काफ़िर-15
हम सुबह सवेरे श्रीनगर मे प्रवेश कर गये थे।
श्रीनगर मे बहार आयी हुई थी। जहाँ देखो वहाँ सारी घाटी रंगबिरंगे फूलों से भरी हुई
थी। हमारे सामने सबसे पहला प्रश्न था कि कहाँ रहना है? आलिया और शाहीन वापिस घर जाना
नहीं चहती थी। मेरे साथ भी अंजली का कुछ निजि सामान था। उस सामान को मै अपने घर पर
नहीं ले जाना चाहता था। यही सोच कर मैने सीधे 15 कोर की आप्रेशन्स कमांड के आफिस की
ओर जाने का निर्णय लिया था। उन दोनो को गेस्ट हाउस मे ठहरा कर मै ब्रिगेडियर चीमा से
मिलने चला गया था। …कैप्टेन, तुम्हें वहाँ से निकालने मे मुझे एक साल लग गया है। तुम्हारा
सीओ तुम्हें छोड़ने के लिए राजी ही नहीं था। …थैंक्स सर। मै आज ड्युटी पर रिपोर्ट कर
रहा हूँ। मेरे लिए क्या आर्डर है। उन्होंने हवा मे हाथ हिलाते हुए कहा… सुरक्षा कारणों
से तुम अपने घर पर नहीं रुक सकोगे। इसलिए तुम क्वार्टरमास्टर के पास चले जाओ। मैने
दो दिन पहले ही उसे तुम्हारे आने का बता दिया था। वह तुम्हें रेजीडेन्शियल कोम्पलेक्स
मे एक क्वार्टर एलाट कर देगा। तुम आज आराम से सैटल हो जाओ हम कल सुबह मिलते है। इतनी
बात करके मै वापिस गेस्ट हाउस आ गया और तैयार होकर क्वार्टरमास्टर के आफिस की ओर चला
गया। उसने मकान के कागजों पर दस्तखत लेकर चाबी पकड़ा दी थी। वहाँ से सबको लेकर मै उस
मकान की ओर चला गया। शाम तक सारा सामान नये फ्लैट मे रखवा कर पठानकोट से आये हुए मेरी
युनिट के लोग वापिस लौट गये थे।
मै अपने नये घर मे आलिया और शाहीन के साथ बैठा
हुआ था। वह दोनो अपनी-अपनी राय दे रही थी परन्तु मै अम्मी से मिलने की सोच रहा था।
…मै अम्मी से मिलने जा रहा हूँ। आलिया तुम चलोगी? दोनो ने एक दूसरे की ओर देखा फिर
आलिया ने सिर हिला कर मना कर दिया। मैने जाने के लिए ट्राँसपोर्ट विंग से एक कार मंगा
ली थी। सारे रास्ते मै सोच रहा था कि अम्मी से क्या कहूँगा लेकिन जैसे ही घर के सामने
कार रुकी तो मेरी नजर अम्मी पर पड़ी जो बाहर लानचेयर पर आराम से बैठी हुई थी। आर्मी
की कार रुकते ही उनकी नजर सड़क की ओर चली गयी थी। आर्मी की कार को देखते ही वह उठ कर
लोहे के गेट की ओर बढ़ी लेकिन मुझे कार से उतरते देख कर वह ठिठक कर वहीं रुक गयी थी।
मै गेट पर जा कर पल भर के लिए रुका और फिर गेट को धकेल कर अन्दर चला गया था। अम्मी
से आँख मिलाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। मै सीधा उनके सामने जाकर खड़ा हो गया।
…तुम कब आये? मैने आगे बड़ कर उनसे गले मिलते हुए बोला… आज सुबह ही आया हूँ। अम्मी अलग
होते हुए बोली… इतने दिन से तुमने एक बार भी फोन नहीं किया। मैने सुना था कि एक मुठभेड़
मे तुम घायल हो गये थे। तुमने यह बताने की भी जरुरत नहीं समझी।
उनकी आवाज मे शिकायत के साथ एक पीड़ा भी छिपी हुई थी।
अम्मी अपनी कुर्सी पर जा कर बैठ गयी थी। मै
उनके सामने खड़ा रहा तो उन्होंने पहली बार मेरी ओर देख कर कहा… क्या सिर्फ खड़े-खड़े मिल
कर चले जाओगे? मै जल्दी से उनके सामने बैठ गया था। …आलिया और शाहीन कैसी है? …ठीक है।
मेरे साथ सुरक्षित है। वह कुछ देर चुप रही और फिर मेरी ओर देख कर बोली… समीर, मै तुमसे
नाराज हूँ। मैने सोचा था कि मै तुमसे कभी बात नहीं करुँगी पर क्या करुँ तुम्हारी अम्मी
हूँ। बोलते हुए उनकी आँखें छ्लक गयी थी। मै तेजी से उठ कर उनके पास चला गया और उनके
पाँवों से लिपट कर वही घास पर बैठ गया। …अम्मी, आपको अब्बा ने सब कुछ गलत बताया है।
वह बच्ची अंजली की है। मुंबई बलास्ट मे उसकी मौत हो गयी थी। मै कुछ बोलता लेकिन उन्होंने
मेरी बात तुरन्त काटते हुए कहा… क्या तुम यह सोच रहे हो कि मै तुमसे इस बात पर नाराज
हूँ? उनकी बात सुन कर मुझे गहरा झटका लगा था। मैने उनकी ओर देखा तो वह बोली… तुमने
आज तक मुझे नहीं बताया कि मेनका तुम्हारी और अंजली की बेटी है। तुमने मुझे यह भी बताने
की जहमत नहीं उठाई कि वह बेचारी उस ब्लास्ट मे मारी गयी। जब से तुम यहाँ से गये हो
तब से ही तुम मुझसे अपनी हर बात छिपा रहे हो। क्या मेनका को मै अपने पास नहीं रख सकती
थी? एक पल के लिए वह चुप हो गयी फिर वह अपने आपको सयंत करके बोली… तुमने मुझे आलिया
और शाहीन के बारे मे झूठ बोला था। क्या तुम मुझे उनकी सच्चायी उसी समय नहीं बता सकते
