काफ़िर-25
सुबह उठते ही मै तैयार हो गया था। आज अम्मी
और आलिया की मौत का तीसरा दिन था। सुबह से ही रिश्तेदारों और मिलने-जुलने वाले लोगों
का ताँता लग गया था। सभी बट परिवार के पास अपना दुख व्यक्त करने के लिए आ रहे थे। आसिया
और मै उनके साथ बैठे हुए थे और आफशाँ और अदा आने वालों की मेजबानी मे लगी हुई थी। दोपहर
तक सब मिल कर वापिस जा चुके थे। हम चारों बैठक मे आराम कर रहे थे। आसिया ने कहा… सब
मिलने वाले आकर कर जा चुके है। अब और किसी की उम्मीद तो नहीं है। कुछ सोचते हुए मैने
कहा… दिल्ली वाली खाला के यहाँ से कोई नहीं आया। क्या उनसे कोई नाराजगी हो गयी है?
…हाँ मौसी के यहाँ से कोई नहीं आया और न ही अब्बा या उनके यहाँ से कोई आया है। हम अपने
परिवार की दरारों के बारे मे चर्चा कर रहे थे कि तभी रहमत ने आकर बताया कि कोई स्त्री
मिलने के लिए आयी है। आसिया और अदा उठ कर उससे मिलने के लिए बाहर चली गयी थी।
…आफशाँ, तुम अब मुंबई छोड़ कर यहीं मेरे साथ
क्यों नहीं रहती। …नहीं समीर, यह जगह सुरक्षित नहीं है। हम दोनो बात कर रहे थे कि तभी
आसिया किसी अनजान लड़की के साथ बैठक मे प्रवेश करते हुए बोली… यह समीर है। सलाम करके
वह लड़की हमारे सामने आकर चुपचाप बैठ गयी थी। मैने आसिया और अदा की ओर देखा जो बड़े ध्यान
से मेरी ओर देखते हुए मुस्कुरा रही थी। …इन्हें पहचाना समीर? मैने घूर कर आसिया की
ओर देखा तो वह मेरे साथ बैठती हुई बोली… यह मिरियम है। हमारी छोटी अम्मी। …क्या? मेरे
और आफशाँ के मुख से अनायस एक साथ निकल गया था। बोलने के तुरन्त बाद ही हम दोनों झेंप
गये थे। वह तो देखने मे तो कोई सिर ढके स्कूली छात्रा लग रही थी। एक भरपूर नजर मिरीयम
पर डाल कर मैने कहा… आपसे पहली बार मिल रहा हूँ। अब्बा साथ नहीं आये। वह कुछ नहीं बोली
बस उसने सिर हिला कर मना किया और तभी आसिया ने कहा… मिरियम आप कुछ अपने बारे मे बताईए।
यह हमारी तीसरी बहन आफशाँ है और वह इसकी बेटी मेनका है।
मिरियम झिझकते हुए बोली… हम पाकिस्तान से है।
अभी कुछ दिन हुए हमारा निकाह हुआ है। इतना बोल कर वह चुप हो गयी परन्तु मेरे दिमाग
मे घंटियाँ बजनी आरंभ हो गयी थी। अब्बा को मैने जकीउर लखवी के मजमे मे शिरकत करते हुए
अपनी आँखों से देखा था। मुझे नहीं पता था कि अब्बा वहाँ पर निकाह करने के लिये गये
थे। जब चुप्पी काफी देर खिंच गयी तो मैने चुप्पी तोड़ते हुए कहा… मिरियम आपको यहाँ आये
हुए कितने दिन हो गये। …एक हफ्ता हुआ है। …आपको कैसा लगा यह शहर? …अभी हमने देखा कहाँ
है। आज पहली बार आपके अब्बा के कहने पर घर से बाहर निकली हूँ। आपकी अम्मी और आलिया
के इन्तकाल के बारे मे सुन कर बहुत दुख हुआ। आफशाँ जो अभी तक चुप बैठी हुई थी वह अचानक
बोली… मिरियम इतनी छोटी उम्र मे निकाह करने की क्या जरुरत थी?
मिरियम ने चौंक कर आफशाँ की ओर देखते हुए कहा… क्यों, हमारे यहाँ तो मुझसे भी छोटी
उम्र मे लड़कियों का निकाह हो जाता है। आफशाँ कोई जवाब देती उससे पहले मैने कहा… मिरियम,
आप यहाँ आयी और हमारे दुख मे शरीक हुई इसके लिए हम सभी आपके एहसानमन्द है। शायद उस
दिन सुबह मेरी आपसे ही बात हुई थी? …जी। उस दिन के लिए मै आपसे माफी माँगती हूँ। लेकिन
आपके अब्बा ने ही मुझसे ऐसा कहने के लिए कहा था। …कोई बात नही।
मिरियम विरोध मे आफशाँ ने जैसे युद्धघोष कर
दिया था। …मिरियम, शरिया अनुसार आपको समीर के सामने चेहरा ढक कर सामने आना चाहिए था।
समीर आपके लिये अनजान आदमी है। क्या पाकिस्तान मे आपको यह नहीं बताया गया था? आफशाँ
की बात सुन कर हम सभी चौंक गये थे। मिरियम के चेहरे पर भय की लकीरें उभर आयी थी। उसके
चेहरे का गुलाबी रंग एकाएक लाल हो गया था। वह रुआँसी आवाज मे बोली… हमसे तो आसिया ने
कहा था। खैर अब हम जा रहे है। आपके अब्बा ने आप तीनों बहनों को आज शाम अपने घर पर बुलाया
है। यह कह कर वह उठ कर खड़ी हो गयी और चलने के लिए आगे बढ़ी तभी आसिया ने उसका हाथ पकड़
कर कहा… मिरियम आज शोक का तीसरा और आखिरी दिन है। हम चारों घर से बाहर नहीं निकल सकते।
वैसे भी हम कल वापिस जा रहें है। इसलिए अब्बा से कह दिजियेगा कि अगर उनको हमसे मिलना
है तो उन्हें यहाँ आना पड़ेगा। मिरियम ने जल्दी से सिर हिलाया और अपना हाथ छुड़ा कर बैठक
से बाहर निकल गयी। हम चारों चुपचाप अपनी जगह पर बैठे रहे थे।
…आफशाँ तुम्हें अचानक क्या हो गया था? …कुछ
नहीं। बस उसे एहसास करा रही थी कि अब्बा की जमात का क्या कहना है। परन्तु मुझे यह समझ
मे नहीं आया कि अब्बा हम तीनों से क्यों मिलना चाहते है। हम तीनों का मतलब है कि अब्बा
