काफ़िर-12
रावलपिंडी
…बाजवा साहब मुंबई का रास्ता भारतीय सुरक्षा
एजेन्सियों की नजर मे आ गया है। अब हमारे लोग उतरते ही पकड़े जा रहे है। इस बार नकली
नोटों का कनसाईनमेन्ट के साथ हमारे चार लोग पकड़े गये है। …लखवी साहब, मुझे कुछ सोचने
दो। हम एक नया रास्ता बनाने की जुगत लगा रहे है। लखवी ने जल्दी से कहा… भारत मे इस
साल हमने अलग-अलग शहरों मे चार ब्लास्ट किये है। काफी जान और माल का नुकसान हुआ है।
…यह तो ठीक है परन्तु इस बार श्रीनगर मे भयानक विस्फोट होना चाहिए जिसमे फौज को भारी
नुकसान उठाना पड़े। छुट-पुट कार्यवाही से मामला चर्चा मे नहीं आता। यही सोच कर मैने
यह निर्णय लिया है कि कश्मीर मे मुझे एक अपना आदमी नियुक्त करना पड़ेगा जो भारत मे होने
वाली हर गतिविधि पर नजर रख सके। वह भारत के महानगरों मे ब्लास्ट करवाएगा और वहाँ के
ड्र्ग्स व्यापार का कश्मीर से संचालन करेगा। वही व्यक्ति वहाँ के मिडिया कर्मियों के
साथ रिश्ते बना कर हमारी बात वहाँ के मुस्लिमों के सामने रखेगा।
जनरल मंसूर बाजवा अपनी योजना को मीरवायज और
लखवी के सामने रख रहा था कि तभी लखवी ने कहा… जनरल साहब, मुजफराबाद का रास्ता खुलने
से सीमा पार असला-बारूद भेजने मे आसानी हो गयी है। जमात की ओर से उनकी जरुरतों की फेहरिस्त
आ गयी है। अब आपको अपना सामान जल्दी से जल्दी मेरे साथियों के पास पहुँचाना है। जनरल
मंसूर के चेहरे पर तनाव साफ झलक रहा था। हाल ही मे मसूद अजहर और हाफिज सईद ने भी भारत
मे आतंकी हमले की योजना की जानकारी तीन सदस्यीय टीम के सामने रखी थी परन्तु मीरवायज
की बीस करोड़ रुपये सालाना वाली योजना को उन्होंने हरी झंडी दे दी थी।
ब्रिगेडियर चीमा के सामने पहुँच कर मैने मुस्तैदी
से सैल्यूट किया और विश्राम की मुद्रा मे खड़ा हो गया था। …बैठो कैप्टेन। श्रीनगर कैसे
आना हुआ? …छुट्टी लेकर परिवार के साथ कुछ समय बिताने आया था। सर, मुझे कुछ बेहद संवेदनशील
जानकारी पता चली थी तो मैने सोचा आपसे बात करके उप्युक्त एजेन्सी तक यह जानकारी पहुँचा
दी जाए। इतना सुन कर ब्रिगेडियर चीमा का सारा ध्यान मुझ पर केन्द्रित हो गय था। …सर,
पत्थरबाजी के पीछे कुछ यहाँ की राजनीतिक और पृथकवादी पार्टियाँ है। हर घटना के लिए
बच्चों को पैसे दिये जाते है। लड़कों को पाँच सौ और लड़कियों को दो सौ रुपये मिलते है।
इन बच्चों की इस काम के लिए भर्ती यहाँ के मदरसों और सरकारी स्कूलों से की जाती है।
दीन की शिक्षा देने वाले जमात-ए-इस्लामी के मौलवी लोग मदरसों और स्कूलों मे जाकर बच्चों
को पैसों का प्रलोभन देकर इस्लामिक जिहाद के लिए भड़काते है। ब्रिगेडियर चीमा कुछ देर
गहरी सोच मे डूबे रहे फिर मेरी ओर देख कर बोले… और कुछ? …जी सर। मुझे पता चला है की
सेबों के कारोबारी पिछले कुछ सालों से ओवरबिलिंग कर रहे है। मुझे शक है कि इस कमाई
का इस्तेमाल जिहादी तंजीमे पत्थरबाजी और अराजकता फैलाने के काम मे करती है। ब्रिगेडियर
चीमा ने मुस्कुरा कर पूछा… कैप्टेन, तुम श्रीनगर कब पहुँचे थे? …सर, मै कल सुबह ही
यहाँ पहुँचा हूँ। …क्या तुम कुछ ऐसे मौलवी और सेब के व्यापारियों का नाम बता सकते हो।
कुछ सोच कर मैने कहा… सर, उनके नाम बताने से पहले मुझे आपकी मदद चाहिए। एक प्रश्नवाचक
दृष्टि मुझ पर डालते बोले… कहो? अबकी बार मैने फोन निकाल कर दोनो फिल्म दिखा दी थी।
फिल्म देखते हुए ब्रिगेडियर चीमा के चेहरे
पर एक रंग आ रहा था और एक रंग जा रहा था। …यह फिल्म तुम्हें कहाँ मिली? अबकी बार मैने
कहा… सर, वह दोनो लड़कियाँ और उनका दलाल यहीं पर मेरे साथ आये है। एक लड़की मेरी बहन
है। जब तक इनका नेटवर्क तबाह नहीं होता तब तक तीनो की जिंदगी खतरे मे है। मुझे पता
नहीं परन्तु मेरा अनुमान है कि जमात-ए-इस्लामी के लोग स्कूलों की लड़कियों को जिस्मफरोशी
के काम मे डाल कर स्थानीय प्रशासन को अपने काले कामों के लिये इस्तेमाल करते है। क्या
आप इनको सुरक्षा प्रदान कर सकते है? मैने अपनी बात रख दी थी और अब ब्रिगेडियर को सोचना
था। अगर वह मना कर देते तो मैने सोच लिया था कि तीनो को यहीं से सीधा पठानकोट ले जाऊँगा।
…कैप्टेन वह लोग कहाँ है? …सर, वह रिसेप्शन एरिया मे बैठे हुए है। ब्रिगेडियर चीमा
ने फौरन रिसेप्शन पर फोन करके उन तीनों को अपने आफिस मे बुलवा लिया था। …कैप्टेन क्या
तुम मेरी युनिट मे काम करना पसन्द करोगे? मै बैठता यहाँ हूँ परन्तु आप्रेशन्स मे नहीं
हूँ। सोच कर जवाब देना। मै कुछ बोलता उसी समय तीनों ने कमरे मे डरते हुए प्रवेश किया
था।
ब्रिगेडियर चीमा खड़े हुए और लड़कियों के पास
जाकर बोले… बिटिया आप लोग दूसरे कमरे मे बैठो, मुझे इस आदमी से बात करनी है। दोनो लड़कियों
