काफ़िर-7
अगले दिन से मेरी रोजमर्रा की जिंदगी मे बदलाव
आ गया था। बुआ के जाने बाद मै एलिस के कमरे मे चला जाता था। शेर को खून का स्वाद लग
चुका था। एलिस के साथ दोपहर तक धींगामस्ती के बाद मै तैयार होता और खाना खाने के बाद
सो जाता था। बुआ के आने से पहले ही उठ जाया करता था। मेरी शाम बुआ के साथ गुजरती थी।
हम कभी फिल्म देखने चले जाते थे और कभी समुद्र तट पर घूमने चले जाते थे। कभी घर मे
बैठ कर पुरानी यादें ताजा करते थे और कभी कश्मीर के हालात पर चर्चा करने बैठ जाते थे।
समय ऐसे निकलता जा रहा था। एक दिन एलिस के साथ लम्बी पारी खेलने के बाद हम लेटे हुए
थे कि एक बार फिर से एलिस ने कहा… अंजली ने तुमसे कभी नहीं पूछा कि यह सब कहाँ सीख
रहे हो? उसकी बात सुन कर मै चौंक गया था। …छोड़ो एलिस इस वक्त बुआ के बारे मे बात मत
करो। …क्यों उसको याद करके दिल मे कुछ होता है क्या? मै उठ कर बैठ गया और उसकी ओर देख
कर बोला… प्लीज इसमे तुम उसको मत घसीटा करो। जो मै तुम्हारे साथ कर सकता हूँ वह उसके
साथ हर्गिज नहीं कर सकता। वह मेरी ओर देख कर बोली… क्यों क्या उसके अरमान नहीं है।
क्या वह नहीं चाहती कि कोई मर्द उसके जिस्म को निचोड़ कर उसके अन्दर सुलगती हुई आग को
बुझा दे। मै हर्गिज मानने को तैयार नहीं हूँ कि अब तक तुम दोनो बन्द कमरे मे एक बेड
पर अलग-अलग सो रहे हो। तुम जैसा जवां मर्द उसके करीब हो कर भी अगर कुछ नहीं करेगा तो
सचमुच वह तो बेचारी पागल हो जाएगी। उसको पागल करने के लिये तो जवान मर्द की खुश्बू
ही काफी है। सोच कर देखो क्या अंजली को कोई जिस्मानी या कोई मानसिक बीमारी है? नहीं न, तो फिर जो सिखाया है उस पर प्रयोग करो और
उसे स्वर्ग की सैर कराओ। वह बेशर्मी से बोलती चली जा रही थी। प्रतिकार के बजाय मै चुपचाप
उसकी बात सुन रहा था।
उसी शाम को पहली बार अपनी बुआ को मै एक मर्द
की तरह देखने लगा था। एलिस ने एक ऐसा बीज मेरे मन मे अंकुरित कर दिया था कि अब बुआ
की छवि मेरे दिमाग पर छायी रहती थी। उनके चेहरे पर छायी एकाकीपन की उदासी को एलिस ने
सही पहचाना था। बुआ एलिस से कहीं ज्यादा सुन्दर और जिस्मानी दृष्टि से परिपूर्ण थी।
भला उनकी भी इच्छा तो करती होगी तो फिर बेचारी किस कारण वह अपनी इच्छाओं को मार रही
थी। एक बदलाव अब महसूस करने लगा था कि एलिस के साथ एकाकार करते हुए मुझे अकसर बुआ का
स्मरण होने लगा था। बुआ की छवि दिमाग मे आते ही एलिस की चीखें गूंजने लगती थी। एक ओर
मुझे आत्मग्लानि अन्दर ही अन्दर खाये जा रही थी और दूसरी ओर जब वह सामने होती तो मेरी
निगाहें उनको एक मर्द की तरह नाप रही होती थी। इस मानसिक अन्तरविरोध के कारण मै तनावाग्रस्त
होता जा रहा था। बुआ के जीवन मे मेरे अलावा और कौन था। यही सोच कर एक दोपहर लंच के
बाद मैने इन्टर्नेट पर शादी की साइट देखने बैठ गया था। जल्दी ही इस नतीजे पर पहुँच
गया कि मै बुआ की पसंद और नापसंद के बारे मे बिल्कुल अनिभिज्ञ था। मैने निश्चय किया
कि आज बुआ से उनकी पसन्द और नापसन्द जान कर ही अगला कदम उठाऊँगा।
शाम को बुआ के आने के बाद रोजमर्रा की तरह
हमने चाय साथ पी और फिर खाना खा कर जब बिस्तर पर बैठ कर बात कर रहे थे कि तभी मैने
पूछा… बुआ अगर आप शादी करती तो आपकी कैसी पसन्द होती? बुआ ने चौंक कर मेरी ओर देखा
फिर मुस्कुरा कर बोली… क्यों क्या मेरी शादी कराने की सोच रहा है? …क्यों इसमे क्या
गलत है? आप सुन्दर हो और क्या आपकी उम्र मे लोग शादी नहीं करते है। …हाँ करते है लेकिन
मै नहीं करना चाहती। मेरे लिए अब सारी दुनिया तुम तक सिमट कर रह गयी है। …बुआ आपकी
अपनी जिन्दगी है। एक दिन मै भी फौज मे चला जाऊँगा तब आप अकेली क्या करेंगी। इसीलिए
मै सोच रहा था कि आपका भी घर बस जाए तो मै निश्चिन्त हो जाऊँगा। बुआ मुस्कुरा कर बोली…
अच्छा जी अब मेरा भतीजा इतना बड़ा हो गया है। मै कुछ भी कहता लेकिन बुआ मेरी हर बात
को हवा मे उड़ाती जा रही थी। काफी देर तक हम इस मामले बात करते रहे लेकिन बुआ मेरी बात
सुनने को राजी नहीं थी। उस रात हम दोनो बिना बात किये काफी देर तक जागते रहे थे।
अचानक बुआ मेरे नजदीक आकर मुझसे धीरे से बोली…
समीर मै किसी के योग्य नहीं रही। उनकी आँखों मे झिलमिलाते आँसुओं को देख कर मैने उन्हें
अपनी बाँहों मे भर लिया और बालों मे हाथ फिराते हुए कहा… बुआ आप भी कब तक अपने सीने
मे राज को छिपा कर रखेंगी। अगर आप मुझे अपना मानती है तो मुझे बता कर अपने दिल का बोझ
हल्का कीजिए। मेरे सीने मे अपना चेहरा छिपा कर कुछ देर सिसकती
