रविवार, 25 दिसंबर 2022

 

 

 


आयशा का फोन एक बार फिर शाम को चलने से पहले आया था। …समीर क्या हुआ? …आयशा, मेरी बात सोपोर के एसपी और अपने आफिस मे हो गयी है। उन्होंने अभी तक कोई खबर नहीं की है। जैसे ही उनसे कुछ पता चलता है मै तुरन्त बता दूँगा। इतनी बात करके मैने फोन काट दिया था। मैने अपना सामान समेटा और घर की ओर चल दिया था। आफशाँ और अदा को कल मुंबई के लिये निकलना था तो मै आज कुछ समय उनके साथ बिताना चाहता था। वह मुझे लान मे बैठी हुई मिल गयी थी। मै भी वहीं उनके साथ बैठ गया। …यहाँ क्या करने की सोच रहे हो? …वकील साहब कह रहे थे कि अब्बा ने यह मकान खाली करने का नोटिस भिजवाया है। …उन्होंने क्या कहा? …कुछ नहीं। बस इतना ही कि अम्मी की वसीयत प्रोबेट होते ही अब्बा की सारी उम्मीदों पर पानी फिर जाएगा। …फिर क्या करोगे? …अभी कुछ सोचा नहीं लेकिन एक बात जानता हूँ कि अब्बा को इसमे से एक फूटी कौड़ी नहीं दूँगा। हाँ जो भी तुम्हारा हिस्सा होगा उसमें से तुम जो भी उन्हें देना चाहो वह तुम्हारी मर्जी है। 

अदा ने कहा… समीर, अम्मी यह सब तुम्हें देकर गयी है। इसमे से हमे कुछ भी नहीं चाहिए। आसिया का भी यही निर्णय है। इसलिये हम तीनों को इससे दूर रखो। इस पर सिर्फ तुम्हारा हक ही नहीं जिम्मेदारी भी है। …और मेरे बाद? मैने सीधा सवाल इतने दिनो मे पहली बार अदा से किया था। अदा और आफशाँ दोनो ने चौंक कर मेरी ओर देखा तो मैने कहा… मै फौज मे हूँ। अगर कल मुझे कुछ हो गया तो फिर कौन देखेगा? आफशाँ ने बोलने के लिये मुँह खोला ही था कि अदा ने कहा… जब तुम नहीं होगे तो फिर यह सब हमारे किस काम का है। सब कुछ ऐसे ही पड़ा रह जायेगा। मै कुछ कहता कि आफशाँ ने कहा… समीर, आयशा मिलने आयी है। मैने मुड़ कर देखा तो आयशा लोहे का गेट खोल कर अन्दर आ रही थी। …समीर तुमने पता किया? मैने जल्दी से कहा… अभी तक पुलिस और फौज के पास अरबाज की कोई जानकारी नहीं है। वह लोग दूसरे विभागों से पता कर रहे है। अब यह बात तो तय हो गयी कि अरबाज को न तो फौज ने उठाया है और न ही पुलिस ने कस्टडी मे लिया है। अबकी बार मैने सीधा सवाल आयशा से किया… तुमसे किसने कहा है कि अरबाज को सोपोर मे फौज ने पकड़ा है। …अब्बा की पार्टी के लोगों ने घर पर खबर की थी। …कमाल है, काजी साहब ने उस आदमी से यह नहीं पूछा कि जब वह उसे हिरासत मे ले रहे थे तब उनकी पार्टी के लोग क्या कर रहे थे? आयशा चुप बैठी रही क्योंकि इसका जवाब तो उसके पास भी नहीं था।

…क्या तुम कल सोपोर चल सकते हो? अबकी बार अदा ने टोकते हुए कहा… आयशा, कल हम दोनो को मुंबई जाना है। आयशा कुछ पलों के लिये चुप हो गयी थी परन्तु वह फिर बोली… तुम्हें छोड़ने के बाद चलते है। दो घन्टे का रास्ता है। शाम तक तो हम वापिस आ जाएँगें। अपनी बला टालने के लिये मैने कह दिया कि कल सुबह आफिस पहुँच कर बता दूँगा लेकिन अगर कोई मीटिंग हुई तो फिर मै नहीं जा सकूँगा। वह अचानक उठ कर वापिस चली गयी। आयशा के जाने के बाद आफशाँ बोली… समीर, तुम उसके साथ चले क्यों नहीं जाते। …मैने कह तो दिया कि मै उसके साथ चलूँगा लेकिन कल अगर कोई मीटिंग होगी तो तुम ही बताओ कि फिर मै कैसे जा सकता हूँ। कुछ देर हम आयशा की परेशानी पर बात करते रहे तो मैने बात बदलने के लिये पूछ लिया… आफशाँ मै पूछना भूल गया कि तुम्हारी काठमांडू ट्रिप कैसी रही? …बहुत अच्छी। मेनका को मै अपने साथ ले गयी थी। होटल वालों ने मेरी बहुत मदद की थी। मै जब मीटिंग मे जाती तो वह अपने एक स्टाफ को मेरे कमरे मे मेनका के साथ बिठा देते थे। होटल मे सारी लड़कियाँ काम कर रही थी तो मेनका को उन्होंने अच्छे से संभाल लिया था। अदा ने अचानक कहा… जब तुम काठमांडू जा रही थी तो मेनका को मेरे पास छोड़ जाती। आफशाँ ने एक पल के लिये मेरी ओर देखा और फिर बोली… पहले मैने यही सोचा था लेकिन फिर मेरी यात्रा तो बार-बार लगेंगी इसीलिये इस बार सिर्फ देखने के लिये मै मेनका को अपने साथ ले गयी थी। …अगली बार जाना हो तो मेरे पास छोड़ देना। अब तो यह मेरे को भी पहचानने लगी है। मै उनकी बातों मे नहीं फँसना चाहता था इसीलिए मै उठ कर कपड़े बदलने के लिये अपने कमरे मे चला गया था।

