बुधवार, 30 नवंबर 2022

 

 

काफ़िर-19

 

सुबह हो चुकी थी। आलिया को लेकर मै वापिस कोम्पलेक्स मे आ गया था। मैने रास्ते मे आलिया को जन्नत की सारी कहानी सुना दी थी। वह भी चकरा कर रह गयी थी। उसे भी जन्नत का बर्ताव समझ मे नहीं आया था। मेरे पास नाम इकठ्ठे होते जा रहे थे परन्तु उसके द्वारा क्या करना चाहिए यह मेरी समझ से बाहर था। मै तैयार होकर आफिस चला गया था। एक कागज पर सभी दागी राजनेताओं, अलगावादियों, चरमपंथियों, व्यापारियों, मौलवियों व पत्थरबाजों के नाम मैने लिखने आरंभ कर दिये थे। लिस्ट लंबी होती चली जा रही थी। एजाज के रहस्योद्घाटन ने मुझे चौंका दिया था। वह उन सभी स्थानों पर कुछ ऐसी पेटियाँ छोड़ कर आया था जहाँ पिछले कुछ सालों मे ब्लास्ट हुए थे। चुँकि तारीख का पता नहीं चला था इसलिए ब्लास्ट का सही आंकलन लगाना मुश्किल था। फिर भी जाँचने के लिये मैने एक लिस्ट तैयार कर दी थी।

दोपहर को मेरे पास फरहत का फोन आया… समीर भाई, मैने अभी भारतीय सीमा मे प्रवेश किया है। मै माल लेकर जम्मू की ओर जा रहा हूँ। श्रीनगर से बाहर निकलते ही बडगाम के पास से निकलूँगा। अगर आप कल सुबह अपने फार्म पर आ जाएँगें तो मै ट्रक को आधे घंटे के लिए वहाँ रोक दूँगा। …फरहत कल सुबह कितने बजे तक पहुँचोगे? …समीर भाई लगभग 6-7 बजे तक उम्मीद कर रहा हूँ। …ठीक है मै वहीं अपने फार्म पर मिलूँगा। कोई खतरा उठाने की जरुरत नहीं है। …जी समीर भाई। फिर बडगाम मे मिलते हैं। उससे फोन पर बात समाप्त करके मैने अपने बैचमेट से बात करके एक खोजी कुत्ते का इंतजाम किया। मैने तय किया कि सुबह पाँच बजे कुत्ते के साथ उसके हैंडलर को अपने साथ लेकर बडगाम निकल जाएँगें। शाम तक सारे इंतजाम करने के बाद अपने घर वापिस लौटा तो आलिया किसी से फोन पर उलझी हुई थी। मै अपने काम मे लग गया था। अपनी बात समाप्त करके आलिया जब मेरे पास आयी तो मैने पूछा… किसके साथ बहस मे उलझी हुई थी? …शाहीन से बात कर रही थी। वह अपने भाई के लिए काफी चिन्तित है क्योंकि वह उस रात से गायब है। इस बात पर मैने अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी क्योंकि मुझे पूरा विश्वास था कि वह अपने पाकिस्तानी आकाओं से बचता फिर रहा होगा।

सुबह चार बजे मै चलने के तैयार था। अवैध माल मिलने पर मै अपनी योजना तैयार कर चुका था। ठीक पाँच बजे मैने खोजी कुत्ते और उसके हैन्डलर को उनकी युनिट से लेकर बडगाम की ओर निकल गया था। चारों ओर गहरा अंधकार था। वातावरण मे ठंडक थी। …क्या नाम है इसका? मैने एक नजर काले लेब्राडर पर डाल कर हैन्डलर से पूछा। …जूली, जनाब। …यह क्या सूँघ सकती है? …जनाब, यह सभी प्रकार के एक्सप्लोसिव्स को सूँघने मे पारंगत है। कुछ हद तक यह ड्र्ग्स की भी पहचान कर लेती है। …गुड। हम बात करते हुए बडगाम पहुँच गये थे। मै सीधे अपने फार्म की ओर चला गया। मैने लोहे के गेट को खोलने की कोशिश की तो उस पर ताला पड़ा हुआ था। गेट से अन्दर कूद कर जब अपने चौकीदार को ढूँढने के लिए आगे बढ़ा तो पता चला कि वह कम्बल तान कर अपने कमरे मे आराम से सो रहा था। सबसे पहले उसकी क्लास  लगायी और फिर लोहे के गेट को खोल दिया जिससे फरहत को अन्दर आने मे कोई परेशानी का सामना न करना पड़े।

छ्ह बज चुके थे। आसमान से अंधकार धीरे-धीरे छँटता जा रहा था। हैन्डलर और जूली पूरी तरह से तैयार थे। इंतजार का हर मिनट बड़ा भारी लग रहा था। सात बजे मेरे फोन की घंटी बजी तो मैने तुरन्त काल उठाते हुए कहा… हैलो। …समीर भाई मै बडगाम पहुँच गया हूँ। …मै अपने फार्म पर तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ। …बस अगले दस मिनट मे वहाँ पहुँच जाऊँगा। इतना बोल कर उसने फोन काट दिया था। मै लोहे के गेट के पास जाकर खड़ा हो गया। ट्रक की हेडलाइट्स चमकते ही मै तैयार हो गया था। जैसे ही ट्रक नजदीक आया तो मै सड़क पर आ गया था। वह ट्रक धीमा हुआ और हमारे गेट पर पहुँचते ही ट्रक ने बड़ी कुशलता से मोड़ काटा और बिना गति धीमी किये हमारे फार्म मे प्रवेश कर गया था। मैने जल्दी से गेट बन्द किया और जब तक मै ट्रक तक पहुँचा तब तक फरहत ट्रक से उतर कर पीछे की ओर आ गया था। उसने पीछे का शटर खोला और अन्दर रखी पेटियाँ उजागर हो गयी थी। सेब की खुश्बू से सारा कन्टेनर महक रहा था। मैने हैन्डलर को इशारा किया तो उसने जूली को कुछ निर्देश दिये और उसे उठा कर कन्टेनर मे छोड़ दिया। जूली ने पेटियाँ सूँघने मे जुट गयी थी।

मै अभी भी पूरी तरह से आश्वस्त नहीं था कि खोजी कुत्ता बन्द पेटी को सूँघ कर एक्स्प्लोसिव्स और ड्र्ग्स की पहचान कर सकता है। तभी जूली ने एक पेटी को सूँघ कर भौंकना शुरु कर दिया। फरहत और फैयाज ने मिल कर उस पेटी को ट्रक से उतार कर एक किनारे मे जमीन पर रख दिया था। वह एक बार फिर से सूँघने के काम मे लग गयी थी। वह फिर एक पेटी के पास पहुँच कर भौंकने लगी थी। उन दोनो ने जल्दी से उस पेटी को भी बाहर निकाल दिया था। तब तक मैने पहली पेटी को खोल कर चेक किया तो भूसे और सेब के नीचे करीने से सेम्टेक्स की सिल्लियाँ रखी हुई थी। दूसरी पेटी खोली तो उसमे टाइमर्स और डिटोनेटर्स रखे हुए थे। जूली पेटियों की निशानदेही कर रही थी, फरहत और फैयाज उन पेटियों को ट्रक से तुरन्त हटाने मे लगे हुए थे, और मै उन पेटियों के ढक्कन खोल कर सामान का निरीक्षण कर रहा था। एक मिलिट्री आप्रेशन की तरह सभी अपने-अपने काम बड़ी मुस्तैदी से कर रहे थे। अगले बीस मिनट मे आठ पेटियाँ ट्रक के बाहर निकाल कर जमीन पर रख दी गयी थी।

सभी जमीन पर रखी हुई पेटियों के ढक्कन हट चुके थे। एक को छोड़ कर बाकी सातों पेटियों मे असला बारुद मिला था। एक पेटी मे सैकड़ों छोटे-छोटे पोलिथीन बैग कत्थई रंग के पाउडर से भरे हुए करीने से रखे हुए थे। मै जब तक हर पेटी को खोल कर चेक कर रहा था तब तक हैन्डलर, फरहत और फैजाज ने हमारे फार्म की आठ सेब की पेटियाँ उस ट्रक मे रखवा दी थी जिससे कन्टेनर की पेटियों की संख्या मे कोई कमी न रहे। अगले दस मिनट मे फैयाज ने कन्टेनर का शटर बन्द किया और अगले कुछ पलों मे ट्रक फार्म के गेट से बाहर निकल गया था। जमीन पर आठ पेटियाँ खुली हुई पड़ी थी। एक पेटी मे शुध्द चरस थी और बाकी सात मे असला बारुद रखा हुआ था। चौकीदार से चाय बनाने के लिए कह कर मैने हैंडलर से पूछा… जूली को इनाम मे आप लोग क्या देते है? वह मुस्कुरा कर बोला… मेजर साहब यह सैनिक है। क्या इस काम के लिए आपको कोई इनाम मिलेगा? मैने झेंपते हुए जूली के सिर पर हाथ फेर कर कहा… सैनिक सिर्फ देश हित मे काम करता है। हम चाय पी रहे थे तब तक चौकीदार पेटियों को बन्द करने मे जुट गया था।        

चाय पीकर हमने आठों पेटियाँ अपनी जीप मे रखवाई और कुछ ही देर मे हम कोम्पलेक्स की ओर चल दिये थे। सबसे पहले हैन्डलर और जूली को उनकी युनिट पर छोड़ कर मैने अपनी सुरक्षा युनिट को फोन करके कोम्पलेक्स के मुख्य द्वार पर आने के लिए कह कर दूसरा फोन मैने ब्रिगेडियर चीमा को मिलाया। …हैलो। …सर, मेजर बट बोल रहा हूँ। क्या आप कोम्पलेक्स के मुख्य द्वार पर आ सकते है? …क्या हुआ? …सर आपकी मदद चाहिए। अवैध हथियारों का केस है। …मै आ रहा हूँ। मैने फोन काट कर अपनी जीप को कोम्पलेक्स की दिशा मे मोड़ दिया था। मुझे मालूम था कि इन पेटियों के साथ मै कोम्पलेक्स मे प्रवेश नहीं कर सकूँगा इसीलिए मैने यह सब किया था। जब मै मुख्य द्वार पर पहुँचा तब तक मेरी सुरक्षा युनिट पहुँच चुकी थी। मैने अपनी जीप को द्वार से कुछ पहले एक किनारे मे छोड़ कर पैदल ही अपनी सुरक्षा युनिट की ओर चल दिया था। मुझे पैदल आते हुए देख कर वह मेरी ओर जीप लेकर आ गये थे।

अपनी जीप की ओर इशारा करके मैने कहा… आप लोग मेरी जीप की सुरक्षा कीजिए। उसके पास किसी भी आदमी के जाने की मनाही है। वह तुरन्त मेरी जीप की ओर चले गये और उसे घेर कर खड़े हो गये थे। मुख्य द्वार पर खड़ी हुई सुरक्षा युनिट ने थोड़ी सी दूर पर हलचल होती हुई देखी तो वह भी चौकन्ने हो गये थे। उनकी एक टीम जाँच के लिए मेरी जीप की ओर चल दी थी। तभी हूटर बजाती हुई ब्रिगेडियर चीमा की जीप मुख्य द्वार से बाहर निकली और मुझे सड़क के बीचोंबीच खड़ा देख कर रुक गयी थी। ब्रिगेडियर चीमा जीप से उतर कर मेरे पास आकर बोले… मेजर यह क्या हाल बना रखा है? उनका कमेन्ट मेरे कपड़ों पर था। …सर, आप आईए मेरे साथ। आपको कुछ दिखाना है। हम पैदल जीप की ओर चल दिये। ब्रिगेडियर चीमा को देख कर मेरी सुरक्षा युनिट सावधान खड़ी हो गयी थी। …एक पेटी जीप से उतार कर जमीन पर रखो। दो सुरक्षाकर्मी ने तुरन्त एक पेटी को उठा कर जमीन पर रख दिया। मैने उसके लकड़ी के कवर को हटा कर ब्रिगेडियर चीमा को सेम्टेक्स की सिल्लियाँ दिखाते हुए कहा… सर, इन सभी सेब की पेटियों मे यही असला बारुद है जिसे मैने आज सुबह गोल्डन ट्रांस्पोर्ट कंपनी के एक ट्रक से जब्त किया है। इतनी बड़ी प्लास्टिक एक्सप्लोसिव्स की खेप देख कर ब्रिगेडियर चीमा की आँखें फटी की फटी रह गयी थी। वहाँ पर खड़ी हुई मेरी सुरक्षा युनिट के साथ कोम्पलेक्स की सुरक्षा युनिट जो अब तक वहाँ पहुँच चुकी थी, सभी हैरत से उस पेटी को देख रहे थे।

…मेजर जरा मुझे साफ शब्दों मे समझाओ कि यह क्या माजरा है? मैने अपनी युनिट से कहा… इसका ढक्कन बन्द करके वापिस जीप मे रख दो। वह अपने काम मे लग गये तो मैने ब्रिगेडियर चीमा से कहा… सर, यह सभी पेटियाँ अवैध रुप से मुज़फराबाद से हमारी सीमा मे घुसी थी। इसकी डिलिवरी जम्मू मे मस्जिद-ए-जाबिल के इमाम हाजी जुबैर मोहम्मद को देनी थी। ऐसी ही एक डिलीवरी जमिया मस्जिद के हाजी मंसूर के यहाँ कुछ दिन पहले भी हुई थी। उसके बारे मे भी मैने आपको बता दिया था। …अब क्या करने की सोच रहे हो? …सर, मै यह सारी पेटियाँ अब्दुल लोन के गोदाम मे पहुँचा कर इन लोगों के बीच मे दरार डालने की कोशिश करना चाहता हूँ परन्तु  इसी हालत मे यह पेटियाँ को उनके पास पहुँचा दिया तो हमारे लिए बहुत बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा। अब मेरे सामने दो विकल्प है कि पहला हम इन सब को किसी प्रकार से बेकार कर के फिर उनके गोदाम मे पहुँचा दें और दूसरा इसकी डिलिवरी के कुछ मिनट के बाद सुरक्षा एजेन्सी गोदाम पर छापा मार के सारा असला बारुद जब्त कर ले। दोनो ही विकल्प मे मुझे आपकी जरुरत है। ब्रिगेडियर चीमा के सामने मैने अपनी योजना को खोल कर रख दिया था। …मेजर, जिसे इस माल की डिलिवरी देनी थी उसकी तो हत्या हो गयी है। यह खबर सुन कर मुझे गहरा धक्का लगा था। इससे पहले मै कुछ और पूछता ब्रिगेडियर चीमा ने कहा… तुम्हारे दोनो ही विकल्पों मे इसकी जानकारी बहुत से लोगों को हो जाएगी लेकिन फिलहाल इसके अलावा मुझे कोई तीसरा विकल्प इस समय नहीं सूझ रहा है। मेरे दिमाग मे इमाम जुबैर मोहम्मद की हत्या की खबर घूम रही थी।

कुछ देर सोचने के बाद ब्रिगेडियर चीमा ने कहा… तुम आगे चलो। जैसे ही तुम इसकी डिलीवरी करके बाहर आओगे उसके बाद ही हम छापा मार कर सारा सामान को जब्त कर लेंगें। तुम्हारी सुरक्षा युनिट और द्वार की सुरक्षा युनिट को लेकर मै तुम्हारे पीछे चल रहा हूँ। इन डिब्बे पर पहले मार्किंग कर लेनी चाहिए जिससे कोई पेटी मिस न हो जाए। मेरे निर्देश पर सभी पेटियों पर जीप के मोबिल आयल से निशान लगा दिया गया था। थोड़ा सा मोबिल आयल मैने अपनी जीप की नम्बर प्लेट पर भी पोत दिया था। तब तक ब्रिगेडियर चीमा ने वहाँ खड़े हुए सभी सुरक्षाकर्मियों को अपनी योजना समझा चुके थे। हम चलने को तैयार थे। ब्रिगेडियर चीमा की ओर से चलने का इशारा मिलते ही मैने अपनी जीप आगे बढ़ा दी। मुझे अब्दुल लोन के गोदाम का पता था इसीलिए बिना किसी परेशानी के ट्रांस्पोर्ट नगर पहुँच गया था। मै सीधे लोन के गोदाम पर चला गया था। ट्रकों पर कहीं सेब की पेटियाँ चढ़ाई जा रही थी और किसी जगह उतारी जा रही थी। गोदाम के मुख्य द्वार पर गार्ड्स की पूरी फौज खड़ी हुई थी। मेरी जीप रुकते ही वह वहीं से चिल्लाये… गेट से हटा। मैने उन्हें अनसुना कर दिया और जीप से उतर कर उनके पास चला गया। अभी तक मुझे उनके पास हथियार नहीं दिखे थे लेकिन जैसे ही मै उनके पास पहुँचा तो कुछ के हथियार निकल आये थे।