थे? एक पल रुक कर वह बोली… तुम सोच भी नहीं सकते कि मुझे जिंदगी मे पहली बार इस झूठ
के कारण कितना जलील होना पड़ा था।
मै सिर झुकाये बैठा रहा और फिर धीरे से बोला…
अम्मी, सच पूछिये तो मै नहीं चाहता था कि आलिया आपकी नजरों मे गिर जाए। इसीलिए मैने
आपसे उनकी सच्चायी छिपाई थी लेकिन बाकी सब के लिए मै आपका गुनाहगार हूँ। आप जो भी सज़ा
देंगी मुझे कुबूल होगी। अम्मी प्लीज मुझे माफ कर दीजिए। अब्बा अगर हमारे घर पर आकर आफशाँ और मेनका को कत्ल करने की धमकी नहीं देते तो हमे ऐसा
कदम उठाने की नौबत नहीं आती। अम्मी मैने आपका दिल दुखाया है मुझे माफ कर दीजिए। अम्मी कुछ देर चुपचाप बैठी रही फिर मेरे चेहरे को अपने हाथ मे
लेकर बोली… बेटा तुम्हारे सिवाय मेरा और कौन सहारा है। तुम्हारे अब्बा तो सिर्फ पैसे
लेने के लिए यहाँ आते है वर्ना उन्हें कोई मतलब नहीं कि यहाँ क्या हो रहा है। अगर कभी
मर भी गयी तो मुझे यकीन है कि वह यहाँ मेरी मिट्टी को ठिकाने लगाने के लिए भी नहीं
आएँगें। उस दिन हम अंधेरा होने तक बाहर बैठ कर बात करते रहे थे। मैने एक नजर घड़ी पर
डाल कर कहा… अम्मी मुझे अब चलना चाहिए। …खाना खा कर जाना। …नहीं अम्मी। वह दोनो भी
भूखी बैठी होंगी। मै लौटते हुए सबके लिए अपनी मेस से खाना लेकर जाऊँगा। …समीर, आलिया
से कहना कि पुरानी बातें भूल कर अपनी जिंदगी नये सिरे से शुरु करे।
उससे कहना कि कभी-कभी वह आकर मुझसे मिल जाया करे। …अम्मी आप वहाँ क्यों नहीं आ जाती?
…नहीं बेटा। अब यहाँ से कहाँ जाऊँगी। …अम्मी आप मेरा एक नम्बर लिख लिजीए। मैने अपना
मोबाईल नम्बर लिखवाया और खुदा हाफिज़ करके वापिस लौट आया था। आज पहली बार श्रीनगर मे
होने के बावजूद मै अपने घर को छोड़ कर एक अलग घर मे रहने जा रहा था। अम्मी से बात करके
मेरे सीने पर पड़ा हुआ भार हट गया था।
जब तक खाना लेकर अपने मकान पर पहुँचा तब तक
दोनो ने अपने हिसाब से घर को सेट कर दिया था। हमने साथ बैठ कर खाना खाया और फिर अम्मी
से मुलाकात की सारी कहानी आलिया को बता दी थी। …शाहीन क्या तुम अपने घर नहीं जाना चाहती?
…नहीं। एक बार खुले मे साँस लेकर अब मै अब वहाँ नही रह सकूँगी। …इमाम साहब और तुम्हारी
अम्मी तुम्हारे बारे मे फिक्रमन्द होंगे? …नहीं। …तुम दोनो हमेशा तो मेरे साथ नहीं
रह सकोगी तो क्यों नहीं अपनी पढ़ाई दोबारा से शुरु कर दो। आलिया
तुरन्त तुनक कर बोली… हम क्यों नहीं तुम्हारे साथ रह सकते? हम हमेशा तुम्हारे साथ ही
रहेंगें। …ठीक है रहो लेकिन रहते हुए अपनी पढ़ाई तो पूरी कर सकती हो। दोनो उठते हुए
एक स्वर मे बोली… इसके बारे मे सोच कर बताएँगें। सारा काम समेट कर दोनो मेरे पास आकर
लेट गयी थी। सफर की थकान और नये मकान को रहने लायक बनाने की थकान सभी के सिर पर चढ़ी
हुई थी। मुश्किल से पाँच मिनट मे सभी गहरी नींद मे खो गये थे।
अगली सुबह ठीक नौ बजे मै ब्रिगेडियर चीमा के
कमरे मे बैठा हुआ था। …कैप्टेन बट, यह काउन्टर इन्टेलीजेन्स का विभाग है। तुम रोजाना
की इंटेल रिपोर्ट्स से तो वाकिफ हो। इस विभाग मे उन रिपोर्ट्स के आधार पर काउन्टर इन्टेलीजेन्स
के आप्रेशन्स किये जाते है। तुम एक बेहद अच्छे युक्तिपूर्ण स्थिति मे हो क्योंकि तुम
धर्म से मुस्लिम हो परन्तु कट्टर नहीं हो सकते। तुम उतने ही कश्मीरी हो जितना कोई यहाँ
का जिहादी है। तुम स्थानीय लोगो मे अच्छे से मिल सकते हो जो शायद मेरे विभाग मे और
कोई नहीं है। तुमने एक्शन दूर से नहीं देखा परन्तु तुमने उसमे भाग लिया है। तुम फौजी
हो जिसके कारण देश के प्रति वफादारी मे तुम से ज्यादा और किसी भी कश्मीरी पर विश्वास
नहीं किया जा सकता। अब हमे यह सोचना है कि तुम्हारी रिपोर्ट के कौन से हिस्से पर सबसे
पहले काम करना आरंभ करें। तुम अलगाववाद के
एक प्रमुख नेता मकबूल बट के लड़के हो तो उसकी विरासत मे तुम्हें अपने पाँव जमाने आसान
हो जाएँगें। तुम्हारा सेबों का कारोबार है तो जिहाद के लिए पैसों की ट्रेल का पता करने
मे तुम सक्षम हो। तुम्हारी सारी पढ़ाई यही हुई है तो तुम स्थानीय मस्जिद और मदरसों से
जुड़े रहे हो। काउन्टर इन्टेलीजेन्स आप्रेशन्स का मतलब है कि कोई सी भी एक लाईन लेकर
तुम्हें अपना नेटवर्क खुद खड़ा करना पड़ेगा।
ब्रिगेडियर चीमा पल भर के लिये रुक गये तभी
