बुधवार, 28 दिसंबर 2022

 

 

काफ़िर-27

 


मै जमील अहमद की सोच मे गुम था कि एक आवाज मेरे कान मे पड़ी… क्या मै आ सकती हूँ। स्त्री स्वर सुन कर मेरी नजर दरवाजे की ओर चली गयी थी। आयशा खड़ी हुई थी। मैने जल्दी से कहा… आ जाओ लेकिन इतनी रात को यहाँ आने का सबब मुझे समझ मे नहीं आया। …तुम तो कभी बुलाओगे नहीं तो सोचा बिना बुलाये ही मिलने चलती हूँ। वह मेरे सामने आकर बैठ गयी थी। …कैसे आना हुआ? …समीर, जो कुछ भाईजान ने बताया था उसमे कितनी सच्चायी है? …पता नहीं, मुझे उसकी कहानी चेक करने का समय ही नहीं मिला। …मै यही बताने के लिये आयी हूँ  कि वह सच बोल रहे थे। आज दोपहर को भाईजान ने अपना निर्णय अब्बा को सुना दिया और निशात को अपने साथ लेकर कुछ दिनों के लिये कुपवाड़ा चले गये है। …ओह। एक बर फिर हमारे बीच मे शांति छा गयी थी। …तो फिर आगे के लिये क्या सोचा? …कुछ नहीं। …तुमने बताया नहीं कि तुम्हारा निकाह किसके साथ हुआ था? …छोड़ो वह बात। तलाक के साथ ही सब खत्म हो गया है। मैने ज्यादा कुरेदना ठीक नहीं समझा तो बात बदलते हुए पूछा… अब यहीं रहोगी? …पता नहीं। अब हमारे बीच बातचीत मुझे भारी लगने लगी थी। मैने साफ शब्दों मे पूछा… साफ-साफ बताओ कि क्या काम है? वह कुछ पल मुझे देखने बाद बोली… अकेलेपन से थक गयी थी सो तुमसे मिलने चली आयी थी। मुझे कुछ-कुछ समझ मे आ रहा था। वह कुछ देर टुकुर-टुकुर मुझे देखने बाद उठते हुए बोली… अच्छा चलती हूँ। उसे छोड़ने के लिये मै जैसे ही उठ कर खड़ा हुआ अचानक वह आगे बढ़ कर मुझसे लिपट गयी। एक पल के लिये मै सकते मे आ गया था। मेरे स्कूल के समय का ख्वाब हकीकत मे तब्दील होता हुआ लग रहा था। निशात बाग के बाद पता नहीं अपने ख्वाब मे उसके साथ मैने क्या-क्या नहीं किया था परन्तु इस वक्त वह मेरी बाँहों मे थी परन्तु अब मै उसको रुसवा नहीं कर सकता था। मैने धीरे से उसे अपने से अलग किया और उसकी आँखों मे झाँकते हुए कहा… आयशा, कुछ भी करने से पहले एक बार ठंडे दिमाग से सोच लो। कहीं कुछ दिनों के बाद हम दोनो ही अपनी नजरों मे न गिर जाएँ। मैने धीरे से उसके माथे को चूम कर उसके साथ चलते हुए गेट पर आ गया। वह कुछ पल सिर झुकाये खड़ी रही और फिर वह धीमे कदमों से चलते हुए अपने घर की ओर निकल गयी थी। 

अगली सुबह मै बारामुल्लाह चला गया था। उस पते को ढूँढते हुए मै जमील अहमद के घर पहुँच गया था। एक बूढ़ा सा आदमी दालान मे बैठा हुआ हुक्का गुड़गुड़ा रहा था। …बड़े मियाँ, सलाम। जमील अहमद से मिलना है। उसने जमील के लिये आवाज लगायी तो एक बच्ची उपर की खिड़की से चेहरा निकाल कर बोली… जमील अपने दोस्तों के साथ बाहर गया है। उस बूढ़े ने एक खेलते हुए बच्चे से कहा… देख जमील कहीं अपने दोस्तों के साथ सिगरेट की दूकान के पास पुलिया पर तो नहीं बैठा है। अगर मिल जाये तो कहना कि कोई मिलने आया है। वह बच्चा भागते हुए घर के बाहर निकल गया था। पता नहीं क्यों यह नाम जमील अहमद बार-बार मेरे दिमाग पर चोट मार रहा था। कुछ ही देर मे एक युवक ने मकान मे प्रवेश किया और अपनी निगाहें चारों ओर डाल कर बोला… कौन मुझसे मिलने आया है। मै जमील अहमद हूँ। …जमील मियाँ, मै आपसे मिलने के लिये आया था। जमील शक्ल-सूरत से कालेज का छात्र लग रहा था। कान मे महंगे वाला इयरफोन और हाथ मे आई-फोन लिये वह मेरे सामने आकर खड़ा हो गया और मुझ पर उपर से नीचे एक नजर डाल कर बोला… बताईये। …उस फिदायीन हमले की पूछताछ के लिये आया हूँ। मैने महसूस किया कि एकाएक वह सावधान हो गया था। 

…आपने पुलिस कंट्रोल रुम को खबर दी थी। …जी। …कितने बज रहे थे? …जनाब मैने कोई समय नहीं देखा था। सुबह-सुबह की बात थी। …कंट्रोल रुम का फोन रिकार्ड मे 6:31 बता रहा है। आपने क्या देखा था? …यही कुछ नकाबपोश लोग हवा मे अपनी क्लाशनीकोव को हिलाते हुए उस घर से बाहर निकले थे। एक ने बाहर निकल कर हवा मे फायर भी किया था। यह देख कर मैने छिप कर पुलिस कंट्रोल रुम मे खबर कर दी थी। …क्या आप उन लोगों के बारे मे कुछ बता सकते है? …सभी अपने चेहरे पर कपड़ा बाँधे हुए थे। अल्लाह-ओ-अकबर का नारा लगा कर वह एक कार मे बैठे और मेरे सामने से निकल गये थे। …कौन सी कार थी? …पता नहीं। …कितने लोग थे? …मियाँ, मै डरा हुआ था। मैने गिना नहीं था। चार-पाँच लोग थे। …फोन करने के बाद आपने क्या किया? …क्या करता। मै वहाँ से जान बचा कर भाग निकला था। …आपने अन्दर जाकर देखने की जरुरत नहीं समझी। वह चुप रहा तो मैने खड़े होते हुए कहा… आपकी मदद का शुक्रिया। यह बोल कर मै वापिस चलने के लिये कदम बढ़ाया ही था कि तभी मैने मुड़ कर पूछा… आपका कोई जानकार उस कोलोनी मे रहता है क्या? …क्या मतलब? …यही कि इतनी सुबह आप उस कोलोनी मे क्या करने गये थे? इस सवाल को सुन कर वह गड़बड़ा गया था। उसे जब कुछ नहीं सूझा तो वह बड़बड़ाने लगा… पहले पुलिस की मदद करो और फिर उनके उल्टे-सीधे सवाल का जवाब दो। मै वहाँ सुबह टहलने गया था। …बारामुल्ला से? इतना बोल कर मै उसके घर से बाहर निकल आया था। बाहर स्कूली लड़कों का मजमा लगा हुआ था। मै चुपचाप वहाँ से बाहर निकला और जीप मे बैठ कर वापिस चल दिया था। 

रास्ते मे एक किनारे जीप रोक कर मैने शाहीन का नम्बर मिलाया और उसकी आवाज सुनते ही मैने कहा… शाहीन मै बोल रहा हूँ। क्या आज तुम घर से निकल सकती हो? …जी। …कहाँ पर? …मै आपको कुछ देर मे बता दूँगी। फोन काट रही हूँ। इतना बोल कर उसने फोन काट दिया। मुझे जमील अहमद का नाम सुन कर शक हुआ था। उसके घर की हालत और उसके हाथ मे इतना महंगा फोन देख कर मुझे लगा कि वह हाजी मोहम्मद और मकबूल बट जैसे नेताओं के लिये काम करता है। एक बार मुझे शाहीन ने बताया था कि उसके अब्बा ने बारामुल्ला के छात्र नेता को पैसे दिये थे। मै वहाँ से सीधा पुलिस थाने चला गया था। ड्युटी आफीसर को अपना परिचय पत्र दिखा कर मैने कहा… आपके थाना क्षेत्र मे पत्थरबाजी की कितनी नामजद रिपोर्ट है। एक पल के लिये वह चौंक गया था फिर अपने एक सिपाही को आवाज लगा कर बोला… रजिस्टर लेकर यहाँ आओ। इतने साल स्पेशल फोर्सेज मे बिताने के कारण मै पुलिस महकमे की कार्यशैली से अच्छी तरह से परिचित था। …जनाब, मुझे कागजों मे मत उलझाओ। मै सिर्फ यह जानना चाहता हूँ कि आपके थाना क्षेत्र मे वह कौन से मुख्य आरोपी है जिनके उपर आपने पत्थरबाजी की नामजद रिपोर्ट जमा करी और वार्निंग देकर छोड़ दिया था। …मै ऐसे कैसे बता सकता हूँ। रजिस्टर मे देखना पड़ेगा। …भाईजान, मै सिर्फ मुख्य आरोपियों के नाम जानना चाहता हूँ। ऐसे लोग जिनका नाम ऐसे मामलों मे बार-बार आता है। एक पल के लिये उसने सोचा और फिर बोला… जमील अहमद, फिरोज बख्त, महरुनिस्सा शेख, मुम्ताज अयुब, कुछ नाम है जिन्हें सब जानते है। यह सब कालेज छात्र संघ मे है और बाकी अगर डिटेल चाहिए तो रजिस्टर मे देख कर ही पता चलेगा। मुझे जो जानना चाहता था वह पता लग गया था। मै वहाँ से अपने घर की ओर चल दिया था।

जब घर पहुँचा तब तक दोपहर भी ढल चुकी थी। मै लान मे बैठ गया और जमील अहमद के बारे मे सोच रहा था कि तभी मेरा फोन बज उठा था। शाहीन का फोन था। …हैलो। …समीर, क्या आप अभी सर्कल रोड पर आ सकते है। बड़ी मुश्किल से एक घंटे के लिये घर से निकल सकी हूँ। …मेरा इंतजार करो। मै अभी पहुँच रहा हूँ। मै उल्टे पैर वापिस चल दिया था। डल झील किनारे की सड़क पर एक सिरे से आगे की ओर चल दिया था। धीमी गति से जीप चलाते हुए मेरी आँखें शाहीन को तलाश कर रही थी। बुर्के और हिजाब के कारण शाहीन को पहचानना मुश्किल था। अनायस ही एक पेड़ की आढ़ से हिजाब पहने शाहीन निकली और सड़क के किनारे खड़ी होकर हाथ हिलाकर मुझे रुकने का इशारा किया तो मैने उसके समीप पहुँच कर जीप खड़ी कर दी। वह जल्दी से जीप मे बैठ कर बोली… चलिये भाईजान। …शाहीन। …भाईजान, मै शाहीन की बहन हया हूँ। आपको शायद पता नहीं कि शाहीन दो हफ्ते से लापता है। जिस दिन उसको पता चला की उसकी सहेली आलिया की हत्या हो गयी है उसी दिन वह घर से कहीं जाने के लिये निकली थी उसके बाद से उसका किसी को पता नहीं है। वह निकलने से पहले अपना फोन मुझे देकर गयी थी। आपका आज फोन आया तो मै आपसे मिलने चली आयी थी। मै उसकी बात सुन कर खुद ही सदमे आ गया था। पहले आलिया और फिर शाहीन, यह क्या चक्कर है। मैने साथ बैठी हुई लड़की पर नजर डाली तो उसकी आँखें ही दिख रही थी। उसने अपना चेहरा और सिर महीन से कपड़े से छिपा रखा था।

…अपना हिजाब हटाओ। एक पल के लिये वह झिझकी और जल्दी से बोली… मै उसकी बहन हूँ आप यकीन किजीए। ऐसे मुझे रुसवा मत किजिये। मैने उसकी आँखों मे झाँकते हुए कहा… उसका फोन दो। हया ने अपना फोन मेरी ओर बढ़ा दिया था। मैने उसका फोन लेकर जीप सड़क के किनारे खड़ी करके पुराने काल रिकार्ड देखना शुरु किया तो पाया कि जिस सुबह हमारे घर पर फिदायीन हमला हुआ था उस दिन से पहले के सभी काल रिकार्ड साफ थे। मैने धीरे से हया का हाथ अपने हाथ मे लिया और फिर अचानक अपने हाथ का शिकंजा कसते हुए कहा… हया, मुझे नहीं मालूम तुम्हारी क्या मंशा है। एक बात यकीन से कह सकता हूँ कि मेरे साथ इस प्रकार की चालाकी तुम्हे कहीं का नहीं छोड़ेगी। अगर मै अपनी पर आ गया तो फिर कभी किसी को अपना यह सुन्दर मुखड़ा नहीं दिखा सकोगी। शाहीन कहाँ है? वह दर्द से बिलबिला रही थी परन्तु चीखने की हालत मे नहीं थी। मैने डैशबोर्ड से अपनी पिस्तौल निकाल कर अपने साथ रखते हुए कहा… हया बीबी तुम्हारा हाथ छोड़ रहा हूँ। अगर तुमने चीखने या जीप से कूदने की कोशिश की तो मुझे गोली मारने मे जरा सी भी हिचक नहीं होगी। इतना बोल कर उसका हाथ छोड़ कर मैने जीप आगे बढ़ा दी और फिर गति पकड़ते हुए अपने घर की ओर चल दिया। अचानक हया ने कहा… भाईजान, अगर एक घंटे मे अपने घर नहीं पहुँची तो फिर मै कभी घर वापिस नहीं जा सकूँगी। हम निशातबाग और विश्वविद्यालय के कन्वेन्शन सेन्टर के बीच मे पहुँच गये थे। मेरा घर यहाँ से ज्यादा दूर नहीं था परन्तु उसकी आवाज मे छिपे हुए डर का एहसास होते ही मैने एक बार फिर से जीप सड़क से उतार कर खड़ी कर दी।

…शाहीन कहाँ है? …पता नहीं। मैने आपको सच ही बताया है कि उस दिन के बाद से उसे किसी ने नहीं देखा है। …मुझे कैसे जानती हो? …मै आपको नहीं जानती। आपने फोन किया तो आपसे मिलने चली आयी थी। …इस फोन के सारे काल रिकार्ड किसने साफ किये थे। …मुझे नहीं पता। शाहीन यह फोन मुझे देकर गयी थी। इतने दिनों से यह फोन शांत पड़ा था। उसके जाने के बाद पहली बार इस फोन पर आपकी काल आयी थी। आपने भी जिस तरह फोन पर बात की थी तो मुझे लगा कि वह आपके काफी करीब है। इसीलिए मैने सोचा कि आपसे मिल कर शाहीन का पता लगाने की कोशिश कर सकती हूँ। …मुझे कैसे पहचाना जो तुम मेरी जीप के सामने आ गयी। …मैने आपको एक बार अपने घर पर देखा था। उसकी बतायी हुई कहानी क्रमवार तो सही लग रही थी। अचानक उसने पूछा… आपका शाहीन से क्या रिश्ता है? उसकी कोई बात मुझे समझ मे नहीं आयी और न ही मै समझ पा रहा था कि इसको कितना बताना चाहिए। वह फिर जल्दी से बोली… आप दोनो एक दूसरे से मोहब्बत करते है क्या? अबकी बार मैने उसे समझाते हुए कहा… मै आलिया का भाई हूँ इसीलिये मै शाहीन को जानता हूँ। मै ही तुम्हारे घर उसे छोड़ने के लिये आया था। तुम्हारे घर का हाल देख कर मै कभी-कभी उससे फोन पर उसके हालचाल पूछ लिया करता था। अचानक वह बिफरते हुए बोली… आप झूठ बोल रहे है। वह आपके बुलाने पर आपसे मिलने जाती थी। तभी तो आज भी आपने मिलने के लिये उसको फोन किया था। सच बताईये क्या शाहीन आपके पास है? 

अबकी बार बोलते हुए मेरी आवाज जरा कड़ी हो गयी… हया मेरी बात ध्यान से सुनो। मै आलिया का बड़ा भाई हूँ। मै शाहीन को बहुत अच्छे से जानता था क्योंकि दोनो मेरे साथ कुछ दिन मेरे घर पर रही थी। मैने उसे आज मिलने के लिये एक कारण से फोन किया था कि वह सावधान रहे क्योंकि मुझे शक था कि उसकी जान को भी खतरा हो सकता है। तुम्हें एक घन्टे मे घर पहुँचना है। इसलिये समय कम है। अगर तुम्हें किसी पर जरा भी शक है तो मुझे बता दो। यह बोल कर जीप को मोड़ कर मै उसके घर की दिशा मे चल दिया। वह मेरी ओर देख रही थी। अभी भी मेरी पिस्तौल मेरी गोद मे रखी हुई थी। …तुम्हें कहाँ छोड़ दूँ। मैने उसकी ओर देखा तो वह जैसे किसी गहरी सोच मे बैठी हुई थी। मैने घुर्रा कर कहा… हया। वह नींद से एकाएक जाग गयी और मेरी ओर भयभीत नजरों से देखने लगी। …तुम्हें कहाँ छोड़ दूँ। …यहीं छोड़ दिजीये। मै टेम्पो से चली जाऊँगी। मैने एक नजर घड़ी पर डाल कर कहा… बीस मिनट है। क्या समय से घर पहुँच जाओगी? उसने सिर्फ सिर हिला दिया था। …हया मै तुम्हारे टेम्पो के पीछे आ रहा हूँ। अगर घर पहुँच कर हल्का सा खतरा महसूस हो तो बिल्कुल देर मत करना तुरन्त यह स्पीड डयल का बटन दबा देना मै तुरन्त तुम्हारे घर पहुँच जाऊँगा। इस वक्त सावधान रहने की जरुरत है। जब तुम ठीक समझो तो मुझसे फोन पर बात कर लेना मै तुम्हें सब कुछ बता दूँगा। इतना बोल कर मैने एक खड़े हुए टेम्पो के पास जीप रोक दी। वह जल्दी से जीप से उतर कर सामने खड़े हुए टेम्पो मे बैठ गयी थी। कुछ और यात्रियों को बिठाकर टेम्पो चल दिया और मै उसके पीछे हो लिया। वह रुकते रुकाते हुए हाजी मोहम्मद के घर के सामने रुका और हया उतर कर घर के अन्दर चली गयी थी। मै कुछ देर एक किनारे मे जीप खड़ी करके बैठा रहा और जब कुछ समय निकल गया तो जीप मोड़ कर अपने घर की ओर चल दिया था। रास्ते भर शाहीन मेरे दिमाग मे छायी रही थी।

अंधेरा हो गया था। घर पहुँच कर मै बाहर लान मे बैठ गया था। रहमत से खाना लगाने के लिये बोल कर जमील अहमद और शाहीन के बारे मे सोचने लगा कि उनके बीच मे क्या कनेक्शन था। कुछ याद आते ही मै अपने कमरे मे लैपटाप खोल कर बैठ गया। अपनी पुरानी रिपोर्ट को देखते हुए जब जमील अहमद का नाम मेरे सामने आया तो बहुत सी बातें साफ हो गयी थी। शाहीन ने ही बताया था कि मकबूल बट के पैसों मे से हाजी मोहम्मद ने बारामुल्ला के जमील अहमद को पच्चीस हजार दिये थे। इतनी सूचना ही मेरे लिये काफी थी कि जमील अहमद को पकड़ कर फौजी तरीके से पूछताछ करनी पड़ेगी। इतना तो समझ गया था कि उसके इलाके से उठाना इतना आसान नहीं होगा क्योंकि छात्र नेता होने के कारण उस पर वहाँ हाथ डालने का मतलब हंगामा होना तय था। उसको उसके बिल से बाहर निकाल कर पकड़ने की जरुरत थी। खाना समाप्त करके मै अपनी योजना बनाने मे जुट गया था।

करीब रात को बारह बजे मेरे फोन की घंटी बजी तो शाहीन का नम्बर देख कर मैने फोन लिया… हया बोलो। दूसरी ओर मुझे उसकी तेज चलती हुई साँस साफ सुनाई पड़ रही थी। वह कुछ पल चुप रही और फिर दबी हुई आवाज मे बोली… मै हया बोल रही हूँ। …घर पर समय से पहुँच गयी थी। …जी। …कोई परेशानी तो नहीं हुई। …नहीं। मै एक पल के लिये चुप हो गया तो वह भी चुप हो गयी थी। मैने कुछ सोच कर कहा… तो फोन किस लिये किया था। वह झिझकते हुए बोली… आपने अपना नाम नहीं बताया। …मेरा नाम समीर है। मै फौज मे काम करता हूँ। शाहीन और आलिया एक चक्कर मे फँस गयी थी इसीलिये उनको बचाने के लिये मै उन्हें अपने साथ लेकर चला गया था। जब सारा मामला ठँडा हो गया तो मै शाहीन को उसके घर पर छोड़ आया था। तुम्हारे अब्बा का गुस्सा तो तुम जानती हो इसलिये मै समय-समय पर उससे फोन से बात कर लेता था। तुमने ठीक कहा था कि वह मेरे बुलाने पर मुझसे मिलने भी आ जाती थी। …तो क्या आप एक दूसरे से मोहब्बत करते थे? …नहीं। मोहब्बत के बजाय हमारे बीच मे बस गहरी दोस्ती थी। …आप सच बोल रहे है। मैने अपना दिल कड़ा करके कहा… यह सही है कि हमारे बीच मे जिस्मानी संबन्ध थे परन्तु मोहब्बत के बजाय हम दोस्त ज्यादा थे। जो सच है वह मैने तुम्हें बता दिया है। इतना बोल कर मै चुप हो गया था। …समीर, शाहीन के गायब होने से एक रात पहले मैने बड़े भाईजान को शाहीन के कमरे मे जाते हुए देखा था। उनके बीच मे काफी कहासुनी हुई और फिर भाईजान ने बेल्ट से उसकी पिटाई की थी। अगले दिन ही वह यहाँ से चली गयी थी। उसकी बात सुन कर गुस्से से मेरी कनपटियाँ तड़कने लगी थी। …हया, तुम्हारे उस भाईजान का क्या नाम है? वह जल्दी से बोली…  अब्दुल्लाह नासिर। …तुम संभल कर रहना। कोई खतरा महसूस करो तो स्पीड डायल का बटन दबा देना। …जी। शब्बा खैर। उसने फोन काट दिया था।

उस रात मै सो नहीं सका था। मुझे समझ मे नहीं आ रहा था कि आलिया, शाहीन और अब्दुल्लाह के बीच क्या कनेक्शन था? अब तो जमील अहमद को घेरना बेहद जरुरी हो गया था। मैने आयशा से फोन पर बात करके अपने घर पर बुलवाया और उसको सारी बात समझा कर कहा कि वह जमील अहमद से बात करके किसी भी तरह उसे निशात बाग मे मिलने के लिये बुला ले। आयशा ने मेरे सामने जमील अहमद से बात करके दोपहर को निशात बाग मे मिलने के लिये बुला लिया था। मै अपनी सुरक्षा टीम के साथ निशात बाग के मुख्य द्वार के पास घेराबन्दी करके बैठ गया था। जमील अहमद करीब तीन बजे मोटर साईकिल से निशात बाग पहुँच गया था। कुछ मामला ही ऐसा था कि वह आयशा से मिलने अकेला आया था। मोटर साईकिल खड़ी करके जैसे ही छैला बाबू आँख मे सुरमा लगाये मुख्य द्वार पर पहुँचे मेरी सुरक्षा टीम ने उसे धर दबोचा और फिर अगले कुछ मिनट मे उसे बख्तरबंद जीप मे डाल कर कोमप्लेक्स मे ले गये थे। उसे उन्होंने एक कमरे मे बन्द करके उसका फोन लाकर मेरे सामने रख दिया था। उस रात हमने उससे कोई बात नहीं की थी। एक रात की डिटेन्शन मे ही उसकी सारी नेतागिरी स्वाहा हो गयी थी।