…कौन है? गाड़ी वहाँ से हटा। मै कुछ पल चुपचाप खड़ा रहा और फिर दबी आवाज मे बोला… माल लेकर आया हूँ। मुन्नवर राना को बुलाओ। उनको चुप कराने के लिए वह नाम काफी था। अचानक सभी चुप हो गये और उनमे से एक गार्ड गोदाम के अन्दर भागता हुआ चला गया था। मुन्नवर राना का नाम मुझे उन ड्राइवरों के माध्यम से मिला था जो अब्दुल लोन का माल उठाने हमारे फार्म पर आये थे। कुछ देर के बाद वह गार्ड अपने साथ एक खुंखार से दिखने वाले व्यक्ति के साथ आता हुआ दिखा तो सारे गार्ड अलग खड़े हो गये थे। वह मेरे पास आया और उपर से नीचे तक देख कर घुर्राया… किसने भेजा है तुझे? …नीलोफर मैडम ने। अपना सामान उतार लो और मुझे फारिग करो। एक पल के लिए वह स्तब्ध होकर मुझे देखता रहा फिर मेरे साथ जीप की ओर चल दिया। उसके पीछे-पीछे सभी गार्ड्स भी चल दिये थे। उसने लकड़ी की पेटियों पर नजर डाल कर खड़े हुए गार्ड को इशारा किया तो वह मुस्तैदी के साथ सामने पड़ी हुई पेटी के ढक्कन को खोल कर भूसे और सेब की परत हटाकर वह बोला… भाईजान आप खुद देख लिजिए। मुन्नवर राना ने पेटी मे ग्रेनेड देखे तो तुरन्त उसने लकड़ी का ढक्कन उठा कर ढकते हुए कहा… कितनी पेटियाँ है? …आठ। मियाँ यह सारे सवाल जवाब नीलोफर मैडम से करना। अपना सामान उठाओ मुझे और भी काम है। वह पल भर के लिए ठिठका और फिर उसने कहा… यह सारा सामान तहखाने मे रखवा दो। सभी गार्डस उन पेटियों को उतारने मे व्यस्त हो गये थे। जैसे ही मेरी जीप खाली हुई मै बिना कुछ कहे जाकर जीप मे बैठ गया और असमंजस मे खड़े हुए मुन्नवर राना से कहा… मियाँ खुदा हाफिज़। वह कुछ बोलता उससे पहले मैने जीप का गियर बदला और जीप रिवर्स करके वापिस चल दिया। किसी ने मुझे रोकने की कोशिश नहीं की थी।

मै उस सड़क से निकल कर जैसे ही मुख्य सड़क पर आया कि तभी ब्रिगेडियर चीमा की जीप और उसके पीछे दो सुरक्षाकर्मियों की जीप लोन के गोदाम की ओर मेरे सामने से तेजी से निकल गयी थी। अभी मुश्किल से मै आगे बढ़ा ही था कि तभी सीआरपीफ और पुलिस का भारी भरकम काफिला भी उस गोदाम की ओर मुड़ते हुए दिखा था। मैने अपना काम कर दिया था अब देखना था कि ब्रिगेडियर चीमा अपनी भुमिका कैसे निभाते है। तभी मुझे एक ख्याल आया तो मैने अपनी जीप सड़क से उतार कर खड़ी करके ब्रिगेडियर चीमा का नम्बर लगाया… हैलो। …सर उन पेटियाँ को गोदाम के किसी तहखाने मे रखवाया गया है। बस इतनी बात करके मैने फोन काट कर चल दिया था। हाजी जुबैर मोहम्मद की हत्या की खबर सुनते ही मुझे जन्नत का ख्याल आया था। यही सोच कर मै उसके घर की ओर चल दिया था।

जीप सड़क पर छोड़ कर मै उस गली से जब जन्नत के घर की ओर जा रहा था कि तभी फरहत की पर्दानशींन बीवी अपने घर से निकली थी। हमारी आँखे चार होते ही वह ठिठक कर रुक कर बोली… आप जन्नत से मिलने जा रहे है? मैने झेंपते हुए कहा… तुम कहीं जा रही हो? उसने अपने चेहरे पर पड़ी हुई चिलमन को उठा कर धीरे से कहा… जन्नत अपने घर पर नहीं है। …ओह। वह कब तक वापिस आएगी? …पता नहीं। शायद कभी नहीं। …तुम्हारा क्या नाम है? …आस्माँ। इतना बोल कर वह आगे बढ़ गयी थी। उसके जवाब ने पल भर के लिये मुझे उलझा दिया था। उसको जाते हुए देख कर मै तेज कदमों से चलते हुए उसके पास पहुँच कर बोला… आस्माँ रुको। वह रुक कर मेरी ओर देखते हुए बोली… जल्दी बोलिए, मुझे जाना है। …चलो मै तुम्हारे साथ चलता हूँ। रास्ते मे बात कर लेंगें। यह कह कर मै उसके साथ चल दिया। …जन्नत कहाँ गयी? …पता नहीं। जिस दिन वह जम्मू से लौटी उसी दिन दोपहर को मुझे अपने मकान की चाबी देकर बोली कि उसको काम मिल गया है और वह हमेशा के लिए यह जगह छोड़ कर जा रही है। मैने उससे पूछा भी परन्तु उसने मुझे कुछ नहीं बताया तो मैने समझा कि शायद वह तुम्हारे साथ रहने के लिए चली गयी है। मैने हैरानी से पूछा… यह तुमने कैसे सोच लिया कि जन्नत मेरे साथ रहने के लिए गयी है। …मियाँ, मै अन्धी नहीं हूँ। मुझे पता है कि तुम दोनो के बीच मे क्या चल रहा है। …आस्माँ तुम्हें कोई गलतफहमी हुई है। हमारे बीच मे कुछ नहीं चल रहा है। आस्माँ चिड़ कर बोली… रहने दो, तुम सब मर्द एक जैसे होते हो। यह बोल कर वह आगे बढ़ गयी थी।

मै चुपचाप उसके पीछे चलता हुआ सोच रहा था कि आखिर जन्नत के साथ उस इमाम जुबैर मोहम्मद ने ऐसा क्या किया कि जन्नत के व्यवहार मे इतना बदलाव आ गया था। यहाँ पहुँच कर वह अपने बच्चे को लेकर न जाने कहाँ चली गयी थी? …आस्माँ एक मिनट रुको। मैने पीछे से आवाज दी। वह चलते-चलते रुक गयी और मुड़ कर बोली… समीर अगर मेरा पीछा करना नहीं छोड़ा तो मै शोर मचा दूँगी। मै उसके पास पहुँच कर बोला… मै तुम्हारी मदद करना चाहता हूँ लेकिन तुम भी जन्नत की तरह मुझे धोखा देने की कोशिश कर रही हो। …खुदा के लिए मुझे जाने दो। वह रुआँसी होकर बोली तो मै पल भर के लिए चौंक गया था। पहले मुझे लगा था कि वह ईर्ष्या के कारण ऐसा कर रही थी परन्तु अब मुझे उसकी आवाज मे बेबसी झलक रही थी। मैने जल्दी से कहा… मेरे साथ चलो। तुम्हे जहाँ जाना है मै तुम्हें छोड़ दूँगा। वह चुपचाप खड़ी रही तो एक बार फिर से मैने कहा… अब चलो। अब तुम्हें देर नहीं हो रही। यह बोल कर मै अपनी जीप की ओर चल दिया। वह चुपचाप मेरे साथ चल दी थी। वह चुपचाप जीप मे मेरे साथ बैठ गयी। …कहाँ चलना है? …बस स्टैन्ड की ओर चलो। मैने जीप को बस स्टेन्ड की दिशा मे मोड़ दिया था। …फैयाज और फरहत के बारे मे क्या सोचा? …उनके बारे मे क्या सोचना। उनके साथ हमारा कोई निकाह थोड़े हुआ था। इस रहस्योद्घाटन ने मेरा दिमाग घुमा कर रख दिया था।

दिन मे बस स्टैन्ड की सड़क पर कुछ ज्यादा भीड़ नजर आ रही थी। मेरा सारा ध्यान सड़क पर लगा हुआ था। तभी मुझे अपनी पसली पर किसी धारदार चीज की चुभन महसूस हुई तो मैने चौंक कर अपना हाथ गियर से हटा कर पसली पर लगाते हुए देखा तो आस्माँ ने मीट काटने की छुरी मेरी पसली पर टिका रखी थी। उसके हाथ की मजबूत पकड़ से साफ था कि वह कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार थी। मैने दोनो हाथ स्टीयरिंग पर टिकाते हुए कहा… यहाँ से भागने के लिए पैसों की जरुरत पड़ेगी। तुम्हारे पास पैसे है? मैने बस स्टैन्ड के पास जीप रोक कर अपनी जेब से पर्स निकाल कर सारे नोट आस्माँ की ओर बढ़ाते हुए कहा… यह पैसे यहाँ से भागने मे तुम्हारी मदद कर देंगें। इतनी देर मे पहली बार हमारी निगाहें मिली थी। उसने अभी भी छुरी मेरी पसली पर टिका रखी थी। हम दोनो एक दूसरे को कुछ पल देखते रहे फिर वह मेरे हाथ से सारे नोट लेकर जीप से उतर कर बोली… शुक्रिया। …आस्माँ, मेरा फोन नम्बर रख लो। अगर किसी मुसीबत मे पड़ जाओ तो खबर कर देना। मैने एक कागज पर अपना नम्बर लिख कर उसकी ओर बढ़ाया तो वह एक पल के लिये मुझे देखती रही और फिर धीरे से बोली… अफसोस आपने हमको अभी तक नहीं पहचाना। मैने चौंक कर उसकी ओर देखा तो वह दबी हुई आवाज मे बोली… किश्तवार। बस इतना बोल कर वह मुड़ी और तेज कदमों से चलते हुए बस स्टैन्ड की भीड़ मे खो गयी और मै वहीं जीप मे बैठ कर उस कठुआ की घटना को याद कर रहा था।

बहुत से प्रश्नों के सवाल के जवाब अभी मुझे ढूँढने थे। कुछ समय जन्नत के साथ बिता कर एक बात तो मै समझ चुका था कि वह हर्गिज़ वैसी नहीं थी जैसा वह दिखा रही थी। जन्नत और आस्माँ का संबन्ध का खुलासा होने के बाद तो मै और भी ज्यादा उलझ कर रह गया था। पता नहीं क्यों मेरा अन्तर्मन बार-बार उन दोनो की मदद करने के लिए कह रहा था। जिस्मानी सुख की चाह और अन्तर्मन की आवाज के फर्क को अंजली ने मुझे भली भाँति समझा दिया था। यही सोचते हुए मै कोम्पलेक्स की ओर जा रहा था कि तभी ब्रिगेडियर चीमा का फोन आया… मेजर कहाँ हो? …सर रास्ते मे हूँ। कोम्पलेक्स जा रहा हूँ। …तुम अभी तक बाहर घूम रहे हो। फौरन जीओसी के आफिस मे रिपोर्ट करो। स्वत: मेरा पाँव एक्सेलेटर पर दब गया और जीप की गति बढ़ गयी थी। मै सीधे घर गया और जल्दी से युनीफार्म पहन कर जीओसी जनरल नायर के आफिस की ओर चला गया। जब मै उनके आफिस मे दाखिल हुआ तो वहाँ तो उच्चाधिकारियों की पूरी जमात बैठी हुई थी। 15 कोर की कमान संभाल रहे लेफ्टीनेन्ट जनरल नायर और चार अन्य अधिकारी सोफे बैठे हुए थे। ब्रिगेडियर चीमा एक किनारे मे खड़े हुए थे। मैने कमरे मे घुसते से ही मुस्तैदी के साथ सैल्युट किया और सावधान की मुद्रा मे खड़ा हो गया।

…बैठिए मेजर। लेफ्टीनेन्ट जनरल की आवाज कमरे मे गूंजी तो मै चुपचाप एक खाली कुर्सी पर बैठ गया। मेरे लिए खतरे की घंटी बज उठी थी। …मेजर, एक बार पहले भी आपके कारण यहाँ भूचाल आ गया था। आज एक बार फिर से आपने पूरी कमांड को यहाँ की सरकार के सामने खड़ा कर दिया है। आपको क्या कहना इस बारे मे? मुझे कुछ समझ मे नहीं आया था। …सर, मेरा ऐसा कोई मकसद नहीं था। मेरे पास पुख्ता खबर थी कि सेब के व्यापार की आढ़ मे सीमा पार से अवैध हथियारों का जखीरा जम्मू जा रहा है। उसके बाद जो कुछ हुआ वह ब्रिगेडियर चीमा को पता है। बस इतना बोल कर मै चुप हो गया था। ब्रिगेडियर चीमा ने कहा… सर, अलगावादियों और उनको कवर देने वाले राजनीतिज्ञों के बीच समन्वय को नष्ट करने के लिए मेजर बट ने यह किया था। मै भी इसकी योजना से सहमत था लेकिन मै इसमे आर्मी को नहीं उलझाना चाहता था। इसीलिए यह मेरा निर्णय था कि स्थानीय प्रशासन के द्वारा इस साजिश का पर्दाफाश होना चाहिए। मैने यह नहीं सोचा था कि इसके तार सीधे मुख्यमंत्री के साथ जुड़े हुए थे। इतना बोल कर ब्रिगेडियर चीमा चुप हो गये परन्तु मुख्यमंत्री की बात सुन कर एक पल के लिये मै चौंक गया था।

जनरल नायर घुर्राते हुए बोले… ब्रिगेडियर शर्मा आपकी इन्टेलिजेन्स क्या कर रही है? आपकी नाक के नीचे से दो बार सीमा पार से अवैध रुप से असला बारूद लाया गया और आपको इसके बारे मे कोई खबर नहीं है। आप्रेशन्स के लोग अब इन्टेलीजेन्स का काम बखूबी कर रहे है तो आपका नेटवर्क क्या कर रहा है? मैने ब्रिगेडियर शर्मा की ओर देखा तो वह मुझे घूर रहे थे। मैने जल्दी से कहा… सर मुझे कुछ बोलने की इजाजत चाहिए। इशारा मिलते ही मैने कहा… यह काम इन्टेलीजेन्स नेटवर्क के द्वारा तो हो ही नहीं सकता था। मुझे यह सब सिर्फ इसलिए पता चल सका क्योंकि मै यहीं पला बड़ा हुआ हूँ। मेरे पास इसकी जानकारी मेरे बचपन के दोस्तों से अनायस मिली थी। वह नहीं जानते है कि मै फौज मे हूँ। उन्होंने भी कोई सीधे जानकारी नहीं दी थी परन्तु उनसे मिली हुई जानकारी और इंटेल की रिपोर्ट्स के आंकलन के कारण ही मै इस काम मे सफल हुआ था। इसीलिए एमआई का काम किसी भी तरह से कम करके नहीं आंका जा सकता है। यह बोल कर मै चुप हो गया। कुछ देर तक सभी लोग मेरे काम के परिणामस्वरुप सरकार मे आये हुए भूचाल से निबटने की चर्चा करने व्यस्त हो गये थे। आखिरकार लेफ्टीनेन्ट जनरल नायर खड़े होकर बोले… आज के हालात पर गवर्नर के साथ मेरी मीटिंग है। यह बोल कर वह बाहर चले गये और उनके पीछे-पीछे सभी लोग भी बाहर निकल गये थे।  

ब्रिगेडियर चीमा अपनी सीट पर बैठते हुए बोले… मेजर, आज तुमने अब्दुल लोन को ही नहीं अपितु मुख्यमंत्री को भी फंसा दिया है। जिस गोदाम को तुम अब्दुल लोन का गोदाम समझ रहे थे वह असलियत मे मुख्यमंत्री का गोदाम था। उस तहखाने मे तुम्हारी पेटियों के साथ ड्र्ग्स का भारी जखीरा भी मिला था। पुलिस को भी यही लगा था कि अब्दुल लोन का गोदाम है लेकिन जब तक माल जब्त करके अब्दुल लोन के खिलाफ कार्यवाही हो रही थी कि तभी मुख्यमंत्री का निजि सचिव आ धमका था। उसने पुलिस को कार्यवाही करने से मना किया परन्तु हमारे सामने वह ऐसा नहीं कर सकते थे। इसीलिए उन्होंने कार्यवाही पूरी करके सारा माल और हथियार जब्त कर लिये थे। वहाँ उपस्थित सभी लोगों को भी हिरासत मे ले लिया था। दोपहर को अब्दुल लोन सामने आकर बोला कि वह गोदाम उसका नहीं है। शाम को मुख्यमंत्री ने सामने आकर कहा कि वह गोदाम उसने अब्दुल लोन को किराये पर दिया था। पुलिस एक ही पार्टी के दो दिग्गज नेताओं की आपसी लड़ाई मे फँस गयी है। अब विपक्ष ने सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। तुम्हारा काम तो हो गया क्योंकि उनमें फूट पड़ गयी लेकिन राज्य सरकार मे भूचाल आ गया है।

…सर, इमाम जुबैर की हत्या के बारे मे किससे बात करनी चाहिए? …क्या करने की सोच रहे हो? …सर, मुझे उसकी हत्या की एफआईआर की कापी चाहिए। ब्रिगेडियर चीमा ने कुछ सोच कर किसी को फोन किया और फिर बात करने के बाद बोले… कुछ देर मे फैक्स पर रिपोर्ट की कापी मिल जाएगी। जुबैर का क्या चक्कर है? …सर, पुरानी इंटेल रिपोर्ट्स देख रहा था तो पता चला कि गंदरबल और किश्तवार मे हुए कत्लेआम मे इसके हाथ होने का शक है। हाल ही मे मुझे पता चला है कि यह जम्मू मे व्यापक तौर पर लव जिहाद के लिए कालेज और स्कूल के लड़कों को प्रलोभन दे रहा था। यह बता कर मैने उस दिन जो मस्जिद मे सुना था वह सब बताने के बाद कहा… इसकी हत्या होने से मेरी योजना की एक कड़ी टूट गयी है। मै जानना चाहता हूँ कि इसकी हत्या के पीछे कौन था। अगर इसकी हत्या के पीछे बदले की मंशा थी तो कोई बात नहीं लेकिन अगर तंजीमों के बीच आपसी रंजिश का मामला है तो फिर अब सुरक्षा एजेन्सियों के लिए दुगना खतरा उत्पन्न हो गया है। हम बात कर रहे थे कि जम्मू से फैक्स आ गया था। मैने फैक्स लिया और ब्रिगेडियर चीमा को शुक्रिया कह कर चलने लगा तो उन्होंने कहा… मेजर गुड जाब एन्ड वेल डन। बहुत बड़ा खतरा टल गया।

