बुधवार, 23 नवंबर 2022

  

   काफ़िर-17

 

मुजफराबाद

…सारा सामान मुजफराबाद के रास्ते से श्रीनगर की ओर रवाना हो गया है। इस बार ऐसा विस्फोट होना चाहिए कि केन्द्र मे बैठी हुई भारत सरकार हिल जाए। …इन्शाल्लाह। जमात को अबकी बार वादी को दहलाना पड़ेगा। …चचाजान, इस बार श्रीनगर मे 15 कोर का हेडक्वार्टर्स निशाने पर है। जमात ने चार धमाकों की योजना बनायी है जिसके कारण फौज की रीढ़ की हड्डी टूट जाएगी। उसके बाद हमारी तंजीमों के लिये रास्ता साफ हो जाएगा। …उस लड़की का क्या हुआ? तेरा निकाह उसके साथ हो जाता तो जमात की बागडोर तेरे हाथ मे आ गयी होती। …चचाजान, उसकी लड़की ही फाहिशा निकली तो उसमे उस बेचारे का क्या दोष है। उस लड़की की हमें जरुरत है। मुंबई मे मेरे लोग अभी भी उस पर नजर रख रहे है। उसका बैंगलौर का इतिहास भी खंगाल रहे है। अगर फिर भी कुछ नहीं होता तो अभी मेरे पास एक हथियार और है। वह बच कर नहीं जा सकती आप बेफिक्र रहिए। अच्छा चलता हूँ चचाजान। खुदा हाफिज।     

 

हम सोने के लिए चल दिये थे। बिस्तर पर पड़ते ही हमारी एक दूसरे के साथ छेड़खानी आरंभ हो गयी थी। …जन्नत पके हुए फल की तरह दिखती है। उसके सीने पर ही तुम्हारी निगाहें टिकी हुई थी। मैने जल्दी से कहा… मै उसकी ओर देख ही नहीं रहा था। परन्तु जन्नत का जिक्र आते ही उसके कोमल जवान गदराये हुए जिस्म की याद आ गयी थी। उसकी सीने की गोलाईयाँ मेरी आँखों सामने आ गयी थी। उसके जिस्म के पल भर के स्पर्श के एहसास ने एकाएक मुझे उत्तेजित कर दिया था। अचानक मुझे एहसास हुआ कि आलिया अपने हाथ मे मेरे पौरुष को पकड़ कर उसमे होते हुए हर स्पन्दन को महसूस कर रही थी। …जन्नत के नाम से ही यह जाग उठा है। मै झेंप गया और मैने जल्दी से कहा… वह तुम्हारे हाथ का जादू है। आलिया जोर से हंसते हुए बोली… उसके गोल नितंबों को तुमने देखा था? मैने धीरे से उसके पुष्ट नितंब को छू कर देखा था। मेरे स्पर्श मात्र से वह थरथरा गये थे। समीर इसका तबला बजाने मे मजा आएगा। आलिया लगातार जन्नत के अंगो का बखान करती जा रही थी जिसका सीधा असर मेरे कामांग पर साफ विदित हो रहा था। जब मुझसे रहा नहीं गया तो आलिया को अपने जिस्म के नीचे दबा कर अपने जिस्म की आग ठंडी करने मे लग गया था। …तुम जन्नत से ज्यादा बेहतर लगती हो। मैने आँखे मूंद ली थी। तभी मुझे लगा कि आलिया की जगह जन्नत मेरे आगोश मे है। अचानक मेरे जिस्म मे एक बिजली की लहर दौड़ गयी और फिर एक पागल दरिंदे के जैसे मैने आलिया का रौंदना आरंभ कर दिया था। कामावेश मे उसकी सिसकारियाँ पूरे वेग से कमरे मे गूँजने लगी थी।

…आज क्या हो गया था तुम्हें? लगता है जन्नत की याद आते ही पागल हो गये थे। तूफान शांत होने के बाद अपनी तेज चलती हुई साँसों को संभालते हुए आलिया ने एक बार फिर से कटाक्ष मारा लेकिन इस बार मैने धीरे से उसके कान मे फुसफुसाते हुए कहा… वह जिस्मानी और मानसिक रुप से तुमसे बेहतर तो हर्गिज नही है। आलिया हंसते हुए बोली… वह तो मै जानती हूँ। फिर भी तुमने बताया नहीं कि वह तुम्हें कैसी लगी? …अब उस फ़ाहिशा का जिक्र छोड़ो और कल के बारे सोचो। जल्दी सुबह उठ कर बडगाम के लिए निकलना है। पता नहीं आलिया के दिमाग मे जन्नत कहीं अटक कर रह गयी थी। उसने फिर से कहा… समीर, उनके घर पर मैने महसूस किया था कि अगर उसका बस चलता तो वह वहीं पर तुम्हें पटक कर तुम्हारा शिकार कर लेती। मैने कोई जवाब नहीं दिया बस आलिया को अपने सीने से लगाये सपनों की दुनिया मे खो गया था।

अगले दिन सुबह तैयार होकर हम दोनो बडगाम के लिए निकल गये थे। जब हम फार्म पर पहुँचे उस समय अब्दुल लोन के ट्रक पर माल लोड हो रहा था। यहाँ पर चौकीदारी का काम इस्माईल नाम का बिहारी देख रहा था। उस से तो मुझे कोई मदद की उम्मीद नहीं थी इसीलिए ड्राईवर से जानकारी लेने के काम पर मैने आलिया को लगाया था। मै यहाँ की इन्वोइस की फाईल देखने बैठ गया था। कुछ देर के बाद ही मै इस नतीजे पर पहुँच गया था कि यहाँ का हाल भी पहलगाम जैसा ही था। वही चार बड़े सेब के व्यापारी हमारे फार्म के सबसे बड़े खरीददार थे और बाकी चार-पाँच छोटे पुराने व्यापारियों को हम एक ट्रक सेब से ज्यादा नहीं देते थे। गोल्डन ट्राँस्पोर्ट कंपनी का ट्रक रैक पर खड़ा हुआ था। अब सेब के खरीदारों और ट्रांसपोर्टरों का पैटर्न मुझे साफ दिख रहा था। पूरे सेब के कारोबार पर चार परिवारों का कब्जा साफ दिखाई दे रहा था। यहाँ तक कि माल को ढोने का इंतजाम भी वही गिनी-चुनी ट्रांसपोर्ट कंपनियाँ ही करती थी। आलिया ने भी वही बताया जो हमे पहलगाम मे पता चला था। तभी मेरे दिमाग मे एक विचार आया और मै पैदल अपने फार्म से बाहर निकल गया था।