अगली सुबह छ: बजे मै उसके सामने बैठा हुआ था। उसका सारा आशिकी का भूत उतर चुका था और अब वह भयभीत दिख रहा था। …जमील अहमद, मुझे पहचाना। उसने सिर्फ गरदन हिला कर हामी भर दी थी। …तुम्हें यह तो समझ मे आ गया होगा कि तुम इस वक्त भारतीय फौज की हिरासत मे हो तो समझ गये होगे कि अब तभी घर जा सकोगे जब हम चाहेंगे। वह सिर झुकाये बैठा रहा था। उसका फोन उसके सामने रखते हुए कहा… तुम अपने घर सिर्फ एक काल कर सकते हो। एक पल के लिये वह झिझका और फिर जल्दी से लाक खोल कर अपने घर का नम्बर मिलाने लगा लेकिन तब तक उसके हाथ से फोन छीन लिया गया था। हमारे एक्सपर्ट ने लाक हटा कर वह फोन मुझे वापिस कर दिया। उसी के सामने मैने उसके काल रिकार्ड्स चेक किये तो उसमे दूसरा नम्बर भी मिल गया था। यह वही नम्बर था जिसने आलिया से बात की थी। एक कनेक्शन तो मेरे सामने आ गया था। मैने हमले वाले दिन से एक दिन पहले और एक दिन बाद तक सारे काल रिकार्ड देखना आरंभ कर दिया। मै कुछ नम्बर कागज पर लिखता जा रहा था। वह मुझे दूर से देख रहा था। मैने उसकी डायरेक्टरी चेक की तो उसमे बहुत से संवेदनशील लोगों के नाम मिल गये थे। मेरी नजर अब्दुल्लाह नासिर का नम्बर ढूंढ रही थी। वह नम्बर भी उसके फोन मे था। मैने उसके व्हाट्स एप चेक करना आरंभ किया तो एक और खजाना मेरे हाथ लग गया था। बहुत सारे जिहादी ग्रुप्स का वह सदस्य बना हुआ था और कुछ ग्रुप्स का वह एड्मिन भी था। उनमे से एक ग्रुप का नाम पत्थरबाज जिहादी का था। मैने उसकी चेट पर नजर डाली तो पिछले डेड़ साल की चार जिलों- बारमुल्ला, बांदीपुरा, कुपवाड़ा और पूँछ मे हुई पत्थरबाजी की पूरी दास्तान मिल गयी थी। एक घन्टे मे जमील अहमद के फोन से उसकी जन्मपत्री लेकर मै उसके सामने जाकर बैठ गया था।

…जमील, तुम्हे अब तक यह तो समझ मे आ गया होगा कि तुम बुरी तरह से फँस गये हो। मेरा सिर्फ एक ही सवाल है कि निशात बाग कोलोनी मे हुए फिदायीन हमले मे किसका हाथ है? मै जानता था कि हर अपराधी हिरासत मे आकर एक ही ढर्रे पर सोचता है। पहले वह अपने आप को बेकसूर बताता है। जब उसका सच्चायी से सामना होता है तो फिर वह कुछ सच और कुछ झूठ मिला कर एक नयी कहानी गड़ता है। उसके बाद जब उसके जिस्म को कुछ नर्म किया जाता है तो फिर खुदा का वास्ता देकर धीरे-धीरे सच्चायी उगलने लगता है परन्तु फिर भी इस तरह से सुनाता है कि जैसे वह तो बेचारा धोखे से इस चक्कर मे फँस गया था क्योंकि असली गुनाहगार तो कोई और है। सात दिन की डिटेन्शन के बाद जब उसे लगता है कि अब सच बोलने के सिवा उसके पास कोई चारा नहीं है तब वह सच्चायी सुबूत के साथ बयान करने लगता है। मै इतने सारे झमेलों मे नहीं पड़ना चाहता था तो मैने सीधे चेतावनी देते हुए कहा… जमील अहमद, यहाँ पर मै ही कानून हूँ। मुझे सुबूत और गवाह की जरुरत नहीं है। मेरा मानना है कि उस हमले मे तुम्हारी मुख्य भुमिका है। यह जान लो कि मरने वाली मेरी अम्मी और मेरी बहन थी। यह कह कर मैने अपनी पिस्तौल का सेफ्टी-लाक हटा कर मेज पर रखते हुए कहा… अब तुम यहाँ से बाहर अपने कदमों पर जाओगे अन्यथा चार कन्धों पर जाओगे। यह निर्णय अब तुम्हारे हाथ मे है। एक बार फिर से सवाल पूछ रहा हूँ… इस हमले के पीछे किसका हाथ है? मेरी सुरक्षा टीम भी खड़ी हुई सब देख रही थी। मै आराम से अपनी पिस्तौल को मेज पर रख कर धीरे से घुमाने लगा।

एकाएक वह भरभरा कर रोते हुए बोला… भाई, खुदा की कसम मेरा इस काम मे मेरी सिर्फ बिचौलिये की भुमिका थी। अब्दुल्लाह ने कहा था कि उसे हिज्बुल के किसी आदमी से मिलवा दूँ। बस मैने बुरहान भाई से उसकी बात करा दी थी। …कौन अब्दुल्लाह? …अब्दुल्लाह नासिर अपने जामिया मस्जिद वाले हाजी मोहम्मद साहब का बड़ा बेटा है। …तू उसे कैसे जानता है? …मै अब्दुल्लाह को नहीं जानता लेकिन उसके अब्बा के लिये कभी-कभी पत्थरबाजी के लिये लड़के और लड़कियों का इंतजाम करता था। इस बिचौलिये के काम के लिये कितने पैसे मिले थे? वह कुछ पलों के लिये चुप रहा और फिर धीरे से बोला… भाईजान, बुरहान भाई के साथ मेरा तय हुआ था कि जो भी पैसा मिलेगा उसमे से वह मुझे दो लाख देंगें। …उसका कितने मे यह सौदा तय हुआ था। …दस लाख। मैने अपनी पिस्तौल उठाई और खड़े होते हुए पूछा… अब्दुल्लाह के निशाने पर कौन था? …कसम खुदा की मुझे नहीं पता। …मुझे बुरहान भाई ने सिर्फ इतना काम दिया था कि उनके जाने के बाद मै पुलिस कंट्रोल पर फोन पर फिदायीन हमले की खबर कर दूँ। अचानक मुझे कुछ याद आ गया तो मैने चलते हुए पूछा… तेरी डायरेक्टरी मे यह करीना कौन है। एक पल के लिये वह चौंक गया था। मै चलते-चलते रुक गया और उसकी ओर देखने लगा तो वह जल्दी से बोला… भाई एक खातून है लेकिन मै उससे आजतक नहीं मिला हूँ। उसी के जरिये मेरी बात बुरहान से हुई थी। पुलिस कंट्रोल को खबर करने के बाद मैने उसे सिर्फ फोन पर बताया था कि काम हो गया है। जमील को वहीं छोड़ कर मै बिना कुछ बोले उसका फोन लेकर बाहर आ गया था। मै वहाँ से सीधा ब्रिगेडियर चीमा के पास चला गया था।

…सर, एक पत्थरबाजी का एस्सेट हमारे हाथ लगा है। आप्रेशन आघात का फेस-2 अब आरंभ किया जा सकता है। आई-फोन उनके सामने रख कर कहा… इसमे व्हाट्स एप चेट से चार जिलों मे लगभग सभी मुख्य पत्थरबाजों नाम पता चल जाएँगें। इसकी डायरेक्टरी मे हिज्बुल के कुछ मुख्य लोगों का फोन नम्बर भी मिल जाएगें। यह हमारे लिये हाई-वेल्यू एस्सेट है। इसका क्या करना है? …मेजर, इस आदमी को हमारी काउन्टर इन्टेलीजेन्स युनिट के हवाले कर दो। वह इसको निचोड़ लेंगें। …सर, फिलहाल वह डिटेन्शन रुम मे मेरी सुरक्षा टीम की देख रेख मे बैठा है। उसको लेने के लिये आप अपनी टीम को भेज दिजीये। ब्रिगेडियर चीमा ने तुरन्त किसी से बात करके मुझसे कहा… लेफ्टीनेन्ट राठौर पहुँच रहा है। उसके चार्ज मे दे दो। मै वापिस डिटेन्शन रुम की ओर चल दिया। अपनी टीम को निर्देश देकर मै अपने घर की ओर निकल गया था।

एक खातून जिसका छ्द्म नाम करीना, अब्दुल्लाह और बुरहान मेरे निशाने पर आ गये थे। मै बुरहान और अब्दुल्लाह के बारे मे जानता था परन्तु वह खातून कौन है? मैने इतनी बार उस नम्बर पर फोन किया लेकिन हमेशा ही वह नम्बर आउट आफ रीच ही मिला था। अब अब्दुल्लाह की बारी थी। यही सोचते हुए मै अपने लान मे बैठ कर चाय पी रहा था कि जब आयशा लोहे का गेट खोल कर मेरे पास पहुँच कर बोली… क्या जमील अहमद आया था? …हाँ, वह आया था। उससे बात हो गयी है। वह मुस्कुरा कर बोली… देख लो आज भी मै किसी को भी रिझा सकती हूँ। मैने मुस्कुरा कर कहा… अगर उसकी लिस्ट बनाओगी तो सबसे उपर मेरा नाम ही आयेगा। …समीर, मै तय नहीं कर पा रही हूँ। उसने निगाहें नीचे करके धीरे से कहा तो मैने उसका हाथ पकड़ कर कहा… आएशा, जिस्मानी जरुरत एक बात है लेकिन हमारे बीच मे इतने साल की दोस्ती है। इसीलिये मैने उस दिन ऐसा कहा था। आज भी साफ कह रहा हूँ  कि अगर भविष्य मे तुम मेरे साथ कोई रिश्ता बनाने की सोच रही हो तो वह नामुम्किन है। आयशा मेरी बात सुन कर संजीदा हो गयी थी। वह कुछ देर बैठ कर वापिस चली गयी थी। 

दो दिन रोज आफिस मे बैठ कर मै अब्दुल्लाह नासिर से मुलाकात करने की योजना बनाता और शाम तक उसे कचरे के डिब्बे मे डाल कर फिर से नये सिरे से सोचने बैठ जाता था। इसी बीच ब्रिगेडियर चीमा ने उस रेड मे जब्त की गयी सेम्टेक्स, आरडीएक्स और डिटोनेटर्स को एक पार्सल मेरे हवाले कर दिया था। स्पेशल फोर्सेज मे था तो मेरे साथ बारह जांबाजों की एक पूरी टीम थी। सभी किसी न किसी युद्ध कला ने निपुण थे। यहाँ पर भी मुझे सुरक्षा कवच के तौर पर पाँच सैनिकों की टीम दी गयी थी। सभी ब्लैक केट कमांडो युनिट से आये थे परन्तु उस काल सेन्टर को ध्वस्त करने के लिये मै उनका इस्तेमाल नहीं कर सकता था। तभी दिमाग मे आया कि अगर वह दोनो बहनें यहाँ होती तो उनके साथ मै इस काम को आसानी से अंजाम दे सकता था। मुझे सिर्फ डाईवर्जन और लुक आउट के लिये दो साथी चाहिए थे। दो महीने से उपर हो गये थे मुझे यहाँ वापिस आये हुए लेकिन उनकी ओर से भी कोई खबर नहीं आयी थी। वहाँ से चलते वक्त महमूद ने अपना नम्बर दिया था। मैने अपने बैग से सेट्फोन निकाल कर महमूद का नम्बर मिलाया तो दूसरी ओर से जवाब मिला ‘यह नम्बर गलत’  है। एक दो बार कोशिश करने के बाद जब वही जवाब मिला तो मैने सेटफोन वापिस बैग मे रख कर उन बहनों के बारे मे सोचने बैठ गया था।

अब्दुल्लाह से बात करने कोई रास्ता नहीं मिल रहा था। कुपवाड़ा के आप्रेशन के लिये मुझे भरोसेमन्द साथी नहीं मिल रहे थे। समय निकलता जा रहा था लेकिन कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। एक दो दिन मे शाम को मेरी आफशाँ से बात हो जाती थी। इतने दिनों मे दो बार मैने आसिया और अदा से भी बात की थी। सभी मुझे मकबूल बट से सावधान रहने के लिये कहते थे। मै उनको कैसे बताता कि अब्बा से ज्यादा भयंकर चीजे मेरे सिर पर फिलहाल रखी हुई थी। इसी बीच मुझे पता चला कि आफशाँ की हवाई यात्राएँ बढ़ गयी थी। वह दो बार काठमांडू और एक बार ढाका हो आयी थी। दोनो बहनों के बीच फिलहाल यह तय हुआ था कि जब भी आफशाँ  बाहर जाएगी तो वह मेनका को अदा के पास छोड़ देगी। दोनो यह भी अच्छे से जानती थी कि यह व्यवस्था स्थायी नहीं हो सकती थी क्योंकि मेनका का स्कूल भी आरंभ होने वाला था। आफशाँ ने इस बात का जिक्र मुझसे कई बार किया था लेकिन अभी तक इसका कोई स्थायी उपाय नहीं मिला था। आफशाँ का कहना था कि समय आने पर वह अपनी सारी यात्राएँ बन्द कर देगी। मै भी उससे कुछ नहीं कह पाता था क्योंकि मै जानता था कि मेनका के कारण वैसे ही आफशाँ ने जीवन की बहुत सी खुशियाँ और मौज मस्ती को त्याग दिया था। बस ऐसे ही घिसटते हुए हमारी गृहस्थी की गाड़ी चल रही थी। 

एक हफ्ता और निकल गया था। अभी तक मै तय नहीं कर पाया था कि क्या करुँ। कई बार मैने सोचा कि हया से उसके भाई के बारे मे जानकारी लूँ परन्तु मेरा फोन उसके पास जाने का मतलब हम दोनो के लिये खतरा था। उस दिन के बाद तो हया ने भी फोन नहीं किया था। एक सुबह मै ब्रिगेडियर चीमा से मिलने चला गया था। …सर, एक परेशानी का सामना कर रहा हूँ। कुपवाड़ा के लिये मुझे दो-तीन भरोसेमन्द आदमी चाहिये। …मेजर, तुम्हारी सुरक्षा मे पाँच जांबाज कमांडो है। उन्हें क्यों नहीं इस्तेमाल करते? …सर, वह सब रेग्युलर सैनिक है। ऐसे काम मे उनका इस्तेमाल करना ठीक नहीं है। …क्यों? …आप तो जानते है है कि यह सब काम गैर कानूनी है। …मेजर, अपनी टीम पर भरोसा रखो। सभी लोग अपने-अपने क्षेत्र मे पूर्णता निपुण है। उनके युद्ध कौशल का लाभ उठाओ क्योंकि यह काम तुम कोई निजि फायदे के लिये नहीं कर रहे हो। यह आंतरिक सुरक्षा का मामला है और इस काम मे देरी करने की जरुरत नहीं है। …यस सर। ब्रिगेडियर चीमा से बात करके जैसे ही मै खड़ा हुआ तभी उन्होनें कहा… मेजर, जमील अहमद ने सब कुछ उगल दिया है। अगले कुछ दिन हम उन सभी को सर्वैलेन्स के घेरे मे लेंगें और फिर उनके खिलाफ सैनिक कार्यवाही आरंभ होगी। …सर, मुझे हिज्बुल के एक कमांडर बुरहान की लोकेशन का पता करना है। ब्रिगेडियर चीमा ने कहा… पहला टार्गेट कुपवाड़ा और अगला टार्गेट आप्रेशन आघात का फेस-2 के बाद ही कुछ और सोचना तुम। इतनी बात करके मै अपने आफिस मे वापिस आ गया था। मैने अपने पाँच सुरक्षाकर्मियों को बात करने लिये बुलवा लिया था कि तभी मेरे निजि मोबाईल की घंटी बज उठी थी। मैने जल्दी से काल लेते हुए कहा… हैलो। …समीर भाईजान मै फरहत बोल रहा हूँ। भाईजान इस बार जिहादियों की देखरेख मे गोल्डन ट्रांसपोर्ट के दो ट्रक अभी सीमा पार से आये है। मै तो ट्रक लेकर मुजफराबाद की ओर जा रहा था कि एक ढाबे पर उनसे मुलाकात हो गयी थी। दो बार मै उन्हें अपने ट्रक मे छिपा कर यहाँ लाया था इसलिये वह सब मुझे पहचानते थे। उनसे बातचीत करने पर पता चला कि दोनो ट्र्क बांदीपुरा जा रहे है। …तुम वापिस कब लौट कर आ रहे हो? …अगले हफ्ते, भाईजान उन ट्रकों के रजिस्ट्रेशन नम्बर नोट कर लिजिये। मुझे अब जाना है। मैने जल्दी से उन ट्रकों के नम्बर नोट किये और फोन काट दिया। मेरे साथी आ चुके थे। मैने उन्हें बैठने के लिये कह कर एक बार फिर तेज कदमों से चलते हुए ब्रिगेडियर चीमा के आफिस की ओर निकल गया था।

…सर, अभी खबर मिली है। यह बता कर मैने फरहत की सारी बात उनके सामने रख दी थी। ब्रिगेडियर चीमा कश्मीर के नक्शे के समक्ष खड़े हो कर सारे रास्ते देखते हुए बोले… मेजर, बांदीपुरा जाने के लिये उनके पास दो रास्ते है। एक वाया श्रीनगर और दूसरा वाया सोपोर। तुम्हें क्या लगता है? …सर, यह धूर्त लोग है। मुझे नहीं लगता कि अगर वह असला बारुद लेकर आ रहे है तो वह किसी को सही लोकेशन बताएँगें। हमे हर हालत मे उन्हें लिम्बर और बारामुल्ला के रास्ते मे कही रोकना होगा। …मेजर यह चलती हुई रोड है। इतने ट्रैफिक मे उन्हें रोकना खतरनाक हो सकता है। …सर, हम उन्हें बारामुल्ला तक भी नहीं पहुँचने देना चाहिये। उसके आगे तो खतरा और भी ज्यादा बढ़ जाएगा क्योंकि बारामुल्ला मे मंडी होने के कारण वह किसी भी गोदाम मे आसानी से अपना सामान उतार कर नये ट्रक मे लदवा कर कहीं भी निकल सकते है। अचानक ब्रिगेडियर चीमा ने कहा… अब तक वह उरी के पास पहुँचने वाले होंगें। उरी मे हमारा बेस है। वहाँ की टीम उन्हें बारामुल्ला से पहले रोकने मे सफल हो सकती है। अगले पन्द्रह मिनट मे ब्रिगेडियर चीमा ने उरी के कमांडर से बात करके उसे सब कुछ समझा दिया था। वहाँ पर स्पेशल फोर्सिज की टीम के साथ काउन्टर इन्टेलीजेन्स की टीम को यह काम देकर ब्रिगेडियर चीमा ने कहा… मेजर, लगता है कि तुम मेरे निर्णय से खुश नहीं हो? …नहीं सर ऐसी बात नहीं है। वैसे तो यह आप्रेशन हम भी कर सकते थे लेकिन आपने उनको चुना होगा तो जरुर कोई खास कारण रहा होगा। …मेजर, तुम अबसे काउन्टर आफेन्सिव टीम का नेतृत्व कर रहे हो। अबसे इनके जैसे ओपन-शट आप्रेशन्स के लिये दूसरी टीमों का इस्तेमाल करना सीख लो। इतनी बात करके मै वापिस अपने कमरे मे आ गया था। 

थोड़ी देर मे मै अपने आफिस मे बैठ कर अपनी सुरक्षा टीम को युसुफजयी की इमारत के बारे मे ब्रीफ कर रहा था। उनको समझाने के लिये मैने नक्शे मे उस इमारत की लोकेशन को दिखाते हुए समझाया कि कैसे वह इमारत एक आब्सर्वेशन पोस्ट बनी हुई है। हमारे हर आते-जाते कोन्वोय पर उनकी निगाह रहती है। वह जानते है कि कितना सामान और रसद सीमा पर भेजा जा रहा है। हमारा तोपखाना और टैंक्स किस संख्या मे भेजे गये है या वापिस लाये गये है। यह सारी जानकारी अगर पाकिस्तान पर लगातार पहुँच रही है तो फिर हमारे सिर पर कितना बड़ा खतरा मंडरा रहा है। इसीलिये इस इमारत को ब्लास्ट करके हम वह आब्सर्वेशन पोस्ट को हमेशा के लिये समाप्त करना है। मुझे एक डाइवर्जन और एक लुक आउट की जरुरत है। चुँकि यह काम हमारी सीमा मे करना है तो प्रशासनिक भाषा मे यह गैरकानूनी काम कहा जा सकता है। सैन्य नीति युद्ध काल मे काम करती है परन्तु शांति काल मे प्रशासन ही बेहतर विकल्प है। मै उनको अभी समझा रहा था कि तभी मेरे पास ब्रिगेडियर चीमा का फोन आया… मेजर, फौरन मेरे आफिस मे आओ। मै समझ गया कि उरी का आप्रेशन असफल हो गया इसीलिये सीओ साहब नाराज है। अपने साथियों को वहीं छोड़ कर मै ब्रिगेडियर चीमा के पास चला गया था।

ब्रिगेडियर चीमा आफिस मे चहलकदमी कर रहे थे। मुझे देखते ही बोले… क्या तुमने पाकिस्तान मे किसी से निकाह किया था? इस सवाल के लिये मै तैयार ही नहीं था। …क्या मतलब सर? …यही कि क्या तुमने पाकिस्तान मे किसी से निकाह किया था? …नो सर। क्या मै कन्डक्ट रुल्स नहीं जानता कि सर्विंग आफीसर किसी भी विदेशी नागरिक के साथ कोई संबन्ध नहीं रख सकते है। आप यह मुझसे क्यों पूछ रहे है? …अभी कठुआ के बीएसफ के कमान्डेन्ट का फोन आया था कि कल रात को कुछ घुसपैठियों ने सीमा पार करने की कोशिश की थी। कुछ तो एन्काउन्टर मे घायल हो गये और कुछ मारे गये। उन्होने कुछ को पकड़ लिया है। उस एन्काउन्टर मे दो बहने भी पकड़ी गयी थी। 

यह सुन कर मेरा जिस्म झनझना गया था। ब्रिगेडियर चीमा की ओर मेरी पीठ थी और वह बोलते चले जा रहे थे। …एक बहन गोलीबारी मे घायल हो गयी थी। दूसरी बहन ने सीमा सुरक्षा बल के जवानों को बताया कि वह समीर बट नाम के सैनिक की बीवी है जो श्रीनगर मे सेना के आफिस मे काम करता है। रात से ही 15वीं कोर मे तुम्हारे नाम से हड़कम्प मचा हुआ है। फौरन कठुआ जाकर डीआईजी सिसोदिया से मिल कर इस मामले को जल्दी से सुलझाओ। यह बात जनरल नायर तक पहुँच गयी है। मेरे चेहरे पर एक रंग आ रहा था और एक रंग जा रहा था। जन्नत और आस्माँ बीएसफ की हिरासत मे होने की चिन्ता नहीं थी परन्तु उनके बयान ने मुझे मुश्किल मे डाल दिया था। ब्रिगेडियर चीमा की दहाड़ मेरे कान मे पड़ी… मेजर, यह क्या चक्कर है। इसका मतलब यह सच है कि तुमने किसी पाकिस्तानी लड़की के साथ निकाह किया था। ओह नो। कुछ देर के लिये मै बोलने की स्थिति मे नहीं था जैसे कि मेरी जुबान तालू से चिपक कर रह गयी थी।