रही और फिर धीरे से बोली… बहुत पहले एक आदमी ने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिल कर जबरदस्ती
मेरी इज्जत तार-तार कर दी थी। तब से एकाकार के बारे मे सोच कर ही घृणा होने लगती है।
यह सुन कर मेरा खून खौल उठा था। …बुआ वह दरिंदा कौन था? बुआ चुप
रही तो मैने उनको समझाते हुए कहा… बुआ, तुमने वह बात छिपा कर कितना बड़ा नुकसान किया
है। पता नहीं उस दरिंदे ने और न जाने कितनी अन्य मासूम जिंदगियों को बर्बाद किया होगा।
खैर अगर किसी के साथ कोई दुर्घटना हो भी जाती है तो वह जीना तो नहीं छोड़ देता है। इंसान
प्यार और मोहब्बत करना तो नहीं बन्द कर देता है। यह इंसानी जरुरत
है और अम्मी कहती है कि समय हर घाव को भर देता है। पहली बार अपनी बुआ का कमजोर पक्ष
देख कर मेरा दिल टूट गया था। अन्दर ही अन्दर मेरा दिमाग सुलग रहा था किस दरिंदे ने
मेरी फूल सी बुआ के साथ इतना जघन्य अपराध किया था।
उस रात बुआ को अपनी बाँहों मे समेटे हुए काफी
देर तक लेटा रहा था। पता नहीं कब नींद ने मुझे घेर लिया था परन्तु सुबह जब मेरी आँख
खुली तब तक हम दोनो के जिस्म एक दूसरे मे गुथे हुए पड़े थे। अब अंजली को बुआ कहना उचित
नहीं लग रहा था। वह मेरी प्रेयसी बन चुकी थी। दिन के उजाले मे उसके दूध से गोरे जिस्म
पर जगह जगह नीले निशान बने हुए थे। अंजली मेरे आगोश मे गहरी नींद मे सो रही थी।
सब कुछ एक मासूम चुम्बन से आरंभ हुआ था। अंजली
रो रही थी और मैने उसके आँसुओं को पौछते हुए धीरे से उसके गाल को धीरे से चूम लिया
था। कब गाल से होंठ और होंठ से गले और कब गले से नीचे पहुँचा पता ही नही चला था। एलिस
की शिक्षा ने एकाएक मुझे कामदेव मे तब्दील कर दिया था। मेरा हर वार उसकी सुप्त कामाग्नि
को भड़काता चला जा रहा था। अंजली मेरे हर वार का न चाहते हुए भी विरोध करती रही लेकिन
फिर उसकी शक्ति क्षीण होती चली गयी थी। एक मासूम गिफ्ट के पैकट को मैने धीरे-धीरे अनावरित
किया और फिर मै उसे एक मोम की गुड़िया की तरह अपने अनुसार ढालता चला गया। हमारे कपड़े
कब अलग हुए पता नहीं लेकिन मुझे अच्छे से याद है कि अंजली छुईमुई सी मेरे हाथों मे
मेरी चाह के अनुसार ढलती चली गयी थी। इतने सालों से दबी हुई भावनाएँ एकाएक ज्वालामुखी
की तरह फट पड़ी थी। वह मेरे हाथों मे न जाने कितनी बार मचली, मेरे नीचे न जाने वह कितनी
तीव्रता से उत्तेजना मे तड़पी और आखिरकार न जाने कितनी बार स्खलित हुई थी। मैने बड़ी
शिद्दत से उसके जिस्म के एक-एक पोर को उस रात अपनी मोहब्बत से सींच दिया था। एलिस से
सीखा हुआ हर सफा मैने उस रात अंजली पर प्रयोग किया था। अभी भी वह बेसुध होकर मेरी आगोश
मे सो रही थी। मै उठ कर बैठ गया और अपने साथ लेटे हुए उसके बेसुध नग्न जिस्म को निहार
रहा था। मैने धीरे से अपनी उँगली से उसके चेहरे के उतार और चड़ाव को नापते हुए जैसे
ही उसके स्त्नाग्र पर पहुँचा उसके जिस्म मे झुरझुरी उठी और उसकी बड़ी-बड़ी आँखें खुल
गयी थी। उसे कुछ देर लगी बदले हुए हालात समझने मे लेकिन जैसे ही एहसास हुआ तो वह एक
झटके से उठ कर बैठ गयी थी। अपनी नग्नता के एहसास से उसका गुलाबी चेहरा सुर्ख हो गया
था। अपने कपड़े की ओर वह झपटी लेकिन उससे पहले मैने उसको पकड़ कर अपने आगोश मे जकड़ लिया
था।
…अंजली याद है कि कल रात को हमारे बीच मे क्या
तय हुआ था। नयी नवेली दुल्हन की तरह शर्माते हुए उसने नजरे झुका ली और धीरे से अपना
सिर हिला दिया था। मैने उसके चेहरे को अपने हाथों मे लेकर उसके माथे को चूम कर कहा…
इसलिए हमारे बीच मे अब कोई दीवार नहीं है। उसके चेहरे पर नयी नवेली दुल्हन की लालिमा
दीप्तिमान हो रही थी। बड़ी-बड़ी आँखों मे अभी भी लाल डोरे तैर रहे थे। उसका गदराया हुआ
मखमली जिस्म दिन की रौशनी मे दमक रहा था। उसके सीने पर नीले निशान को चूमने के लिये
मै जैसे ही झुका वह मुझसे दूर सरकते हुए बोली… समीर, मुझे छुट्टी के लिए अस्पताल फोन
करना है। कुछ सोच कर मैने उसे छोड़ दिया था। उसने एक बार मेरी ओर देखा और फिर बिस्तर
से उतर कर अपने कपड़े उठा कर बाथरुम मे चली गयी थी। मेरी नजरे उसका पीछा तब तक करती
रही थी जब तक बाथरुम का दरवाजा बन्द नहीं हो गया था। वह जब मुँह धोकर बाहर निकली तब
उसका चेहरा दमकता हुआ सा लग रहा था। वह फोन पर व्यस्त हो गयी और मै चाय बनाने के लिए
किचन मे चला गया था। कुछ देर के बाद हम दोनो बिस्तर पर बैठ कर चाय पीते हुए बात कर
रहे थे।
…अंजली, क्या तुम उस दरिंदे का अब नाम बता
सकती हो? उसको सजा देने के लिए मुझे उसका नाम जानना जरूरी है। …समीर रहने दो। तुम्हीं