मै पड़ोस के फार्म पर चला गया था। यह फार्म  सज्जाद अहमद का था। वह यहाँ के उद्योग जगत मे जाना माना नाम था। जब से अराजकता ने कश्मीर मे सिर उठाया था तब से उनका काम काफी हद तक ठप्प हो गया था। अम्मी के साथ बहुत बार मै इनके फार्म पर गया था। सीजन के कारण उनके फार्म मे भी ट्रक खड़े हुए थे। मै टहलते हुए लोहे के गेट को खोल कर अन्दर चला गया था। सज्जाद अहमद अपने परिवार के साथ एक पेड़ के नीचे बैठे हुए थे। मुझे अन्दर आते देख कर वह उठ कर मेरी ओर आ गये थे। …आदाब अंकल, आप शायद मुझे नहीं पहचाने। मै समीर बट। साथ वाले बट फार्म से आया हूँ। यह सुनते ही वह पहचानते हुए बोले… समीर बेटा बहुत दिनों से तुम्हें नहीं देखा था इसीलिए पहचान नहीं सका था। तुम्हारी अम्मी से यहाँ पर मुलाकात कभी-कभी हो जाती थी। आज कैसे आना हुआ? …अम्मी की तबियत ठीक नहीं थी तो माल लदवाने के लिए मुझे आना पड़ा था। हम बात करते हुए पेड़ के नीचे बैठे हुए परिवार के पास पहुँच गये थे। अपने परिवार से मिलाते हुए कहा… यह हमारे पड़ौसी मकबूल बट के साहेबजादे समीर है और समीर मियाँ यह हमारा परिवार है। मै सभी का अभिवादन किया और सज्जाद अहमद के साथ बैठ गया था।

…अंकल आपका काम कैसा चल रहा है? एक पल के लिए वह कुछ बोलते-बोलते रुक गये थे। फिर वह धीरे से बोले… यहाँ पर कैसा काम मियाँ। इन लोगों ने तो सब कुछ बर्बाद कर दिया है। फैक्टरियाँ आतंकवाद के कारण बंद पड़ी है और हर सरकारी ठेके पर कुछ विशेष परिवारों का कब्जा है। हालात बद से बदतर हो गये है। …अंकल, इस सीजन मे सेब का करोबार कैसा चल रहा है। …समीर मियाँ सेब के कारोबार का भी वही हाल है। तभी एक लड़की ट्रे को मेज पर रखते हुए बोली…  हमारे फार्म के सेब का रस है। प्लीज लिजीए। मैने ग्लास उठा लिया और सज्जाद अहमद से कहा… अंकल, मुझे तो लगता है कि सेब का कारोबार भी चंद लोगो के हाथ मे सिमट कर रह गया है। सज्जाद अहमद ने एक बार मेरी ओर ध्यान से देखा और फिर बोला… अब यह हालात हो गये है कि अगर इनके मन मुताबिक काम नहीं किया तो कोई भी खरीददार आपके फार्म पर नहीं फटकेगा। मैने तो इन लोगो के साथ काम करने से पहले ही मना कर दिया था। यह लोग एक ट्रक माल खरीदते है और दो ट्रक का बिल फड़वाते है। मै ऐसे उल्टे चक्करों से दूर ही रहता हूँ। कम खालो लेकिन ईमान का सौदा नहीं कर सकता। मेरा सारा माल तो दिल्ली और पंजाब जाता है। तभी सज्जाद का बेटा जो अब तक चुप बैठ कर हमारी बात सुन रहा था वह बोला… अब तो यहाँ पर ट्रांस्पोर्टरों की लौबी भी बन गयी है। कुछ देर उनसे बात करके मै अपने फार्म पर वापिस आ गया था। एक ट्रक जा चुका था और दूसरे ट्रक पर माल लदवाया जा रहा था। आलिया पेड़ के नीचे आँख मूंद कर बैठी हुई थी।

एक नजर ट्रक पर डाल कर मै आलिया के पास चला गया था। …तुम कहाँ चले गये थे? …पड़ोस वाले फार्म पर गया था। यहाँ कैसा काम चल रहा है? …आज भी यहीं शाम हो जाएगी। चार ट्रक माल जाना है। हम दोनो पेड़ के तने पर पीठ टिका कर बैठ गये थे। सज्जाद अहमद से हुई सारी बातों की जानकारी आलिया को देने के बाद हम चुपचाप बैठ गये थे। …समीर, इन चारों बड़े सेब के व्यापारियों की इस कारोबार पर पकड़ को हम कैसे चोट पहुँचा सकते है? आलिया का प्रश्न उचित था लेकिन इसका जवाब मेरे पास नहीं था। कुछ देर के बाद वह बोली… समीर इन लोगो की पकड़ तभी टूट सकती है जब कोई इनसे बड़ा व्यापारी इनके सामने खड़ा हो जाए तो इनको माल मिलना मुश्किल हो जाएगा। मैने सिर हिलाते हुए कहा… तुम सही कह रही हो परन्तु इनसे बड़ा व्यापारी कौन हो सकता है? कुछ देर के लिए हम दोनो चुप हो कर बैठ गये थे।  लोडिंग रैक से माल भर कर एक ट्रक निकलता तो उसकी जगह रैक पर दूसरा ट्रक लग जाता था। यह सिलसिला शाम तक चलता रहा था। पाँच बजे तक चारों ट्रक माल भर कर चले गये थे। उनके जाने के बाद ही हम वहाँ से निकल सके थे।