समीर के सामने नहीं पड़ना चाहते है। अदा और आसिया ने हामी भरते हुए मेरी ओर देखा तो
मैने कहा… एक बार तुम तीनों उनसे मिल लेती तो पता चल जाता कि अब्बा क्या कहना चाहते
है। आसिया कुछ सोच कर बोली… समीर, अगर वह तुमसे नहीं मिलना चाहते तो हमे भी उनसे नहीं
मिलना है। हम काफी देर तक अब्बा की मंशा पर चर्चा करते रहे थे। …क्या कल तुम तीनों
वापिस जा रही हो? आसिया ने कहा… समीर, मै सिर्फ एक हफ्ते की छुट्टी लेकर आयी हूँ। कल
नहीं तो दो दिन बात तो जाना पड़ेगा। आफशाँ और अदा ने भी इसी प्रकार का जवाब दिया था।
मै भी जल्दी से जल्दी वापिस ड्युटी पर जाना चाहता था। आज दोपहर को भी मैने इश्तियाक
से फोन पर पूछा था कि हमलावरों के बारे मे कुछ पता चला तो उसने नकारते हुए बताया कि
उन्हें किसी ने भी नहीं देखा था। अब तक मिले सभी सुराग बता रहे थे कि हमलावर सीमा पार
से आये थे। इतने दिनों यहाँ बिताने के पश्चात मै समझ चुका था कि जब भी पुलिस किसी केस
को दबाना चाहती है तो उसके लिये सबसे अच्छा जवाब यही होता है कि हमलावर सीमा पार से
आये थे।
रात को सारे कार्य समाप्त करके हम चारों लान
मे बैठ कर बचपन की बातें याद कर रहे थे कि तभी दो कारें और दो जीप धड़धड़ाती हुई हमारे
गेट के सामने आ कर रुकी। हम चारों सावधान हो गये और हम सब की नजरें लोहे के गेट पर
टिक गयी थी। एक अनजान आदमी लोहे का गेट खोल कर एक किनारे मे खड़ा हो गया। कुछ पलों के
अन्तराल के बाद अब्बा ने लान मे कदम रखा तो हम चारों खड़े हो गये थे। उनके पीछे सिर
से पाँव तक ढकी हुई दो स्त्रियाँ चल रही थी। आज भी वह अपने उसी पुराने स्वरुप मे थे। वही सिर पर तुर्की टोपी, घमन्ड मे ऐंठी हुई गरदन और काली
अचकन पहने धीमी चाल से चलते हुए उन्होंने लान मे प्रवेश किया था। आफशाँ ने मेनका को
अपनी गोदी मे उठा लिया था। वह तीनों चलते हुए हमारे सामने आकर खड़े हो गये थे। हम चारों
ने सलाम किया और उन्हें बैठने का इशारा करते हुए मैने कहा… तशरीफ रखिए। आसिया ने रसोईये
को आवाज लगा कर कुछ और कुर्सियों को लान मे रखने के लिए कहा और फिर चुपचाप मेरे साथ
आकर बैठ गयी थी।
मैने चुप्पी तोड़ते हुए कहा… यहाँ कैसे आना
हुआ? अब्बा ने मुझे घूरते हुए कहा… मै तुमसे नहीं अपनी लड़कियों से मिलने आया हूँ। आसिया
तुरन्त बोली… हम तीनो आपसे नहीं मिलना चाहते। एकाएक लान का वातावरण तनावपूर्ण हो गया
था। मुझे घूरते हुए अब्बा ने घुर्राते हुए कहा… तुम तीनों पागल हो गयी हो। क्या तुम
नहीं जानते कि यह काफ़िर है। अबकी बार आफशाँ बोली… इसके साथ मंदिर मे शादी करके तो फिर
मै भी काफ़िर बन गयी हूँ। मकबूल बट का चेहरा गुस्से से लाल होता चला जा रहा था। तभी
अदा ने कहा… अब्बू, आपकी चार बेटियों मे से अब सिर्फ हम दो ही रह गयी है तो जो भी कहना
है वह आप हमसे कह दीजिए। मकबूल बट ने एक बार मेरी ओर देखा और
फिर अदा से कहा… पहले इन दोनो को यहाँ से जाने के लिए कहो। मै अपनी जगह से उठते हुए
बोला… आप लोग बात कीजिए। आओ आफशाँ हम अन्दर चलते हैं। मेनका को
गोदी मे लिए वह वहीं बैठी रही। मै चुपचाप अन्दर चला गया परन्तु जाते हुए मेरी नजर लोहे
के गेट पर पड़ गयी थी। मकबूल बट अपने साथ जमात की फौज लेकर आया था। कुछ अंतराल के पश्चात
जब बाहर आसिया और आफशाँ की तेज आवाजें सुनी तो मैने अपनी ग्लाक खीसे मे अटका कर कमरे से बाहर निकल कर उनके पास चला गया। बाहर आफशाँ और मकबूल
बट मे बहस चल रही थी।
अचानक अब्बा की दहाड़ती हुई आवाज रात मे गूँजी…
तुम दोनो मेरे घर से निकल जाओ। मै चुपचाप चलते हुए आफशाँ के पीछे जाकर कर खड़ा हो गया
था। मेरी नजर मकबूल बट के साथ आयी हुई दोनो स्त्रियाँ पर पड़ी जिन्होंने शायद मेरे जाने
के बाद अपने चेहरे पर से नकाब हटा लिया था। एक तो मिरियम थी और दूसरी पर नजर पड़ते ही
मै चौंक गया था। दोनो मुझे ताक रही थी लेकिन अभी तक जिसे मै मकबूल बट की दूसरी बीवी
समझ रहा था वह नीलोफर लोन थी। यह मेरे लिए चौंकने की बात थी। मुझे देख कर उनकी बातों
का तारतम्य टूट गया था। मैने पूछा… आसिया, क्या इस तरह यह अपने नये परिवार के साथ अम्मी
और आलिया का शोक मनाने के लिए आये हैं? आसिया ने जल्दी से कहा… नहीं यह शोक मनाने के
बजाय तुम दोनो को इस घर से बेदख्ल करने के लिए आये है। …अच्छा। परन्तु किस हैसियत यह
हमे यहाँ से निकालने के लिए आये है? तुम तो जानती हो कि अम्मी यह सब मेरे नाम पर करके
गयी है। …यही तो आफशाँ इनसे कह रही थी। आसिया अपनी बात रख कर मेरे साथ आकर खड़ी हो गयी
थी। तभी अदा ने कहा… अब्बू, समीर सही कह रहा है। अम्मी सब कुछ इसके नाम करके गयी है