ने कहा था कि पुराने घाव को छेड़ने से सिर्फ मवाद निकलता है इसलिए उसको भूल जाओ। इतना
बोल कर वह सिर झुका कर बैठ गयी। …अच्छा सिर्फ इतना तो बता सकती हो कि यह दुर्घटना कहाँ
हुई थी? वह धीरे से हिचकते हुए बोली… श्रीनगर। यह बोलते हुए उसकी जुबान लड़खड़ा गयी थी।
पता नहीं क्यों एक नाम बार-बार मेरे जहन मे रात से घूम रहा था। मैने जानबूझ कर अपने
शक की पुष्टि करना चाहता था। वह काफी देर तक चुप बैठी रही थी। उसकी चुप्पी मुझे हर
पल बेचैन कर रही थी। अचानक अंजली की सिसकती हुई आवाज मेरे कान मे पड़ी… समीर, वह दरिंदा
और कोई नहीं मकबूल बट और उसके दो दोस्त थे। भैया की शादी के जश्न की रात को उसने मेरे
साथ यह घिनौना दुश्कृत्य किया था। शमा भाभी को भी इसका पता है। यह सुन कर एकाएक मेरे
काँच का महल टूट कर बिखर गया था।
मै रोज अम्मी से फोन पर बात कर रहा था परन्तु
उस दिन के बाद मैने अम्मी से बात करना बन्द कर दिया था। अगले दिन अंजली के अस्पताल
जाने के पश्चात मै एलिस के कमरे मे चला गया था। हमेशा की तरह वह अपनी टी-शर्ट निकाल
कर मेरे निकट आ गयी थी परन्तु अब मेरे लिये सब कुछ बदल गया था। …एलिस अब हम पहले की तरह
नहीं मिल सकेंगें। तुमने मुझे मासूम लड़के से एक आदमी बनाया है परन्तु अब मै अंजली को
धोखा नहीं दे सकूँगा। प्लीज क्या हम अच्छे दोस्त बन कर नहीं रह सकते हैं? मेरी आँखों
मे देखती हुई वह मुस्कुरा कर बोली… वह तो हम आज भी है। मै उन्मुक्त जीवन मे विश्वास
रखती हूँ समीर और किसी के साथ बंध कर नहीं रह सकती। तुम मुझे एक अपरिपक्व युवक के रुप मे मिले थे। एक लड़के का आदमी बनना प्रकृति का चलन है। इसलिए यह
कहना बेमानी है कि मैने तुम्हारे साथ कुछ किया है। इतना तो मै जानती थी कि एक दिन तो
इसका अंत होगा लेकिन चलो अच्छा हुआ कि यह जल्दी हो गया अन्यथा ऐसे रिश्तों मे किसी
एक का दिल तो जरुर टूटता जिससे दोनो को ही परेशानी होती। उस दिन
आखिरी बार बस इतनी बात हमारे बीच मे हुई थी।
अंजली के साथ मेरा समय अच्छा गुजर रहा था।
हम बिन ब्याहे दम्पति की तरह रह रहे थे। रोज रात को मै और अंजली एक दूसरे की कामाग्नि
को शान्त करने मे जुट जाते थे। इतने दिन मे हम एक दूसरे के जिस्म को भली भांति पहचान
गये थे। अंजली मेरे लिये एक संपूर्ण स्त्री साबित हो रही थी। मै उसकी हर इच्छा को समझने
लगा था परन्तु फिर भी हमारे संबन्ध मे एक कमी हमेशा खटकती रहती थी। मै कुछ दिनों से
अपने इस रिश्ते को पवित्र नाम देने की सोच रहा था परन्तु मुझे समझ मे नहीं आ रहा था
कि इसके लिये क्या करना चाहिए। फौज की ओर से कोई समाचार अब तक नहीं मिला था तो एक दिन
अंजली के साथ जाकर मैने एक पास के कालेज मे दाखिला भी ले लिया था। अब मै दिन मे भी व्यस्त
हो गया था। एक शाम अंजली के लौटने के बाद हम चाय पी रहे थे कि फोन की घंटी बज उठी थी।
अंजली ने फोन उठाया और बात करने लगी। मैने सोचा कि अस्पताल से फोन आया होगा तो मैने
उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया था। अचानक अंजली ने आवाज दी… समीर, तुम्हारी अम्मी का
फोन है। एक पल के लिए मै सकते मे आ गया था। मैने फोन लेकर धीरे से कहा… आदाब अम्मी।
कैसी है आप? …समीर तुमने एक हफ्ते से फोन नहीं किया। बेटे सब ठीक तो है। …जी अम्मी।
यहाँ सब ठीक है। पिछला पूरा हफ्ता कालेज मे दाखिला लेने मे निकल गया था इसीलिए फोन
नहीं कर सका था। …बेटा तुम्हारी एक चिठ्ठी आयी है। मै अदा को फोन दे रही हूँ। वह पढ़
कर बता देगी। यह बोल कर अम्मी ने फोन अदा को पकड़ा दिया था। …समीर कैसे हो? मेरा जवाब
सुने बिना ही उसने चिठ्ठी पढ़नी शुरु कर दी थी। सारी चिठ्ठी पढ़ने
के बाद उसने धीरे से कहा…काग्रेच्युलेशन्स। फिर उसने फोन अम्मी को पकड़ा दिया था। …समीर,
दिल लगा कर मेहनत करना। जब भी समय मिले तो मुझसे मिलने आ जाना। बस बेटा मुझे तेरा ही
सहारा है। बस इतना ही कहना था। कल सुबह इस चिठ्ठी के साथ तुम्हारे स्कूल के सर्टीफिकेट
स्पीड पोस्ट से भिजवा रही हूँ। खुदा हाफिज। यह कह कर अम्मी ने फोन काट दिया था। मै
अम्मी से कुछ कहना चाहता था परन्तु उन्होंने मुझे बोलने का मौका ही नहीं दिया था।
मैंने अंजली से पूछा… क्या तुम्हारी अम्मी
से कोई मेरे बारे मे बात हुई थी? मुझे फोन का रिसीवर रखते हुए देख कर अंजली ने पूछा…
इतने दिनों से तुमने भाभी से बात क्यों नहीं की? …अंजली जब से तुमने बताया था कि अम्मी
उस दरिंदे की काली करतूत जानती थी तो मेरा दिल टूट गया था। मै उनसे नाराज था कि उन्होंने
