकाह किया था? इस सवाल के लिये मै तैयार ही नहीं था। …क्या मतलब सर? …यही कि क्या तुमने पाकिस्तान मे किसी से निकाह किया था? …नो सर। क्या मै कन्डक्ट रुल्स नहीं जानता कि सर्विंग आफीसर किसी भी विदेशी नागरिक के साथ कोई संबन्ध नहीं रख सकते है। आप यह मुझसे क्यों पूछ रहे है? …अभी कठुआ के बीएसफ के कमान्डेन्ट का फोन आया था कि कल रात को कुछ घुसपैठियों ने सीमा पार करने की कोशिश की थी। कुछ तो एन्काउन्टर मे घायल हो गये और कुछ मारे गये। उन्होने कुछ को पकड़ लिया है। उस एन्काउन्टर मे दो बहने भी पकड़ी गयी थी। 

यह सुन कर मेरा जिस्म झनझना गया था। ब्रिगेडियर चीमा की ओर मेरी पीठ थी और वह बोलते चले जा रहे थे। …एक बहन गोलीबारी मे घायल हो गयी थी। दूसरी बहन ने सीमा सुरक्षा बल के जवानों को बताया कि वह समीर बट नाम के सैनिक की बीवी है जो श्रीनगर मे सेना के आफिस मे काम करता है। रात से ही 15वीं कोर मे तुम्हारे नाम से हड़कम्प मचा हुआ है। फौरन कठुआ जाकर डीआईजी सिसोदिया से मिल कर इस मामले को जल्दी से सुलझाओ। यह बात जनरल नायर तक पहुँच गयी है। मेरे चेहरे पर एक रंग आ रहा था और एक रंग जा रहा था। जन्नत और आस्माँ बीएसफ की हिरासत मे होने की चिन्ता नहीं थी परन्तु उनके बयान ने मुझे मुश्किल मे डाल दिया था। ब्रिगेडियर चीमा की दहाड़ मेरे कान मे पड़ी… मेजर, यह क्या चक्कर है। इसका मतलब यह सच है कि तुमने किसी पाकिस्तानी लड़की के साथ निकाह किया था। ओह नो। कुछ देर के लिये मै बोलने की स्थिति मे नहीं था जैसे कि मेरी जुबान तालू से चिपक कर रह गयी थी।


4 टिप्‍पणियां:

  1. समीर के सामने अजब स्थिती उत्पन्न हो गयी, जन्नत आस्मा की वजहसे क्या समीर मुश्किलमे फस गया?
    ये और धर्म संकट खडा हो गया. हमेशा की तरह धांसू अपडेट.

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    1. प्रशान्त भाई आपको मेरी ओर से नव वर्ष की शुभकामनाएँ और इतने दिनों के साथ के लिये धन्यवाद। ऐसी स्थिति एक सर्विंग अफसर के कैरियर के लिये बेहद घातक साबित हो सकती है।

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  2. जबरदस्त अंक और जन्नत और आस्माँ की कहानी अब फौज में समीर के लिए बहुत से परेशानी खड़ी कर चुकी है और शाहीन का लापता होना ये बहुत बड़ी सोचने वाली बात है की जिस दिन आलिया का मौत हुई उसी दिन से वो भी लापता है। क्या वो अभी तक जिंदा है यह भी सोचने वाली बात होगी।

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    1. एविड भाई मेरी ओर से नव वर्ष की शुभ कामनाएँ स्वीकार किजिये। इतने दिनों के साथ के लिये तहे दिल से शुक्रिया। इस अंक मे बहुत सी बातों का कुछ खुलासा और अंदेशा हुआ है जिनका दूरगामी परिणाम आगे चल कर सामने आयेगा।

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