तो भला हम इसको यहाँ से जाने के लिए कैसे कह सकते है। एकाएक लान मे एक बार फिर शांति
हो गयी थी। मेरी नजर गेट पर टिकी हुई थी जहाँ जमातियों का जमावड़ा बढ़ता जा रहा था।
मकबूल बट घुर्रा कर बोला… तुम्हारी अम्मी तो
इस काफ़िर के मोह मे पागल हो गयी थी परन्तु तुम दोनो यह बेवकूफी क्यों कर रही हो? इन
दोनो को निकाल बाहर करो। …आप ही बताईए अब्बू कि हम क्या करें? अम्मी के बाद अब यही
इस घर का मालिक है। अदा इतना बोल कर चुप हो गयी। मै चुपचाप उनके बीच होने वाली वार्तालाप
को सुन रहा था परन्तु मेरी नजर गेट पर जमी हुई थी। मकबूल बट जैसे ही गेट की ओर मुड़
कर कुछ बोलने को हुआ तभी मैने सबके सामने अपनी पिस्तौल को बाहर निकाल कर गेट पर खड़े
हुए लोगों के सिर के उपर फायर करते हुए चिल्लाया… मकबूल बट अपनी जमात की फौज से कहो
कि वह गेट से हट जाएँ और दोनो कारों को लेकर सड़क पर तुम्हारा इंतजार करें। मैने बोलते
हुए पिस्तौल का रुख मकबूल बट की ओर मोड़ते हुए कहा… अम्मी और आलिया की मौत के बाद तुम
और तुम्हारे जैसे अलगावादियों को देख कर गोली मारने की इच्छा तीव्र हो जाती है। अपनी
दिशा मे ग्लाक की नाल देख कर उसने मुड़ कर अपने आदमियों को हटने का इशारा करते हुए कहा…
यह तुम ठीक नहीं कर रहे हो। उसका इशारा मिलते ही गेट पर खड़े हुए लोग तेजी से वहाँ से
हट गये थे। नीलोफर और मिरियम मुझे घूर रही थी। मकबूल बट कुर्सी छोड़ कर गेट की ओर जाते
हुए चिल्लाया… अभी और बेईज्जत होना बाकी है? अगले ही क्षण वह दोनो स्त्रियाँ भी जल्दी
से कुर्सी छोड़ कर आगे बढ़ी और उसके पीछे गेट से बाहर निकल गयी थी।
उनके जाने के बाद लान मे शान्ति छा गयी थी।
नीलोफर को अब्बा के साथ देख कर मेरा दिमाग घूम गया था। आसिया ने पूछा… समीर, हम मिरियम
से मिल चुकी है। पर अब्बा की यह दूसरी बीवी कौन है? मैने मुस्कुरा कर कहा… यह नीलोफर लोन है। यह उनकी बीवी नहीं हो सकती। इसका यहाँ मकबूल बट के साथ आना बता रहा है वह
कोई गहरा चक्कर चला रहा है। …क्या चक्कर हो सकता है? इस सवाल का जवाब तो मेरे पास भी
नहीं था। सभी बैठ कर अपनी तिकड़मे लड़ा रही थी और मुझे यह नया गठजोड़ परेशान कर रहा था।
जमात-ए-इस्लामी का लश्कर के साथ रिश्ता मिरियम ने खोल दिया था। जमात की अपनी चरमपंथी
तंजीम हिज्बुल मुजाहीदीन अगर लशकर के साथ मिल कर गड़बड़ करेगी तो हमारे लिये नयी मुश्किल
खड़ी हो जाएगी। दूसरी ओर अब्दुल लोन फिलहाल सत्ताधारी पार्टी का महत्वपूर्ण नेता होने
के बावजूद कैसे अलगाववादी जमात-ए-इस्लामी के साथ गठजोड़ कर सकता है। अगर ऐसा है तो सारी
सुरक्षा एजेन्सियों के लिए खतरे की घंटी थी। मुझे अब विश्वास होने लगा था कि मकबूल
बट किसी बड़े ही चक्कर मे उलझा हुआ है। सवाल बहुत थे पर मेरे पास जवाब एक का भी नहीं
था।
उस रात हम सभी अम्मी
का कमरा छोड़ कर अपने-अपने कमरों मे चले गये थे। आफशाँ और मेनका मेरे कमरे मे आ गये
थे। अगली सुबह सभी के कहने पर मै उन्हें अपने साथ लेकर कोम्प्लेक्स चला गया था। मेरा
मकान और पीछे पहाड़ और वादी की हरियाली का मनोरम दृश्य देख कर आसिया ने कहा… आफशाँ तू
बेकार मुंबई मे फँसी हुई है। क्या इससे बेहतर रहने की जगह हो सकती है? आफशाँ अपनी मजबूरी
बताते हुए बोली… क्या मै इसके साथ रहना नहीं चाहती परन्तु क्या करुँ एक ओर मेरी नौकरी
है और दूसरी ओर मेनका का भविष्य। समीर का भी तो पता ही नहीं चलता कि यह किस वक्त कहाँ
चला जाएगा। इस से पूछो कि पिछले एक महीने से यह कहाँ था। आलिया बता रही थी यह किसी
काम से किश्तवार गया था और फिर वहाँ से कुपवाड़ा निकल गया था। उस दिन अम्मी से बात हुई
तो उन्होने भी बताया था कि समीर कुछ दिनों के लिये बाहर गया हुआ है। अपनी सफाई देते
हुए मैने कहा… तुम जानती हो कि फौज कोई आम आफिस वाली नौकरी नहीं है। पहले जब स्पेशल
फोर्सेज मे था तब पता ही नहीं चलता कि कब तक फील्ड मे रहना पड़ेगा। अगर फील्ड मे नहीं
गये तो भी पूरा गियर पहन कर तैयार रहना पड़ता है। वहाँ पर आप अपनी लोकेशन भी किसी को
नहीं बता सकते थे। यहाँ पर कम से कम एक बात तो तय है कि कहीं भी चले जाओ लेकिन अपने
आफिस के साथ सदा संपर्क मे रहते है। घरवालों से भी बात करने मे कोई पाबन्दी नहीं है।
उनको वहीं छोड़ कर
मैने उठते हुए कहा… तुम लोग आराम करो मै एक चक्कर आफिस का लगा कर आता हूँ तब तक खाना
भी तैयार हो जाएगा। यह कह कर मै कपड़ बदलने चला गया था। कुछ देर के बाद अपनी युनीफार्म
पहन जैसे ही मै बाहर निकला तो पहली बार अदा ने मुझे देख कर कहा… समीर, तुम मेजर हो