अंधेरा हो गया था। मै भी घर की ओर चल दिया। आलिया से सुबह से बात नहीं हुई थी। वह भी मेरे इंतजार मे बैठी हुई थी। मुझे देखते ही बोली… समीर सुबह से कहाँ थे। बीच मे कब आये और कब चले गये पता ही नहीं चला। बडगाम मे क्या हुआ? चाय पीते हुए मैने सारी कहानी सुनाने के बाद कहा… यह तो अनजाने मे दोनो के बीच मे फूट पड़ गयी है। मै तो गोल्डन ट्रांस्पोर्ट कंपनी के मालिक अब्दुल रज्जाक सैयद और अब्दुल लोन के बीच मे फूट डालना चाहता था। मै सोच रहा हूँ कि किसी तरह मुख्यमंत्री को खबर पहुँचा दूँ कि इसके पीछे अब्दुल रज्जाक का हाथ है तो मुख्यमंत्री उसकी खाल खिंचवा देगा। …समीर, मुख्यमंत्री को खबर करने का सबसे अच्छा तरीका अब्बू है। अगर उन तक यह खबर पहुँच गयी तो वह तुरन्त मुख्यमंत्री को खबर कर देंगें। …उन तक कैसे इस बात को पहुँचाएँ। मेरी बात सुन कर अबकी बार आलिया के चेहरे पर मुस्कान और आँखों मे चमक आ गयी थी। वह कुछ बोलती तभी मैने कहा… अम्मी। उसने सिर्फ सिर हिला दिया था। …नहीं इस काम मे अम्मी को मै नहीं डाल सकता। कोई और तरीका सोचना पड़ेगा।

हमने बात करते हुए खाना खाया और फिर बेडरुम मे चले गये थे। मैने फैक्स निकाल कर पढ़ना शुरु किया। उसकी विकृत लाश अगले दिन सुबह मिली जब उसके कमरे की सफाई करने के लिए मस्जिद का चौकीदार आया था। उसी ने बताया था कि किसी ने इमाम साहब को सुबह आते हुए नहीं देखा था। पिछली शाम को कुछ कालेज के लड़के मिलने आये थे उसके बाद इमाम साहब घर चले गये थे। उनके घरवालो ने बताया था कि वह रात को घर नहीं आये थे लेकिन ऐसा तो पहले भी कई बार हुआ था। इमाम साहब ने किसके साथ रात बिताई थी इसका किसी को पता नहीं था। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट का इंतजार है। बस इतना ही फैक्स मे लिखा हुआ था। जन्नत और मेरे बारे मे उस रिपोर्ट मे कहीं कोई जिक्र नहीं था। इसका सिर्फ मुझे एक ही कारण लगा कि जन्नत के बारे मे न बता कर वह बूढ़ा चौकीदार इमाम जुबैर की काली करतूत पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहा था। …समीर, अब पढ़ना बन्द करो। मैने आलिया की ओर देखा तो वह मदभरी अंगड़ाई ले रही थी। उसका रुप दिन प्रति दिन निखरता जा रहा था। उसका सीना और नितंब भी भारी होने लगे थे। मैने फैक्स को पास रखे हुए स्टूल पर रख दिया और करवट लेकर आलिया को अपनी बाँहों मे जकड़ कर कहा… आलिया आज तुम्हारी खैर नहीं। हमेशा की तरह कुछ ही देर में वह मुझ पर हावी हो गयी थी।

सुबह के अखबार को पढ़ कर कल की सारी राजनीतिक उठापटक की कहानी का पता चल गया था। जब तक मै तैयार होकर आफिस जाने के लिए बाहर निकला तो आलिया ने मेरा रास्ता रोक कर एक कागज मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा… यह अब्बा का फोन नम्बर है। अगर अम्मी को बीच मे नहीं डालना चाहते तो तुम कहो तो मै उन्हें खबर कर देती हूँ। …नहीं आलिया। हम मे से कोई उनको खबर नहीं करेगा। तुमने यह नम्बर कहाँ से लिया है? …शाहीन से। मैने उसे रात को इसके बारे मे बताया था तो उसने सुबह अपने अब्बा की डायरी से यह नम्बर निकाल कर मुझे दे दिया था। मैने उसके हाथ से कागज लेकर अपनी जेब मे रखते हुए कहा… आलिया आज मै शबनम से मिलने जा रहा हूँ। आलिया ने आँखें तरेरते हुए कहा… कोई फालतू का वादा मत कर बैठना। तुम्हारी सारी जरुरतों के लिये मै हूँ। मैने उसके गाल पर चिकौटी काट कर कहा… उस से मिलने की सिर्फ एक ही वजह है कि वह मुझे आज उन नामों की लिस्ट दे रही है जिन बागों से सेब के साथ मुश्ताक डार ओवरबिलिंग करता है। तुम चलना चाहो तो तुम भी चलो। आलिया एक पल के लिये कुछ कहने के लिये झिझकी फिर बोली… आज नहीं समीर, बस उससे कोई झूठा वादा मत कर देना। वह बेचारी अच्छी लड़की है और मुझे लगता है कि वह तुम पर मर मिटी है। …आलिया, मै जानता हूँ इसीलिये आज मिल कर उसकी सारी गलतफहमी दूर कर दूंगा। आलिया को वहीं छोड़ कर मै शबनम से मिलने के लिये चल दिया।

शबनम अपने आफिस के नीचे उसी बस स्टैन्ड पर मेरा इंतजार कर रही थी। मेरी जीप देखते ही वह सड़क पर आ गयी थी। जीप रुकते ही वह मेरे साथ बैठ गयी थी। आज वह बेहद खुश लग रही थी। …शबनम, मेरी लिस्ट लायी हो। उसने बिना कुछ बोले अपने पर्स से एक मुड़ा हुआ कागज मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा… समीर, मैने आज पहली बार ऐसा काम किया है। अगर किसी को पता चल गया तो मेरा क्या होगा। …शबनम, अगर यह जरुरी नहीं होता तो यह काम करने के लिये मै तुमसे कभी नहीं कहता। मैने जीप सड़क के किनारे पर रोक कर खड़ी कर दी और उस कागज को खोल कर उस पर लिखे हुए नाम पढ़ने लगा। उस पर छ: नाम लिखे हुए थे। उन सभी फ़ार्म्स के मालिकों मै जानता था। सभी समाज के बड़े घरानो से जुड़े हुए थे। …आफिस मे क्या बोल कर आयी हो? शबनम ने सिर झुका कर कहा… आज मैने तबियत खराब होने के कारण छुट्टी ली है। समीर, हम कहाँ जा रहे है? एक पल के लिये मै कुछ बोलते-बोलते रुक गया क्योंकि आलिया की बात मुझे याद आ गयी थी। अपने आप को संभालते हुए मैने जीप को आगे बढ़ाते हुए कहा… कहीं बैठ कर तुमसे बात करना चाहता हूँ। वह जल्दी से बोली… तो चलो मै बताती कि कहाँ चले। …कहाँ? …तुम चलो, मै तुम्हें रास्ता बताती हूँ। यह बोल कर वह मुझे रास्ता बताने लगी और मै उसके बताये हुए रास्ते पर चल दिया।

कुछ देर मे हम एक ऊँची पहाड़ी की चोटी पर पहुँच गये थे। …यह कौनसी जगह है। …चलो तो सही। मै बताती हूँ। मैने जीप एक ओर खड़ी की और उसके साथ चल दिया। मै पहली बार यहाँ आया था। वहाँ से सारा श्रीनगर शहर दिख रहा था। अचानक मेरे कान मे घंटियों का शोर पड़ा और तभी सामने एक मन्दिर का द्वार दिखा तो मैने पूछा… यह तुम कहाँ लेकर आ गयी। …यह शंकराचार्य का मंदिर है। …तो क्या तुम मुझे मंदिर लेकर जा रही हो? …नहीं तुम चलो तो सही। इतना बोल कर वह आगे बढ़ गयी और मंदिर की दीवार के साथ चलते हुए चट्टानों के बीच से निकल कर एक ऐसी जगह ले आयी जहाँ से पूरी वादी आँखों के सामने थी। ठंडी हवा पूरे वेग से चल रही थी। संभल कर हुए चलते हुए वह एक चट्टान पर बैठ कर बोली… यहाँ से देखो तो पूरी वादी हमारे सामने है। मै उसके साथ जाकर बैठ गया। सच मे वहाँ से श्रीनगर का बेहद सुन्दर नजारा दिख रहा था। एक ओर डल झील और शिकारे दिख रहे थे और दूसरी ओर शहर की असंख्य आबादी मेरे सामने थी। हजरत बल का गुम्बद और बिना छ्त की जामिया मस्जिद भी हमारी आँखों के सामने थी। शबनम मेरे निकट आ गयी और मेरी बाँह पकड़ कर मेरे कंधे पर सिर रख कर बोली… यह जगह कैसी लगी? मैने कोई जवाब नहीं दिया लेकिन उसकी दिल की धड़कन को हर पल महसूस कर रहा था।

…शबनम। वह किसी और ही सोच मे गुम थी। एक बार फिर से मैने कहा… शबनम तुम मेरे बारे मे कितना जानती हो? वह एकाएक संभल कर बैठ कर बोली… तुम्हें बचपन से जानती हूँ। मै तुम्हारी बहन आफशाँ और अदा के साथ पढ़ती थी। …बस इतना ही या और कुछ और भी जानती हो? अबकी बार उसकी आँखों मे एक भय झलक रहा था। …तुम क्या कहना चाहते हो? …यही की मै जानता हूँ कि तुम्हारे मन मे क्या चल रहा है परन्तु मै चाहता हूँ कि आगे बढ़ने से पहले अच्छी तरह से सोच लो कि तुम्हारे लिये क्या अच्छा होगा। अब वह सजग होकर सुन रही थी। …यह सही है कि हमारे सेब के बाग है परन्तु तुम्हारे लिये यह जानना जरूरी है कि मै भारतीय फौज मे काम करता हूँ। एक साथ ही उसका चेहरा कुम्हला गया था। मैने उसके सामने अपना परिचय पत्र दिखाते हुए कहा… जिस ‘रेड बेरट’ की चर्चा यहाँ खूनी दरिंदों के नाम से होती है मै भी उनमे से एक हूँ। पता नहीं कब किस मुठभेड़ मे जिंदगी की शाम हो जाए मुझे पता नहीं लेकिन कुछ भी निर्णय लेने से पहले तुम ठंडे दिमाग से सोच लो। यह सच्चायी मै तुम पर कभी जाहिर न करता लेकिन तुम  बेहद जहीन और अच्छी लड़की हो और मै नहीं चाहता कि तुम किसी मुगालते मे रहो। इतना बोल कर मै चुप हो गया और सामने वादी को निहारने लगा। वह कुछ देर चुप बैठी रही और फिर धीरे से बोली… अगर फिर भी मै तुमसे मिलना चाहूँगी तो तुम्हारा क्या जवाब होगा? अबकी बार मैने उसके कुम्हलाये हुए चेहरे को अपने हाथों मे लिया और उसकी आँखों देख कर मुस्कुरा कर कहा… फिर कौन अहमक होगा जो ऐसी खूबसूरती पर फिदा न हो जाएगा। मेरी बात सुन कर उसका चेहरा खिल उठा था। वह कुछ बोलने को हुई लेकिन मैने उसके होंठों पर उँगली रख कर कहा… आराम से ठंडे दिमाग से सोच कर जवाब देना। हमारी दोस्ती तो आज से शुरु हुई है। बस इतनी बात करके हम वापिस चल दिये थे। उसके घर के पास छोड़ते हुए एक बार फिर से मैने कहा… ठंडे दिमाग से सोच कर ही अपना जवाब देना। वह मुस्कुरा कर बोली… दिल है कि मानता नहीं। मैने सिर की ओर इशारा करते हुए कहा… लेकिन इस मामले मे दिमाग का इस्तेमाल करना। बस इतनी बात करके मै कोम्प्लेक्स की दिशा मे चल दिया था।

मंगलवार, 29 नवंबर 2022

 

 

   काफ़िर-18

 

मै अपने आफिस मे बैठ कर पुरानी इंटेल रिपोर्ट्स देख रहा था। नीलोफर नाम को मैने बहुत पहले एक इंटेल रिपोर्ट मे देखा था। लोन परिवार से जुड़े होने के कारण अचानक नीलोफर मेरी निगाह मे आ गयी थी। एमआई की रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान मे एक यूएस एयरबेस पर सुसाईड बाम्बर के हमले की जाँच मे उसका नाम आया था। वह लड़की पाकिस्तानी मूल की थी। उस हमले के बाद से वह लड़की पाकिस्तान से फरार हो गयी थी। सीआईए ने उसको ब्लैक लिस्ट मे डाल कर इसकी जानकारी औपचारिक तौर पर भारतीय आईबी को भी दे दी थी। उसी रिपोर्ट का जिक्र करते हुए आर्मी की इंटेल रिपोर्ट मे बताया गया था कि वह लड़की मदरसों के जरिये गरीब बच्चों और बच्चियों के आत्मघाती दस्ते बनाया करती थी। आज नेमप्लेट पर उस नाम को देखते ही मुझे वह रिपोर्ट याद आ गयी थी। नीलोफर की तीन रिपोर्ट्स मेरे सामने मेज पर पड़ी थी। उन रिपोर्ट्स मे बस उसका और उसके कार्यों का विवरण दिया हुआ था परन्तु उसकी कोई फोटो नहीं थी। जो नीलोफर का विवरण मेरे सामने रखा हुआ था और जिस नाजनीन को मैने लोन के आफिस मे देखा था उनमे मुझे कोई समानता नहीं दिख रही थी।

बहुत देर एमआई के डेटाबेस के साथ मगजपच्ची करने के बाद भी जब मैं किसी नतीजे पर नहीं पहुँचा तो मैने अम्मी को फोन किया… हैलो। अम्मी की आवाज सुनते ही मैने कहा… अम्मी, मै समीर बोल रहा हूँ। …बोलो बेटा कैसे फोन किया था। …अम्मी हमने चारों इन्वोईस पर आठ लाख का बिल अब्दुल लोन के आफिस मे आज दे दिया है। …बेटा अच्छा किया क्योंकि तुम्हारे अब्बा काम के बारे मे पूछ रहे थे। …अम्मी आप क्या कभी नीलोफर लोन से मिली है? …यह कौन है बेटा? …वह हमें अब्दुल लोन के आफिस मे मिली थी और वह सेब का कारोबार संभालती है। वह अपने आप को मिसेज लोन बता रही थी। …बेटा, अब्दुल लोन की बीवी को मरे हुए दस साल से ज्यादा हो गये है। तुम्हें कोई गलतफहमी हो गयी होगी। …हो सकता है अम्मी। फिलहाल मै आफिस से बोल रहा हूँ। अच्छा खुदा हाफिज़। कह कर मैने फोन काट दिया था।

यह नीलोफर लोन किसकी बीवी है? यह सवाल मेरे दिमाग मे घूम रहा था। घड़ी पर नजर डाली तो आफिस समाप्ति का समय हो गया था। अपना आफिस बन्द करके मै बाहर निकल आया था। घर पहुँच कर भी मै नीलोफर को अपने दिमाग से निकाल नहीं पाया था। आलिया के साथ बैठ कर चाय पीते हुए मैने नीलोफर लोन का जिक्र आलिया से छेड़ दिया था। अम्मी से हुई बातों से उसे अवगत करा कर मैने पूछा… नीलोफर के बारे मे कौन बता सकता है? …शाहीन से पूछ कर देखते है। यह बोल कर आलिया ने शाहीन का फोन लगाया और बात करने बैठ गयी। कुछ देर के बाद आलिया ने कहा… लोन परिवार के बारे मे वह ज्यादा नहीं जानती है लेकिन उसने बताया है कि आजकल उसके अब्बा की हालत ठीक नहीं है। सुबह से लोगों का तांता घर मे लगा हुआ है। अब्बा भी आज हाजी साहब से मिलने के लिये आये थे। …आलिया, अगली बार जब तुम अब्दुल लोन के आफिस जाओ तो नीलोफर से जरुर मिलना। आलिया ने कुछ नहीं कहा बस उसने अपना सिर हिला दिया था। बड़ी अजीब बात थी कि कश्मीर की राजनीति व कारोबार मे दबादबा होने के बावजूद लोन परिवार के बारे मे जानकारी का आभाव था।

…समीर, एक बात और शाहीन ने बतायी थी कि उसके भाईजान ब्लास्ट के बाद से गायब है। इस वजह से उसके परिवार वाले बड़े चिंताग्रस्त है। पुलिस ने उसके अब्बा का जीना हराम कर रखा है। वह रोज पूछताछ करने के लिए आ जाते है। …यह तो होना ही था। तुमने अपनी आँखों से देखा था कि उस कमरे मे कितना असला बारुद रखा हुआ था। …समीर यह सारा सामान भला पाकिस्तान से यहाँ तक कैसे पहुँच गया क्योंकि यहाँ से अपने घर पहुँचने मे हमारी जीप की दस जगह जाँच हो जाती है। इसका तो यही मतलब निकाला जा सकता है कि सरकार और प्रशासन की देख रेख मे ही यह सारा सामान मस्जिद पहुँचा होगा। …तुम ठीक कह रही कि बिना इनके साथ साँठ-गाँठ किये वह असला बारुद मस्जिद तक नहीं पहुँच सकता था।। परन्तु मेरे लिये चिंता की दूसरी बात है कि इतने असले बारुद से वह भारतीय फौज से तो टक्कर नहीं ले सकते थे तो उनका असली उद्देश्य क्या था। आलिया मुझे हैरतभरी नजरों से देखती रह गयी परन्तु मेरे दिमाग मे बहुत से सवाल उठ रहे थे परन्तु जवाब किसी एक का भी नहीं था।