कमरे का दरवाजा खोल कर वीके और रंधावा ने आफिस मे प्रवेश किया। उनको देखते ही हम दोनो
अपनी कुर्सी छोड़ कर खड़े हो गये थे। …बैठिए ब्रिगेडियर। बैठो कैप्टेन। यह बोल कर रंधावा
और वीके मेरे साथ आकर बैठ गये थे। …कैप्टेन, सबसे पहले इन तंजीमों के पैसों की आवक-जावक
के बारे जानकारी इकठ्ठी करना तुम्हारी प्राथमिकता होगी। अब यह सब कैसे करोगे इसके लिये
तुम्हें अपना खुद ब्लू प्रिंट तैयार करना पड़ेगा। तुम्हारी नियुक्ति ब्रिगेडियर चीमा
के आप्रेशन्स विभाग मे हुई है तो वह तुम्हारे रिपोर्टिंग अफीसर है। अब तुम बताओ कि
पैसों की ट्रेल पता लगाने के लिये क्या करोगे? …सर, मुझे चौबीस घन्टे का समय दे दीजिए। कल इसी समय यहीं पर मै आपके सामने अपनी योजना का ब्लूप्रिंट
रख दूँगा। ब्रिगेडियर चीमा ने उन दोनो की ओर एक बार देखा और फिर मुझसे कहा… मेजर समीर
बट, कल सुबह ठीक नौ बजे हम यहीं इसी कमरे मे मिलेंगें।
एक पल के लिए मुझे समझ मे नहीं आया लेकिन कैप्टेन
की जगह मेजर कैसे बोल गये थे। तभी जनरल रंधावा ने मेरी पीठ पर हाथ मार कर कहा… माई
बोय, आउट आफ टर्न प्रमोशान के लिए कांग्रेच्युलेशन्स। ब्रिगेडियर चीमा ने एक लिफाफा
मेरे आगे करते हुए कहा… आप्रेशन्स मे सर्विस आफीसर मेजर से नीचे के पद का नहीं हो सकता
है। इसीलिए तुम्हें यहाँ लाने मे मुझे एक साल लग गया था। यह स्कूलगर्ल काँड का पुरुस्कार
है। लेफ्टीनेन्ट जनरल नायर, 15 कोर की कमांड की सिफारिश पर यह मुमकिन हो सका है। …मेजर,
फौज अपने लोगों का ख्याल रखती है। अब कल तुम्हे साबित करना है कि यह हमारी मेहनत व्यर्थ
नहीं गयी है। ब्रिगेडियर चीमा ने मेरी ओर एक डिब्बे को बढ़ाते हुए कहा… मेजर, यह शायद
तुम्हारा इन-सर्विस आखिरी मेडल है। मैने डिब्बे को खोल कर देखा तो उस पर सेवा मेडल
लिखा हुआ था। एक के बाद एक मुझे उन्होंने हतप्रभ कर दिया था। ब्रिगेडियर चीमा ने मुझे
चुप खड़ा देख कर कहा… मेजर, हमे इनकी जड़ों को इतना खोखला कर देना है कि यह अपने भार
तले ही दब कर मर जाए। अभी भी मेरे लिए यह सब एक सपने की भाँति लग रहा था। उन तीनों
को वहीं छोड़ कर मै उस कमरे से बाहर निकल आया था।
अपने कमरे मे सामने पहुँचा ही था कि कमरे के
बाहर मेजर समीर बट की प्लेट लगी हुई थी। कमरे मे घुसते ही मेरा अर्दली तेजी से मेरे
पीछे आया और मेरे कन्धे के फ्लिप्स पर से तीन सितारे हटा कर राष्ट्रीय चिन्ह शेर को
दोनो कन्धों पर टांक कर बाहर चला गया था। मैने बाक्स खोल कर उसकी कलर स्ट्रिप निकाल
कर छाती पर लगा ली और मेडल कुर्सी के पीछे रखी हुई शेल्फ मे सावधानी से रख कर अपनी
रणनीति तैयार करने मे लग गया। पूरा दिन मै कमरे से बाहर नहीं निकला था। शाम को मेरी
अधिकारिक जीप आफिस के गेट पर खड़ी हुई मिली थी। तीन हथियारों से लैस सैनिक, एक लांस
नायक और हवलदार जीप के साथ खड़े हुए थे। मेरे जीप मे बैठते ही सभी उसमे सवार हो गये
थे। जीप ने मुझे घर के सामने उतार दिया था। अब तक घर पर दो आदमी काम पर लग गये थे।
जब मै घर मे घुसा तो दोनो लड़कियाँ हैरत भरी नजरों से मेरी ओर देख रही थी।
कपड़े बदल कर उनको अपने साथ लेकर मै स्टडी रुम मे घुस गया था। काफी देर तक उनसे चर्चा करने के बाद हमारा खाना
मेज पर लगा कर दोनो लोग जा चुके थे। खाने की मेज पर बैठ कर एक बार फिर से हमारी चर्चा
आरंभ हो गयी थी। …समीर अम्मी को कैसे राजी करोगे? …यह मुझ पर छोड़ दो। मै उन्हें राजी
करवा लूँगा। इतनी बात करके सारा कार्य समाप्त करके हम तीनों पूरे जोशो खरोश के साथ
अपनी रात रंगीन करने मे जुट गये थे। यह हम तीनो की एक साथ होने की आखिरी रात थी। इसीलिए
हम तीनों आधी रात तक एक दूसरे के साथ गुथे रहे थे। जब जिस्म ने जवाब दे दिया तब हम
गहरी नींद मे खो गये थे। सुबह पाँच बजे मै हमेशा की तरह उठ गया था। उन दोनो लड़कियों
को भी उठा दिया था जिससे सुबह जब दोनो अर्दली आये तो उन्हें सब कुछ सामान्य लगे। उसके
बाद मै वर्जिश करने के लिए बाहर निकल गया था।
ठीक नौ बजे मै ब्रिगेडियर चीमा के आफिस मे
बैठा हुआ था। मैने अपना तैयार किया हुआ ब्लूप्रिंट उनके आगे रखते हुए हरेक पहलू की
चर्चा करनी आरंभ कर दी। वीके, रंधावा और चीमा चुपचाप सुनते रहे और जहाँ उन्हें कोई
खामी दिखती वह तुरन्त रोक कर और गहरायी से उस पर चर्चा करते और कोई सुझाव देकर आगे