गये और घर मे किसी को पता नहीं। उसकी शिकायत सुन कर मै झेंप गया था। मैने इसका जिक्र
अदा से तो क्या आफशाँ से भी नहीं किया था। पठानकोट से यहाँ रिपोर्ट करते ही मुझे आउट
आफ टर्न प्रमोशन मिला था। मेरी युनीफार्म पर सेवा मेडल की स्ट्रिप देख कर अदा ने कुछ
बोलने के लिये जैसे ही मुँह खोला मैने जल्दी से चलते हुए कहा… मुझे अभी जाना है। तुम
लोग बैठो। इतना बोल कर मै बाहर निकल गया था।
मै सीधे ब्रिगेडियर
चीमा से मिलने के लिये चला गया था। वह अपने आफिस मे मिल गये थे। …सर, आपने सारी रिकार्डिंग
देख ली? …मेजर, सारे ग्रिड रेफ्रेन्स और मुख्य स्थान को हमने नोट कर लिया है। वह कंपनी
रिकार्ड्स की क्या कहानी है? …सर, गोल्डन कंपनी की असलियत उन रिकार्डस मे है। मुन्नवर
लखवी ने बहुत सी शेल कंपनी गोल्डन एन्टरप्राईज के नाम से खोल रखी है। उनके जरिये वह
ओवरबिलिंग करके हवाला रैकेट मे लिप्त है और उन्ही के द्वारा अपना सारा अवैध कारोबार
चलाता है। अब हमारे पास कारण है कि हम सात फार्म्स और पाँच सेब के व्यापारियों को मजबूर
करें कि वह अपनी तीन साल की सारी इन्वोइसिंग और बिलिंग हमारे सामने रखें। मै पूरे विश्वास
के साथ कह सकता कि इन लोगों के जितने भी मुख्य सौदे हुए होंगें वह सभी सिर्फ गोल्डन
नाम की कंपनी अथवा एन्टरप्राईज के साथ ही हुए होंगें। एक और बात पता चली है कि मुन्नवर
तो सिर्फ चेहरा है लेकिन उसके पीछे जो ताकत काम कर रही है वह जकीउर लखवी और आईएसआई
है। ब्रिगेडियर चीमा गहरी सोच मे डूबे गये थे।
…मेजर, यह हमारे लिये
बेहद खतरनाक बात है। …सर, इससे भी ज्यादा खतरनाक बात आपको जान लेनी चाहिए कि जमात-ए-इस्लामी
का गठजोड़ लश्कर के जकीउर लखवी के साथ हो गया है। मैने अपनी आँखों से देखा है कि मुजफराबद
मे मकबूल बट ने लखवी के कार्यक्रम मे शिरकत की थी। हाल ही मे मुझे यह भी पता चला है
कि मकबूल बट ने उनकी किसी लड़की के साथ निकाह किया है। ब्रिगेडियर चीमा अविश्वास से
मेरी ओर देख रहे थे। …मेजर, मकबूल बट तुम्हारे अब्बा है। …यस सर, तभी तो बता रहा हूँ
कि पिछले कुछ दिनों मे उन्होंने निकाह किया है। …क्या वह लड़की लखवी परिवार से है?
…मेरा शक है लेकिन जल्दी ही इसके बारे मे सारी जानकारी मिल जाएगी। …मेजर, कहीं उन दोनो
की हत्या के पीछे यही कारण तो नहीं है? …सर, कुछ कहा नहीं जा सकता। एक और बात है।
…क्या कुछ और बात अभी बच गयी है? …यस सर, ऐसा लग रहा है कि अब्दुल लोन और मकबूल बट
मे सुलह हो गयी है। उसकी मुँह बोली बेटी नीलोफर लोन को कल मैने मकबूल बट के साथ देखा
था। ब्रिगेडियर चीमा ने चौंकते हुए कहा… मेजर इसका मतलब है कि मकबूल बट कोई बहुत बड़ा
खेल करने की साजिश रच रहा है। यही बात कल रात को मेरे दिमाग मे भी आयी थी। …मेजर, इस
साजिश का पर्दाफाश जल्दी से जल्दी करना पड़ेगा। …सर, मुझे कुछ समय चाहिए। …समय ही तो
हमारे पास नहीं होता। मै चुप रहा क्योंकि मेरे पास भी इसका कोई जवाब नहीं था। कुछ सोचने
के बाद ब्रिगेडियर चीमा अपनी सीट छोड़ते हुए बोले… अभी से इसी काम पर लग जाओ। इतना बोल
कर वह कमरे से बाहर निकल गये थे। मै भी उनके पीछे चलते हुए अपने आफिस मे पहुँच गया
था। कुछ देर के बाद मेरा असिस्टेन्ट आकर मेरे सामने एक कागज रख कर चला गया था। मेरी
अनुपस्थिति के दौरान जितने भी फोन मेरे लिये आये थे उनके नम्बर और विषय का विवरण उसमे
दिया हुआ था। मैने वह कागज उठाया और अपने आफिस के बाहर निकल कर अपने फ्लेट की ओर चला
गया था।
फ्लैट पर धमाचौकड़ी
मची हुई थी। मुझे देखते ही आसिया ने आर्डरली से कहा की खाना मेज पर लगा दो। कुछ ही
देर बाद हम बात करते हुए खाना खाने बैठ गये थे। मेरी अनुपस्थिति मे आर्डरली ही सुबह
से शाम तक घर पर रहता था। …बलदेव, कोई फोन वगैराह आया था? …साहब, फोन तो आलिया मेमसाहब
लेती थी। उस दिन दोपहर को फोन आया था जिसको सुन कर आलिया मेमसाहब फौरन बाहर चली गयी
थी। खाना खाते हुए सभी के हाथ रुक गये थे। …यह फोन कब आया था? …साहब चार-पाँच दिन पहले।
…उसने कुछ बताया था? …नहीं साहब। बस यही कहा कि वह आज रात नहीं आएँगी इसलिये मुझे रुकने
लिये कह कर चली गयी थी। अब मेरा शक गहराता जा रहा था। आलिया को वहाँ घर पर बुलाना और
फिर वहाँ फिदायीन हमला होना एक सुनियोजित साजिश की ओर इशारा कर रहे थे। वह तीनों भी
वही सोच रही थी जो मै सोच रहा था। इतने सारे पात्र मेरे सामने थे और उनमे से कोई भी
अपनी दुश्मनी निकाल सकता था। अचानक एक तथ्य पर निगाह पड़ते ही मेरे दिमाग मे आया कि
क्या मकबूल बट के आसपास यह सारे पात्र घूम रहे है या इस साजिश मे मकबूल बट महज एक पात्र
है?