अपने कपड़े बदल कर एक बार फिर से मै उन दो फोन नम्बर मे उलझ गया था। कौनसे नम्बर से शुरु करना चाहिये? अपना फोन इस्तेमाल नहीं कर सकता था। मै इसी नतीजे पर पहुँचा कि पब्लिक फोन से सबसे पहले इनसे संपर्क करुँगा। कुछ देर बाद आफशाँ मेरे कमरे मे आयी और शिकायती स्वर मे बोली… मै तो पहले ही कह रही थी कि मेनका को अदा के पास छोड़ कर चली जाती हूँ परन्तु तुम ही हिचक रहे थे। अब वह मुझसे इसी बात पर नाराज हो गयी है। तुम जाकर बात करो और जो कुछ भी तुम दोनो के बीच मे चल रहा है उसे बैठ कर सुलझाओ। इतना बोल कर वह कमरे से बाहर निकल गयी थी। खाना खाने के बाद मैने अदा से कहा… बाहर टहलने चलोगी। उसने गरदन हिला कर मना कर दिया तो मै अपनी जगह से उठा और उसका हाथ पकड़ कर खींचते हुए बाहर निकल गया। आफशाँ और मेनका चुपचाप बैठ कर हमे जाते हुए देखती रही थी।

सड़क पर पहुँच कर मैने उसका हाथ छोड़ कर कहा… पता नहीं तुम अपना बचपना कब छोड़ोगी। वह अपना हाथ मलते हुए झिलमिलाती हुई आँखों से मुझे घूरते हुई बोली… तुम मुझ पर हुक्म चलाने वाले होते कौन हो? मैने मुड़ कर उसकी ओर देखा तो वह वहीं खड़ी हुई अपनी बाँह सहला रही थी। मै जल्दी से उसके पास गया और उसकी बाँह को सहलाते हुए बोला… सौरी, बहुत कस कर पकड़ लिया था। तुम भी तो मुझे गुस्सा दिला देती हो। …छोड़ो मुझे। यह बोल कर वह मुझे धकेलते हुए वह आगे बढ़ गयी थी। मै जल्दी से उसके साथ चलते हुए बोला… अदा तुम कब मुझे समझने की कोशिश करोगी। वह चुपचाप मेरे साथ चलती रही। कुछ दूर मेरे साथ चलते हुए अदा ने धीरे से कहा… सब कुछ जानते हुए भी समीर, तुमने मेरे साथ ऐसे क्यों किया? …इसी सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं है। अगर समझ सको तो बस वक्त और हालात ने मुझे मजबूर कर दिया था। मै जानता हूँ कि मै तुम्हारा दोषी हूँ और हमेशा रहूँगा। वह चलते-चलते रुक गयी और मेरी ओर देखने लगी लेकिन उससे निगाह मिलाने की मुझमे हिम्मत नहीं थी। …आज भी तुम मे मुझसे आँख मिला कर बात करने की हिम्मत नहीं है। …तुम सच कह रही हो। इसीलिये आज तुमसे कह रहा हूँ कि जिस बात का कोई हल नहीं है तो उसे एक मोड़ देकर भूल जाना अच्छा होगा। इस आत्मग्लानि का बोझ सारी जिंदगी मेरे सीने पर रहेगा। वह कुछ देर मुझे देखती रही लेकिन उसने कुछ नहीं कहा और फिर घर की ओर वापिस चल दी। मै ठगा सा वहीं पर खड़ा रह गया था। काफी देर तक उस पुलिया पर बैठ कर मै शून्य मे निहारता रहा था। मै अपने रिश्तों को संभालने मे लगातार असफल हो रहा था। काफ़िर का तमगा मेरे माथे पर लगा कर मकबूल बट ने वैसे ही मुझे सभी से अलग दिया था। अब तक जो मेरे सबसे करीब थी मैने उसका भरोसा भी खो दिया था। मुझे इस उलझन से निकलने की दूर-दूर तक कोई राह नहीं दिख रही थी। 

सुबह आफशाँ ने मुझे चाय देते हुए पूछा… कल रात को कहाँ चले गये थे? …यहीं था लेकिन अदा मेरी बात सुनने के लिये तैयार नहीं थी। वह कहाँ है? …अपना सामान बांध रही है। …तुम्हारी तैयारी हो गयी? …हाँ, बस मेनका को तैयार करना बचा है। तुम जल्दी से तैयार हो जाओ। यह बोल कर वह चली गयी और मै तैयार होने चला गया। जब तक तैयार होकर बाहर निकला तब तक आफशाँ, अदा और मेनका भी तैयार होकर बाहर नाश्ते की मेज पर आ गयी थी। हमने नाश्ता किया और एयरपोर्ट की ओर चल दिये थे। अभी भी अदा के चेहरे पर रात का तनाव दिखाई दे रहा था। आफशाँ और मेनका अपनी बातों मे उलझी हुई थी। एयरपोर्ट पर भी हमारे बीच मे सामान्य बात हुई थी परन्तु सिक्युरिटी चेक पर जाने से पहले पता नहीं अदा को देख कर एक टीस दिल मे उठी और जब चलते हुए उसने अल्विदा कहने के लिये मेरी ओर देखा तो मेरे हाथ अनायस ही अपने कान की ओर चले गये थे। अपने दोनो कान पकड़ कर उसके सामने खड़ा हो गया था। आफशाँ और मेनका के साथ आने जाने वालों की नजर मुझ पर टिक गयी थी। कोई युनीफार्म मे खड़ा हुआ आदमी अगर अपने दोनो कान पकड़ कर खड़ा दिखायी देगा तो वैसे भी सबकी नजर उस पर टिक जाएगी। अदा भी अपनी युनीफार्म मे थी। वह एक पल मुझे घूरती रही और फिर मुस्कुरा कर आफशाँ को धकेलती हुई बोली… अब चलो, वर्ना इसका नाटक बढ़ता चला जाएगा। वह और आफशाँ हँसते हुए अन्दर चली गयी थी। मै कुछ पल वहीं खड़ा रहा और फिर उसके चेहरे की मुस्कान को पढ़ने की कोशिश करते हुए अपने आफिस की ओर चल दिया।