मुझे इस बारे मे क्यों नहीं बताया। …समीर हालात को समझने की कोशिश करो। तुम ही सोच
कर बताओ कि भाभी क्या कर सकती थी? इसीलिए मै भी नहीं बताना चाहती थी। तुम्हे यह नहीं
भूलना चाहिए कि उनका हमारे परिवार पर एहसान है। उनके कारण ही आज तुम मेरे पास हो अन्यथा
सोच कर देखो कि अगर भाभी नहीं होती तो क्या होता। मै तो उनका एहसान मानती हूँ कि उनकी
वजह से तुम मुझे मिल गये अन्यथा अब तक इस जिंदगी को मै एक बोझ की भाँति काट रही थी।
अंजली ने मेरे दिमाग पर पड़ी हुई धूल की परत को पल भर मे हटा दिया था। एक वही थी जो
हमेशा मेरे लिए दीवार की भाँति उस दरिंदे के सामने आज तक खड़ी रही थी। उन्हीं के कारण
मै अपनी जड़ों से वापिस जुड़ सका था।
आत्मग्लानि का बोध होते ही मैने तुरन्त अपने
घर फोन मिलाया। अम्मी की आवाज सुनते ही मैने कहा… आपने फोन क्यों काट दिया था? …बेटा
मैने सोचा कि शायद तुम अब मुझसे बात करना नहीं चाहते। …आपने यह कैसे सोच लिया अम्मी।
…समीर कुछ बात ऐसी होती है जो अम्मी अपने बेटे से नहीं कर सकती। उनकी बात को बीच मे
काटते हुए कहा… आप मेरी अम्मी थी और हमेशा रहेंगी। मै रोजाना भले ही बात नहीं करुँ
पर हर पल आप मेरे साथ रहती हो। कुछ देर बात करने के बाद जब मैने फोन काटा तो अंजली
ने पूछ लिया… कहाँ से चिठ्ठी आयी थी? मै अम्मी
से बात करने के चक्कर मे अंजली को खुशखबरी देना तो भूल ही गया था। मैने उसे अपनी बाँहों
भर लिया और हवा मे घुमाते हुए कहा… फौज मे मेरा सलेक्शन हो गया। अगले महीने मुझे ट्रेनिंग
अकादमी मे रिपोर्ट करना है। यह सुन कर अंजली का चेहरा उतर गया था। उसका उतरा हुआ चेहरा
देख कर मैने पूछ लिया… अरे क्या हुआ? …एक बार फिर से मै अकेली हो जाऊँगी। मै उसके दिल
की हालत समझ रहा था।
…अंजली मुझे खडगवासला मे रिपोर्ट करना है।
पुणे यहाँ से दूर नहीं है। लोग रोजाना मुंबई-पुणे नौकरी के लिए
आते जाते है। तीन साल मुझे यहीं रहना है तो कभी तुम वहाँ आ जाना और कभी मै यहाँ आ जाऊँगा।
ऐसे ही समय कट जाएगा। अंजली का जब मूड नहीं सुधरा तो मैने कहा… मुझे रिपोर्ट करने मे
अभी एक महीने से ज्यादा का समय है। तुम अभी से दुखी हो रही हो तो अब जो कुछ भी समय
हमारे पास साथ बिताने के लिए बचा है वह भी खराब हो जाएगा। उसका मूड सुधारने के लिए
मै उसे सिद्धिविनायक मन्दिर ले गया था। मान्दिर मे प्रवेश करते ही मैने एक निर्णय ले
लिया था। अंजली के हाथों से पूजा करवाने के बाद मैने पूजा की थाली से सिंदूर उठा कर
अंजली के माथे पर टीका लगाते हुए अचानक उसकी मांग को सिंदूर से भर दिया। इसका एहसास
होते ही वह छिटक कर मुझसे दूर होते हुए बोली… समीर, यह तुमने क्या किया। मैने उसकी
बात का कोई जवाब नहीं दिया बस पूजा की थाली उसे पकड़ा कर उसके गले मे लाल कलावा बांध
कर कहा… आज के बाद हमारे बीच पति-पत्नी का रिश्ता तय हो गया है। भीड़ होने के कारण वह
ज्यादा कुछ बोल नहीं सकी थी। वह गुस्से मे तेज कदमों से चलती हुई मंदिर से बाहर निकल
कर कार मे जाकर बैठ गयी थी। मै आराम से उसके पीछे चलते हुए आया और उसके साथ कार मे
बैठ गया था।
कार मे बैठते ही वह गुस्से से बिफर गयी थी।
काफी बुरा भला कहने के बाद वह रोते हुए बोली… तुम जानते हो कि यह पाप है। …तो जिस तरह
से हम इतने दिनों से रह रहे है वह तुम्हारी नजर मे पाप नहीं है। पल भर मे उसके मुँह
पर ताला पड़ गया था। कुछ देर तक वह मुझे घूरती रही फिर स्टीयरिंग व्हील पर सिर टिका
कर बैठ गयी थी। मैने उसका हाथ पकड़ कर धीरे से कहा… सिर्फ यह बता दो कि मै तुम्हारा
कौन हूँ? उसने मेरी ओर देख कर कहा… समीर तुम समझ नहीं रहे हो। इस रिश्ते से मै तुम्हारे
पिता की छोटी बहन हूँ। हमारे बीच ऐसे रिश्ते की मनाही है अपितु हमारे बीच उम्र का फासला
भी है। तुम्हारी इस हरकत ने सब कुछ बदल दिया है। क्या हम पहले इसके बारे मे बात नहीं
कर सकते थे? …नहीं यह मेरा निर्णय है। अगर तुम्हें गलत लगता है तो लाओ मै वह सिंदूर
हटा देता हूँ और वह धागा भी तोड़ देता हूँ। जैसे ही मैने उसकी ओर हाथ बढ़ाया तो वह पीछे
हटते हुए चीख उठी… नहीं। …तो ठीक है फिर अब जब हमारा रिश्ता तय हो गया है तो इसके
बारे मे भविष्य मे फिर कभी बात नहीं करेंगें। वह कुछ देर गुमसुम बैठी रही तो मैने कहा…
कार आगे बढ़ाओ मुझे भूख लग रही है। उसने एक बार भरी हुई पल्कों से मेरी ओर देखा और फिर
मुस्कुरा कर कार स्टार्ट की और हम वहाँ से निकल गये थे। देर रात को जब घर पहुँच कर
बिस्तर पर बैठे तब तक सब कुछ शांत हो गया था। उस रात मैने अंजली के सारे कस बल ढीले
