गुरुवार, 27 अक्टूबर 2022

  

काफ़िर-9

 

मुंबई की नारीमन पोइन्ट पर एक बहुमंजिला इमारत मे आफशाँ का आफिस था। अन्दर कदम रखते ही फाईव स्टार जैसा माहौल देखने को मिला था। मैने रिसेप्शन पर पहुँच कर आफशाँ बट से मिलने के लिए पूछा तो उन्होनें मुझे वेटिंग एरिया मे बैठने के लिये कह दिया था। शीशे का बड़ा सा एन्क्लोजर जहाँ लाईन से सोफे रखे हुए थे। कुछ लोग इधर-उधर बैठे हुए थे। एक खाली सोफा देख कर मै एक किनारे मे जाकर बैठ गया था। कुछ देर के बाद खट-खट की आवाज ने मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्शित किया तो मेरी नजर उस ओर चली गयी थी। पहली नजर मे आफशाँ को मै पहचान नहीं सका था। वह पश्चिमी वेषभूशा मे थी। मैने तो हमेशा उसे सिर पर स्कार्फ, फेयरन और पजामी मे देखा था। अब वह एक चुस्त शर्ट और स्किन टाइट पतलून मे आधुनिक कामकाजी लड़की दिख रही थी। चुस्त कपड़ों मे उसका जिस्मानी उतार चढ़ाव कुछ ज्यादा ही उभर कर दिख रहा था। उसकी कामुकता का प्रभाव ऐसा था कि वेटिंग एरिया मे बैठे हुए सभी लोगों की नजर उसके उपर जाकर टिक गयी थी। उसमे कितना बदलाव आ गया था। यही सोच कर एक बार मेरा मन किया कि चुपचाप उससे बिना मिले यहाँ से निकल जाऊँ परन्तु तब तक देर हो चुकी थी। वह वेटिंग एरिया के बीचोंबीच आकर खड़ी हो गयी थी। उसने चारों ओर नजरें दौड़ा कर अपने गेस्ट को तलाश किया परन्तु वह मुझे पहचानने मे अभी भी अस्मर्थ थी। जैसे ही वह मुड़ कर रिसेप्शन की ओर जाने लगी तभी मै अपनी जगह पर खड़ा हो गया था।

वह आगे बढ़ते हुए अचानक पलटी और मुझे देख कर एक पल के रुक गयी थी। उसने पहली बार मुझे ध्यान से देखा था। मेरे रंगरुट जैसे बाल और क्लीन शेव चेहरे को पहचानने मे उसे कुछ पल लगे और फिर एकाएक तेज कदमों से चलते हुए मेरी ओर आयी और हैरतभरी आवाज ने बोली… समीर। तुम यहाँ कैसे? अब बैठे हुए सभी लोगों की नजर मुझ पर टिक गयी थी। …मैने तो सुना था कि आजकल तुम पठानकोट मे हो। …मै वहीं पर हूँ परन्तु अभी कुछ दिन पहले हुए मुंबई बाम्ब ब्लास्ट मे मैने एक साथी को खो दिया था। उसकी आखिरी क्रिया पर आया था। …ओह सौरी। बात करते हुए एकाएक वह संभल गयी और धीरे से बोली… मैने भी सुना था कि यहाँ बहुत से लोग मारे गये थे। चलो कैन्टीन मे चल कर बैठते है। इतना बोल कर वह चल दी थी। मै भी चुपचाप उसके साथ चल दिया था। …समीर तुम तो बिलकुल बदल गये हो। मैने तुम्हें आखिरी बार लम्बे बाल और मूँछ-दाड़ी मे देखा था। उस वक्त तुम मदरसा छाप लगते थे। इस रुप मे तुम्हें इतनी जल्दी कोई पहचान नहीं सकता। उसकी बात सुन कर मैने झेंपते हुए कहा… तुम्हारा स्कार्फ, फेयरन और पजामी का क्या हुआ? वह अभी भी चलते हुए मेरी ओर देख रही थी। …आफशाँ समय के अनुसार सब बदल जाता है। मेरी बात सुन कर वह मुस्कुरा कर आँखें चढ़ाते हुए बोली… ओहो, साहब अब बोलना भी सीख गये है। वैसे इस हुलिये तुम स्मार्ट लग रहे हो। पता नहीं क्यों लेकिन उसके साथ चलते हुए मुझे ऐसा लग रहा था कि सभी की नजरें हम पर टिकी हुई है।

बात बदलने की मंशा से मैने पूछा…आफशाँ तुम यहाँ पर कहाँ रहती हो? बड़े बिंदास स्वर मे वह बोली… क्या बताऊँ फिलहाल तो आफिस ने मेरे रहने की व्यवस्था लड़कियों के वर्किंग वुमेन्स होस्टल मे करी है। अब जल्दी ही मुझे मकान मे शिफ्ट करना पड़ेगा क्योंकि होस्टल मे सिर्फ तीन महीने तक ठहरने की इजाजत है। फिलहाल तो मैने कुछ चक्कर चला कर दो महीने के लिए और वहीं पर ठहरने का इंतजाम कर लिया है परन्तु जल्दी ही अपने रहने की स्थायी व्यवस्था करनी पड़ेगी। बात करते हुए हम कैंन्टीन पहुँच गये थे। टेबल के सामने पड़े हुए स्टूल पर उचक कर बैठते हुए वह बोली… पिछले चार महीने से मेरा हर शनिवार और इतवार पेईंग गेस्ट रिहाईश को ढूँढने मे निकल रहा है। कहीं पर कुछ परेशानी है और कहीं पर कुछ। खैर, तुम अपनी सुनाओ। फौज की जिन्दगी कैसी चल रही है? मै सोच रहा था कि क्या यह वही लड़की है जिसके साथ मै इतने साल रहा था। आफशाँ की आवाज मैने बहुत कम सुनी थी। वैसे भी हम दोनो के बीच कभी ज्यादा घनिष्टता तो पहले भी नहीं रही थी। आसिया हम सब मे बड़ी थी तो ज्यादातर उसकी आवाज सुनने की आदत थी। आसिया के बैंगलौर जाने के बाद जब हम तीनो उसकी ओर देखा करते थे तब उसका ज्यादा समय अपनी पढ़ाई और कोचिंग मे निकलता था। इसी कारण हमारी बीच कभी ज्यादा बातचीत नहीं हो सकी थी।  