को मीटिंग रुम मे बिठा कर मै वापिस आ गया था। चौकीदार अपनी बेगुनाही
के बारे मे लगातार बड़बड़ा रहा था। ब्रिगेडियर चीमा का हाथ घूमा और चौकीदार के गाल पर
पूरी शक्ति से पड़ा। गाल पर हाथ पड़ते ही बैठे-बैठे उस चौकीदार को चक्कर आ गया था। …मियाँ
शुरु हो जाओ वर्ना अगर रोलर चलवा दिया तो यह बूढ़ी हड्डियाँ फिर
कभी नहीं जुड़ सकेंगी। एक ही थप्पड़ ने उस चौकीदार का मनोबल तोड़ दिया था। कुछ ही देर
मे उस चौकीदार ने अपने स्कूल के साथ तीन और स्कूल की कहानी सुना दी थी। उनका पूरा नेटवर्क
सरकारी स्कूल की गरीब लड़कियों को नेताओ, प्रशासनिक अफसरों और समाज के नामी लोगों के
पास भेजा करते थे। उसने इसमे प्रिंसीपल, टीचरों और मौलवियों की भुमिका को भी बता दिया
था। सारी कहानी समझने के बाद ब्रिगेडियर चीमा ने फोन करना शुरु कर दिया और दोपहर तक
15 कोर के उच्च अधिकारियों के सामने बच्चियों और दलाल को बिठा दिया गया था। लड़कियों
ने बताया कि मौलवी साहब पढ़ाई मे कमजोर कुछ लड़कियों को पास करने का प्रलोभन देकर इस
धंधे मे ले आते है। कुछ लड़कियों को नकल करते हुए पकड़ कर उन्हें इस काम के लिए मजबूर
कर दिया जाता है। कुछ लड़कियों के लिए पैसो का प्रलोभन ही काफी होता है। कुल मिला कर
तीनो से बात करके पता चला था कि मुख्यमंत्री के आफिस से लेकर पटवारी तक सभी जमात-ए-इस्लामी
के हाथों की कठपुतली बने हुए थे।
इतिहास मे पहली बार राज्य सरकार के साथ इस्लामिक
कट्टरपंथियों और पृथकवादियों की नस 15 कोर के हाथ लगी थी। ब्रिगेडियर चीमा ने मुझे
कोर कमांडर के सम्मुख खड़ा कर दिया था। वह मुझे शाबाशी के साथ मेडल और पदोन्नति के लिए
सिफारिश करने के लिए कह रहे थे। मैने जल्दी से कहा… सर, मुझे कुछ नहीं चाहिए। बस आपकी
कार्यवाही मे इन दोनो लड़कियों का नाम नहीं आना चाहिए। मुझे आश्वस्त करते हुए कोर कमांडर
ने कहा… कैप्टेन इनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी अब हमारी है। आप बेफिक्र रहिए। मुझे उनकी
ओर से आश्वासन मिल गया तो मै दोनो लड़कियों को लेकर ब्रिगेडियर चीमा के आफिस की ओर चला
गया था। …कैप्टेन समीर, तुम चाहो तो इनकी सुरक्षा के लिए हम उनके घर के बाहर कुछ सुरक्षाकर्मी
लगा देते है अन्यथा जब तक उच्च अधिकारी कोई निर्णय लेते है तब तक इन्हें हम यहाँ गेस्ट
हाउस मे ठहरा देते है। …सर, मै तो गेस्ट हाउस ही चुनता लेकिन इसका निर्णय मेरी अम्मी
ही ले सकती है। उसी शाम उस चौकीदार को फौजी जेल मे डाल दिया गया था। फौज की कुछ युनिट
तीनों स्कूल के हेडमास्टरों और अन्य उनसे जुड़े हुए लोगो को पकड़ने के लिये निकल गयी
थी।
आलिया मेरे सीने मे अपना चेहरा छिपाये हुये
बैठी थी। …तुम दोनो का नाम कहीं नहीं आएगा। अम्मी को भी यही बताया जाएगा कि तुमने इतेफाक
से अपने स्कूल मे कुछ ऐसा देखा था कि जिसे तुमने फौरन अपने भाई को बता दिया था। तुम
दोनो को भी यही कहना है। …समीर घर चलो। अम्मी फिक्र कर रही होंगी। मै भी उसकी परेशानी
समझ रहा था। आलिया के साथ बैठी हुई उसकी सहेली ने जल्दी से कहा… भाईजान, मुझे भी घर
जाना है। मैने बात बदलने के लिए उससे पूछा… तुम्हारा नाम क्या है? …शाहीन। …कहाँ रहती
हो? …कुरैशी मोहल्ला। …अब्बा क्या करते? उसने कोई जवाब नहीं दिया। मैने आलिया की ओर
देखा तो वह भी चुप बैठी हुई थी। …चलो घर चलते है। अम्मी से बात करके इस समस्या का हल
सोचेंगें। आफिस के बाहर निकलने से पहले मैने ब्रिगेडियर चीमा को सारी
बातों से अवगत करा दिया था। शाम ढल चुकी थी और अंधेरा गहराने लगा था। धीरे-धीरे एक
बार फिर से बर्फ ने गिरना आरंभ कर दिया था। कुछ ही देर के बाद हम अपने घर की ओर चल
दिये थे।
जीप की आवाज सुनते ही अम्मी बाहर निकल आयी
थी। मुझे देखते ही रोते हुए बोली… आलिया स्कूल से अभी तक नहीं लौटी। मै स्कूल गयी थी
तो पता चला कि जब से बर्फ पड़नी शुरु हुई थी तभी से स्कूल की छुट्टी
थी। पता नहीं वह रोज कहाँ जाती थी। …अम्मी, आलिया मेरे साथ थी। तब तक आलिया और शाहीन
भी जीप से बाहर निकल आयी थी। उन दोनो को देख कर अम्मी के चेहरे घबराहट की जगह गुस्से
ने ले ली थी। मैने जल्दी से अम्मी को बताया कि स्कूल मे इन लड़कियों ने कुछ जिहादियों
को छिपे हुए देखा तो आलिया ने समय रहते हुए मुझे बुला लिया था। सारी फौजी कार्यवाही
के बाद ही उन्होने हमे वापिस आने दिया था। अब इन दोनो लड़कियों के लिए खतरा बढ़ गया है
इसीलिए अब कुछ दिन इन्हें घर से बाहर निकलने से मना किया गया है। अम्मी ने शाहीन की
ओर देखते हुए पूछा… यह कौन है? आलिया ने जल्दी से कहा… मेरे साथ पढ़ती है। मैने उनकी