लौटते हुए फोन पर आलिया की बात अम्मी से हो गयी थी। मै आज तक अब्दुल लोन के आफिस नहीं गया था। उसका पता पूछने पर अम्मी ने आलिया से कहा कि कल वह उसके साथ अब्दुल लोन के आफिस चलेंगी और उसको वहाँ के कुछ मुख्य लोगों से मिलवा देंगी। …समीर, अब मुझे भी यह जीप चलाना सीखना पड़ेगा। …बिल्कुल सीख लेनी चाहिए लेकिन कल के लिए मेरा ड्राईवर तुम्हें ले जाएगा। हम बात करते हुए कोम्पलेक्स की ओर जा रहे थे कि रास्ते मे शाहीन का फोन आ गया था। वह तुरन्त मिलना चाह रही थी परन्तु उसने हमे अपने घर के बजाय जामिया मस्जिद के पास बुलाया था। मैने उस मस्जिद का नाम सुना था परन्तु वहाँ पहुँचने का रास्ता मालूम नहीं था। हम लोगो से पूछते हुए थोड़ी देर से जामिया मस्जिद पहुँच गये थे। शाहीन मस्जिद से कुछ दूर एक पेड़ के पास खड़ी हुई हमारा इंतजार कर रही थी। जीप रुकते ही वह बोली… मेरे अब्दुल्लाह भाईजान पाकिस्तान से आ गये थे। आज मैने उन्हें किसी से बात करते हुए सुना कि माल यहाँ पहुँच गया है और आज शाम को जामिया मस्जिद मे उस माल की डिलिवरी होगी। उनकी बातों से पता लगा कि वह कुछ बड़ा करने की योजना बना रहे है। वह एक साँस मे बोलती चली गयी थी। …कुछ पता चला कि वह क्या करने की सोच रहे है? …नहीं। लेकिन बार-बार वह फौज को सबक सिखाने की बात कर रहे थे। यह सुन कर मेरे दिमाग मे खतरे की घंटी बज गयी थी। शाहीन सब कुछ बता कर वापिस अपने घर चली गयी थी और हम कोम्पलेक्स की ओर चल दिये थे। घर पहुँच कर मैने ब्रिगेडियर चीमा को फोन लगाया।

…बोलो मेजर। …सर, मुझे पता चला है कि कुछ जिहादी हमारी फौज को सबक सिखाने की योजना बना रहे है। उनके माल की डिलिवरी आज शाम को ही जामिया मस्जिद मे हुई है। ऐसी हालत मे अब क्या करना चाहिए?  …उस माल के बारे मे क्या पता चला? …सर, यह तो पता नहीं परन्तु मेरा अनुमान है कि आरडीएक्स और हथियारों की डिलिवरी हो सकती है। …मेजर, जामिया मस्जिद मे सेना का घुसना बेहद संवेदनशील मसला है। इस खबर से राजनीति मे उबाल आ जाएगा। सारी राजनितिक पार्टियाँ फौज के खिलाफ मोर्चा खोल देंगी। इसीलिए बिना पुख्ता सुबूत के फौज भी कोई कार्यवाही नहीं कर सकती है। खैर मै अपने नेटवर्क से पता लगाने की कोशिश करता हूँ। इतना बोल कर उन्होंने फोन काट दिया था। मै सरकारी तंत्र की कमजोरियाँ को समझने का प्रयास करने बैठ गया था।

मै जामिया मस्जिद के बारे सोच रहा था। हाजी मंसूर के कारण जामिया मस्जिद तो वैसे ही जमात-ए-इस्लामी के गड़ के रुप मे प्रख्यात थी। पिछले कुछ दिनों मे इसी मस्जिद के बारे मे दर्जनों इंटेल रिपोर्ट्स मुझे मिली थी जिसमे बताया गया था कि लश्कर और जैश से जुड़े हुए लोगो का इस मस्जिद मे कुछ दिनो से काफी आना-जाना हो गया है। इसीलिए मैं शाहीन की खबर को नजरांदाज नहीं कर सकता था। रात के दस बज चुके थे। मुझसे लेटा नहीं जा रहा था। …आलिया मेरे साथ चलो। आज रात को जामिया मस्जिद मे घुसने की कोशिश करते है। …समीर पागल हो गये हो क्या। इस वक्त वहाँ कौन घुसने देगा? …कोशिश करने मे क्या हर्ज है? प्लीज चलो। आलिया बेमन से तैयार हुई और कुछ देर के बाद हम दोनो जामिया मस्जिद की ओर जा रहे थे। रात के वक्त सड़के सूनी पड़ी थी। हर बेरियर पर फौजी रोक कर जीप चेक करने के बाद ही आगे बढ़ने की इजाजत दे रहे थे। रुकते-रुकाते हम एक घंटे मे जामिया मस्जिद के करीब पहुँच गये थे। मेरी पिस्तौल मेरी कमर मे बंधी हुई थी। अपनी जीप कच्चे मे उतार कर एक बन्द दुकान के बाहर खड़ी करके हम दोनो मस्जिद की ओर पैदल चल पड़े थे।

…आलिया तुम अपने आपको हिन्दू बताना। …क्यों? …जो मै कह रहा हूँ बस वही करना। अपने चेहरे पर चिलमन गिरा लो। आलिया वैसे ही जाने के लिए तैयार नहीं थी अब और भी ज्यादा असहज हो गयी थी। हम दोनो जामिया मस्जिद के मुख्य गेट पर पहुँच गये थे। बड़े से लोहे के गेट मे बने हुए छोटे गेट के कुन्डे को पकड़ कर मैने जोर से खड़का दिया था। कुछ देर रुक कर मैने एक बार फिर से जोर से लोहे का कुन्डा खड़का दिया था। कुछ मिनट के बाद छोटे गेट के खुलने की आवाज सुनाई दी तो मैने आलिया को अपने साथ खड़ा कर दिया। दरवाजा खोल कर एक आदमी बाहर निकला और मुझे देख कर घुर्राया… क्या काम है? …सलाम भाईजान, आज की रात हमे यहाँ रुकना है। …क्यों मियाँ। बुर्कापोश आलिया पर नजर डाल कर वह बोला… इसे कहाँ से उठा कर लाया है। उसके हावभाव, पहनावे और बोली से साफ था कि वह जिहादी है। मैने धीरे से कहा… भाईजान, यह पंडित की लड़की है। निकाह करने के लिए मै इसे जम्मू से भगा कर लाया हूँ। आज सुबह ही मैने हाजी साहब से बात की थी। उन्होंने मुझे कहा था कि लड़की को लेकर मस्जिद पहुँच जाओ और वहीं छिप जाना। अगली सुबह वह हमारा निकाह करा देंगें। मेरी बात सुन कर वह जिहादी सोच मे पड़ गया था।