अगले कुछ दिन आफिस मे इंटेल रिपोर्ट्स के साथ जूझते हुए निकल गये थे। जब से जामिया मस्जिद मे ब्लास्ट हुआ था तब से पाकिस्तान और कश्मीरी तंजीमो के बीच मे काफी हलचल मची हुई थी। इसी के कारण कश्मीर के सभी हिस्सों मे पत्थरबाजी और फौज के खिलाफ मोर्चों की घटनाएँ भी बढ़ गयी थी। इसी दौरान एक दिन शाम को शबनम से हमारी मुलाकात हुई थी। मुझे वह बातचीत से काफी संजीदा लड़की लगी थी। उस दिन मुझे पता चला था कि वह अदा के साथ दसवीं क्लास तक पढ़ी थी। मुझे लग रहा था कि आलिया के साथ उसकी दोस्ती प्रगाड़ होती जा रही थी। उस से विदा लेकर जब हम लौट रहे थे तब आलिया ने कहा… लगता है समीर वह तुम पर मर मिटी है। मैने उस वक्त तो आलिया को झिड़क दिया था लेकिन अगले दिन जब उसने मेरे मोबाईल पर काल किया तो मै उसके प्रति थोड़ा असहज हो गया था। उसकी काल तो पेमेन्ट के सिलसिले मे आयी थी परन्तु उसकी बातचीत से साफ लग रहा था कि वह मुझसे कुछ और कहना चाहती थी। उसी दिन मैने मन ही मन उससे दूरी बनाने का निर्णय ले लिया था।

आफिस मे दो दिन सारी इकठ्ठी की हुई जानकारी को समेटने मे निकल गये थे। मेरे निशाने पर चार सेब के मुख्य व्यापारी और लगभग पाँच मुख्य ट्रांसपोर्टर आ गये थे। बस एक काम शेष था कि इस कारोबारी साजिश का मुख्य सूत्रधार कौन था? यह जानकारी मुझे सिर्फ व्यापारियों और ट्राँस्पोर्टरों के आफिस से ही मिल सकती थी। एक बार फिर अब मुझे शबनम की जरुरत महसूस होने लगी थी। एक शाम आलिया ने मुझसे कहा… समीर, जन्नत का आज फिर फोन आया था। वह तुमसे किसी जरुरी काम से आज मिलना चाहती है। एक बार उससे मिलने मे क्या बुराई है। फरहत की ओर से भी कोई समाचार अभी तक नहीं मिला था। इसी बहाने दोनो मिल जाएँगें यही सोच कर उस शाम हम दोनो जन्नत से मिलने के लिए चल दिये थे। जब हम फरहत के घर पहुँचे तो उसकी बीवी ने बताया कि वह आज दोपहर को ही ट्रक लेकर श्रीनगर से बाहर गया था। जब आलिया ने जन्नत का पता पूछा तो उसने इशारे से जन्नत का घर दिखा दिया था। उसको वहीं छोड़ कर हम जन्नत के घर की ओर बढ़ गये थे। हम जन्नत के घर पहुँचे तो वह अपने नवजात शिशु को दूध पिला रही थी। उसको इस हालत मे देख कर हम दोनो झेंप कर वापिस जाने के लिये मुड़े तो उसने आवाज देकर हमे रोक लिया।  

…आप अन्दर आ जाईए और यहीं बैठ जाईए। यह कह कर जन्नत ने अपनी गोदी से दूध पीते हुए बच्चे को हटा कर जमीन पर लिटा दिया और अपने सुडौल नग्न स्तन का प्रदर्शन करते हुए बेशर्मी से बोली… यह दूध से भरे हुए हैं और कम्बख्त पूरा पीता ही नहीं है। अपने फूले हुए स्तनाग्र को दबा कर दूध टपकाते हुए उसने एक लम्बी आह भरी और फिर धीरे से बोली… इनमें बहुत दर्द रहता है। जब से वह कमबख्त जेल गया है तब से ऐसा कोई नहीं है जो इनसे पूरा दूध सोख ले। हाय अल्लाह कैसे पत्थर से हो गये है। आलिया की ओर देख कर वह बोली… आलिया बीबी, हाथ लगा कर देखिए। आलिया एक पल के लिए झिझकी और फिर आगे बढ़ कर उसके स्तन पर उँगलियॉ फिराते हुए बोली… बाजी सच मे पत्थर सा सख्त है। उसके फूले हुए स्तनाग्र से दूध टपक रहा था। आलिया धीरे से उस फूले हुए स्तनाग्र को छेड़ते हुए बोली… तो फिर तुम इसका दर्द कैसे कम करती हो? वह मेरी ओर बेशर्मी से आँख मार कर बोली… कोई मर्द जब इनसे सारा दूध निचोड़ लेगा तो दर्द अपने आप समाप्त हो जाएगा। एजाज जब यहाँ था तो बचा हुआ दूध वह पी जाता था परन्तु अब किससे कहूँ। ऐसी हालत मे मेरी कौन मदद करेगा?

मेरे लिए अब यह दृश्य असहनीय होता जा रहा था। मैने जल्दी से कहा… तुम मुझसे क्यों मिलना चाहती थी? वह मेरी ओर देखते हुए बोली… मुझे एजाज से मिलने जम्मू जाना है। उसने मुझे बुलाया है। क्या आप मेरे साथ चल सकते है? मै कोई जवाब देता उससे पहले आलिया ने कहा… हाँ क्यों नहीं। समीर, एक दिन की तो बात है। रात को बस पकड़ कर सुबह जम्मू पहुँच जाएँगें और दिन भर एजाज भाई के साथ बिता कर रात को श्रीनगर के लिए चल देंगें। …आलिया मेरे पास समय नहीं है। अगर इनकी पैसों की समस्या है तो वह मै इन्हें दे सकता हूँ। यह किसी और को अपने साथ लेकर चली जाए। आलिया तुनक कर बोली… समीर, मै जन्नत के साथ जा रही हूँ। तुम्हे नहीं चलना तो कोई बात नहीं। जन्नत कब जाना है? …एजाज से कल सुबह मिलने का समय मिला है। आलिया जानती थी कि मै उसे कभी अकेले इसके साथ नहीं भेज सकता था। बात बिगड़ती देख कर मैने जल्दी से कहा… आलिया मै सिर्फ एक ही शर्त पर जन्नत के साथ जाऊँगा कि तुम हमारे साथ नहीं जाओगी। वह तुरन्त बोली… मै क्यों नहीं जा सकती? …आलिया, जेल मे मिलने जाना किसी भी लड़की के लिए वैसे ही बेहद अपमानजनक होता है। वह न जाने तुम्हारे साथ किस तरह से पेश आएँगें। जन्नत उसकी बीवी की हैसियत से जा रही है तो शायद वह कुछ न करें परन्तु तुम किस हैसियत से उससे मिलने जाओगी। मै तुम्हें तो वहाँ हर्गिज जाने नहीं दे सकता। अब तुम सोच लो। मैने उसको अपना निर्णय सुना दिया था।

आलिया ने मुझे बाहर जाने का इशारा किया तो मै चुपचाप उठ कर बाहर निकल गया। कुछ देर के बाद आलिया घर से बाहर निकल कर आयी और मेरे पास आकर बोली… चलो फरहत की बीवी के पास चलते है। मै उसके साथ फरहत के घर की ओर चल दिया। फरहत की बीवी अपने घर के बाहर ही खड़ी थी। आलिया उसके पास जाकर बोली… बाजी कल सुबह जन्नत को जम्मू जेल मे एजाज से मिलना है। क्या तुम उसके बच्चे को एक दिन के लिए अपने पास रख लोगी? वह कुछ सोच कर बोली… कोई बात नहीं। मै अपने पास रख लूँगी। क्या आप दोनो भी उसके साथ जा रहे है? आलिया ने मेरी ओर इशारा करके कहा… वह समीर के साथ जा रही है। अचानक उसने निगाह उठा कर मेरी ओर देखा तो जैसे ही हमारी आँखें चार हुई तो मैने झेंप कर नजरें घुमा ली थी। मुझे उसकी आँखों मे चंचलता और उपहास का मिश्रण दिखा था। मैने जल्दी से आलिया से कहा… अब चलें क्या? …ठहरो। जन्नत अभी आ रही है। कुछ देर के बाद बुर्का ओढ़े हाथ मे बच्चा लिये जन्नत आती हुई दिखाई दी तो आलिया ने कहा… आओ चलें। फरहत की बीवी को खुदा हाफिज़ कह कर मै सड़क की ओर चल दिया था।

कुछ देर के बाद आलिया और जन्नत को अपने साथ लेकर मै घर की दिशा मे जा रहा था। …कहाँ जा रहे हो? …तुम्हें अम्मी के पास छोड़ कर हम टैम्पो से बस स्टैन्ड चले जाएँगे। घर पहुँच कर मैने जीप एक किनारे मे खड़ी करके उसकी चाबी आलिया को देते हुए कहा… परसों सुबह तक लौट आऊँगा। वह गेट खोल कर घर के अन्दर चली गयी और जन्नत के साथ मै सड़क की ओर चल दिया था। बाहर सड़क पर पहुँचते ही हमे टैम्पो मिल गया था। हमे बस स्टैन्ड पहुँचने मे ज्यादा समय नहीं लगा था। अंधेरा गहरा हो गया था। बस स्टैंड पर भी कोई ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी। पूछने पर पता चला कि जम्मू की बस रात को दस बजे छूटेगी। दो टिकिट लेकर मै जन्नत के पास पहुँच कर बोला… अभी एक घन्टा है। कुछ खा लो क्योंकि फिर सारी रात सफर करना है। वह कुछ नहीं बोली बस उठ कर मेरे साथ चल दी थी। मैने एक बात नोट की थी कि मुझे पता नहीं कि आलिया और उसके बीच मे क्या बात हुई थी लेकिन वह जब से घर से चली थी तब से वह चुप थी। अब मै भी उसकी ओर से थोड़ा सहज हो गया था। खाना खा कर हम वापिस बस स्टेन्ड मे आ गये थे। जम्मू जाने वाली बस तब तक प्लेटफार्म पर लग गयी थी।

बस मे अभी इक्का-दुक्का सवारी बैठी थी। बस मे घुसते ही जन्नत ने पहली बार धीरे से कहा… आप खिड़की के पास बैठ जाईए। मुझे बाहर देखने से चक्कर आते है। मै खिड़की की तरफ बैठ गया और वह मेरे साथ बैठ गयी थी। बस चलने के समय तक देखते-देखते आधी बस भर गयी थी। ठीक दस बजे बस जम्मू के लिए रवाना हो गयी थी। जब तक श्रीनगर शहर को पार किया तब तक तो बस रौशन रही थी लेकिन शहर से बाहर निकलते ही सारी लाइट बुझा कर बस घुप्प अंधेरे मे डूब गयी थी। बस का लगातार शोर और बार-बार के दचके ने आधे घंटे मे ही सारे जिस्म की चूलें हिला दी थी। जन्नत ने धीरे से मेरे कान मे कहा… मेरे सीने मे बहुत दर्द हो रहा है। कुछ कीजिए। मुझे समझ मे नहीं आया कि वह क्या करने के लिए कह रही है। एक बार फिर से वह मेरे कान मे बोली… आप दूध पी लिजिए। मैने उसकी ओर घूर कर देखते हुए कहा… यहाँ पर। …आप लेट कर मेरी गोदी मे सिर रख लिजिए। यह बोल कर उसने अपने बुर्के के हुक खोल दिये थे। मैने एक नजर घुमा कर अपने सहयात्रियों को देखा तो कुछ आँख मूंद कर बैठे हुए थे और कुछ खाली सीट पर लम्बे हो गये थे। मैने झिझकते हुए सीट पर लेटते हुए अपना सिर उसकी गोदी मे रख दिया। वह तुरन्त मेरे चेहरे पर झुक गयी।

उसके नग्न स्तन ने मेरे होंठों पर जैसे ही स्पर्श किया तुरन्त जन्नत ने अपना ऐंठा हुआ स्तनाग्र पकड़ कर मेरे मुख के भीतर कर दिया। जुबान की पहली जुम्बिश के साथ ही दूध से मेरा मुख भर गया था। उसके मुख से ठंडी आह निकल गयी थी। मैने उसके स्तनाग्र को अपने होठों मे दबा कर उसका रस सोखना आरंभ कर दिया था। मेरा एक हाथ उसके पत्थर से स्तन को दबा रहा था और मेरे होंठ उसके स्तनाग्र को मुख मे दबाये रस सोख रहे थे। बस के शोर मे उसकी मीठीं आहें दब कर रह गयी थी। थोड़ी ही देर मे उसका स्तन अपने कोमल स्वरुप मे लौट आया था। वह थोड़ा सा पीछे हुई तो उसका स्तन मेरे मुख से निकल गया था। मैने उसे पकड़ने की कोशिश की तो उसने जल्दी से दूसरा स्तन मेरी ओर बढ़ा दिया था। एक बार फिर से मैने उसके पत्थर जैसे स्तन को मुलायम करने मे लग गया था। मुश्किल से आधे घंटे मे उसके दोनो कलश खाली हो गये थे। पहली बार मेरा ध्यान उसके नग्न सीने की ओर गया तो मै चौंक गया था। उसने बुर्के के नीचे कुछ नहीं पहना था। उसके नग्न पेट को सहलाते हुए मेरी उँगलियाँ नाभि से सरकते हुए नीचे की ओर बढ़ गयी थी। बालों के गुच्छे मे उँगली उलझते ही वह उचक कर सीधे बैठ गयी थी। मेरी उँगली घने बालों को सुलझाते हुए उसके स्त्रीत्व के द्वार को ढूँढ रही थी। जैसे ही मेरी उंगली ने द्वार के मुख पर स्पर्श किया तो वह मचल गयी थी। उसके मुख से एक दबी हुई किलकारी निकल गयी थी। मेरी उँगली उस द्वार को खोल कर अन्दर सरक गयी और उसके स्त्रीत्व के अंकुर पर जा कर टिक गयी थी। बाकी रगड़ने का काम बस ने कर दिया था। वह मेरा सिर पकड़े काफी देर तक बैठी रही थी। अनंतनाग तक न जाने वह कितनी बार स्खलित हुई थी। बस के रुकते ही मै उठ कर बैठ गया और उसने जल्दी से अपने बुर्के के हुक लगा लिये थे। अपनी उत्तेजना को शांत करने के लिए मै बस से उतर कर चहलकदमी करने लगा। रात की ठंडक भी बढ़ गयी थी। जन्नत भी बस से उतर कर होटल के अन्दर चली गयी थी। कुछ देर के बाद जब वह बाहर आयी तो उसकी चिलमन हट गयी थी। उसका धुला हुआ चेहरा बल्ब की रौशनी मे गुलाबी दिख रहा था। हमने चाय पी और फिर बस मे जाकर बैठ गये थे। दस मिनट के स्टाप के बाद एक बार फिर से बस चल पड़ी थी।

मै खिड़की के बाहर अनंतनाग को पीछे छूटता हुआ देख रहा था। एक बार फिर से बस अंधेरे मे डूब गयी थी। मै आँखे मूंद कर बैठ गया कि तभी उसका हाथ मेरी जाँघ को सहलाता हुआ मेरे पौरुष पर पहुँच कर स्थिर हो गया था। उसकी उँगलियाँ मेरे अर्धसुप्त पौरुष को जगाने की कोशिश मे लग गयी थी। अचानक वह अपना सिर मेरी जाँघ पर रख कर सीट पर लेट गयी। उसने अपने गालों को मेरे पाजामे मे छिपे हुए पौरुष पर धीरे-धीरे रगड़ना आरंभ कर दिया था। उसकी उँगलियाँ मेरे पाजामे को ढीला करने मे जुट गयी थी। मैने धीरे से उसके चेहरे को हटाया और बाक्सर का बटन खोल कर उत्तेजना से झूमते हुए अजगर को आजाद कर दिया और सामने वाली सीट पर सिर टिका बैठ गया था। वह एक नागिन की भांति अपनी लपलपाती हुई जुबान से मेरे जनानंग को नापती हुई सिरे पर पहुँच कर रुक गयी। उसके होंठ ने सिरे को धीरे से चूमा और फिर उसके होंठ खुले और मेरे जनानंग के सिर को दबा कर उसका रस सोखने लगी। उसकी उँगलियों ने झूमते हुए अजगर को गर्दन से पकड़ा और अपना मुख खोल कर धीरे से उत्तेजना से फूले हुए सिर को मुख के अन्दर ले लिया। उसके होंठ और जुबान ने निरन्तर फँसे हुए सिर पर वार करना आरंभ कर दिया और उसकी उँगलियाँ ऐठें हुए अजगर को गरदन से जड़ सहलाने मे व्यस्त हो गयी थी। वह काफी देर तक मेरे जनानंग से उलझी रही थी। मेरा हाथ उसकी उन्नत पहाड़ियों को कभी सहलाता और कभी मिचमिचा का निचोड़ देता और कभी उनके शिखर को उँगलियों के बीच फँसाकर दबा देता और कभी तरेड़ मार कर धीरे से सहला देता था। वह आधे से ज्यादा मेरा पौरुष निगल गयी थी। उसकी जुबान और होठों का घर्षण धीरे-धीरे मुझे चरम सीमा की ओर लेजा रहा था। एकाएक वह रुक गयी और बस के हिलने डुलने के बावजूद मैने महसूस किया कि किसी कोमल चीज ने मेरे पौरुष को अपने शिकंजे मे जकड़ लिया है और उसका रस सोख रहा है। मेरी आँखे स्वत: ही कामावेश से बन्द हो गयी और फिर एक झटके से बांध टूट गया। जिस्मानी लावा जो काफी देर से उबल रहा था वह बेरोकटोक बहने लगा। वह चुपचाप कामरस को पीती चली गयी। कुछ देर के बाद मुझे महसूस हुआ कि वह मुँह मे मेरे कामांग को लिये गहरी नींद मे खो गयी थी। मैने धीरे से अपने सुप्तअंग को कपड़ों मे छिपा लिया और पाजामे को बांध कर सामने की सीट पर सिर टिका कर सो गया था।

