मंगलवार, 29 नवंबर 2022

 

 

   काफ़िर-18

 

मै अपने आफिस मे बैठ कर पुरानी इंटेल रिपोर्ट्स देख रहा था। नीलोफर नाम को मैने बहुत पहले एक इंटेल रिपोर्ट मे देखा था। लोन परिवार से जुड़े होने के कारण अचानक नीलोफर मेरी निगाह मे आ गयी थी। एमआई की रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान मे एक यूएस एयरबेस पर सुसाईड बाम्बर के हमले की जाँच मे उसका नाम आया था। वह लड़की पाकिस्तानी मूल की थी। उस हमले के बाद से वह लड़की पाकिस्तान से फरार हो गयी थी। सीआईए ने उसको ब्लैक लिस्ट मे डाल कर इसकी जानकारी औपचारिक तौर पर भारतीय आईबी को भी दे दी थी। उसी रिपोर्ट का जिक्र करते हुए आर्मी की इंटेल रिपोर्ट मे बताया गया था कि वह लड़की मदरसों के जरिये गरीब बच्चों और बच्चियों के आत्मघाती दस्ते बनाया करती थी। आज नेमप्लेट पर उस नाम को देखते ही मुझे वह रिपोर्ट याद आ गयी थी। नीलोफर की तीन रिपोर्ट्स मेरे सामने मेज पर पड़ी थी। उन रिपोर्ट्स मे बस उसका और उसके कार्यों का विवरण दिया हुआ था परन्तु उसकी कोई फोटो नहीं थी। जो नीलोफर का विवरण मेरे सामने रखा हुआ था और जिस नाजनीन को मैने लोन के आफिस मे देखा था उनमे मुझे कोई समानता नहीं दिख रही थी।

बहुत देर एमआई के डेटाबेस के साथ मगजपच्ची करने के बाद भी जब मैं किसी नतीजे पर नहीं पहुँचा तो मैने अम्मी को फोन किया… हैलो। अम्मी की आवाज सुनते ही मैने कहा… अम्मी, मै समीर बोल रहा हूँ। …बोलो बेटा कैसे फोन किया था। …अम्मी हमने चारों इन्वोईस पर आठ लाख का बिल अब्दुल लोन के आफिस मे आज दे दिया है। …बेटा अच्छा किया क्योंकि तुम्हारे अब्बा काम के बारे मे पूछ रहे थे। …अम्मी आप क्या कभी नीलोफर लोन से मिली है? …यह कौन है बेटा? …वह हमें अब्दुल लोन के आफिस मे मिली थी और वह सेब का कारोबार संभालती है। वह अपने आप को मिसेज लोन बता रही थी। …बेटा, अब्दुल लोन की बीवी को मरे हुए दस साल से ज्यादा हो गये है। तुम्हें कोई गलतफहमी हो गयी होगी। …हो सकता है अम्मी। फिलहाल मै आफिस से बोल रहा हूँ। अच्छा खुदा हाफिज़। कह कर मैने फोन काट दिया था।

यह नीलोफर लोन किसकी बीवी है? यह सवाल मेरे दिमाग मे घूम रहा था। घड़ी पर नजर डाली तो आफिस समाप्ति का समय हो गया था। अपना आफिस बन्द करके मै बाहर निकल आया था। घर पहुँच कर भी मै नीलोफर को अपने दिमाग से निकाल नहीं पाया था। आलिया के साथ बैठ कर चाय पीते हुए मैने नीलोफर लोन का जिक्र आलिया से छेड़ दिया था। अम्मी से हुई बातों से उसे अवगत करा कर मैने पूछा… नीलोफर के बारे मे कौन बता सकता है? …शाहीन से पूछ कर देखते है। यह बोल कर आलिया ने शाहीन का फोन लगाया और बात करने बैठ गयी। कुछ देर के बाद आलिया ने कहा… लोन परिवार के बारे मे वह ज्यादा नहीं जानती है लेकिन उसने बताया है कि आजकल उसके अब्बा की हालत ठीक नहीं है। सुबह से लोगों का तांता घर मे लगा हुआ है। अब्बा भी आज हाजी साहब से मिलने के लिये आये थे। …आलिया, अगली बार जब तुम अब्दुल लोन के आफिस जाओ तो नीलोफर से जरुर मिलना। आलिया ने कुछ नहीं कहा बस उसने अपना सिर हिला दिया था। बड़ी अजीब बात थी कि कश्मीर की राजनीति व कारोबार मे दबादबा होने के बावजूद लोन परिवार के बारे मे जानकारी का आभाव था।

…समीर, एक बात और शाहीन ने बतायी थी कि उसके भाईजान ब्लास्ट के बाद से गायब है। इस वजह से उसके परिवार वाले बड़े चिंताग्रस्त है। पुलिस ने उसके अब्बा का जीना हराम कर रखा है। वह रोज पूछताछ करने के लिए आ जाते है। …यह तो होना ही था। तुमने अपनी आँखों से देखा था कि उस कमरे मे कितना असला बारुद रखा हुआ था। …समीर यह सारा सामान भला पाकिस्तान से यहाँ तक कैसे पहुँच गया क्योंकि यहाँ से अपने घर पहुँचने मे हमारी जीप की दस जगह जाँच हो जाती है। इसका तो यही मतलब निकाला जा सकता है कि सरकार और प्रशासन की देख रेख मे ही यह सारा सामान मस्जिद पहुँचा होगा। …तुम ठीक कह रही कि बिना इनके साथ साँठ-गाँठ किये वह असला बारुद मस्जिद तक नहीं पहुँच सकता था।। परन्तु मेरे लिये चिंता की दूसरी बात है कि इतने असले बारुद से वह भारतीय फौज से तो टक्कर नहीं ले सकते थे तो उनका असली उद्देश्य क्या था। आलिया मुझे हैरतभरी नजरों से देखती रह गयी परन्तु मेरे दिमाग मे बहुत से सवाल उठ रहे थे परन्तु जवाब किसी एक का भी नहीं था।