बात बीच मे काटते हुए कहा… अम्मी, क्या आप शाहीन को उसके घर पर छोड़ सकती है। तभी शाहीन
मना करते हुए बोली… मै अपने आप चली जाऊँगी। आप तकलीफ मत किजीए। मै फोन पर खुद अपनी
अम्मी को बता देती हूँ। कुछ देर अम्मी अपनी दुविधा मे चुप रही और फिर धीरे से बोली…
समीर, कल तुम्हारे अब्बा आ रहे है। एकाएक हमारे घर का वातावरण तनावपूर्ण हो गया था।
रात को डिनर के बाद मैने कहा… अम्मी कल सुबह
मुझे मुंबई जाना है। मेरी बात सुन कर आलिया
ने कहा… अम्मी, मै भी समीर के साथ चली जाती हूँ। एक बार फिर से अम्मी और आलिया के बीच
मे पढ़ाई और इम्तिहान को लेकर बहस छिड़ गयी थी। मै चुपचाप उठ कर अपने कमरे मे सोने चला
गया था। सुबह अपने समय पर उठ कर मैने श्रीनगर एयरपोर्ट पर उपस्थित वारन्ट आफीसर से
मुंबई जाने वाली फ्लाईट के बारे मे पता लगाया तो पता चला कि कल रात बर्फ पड़ने से सभी
फ्लाइट रद्द कर दी गयी है। सारा हवाई मूवमेन्ट जम्मू और पठानकोट से चल रहा है। वारंट
आफीसर ने बताया कि अगली सुबह जम्मू से सात बजे एक कार्गो प्लेन मुंबई जा रहा है और
अगर टाइम से पहुँच गये तो ट्रेवल परमिट मिल जाएगा। बर्फ की सफेद चादर देखते हुए मौसम
साफ होने की संभावना आज भी नहीं लग रही थी। बर्फबारी के कारण सारा आसपास का वातावरण
वीरान लग रहा था। कुछ देर के बाद अम्मी और दोनो लड़कियाँ मेरे साथ आकर बैठ गयी थी।
…क्या सोचा आपने? …बेटा तुम्हारे अब्बा आज आ रहे है। उनसे बिना पूछे अगर मैने आलिया
को तुम्हारे साथ भेज दिया तो वह बहुत नाराज होंगें। मैने आलिया की ओर देखा तो उसने
भी मजबूरी मे अपना सिर हिला दिया था।
कुछ देर के बाद मै तैयार होकर अपने कमरे से
निकला और अम्मी के पास जाकर कहा… बर्फ के कारण श्रीनगर का एयरपोर्ट बन्द कर दिया गया
है तो अब मुझे फ्लाईट जम्मू या पठानकोट से मिलेगी। अम्मी ने कुछ नहीं कहा बस उनसे विदा
लेकर मैने अपना बैग कन्धे पर लटकाया और उन दोनो लड़कियों के पास जाकर कहा… कुछ दिनों
के लिए अपने घर से बाहर मत निकलना। यह बोल कर मै पैदल सड़क की ओर चल दिया। आलिया मेरे
पीछे-पीछे चली आयी थी। मैने मुड़ कर पूछा… क्या हुआ? …मै सड़क तक तुम्हें छोड़ने के लिए
चल रही हूँ। हम दोनो साथ चल दिये और सड़क पर पहुँच कर पुलिया के पास खड़े हो गये थे।
…तुम इतनी जल्दी क्यों जा रहे हो? एक पल के लिए बोलने से पहले मै रुक गया था। उसे अपने
सीने से लगा कर मैने कहा… आलिया तुम सब कुछ तो जानती हो। अम्मी चाहती थी कि मै अब्बा
के आने से पहले यहाँ से चला जाऊँ। …समीर, मुझे अपने साथ ले चलो। यहाँ मेरा दम घुटता
है। …आलिया, अम्मी को नाराज करके मै तुम्हें अपने साथ नहीं ले जा सकता। मैने जल्दी
से ब्रिगेडियर चीमा का नम्बर उसे देते हुए कहा… अगर कोई खतरा महसूस करो तो तुरन्त इस
नम्बर पर उन्हें खबर कर देना। वह तुम्हें पठानकोट मे मेरे घर पर चुपचाप भिजवा देंगें।
वह चुप रही और मेरे सीने मे चेहरा छिपाये कुछ देर तक खड़ी रही फिर अलग होकर बोली… अच्छा
मै चलती हूँ। अदा का ख्याल रखना। खुदा हाफिज़। इतना कह कर वह वापिस चली गयी थी। मै उसे
रोकना चाहता था परन्तु रोकने की हिम्मत नहीं जुटा सका था।
कार्गो प्लेन मे बैठ कर मुंबई जा रहा था परन्तु
मेरा दिमाग आलिया और अम्मी की ओर लगा हुआ था। आलिया के जाने के बाद सड़क पर कुछ देर
और मुझे इंतजार करना पड़ा था। सोनमर्ग मे रसद पहुँचा कर कुछ ट्रक जम्मू की ओर लौट रहे
थे। मैने हाथ देकर उनको रोका और उन्होंने मुझे शाम तक जम्मू मे उतार दिया था। जम्मू
एयरबेस के आर्मी वेटिंग लाउन्ज मे मैने रात गुजारी और सुबह मुंबई के लिए चल दिया था।
जब तक अपने फ्लैट पर पहुँचा तब तक आफशाँ अपने आफिस के लिए निकल चुकी थी। एक साल के
बाद मैने मेनका को देखा था। वह अब बड़ी हो गयी थी। समय कैसे निकल गया पता ही नहीं चला
था। उसको बात करते हुए और इधर-उधर भागते हुए देख कर मुझे अंजली की कमी खल रही थी। अदा
को मुंबई बुलाने के विचार से मैने फोन मिलाया तो पता चला कि उसके फाईनल इम्तिहान अगले
हफ्ते से आरंभ हो रहे थे। उसे अपनी छुट्टी की बात छिपा कर मै मेनका की शरारतें देखने
मे लग गया था। वह मुझे पहचान नहीं रही थी। शाम को मेनका को लेकर आफशाँ के आफिस की ओर
टैक्सी से निकल गया था।
मेनका को पार्किंग मे खड़ी हुई अपनी कार की
छत पर बिठा कर मै आफशाँ का इंतजार कर रहा था कि अचानक मेरी नजर एक जाने पहचाने चेहरे
पर पड़ी जो कुछ लोगों के साथ आफशाँ के आफिस मे प्रवेश कर रहा था। उस व्यक्ति को देखते
ही मै तुरन्त एक कार की आढ़ मे चला गया था। मै सोच रहा था कि मकबूल बट यहाँ पर कैसे?