जब तक आफिस पहुँचा तब तक ब्रिगेडियर चीमा का नोट मेरी मेज पर पड़ा हुआ था। उन्होंने आते ही मुझे अपने पास बुलाया था। मै उनसे मिलने के लिये चला गया। उनके कमरे मे वही तिकड़ी बैठी हुई मेरी रिपोर्ट पर चर्चा कर रही थी। मुझे देखते ही वीके ने कहा… आओ मेजर, तुम्हारी रिपोर्ट देख ली है। तुमने खतरे से आगाह कर दिया है परन्तु यह नहीं बताया कि क्या करना चाहिये। मैने सबका अभिवादन किया और बैठते हुए बोला… सर, सच पूछिये तो मेरी टीम मुझे दे दिजीए। मै एक-एक करके सभी खतरों को समाप्त कर दूँगा। जनरल रंधावा ने हँसते हुए कहा… यह तो हम पिछ्ले तीस साल से करने की सोच रहे हैं परन्तु आज तक नाकामयाब रहे है। अजीत ने संजीदा लहजे मे कहा… मेजर, सवाल है कि मकबूल बट क्या करने की सोच रहा है? …सर, यह भी हो सकता है कि मकबूल बट इस साजिश मे सिर्फ एक प्यादा हो जिसके उपर हमारा ध्यान भटका कर कोई दूसरा इंसान या तंजीम एक बहुत बड़ा काम अंजाम देने की कोशिश मे जुटी हुई है। मै अभी तक यह समझ नहीं पाया कि अब्दुल लोन और जमात-ए-इस्लामी कैसे साथ हो गये है। क्या उन पर जकीउर लखवी का दबाव है अन्यथा जनरल मंसूर बाजवा इन सबके पीछे है? चारों काउन्टर इन्टेलिजेन्स के दिग्गजों के चेहरे पर तनाव की लकीरें खिंच गयी थी। 

कुछ सोचने के बाद ब्रिगेडियर चीमा बोले… सर, उनकी आर्थिक शक्ति की सारी ट्रेल हमारे सामने है। सभी मुख्य लोग की पहचान हो चुकी है। उनकी कार्यशैली पता लग चुकी है परन्तु केन्द्र सरकार कोई एक्शन लेने से अब क्यों झिझक रही है। मैने तुरन्त कहा… सर, उनमे से एक आदमी के आफिस पर कल एन्फोर्समेन्ट वालों ने रेड करके सारे अकाउन्ट सील कर दिये है। सभी ने वीके की ओर देखा तो वह मंद-मंद मुस्कुरा रहा था। बात बदलने के लिये जनरल रंधावा ने कहा… मै पिछले तीन साल से सरकार की राष्ट्रीय सुरक्षा समिति मे बैठ रहा हूँ। हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एक कूटनीतिज्ञ है लेकिन सुरक्षा उसका कभी विषय नहीं रहा है। इसीलिए उनकी सोच बाहरी रिश्तों पर केन्द्रित रहती है। आंतरिक चुनौतियों का सामना करने मे इसीलिये मौजूदा सरकार की इच्छा शक्ति मे कमी है। मैने तुरन्त सवाल किया… सर, तो फिर हमे क्या करना चाहिये? अबकी बार वीके ने कहा… मेजर, जब तक सरकार कोई मजबूत कदम नहीं उठाती तब तक हमे उनकी पाईपलाईन पर चोट मारते रहना है जैसे तुमने अभी तक किया है। जामिया मस्जिद ब्लास्ट, फिर उनके ट्रक पकड़े गये और अभी हाल मे ही उनके पैसों के स्त्रोत पर वह तीन ट्रक पकड़ कर हमला किया था। इसके कारण उनकी गतिविधियों मे कमी आयी है। इसलिये तुम जो अब तक कर रहे थे वह करते रहो। अपने उसी नेटवर्क को मजबूत करो और उन पर इसी प्रकार प्रहार करते रहो। क्या तुमने ब्रिगेडियर चीमा से पूछ कर उस जामिया मस्जिद मे ब्लास्ट किया था? सारा मैदान तुम्हारे सामने है और तुम काबिल हो यह सोचने के लिये कि कौनसा कार्य उस स्थिति मे ठीक होगा। अगर कहीं मुश्किल मे फँस गये तब हम लोग तुम्हारी सहायता के लिये उतरेंगें जैसे उस वक्त ब्रिगेडियर चीमा ने उस जामिया मस्जिद ब्लास्ट के मलबे को किसी और दिशा मे फैला दिया था।

मैने फिर कहा… सर, अभी तक हम कुपवाड़ा की आब्सर्वेशन पोस्ट को भी बन्द नहीं कर पाये है। वीके ने ब्रिगेडियर चीमा से पूछा… यह कौनसी आब्सर्वेशन पोस्ट की बात कर रहा है? ब्रिगेडियर चीमा ने युसुफजयी के काल सेन्टर की सारी कहानी सुना कर कहा… मैने यह बात जनरल नायर के कान मे डाल दी थी परन्तु यहाँ के हालात ऐसे है कि उन्होंने भी फौजी कार्यवाही के लिये मना कर दिया था। उनकी ओर से ग्रीन सिगनल मिलते ही हम पूरी इमारत को एक ही रात मे ध्वस्त कर सकते थे। अजीत ने कुछ सोच कर कहा… मेजर, उस इमारत को ध्वस्त करने के लिये तुम किसका इंतजार कर रहे हो? अगर वह इमारत आंतरिक सुरक्षा के लिये खतरा है तो तुम्हें अब तक यह काम कर देना चाहिये था। एक पल के लिये मैने अजीत की ओर देखा तो वह काफी संजीदा दिख रहे थे। पहली बार जब हम होटल ताज मे मिले थे तब इस तिकड़ी ने अपनी मंशा उसी समय साफ कर दी थी। उन्होंने मुझे डिफेंसिव आफेन्स की काउन्टर इन्टेलिजेन्स युनिट को खड़ी करने की जिम्मेदारी दी थी। वक्त और हालात के अनुसार आंतरिक सुरक्षा के लिये मुझे तत्काल एक्शन लेने के लिये कहा था। अगर जरुरत पड़े तो इसके लिये सरकारी पर्मिशन व प्रशासनिक कानून की उलझनों से बाहर रह कर भी कार्य करने की अनुमति दी थी। 