रविवार, 25 दिसंबर 2022

 

 

 


आयशा का फोन एक बार फिर शाम को चलने से पहले आया था। …समीर क्या हुआ? …आयशा, मेरी बात सोपोर के एसपी और अपने आफिस मे हो गयी है। उन्होंने अभी तक कोई खबर नहीं की है। जैसे ही उनसे कुछ पता चलता है मै तुरन्त बता दूँगा। इतनी बात करके मैने फोन काट दिया था। मैने अपना सामान समेटा और घर की ओर चल दिया था। आफशाँ और अदा को कल मुंबई के लिये निकलना था तो मै आज कुछ समय उनके साथ बिताना चाहता था। वह मुझे लान मे बैठी हुई मिल गयी थी। मै भी वहीं उनके साथ बैठ गया। …यहाँ क्या करने की सोच रहे हो? …वकील साहब कह रहे थे कि अब्बा ने यह मकान खाली करने का नोटिस भिजवाया है। …उन्होंने क्या कहा? …कुछ नहीं। बस इतना ही कि अम्मी की वसीयत प्रोबेट होते ही अब्बा की सारी उम्मीदों पर पानी फिर जाएगा। …फिर क्या करोगे? …अभी कुछ सोचा नहीं लेकिन एक बात जानता हूँ कि अब्बा को इसमे से एक फूटी कौड़ी नहीं दूँगा। हाँ जो भी तुम्हारा हिस्सा होगा उसमें से तुम जो भी उन्हें देना चाहो वह तुम्हारी मर्जी है। 

अदा ने कहा… समीर, अम्मी यह सब तुम्हें देकर गयी है। इसमे से हमे कुछ भी नहीं चाहिए। आसिया का भी यही निर्णय है। इसलिये हम तीनों को इससे दूर रखो। इस पर सिर्फ तुम्हारा हक ही नहीं जिम्मेदारी भी है। …और मेरे बाद? मैने सीधा सवाल इतने दिनो मे पहली बार अदा से किया था। अदा और आफशाँ दोनो ने चौंक कर मेरी ओर देखा तो मैने कहा… मै फौज मे हूँ। अगर कल मुझे कुछ हो गया तो फिर कौन देखेगा? आफशाँ ने बोलने के लिये मुँह खोला ही था कि अदा ने कहा… जब तुम नहीं होगे तो फिर यह सब हमारे किस काम का है। सब कुछ ऐसे ही पड़ा रह जायेगा। मै कुछ कहता कि आफशाँ ने कहा… समीर, आयशा मिलने आयी है। मैने मुड़ कर देखा तो आयशा लोहे का गेट खोल कर अन्दर आ रही थी। …समीर तुमने पता किया? मैने जल्दी से कहा… अभी तक पुलिस और फौज के पास अरबाज की कोई जानकारी नहीं है। वह लोग दूसरे विभागों से पता कर रहे है। अब यह बात तो तय हो गयी कि अरबाज को न तो फौज ने उठाया है और न ही पुलिस ने कस्टडी मे लिया है। अबकी बार मैने सीधा सवाल आयशा से किया… तुमसे किसने कहा है कि अरबाज को सोपोर मे फौज ने पकड़ा है। …अब्बा की पार्टी के लोगों ने घर पर खबर की थी। …कमाल है, काजी साहब ने उस आदमी से यह नहीं पूछा कि जब वह उसे हिरासत मे ले रहे थे तब उनकी पार्टी के लोग क्या कर रहे थे? आयशा चुप बैठी रही क्योंकि इसका जवाब तो उसके पास भी नहीं था।

…क्या तुम कल सोपोर चल सकते हो? अबकी बार अदा ने टोकते हुए कहा… आयशा, कल हम दोनो को मुंबई जाना है। आयशा कुछ पलों के लिये चुप हो गयी थी परन्तु वह फिर बोली… तुम्हें छोड़ने के बाद चलते है। दो घन्टे का रास्ता है। शाम तक तो हम वापिस आ जाएँगें। अपनी बला टालने के लिये मैने कह दिया कि कल सुबह आफिस पहुँच कर बता दूँगा लेकिन अगर कोई मीटिंग हुई तो फिर मै नहीं जा सकूँगा। वह अचानक उठ कर वापिस चली गयी। आयशा के जाने के बाद आफशाँ बोली… समीर, तुम उसके साथ चले क्यों नहीं जाते। …मैने कह तो दिया कि मै उसके साथ चलूँगा लेकिन कल अगर कोई मीटिंग होगी तो तुम ही बताओ कि फिर मै कैसे जा सकता हूँ। कुछ देर हम आयशा की परेशानी पर बात करते रहे तो मैने बात बदलने के लिये पूछ लिया… आफशाँ मै पूछना भूल गया कि तुम्हारी काठमांडू ट्रिप कैसी रही? …बहुत अच्छी। मेनका को मै अपने साथ ले गयी थी। होटल वालों ने मेरी बहुत मदद की थी। मै जब मीटिंग मे जाती तो वह अपने एक स्टाफ को मेरे कमरे मे मेनका के साथ बिठा देते थे। होटल मे सारी लड़कियाँ काम कर रही थी तो मेनका को उन्होंने अच्छे से संभाल लिया था। अदा ने अचानक कहा… जब तुम काठमांडू जा रही थी तो मेनका को मेरे पास छोड़ जाती। आफशाँ ने एक पल के लिये मेरी ओर देखा और फिर बोली… पहले मैने यही सोचा था लेकिन फिर मेरी यात्रा तो बार-बार लगेंगी इसीलिये इस बार सिर्फ देखने के लिये मै मेनका को अपने साथ ले गयी थी। …अगली बार जाना हो तो मेरे पास छोड़ देना। अब तो यह मेरे को भी पहचानने लगी है। मै उनकी बातों मे नहीं फँसना चाहता था इसीलिए मै उठ कर कपड़े बदलने के लिये अपने कमरे मे चला गया था।

अपने कपड़े बदल कर एक बार फिर से मै उन दो फोन नम्बर मे उलझ गया था। कौनसे नम्बर से शुरु करना चाहिये? अपना फोन इस्तेमाल नहीं कर सकता था। मै इसी नतीजे पर पहुँचा कि पब्लिक फोन से सबसे पहले इनसे संपर्क करुँगा। कुछ देर बाद आफशाँ मेरे कमरे मे आयी और शिकायती स्वर मे बोली… मै तो पहले ही कह रही थी कि मेनका को अदा के पास छोड़ कर चली जाती हूँ परन्तु तुम ही हिचक रहे थे। अब वह मुझसे इसी बात पर नाराज हो गयी है। तुम जाकर बात करो और जो कुछ भी तुम दोनो के बीच मे चल रहा है उसे बैठ कर सुलझाओ। इतना बोल कर वह कमरे से बाहर निकल गयी थी। खाना खाने के बाद मैने अदा से कहा… बाहर टहलने चलोगी। उसने गरदन हिला कर मना कर दिया तो मै अपनी जगह से उठा और उसका हाथ पकड़ कर खींचते हुए बाहर निकल गया। आफशाँ और मेनका चुपचाप बैठ कर हमे जाते हुए देखती रही थी।

सड़क पर पहुँच कर मैने उसका हाथ छोड़ कर कहा… पता नहीं तुम अपना बचपना कब छोड़ोगी। वह अपना हाथ मलते हुए झिलमिलाती हुई आँखों से मुझे घूरते हुई बोली… तुम मुझ पर हुक्म चलाने वाले होते कौन हो? मैने मुड़ कर उसकी ओर देखा तो वह वहीं खड़ी हुई अपनी बाँह सहला रही थी। मै जल्दी से उसके पास गया और उसकी बाँह को सहलाते हुए बोला… सौरी, बहुत कस कर पकड़ लिया था। तुम भी तो मुझे गुस्सा दिला देती हो। …छोड़ो मुझे। यह बोल कर वह मुझे धकेलते हुए वह आगे बढ़ गयी थी। मै जल्दी से उसके साथ चलते हुए बोला… अदा तुम कब मुझे समझने की कोशिश करोगी। वह चुपचाप मेरे साथ चलती रही। कुछ दूर मेरे साथ चलते हुए अदा ने धीरे से कहा… सब कुछ जानते हुए भी समीर, तुमने मेरे साथ ऐसे क्यों किया? …इसी सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं है। अगर समझ सको तो बस वक्त और हालात ने मुझे मजबूर कर दिया था। मै जानता हूँ कि मै तुम्हारा दोषी हूँ और हमेशा रहूँगा। वह चलते-चलते रुक गयी और मेरी ओर देखने लगी लेकिन उससे निगाह मिलाने की मुझमे हिम्मत नहीं थी। …आज भी तुम मे मुझसे आँख मिला कर बात करने की हिम्मत नहीं है। …तुम सच कह रही हो। इसीलिये आज तुमसे कह रहा हूँ कि जिस बात का कोई हल नहीं है तो उसे एक मोड़ देकर भूल जाना अच्छा होगा। इस आत्मग्लानि का बोझ सारी जिंदगी मेरे सीने पर रहेगा। वह कुछ देर मुझे देखती रही लेकिन उसने कुछ नहीं कहा और फिर घर की ओर वापिस चल दी। मै ठगा सा वहीं पर खड़ा रह गया था। काफी देर तक उस पुलिया पर बैठ कर मै शून्य मे निहारता रहा था। मै अपने रिश्तों को संभालने मे लगातार असफल हो रहा था। काफ़िर का तमगा मेरे माथे पर लगा कर मकबूल बट ने वैसे ही मुझे सभी से अलग दिया था। अब तक जो मेरे सबसे करीब थी मैने उसका भरोसा भी खो दिया था। मुझे इस उलझन से निकलने की दूर-दूर तक कोई राह नहीं दिख रही थी। 

सुबह आफशाँ ने मुझे चाय देते हुए पूछा… कल रात को कहाँ चले गये थे? …यहीं था लेकिन अदा मेरी बात सुनने के लिये तैयार नहीं थी। वह कहाँ है? …अपना सामान बांध रही है। …तुम्हारी तैयारी हो गयी? …हाँ, बस मेनका को तैयार करना बचा है। तुम जल्दी से तैयार हो जाओ। यह बोल कर वह चली गयी और मै तैयार होने चला गया। जब तक तैयार होकर बाहर निकला तब तक आफशाँ, अदा और मेनका भी तैयार होकर बाहर नाश्ते की मेज पर आ गयी थी। हमने नाश्ता किया और एयरपोर्ट की ओर चल दिये थे। अभी भी अदा के चेहरे पर रात का तनाव दिखाई दे रहा था। आफशाँ और मेनका अपनी बातों मे उलझी हुई थी। एयरपोर्ट पर भी हमारे बीच मे सामान्य बात हुई थी परन्तु सिक्युरिटी चेक पर जाने से पहले पता नहीं अदा को देख कर एक टीस दिल मे उठी और जब चलते हुए उसने अल्विदा कहने के लिये मेरी ओर देखा तो मेरे हाथ अनायस ही अपने कान की ओर चले गये थे। अपने दोनो कान पकड़ कर उसके सामने खड़ा हो गया था। आफशाँ और मेनका के साथ आने जाने वालों की नजर मुझ पर टिक गयी थी। कोई युनीफार्म मे खड़ा हुआ आदमी अगर अपने दोनो कान पकड़ कर खड़ा दिखायी देगा तो वैसे भी सबकी नजर उस पर टिक जाएगी। अदा भी अपनी युनीफार्म मे थी। वह एक पल मुझे घूरती रही और फिर मुस्कुरा कर आफशाँ को धकेलती हुई बोली… अब चलो, वर्ना इसका नाटक बढ़ता चला जाएगा। वह और आफशाँ हँसते हुए अन्दर चली गयी थी। मै कुछ पल वहीं खड़ा रहा और फिर उसके चेहरे की मुस्कान को पढ़ने की कोशिश करते हुए अपने आफिस की ओर चल दिया।

जब तक आफिस पहुँचा तब तक ब्रिगेडियर चीमा का नोट मेरी मेज पर पड़ा हुआ था। उन्होंने आते ही मुझे अपने पास बुलाया था। मै उनसे मिलने के लिये चला गया। उनके कमरे मे वही तिकड़ी बैठी हुई मेरी रिपोर्ट पर चर्चा कर रही थी। मुझे देखते ही वीके ने कहा… आओ मेजर, तुम्हारी रिपोर्ट देख ली है। तुमने खतरे से आगाह कर दिया है परन्तु यह नहीं बताया कि क्या करना चाहिये। मैने सबका अभिवादन किया और बैठते हुए बोला… सर, सच पूछिये तो मेरी टीम मुझे दे दिजीए। मै एक-एक करके सभी खतरों को समाप्त कर दूँगा। जनरल रंधावा ने हँसते हुए कहा… यह तो हम पिछ्ले तीस साल से करने की सोच रहे हैं परन्तु आज तक नाकामयाब रहे है। अजीत ने संजीदा लहजे मे कहा… मेजर, सवाल है कि मकबूल बट क्या करने की सोच रहा है? …सर, यह भी हो सकता है कि मकबूल बट इस साजिश मे सिर्फ एक प्यादा हो जिसके उपर हमारा ध्यान भटका कर कोई दूसरा इंसान या तंजीम एक बहुत बड़ा काम अंजाम देने की कोशिश मे जुटी हुई है। मै अभी तक यह समझ नहीं पाया कि अब्दुल लोन और जमात-ए-इस्लामी कैसे साथ हो गये है। क्या उन पर जकीउर लखवी का दबाव है अन्यथा जनरल मंसूर बाजवा इन सबके पीछे है? चारों काउन्टर इन्टेलिजेन्स के दिग्गजों के चेहरे पर तनाव की लकीरें खिंच गयी थी। 

कुछ सोचने के बाद ब्रिगेडियर चीमा बोले… सर, उनकी आर्थिक शक्ति की सारी ट्रेल हमारे सामने है। सभी मुख्य लोग की पहचान हो चुकी है। उनकी कार्यशैली पता लग चुकी है परन्तु केन्द्र सरकार कोई एक्शन लेने से अब क्यों झिझक रही है। मैने तुरन्त कहा… सर, उनमे से एक आदमी के आफिस पर कल एन्फोर्समेन्ट वालों ने रेड करके सारे अकाउन्ट सील कर दिये है। सभी ने वीके की ओर देखा तो वह मंद-मंद मुस्कुरा रहा था। बात बदलने के लिये जनरल रंधावा ने कहा… मै पिछले तीन साल से सरकार की राष्ट्रीय सुरक्षा समिति मे बैठ रहा हूँ। हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एक कूटनीतिज्ञ है लेकिन सुरक्षा उसका कभी विषय नहीं रहा है। इसीलिए उनकी सोच बाहरी रिश्तों पर केन्द्रित रहती है। आंतरिक चुनौतियों का सामना करने मे इसीलिये मौजूदा सरकार की इच्छा शक्ति मे कमी है। मैने तुरन्त सवाल किया… सर, तो फिर हमे क्या करना चाहिये? अबकी बार वीके ने कहा… मेजर, जब तक सरकार कोई मजबूत कदम नहीं उठाती तब तक हमे उनकी पाईपलाईन पर चोट मारते रहना है जैसे तुमने अभी तक किया है। जामिया मस्जिद ब्लास्ट, फिर उनके ट्रक पकड़े गये और अभी हाल मे ही उनके पैसों के स्त्रोत पर वह तीन ट्रक पकड़ कर हमला किया था। इसके कारण उनकी गतिविधियों मे कमी आयी है। इसलिये तुम जो अब तक कर रहे थे वह करते रहो। अपने उसी नेटवर्क को मजबूत करो और उन पर इसी प्रकार प्रहार करते रहो। क्या तुमने ब्रिगेडियर चीमा से पूछ कर उस जामिया मस्जिद मे ब्लास्ट किया था? सारा मैदान तुम्हारे सामने है और तुम काबिल हो यह सोचने के लिये कि कौनसा कार्य उस स्थिति मे ठीक होगा। अगर कहीं मुश्किल मे फँस गये तब हम लोग तुम्हारी सहायता के लिये उतरेंगें जैसे उस वक्त ब्रिगेडियर चीमा ने उस जामिया मस्जिद ब्लास्ट के मलबे को किसी और दिशा मे फैला दिया था।

मैने फिर कहा… सर, अभी तक हम कुपवाड़ा की आब्सर्वेशन पोस्ट को भी बन्द नहीं कर पाये है। वीके ने ब्रिगेडियर चीमा से पूछा… यह कौनसी आब्सर्वेशन पोस्ट की बात कर रहा है? ब्रिगेडियर चीमा ने युसुफजयी के काल सेन्टर की सारी कहानी सुना कर कहा… मैने यह बात जनरल नायर के कान मे डाल दी थी परन्तु यहाँ के हालात ऐसे है कि उन्होंने भी फौजी कार्यवाही के लिये मना कर दिया था। उनकी ओर से ग्रीन सिगनल मिलते ही हम पूरी इमारत को एक ही रात मे ध्वस्त कर सकते थे। अजीत ने कुछ सोच कर कहा… मेजर, उस इमारत को ध्वस्त करने के लिये तुम किसका इंतजार कर रहे हो? अगर वह इमारत आंतरिक सुरक्षा के लिये खतरा है तो तुम्हें अब तक यह काम कर देना चाहिये था। एक पल के लिये मैने अजीत की ओर देखा तो वह काफी संजीदा दिख रहे थे। पहली बार जब हम होटल ताज मे मिले थे तब इस तिकड़ी ने अपनी मंशा उसी समय साफ कर दी थी। उन्होंने मुझे डिफेंसिव आफेन्स की काउन्टर इन्टेलिजेन्स युनिट को खड़ी करने की जिम्मेदारी दी थी। वक्त और हालात के अनुसार आंतरिक सुरक्षा के लिये मुझे तत्काल एक्शन लेने के लिये कहा था। अगर जरुरत पड़े तो इसके लिये सरकारी पर्मिशन व प्रशासनिक कानून की उलझनों से बाहर रह कर भी कार्य करने की अनुमति दी थी। 

अचानक वीके ने पूछा… सुरिंदर, उन तीन ट्र्कों से जब्त किये सेम्टेक्स और आरडीएक्स की छ्ड़े और डिटोनेटर्स कहाँ है? …सर, सुरक्षा दृष्टि से सारा सामान मालखाने मे रखवा दिया गया था। एकाएक बिना किसी के बोले हम पाँचों के लिये सारी कार्यविधि साफ हो गयी थी। कुछ देर तक हम पत्थरबाजों पर चर्चा करते रहे थे। इस बीच मे तीन बार आयशा फोन कर चुकी थी। मीटिंग समाप्त करने से पहले वीके ने कहा… मेजर, एक बात हमेशा के लिये गाँठ बाँध लेना कि स्वतंत्र निर्णय के साथ उत्तरदायित्व का भार भी कन्धे पर ज्यादा होता है। यही बात हम सब पर लागू होती है। लाईसेंस टु किल का मतलब यह नहीं होता कि किसी को भी मारने की छूट है परन्तु उसकी जवाबदेही उससे भी ज्यादा जरूरी होती है। मै समझ रहा था कि वह लोग सिर्फ इशारे-इशारों मे मुझे मेरा दायित्व समझा रहे थे। मैने उठ कर सैल्युट किया और चलते हुए कहा… आप बेफिक्र रहिए सर। आपको कोई शिकायत का मौका नहीं दूगाँ। तभी अजीत ने मुस्कुरा कर पूछा… मेजर, पाकिस्तान कैसा लगा? मै कुछ बोलता इससे पहले वीके ने कहा… अजीत तीन साल अन्डरकवर मे रह कर काहुटा परमाणु केन्द्र पर काम कर के आया है। उस पल उन तीनो सेवानिवृत अधिकरियों की देश भक्ति और कर्तव्यनिष्ठा के बारे मे मेरी सोच और पुख्ता हो गयी थी। …सर फिर कभी आपसे आपकी कहानी पूछूँगा फिलहाल मुझे इजाजत दिजीए। उन सबसे विदा लेकर मै अपने घर की ओर चल दिया था। 

मुझे मालूम था कि आज घर पर कोई नहीं था। घर जाने को मेरा मन नहीं कर रहा था परन्तु कहीं तो रात काटनी थी। जैसे ही मैने अपने घर का मोड़ काटा कि तभी काजी साहब के घर का बड़ा सा लोहे का गेट खुला और आयशा सड़क पर आकर खड़ी हो गयी थी। मैने जल्दी से ब्रेक मार कर झल्ला कर आयशा से कहा… यह क्या मजाक है? वह मेरे पास आकर बोली… मेरे साथ चलो। एक पल के लिये मै झिझका फिर जीप से उतर कर उसके साथ चल दिया। आलीशान सी बैठक मे काजी साहब सोफे पर बैठे हुए थे। आयशा की अम्मी भी एक किनारे मे बैठी हुई मुझे ताक रही थी। मैने सलाम किया और उनके सामने जाकर बैठ गया। काजी साहब की भारी आवाज कमरे मे गूंजी… समीर, हमारे बेटे का कुछ पता चला? मैने उनके सामने वही बात दोहरा दी थी जो आयशा को बताई थी। कमरे मे शांति छा गयी थी। अचानक आयशा की अम्मी बोली… बेटा समीर, अगर शमा होती तो मै उससे मदद की गुहार लगाती परन्तु अब तुझसे कह रही हूँ कि खुदा के लिये हमारी मदद कर। मै कुछ कहता कि एक पर्दानशींन स्त्री ने बैठक मे कदम रखा और रुआँसी आवाज मे बोली… प्लीज, उनका पता लगाईये। मैने अनुमान लगाया कि यह अरबाज की पत्नी होगी।

घर मे तनाव के माहौल को देखते हुए मैने कहा… देखिये मै पूरी कोशिश कर रहा हूँ। मेरी बात एसपी सोपोर से हुई थी तो उसने कहा कि पुलिस ने किसी को नहीं पकड़ा है। आप कह रहे है कि उसे फौज ने पकड़ा था लेकिन सोपोर मे तैनात हमारी युनिट ने बताया कि उन्होंने भी किसी को नहीं पकड़ा है। अब आप ही बताईये इसमे मै क्या कर सकता हूँ। आयशा तुरन्त बोली… समीर, तुम मेरे साथ सोपोर चलो। …वहाँ जाकर भी हम क्या करेंगें जो हम यहाँ बैठ कर नहीं कर सकते। मेरा तर्क तो सही था परन्तु जहाँ भावनाएँ चरम पर होती है वहाँ तर्क काम नहीं करता। एक पल रुक कर मैने कहा… काजी साहब, अगर आपको अपने बेटे की चिन्ता है तो जमात-उल-हिन्द के उन व्यक्तियों के नाम बताईये जिन्होंने अपनी आँखों से यह सारा घटनाक्रम देखा था। मुझे लगता है कि आपके ही लोग आपके बेटे के अपहरण मे लिप्त है। एकाएक काजी साहब गुस्से मे बोले… क्यों काफ़िरों की तरह हम पर तोहमत लगा रहे हो। एक पल के लिये मुझे लगा कि उनका इशारा मेरी ओर है। …हमारी जमात दीन पर चलती है। भला मेरे बेटे का अपहरण वह क्यों करेंगें? जल्दी से अपने आपको संभालते हुए मैने जवाब दिया… निजि दुश्मनी और सत्ता की लालसा जैसे बहुत कारण हो सकते है। इससे बेहतर क्या होगा कि फौज और पुलिस पर सारा इल्जाम डाल कर उनका उद्देश्य हासिल हो जाये। 