बढ़ जाते थे। उनके साथ बात करके मै भी बहुत से नये पहलुओं के बारे मे समझ सका था। तीन
घन्टे तक लगातार चर्चा करने के बाद रंधावा ने सबसे पहले गो अहेड का इशारा किया। उसके
बाद वीके और आखिरी मे ब्रिगेडियर चीमा ने कहा… आज से ही तुम आप्रेशन आघात को
कार्यान्वित कर रहे हो। गुड लक। बस इतनी बात करने के बाद मै वहाँ से बाहर निकल गया
था। घर से अपने साथ दोनो लड़कियों को लेकर सबसे पहले मै हाजी मंसूर सैयद के घर पर पहुँचा
था। पाँच सुरक्षा गार्ड और एक ड्राईवर को जीप मे छोड़ कर मै उन दोनो लड़कियों को लेकर
हाजी साहब के मकान मे प्रवेश कर गया था।
हाजी साहब के घर के बाहर काफी लोग जमा थे।
अन्दर भी उनकी बैठक मे कुछ लोग बैठे हुए किसी चर्चा मे व्यस्त थे। भारतीय फौज के मेजर
और उसके सुरक्षाकर्मियों को अचानक देख कर सब हैरत मे आ गये थे। कुछ जिहादी नवयुवकों
ने मेरा रास्ता रोकने की कोशिश भी की लेकिन शाहीन पर नजर पड़ते ही वह सब तुरन्त दूर
हो गये थे। हम तीनों बैठक मे से होते हुए अन्दर चले गये थे। अन्दर भी एक छोटी बैठक
थी जहाँ हाजी साहब कुछ खास लोगो के साथ बैठ कर चर्चा कर रहे थे। मुझे और आलिया को वहीं
बिठा कर शाहीन अन्दर चली गयी थी। हाजी साहब उन लोगों से बात करते हुए कभी-कभी तिरछी
नजरों से मेरी ओर देख लिया करते थे। मुश्किल से पाँच मिनट बीते थे कि शाहीन अपनी अम्मी
को लेकर वहीं आ गयी थी। हाजी साहब ने घूर कर शाहीन की ओर देखा और फिर अपने सामने बैठे
हुए लोगों को बाहर जाने का इशारा करके अपनी बेगम की ओर देखते हुए घुर्राया… इस छिनाल
से पूछा कि यह किसके साथ भाग गयी थी।
उनकी बेगम कुछ बोलती इससे पहले मैने कहा… आदाब
हाजी साहब। मेरा नाम समीर बट है और यह मेरी बहन आलिया। शाहीन अभी तक मेरे साथ थी। मेरी
बहन और शाहीन ने कुछ ऐसा देख लिया था जिसके कारण इनकी जान को खतरा हो गया था। आप ही
की बेहतरी के लिए कह रहा हूँ कि आप इनसे पूछने की कोशिश न करे अन्यथा फौज और पुलिस
आपके घर पर भी धमक जाएगी। मेरी बहन ने जब मुझे उस घटना के बारे बताया तो मेरे कहने
पर पुलिस से बचने के लिए यह दोनो मेरे पास आ गयी थी। अभी तक यह मेरे यहाँ रह रही थी।
अब खतरा समाप्त हो गया है तो मै शाहीन को छोड़ने के लिए आ गया हूँ। मै समझ सकता हूँ
कि आपका परिवार कितना फिक्रमन्द होगा लेकिन यही हालत मेरे परिवार की भी थी। मैने सुरक्षा
कारणों से इनके बारे मे अपने परिवार वालों को भी नहीं बताया था। इतना कह कर मै चुप
हो गया था।
शाहीन की अम्मी बार-बार दुआ पढ़ते हुए खुदा
का शुक्रिया कर रही थी परन्तु हाजी मंसूर के चेहरे पर तनाव की रेखाएँ खिंची हुई थी।
मेरी ओर घूरते हुए हाजी मंसूर घुर्राया… तुम मकबूल बट के बेटे हो? मैने सिर्फ अपना
सिर हिला दिया था। …इस बेशर्म को डूब मरना चाहिए था। मेरी इज्जत को इसने सरे बाजार
रुसवा कर दिया। मियाँ मैने ही तुम्हारे परिवार के खिलाफ पुलिस कम्प्लेन्ट दी थी। तुम्हारी
अम्मी को उन्होंने दो दिन लाक-अप मे भी रखा लेकिन पठ्ठी ने मुँह नहीं खोला। इस फ़ाहिशा
को देखते ही मेरा खून खौल उठता है। क्षण भर रुक वह शाहीन पर दहाड़ा… तू मर क्यों नहीं
गयी जो मुँह काला करके यहाँ वापिस आ गयी। मै चुपचाप उसको देखता रहा जब तक वह चुप नहीं
हो गया था। मैने महसूस किया कि बाहर की बैठक मे भी शांति छा गयी थी। बाहर सभी लोगों
के कान बैठक की ओर लगे हुए थे।
अबकी बार मैने अपनी आवाज कड़ी करते हुए कहा…
हाजी साहब, आपने मेरी अम्मी को बेफिजूल बेइज्जत किया जब की मैने आपकी इज्जत को अपने
घर मे महफूज रखा था। इसके बावजूद अभी तक मैने आपसे कोई ऐसी बात नहीं की जिससे आपको
लगे कि मैने आपकी शान मे कोई गुस्ताखी की है। अगर अभी भी आपने अपने गुस्से को काबू
मे नहीं किया तो याद रखिएगा कि भले ही आज मै अपनी बहन को यहाँ से सुरक्षित नहीं लेजा
सकूँ लेकिन कसम खुदा की तुम भी यहाँ से जिन्दा बच के न जा सकोगे। इसलिए अच्छा होगा
हम लोग तमीज से बात करें। हाजी मंसूर को अपनी फौज पर पूरा विश्वास होगा परन्तु वह जानता
था कि फिलहाल वह अकेला मेरे सामने बैठा है। मेरे सिर पर सजी हुई मैरुन कैप और मेरी होल्स्टर मे रखी हुई पिस्तौल उसको अपनी बात
समझाने के लिये काफी था। बाहर खड़े हुए मेरे सुरक्षाकर्मी भी आधुनिक हथियारों से लैस