अचानक वीके ने पूछा… सुरिंदर, उन तीन ट्र्कों से जब्त किये सेम्टेक्स और आरडीएक्स की छ्ड़े और डिटोनेटर्स कहाँ है? …सर, सुरक्षा दृष्टि से सारा सामान मालखाने मे रखवा दिया गया था। एकाएक बिना किसी के बोले हम पाँचों के लिये सारी कार्यविधि साफ हो गयी थी। कुछ देर तक हम पत्थरबाजों पर चर्चा करते रहे थे। इस बीच मे तीन बार आयशा फोन कर चुकी थी। मीटिंग समाप्त करने से पहले वीके ने कहा… मेजर, एक बात हमेशा के लिये गाँठ बाँध लेना कि स्वतंत्र निर्णय के साथ उत्तरदायित्व का भार भी कन्धे पर ज्यादा होता है। यही बात हम सब पर लागू होती है। लाईसेंस टु किल का मतलब यह नहीं होता कि किसी को भी मारने की छूट है परन्तु उसकी जवाबदेही उससे भी ज्यादा जरूरी होती है। मै समझ रहा था कि वह लोग सिर्फ इशारे-इशारों मे मुझे मेरा दायित्व समझा रहे थे। मैने उठ कर सैल्युट किया और चलते हुए कहा… आप बेफिक्र रहिए सर। आपको कोई शिकायत का मौका नहीं दूगाँ। तभी अजीत ने मुस्कुरा कर पूछा… मेजर, पाकिस्तान कैसा लगा? मै कुछ बोलता इससे पहले वीके ने कहा… अजीत तीन साल अन्डरकवर मे रह कर काहुटा परमाणु केन्द्र पर काम कर के आया है। उस पल उन तीनो सेवानिवृत अधिकरियों की देश भक्ति और कर्तव्यनिष्ठा के बारे मे मेरी सोच और पुख्ता हो गयी थी। …सर फिर कभी आपसे आपकी कहानी पूछूँगा फिलहाल मुझे इजाजत दिजीए। उन सबसे विदा लेकर मै अपने घर की ओर चल दिया था। 

मुझे मालूम था कि आज घर पर कोई नहीं था। घर जाने को मेरा मन नहीं कर रहा था परन्तु कहीं तो रात काटनी थी। जैसे ही मैने अपने घर का मोड़ काटा कि तभी काजी साहब के घर का बड़ा सा लोहे का गेट खुला और आयशा सड़क पर आकर खड़ी हो गयी थी। मैने जल्दी से ब्रेक मार कर झल्ला कर आयशा से कहा… यह क्या मजाक है? वह मेरे पास आकर बोली… मेरे साथ चलो। एक पल के लिये मै झिझका फिर जीप से उतर कर उसके साथ चल दिया। आलीशान सी बैठक मे काजी साहब सोफे पर बैठे हुए थे। आयशा की अम्मी भी एक किनारे मे बैठी हुई मुझे ताक रही थी। मैने सलाम किया और उनके सामने जाकर बैठ गया। काजी साहब की भारी आवाज कमरे मे गूंजी… समीर, हमारे बेटे का कुछ पता चला? मैने उनके सामने वही बात दोहरा दी थी जो आयशा को बताई थी। कमरे मे शांति छा गयी थी। अचानक आयशा की अम्मी बोली… बेटा समीर, अगर शमा होती तो मै उससे मदद की गुहार लगाती परन्तु अब तुझसे कह रही हूँ कि खुदा के लिये हमारी मदद कर। मै कुछ कहता कि एक पर्दानशींन स्त्री ने बैठक मे कदम रखा और रुआँसी आवाज मे बोली… प्लीज, उनका पता लगाईये। मैने अनुमान लगाया कि यह अरबाज की पत्नी होगी।

घर मे तनाव के माहौल को देखते हुए मैने कहा… देखिये मै पूरी कोशिश कर रहा हूँ। मेरी बात एसपी सोपोर से हुई थी तो उसने कहा कि पुलिस ने किसी को नहीं पकड़ा है। आप कह रहे है कि उसे फौज ने पकड़ा था लेकिन सोपोर मे तैनात हमारी युनिट ने बताया कि उन्होंने भी किसी को नहीं पकड़ा है। अब आप ही बताईये इसमे मै क्या कर सकता हूँ। आयशा तुरन्त बोली… समीर, तुम मेरे साथ सोपोर चलो। …वहाँ जाकर भी हम क्या करेंगें जो हम यहाँ बैठ कर नहीं कर सकते। मेरा तर्क तो सही था परन्तु जहाँ भावनाएँ चरम पर होती है वहाँ तर्क काम नहीं करता। एक पल रुक कर मैने कहा… काजी साहब, अगर आपको अपने बेटे की चिन्ता है तो जमात-उल-हिन्द के उन व्यक्तियों के नाम बताईये जिन्होंने अपनी आँखों से यह सारा घटनाक्रम देखा था। मुझे लगता है कि आपके ही लोग आपके बेटे के अपहरण मे लिप्त है। एकाएक काजी साहब गुस्से मे बोले… क्यों काफ़िरों की तरह हम पर तोहमत लगा रहे हो। एक पल के लिये मुझे लगा कि उनका इशारा मेरी ओर है। …हमारी जमात दीन पर चलती है। भला मेरे बेटे का अपहरण वह क्यों करेंगें? जल्दी से अपने आपको संभालते हुए मैने जवाब दिया… निजि दुश्मनी और सत्ता की लालसा जैसे बहुत कारण हो सकते है। इससे बेहतर क्या होगा कि फौज और पुलिस पर सारा इल्जाम डाल कर उनका उद्देश्य हासिल हो जाये। 

शायद वहाँ बैठी हुई स्त्रियों को मेरी बात समझ मे आ गयी थी तो वह काजी साहब पर नाम बताने के लिये दबाव डालने लगी। कुछ देर जिरह होने के बाद काजी साहब ने हार कर कहा… सोपोर का ब्लाक अध्यक्ष नदीम मोहम्मद और सचिव फैसल परवेज ने मुझे यह खबर दी थी। मै उठ कर चलने से पहले कहा… काजी साहब, मै अभी सोपोर के लिये निकल रहा हूँ। कल तक आपके बेटे का पता लगा कर खबर कर दूँगा लेकिन अरबाज के लौटने से पहले आपको मेरे एक सवाल का जवाब देना पड़ेगा। इतना बोल कर जैसे ही मै कमरे से निकला कि तभी आयशा मेरे पीछे-पीछे भागती हुई आयी और बोली… मै भी तुम्हारे साथ चल रही हूँ। …तुम क्या करोगी? मै अब वहाँ जा तो रहा हूँ। …नहीं मै भी चल रही हूँ। तुम नहीं लेकर जाओगे तो मै अपनी कार से तुम्हारे पीछे आऊँगी। मैने एक नजर अपनी घड़ी पर डाल कर कहा… पहुँचते हुए आधी रात हो जाएगी। आयशा बिना जवाब दिये मेरी जीप मे जाकर बैठ गयी थी।