कर दिये थे।
अगली सुबह अंजली मुझसे शिकायती स्वर मे अपने
जिस्म पर पड़े हुए निशान दिखाते हुए बोली… आजकल वैसे ही अस्पताल मे लोग मुझे अजीब सी
नजरों से देखते है। अब यह निशान देख कर तो वह और भी बातें बनायेंगे। मैने मुस्कुरा
कर कहा… तुम्हारे चेहरे पर आयी हुई नयी नवेली दुल्हन की आभा को कैसे छिपाओगी। इसमे
शर्माने की जरुरत नहीं है अपितु मै आज तुम्हारे अस्पताल आ रहा हूँ। अपने दोस्तों को
अपने पति से मिलवा देना तो सब कुछ अपने आप शान्त हो जाएगा। एक बार उसने मना करने के
लिये गरदन हिलायी लेकिन जैसे ही मै उसकी ओर झपटने के लिये बढ़ा तो उसने तुरन्त हथियार
डालते हुए कहा… समीर, क्यों न हम कुछ दोस्तों को कल शाम को घर पर बुला कर पार्टी दे
देते है। इसी बहाने वह सब तुमसे मिल लेंगें और हमारा रिश्ता भी जग जाहिर हो जाएगा।
उसकी बात मुझे जँच गयी और फिर अंजली के अस्पताल से लौटने के बाद हम दोनो अगले दिन की
पार्टी के काम मे जुट गये थे।
अगले दिन शाम को अंजली के कुछ डाक्टर मित्र
और अस्पताल का स्टाफ घर पर आ गया था। अंजली ने मुझे लेफ्टीनेन्ट समीर कौल के नाम से
उनसे मिलवाया था। उस शाम अंजली बेहद खुश थी और उसको खुश देख कर मै भी पार्टी के पूरे
मजे ले रहा था। उस शाम पहली बार मैने शराब को हाथ लगाया था। अंजली ने तो बहुत मना किया
परन्तु उसके दोस्त जिद्द पर अड़ गये थे। जब तक पार्टी समाप्त हुई तब तक शराब का नशा
मेरे सिर पर हावी हो गया था। सबके जाने के बाद उस रात मैने अंजली को टूट कर प्यार किया
था। वह भी हल्के से नशे के सुरुर मे थी और मै उसकी मोहब्बत के नशे मे डूबा हुआ था।
रात को एकाकार के पश्चात हम दोनो अपनी साँसों को काबू मे कर रहे थे कि अचानक वह बोली…
समीर, क्या तुमने पहले किसी से मोहब्बत की है? मेरे जहन मे एकाएक अदा का चेहरा उभर
कर सामने आ गया था। अपने दिल मे उमड़ती हुई भावनाओं के वेग को दबा कर मैने कहा… अंजली
तुमसे मिलने से पहले मुझे मोहब्बत का एहसास ही नहीं हुआ था। इस जज्बे को पहली बार तुम्हारे
साथ ही महसूस किया था। क्यों पूछ रही हो? …ऐसे ही। हमारे बीच उम्र का फासला देख कर
सोच रही थी क्या कोई तुम्हारी हम उम्र प्रेमिका थी जिसका हक मैने अनजाने मे छीन लिया
है। अचानक वह उठ कर बैठ गयी और मेरी ओर देख कर बोली… समीर, मै तुम्हें सभी बंधनों से
आजाद करती हूँ। मेरे लिये बस इतना काफी है कि तुमने मुझे अपनी पत्नी का दर्जा दे दिया।
मैने उसको अपने आगोश मे जकड़ते हुए कहा… मेरी जान तुम्हें शराब चढ़ गयी है। अब सो जाओ
क्योंकि कल सुबह फिर तुम मुझे अस्पताल जाते हुए दोष दोगी कि मेरे कारण तुम्हे देर हो
गयी है। बस इतनी बात करके एक दूसरे को बाँहों मे लिये सपनो की दुनिया मे खो गये थे।
अगला एक महीना पता ही नहीं चला कि कैसे निकल
गया था। अंजली ने भी अब बदले हुए हालात से समझौता कर लिया था। उसके गले मे अब उसी लाल
धागे से लिपटा हुआ एक नया मंगलसूत्र पड़ गया था। अभी भी वह भले ही अपनी पूरी मांग नहीं
भरती थी लेकिन मेरी नजर से उसकी मांग मे छोटा सा सिंदूरी टीका बच नहीं सका था। मेरी
जाने की तारीख भी नजदीक आती जा रही थी। जैसे-जैसे दिन गुजर रहे थे अंजली का चेहरा मुर्झाता
चला जा रहा था। मै जितना उसको खुश करने की कोशिश करता वह उतना ही ज्यादा उदास हो जाती
थी। न जाने उसे कौन सी बात परेशान कर रही थी। अम्मी द्वारा भेजा गया पैकट भी मिल गया
था। फौज की ओर से भेजी गयी चिठ्ठी अकेली नही थी। उस चिठ्ठी के साथ कुछ कानूनी कागज
भी भेजे थे। उन कागजों की खानापूर्ती करने मे मुझे तीन दिन लग गये थे। उन्हीं कागजों
मे से एक कागज मे कुछ दिशा निर्देश भी दिये गये थे। रिपोर्टिंग वाले दिन कौन सी जरुरी
और रोजमर्रा की चीजें अपने साथ लेकर आनी थी उसकी लिस्ट भी उन्हीं कागजों के साथ दी
गयी थी। अंजली ने मेरी सारी जरुरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी उठा ली थी।
एक रात एकाकार के पश्चात मै उसके कोमल अंगों
को छेड़ रहा था कि तभी अंजली ने कहा… समीर अगर इसी बीच मै प्रेगनेन्ट हो गयी तो क्या
होगा? …लड़की होगी या लड़का। क्या इसके अलावा कुछ और भी हो सकता है। …तुम मजाक मत करो।
जरा सोच कर देखो कि क्या यह सही होगा। …अंजली इसमे क्या सोचना। तुम बस उस बच्चे के
बाप का नाम समीर कौल लिखवा देना। इसी बहाने डाक्टर इश्वर प्रसाद कौल के वंश की एक पीढ़ी
आगे बढ़ जाएगी। फिर वह दिन भी आ गया जिस दिन ट्रेन से पूणे के लिए रवाना होना था। हम