थे। उसकी एक बेवकूफी के कारण यहाँ पर बहुत से लोगों की जान जाने वाली थी। उसके चेहरे
पर एक रंग आ रहा था और एक रंग जा रहा था।
कुछ देर चुप रहने के बाद वह धीरे से बोला…
मियाँ क्या नाम बताया था? …समीर बट। …मियाँ समीर, तुम क्या जानो कि लड़की के बिना बताये
चले जाये तो परिवार के लिए कितनी फजीहत हो जाती है। …हाजी साहब, क्या ऐसी फजीहत बेटी
की जिंदगी से बड़ी है। मुझे फर्क नहीं पड़ता कि लोग क्या कहेंगें क्योंकि मेरे लिए आलिया
की जिंदगी ज्यादा कीमती है। वैसे तो मै आपको कभी नहीं बताता लेकिन आप उसके बाप है इसलिये
बता रहा हूँ कि यह दोनो इतेफाक से एक फिल्म की गवाह बन गयी थी जिसमे आपकी मस्जिदों
और मदरसे के मौलवियों की काली करत्तूत दिखायी गयी थी। कैसे वह बच्चो और बच्चियों का
शोषण करते है। वह तो सही समय पर इन दोनो ने मुझे बता दिया तो हमने रेड डाल कर उस फिल्म
को जब्त कर लिया वर्ना यही भीड़ जो आज आपके घर के बाहर खड़ी हुई नार-ए-तदबीर अल्लाह-हो-अकबर
के नारे लगा रही है वही लोग आपके मौलवियों को सड़क पर दौड़ा-दौड़ा कर मार देते। इसके आगे
मुझे कुछ नहीं कहना है। अगर अभी भी सब कुछ जान कर आप अपनी बेटी को नहीं रखना चाहते तो उसे मै अपने साथ ले जाता
हूँ। इतना बोल कर मै चलने के लिए खड़ा हो गया था।
हाजी मंसूर को जो बताना चाहता था वह मैने बड़ी
सफाई से इशारों मे बता दिया था। बाकी काम शाहीन अपनी अम्मी के जरिए आसानी से कर लेगी।
मैने एक नजर हाजी मंसूर पर डालते हुए कहा… अब इजाजत दीजिए…चलो
आलिया। हाँ शाहीन अगर किसी भी प्रकार की कोई तकलीफ हो तो बेहिचक फोन करके मुझे बता
देना…अच्छा खुदा हाफिज़। यह बोल कर हम दोनो कमरे से बाहर निकल गये थे। इस बार किसी ने
मेरे सामने आने की कोशिश नहीं की थी। हाजी मंसूर फौरन उठ कर भागता हुआ हमारे पीछे आया…
समीर मियाँ ठहरिये। हम दोनो रुक गये। वह हमें बाहर तक छोड़ने आया था। मेरे पांचो सुरक्षाकर्मी
और ड्राईवर मुस्तैदी से जिहादियों की भीड़ मे जीप के साथ खड़े हुए थे। मेरे जीप मे बैठते
ही वह भी सवार हो गये और हम दोनो अपने घर की ओर चल दिये थे।
मेरा एक प्यादा तो अपनी जगह बैठ चुका था। अब
दूसरे प्यादे को बिठाने की बारी थी। कुछ ही देर मे हम अपने घर पहुँच गये थे। शाम हो
चुकी थी। हम दोनो ने सीधे रसोई की ओर रुख किया और अम्मी को अपने साथ लेकर खाने की टेबल
पर आकर बैठ गये थे। आलिया सिर झुका कर बैठ गयी थी। अम्मी उसके सिर पर हाथ फेरती हुई
बोली… अपनी अम्मी से मिलने का दिल नहीं किया। यह सुनते ही आलिया अम्मी से लिपट गयी
थी। सब कुछ वैसा ही चल रहा था जैसे हम सोच कर आये थे। मैने बात शुरु
की… अम्मी, मैने आलिया से पढ़ाई जारी रखने की बात की थी। वह फिलहाल स्कूल जाने
के लिए तैयार नहीं है। सो मै चाहता हूँ कि जब तक आलिया स्कूल नहीं जाती तब तक वह बागानों
की देखभाल का काम सीख लेगी तो अच्छा होगा। …अभी वह बच्ची है बेटा। यह काम उससे नहीं
हो पाएगा। …अम्मी एक बार इस पर जिम्मेदारी डालने की कोशिश तो कीजिए।
मै वादा करता हूँ कि इसकी पूरी मदद करूँगा। …बेटा, तुम्हारे अब्बा कभी भी इसके लिए
राजी नहीं होंगे। …अम्मी अभी मुझे पोस्टिंग नहीं मिली है। इस सीजन मुझे और आलिया को
काम देखने दीजिए। बस इतना बता दीजिए कि
हमारे सेबों के खरीदार कौन है तो मै और आलिया उनसे मिलने चले जाएँगें। जब तक आप बच्चों
पर जिम्मेदारी का बोझ नहीं डालेंगी तब तक बच्चे कैसे सीखेंगें। अम्मी एक पल के लिए
चुप हो गयी थी और फिर कुछ सोच कर बोली… समीर तुमने तो सारा काम मेरे साथ संभाला है।
तुम इसके साथ जाओगे तो मै तुम्हारे अब्बा को मै समझा दूँगी। इसको अकेली जाने के लिए
तो वह कभी तैयार नहीं होंगे। …अम्मी मेरी बात मान कर देखिए। मै यकीन से कह सकता हूँ
कि आलिया एक सीजन मे सब कुछ अकेली संभाल लेगी।
कुछ देर सोचने के बाद अम्मी ने कहा… कल तुम
इसके साथ पहलगाम जा सकते हो? …हाँ बोलिए। …बेटा तुम मुश्ताक डार को तो जानते हो। कल
हमें चार ट्रक माल उसको देना है। …ठीक है आलिया। कल सुबह सात बजे तक तैयार रहना। कल
हम पहलगाम चलेंगें। आलिया ने जल्दी से सिर हिला दिया था। हम कुछ देर और बैठे फिर जैसे
ही मै चलने लगा तभी अम्मी ने कहा… अब तुम दोनो खाना खा कर जाना। मै कुछ बोलना चाहता