अगले कुछ दिन आफिस मे इंटेल रिपोर्ट्स के साथ जूझते हुए निकल गये थे। जब से जामिया मस्जिद मे ब्लास्ट हुआ था तब से पाकिस्तान और कश्मीरी तंजीमो के बीच मे काफी हलचल मची हुई थी। इसी के कारण कश्मीर के सभी हिस्सों मे पत्थरबाजी और फौज के खिलाफ मोर्चों की घटनाएँ भी बढ़ गयी थी। इसी दौरान एक दिन शाम को शबनम से हमारी मुलाकात हुई थी। मुझे वह बातचीत से काफी संजीदा लड़की लगी थी। उस दिन मुझे पता चला था कि वह अदा के साथ दसवीं क्लास तक पढ़ी थी। मुझे लग रहा था कि आलिया के साथ उसकी दोस्ती प्रगाड़ होती जा रही थी। उस से विदा लेकर जब हम लौट रहे थे तब आलिया ने कहा… लगता है समीर वह तुम पर मर मिटी है। मैने उस वक्त तो आलिया को झिड़क दिया था लेकिन अगले दिन जब उसने मेरे मोबाईल पर काल किया तो मै उसके प्रति थोड़ा असहज हो गया था। उसकी काल तो पेमेन्ट के सिलसिले मे आयी थी परन्तु उसकी बातचीत से साफ लग रहा था कि वह मुझसे कुछ और कहना चाहती थी। उसी दिन मैने मन ही मन उससे दूरी बनाने का निर्णय ले लिया था।

आफिस मे दो दिन सारी इकठ्ठी की हुई जानकारी को समेटने मे निकल गये थे। मेरे निशाने पर चार सेब के मुख्य व्यापारी और लगभग पाँच मुख्य ट्रांसपोर्टर आ गये थे। बस एक काम शेष था कि इस कारोबारी साजिश का मुख्य सूत्रधार कौन था? यह जानकारी मुझे सिर्फ व्यापारियों और ट्राँस्पोर्टरों के आफिस से ही मिल सकती थी। एक बार फिर अब मुझे शबनम की जरुरत महसूस होने लगी थी। एक शाम आलिया ने मुझसे कहा… समीर, जन्नत का आज फिर फोन आया था। वह तुमसे किसी जरुरी काम से आज मिलना चाहती है। एक बार उससे मिलने मे क्या बुराई है। फरहत की ओर से भी कोई समाचार अभी तक नहीं मिला था। इसी बहाने दोनो मिल जाएँगें यही सोच कर उस शाम हम दोनो जन्नत से मिलने के लिए चल दिये थे। जब हम फरहत के घर पहुँचे तो उसकी बीवी ने बताया कि वह आज दोपहर को ही ट्रक लेकर श्रीनगर से बाहर गया था। जब आलिया ने जन्नत का पता पूछा तो उसने इशारे से जन्नत का घर दिखा दिया था। उसको वहीं छोड़ कर हम जन्नत के घर की ओर बढ़ गये थे। हम जन्नत के घर पहुँचे तो वह अपने नवजात शिशु को दूध पिला रही थी। उसको इस हालत मे देख कर हम दोनो झेंप कर वापिस जाने के लिये मुड़े तो उसने आवाज देकर हमे रोक लिया।  

…आप अन्दर आ जाईए और यहीं बैठ जाईए। यह कह कर जन्नत ने अपनी गोदी से दूध पीते हुए बच्चे को हटा कर जमीन पर लिटा दिया और अपने सुडौल नग्न स्तन का प्रदर्शन करते हुए बेशर्मी से बोली… यह दूध से भरे हुए हैं और कम्बख्त पूरा पीता ही नहीं है। अपने फूले हुए स्तनाग्र को दबा कर दूध टपकाते हुए उसने एक लम्बी आह भरी और फिर धीरे से बोली… इनमें बहुत दर्द रहता है। जब से वह कमबख्त जेल गया है तब से ऐसा कोई नहीं है जो इनसे पूरा दूध सोख ले। हाय अल्लाह कैसे पत्थर से हो गये है। आलिया की ओर देख कर वह बोली… आलिया बीबी, हाथ लगा कर देखिए। आलिया एक पल के लिए झिझकी और फिर आगे बढ़ कर उसके स्तन पर उँगलियॉ फिराते हुए बोली… बाजी सच मे पत्थर सा सख्त है। उसके फूले हुए स्तनाग्र से दूध टपक रहा था। आलिया धीरे से उस फूले हुए स्तनाग्र को छेड़ते हुए बोली… तो फिर तुम इसका दर्द कैसे कम करती हो? वह मेरी ओर बेशर्मी से आँख मार कर बोली… कोई मर्द जब इनसे सारा दूध निचोड़ लेगा तो दर्द अपने आप समाप्त हो जाएगा। एजाज जब यहाँ था तो बचा हुआ दूध वह पी जाता था परन्तु अब किससे कहूँ। ऐसी हालत मे मेरी कौन मदद करेगा?

मेरे लिए अब यह दृश्य असहनीय होता जा रहा था। मैने जल्दी से कहा… तुम मुझसे क्यों मिलना चाहती थी? वह मेरी ओर देखते हुए बोली… मुझे एजाज से मिलने जम्मू जाना है। उसने मुझे बुलाया है। क्या आप मेरे साथ चल सकते है? मै कोई जवाब देता उससे पहले आलिया ने कहा… हाँ क्यों नहीं। समीर, एक दिन की तो बात है। रात को बस पकड़ कर सुबह जम्मू पहुँच जाएँगें और दिन भर एजाज भाई के साथ बिता कर रात को श्रीनगर के लिए चल देंगें। …आलिया मेरे पास समय नहीं है। अगर इनकी पैसों की समस्या है तो वह मै इन्हें दे सकता हूँ। यह किसी और को अपने साथ लेकर चली जाए। आलिया तुनक कर बोली… समीर, मै जन्नत के साथ जा रही हूँ। तुम्हे नहीं चलना तो कोई बात नहीं। जन्नत कब जाना है? …एजाज से कल सुबह मिलने का समय मिला है। आलिया जानती थी कि मै उसे कभी अकेले इसके साथ नहीं भेज सकता था। बात बिगड़ती देख कर मैने जल्दी से कहा… आलिया मै सिर्फ एक ही शर्त पर जन्नत के साथ जाऊँगा कि तुम हमारे साथ नहीं जाओगी। वह तुरन्त बोली… मै क्यों नहीं जा सकती? …आलिया, जेल मे मिलने जाना किसी भी लड़की के लिए वैसे ही बेहद अपमानजनक होता है। वह न जाने तुम्हारे साथ किस तरह से पेश आएँगें। जन्नत उसकी बीवी की हैसियत से जा रही है तो शायद वह कुछ न करें परन्तु तुम किस हैसियत से उससे मिलने जाओगी। मै तुम्हें तो वहाँ हर्गिज जाने नहीं दे सकता। अब तुम सोच लो। मैने उसको अपना निर्णय सुना दिया था।