…क्या सोचने बैठ गये? उसने मेरा हाथ पकड़ कर हिलाते हुए कहा तो मैने जल्दी से कहा… तुम्हें देख कर अपने अतीत मे पहुँच गया था… सौरी। अचानक उसके चेहरे पर से बनावटीपन की चादर हटती हुई दिखी क्योंकि अपना अतीत याद आते ही उसके चेहरे पर भी एक मुस्कान तैर गयी थी। एकाएक मैने कहा… आफशाँ अगर मै तुम्हारे लिए रहने का इंतजाम कर दूँ तो तुम मेरे लिए क्या कर सकती हो?  वह खुशी से चीखती हुई बोली… बताओ समीर वह जगह कहाँ है। चलो अभी देखने चलते है। प्लीज मेरी बहुत बड़ी परेशानी हल हो जाएगी। एकाएक वह चुप हो गयी और फिर मुझे घूर कर देखती हुई बोली… मेरे साथ कुछ करने की तुम सोचना भी नही। मैने जल्दी से कहा… अगर तुम्हे वह जगह चाहिए तो जो मै कहूँगा वह करना पड़ेगा। …क्या करना पड़ेगा? …जो मै चाहूँ। सोच कर बता देना। इतना कह कर मै स्टूल छोड़ कर उठ गया और द्वार की दिशा की ओर चलने लगा। वह मेरी ओर झपटी और मेरा हाथ पकड़ कर वापिस खींचते हुए टेबल की ओर चल दी तभी उसकी नजर सामने चली गयी तो उसने झेंप कर मेरा हाथ छोड़ दिया क्योंकि वहाँ उपस्थित सभी लोग उसको बड़ी हैरत से देख रहे थे। 

बचपन से जवानी तक उम्र मे छोटे होने के कारण हम तीनों आफशाँ की नस-नस से वाकिफ थे। वह हमारी बात सुनने से पहले ही मना कर देती थी। अगर वह खुद चाहती तो अपनी ओर से हमारे लिए पहाड़ हिला देती थी परन्तु किसी के कहने पर मेज पर पड़ी हुई सुई भी कोई उससे हिलवा नहीं सकता था। ऐसी जिद्दी लड़की थी। मैने तो औपचारिकतावश उसकी रिहाईश के बारे मे पूछ लिया था। उसकी परेशानी को सुन कर मेरे दिमाग मे उड़ता हुआ एक ख्याल आया था इसीलिये मैने यह प्रस्ताव उसके सामने रख दिया था। मै अपनी सोच मे गुम था कि तभी मेरे करीब आकर धीरे से बोली… समीर चलो बाहर चलते है। यहाँ सब देख रहे है। कल तक पूरे आफिस मे यह बात फैल जाएगी। यह कह कर वह चल दी और मै उसके साथ चुपचाप चल दिया था। कैन्टीन मे सभी आँखें हमारा पीछा कर रही थी। अचानक उसका हाथ पकड़ कर मै अपनी एड़ियों घूम गया और अपनी ओर देखते हुए लोगों से जोर से बोला… सौरी गाईज। पर्सनल मसला है। यह देखते ही आफशाँ का चेहरा शर्म से लाल हो गया था। अब वह वापिस अपने पुराने अवतार मे आ गयी थी। मेरे कंधे पर मुक्का जड़ कर  बोली… कल यह पूरे आफिस की गासिप होगी।

…क्यों? …इसलिये कि मै बस अपने काम से काम रखती हूँ। …मै शर्त लगा कर कह सकता हूँ कि तुम यहाँ की आफिस क्वीन होगी। …तुम अकेली कामकाजी लड़की की परेशानी नहीं समझ सकते। अगर वह किसी से हँस कर एक बार बात कर ले तो अगले दिन ही उसके बारे मे तरह-तरह की बातें सर्कुलेशन मे आ जाती है। लोगों के दोस्ती के पैगाम मिलने आरंभ हो जाते है। आईटी सेक्टर मे यह आम बात होती है। हाई स्ट्रेस जाब होने के कारण क्षणिक मनोरंजन के लिये रिश्ते न चाहते हुए भी जोड़े जाने लगते है। …बड़ा बेहूदा रिवाज है। …अगर लड़की किसी को लिफ्ट नहीं देती तो उसे आईस कूल, टीजर और नकचड़ी के नामो से नवाजा जाता है। उसकी बात सुन कर मैने मुस्कुरा कर पूछा… तो तुम्हें यहाँ क्या नाम दिया है? उसने चलते हुए एक बार फिर से मेरे कंधे पर हाथ मार कर कहा… चुपचाप चलो। चार महीने मे पहली बार कोई मुझसे कोई मिलने आया है। कल तक यह विषय टापिक आफ द डे होगा। कल बहुत से दिल टूटेंगें और कुछ लोग तुम्हारे बारे मे जानने के लिये न जाने कौन से रास्ते खोंजेंगें। मै चुपचाप उसके साथ मुख्य द्वार की ओर चल दिया था।     

हम उसके आफिस से बाहर निकल आये थे। उसे अपने साथ लेकर कार की ओर चल दिया। …किसकी कार है? …दोस्त की कार है। चलो मेरे साथ। कार मे बैठते ही वह खिलखिला कर हँस पड़ी थी। …समीर उन सब का चेहरा देखने लायक था। वह मुस्कुरा रही थी। उसको देख कर मै भी खुश था क्योंकि अब वह अपने पुराने स्वरुप मे आ गयी थी। कुछ देर के बाद मै अंजली के फ्लैट मे उसके साथ बैठा हुआ था। …तुम यहाँ आराम से रह सकती हो? वह अभी भी अविश्वास से मेरी ओर देख रही थी। …मुझे क्या करना होगा? यह सबसे आसान सवाल था परन्तु इसका जवाब मेरे लिये सबसे मुश्किल था। सामने मेनका फर्श पर बैठी हुई आया के साथ खेल रही थी। मैने उसकी ओर इशारा करते हुए कहा… आफशाँ, यह मेरी बेटी है। इसकी माँ उस ब्लास्ट मे मारी गयी थी। इसीलिए मै पठानकोट से यहाँ आया था। दो दिन बाद मुझे वापिस पठानकोट मे रिपोर्ट करना है। यह मेरी पत्नी का फ्लैट है। तुम चाहो तो अपने किसी दोस्त को भी यहाँ ठहरा सकती हो परन्तु मेरी सिर्फ एक शर्त है कि इस बच्ची की जिम्मेदारी तुम्हे कुछ महीनों के लिए उठानी पड़ेगी। मेरी नौकरी ऐसी है कि उसमे कुछ भी स्थायी नहीं है इसलिये मेनका को मै अपने साथ पठानकोट मे नहीं रख सकता। इतना बोल कर मैने उसकी ओर देखा तो वह अपनी जगह पर नहीं थी। मेरी बात को अनसुना करके वह उठ कर मेनका के पास चली गयी थी।