कब बनिहाल सुरंग निकली पता ही नहीं चला। उधमपुर पर जब बस रुकी तब आवाजें सुन कर मेरी नींद टूट गयी थी। मैने उसके सीने पर से अपने हाथ हटा कर बुर्के के हुक लगा कर उसको धीरे से उठाया तो वह उचक कर बैठ गयी। चारों ओर रौशनी देख कर उसने झट से उसने अपना चेहरा चिलमन से ढक लिया था। …यह उधमपुर है। अभी कुछ देर का सफर और है। तुम जाकर फ्रेश हो जाओ। उसने अपने बुर्के को ठीक किया और बस से उतर कर ढाबे मे चली गयी। मै भी अपने कपड़े व्यवस्थित करके बस से नीचे उतर कर टायलेट की ओर चला गया था। कुछ देर के बाद हम दोनो ठंडे पानी से चेहरा धोकर चाय पीने के लिए खड़े हो गये थे। रात की सुस्ती उतर चुकी थी। जब हम जम्मू पहुँचे तब तक सुर्य की पहली किरण ने आसमान को रौशन कर दिया था।

जम्मू बस स्टैन्ड पर उतर कर हम सीधे जम्मू जेल पहुँच गये थे। कैदियों से मिलने वालों की लाईन लगनी आरंभ हो गयी थी। नौ बजे से एन्ट्री मिलनी थी उससे पहले कागज बनवाने थे। जन्नत को लाईन मे खड़ा करके मै जेल सुप्रिन्टेन्डेन्ट से मिलने के लिए चला गया था। उसको अपना परिचय देकर मैने एजाज की फाईल देखने की इच्छा जाहिर की तो उसने वह फाईल मंगा कर मेरे सामने रख कर बोला… मेजर साहब, सभी जानते है कि ऐसे मामलों मे सारा दोष ड्राईवर अपने सिर पर ले लेता है। इसीलिए पुलिस सिर्फ जाँच के नाम पर खानापूर्ती करती है और फिर जेल भेज देती है। …जनाब आपकी जेल मे उसके जैसे कितने और लोग सजा काट रहे है? …मेजर साहब, बहुत लोग है। कुछ को सजा हो गयी है और कुछ कोर्ट मे उलझे हुए है। फिलहाल कोई संख्या बताना मुश्किल होगा। …इसकी बीवी को आज मिलने के लिए बुलाया गया है। यह चुँकि हथियारों का मामला है तो मै उसकी बीवी को लेकर यहाँ उसका हितैषी बन कर आया हूँ। उसकी बीवी के सामने उससे मिल कर कुछ पूछना चाहता हूँ। …ठीक है। उसकी बीवी के साथ आपका भी पास बनवा देता हूँ। मुझे नहीं लगता कि वह अपना मुँह खोलेगा लेकिन फिर भी आप कोशिश करके देख लिजिए। जेल सुप्रिटेन्डेन्ट ने दोनो पास मेरे हवाले कर दिये और मै उसका शुक्रिया अदा करके जन्नत के पास जाकर खड़ा हो गया था।

नौ बजे लोहे का दरवाजा खुल गया था। सुरक्षाकर्मी एक-एक करके पास देख कर मिलने वालो को अन्दर जाने दे रहे थे। जन्नत का नम्बर आया तो उसका पास देख कर पुलिस वाले ने महिला पुलिस की ओर भेज दिया और जब मेरा नम्बर आया तो मुझे दूसरी ओर भेज दिया गया था। एक छोटे से कमरे मे मेरी तलाशी ली गयी और जैसे ही मेरा आईकार्ड देखा तो वह तुरन्त सावधान हो गये थे। किसी ने कुछ नहीं बोला बस मेरे हाथ पर एक मुहर लगा कर मुझे अन्दर जाने का रास्ता दिखा दिया था। जेल के अहाते मे खड़ा होकर मै जन्नत का इंतजार करने लगा। कुछ देर के बाद जन्नत दरवाजे से बाहर आती हुई दिखायी दी तो मै उसकी ओर चला गया। हम चुपचाप चलते हुए एक हाल मे आ गये थे। सैकड़ों कैदी जाली के पीछे खड़े हुए अपने सगे संबन्धियों को ढूँढ रहे थे। मैने तो एजाज को बहुत पहले देखा था इसीलिए मैने यह काम जन्नत पर छोड़ दिया था। वह बेचैनी से एजाज की तलाश मे जुटी हुई थी। एकाएक वह हाथ हिलाते हुए एक व्यक्ति की ओर बढ़ी तो मै भी उसके पीछे चल दिया था। देखने मे वह अधेड़ उम्र का व्यक्ति लग रहा था। जन्नत को देखते ही वह उसकी ओर रोते हुए आ गया था। पहले कुछ मिनट तो दोनो एक दूसरे से शिकायत करने लगे थे। मै चुपचाप जन्नत के साथ खड़ा हुआ दोनो की बातें सुन रहा था।

अचानक एजाज बोला… तू यहाँ अकेली आयी है? जन्नत ने मेरी ओर इशारा करते हुए कहा… मै समीर के साथ आयी हूँ। …यह कौन है। अचानक वह घुर्रा कर बोला। मैने जल्दी से कहा… एजाज भाई, मै समीर बट। मकबूल बट का बेटा। आपके अब्बा रफीक मियाँ हमारे फार्म पर काम करते है। यह सुनते ही एजाज की आँखें फिर से बहने लगी थी। वह बार-बार एक ही बात बड़बड़ाने लगा… समीर, मुझे बाहर निकालो। मै मर जाऊँगा। जब कुछ देर के बाद वह शांत हो गया तब मैने उसे फरहत की बातों से अवगत करा कर पूछा… एजाज भाई जब तक आप अपनी बेगुनाही का कोई पुख्ता सुबूत नहीं देंगें तब तक कुछ नहीं हो सकता। आपके लिए वकील तो मै खड़ा कर दूँगा परन्तु उसे भी आपको बेगुनाह साबित करने के लिए सुबूत चाहिए। एजाज कुछ देर तक चुप रहा और फिर धीरे से बोला…  समीर, मुझे रज्जाक साहब ने सिर्फ इतना बताया था कि मुझे वह पाँच पेटियाँ मस्जिद-ए-जाबिल के इमाम हाजी जुबैर मोहम्मद के हवाले करनी है। मुझे यह तो पता था कि इन पेटियों मे कुछ अवैध सामान है परन्तु यह नहीं पता था कि इसमे असला बारुद है। अब तुम्हीं बताओ कि मै अपनी बेगुनाही का सुबूत कैसे दूँ। …अच्छा, आपने पहले भी क्या इसी प्रकार से सेब की पेटियाँ रज्जाक साहब के कहने पर वहाँ पहुँचाई थी? …समीर, रज्जाक साहब के कहने पर मैने तो ऐसी पेटियाँ पिछले चार साल मे बहुत सी जगह पहुँचाई है। …कौन सी जगह पर साफ-साफ बताईए। अबकी बार एजाज कुछ सोच कर बोला… मेवात, अजमेर, अहमदाबाद, सूरत, मुंबई, औरंगाबाद, हैदराबाद, पटना और आजमगढ़ तक पहुँचाई है। फिलहाल मुझे सबके नाम याद नहीं लेकिन सभी जगह ऐसी पेटियाँ मैने किसी मौलवी या मौलाना के हवाले करी थी। कुछ देर एजाज से बात करके मैने कहा… एजाज भाई जब तक मै सुबूत इकठ्ठा करता हूँ तब तक अपना मुँह मत खोलना क्योंकि तुम्हारी जान को खतरा है। आप दोनो बात करो मै हाल के बाहर इनका इंतजार कर रहा हूँ। …समीर, एक काम करना। जन्नत के साथ जाकर इमाम साहब से मिल कर उन्हें मेरे पकड़े जाने की खबर दे देना जिससे वह जेल मे अपने लोगो को बता दें कि मै उनका आदमी हूँ। उन दोनो को वहीं छोड़ कर मै जेल से बाहर आ गया था।

एजाज से कुछ महत्वपूर्ण जानकारी मिल गयी थी। अब उन जानकारियों को गहरायी से जाँचना मेरा काम था। इसने कोई शक नहीं था कि गोल्डन ट्रांसपोर्ट कंपनी का मालिक अब्दुल रज्जाक सैयद इस खेल मे सिर तक डूबा हुआ था। मै अभी उसके बारे मे सोच रहा था कि घँटी बज गयी थी। पहले बैच का समय समाप्त हो चुका था। दूसरे बैच का समय एक घंटे के बाद आरंभ होना था। बाहर निकलती हुई भीड़ मे मेरी नजर जन्नत को ढूँढ रही थी। वह धीमे कदमों से चलती हुई मेरे पास पहुँच कर बोली… समीर, वह बहुत डरे हुए है। इमाम साहब के पास चलो। एक खाली आटो जाते हुए देख कर मैने हाथ दिखा कर रोक लिया और उसमे बैठ कर हम मस्जिद-ए-जाबिल की ओर चल दिये थे। …जन्नत एक बजने वाला है। अब इमाम साहब चार बजे के बाद ही मिल सकेंगें। क्यों न किसी होटल मे रुक कर दो-तीन घंटे आराम करके इमाम साहब से मिल कर फिर आज रात की बस पकड़ लेंगें। जन्नत ने हामी भर दी तो मैने आटो चालक से कहा… मियाँ उस मस्जिद के आस-पास किसी सस्ते से होटल ले चलो। उसने हमे एक सस्ते से होटल के बाहर छोड़ते हुए कहा… भाईजान, वह सामने जो मीनार दिख रही है। वही मस्जिद-ए-जाबिल है। एक नजर उस मीनार पर डाल कर उस आटो का हिसाब करके हम होटल मे चले गये थे।

हमने एक कमरा ले लिया और वहीं कुछ खाकर कमरे मे चले गये थे। जन्नत बाथरुम मे घुस गयी और रात भर की थकान से मै बिस्तर पर लस्त होकर पड़ गया था। कुछ देर के बाद वह बाथरुम से नहा धो कर बाहर निकल कर बोली… समीर बहुत दर्द हो रहा है। मैने आँख खोल कर उसकी ओर देखा तो देखता रह गया। जन्नत निर्वस्त्र होकर बाथरुम के दरवाजे के साथ खड़ी हुई मुझे देख रही थी। मदभरी गदरायी हुई नवयौवना सैकड़ों बिजलियाँ मेरे दिल पर गिरा रही थी। दूध से भारी स्तन तने हुए थे। उसने अपने स्तन को धीरे से दबाया तो तने हुए शिखर से दूध की बूँद छलक गयी थी। भरा हुआ बदन, पतली कमर और गोल उभरे हुए नितंब देख कर मेरे जिस्म के एक हिस्से मे खून का दबाव बढ़ गया था। मै उठ कर बैठ गया तो वह मेरे पास आकर कर खड़ी हो गयी थी। मैने उसके गुदाज नितंबो को अपने पंजों मे जकड़ कर अपने करीब खींच लिया और उसके कठोर स्तनाग्र को अपने होंठों के बीच दबाया तो उसके मुख से एक दर्दभरी आह निकल गयी थी। उसके नितंबों को गूँथते हुए उसके स्तन से दूध सोखना आरंभ कर दिया था। कुछ ही पलों मे वह खुल कर सिस्कारियाँ ले रही थी।

मुझसे अब रुका नहीं जा रहा था। मैने जल्दी से अपने कपड़े उतार कर एक ओर फेंक दिये और उसे कमर से पकड़ कर मैने अपने उपर खींच लिया। वह आँखे मूंदे मेरे उपर गिर गयी और मैने करवट लेकर उसे अपने जिस्म के नीचे दबा कर कहा… जन्नत, तुम्हारा दूध पी कर मैने गलती कर दी क्योंकि अब तुम्हारे साथ कुछ भी करना मेरे लिये अब हराम हो गया है। वह तड़प कर बोली… बाद मे तौबा कर लेना लेकिन पहले इनको खाली करो। मैने उसकी एक नहीं सुनी और उत्तेजना से झूमते हुए अजगर को गर्दन से पकड़ कर उसके स्त्रीत्व के द्वार की दरार पर रगड़ा और फिर कमर पर थोड़ा दबाव बढ़ाया तो झूमता हुआ अजगर द्वार खोल कर अन्दर सरकता चला गया। जन्नत के मुख से एक गहरी आह निकल गयी थी। अपने आप को पीछे खींच कर जब मैने पूरी ताकत से अपनी कमर को झटका दिया तो सारी बाधाएँ खोलते हुए मेरा जनानंग जड़ तक धंस गया था। उसके मुख से उत्तेजना मे किलकारी छूट गयी थी। मैने उसके स्तन पर अपने होंठ टिका दिये और दूध सोखना आरंभ कर दिया था। उसके जिस्म पर दोहरी मार पड़नी आरंभ हो गयी थी। एक ओर उसके सीने का दर्द मै लगातार सोखता जा रहा था और दूसरी ओर पूरी शक्ति से उसके जिस्म को रौंद रहा था। सारा दूध सोख कर उसके दोनो कलश को खाली करके मै उसके जिस्म को अपने कामरस से भरने मे जुट गया था। कमरे मे उसकी सिस्कारियाँ गूंज रही थी। जन्नत मेरे नीचे दबी हुई कभी उत्तेजना मे मचलती और कभी तड़पती और फिर कभी अपनी टाँगे मेरी कमर पर लपेट कर जकड़ लेती थी। एकाकार की आँधी हमे बहा कर ले गयी थी। कुछ देर के बाद हम निढाल हो कर बिस्तर पर पड़े हुए अपनी सांसों को सयंत करने की कोशिश कर रहे थे। मैने उसके होंठों को चूमने की कोशिश की तो उसने अपना मुँह फेर लिया था। मैने फिर उसे चूमने की कोशिश नहीं की थी। थकान के कारण हम जल्दी ही अपने सपनों की दुनिया मे खो गये थे।

चार बजे मेरी आँख खुल गयी थी। मै जल्दी से बाथरुम मे घुस गया और तैयार होकर बाहर निकला तो जन्नत अभी भी सो रही थी। …उठो जन्नत, इमाम साहब से मिलना है। वह जल्दी से उठी और बाथरुम मे चली गयी। कुछ देर के बाद वह अपना कुर्ता, पाजामी और फेयरन पहन कर मेरे सामने खड़ी हो गयी थी। …मस्जिद मे बुर्का अनिवार्य है? …तुम्हें कुछ नहीं पता समीर। इन मस्जिदों की दीवारों मे न जाने कितनी मासूमों की चीखें दफन है। उसका फलसफा अनसुना करके मै कहा… चलो।  बुर्का छोड़ कर हिजाब से अपना सिर और चेहरा ढक कर वह मेरे साथ चल दी थी। हम होटल का हिसाब करके मस्जिद की दिशा मे चल दिये। थोड़ी देर मे हम मस्जिद-ए-जाबिल मे दाखिल हो गये थे। एक आदमी फर्श धो रहा था। मै उसके पास पहुँच कर पूछा… बड़े मियाँ, इमाम साहब कहाँ मिलेंगें। उसने इशारे से कहा… वह सामने हाल मे बैठे है। हम दोनो हाल मे चले गये थे। इमाम साहब के सामने तीस-चालीस नवयुवक बैठे हुए थे। इमाम साहब कोई तकरीर दे रहे थे तो मै और जन्नत चुपचाप पीछे जाकर बैठ गये थे।

इमाम साहब कह रहे थे… अल्लाह के रास्ते मे अगर किसी की शहादत होती है उसे सीधे जन्नत नसीब होती है। बहात्तर हूरें उसकी राह ताक रही होती है। हुरों की सुन्दरता का बखान करने के बाद इमाम साहब ने कहा… जन्नत मे एक आदमी को सौ-सौ आदमियों की ताकत से नवाजा जाता है। मैने दबे हुए स्वर मे जन्नत से कहा… बिना शहादत मुझे जन्नत नसीब हो गयी। यह इमाम साहब भला क्या समझेंगें। तभी इमाम के स्वर मेरे कान मे पड़े… तुम लोग जवान हो। काफिरों की लड़कियों को बहला फुसला कर अगर इस्लाम कुबूल करवाओगे तो मेरी ओर से तुम्हें इनाम से नवाजा जाएगा और खुदा भी खुश होगा। पंडित की लड़की के पच्चीस हजार मिलेंगें और निकाह किया तो एक मोटर साईकिल भी मिलेगी। बाकी सभी के लिए बीस हजार और निकाह किया तो मोटर साइकिल अलग से मिलेगी। कुछ देर के बाद इमाम साहब अपनी तकरीर समाप्त करने से पहले बोले… याद रखना कि जुमे की रात को काफिरों के गाँव चलना है। सभी लड़कों से कह देना कि वह तैयार रहे। इमाम साहब खड़े हो गये और चल कर हमारे पास आ गये थे। सारे नवयुवक एक कतार बना कर बाहर चले गये तब वह बोले… मोहतरमा बताईए आपको क्या काम है? जन्नत ने धीरे से कहा… आदाब। मेरा खाविन्द एजाज गोल्डन ट्रांस्पोर्ट कंपनी मे ड्राईवर है। रज्जाक साहब का माल लाते हुए वह जम्मू के बाहर पकड़ा गया था। वह माल आप तक पहुँचाना था लेकिन सारा माल पुलिस ने जब्त कर लिया और उसे जम्मू जेल मे भेज दिया है। खुदा के लिए उन्हें छुड़ाने मे हमारी मदद कीजिए। इमाम साहब ने मेरी ओर देखते हुए पूछा… यह कौन है? जन्नत ने जल्दी से कहा… मेरा देवर है। इमाम साहब ने जन्नत से कहा… देखो तुम्हारे खाविन्द ने अल्लाह की राह पर चलते हुए कुर्बानी दी है। वह इतनी जल्दी तो बाहर नहीं आ पाएगा। तुम चाहो तो मै तुम्हारा तलाक करवा देता हूँ। अपने देवर के साथ हलाला मे चली जाओगी तो तुम्हारी सारी जरुरतें पूरी हो जाएँगी। यह बोल कर मेरी ओर देखते हुए इमाम साहब ने फर्माया… इसे अपना लो। तुम अभी जवान हो तो इस औरत का ख्याल रख सकते हो। इस जिहाद मे हर सच्चे मुस्लिम को अपनी हैसियत के हिसाब से कुर्बानी देनी पड़ती है। खुदा तुमसे यह कुर्बानी मांग रहा है।