अम्मी तो बता रही थी कि वह पाकिस्तान गये हुए है। सब कुछ मेरी समझ से बाहर था। कुछ
पल मेनका चुप रही और फिर लान मे जाने की जिद्द करने लगी। जब उसने रोना चिल्लाना आरंभ
कर दिया तो मैने उसे आफिस के सामने घास के टीले पर खेलने के लिये छोड़ दिया था। मेनका
किलकारी मार कर चिड़ियों और तितलियों के पीछे भागने मे व्यस्त हो गयी थी। मै थोड़ी दूरी
पर पेड़ की आढ़ लेकर खड़ा हुआ मेनका पर नजर रख रहा था। बीच-बीच मे मेरी नजर आफिस के मुख्य
द्वार की ओर भी चली जाती थी।
अचानक मेनका चिल्लाते हुए टीले से उतर कर पगडंडी
पार करके सड़क की ओर बढ़ने लगी तो मै झपट कर पेड़ के पीछे से निकला और उसे पकड़ने के लिए
भागा लेकिन तब तक मुख्य द्वार से बाहर निकलती हुई आफशाँ ने आगे बढ़ कर उसे अपनी गोदी
मे उठा लिया था। मकबूल बट और उसके साथ आये हुए लोग अचरज भरी हुई नजरों से मेनका और
आफशाँ को देख रहे थे। इस नजारे को देख कर मै भी ठिठक कर रुक गया लेकिन मेरे लिये
सब कुछ गड़बड़ा गया था। अनायस ही हम सब आमने सामने खड़े हो गये थे। अब मै अपने कदम वापिस
भी नहीं खींच सकता था। धीमी चाल से चलते हुए मै आफशाँ के पास पहुँच गया लेकिन मकबूल
बट का ध्यान मेनका की ओर लगा हुआ था इसीलिये वह मुझे पहचान नही सका था। वैसे भी मकबूल
बट ने मुझे ही नहीं उन चारों लड़कियों को भी बहुत कम बार ही देखा था। मै तो उसके लिये
लम्बे बाल और दाड़ी वाला पतला, दुबला सहमा हुआ सा मदरसा छाप लड़का था। मुझे देख कर मकबूल
बट ने कश्मीरी मे आफशाँ से मेनका की ओर इशारा करके पूछा… यह इसकी बच्ची है? आफशाँ ने
एक पल के लिए मेरी ओर देखा और फिर बड़े आत्मविश्वास भरे स्वर से बोली… यह हमारी बच्ची
है। इस रहस्योद्घाटन से मकबूल बट का चेहरा देखने लायक था। उसके साथ आये हुए लोग भी
चौंक गये थे।
मकबूल बट का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था।
उधर मेनका बार-बार आफशाँ का चेहरा पकड़ कर तुतलाती भाषा मे बोल रही थी… अम्मी चलो। अपने
साथ आये हुए लोगों के बीच मे उसकी बेटी बता रही थी कि वह तीन साल की बच्ची की माँ है
तो एकाएक मकबूल बट ने घुर्रा कर पूछा… तुम्हारा निकाह कब हुआ? आफशाँ ने एक नजर मुझ
पर डाल कर अब्बा से कहा… अभी हमारा निकाह नहीं हुआ है परन्तु हम दोनो साथ रहते है।
आफशाँ का बस इतना कहना था कि ऐसा लगा कि वहाँ पर बम्ब विस्फोट हो गया था। मकबूल बट
भद्दी गालियाँ बकते हुए आफशाँ की ओर झपटा लेकिन तभी मै आगे बढ़ कर बीच मे आ गया और वह
मुझसे टकरा कर रुक गया था। अबकी बार मैने अंग्रेजी मे कहा… हाथापाई नहीं। सभी लोग मेरी
ओर देख रहे थे। मकबूल बट काफी देर तक आफशाँ को खरी-खोटी सुनाता रहा और उसके साथ आये
हुए लोग उसे पकड़ कर चलने के लिए कहने लगे थे। आफिस से बाहर निकलती हुई भीड़ भी उन्हें
देखने के लिये वहीं खड़ी हो गयी थी। मकबूल बट मुड़ कर जाने लगा तो मुझे लगा कि इस दरिंदे
को एक चोट और दी जाए और यही सोच कर मैने जैसे ही कुछ बोलने के लिए मुँह खोला कि तभी
आफशाँ ने मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे खींचती हुई पार्किंग की ओर चल दी। …यह क्या किया
तुमने? वह एकाएक रुक गयी और मेरी ओर देख कर उसने मेनका को जमीन पर उतारा और उछल कर
मेरे गले मे बाँहे डाल कर लटक गयी। मै जल्दी से उसे संभालने के लिए अपनी बाँहों मे
उठा लिया और वह खिलखिला कर हँसते हुए बोली… तुम कब आये? मकबूल बट और उसके साथ आये हुए
सभी लोग वहीं खड़े हो कर हमको घूर रहे थे।
…आफशाँ, अब्बा देख रहे है। उसने एक नजर गुस्से
मे उबलते हुए अब्बा पर डाली और फिर उसने वह किया जो वहाँ खड़ा कोई भी इंसान सोच भी नहीं
सकता था। इसके लिए तो मै भी तैयार नहीं था। अचानक उसने अपने होंठ मेरे होंठ पर रख दिये
थे। मैने अचकचा कर उसे छोड़ दिया और वह मेरे गले मे झूल गयी थी। मकबूल बट और उसके साथ
आये हुए लोग और उसके आफिस की भीड़ मुँह फाड़े इस दृश्य के अचानक चश्मदीद गवाह बन गये
थे। वह धीरे से मुझसे अलग हो गयी और मेनका का हाथ पकड़ कर आगे चल दी थी। मै भी एक पल
के लिए जड़वत खड़ा रह गया था। वह आगे निकल गयी तो मै उसके पीछे भागा और उसका हाथ पकड़