दोनो स्टेशन पर खड़े हुए ट्रेन के चलने का इंतजार कर रहे थे। अचानक अंजली ने कहा… समीर,
मै प्रेगनेन्ट हूँ। कुछ दिनों से मै यह बात महसूस कर रहा था कि वह कुछ बताना चाहती
थी। इसीलिये बिना चौंके मैने कहा… ग्रेट न्युज। तुम मुझे इस वक्त बता रही हो। कितने
दिन हो गए? …दो महीने। …तो फिर अभी तक तुमने यह बात मुझसे क्यों छिपाई थी? …डर रही
थी कि तुम पर इस खबर का क्या प्रभाव होगा। उसे अपने सीने से लगा कर मैने कहा… यह बच्चा
हमारे प्यार की निशानी है तो इसमे डरने की क्या बात है? …मै अपने लिए नहीं तुम्हारे
लिए डर रही हूँ। मेरे लिए तो बस इतना ही काफी है कि तुम्हारा अंश मेरे पास है। मैने
उसकी आँखों मे झाँकते हुए पूछा… इस बच्चे का बाप कौन है? उसने आँखे तरेर कर मेरी ओर
देखा और फिर मुस्कुरा कर बोली… समीर कौल। …तो फिर अब डरने की जरुरत
नहीं है। ट्रेन स्टेशन से हिल चुकी थी। एक बार उसे गले से लगा कर चलती ट्रेन मे चढ़ते
हुए कहा… अगली छुट्टी पर तुम पुणे आ रही हो। ट्रेन ने तब तक स्पीड पकड़ ली थी। मै उसे
हाथ हिलाता देखता रहा जब तक वह आँख से ओझल नहीं हो गयी थी।
खडगवासला मे रिपोर्ट करने के बाद जिंदगी को
तो जैसे पर लग गये थे। समय का पता ही नहीं चलता था। सुबह चार बजे से रात के आठ बजे
तक जिंदगी मशीन की तरह हो गयी थी। दो दिन मे एक बार फोन की सुविधा मिलती थी तब दो फोन
करता था। पहला फोन अम्मी को लगा कर अपनी दुर्दशा का हाल सुनाता था और दूसरा फोन अंजली
को लगा कर उसके हालचाल पूछ लेता था। सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। जैसा मैने सोचा था वैसा
हर्गिज भी नहीं हो सका था। छुट्टी वाले दिन भी कैंम्पस से निकलने की मनाही थी। एक महीने
मे एक बार दस घंटे के लिये सेन्टर से बाहर जाने का पास मिलता था। उसी टाईम अंजली को
पूणे बुला लिया करता था। दो बार तो वह आयी थी और एक बार मै उसके पास चला गया था। सातवाँ
महीना लगते ही उसका आना जाना बन्द हो गया था। हम फोन पर ही बात कर लिया करते थे। मुझे
यहाँ आये हुए छ्ह महीने हो गये थे। अब तक मै अपने नये जीवन मे पूरी तरह ढल गया था।
सुबह ड्रिल से आरंभ होकर देर शाम को डिनर के साथ हमारा दिन समाप्त होता था।
एक शनिवार को मै अपने प्रोजेक्ट के काम मे
व्यस्त था कि रिसेप्शन ने खबर दी कि कोइ मुझसे मिलने के लिए आया हुआ है। मेरी कल रात
को ही अंजली और अम्मी से फोन पर बात हुई थी तो भला आज कौन मुझसे मिलने आया था। मै रिसेप्शन
की ओर चला गया था। …मेरा नाम समीर बट है। कोई मुझसे मिलने आया है। रिसेप्शन पर बैठे
हुए अधिकारी ने एक कोने की ओर इशारा करते हुए कहा… प्लीज अपने गेस्ट को बता दीजिए कि यह अनुमति सिर्फ इमर्जैन्सी मे दी जाती है। उसने जिधर इशारा
किया था वहाँ चार लड़कियाँ बैठी हुई थी। मै उस ओर चला गया और उनके सामने पहुँच कर मै
खड़ा हो गया था। वह चारों बिना बोले बस मुझे ताक रही थी। …यस प्लीज। मै समीर बट हूँ।
बताईए आपको क्या काम है। तभी पीछे से आवाज आयी… इतने दिन हो गये थे तुम्हें देखे हुए
सो देखने चली आयी थी। मैने चौंक कर पीछे मुड़ कर देखा तो मेरे सामने अदा अपने नये स्वरुप मे खड़ी हुई थी।
पहली नजर मे तो मै उसे पहचान नहीं सका था लेकिन
फिर उसे देख कर मेरी धड़कन बढ़ गयी थी। …ओह तुम हो। सभी लड़कियाँ अब तक मुझे घेर कर खड़ी
हो गयी थी। …कैसे हो समीर? सब के सामने कुछ भी बोल पाने मे मुझे मुश्किल हो रही थी।
उसने अपने साथ खड़ी हुई लड़कियों से कहा… तुमने देख लिया। तुम्हारे सामने इसकी आवाज नहीं
निकलेगी। इतना बोल कर वह मेरा हाथ पकड़ कर एक किनारे मे ले गयी और धीरे से बोली… मैने
कहा था कि मै तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ूँगी तो तुम्हें यह बताने के लिए आयी हूँ कि मै
यहीं पर हूँ और अगली बार गेट पास मिले तो मुझे पहले ही खबर कर देना वर्ना मै दुबारा
यहाँ आ जाऊँगी। यह मेरा नम्बर है बस मेसेज छोड़ देना। उसने एक छोटा सा कागज मेरी ओर
बढ़ा दिया था। उस कागज को जेब मे डाल कर मैने पूछा… तुमने कहाँ एड्मिशन लिया है। अम्मी
ने बताया था कि तुमने पूणे के किसी मेडिकल कालेज मे दाखिला लिया है। वह मुस्कुरा कर
बोली… समीर तुम सब भूल गये। मैने कहा था कि मै भी तुम्हारे साथ फौज मे जाऊँगी तो…यह
सुन कर पहली बार मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट तैर गयी थी। …अच्छा तुमने एएफएमसी मे दाखिला
लिया है। उसने कुछ नहीं कहा लेकिन उसकी आँखों ने सब कुछ बोल दिया था।
…तुम मुझसे अब खफा तो नहीं हो? …समीर तुम बेवकूफ