शाम को हम वापिस घर
पर आ गये थे। हम लान मे बैठ कर इस मौसम के अन्तिम चरण का मजा ले रहे थे। वातावरण मे
ठंडक होनी आरंभ हो गयी थी। सभी अपनी वापिसी की चर्चा कर रही थी। आफशाँ और अदा ने साथ
जाने का निर्णय लिया और आसिया अगले दिन लौटना चाहती थी। हम अपनी बातों मे उलझे हुए
थे कि एक बुर्कापोश स्त्री लोहे का गेट खोल कर अन्दर आती हुई दिखी तो मै खड़ा हो गया।
मेरे कुछ बोलने से पहले उसने अपने चेहरे पर पड़े हुए पर्दे को हटा कर बोली… मुझे पहचाना।
एक पल के लिये हम सभी उसकी ओर देखते रह गये थे। एकाएक आफशाँ और अदा दोनो एक साथ बोली…
आयशा। वह मुस्कुरायी और मेरी ओर देख कर बोली… चलो तुम लोगो ने पहचान लिया। तुम्हारे
भाई ने तो देख कर भी अनदेखा कर दिया। यह बोलते हुए वह खाली कुर्सी पर बैठ गयी और बोली…
अम्मी ने आँटी और आलिया के बारे मे बताया तो सुन कर बहुत दुख हुआ। सभी लड़कियाँ उसके
साथ उलझ गयी और मै चुपचाप अपने कमरे की ओर चला गया था। इतने दिनो बाद उसे देख कर मै
असहज हो गया था।
मै अपने बिस्तर पर
लेट कर गोल्डन कंपनी के कागजों को देखना आरंभ कर दिया था। सभी कंपनियों के नाम मे गोल्डन
एन्टरप्राईज जुड़ा हुआ था। सभी का प्रमोटर मुन्नवर लखवी था परन्तु बोर्ड पर बैठने वाले
लोग अलग-अलग थे। इन कागजों मे लगभग दस कंपनी ऐसी थी कि जो फलों का काम करती थी। सियालकोट
गोल्डन का भी नाम उन दस मे था। चार आयात-निर्यात की कंपनी थी। बीस कंपनियाँ फुटकर कारोबारी
थी जिनका काम सिर्फ खरीदने और बेचने का था। आठ कंपनियाँ रियल एस्टेट और ट्रान्स्पोर्ट
से जुड़ी हुई थी। कुल मिला कर बयालीस कंपनियों का विवरण मेरे सामने था। जो तीन ट्रक
हमने पुलवामा के पास पकड़े थे उसमे मिली इन्वोइस मे रावलपिंडी की कंपनी का नाम भी इस
लिस्ट मे था। एक चीज जिसने मेरा ध्यान आकर्शित किया था वह गोल्डन ट्रान्स्पोर्ट कंपनी
थी। श्रीनगर मे स्थित गोल्डन ट्रान्सपोर्ट कंपनी का मालिक अब्दुल रज्जाक सैयद था। जब
उसके गोदाम पर ब्रिगेडियर चीमा ने रेड डाली थी तब उसका और शफीकुर लोन का संबन्ध सामने
आया था। उसके बाद दोनों की फिदायीन हमले मे मौत हो गयी थी। अब नीलोफर लोन उसके काम
को संभाल रही है। अब मुझे विश्वास होने लगा था कि नीलोफर भी इस खेल मे सिर तक धंसी
हुई है।
मै अभी सारी जानकारी
को समझने की कोशिश मे लगा हुआ था कि आफशाँ मेरे पास आकर बोली… समीर, तुम उठ कर यहाँ
क्यों आ गये थे। …कुछ नहीं। मुझे कुछ काम करना था। …आयशा तुमसे कुछ बात करना चाहती
है। …मुझसे परन्तु किस लिये? …चल कर बात कर लो। इतना बोल कर वह जाने लगी तो मै जल्दी
से उठ कर उसके साथ चलते हुए बोला… तुम ही पूछ लेती। उसने मेरी ओर घूर कर देखा और फिर
मुस्कुरा कर बोली… अब इतने भी शर्मीले नहीं हो तुम। हम दोनो लान मे चले गये जहाँ अदा
और आसिया उसके साथ बात करने मे व्यस्त थी। मुझे देखते ही आयशा चहकते हुए बोली… क्यों
समीर मुझे देख कर भाग क्यों गये थे। मुझे तुमसे कुछ पूछना था। मै चुपचाप उसके सामने
बैठ गया था। एक पल के लिये वह बोलने मे झिझकी और फिर संभल कर बोली… तुम अरबाज भाईजान
को अच्छे से जानते हो। उनको तीन दिन पहले सोपोर मे फौज ने पत्थरबाजी के सिलसिले मे
पकड़ लिया था। वह इस वक्त कहाँ पर है किसी को पता नहीं चल रहा है। तुम फौज मे हो तो
क्या उनके बारे मे कुछ पता लगा सकते हो? सारा परिवार परेशान है। …मै इसमे क्या कर सकता
हूँ। मुझे नहीं लगता कि इसमे फौज उलझेगी। अगर उन्होंने किसी को पकड़ा होगा तो भी उन्होंने
उसी समय स्थानीय पुलिस के हवाले कर दिया होगा। क्या तुमने वहाँ की पुलिस से अरबाज के
बारे मे पता किया है? …हम सब करके देख चुके है। कुछ सोच कर मैने कहा… ठीक है मै सोपोर