कर रोकते हुए कहा… कहाँ जा रही हो? कार उधर खड़ी है। वह मुस्कुरा कर बोली… तो पहले क्यों
नहीं बताया। यह कह कर वह कार की ओर अपनी उसी मस्तानी बेफिक्र अदा मे चल दी थी। कार
मे बैठते ही मैने कहा… यह क्या किया तुमने? अब्बा तुम्हे ही नहीं अब मुझे भी नहीं छोड़ेंगें।
वह कुछ नहीं बोली परन्तु उसके चेहरे पर एक गर्वीली मुस्कान तैर रही थी। हम अपने फ्लैट
की ओर जा रहे थे कि तभी आफशाँ ने मेरी ओर देखते हुए कहा… समीर, तुम्हें बुरा लगा।
…किस बात का? …यही कि मेनका मुझे अपनी अम्मी समझती है। मैने उसका हाथ पकड़ कर चूमते
हुए कहा… आफशाँ, तुम उसकी अम्मी हो तो इसमे समझने वाली कौनसी बात है। तुम भूल गयी कि
मै जिसको आज भी अपनी अम्मी समझता हूँ उसने भी मुझे जन्म नहीं दिया था। उन्होंने मुझे
पाला है जैसे तुम मेनका को पाल रही हो। मेरे लिए तो तुम ही इसकी अम्मी हो तो इसमे मुझे
बुरा क्यों लगेगा। मैने उसकी ओर देखा तो वह मेनका के सिर पर अपना चेहरा टिकाये मुस्कुरा
रही थी। अचानक वह बोली… आज मुझे घर नहीं जाना है। चलो कहीं घूमने चलते है। …कहाँ चलना
चाहती हो? …जुहू या चौपाटी चलते है। मैने कार चौपाटी की दिशा मे मोड़ दी थी।
शाम हो चुकी थी। अंधेरा होने लगा था। सड़क के
किनारे दर्जनों स्टाल की लाईट ने तट को रौशन कर दिया था। अरब सागर की लहरों का शोर
वातावरण को मनमोहक बना रहा था। हम दोनो रेत पर बैठे हुए थे और मेनका रेत मे इधर-उधर
दौड़ रही थी। मेरे कंधे पर सिर टिका कर आफशाँ किसी गहरी सोच मे डूबी हुई थी। हमारे आस-पास
भी बहुत से जोड़े बैठे हुए अपनी मोहब्बत मे डूब कर दुनिया को भुला चुके थे। अचानक आफशाँ
सरक कर मेरे पहलू मे सिर रख कर लेट गयी। मै अनजाने मे धीरे से उसके बाल सहलाते हुए
मेनका पर नजर रख रहा था। आफशाँ को लेटे हुए देख कर मेनका दौड़ते हुए आयी और उसके पेट
पर बैठ कर उसके स्तन से खेलने लगी। मैने झेंप कर उसकी ओर देखा तो वह मुझे देख रही थी।
हमारी नजरे मिली और मुझे उसकी आँखों मे हजारों हसरते हिलोरे लेती हुई दिख गयी थी। वह मंत्रमुग्ध करने वाला क्षण था। अचानक उसकी बाँहे मेरे गले मे लिपट गयी और उसने उचक
कर अपने होंठों को धीरे से मेरे होंठों पर रख दिये थे। कुछ माहौल का ऐसा असर हुआ कि
सब कुछ भुला कर मै भी उसके भावनात्मक सैलाब मे बह गया था। न जाने कितनी शामें मैने
अंजली के साथ यहाँ बितायी थी। मेरे कानों मे लहरों का शोर सुनाई दे रहा था परन्तु उसके
कांपते हुए होंठों का रसपान करते हुए उसके जिस्म की हर कंपकपी और स्पंदन को भी मै महसूस
कर रहा था। मै उस पल मे डूब जाना चाहता था कि तभी मेनका के कोमल हाथ मुझे धकेलने लगे
थे। जब उसका बस नहीं चला तो उसने मुझे मारना शुरु कर दिया। मैने
जल्दी से आफशाँ से अलग हुआ और मेनका के हाथ पकड़ कर बोला… आफशाँ इसे संभालो। यह तो अभी
से अपने अब्बा को पीटने लगी है। पता नहीं किसका असर किस पर हो रहा है। आफशाँ खिलखिला
कर हँसती हुई उठी और मेनका को अपने सीने से लगा कर बोली… इसका असर मुझ पर होने लगा
है। इस बार हम दोनो खुल कर हंसने लगे थे। कुछ देर वहाँ बिता कर हम एक स्टाल के किनारे
बेन्च पर बैठ कर पेट की क्षुधा शान्त की और वापिस अपने फ्लैट की ओर चल दिये थे।
लौटते हुए काफी रात हो गयी थी। मेनका भी थक
कर सो गयी थी। फ्लैट मे घुसते ही मै मेनका को गोदी मे लिये आफशाँ के कमरे मे चला गया
लेकिन मुझे उसका पालना कहीं नहीं दिखा तो मैने मुड़ कर आफशाँ से पूछा… इसका पालना कहाँ
है? वह धीरे से बोली… अब वह बड़ी हो गयी है। वह मेरे साथ सोती है। इसे बिस्तर पर सुला
दो। मैने उसे बिस्तर पर लिटा कर अपने कमरे मे चला गया और कपड़े बदल कर बिस्तर पर फैल
गया। सफर की थकान मुझ पर हावी हो रही थी। पता नहीं कब मेरी आँख लग गयी और मै अपने सपनों
की दुनिया मे खो गया था। सुबह मुझे आफशाँ ने उठाया… नौ बज गये है। बहुत दिनों के बाद
मै इतनी देर तक सोया था अन्यथा मै चाहे कितना भी थका हुआ हूँ सुबह पाँच बजे अपने आप
ही नींद टूट जाती थी। मै हड़बड़ा कर उठा तो उसने एक चाय का प्याला मेरी ओर बड़ा दिया और