आलिया ने मुझे बाहर जाने का इशारा किया तो मै चुपचाप उठ कर बाहर निकल गया। कुछ देर के बाद आलिया घर से बाहर निकल कर आयी और मेरे पास आकर बोली… चलो फरहत की बीवी के पास चलते है। मै उसके साथ फरहत के घर की ओर चल दिया। फरहत की बीवी अपने घर के बाहर ही खड़ी थी। आलिया उसके पास जाकर बोली… बाजी कल सुबह जन्नत को जम्मू जेल मे एजाज से मिलना है। क्या तुम उसके बच्चे को एक दिन के लिए अपने पास रख लोगी? वह कुछ सोच कर बोली… कोई बात नहीं। मै अपने पास रख लूँगी। क्या आप दोनो भी उसके साथ जा रहे है? आलिया ने मेरी ओर इशारा करके कहा… वह समीर के साथ जा रही है। अचानक उसने निगाह उठा कर मेरी ओर देखा तो जैसे ही हमारी आँखें चार हुई तो मैने झेंप कर नजरें घुमा ली थी। मुझे उसकी आँखों मे चंचलता और उपहास का मिश्रण दिखा था। मैने जल्दी से आलिया से कहा… अब चलें क्या? …ठहरो। जन्नत अभी आ रही है। कुछ देर के बाद बुर्का ओढ़े हाथ मे बच्चा लिये जन्नत आती हुई दिखाई दी तो आलिया ने कहा… आओ चलें। फरहत की बीवी को खुदा हाफिज़ कह कर मै सड़क की ओर चल दिया था।

कुछ देर के बाद आलिया और जन्नत को अपने साथ लेकर मै घर की दिशा मे जा रहा था। …कहाँ जा रहे हो? …तुम्हें अम्मी के पास छोड़ कर हम टैम्पो से बस स्टैन्ड चले जाएँगे। घर पहुँच कर मैने जीप एक किनारे मे खड़ी करके उसकी चाबी आलिया को देते हुए कहा… परसों सुबह तक लौट आऊँगा। वह गेट खोल कर घर के अन्दर चली गयी और जन्नत के साथ मै सड़क की ओर चल दिया था। बाहर सड़क पर पहुँचते ही हमे टैम्पो मिल गया था। हमे बस स्टैन्ड पहुँचने मे ज्यादा समय नहीं लगा था। अंधेरा गहरा हो गया था। बस स्टैंड पर भी कोई ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी। पूछने पर पता चला कि जम्मू की बस रात को दस बजे छूटेगी। दो टिकिट लेकर मै जन्नत के पास पहुँच कर बोला… अभी एक घन्टा है। कुछ खा लो क्योंकि फिर सारी रात सफर करना है। वह कुछ नहीं बोली बस उठ कर मेरे साथ चल दी थी। मैने एक बात नोट की थी कि मुझे पता नहीं कि आलिया और उसके बीच मे क्या बात हुई थी लेकिन वह जब से घर से चली थी तब से वह चुप थी। अब मै भी उसकी ओर से थोड़ा सहज हो गया था। खाना खा कर हम वापिस बस स्टेन्ड मे आ गये थे। जम्मू जाने वाली बस तब तक प्लेटफार्म पर लग गयी थी।

बस मे अभी इक्का-दुक्का सवारी बैठी थी। बस मे घुसते ही जन्नत ने पहली बार धीरे से कहा… आप खिड़की के पास बैठ जाईए। मुझे बाहर देखने से चक्कर आते है। मै खिड़की की तरफ बैठ गया और वह मेरे साथ बैठ गयी थी। बस चलने के समय तक देखते-देखते आधी बस भर गयी थी। ठीक दस बजे बस जम्मू के लिए रवाना हो गयी थी। जब तक श्रीनगर शहर को पार किया तब तक तो बस रौशन रही थी लेकिन शहर से बाहर निकलते ही सारी लाइट बुझा कर बस घुप्प अंधेरे मे डूब गयी थी। बस का लगातार शोर और बार-बार के दचके ने आधे घंटे मे ही सारे जिस्म की चूलें हिला दी थी। जन्नत ने धीरे से मेरे कान मे कहा… मेरे सीने मे बहुत दर्द हो रहा है। कुछ कीजिए। मुझे समझ मे नहीं आया कि वह क्या करने के लिए कह रही है। एक बार फिर से वह मेरे कान मे बोली… आप दूध पी लिजिए। मैने उसकी ओर घूर कर देखते हुए कहा… यहाँ पर। …आप लेट कर मेरी गोदी मे सिर रख लिजिए। यह बोल कर उसने अपने बुर्के के हुक खोल दिये थे। मैने एक नजर घुमा कर अपने सहयात्रियों को देखा तो कुछ आँख मूंद कर बैठे हुए थे और कुछ खाली सीट पर लम्बे हो गये थे। मैने झिझकते हुए सीट पर लेटते हुए अपना सिर उसकी गोदी मे रख दिया। वह तुरन्त मेरे चेहरे पर झुक गयी।