कुछ ही देर मे हम दोनो सोपोर की ओर जा रहे थे। एक बार पहले भी वह जबरदस्ती मेरी ज़ीप मे बैठ गयी थी। श्रीनगर से निकल कर हम हाईवे पर पाटन की ओर जा रहे थे कि मुझे अंजली की बात याद आ गयी थी। मेरी माँ पाटन मे रहती थी। अपने अन्दर उमड़ती हुई भावना को दबाने के लिये मैने आयशा से पूछा… स्कूल के बाद तुम्हें इतने दिनो के बाद देख रहा हूँ। तुम कहीं बाहर गयी हुई थी? वह अपने ही ध्यान मे गुम थी। …आयशा। उसने चौंक कर मेरी ओर देखा तो मैने कहा… क्या सोच रही हो? …यही कि भाईजान कहाँ होंगें। …अब चल तो रहे है। वहाँ पहुँच कर पता करेंगें। एक बार फिर से मैने वही सवाल दोहरा दिया था। इस बार वह कुछ सोच कर बोली… जल्दबाजी मे मेरा निकाह हो गया था। …अरे वाह। तुमने तो यह बात आफशाँ और अदा को भी नहीं बतायी थी। …क्या बताती। मेरा निकाह भी हुआ और फिर तलाक भी हो गया। …अनवर के साथ? उसने मुझे घूर कर देखा और फिर धीरे से बोली… यह नाम दोबारा तेरी जुबान पर नहीं आना चाहिए। …तुम तो एक दूसरे से मोहब्बत करते थे तो फिर ऐसा क्या हो गया?  वह कुछ देर चुप रही और फिर बोली… तूने उनका साथ क्यों छोड़ दिया था। एक पल के लिये मेरी आँखों के आगे से सब गुजर गया था। माँ की मौत ने मेरा सारा जीवन ही बदल कर रख दिया था। उसे क्या बताता इसी लिये मैने कहा… क्यों भूल गयी कि उस रात तुमने क्या कहा था। वैसे भी पढ़ाई के बोझ के कारण मेरा सब कुछ पीछे छूट गया था। …अच्छा किया जो समय रहते तूने उन कमीनों का साथ छोड़ दिया था। उसकी आवाज मे द्वेश कम और घृणा ज्यादा लग रही थी। सफर लंबा था तो मैने हिम्मत करके पूछ लिया… फिर भी मैने तो अपना वादा निभाया था। इस बार वह मुस्कुरायी और फिर अचानक उसका चेहरा लाल हो गया था। वह निगाह झुका कर धीरे से बोली… समीर उस दिन निशात बाग मे तूने सब कुछ देखा था? मैने सिर्फ अपना सिर हिला दिया था।

…आयशा मै तो आज तक यही सोच रहा था कि तुम और अनवर अभी भी साथ-साथ होंगें। …तू निरा बेवकूफ है। उसने अपनी मोहब्बत का छलावा देकर कुछ दिन मौज मस्ती लेकर मुझसे पीछा छुड़ाने के लिये अपने दोस्त फईम के हवाले कर दिया था। मेरा पाँव अचानक ब्रेक पर दब गया और जीप एक पल के लिये लहक गयी थी। मैने जल्दी से जीप को संभाला और उसकी ओर देखा तो वह सामने सड़क पर निगाहें जमाये हुए थी। …तो फिर तुम और फईम? मै इसके आगे नहीं बोल सका था। उसने मेरी ओर देखा और फिर मुस्कुरा कर बोली… काश उसकी जगह अगर अनवर ने तेरा नाम लिया होता तो शायद मै तैयार हो जाती परन्तु उस दिन मैने तेरे दोनो दोस्तों की चप्पल से पिटाई की थी। उसकी बात सुन कर मेरे चेहरे पर एक मुस्कान तैर गयी थी। …क्यों मुस्कुरा रहा है? …उस दिन तुम्हें अनवर के साथ देख कर मुझे बहुत जलन हुई थी। …क्यों? मै एक पल चुप रहा और फिर सड़क से नजरें हटा कर उसकी ओर देखते हुए कहा… क्या तुम्हें नहीं मालूम। वह कुछ नहीं बोली और फिर सारे रास्ते सिर झुका कर बैठ गयी थी।

सोपोर पहुँचते हुए काफी रात हो गयी थी। एमआई के स्थानीय कार्यालय मे पहुँच कर सबसे पहले नदीम मोहम्मद और फैसल परवेज का पता निकाला और फिर गार्ड युनिट के चार सैनिकों को साथ लेकर सबसे पहले नदीम मोहम्मद के घर पर पहुँच गया था। रात के दस बजे हमने उसको उसके घर से उठा कर फैसल परवेज के घर पहुँच गये थे। दोनो को रात मे उठाने का यह लाभ हुआ कि उनकी जमात के लोग कोई हंगामा करने की स्थिति मे नहीं थे। हम दोनो को लेकर वापिस अपनी चौकी पर आ गये थे। आयशा को अपनी जीप मे छोड़ कर एमआई के आफिस मे पहले फैजल परवेज से पूछताछ आरंभ हुई थी। …अरबाज को किसने उठाया था? …जनाब, फौज की टुकड़ी अपने साथ लेकर गयी थी। …तुमने अपनी आँखों से देखा था? एक पल के लिये वह झिझका और फिर सपाट स्वर मे बोला… जी जनाब। मेरा हाथ घूमा और उसके गाल पर पूरी ताकत से पड़ा कि वह एक पल के लिये चकरा गया था। इससे पहले कि वह संभल पाता कि तभी मैने साथ खड़े हुए सिपाही से कहा… हवलदार साहब, इस हरामजादे को नंगा करके उल्टा टांग दो। कल सुबह जीप के आगे बाँध कर नेताजी को इसी रुप मे सोपोर शहर मे घुमाएँगें। वह सिपाही जैसे उसकी ओर बढ़ा वह जोर से चिल्लाया… जनाब, खुदा के लिये रहम किजीए। मुझे तो नदीम साहब ने कहा था। कसम खुदा की मुझे इस बारे मे कुछ नहीं मालूम। …चलो अपना स्टेटमेन्ट लिख कर दो। उसने जैसे ही आनाकानी की मै जोर से चिल्लाया… हवलदार इसके कपड़े अभी तक उतरे क्यों नही। दो सैनिकों ने उसको कुछ मिनटों मे जन्मजात नंगा करके एक कोने मे खड़ा कर दिया था। दो सिपाहियों को उसकी गार्ड ड्युटी पर लगा कर एक कागज और कलम उसे थमा कर कहा… फैसल मियाँ, जब तक मै नदीम साहब की हड्डियाँ नरम करके आता हूँ तब तक तुम्हारा स्टेटमेन्ट इस मेज पर रखा होना चाहिए। इतना बोल कर मै उस कमरे से निकल कर नदीम के पास चला गया था।