था कि तभी आलिया ने मेरा हाथ पकड़ कर दबा दिया था। अम्मी खाने का प्रबन्ध करने के लिए
चली गयी थी। …आलिया तुम्हें यहाँ रुकना चाहिए। …नहीं। जब अम्मी ने कह दिया तो अब मै
तुम्हारे साथ चलूँगी। कुछ देर बाद अम्मी ने मेज पर खाना लगवा दिया था। …अम्मी, आलिया
यहीं आपके पास रुक जाएगी। …नहीं समीर, इसे अपने साथ ले जाओ। तुम्हारे अब्बा आजकल कभी
भी आ जाते है। वह इसको यहाँ देख कर गुस्सा होंगे। …अम्मी यह घर हम सबका है। अब्बा को
हमारे रहने से तकलीफ होगी तो होने दीजिए। …नहीं बेटा। मेरी तबियत
भी अब ठीक नहीं रहती। मै नहीं चाहती कि वह यहाँ आकर कोई नया बखेड़ा खड़ा करें। …अम्मी
आप एक दिन मेरे साथ चल कर कमांड अस्पताल मे दिखा दीजिए। …हाँ
बेटा एक दिन चल कर वहाँ भी दिखा दूँगी। इतनी बात करके हम दोनो वापिस अपने मकान मे आ
गये थे।
अगली सुबह सात बजे हम दोनो चलने के लिए तैयार
हो गये थे। आर्मी की जीप ने हम दोनो को घर पर छोड़ दिया था। वहाँ से अपनी जीप लेकर हम
पहलगाम की ओर निकल गये थे। यह मेरी देखी भाली जगह थी। अम्मी के साथ मै यहाँ पर बचपन
से आ रहा था। पहाड़ों के बीच बनी घाटियों मे कुछ बड़े सेबों के बाग मे से एक बाग हमारा
भी था। अनंतनाग को पीछे छोड़ कर जैसे ही हम आगे बढ़े तो पहाड़ों के बीच से होते हुए हम
हरी भरी घाटी मे प्रवेश कर गये थे। चारों ओर हरियाली और सड़क के दोनो ओर उँचे-उँचे चीनार
के वृक्ष को देख कर एक आत्मिक सुख की अनुभुति हो रही थी। अब तक घाटी मे बर्फ पिघल चुकी
थी। चारों ओर विभिन्न फूलों की खुश्बू से घाटी महक रही थी। पहाड़ों की चोटियाँ अभी भी
बर्फ की चादर से ढकी हुई थी। कुल मिला कर बड़ा मनोरम दृश्य था। कुछ ही देर मे हम अपने
बाग पर पहुँच गये थे। मैने हार्न बजा कर चौकीदार का ध्यान खींचा तो वह भागता हुआ लोहे
का गेट खोलने आ गया था। रफीक हमारा पुराना आदमी था। बाग के किनारे मे अपने परिवार के
साथ एक छोटे से लकड़ी के घर मे रहता था। बचपन से उसने मुझे और आलिया को देखा था तो हमे
देखते ही उसने जल्दी से लोहे का गेट खोला और फिर कूद कर जीप के पीछे बैठ गया। उसके
बैठते मैने जीप आगे बढ़ा दी थी।
…चचाजान सलाम। …बहुत दिनों के बाद आये समीर।
अम्मी नहीं आयी? …नहीं, अम्मी की तबियत ठीक नहीं थी इसीलिए मुझे आना पड़ा। आपने इसको
पहचाना? …मियाँ अभी मै इतना बूढ़ा नहीं हुआ कि आलिया बिटिया को नही पहचान सकूँगा। बिटिया
को अपने कन्धे पर बिठा कर मैने इस बाग के न जाने कितने चक्कर लगाये है। बात करते हुए
हम अपने छोटे से लकड़ी के आउट हाउस पर पहुँच गये थे। जीप को किनारे मे खड़ी करके हम दोनों
उतर कर खुली जगह की ओर चल दिये जहाँ सेबों को गत्ते के डिब्बों मे रखा जा रहा था।
…चचाजान, इस वक्त कितने आदमी काम कर रहे है? …कुल बारह मजदूर यहाँ काम कर रहे है।
…मुश्ताक डार का माल तैयार हो गया? …माल तैयार है परन्तु उसका ट्रक अभी तक पहुँचा नहीं
है।
मै और आलिया चलते हुए बाग के एक सिरे पर पहुँच
गये थे। सारा वातावरण सेब की खुश्बू से महक रहा था। लंबी कतार से लगे हुए सेबों
से लदे हुए पेड़ों को देख कर आलिया चहकते हुए बोली… चचाजान, सेब खा कर आपके गाल लाल
हो रहे है। रफीक उसकी बात सुन कर हँस दिया था। आलिया को रफीक के पास छोड़ कर मै आउट
हाउस मे चला गया था। अलमारी से इन्वोइस की सारी बाक्स फाइल लेकर बैठ गया और एक-एक करके
मैने सभी खरीदारों के नाम लिखने शुरु कर दिये थे। तीन घंटे की
मेहनत के बाद मै इस नतीजे पर पहुँचा कि पुराने खरीददार आज भी एक-दो ट्रक से ज्यादा
नहीं लेते थे। लेकिन पिछले तीन साल से चार लोग इस बाग के मुख्य खरीददार के रुप मे उभर कर सामने आये थे। चारों कुल मिला कर एक सीजन मे लगभग
25-30 ट्रक माल उठाते थे। मुश्ताक डार उनमे से एक था और अन्य तीन गुलाम नबी बट, मुजफ्फर
हुसैन और शफीकुर गनी लोन थे। हुसैन और लोन जाने माने कश्मीर के राजनितिक परिवार से
थे। आलिया भी मेरे साथ बैठ कर सब कुछ समझने की कोशिश कर रही थी।
…आलिया तुम्हें इन चार खरीदारों पर नजर रखनी
है। यही लोग हमे आगे का रास्ता दिखाएँगें। हम बात करते हुए बाहर निकले तो एक ट्रक मे
सेब से भरे डिब्बे लादे जा रहे थे। हमे बाहर निकलता हुए देख कर रफीक ने आकर बताया कि