मै उन्हें देख तो रहा था परन्तु एक विचार मेरे दिमाग मे घूम रहा था कि एक साल मे अदा की पढ़ाई पूरी हो जाएगी तो वह यहाँ पर आकर फिर सब कुछ संभाल लेगी। आफशाँ अपनी गोद मे मेनका को लेकर मेरे पास बैठते हुए बोली… समीर, सच बताओ कि क्या यह तुम्हारी बेटी है? …यह मेरी बेटी है। बस इससे आगे मुझसे कुछ नहीं पूछना। उसने कुछ पल मुझे बड़े ध्यान से देखा और फिर सिर हिला कर बोली… मुझे विश्वास नहीं हो रहा है। क्या अम्मी को इस बारे मे पता है। …नहीं। एक पल रुक कर मैने कहा… प्लीज उन्हें मत बताना। वह अभी भी हैरतभरी नजरों से मेरी ओर देख रही थी। कुछ सोचकर मैने कहा… वैसे तो आया इसकी सुबह से शाम तक देखभाल करती है परन्तु उस पर मेनका की जिम्मेदारी छोड़ कर मै वापिस नहीं जा सकता। क्या तुम इसकी जिम्मेदारी कुछ समय के लिये ले सकती हो जब तक कोई दूसरा इंतजाम नहीं होता?

वह मेरी ओर कुछ देर तक देखती रही फिर मुस्कुरा कर बोली… अगर तुम चाहो तो मेनका की जिम्मेदारी ले सकती हूँ लेकिन फिर जो मै कहूँगी वह तुम्हें करना पड़ेगा। मैने मुस्कुरा कर कहा… क्या करना पड़ेगा? …जो मै चाहूँ। ठीक है सोच कर बता देना। यह बोल कर वह उठ कर मेनका के साथ खेलने मे व्यस्त हो गयी। वह शाम तक वहीं पर मेनका के साथ बात करते हुए खेलती रही थी। जब मेनका थक कर सो गयी तब फिर आफशाँ मेरे पास आकर बोली… समीर चलो चल कर होस्टल से सामान ले आये। मेनका को उसने गोदी मे उठाया और मेरे साथ चल दी। कार चलाते हुए मैने कहा… कार चलाना सीख लोगी तो आफिस जाने मे आसानी हो जाएगी। वह कुछ नहीं बोली बस चुपचाप सामने देखती रही। वर्किंग विमन्स हास्टल से अपना सारा सामान कार मे रखवा कर वह बोली… रास्ते मे शापिंग माल के सामने रोक लेना। मुझे सस्पेन्डर खरीदना है। उस वक्त तो मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ा लेकिन जब वह खरीद कर लायी तब  मेरे समझ मे आया कि सस्पेन्डर क्या होता है। गले मे बच्चे को लटकाने वाली बेल्टनुमा चीज को सस्पेन्डर कहते है जिसके कारण उस व्यक्ति के दोनो हाथ आजाद हो जाते है।

कार मे बैठते ही उसने कहा… चलो समीर आज खाना बाहर खा लेते है। रास्ते मे एक जगह पर उसने कार रुकवाते हुए कहा… यहीं पर कार रोक लो। आज यही सड़क के किनारे बैठ कर खाएँगें। जब तक मैने कार किनारे पर खड़ी की तब तक आफशाँ ने सस्पेन्डर पहन कर मेनका को उसमे बिठा लिया था। हम दोनो वहीं बेन्च पर बैठ गये थे। …समीर मैने कभी नहीं सोचा था कि तुम बिना बताये इतना बड़ा कदम उठा सकते हो। …आफशाँ जिस दिन तुम मोहब्बत मे पड़ गयी तो कोई भी कदम तुम्हें बड़ा नहीं लगेगा। प्लीज इसकी बात मत करो। मै कुछ भूलने की कोशिश कर रहा हूँ। वह चुप हो गयी और चुपचाप खाने बैठ गयी थी। …सौरी आफशाँ, मुझे यह नहीं बोलना चाहिए था। उसने मेरी ओर देखा और फिर धीरे से बोली… मै तुम्हारा दिल दुखाना नहीं चाहती लेकिन यह रहस्य मुझे बार-बार परेशान कर रहा है कि वह कौन थी और तुम उससे कैसे और कहाँ मिले थे? भला इतनी बड़ी बात का अम्मी को भी नहीं पता है…चलो छोड़ो। हम चुपचाप खाना खाने मे व्यस्त हो गये थे। खाना समाप्त करने बाद कुछ देर अरब सागर की हवा खाने के बाद हम घर की ओर चल दिये थे।

घर पहुँच कर मैने कहा… तुम जाकर फ्लैट खोलो तब तक मै तुम्हारा सामान लेकर आता हूँ। वह मेनका को लेकर चली गयी और मै उसका सामान कार से निकाल कर कुछ देर के बाद पहुँचा था। तब तक आफशाँ ने मेनका को उसके पालने मे सुला दिया था। मुझे सामान लाते हुए देख कर वह मेरी मदद करने के लिए आगे बढ़ी तो उसका सामान एलिस के कमरे मे रख कर मैने कहा… आज से यह कमरा तुम्हारा है। अभी कुछ सामान नीचे रह गया है। वह लेकर आता हूँ तब तक तुम अपने सामान को लगा लो। यह बोल कर मै वापिस कार की ओर चला गया था। मुझे दो चक्कर और लगाने पड़े थे लेकिन उसका सारा सामान आ गया था। देर रात तक वह अपना सामान कमरे मे लगाने मे व्यस्त रही थी। मै अपने कमरे मे मेनका के पास जाकर सो गया था।