शायद वहाँ बैठी हुई स्त्रियों को मेरी बात समझ मे आ गयी थी तो वह काजी साहब पर नाम बताने के लिये दबाव डालने लगी। कुछ देर जिरह होने के बाद काजी साहब ने हार कर कहा… सोपोर का ब्लाक अध्यक्ष नदीम मोहम्मद और सचिव फैसल परवेज ने मुझे यह खबर दी थी। मै उठ कर चलने से पहले कहा… काजी साहब, मै अभी सोपोर के लिये निकल रहा हूँ। कल तक आपके बेटे का पता लगा कर खबर कर दूँगा लेकिन अरबाज के लौटने से पहले आपको मेरे एक सवाल का जवाब देना पड़ेगा। इतना बोल कर जैसे ही मै कमरे से निकला कि तभी आयशा मेरे पीछे-पीछे भागती हुई आयी और बोली… मै भी तुम्हारे साथ चल रही हूँ। …तुम क्या करोगी? मै अब वहाँ जा तो रहा हूँ। …नहीं मै भी चल रही हूँ। तुम नहीं लेकर जाओगे तो मै अपनी कार से तुम्हारे पीछे आऊँगी। मैने एक नजर अपनी घड़ी पर डाल कर कहा… पहुँचते हुए आधी रात हो जाएगी। आयशा बिना जवाब दिये मेरी जीप मे जाकर बैठ गयी थी।

कुछ ही देर मे हम दोनो सोपोर की ओर जा रहे थे। एक बार पहले भी वह जबरदस्ती मेरी ज़ीप मे बैठ गयी थी। श्रीनगर से निकल कर हम हाईवे पर पाटन की ओर जा रहे थे कि मुझे अंजली की बात याद आ गयी थी। मेरी माँ पाटन मे रहती थी। अपने अन्दर उमड़ती हुई भावना को दबाने के लिये मैने आयशा से पूछा… स्कूल के बाद तुम्हें इतने दिनो के बाद देख रहा हूँ। तुम कहीं बाहर गयी हुई थी? वह अपने ही ध्यान मे गुम थी। …आयशा। उसने चौंक कर मेरी ओर देखा तो मैने कहा… क्या सोच रही हो? …यही कि भाईजान कहाँ होंगें। …अब चल तो रहे है। वहाँ पहुँच कर पता करेंगें। एक बार फिर से मैने वही सवाल दोहरा दिया था। इस बार वह कुछ सोच कर बोली… जल्दबाजी मे मेरा निकाह हो गया था। …अरे वाह। तुमने तो यह बात आफशाँ और अदा को भी नहीं बतायी थी। …क्या बताती। मेरा निकाह भी हुआ और फिर तलाक भी हो गया। …अनवर के साथ? उसने मुझे घूर कर देखा और फिर धीरे से बोली… यह नाम दोबारा तेरी जुबान पर नहीं आना चाहिए। …तुम तो एक दूसरे से मोहब्बत करते थे तो फिर ऐसा क्या हो गया?  वह कुछ देर चुप रही और फिर बोली… तूने उनका साथ क्यों छोड़ दिया था। एक पल के लिये मेरी आँखों के आगे से सब गुजर गया था। माँ की मौत ने मेरा सारा जीवन ही बदल कर रख दिया था। उसे क्या बताता इसी लिये मैने कहा… क्यों भूल गयी कि उस रात तुमने क्या कहा था। वैसे भी पढ़ाई के बोझ के कारण मेरा सब कुछ पीछे छूट गया था। …अच्छा किया जो समय रहते तूने उन कमीनों का साथ छोड़ दिया था। उसकी आवाज मे द्वेश कम और घृणा ज्यादा लग रही थी। सफर लंबा था तो मैने हिम्मत करके पूछ लिया… फिर भी मैने तो अपना वादा निभाया था। इस बार वह मुस्कुरायी और फिर अचानक उसका चेहरा लाल हो गया था। वह निगाह झुका कर धीरे से बोली… समीर उस दिन निशात बाग मे तूने सब कुछ देखा था? मैने सिर्फ अपना सिर हिला दिया था।

…आयशा मै तो आज तक यही सोच रहा था कि तुम और अनवर अभी भी साथ-साथ होंगें। …तू निरा बेवकूफ है। उसने अपनी मोहब्बत का छलावा देकर कुछ दिन मौज मस्ती लेकर मुझसे पीछा छुड़ाने के लिये अपने दोस्त फईम के हवाले कर दिया था। मेरा पाँव अचानक ब्रेक पर दब गया और जीप एक पल के लिये लहक गयी थी। मैने जल्दी से जीप को संभाला और उसकी ओर देखा तो वह सामने सड़क पर निगाहें जमाये हुए थी। …तो फिर तुम और फईम? मै इसके आगे नहीं बोल सका था। उसने मेरी ओर देखा और फिर मुस्कुरा कर बोली… काश उसकी जगह अगर अनवर ने तेरा नाम लिया होता तो शायद मै तैयार हो जाती परन्तु उस दिन मैने तेरे दोनो दोस्तों की चप्पल से पिटाई की थी। उसकी बात सुन कर मेरे चेहरे पर एक मुस्कान तैर गयी थी। …क्यों मुस्कुरा रहा है? …उस दिन तुम्हें अनवर के साथ देख कर मुझे बहुत जलन हुई थी। …क्यों? मै एक पल चुप रहा और फिर सड़क से नजरें हटा कर उसकी ओर देखते हुए कहा… क्या तुम्हें नहीं मालूम। वह कुछ नहीं बोली और फिर सारे रास्ते सिर झुका कर बैठ गयी थी।

सोपोर पहुँचते हुए काफी रात हो गयी थी। एमआई के स्थानीय कार्यालय मे पहुँच कर सबसे पहले नदीम मोहम्मद और फैसल परवेज का पता निकाला और फिर गार्ड युनिट के चार सैनिकों को साथ लेकर सबसे पहले नदीम मोहम्मद के घर पर पहुँच गया था। रात के दस बजे हमने उसको उसके घर से उठा कर फैसल परवेज के घर पहुँच गये थे। दोनो को रात मे उठाने का यह लाभ हुआ कि उनकी जमात के लोग कोई हंगामा करने की स्थिति मे नहीं थे। हम दोनो को लेकर वापिस अपनी चौकी पर आ गये थे। आयशा को अपनी जीप मे छोड़ कर एमआई के आफिस मे पहले फैजल परवेज से पूछताछ आरंभ हुई थी। …अरबाज को किसने उठाया था? …जनाब, फौज की टुकड़ी अपने साथ लेकर गयी थी। …तुमने अपनी आँखों से देखा था? एक पल के लिये वह झिझका और फिर सपाट स्वर मे बोला… जी जनाब। मेरा हाथ घूमा और उसके गाल पर पूरी ताकत से पड़ा कि वह एक पल के लिये चकरा गया था। इससे पहले कि वह संभल पाता कि तभी मैने साथ खड़े हुए सिपाही से कहा… हवलदार साहब, इस हरामजादे को नंगा करके उल्टा टांग दो। कल सुबह जीप के आगे बाँध कर नेताजी को इसी रुप मे सोपोर शहर मे घुमाएँगें। वह सिपाही जैसे उसकी ओर बढ़ा वह जोर से चिल्लाया… जनाब, खुदा के लिये रहम किजीए। मुझे तो नदीम साहब ने कहा था। कसम खुदा की मुझे इस बारे मे कुछ नहीं मालूम। …चलो अपना स्टेटमेन्ट लिख कर दो। उसने जैसे ही आनाकानी की मै जोर से चिल्लाया… हवलदार इसके कपड़े अभी तक उतरे क्यों नही। दो सैनिकों ने उसको कुछ मिनटों मे जन्मजात नंगा करके एक कोने मे खड़ा कर दिया था। दो सिपाहियों को उसकी गार्ड ड्युटी पर लगा कर एक कागज और कलम उसे थमा कर कहा… फैसल मियाँ, जब तक मै नदीम साहब की हड्डियाँ नरम करके आता हूँ तब तक तुम्हारा स्टेटमेन्ट इस मेज पर रखा होना चाहिए। इतना बोल कर मै उस कमरे से निकल कर नदीम के पास चला गया था।

नदीम मोहम्मद अधेड़ उम्र का व्यक्ति था। उसके आये दिन के धरनों और मोर्चों के कारण मै उसे  पहचानता था। …नदीम मियाँ, अरबाज कहाँ है? उसने बोलने के लिये मुँह खोला ही था कि मैने धमकाते हुए कहा… मियाँ सोच कर बोलना। तुम्हारे फैजल मियाँ ने अपना स्टेटमेन्ट लिख कर दे दिया है कि यह फौज की कहानी झूठी है और तुमने उसे बोलने के लिये कहा था। उसके चेहरे पर तनाव की रेखायें खिंच गयी थी। वह हड़बड़ा कर बोला… मुझे मेरे वकील से बात करनी है। आप कानून को अपने हाथ मे नहीं ले सकते है। मैने उसके नेतागिरी के नाटक को कुछ देर बर्दाश्त किया और फिर उसे गुद्दी से पकड़ कर खींचते हुए फैसल के कमरे मे ले जाकर धक्का देते हुए कहा… नदीम मियाँ, यह फौज का एरिया है। सुबह तक तुम्हारी इससे भी बुरी गत बना दूँगा कि तुम मुँह खोलने लायक नहीं रहोगे। अपने साथी पर एक नजर डाल कर बोलना आरंभ कर दो। सामने फैसल जमीन पर नंगा उकड़ू बैठा अपनी नग्नता को छुपाने का असफल प्रयास कर रहा था। यह दृश्य देख कर नदीम मोहम्मद की हवाईयाँ उड़ गयी थी। अबकी बार मैने फिर पूछा… अरबाज कहाँ है? अबकी बार उसने जल्दी से कहा… जनाब, अरबाज यहीं सर्किट हाउस मे ठहरा हुआ है। मुझसे उसी ने कहा था कि यह कहानी मै उसके अब्बा को सुना दूँ। मैने दोनो को गार्ड्स के हवाले करते हुए कहा… मै सर्किट हाउस जा रहा हूँ। अगर वह वहाँ नहीं मिला तो तुम दोनो पर खून का चार्ज लगा कर सुबह गोली मार दूँगा। इतना बोल कर मै वापिस अपनी जीप की ओर चला गया था। आयशा जीप मे बैठी हुई थी। एक लेफ्टीनेन्ट और दो सैनिकों को लेकर हम सर्किट हाउस की दिशा मे चल दिये थे। 

रात को बारह बजे के करीब हमने अरबाज को सर्किट हाउस से बरामद कर लिया था। वह दो स्त्रियों के साथ रंगरलियाँ मना रहा था जब हमने उसके कमरे का दरवाजा खोल कर उसे अपने कब्जे मे लिया था। उसकी बहन ने सारा नजारा अपनी आँखों से देखा था। उसकी कुछ तस्वीरें अपने फोन से खींच कर हम उसे अपने साथ लेकर वापिस एमआई के आफिस मे आ गये थे। नदीम मोहम्मद और फैसल परवेज को हमने जीप से रात को ही उनके घर छुड़वा दिया था। अरबाज को अपनी कस्टडी मे लेकर देर रात को हम श्रीनगर के लिये चल दिये थे। आयशा भी मेरे साथ थी। …अरबाज, तुमने जो चक्रव्युह की रचना की थी उसमे तुम खुद फँस गये हो। अब तुम अपने आप बताओगे कि यह सब किसलिये किया था या फिर पहले नदीम और फैसल की तरह अपनी गत बनवा कर बताओगे। तुमने फौज के उपर आरोप लगाया है तो अब तुम्हें तब तक नहीं छोड़ा जाएगा जब तक तुम सारी सच्चायी नहीं बता देते। इस बार काजी साहब और आयशा भी तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकेंगें। 

अरबाज चुप बैठा रहा तो मैने आयशा से कहा… तुमने अपने भाई की करतूत देख ली है। अब तुम्हें यह भी पता चल गया है कि वह ठीक है। मै तुम्हें तुम्हारे घर पर छोड़ कर इसे डिटेन्शन मे ले रहा हूँ। तुम कोशिश करके देख लो कि यह सब सच बोल दे वर्ना हमे इनके जैसे लोगों का मुँह खोलना आता है। इतना बोल कर मैने अपना ध्यान सड़क पर लगाया और भाई-बहन बात करने बैठ गये थे। काफी देर तक आयशा पूछती रही लेकिन उसने अपना मुँह नहीं खोला था। श्रीनगर मे घुसते ही वह बोला… समीर, मुझे तुमसे बात करनी है। मैने छूटते ही कहा…  जैसे उस दिन जरीना के लिये तुम मुझसे बात करने आये थे। वह कुछ नहीं बोला परन्तु आयशा ने पूछा… कौन जरीना, डाक्टर इस्लाम की बेटी? मैने अरबाज की ओर देखा तो वह मुझे घूर रहा था। …समीर, यह जरीना का क्या चक्कर है? …बता दूँ क्या? आयशा ने तुरन्त कहा… समीर, तुम सीधे घर चलो। आज अब्बा को इसके सारे काले कारनामे बताने का समय आ गया है। अगर तुम डाक्टर इस्लाम की लड़की जरीना की बात कर रहे हो तो यह जान लो कि उस जरीना ने खुदकुशी की थी। इस खुलासे ने मुझे भी हिला दिया था।

जैसे ही हमने अपनी कोलोनी मे प्रवेश करने के लिये मोड़ काटा ही था कि अरबाज ने कहा… समीर, एक किनारे मे जीप खड़ी कर ले। मै तुझे सारी बात बता देता हूँ। …नहीं समीर, तुम सीधे घर चलो। आज अब्बा को पता चलना चाहिये कि उनका फर्जन्द क्या गुल खिला रहा है। कुछ सोच कर मैने कहा… आयशा, मेरे घर पर कोई नहीं है। वहाँ आराम से बैठ कर पहले इसकी बात सुन लेते है। अगर यह सच बोलेगा तो गड़े मुर्दे उखाड़ने की जरुरत नहीं है। फिर भी उसके बाद अगर तुम ठीक समझोगी तो अपने अब्बा को सारी बात बता देना। इतना बोल कर मै सीधे अपने घर की ओर चल दिया। जीप के रुकते ही रहमत उठ गया था। उन दोनो लेकर मै अपने कमरे मे चला गया। रहमत आँखें मलता हुआ आया तो मैने कहा… रहमत मियाँ दोपहर से कुछ नहीं खाया है। चाय के साथ कुछ खाने के लिये भी बना लाओ। रहमत के जाने के बाद मैने अपने बैग मे रखा हुआ सेटफोन निकाल कर मेज पर रखते हुए कहा… अरबाज मुझे शुरु से सारी बात बताओ।

एक क्षण के लिये वह झिझका फिर धीरे-धीरे बोलना शुरु किया… तीन महीने पहले एक फारुख मीरवायज नाम का पाकिस्तानी कारोबारी जमात-उल-हिन्द के बारे मे जानने के लिये मुझसे मिला था। उस वक्त जमात-उल-हिन्द बेहद तंगी के दौर से गुजर रही थी। फारुख ने मुझे सुझाव दिया कि मुझे अपनी पार्टी का विलय जमात-ए-इस्लामी मे कर लेना चाहिए। उस वक्त मैने उसका सुझाव ठुकरा दिया था। मुझे उम्मीद थी कि कम से कम अगले चुनाव मे हमारी पार्टी को कुछ सीटें जीतने का मौका मिल जाएगा परन्तु अब्बा ने अलगावादियों की काल पर चुनाव न लड़ने का फैसला किया था। एक बार जमात-ए-इस्लामी से तुम्हारे अब्बा की ओर से एक न्योता मिला कि मै जमात-उल-हिन्द छोड़ कर उनकी पार्टी मे चला आऊँ परन्तु इसके लिये मैने मना कर दिया था। अभी कुछ दिन पहले मेरे पास फारुख का फोन आया था कि वह मुझसे कोई खास बात करना चाहता है परन्तु उसकी शर्त थी कि हमारी मुलाकात के बारे मे खासकर जमात-ए-इस्लामी और मेरे अब्बा को पता नहीं चलना चाहिये। एक कार्यक्रम मे मुझे सोपोर आना था तो मैने फारुख से मिलने के लिये उसे सोपोर बुला लिया था। कुछ दिनों के लिये मुझे अपने और दूसरे लोगो से छिप कर उससे मिलना था इसीलिए मैने यह कहानी गड़ी थी। नदीम मेरा अपना आदमी था इसीलिए मैने उससे कहा था कि वह अब्बा को फोन करके यह कहानी सुना दे लेकिन पता नहीं था कि अब्बा इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा कर देंगें।

कुछ सोच कर मैने पूछा… तो तुम्हारी उस मीरवायज मीटिंग हो गयी? …हाँ, आज सुबह ही मीटिंग समाप्त हुई थी। …फारुख क्या करने की सोच रहा है? …समीर वह यहाँ पर उपस्थित सभी राजनीतिक और चरमपंथी तंजीमों का संयुक्त मोर्चा बनाने की सोच रहा है। यह संयुक्त मोर्चा जमात-ए-इस्लामी की अध्यक्षता मे काम करेगा। इसके लिये फारुख हर साल दो करोड़ रुपये की आर्थिक मदद संयुक्त मोर्चे को देगा और इसी के साथ उसने मुझे उस संयुक्त मोर्चे का सचिव पद देने की बात की है। …तुमने इस बारे मे क्या सोचा? …इसमे क्या सोचना। जब सभी तंजीमे इस मोर्चे का हिस्सा बनने जा रही है तो एक अकेली हमारी जैसी पार्टी भला कैसे अछूती रह सकती है। कल तक तो मै वैसे ही वापिस अपने घर पहुँच जाता। तभी आयशा बोली… और फिर रंगरलियाँ मनाने के लिये एक रात रुक गये थे। उसने कोई जवाब नहीं दिया और मेरी ओर देखने लगा। रहमत कुछ चाय और नाश्ता बना लाया था। अरबाज ने तो सिर्फ चाय ली परन्तु हम दोनो ने भरपेट नाश्ता किया था। सुबह की लालिमा फैलनी आरंभ हो गयी थी जब भाई-बहन ने अपने घर की राह ली तो मै अपने कपड़े उतार कर बिस्तर मे घुस गया। हल्की सी गर्माहट मिलते ही मै गहरी नींद मे डूब गया था।

दोपहर को मेरी आँख खुली थी। मै आराम से तैयार हुआ और खाना खा कर अपने आफिस चला गया। ब्रिगेडियर चीमा को कल की बातचीत से अवगत कराना था। ब्रिगेडियर चीमा तो अपने कमरे मे नहीं थे परन्तु तिकड़ी वहीं बैठी हुई थी। मुझे देखते ही वीके ने मुस्कुरा कर कहा… मेजर कल सारी रात सोपोर मे क्या कर रहे थे? …सर, एक तहकीकात के लिये गया था। वहाँ पूछताछ पर पता चला कि एक  पाकिस्तानी कारोबारी सभी राजनीतिक और चरमपंथी तंजीमों को एक प्लेटफर्म पर लाकर संयुक्त मोर्चा बनाने की कोशिश कर रहा है। वह हर साल दो करोड़ रुपये की आर्थिक मदद उस मोर्चे को देगा लेकिन यह पता नहीं चल सका है कि आखिर वह मोर्चा बनाने बाद क्या करेगा? एक बार तीनो ने एक दूसरे को देखा और फिर अजीत ने कहा… ज्यादा से ज्यादा वह मोर्चा कश्मीर की आजादी की मांग करेगा। जनरल रंधावा ने अजीत की बात का समर्थन करते हुए कहा… आजादी तो लक्ष्य होगा परन्तु उनके निशाने पर हमारी सुरक्षा एजेन्सियाँ होगी। तुमने पत्थरबाजी के लिये कुछ कदम उठाये है? …नहीं सर लेकिन कुछ आदमी मेरी नजर मे आ गये है जो पत्थरबाजी के लिये बच्चों को उकसाते है।

हम कुछ देर बात करते रहे फिर मै उनसे इजाजत लेकर बाहर निकल आया था। मै अपनी जीप मे बैठा और कोम्प्लेक्स की ओर चल दिया। चाय पीकर मैने अपने आर्डरली की छुट्टी कर दी और कपड़े बदल कर अपने घर की ओर चल दिया। मार्किट मे रुक कर मैने एक नया फोन नये सिम कार्ड के साथ खरीद कर अपने घर की ओर चल दिया। घर पहुँच कर मैने उन दो नम्बर मे से एक नम्बर मिलाया तो कुछ देर घंटी बजने के बाद किसी ने फोन उठा कर कहा… हैलो। मैने जल्दी से कहा… निशात बाग थाने से एस आई इश्तियाक बोल रहा हूँ। कौन बात कर रहा है? दूसरी ओर वह एक पल के लिये झिझका फिर जल्दी से बोला… जमील अहमद। …मियाँ तुमने पुलिस कंट्रोल रुम को उस फिदायीन हमले की खबर दी थी। वह जल्दी से बोला… जी जनाब। …मियाँ तहकीकात के लिये तुम्हारा स्टेटमेन्ट लेना है। अपना पता बताओ। एक बार उसने टालमटोल करने की कोशिश की तो पुलसिया अंदाज मे घुर्रा कर बोला… तो घर से तुम्हें उठाना पड़ेगा। उसने जल्दी से अपना बारामुल्ला का पता लिखा कर कहा… जनाब आप चाहे तो मै वहाँ आकर अपना स्टेटमेन्ट जमा करा दूँगा। …ठीक है। यह कह कर मैने फोन काट दिया था। एक आदमी का पता चल गया था। मैने दूसरे नम्बर पर फोन किया लेकिन फोन लगातार आउट आफ रीच बता रहा था तो मैने फोन मिलाना बन्द करके उस जमील अहमद को अपना पहला निशाना बनाने का निर्णय लिया।


कुपवाड़ा

किसी अज्ञात स्थान पर एक व्यक्ति अपने हाथ मे सेटफोन लिये ताक रहा होता है कि तभी फोन की घंटी बजती है। वह तुरन्त काल लेकर बोलता है… सभी तंजीमों से मेरी बात हो गयी है। मकबूल बट ने राजनीतिक दलों के मुखियाओं को भी मोर्चे से जुड़ने के लिये राजी कर लिया है। बस अधिकारिक रुप से इस संयुक्त मोर्चे को दुनिया के सामने लाने के लिये देवबंद ने एक इज्तिमा करने का सुझाव दिया है। उनकी ओर से हिंदुस्तान के अलग-अलग प्रांतों से नामी मौलवियों और इमामों को भी नयौता देने की बात हुई है। …इज्तिमा से मुस्लिम समाज के जुड़ने की कितनी आशा है? …जनाब, इसे इज्तिमा का नाम इसीलिये दिया गया है कि मुस्लिम समाज को जोड़ना आसान हो जाएगा। उनको एहसास कराना है कि मोर्चे का गठन उनकी रहनुमाई के लिये किया गया है। …लखवी को क्या काम दिया है? …वह अभी तक चिड़ी हुई बैठी है। …उसको लाईन पर लाने के लिये मकबूल बट की मदद लो। …जी जनाब। …कुछ नये ग्रिड कुअर्डिनेट्स मिले है। मै तुम्हें भेज रहा हूँ। उसके लिये जल्दी से कोई योजना बना कर कार्यान्वित करो। काफ़िरों की फौज को पता चलना चाहिये कि हमारी पहुँच कहाँ तक है। …जी जनाब। …अगली बार इज्तिमा की तारीख के बारे मे तय करके बताना। मै अगले हफ्ते इसी समय पर संपर्क करुँगा लेकिन तब तक अपनी टीम को तैयार कर लेना। खुदा हाफिज। इसी के साथ लाईन कट गयी थी।