नदीम मोहम्मद अधेड़ उम्र का व्यक्ति था। उसके आये दिन के धरनों और मोर्चों के कारण मै उसे  पहचानता था। …नदीम मियाँ, अरबाज कहाँ है? उसने बोलने के लिये मुँह खोला ही था कि मैने धमकाते हुए कहा… मियाँ सोच कर बोलना। तुम्हारे फैजल मियाँ ने अपना स्टेटमेन्ट लिख कर दे दिया है कि यह फौज की कहानी झूठी है और तुमने उसे बोलने के लिये कहा था। उसके चेहरे पर तनाव की रेखायें खिंच गयी थी। वह हड़बड़ा कर बोला… मुझे मेरे वकील से बात करनी है। आप कानून को अपने हाथ मे नहीं ले सकते है। मैने उसके नेतागिरी के नाटक को कुछ देर बर्दाश्त किया और फिर उसे गुद्दी से पकड़ कर खींचते हुए फैसल के कमरे मे ले जाकर धक्का देते हुए कहा… नदीम मियाँ, यह फौज का एरिया है। सुबह तक तुम्हारी इससे भी बुरी गत बना दूँगा कि तुम मुँह खोलने लायक नहीं रहोगे। अपने साथी पर एक नजर डाल कर बोलना आरंभ कर दो। सामने फैसल जमीन पर नंगा उकड़ू बैठा अपनी नग्नता को छुपाने का असफल प्रयास कर रहा था। यह दृश्य देख कर नदीम मोहम्मद की हवाईयाँ उड़ गयी थी। अबकी बार मैने फिर पूछा… अरबाज कहाँ है? अबकी बार उसने जल्दी से कहा… जनाब, अरबाज यहीं सर्किट हाउस मे ठहरा हुआ है। मुझसे उसी ने कहा था कि यह कहानी मै उसके अब्बा को सुना दूँ। मैने दोनो को गार्ड्स के हवाले करते हुए कहा… मै सर्किट हाउस जा रहा हूँ। अगर वह वहाँ नहीं मिला तो तुम दोनो पर खून का चार्ज लगा कर सुबह गोली मार दूँगा। इतना बोल कर मै वापिस अपनी जीप की ओर चला गया था। आयशा जीप मे बैठी हुई थी। एक लेफ्टीनेन्ट और दो सैनिकों को लेकर हम सर्किट हाउस की दिशा मे चल दिये थे। 

रात को बारह बजे के करीब हमने अरबाज को सर्किट हाउस से बरामद कर लिया था। वह दो स्त्रियों के साथ रंगरलियाँ मना रहा था जब हमने उसके कमरे का दरवाजा खोल कर उसे अपने कब्जे मे लिया था। उसकी बहन ने सारा नजारा अपनी आँखों से देखा था। उसकी कुछ तस्वीरें अपने फोन से खींच कर हम उसे अपने साथ लेकर वापिस एमआई के आफिस मे आ गये थे। नदीम मोहम्मद और फैसल परवेज को हमने जीप से रात को ही उनके घर छुड़वा दिया था। अरबाज को अपनी कस्टडी मे लेकर देर रात को हम श्रीनगर के लिये चल दिये थे। आयशा भी मेरे साथ थी। …अरबाज, तुमने जो चक्रव्युह की रचना की थी उसमे तुम खुद फँस गये हो। अब तुम अपने आप बताओगे कि यह सब किसलिये किया था या फिर पहले नदीम और फैसल की तरह अपनी गत बनवा कर बताओगे। तुमने फौज के उपर आरोप लगाया है तो अब तुम्हें तब तक नहीं छोड़ा जाएगा जब तक तुम सारी सच्चायी नहीं बता देते। इस बार काजी साहब और आयशा भी तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकेंगें। 

अरबाज चुप बैठा रहा तो मैने आयशा से कहा… तुमने अपने भाई की करतूत देख ली है। अब तुम्हें यह भी पता चल गया है कि वह ठीक है। मै तुम्हें तुम्हारे घर पर छोड़ कर इसे डिटेन्शन मे ले रहा हूँ। तुम कोशिश करके देख लो कि यह सब सच बोल दे वर्ना हमे इनके जैसे लोगों का मुँह खोलना आता है। इतना बोल कर मैने अपना ध्यान सड़क पर लगाया और भाई-बहन बात करने बैठ गये थे। काफी देर तक आयशा पूछती रही लेकिन उसने अपना मुँह नहीं खोला था। श्रीनगर मे घुसते ही वह बोला… समीर, मुझे तुमसे बात करनी है। मैने छूटते ही कहा…  जैसे उस दिन जरीना के लिये तुम मुझसे बात करने आये थे। वह कुछ नहीं बोला परन्तु आयशा ने पूछा… कौन जरीना, डाक्टर इस्लाम की बेटी? मैने अरबाज की ओर देखा तो वह मुझे घूर रहा था। …समीर, यह जरीना का क्या चक्कर है? …बता दूँ क्या? आयशा ने तुरन्त कहा… समीर, तुम सीधे घर चलो। आज अब्बा को इसके सारे काले कारनामे बताने का समय आ गया है। अगर तुम डाक्टर इस्लाम की लड़की जरीना की बात कर रहे हो तो यह जान लो कि उस जरीना ने खुदकुशी की थी। इस खुलासे ने मुझे भी हिला दिया था।