आलिया को अपने से सटा कर मैने जल्दी से कहा… भाईजान, सोचने का समय नहीं है। हमे अन्दर जाने दीजिए। इसके घरवाले पुलिस को साथ लेकर यहाँ पहुँचने वाले होंगें। हम दोनो आज रात मस्जिद के किसी कोने मे पड़े रहेंगें। यह कह कर आलिया का हाथ पकड़ कर मै छोटे गेट से अन्दर घुस गया। वह जल्दी से अन्दर आते हुए बोला… मियाँ रुको यहाँ पर। आज किसी को भी अन्दर रुकने की इजाजत नहीं है। …क्यों भाईजान। मुझे तो हाजी साहब ने यहीं आने के लिए कहा था। वह अभी भी मेरे साथ खड़ी हुई आलिया को देखे जा रहा था। …मियाँ हमारी मदद करो। आप सुबह हाजी साहब से पूछ लेना। अगर इस लड़की को इसके घरवालों ने बाहर पकड़ लिया तो रातों रात ही उसे जम्मू पहुँचा देंगें। वह हिचकते हुए बोला… एक बार इसकी शक्ल दिखा। मैने तुरन्त आलिया के चेहरे से चिलमन उठा कर कहा… देख लो भाई। लड़की ही है। कल हमारा निकाह हो जाएगा। उसके बाद पकड़ने का कोई डर नहीं रहेगा। यह कहते हुए मैने जल्दी से आलिया का चेहरा ढक दिया था। वह कुछ क्षण सोचता रहा फिर मेरे आगे से हट गया था।

आलिया की एक झलक देखने के बाद उसका रुख ही बदल गया था। वह आगे बढ़ते हुए बोला… इसका क्या नाम है? …अंजली कौल। …ओह पंडित है। मैने कोई जवाब नहीं दिया और आगे बढ़ गया। मस्जिद मे दाखिल होते ही बहुत बड़ा खाली अहाता और दोनो ओर कमरे बने हुए थे। सभी कमरे अंधेरे मे डूबे हुए थे। मुख्य द्वार पर छोटे से बल्ब की धीमी रौशनी मे चारों ओर का जायजा लेकर हम जैसे ही आगे बढ़े कि तभी एक कमरे का दरवाजा खोल कर वह बोला… मियाँ, यह कमरे मे ठहर जाएगी। तुम मेरे साथ आओ। एक पल के लिए मै झिझका लेकिन तभी वह बोला… तुम यहाँ बाहर बैठ जाओ। मस्जिद मे कोई गलत हरकत नहीं होनी चाहिए। मैने जल्दी से सिर हिला कर उसे अपनी स्वीकृति दे दी और दीवार से पीठ टिका कर बैठ गया। मैने मुड़ कर खिड़की के जंगले से आलिया से कहा… तुम अन्दर आराम करो। अब सारा खतरा टल गया है। मै बाहर बैठा हुआ हूँ तो डरने की जरुरत नहीं है। वह आदमी हमें वहीं छोड़ कर चला गया था। मेरी नजरें मस्जिद के बन्द कमरों और अन्दर जाने के रास्ते व सिड़ियों की निशानदेही कर रही थी। एक मंजिल उपर भी बनी हुई थी परन्तु वहाँ भी वीरानी छायी हुई थी।

कुछ देर के बाद वही आदमी वापिस टहलते हुए मेरे पास आ कर बैठते हुए बोला… मियाँ, इस चिड़िया को कहाँ से भगा कर लाया? …जम्मू। मेरे कन्धे पर हाथ मार कर मुस्कुरा कर बोला… बड़ टन्च माल है। फिर आँख मार कर मुझसे पूछा… इसके साथ तूने अभी तक कुछ किया है या अभी तक कोरी है? मैने झिझकते हुए कहा… भाईजान क्या बात कर रहे हो। फिर धीरे से सिर हिला कर मैने हामी भर दी थी। वह खिलखिला कर हँस दिया और एक बार फिर मेरे कन्धे पर हाथ मार कर बोला… तो तू फुल आन मजे ले चुका है। मै सिर झुका कर बैठ गया। एकाएक वह उठ कर खड़ा हो गया और मेरी बाँह थाम कर मुझे उठाते हुए बोला… चल मेरे साथ। चाय बन रही है। उसके लिए चाय ले जा। पता नहीं कब से भूखी होगी। तू भी चाय पीकर वापिस आ जाना। मै हिचकते हुए उसके साथ चल दिया था। …भाईजान, आज यहाँ आपके सिवा और कोई नहीं है। …नहीं। आज शाम की नमाज के बाद यह मस्जिद खाली करा दी गयी थी। आलिया को अकेला कमरे मे छोड़ कर जाने का मेरा दिल नहीं था परन्तु मजबूरी थी।