बुधवार, 21 दिसंबर 2022

 

 

काफ़िर-25

 

सुबह उठते ही मै तैयार हो गया था। आज अम्मी और आलिया की मौत का तीसरा दिन था। सुबह से ही रिश्तेदारों और मिलने-जुलने वाले लोगों का ताँता लग गया था। सभी बट परिवार के पास अपना दुख व्यक्त करने के लिए आ रहे थे। आसिया और मै उनके साथ बैठे हुए थे और आफशाँ और अदा आने वालों की मेजबानी मे लगी हुई थी। दोपहर तक सब मिल कर वापिस जा चुके थे। हम चारों बैठक मे आराम कर रहे थे। आसिया ने कहा… सब मिलने वाले आकर कर जा चुके है। अब और किसी की उम्मीद तो नहीं है। कुछ सोचते हुए मैने कहा… दिल्ली वाली खाला के यहाँ से कोई नहीं आया। क्या उनसे कोई नाराजगी हो गयी है? …हाँ मौसी के यहाँ से कोई नहीं आया और न ही अब्बा या उनके यहाँ से कोई आया है। हम अपने परिवार की दरारों के बारे मे चर्चा कर रहे थे कि तभी रहमत ने आकर बताया कि कोई स्त्री मिलने के लिए आयी है। आसिया और अदा उठ कर उससे मिलने के लिए बाहर चली गयी थी।

…आफशाँ, तुम अब मुंबई छोड़ कर यहीं मेरे साथ क्यों नहीं रहती। …नहीं समीर, यह जगह सुरक्षित नहीं है। हम दोनो बात कर रहे थे कि तभी आसिया किसी अनजान लड़की के साथ बैठक मे प्रवेश करते हुए बोली… यह समीर है। सलाम करके वह लड़की हमारे सामने आकर चुपचाप बैठ गयी थी। मैने आसिया और अदा की ओर देखा जो बड़े ध्यान से मेरी ओर देखते हुए मुस्कुरा रही थी। …इन्हें पहचाना समीर? मैने घूर कर आसिया की ओर देखा तो वह मेरे साथ बैठती हुई बोली… यह मिरियम है। हमारी छोटी अम्मी। …क्या? मेरे और आफशाँ के मुख से अनायस एक साथ निकल गया था। बोलने के तुरन्त बाद ही हम दोनों झेंप गये थे। वह तो देखने मे तो कोई सिर ढके स्कूली छात्रा लग रही थी। एक भरपूर नजर मिरीयम पर डाल कर मैने कहा… आपसे पहली बार मिल रहा हूँ। अब्बा साथ नहीं आये। वह कुछ नहीं बोली बस उसने सिर हिला कर मना किया और तभी आसिया ने कहा… मिरियम आप कुछ अपने बारे मे बताईए। यह हमारी तीसरी बहन आफशाँ है और वह इसकी बेटी मेनका है।

मिरियम झिझकते हुए बोली… हम पाकिस्तान से है। अभी कुछ दिन हुए हमारा निकाह हुआ है। इतना बोल कर वह चुप हो गयी परन्तु मेरे दिमाग मे घंटियाँ बजनी आरंभ हो गयी थी। अब्बा को मैने जकीउर लखवी के मजमे मे शिरकत करते हुए अपनी आँखों से देखा था। मुझे नहीं पता था कि अब्बा वहाँ पर निकाह करने के लिये गये थे। जब चुप्पी काफी देर खिंच गयी तो मैने चुप्पी तोड़ते हुए कहा… मिरियम आपको यहाँ आये हुए कितने दिन हो गये। …एक हफ्ता हुआ है। …आपको कैसा लगा यह शहर? …अभी हमने देखा कहाँ है। आज पहली बार आपके अब्बा के कहने पर घर से बाहर निकली हूँ। आपकी अम्मी और आलिया के इन्तकाल के बारे मे सुन कर बहुत दुख हुआ। आफशाँ जो अभी तक चुप बैठी हुई थी वह अचानक बोली… मिरियम इतनी छोटी उम्र मे निकाह करने की क्या जरुरत थी? मिरियम ने चौंक कर आफशाँ की ओर देखते हुए कहा… क्यों, हमारे यहाँ तो मुझसे भी छोटी उम्र मे लड़कियों का निकाह हो जाता है। आफशाँ कोई जवाब देती उससे पहले मैने कहा… मिरियम, आप यहाँ आयी और हमारे दुख मे शरीक हुई इसके लिए हम सभी आपके एहसानमन्द है। शायद उस दिन सुबह मेरी आपसे ही बात हुई थी? …जी। उस दिन के लिए मै आपसे माफी माँगती हूँ। लेकिन आपके अब्बा ने ही मुझसे ऐसा कहने के लिए कहा था। …कोई बात नही।

मिरियम विरोध मे आफशाँ ने जैसे युद्धघोष कर दिया था। …मिरियम, शरिया अनुसार आपको समीर के सामने चेहरा ढक कर सामने आना चाहिए था। समीर आपके लिये अनजान आदमी है। क्या पाकिस्तान मे आपको यह नहीं बताया गया था? आफशाँ की बात सुन कर हम सभी चौंक गये थे। मिरियम के चेहरे पर भय की लकीरें उभर आयी थी। उसके चेहरे का गुलाबी रंग एकाएक लाल हो गया था। वह रुआँसी आवाज मे बोली… हमसे तो आसिया ने कहा था। खैर अब हम जा रहे है। आपके अब्बा ने आप तीनों बहनों को आज शाम अपने घर पर बुलाया है। यह कह कर वह उठ कर खड़ी हो गयी और चलने के लिए आगे बढ़ी तभी आसिया ने उसका हाथ पकड़ कर कहा… मिरियम आज शोक का तीसरा और आखिरी दिन है। हम चारों घर से बाहर नहीं निकल सकते। वैसे भी हम कल वापिस जा रहें है। इसलिए अब्बा से कह दिजियेगा कि अगर उनको हमसे मिलना है तो उन्हें यहाँ आना पड़ेगा। मिरियम ने जल्दी से सिर हिलाया और अपना हाथ छुड़ा कर बैठक से बाहर निकल गयी। हम चारों चुपचाप अपनी जगह पर बैठे रहे थे।

…आफशाँ तुम्हें अचानक क्या हो गया था? …कुछ नहीं। बस उसे एहसास करा रही थी कि अब्बा की जमात का क्या कहना है। परन्तु मुझे यह समझ मे नहीं आया कि अब्बा हम तीनों से क्यों मिलना चाहते है। हम तीनों का मतलब है कि अब्बा समीर के सामने नहीं पड़ना चाहते है। अदा और आसिया ने हामी भरते हुए मेरी ओर देखा तो मैने कहा… एक बार तुम तीनों उनसे मिल लेती तो पता चल जाता कि अब्बा क्या कहना चाहते है। आसिया कुछ सोच कर बोली… समीर, अगर वह तुमसे नहीं मिलना चाहते तो हमे भी उनसे नहीं मिलना है। हम काफी देर तक अब्बा की मंशा पर चर्चा करते रहे थे। …क्या कल तुम तीनों वापिस जा रही हो? आसिया ने कहा… समीर, मै सिर्फ एक हफ्ते की छुट्टी लेकर आयी हूँ। कल नहीं तो दो दिन बात तो जाना पड़ेगा। आफशाँ और अदा ने भी इसी प्रकार का जवाब दिया था। मै भी जल्दी से जल्दी वापिस ड्युटी पर जाना चाहता था। आज दोपहर को भी मैने इश्तियाक से फोन पर पूछा था कि हमलावरों के बारे मे कुछ पता चला तो उसने नकारते हुए बताया कि उन्हें किसी ने भी नहीं देखा था। अब तक मिले सभी सुराग बता रहे थे कि हमलावर सीमा पार से आये थे। इतने दिनों यहाँ बिताने के पश्चात मै समझ चुका था कि जब भी पुलिस किसी केस को दबाना चाहती है तो उसके लिये सबसे अच्छा जवाब यही होता है कि हमलावर सीमा पार से आये थे।

रात को सारे कार्य समाप्त करके हम चारों लान मे बैठ कर बचपन की बातें याद कर रहे थे कि तभी दो कारें और दो जीप धड़धड़ाती हुई हमारे गेट के सामने आ कर रुकी। हम चारों सावधान हो गये और हम सब की नजरें लोहे के गेट पर टिक गयी थी। एक अनजान आदमी लोहे का गेट खोल कर एक किनारे मे खड़ा हो गया। कुछ पलों के अन्तराल के बाद अब्बा ने लान मे कदम रखा तो हम चारों खड़े हो गये थे। उनके पीछे सिर से पाँव तक ढकी हुई दो स्त्रियाँ चल रही थी। आज भी वह अपने उसी पुराने स्वरुप मे थे। वही सिर पर तुर्की टोपी, घमन्ड मे ऐंठी हुई गरदन और काली अचकन पहने धीमी चाल से चलते हुए उन्होंने लान मे प्रवेश किया था। आफशाँ ने मेनका को अपनी गोदी मे उठा लिया था। वह तीनों चलते हुए हमारे सामने आकर खड़े हो गये थे। हम चारों ने सलाम किया और उन्हें बैठने का इशारा करते हुए मैने कहा… तशरीफ रखिए। आसिया ने रसोईये को आवाज लगा कर कुछ और कुर्सियों को लान मे रखने के लिए कहा और फिर चुपचाप मेरे साथ आकर बैठ गयी थी।

मैने चुप्पी तोड़ते हुए कहा… यहाँ कैसे आना हुआ? अब्बा ने मुझे घूरते हुए कहा… मै तुमसे नहीं अपनी लड़कियों से मिलने आया हूँ। आसिया तुरन्त बोली… हम तीनो आपसे नहीं मिलना चाहते। एकाएक लान का वातावरण तनावपूर्ण हो गया था। मुझे घूरते हुए अब्बा ने घुर्राते हुए कहा… तुम तीनों पागल हो गयी हो। क्या तुम नहीं जानते कि यह काफ़िर है। अबकी बार आफशाँ बोली… इसके साथ मंदिर मे शादी करके तो फिर मै भी काफ़िर बन गयी हूँ। मकबूल बट का चेहरा गुस्से से लाल होता चला जा रहा था। तभी अदा ने कहा… अब्बू, आपकी चार बेटियों मे से अब सिर्फ हम दो ही रह गयी है तो जो भी कहना है वह आप हमसे कह दीजिए। मकबूल बट ने एक बार मेरी ओर देखा और फिर अदा से कहा… पहले इन दोनो को यहाँ से जाने के लिए कहो। मै अपनी जगह से उठते हुए बोला… आप लोग बात कीजिए। आओ आफशाँ हम अन्दर चलते हैं। मेनका को गोदी मे लिए वह वहीं बैठी रही। मै चुपचाप अन्दर चला गया परन्तु जाते हुए मेरी नजर लोहे के गेट पर पड़ गयी थी। मकबूल बट अपने साथ जमात की फौज लेकर आया था। कुछ अंतराल के पश्चात जब बाहर आसिया और आफशाँ की तेज आवाजें सुनी तो मैने अपनी ग्लाक खीसे मे अटका कर कमरे से बाहर निकल कर उनके पास चला गया। बाहर आफशाँ और मकबूल बट मे बहस चल रही थी।

अचानक अब्बा की दहाड़ती हुई आवाज रात मे गूँजी… तुम दोनो मेरे घर से निकल जाओ। मै चुपचाप चलते हुए आफशाँ के पीछे जाकर कर खड़ा हो गया था। मेरी नजर मकबूल बट के साथ आयी हुई दोनो स्त्रियाँ पर पड़ी जिन्होंने शायद मेरे जाने के बाद अपने चेहरे पर से नकाब हटा लिया था। एक तो मिरियम थी और दूसरी पर नजर पड़ते ही मै चौंक गया था। दोनो मुझे ताक रही थी लेकिन अभी तक जिसे मै मकबूल बट की दूसरी बीवी समझ रहा था वह नीलोफर लोन थी। यह मेरे लिए चौंकने की बात थी। मुझे देख कर उनकी बातों का तारतम्य टूट गया था। मैने पूछा… आसिया, क्या इस तरह यह अपने नये परिवार के साथ अम्मी और आलिया का शोक मनाने के लिए आये हैं? आसिया ने जल्दी से कहा… नहीं यह शोक मनाने के बजाय तुम दोनो को इस घर से बेदख्ल करने के लिए आये है। …अच्छा। परन्तु किस हैसियत यह हमे यहाँ से निकालने के लिए आये है? तुम तो जानती हो कि अम्मी यह सब मेरे नाम पर करके गयी है। …यही तो आफशाँ इनसे कह रही थी। आसिया अपनी बात रख कर मेरे साथ आकर खड़ी हो गयी थी। तभी अदा ने कहा… अब्बू, समीर सही कह रहा है। अम्मी सब कुछ इसके नाम करके गयी है तो भला हम इसको यहाँ से जाने के लिए कैसे कह सकते है। एकाएक लान मे एक बार फिर शांति हो गयी थी। मेरी नजर गेट पर टिकी हुई थी जहाँ जमातियों का जमावड़ा बढ़ता जा रहा था।

मकबूल बट घुर्रा कर बोला… तुम्हारी अम्मी तो इस काफ़िर के मोह मे पागल हो गयी थी परन्तु तुम दोनो यह बेवकूफी क्यों कर रही हो? इन दोनो को निकाल बाहर करो। …आप ही बताईए अब्बू कि हम क्या करें? अम्मी के बाद अब यही इस घर का मालिक है। अदा इतना बोल कर चुप हो गयी। मै चुपचाप उनके बीच होने वाली वार्तालाप को सुन रहा था परन्तु मेरी नजर गेट पर जमी हुई थी। मकबूल बट जैसे ही गेट की ओर मुड़ कर कुछ बोलने को हुआ तभी मैने सबके सामने अपनी पिस्तौल को बाहर निकाल कर गेट पर खड़े हुए लोगों के सिर के उपर फायर करते हुए चिल्लाया… मकबूल बट अपनी जमात की फौज से कहो कि वह गेट से हट जाएँ और दोनो कारों को लेकर सड़क पर तुम्हारा इंतजार करें। मैने बोलते हुए पिस्तौल का रुख मकबूल बट की ओर मोड़ते हुए कहा… अम्मी और आलिया की मौत के बाद तुम और तुम्हारे जैसे अलगावादियों को देख कर गोली मारने की इच्छा तीव्र हो जाती है। अपनी दिशा मे ग्लाक की नाल देख कर उसने मुड़ कर अपने आदमियों को हटने का इशारा करते हुए कहा… यह तुम ठीक नहीं कर रहे हो। उसका इशारा मिलते ही गेट पर खड़े हुए लोग तेजी से वहाँ से हट गये थे। नीलोफर और मिरियम मुझे घूर रही थी। मकबूल बट कुर्सी छोड़ कर गेट की ओर जाते हुए चिल्लाया… अभी और बेईज्जत होना बाकी है? अगले ही क्षण वह दोनो स्त्रियाँ भी जल्दी से कुर्सी छोड़ कर आगे बढ़ी और उसके पीछे गेट से बाहर निकल गयी थी।

उनके जाने के बाद लान मे शान्ति छा गयी थी। नीलोफर को अब्बा के साथ देख कर मेरा दिमाग घूम गया था। आसिया ने पूछा… समीर, हम मिरियम से मिल चुकी है। पर अब्बा की यह दूसरी बीवी कौन है?  मैने मुस्कुरा कर कहा… यह नीलोफर लोन है। यह उनकी बीवी नहीं हो सकती। इसका यहाँ मकबूल बट के साथ आना बता रहा है वह कोई गहरा चक्कर चला रहा है। …क्या चक्कर हो सकता है? इस सवाल का जवाब तो मेरे पास भी नहीं था। सभी बैठ कर अपनी तिकड़मे लड़ा रही थी और मुझे यह नया गठजोड़ परेशान कर रहा था। जमात-ए-इस्लामी का लश्कर के साथ रिश्ता मिरियम ने खोल दिया था। जमात की अपनी चरमपंथी तंजीम हिज्बुल मुजाहीदीन अगर लशकर के साथ मिल कर गड़बड़ करेगी तो हमारे लिये नयी मुश्किल खड़ी हो जाएगी। दूसरी ओर अब्दुल लोन फिलहाल सत्ताधारी पार्टी का महत्वपूर्ण नेता होने के बावजूद कैसे अलगाववादी जमात-ए-इस्लामी के साथ गठजोड़ कर सकता है। अगर ऐसा है तो सारी सुरक्षा एजेन्सियों के लिए खतरे की घंटी थी। मुझे अब विश्वास होने लगा था कि मकबूल बट किसी बड़े ही चक्कर मे उलझा हुआ है। सवाल बहुत थे पर मेरे पास जवाब एक का भी नहीं था।

उस रात हम सभी अम्मी का कमरा छोड़ कर अपने-अपने कमरों मे चले गये थे। आफशाँ और मेनका मेरे कमरे मे आ गये थे। अगली सुबह सभी के कहने पर मै उन्हें अपने साथ लेकर कोम्प्लेक्स चला गया था। मेरा मकान और पीछे पहाड़ और वादी की हरियाली का मनोरम दृश्य देख कर आसिया ने कहा… आफशाँ तू बेकार मुंबई मे फँसी हुई है। क्या इससे बेहतर रहने की जगह हो सकती है? आफशाँ अपनी मजबूरी बताते हुए बोली… क्या मै इसके साथ रहना नहीं चाहती परन्तु क्या करुँ एक ओर मेरी नौकरी है और दूसरी ओर मेनका का भविष्य। समीर का भी तो पता ही नहीं चलता कि यह किस वक्त कहाँ चला जाएगा। इस से पूछो कि पिछले एक महीने से यह कहाँ था। आलिया बता रही थी यह किसी काम से किश्तवार गया था और फिर वहाँ से कुपवाड़ा निकल गया था। उस दिन अम्मी से बात हुई तो उन्होने भी बताया था कि समीर कुछ दिनों के लिये बाहर गया हुआ है। अपनी सफाई देते हुए मैने कहा… तुम जानती हो कि फौज कोई आम आफिस वाली नौकरी नहीं है। पहले जब स्पेशल फोर्सेज मे था तब पता ही नहीं चलता कि कब तक फील्ड मे रहना पड़ेगा। अगर फील्ड मे नहीं गये तो भी पूरा गियर पहन कर तैयार रहना पड़ता है। वहाँ पर आप अपनी लोकेशन भी किसी को नहीं बता सकते थे। यहाँ पर कम से कम एक बात तो तय है कि कहीं भी चले जाओ लेकिन अपने आफिस के साथ सदा संपर्क मे रहते है। घरवालों से भी बात करने मे कोई पाबन्दी नहीं है।

उनको वहीं छोड़ कर मैने उठते हुए कहा… तुम लोग आराम करो मै एक चक्कर आफिस का लगा कर आता हूँ तब तक खाना भी तैयार हो जाएगा। यह कह कर मै कपड़ बदलने चला गया था। कुछ देर के बाद अपनी युनीफार्म पहन जैसे ही मै बाहर निकला तो पहली बार अदा ने मुझे देख कर कहा… समीर, तुम मेजर हो गये और घर मे किसी को पता नहीं। उसकी शिकायत सुन कर मै झेंप गया था। मैने इसका जिक्र अदा से तो क्या आफशाँ से भी नहीं किया था। पठानकोट से यहाँ रिपोर्ट करते ही मुझे आउट आफ टर्न प्रमोशन मिला था। मेरी युनीफार्म पर सेवा मेडल की स्ट्रिप देख कर अदा ने कुछ बोलने के लिये जैसे ही मुँह खोला मैने जल्दी से चलते हुए कहा… मुझे अभी जाना है। तुम लोग बैठो। इतना बोल कर मै बाहर निकल गया था।

मै सीधे ब्रिगेडियर चीमा से मिलने के लिये चला गया था। वह अपने आफिस मे मिल गये थे। …सर, आपने सारी रिकार्डिंग देख ली? …मेजर, सारे ग्रिड रेफ्रेन्स और मुख्य स्थान को हमने नोट कर लिया है। वह कंपनी रिकार्ड्स की क्या कहानी है? …सर, गोल्डन कंपनी की असलियत उन रिकार्डस मे है। मुन्नवर लखवी ने बहुत सी शेल कंपनी गोल्डन एन्टरप्राईज के नाम से खोल रखी है। उनके जरिये वह ओवरबिलिंग करके हवाला रैकेट मे लिप्त है और उन्ही के द्वारा अपना सारा अवैध कारोबार चलाता है। अब हमारे पास कारण है कि हम सात फार्म्स और पाँच सेब के व्यापारियों को मजबूर करें कि वह अपनी तीन साल की सारी इन्वोइसिंग और बिलिंग हमारे सामने रखें। मै पूरे विश्वास के साथ कह सकता कि इन लोगों के जितने भी मुख्य सौदे हुए होंगें वह सभी सिर्फ गोल्डन नाम की कंपनी अथवा एन्टरप्राईज के साथ ही हुए होंगें। एक और बात पता चली है कि मुन्नवर तो सिर्फ चेहरा है लेकिन उसके पीछे जो ताकत काम कर रही है वह जकीउर लखवी और आईएसआई है। ब्रिगेडियर चीमा गहरी सोच मे डूबे गये थे।

…मेजर, यह हमारे लिये बेहद खतरनाक बात है। …सर, इससे भी ज्यादा खतरनाक बात आपको जान लेनी चाहिए कि जमात-ए-इस्लामी का गठजोड़ लश्कर के जकीउर लखवी के साथ हो गया है। मैने अपनी आँखों से देखा है कि मुजफराबद मे मकबूल बट ने लखवी के कार्यक्रम मे शिरकत की थी। हाल ही मे मुझे यह भी पता चला है कि मकबूल बट ने उनकी किसी लड़की के साथ निकाह किया है। ब्रिगेडियर चीमा अविश्वास से मेरी ओर देख रहे थे। …मेजर, मकबूल बट तुम्हारे अब्बा है। …यस सर, तभी तो बता रहा हूँ कि पिछले कुछ दिनों मे उन्होंने निकाह किया है। …क्या वह लड़की लखवी परिवार से है? …मेरा शक है लेकिन जल्दी ही इसके बारे मे सारी जानकारी मिल जाएगी। …मेजर, कहीं उन दोनो की हत्या के पीछे यही कारण तो नहीं है? …सर, कुछ कहा नहीं जा सकता। एक और बात है। …क्या कुछ और बात अभी बच गयी है? …यस सर, ऐसा लग रहा है कि अब्दुल लोन और मकबूल बट मे सुलह हो गयी है। उसकी मुँह बोली बेटी नीलोफर लोन को कल मैने मकबूल बट के साथ देखा था। ब्रिगेडियर चीमा ने चौंकते हुए कहा… मेजर इसका मतलब है कि मकबूल बट कोई बहुत बड़ा खेल करने की साजिश रच रहा है। यही बात कल रात को मेरे दिमाग मे भी आयी थी। …मेजर, इस साजिश का पर्दाफाश जल्दी से जल्दी करना पड़ेगा। …सर, मुझे कुछ समय चाहिए। …समय ही तो हमारे पास नहीं होता। मै चुप रहा क्योंकि मेरे पास भी इसका कोई जवाब नहीं था। कुछ सोचने के बाद ब्रिगेडियर चीमा अपनी सीट छोड़ते हुए बोले… अभी से इसी काम पर लग जाओ। इतना बोल कर वह कमरे से बाहर निकल गये थे। मै भी उनके पीछे चलते हुए अपने आफिस मे पहुँच गया था। कुछ देर के बाद मेरा असिस्टेन्ट आकर मेरे सामने एक कागज रख कर चला गया था। मेरी अनुपस्थिति के दौरान जितने भी फोन मेरे लिये आये थे उनके नम्बर और विषय का विवरण उसमे दिया हुआ था। मैने वह कागज उठाया और अपने आफिस के बाहर निकल कर अपने फ्लेट की ओर चला गया था।

फ्लैट पर धमाचौकड़ी मची हुई थी। मुझे देखते ही आसिया ने आर्डरली से कहा की खाना मेज पर लगा दो। कुछ ही देर बाद हम बात करते हुए खाना खाने बैठ गये थे। मेरी अनुपस्थिति मे आर्डरली ही सुबह से शाम तक घर पर रहता था। …बलदेव, कोई फोन वगैराह आया था? …साहब, फोन तो आलिया मेमसाहब लेती थी। उस दिन दोपहर को फोन आया था जिसको सुन कर आलिया मेमसाहब फौरन बाहर चली गयी थी। खाना खाते हुए सभी के हाथ रुक गये थे। …यह फोन कब आया था? …साहब चार-पाँच दिन पहले। …उसने कुछ बताया था? …नहीं साहब। बस यही कहा कि वह आज रात नहीं आएँगी इसलिये मुझे रुकने लिये कह कर चली गयी थी। अब मेरा शक गहराता जा रहा था। आलिया को वहाँ घर पर बुलाना और फिर वहाँ फिदायीन हमला होना एक सुनियोजित साजिश की ओर इशारा कर रहे थे। वह तीनों भी वही सोच रही थी जो मै सोच रहा था। इतने सारे पात्र मेरे सामने थे और उनमे से कोई भी अपनी दुश्मनी निकाल सकता था। अचानक एक तथ्य पर निगाह पड़ते ही मेरे दिमाग मे आया कि क्या मकबूल बट के आसपास यह सारे पात्र घूम रहे है या इस साजिश मे मकबूल बट महज एक पात्र है?