ही रहोगे। …क्यों तुमने ही तो मुझसे बात करना बन्द कर दिया था। मुझे लगा कि शायद काफ़िर
होने के कारण तुम और आलिया ने मुझसे दूरी बना ली है या शायद इस कारण कि मैने अब्बा
पर पिस्तौल तानी थी। वह अचानक आगे बढ़ कर मुझसे लिपट गयी थी। रिसेप्शन एरिया मे उसकी
इस हरकत ने मुझे हिला कर रख दिया था। मैने अचकचा कर जल्दी से अपने आप को उससे अलग करते
हुए चारों ओर देख कर कहा… यह क्या कर रही हो। सब देख रहे है। वह मेरी ओर देख कर बोली…
जब मिलोगे तब उसके बारे बताऊँगी। फिलहाल यह बताओ कि मै कैसी लग रही हूँ। मै चुपचाप
खड़ा रहा क्योंकि मुझे कुछ भी समझ मे नहीं आ रहा था। …समीर। वह कुछ बोलने जा रही थी
कि तभी मेरे दिमाग मे छनाका सा हुआ और मैने तेजी से कहा… यही टी-शर्ट तो मै तुम्हारे
लिए एलाहाबाद से लाया था। यह सुन कर उसका चेहरा खिल गया था। मै खुशी से उसे अपनी बाँहों
मे जकड़ना चाहता था परन्तु हिम्मत नहीं जुटा पाया था। …याद है न कि हमे यह कपड़े पहन
कर तुम्हें दिखाने थे। तबसे आज तक तुम्हें यह कपड़े दिखाने के लिए मै इंतजार कर रही
थी। जीन्स भी वही है। बेचारी आलिया ने तुम्हे दिखाने के लिए आज तक उन कपड़ो को नहीं
पहना है। वह कुछ और बोलती तभी उसके साथ आयी हुई लड़कियाँ हमारे पास आकर बोली… अदा चल।
वह बार-बार इशारा कर रहा है। एक बार अदा ने मेरा हाथ पकड़ा और धीरे से बोली… अच्छा मै
चलती हूँ। मै तुम्हारे फोन का इंतजार करुँगी। वह मुड़ी और अपने साथियों के साथ वापिस
चली गयी।
उसके जाने के बाद मै एक अजीब उलझन मे फँस गया
था। एक ओर अंजली और दूसरी ओर बट परिवार। अभी तक मैने इस बारे मे तो सोचा ही नहीं था
परन्तु अदा से मिल कर मै इस बारे मे सोचने के लिये मजबूर हो गया था। जब मुझे कुछ समझ
मे नहीं आया तो मैने सब कुछ हालात पर छोड़ते हुए अपने अन्दर होते हुए द्वन्द को शान्त
किया और एक बार फिर अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी मे डूब गया था। ड्रिल, कालेज, पढ़ाई, ट्रेनिंग
व व्यायाम के बाद दिमाग और जिस्म शाम तक थकान के कारण काम करना बन्द कर देते थे। मुझे
अगले दो हफ्ते बाहर जाने की इजाजत नहीं मिली थी। अदा से इस बीच मेरी एक बार फोन पर
बात हुई थी। जिस दिन मैने बाहर जाने वालों की लिस्ट मे अपना नाम देखा तो उसी दिन मैने
अदा को खबर कर दी थी। मै एक बार उसे अपने बदले हुए हालात के बारे मे बताने की सोच रहा
था। बचपन से अब तक अदा ही मेरे सबसे करीब थी। जब भी मै किसी उलझन मे डूबा हुआ होता
तो एक अकेली वही मेरे साथ खड़ी हुई दिखती थी। अगले दिन सुबह दस बजे हमारी अकादमी की
बस ने पूणे शहर के बीच मेन मार्किट मे छोड़ दिया था। अदा मेरा इंतजार कर रही थी। बस
से उतरते ही मै उसकी ओर चला गया था। वह किसी की स्कूटी लेकर आयी थी।
…अब समीर तुम बहुत भारी भरकम हो गये हो। तुम
चलाओ। वह मेरे पीछे बैठ कर रास्ता बता रही थी और मै उसके अनुसार स्कूटी से रास्ता तय
कर रहा था। कुछ देर चलने के बाद एक बहुमंजिला फ्लैट के सामने स्कूटी खड़ी करवा कर वह
बोली… आओ मेरे साथ चलो। मै उसके साथ चल दिया था। एक फ्लैट के सामने पहुँच कर वह घंटी
बजा कर बोली… मै यहाँ रहती हूँ। एक लड़की ने दरवाजा खोला और वह मेरी ओर देख कर मुस्कुरा
कर बोली… केडेट समीर, आपसे मिलने के लिए हम सब बेताब थी। एकाएक दो और लड़कियाँ मेरे
सामने आ कर खड़ी हो गयी थी। अदा के साथ मै फ्लैट मे दाखिल होते ही बोला… बहुत बड़ा फ्लैट
है। अदा ने कहा… चार कमरे का फ्लैट है। यहाँ हम चार लड़कियाँ रहती है। सामने ही कालेज
है। सोफे पर बैठते ही सभी से परिचय होने लगा… यह श्री, वह सीमा, अल्का और राबिया है।
सभी के चेहरों पर एक मुस्कुराहट थी परन्तु उनकी आँखों मे शैतानी भरी हुई थी। जब तक
मेरी उनसे पहचान होती अदा ने अचानक मेरा हाथ पकड़ा और मुझे खींचते हुए अपने कमरे मे
ले जाते हुए अपनी सहेलियों से बोली… टुडे डोन्ट डिस्टर्ब अस गर्ल्स। मै ठिठक कर रुका
तो मेरा हाथ पकड़ कर खींचते हुए बोली… तुम्हारा डर यहाँ आ कर भी अभी तक नहीं गया। इतना
बोल कर उसने कमरे मे प्रवेश करते ही दरवाजा बन्द कर दिया और मुड़ कर मुझे देखने लगी।
इस्लामाबाद
जनरल मंसूर बाजवा अपने कुछ खास लोगो के साथ
बैठ कर नयी रणनीति पर चर्चा कर रहा था। …मुजफराबाद का रास्ता खुल गया है। तुम्हारे
साथी क्या कर रहे है? …सर, मेरे साथी ने जमात-ए-इस्लामी के एक खास व्यक्ति को इस काम
के लिये तैयार किया है। वह कश्मीर मे अपना नेटवर्क तैयार कर रहा है। …फारुख क्या तुम्हारा