उसके नग्न स्तन ने मेरे होंठों पर जैसे ही स्पर्श किया तुरन्त जन्नत ने अपना ऐंठा हुआ स्तनाग्र पकड़ कर मेरे मुख के भीतर कर दिया। जुबान की पहली जुम्बिश के साथ ही दूध से मेरा मुख भर गया था। उसके मुख से ठंडी आह निकल गयी थी। मैने उसके स्तनाग्र को अपने होठों मे दबा कर उसका रस सोखना आरंभ कर दिया था। मेरा एक हाथ उसके पत्थर से स्तन को दबा रहा था और मेरे होंठ उसके स्तनाग्र को मुख मे दबाये रस सोख रहे थे। बस के शोर मे उसकी मीठीं आहें दब कर रह गयी थी। थोड़ी ही देर मे उसका स्तन अपने कोमल स्वरुप मे लौट आया था। वह थोड़ा सा पीछे हुई तो उसका स्तन मेरे मुख से निकल गया था। मैने उसे पकड़ने की कोशिश की तो उसने जल्दी से दूसरा स्तन मेरी ओर बढ़ा दिया था। एक बार फिर से मैने उसके पत्थर जैसे स्तन को मुलायम करने मे लग गया था। मुश्किल से आधे घंटे मे उसके दोनो कलश खाली हो गये थे। पहली बार मेरा ध्यान उसके नग्न सीने की ओर गया तो मै चौंक गया था। उसने बुर्के के नीचे कुछ नहीं पहना था। उसके नग्न पेट को सहलाते हुए मेरी उँगलियाँ नाभि से सरकते हुए नीचे की ओर बढ़ गयी थी। बालों के गुच्छे मे उँगली उलझते ही वह उचक कर सीधे बैठ गयी थी। मेरी उँगली घने बालों को सुलझाते हुए उसके स्त्रीत्व के द्वार को ढूँढ रही थी। जैसे ही मेरी उंगली ने द्वार के मुख पर स्पर्श किया तो वह मचल गयी थी। उसके मुख से एक दबी हुई किलकारी निकल गयी थी। मेरी उँगली उस द्वार को खोल कर अन्दर सरक गयी और उसके स्त्रीत्व के अंकुर पर जा कर टिक गयी थी। बाकी रगड़ने का काम बस ने कर दिया था। वह मेरा सिर पकड़े काफी देर तक बैठी रही थी। अनंतनाग तक न जाने वह कितनी बार स्खलित हुई थी। बस के रुकते ही मै उठ कर बैठ गया और उसने जल्दी से अपने बुर्के के हुक लगा लिये थे। अपनी उत्तेजना को शांत करने के लिए मै बस से उतर कर चहलकदमी करने लगा। रात की ठंडक भी बढ़ गयी थी। जन्नत भी बस से उतर कर होटल के अन्दर चली गयी थी। कुछ देर के बाद जब वह बाहर आयी तो उसकी चिलमन हट गयी थी। उसका धुला हुआ चेहरा बल्ब की रौशनी मे गुलाबी दिख रहा था। हमने चाय पी और फिर बस मे जाकर बैठ गये थे। दस मिनट के स्टाप के बाद एक बार फिर से बस चल पड़ी थी।

मै खिड़की के बाहर अनंतनाग को पीछे छूटता हुआ देख रहा था। एक बार फिर से बस अंधेरे मे डूब गयी थी। मै आँखे मूंद कर बैठ गया कि तभी उसका हाथ मेरी जाँघ को सहलाता हुआ मेरे पौरुष पर पहुँच कर स्थिर हो गया था। उसकी उँगलियाँ मेरे अर्धसुप्त पौरुष को जगाने की कोशिश मे लग गयी थी। अचानक वह अपना सिर मेरी जाँघ पर रख कर सीट पर लेट गयी। उसने अपने गालों को मेरे पाजामे मे छिपे हुए पौरुष पर धीरे-धीरे रगड़ना आरंभ कर दिया था। उसकी उँगलियाँ मेरे पाजामे को ढीला करने मे जुट गयी थी। मैने धीरे से उसके चेहरे को हटाया और बाक्सर का बटन खोल कर उत्तेजना से झूमते हुए अजगर को आजाद कर दिया और सामने वाली सीट पर सिर टिका बैठ गया था। वह एक नागिन की भांति अपनी लपलपाती हुई जुबान से मेरे जनानंग को नापती हुई सिरे पर पहुँच कर रुक गयी। उसके होंठ ने सिरे को धीरे से चूमा और फिर उसके होंठ खुले और मेरे जनानंग के सिर को दबा कर उसका रस सोखने लगी। उसकी उँगलियों ने झूमते हुए अजगर को गर्दन से पकड़ा और अपना मुख खोल कर धीरे से उत्तेजना से फूले हुए सिर को मुख के अन्दर ले लिया। उसके होंठ और जुबान ने निरन्तर फँसे हुए सिर पर वार करना आरंभ कर दिया और उसकी उँगलियाँ ऐठें हुए अजगर को गरदन से जड़ सहलाने मे व्यस्त हो गयी थी। वह काफी देर तक मेरे जनानंग से उलझी रही थी। मेरा हाथ उसकी उन्नत पहाड़ियों को कभी सहलाता और कभी मिचमिचा का निचोड़ देता और कभी उनके शिखर को उँगलियों के बीच फँसाकर दबा देता और कभी तरेड़ मार कर धीरे से सहला देता था। वह आधे से ज्यादा मेरा पौरुष निगल गयी थी। उसकी जुबान और होठों का घर्षण धीरे-धीरे मुझे चरम सीमा की ओर लेजा रहा था। एकाएक वह रुक गयी और बस के हिलने डुलने के बावजूद मैने महसूस किया कि किसी कोमल चीज ने मेरे पौरुष को अपने शिकंजे मे जकड़ लिया है और उसका रस सोख रहा है। मेरी आँखे स्वत: ही कामावेश से बन्द हो गयी और फिर एक झटके से बांध टूट गया। जिस्मानी लावा जो काफी देर से उबल रहा था वह बेरोकटोक बहने लगा। वह चुपचाप कामरस को पीती चली गयी। कुछ देर के बाद मुझे महसूस हुआ कि वह मुँह मे मेरे कामांग को लिये गहरी नींद मे खो गयी थी। मैने धीरे से अपने सुप्तअंग को कपड़ों मे छिपा लिया और पाजामे को बांध कर सामने की सीट पर सिर टिका कर सो गया था।