शाम को हम वापिस घर पर आ गये थे। हम लान मे बैठ कर इस मौसम के अन्तिम चरण का मजा ले रहे थे। वातावरण मे ठंडक होनी आरंभ हो गयी थी। सभी अपनी वापिसी की चर्चा कर रही थी। आफशाँ और अदा ने साथ जाने का निर्णय लिया और आसिया अगले दिन लौटना चाहती थी। हम अपनी बातों मे उलझे हुए थे कि एक बुर्कापोश स्त्री लोहे का गेट खोल कर अन्दर आती हुई दिखी तो मै खड़ा हो गया। मेरे कुछ बोलने से पहले उसने अपने चेहरे पर पड़े हुए पर्दे को हटा कर बोली… मुझे पहचाना। एक पल के लिये हम सभी उसकी ओर देखते रह गये थे। एकाएक आफशाँ और अदा दोनो एक साथ बोली… आयशा। वह मुस्कुरायी और मेरी ओर देख कर बोली… चलो तुम लोगो ने पहचान लिया। तुम्हारे भाई ने तो देख कर भी अनदेखा कर दिया। यह बोलते हुए वह खाली कुर्सी पर बैठ गयी और बोली… अम्मी ने आँटी और आलिया के बारे मे बताया तो सुन कर बहुत दुख हुआ। सभी लड़कियाँ उसके साथ उलझ गयी और मै चुपचाप अपने कमरे की ओर चला गया था। इतने दिनो बाद उसे देख कर मै असहज हो गया था।

मै अपने बिस्तर पर लेट कर गोल्डन कंपनी के कागजों को देखना आरंभ कर दिया था। सभी कंपनियों के नाम मे गोल्डन एन्टरप्राईज जुड़ा हुआ था। सभी का प्रमोटर मुन्नवर लखवी था परन्तु बोर्ड पर बैठने वाले लोग अलग-अलग थे। इन कागजों मे लगभग दस कंपनी ऐसी थी कि जो फलों का काम करती थी। सियालकोट गोल्डन का भी नाम उन दस मे था। चार आयात-निर्यात की कंपनी थी। बीस कंपनियाँ फुटकर कारोबारी थी जिनका काम सिर्फ खरीदने और बेचने का था। आठ कंपनियाँ रियल एस्टेट और ट्रान्स्पोर्ट से जुड़ी हुई थी। कुल मिला कर बयालीस कंपनियों का विवरण मेरे सामने था। जो तीन ट्रक हमने पुलवामा के पास पकड़े थे उसमे मिली इन्वोइस मे रावलपिंडी की कंपनी का नाम भी इस लिस्ट मे था। एक चीज जिसने मेरा ध्यान आकर्शित किया था वह गोल्डन ट्रान्स्पोर्ट कंपनी थी। श्रीनगर मे स्थित गोल्डन ट्रान्सपोर्ट कंपनी का मालिक अब्दुल रज्जाक सैयद था। जब उसके गोदाम पर ब्रिगेडियर चीमा ने रेड डाली थी तब उसका और शफीकुर लोन का संबन्ध सामने आया था। उसके बाद दोनों की फिदायीन हमले मे मौत हो गयी थी। अब नीलोफर लोन उसके काम को संभाल रही है। अब मुझे विश्वास होने लगा था कि नीलोफर भी इस खेल मे सिर तक धंसी हुई है।

मै अभी सारी जानकारी को समझने की कोशिश मे लगा हुआ था कि आफशाँ मेरे पास आकर बोली… समीर, तुम उठ कर यहाँ क्यों आ गये थे। …कुछ नहीं। मुझे कुछ काम करना था। …आयशा तुमसे कुछ बात करना चाहती है। …मुझसे परन्तु किस लिये? …चल कर बात कर लो। इतना बोल कर वह जाने लगी तो मै जल्दी से उठ कर उसके साथ चलते हुए बोला… तुम ही पूछ लेती। उसने मेरी ओर घूर कर देखा और फिर मुस्कुरा कर बोली… अब इतने भी शर्मीले नहीं हो तुम। हम दोनो लान मे चले गये जहाँ अदा और आसिया उसके साथ बात करने मे व्यस्त थी। मुझे देखते ही आयशा चहकते हुए बोली… क्यों समीर मुझे देख कर भाग क्यों गये थे। मुझे तुमसे कुछ पूछना था। मै चुपचाप उसके सामने बैठ गया था। एक पल के लिये वह बोलने मे झिझकी और फिर संभल कर बोली… तुम अरबाज भाईजान को अच्छे से जानते हो। उनको तीन दिन पहले सोपोर मे फौज ने पत्थरबाजी के सिलसिले मे पकड़ लिया था। वह इस वक्त कहाँ पर है किसी को पता नहीं चल रहा है। तुम फौज मे हो तो क्या उनके बारे मे कुछ पता लगा सकते हो? सारा परिवार परेशान है। …मै इसमे क्या कर सकता हूँ। मुझे नहीं लगता कि इसमे फौज उलझेगी। अगर उन्होंने किसी को पकड़ा होगा तो भी उन्होंने उसी समय स्थानीय पुलिस के हवाले कर दिया होगा। क्या तुमने वहाँ की पुलिस से अरबाज के बारे मे पता किया है? …हम सब करके देख चुके है। कुछ सोच कर मैने कहा… ठीक है मै सोपोर मे बात करके पता लगाने की कोशिश करुँगा।

आयशा कुछ बोलना चाह रही थी कि तभी आसिया ने कहा… सोपोर यहाँ से है कितनी दूर। तुम वहाँ जाकर पता नहीं कर सकते? फोन पर तो लोग टाल देंगें परन्तु अगर तुम सामने खड़े होगे तो वह टाल नहीं सकेंगें। …तुम तो जानती हो कि मैने अभी ड्युटी जोइन की है। मुझे कुछ समय दो मै पता लगाने की कोशिश करता हूँ। अरबाज किस गुट से संबन्ध रखता था। …अब्बा की पार्टी जमात-उल-हिन्द का वह कार्यकारी सचिव है। …ठीक है, मै पता करने की कोशिश करुँगा। आयशा ने अचानक पूछ लिया… क्या तुम मेरे साथ सोपोर चल सकते हो? उसका सवाल सुन कर एक पल के लिये मै स्तब्ध रह गया था। मैने जल्दी से कहा… पहले मुझे फोन पर बात करने दो अगर फिर भी कुछ पता नहीं चला तो मै सोपोर जाकर पता लगाने की कोशिश करुँगा। …तो तुम अभी बात कर लो। …इस वक्त तो मुश्किल होगा। कल सुबह आफिस पहुँच कर सबसे पहले यही काम करुँगा। तुम निश्चिन्त रहो। वह उठते हुए बोली… तो अपना नम्बर दो जिससे मै तुम्हें सुबह याद दिला दूँ। मैने टालने के लिये कहा… मुझे याद रहेगा। तुम चिन्ता मत करो। …तुम्हें नम्बर देने मे कोई आपत्ति है? उसके इस सवाल ने मुझे सबके सामने निरुत्तर कर दिया था। मैने अपना मोबाईल नम्बर देते हुए कहा… हो सकता है कि मै तुम्हारी काल किसी कारणवश न ले सकूँ परन्तु जैसे ही मौका मिलेगा मै तुमसे बात कर लूँगा। वह सबसे फिर मिलने का वादा करके खुदा हाफिज करके चली गयी। उसके जाने के बाद तीनों मेरी ओर अजीब सी नजरों से देख रही थी।

रात को सब काम समाप्त करके आफशाँ मेरे पास आकर बोली… मेनका को आज अदा और आसिया अपने साथ ले गयी है। मै उसकी बात का अर्थ समझ गया था। …क्या जरुरत थी। वह सामने वाले बेड पर सो जाती। …समीर अब वह बड़ी हो गयी है। यह बोलते हुए वह मेरे साथ लेट गयी थी। अचानक वह बोली… समीर क्या मै अनजाने मे तुम्हारे और अदा के बीच दीवार बन गयी हूँ? उसकी बात सुन कर  मेरे दिमाग मे घंटी बज गयी थी। …ऐसा क्यों सोच रही हो। …पता नहीं कुछ दिन से मुझे डर लग रहा है कि तुम कहीं मुझे छोड़ तो नहीं दोगे। मै उठ कर बैठ गया और उसके चेहरे को अपने हाथों मे लेकर कहा… इस जिंदगी मे तो नहीं और अगली का पता नहीं। तुम मेनका की माँ हो और हमेशा रहोगी। याद करो हमारी शादी हुई है निकाह नहीं। हिन्दुओं मे तलाक शब्द नहीं होता। तुमने सात जन्मों के लिये मेरे साथ रहने का वचन दिया है। मुझे समझ मे नहीं आ रहा था कि अचानक उसे क्या हो गया है। वह कुछ और बोलती उससे पहले मै उस पर छा गया था। पता नहीं ऐसा क्या था उसका जिस्म मेरे हाथों मे आते ही एक मोम सा हो जाता और मै उसे अपने विवेक के अनुसार जैसा घड़ना चाहता वह वैसा ढलती चली जाती थी। उसके जिस्म कि हर थरथराहट और हर कंपन मुझे महसूस होती थी। मुझे पता चल जाता था कि वह मेरे किस स्पर्श से मचल उठेगी और किस कार्य से तड़प कर छूटने का प्रयास करेगी। उस रात मैने उसके जिस्म के हर संवेदनशील अंग को इतना उत्तेजना से भर दिया था कि वह किसी और चीज के सोचने लायक नहीं रही थी। उस रात मैने एलिस द्वारा बतायी हुई हर तरकीब को इस्तेमाल करके उसे कामोत्तेजना के चरम का आभास करा दिया था। जब तक हम दोनो मंजिल पर पहुँचे थे तब तक थक कर चूर हो गये थे।

…ओह समीर, आज तुमने तो मेरी जान निकाल दी। क्या हो गया था तुम्हें? हम दोनो की साँसे तेज चल रही थी। एक गहरी साँस लेकर मैने कहा… तुम्हीं बताओ कि मै तुम्हें कैसे समझाता कि तुम्हारे बिना मै और मेनका अधूरे है। उसने मुझे अपने आगोश मे जकड़ लिया और मेरे कान मे बोली… आई लव यू। उसने पहली बार मुझसे अपने दिल की बात कही थी। उसे अपनी बाँहों मे जकड़ कर मैने कहा… अगली बार ऐसी बेवकूफी की बात कभी मत सोचना। वह खिलखिला कर हँसते हुए बोली… आज के अनुभव के बाद तो कभी नहीं। एक दूसरे को बाँहों मे लिये कुछ देर ऐसे ही पड़े रहे थे। नींद कोसों दूर थी। अचानक वह चौंक कर बोली… तुम अभी थके नहीं। उसके होंठों को चूम कर मैने कहा… यह सब तुम्हारी मोहब्बत का असर है। यह बोल कर एक बार फिर से उसकी इंद्रियों को उत्तेजित करने मे जुट गया था। कुछ देर मे ही उसकी उत्तेजक सिस्कारियाँ और सीत्कार कमरे मे गूंज रही थी। तूफान गुजर जाने के बाद हम दोनो लस्त हो कर पड़ गये थे। नींद ने कब हमे अपने आगोश मे ले लिया पता ही नहीं चला था।

सुबह तैयार होकर जैसे ही मै कमरे से निकला तो मेरा सामना आसिया से हुआ और उसके चेहरे पर आयी हुई मुस्कान ने मुझे सावधान कर दिया था। अदा और आफशाँ नाश्ते की मेज पर हमारा इंतजार कर रही थी। हम दोनो नाश्ता करने के लिये बैठ गये थे। आसिया ने अचानक कहा… अदा, इस आफशाँ को आज क्या हो गया है। …कुछ तो नहीं। …देख कैसे उसका चेहरा दमक रहा है। मै तुरन्त समझ गया कि उनकी बातें किस दिशा की ओर जा रही थी। …आसिया, जल्दी से नाश्ता करो। तुम्हें एयरपोर्ट पर छोड़ कर मुझे आफिस जाना है। आसिया ने बार फिर चुटकी लेते हुए पूछा… समीर, कल रात को क्या कोई भूचाल आया था? मै कुछ बोलता उससे पहले आफशाँ ने कहा… उस बेचारे से क्या पूछ रही हो, मुझसे पूछो। हम छ: महीने के बाद मिल रहे थे तो भूचाल तो आना ही था। शुक्र करो कि भूचाल के बाद सब सही सलामत है। अब चुपचाप नाश्ता करो उसके बाद मै तुम्हें कल रात की कहानी सुनाऊँगी। उनकी बातें सुन कर मेरा चेहरा लाल होता जा रहा था। मैने जल्दी-जल्दी नाश्ता गटका और उठते हुए बोला… मै जीप छोड़ कर जा रहा हूँ। अपने हिसाब से टाईम से एयरपोर्ट पहुँच जाना। मै तुम्हें वहीं पर मिलूँगा। तभी मेरे फोन की घन्टी बजी… हैलो। …समीर मै आयशा बोल रही हूँ। …बोलो। …तुम्हें अरबाज के बारे मे पता करना है। बस याद दिलाने के लिये फोन किया था। …थैंक्स। मै बस निकल रहा हूँ। आफिस पहुँचते ही पता लगा कर तुम्हे बता दूँगा। मैने फोन काट दिया और उनकी ओर देखते हुए कहा… तुम्हारी सहेली है। इतना कह कर मै अपनी जीप मे बैठा और अपने आफिस की ओर निकल गया था।

अपने आफिस पहुँच कर सबसे पहले मैने सोपोर मे स्थित अपने आप्रेशन्स के लेफ्टीनेन्ट रावत से अरबाज का पता लगाने लिये कह कर फिर सोपोर के एसपी से बात की थी। दोनो ने मुझे आश्वस्त किया कि जल्दी पता लगा कर वह मुझे बता देंगें। मैने कल शाम बैठ कर जो भी उन कंपनियों के बारे मे समझा था उसकी रिपोर्ट लिखने बैठ गया। एयरपोर्ट निकलने का टाईम हो गया था। मैने अपने ड्राईवर को तैयार रहने के लिये पहले ही कह दिया था। जैसे ही आफिस से बाहर निकला मेरी जीप आ गयी थी। पीछे पाँच सुरक्षाकर्मी अपने हथियारों के साथ पहले से ही बैठे हुए थे। मेरे बैठते ही हम एयरपोर्ट की ओर रवाना हो गये थे। एयरपोर्ट पर तीनो बहनें और मेनका मेरा इंतजार कर रही थी। मुझे देखते ही सबसे पहले किलकारी मार कर मेरे पास आने वाली मेनका थी। उसे गोदी मे उठा कर मै उनकी ओर चला गया था। फ्लाईट की सिक्युरिटी चेक की घोषणा होते ही जाने वाले यात्रियों का गेट पर तांता लग गया था। आसिया के जाने का समय हो गया था। चलते हुए आसिया ने कहा… समीर, अपना ख्याल रखना और जब समय मिले तो फोन पर बात कर लेना। मुझसे गले मिल कर अल्विदा करते हुए आसिया ने धीरे से कहा… एक बार अदा के जाने से पहले उससे बात कर लेना। इतना कह वह सिक्युरिटी चेक के लिये चली गयी थी। हम कुछ देर वहीं रुके और एयरपोर्ट से बाहर निकल आये थे।

…अब क्या विचार है? घर जाना है या मेरे साथ कोम्पलेक्स चल रही हो? …तुम अपने आफिस चले जाओगे तो हम वहाँ बोर जाएँगें। यह जवाब देकर दोनो वापिस घर चली गयी थी। मै अपने आफिस की ओर चल दिया था। ब्रिगेडियर चीमा मीटिंग मे गये हुए थे तो मै अपनी अधूरी रिपोर्ट तैयार करने मे जुट गया था। चार बजे के करीब मेरे फोन की घंटी बजी तो मैने काल रिसीव करते हुए कहा… हैलो। …समीर, मै शबनम बोल रही हूँ। …बोलो शबनम घबरायी हुई क्यों लग रही हो? …समीर, आज सुबह एन्फोर्समेन्ट वालों ने हमारे आफिस मे छापा मार कर हमारे सारे अकाउन्ट सील कर दिये है और सारी किताबें जब्त कर ली है। अभी कुछ देर पहले डार साहब आफिस आये थे और उन्होंने हमारे विभाग के सभी कर्मचारियों को बुला कर सख्त हिदायत दी है कि यहाँ की बात बाहर नहीं जानी चाहिए। मुझे बहुत डर लग रहा है। …इसमे घबराने वाली तो कोई बात नहीं है। तुम इस वक्त कहाँ हो? …बस का इंतजार कर रही हूँ। आज इतनी जल्दी कैसे छुट्टी हो गयी? …आफिस सील होने के बाद फिर हमारे लिये कोई काम बचता नहीं है इसलिये जल्दी छुट्टी हो गयी थी। …कब मिल सकते है? …आज तो हर्गिज नहीं मिल सकती और कल देखती हूँ। खुदा हाफिज। इतनी बात करके उसने फोन काट दिया था।  कुछ देर मै अपना फोन हाथ मे पकड़ कर बैठा रहा लेकिन फिर कुछ सोच कर उठ कर आफिस से बाहर निकल गया था।   

मै जैसे ही  वापिस अपने आफिस मे पहुँचा मेरी नजर मेज पर रखे एक कागज पर पड़ी जो हवा से फड़फड़ा रहा था। मै उस कागज को देखने बैठ गया था। मेरे असिस्टेन्ट ने मेरी अनुपस्थिति मे जितने भी फोन आये थे यह उसका रिकार्ड था। सभी फोन अलग-अलग विभागों से किसी काम के सिलसिले मे आये थे। क्रमवार सभी नम्बर देखते हुए मै एक नम्बर पर रुक गया क्योंकि उसके आगे व्यक्तिगत लिखा हुआ था और उस काल को घर पर फारवर्ड कर दिया गया था। मैने तारीख और समय पर गौर किया तो पाया कि जो समय और तारीख मेरे आर्डर्ली बलदेव ने बतायी थी उसी समय यह काल मेरे आफिस से घर पर फार्वर्ड की गयी थी। उसी पल मुझे समझ मे आ गया कि आलिया यही काल सुन कर अम्मी के पास चली गयी थी। यह अम्मी का नम्बर नहीं था तो फिर किसका था? अब उस हादसे से जुड़े मेरे पास दो फोन नम्बर हो गये थे। पहला वह जिसने पुलिस को खबर की थी और दूसरा वह जिसने मेरे आफिस फोन किया था और फिर मेरी अनुपस्थिति मे आलिया से बात की थी। दोनो मोबाईल के नम्बर थे। मेरे हाथ अनायस ही उस साजिश का एक सिरा लग गया था।

मुजफराबाद

मानशेरा और मुजफराबाद के पास कहीं पर स्थित मीरवायज के एक प्रशिक्षण केन्द्र मे गोपनीय बैठक चल रही थी। जनरल मंसूर बाजवा ने यह बैठक बुलवायी थी। जकीउर लखवी और पीरजादा मीरवायज उस बैठक मे शामिल थे। …फौज ने आपका प्रस्ताव मंजूर कर लिया है परन्तु उसमे सिर्फ एक बदलाव किया है कि श्रीनगर से इस मिशन का संचालन हमारा अफसर करेगा। पीरजादा मीरवायज ने बात काटते हुए कहा… जनाब, आप अपने अफसर को वहाँ भेज कर पूरे मिशन को खतरे मे डाल रहे है। मकबूल बट मे क्या खराबी है? यहाँ पर रह कर भी उस पर नजर रखी जा सकती है। जकीउर लखवी ने हाँ मे हाँ मिलाते हुए कहा… जनरल साहब, मेरे नुमाईन्दे का क्या होगा? आप लोग आखिरी समय पर बदलाव करके हमारी सारी योजना को कमजोर कर देते है। जनरल मंसूर एकाएक उठ कर खड़ा होकर बोला… मै कुछ दिनों से महसूस कर रहा हूँ कि आप लोग आजकल फौज को हल्कें मे ले रहे है। अगर हम लश्कर और जैश खड़ा कर सकते है तो यह मत भुलियेगा कि उसका सफाया भी कर सकते है। दोनो तंजीमो के मुखिया जनरल मंसूर की धमकी को चुपचाप सुन रहे थे। …यह मिशन आपके लिये कश्मीर तक सिमित होगा परन्तु हमारी नजर दिल्ली पर टिकी हुई है। इसीलिये मकबूल बट और लश्कर को हम कम नहीं आँक रहे लेकिन आईएसआई की देखरेख मे इस मिशन का संचालन करना चाहते है। पिछले छह महीने में आपका हर छोटा-बड़ा मिशन फेल हुआ तब आपकी प्रतिक्रिया क्या थी? जो हुआ सो हुआ, बोल कर हाथ झाड़ कर बैठ गये थे क्योंकि उसमे आपका पैसा नहीं लगा था। यह पाकिस्तानी फौज का मिशन है। इमां, तकवा जिहाद फि सबीलिल्लाह  के नारे को यथार्थ मे उतारना होगा और इसमे असफलता की कोई गुंजाइश नहीं है। अगर यह मिशन किसी कारण असफल हो गया तो इसकी चपेट मे बहुत से लोग आयेंगें और आप लोग भी अबकी बार हाथ झाड़ कर बच नहीं सकेंगें। यही सोच कर यह निर्णय लिया गया है कि हमारा एक काबिल सर्विंग आफसर अपनी देखरेख मे इस मिशन का संचालन श्रीनगर से खुद करेगा। आपके लोग पूरी वफादारी के साथ उस अफसर का साथ देंगें अगर अभी भी आपको कुछ संशय है तो अभी बोल दिजिये। हम आपकी तंजीम को इससे बाहर रखने के लिये उपयुक्त कदम उठा कर ही फिर इस मिशन को ग्रीन सिगनल देंगें। मीरवायज और लखवी दोनो ही मंसूर बाजवा की छिपी धमकी को समझ गये थे। मीरवायज ने बात को संभालते हुए कहा… जनाब, हम आपकी बात समझ रहे है। हमारी ओर से आपको कोई शिकायत नहीं होगी। यह बोल कर उसने लखवी की ओर देखा तो उसने भी जल्दी से अपना सिर हिला कर हामी भर दी थी। 