कमरे से कुछ दूर होने के बाद वह चलते हुए बोला… यार, बेहद दिलकश माल है। तू तो मजे ले चुका है लेकिन आज की रात मुझे भी इसके साथ मजे करने दे। सुबह इसके साथ मै खुद तेरा निकाह करा दूँगा। मै चलते-चलते रुक कर बोला… नहीं भाई। ऐसी बात मत कीजिए। यह मेरी मोहब्बत है। …अबे छोड़ इश्क मोहब्बत का चक्कर। तेरा काम तो हो गया तो अब इसको यहाँ मेरे पास छोड़ कर तू कट ले। यह बात करते हुए जैसे ही हम गलियारे मे मुड़ कर एक अहाते मे पहुँचे तभी सामने वाले कमरे के बाहर जमीन पर तीन लोग बैठे दिखायी दिये। सभी के हाथों मे एके-47 लटकी हुई थी। एकाएक उसकी आवाज कड़ी हो गयी… राजी से आज की रात हमे उसके साथ बिताने देगा तो तेरी जिंदगी बच जाएगी वर्ना तुझे मार कर हम फिर भी उसके साथ रात गुजारेंगें। मैने गिड़गिड़ाते हुए कहा… नहीं भाई। यह गलत काम मत करो। खुदा से डरो भाई। मेरी मोहब्बत को रुसवा मत करो। हम उनके नजदीक पहुँच गये थे। वह तीनों उठ कर खड़े हो गये थे। मै गिड़गिड़ा रहा था और वह हँस रहे थे।

अचानक उन चारों मे से एक बोला… इसको यहाँ बिठाओ। अगर यह ज्यादा शोर मचाए तो साले को गोली मार देना। तब तक मै फारिग हो कर आता हूँ। आज उस हसीना के जिस्म को निचोड़ कर रख दूँगा। तभी जो व्यक्ति मेरे साथ आया था वह बोला… उसके पास सबसे पहले मै जाऊँगा जुबैर। मेरे बाद तुम सब का नम्बर लगेगा। उन दोनो मे बहस शुरु हो गयी थी कि पहले आलिया के कमरे मे कौन जाएगा। बाकी दोनो का ध्यान भी उनकी ओर लगा हुआ था। मैने मौका देख कर अपनी कमर मे बंधी हुई पिस्तौल निकाल कर फायरिंग के लिए तैयार हो चुका था। वासना के भूखे दरिंदे सब कुछ भूल कर इस बहस मे व्यस्त थे कि पहले उसके कमरे मे कौन जाएगा। वह मुझे भुला चुके थे और मै मौके की तलाश मे था। उनकी बहस हाथापाई मे बदले उससे पहले तीसरा जिहादी बीच-बचाव करने के लिये आगे बढ़ा तभी …धाँय…अचानक पिस्तौल की आवाज ने रात की खामोशी भंग कर दी थी। तीसरे जिहादी के हिलते ही मुझे फायर करने का मौका मिल गया था।

अगले ही पल मुझे लाने वाला व्यक्ति हवा मे उछला और उसके जीवन का अन्त हो गया था। उसके सिर  का पिछला हिस्सा खील-खील हो कर बिखर गया था। जब तक कोई समझ पाता तब तक एक के बाद एक…धाँय…धाँय…धाँय…धाँय…की आवाज मस्जिद मे गूँजी और पल भर मे तीन लाशें जमीन पर निश्चल पड़ी हुई थी। मेरी सर्विस पिस्तौल ग्लाक-17 ने चौथे जिहादी को निशाने पर ले लिया था। मस्जिद मे शान्ति छा गयी थी और बदले हुए हालात को देख कर वह पथरा सा गया था। मैने एक नजर चारों ओर घुमा कर देखा और जब कोई और नहीं दिखा तब मैने कहा… अपनी गन को नाल से पकड़ कर कन्धे से निकालो और फिर मेरी ओर बढ़ा दो। वह यन्त्रवत सा हिला और उसको जैसा कहा गया था वैसा करके उसने अपनी गन की नाल पकड़ कर मेरी दिशा मे बढ़ा दी थी। तभी भागते हुए पदचापों की आवाज मेरे कान मे पड़ी तो मैने जल्दी से उसकी एके-47 को अपने कब्जे मे लिया और उस जिहादी को कवर करके आवाज की दिशा मे एके-47 अब फायर करने के लिये तैयार हो गया था। मेरी नजर आलिया पर पड़ी जो बदहवासी मे भागती हुई आ रही थी। जमीन पर पड़ी हुई लाशों पर नजर पड़ते ही आलिया के मुख से तेज चीख निकली और वह ठिठक कर वहीं रुक गयी थी। उस जिहादी को दरवाजे की ओर धक्का देते हुए मैने आलिया से कहा… उनकी गन उठा लो। आलिया एक पल के लिए आगे बढ़ने मे झिझकी फिर जल्दी से हालात समझते हुए उसने दोनो एके-47 उठा कर मेरे पास आकर खड़ी हो गयी थी।

…मियाँ यह दरवाजा खोलो। वह लड़खड़ाते हुए आगे बढ़ा और लोहे का कुन्डा सरका कर दरवाजे को खोल कर एक किनारे मे खड़ा हो गया था। मै जिस चीज की तलाश मे यहाँ आया था अब वह मेरे सामने थी। …मियाँ कमरे की लाइट जला दो। उसने आगे बढ़ कर स्विच आन करके कमरा रौशन कर दिया था। अन्दर से वह कमरा देखने मे एक छोटा सा आयुधखाना लग रहा था। दस-पन्द्रह एके-47 और एके-56 करीने से एक किनारे मे रखी हुई थी। लकड़ी के पाँच डिब्बे दीवार के साथ रखे हुए थे। पाँच बड़े ड्रम कमरे के दूसरे किनारे मे रखे हुए थे। दो मोर्टार लांचर और दस-पन्द्रह मोर्टार एक लकड़ी के फट्टे पर कमरे के बीचोंबीच रखे हुए थे। बहुत सारा मस्जिद का सामान जैसे लाउडस्पीकर, एम्प्लीफायर, तार, बिजली की लड़ियाँ, वगैराह भी एक कोने मे रखे हुए थे। एक नजर मे कमरे मे रखे हुए असला-बारुद के बारे मे अंदाजा लगा कर मै इसी निष्कर्ष पर पहुँचा कि इस सबको यहाँ से बाहर निकालना असंभव था। पुलिस को इस आयुधखाने की खबर भी नहीं कर सकता था क्योंकि कमरे के बाहर तीन लाशें पड़ी हुई थी। मैने आलिया को अपनी पिस्तौल पकड़ा कर कहा… अगर यह जरा सा भी अपनी जगह से हिले तो इसकी नाल को उसकी दिशा मे करके बस ट्रिगर दबाने की जरुरत है। बाकी काम गोली अपने आप कर देगी। यह बोल कर ड्र्मों और डिब्बों का नीरिक्षण करने के लिए आगे बढ़ गया।