फौज मे रहने के कारण सुबह पाँच बजे मेरी आँख खुल गयी थी। मै उठा और किचन मे चला गया। चाय पीते हुए मेरी नजर मेनका की ओर चली गयी थी। वह उठ गयी थी और अपने पालने से नीचे उतरने की कोशिश कर रही थी। मैने उसे उठा लिया और उसका डायपर बदल कर उसे फर्श पर छोड़ कर जैसे ही डायपर फेंकने के लिए उठा तो दरवाजे पर आफशाँ खड़ी हुई मुझे बड़े ध्यान से देख रही थी। मै डायपर फेंक कर जब लौटा तो भी उसकी निगाह अभी भी मुझ पर टिकी हुई थी। …ऐसे क्या देख रही हो? …मुझे अभी भी अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा है। तुम इतने जिम्मेदार कैसे और कब हो गये? उसको टालने के लिये मैने कहा… तुम्हें आज आफिस नहीं जाना है? जब तक मै यहाँ हूँ तब तक मै तुम्हें कार से आफिस छोड़ दूँगा परन्तु अच्छा रहेगा कि तुम कार चलाना सीख लो। मेरे जाने के बाद तुम्हें अपने आप सब संभालना पड़ेगा। आज शाम को मुझे पठानकोट के लिए निकलना है। यह सुन कर एक पल के लिये उसका चेहरा उतर गया था। मै उसके पास चला गया… क्या हुआ? …तुम्हारे जाने की खबर सुन कर घबराहट हो रही है। उसके कंधे पर हाथ रख कर उसकी आँखों मे झाँकते हुए मैने कहा… फिक्र करने की कोई बात नहीं है। अभी कुछ देर मे आया आ जाएगी। वह सब संभाल लेगी। उसने धीरे से अपना सिर हिला दिया परन्तु मुझे लगा कि शायद मेरे लौटने की खबर से उसका आत्मविश्वास कमजोर पड़ गया था।

हम दोनो तैयार होने के लिये चले गये थे। जब तक मै तैयार हो कर बाहर निकला तब तक आया भी आ चुकी थी। वह नाश्ता बनाने मे लग गयी थी। मेनका अपने खिलौनों मे व्यस्त थी। मै आराम से सोफे पर बैठ गया और अपने लौटने के इंतजाम के बारे मे सोचने बैठ गया। कुछ देर के बाद आफशाँ अपने कमरे से बाहर निकली तो मै उसे देखता रह गया था। वह आज भी कल जैसे अपने पश्चिमी लिबास मे थी परन्तु आज उसके कपड़े थोड़े ज्यादा ही स्किन टाइट लग रहे थे। उसके कोमल अंगों पर कुछ इस तरह चिपके हुए थे कि हर गोलाई और कटाव कुछ ज्यादा उभरा हुआ प्रतीत हो रहा था। …तुम ऐसे आफिस जाओगी? …क्या खराबी है इन कपड़ों मे…हजारों लड़कियाँ यहाँ ऐसे कपड़े पहन कर आफिस जाती है। मैने सिर्फ कन्धे उचका कर अपने काम मे लग गया था। मैने फोन से एयरपोर्ट पर अपने वारन्ट आफीसर से पठानकोट के जाने के बारे मे पूछा तो उसने बताया कि एक कार्गो फ्लाईट रात को तीन बजे पठानकोट जाएगी। दो बजे से पहले अगर मै पहुँच गया तो वह मेरे ट्रांसिट पेपर्स बना देगा। …तुम मेरे पेपर्स तैयार रखना मै टाइम से पहले पहुँच जाऊँगा। मेरा जाने का इंतजाम हो गया था। मैने आफशाँ को बता दिया कि मै आज शाम को उसको आफिस से पिक कर लूँगा क्योंकि मेरी फ्लाईट रात को तीन बजे की है। बात करते हुए मेज पर नाश्ता लग गया था। नाश्ता करके मै उसे आफिस छोड़ने के लिए चल दिया।

शाम को मैने उसे लेने चला गया था। घर पहुँच कर वह बोली… समीर, इसका पालना और सामान मेरे कमरे मे रखवा दो। ऐसा तो नहीं हो सकता कि मै वहाँ और यह यहाँ रहेगी। उसकी बात मे तर्क था सो हम दोनो मेनका का सामान और पालना आफशाँ के कमरे मे पहुँचाने मे व्यस्त हो गये थे। सब काम समाप्त करने के बाद जब हम बैठ गये तब मैने अपना डेबिट कार्ड उसके हाथ मे रखते हुए कहा… अपनी रोजमर्रा की जरुरतें पूरी करने के लिये इस कार्ड को अपने पास रख लो। वह मेरा कार्ड लेकर बोली… इस लिव-इन रिलेशनशिप मेरी जरुरतों का क्या होगा? …यह तुम्हारे लिए ही है। …समीर, तुमने एक पल मे मुझे पराया कर दिया है। क्या मै यहाँ के खर्चे का बोझ नहीं उठा सकती? …आफशाँ, तुम मुझे गलत समझ रही हो। घर मे पता नहीं कब किसी चीज की तुम्हें जरुरत पड़ जाए। इसलिए यह कार्ड दे रहा हूँ। वैसे भी लिव-इन रिलेशनशिप का एक नियम तो मै भी जानता हूँ कि दो रहने वालों को बराबर का खर्चा उठाना पड़ता है। वह मेरी ओर देखते हुए बोली… ठीक है अब चुंकि हम लिव-इन रिलेशनशिप मे है तो खर्चे के साथ तुम्हें काम भी बाँटना पड़ेगा। …परन्तु फिलहाल मै तो यहाँ नहीं हूँ। सारा काम तुम्हें ही देखना होगा। …पर जब तुम वापिस आओगे तब? …प्रामिस, मै फिर तुम्हारा सारे काम का बोझ अपने उपर ले लूँगा। वह मुस्कुरायी और फिर उठ कर चलने से पहले बोली… भूलना नहीं, तुमने वादा किया है। यह कह कर वह अपने कमरे मे चली गयी थी। दो दिनों मे उसने एक बार भी मुझे मेरे काफ़िर होने का एहसास नहीं कराया था।