मुश्ताक का ट्रक लादा जा रहा है। …चचाजान, जरा पता तो करो यह माल कहाँ ले जाया जा रहा
है? रफीक ट्रक वाले से बात करने चला गया और हम उस जगह चले गये जहाँ डिब्बे मे सेब पैक
हो रहे थे। …आलिया एक डिब्बे मे कितने सेब आते है। जरा गिन कर देखो। आलिया ने एक डिब्बा
किनारे मे रख कर गिनना आरंभ कर दिया और मै भी दूसरे डिब्बे को लेकर गिनने बैठ गया।
कुछ ही देर मे हमे पता चल गया कि औसतन एक डिब्बे मे 35-40 सेब आते है। इतनी जानकारी
लेने के बाद हम दोनो घूमते हुए उस ट्रक की ओर चल गये थे। रफीक और ड्राईवर एक किनारे
मे बैठ कर बीड़ी पी रहे थे। हम भी उनके पास जा कर बैठ गये थे। आलिया ने पूछा… यह ट्रक
माल लेकर कहाँ जाएगा? तो रफीक ने तुरन्त कहा… यह बिहारी है इसे कश्मीरी नहीं आती है।
मैने वही सवाल हिन्दी मे पूछा तो उसने कहा… हमे तो इस ट्रक को गोदाम ले जाना है। वहाँ
से पता नहीं इस ट्रक को आगे कौन ले जाएगा। अबकी बार आलिया ने मुस्कुरा कर पूछा… भाईजान
यह तो पता ही होगा कि डार साहब का माल ज्यादातर कहाँ जाता है जैसे दिल्ली, मुंबई, वगैराह।
वह कुछ देर चुप रहा और फिर बोला… दिल्ली और मुंबई तो जाता ही है। इनका बहुत सा माल
मुजफराबाद और मानशेरा भी जाता है। …कभी आप वहाँ गये हो? …नहीं,
सीमा पार जाने के लिए कश्मीरी ड्राईवर चाहिए। हम बात कर रहे थे कि तभी किसी ने आवाज
दी… चल भाई ट्रक निकाल। दूसरा ट्रक लगाना है। वह उठ कर जाने लगा तो मैने पूछ लिया…
इनका गोदाम कहाँ है? …श्रीनगर। यह बोल कर वह वहाँ से चला गया था।
ड्राईवर का एक आदमी गिन कर डिब्बे चढ़वा रहा
था। उसने चलने से पहले इन्वोइस की एक कापी मुझे पकड़ा दी थी। उसके जाने के बाद दूसरा
ट्रक आकर खड़ा हो गया था। मैने एक बार फिर से रफीक को ड्राईवर से बात करने के लिए भेज
दिया था। आलिया वहाँ से उठ कर रफीक मियाँ की लड़कियों के साथ बाग देखने के लिए चली गयी
थी। दोपहर तक दो ट्रक जा चुके थे और तीसरे ट्रक पर डिब्बे रखे जा रहे थे। शाम तक चार
ट्रक माल लेकर जा चुके थे। हर ड्राईवर से यही पता चला था कि माल श्रीनगर के गोदाम मे
जा रहा था। सारे ट्रक एजाज ट्रांसपोर्ट कंपनी के थे। मुश्ताक डार के कारोबार की बहुत
सी जानकारी मेरे पास आ चुकी थी। आलिया को मैने समझाते हुए कहा… अब यही चीज जो हमने
आज की है वही हमे बट, हुसैन और लोन के साथ करनी है। आलिया भी इस काम की सारी कार्यप्रणाली
समझ चुकी थी। रफीक के अनुमान से हर ट्रक मे लगभग एक लाख का माल गया था। सारा दिन वहाँ
बिता कर शाम को हम वापिस श्रीनगर की ओर चल दिये थे।
…समीर अब आगे क्या करना होगा? …अभी कुछ नहीं
करना है। कल सुबह हम डार से मिलने चलेंगें। यही बाते करते हुए हम अपने घर की चल दिये
थे। रास्ते मे आलिया ने बताया कि रफीक ने अपने दोनो बेटों को गोल्डन ट्रांसपोर्ट कंपनी
मे लगवा दिया है। मै दोनो को अच्छे से जानता था। जब हम घर पहुँचे तब तक अंधेरा हो चुका
था। हमारे घर के बाहर कारों का मेला सा लगा हुआ था। …समीर वापिस चलो। अब्बा घर पर है।
कारों की भीड़ देखते ही मेरे दिमाग मे भी यही विचार आया था। मैने जीप को एक किनारे मे
रोक दिया और आलिया की ओर देखते हुए पूछा… आलिया कब तक हम उनसे छिपते फिरेंगें। …नहीं
समीर, वापिस चलते है। अम्मी ने तो वैसे ही उन्हें हमारे पहलगाम जाने की बात बता दी
होगी। उसका इशारा समझते हुए मैने कहा… तो वैसे ही आज वह भरे हुए बैठे होंगे। चलो कोम्पलेक्स
ही चलते है। मैने जीप मोड़ दी और कोम्पलेक्स की ओर चल दिये। कोम्पलेक्स मे घुसने मे
बड़ी तकलीफ आयी क्योंकि अपनी निजि जीप का मैने अभी तक पास नहीं बनवाया था। पहले पास
बनवाया फिर कहीं जाकर हम अपने घर पहुँच सके थे। दोनो अर्दली घर पर हमारे आने का इंतजार
कर रहे थे। हमे चाय पिला कर वह दोनो भी चले गये थे।
मैने अम्मी से बात करने के लिए फोन मिलाया
तो काफी देर तक घंटी बजती रही थी। दूसरी बार जब मिलाया तो तुरन्त अम्मी की आवाज मेरे
कान मे पड़ी… हैलो। …अम्मी मै समीर बोल रहा हूँ। सलाम। …बेटा, क्या हुआ तुम अभी तक वहाँ
से चले नहीं? …अम्मी, आज अब्बा आये हुए है। …हाँ, बेटा तुम यहाँ नहीं आना। आज वह बेहद
खफा है। …अम्मी हम वहाँ आये थे लेकिन कारों का जमघट देख कर वापिस चले गये थे। अम्मी
मुश्ताक डार को चार ट्रक माल दिया है। चारों इन्वोइस मेरे पास है। कल उसके आफिस जा