मेरे पास आकर बैठ गयी। वह शायद नहा कर अभी निकली थी उसके जिस्म की सुगन्ध से सारा कमरा
महक उठा था।
…कल रात को बड़ी गहरी नींद मे सोये हुए थे।
…हाँ, सफर की थकान थी इसी कारण सब कुछ गड़बड़ा गया था। तुम्हें आफिस नहीं जाना? …नहीं
मैने आज की छुट्टी ली है। पता नहीं आज भी अब्बा वहाँ हंगामा करने न पहुँच जाए। मैने
मजाक मे कहा… ओह मैने सोचा कि छुट्टी मेरे कारण से ली है। उसने मुस्कुरा कर मेरी ओर
देखते हुए कहा… तुम्हारे लिये मै क्यों छुट्टी लेती? …गलतफहमी किसी को भी हो सकती है।
अब्बा कल क्यों आये थे? मेरा प्रश्न सुन कर एकाएक उसके चेहरे पर से मुस्कान गायब हो
गयी थी। …वह एक आदमी को मुझसे मिलाने के लिए लाये थे। फारुख मीरवायज उनकी पार्टी का
उभरता हुआ सितारा है। अब्बा उससे मेरा निकाह कराने की सोच रहे है। …यह कहीं वही मीरवायज
तो नहीं है जिसकी बेटी के निकाह का पैगाम अब्बा के पास आया है? …पता नहीं, शायद यह
उस मीरवायज का भतीजा है। फिलहाल तो वह यहाँ कारोबार के सिलसिले मे आया हुआ है। …अब्बा
यहाँ कब आये थे? …वह तो मुंबई मे पिछले बीस दिन से है। वह तो यहाँ कुछ जमात के लोगो
से मिलने आये है और कुछ यहाँ की राजनीतिक पार्टियों से कश्मीर मसले पर चर्चा कर रहे है। …अम्मी मुझे बता रही थी कि वह पाकिस्तान
गये हुए है। कमाल है वह अम्मी को भी झूठ बोल कर आये है। वहाँ किसी को नहीं पता कि अब्बा
किस चक्कर मे है और क्या करने की सोच रहे है?
कुछ सोचते हुए इस बार आफशाँ ने कहा… समीर,
वह तुम्हारे बारे मे भी मुझसे पूछ रहे थे। …तुमने क्या बताया? …यही कि तुम आजकल पठानकोट
मे नियुक्त हो और इससे ज्यादा तुम्हारे बारे मे वैसे भी किसी को कुछ नहीं पता होता
है। …तुम्हारे कल के एपीसोड के बाद तो वह तुम्हारे खिलाफ फतवा जारी कर देंगें। मेरी
बात सुन कर वह मुस्कुरायी और फिर खिलखिला कर हँस पड़ी… खुदा का शुक्र है कि मेनका ने
मेरी सारी परेशानी पल भर मे दूर कर दी। उसे वहाँ देख कर मै समझ गयी थी कि तुम वहीं
कहीं हो लेकिन मैने सोचा था कि अब्बा को देख कर शायद तुम छिप गये हो। एक पल के लिए
वह बोलते हुए रुक गयी फिर मेरी ओर देख कर बोली… फिर तुम मेरे सामने आ कर खड़े हो गये
तो उसी वक्त तुम्हें…। …तुम्हें क्या? उसने चिड़ कर मेरे कंधे पर मुक्का मारते हुए कहा…
प्यार करने का मन हुआ…और क्या। …तो वह तुमने
सबके सामने खास कर अब्बा के सामने करके दिखा भी दिया था। वह खिलखिला कर हँसीं और काफी
देर तक हँसती रही थी। …समीर तुम्हें पता नहीं उस वक्त मेरे पाँव काँप रहे थे। मैने
धीरे से कहा… मेरा तो पूरा जिस्म काँप रहा था। हम कुछ देर तक अब्बा के चेहरे का वर्णन
करके बच्चों की तरह हँसते रहे थे। अचानक हमारी नजर मेनका पर पड़ी जो दरवाजे पर खड़ी हुई
हमें विस्मय से हंसते हुए देख रही थी। आफशाँ जल्दी से उठते हुए बोली… जाओ तैयार हो
जाओ। आया ने नाश्ता तैयार कर दिया है। हमारी महफिल समाप्त हो गयी थी। मै तैयार होने
चला गया और आफशाँ अपने साथ मेनका को लेकर कमरे से बाहर निकल गयी थी।
दोपहर तक हम सारे काम समाप्त करके आराम से
सोफे पर बैठ कर टीवी देख रहे थे। आफशाँ ने अचानक कहा… तुम्हारे आने से आज यहाँ कितने
सुकून के साथ बैठी हुई हूँ। पिछले एक साल से आफिस और घर मे जिंदगी सिमट कर रह गयी थी।
टीवी बन्द करके सोफे पर फैलते हुए मैने कहा… तुम ठीक कह रही हो। एक साल से कभी इधर
और कभी उधर भागते हुए समय न जाने कैसे निकल गया। तुम्हें पता है कि इस वक्त पूरी घाटी
बर्फ से ढकी हुई है। …तुम घर गये थे? …हाँ बहुत दिनों से अम्मी बुला रही थी। इसीलिए
दो दिन उनके साथ बिता कर यहाँ आ गया था। वह मेरी ओर ध्यान से देखते हुए बोली… वहाँ
घर पर सब ठीक तो है? …हाँ, परन्तु अब घर वीरान सा दिखता है। …वहाँ जो हुआ है उसमे तुम्हारा
तो कोई हाथ नहीं है? अचानक उसकी बात सुन कर मैने उसकी ओर देखा तो वह बेहद संजीदा दिख
रही थी। मै सीधे बैठते हुए बोला… क्यों क्या हुआ वहाँ पर? …कल अब्बा बता रहे थे कि
तुम्हारी स्पेशल फोर्सेज वालों ने वहाँ की पूरी जमात को हिला कर रख दिया है। वह इसीलिए