जैसे ही हमने अपनी कोलोनी मे प्रवेश करने के लिये मोड़ काटा ही था कि अरबाज ने कहा… समीर, एक किनारे मे जीप खड़ी कर ले। मै तुझे सारी बात बता देता हूँ। …नहीं समीर, तुम सीधे घर चलो। आज अब्बा को पता चलना चाहिये कि उनका फर्जन्द क्या गुल खिला रहा है। कुछ सोच कर मैने कहा… आयशा, मेरे घर पर कोई नहीं है। वहाँ आराम से बैठ कर पहले इसकी बात सुन लेते है। अगर यह सच बोलेगा तो गड़े मुर्दे उखाड़ने की जरुरत नहीं है। फिर भी उसके बाद अगर तुम ठीक समझोगी तो अपने अब्बा को सारी बात बता देना। इतना बोल कर मै सीधे अपने घर की ओर चल दिया। जीप के रुकते ही रहमत उठ गया था। उन दोनो लेकर मै अपने कमरे मे चला गया। रहमत आँखें मलता हुआ आया तो मैने कहा… रहमत मियाँ दोपहर से कुछ नहीं खाया है। चाय के साथ कुछ खाने के लिये भी बना लाओ। रहमत के जाने के बाद मैने अपने बैग मे रखा हुआ सेटफोन निकाल कर मेज पर रखते हुए कहा… अरबाज मुझे शुरु से सारी बात बताओ।

एक क्षण के लिये वह झिझका फिर धीरे-धीरे बोलना शुरु किया… तीन महीने पहले एक फारुख मीरवायज नाम का पाकिस्तानी कारोबारी जमात-उल-हिन्द के बारे मे जानने के लिये मुझसे मिला था। उस वक्त जमात-उल-हिन्द बेहद तंगी के दौर से गुजर रही थी। फारुख ने मुझे सुझाव दिया कि मुझे अपनी पार्टी का विलय जमात-ए-इस्लामी मे कर लेना चाहिए। उस वक्त मैने उसका सुझाव ठुकरा दिया था। मुझे उम्मीद थी कि कम से कम अगले चुनाव मे हमारी पार्टी को कुछ सीटें जीतने का मौका मिल जाएगा परन्तु अब्बा ने अलगावादियों की काल पर चुनाव न लड़ने का फैसला किया था। एक बार जमात-ए-इस्लामी से तुम्हारे अब्बा की ओर से एक न्योता मिला कि मै जमात-उल-हिन्द छोड़ कर उनकी पार्टी मे चला आऊँ परन्तु इसके लिये मैने मना कर दिया था। अभी कुछ दिन पहले मेरे पास फारुख का फोन आया था कि वह मुझसे कोई खास बात करना चाहता है परन्तु उसकी शर्त थी कि हमारी मुलाकात के बारे मे खासकर जमात-ए-इस्लामी और मेरे अब्बा को पता नहीं चलना चाहिये। एक कार्यक्रम मे मुझे सोपोर आना था तो मैने फारुख से मिलने के लिये उसे सोपोर बुला लिया था। कुछ दिनों के लिये मुझे अपने और दूसरे लोगो से छिप कर उससे मिलना था इसीलिए मैने यह कहानी गड़ी थी। नदीम मेरा अपना आदमी था इसीलिए मैने उससे कहा था कि वह अब्बा को फोन करके यह कहानी सुना दे लेकिन पता नहीं था कि अब्बा इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा कर देंगें।

कुछ सोच कर मैने पूछा… तो तुम्हारी उस मीरवायज मीटिंग हो गयी? …हाँ, आज सुबह ही मीटिंग समाप्त हुई थी। …फारुख क्या करने की सोच रहा है? …समीर वह यहाँ पर उपस्थित सभी राजनीतिक और चरमपंथी तंजीमों का संयुक्त मोर्चा बनाने की सोच रहा है। यह संयुक्त मोर्चा जमात-ए-इस्लामी की अध्यक्षता मे काम करेगा। इसके लिये फारुख हर साल दो करोड़ रुपये की आर्थिक मदद संयुक्त मोर्चे को देगा और इसी के साथ उसने मुझे उस संयुक्त मोर्चे का सचिव पद देने की बात की है। …तुमने इस बारे मे क्या सोचा? …इसमे क्या सोचना। जब सभी तंजीमे इस मोर्चे का हिस्सा बनने जा रही है तो एक अकेली हमारी जैसी पार्टी भला कैसे अछूती रह सकती है। कल तक तो मै वैसे ही वापिस अपने घर पहुँच जाता। तभी आयशा बोली… और फिर रंगरलियाँ मनाने के लिये एक रात रुक गये थे। उसने कोई जवाब नहीं दिया और मेरी ओर देखने लगा। रहमत कुछ चाय और नाश्ता बना लाया था। अरबाज ने तो सिर्फ चाय ली परन्तु हम दोनो ने भरपेट नाश्ता किया था। सुबह की लालिमा फैलनी आरंभ हो गयी थी जब भाई-बहन ने अपने घर की राह ली तो मै अपने कपड़े उतार कर बिस्तर मे घुस गया। हल्की सी गर्माहट मिलते ही मै गहरी नींद मे डूब गया था।

दोपहर को मेरी आँख खुली थी। मै आराम से तैयार हुआ और खाना खा कर अपने आफिस चला गया। ब्रिगेडियर चीमा को कल की बातचीत से अवगत कराना था। ब्रिगेडियर चीमा तो अपने कमरे मे नहीं थे परन्तु तिकड़ी वहीं बैठी हुई थी। मुझे देखते ही वीके ने मुस्कुरा कर कहा… मेजर कल सारी रात सोपोर मे क्या कर रहे थे? …सर, एक तहकीकात के लिये गया था। वहाँ पूछताछ पर पता चला कि एक  पाकिस्तानी कारोबारी सभी राजनीतिक और चरमपंथी तंजीमों को एक प्लेटफर्म पर लाकर संयुक्त मोर्चा बनाने की कोशिश कर रहा है। वह हर साल दो करोड़ रुपये की आर्थिक मदद उस मोर्चे को देगा लेकिन यह पता नहीं चल सका है कि आखिर वह मोर्चा बनाने बाद क्या करेगा? एक बार तीनो ने एक दूसरे को देखा और फिर अजीत ने कहा… ज्यादा से ज्यादा वह मोर्चा कश्मीर की आजादी की मांग करेगा। जनरल रंधावा ने अजीत की बात का समर्थन करते हुए कहा… आजादी तो लक्ष्य होगा परन्तु उनके निशाने पर हमारी सुरक्षा एजेन्सियाँ होगी। तुमने पत्थरबाजी के लिये कुछ कदम उठाये है? …नहीं सर लेकिन कुछ आदमी मेरी नजर मे आ गये है जो पत्थरबाजी के लिये बच्चों को उकसाते है।