समय से पहले पहुँच कर मैने पठानकोट जाने वाला कार्गो प्लेन पकड़ लिया था। सामान के साथ प्लेन मे मुझे मिला कर पाँच यात्री सफर कर रहे थे। एक आदमी को छोड़ कर बाकी हम सभी अपनी युनीफार्म मे थे। हवाईजाहज का शोर और लोहे की बेन्च पर पतली सी गद्दी दो तरफा मार रही थी परन्तु सभी को अपनी-अपनी युनिट मे रिपोर्ट करना था इसीलिए उन्होंने इस प्लेन से जाने का निर्णय लिया था। …हैलो लेफ्टिनेन्ट, मेरा नाम कर्नल चीमा है। सादी ड्रेस मे मेरे साथ बैठे हुए व्यक्ति ने मेरी ओर हाथ मिलाने के लिए बड़ा दिया था। सीओ रैंक के अफसर आदतन अपने से नीचे के ओहदे के लोगों से हाथ नहीं मिलाते है। मै जैसे ही सैल्युट करने के लिए खड़ा होने लगा तभी उसने मेरा हाथ पकड़ कर बैठाते हुए बोला… मै युनीफार्म मे नहीं हूँ। प्लीज बैठो। मै चुपचाप बैठ गया था। …तुम स्पेशल फोर्सेज से हो लेफ्टीनेन्ट? …जी जनाब। …समीर बट, कौन से बट हो? क्या मकबूल बट से कोई रिश्ता है? उसका सवाल सुन कर एक पल के लिए मै चौंक गया था। मैने धीरे से कहा… सर, वह मेरे अब्बा है। …ओह। बस इतना बोल कर वह चुप हो गया था। पठानकोट के एयरबेस पर उतरते हुए उसने एक बार फिर हाथ मिला कर कहा… फिर मिलेंगें। इतना बोल कर वह चला गया था। वहाँ से निकल कर मैने अपनी युनिट जोइन कर ली थी।

मेरी युनिट मे मुझे छोड़ कर बारह लोग थे। सभी लोग शार्पशूटर और अत्यन्त कुशल लड़ाकू थे। उनके साथ रोज ड्रिल करने के कारण मुझे उनकी कुशलता और लड़ाई के अनुभव पर अटूट विश्वास अब तक हो गया था। मुंबई से वापिस लौटते ही इन्डियन मुजाहीदीन की फाईल मुझे पकड़ा दी गयी थी। फाईल पढ़ने के बाद मै अपने सीओ के सामने जैसे ही हाजिर हुआ तो उसने कहा… समीर, क्या सोचा है? …सर, आप इजाजत दें तो इनके विरुद्ध आल आउट आप्रेशन आरंभ कर देते है। …यह इतना आसान नहीं होगा। पूरे इलाके मे आठ समूह सक्रिय है। इनमे से आईएम के लोगों की कैसे पहचान होगी? अगर एक साथ इन पर हमला किया तो सभी इकठ्ठे हो जाएँगें तो स्थिति और भी खतरनाक हो जाएगी। …सर स्थानीय पुलिस इन सबसे मिली हुई है। उनकी खबर पर अगर हमने कोई एक्शन लिया तो निश्चित ही हमे नुकसान उठाना पड़ेगा। अगर आप मेरी युनिट को यहाँ के प्रशासन के चंगुल से आजाद करा देंगें तो हम दक्षिण कश्मीर के छह जिलों की सफाई करके उत्तर कश्मीर मे चले जाएँगें। …कैसे करोगे? क्योंकि स्थानीय एड्मिनिस्ट्रेशन तुम्हारी कोई मदद नहीं करेगा अल्बत्ता तुम्हारे काम मे रोड़े जरुर अटकाएगा और हो सकता है कि वह तुम्हें कानून तोड़ने के लिए हिरासत मे रख दें।

…सर, मिलिट्री इन्टेल की रिपोर्ट पर हम एक्शन लेंगें। मेरी युनिट स्टेन्ड-बाई मोड मे रहेगी और इन्टेल रिपोर्ट मिलते ही हम एक्शन मे आ जाएँगें। काफी देर चर्चा चलती रही फिर मैने आखिर मे कहा… सर, थोड़ी सी कानूनी प्रक्रिया से अगर हमे छूट मिल जाए तो नतीजे बेहतर मिलने आरंभ हो जाएँगें। कुछ सोच कर मेरे सीओ ने कहा… एक्सपेरीमेन्ट करने मे कोई हर्ज नहीं है। कौनसा जिला चुना है? …सर, सबसे दक्षिण का जिला कठुआ, फिर उपर बढ़ते हुए सांबा, जम्मू, राजौरी, पुँछ, बारामुल्ला, कुपवाड़ा और बांदीपुरा सीमावर्ती जिले है। आठों कट्टरपंथी तंजीमें इन्ही जिलों मे अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश कर रही है। आईएम का मुख्य कार्यक्षेत्र पुँछ, बारामुल्ला और कुपवाड़ा है। मेरा ख्याल है कि अगर एक्स्पेरीमेन्ट ही करना है तो कठुआ या बारामुल्ला बेहतर जगह साबित हो सकती है। …ठीक है पहले मुझे इस विषय पर उपर चर्चा करने दो फिर देखते है। इतनी बात करके मै बाहर आ गया था।