कर बिलिंग की बात कर लूंगा। शाम को बिल की कापी और इन्वोइस लाकर आपको दे दूँगा। …समीर,
जुमे को बडगाम जाना पड़ेगा। वहाँ पर अब्दुल लोन माल लेने आ रहा है। तुमने तो वह बाग
भी देखा है। …ठीक है अम्मी, जुमे को हम दोनो बडगाम चले जाएँगें। अच्छा अम्मी खुदा हाफिज़।
कह कर मैने फोन काट दिया था। आलिया ने मेरी ओर आंखों से इशारा किया तो मैने हंसते हुए
कहा… माबदौलत वहीं पर थे। अम्मी कह रही थी कि अच्छा हुआ हम सामने नहीं पड़े क्योंकि
अब्बा बेहद खफा थे। खाना वगैराह समाप्त करके मैने बताया कि जुमे को सुबह हमे बडगाम
जाना पड़ेगा। अभी दो दिन है तो आराम कर लेना। आँखों मे शरारत भरे अन्दाज मे अंगड़ाई लेते
हुए बोली… समीर, आज बहुत थक गयी हूँ। चल कर जरा मेरे हाथ और पाँव दबा दोगे तो अच्छी
नींद आ जाएगी। यह बोल कर वह बेडरुम मे चली गयी। सारी लाइट बन्द
करके और दरवाजे चेक करके मैने जब बेडरुम मे प्रवेश किया तब तक
वह निर्वस्त्र होकर बेड पर मेरा इंतजार कर रही थी।
इस्लामाबाद
एक कमरे
मे तीन लोग बैठे हुए गहन चर्चा मे व्यस्त थे। एक विदेशी स्त्री सामने बैठे हुए दो व्यक्तियों
को गुस्से से घूर रही थी। …मैडम, हालात बदल गये है। भारत के हर कोने से अब असला-बारुद
की मांग निरन्तर बढ़ती जा रही है। आपकी ओर से हमे समय पर मदद नहीं मिल पा रही है। इस
वक्त भारत सरकार बहुत से करप्शन के मसलों मे उलझी हुई है और यही हमारी मुहिम मे तेजी
लाने का उप्युक्त अवसर है। हक डाक्ट्रीन को कार्यान्वित करने के लिये आपकी सरकार ने
वायदा किया था। उनके चुनाव आने से पहले हमे दो या तीन ऐसे हमले कश्मीर वादी मे करवाने
है। …मिस्टर बेग, मेरी सरकार बदल गयी है और वह इस मामले मे पुनर्विचार कर रहे है।
…आप हमारा साथ नहीं छोड़ सकते। अफगानिस्तान का मसला अभी तक सुलझा नहीं है और जनरल भी
पुनर्विचार करने की सोच सकते है। …मिस्टर बेग क्या आप धमकी दे रहे है? …आप कुछ भी समझ
सकती है। एकाएक सब चुप हो गये थे।
कुछ पलों के बाद विदेशी महिला उठ कर खड़ी होते
हुए बोली… ठीक है। मै आपका जवाब उन्हें बता दूँगी लेकिन एक चेतावनी दे रही हूँ मिस्टर
बेग कि इस धमकी के लिये आपकी सरकार को बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा। इतना बोल कर वह
तेज कदमो से चलते हुए कमरे से बाहर निकल गयी थी। दोनो एक दूसरे को कुछ देर देखते रहे
फिर बेग ने अपने सामने बैठे हुए आदमी से कहा… ब्रिगेडियर अहमद लगता है कि पासा उल्टा
पड़ गया। …सर, जनरल मंसूर उन लोगों पर पैसों के लिये दबाव डालना चाह रहे थे। अब अगर
यह मामला जनरल के पास पहुँच गया तो पूरे महकमे के लिये मुश्किल खड़ी हो जाएगी। इससे
पहले वह छिनाल हमारे लिए कोई मुसीबत खड़ी करे, हमे कोई बड़ा कदम उठाना पड़ेगा। …अहमद ऐसा
लगता है कि मेजर की योजना को कार्यान्वित करने का समय आ गया है। …सर, आप तो जानते ही
है कि इसके लिये जनरल मंसूर ही मंजूरी दे सकते है। …कुछ भी बात करने से पहले हमे एक
बार मेजर से बात कर लेनी चाहिए। …सर, आप ठीक कह रहे है।
अब धीरे धीरे समीर अपने मकसद की और बड़ रहा है और उसके साथ शाहीन और आलिया सहयोगी के तौर पर चल पड़े हैं मगर कौन आखरी तक उसके इस मुहिम में साथ दे सकेगी यह देखना वाली बात होगी और कहीं न कहीं वो विषकन्या वाली बात खटक रही है खैर समय के गर्भ में क्या छुपा है यह तो सही समय आने के बाद पता चलेगा मगर कहीं न कहीं बहुत से राज उजागर होने वाले हैं। बहुत ही उम्दा अंक वीर भाई।
जवाब देंहटाएंमेरे अति उत्साही मित्र आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद। समय के गर्भ मे अभी बहुत कुछ छिपा हुआ है। जुड़े रहेंगें तो कश्मीर के हालात धीरे-धीरे उजागर होते चले जाएँगें।
हटाएंअहमद जा अहमदी,पुरानी यादें ताज़ा हो रही है,असली एक्शन के लिए तयारी रखिए, पता नही कोन से मोड़ पर क्या हो जाए, जबर दस्त अंक वीर भाई
जवाब देंहटाएंहरमन भाई नामों के झोल मे मत पड़िये। मेरे साथ जुड़ने के लिये धन्यवाद।
हटाएंइस कहानी का टाइमलाइन अफगान के टाइमलाइन के साथ या फिर थोड़ा आगे पीछे है तो लाजमी है की उसमें दिखाए गए कुछ पात्र जैसे अहमदी और भी कुछ पात्र भी शायद दिख जाए ।
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