ड्र्म के ढक्कन पर एके-47 के बट से तीन-चार बार प्रहार किया तो ढक्कन ढीला हो कर निकल गया था। ड्रम के अन्दर देखते ही मेरी रुह काँप गयी थी। सेम्टेक्स और सी-4 जैसे प्लास्टिक एक्सप्लोसिव्स से ड्रम भरा हुआ था। जरा सी एक चिंगारी पूरी मस्जिद को तबाह करने के लिए काफी थी। मैने सभी ड्रम के ढक्कनों को हटा कर देखा तो समझ गया कि वह लोग सही मे कुछ बड़ा काम करने की सोच रहे थे। असंख्य टाइमर्स, डिटोनेटर्स और आईईडी पड़े हुए थे। एक ड्रम मे आरडीएक्स का जखीरा भरा हुआ था। मैने लकड़ी के डिब्बों को खोलना आरंभ किया। दो डिब्बे तो एके-47 और 56 की मैगजीन से भरे हुए थे। एक डिब्बे मे पिस्तौलें और असंख्य कारतूस पड़े हुए थे। एक डिब्बे मे हेन्डग्रेनेड रखे हुए थे। मैने दस हेन्डग्रेनेड निकाले और जल्दी से क्रमवार ब्लास्ट के लिए उन्हें जोड़ना आरंभ कर दिया। मै जैसे ही ग्रेनेड का पिन निकालता उन दोनो की साँस रुक जाती थी। ड्रम मे से टाईमर और डेटोनेटर निकाल कर ब्लास्ट करने की तैयारी मे लग गया था। आलिया और वह आदमी हैरत से मेरे चलते हुए हाथों को देख रहे थे। आधे घंटे मे कमरे के तीन कोने मे तीन-तीन ग्रेनेड्स को सीरीज मे जोड़ कर रख दिया था। तीन ग्रेनेड के एक गुच्छे को सेम्टेक्स के ड्र्म मे डेटोनेटर लगा कर उसके उपर टाइमर सेट करके छोड़ दिया था। एक बार सारे कनेक्शन चेक करने के बाद मैने उनको कमरे से बाहर निकाला और लाइट का स्विच आफ करके दरवाजा बन्द कर दिया। यहाँ पर मेरा काम समाप्त हो गया था।

मेरे कन्धे पर लटकी हुई एके-47 का सेफ्टी कैच हटा कर आलिया से कहा… तुम मुख्य द्वार पर मेरा इंतजार करो। जब वह अपनी जगह से नहीं हिली तो मुझे उसे जबरदस्ती धक्का देकर वहाँ से निकालना पड़ा था। उसके जाते ही मैने एके-47 को उस आदमी की दिशा मे घुमाया और ट्रिगर दबा दिया। पल भर मे उसका जिस्म गोलियों से छलनी हो गया था। मैने सामने पड़ी हुई लाशों की जेब टटोल कर सारा सामान जल्दी से अपनी जेब मे डाला और एक बार फिर से मस्जिद मे चारों ओर निगाह दौड़ा कर आलिया को लेकर मस्जिद से बाहर आ गया था। एक नजर मैने अपनी घड़ी पर डाली तो एहसास हुआ कि सारा काम निपटाने मे तीन घन्टे लग गये थे। पौ फटने मे अभी कुछ घंटे शेष थे।  

आलिया मुख्य द्वार पर मेरा इंतजार कर रही थी। छोटे गेट को खोल कर एक नजर बाहर सड़क पर डाल कर हम दोनो तेज कदमों से अपनी जीप की ओर चले गये थे। हम वहाँ से सीधे कोम्पलेक्स की ओर जाने के बजाय अपने घर की ओर चल दिये थे। …उस आदमी को भी मार दिया। मैने उसको अनसुना कर दिया तो वह बोली… समीर, ब्लास्ट तो नहीं हुआ। …समय आने पर अपने आप हो जाएगा। फिर पूरे रास्ते हम चुप बैठे रहे थे। अपने घर सुरक्षित पहुँच कर मैने पहली बार चैन की साँस ली थी। घर के बाहर सब कुछ सुनसान पड़ा हुआ था। दरवाजे पर जीप खड़ी करके हम दोनो उसी मे सो गये थे। मस्जिद मे हुए ब्लास्ट से अनिभिज्ञ हम सुबह तक जीप मे सोते रहे थे। सुबह उठ कर जब अम्मी रसोई की ओर जा रही थी तब उनकी नजर हमारी जीप पर पड़ी तो वह गेट का ताला खोल कर बाहर निकल कर देखने आ गयी थी। जीप मे हमे सोता हुआ देख कर उन्होंने ही हमे जगाया था। दो घंटे की नींद लेने से कुछ थकान तो कम हो गयी थी। हम दोनो मुँह हाथ धो कर चाय पीने के लिए बैठ गये थे। …तुम कब आये? …अम्मी हम सुबह चले आये थे क्योंकि आज आलिया को आपके साथ अब्दुल लोन के आफिस मे जाना था। अम्मी अच्छी तरह से जानती थी कि फौज मे भर्ती होते ही मेरी दिनचर्या सुबह पाँच बजे से आरंभ हो जाती थी इसीलिए उस दिन उन्होंने ज्यादा सवाल-जवाब नहीं किये थे।