कब बनिहाल सुरंग निकली पता ही नहीं चला। उधमपुर पर जब बस रुकी तब आवाजें सुन कर मेरी नींद टूट गयी थी। मैने उसके सीने पर से अपने हाथ हटा कर बुर्के के हुक लगा कर उसको धीरे से उठाया तो वह उचक कर बैठ गयी। चारों ओर रौशनी देख कर उसने झट से उसने अपना चेहरा चिलमन से ढक लिया था। …यह उधमपुर है। अभी कुछ देर का सफर और है। तुम जाकर फ्रेश हो जाओ। उसने अपने बुर्के को ठीक किया और बस से उतर कर ढाबे मे चली गयी। मै भी अपने कपड़े व्यवस्थित करके बस से नीचे उतर कर टायलेट की ओर चला गया था। कुछ देर के बाद हम दोनो ठंडे पानी से चेहरा धोकर चाय पीने के लिए खड़े हो गये थे। रात की सुस्ती उतर चुकी थी। जब हम जम्मू पहुँचे तब तक सुर्य की पहली किरण ने आसमान को रौशन कर दिया था।

जम्मू बस स्टैन्ड पर उतर कर हम सीधे जम्मू जेल पहुँच गये थे। कैदियों से मिलने वालों की लाईन लगनी आरंभ हो गयी थी। नौ बजे से एन्ट्री मिलनी थी उससे पहले कागज बनवाने थे। जन्नत को लाईन मे खड़ा करके मै जेल सुप्रिन्टेन्डेन्ट से मिलने के लिए चला गया था। उसको अपना परिचय देकर मैने एजाज की फाईल देखने की इच्छा जाहिर की तो उसने वह फाईल मंगा कर मेरे सामने रख कर बोला… मेजर साहब, सभी जानते है कि ऐसे मामलों मे सारा दोष ड्राईवर अपने सिर पर ले लेता है। इसीलिए पुलिस सिर्फ जाँच के नाम पर खानापूर्ती करती है और फिर जेल भेज देती है। …जनाब आपकी जेल मे उसके जैसे कितने और लोग सजा काट रहे है? …मेजर साहब, बहुत लोग है। कुछ को सजा हो गयी है और कुछ कोर्ट मे उलझे हुए है। फिलहाल कोई संख्या बताना मुश्किल होगा। …इसकी बीवी को आज मिलने के लिए बुलाया गया है। यह चुँकि हथियारों का मामला है तो मै उसकी बीवी को लेकर यहाँ उसका हितैषी बन कर आया हूँ। उसकी बीवी के सामने उससे मिल कर कुछ पूछना चाहता हूँ। …ठीक है। उसकी बीवी के साथ आपका भी पास बनवा देता हूँ। मुझे नहीं लगता कि वह अपना मुँह खोलेगा लेकिन फिर भी आप कोशिश करके देख लिजिए। जेल सुप्रिटेन्डेन्ट ने दोनो पास मेरे हवाले कर दिये और मै उसका शुक्रिया अदा करके जन्नत के पास जाकर खड़ा हो गया था।

नौ बजे लोहे का दरवाजा खुल गया था। सुरक्षाकर्मी एक-एक करके पास देख कर मिलने वालो को अन्दर जाने दे रहे थे। जन्नत का नम्बर आया तो उसका पास देख कर पुलिस वाले ने महिला पुलिस की ओर भेज दिया और जब मेरा नम्बर आया तो मुझे दूसरी ओर भेज दिया गया था। एक छोटे से कमरे मे मेरी तलाशी ली गयी और जैसे ही मेरा आईकार्ड देखा तो वह तुरन्त सावधान हो गये थे। किसी ने कुछ नहीं बोला बस मेरे हाथ पर एक मुहर लगा कर मुझे अन्दर जाने का रास्ता दिखा दिया था। जेल के अहाते मे खड़ा होकर मै जन्नत का इंतजार करने लगा। कुछ देर के बाद जन्नत दरवाजे से बाहर आती हुई दिखायी दी तो मै उसकी ओर चला गया। हम चुपचाप चलते हुए एक हाल मे आ गये थे। सैकड़ों कैदी जाली के पीछे खड़े हुए अपने सगे संबन्धियों को ढूँढ रहे थे। मैने तो एजाज को बहुत पहले देखा था इसीलिए मैने यह काम जन्नत पर छोड़ दिया था। वह बेचैनी से एजाज की तलाश मे जुटी हुई थी। एकाएक वह हाथ हिलाते हुए एक व्यक्ति की ओर बढ़ी तो मै भी उसके पीछे चल दिया था। देखने मे वह अधेड़ उम्र का व्यक्ति लग रहा था। जन्नत को देखते ही वह उसकी ओर रोते हुए आ गया था। पहले कुछ मिनट तो दोनो एक दूसरे से शिकायत करने लगे थे। मै चुपचाप जन्नत के साथ खड़ा हुआ दोनो की बातें सुन रहा था।

अचानक एजाज बोला… तू यहाँ अकेली आयी है? जन्नत ने मेरी ओर इशारा करते हुए कहा… मै समीर के साथ आयी हूँ। …यह कौन है। अचानक वह घुर्रा कर बोला। मैने जल्दी से कहा… एजाज भाई, मै समीर बट। मकबूल बट का बेटा। आपके अब्बा रफीक मियाँ हमारे फार्म पर काम करते है। यह सुनते ही एजाज की आँखें फिर से बहने लगी थी। वह बार-बार एक ही बात बड़बड़ाने लगा… समीर, मुझे बाहर निकालो। मै मर जाऊँगा। जब कुछ देर के बाद वह शांत हो गया तब मैने उसे फरहत की बातों से अवगत करा कर पूछा… एजाज भाई जब तक आप अपनी बेगुनाही का कोई पुख्ता सुबूत नहीं देंगें तब तक कुछ नहीं हो सकता। आपके लिए वकील तो मै खड़ा कर दूँगा परन्तु उसे भी आपको बेगुनाह साबित करने के लिए सुबूत चाहिए। एजाज कुछ देर तक चुप रहा और फिर धीरे से बोला…  समीर, मुझे रज्जाक साहब ने सिर्फ इतना बताया था कि मुझे वह पाँच पेटियाँ मस्जिद-ए-जाबिल के इमाम हाजी जुबैर मोहम्मद के हवाले करनी है। मुझे यह तो पता था कि इन पेटियों मे कुछ अवैध सामान है परन्तु यह नहीं पता था कि इसमे असला बारुद है। अब तुम्हीं बताओ कि मै अपनी बेगुनाही का सुबूत कैसे दूँ। …अच्छा, आपने पहले भी क्या इसी प्रकार से सेब की पेटियाँ रज्जाक साहब के कहने पर वहाँ पहुँचाई थी? …समीर, रज्जाक साहब के कहने पर मैने तो ऐसी पेटियाँ पिछले चार साल मे बहुत सी जगह पहुँचाई है। …कौन सी जगह पर साफ-साफ बताईए। अबकी बार एजाज कुछ सोच कर बोला… मेवात, अजमेर, अहमदाबाद, सूरत, मुंबई, औरंगाबाद, हैदराबाद, पटना और आजमगढ़ तक पहुँचाई है। फिलहाल मुझे सबके नाम याद नहीं लेकिन सभी जगह ऐसी पेटियाँ मैने किसी मौलवी या मौलाना के हवाले करी थी। कुछ देर एजाज से बात करके मैने कहा… एजाज भाई जब तक मै सुबूत इकठ्ठा करता हूँ तब तक अपना मुँह मत खोलना क्योंकि तुम्हारी जान को खतरा है। आप दोनो बात करो मै हाल के बाहर इनका इंतजार कर रहा हूँ। …समीर, एक काम करना। जन्नत के साथ जाकर इमाम साहब से मिल कर उन्हें मेरे पकड़े जाने की खबर दे देना जिससे वह जेल मे अपने लोगो को बता दें कि मै उनका आदमी हूँ। उन दोनो को वहीं छोड़ कर मै जेल से बाहर आ गया था।