मे बात करके पता लगाने की कोशिश करुँगा।
आयशा कुछ बोलना चाह
रही थी कि तभी आसिया ने कहा… सोपोर यहाँ से है कितनी दूर। तुम वहाँ जाकर पता नहीं कर
सकते? फोन पर तो लोग टाल देंगें परन्तु अगर तुम सामने खड़े होगे तो वह टाल नहीं सकेंगें।
…तुम तो जानती हो कि मैने अभी ड्युटी जोइन की है। मुझे कुछ समय दो मै पता लगाने की
कोशिश करता हूँ। अरबाज किस गुट से संबन्ध रखता था। …अब्बा की पार्टी जमात-उल-हिन्द
का वह कार्यकारी सचिव है। …ठीक है, मै पता करने की कोशिश करुँगा। आयशा ने अचानक पूछ
लिया… क्या तुम मेरे साथ सोपोर चल सकते हो? उसका सवाल सुन कर एक पल के लिये मै स्तब्ध
रह गया था। मैने जल्दी से कहा… पहले मुझे फोन पर बात करने दो अगर फिर भी कुछ पता नहीं
चला तो मै सोपोर जाकर पता लगाने की कोशिश करुँगा। …तो तुम अभी बात कर लो। …इस वक्त
तो मुश्किल होगा। कल सुबह आफिस पहुँच कर सबसे पहले यही काम करुँगा। तुम निश्चिन्त रहो।
वह उठते हुए बोली… तो अपना नम्बर दो जिससे मै तुम्हें सुबह याद दिला दूँ। मैने टालने
के लिये कहा… मुझे याद रहेगा। तुम चिन्ता मत करो। …तुम्हें नम्बर देने मे कोई आपत्ति
है? उसके इस सवाल ने मुझे सबके सामने निरुत्तर कर दिया था। मैने अपना मोबाईल नम्बर
देते हुए कहा… हो सकता है कि मै तुम्हारी काल किसी कारणवश न ले सकूँ परन्तु जैसे ही
मौका मिलेगा मै तुमसे बात कर लूँगा। वह सबसे फिर मिलने का वादा करके खुदा हाफिज करके
चली गयी। उसके जाने के बाद तीनों मेरी ओर अजीब सी नजरों से देख रही थी।
रात को सब काम समाप्त
करके आफशाँ मेरे पास आकर बोली… मेनका को आज अदा और आसिया अपने साथ ले गयी है। मै उसकी
बात का अर्थ समझ गया था। …क्या जरुरत थी। वह सामने वाले बेड पर सो जाती। …समीर अब वह
बड़ी हो गयी है। यह बोलते हुए वह मेरे साथ लेट गयी थी। अचानक वह बोली… समीर क्या मै
अनजाने मे तुम्हारे और अदा के बीच दीवार बन गयी हूँ? उसकी बात सुन कर मेरे दिमाग मे घंटी बज गयी थी। …ऐसा क्यों सोच रही
हो। …पता नहीं कुछ दिन से मुझे डर लग रहा है कि तुम कहीं मुझे छोड़ तो नहीं दोगे। मै
उठ कर बैठ गया और उसके चेहरे को अपने हाथों मे लेकर कहा… इस जिंदगी मे तो नहीं और अगली
का पता नहीं। तुम मेनका की माँ हो और हमेशा रहोगी। याद करो हमारी शादी हुई है निकाह
नहीं। हिन्दुओं मे तलाक शब्द नहीं होता। तुमने सात जन्मों के लिये मेरे साथ रहने का
वचन दिया है। मुझे समझ मे नहीं आ रहा था कि अचानक उसे क्या हो गया है। वह कुछ और बोलती
उससे पहले मै उस पर छा गया था। पता नहीं ऐसा क्या था उसका जिस्म मेरे हाथों मे आते
ही एक मोम सा हो जाता और मै उसे अपने विवेक के अनुसार जैसा घड़ना चाहता वह वैसा ढलती
चली जाती थी। उसके जिस्म कि हर थरथराहट और हर कंपन मुझे महसूस होती थी। मुझे पता चल
जाता था कि वह मेरे किस स्पर्श से मचल उठेगी और किस कार्य से तड़प कर छूटने का प्रयास
करेगी। उस रात मैने उसके जिस्म के हर संवेदनशील अंग को इतना उत्तेजना से भर दिया था
कि वह किसी और चीज के सोचने लायक नहीं रही थी। उस रात मैने एलिस द्वारा बतायी हुई हर
तरकीब को इस्तेमाल करके उसे कामोत्तेजना के चरम का आभास करा दिया था। जब तक हम दोनो
मंजिल पर पहुँचे थे तब तक थक कर चूर हो गये थे।
…ओह समीर, आज तुमने
तो मेरी जान निकाल दी। क्या हो गया था तुम्हें? हम दोनो की साँसे तेज चल रही थी। एक
गहरी साँस लेकर मैने कहा… तुम्हीं बताओ कि मै तुम्हें कैसे समझाता कि तुम्हारे बिना
मै और मेनका अधूरे है। उसने मुझे अपने आगोश मे जकड़ लिया और मेरे कान मे बोली… आई लव
यू। उसने पहली बार मुझसे अपने दिल की बात कही थी। उसे अपनी बाँहों मे जकड़ कर मैने कहा…