हम कुछ देर बात करते रहे फिर मै उनसे इजाजत लेकर बाहर निकल आया था। मै अपनी जीप मे बैठा और कोम्प्लेक्स की ओर चल दिया। चाय पीकर मैने अपने आर्डरली की छुट्टी कर दी और कपड़े बदल कर अपने घर की ओर चल दिया। मार्किट मे रुक कर मैने एक नया फोन नये सिम कार्ड के साथ खरीद कर अपने घर की ओर चल दिया। घर पहुँच कर मैने उन दो नम्बर मे से एक नम्बर मिलाया तो कुछ देर घंटी बजने के बाद किसी ने फोन उठा कर कहा… हैलो। मैने जल्दी से कहा… निशात बाग थाने से एस आई इश्तियाक बोल रहा हूँ। कौन बात कर रहा है? दूसरी ओर वह एक पल के लिये झिझका फिर जल्दी से बोला… जमील अहमद। …मियाँ तुमने पुलिस कंट्रोल रुम को उस फिदायीन हमले की खबर दी थी। वह जल्दी से बोला… जी जनाब। …मियाँ तहकीकात के लिये तुम्हारा स्टेटमेन्ट लेना है। अपना पता बताओ। एक बार उसने टालमटोल करने की कोशिश की तो पुलसिया अंदाज मे घुर्रा कर बोला… तो घर से तुम्हें उठाना पड़ेगा। उसने जल्दी से अपना बारामुल्ला का पता लिखा कर कहा… जनाब आप चाहे तो मै वहाँ आकर अपना स्टेटमेन्ट जमा करा दूँगा। …ठीक है। यह कह कर मैने फोन काट दिया था। एक आदमी का पता चल गया था। मैने दूसरे नम्बर पर फोन किया लेकिन फोन लगातार आउट आफ रीच बता रहा था तो मैने फोन मिलाना बन्द करके उस जमील अहमद को अपना पहला निशाना बनाने का निर्णय लिया।


कुपवाड़ा

किसी अज्ञात स्थान पर एक व्यक्ति अपने हाथ मे सेटफोन लिये ताक रहा होता है कि तभी फोन की घंटी बजती है। वह तुरन्त काल लेकर बोलता है… सभी तंजीमों से मेरी बात हो गयी है। मकबूल बट ने राजनीतिक दलों के मुखियाओं को भी मोर्चे से जुड़ने के लिये राजी कर लिया है। बस अधिकारिक रुप से इस संयुक्त मोर्चे को दुनिया के सामने लाने के लिये देवबंद ने एक इज्तिमा करने का सुझाव दिया है। उनकी ओर से हिंदुस्तान के अलग-अलग प्रांतों से नामी मौलवियों और इमामों को भी नयौता देने की बात हुई है। …इज्तिमा से मुस्लिम समाज के जुड़ने की कितनी आशा है? …जनाब, इसे इज्तिमा का नाम इसीलिये दिया गया है कि मुस्लिम समाज को जोड़ना आसान हो जाएगा। उनको एहसास कराना है कि मोर्चे का गठन उनकी रहनुमाई के लिये किया गया है। …लखवी को क्या काम दिया है? …वह अभी तक चिड़ी हुई बैठी है। …उसको लाईन पर लाने के लिये मकबूल बट की मदद लो। …जी जनाब। …कुछ नये ग्रिड कुअर्डिनेट्स मिले है। मै तुम्हें भेज रहा हूँ। उसके लिये जल्दी से कोई योजना बना कर कार्यान्वित करो। काफ़िरों की फौज को पता चलना चाहिये कि हमारी पहुँच कहाँ तक है। …जी जनाब। …अगली बार इज्तिमा की तारीख के बारे मे तय करके बताना। मै अगले हफ्ते इसी समय पर संपर्क करुँगा लेकिन तब तक अपनी टीम को तैयार कर लेना। खुदा हाफिज। इसी के साथ लाईन कट गयी थी।


6 टिप्‍पणियां:

  1. वीर भाई पिटाई बाद में करते है, बन्दे को नंगा पहले कर देते है,😂😂😂,आधी हिम्मत तो वैसे ही तोड़ देते है, कॉल सेंटर वी लगता है जल्दी उड़ा देंगे

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    1. हरमन भाई आप बेहद शरीफ इंसान है क्योंकि ऐसा लगता है कि आपका कभी सुरक्षा एजेन्सियों से सामना नहीं हुआ है। पूछताछ के दो ही रास्ते होते है- पहला टार्चर और दूसरा बेइज्जत करके मनोबल तोड़ने की कोशिश। टार्चर पेशेवर अपराधियों के लिये इस्तेमाल किया जाता है।

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  2. गजब का अंक था और आखिर उन दो अनजान नंबर से एक का पता चल गया है फिर तो अब समीर का गुस्सा फूट पड़ेगा उस व्यक्ति के ऊपर। अदा और समीर इस बार अपने खामोश जंग में खड़े रह गए। आयशा का भाई बड़ा धूर्त निकला खुद छिप कर अपना गुमशुदगी का ठीकरा फोड़ दिया आर्मी के ऊपर।

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    1. अब साजिश की धीरे-धीरे परत खुल रही है। हरेक पात्र की भुमिका पर नजर गड़ाये रखना क्योंकि तभी असली साजिशकर्ता का पर्दाफाश होगा। एविड भाई खामोशी मे भी बहुत कुछ छिपा होता है। इसका एहसास बयान नहीं किया जा सकता परन्तु महसूस किया जाता है। शुक्रिया

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  3. आगे आगे देखीये होता है क्या, समीर अब अपने फुल रंग मे अभी आना बाकी है, अंडरग्राऊंड टीम तो अब बन ही गयी समझो.

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    1. प्रशान्त भाई शुक्रिया। समीर के विभिन्न रंग समय के अनुसार देखने को मिलेंगें। अभी तक आपने उसे सिर्फ वर्दी के रंग मे देखा है जहाँ उसमे अनुशासन और कर्तव्य दिखता है। वर्दी से पहले उसको एक आम युवा के रंग मे देखा था।

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