मैने फोन से अपनी आफिस की गाड़ी यहीं पर बुलवा ली थी। आलिया तैयार होने के लिए चली गयी। मेरी गाड़ी पहुँचते ही मै कोम्पलेक्स की ओर चल दिया था। कोम्पलेक्स की दिशा मे जाते हुए सुरक्षा के इंतजाम देख कर मुझे समझ मे आ गया था कि बहुत बड़ा काम हो गया है। अपने घर पहुँच कर मैने जब टीवी पर स्थानीय समाचार देखा तब पता चला कि जामिया मस्जिद की छत के साथ उसका पिछला हिस्सा भी नदारद था। पुलिस दोषियों को पकड़ने के लिए अपना सिर पटक रही थी। राजनीतिक पार्टियाँ भी कुछ बोलने से बचती फिर रही थी। अलगाववाद और पृथकवादी समूह कभी पाकिस्तान की ओर इशारा करते और कभी तंजीमों के बीच आपसी रंजिश के बारे मे बोलते हुए दिख रहे थे। किसी को कुछ भी समझ मे नहीं आ रहा था कि इतना भयंकर ब्लास्ट मस्जिद मे कैसे हो गया था। हाजी मोहम्मद उल मंसूर सैयद ही एक मात्र ऐसा आदमी था जिसको सबसे गहरा सदमा लगा था। पुलिस और फौज उससे पूछ रही थी कि इतना सेम्टेक्स मस्जिद के अन्दर आया कहाँ से था। तंजीमे पूछ रही थी कि अगर इतना सामान अन्दर रखा हुआ था तो उनको दिया क्यों नहीं था। भला हाजी साहब उस विस्फोट का क्या जवाब देते क्योंकि वह खुद भी इसके बारे मे पूरी तरह से अनजान थे। उनका बेटा जो इसके बारे मे जानता था अब वह भी गायब हो गया था। उन जिहादियों की जेब से निकले हुए सामान को मेज पर फैला कर मै उनका निरीक्षण करने मे जुट गया था।

दोपहर को ब्रिगेडियर चीमा का फोन आया… मेजर कहाँ हो? …सर यहीं आफिस मे हूँ। …इधर आओ। बस इतना कह कर उन्होंने फोन काट दिया था। कुछ देर के बाद मै चुपचाप उनके सामने खड़ा हुआ उनके चेहरे पर छायी हुई खुशी को पढ़ने की कोशिश कर रहा था। …मेजर, तुम्हारी खबर उस मस्जिद के बारे मे सही साबित हो गयी। फोरेन्सिक रिपोर्ट के आधार पर कहा जा सकता है कि उस मस्जिद मे भारी मात्रा मे असला और बारुद रखा हुआ था। पता चला है कि आज सुबह शार्ट सर्किट के कारण स्टोर मे रखे हुए प्लास्टिक एक्सप्लोसिव ने आग पकड़ ली थी। वह तो शुक्र है कि जुमे की नमाज के बाद मस्जिद खाली करा दी गयी थी। हमे सुनने मे आया है कि बहुत से लोग जो मस्जिद मे रहते थे उन्हें दो दिन के लिए घर भेज दिया गया था। वहाँ पर उस रात बस एक चौकीदार रह गया था जो इस हादसे का शिकार हो गया। मै चुपचाप सुन रहा था। …मेजर, मुझे पता चला है कि कल रात को दस बजे तुम और तुम्हारी बहन बाहर गये थे और फिर तुम अकेले ही सुबह लौट आये थे। इतना बोल कर वह रुक गये और फिर हँसते हुए बोले… मै उम्मीद करता हूँ कि इस हादसे मे तुम्हारा कोई हाथ नहीं होगा।  मैने जल्दी से कहा… सर कल रात को मै तो अपने घर पर था। मेरी बहन आज वहीं रुक गयी थी। वह कुछ देर मुझे घूरते रहे फिर मुस्कुरा कर बोले… तुम्हारी बहन सुरक्षित है जान कर मुझे खुशी हुई। मैने एक कागज का टुकड़ा उनके सामने रखते हुए बोला… सर, एक जिहादी की जेब से यह कागज मिला है। ब्रिगेडियर चीमा ने उस कागज को उठाया और कुछ देर उस पर लिखे हुए नम्बरों को ध्यान से पढ़ने के बाद वह मेरी ओर देख कर बोले… यह क्या है? उस कागज पर उर्दू मे 3401148, 7478351, 3409097, 7479295 लिखा हुआ था। …सर, यह फोन नम्बर तो नहीं हो सकते है। ऐसा लगता है कि यह उस जगह का कोई कोड है जहाँ वह असला-बारुद इस्तेमाल करना चाहते थे। …यह कागज मेरे पास छोड़ जाओ। मैने उनसे विदा ली और कमरे के बाहर निकल गया। मैने वह नम्बर पहले ही नोट कर लिये थे इसीलिये मै वह कागज का टुकड़ा उनके पास छोड़ कर वापिस अपने आफिस मे आ गया था।