अगली बार ऐसी बेवकूफी की बात कभी मत सोचना। वह खिलखिला कर हँसते हुए बोली… आज के अनुभव
के बाद तो कभी नहीं। एक दूसरे को बाँहों मे लिये कुछ देर ऐसे ही पड़े रहे थे। नींद कोसों
दूर थी। अचानक वह चौंक कर बोली… तुम अभी थके नहीं। उसके होंठों को चूम कर मैने कहा…
यह सब तुम्हारी मोहब्बत का असर है। यह बोल कर एक बार फिर से उसकी इंद्रियों को उत्तेजित
करने मे जुट गया था। कुछ देर मे ही उसकी उत्तेजक सिस्कारियाँ और सीत्कार कमरे मे गूंज
रही थी। तूफान गुजर जाने के बाद हम दोनो लस्त हो कर पड़ गये थे। नींद ने कब हमे अपने
आगोश मे ले लिया पता ही नहीं चला था।
सुबह तैयार होकर जैसे
ही मै कमरे से निकला तो मेरा सामना आसिया से हुआ और उसके चेहरे पर आयी हुई मुस्कान
ने मुझे सावधान कर दिया था। अदा और आफशाँ नाश्ते की मेज पर हमारा इंतजार कर रही थी।
हम दोनो नाश्ता करने के लिये बैठ गये थे। आसिया ने अचानक कहा… अदा, इस आफशाँ को आज
क्या हो गया है। …कुछ तो नहीं। …देख कैसे उसका चेहरा दमक रहा है। मै तुरन्त समझ गया
कि उनकी बातें किस दिशा की ओर जा रही थी। …आसिया, जल्दी से नाश्ता करो। तुम्हें एयरपोर्ट
पर छोड़ कर मुझे आफिस जाना है। आसिया ने बार फिर चुटकी लेते हुए पूछा… समीर, कल रात
को क्या कोई भूचाल आया था? मै कुछ बोलता उससे पहले आफशाँ ने कहा… उस बेचारे से क्या
पूछ रही हो, मुझसे पूछो। हम छ: महीने के बाद मिल रहे थे तो भूचाल तो आना ही था। शुक्र
करो कि भूचाल के बाद सब सही सलामत है। अब चुपचाप नाश्ता करो उसके बाद मै तुम्हें कल
रात की कहानी सुनाऊँगी। उनकी बातें सुन कर मेरा चेहरा लाल होता जा रहा था। मैने जल्दी-जल्दी
नाश्ता गटका और उठते हुए बोला… मै जीप छोड़ कर जा रहा हूँ। अपने हिसाब से टाईम से एयरपोर्ट
पहुँच जाना। मै तुम्हें वहीं पर मिलूँगा। तभी मेरे फोन की घन्टी बजी… हैलो। …समीर मै
आयशा बोल रही हूँ। …बोलो। …तुम्हें अरबाज के बारे मे पता करना है। बस याद दिलाने के
लिये फोन किया था। …थैंक्स। मै बस निकल रहा हूँ। आफिस पहुँचते ही पता लगा कर तुम्हे
बता दूँगा। मैने फोन काट दिया और उनकी ओर देखते हुए कहा… तुम्हारी सहेली है। इतना कह
कर मै अपनी जीप मे बैठा और अपने आफिस की ओर निकल गया था।
अपने आफिस पहुँच कर
सबसे पहले मैने सोपोर मे स्थित अपने आप्रेशन्स के लेफ्टीनेन्ट रावत से अरबाज का पता
लगाने लिये कह कर फिर सोपोर के एसपी से बात की थी। दोनो ने मुझे आश्वस्त किया कि जल्दी
पता लगा कर वह मुझे बता देंगें। मैने कल शाम बैठ कर जो भी उन कंपनियों के बारे मे समझा
था उसकी रिपोर्ट लिखने बैठ गया। एयरपोर्ट निकलने का टाईम हो गया था। मैने अपने ड्राईवर
को तैयार रहने के लिये पहले ही कह दिया था। जैसे ही आफिस से बाहर निकला मेरी जीप आ
गयी थी। पीछे पाँच सुरक्षाकर्मी अपने हथियारों के साथ पहले से ही बैठे हुए थे। मेरे
बैठते ही हम एयरपोर्ट की ओर रवाना हो गये थे। एयरपोर्ट पर तीनो बहनें और मेनका मेरा
इंतजार कर रही थी। मुझे देखते ही सबसे पहले किलकारी मार कर मेरे पास आने वाली मेनका
थी। उसे गोदी मे उठा कर मै उनकी ओर चला गया था। फ्लाईट की सिक्युरिटी चेक की घोषणा
होते ही जाने वाले यात्रियों का गेट पर तांता लग गया था। आसिया के जाने का समय हो गया
था। चलते हुए आसिया ने कहा… समीर, अपना ख्याल रखना और जब समय मिले तो फोन पर बात कर
लेना। मुझसे गले मिल कर अल्विदा करते हुए आसिया ने धीरे से कहा… एक बार अदा के जाने
से पहले उससे बात कर लेना। इतना कह वह सिक्युरिटी चेक के लिये चली गयी थी। हम कुछ देर
वहीं रुके और एयरपोर्ट से बाहर निकल आये थे।
…अब क्या विचार है?