तुम्हारे बारे मे मुझसे पूछ रहे थे। मुझे नहीं पता था कि तुम अम्मी से मिलने गये थे।
इस खबर ने मुझे चौकन्ना कर दिया था।
वह मेरी ओर देख रही थी। मै जानता था कि उसके
दिमाग मे क्या चल रहा था। वह उठी और मेरे साथ बैठते हुए बोली… समीर, सच बताओ कि क्या
इसमे तुम्हारा हाथ है? अब्बा बेहद खफा हो रहे थे। मै उसे कैसे आलिया के बारे मे बताता।
आज नहीं तो कल अम्मी के द्वारा तो वैसे भी अब्बा को उस बात का पता चलना तो तय था। मुझे
समझ मे नहीं आ रहा था कि इसको कैसे बताऊँ कि मै क्या करके आया था। उसने मेरा हाथ थाम
लिया और मेरी ओर देख कर बोली… सच बोलो क्या हुआ था? अब उसकी आवाज मे किसी प्रकार का
कोई संशय नहीं था। मैने उसे सारी बातों से अवगत करा कर कहा… आलिया की इज्जत के खातिर
मैने अम्मी को सिर्फ एक कहानी बना कर सुना दी थी। तुमसे भी यही उम्मीद करता हूँ यह
बात तुम अपने सीने मे हमेशा के लिए छिपा कर रखोगी। इस बारे मे आलिया से भी कभी जिक्र
नहीं करोगी। सारी सच्चायी मैने तुम्हारे सामने रख दी है। वह पथरायी सी आँखों से मेरी
ओर देखती रही और फिर उठ कर अपने कमरे मे चली गयी थी।
कुछ देर के बाद वह अपना मोबाईल फोन लेकर मेरे
पास बैठ कर नम्बर मिलाने लगी तो मैने उसका मोबाईल छीन कर कहा… यह क्या कर रही हो।
…नहीं तुम गलत समझ रहे हो। मै अम्मी से बात करना चाहती थी। मुझे उनकी चिन्ता हो रही
है। अब्बा को जब यह पता चलेगा कि आलिया और शाहीन ने उनके जिहादियों की मुखबिरी की है
तो तुम क्या सोचते हो कि वह उन दोनो को बक्श देंगें? …तुम ठीक कह रही हो। पर सोचो क्या
यह सच अम्मी उनको बताएँगी? आफशाँ मेरे तर्क को समझते हुए एकाएक चुप हो गयी थी। कुछ
देर के बाद उसने कहा… समीर, तुम आलिया और अम्मी को यहाँ ले आते तो अच्छा होता। …तुम
क्या सोचती हो कि मैने ऐसा नहीं चाहता परन्तु अम्मी ने बिल्कुल मना कर दिया था। वह
तो अब्बा के आने से पहले मुझे वहाँ से भेजना चाह रही थी।
मुझे अचानक कुछ याद आ गया तो बोलते हुए मै
चुप हो गया था। …क्या हुआ समीर? …अब मै समझा कि क्यों अम्मी मुझे वहाँ से भेजना चाहती
थी। मुझे अपनी मरुन कैप लगाते देख कर वह सहम गयी थी और तभी से वह मुझे जल्दी से जल्दी
वहाँ से भेजना चाह रही थी। उन्हें पता था कि अब्बा के लोगों की सफाई मुझ जैसे फौजी
ही कर रहे थे। उन्हें यह नहीं पता था कि मेरी युनिट ने ही दक्षिण कश्मीर मे उनके जमातियों
को चुन-चुन कर हूरों से मिलने भेजा था। वह डर रही थी कि अब्बा मुझे इस युनीफार्म मे
देखते ही पागल होकर मुझे मरवाने की साजिश रचने बैठ जाएँगें। आफशाँ का हाथ अभी भी मेरे
हाथ मे था। कुछ सोच कर मैने उठते हुए कहा… आफशाँ, अगर अब्बा ने अम्मी या आलिया के साथ
कुछ भी किया तो कसम खुदा की मै उन्हें जिन्दा नहीं छोड़ूँगा। मै खड़ा हो गया और आफशाँ
को उठाते हुए कहा… चलो अब्बा से मिलने चलते है। मेरी तेज आवाज सुनते ही मेनका डर गयी और उसने रोना आरंभ
कर दिया। आफशाँ फौरन अपना हाथ छुड़ा कर मेनका को उठा कर अपने कमरे मे चली गयी थी।
मै अपने कमरे मे चला गया और पूरे हादसे के
बारे मे सोचने बैठ गया था। जमात-ए-इस्लामी के गनी, जमील और इमरान के इशारे पर वह प्रिंसीपल
यह काम किया करता था। जमात का मुख्य काम तो मदरसे और मस्जिद की देखभाल करना था तो वह
भला इस काम को वह कैसे कर सकते थे। यही बात मुझे समझ मे नहीं आ रही थी। उस चौकीदार
ने सिर्फ कार्यप्रणाली के बारे मे बताया था। प्रिंसीपल उसे फोन पर खबर करता था कौन
सी लड़कियाँ आएँगी और फिर किसके साथ जाएँगी। टीचर का काम स्कूल की लड़कियों को इस काम
मे धकेलने तक सिमित था। उस स्कूल मे पिछले चार साल से यह काम धड़ल्ले से चल रहा था।
उनकी बातों से यह भी साफ हो गया था कि इसमे पैसों का लेनदेन नहीं था। तो फिर कौन सी
कड़ी इन सब लोगो को जोड़ रही थी? मुझे अब अफसोस हो रहा था कि मै वहाँ से इतनी जल्दी क्यों
वापिस आ गया था। ब्रिगेडियर चीमा इस सारे कांड के जाँच अधिकारी थे। मैने सोच लिया कि
कुछ दिन बाद उनसे फोन पर इसकी जानकारी लेने की कोशिश करुँगा।
मै अपनी सोच मे डूबा हुआ था कि तभी आफशाँ के