एजाज से कुछ महत्वपूर्ण जानकारी मिल गयी थी। अब उन जानकारियों को गहरायी से जाँचना मेरा काम था। इसने कोई शक नहीं था कि गोल्डन ट्रांसपोर्ट कंपनी का मालिक अब्दुल रज्जाक सैयद इस खेल मे सिर तक डूबा हुआ था। मै अभी उसके बारे मे सोच रहा था कि घँटी बज गयी थी। पहले बैच का समय समाप्त हो चुका था। दूसरे बैच का समय एक घंटे के बाद आरंभ होना था। बाहर निकलती हुई भीड़ मे मेरी नजर जन्नत को ढूँढ रही थी। वह धीमे कदमों से चलती हुई मेरे पास पहुँच कर बोली… समीर, वह बहुत डरे हुए है। इमाम साहब के पास चलो। एक खाली आटो जाते हुए देख कर मैने हाथ दिखा कर रोक लिया और उसमे बैठ कर हम मस्जिद-ए-जाबिल की ओर चल दिये थे। …जन्नत एक बजने वाला है। अब इमाम साहब चार बजे के बाद ही मिल सकेंगें। क्यों न किसी होटल मे रुक कर दो-तीन घंटे आराम करके इमाम साहब से मिल कर फिर आज रात की बस पकड़ लेंगें। जन्नत ने हामी भर दी तो मैने आटो चालक से कहा… मियाँ उस मस्जिद के आस-पास किसी सस्ते से होटल ले चलो। उसने हमे एक सस्ते से होटल के बाहर छोड़ते हुए कहा… भाईजान, वह सामने जो मीनार दिख रही है। वही मस्जिद-ए-जाबिल है। एक नजर उस मीनार पर डाल कर उस आटो का हिसाब करके हम होटल मे चले गये थे।

हमने एक कमरा ले लिया और वहीं कुछ खाकर कमरे मे चले गये थे। जन्नत बाथरुम मे घुस गयी और रात भर की थकान से मै बिस्तर पर लस्त होकर पड़ गया था। कुछ देर के बाद वह बाथरुम से नहा धो कर बाहर निकल कर बोली… समीर बहुत दर्द हो रहा है। मैने आँख खोल कर उसकी ओर देखा तो देखता रह गया। जन्नत निर्वस्त्र होकर बाथरुम के दरवाजे के साथ खड़ी हुई मुझे देख रही थी। मदभरी गदरायी हुई नवयौवना सैकड़ों बिजलियाँ मेरे दिल पर गिरा रही थी। दूध से भारी स्तन तने हुए थे। उसने अपने स्तन को धीरे से दबाया तो तने हुए शिखर से दूध की बूँद छलक गयी थी। भरा हुआ बदन, पतली कमर और गोल उभरे हुए नितंब देख कर मेरे जिस्म के एक हिस्से मे खून का दबाव बढ़ गया था। मै उठ कर बैठ गया तो वह मेरे पास आकर कर खड़ी हो गयी थी। मैने उसके गुदाज नितंबो को अपने पंजों मे जकड़ कर अपने करीब खींच लिया और उसके कठोर स्तनाग्र को अपने होंठों के बीच दबाया तो उसके मुख से एक दर्दभरी आह निकल गयी थी। उसके नितंबों को गूँथते हुए उसके स्तन से दूध सोखना आरंभ कर दिया था। कुछ ही पलों मे वह खुल कर सिस्कारियाँ ले रही थी।