घर जाना है या मेरे साथ कोम्पलेक्स चल रही हो? …तुम अपने आफिस चले जाओगे तो हम वहाँ
बोर जाएँगें। यह जवाब देकर दोनो वापिस घर चली गयी थी। मै अपने आफिस की ओर चल दिया था।
ब्रिगेडियर चीमा मीटिंग मे गये हुए थे तो मै अपनी अधूरी रिपोर्ट तैयार करने मे जुट
गया था। चार बजे के करीब मेरे फोन की घंटी बजी तो मैने काल रिसीव करते हुए कहा… हैलो।
…समीर, मै शबनम बोल रही हूँ। …बोलो शबनम घबरायी हुई क्यों लग रही हो? …समीर, आज सुबह
एन्फोर्समेन्ट वालों ने हमारे आफिस मे छापा मार कर हमारे सारे अकाउन्ट सील कर दिये
है और सारी किताबें जब्त कर ली है। अभी कुछ देर पहले डार साहब आफिस आये थे और उन्होंने
हमारे विभाग के सभी कर्मचारियों को बुला कर सख्त हिदायत दी है कि यहाँ की बात बाहर
नहीं जानी चाहिए। मुझे बहुत डर लग रहा है। …इसमे घबराने वाली तो कोई बात नहीं है। तुम
इस वक्त कहाँ हो? …बस का इंतजार कर रही हूँ। आज इतनी जल्दी कैसे छुट्टी हो गयी? …आफिस
सील होने के बाद फिर हमारे लिये कोई काम बचता नहीं है इसलिये जल्दी छुट्टी हो गयी थी।
…कब मिल सकते है? …आज तो हर्गिज नहीं मिल सकती और कल देखती हूँ। खुदा हाफिज। इतनी बात
करके उसने फोन काट दिया था। कुछ देर मै अपना
फोन हाथ मे पकड़ कर बैठा रहा लेकिन फिर कुछ सोच कर उठ कर आफिस से बाहर निकल गया था।
मै जैसे ही वापिस अपने आफिस मे पहुँचा मेरी नजर मेज पर रखे एक कागज
पर पड़ी जो हवा से फड़फड़ा रहा था। मै उस कागज को देखने बैठ गया था। मेरे असिस्टेन्ट ने
मेरी अनुपस्थिति मे जितने भी फोन आये थे यह उसका रिकार्ड था। सभी फोन अलग-अलग विभागों
से किसी काम के सिलसिले मे आये थे। क्रमवार सभी नम्बर देखते हुए मै एक नम्बर पर रुक
गया क्योंकि उसके आगे व्यक्तिगत लिखा हुआ था और उस काल को घर पर फारवर्ड कर दिया गया
था। मैने तारीख और समय पर गौर किया तो पाया कि जो समय और तारीख मेरे आर्डर्ली बलदेव
ने बतायी थी उसी समय यह काल मेरे आफिस से घर पर फार्वर्ड की गयी थी। उसी पल मुझे समझ
मे आ गया कि आलिया यही काल सुन कर अम्मी के पास चली गयी थी। यह अम्मी का नम्बर नहीं
था तो फिर किसका था? अब उस हादसे से जुड़े मेरे पास दो फोन नम्बर हो गये थे। पहला वह
जिसने पुलिस को खबर की थी और दूसरा वह जिसने मेरे आफिस फोन किया था और फिर मेरी अनुपस्थिति
मे आलिया से बात की थी। दोनो मोबाईल के नम्बर थे। मेरे हाथ अनायस ही उस साजिश का एक
सिरा लग गया था।
मुजफराबाद
मानशेरा और मुजफराबाद के पास कहीं पर स्थित मीरवायज के एक प्रशिक्षण केन्द्र मे गोपनीय बैठक चल रही थी। जनरल मंसूर बाजवा ने यह बैठक बुलवायी थी। जकीउर लखवी और पीरजादा मीरवायज उस बैठक मे शामिल थे। …फौज ने आपका प्रस्ताव मंजूर कर लिया है परन्तु उसमे सिर्फ एक बदलाव किया है कि श्रीनगर से इस मिशन का संचालन हमारा अफसर करेगा। पीरजादा मीरवायज ने बात काटते हुए कहा… जनाब, आप अपने अफसर को वहाँ भेज कर पूरे मिशन को खतरे मे डाल रहे है। मकबूल बट मे क्या खराबी है? यहाँ पर रह कर भी उस पर नजर रखी जा सकती है। जकीउर लखवी ने हाँ मे हाँ मिलाते हुए कहा… जनरल साहब, मेरे नुमाईन्दे का क्या होगा? आप लोग आखिरी समय पर बदलाव करके हमारी सारी योजना को कमजोर कर देते है। जनरल मंसूर एकाएक उठ कर खड़ा होकर बोला… मै कुछ दिनों से महसूस कर रहा हूँ कि आप लोग आजकल फौज को हल्कें मे ले रहे है। अगर हम लश्कर और जैश खड़ा कर सकते है तो यह मत भुलियेगा कि उसका सफाया भी कर सकते है। दोनो तंजीमो के मुखिया जनरल मंसूर की धमकी को चुपचाप सुन रहे थे। …यह मिशन आपके लिये कश्मीर तक सिमित होगा परन्तु हमारी नजर दिल्ली पर टिकी हुई है। इसीलिये मकबूल बट और लश्कर को हम कम नहीं आँक रहे लेकिन आईएसआई की देखरेख मे इस मिशन का संचालन करना चाहते है। पिछले छह महीने में आपका हर छोटा-बड़ा मिशन फेल हुआ तब आपकी प्रतिक्रिया क्या थी? जो हुआ सो हुआ, बोल कर हाथ झाड़ कर बैठ गये थे क्योंकि उसमे आपका पैसा नहीं लगा था। यह पाकिस्तानी फौज का मिशन है। इमां, तकवा जिहाद फि सबीलिल्लाह के नारे को यथार्थ मे उतारना होगा और इसमे असफलता की कोई गुंजाइश नहीं है। अगर यह मिशन किसी कारण असफल हो गया तो इसकी चपेट मे बहुत से लोग आयेंगें और आप लोग भी अबकी बार हाथ झाड़ कर बच नहीं सकेंगें। यही सोच कर यह निर्णय लिया गया है कि हमारा एक काबिल सर्विंग आफसर अपनी देखरेख मे इस मिशन का संचालन श्रीनगर से खुद करेगा। आपके लोग पूरी वफादारी के साथ उस अफसर का साथ देंगें अगर अभी भी आपको कुछ संशय है तो अभी बोल दिजिये। हम आपकी तंजीम को इससे बाहर रखने के लिये उपयुक्त कदम उठा कर ही फिर इस मिशन को ग्रीन सिगनल देंगें। मीरवायज और लखवी दोनो ही मंसूर बाजवा की छिपी धमकी को समझ गये थे। मीरवायज ने बात को संभालते हुए कहा… जनाब, हम आपकी बात समझ रहे है। हमारी ओर से आपको कोई शिकायत नहीं होगी। यह बोल कर उसने लखवी की ओर देखा तो उसने भी जल्दी से अपना सिर हिला कर हामी भर दी थी।
खूबसूरत अंक और जैसे सुलगती हुई आग में थोड़ा सा चिंगारी देखने को मिली जिसका अंदाजा पिछले अंक से प्रतीत हो रहा था जब मकबूल बट्ट समीर के मृत्यु खबर सुनाने के उपरांत बोली थी। वहीं आसिया ने एक बड़ी बहन होने का फर्ज निभाते हुए समीर को अदा की भी याद दिलाई जाते जाते। मगर आयशा का ऐसे फिर से कहानी में लौटना कहीं बड़ी अनहोनी की सूचना तो नही या फिर तत् कथित विष कन्या तो नही। लगता है आलिया और अम्मी की मौत की कड़ी लगता है कहीं बड़ी सुराग न दिखा दे समीर को
जवाब देंहटाएंआगे-आगे देखिये होता है क्या। अभी बहुत से सवालों का जवाब मिलना बाकी है। शुक्रिया दोस्त। Merry Christmas to you and your loved ones.
जवाब देंहटाएंMerry Christmas ❤️🎄
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