शाम को आफिस समाप्त करके मै आलिया को लेने घर चला गया था। वहाँ पर पहुँच कर मुझे पता चला कि जामिया मस्जिद मे ब्लास्ट होने के कारण आज अब्दुल लोन का अफिस बन्द था। चाय पीते हुए अम्मी ने कहा… आलिया जब से आयी है तब से गुम सुम बैठी है। क्या तुम दोनो के बीच मे कोई लड़ाई हुई है? …नहीं अम्मी। सुबह से आलिया से मेरी कोई बात नहीं हुई है। कुछ देर मस्जिद मे हुए ब्लास्ट के बारे मे बात करने के बाद मैने आलिया से कहा… चलो। अंधेरा होने वाला है। आज सिक्युरिटी वैसे भी काफी है इसीलिए जल्दी कोम्पलेक्स मे पहुँच जाए तो अच्छा होगा। अम्मी से खुदा हाफिज़ करके आलिया चुपचाप मेरे साथ चल दी थी। …क्या हुआ आलिया? वह कुछ देर चुप रही फिर धीरे बोली… समीर, तुमने कितनी आसानी से चार आदमियों को मार दिया और तुम्हें जरा सा भी दुख नहीं हुआ। …क्या तुम्हें पता है कि वह तीन क्यों मारे गये थे?  उसने मेरी ओर देखा तो मैने कहा… वह मुझसे कह रहे थे कि तुम्हें वहाँ उनके पास छोड़ कर चला जाऊँ। वह तुम्हारे लिए मुझे भी मारने को तैयार थे। मुझे निशाने पर लेकर जब उनमे से एक तुम्हारे पास जाने के लिए बढ़ा तब मुझे उसको मारना पड़ा था। मुझे उस वक्त पता नहीं था कि इतना असला बारुद उस कमरे मे रखा हुआ है। वह मेरी बात चुपचाप सुन रही थी। …समीर, वह लाशें मेरी आँखों के सामने घूमती रहती है। उसे अपने सीने से लगा कर मैने कहा… सिर्फ इतना सोच कर देखो कि अगर वह सारा सामान मस्जिद से बाहर निकल गया होता तो कितने मासूम लोगो की लाश देखनी पड़ती। यह सोच कर देखो उन चार की मौत से कितनी सारी मासूम जिंदगियाँ बच गयी। उस रात वह अशांत रही परन्तु अगली सुबह तक वह अपने पुराने स्वरुप मे आ गयी थी। जब तक मै तैयार होकर बाहर निकला तब तक वह चहकने लगी थी। …समीर, आज आफिस मत जाना। हमे आज अब्दुल लोन के आफिस जाना है। वहाँ का काम समाप्त करके मुझे शबनम से मिलना है। हाँ…एक और बात है। कल दोपहर को जन्नत का फोन आया था। उसको कुछ पैसों की जरुरत है। जन्नत का नाम सुनते ही मैने चौंक कर आलिया की ओर देखा तो उसके चेहरे पर एक शरारती मुस्कान तैर गयी थी। आज मैने सोचा था कि ब्रिगेडियर चीमा से बात करके एक खोजी कुत्ते का प्रबन्ध किया जाए परन्तु आलिया ने आज का सारा कार्यक्रम पहले ही तय कर लिया था।

युनीफार्म की जगह सादे कपड़े पहन कर दस बजे तक हम अब्दुल लोन के आफिस की ओर निकल गये थे। शहर मे पहुँच कर आलिया ने मुझे उसके आफिस का रास्ता दिखाया था। उसका आफिस लोन परिवार की पुश्तैनी इमारत मे था। आज आफिस खुला हुआ था। हम अब्दुल लोन के आफिस मे प्रवेश करके सीधे अकाउन्टेन्ट के पास चले गये थे। असलम एक वृद्ध आदमी था। उसकी मेज के सामने खड़े होकर आलिया ने कहा… बट फार्म्स का बिल देना है। …इन्वोइस की कापी दिखाईए। बिना कुछ बोले आलिया ने चारों इन्वोइस उसके सामने रख दी थी। हर इन्वोइस की कापी अपने रजिस्टर मे लिखी हुई जानकारी से मिलान करने के बाद वह धीरे से बोला… आठ लाख कर बिल बना दो। …चार ट्रक माल के लिए? …हाँ भई हाँ। मैने जल्दी से चारों इन्वोइस के नम्बर बिलबुक मे लिख कर आठ लाख का बिल बना कर उसकी ओर बढ़ा दिया था।

जब वह बिल को चेक कर रहा था कि अचानक पीछे से एक स्त्री की आवाज मेरे कानों मे पड़ी… मिस्टर असलम क्या कर रहे है? मैने मुड़ कर देखा तो एक हिजाब पहने स्त्री चलती हुई आयी और मेरे साथ आकर खड़ी हो गयी थी। उस स्त्री को देख कर वह आदमी तुरन्त अपनी सीट से खड़ा होकर बोला… बट फार्म का बिल चेक कर रहा हूँ। उस स्त्री ने गौर से हम दोनो को देखा और फिर मुस्कुरा कर बोली… आप दोनो बट फार्म्स से आये है? आलिया ने जल्दी से कहा… जी। वैसे तो हमारी अम्मी आती थी। परन्तु उनकी तबियत खराब होने के कारण आज हमको आना पड़ा है। मै आलिया और मेरे साथ समीर है। एक भरपूर नजर हम पर डाल कर वह बोली…  यहाँ सेब का कारोबार मै संभालती हूँ। जरा बिल दिखाईए। उस वृद्ध ने बिल उस स्त्री की ओर बढ़ा दिया था। उसने एक नजर बिल पर डाल कर कहा… असलम मियाँ कितने और बिल अभी पेन्डिंग है। …इस बिल को मिला कर सीजन के अभी बारह बिल पेन्डिंग है। …ठीक है। आज मै यहीं हूँ। सारे पेन्डिंग बिल ले आईए। आज सारे बिल क्लीयर करके जाऊँगी। यह बोल कर वह जाने लगी तो मैने टोकते हुए पूछा… मोहतरमा, आपका परिचय। वह मुझे घूर कर देखते हुए बोली… मिसेज लोन। मैने जल्दी से कहा… हमारी अनिभिज्ञता के लिए माफ कीजिए। आलिया ही अब कारोबार का काम देखेगी इसीलिए आपके बारे मे पूछ लिया था। मुझे अनदेखा करके उसने आलिया की ओर मुस्कुरा कर कहा… तुम अगली बार जब यहाँ आओ तो मुझसे मिल कर जाना। इतना बोल कर वह मुड़ी और अपने केबिन की ओर चली गयी। उसके केबिन के बाहर उसकी नेम प्लेट लगी हुई थी… नीलोफर लोन। उस नाम को देख कर मैरे दिमाग मे घंटी बज गयी थी।

4 टिप्‍पणियां:

  1. धीरे धीरे कहानी अपने रंग में आने लगी है और समीर का आलिया के साथ मिलकर इतना असला बारूद को ठिकाना लगाना सच में बहुत बहादुरी वाला किस्सा था मगर अभी अभी आई जन्नत का चित्र थोड़ा नकारात्मक लग रहा है जैसे वो किसी खास मकसद लिए समीर के निकट होना चाहती है खैर यह अंक पढ़कर मजा बहुत आया।

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  2. अगले अंक के इंतेजार में।

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    1. माफ करना मित्र। काम से बाहर गया हुआ था। जैसे ही समय मिला तो मैने नया अध्याय अपडेट कर दिया। शुक्रि्या।

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