रविवार, 18 दिसंबर 2022

 

 

काफ़िर-24

 

कुछ देर तक मै स्क्रीन को ताकता रहा था। मेरा जिस्म एकाएक ठंडा पड़ गया था। मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। बस का शोर भी मेरे कान मे नहीं सुनाई दे रहा था। अचानक बस ने ब्रेक मारा और मै अपने झोंक मे आगे की सीट से टकराया जिसके कारण मेरे हाथ से सेटफोन छूट कर मेरी गोदी मे गिरा तो एकाएक मेरा सुन्न दिमाग तुरन्त हरकत मे आ गया था। मैने जल्दी से अपने आपको संभाला और जिस्मानी अनैच्छिक क्रिया के कारण सेटफोन नीचे गिरने के बजाय मेरे दोनो पाँव के बीच फँस गया था। मै वापिस अपनी दुनिया मे आ चुका था। मुझे तुरन्त वापिस लौटना है। परन्तु कैसे? मुजफराबाद के रास्ते से वापिस लौटने का मतलब था कि दो दिन का सफर करना पड़ेगा। बस अपनी गति से आगे बढ़ती जा रही थी। मैने पीछे मुड़ कर देखा तो महमूद आराम से पाँव फैला का सो रहा था। …महमूद भाईजान। मैने जल्दी से उसे जगाया और उसे आगे आने का इशारा किया। मेरे चेहरे पर आये हुए तनाव को देख कर वह तुरन्त उठ गया और मेरे पास बैठते हुए बोला… क्या हुआ भाईजान? …महमूद मियाँ, मुझे तुरन्त बार्डर पार करना है। मै आपके साथ जफरवाल नहीं जा सकता। मुझे आपकी मदद चाहिए। क्या आसपास कोई ऐसी जगह है जहाँ से सीमा पार कर सकता हूँ? वह कुछ देर मेरी ओर देखता रहा तो मैने जल्दी से कहा… महमूद मियाँ मेरे पास समय नहीं है। …ऐसा क्या हो गया भाईजान? उसके चेहरे पर भी घबराहट झलकने लगी थी। …महमूद भाई, आज किसी ने मेरी अम्मी और बहन की श्रीनगर मे हत्या कर दी है। मुझे जल्दी-से जल्दी वापिस पहुँचना है।

वह कुछ देर सोच कर बोला… भाईजान, अगले बस स्टाप बाजरा गड़ी पर उतर जाते है। यहाँ से सीमा कुछ घंटे का पैदल का सफर है। जब तक सीमा के पास पहुँचेंगें तब तक अंधेरा हो जाएगा। मै जैसे ही आपको इशारा करुँ आप दर्रे मे उतर कर पगडंडी पकड़ कर बढ़ते चले जाना। एक घंटे पैदल चलने के बाद आप कँटीली तारों की फेन्सिंग के सामने निकलेंगें। यहाँ पर पाकिस्तान की सीमा समाप्त होती है। आपको उधर सावधान रहना पड़ेगा क्योंकि पाकिस्तानी रेन्जर का पेट्रोलिंग दस्ता हर एक घन्टे पर वहाँ से गुजरता है। आपको तार काटने की जरुरत नहीं पड़ेगी। वहाँ पर फेन्सिंग पहले से ही कटी हुई है। उसको हटा कर इतनी जगह बन जाती है कि आप आसनी से उसमे से निकल कर सीमा पार पहुँच सकते है। …उस जगह से भारतीय चौकी कितनी दूर है? …दो किलोमीटर। …भारत मे किस जगह पहुँच जाऊँगा? …बार्ले और पारला के बीच खेत फैले है। अगर तीन मील और चलते है तो मगोवाली पहुँच जाएँगें। …सीमा पार करने मे और कोई खतरा? वह मुस्कुरा कर बोला… भाईजान, यहाँ से वहाँ जाना आसान है परन्तु हमारे लिये असली खतरा तो फेन्सिंग पार करने के बाद आरंभ होता है।

मै चुपचाप बैठ गया। मुझे सीमा पार करते ही ब्रिगेडियर चीमा को अपने कुअर्डिनेट्स भेजने थे जिससे वह मुझे तुरन्त वहाँ से एयर लिफ्ट करके श्रीनगर पहुँचा दें। मैने अपने बैग मे सेटफोन रखते हुए अपनी ग्लाक पिस्टल को टटोल कर देख लिया था। जैसे ही बस ने बाजरा गड़ी का मोड़ काटा महमूद ने ड्राईवर को आवाज लगा कर बस रुकवा दी थी। हमारे उतरते ही बस आगे बढ़ गयी थी। शाम का धुंधलका फैलता जा रहा था। महमूद रास्ता दिखाते हुए आगे चल रहा था। लहलहाते हुए खेत और खलिहान के बीच मे होते हुए हम आगे बढ़ते जा रहे थे। मै चुपचाप चारों ओर निगाह घुमा कर आने वाले खतरे का सामना करने के लिये अपने आपको तैयार कर रहा था। इतनी देर मे दिमाग की सभी उलझनों और भावनाओं की तिलांजली देकर मै एक मिशन मोड मे आ गया था। मै जब भी अपनी टीम को लेकर कैंम्प से बाहर निकलता था तो दिमाग मे होने वाली सभी चिन्ताओं को दरकिनार करके अपने उद्देश्य पर ध्यान केन्द्रित कर लेता था। अब मै एक बार फिर से स्पेशल फोर्सेज का सैनिक बन गया था।

सावधानी से कदम रखते हुए हम छिपते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। अब तक अंधेरा हो गया था। कुछ दूर चलने के बाद महमूद ने कहा… भाईजान, अब हम उस दर्रे के पास पहुँचने वाले है। कुछ देर के लिये हमे झाड़ियों मे छिप कर देखना पड़ेगा कि वहाँ पर किसी की नजर तो नहीं है। जब भी कुछ लोगों को भेजने की योजना होती है, तंजीमे पहले अपने स्काउट को भेज कर दर्रे का निरीक्षण करवा लेती है। हम दोनो झाड़ियों के झुरमुटों मे बैठ गये थे। कुछ देर बैठने के बाद जब कोई हलचल नहीं दिखी तब महमूद ने कहा… पहले मै आगे निकलता हूँ। आप मेरे पीछे आईए। वह धीरे से जमीन पर लेट गया और कोहनी के बल सरकते हुए आगे बढ़ गया। मै भी उसके पीछे कोहनी के बल आगे बढ़ने लगा। मुश्किल से सौ मीटर हम कोहनी के बल बढ़े थे कि मेरी नजर थोड़ी दूर एक गड्डे पर चली गयी थी। अंधेरे मे बस इतना पता चल रहा था की अचानक जमीन नीचे धसक गयी है। अचानक महमूद उठ कर बैठ गया और मुड़ कर बोला… भाईजान, दर्रा आ गया। यहाँ से आपको अकेले आगे जाना पड़ेगा। मै आपके साथ चलता परन्तु मुझे घर पहुँच कर वापिस सियालकोट सिविल अस्पताल पहुँचना है। अच्छा खुदा हाफिज। इतना बोल कर वह मुड़ा और वापिस कोहनी के बल लेट गया।

…रुको महमूद मियाँ। वह रुक गया। मैने अपनी जेब से सारे पाकिस्तानी रुपये निकाले जो मैने सियालकोट मे बदले थे। वह रुपये उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा… मियाँ तुम्हारा मुझ पर एहसान है। यह पैसे उसके एवज मे कुछ भी नहीं है। तुम्हारे अब्बा अस्पताल मे है। जाओ जाकर उनका इलाज कराओ। प्लीज दोनो बहनों को बता देना कि किन हालात मे मुझे वापिस लौटना पड़ रहा है। अगर वह वापिस आना चाहे तो आप उनकी लौटने मे मदद कर देना। खुदा हाफिज। बस इतना कह कर मै रेंगते हुए दर्रे मे उतर गया। पतली सी प्राकृतिक पगडंडी बनी हुई थी। दोनों ओर उँची मिट्टी की प्राकृतिक दीवार बनी हुई थी। बस इतनी जगह थी कि उसमे से एक आदमी आराम से निकल सकता था। ऐसा लग रहा था कि जैसे धरती फट कर थोड़ी सी जगह बन गयी थी। दोनो हाथ से मिट्टी की दीवार के सहारे मै आगे बढ़ता चला गया था। मेरा कुर्ता पसीने से भीग चुका था। सारा जिस्म मिट्टी से अट गया था। एक घंटे चलने के बाद अचानक रात रौशन हो गयी थी। मुझे समझ मे आ गया कि मैं सीमा पर कंटीले तारों की फेन्सिंग के करीब पहुँच गया था।  

दर्रे के अन्त पर पहुँच कर मै सपाट जमीन पर पहुँच गया था। घने पेड़ों और झाड़ियों के बीच से मेरे सामने मेरी मंजिल दिख रही थी। कंटीले तार की फेन्सिंग मेरे सामने थी। मैने घड़ी पर नजर मारी तो रात के ग्यारह से कुछ मिनट उपर हो गये थे। खबर मिलने के पश्चात बस से उतर कर पाकिस्तानी सीमा तक पहुँचने मे पाँच घंटे लग गये थे। बार्डर पार करने के लिये अभी मेरे पास काफी समय था। मै उस दर्रे से कुछ दूरी बना कर झाड़ियों की आढ़ लेकर बैठ गया। मै पाकिस्तानी और भारतीय पेट्रोल के समय को चेक करना चाहता था। पाकिस्तानी भले ही मुझे जिहादी समझ कर छोड़ सकते थे परन्तु भारतीय फौज के किसी जवान ने उत्साह मे अगर ट्रिगर दबा दिया तो मेरा अन्त निश्चित था। प्रशिक्षण यहाँ बहुत काम आया था। किसी भी आम इंसान के लिये ऐसी हालत मे धैर्य रखना बेहद मुश्किल होता है। सामने मंजिल है और दूर-दूर तक कोई नहीं दिख रहा है तो ऐसी चूक किसी से भी हो सकती है। आधे घंटे के बाद मेरे सामने से सबसे पहले भारतीय पेट्रोलिंग दल निकला था। मैने टाइम नोट कर लिया था। उसके पन्द्रह मिनट के बाद पाकिस्तानी रेन्जर्स की जीप निकल कर गयी थी। एक बार मैने सोचा कि अब निकला जाए लेकिन फिर कुछ सोच कर चुपचाप बैठ गया था।

अगली बार ठीक एक घंटे के बाद भारतीय दल निकला और एक बार फिर उनके पन्द्रह मिनट के बाद पाकिस्तानी रेन्जर्स निकले परन्तु इस बार उनकी जीप ठीक दर्रे के सामने पहुँच कर रुक गयी थी। दो सैनिक बड़ी फुर्ती से जमीन पर कूदे और दर्रे की ओर चल दिये। उन्होंने टार्च मार कर दर्रे का नीरिक्षण किया और फिर एक नजर चारों ओर डाल कर अपनी जीप मे बैठे और आगे निकल गये। उन्होने मेरे दस मिनट बेकार कर दिये थे। अब निकलने का समय हो गया था। मेरे पास अब सिर्फ पेतींस मिनट बचे थे। मुझे कंटीले तार को हटा कर उस जगह से सरकते हुए निकल कर सीमा पार जाना था। भारतीय पेट्रोलिंग दल की निगाह से भी बचने के लिये मुझे भागते हुए एक किलोमीटर दूर खेतों तक पहुँचना जरुरी था। मैने अपने खुदा को याद किया और भागते हुए फेन्स के पास पहुँच कर उस जगह को तलाशने लगा जिधर से फेन्स मे निकलने की जगह बनी हुई थी। टाईम निकलता जा रहा था। मै सावधानी से आगे बढ़ता जा रहा था लेकिन फेन्स टस से मस होने का नाम नहीं ले रहा था। भारतीय पेट्रोल के लौटने मे बस बीस मिनट शेष थे जब फेन्स का एक हिस्सा दबाव से एक ओर हटता चला गया था। मै जल्दी से कोहनी के बल सरकते हुए कंटीली तार के फेन्स के नीचे से निकल गया और उसको दबा कर यथा स्थान पर टिका कर खेतों की ओर दौड़ पड़ा। मेरे जीवन मे सिर्फ सलेक्शन के दिन मै इतनी तेज भागा था लेकिन शायद उस रात मैने अपने सारे पुराने रिकार्ड तोड़ दिये थे। भागते हुए मेरी नजर अपनी घड़ी के डायल पर टिकी हुई थी। जैसे ही भारतीय पेट्रोल के आने मे पाँच मिनट शेष रह गये मैने सामने छोटी झाड़ियों की ओर छलांग लगा कर जमीन पर चित्त लेट गया था।

मुझे कानों मे अपने दिल की धड़कन सुनाई पड़ रही थी। पाँच मिनट के बाद भारतीय सेना की एक टुकड़ी पेट्रोल करती हुई मेरे पीछे से निकल गयी थी। मै साँस रोक कर कुछ देर लेटा रहा और फिर उठ कर गन्ने के खेतों मे घुस गया। कुछ दूर चलने के बाद एक खाली सपाट जगह देख कर मै जमीन पर बैठ गया और बैग से सेटफोन निकाल कर आन कर दिया। दो मिनट के बाद आनलाईन आते ही मैने ब्रिगेडियर चीमा को फोन लगाया। अगले ही पल उनकी आवाज मेरे कान मे पड़ी… मेजर कहाँ पहुँच गये? …सर, कुअर्डिनेट्स भेज रहा हूँ। ट्रान्सपोर्ट चाहिए। …भेज रहा हूँ। तैयार रहना। बस इतना बोल कर उन्होंने फोन काट दिया था। जीपीएस पर आये हुए कुअर्डिनेट्स तुरन्त भेज कर मै आराम से आँखे मूंद कर बैठ गया। रात के दो बज रहे थे। अम्मी और आलिया की मौत की खबर सुने हुए नौ घंटे हो गये थे परन्तु अभी तक उनके खोने का दर्द महसूस नहीं किया था। शायद हालात ऐसे थे कि मै उनके बारे मे सोच भी नहीं सकता था। अब जब मै श्रीनगर जाने के लिए हेलीकाप्टर का इंतजार कर रहा था तब उनके खोने का एहसास एक घन की तरह मेरे दिलोदिमाग पर लगा और मेरी आँखें झरझर बहने लगी थी। अम्मी की हर बात मुझे याद आ रही थी। मै चुपचाप अकेले बैठा काफी देर तक रोता रहा और जब सारा गुबार निकल गया और अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हुआ तो आँखें पौंछ कर अपने पर्स से सिम कार्ड निकाल कर फोन चालू किया। एक-एक करके यह दुखद खबर आसिया, आफशाँ और अदा को देकर जैसे ही मैने आखिरी काल काटी तभी मेरे कानों मे हेलीकाप्टर के इंजिन की आवाज पड़ी तो मैने जल्दी से अपने सेट फोन के जीपीएस के बीकन को आन कर दिया। इसका मतलब था कि हेलीकाप्टर की कामन फ्रीक्वन्सी पर जैसे कोई लगातार चीख रहा हो कि ‘मै यहाँ पर हूँ’। दस मिनट बाद हेलीकाप्टर जमीन पर उतरा और अपने आप को बचाते हुए मै तेजी चलते हुए उसमे बैठ गया। मेरे बैठते ही हेलीकाप्टर हवा मे उठा और एक झोंका खाकर श्रीनगर की ओर चल दिया।

सारे रास्ते मेरा दिमाग अम्मी और आलिया के बारे सोच रहा था। हेलीकाप्टर ने मुझे श्रीनगर एयरबेस पर उतार दिया था। सुबह की पहली किरण ने आसमान लाल कर दिया था परन्तु मै तो अंधेरे मे डूबा हुआ था। मेरी जीप बेस पर खड़ी हुई थी। मै झटपट उसमे बैठा और अपने घर की ओर चल दिया। घर के बाहर सेना की ओर से कुछ लोग नियुक्त कर दिये गये थे। अपने घर पहुँचते ही मै जीप से उतर कर भागते हुए लोहे का गेट खोल कर अन्दर घुसा तो पूरे मकान मे मौत सी शांति छायी हुई थी। मै ठिठक कर रुक गया क्योंकि सामने की दीवार गोलियाँ चलने से उधड़ गयी थी। ब्रिगेडियर चीमा कमरे से बाहर निकलते हुए बोले… मेजर कल सुबह तुम्हारे घर पर फिदायीन हमला हुआ था। तुम्हारी अम्मी और आलिया इस हमले मे मारे गये थे। पुलिस अपना काम करके जा चुकी है। यह मामला निशात बाग पुलिस थाना देख रहा है। एसआई इश्तियाक हुसैन इस केस की तहकीकात कर रहा है। तुम्हारी अम्मी और आलिया को पोस्टमार्टम के लिये भेज दिया गया है। माई बोय फिलहाल पूछताछ चल रही है। तुम अपने आप को संभालो और जो भी हमारी ओर से जरुरत हो तो निसंकोच कह देना। बोलने की स्थिति मे तो पहले से नहीं था तो मैने अपना सिर्फ सिर हिला दिया था। … मेजर तुम पहले इस काम से फारिग हो जाओ बाद मे आराम से बैठ कर बात करेंगें। इतना कह करके वह चले गये थे।

अब तक मै सयंत हो चुका था। मै बाहर पड़ी हुई कुर्सी पर बैठ गया और अब्बा का नम्बर मिलाया तो कुछ देर घंटी बजने के बाद एक महीन सी आवाज कान मे पड़ी… हैलो। …मकबूल बट से बात कराईए। …वह बाहर गये है। हफ्ते के बाद लौटेंगें। यह सुन कर मैने फोन काट दिया और फिर निशात बाग पुलिस स्टेशन चला गया। एस आई इश्तियाक हुसैन अभी पहुँचा ही था। …जनाब मेरा नाम समीर बट है। कल के फिदायीन हमले मेरी अम्मी और बहन की हत्या हो गयी थी। उसी की जानकारी लेने के लिये आपके पास आया हूँ। …मेजर साहब, हमने तो ब्रिगेडियर साहब को सब बता दिया था। मैने जल्दी से कहा… मै आपके मुँह से सुनने आया हूँ। आपको किसने सूचना दी थी? …जनाब, मेरे पास तो कंट्रोल रुम से फोन आया था। किसी ने वहाँ पर गोलियाँ चलने की आवाज सुन कर 100 नम्बर पर खबर की थी। हम तो चेक करने के उद्देशय से गये थे। सारी दीवार उधड़ी हुई पड़ी थी इसीलिए पूरे घर की जाँच करने के लिए जब हमने अन्दर प्रवेश किया तब हमे गोलियों से छलनी दो लाशें कमरे मे मिली थी। एक-47 का इस्तेमाल हुआ था। हमारी फोरेन्सिक टीम भी पहुँच गयी थी। गोलियों के खाली खोल और उंगलियों के निशान हमारी टीम ने उठा लिये है।  

मै चुपचाप उसकी बात सुन रहा था। बीच-बीच मे वह अपने सिपाहियों को भी निर्देश दे रहा था। …हमने सारी जाँच करने के बाद वह दोनो लाशें पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी थी। आज शाम तक या कल सुबह तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल जाएगी उसके बाद ही हमारी जाँच आगे बढ़ेगी। वैसे आप कहाँ गये हुए थे मेजर साहब? …मै उस वक्त सीमावर्ती चौकियों के निरीक्षण के लिये गया हुआ था। ब्रिगेडियर साहब को किसने सूचना दी थी? …आपके नौकर ने बताया कि आप 15वीं कोर के कोम्प्लेक्स मे रहते है तो हमने आपकी कोर के कंट्रोल रुम मे खबर कर दी थी। मुझे नहीं पता था कि ब्रिगेडियर साहब खुद आ जाएँगें। …अम्मी और आलिया की लाशें कौन से अस्पताल भेजी गयी है? …सिविल अस्पताल। इतनी बात करके मै सिविल अस्पताल की ओर निकल गया था।

पुलिस केस होने के कारण उन्होंने मुझे उन दोनो को दिखाने से मना कर दिया था। मै वापिस घर की ओर चल दिया। अम्मी की मौत से मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण अध्याय समाप्त हो गया था। आलिया की मौत से मेरे अन्दर कुछ मर सा गया था। अपने घर को बाहर से देख कर बचपन से अब तक अम्मी के साथ बिताये हुए हर क्षण याद हो आया था। बस रह-रह कर एक ही मलाल हो रहा था कि काश उस वक्त मै यहाँ पर होता। अम्मी के कमरे मे उनकी डायरी से अब्बा का मोबाईल नम्बर निकाल कर फोन किया तो कुछ देर घंटी बजने के बाद सोती हुई अब्बा की आवाज मेरे कान मे पड़ी… हैलो। एक पल के लिए मै चुप रहा तो अबकी बार घुर्राहट भरी आवाज कान मे पड़ी… बोलते क्यों नहीं। हैलो। …अब्बा, मै समीर बोल रहा हूँ। कल सुबह घर पर फिदायीन हमला हुआ था। अम्मी और आलिया को उन्होंने मार दिया। आज शाम तक या कल सुबह तक दोनो के पोस्टमार्टम के बाद उनके शव मिल जाएँगें। अगर आप समय पर आ जाएँगें तो अच्छा रहेगा। कुछ मिनट दूसरी ओर से कोई आवाज नहीं आयी और फिर अब्बा की घरघराती हुई आवाज मेरे कान मे पड़ी… यह रिश्ता तो बहुत पहले खत्म हो गया था। मेरी बीवी बनने से ज्यादा वह तेरे जैसे नाशुक्रे काफ़िर की अम्मी बनी रहना चाहती थी। मै इस वक्त बाहर हूँ तो मै नमाज़-ए-जनाज़ा मे शरीक नहीं हो सकूँगा। वैसे भी उसके सारे काम तो तुझको करने है तो मेरे वहाँ आने का कोई मतलब नहीं है। यह कह कर अब्बा ने फोन काट दिया। एक पल के लिए उनकी बात सुन कर मेरा खून खौल गया परन्तु अम्मी का ख्याल आते ही मैने अपने आप को संभाल लिया था।

शाम तक आसिया, आफशाँ और अदा भी श्रीनगर पहुँच गयी थी। एक जगह सभी को देखने का मेनका के लिये पहला अवसर था। उनको क्या बताता कि मै उस वक्त कहाँ पर था। मुझे जो पुलिस से पता चला था वह सारा मैने उन्हें बता दिया था। वह रात हम चारों ने सीने पर भारी बोझ के साथ काटी थी। अगली सुबह तक पोस्टमार्टम हो गया था। इश्तियाक हुसैन ने मुझे इसकी सूचना दे दी थी। आसिया आसपास के जानकारों और कुछ रिश्तेदारों को इस हादसे की सूचना देने मे व्यस्त हो गयी और मै अस्पताल चला गया था। दोपहर तक एम्बुलैंस से अम्मी और आलिया को घर ले आया था। रहमत को भेज कर मौलवी साहब को बुलवा कर फिर गुस्ल, कफ़न और दफ़न के इंतजाम मे जुट गया था। कुछ पड़ोस के परिवार और रिश्तेदार इकठ्ठे हो गये थे। उन दोनो के पार्थिव शरीर को मैने अपने कमरे मे रखवा दिया था। मौलवी साहब के कहने पर गुस्ल मैय्यत की क्रिया के लिए स्त्रियाँ उस कमरे मे चली गयी थी। उन स्त्रियों की देखरेख मे जल्दी ही गुस्ल मैय्यत के सभी कार्य सम्पन्न हो गये थे।