जन्नत धीरे से बोली… इमाम साहब, मेरा देवर कुछ नहीं करता तो यह मुझे कैसे पालेगा। अगर आप रज्जाक साहब से बात करके मुझे नौकरी पर लगवा देंगें तो… इतना कह कर वह चुप हो गयी। इमाम साहब कुछ देर के लिए गहरी सोच मे डूब गये फिर जेब से मोबाईल निकाल कर उन्होंने किसी का नम्बर मिलाया… रज्जाक मियाँ सलाम। आपके पास उस ड्राईवर की औरत को भेज रहा हूँ। उसको कोई छोटी-मोटी नौकरी दे दो जिससे वह अपना घर चला लेगी। वह ड्राईवर भी अपना मुँह बन्द रखेगा। …ठीक है मियाँ। जामिया मस्जिद के हादसे के कारण बहुत से काम पीछे हो गये है। बस ख्याल रहे कि जुमे से पहले मेरा माल मेरे पास पहुँच जाना चाहिए। इतनी बात करके फोन काट कर इमाम साहब ने कहा… मोहतरमा मेरे साथ आईए। आपको मै रज्जाक साहब के लिए एक चिठ्ठी दे देता हूँ। वह आपको काम पर रख लेंगें। जन्नत चुपचाप इमाम साहब के साथ चल दी थी। मै जैसे ही उसके पीछे चला तो वह एकाएक मुड़ कर मुझसे बोली… तुम बाहर इंतजार करो। मै चिठ्ठी लेकर आती हूँ। मै ठिठक कर वहीं पर रुक गया और वह इमाम साहब के साथ एक कमरे मे चली गयी थी।

मै मस्जिद के बाहर लगी हुई बेन्च पर जाकर बैठ गया था। शाम के समय बाजार मे रौनक हो रही थी। मनचले नवयुवकों की टोली सड़क पर चलने वाली लड़कियों औरतों पर फब्तियाँ कस रहे थे। कुछ मनचले भीड़ मे घुस कर छेड़खानी मे व्यस्त थे। सब कुछ खुले आम हो रहा था। मै चुपचाप बैठा सब कुछ देख रहा था। तभी वही आदमी जो फर्श साफ कर रहा था वह बाहर आकर मेरे साथ बेन्च पर बैठ गया और फिर मुस्कुरा कर बोला… मियाँ तुम उसके क्या लगते हो? …मेरी भाभी है। …बहुत अच्छा। बस इतना बोल कर वह चुपचाप बैठ गया था। अबकी बार मैने पहल करते हुए कहा… बड़े मियाँ, एक दिन मे इमाम साहब कितने लोगों को चिठ्ठी देते है? मेरी ओर घूर कर देखते हुए वह बड़बड़ाया… मियाँ यह मत पूछो तो अच्छा होगा। …बड़े मियाँ मै कोई बेवकूफ या मंदबुद्धि नहीं हूँ। मुझे भी पता है कि इमाम साहब कौनसी चिठ्ठी लिख रहे है। दुख है तो सिर्फ इस बात का कि यह सब इस पाक जगह पर खुले आम हो रहा है। मेरी बात शायद उसे चुभ गयी थी। वह मेरी ओर देख कर बोला… मियाँ क्या बताऊँ कि इन बूढ़ी आँखों ने यहाँ पर क्या होते हुए नहीं देखा है। हम बात कर रहे थे कि जन्नत मेरे पास आकर बोली… चलो समीर। मै चुपचाप उसके साथ चल दिया था।

हम वहाँ से सीधे बस स्टैन्ड चले गये थे। कुछ खाने के लिए मैने उससे पूछा भी तो उसने मना कर दिया था। श्रीनगर जाने वाली बस की टिकिट लेकर हम बस मे बैठ गये थे। सारे रास्ते वह चुप बैठी रही थी। मैने भी सारी रात ऊँघते हुए गुजारी थी। अनंतनाग बस स्टैन्ड पर जब बस रुकी तो मैने उसे उठा कर पूछा… जन्नत आओ चल कर चाय पी लो। हम दोनो नीचे उतर गये और चाय लेकर एक किनारे मे खड़े हो गये थे। …चिठ्ठी मिल गयी? …हुँ। …अरे क्या हो गया तुम्हें। जब से इमाम साहब के पास से आयी हो तब से चुप हो। वह चुपचाप चाय पीती रही और फिर खाली गिलास रख कर वापिस बस मे जाकर बैठ गयी थी। जैसे ही बस चलने को हुई मै उसके साथ जाकर बैठ गया। सारे रास्ते वह अपनी ही सोच मे डूबी रही थी। श्रीनगर बस स्टैन्ड पर जब हम उतर कर बाहर आये तो मैने पूछा… तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूँ। उसने एक बार मेरी ओर देखा और फिर मुस्कुरा कर बोली… नहीं मै खुद चली जाऊँगी। बस मुझे कुछ पैसे चाहिए। …कितने? …जितने भी तुम्हारी जेब मे है। मैने अपना पर्स निकाला और बिना गिने सारे पैसे उसके हाथ मे रखते हुए पूछा… यह तुम्हारे लिए काफी है या एटीएम से और निकाल कर दूँ। …फिलहाल के लिए काफी है। अच्छा समीर खुदा हाफिज। अब शायद फिर कभी हमारी मुलाकात नहीं होगी। बस इतना कह कर वह चली गयी थी। मै कुछ देर वहीं खड़ा होकर उसकी बात समझने की कोशिश करता रहा और फिर जब कुछ समझ मे नहीं आया तो अपने घर की ओर चल दिया। अब जन्नत भी मेरे लिये एक पहेली बन गयी थी। 

बुधवार, 23 नवंबर 2022

  

   काफ़िर-17

 

मुजफराबाद

…सारा सामान मुजफराबाद के रास्ते से श्रीनगर की ओर रवाना हो गया है। इस बार ऐसा विस्फोट होना चाहिए कि केन्द्र मे बैठी हुई भारत सरकार हिल जाए। …इन्शाल्लाह। जमात को अबकी बार वादी को दहलाना पड़ेगा। …चचाजान, इस बार श्रीनगर मे 15 कोर का हेडक्वार्टर्स निशाने पर है। जमात ने चार धमाकों की योजना बनायी है जिसके कारण फौज की रीढ़ की हड्डी टूट जाएगी। उसके बाद हमारी तंजीमों के लिये रास्ता साफ हो जाएगा। …उस लड़की का क्या हुआ? तेरा निकाह उसके साथ हो जाता तो जमात की बागडोर तेरे हाथ मे आ गयी होती। …चचाजान, उसकी लड़की ही फाहिशा निकली तो उसमे उस बेचारे का क्या दोष है। उस लड़की की हमें जरुरत है। मुंबई मे मेरे लोग अभी भी उस पर नजर रख रहे है। उसका बैंगलौर का इतिहास भी खंगाल रहे है। अगर फिर भी कुछ नहीं होता तो अभी मेरे पास एक हथियार और है। वह बच कर नहीं जा सकती आप बेफिक्र रहिए। अच्छा चलता हूँ चचाजान। खुदा हाफिज।     

 

हम सोने के लिए चल दिये थे। बिस्तर पर पड़ते ही हमारी एक दूसरे के साथ छेड़खानी आरंभ हो गयी थी। …जन्नत पके हुए फल की तरह दिखती है। उसके सीने पर ही तुम्हारी निगाहें टिकी हुई थी। मैने जल्दी से कहा… मै उसकी ओर देख ही नहीं रहा था। परन्तु जन्नत का जिक्र आते ही उसके कोमल जवान गदराये हुए जिस्म की याद आ गयी थी। उसकी सीने की गोलाईयाँ मेरी आँखों सामने आ गयी थी। उसके जिस्म के पल भर के स्पर्श के एहसास ने एकाएक मुझे उत्तेजित कर दिया था। अचानक मुझे एहसास हुआ कि आलिया अपने हाथ मे मेरे पौरुष को पकड़ कर उसमे होते हुए हर स्पन्दन को महसूस कर रही थी। …जन्नत के नाम से ही यह जाग उठा है। मै झेंप गया और मैने जल्दी से कहा… वह तुम्हारे हाथ का जादू है। आलिया जोर से हंसते हुए बोली… उसके गोल नितंबों को तुमने देखा था? मैने धीरे से उसके पुष्ट नितंब को छू कर देखा था। मेरे स्पर्श मात्र से वह थरथरा गये थे। समीर इसका तबला बजाने मे मजा आएगा। आलिया लगातार जन्नत के अंगो का बखान करती जा रही थी जिसका सीधा असर मेरे कामांग पर साफ विदित हो रहा था। जब मुझसे रहा नहीं गया तो आलिया को अपने जिस्म के नीचे दबा कर अपने जिस्म की आग ठंडी करने मे लग गया था। …तुम जन्नत से ज्यादा बेहतर लगती हो। मैने आँखे मूंद ली थी। तभी मुझे लगा कि आलिया की जगह जन्नत मेरे आगोश मे है। अचानक मेरे जिस्म मे एक बिजली की लहर दौड़ गयी और फिर एक पागल दरिंदे के जैसे मैने आलिया का रौंदना आरंभ कर दिया था। कामावेश मे उसकी सिसकारियाँ पूरे वेग से कमरे मे गूँजने लगी थी।

…आज क्या हो गया था तुम्हें? लगता है जन्नत की याद आते ही पागल हो गये थे। तूफान शांत होने के बाद अपनी तेज चलती हुई साँसों को संभालते हुए आलिया ने एक बार फिर से कटाक्ष मारा लेकिन इस बार मैने धीरे से उसके कान मे फुसफुसाते हुए कहा… वह जिस्मानी और मानसिक रुप से तुमसे बेहतर तो हर्गिज नही है। आलिया हंसते हुए बोली… वह तो मै जानती हूँ। फिर भी तुमने बताया नहीं कि वह तुम्हें कैसी लगी? …अब उस फ़ाहिशा का जिक्र छोड़ो और कल के बारे सोचो। जल्दी सुबह उठ कर बडगाम के लिए निकलना है। पता नहीं आलिया के दिमाग मे जन्नत कहीं अटक कर रह गयी थी। उसने फिर से कहा… समीर, उनके घर पर मैने महसूस किया था कि अगर उसका बस चलता तो वह वहीं पर तुम्हें पटक कर तुम्हारा शिकार कर लेती। मैने कोई जवाब नहीं दिया बस आलिया को अपने सीने से लगाये सपनों की दुनिया मे खो गया था।

अगले दिन सुबह तैयार होकर हम दोनो बडगाम के लिए निकल गये थे। जब हम फार्म पर पहुँचे उस समय अब्दुल लोन के ट्रक पर माल लोड हो रहा था। यहाँ पर चौकीदारी का काम इस्माईल नाम का बिहारी देख रहा था। उस से तो मुझे कोई मदद की उम्मीद नहीं थी इसीलिए ड्राईवर से जानकारी लेने के काम पर मैने आलिया को लगाया था। मै यहाँ की इन्वोइस की फाईल देखने बैठ गया था। कुछ देर के बाद ही मै इस नतीजे पर पहुँच गया था कि यहाँ का हाल भी पहलगाम जैसा ही था। वही चार बड़े सेब के व्यापारी हमारे फार्म के सबसे बड़े खरीददार थे और बाकी चार-पाँच छोटे पुराने व्यापारियों को हम एक ट्रक सेब से ज्यादा नहीं देते थे। गोल्डन ट्राँस्पोर्ट कंपनी का ट्रक रैक पर खड़ा हुआ था। अब सेब के खरीदारों और ट्रांसपोर्टरों का पैटर्न मुझे साफ दिख रहा था। पूरे सेब के कारोबार पर चार परिवारों का कब्जा साफ दिखाई दे रहा था। यहाँ तक कि माल को ढोने का इंतजाम भी वही गिनी-चुनी ट्रांसपोर्ट कंपनियाँ ही करती थी। आलिया ने भी वही बताया जो हमे पहलगाम मे पता चला था। तभी मेरे दिमाग मे एक विचार आया और मै पैदल अपने फार्म से बाहर निकल गया था।

मै पड़ोस के फार्म पर चला गया था। यह फार्म  सज्जाद अहमद का था। वह यहाँ के उद्योग जगत मे जाना माना नाम था। जब से अराजकता ने कश्मीर मे सिर उठाया था तब से उनका काम काफी हद तक ठप्प हो गया था। अम्मी के साथ बहुत बार मै इनके फार्म पर गया था। सीजन के कारण उनके फार्म मे भी ट्रक खड़े हुए थे। मै टहलते हुए लोहे के गेट को खोल कर अन्दर चला गया था। सज्जाद अहमद अपने परिवार के साथ एक पेड़ के नीचे बैठे हुए थे। मुझे अन्दर आते देख कर वह उठ कर मेरी ओर आ गये थे। …आदाब अंकल, आप शायद मुझे नहीं पहचाने। मै समीर बट। साथ वाले बट फार्म से आया हूँ। यह सुनते ही वह पहचानते हुए बोले… समीर बेटा बहुत दिनों से तुम्हें नहीं देखा था इसीलिए पहचान नहीं सका था। तुम्हारी अम्मी से यहाँ पर मुलाकात कभी-कभी हो जाती थी। आज कैसे आना हुआ? …अम्मी की तबियत ठीक नहीं थी तो माल लदवाने के लिए मुझे आना पड़ा था। हम बात करते हुए पेड़ के नीचे बैठे हुए परिवार के पास पहुँच गये थे। अपने परिवार से मिलाते हुए कहा… यह हमारे पड़ौसी मकबूल बट के साहेबजादे समीर है और समीर मियाँ यह हमारा परिवार है। मै सभी का अभिवादन किया और सज्जाद अहमद के साथ बैठ गया था।

…अंकल आपका काम कैसा चल रहा है? एक पल के लिए वह कुछ बोलते-बोलते रुक गये थे। फिर वह धीरे से बोले… यहाँ पर कैसा काम मियाँ। इन लोगों ने तो सब कुछ बर्बाद कर दिया है। फैक्टरियाँ आतंकवाद के कारण बंद पड़ी है और हर सरकारी ठेके पर कुछ विशेष परिवारों का कब्जा है। हालात बद से बदतर हो गये है। …अंकल, इस सीजन मे सेब का करोबार कैसा चल रहा है। …समीर मियाँ सेब के कारोबार का भी वही हाल है। तभी एक लड़की ट्रे को मेज पर रखते हुए बोली…  हमारे फार्म के सेब का रस है। प्लीज लिजीए। मैने ग्लास उठा लिया और सज्जाद अहमद से कहा… अंकल, मुझे तो लगता है कि सेब का कारोबार भी चंद लोगो के हाथ मे सिमट कर रह गया है। सज्जाद अहमद ने एक बार मेरी ओर ध्यान से देखा और फिर बोला… अब यह हालात हो गये है कि अगर इनके मन मुताबिक काम नहीं किया तो कोई भी खरीददार आपके फार्म पर नहीं फटकेगा। मैने तो इन लोगो के साथ काम करने से पहले ही मना कर दिया था। यह लोग एक ट्रक माल खरीदते है और दो ट्रक का बिल फड़वाते है। मै ऐसे उल्टे चक्करों से दूर ही रहता हूँ। कम खालो लेकिन ईमान का सौदा नहीं कर सकता। मेरा सारा माल तो दिल्ली और पंजाब जाता है। तभी सज्जाद का बेटा जो अब तक चुप बैठ कर हमारी बात सुन रहा था वह बोला… अब तो यहाँ पर ट्रांस्पोर्टरों की लौबी भी बन गयी है। कुछ देर उनसे बात करके मै अपने फार्म पर वापिस आ गया था। एक ट्रक जा चुका था और दूसरे ट्रक पर माल लदवाया जा रहा था। आलिया पेड़ के नीचे आँख मूंद कर बैठी हुई थी।

एक नजर ट्रक पर डाल कर मै आलिया के पास चला गया था। …तुम कहाँ चले गये थे? …पड़ोस वाले फार्म पर गया था। यहाँ कैसा काम चल रहा है? …आज भी यहीं शाम हो जाएगी। चार ट्रक माल जाना है। हम दोनो पेड़ के तने पर पीठ टिका कर बैठ गये थे। सज्जाद अहमद से हुई सारी बातों की जानकारी आलिया को देने के बाद हम चुपचाप बैठ गये थे। …समीर, इन चारों बड़े सेब के व्यापारियों की इस कारोबार पर पकड़ को हम कैसे चोट पहुँचा सकते है? आलिया का प्रश्न उचित था लेकिन इसका जवाब मेरे पास नहीं था। कुछ देर के बाद वह बोली… समीर इन लोगो की पकड़ तभी टूट सकती है जब कोई इनसे बड़ा व्यापारी इनके सामने खड़ा हो जाए तो इनको माल मिलना मुश्किल हो जाएगा। मैने सिर हिलाते हुए कहा… तुम सही कह रही हो परन्तु इनसे बड़ा व्यापारी कौन हो सकता है? कुछ देर के लिए हम दोनो चुप हो कर बैठ गये थे।  लोडिंग रैक से माल भर कर एक ट्रक निकलता तो उसकी जगह रैक पर दूसरा ट्रक लग जाता था। यह सिलसिला शाम तक चलता रहा था। पाँच बजे तक चारों ट्रक माल भर कर चले गये थे। उनके जाने के बाद ही हम वहाँ से निकल सके थे।