मेरे सीओ ने फिर इसके बारे मे मुझसे कोई बात नहीं की लेकिन आये दिन कोई खबर मिलते ही हमारी युनिट को कभी छिपे हुए कुछ आतंकवादियों की सफाई हेतु स्थानीय पुलिस और सीआरपीएफ के संयुक्त कार्यवाही की मदद के लिए भेज दिया जाता अन्यथा आर्मी इन्टेल की रिपोर्ट पर अब हम सफाई करने के लिए खुद निकल जाया करते थे। अपने कैंम्प से बाहर निकलते हुए हमारे चेहरों पर वार पेंट लगा हुआ होता था। युनीफार्म के नाम पर सभी काली डंगरीज मे होते थे जिस पर से रैंक और नाम को हटा दिया जाता था। इसीलिये हमारी पहचान मरुन कलर की कैप से होती है। अगले छ्ह महीने मे हमने अपने लिए आतंकवदियों के बीच एक नाम बना लिया था। उसी खास कैप के कारण हमे ‘रेड बेरेट’  का नाम मिल गया था। कुछ ही दिनो मे ‘रेड बेरेट’  के नाम से स्थानीय लोग और आतंकवादियों के बीच मे दहशत फैलने लगी थी। हमारी मूवमेन्ट होते ही सारे इलाके मे इसकी खबर आग की तरह फैल जाती थी। अब तक दक्षिण कश्मीर सेक्टर की सभी तंजीमों और वहाँ के प्रशासन मे यह धारणा बन चुकी थी कि ‘रेड बेरेट’  जब भी कैंम्प से बाहर निकलते है तब वह सिर्फ लाशें लेकर ही वापिस लौटते है।

एक घटना के कारण स्थानीय पुलिस भी हमसे दहशत खाने लगी थी। एक इंटेल रिपोर्ट के मिलते ही हमारी युनिट को कठुआ जिले मे जखबार नामक जगह पर कुछ दहशतगर्दों का पता चला था। वह पहाड़ी इलाका था। खबर मिलते ही हम उस ओर निकल गये थे। जैसे ही हम जखबार की सड़क पर मुड़े कि तभी पुलिस के बेरीकेड पर नियुक्त स्थानीय पुलिस ने रोक कर हमसे पूछताछ आरंभ कर दी थी। आर्मी इंटेल की रिपोर्ट उनसे साझा नहीं कर सकते थे इसीलिए उन्होंने सड़क टूटने का हवाला देकर हमे आगे जाने से रोक दिया था। समय निकलता जा रहा था और कुंठा से मेरे दिमाग का पारा चढ़ता चला जा रहा था। मैने अपने हवलदार को इशारा करते हुए कहा… सब सालो को निशाने पर ले लो। इनकी बातों से लगता है यह भी उनके साथी है। अगर अब इनमे से कोई बोला तो शूट टु किल। अभी समय नहीं है तो लौट कर इनके पेपेर्स चेक करेंगें। पल भर मे सभी खाकी वर्दी वालों को मेरे साथियों ने गन पोइन्ट पर ले लिया था। अपनी ओर एके-203 तनी हुई देख कर अगर फिर भी कोई नहीं डरा तो सेफ्टी लैच हटने की काकिंग साउन्ड सुनते ही सभी दहशत मे जरुर आ गये थे। नायक गुर्जर ने अगले ही पल वहाँ उपस्थित सभी पुलिस वालों को गन पोइन्ट पर लेकर जमीन पर घुटने के बल बैठा दिया था। अपने चार साथियों को उन पर तैनात करके मै अपने साथ आठ साथियों को लेकर आगे निकल गया था।

उस दिन हमारी कुछ किस्मत ही खराब थी। हमारे जाने के बाद कलेक्टर साहब वहाँ से गुजरे तो अपने थानेदार और सिपाहियों की दुर्दशा देख कर कलेक्टर साहब ने मेरे साथियों पर अपने ओहदे की दबिश डालने का प्रयास किया। गुर्जर को तो आदेश मिला हुआ था तो उसने कलेक्टर साहब को भी गन पोइन्ट पर लेकर वहीं घुटने के बल सड़क पर बिठा दिया था। चार घंटे के बाद जब हम पाँच लाशें और तीन घायल आतंकवादियों लेकर वहाँ पहुँचे तब तक सभी ऐसी हालत मे बैठे हुए थे। जैसे ही मेरी जीप रुकी तो कलेक्टर साहब ने खड़े होने की कोशिश की तभी मेरे साथ चलते हुए शेष राम ने कलेक्टर के सीने पर अपनी आटोमेटिक के बट से प्रहार किया और एक ही वार से वह सड़क पर लुढ़क गये थे। मौके की नजाकत समझते हुए मैने जल्दी से अपने चारों साथियों को ट्रक मे बैठने का इशारा किया और उन्हें वहीं उसी हालत मे छोड़ कर हम आगे बढ़ गये थे।

उस घटना के बाद स्थानीय प्रशासन और आर्मी के बीच काफी समय तक हंगामा चलता रहा था। हमारा एक ही जवाब था कि हमे शक था कि आतंकवादी पुलिस युनीफार्म पहन कर अपने साथियों की मदद करने के लिये हमारा रास्ता रोकने की कोशिश कर रहे थे। हमारे चेहरे पर वार पेन्ट और कोम्बेट डंगरीज के कारण हमारी शिनाख्त करना नामुमकिन था। मेरे सीओ साहब वैसे भी स्थानीय प्रशासन और पुलिस से काफी नाराज थे तो उन्होंने भी हमारा भरपूर साथ दिया था। आखिर मे प्रशासन और आर्मी के बीच एक बात तय हो गयी थी कि स्थानीय प्रशासन और पुलिस किसी भी आर्मी की कार्यवाही मे रुकावट पेश नहीं करेंगी। फौजी कार्यवाही के पश्चात हमारी लिखित रिपोर्ट स्थानीय पुलिस और प्रशासन को सौंप दी जाएगी। एक बात जो हमारे पक्ष मे हुई थी कि उस एक्शन मे जो जिहादी मारे गये व घायल हुए वह सभी आईएम के नामजद दुर्दान्त हत्यारों मे से थे। एन्काउन्टर मे मारे गये लोगो की लाशों को पुलिस के हवाले कर दिया गया था। यहीं से हमारी कार्यवाही के लिये रास्ते खुल गये थे। कश्मीरी होने के कारण पकड़े हुए लोगो से बात करना मेरे लिये आसान था। एन्काउन्टर के दौरान पकड़े गये लोगों से पूछताछ करके कड़ी से कड़ी मिलती चली गयी थी। कुछ ही समय मे दक्षिण कश्मीर मे दहशतगर्दों की सफाई होनी आरंभ हो गयी थी।