आने का आभास हुआ तो मै उठ कर बैठ गया। वह दरवाजे पर खड़ी हुई मुझे ताक रही थी। …क्या
सोच रहे थे? …यही कि इस प्रकार के जिस्मफरोशी के काम मे उनके लिए क्या फायदा है? …कमाई।
…नहीं आफशाँ। जितने लोगों को भी हमने पकड़ा था उन सब ने पैसों के लेन देन से साफ इन्कार
कर दिया था। हो सकता है कि कुछ लड़कियाँ इस काम मे पैसे के लिए आयी हो परन्तु शाहीन
और आलिया जैसी लड़कियाँ इस काम मे पैसों के लिए नहीं आती। तभी आफशाँ ने कहा… समीर, बैंगलौर
मे कुछ लड़कियाँ यह काम ड्रग्स के लिए भी करती है। पल भर मे मुझे बहुत से सवालों का
जवाब मिल गया था। उस रात जब आलिया मेरे पास आयी थी तो उसका बर्ताव भी मुझे अजीब लगा
था। क्या वह ड्र्ग्स की डोज लेकर मेरे पास आयी थी? अब मुझे महसूस हो रहा था कि मैने
बहुत सी चीजों को देख कर भी अनदेखा कर दिया था। मुझे वहीं श्रीनगर मे रुकना चाहिए था।
मैने अपनी सोच को ड्रग्स पर जैसे ही केन्द्रित
किया तो कड़ियाँ जुड़नी आरंभ हो गयी थी। कश्मीर बार्डर से स्थानीय तंजीमों को हथियार
और असला बारुद मिलते थे। बिना पैसों के यह काम नामुमकिन था। इसका सीधा मतलब था कि सीमा
पार से आयी ड्रग्स के वितरण मे स्थानीय पुलिस और प्रशासन की अहम भुमिका थी। ड्रग्स
के खरीदार कश्मीर से बाहर भारत के महानगरों मे फैले हुए थे जिसके कारण जमात की भुमिका
भी साफ हो गयी थी। जमात-ए-इस्लामी ही अकेली कश्मीरी संस्था थी जिसकी शाखाएँ पूरे भारत मे फैली हुई थी। उनके लोगो से बेहतर और
कौन ड्र्ग्स को कश्मीर से अलग-अलग महानगरों तक सुरक्षित पहुँचा सकते थे। ड्रग्स की
कमाई से जमात आसानी से सीमा पार से हथियार और असला बारुद खरीद सकती थी। अब सारी कहानी
मेरे समझ मे आ गयी थी। एक प्रश्न बिजली की तेजी से मेरे दिमाग मे कौंधा कि इस नेटवर्क
के पीछे कहीं मकबूल बट का हाथ तो नहीं है?
आफशाँ अभी भी मेरे साथ बैठी हुई थी। मुझे सोच
मे डूबा हुआ देख कर वह बोली… लगता है कि तुम अभी भी अपने काम मे लगे हुए हो। मैने छुट्टी
इस लिए ली थी कि आज हम लोग कहीं बाहर घूमने जाएँगें लेकिन सारा दिन हमारा इस फ्लैट
मे गुजर गया। मैने जल्दी से कहा… अभी कौन सी देर हुई है। कहाँ जाना चाहती हो? …मुझे
तो समुद्र के किनारे से बेहतर कोई जगह नहीं लगती। बहुत दिनो से मेनका को बोट राईड पर
ले जाने की सोच रही थी। आज गेटवे आफ इंडिया की ओर चलते है। …चलो आज मेनका को बोट पर
घुमा लाएँगे। आफशाँ ने जल्दी से कहा… मै भी आज तक बोट पर नहीं बैठी हूँ। चलो वहीं चलते
है। यह कह कर वह उठी और तैयार होने चली गयी। कुछ ही देर मे हम चलने को तैयार थे कि
तभी हमारी डोरबेल बज उठी थी।
…कौन हो सकता है? मै देखता हूँ तुम मेनका को
लेकर आओ। यह बोल कर दरवाजे की ओर चल दिया। एक बार फिर से डोरबेल बज उठी थी। मैने जल्दी
से दरवाजा खोला और दरवाजे पर खड़े हुए व्यक्ति को देख कर एक पल के लिए मेरा पूरा जिस्म
झनझना गया था।
मकबूल बट्ट से समीर का सामना हो ही गया आखिर, कश्मीर के हालातो को आपने पूरा पूरा बयान किया है, शानदार अपडेट
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मित्र। इस रचना के द्वारा कश्मीर के हालातों को सेना के नजरिये से दर्शाने की कोशिश कर रहा हूँ। बहुत सी बातें जिसे मिडिया ने तोड़ मरोड़ कर दिखाया है उसमे से कुछ को जग जाहिर भी करने की कोशिश करुँगा।
हटाएंबहुत खूब वीर भाई अब दोनो बाप बेटे आमने सामने खड़े हैं कौन अपने आपको रोक पाता है या फिर कुछ धमाके दार सीने देखने को मिलेंगे यह देखना दिलचस्प होगा और समीर की अम्मी का अपनी शौहर के इतने कारनामे का बाबजूद ऐसे चुप रहना और समीर से मकबूल बट्ट की मुलाकात को कश्मीर की वादियों में तरका देना कुछ कुछ न गड़बड़ लग रहा है और आलिया का यह नशे की लत कैसे लगी और इसी दलदल में खींच गई शायद यह हमें आगे पता चले।खैर बहुत ही सुंदर अंक रहा यह।
जवाब देंहटाएंमित्र तुम्हारे सभी प्रश्नों का उत्तर इस रचना के किसी हिस्से मे मिल जाएगा। तुम्हारे शब्दों के लिये शुक्रिया। एक बात तो तय हो गयी कि तुम्हारे कारण इस बार कोई अनबूझा सवाल नहीं छूटेगा।
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