कफ़न के कपड़ों का इंतजाम आफशाँ और अदा ने कर दिया था। एक लम्बी तहनित प्रक्रिया के बाद दोनो के जनाज़े तैयार हो गये थे। कमरे के बाहर खड़े हुए मौलवी साहब समय और कार्य अनुसार आयात पढ़ते चले गये और कमरे के अन्दर उपस्थित स्त्रियों ने पूरे रीति-रिवाज के साथ दोनो को कफ़न मे लपेट दिया था। मौलवी साहब ने एक बार दोनो पर नजर डाल कर सलातुल मैय्यत का एलान कर दिया और नमाज़-ए-जनाज़ा के आरंभ होते ही मौलवी साहब ने पाँच तकबीरें सबके सामने दोहराई और फिर सुराह-ए-फ़ातिहा पढ़ कर दफ़न की प्रक्रिया आरंभ करने से पहले आखिरी बार उनका चेहरा सभी को दिखा कर ढक दिया था। मैने भी अम्मी और आलिया के माथे को चूम कर अन्तिम कार्य की तैयारी करने के किए चल दिया। दफ़नाने के लिए हम सभी लोग दोनो ताबूतों को उठा कर एम्बुलैंस मे रखवा कर कब्रिस्तान की ओर चल दिये थे। 

अभी शाम होने मे कुछ समय था। कब्रिस्तान मे मौलवी साहब जैसा बताते गये वैसा मै चुपचाप करता चला गया। मौलवी साहब ने अंधेरा होने से पूर्व सारे काम रीति-रिवाज अनुसार सम्पन्न करा दिये थे। जब तक मै घर पहुँचा तब तक बहुत से लोग जा चुके थे। जो कुछ रह भी गये थे वह भी कुछ देर ठहर कर अपना दुख जता कर चले गये थे। मै हैरान था कि इतने सारे लोग आये थे लेकिन किसी ने अब्बा के बारे एक बार भी नहीं पूछा था। आखिरी जाने वाला इंसान अम्मी का वकील फैयाज खान था। अगले दिन शाम को आने की कह कर वह भी चला गया था। गुस्ल अल-मैय्यत के बाद अम्मी के कमरे मे जाकर हम चारों ने अम्मी और आलिया की फोटो के सामने दो दिये जला कर रख दिये थे। मै एक किनारे मे लेट गया था। एक-एक करके आसिया और अदा भी वहीं लेट गयी थी। आफशाँ मेनका को लेकर अपने कमरे मे चली गयी थी। हम तीनों अपने ध्यान मे बचपन को याद करते कब सो गये किसी को पता ही नहीं चला था।

अगले दिन सुबह तैयार होकर मै पुलिस स्टेशन चला गया था। एसआई इशितियाक हुसैन से मिल कर मैने कंट्रोल रुम से वह नम्बर निकलवा लिया जिसने फोन पर हमले की सूचना दी थी। वहाँ से लौटते हुए अम्मी और आलिया के मृत्यु प्रमाण पत्र लेकर जब तक घर पहुँचा तब तक सभी बाहर लान मे बैठे हुए धूप का आनन्द ले रहे थे। …समीर सुबह उठ कर कहाँ चला गया था? …पुलिस स्टेशन गया था। कुछ कागजी कार्यवाही पूरी करनी थी। कुछ देर के बाद मुझे फैयाज खान आते हुए दिखा तो मैने कहा… वकील सहब शाम की कह कर गये थे परन्तु अभी आ गये है। फैयाज खान को लेकर बैठक की ओर चलते हुए मैने कहा… तुम तीनों भी चलो। बैठक मे हम चारों फैयाज खान के सामने बैठ गये थे।

फैयाज खान ने अपनी फाईल खोलते हुए पूछा… समीर, आज दोनो के मृत्यु प्रमाण पत्र ले आये? मैने सिर हिलाते हुए दोनो मृत्यु प्रमाण पत्र उनकी ओर बढ़ा दिये थे। उसने एक नजर प्रमाण पत्रों पर डाल कर कहा… तुम्हारी अम्मी सब कुछ तुम्हारे नाम वसीयत करके गयी है। इस्लामिक कानून के अनुसार तुम्हारे अब्बा उनकी वसीयत को कोर्ट मे दावा करके सारी जायदाद मे आधे हिस्से की मांग करेंगें। अब तुम पर है कि तुम क्या चाहते हो? मैने एक नजर उन तीनो पर डाल कर कहा… वकील साहब, फौज मे होने के कारण पता नहीं कब मेरे जीवन की शाम हो जाए इसलिए जल्दी से जल्दी मेरी ओर से सारी जायदाद को इन तीनों मे बराबर बाँट दीजिए। एकाएक आसिया उठ कर खड़ी हो कर बोली… नहीं समीर। हमे कुछ नहीं चाहिए। साथ बैठी हुई अदा और आफशाँ ने भी आसिया की बात का समर्थन कर दिया था।

वकील फैयाज खान ने मुझे समझाते हुए कहा… समीर, शरिया कानून के अनुसार बिना वसीयत के लड़कियों को पैतृक सम्पति मे सिर्फ एक तिहाई हिस्सा मिलता है। इसलिए ऐसी गलती मत करो। यह वसीयत करा कर तुम्हारी अम्मी ने बड़ी समझदारी का परिचय दिया है। फिलहाल के लिए मै तुम्हें इसके लिए मना करूँगा। अभी तो तुम्हारे और तुम्हारे अब्बा के बीच मे तय होगा कि सारी जायदाद तुम्हें मिलेगी या तुम्हें उसका सिर्फ आधा हिस्सा मिलना चाहिए। एक बार कोर्ट द्वारा तुम्हारा हिस्सा तय हो गया तो फिर तुम अपना हिस्सा जिसे देना चाहो उसे दे देना। सबसे पहले तो कल ही कोर्ट मे मुझे यह कागज दाखिल करने है जिससे तुम्हारी अम्मी की वसीयत को प्रोबेट कराया जा सके। इन पर तुम्हारे दस्तखत चाहिए। यह कहते हुए उन्होंने कुछ कागज मेरी ओर बढ़ा दिये थे। सारी कागजी कार्यवाही समाप्त होने के बाद फैयाज खान लड़कियों के हालचाल पूछने मे व्यस्त हो गये थे। मै कुछ देर उनके साथ बैठा रहा और फिर उठ कर अम्मी के कमरे मे चला गया था।

पता नहीं क्यों अब हर पल मुझे यहाँ पर भारी लगने लगा था। मै आँखे मूंद कर जमीन पर लेट गया। अम्मी की याद आते ही मेरी आँखें एक बार फिर से स्वत: ही बहने लगी थी। इतने दिनों से मै इस आघात को अपने सीने मे दबाये घर और बाहर के काम मे व्यस्त रहा था। अपनी माँ की मौत के बाद मै तेरह दिन इसी कमरे मे रहा था। इस कमरे मे लेटे हुए मन मे एक विचार आया था कि अब कभी भी मै उन दोनो का मुस्कुराता हुआ चेहरा नहीं देख सकूँगा तो दिल मे एक टीस उठी और आँसू बहने लगे थे। आसिया, आफशाँ और अदा कब कमरे मे आ गयी और सामने बैठ गयी मुझे पता ही नहीं चला था। …समीर। क्या सोच रहे हो? …कुछ नहीं। उनकी आवाज सुन कर जल्दी से अपने आँसू पौंछते हुए मैने बैठते हुए कहा… अब तुम तीनों को सोचना है कि यहाँ का क्या करना है? आसिया ने कहा… समीर यह तो तुमको सोचना है। तभी आफशाँ ने पूछा… क्या अब्बा आये थे? …नहीं। मेरी बात हुई थी। वह शहर से बाहर है। तभी आसिया ने कहा… समीर, उन्होंने तुमसे झूठ बोला है। आज भी वह अपने घर पर ही है। …आसिया, अब इसके बारे मे सोच कर क्या करना है। जो होना था वह हो गया है। हाँ, आज के बाद एक बात तो तय हो गयी है कि मै भी उनके साथ वही करुँगा जो उन्होंने अम्मी के साथ किया है।

हम सब अतीत की यादों मे खो गये थे। कुछ देर के बाद रहमत मेनका को लेकर आया और बोला… यह नींद से जाग गयी थी इसीलिए इसे यहाँ ले आया। आज खाने मे क्या बनना है? मैने पर्स निकाल कर कुछ नोट उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा… इनसे पूछ कर बाजार से ले आना। मेनका भाग कर आफशाँ के पास चली गयी थी। तीनो ने कुछ बात की फिर रहमत को आर्डर देते हुए कहा… थोड़ी देर से लाना। रहमत बाहर चला गया और एक बार फिर से कमरे मे शांति छा गयी थी। …समीर। मैने सिर उठा कर देखा तो मेनका मेरी ओर देख रही थी। तीनों उसकी ओर देख कर मुस्कुरा रही थी। मेनका ने एक बार फिर से कहा… समीर। मैने इशारे से उसको अपने पास बुलाया तो वह आफशाँ की गोदी मे और सिमट कर बैठ गयी थी। आसिया ने पूछा… समीर, क्या मेनका तुम्हारी और आफशाँ की बेटी है? …हाँ। यह आफशाँ और मेरी बेटी है। …तो अंजली कौल कौन है? यह सवाल सुन कर एक पल के लिए मै चुप हो गया था। आफशाँ ने कुछ बोलने के लिए मुँह खोला ही था कि तभी अदा ने कहा… बाजी आपको सब कुछ पता है तो अब पूछने की क्या जरुरत है। …अदा, इसको देखो कि आज यह कैसे निगाहें चुरा रहा है। मै इसे बचपन से जानती हूँ। इसने हम चारों से कभी भी कोई बात नहीं छिपाई थी लेकिन मैने महसूस किया है जब से अम्मी ने इसकी सच्चायी बतायी है तभी से यह हमसे कटता जा रहा है। मुझे लगता है कि अब अम्मी के बाद यह हमेशा के लिए हमसे दूर हो जाएगा। आसिया मुझे देख रही थी और मै उससे आँख मिलाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।

असिया हम सब से उम्र मे बड़ी थी। हमेशा मेरे लिए उसका बेहद पक्षपाती रवैया रहता था। मेरी गलतियों पर उसने हमेशा पर्दा डाला था और मैने भी उसे हमेशा अपना सरपरस्त माना था। यह भी सही था कि जब से अम्मी ने मेरी सच्चायी उजागर की थी तभी से एक झिझक की दीवार हमारे बीच मे खड़ी हो गयी थी। काफ़िर के नाम से चिह्नित होने के कारण रिश्तों पर मेरा विश्वास डगमगा गया था। आसिया ने यही बात समझ कर सबके सामने उजागर कर दी थी। मुझे कुछ भी समझ मे नहीं आ रहा था। आसिया ने धीरे से कहा… समीर, एक बार हम चारों को मिल कर सच्चायी का सामना करना पड़ेगा। हमको पता है कि आफशाँ से तुमने मंदिर मे शादी की है। मेनका तुम्हारी और अंजली की बेटी है। अंजली के बारे मे हम तीनों अच्छे से जानते है। अदा और तुम्हारे बीच क्या संबन्ध है क्या हमे नहीं मालूम। हम सब जानते है तो सबके सामने सच्चायी बोलने मे तुम क्यों झिझकते हो। पल भर मे आसिया ने मेरे सारे अवरोध और झिझक को नष्ट कर दिया था। एकाएक मुझे आलिया की कही बात याद आ गयी थी।

एक बार मैने आलिया से पूछा था कि जब मौलवी साहब ने हमे यह बताया है कि काफिरों के साथ दोस्ती या संबन्ध रखना कुफ्र जैसा पाप है तो तुम सब कुछ जान कर भी कैसे मेरे साथ रह सकती हो? एक पल के लिए वह खामोश हो गयी थी परन्तु वह कुछ पल सोचने के बाद बोली… समीर, अगर मुझे कभी कुछ हो गया तो सबसे पहले मेरी रक्षा के लिये कौन खड़ा होगा? मै उसकी ओर देखते हुए बोला… और किसी का तो पता नहीं लेकिन एक बात जानता हूँ कि मेरे रहते तुम पर कोई आँच नहीं आने दूँगा। वह मुस्कुरा कर बोली… समीर, मैने जब से आँख खोली है तब से सिर्फ तुम्हें अपने साथ देखा है। मदरसे मे कुछ भी बताया गया हो लेकिन आज भी मै जानती हूँ कि एक तुम ही हो जो मेरे लिए अपनी जान भी दे सकते हो। इतना विश्वास तो मै अपने अब्बा पर भी नहीं कर सकती। वैसे भी तुमने आज तक हमारे साथ नमाज पढ़ी है। हमारे साथ रमजान मे रोजा रखा है। अगर सिर्फ पैदा होने से तुम काफ़िर हो गये तो मै कुफ्र की सजा भुगतने के लिए भी तैयार हूँ। मै ही क्यों यही सवाल तुम अम्मी, आसिया, आफशाँ और अदा से पूछ कर देख सकते हो। मुझे पूरा विश्वास है कि उनका भी यही जवाब होगा। आसिया की बात सुन कर एक बार फिर से आलिया की यादें मेरे जहन पर छा गयी थी।

एक पल के लिए मैने सोचा और फिर मैने मेनका और अंजली की सच्चायी को उनके सामने रख दिया था। किन हालात मे आफशाँ के साथ मन्दिर मे शादी करने की बात सबके सामने रख कर मैने कहा… आफशाँ ने मेरे सबसे कमजोर क्षणों बिना किसी उम्मीद और वायदे के साथ दिया था। अंजली की मौत के बाद जब मै अन्दर से टूट गया था तब उसने मुझे और मेनका को बड़ी शिद्दत और मोहब्बत से संभाला था। अंजली की मौत के बाद आफशाँ ने मेनका को अपना कर मेरे बदरंग जीवन मे नये रंगों से भर दिया था। जब समय आया तो वह अब्बू के सामने मेरे लिये खड़ी हो गयी थी। सच पूछो तो अब्बू के प्रति मेरी नफ़रत इतनी नहीं है जितनी मै अम्मी और तुम सब से मोहब्बत करता हूँ। बचपन से आज तक सिर्फ तुम सबको ही देखा है और अपने से ज्यादा तुम पर भरोसा करता हूँ। एक बात कहना चाहता हूँ कि अम्मी की मौत के प्रति उन्होंने जो उदासीनता दिखायी है उसके कारण अब मेरे उनसे सभी रिश्ते समाप्त हो गये है। अब वह मेरे लिए सिर्फ एक मकबूल बट नाम का एक अलगावदी है जिसने धर्म के नाम पर मेरे परिवार की हत्या की थी और मेरी मासूम निरीह माँ का इतने साल शोषण किया था। अब से मकबूल बट इस काफ़िर को अपने हर नुकसान और पराजय के पीछे खड़ा देखा करेगा। मै कभी तुम्हे ऐसे किसी दोराहे पर नहीं खड़ा करुँगा कि तुम्हें सोचना पड़े कि किसका साथ दें। वह तुम्हारे अब्बू है इसलिये जैसा तुम्हें ठीक लगता है वह करो। मेरे रिश्ते जैसे आज तक तुम्हारे साथ है वैसे ही हमेशा बने रहेंगें। इतना बोल कर मै चुप हो गया था। तीनों चुपचाप मुझे देख रही थी। …तुमने सही कहा था आसिया। आज तुम सबके सामने सारी सच्चायी बता कर मै अपने आप को अन्दर से हल्का महसूस कर रहा हूँ। इतनी बात करके मै चुप हो गया था।

मै कुछ सोचना चाहता था। यही सोच कर मै घर से बाहर सड़क पर टहलने निकल गया था। वह किस उद्देश्य से यहाँ हमला करने के लिए आये थे? यह जग जाहिर बात थी कि यह मकबूल बट का मकान है लेकिन यह भी सब लोग जानते थे कि इस मकान मे सिर्फ अम्मी रहती थी। मकबूल बट तो यहाँ पर कभी-कभी आता था। मै पहले सोच रहा था कि यह हमला मकबूल बट की हत्या के उद्देश्य से हुआ होगा जिसमे बेवजह अम्मी और आलिया को जान से हाथ धोना पड़ गया था। अब मेरा सारा ध्यान अम्मी की ओर लगा हुआ था क्योंकि आलिया तो मेरे साथ रहती थी। वह यहाँ कैसे और कब पहुँच गयी? मेरे लिये एक नया प्रश्न खड़ा हो गया था। इसका मतलब था कि फिदायीन के निशाने पर अम्मी थी, तो भला अम्मी को कौन मारना चाहता होगा?  मै मन ही मन सवाल करता और फिर जवाब तलाशने की कोशिश करता। मै इस नतीजे पर पहुँचना चाहता था कि हमलावर के निशाने पर असलियत मे कौन था? अम्मी या आलिया अथवा दोनों। मै चलते-चलते रुक गया और एक नजर चारों ओर घुमा कर देखा तो एहसास हुआ कि मै सोचते हुए काफी दूर निकल आया था तो मुड़ कर वापिस घर की ओर चल दिया।

आसिया, आफशाँ और अदा तीनों बाहर लान मे कुर्सी डाल कर बैठी हुई थी और मेनका उनके इर्द गिर्द चक्कर लगा रही थी। रात की ठंडक मे खुले आसमान के नीचे अच्छा लग रहा था। लोहे का गेट खोल कर मै उनके पास चला गया और भागती हुई मेनका को पकड़ कर गोद मे उठाते हुए कहा… मै कौन हूँ? पहले वह अपने आप को छुड़ाने का यत्न करती रही और फिर चुप हो गयी तो आसिया ने कहा… मेनका यह कौन है? वह झिझकते हुए धीरे से बोली… समीर। यह सुन कर तीनों खिलखिला कर हँस पड़ी थी। मेनका को छोड़ते हुए मैने झेंपते हुए कहा… तुम तीनों के कारण अब यह मुझे समीर बुलाया करेगी। बड़ी मुश्किल से मुंबई मे मैने इसे अब्बू कहना सिखाया था। एक साल मे ही यह सब कैसे भूल गयी। तभी आफशाँ ने पूछा… समीर तुम यहाँ पर कहाँ रह रहे हो? …यहाँ से थोड़ी दूर पर 15वीं कोर के रेजिडेन्शियल कोम्पलेक्स मे रहता हूँ। …कल तुम्हारा मकान देखने चलेंगें। …हाँ क्यों नहीं। वैसे भी अब मुझे जल्दी ही वापिस ड्युटी पर जाना होगा लेकिन यहाँ का क्या करना है?

आसिया ने सवाल किया… समीर तुम यहाँ पर क्यों नहीं रहते? …अदा बेहतर समझ सकती है। आप्रेशन्स मे काम करने के कारण मुझे वहाँ रहना पड़ता है। तुम तो जानती हो कि फौज से यहाँ के स्थानीय लोग कितनी नफरत करते है। …पर क्यों? …मकबूल बट जैसे अलगावादी नेताओं और पाकिस्तान के टुकड़ों पर पलने वाले स्थानीय राजनीतिज्ञों और पत्रकारों ने लोगो को भ्रमित किया हुआ है। कुछ लोगों का विचार है कि यह आज़ाद मुल्क है जिस पर भारतीय फौज ने जबरदस्ती कब्जा किया हुआ है और कुछ का मानना है कि धर्म के अधार पर कश्मीर का विलय पाकिस्तान से होना चाहिए था। …तो क्या यह सोच गलत है? …अगर इतिहास के पन्ने को पलट कर देखा जाए तो यह सोच गलत ही नहीं बेबुनियाद भी है। मूल रुप से कश्मीर हिन्दु ॠषि कश्यप की तपोभुमि है। यहाँ पर तलवार के बल पर इस्लाम स्थापित हुआ था। भयग्रस्त हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन यहाँ बहुत बार हुआ परन्तु फिर भी हिन्दुओं की संख्या किसी भी सदी मे यहाँ कम नहीं हुई थी। अगर सच पूछो तो हर जिवित कश्मीरी के पूर्वज भी हिन्दु थे क्योंकि यहाँ कोई अरब से नहीं आया था। तीनों मेरी बात चुपचाप सुन रही थी। अचानक आफशाँ बोली… समीर, इस सोच मे क्या गलत है कि धर्म के आधार पर इस हिस्से का विलय पाकिस्तान मे होना चाहिए था? अबकी बार मेरी जगह अदा ने जवाब दिया… तुम्हारा प्रश्न ही बेबुनियाद है। जब धर्म के आधार पर बँटवारा हुआ तो भारत मे एक भी मुस्लिम नहीं रहना चाहिए था। सारे मुस्लिमों को भारत छोड़ कर पाकिस्तान मे चले जाना चाहिए था। इसका मतलब तो कश्मीर के मुस्लिमों को भी पाकिस्तान मे चले जाना चाहिए था। तो अब यहाँ के मुस्लिम किस विलय की बात कर रहे है?

आसिया ने पूछा… तो ऐसा क्यों नहीं हुआ? अबकी बार मैने जवाब दिया… राजनीति के कारण। पाकिस्तान तो मुस्लिमों ने बना लिया परन्तु कितने मुस्लिम अपनी पैतृक जमीन छोड़ कर पाकिस्तान गये थे? आसिया ने एक सवाल फिर किया… तो फिर अगर उन्हें वहाँ जाना नहीं था तो उन्होंने अपने लिए अलग देश क्यों बनाया था? …गौर मतलब है कि आज भी पाकिस्तान से ज्यादा मुस्लिम भारत मे रह रहे है। अचानक आसिया ने मुझे टोकते हुए पूछा… समीर, तुमने जो इतिहास पढ़ा है वह हम सभी ने पढ़ा है तो भला हमारे पढ़ने मे और तुम्हारे पढ़ने मे इतना फर्क कैसे है। उसका सवाल जायज था। एक पल के लिये मै कुछ बोलने से पहले रुक गया था। फिर कुछ सोच कर मैने कहा… विस्तारवाद के चक्कर मे पाकिस्तान फौज ने देश बँटते ही अफगानी कबाईलियों के रुप मे कश्मीर पर आक्रमण किया क्योंकि यहाँ का राजा हिन्दु और प्रजा मुस्लिम थी। भारतीय फौज ने उन्हें मार कर भगा दिया परन्तु हमारे नेताओं की एक एतिहासिक गलती के कारण पाकिस्तान ने कश्मीर का एक हिस्सा अपने कब्जे मे आज तक रखा हुआ है जिसे दुनिया आज़ाद कश्मीर का नाम से जानती है। वहाँ कितनी आज़ादी है वह किसी से छिपी नहीं है। आज़ाद कश्मीर अगर सच पूछो तो आज भी पाकिस्तान की रखैल की तरह है। पाकिस्तानी फौज का जब मन करता है वह वहाँ की आवाम का शोषण करते है अन्यथा अपने दोस्त अमरीका और चीन को उसका शोषण करने के लिए सौंप देते है। अगर मै सच कहूँ तो आज़ाद कश्मीर की हालत मेरी माँ जैसी है जिसको जबरदस्ती मकबूल बट ने इतने साल अपने पास रख कर शोषण किया था। एकाएक तैश मे मेरे मुख से ऐसी बात निकल गयी थी कि जिसने पल भर मे हम सभी को शर्मसार कर दिया था।