तीन महीने मे हमने कठुआ से लेकर सांभा तक का इलाका इन्डियन मुजाहीदीन विहीन कर दिया था। कोई छ्त्तीस मुठभेड़ हुई थी जिसमे बावन आतंकवादियों को उनकी हूरों के पास भेज दिया था। जो फाईल मुझे दी गयी थी वह छह महीने मे लगभग बन्द होने की कगार पर पहुँच गयी थी। इस कार्यवाही का असर दूसरे समूहों पर भी पड़ रहा था। वह भी चुपचाप दक्षिण सेक्टर को छोड़ कर मध्य कश्मीर व उत्तर कश्मीर की ओर चले गये थे। मुठभेड़ के दौरान हमारी टीम में कुछ मामूली घायल हुए थे परन्तु कोई हताहत नहीं हुआ था। वहीं से ‘रेड बेरेट’ का खौफ सभी आतंकवादी तंजीमों मे दिमाग मे घर करने लगा था। कठुआ से सांभा तक का इलाका हमने पूरी तरह से छान लिया था। छोटी से छोटी सड़क, झाड़ियों मे छिपी हुई पगडंडिया, नदी और बरसाती नाले, दुकानें और दुकानदार, लगभग सभी जायज और नाजायज कार्य हमारी नजर मे आ गये थे। जब स्थानीय प्रशासन और पुलिस का हम पर जोर नहीं चल सका तब जिहादियों ने फौज के खिलाफ एक नया मोर्चा खोल दिया था। एक साथ कहीं से स्कूली बच्चों की टोली सड़क पर आ जाती और हमारे वाहनों पर पत्थरों की बारिश करनी आरंभ कर देते थे। इसके कारण एक दो बार तो हमको वापिस लौटना पड़ गया था। जैसे ही हमारी मूवमेन्ट पर अंकुश लगा, वैसे ही एक बार फिर से जिहादियों ने सिर उठाना आरंभ कर दिया था।

आर्मी, पैरा-मिलिट्री और पुलिस, सभी सुरक्षा एजेन्सियाँ इस नयी स्कूली बच्चों की कार्यवाही से परेशान थी। आम नागरिकों और बच्चों पर गोली भी नहीं चला सकते थे। सबसे ज्यादा चिंता का विषय फौज के लिए था क्योंकि फौज के मूवमेन्ट पर इस प्रकार की घटना बेहद खतरनाक सिद्ध हो सकती थी। हर हफ्ते किसी न किसी मोर्चे पर सैनिक और असला-बारुद लाया और भेजा जाता था। कहीं से सैनिक ड्युटी समाप्त करके लौट रहे होते और कही सैनिक भेजे जा रहे होते थे। पुलिस और पैरा-मिलिट्री फोर्स पत्थरबाजों पर अंकुश लगाने मे पूर्णत: असफल हो रहे थे। उधर कश्मीर घाटी मे लगातार विस्फोट हो रहे थे। कभी पुलिस काफिले पर हमला होता तो कभी सीआरपीएफ के काफिले पर फिदायीन हमला हो जाता था। मध्य और उत्तरी कश्मीर मे कट्टरपंथी तंजीमे अब और भी ज्यादा बेखौफ हो गयी थी। वर्दीधारी दोनो तरफ से मार खा रहे थे। एक ओर राज्य और केन्द्र सरकार सुरक्षा एजेन्सियों को कड़े कदम लेने से रोक रही थी और दूसरी ओर कट्टरपंथी और अलगाववादी लगातार उनको निशाना बना रहे थे।

अलगाववादी राजनीतिक दल और पृथकवादी समूह अब अपने कार्यक्रमों के कैलेन्डर जारी करने लगे थे। कभी बन्द की घोषणा होती तो कभी रास्ता रोक देते थे। रोजाना घाटी के अलग-अलग हिस्सों मे कुछ न कुछ होने लगा था। कभी कुछ राजनीति से जुड़े हुए लोगों को हत्या कर देते थे और कभी पुलिस को निशाना बना देते थे। राजनीतिक पार्टियाँ अपना ढोल पीट रही थी और सुरक्षा एजेन्सियाँ लगातार नुकसान झेल रही थी। एक दिन मै अपने सीओ के पास गया और उनसे कहा… सर, अब उन तंजीमों पर हमारा डर समाप्त हो गया है। मैने आते ही आपके सामने एक प्रस्ताव रखा था लेकिन आपने उस पर कोई जवाब नहीं दिया है। मै एक और प्रस्ताव आपके सम्मुख रख रहा हूँ कि हम भी यह युनीफार्म छोड़ कर स्थानीय लोगो मे मिल कर उन पर हमला करना आरंभ कर दे तो शायद उन पर कुछ अंकुश लगाया जा सकता है। इसके बारे मे आपका क्या विचार है? …समीर, हम फौजी है कोई मर्सेनरी फोर्स नहीं है। हमारी कार्यवाही फौजी नियमों के अनुसार ही हो सकती है। हम लोग भी नियम और कानून से बंधे हुए है। तुम कोई और तरीका सोचो। यह सुन कर मै वापिस अपनी मेज पर आकर बैठ गया था।

मै अपनी टीम के साथ बैठ कर इस मसले पर चर्चा कर रहा था। सभी का एक ही मत था कि हमारा एक आदमी स्थानीय लोगों के बीच मे होना चाहिए जो हर बदलते हुए माहौल की सूचना समय-समय पर दे सके। जब तक इंटेल से खबर मिलती थी तब तक आतंकवादी अपना स्थान बदल लेते थे। अगर समय पर पकड़ने के लिये निकलते तो हमारे सामने बच्चों को खड़ा कर देते थे। कुछ सोच कर एक दिन मै अपने जेसीओ को बता कर जुमे की नमाज के लिये पुरानी वेषभूषा मे स्थानीय मस्जिद मे चला गया था। वहाँ का माहौल देख कर ही मुझे समझ मे आ गया था कि इलाके की मस्जिदों, मदरसों और तंजीमो के बीच कोई समझौता हो गया है। मौलाना अपनी तखरीर मे खुले आम भारतीय फौज के विरोध मे स्थानीय लोगों को भड़का रहा था। तखरीर समाप्त होने बाद मै भीड़ के साथ बाहर निकला तो सीआरपीफ की टुकड़ी पर बच्चों की आढ़ मे बड़े भी पत्थरबाजी कर रहे थे। मस्जिद से निकलने वाली भीड़ एक किनारे खड़े होकर नारा-ए-तदबीर अल्लाह-हो-अकबर के लगातार नारे लगा रही थी। मै चुपचाप भीड़ मे से निकल कर गलियों मे चला गया। वहाँ का हाल देख कर एक पल के लिये मै स्तब्ध रह गया क्योंकि स्त्रियाँ और लड़कियाँ भी घर से बाहर निकल कर वर्दी वालों को कोस रही थी। थोड़ी देर बाहर का जायजा लेकर अपने कैंम्प पर वापिस लौट आया था। अब मुझे यकीन हो गया था कि सारी चीजें स्थानीय प्रशासन के हाथ से बाहर हो गयी थी।