मुझसे अब रुका नहीं जा रहा था। मैने जल्दी से अपने कपड़े उतार कर एक ओर फेंक दिये और उसे कमर से पकड़ कर मैने अपने उपर खींच लिया। वह आँखे मूंदे मेरे उपर गिर गयी और मैने करवट लेकर उसे अपने जिस्म के नीचे दबा कर कहा… जन्नत, तुम्हारा दूध पी कर मैने गलती कर दी क्योंकि अब तुम्हारे साथ कुछ भी करना मेरे लिये अब हराम हो गया है। वह तड़प कर बोली… बाद मे तौबा कर लेना लेकिन पहले इनको खाली करो। मैने उसकी एक नहीं सुनी और उत्तेजना से झूमते हुए अजगर को गर्दन से पकड़ कर उसके स्त्रीत्व के द्वार की दरार पर रगड़ा और फिर कमर पर थोड़ा दबाव बढ़ाया तो झूमता हुआ अजगर द्वार खोल कर अन्दर सरकता चला गया। जन्नत के मुख से एक गहरी आह निकल गयी थी। अपने आप को पीछे खींच कर जब मैने पूरी ताकत से अपनी कमर को झटका दिया तो सारी बाधाएँ खोलते हुए मेरा जनानंग जड़ तक धंस गया था। उसके मुख से उत्तेजना मे किलकारी छूट गयी थी। मैने उसके स्तन पर अपने होंठ टिका दिये और दूध सोखना आरंभ कर दिया था। उसके जिस्म पर दोहरी मार पड़नी आरंभ हो गयी थी। एक ओर उसके सीने का दर्द मै लगातार सोखता जा रहा था और दूसरी ओर पूरी शक्ति से उसके जिस्म को रौंद रहा था। सारा दूध सोख कर उसके दोनो कलश को खाली करके मै उसके जिस्म को अपने कामरस से भरने मे जुट गया था। कमरे मे उसकी सिस्कारियाँ गूंज रही थी। जन्नत मेरे नीचे दबी हुई कभी उत्तेजना मे मचलती और कभी तड़पती और फिर कभी अपनी टाँगे मेरी कमर पर लपेट कर जकड़ लेती थी। एकाकार की आँधी हमे बहा कर ले गयी थी। कुछ देर के बाद हम निढाल हो कर बिस्तर पर पड़े हुए अपनी सांसों को सयंत करने की कोशिश कर रहे थे। मैने उसके होंठों को चूमने की कोशिश की तो उसने अपना मुँह फेर लिया था। मैने फिर उसे चूमने की कोशिश नहीं की थी। थकान के कारण हम जल्दी ही अपने सपनों की दुनिया मे खो गये थे।

चार बजे मेरी आँख खुल गयी थी। मै जल्दी से बाथरुम मे घुस गया और तैयार होकर बाहर निकला तो जन्नत अभी भी सो रही थी। …उठो जन्नत, इमाम साहब से मिलना है। वह जल्दी से उठी और बाथरुम मे चली गयी। कुछ देर के बाद वह अपना कुर्ता, पाजामी और फेयरन पहन कर मेरे सामने खड़ी हो गयी थी। …मस्जिद मे बुर्का अनिवार्य है? …तुम्हें कुछ नहीं पता समीर। इन मस्जिदों की दीवारों मे न जाने कितनी मासूमों की चीखें दफन है। उसका फलसफा अनसुना करके मै कहा… चलो।  बुर्का छोड़ कर हिजाब से अपना सिर और चेहरा ढक कर वह मेरे साथ चल दी थी। हम होटल का हिसाब करके मस्जिद की दिशा मे चल दिये। थोड़ी देर मे हम मस्जिद-ए-जाबिल मे दाखिल हो गये थे। एक आदमी फर्श धो रहा था। मै उसके पास पहुँच कर पूछा… बड़े मियाँ, इमाम साहब कहाँ मिलेंगें। उसने इशारे से कहा… वह सामने हाल मे बैठे है। हम दोनो हाल मे चले गये थे। इमाम साहब के सामने तीस-चालीस नवयुवक बैठे हुए थे। इमाम साहब कोई तकरीर दे रहे थे तो मै और जन्नत चुपचाप पीछे जाकर बैठ गये थे।

इमाम साहब कह रहे थे… अल्लाह के रास्ते मे अगर किसी की शहादत होती है उसे सीधे जन्नत नसीब होती है। बहात्तर हूरें उसकी राह ताक रही होती है। हुरों की सुन्दरता का बखान करने के बाद इमाम साहब ने कहा… जन्नत मे एक आदमी को सौ-सौ आदमियों की ताकत से नवाजा जाता है। मैने दबे हुए स्वर मे जन्नत से कहा… बिना शहादत मुझे जन्नत नसीब हो गयी। यह इमाम साहब भला क्या समझेंगें। तभी इमाम के स्वर मेरे कान मे पड़े… तुम लोग जवान हो। काफिरों की लड़कियों को बहला फुसला कर अगर इस्लाम कुबूल करवाओगे तो मेरी ओर से तुम्हें इनाम से नवाजा जाएगा और खुदा भी खुश होगा। पंडित की लड़की के पच्चीस हजार मिलेंगें और निकाह किया तो एक मोटर साईकिल भी मिलेगी। बाकी सभी के लिए बीस हजार और निकाह किया तो मोटर साइकिल अलग से मिलेगी। कुछ देर के बाद इमाम साहब अपनी तकरीर समाप्त करने से पहले बोले… याद रखना कि जुमे की रात को काफिरों के गाँव चलना है। सभी लड़कों से कह देना कि वह तैयार रहे। इमाम साहब खड़े हो गये और चल कर हमारे पास आ गये थे। सारे नवयुवक एक कतार बना कर बाहर चले गये तब वह बोले… मोहतरमा बताईए आपको क्या काम है? जन्नत ने धीरे से कहा… आदाब। मेरा खाविन्द एजाज गोल्डन ट्रांस्पोर्ट कंपनी मे ड्राईवर है। रज्जाक साहब का माल लाते हुए वह जम्मू के बाहर पकड़ा गया था। वह माल आप तक पहुँचाना था लेकिन सारा माल पुलिस ने जब्त कर लिया और उसे जम्मू जेल मे भेज दिया है। खुदा के लिए उन्हें छुड़ाने मे हमारी मदद कीजिए। इमाम साहब ने मेरी ओर देखते हुए पूछा… यह कौन है? जन्नत ने जल्दी से कहा… मेरा देवर है। इमाम साहब ने जन्नत से कहा… देखो तुम्हारे खाविन्द ने अल्लाह की राह पर चलते हुए कुर्बानी दी है। वह इतनी जल्दी तो बाहर नहीं आ पाएगा। तुम चाहो तो मै तुम्हारा तलाक करवा देता हूँ। अपने देवर के साथ हलाला मे चली जाओगी तो तुम्हारी सारी जरुरतें पूरी हो जाएँगी। यह बोल कर मेरी ओर देखते हुए इमाम साहब ने फर्माया… इसे अपना लो। तुम अभी जवान हो तो इस औरत का ख्याल रख सकते हो। इस जिहाद मे हर सच्चे मुस्लिम को अपनी हैसियत के हिसाब से कुर्बानी देनी पड़ती है। खुदा तुमसे यह कुर्बानी मांग रहा है।