लौटते हुए फोन पर आलिया की बात अम्मी से हो गयी थी। मै आज तक अब्दुल लोन के आफिस नहीं गया था। उसका पता पूछने पर अम्मी ने आलिया से कहा कि कल वह उसके साथ अब्दुल लोन के आफिस चलेंगी और उसको वहाँ के कुछ मुख्य लोगों से मिलवा देंगी। …समीर, अब मुझे भी यह जीप चलाना सीखना पड़ेगा। …बिल्कुल सीख लेनी चाहिए लेकिन कल के लिए मेरा ड्राईवर तुम्हें ले जाएगा। हम बात करते हुए कोम्पलेक्स की ओर जा रहे थे कि रास्ते मे शाहीन का फोन आ गया था। वह तुरन्त मिलना चाह रही थी परन्तु उसने हमे अपने घर के बजाय जामिया मस्जिद के पास बुलाया था। मैने उस मस्जिद का नाम सुना था परन्तु वहाँ पहुँचने का रास्ता मालूम नहीं था। हम लोगो से पूछते हुए थोड़ी देर से जामिया मस्जिद पहुँच गये थे। शाहीन मस्जिद से कुछ दूर एक पेड़ के पास खड़ी हुई हमारा इंतजार कर रही थी। जीप रुकते ही वह बोली… मेरे अब्दुल्लाह भाईजान पाकिस्तान से आ गये थे। आज मैने उन्हें किसी से बात करते हुए सुना कि माल यहाँ पहुँच गया है और आज शाम को जामिया मस्जिद मे उस माल की डिलिवरी होगी। उनकी बातों से पता लगा कि वह कुछ बड़ा करने की योजना बना रहे है। वह एक साँस मे बोलती चली गयी थी। …कुछ पता चला कि वह क्या करने की सोच रहे है? …नहीं। लेकिन बार-बार वह फौज को सबक सिखाने की बात कर रहे थे। यह सुन कर मेरे दिमाग मे खतरे की घंटी बज गयी थी। शाहीन सब कुछ बता कर वापिस अपने घर चली गयी थी और हम कोम्पलेक्स की ओर चल दिये थे। घर पहुँच कर मैने ब्रिगेडियर चीमा को फोन लगाया।

…बोलो मेजर। …सर, मुझे पता चला है कि कुछ जिहादी हमारी फौज को सबक सिखाने की योजना बना रहे है। उनके माल की डिलिवरी आज शाम को ही जामिया मस्जिद मे हुई है। ऐसी हालत मे अब क्या करना चाहिए?  …उस माल के बारे मे क्या पता चला? …सर, यह तो पता नहीं परन्तु मेरा अनुमान है कि आरडीएक्स और हथियारों की डिलिवरी हो सकती है। …मेजर, जामिया मस्जिद मे सेना का घुसना बेहद संवेदनशील मसला है। इस खबर से राजनीति मे उबाल आ जाएगा। सारी राजनितिक पार्टियाँ फौज के खिलाफ मोर्चा खोल देंगी। इसीलिए बिना पुख्ता सुबूत के फौज भी कोई कार्यवाही नहीं कर सकती है। खैर मै अपने नेटवर्क से पता लगाने की कोशिश करता हूँ। इतना बोल कर उन्होंने फोन काट दिया था। मै सरकारी तंत्र की कमजोरियाँ को समझने का प्रयास करने बैठ गया था।

मै जामिया मस्जिद के बारे सोच रहा था। हाजी मंसूर के कारण जामिया मस्जिद तो वैसे ही जमात-ए-इस्लामी के गड़ के रुप मे प्रख्यात थी। पिछले कुछ दिनों मे इसी मस्जिद के बारे मे दर्जनों इंटेल रिपोर्ट्स मुझे मिली थी जिसमे बताया गया था कि लश्कर और जैश से जुड़े हुए लोगो का इस मस्जिद मे कुछ दिनो से काफी आना-जाना हो गया है। इसीलिए मैं शाहीन की खबर को नजरांदाज नहीं कर सकता था। रात के दस बज चुके थे। मुझसे लेटा नहीं जा रहा था। …आलिया मेरे साथ चलो। आज रात को जामिया मस्जिद मे घुसने की कोशिश करते है। …समीर पागल हो गये हो क्या। इस वक्त वहाँ कौन घुसने देगा? …कोशिश करने मे क्या हर्ज है? प्लीज चलो। आलिया बेमन से तैयार हुई और कुछ देर के बाद हम दोनो जामिया मस्जिद की ओर जा रहे थे। रात के वक्त सड़के सूनी पड़ी थी। हर बेरियर पर फौजी रोक कर जीप चेक करने के बाद ही आगे बढ़ने की इजाजत दे रहे थे। रुकते-रुकाते हम एक घंटे मे जामिया मस्जिद के करीब पहुँच गये थे। मेरी पिस्तौल मेरी कमर मे बंधी हुई थी। अपनी जीप कच्चे मे उतार कर एक बन्द दुकान के बाहर खड़ी करके हम दोनो मस्जिद की ओर पैदल चल पड़े थे।

…आलिया तुम अपने आपको हिन्दू बताना। …क्यों? …जो मै कह रहा हूँ बस वही करना। अपने चेहरे पर चिलमन गिरा लो। आलिया वैसे ही जाने के लिए तैयार नहीं थी अब और भी ज्यादा असहज हो गयी थी। हम दोनो जामिया मस्जिद के मुख्य गेट पर पहुँच गये थे। बड़े से लोहे के गेट मे बने हुए छोटे गेट के कुन्डे को पकड़ कर मैने जोर से खड़का दिया था। कुछ देर रुक कर मैने एक बार फिर से जोर से लोहे का कुन्डा खड़का दिया था। कुछ मिनट के बाद छोटे गेट के खुलने की आवाज सुनाई दी तो मैने आलिया को अपने साथ खड़ा कर दिया। दरवाजा खोल कर एक आदमी बाहर निकला और मुझे देख कर घुर्राया… क्या काम है? …सलाम भाईजान, आज की रात हमे यहाँ रुकना है। …क्यों मियाँ। बुर्कापोश आलिया पर नजर डाल कर वह बोला… इसे कहाँ से उठा कर लाया है। उसके हावभाव, पहनावे और बोली से साफ था कि वह जिहादी है। मैने धीरे से कहा… भाईजान, यह पंडित की लड़की है। निकाह करने के लिए मै इसे जम्मू से भगा कर लाया हूँ। आज सुबह ही मैने हाजी साहब से बात की थी। उन्होंने मुझे कहा था कि लड़की को लेकर मस्जिद पहुँच जाओ और वहीं छिप जाना। अगली सुबह वह हमारा निकाह करा देंगें। मेरी बात सुन कर वह जिहादी सोच मे पड़ गया था।

आलिया को अपने से सटा कर मैने जल्दी से कहा… भाईजान, सोचने का समय नहीं है। हमे अन्दर जाने दीजिए। इसके घरवाले पुलिस को साथ लेकर यहाँ पहुँचने वाले होंगें। हम दोनो आज रात मस्जिद के किसी कोने मे पड़े रहेंगें। यह कह कर आलिया का हाथ पकड़ कर मै छोटे गेट से अन्दर घुस गया। वह जल्दी से अन्दर आते हुए बोला… मियाँ रुको यहाँ पर। आज किसी को भी अन्दर रुकने की इजाजत नहीं है। …क्यों भाईजान। मुझे तो हाजी साहब ने यहीं आने के लिए कहा था। वह अभी भी मेरे साथ खड़ी हुई आलिया को देखे जा रहा था। …मियाँ हमारी मदद करो। आप सुबह हाजी साहब से पूछ लेना। अगर इस लड़की को इसके घरवालों ने बाहर पकड़ लिया तो रातों रात ही उसे जम्मू पहुँचा देंगें। वह हिचकते हुए बोला… एक बार इसकी शक्ल दिखा। मैने तुरन्त आलिया के चेहरे से चिलमन उठा कर कहा… देख लो भाई। लड़की ही है। कल हमारा निकाह हो जाएगा। उसके बाद पकड़ने का कोई डर नहीं रहेगा। यह कहते हुए मैने जल्दी से आलिया का चेहरा ढक दिया था। वह कुछ क्षण सोचता रहा फिर मेरे आगे से हट गया था।

आलिया की एक झलक देखने के बाद उसका रुख ही बदल गया था। वह आगे बढ़ते हुए बोला… इसका क्या नाम है? …अंजली कौल। …ओह पंडित है। मैने कोई जवाब नहीं दिया और आगे बढ़ गया। मस्जिद मे दाखिल होते ही बहुत बड़ा खाली अहाता और दोनो ओर कमरे बने हुए थे। सभी कमरे अंधेरे मे डूबे हुए थे। मुख्य द्वार पर छोटे से बल्ब की धीमी रौशनी मे चारों ओर का जायजा लेकर हम जैसे ही आगे बढ़े कि तभी एक कमरे का दरवाजा खोल कर वह बोला… मियाँ, यह कमरे मे ठहर जाएगी। तुम मेरे साथ आओ। एक पल के लिए मै झिझका लेकिन तभी वह बोला… तुम यहाँ बाहर बैठ जाओ। मस्जिद मे कोई गलत हरकत नहीं होनी चाहिए। मैने जल्दी से सिर हिला कर उसे अपनी स्वीकृति दे दी और दीवार से पीठ टिका कर बैठ गया। मैने मुड़ कर खिड़की के जंगले से आलिया से कहा… तुम अन्दर आराम करो। अब सारा खतरा टल गया है। मै बाहर बैठा हुआ हूँ तो डरने की जरुरत नहीं है। वह आदमी हमें वहीं छोड़ कर चला गया था। मेरी नजरें मस्जिद के बन्द कमरों और अन्दर जाने के रास्ते व सिड़ियों की निशानदेही कर रही थी। एक मंजिल उपर भी बनी हुई थी परन्तु वहाँ भी वीरानी छायी हुई थी।

कुछ देर के बाद वही आदमी वापिस टहलते हुए मेरे पास आ कर बैठते हुए बोला… मियाँ, इस चिड़िया को कहाँ से भगा कर लाया? …जम्मू। मेरे कन्धे पर हाथ मार कर मुस्कुरा कर बोला… बड़ टन्च माल है। फिर आँख मार कर मुझसे पूछा… इसके साथ तूने अभी तक कुछ किया है या अभी तक कोरी है? मैने झिझकते हुए कहा… भाईजान क्या बात कर रहे हो। फिर धीरे से सिर हिला कर मैने हामी भर दी थी। वह खिलखिला कर हँस दिया और एक बार फिर मेरे कन्धे पर हाथ मार कर बोला… तो तू फुल आन मजे ले चुका है। मै सिर झुका कर बैठ गया। एकाएक वह उठ कर खड़ा हो गया और मेरी बाँह थाम कर मुझे उठाते हुए बोला… चल मेरे साथ। चाय बन रही है। उसके लिए चाय ले जा। पता नहीं कब से भूखी होगी। तू भी चाय पीकर वापिस आ जाना। मै हिचकते हुए उसके साथ चल दिया था। …भाईजान, आज यहाँ आपके सिवा और कोई नहीं है। …नहीं। आज शाम की नमाज के बाद यह मस्जिद खाली करा दी गयी थी। आलिया को अकेला कमरे मे छोड़ कर जाने का मेरा दिल नहीं था परन्तु मजबूरी थी।

कमरे से कुछ दूर होने के बाद वह चलते हुए बोला… यार, बेहद दिलकश माल है। तू तो मजे ले चुका है लेकिन आज की रात मुझे भी इसके साथ मजे करने दे। सुबह इसके साथ मै खुद तेरा निकाह करा दूँगा। मै चलते-चलते रुक कर बोला… नहीं भाई। ऐसी बात मत कीजिए। यह मेरी मोहब्बत है। …अबे छोड़ इश्क मोहब्बत का चक्कर। तेरा काम तो हो गया तो अब इसको यहाँ मेरे पास छोड़ कर तू कट ले। यह बात करते हुए जैसे ही हम गलियारे मे मुड़ कर एक अहाते मे पहुँचे तभी सामने वाले कमरे के बाहर जमीन पर तीन लोग बैठे दिखायी दिये। सभी के हाथों मे एके-47 लटकी हुई थी। एकाएक उसकी आवाज कड़ी हो गयी… राजी से आज की रात हमे उसके साथ बिताने देगा तो तेरी जिंदगी बच जाएगी वर्ना तुझे मार कर हम फिर भी उसके साथ रात गुजारेंगें। मैने गिड़गिड़ाते हुए कहा… नहीं भाई। यह गलत काम मत करो। खुदा से डरो भाई। मेरी मोहब्बत को रुसवा मत करो। हम उनके नजदीक पहुँच गये थे। वह तीनों उठ कर खड़े हो गये थे। मै गिड़गिड़ा रहा था और वह हँस रहे थे।

अचानक उन चारों मे से एक बोला… इसको यहाँ बिठाओ। अगर यह ज्यादा शोर मचाए तो साले को गोली मार देना। तब तक मै फारिग हो कर आता हूँ। आज उस हसीना के जिस्म को निचोड़ कर रख दूँगा। तभी जो व्यक्ति मेरे साथ आया था वह बोला… उसके पास सबसे पहले मै जाऊँगा जुबैर। मेरे बाद तुम सब का नम्बर लगेगा। उन दोनो मे बहस शुरु हो गयी थी कि पहले आलिया के कमरे मे कौन जाएगा। बाकी दोनो का ध्यान भी उनकी ओर लगा हुआ था। मैने मौका देख कर अपनी कमर मे बंधी हुई पिस्तौल निकाल कर फायरिंग के लिए तैयार हो चुका था। वासना के भूखे दरिंदे सब कुछ भूल कर इस बहस मे व्यस्त थे कि पहले उसके कमरे मे कौन जाएगा। वह मुझे भुला चुके थे और मै मौके की तलाश मे था। उनकी बहस हाथापाई मे बदले उससे पहले तीसरा जिहादी बीच-बचाव करने के लिये आगे बढ़ा तभी …धाँय…अचानक पिस्तौल की आवाज ने रात की खामोशी भंग कर दी थी। तीसरे जिहादी के हिलते ही मुझे फायर करने का मौका मिल गया था।

अगले ही पल मुझे लाने वाला व्यक्ति हवा मे उछला और उसके जीवन का अन्त हो गया था। उसके सिर  का पिछला हिस्सा खील-खील हो कर बिखर गया था। जब तक कोई समझ पाता तब तक एक के बाद एक…धाँय…धाँय…धाँय…धाँय…की आवाज मस्जिद मे गूँजी और पल भर मे तीन लाशें जमीन पर निश्चल पड़ी हुई थी। मेरी सर्विस पिस्तौल ग्लाक-17 ने चौथे जिहादी को निशाने पर ले लिया था। मस्जिद मे शान्ति छा गयी थी और बदले हुए हालात को देख कर वह पथरा सा गया था। मैने एक नजर चारों ओर घुमा कर देखा और जब कोई और नहीं दिखा तब मैने कहा… अपनी गन को नाल से पकड़ कर कन्धे से निकालो और फिर मेरी ओर बढ़ा दो। वह यन्त्रवत सा हिला और उसको जैसा कहा गया था वैसा करके उसने अपनी गन की नाल पकड़ कर मेरी दिशा मे बढ़ा दी थी। तभी भागते हुए पदचापों की आवाज मेरे कान मे पड़ी तो मैने जल्दी से उसकी एके-47 को अपने कब्जे मे लिया और उस जिहादी को कवर करके आवाज की दिशा मे एके-47 अब फायर करने के लिये तैयार हो गया था। मेरी नजर आलिया पर पड़ी जो बदहवासी मे भागती हुई आ रही थी। जमीन पर पड़ी हुई लाशों पर नजर पड़ते ही आलिया के मुख से तेज चीख निकली और वह ठिठक कर वहीं रुक गयी थी। उस जिहादी को दरवाजे की ओर धक्का देते हुए मैने आलिया से कहा… उनकी गन उठा लो। आलिया एक पल के लिए आगे बढ़ने मे झिझकी फिर जल्दी से हालात समझते हुए उसने दोनो एके-47 उठा कर मेरे पास आकर खड़ी हो गयी थी।