हर दो दिन मे मेरी बात आफशाँ, अदा और अम्मी से हो जाती थी। आफशाँ ने बताया था कि सब कुछ सामान्य हो गया है। एक दो बार वह मेनका को लेकर बाहर घूमने भी गयी थी। मेनका अब साफ बोलने और दौड़ने लगी थी। उधर अदा ने बताया के वह अपनी पढ़ाई के आखिरी पड़ाव मे जुटी हुई थी। पढ़ाई खत्म करते ही वह मेरे स्टेशन पर पोस्टिंग मांग लेगी। कभी-कभी वह अपनी नाराजगी मुझ पर जाहिर कर देती थी कि मै पूणे का एक चक्कर क्यों नहीं लगा लेता। उधर अम्मी से बात करता तो वह मुझे श्रीनगर आने के लिये कह देती थी। उनकी शिकायत भी जायज थी कि पठानकोट मे रहते हुए इतने दिन हो गये है क्या मै घर का एक चक्कर नहीं लगा सकता? मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसी हालत मे मुझे क्या करना चाहिए। सबको टालते हुए तीन महीने ऐसे ही गुजर गये लेकिन मेरे लिये यहाँ से निकलना नामुम्किन था। कुछ दिन पहले ही श्रीनगर मे बर्फ पड़ी थी जिसके कारण रास्ता भी बंद हो गया था। फौज भी जल्दी से जल्दी बर्फ साफ करके रास्ता खोलने के काम मे जुटी हुई थी। पठानकोट मे बिना काम के बैठना भी अब मुझे भारी लगने लगा था। मेरा ज्यादा समय अब इंटेल रिपोर्ट पढ़ने मे निकलने लगा था। सुबह तीन घंटे मैदान मे अपने साथियों के साथ बिता कर बाकी समय आफिस मे इंटेल रिपोर्ट पढ़ने मे व्यतीत हो रहा था। एक अजीब सी कैफियत मेरे दिमाग मे घर करती जा रही थी।

श्रीनगर   

जमात-ए-इस्लामी के कुछ लोग दबे हुए स्वर मे बात कर रहे थे। मुजफराबाद का रास्ता खुलने से उत्पन्न समस्याओं के बारे मे चर्चा चल रही थी। …सड़क खुल गयी है। सरकार तो अपनी है परन्तु सरकारी अफसरों पर भरोसा नहीं कर सकते। …उस आईएसआई की मेजर ने बताया था कि नौकरशाहों की कमजोरी को पकड़ कर उसका फायदा उठाओ। उसने साफ तौर पर फर्मान जारी किया है कि उस सड़क पर सामान की आवक-जावक मे कोई विघ्न नहीं पड़ना चाहिये। …पर जो सुझाव उसने दिया है क्या वह उचित है? …इसमें सही और गलत का चक्कर नहीं है। उसने हमें गनी और इमरान के नेटवर्क का इस्तेमाल करने के लिये कहा है। …भाईजान वह मेजर पागल हो गयी है। भला अब हम क्या दलाली करेंगें? …बेवकूफ माल से भरा ट्रक सीमा पार से बेरोकटोक निकल आये और फिर हिन्दुस्तान के कोने-कोने मे सुरक्षित पहुँच जाये तो उसके लिये दलाली तो क्या मै अपनी सगी बेटी को भी बेच सकता हूँ। गनी और इमरान के नेटवर्क का इस्तेमाल खुल कर करो जिससे आने वाले सामान के रास्ते मे कोई अड़चन नहीं आये। …मियाँ तुम समझ नहीं रहे हो। तुम्हें पता नहीं शायद कि उनका किस प्रकार का नेटवर्क है। …मुझे जानने की जरुरत नहीं है। गनी और इमरान भी जमात के महत्वपूर्ण सदस्य है। उनका नेटवर्क अगर नौकरशाहों से अपना काम निकालने मे मदद कर सकता है तो फिर मुझे कोई आपत्ति नहीं है। यही सामान आगे चल कर जमात की आमदनी का मुख्य स्त्रोत बनेगा। बाकी चार लोग उस बोलने वाले व्यक्ति को बड़े ध्यान से देख रहे थे परन्तु उसकी बात काटने की किसी मे हिम्मत नहीं थी।   

6 टिप्‍पणियां:

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    1. मित्र आपके चन्द शब्द मेरा उत्साह बढ़ाने के लिये काफी है। धन्यवाद।

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  2. शानदार अंक था जहां आफशाँ के नए रंग रूप से समीर भौचंका रह गया वहीं अब पहाड़ों में आग लग चुकी है मगर प्लेन में मिले वो सीओ लगता है कुछ समीर को लेके प्लान बनाया है खैर उनका आगे देखेंगे क्या कैसा सीने रहता है।

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    1. मेरे अति उत्साही मित्र क्या आप मेरे दिमाग मे क्या चल रहा है उसे पहले से ही जान जाते है। बहुत खूब लेकिन मुझे बहुत खुशी है कि हर अध्याय के साथ आप जुड़े हुए प्रतीत हो रहे है। मेरा उत्साह बढ़ाने के लिये आपका धन्यवाद्।

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    2. आपका भी शुक्रिया जो अभी कहानी पोस्ट करने की रफ्तार बढ़ा दी है जिससे यह बेचैन दिल को भी थोड़ा तस्सली मिलती है की आगे क्या होगा जानने के लिए हमें ज्यादा इंतजार न करना पड़ेगा। शुक्रिया

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