जन्नत धीरे से बोली… इमाम साहब, मेरा देवर कुछ नहीं करता तो यह मुझे कैसे पालेगा। अगर आप रज्जाक साहब से बात करके मुझे नौकरी पर लगवा देंगें तो… इतना कह कर वह चुप हो गयी। इमाम साहब कुछ देर के लिए गहरी सोच मे डूब गये फिर जेब से मोबाईल निकाल कर उन्होंने किसी का नम्बर मिलाया… रज्जाक मियाँ सलाम। आपके पास उस ड्राईवर की औरत को भेज रहा हूँ। उसको कोई छोटी-मोटी नौकरी दे दो जिससे वह अपना घर चला लेगी। वह ड्राईवर भी अपना मुँह बन्द रखेगा। …ठीक है मियाँ। जामिया मस्जिद के हादसे के कारण बहुत से काम पीछे हो गये है। बस ख्याल रहे कि जुमे से पहले मेरा माल मेरे पास पहुँच जाना चाहिए। इतनी बात करके फोन काट कर इमाम साहब ने कहा… मोहतरमा मेरे साथ आईए। आपको मै रज्जाक साहब के लिए एक चिठ्ठी दे देता हूँ। वह आपको काम पर रख लेंगें। जन्नत चुपचाप इमाम साहब के साथ चल दी थी। मै जैसे ही उसके पीछे चला तो वह एकाएक मुड़ कर मुझसे बोली… तुम बाहर इंतजार करो। मै चिठ्ठी लेकर आती हूँ। मै ठिठक कर वहीं पर रुक गया और वह इमाम साहब के साथ एक कमरे मे चली गयी थी।

मै मस्जिद के बाहर लगी हुई बेन्च पर जाकर बैठ गया था। शाम के समय बाजार मे रौनक हो रही थी। मनचले नवयुवकों की टोली सड़क पर चलने वाली लड़कियों औरतों पर फब्तियाँ कस रहे थे। कुछ मनचले भीड़ मे घुस कर छेड़खानी मे व्यस्त थे। सब कुछ खुले आम हो रहा था। मै चुपचाप बैठा सब कुछ देख रहा था। तभी वही आदमी जो फर्श साफ कर रहा था वह बाहर आकर मेरे साथ बेन्च पर बैठ गया और फिर मुस्कुरा कर बोला… मियाँ तुम उसके क्या लगते हो? …मेरी भाभी है। …बहुत अच्छा। बस इतना बोल कर वह चुपचाप बैठ गया था। अबकी बार मैने पहल करते हुए कहा… बड़े मियाँ, एक दिन मे इमाम साहब कितने लोगों को चिठ्ठी देते है? मेरी ओर घूर कर देखते हुए वह बड़बड़ाया… मियाँ यह मत पूछो तो अच्छा होगा। …बड़े मियाँ मै कोई बेवकूफ या मंदबुद्धि नहीं हूँ। मुझे भी पता है कि इमाम साहब कौनसी चिठ्ठी लिख रहे है। दुख है तो सिर्फ इस बात का कि यह सब इस पाक जगह पर खुले आम हो रहा है। मेरी बात शायद उसे चुभ गयी थी। वह मेरी ओर देख कर बोला… मियाँ क्या बताऊँ कि इन बूढ़ी आँखों ने यहाँ पर क्या होते हुए नहीं देखा है। हम बात कर रहे थे कि जन्नत मेरे पास आकर बोली… चलो समीर। मै चुपचाप उसके साथ चल दिया था।

हम वहाँ से सीधे बस स्टैन्ड चले गये थे। कुछ खाने के लिए मैने उससे पूछा भी तो उसने मना कर दिया था। श्रीनगर जाने वाली बस की टिकिट लेकर हम बस मे बैठ गये थे। सारे रास्ते वह चुप बैठी रही थी। मैने भी सारी रात ऊँघते हुए गुजारी थी। अनंतनाग बस स्टैन्ड पर जब बस रुकी तो मैने उसे उठा कर पूछा… जन्नत आओ चल कर चाय पी लो। हम दोनो नीचे उतर गये और चाय लेकर एक किनारे मे खड़े हो गये थे। …चिठ्ठी मिल गयी? …हुँ। …अरे क्या हो गया तुम्हें। जब से इमाम साहब के पास से आयी हो तब से चुप हो। वह चुपचाप चाय पीती रही और फिर खाली गिलास रख कर वापिस बस मे जाकर बैठ गयी थी। जैसे ही बस चलने को हुई मै उसके साथ जाकर बैठ गया। सारे रास्ते वह अपनी ही सोच मे डूबी रही थी। श्रीनगर बस स्टैन्ड पर जब हम उतर कर बाहर आये तो मैने पूछा… तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूँ। उसने एक बार मेरी ओर देखा और फिर मुस्कुरा कर बोली… नहीं मै खुद चली जाऊँगी। बस मुझे कुछ पैसे चाहिए। …कितने? …जितने भी तुम्हारी जेब मे है। मैने अपना पर्स निकाला और बिना गिने सारे पैसे उसके हाथ मे रखते हुए पूछा… यह तुम्हारे लिए काफी है या एटीएम से और निकाल कर दूँ। …फिलहाल के लिए काफी है। अच्छा समीर खुदा हाफिज। अब शायद फिर कभी हमारी मुलाकात नहीं होगी। बस इतना कह कर वह चली गयी थी। मै कुछ देर वहीं खड़ा होकर उसकी बात समझने की कोशिश करता रहा और फिर जब कुछ समझ मे नहीं आया तो अपने घर की ओर चल दिया। अब जन्नत भी मेरे लिये एक पहेली बन गयी थी। 

2 टिप्‍पणियां:

  1. एक ओर बेहतरीन अंक और शायद जन्नत को चिट्ठी में जन्नत भेजने के जरिया बनने के लिए बोला गया होगा मगर समीर कैसे यह समझ न सका। पिछले अंक के लोन साहिबा असल में एक मोस्ट वांटेड लिस्ट की हसीना निकलेंगी यह सोचा न था। खैर लगता है समीर का दिल फिर से टूटेगा ।

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    1. दोस्त अभी तक इस कहानी के साथ जुड़े रहने का शुक्रिया। आगे-आगे देखिये होता है क्या…।

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