…मियाँ यह दरवाजा खोलो। वह लड़खड़ाते हुए आगे बढ़ा और लोहे का कुन्डा सरका कर दरवाजे को खोल कर एक किनारे मे खड़ा हो गया था। मै जिस चीज की तलाश मे यहाँ आया था अब वह मेरे सामने थी। …मियाँ कमरे की लाइट जला दो। उसने आगे बढ़ कर स्विच आन करके कमरा रौशन कर दिया था। अन्दर से वह कमरा देखने मे एक छोटा सा आयुधखाना लग रहा था। दस-पन्द्रह एके-47 और एके-56 करीने से एक किनारे मे रखी हुई थी। लकड़ी के पाँच डिब्बे दीवार के साथ रखे हुए थे। पाँच बड़े ड्रम कमरे के दूसरे किनारे मे रखे हुए थे। दो मोर्टार लांचर और दस-पन्द्रह मोर्टार एक लकड़ी के फट्टे पर कमरे के बीचोंबीच रखे हुए थे। बहुत सारा मस्जिद का सामान जैसे लाउडस्पीकर, एम्प्लीफायर, तार, बिजली की लड़ियाँ, वगैराह भी एक कोने मे रखे हुए थे। एक नजर मे कमरे मे रखे हुए असला-बारुद के बारे मे अंदाजा लगा कर मै इसी निष्कर्ष पर पहुँचा कि इस सबको यहाँ से बाहर निकालना असंभव था। पुलिस को इस आयुधखाने की खबर भी नहीं कर सकता था क्योंकि कमरे के बाहर तीन लाशें पड़ी हुई थी। मैने आलिया को अपनी पिस्तौल पकड़ा कर कहा… अगर यह जरा सा भी अपनी जगह से हिले तो इसकी नाल को उसकी दिशा मे करके बस ट्रिगर दबाने की जरुरत है। बाकी काम गोली अपने आप कर देगी। यह बोल कर ड्र्मों और डिब्बों का नीरिक्षण करने के लिए आगे बढ़ गया।

ड्र्म के ढक्कन पर एके-47 के बट से तीन-चार बार प्रहार किया तो ढक्कन ढीला हो कर निकल गया था। ड्रम के अन्दर देखते ही मेरी रुह काँप गयी थी। सेम्टेक्स और सी-4 जैसे प्लास्टिक एक्सप्लोसिव्स से ड्रम भरा हुआ था। जरा सी एक चिंगारी पूरी मस्जिद को तबाह करने के लिए काफी थी। मैने सभी ड्रम के ढक्कनों को हटा कर देखा तो समझ गया कि वह लोग सही मे कुछ बड़ा काम करने की सोच रहे थे। असंख्य टाइमर्स, डिटोनेटर्स और आईईडी पड़े हुए थे। एक ड्रम मे आरडीएक्स का जखीरा भरा हुआ था। मैने लकड़ी के डिब्बों को खोलना आरंभ किया। दो डिब्बे तो एके-47 और 56 की मैगजीन से भरे हुए थे। एक डिब्बे मे पिस्तौलें और असंख्य कारतूस पड़े हुए थे। एक डिब्बे मे हेन्डग्रेनेड रखे हुए थे। मैने दस हेन्डग्रेनेड निकाले और जल्दी से क्रमवार ब्लास्ट के लिए उन्हें जोड़ना आरंभ कर दिया। मै जैसे ही ग्रेनेड का पिन निकालता उन दोनो की साँस रुक जाती थी। ड्रम मे से टाईमर और डेटोनेटर निकाल कर ब्लास्ट करने की तैयारी मे लग गया था। आलिया और वह आदमी हैरत से मेरे चलते हुए हाथों को देख रहे थे। आधे घंटे मे कमरे के तीन कोने मे तीन-तीन ग्रेनेड्स को सीरीज मे जोड़ कर रख दिया था। तीन ग्रेनेड के एक गुच्छे को सेम्टेक्स के ड्र्म मे डेटोनेटर लगा कर उसके उपर टाइमर सेट करके छोड़ दिया था। एक बार सारे कनेक्शन चेक करने के बाद मैने उनको कमरे से बाहर निकाला और लाइट का स्विच आफ करके दरवाजा बन्द कर दिया। यहाँ पर मेरा काम समाप्त हो गया था।

मेरे कन्धे पर लटकी हुई एके-47 का सेफ्टी कैच हटा कर आलिया से कहा… तुम मुख्य द्वार पर मेरा इंतजार करो। जब वह अपनी जगह से नहीं हिली तो मुझे उसे जबरदस्ती धक्का देकर वहाँ से निकालना पड़ा था। उसके जाते ही मैने एके-47 को उस आदमी की दिशा मे घुमाया और ट्रिगर दबा दिया। पल भर मे उसका जिस्म गोलियों से छलनी हो गया था। मैने सामने पड़ी हुई लाशों की जेब टटोल कर सारा सामान जल्दी से अपनी जेब मे डाला और एक बार फिर से मस्जिद मे चारों ओर निगाह दौड़ा कर आलिया को लेकर मस्जिद से बाहर आ गया था। एक नजर मैने अपनी घड़ी पर डाली तो एहसास हुआ कि सारा काम निपटाने मे तीन घन्टे लग गये थे। पौ फटने मे अभी कुछ घंटे शेष थे।  

आलिया मुख्य द्वार पर मेरा इंतजार कर रही थी। छोटे गेट को खोल कर एक नजर बाहर सड़क पर डाल कर हम दोनो तेज कदमों से अपनी जीप की ओर चले गये थे। हम वहाँ से सीधे कोम्पलेक्स की ओर जाने के बजाय अपने घर की ओर चल दिये थे। …उस आदमी को भी मार दिया। मैने उसको अनसुना कर दिया तो वह बोली… समीर, ब्लास्ट तो नहीं हुआ। …समय आने पर अपने आप हो जाएगा। फिर पूरे रास्ते हम चुप बैठे रहे थे। अपने घर सुरक्षित पहुँच कर मैने पहली बार चैन की साँस ली थी। घर के बाहर सब कुछ सुनसान पड़ा हुआ था। दरवाजे पर जीप खड़ी करके हम दोनो उसी मे सो गये थे। मस्जिद मे हुए ब्लास्ट से अनिभिज्ञ हम सुबह तक जीप मे सोते रहे थे। सुबह उठ कर जब अम्मी रसोई की ओर जा रही थी तब उनकी नजर हमारी जीप पर पड़ी तो वह गेट का ताला खोल कर बाहर निकल कर देखने आ गयी थी। जीप मे हमे सोता हुआ देख कर उन्होंने ही हमे जगाया था। दो घंटे की नींद लेने से कुछ थकान तो कम हो गयी थी। हम दोनो मुँह हाथ धो कर चाय पीने के लिए बैठ गये थे। …तुम कब आये? …अम्मी हम सुबह चले आये थे क्योंकि आज आलिया को आपके साथ अब्दुल लोन के आफिस मे जाना था। अम्मी अच्छी तरह से जानती थी कि फौज मे भर्ती होते ही मेरी दिनचर्या सुबह पाँच बजे से आरंभ हो जाती थी इसीलिए उस दिन उन्होंने ज्यादा सवाल-जवाब नहीं किये थे।

मैने फोन से अपनी आफिस की गाड़ी यहीं पर बुलवा ली थी। आलिया तैयार होने के लिए चली गयी। मेरी गाड़ी पहुँचते ही मै कोम्पलेक्स की ओर चल दिया था। कोम्पलेक्स की दिशा मे जाते हुए सुरक्षा के इंतजाम देख कर मुझे समझ मे आ गया था कि बहुत बड़ा काम हो गया है। अपने घर पहुँच कर मैने जब टीवी पर स्थानीय समाचार देखा तब पता चला कि जामिया मस्जिद की छत के साथ उसका पिछला हिस्सा भी नदारद था। पुलिस दोषियों को पकड़ने के लिए अपना सिर पटक रही थी। राजनीतिक पार्टियाँ भी कुछ बोलने से बचती फिर रही थी। अलगाववाद और पृथकवादी समूह कभी पाकिस्तान की ओर इशारा करते और कभी तंजीमों के बीच आपसी रंजिश के बारे मे बोलते हुए दिख रहे थे। किसी को कुछ भी समझ मे नहीं आ रहा था कि इतना भयंकर ब्लास्ट मस्जिद मे कैसे हो गया था। हाजी मोहम्मद उल मंसूर सैयद ही एक मात्र ऐसा आदमी था जिसको सबसे गहरा सदमा लगा था। पुलिस और फौज उससे पूछ रही थी कि इतना सेम्टेक्स मस्जिद के अन्दर आया कहाँ से था। तंजीमे पूछ रही थी कि अगर इतना सामान अन्दर रखा हुआ था तो उनको दिया क्यों नहीं था। भला हाजी साहब उस विस्फोट का क्या जवाब देते क्योंकि वह खुद भी इसके बारे मे पूरी तरह से अनजान थे। उनका बेटा जो इसके बारे मे जानता था अब वह भी गायब हो गया था। उन जिहादियों की जेब से निकले हुए सामान को मेज पर फैला कर मै उनका निरीक्षण करने मे जुट गया था।

दोपहर को ब्रिगेडियर चीमा का फोन आया… मेजर कहाँ हो? …सर यहीं आफिस मे हूँ। …इधर आओ। बस इतना कह कर उन्होंने फोन काट दिया था। कुछ देर के बाद मै चुपचाप उनके सामने खड़ा हुआ उनके चेहरे पर छायी हुई खुशी को पढ़ने की कोशिश कर रहा था। …मेजर, तुम्हारी खबर उस मस्जिद के बारे मे सही साबित हो गयी। फोरेन्सिक रिपोर्ट के आधार पर कहा जा सकता है कि उस मस्जिद मे भारी मात्रा मे असला और बारुद रखा हुआ था। पता चला है कि आज सुबह शार्ट सर्किट के कारण स्टोर मे रखे हुए प्लास्टिक एक्सप्लोसिव ने आग पकड़ ली थी। वह तो शुक्र है कि जुमे की नमाज के बाद मस्जिद खाली करा दी गयी थी। हमे सुनने मे आया है कि बहुत से लोग जो मस्जिद मे रहते थे उन्हें दो दिन के लिए घर भेज दिया गया था। वहाँ पर उस रात बस एक चौकीदार रह गया था जो इस हादसे का शिकार हो गया। मै चुपचाप सुन रहा था। …मेजर, मुझे पता चला है कि कल रात को दस बजे तुम और तुम्हारी बहन बाहर गये थे और फिर तुम अकेले ही सुबह लौट आये थे। इतना बोल कर वह रुक गये और फिर हँसते हुए बोले… मै उम्मीद करता हूँ कि इस हादसे मे तुम्हारा कोई हाथ नहीं होगा।  मैने जल्दी से कहा… सर कल रात को मै तो अपने घर पर था। मेरी बहन आज वहीं रुक गयी थी। वह कुछ देर मुझे घूरते रहे फिर मुस्कुरा कर बोले… तुम्हारी बहन सुरक्षित है जान कर मुझे खुशी हुई। मैने एक कागज का टुकड़ा उनके सामने रखते हुए बोला… सर, एक जिहादी की जेब से यह कागज मिला है। ब्रिगेडियर चीमा ने उस कागज को उठाया और कुछ देर उस पर लिखे हुए नम्बरों को ध्यान से पढ़ने के बाद वह मेरी ओर देख कर बोले… यह क्या है? उस कागज पर उर्दू मे 3401148, 7478351, 3409097, 7479295 लिखा हुआ था। …सर, यह फोन नम्बर तो नहीं हो सकते है। ऐसा लगता है कि यह उस जगह का कोई कोड है जहाँ वह असला-बारुद इस्तेमाल करना चाहते थे। …यह कागज मेरे पास छोड़ जाओ। मैने उनसे विदा ली और कमरे के बाहर निकल गया। मैने वह नम्बर पहले ही नोट कर लिये थे इसीलिये मै वह कागज का टुकड़ा उनके पास छोड़ कर वापिस अपने आफिस मे आ गया था।

शाम को आफिस समाप्त करके मै आलिया को लेने घर चला गया था। वहाँ पर पहुँच कर मुझे पता चला कि जामिया मस्जिद मे ब्लास्ट होने के कारण आज अब्दुल लोन का अफिस बन्द था। चाय पीते हुए अम्मी ने कहा… आलिया जब से आयी है तब से गुम सुम बैठी है। क्या तुम दोनो के बीच मे कोई लड़ाई हुई है? …नहीं अम्मी। सुबह से आलिया से मेरी कोई बात नहीं हुई है। कुछ देर मस्जिद मे हुए ब्लास्ट के बारे मे बात करने के बाद मैने आलिया से कहा… चलो। अंधेरा होने वाला है। आज सिक्युरिटी वैसे भी काफी है इसीलिए जल्दी कोम्पलेक्स मे पहुँच जाए तो अच्छा होगा। अम्मी से खुदा हाफिज़ करके आलिया चुपचाप मेरे साथ चल दी थी। …क्या हुआ आलिया? वह कुछ देर चुप रही फिर धीरे बोली… समीर, तुमने कितनी आसानी से चार आदमियों को मार दिया और तुम्हें जरा सा भी दुख नहीं हुआ। …क्या तुम्हें पता है कि वह तीन क्यों मारे गये थे?  उसने मेरी ओर देखा तो मैने कहा… वह मुझसे कह रहे थे कि तुम्हें वहाँ उनके पास छोड़ कर चला जाऊँ। वह तुम्हारे लिए मुझे भी मारने को तैयार थे। मुझे निशाने पर लेकर जब उनमे से एक तुम्हारे पास जाने के लिए बढ़ा तब मुझे उसको मारना पड़ा था। मुझे उस वक्त पता नहीं था कि इतना असला बारुद उस कमरे मे रखा हुआ है। वह मेरी बात चुपचाप सुन रही थी। …समीर, वह लाशें मेरी आँखों के सामने घूमती रहती है। उसे अपने सीने से लगा कर मैने कहा… सिर्फ इतना सोच कर देखो कि अगर वह सारा सामान मस्जिद से बाहर निकल गया होता तो कितने मासूम लोगो की लाश देखनी पड़ती। यह सोच कर देखो उन चार की मौत से कितनी सारी मासूम जिंदगियाँ बच गयी। उस रात वह अशांत रही परन्तु अगली सुबह तक वह अपने पुराने स्वरुप मे आ गयी थी। जब तक मै तैयार होकर बाहर निकला तब तक वह चहकने लगी थी। …समीर, आज आफिस मत जाना। हमे आज अब्दुल लोन के आफिस जाना है। वहाँ का काम समाप्त करके मुझे शबनम से मिलना है। हाँ…एक और बात है। कल दोपहर को जन्नत का फोन आया था। उसको कुछ पैसों की जरुरत है। जन्नत का नाम सुनते ही मैने चौंक कर आलिया की ओर देखा तो उसके चेहरे पर एक शरारती मुस्कान तैर गयी थी। आज मैने सोचा था कि ब्रिगेडियर चीमा से बात करके एक खोजी कुत्ते का प्रबन्ध किया जाए परन्तु आलिया ने आज का सारा कार्यक्रम पहले ही तय कर लिया था।

युनीफार्म की जगह सादे कपड़े पहन कर दस बजे तक हम अब्दुल लोन के आफिस की ओर निकल गये थे। शहर मे पहुँच कर आलिया ने मुझे उसके आफिस का रास्ता दिखाया था। उसका आफिस लोन परिवार की पुश्तैनी इमारत मे था। आज आफिस खुला हुआ था। हम अब्दुल लोन के आफिस मे प्रवेश करके सीधे अकाउन्टेन्ट के पास चले गये थे। असलम एक वृद्ध आदमी था। उसकी मेज के सामने खड़े होकर आलिया ने कहा… बट फार्म्स का बिल देना है। …इन्वोइस की कापी दिखाईए। बिना कुछ बोले आलिया ने चारों इन्वोइस उसके सामने रख दी थी। हर इन्वोइस की कापी अपने रजिस्टर मे लिखी हुई जानकारी से मिलान करने के बाद वह धीरे से बोला… आठ लाख कर बिल बना दो। …चार ट्रक माल के लिए? …हाँ भई हाँ। मैने जल्दी से चारों इन्वोइस के नम्बर बिलबुक मे लिख कर आठ लाख का बिल बना कर उसकी ओर बढ़ा दिया था।

जब वह बिल को चेक कर रहा था कि अचानक पीछे से एक स्त्री की आवाज मेरे कानों मे पड़ी… मिस्टर असलम क्या कर रहे है? मैने मुड़ कर देखा तो एक हिजाब पहने स्त्री चलती हुई आयी और मेरे साथ आकर खड़ी हो गयी थी। उस स्त्री को देख कर वह आदमी तुरन्त अपनी सीट से खड़ा होकर बोला… बट फार्म का बिल चेक कर रहा हूँ। उस स्त्री ने गौर से हम दोनो को देखा और फिर मुस्कुरा कर बोली… आप दोनो बट फार्म्स से आये है? आलिया ने जल्दी से कहा… जी। वैसे तो हमारी अम्मी आती थी। परन्तु उनकी तबियत खराब होने के कारण आज हमको आना पड़ा है। मै आलिया और मेरे साथ समीर है। एक भरपूर नजर हम पर डाल कर वह बोली…  यहाँ सेब का कारोबार मै संभालती हूँ। जरा बिल दिखाईए। उस वृद्ध ने बिल उस स्त्री की ओर बढ़ा दिया था। उसने एक नजर बिल पर डाल कर कहा… असलम मियाँ कितने और बिल अभी पेन्डिंग है। …इस बिल को मिला कर सीजन के अभी बारह बिल पेन्डिंग है। …ठीक है। आज मै यहीं हूँ। सारे पेन्डिंग बिल ले आईए। आज सारे बिल क्लीयर करके जाऊँगी। यह बोल कर वह जाने लगी तो मैने टोकते हुए पूछा… मोहतरमा, आपका परिचय। वह मुझे घूर कर देखते हुए बोली… मिसेज लोन। मैने जल्दी से कहा… हमारी अनिभिज्ञता के लिए माफ कीजिए। आलिया ही अब कारोबार का काम देखेगी इसीलिए आपके बारे मे पूछ लिया था। मुझे अनदेखा करके उसने आलिया की ओर मुस्कुरा कर कहा… तुम अगली बार जब यहाँ आओ तो मुझसे मिल कर जाना। इतना बोल कर वह मुड़ी और अपने केबिन की ओर चली गयी। उसके केबिन के बाहर उसकी नेम प्लेट लगी हुई थी… नीलोफर लोन। उस नाम को देख कर मैरे दिमाग मे घंटी बज गयी थी।