वह आदमी इस काम को कर सकेगा? …सर, हुर्रियत का नेता हमारे बीच मे मध्यस्थता करा रहा
है। मुझे यकीन है कि वह आदमी हमारी मदद करेगा। अब हमे अपने प्लान को कार्यन्वित करने
के लिये वहाँ की मस्जिदों मे अपने लोग बिठाने है। बाजवा ने सारी बात सुन कर सामने बैठे
हुए सफेद लिबास मे मौलवी से कहा… जनाब मीरवायज साहब अबकी बार उनकी मस्जिदों के लिये
हमे आपके फिरके से कुछ मौलवी और मुफ्तियों की जरुरत पड़ेगी। वृद्ध मीरवायज ने अपनी सफेद
दाड़ी पर हाथ फेरते हुए कहा… आपके कहे अनुसार हमने उनको तैयार कर दिया है। अब आप उन्हें
वहाँ भेजने का इंतजाम करा दीजिये। बाजवा ने हामी भरते हुए कहा… फारुख उनको भेजने का
प्रबन्ध कर देगा। वह अभी चर्चा कर रहे थे कि कमरे का दरवाजा खोल कर एक अर्दली ने प्रवेश
किया और बाजवा के पास जाकर दबे हुए स्वर मे कहा… हाट लाइन पर जनरल साहिब है। मंसूर
बाजवा तुरंत उठ कर खड़ा हो गया और बिना किसी को बोले कमरे से बाहर निकल गया।
अपने कमरे मे रिसीवर कान से लगाये मंसूर बाजवा
जल्दी से बोला… जनाब। …बाजवा, मुजफराबाद का रास्ता खुल गया है। तुमने उस रास्ते को
इस्तेमाल करने के लिये कोई योजना तैयार की है? …जी जनाब, मै आपके सामने हाजिर हो कर
सारी योजना का खुलासा कर दूँगा। …इस बात का ख्याल रहे कि आप्रेशन टोपेक के लिये पैसों
का इंतजाम इस रास्ते से करना होगा। ख्याल रहे कि यह रास्ता लश्कर और जैश के लिये नहीं
है अपितु आप्रेशन टोपेक की लाइफलाइन है। …जी जनाब। इस काम के लिये मैने एक फूलप्रूफ
योजना तैयार की है। हम सेब के व्यापारियों को इस काम मे अपना मुख्य मोहरा बना कर इस्तेमाल
करेंगें। …गुड, मै यही सुनना चाहता हूँ। कल शाम को सात बजे मेरे आफिस पहुँच जाना। इसी
बहाने तुम्हारी मुलाकात उस तीन सदस्यीय टीम से भी हो जाएगी। …जी जनाब। बाजवा कुछ बोलना
चाहता था परन्तु तभी जनरल ने लाईन काट दी थी। वह रिसीवर रख कर धीमे कदमों से उस कमरे
की ओर चल दिया था।
पिछले अंक में जो भी आग एलिस ने जलाया था वो इस अंक में समीर और अंजली को अपने लपेटे में ले लिया और इसी बीच उनके प्यार का परवान अंजली की गोद भी भरदी मगर इसी बीच यह भी पता चला की मकबूल भट्ट का कहर कॉल परिवार के आखरी लड़की को भी नही बक्शा, आखिर समीर के प्यार ने अंजली को फिर से पुनः जीवित कर दिया। इसी बीच समीर का आर्मी में सिलेक्शन और अदा ने अपना वादा पूरा करते हुए ए एफ एम सी में अपना स्थान बना लिया है। दूसरी ओर मुझफरबाद का रास्ता खोलने से आतंकी संगठन ने अपने प्लान का दूसरा चरण शुरू करने में जुगत भिड़ा रहे हैं। अबकी बार समीर के सामने शायद उसके अपने सामने होंगे (जैसे प्लान के तहत सेब के व्यापारी इस चरण के सूत्रधार होंगे) मगर जैसा जज्बाती वो अभी है उससे उसको बहुत से परेशानियां कई गुना बढ़ जाएगी। बहुत ही सुंदर चित्रण कहानियों के किरदारों का वीर भाई।
जवाब देंहटाएंअगले अंक के इंतेजार में
जवाब देंहटाएंएविड भाई आपकी टिप्पणी के लिये बहुत-बहुत शुक्रिया। अचानक मन मे एक विचार उठा तो आपसे पूछने की हिमाकत कर रहा हूँ. क्या आपने मेरी रचना 'जंग, मोहब्बत और धोखा' पढ़ी है? चुँकि आपके उत्साह से मै काफी प्रभावित हुआ हूँ तो क्या आप बता सकते कि उस रचना के शीर्षक का उस कहानी से क्या संबन्ध हो सकता है? आपके जवाब की प्रतीक्षा करुँगा। शुक्रिया
जवाब देंहटाएंजी मैने आपकी सभी कहानियां पढ़ी है और सभी मुझे अच्छी लगी और जंग , मोहब्बत और धोखा का क्लाइमैक्स सच में सबसे ज्यादा रोमांचक था जहां जुड़वा बहनों ने मिल कर कैसे अली (शायद मुख्य किरदार के यही नाम था) को भनक भी न लगने दी अपने बारे में जहां थोड़ा अली को धोखा मिला और जहां अपनी मोहब्बत फ्रेया को अली ने खोया वहीं जारा के प्यार ने उसे सच्चे प्यार से रूबरू कराया और जो जंग सऊदी अमीर के साथ अली ने शुरू किया था शांति बनाने के लिए वो फ्रेया के अंत के साथ समाप्त हुई। अगर आप अपना दृष्टिकोण इस कहानी के रचना और पात्र के बारे में बताएंगे वीर भाई तो हमको एक नया दिशा भी मिलेगी इस कहानी को फिरसे पढ़ कर वो बात समझने के लिए।
हटाएंमैने अपना जवाब देने कीकोशिश की है। मुझे पता नहीं कि आप मेरी बात से कितना सहमत है परन्तु सच्चायी वही है जो कि मैने आपके सामने रखी थी।
जवाब देंहटाएंजी मैने जब कहानी या अन्य रचनाएं पढ़ना शुरू किया मेरा ध्येय यही रहता की जो भी रचना हम पढ़ते हैं उसमें हम क्या कुछ सीखते हैं और वो रचना अपनी शीर्षक को सार्थक करती है की नहीं।
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